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RBSE Class 9 Hindi रचना निबन्ध-रचना

May 16, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi रचना निबन्ध-रचना

1. निबन्ध रचना
निबन्ध गद्य की वह विधा है जिसमें सीमित शब्दों में किसी विषय पर क्रमबद्ध तथा तर्कसंगत विचार प्रकट किये जाते हैं। निबन्ध चार प्रकार के होते हैं-
(1) वर्णनात्मक
(2) विवरणात्मक
(3) विचारात्मक तथा
(4) विवेचनात्मक
वर्णनात्मक निबन्धों में किसी घटना, वस्तु, व्यक्ति इत्यादि का वर्णन किया जाता है तथा किसी मेले, किसी महापुरुष की। जीवनी आदि का विवरण प्रस्तुत करना विवरणात्मक निबन्ध है। दोनों में मामूली शैलीगत अन्तर है। कक्षा-9 के स्तर के छात्रों से वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक निबन्ध ही पूछे जाते हैं।

रचना :
1. मेक इन इंडिया अथवा स्वदेशी उद्योग
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका, (2) सम्पन्नता क्यों ? (3) धनोपार्जन और उद्योग, (4) मेक इन इंडिया, (5) विदेशी पूँजी की जरूरत, (6) पूँजी के साथ तकनीक का आगमन, (7) उपसंहार।

भूमिका – स्वदेशी की भावना भारत के लिए नई नहीं है। इसमें आत्मसम्मान तथा देश के प्रति प्रेम का भावे भरा है। संसार में अनेक सम्पन्न और सुंदर देश हैं किन्तु अपना देश फिर भी अपना ही है। उसको सुख-सुविधा सम्पन्न और समृद्ध देखने की कामना प्रत्येक भारतवासी में होना स्वाभाविक हैं।

सम्पन्नता क्यों – प्रश्न उठता है कि मनुष्य सम्पन्न होना क्यों चाहता है ? हमारे जीवन में अनेक आवश्यकताएँ होती हैं। उनकी पूर्ति के लिए साधन चाहिए। ये साधन हमको सम्पन्न होने पर ही प्राप्त होंगे। आवश्यकता की पूर्ति न होने पर हम सुख से नहीं रह सकते। अत: धन कमाना और सम्पन्न होना आवश्यक है।

धनोपार्जन और उद्योग – धन कमाने के लिए कुछ करना होगा, कुछ पैदा भी करना होगा। कृषि और उद्योग उत्पादन के माध्यम हैं। व्यापार भी इसका एक साधन है। हम कुछ। पैदा करें, कुछ वस्तुओं का उत्पादन करें यह जरूरी है। देश को आगे बढ़ाने और समृद्धिशाली बनाने के लिए हमें अपनी आवश्यकता की ही नहीं, दूसरों की आवश्यकता की वस्तुएँ भी बनानी होंगी।

मेक इन इंडिया – आजकल छोटे-छोटे देश अपने यहाँ उत्पादित वस्तुओं का विदेशों में निर्यात करके अपनी समृद्धि को बढ़ा रहे हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में नष्ट हुआ जापान स्वदेशी के बल पर ही अपने पैरों पर खड़ा हो सका है। भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ को नारा दिया है। इसका उद्देश्य विदेशी पूँजी को भारत में आकर्षित करना तथा उससे यहाँ उद्योगों की स्थापना करना है। इन उद्योगों में बनी वस्तुएँ भारत में निर्मित होंगी। उनको विश्व के अन्य देशों के बाजारों में बेचा जायेगा। इससे धन का प्रवाह भारत की ओर बढ़ेगा और वह एक समृद्ध राष्ट्र बन सकेगा।

विदेशी पूँजी की जरूरत – उद्योगों की स्थापना तथा उत्पादन करने और उसकी वृद्धि करने के लिए पूँजी की आवश्यकता होगी ही। अभी भारत के पास इतनी पूँजी नहीं हैं कि वह अपने साधनों से बड़े-बड़े उद्योग स्थापित कर सके तथा उन्हें संचालित कर सके। हमारे प्रधानमंत्री चाहते हैं कि विदेशों में रहने वाले सम्पन्न भारतीय तथा अन्य उद्योगपति भारत आयें और यहाँ पर अपनी पूँजी से उद्योग लगायें। उत्पादित माल के लिए उनको भारतीय बाजार तो प्राप्त होगा ही, वे विदेशी बाजारों में भी अपना उत्पादन बेचकर मुनाफा कमा सकेंगे। उससे भारत के साथ ही उनको भी लाभ होगा।

पूँजी के साथ तकनीक का आगमन – प्रधानमंत्री जानते हैं। कि भारत को पूँजी ही नहीं नवीन तकनीक की भी आवश्यकता है। वह विदेशी उद्योगपतियों को भारत में उत्पादन के लिए आमंत्रित करके पूँजी के साथ नवीन तकनीक की भी भारत के लिए व्यवस्था करना चाहते हैं। यह सोच उनकी दूरदृष्टि को प्रकट करने वाली है। बच्चा चलना सीखता है, तो उसको किसी की उँगली पकड़ने की आवश्यकता होती है। फिर तो वह सरपट दौड़ने लगता है। भारत भी कुशल उद्योगपतियों के अनुभव का लाभ उठाकर एक शक्तिशाली औद्योगिक देश बन सकता है।

उपसंहार – भारत अपने उद्योग व्यापार के कारण ही प्राचीनकाल में विश्व का एक सम्पन्न और समृद्ध राष्ट्र था। गाँधीजी ने स्वतंत्रता आन्दोलन के समय स्वदेशी का नारा दिया था। उन्होंने विदेशी के बहिष्कार का पाठ पढ़ाया था। वह जानते थे कि अपने देश में बनी वस्तुओं का प्रयोग ही देश को समृद्ध और सशक्त बना सकता है। भविष्य में भी भारत अपने उद्योग व्यापार को सबल बनाकर ही सम्पन्नता प्राप्त कर सकता है।

2. स्वच्छ भारत अभियान
संकेत बिन्दु – (1) स्वच्छ भारत का अभिप्राय। (2) स्वच्छता और स्वास्थ्य। (3) स्वच्छता अभियान की आवश्यकता। (4) घरों में शौचालय की जरूरत। (5) लोगों की आदतें बदलने की आवश्यकता। (6) उपसंहार।

स्वच्छ भारत का अभिप्राय – भारत एक प्राचीन देश है। यहाँ मन की पवित्रता पर बहुत जोर दिया गया है। मन की पवित्रता के साथ तन को स्वच्छ रखने के लिए स्नान को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। विभिन्न पर्यों पर नदियों में स्नान करने की परम्परा रही है। इसका चरम स्वरूप कुम्भ के मेले के अवसर पर देखा जा सकता है। इसके साथ जहाँ हम रहते हैं उस स्थान की स्वच्छता भी आवश्यक है परन्तु इस पर इतना अधिक ध्यान शायद नहीं दिया जाता। आसपास की स्वच्छता हमारे भारत में प्रायः उपेक्षित ही रही है। इस मनोविचार को बदलकर देश की सड़कों, गलियों, नदियों, तालाबों, सार्वजनिक स्थानों आदि को स्वच्छ बनाकर भारत को स्वच्छ करना है।

स्वच्छता और स्वास्थ्य – स्वास्थ्य के लिए जहाँ उत्तम खान-पान आवश्यक होता है, वहीं परिवेश की स्वच्छता भी जरूरी होती है। हमारे घर, गलियाँ, सड़कें आदि साफ रहेंगी तो रोगाणुओं को पनपने का अवसर नहीं मिलेगा। इससे रोगाणुओं से फैलने वाले रोग भी नहीं फैलेंगे और लोग बीमारियों से मुक्त रह सकेंगे। इस प्रकार स्वच्छता को स्वास्थ्य की प्रथम सीढ़ी माना जा सकता है।

स्वच्छता अभियान की आवश्यकता – गाँधी जयन्ती के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता अभियान का आरम्भ किया। प्रधानमंत्री ने अनुभव किया कि देश को स्वच्छ करने की महती आवश्यकता है। विश्व के अनेक देशों में वहाँ के नगरों में गन्दगी ढूँढ़ने पर भी नहीं मिलती। इसके विपरीत भारत के शहर और गाँव बहुत गन्दे हैं। लोग अपने आस-पास की सफाई करने में अपना छोटापन समझते हैं। वे समझते हैं कि सफाई का काम सफाई-कर्मचारी का होता है। मोदी जी ने स्वयं झाडू उठाकर दिल्ली में सड़क पर सफाई इस धारणा को तोड़ने के लिए ही की थी। भारत को गन्दगी से मुक्त करने के लिए लोगों के सहयोग की महती आवश्यकता है। लोगों को सफाई के प्रति जागरूक करना परम आवश्यक है।

घरों में शौचालय की जरूरत – प्रधानमंत्री ने अनुभव किया कि घरों में शौचालय बनाने की जरूरत है। सरकार ने इस काम के लिए समयबद्ध कार्यक्रम पर जार दिया तथा पाँचवर्ष में प्रत्येक घर में शौचालय बनाने को कहा। भारत में अनेक लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। इससे गंदगी के. साथ ही बीमरियाँ भी फैलती हैं।

लोगों की आदतें बदलने की आवश्यकता – भारत को स्वच्छ बनाने में केवल शौचालय बनाने से काम नहीं चलने वाला इसके लिए लोगों की आदतें बदलना जरूरी होगा। शौचालय बनने के बाद भी कुछ लोग उनका प्रयोग नहीं करते। उनको खुले में शौच के लिए जाना ही अच्छा लगता है। बड़े शौचालय का प्रयोग कर भी लें किन्तु बच्चों को वे नालियों तथा सड़कों के किनारे ही शौच कराते हैं। बच्चों के मल को महिलाएँ चाहे जहाँ फेंक देती हैं। कुछ लोग साबुन के स्थान पर मिट्टी से हाथ धोना ही पसंद करते हैं। शौचालय यदि बिना सीवर लाइन डाले बनेंगे तो उनका गन्दा पानी तो नालियों में ही बहेगा। सड़क पर कभी कहीं भी थूकना, पेशाब करना तो सामान्य बात है। कूड़ा कहीं भी फेंक दिया जाता है। लोग घरों के बाहर स्वयं सफाई करना भी नहीं चाहते। इन सबके लिए गम्भीर प्रयास करना आवश्यक है। लोगों की आदतें बदले बिना इस काम में सफलता नहीं मिल सकती।

उपसंहार – भारत को स्वच्छ बनाने का अभियान एक अच्छी शुरूआत है किन्तु इसके लिए पाँच वर्ष का समय बहुत कम है। लोगों को प्रेरित करने के लिए पुरस्कार की नीति अपनाना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए कठोर दण्ड-व्यवस्था को लागू करना भी जरूरी है।

3. मोबाइल फोन : कितना लाभ, कितनी हानि
अथवा
मोबाइल फोन : दैनिक जीवन में
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) मोबाइल फोन से लाभ। (3) मोबाइल फोन के दुष्परिणाम (4) उपसंहार। भूमिका- विज्ञान ने हमारे जीवन को अनेक सुख-सुविधाएँ। प्रदान की हैं। वैज्ञानिक आविष्कारों ने हमारे जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन किया है। मोबाइल फोन भी विज्ञान का ऐसा ही आविष्कार है जो आज हमारे दैनिक जीवन का अटूट अंग बन गया है। शिक्षक हो या छात्र, सब्जी विक्रेता या चाय वाला, मजदूर हो या सफाईकर्मी, व्यवसायी हो या किसान, मोबाइल फोन सबके कर-कमलों की शोभा बढ़ाता दिखायी देता है।

मोबाइल फोन से लाभ – मोबाइल फोन जेब में रहे तो व्यक्ति अपने को सुरक्षित महसूस करता है। वह अपनों से जुड़ा रहता है। वह देश में हो या विदेश में, जब चाहे इच्छित व्यक्ति से सम्पर्क कर सकता है। मोबाइल फोन ने हमें अनेक सुविधाएँ प्रदान की हैं। यह संकट का साथी है। किसी विपत्ति में पड़ने पर या दुर्घटना हो जाने पर हम अपने परिवारीजन और पुलिस को सूचित कर सकते हैं। व्यापारी, डॉक्टर, छात्र, सैनिक, गृहिणी, किशोर, युवा और वृद्ध मोबाइल सभी का विश्वसनीय साथी है। युवा तो मोबाइल के दीवाने हैं। यह उनके मनोरंजन का साधन है, सखा और सखियों से वार्तालाप कराने वाला भरोसेमंद साथी है। अब तो इससे इंटरनेट, ई-मेल, ई-बैंकिंग, टिकिट-बुकिंग जैसी अनेक सुविधाएँ प्राप्त हैं। इसमें लगा कैमरा भी बहुउपयोगी है। अपराधियों को पकड़ने में भी मोबाइल सर्विलांस सहायक होता है। देर-सबेर महिलाओं की सुरक्षा में भी इसका महत्व बढ़ गया है।

मोबाइल फोन के दुष्परिणाम – मोबाइल फोन ने जहाँ अनेक सुविधाएँ प्रदान की हैं वहीं इसने अनेक संकटों और असुविधाओं को भी जन्म दिया है। मोबाइल फोन का अनावश्यक प्रयोग समय की बरबादी करता है। गलत नम्बर मिल जाना, असमय पर बज उठना, सभासोसाइटियों के कार्यक्रम में विघ्न डालना, दुष्ट लोगों द्वारा अश्लील संदेश भेजना, अपराधी प्रकृति के लोगों द्वारा दुरुपयोग आदि मोबाइल फोन के दुष्परिणाम हैं। आतंकवादियों द्वारा इसके प्रयोग से देश की सुरक्षा पर बार-बार संकट आते रहते हैं। इसके अतिरिक्त अनचाहे विज्ञापन और सूचनाएँ आती रहना भी मोबाइल धारक को परेशान करती रहती हैं। छात्र इसका प्रयोग नकल में करने लगे हैं। इन सबसे बढ़कर जो हानि हो रही है वह है मोबाइल का अस्वास्थ्यकरे प्रभाव। मोबाइल के लगातार और लम्बे समय तक प्रयोग से बहरापन हो सकता है। इससे निकलने वाली तरंगें मस्तिष्क को हानि पहुँचाती हैं। इससे हृदय रोग हो सकते हैं।

उपसंहार – इसमें संदेह नहीं कि मोबाइल फोन ने हमारे सामाजिक-जीवन में एक क्रांति-सी ला दी है, लेकिन इस यंत्र का अनियंत्रित प्रयोग गंभीर संकट का कारण भी बन सकता है। वाहन चलाते समय इसका प्रयोग जान भी ले सकता है। विद्यालयों के वातावरण को बिगाड़ने में तथा सामाजिक-जीवन में स्वच्छंदता और अनैतिकता के कुरूप दृश्य दिखाने में मोबाइल फोन सहायक बना है। हमें इसका समझ-बूझ और संयम से प्रयोग करके लाभ उठाना चाहिए। इसका गुलाम नहीं बन जाना चाहिए।

4. इंटरनेट : ज्ञान का भंडार
अथवा
इंटरनेट : लाभ और हानि
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) इंटरनेट की कार्यविधि। (3) भारत में इंटरनेट का प्रसार (4) इंटरनेट से लाभ (5) इंटरनेट से हानि (6) उपसंहार।

भूमिका – इंटरनेट का सामान्य अर्थ है- सूचना-भण्डारों को सर्वसुलभ बनाने वाली तकनीक। आज इंटरनेट दूरसंचार का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और आवश्यक अंग बन चुका है। कम्प्यूटर तथा इंटरनेट का चोली-दामन का साथ है। कम्प्यूटर के प्रसार के साथ-साथ इंटरनेट का भी विस्तार होता जा रहा है। शिक्षा, व्यापार, अर्थव्यवस्था, सामाजिक सम्बन्ध, शोध, व्यक्तिगत जीवन, मनोरंजन, चिकित्सा तथा सुरक्षा आदि सभी क्षेत्र इंटरनेट से जुड़कर लाभान्वित हो रहे हैं। घर बैठे ज्ञान-विज्ञान सम्बन्धी सूचनाओं के भण्डार से जुड़ जाना इंटरनेट ने ही सम्भव बनाया है।

इंटरनेट की कार्यविधि – सारे संसार में स्थित टेलीफोन प्रणाली। अथवा उपग्रह संचार-व्यवस्था की सहायता से एक-दूसरे से जुड़े कम्प्यूटरों का नेटवर्क ही इंटरनेट है। इस नेटवर्क से अपने कम्प्यूटर को सम्बद्ध करके कोई भी व्यक्ति नेटवर्क से जुड़े अन्य कम्प्यूटरों में संग्रहित सामग्री से परिचित हो सकता है। इस उपलब्ध सामग्री को संक्षेप में w.w.w. (वर्ल्ड वाइड वेव) कहा जाता है।

भारत में इंटरनेट का प्रसार – भारत में इंटरनेट का निरंतर प्रसार हो रहा है। बहुउपयोगी होने के कारण जीवन के हर क्षेत्र। के लोग इससे जुड़ रहे हैं। शिक्षा संस्थान, औद्योगिकप्रतिष्ठान, प्रशासनिक-विभाग, मीडिया, मनोरंजन-संस्थाएँ, संग्रहालय, पुस्तकालय सभी धीरे-धीरे इंटरनेट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि इंटरनेट से जुड़े व्यक्तियों एवं संस्थाओं की संख्या करोड़ों तक पहुँच चुकी है।

इंटरनेट से लाभ – इंटरनेट की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इंटरनेट कनेक्शन धारक व्यक्ति किसी भी समय, किसी भी विषय पर तत्काल इच्छित जानकारी प्राप्त कर सकता है। छात्र, शिक्षक, वैज्ञानिक, व्यापारी, खिलाड़ी, मनोरंजन चाहने वाले तथा सरकारी विभाग इंटरनेट से अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार सूचनाएँ पा सकते हैं। युवा। वर्ग के लिए तो इंटरनेट ने ज्ञान और मनोरंजन के असंख्य द्वार खोल दिये हैं। ई-मेल, टेली-बैंकिंग, हवाई और रेल-यात्रा के लिए अग्रिम टिकट-खरीद, विभिन्न बिलों का भुगतान, ई-मार्केटिंग इत्यादि नई-नई सुविधाएँ इंटरनेट द्वारा उपलब्ध करायी जा रही हैं। इस प्रकार दिन-प्रतिदिन इंटरनेट हमारे दैनिक जीवन का अत्यन्त उपयोगी अंग बनता जा रहा है।

इंटरनेट से हानि – आज नगरों में स्थान-स्थान पर इंटरनेट ढाबे (साइबर कैफे) खुलते जा रहे हैं। इनमें आने वाले युवा। ज्ञानवर्धन के लिए कम, अश्लील मनोरंजन के लिए अधिक आते हैं। इंटरनेट के माध्यम से कम्प्यूटर में सचित गोपनीय सामग्री सुरक्षित नहीं रह गयी है। वाइरस का प्रवेश कराके उसे नष्ट किया जा सकता है। विरोधी देश एक-दूसरे की गोपनीय सूचनाएँ चुरा रहे हैं। इंटरनेट ने साइबर अपराधों को जन्म दिया है।

उपसंहार – विज्ञान के हर आविष्कार के साथ लाभ और हानि जुड़े हैं। इंटरनेट भी इससे अछूती नहीं है। हानियों से बचने के विश्वसनीय उपाय खोजे जा रहे हैं। इंटरनेट का सदुपयोग मानव-समाज के लिए वरदान बन सकता है। इंटरनेट सारे विश्व को एक ग्राम के समान छोटा बना रहा है। लोगों को पास-पास ला रहा है। देशों की सीमाओं को ढहा रहा है।

5. पर्यावरण-प्रदूषण
अथवा
पर्यावरण – प्रदूषण : एक समस्या
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) पर्यावरण प्रदूषण के विविध प्रकार (3) पर्यावरण प्रदूषण के कुप्रभाव (4) निवारण के उपाय (5) उपसंहार।

भूमिका – आकाश, वायु, भूमि, जल, हरियाली, पर्वत आदि मिलकर हमारा पर्यावरण बनाते हैं। ये सभी प्राकृतिक अंग हमारे स्वस्थ और सुखी जीवन का आधार हैं। दुर्भाग्य से मनुष्य ने इस पर्यावरण को दूषित और कुरूप बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आज सारा संसार पर्यावरण प्रदूषण से बेचैन है।

पर्यावरण प्रदूषण के विविध प्रकार – आज पर्यावरण का कोई भी अंग प्रदूषण से नहीं बचा है। प्रदूषण के प्रमुख स्वरूप इस प्रकार हैं –

  1. जल-प्रदूषण – कल-कारखानों से निकलने वाले कचरे और हानिकारक रसायनों ने नदी, तालाब, वर्षा-जल यहाँ तक कि भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर दिया है।
  2. वायु प्रदूषण – वायु भी प्रदूषण से नहीं बची है। वाहनों और कारखानों से निकलने वाली हानिकारक गैसें वायुमण्डल को विषैला बना रही हैं।
  3. खाद्य-प्रदूषण – प्रदूषित जल, वायु और कीटनाशक पदार्थों ने अनाज, शाक-सब्जी, फल और माँस सभी को दृषित बना दिया है।
  4. ध्वनि प्रदूषण – वाहनों का शोर हमें बहरा कर रहा है। इससे बहरापन, मानसिक तनाव तथा हृदय रोगों में वृद्धि हो रही है।
  5. भूमि और आकाशीय प्रदूषण – बस्तियों से निकलने वाले मलिन जल ने, कूड़े-करकट के ढेरों ने तथा भूमि में रिसने वाले कारखानों के विषैले रसायनों ने भूमि के ऊपरी तल तथा भू-गर्भ को प्रदूषित कर डाला है। विषैली गैसों के निरंतर निकलते रहने से आकाश प्रदूषित है। भूमि-प्रदूषण में प्लास्टिक व पॉलिथीन का बढ़ता प्रचलन एक अहम कारण है। यह भूमि की उपजाऊ-शक्ति को नष्ट कर रहा है।

पर्यावरण – प्रदूषण के कुप्रभाव – प्रदूषण ने मानव ही नहीं सम्पूर्ण जीवधारियों के जीवन को संकटमय बना दिया है। इससे मनुष्यों में रोगों का सामना करने की क्षमता घटती जा रही है। नए-नए घातक रोग उत्पन्न हो रहे हैं। बाढ़, भूमि का कटना, ऋतुओं का रूप बिगड़ जाना, रेगिस्तानों की वृद्धि और भूमण्डल के तापमान में वृद्धि जैसे घोर संकट मानव-सभ्यता के भविष्य को अंधकारमय बना रहे हैं।

निवारण के उपाय – पर्यावरण प्रदूषण का संकट मनुष्य द्वारा उत्पन्न किया गया है। अतः मनुष्य को ही अपने ऊपर नियंत्रण करना होगा। तभी इस संकट से छुटकारा मिल सकता है। कारखानों से निकलने वाले दूषित जल तथा कचरे को नदियों और जलाशयों में जाने से रोका जाये। वाहनों के इंजनों में सुधार हो बैटरी, सौर ऊर्जा तथा सी.एन.जी. आदि का प्रयोग बढ़ाया जाये। प्रदूषण फैलाने वाले सभी कारणों को दूर किया जाये। इसके साथ ही प्रकृति से मिलने वाले पदार्थों का मनमाना दोहन बंद किया जाये। तभी प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है।

उपसंहार – संसार के विकसित देशों ने ही प्रदूषण को सबसे अधिक बढ़ाया है। ये देश सारे बंधन और कानून पिछड़े देशों पर ही लादना चाहते हैं। अब पिछले प्रदूषण और तापमान वृद्धि पर हुए सम्मेलन के प्रस्तावों से कुछ आशा बँधी है कि प्रदूषण में कमी आयेगी। भारत इस दिशा में अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है।

6. संचार माध्यम व इनके बढ़ते प्रभाव
अथवा
सूचना क्रांति के युग में भारत
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) दूरसंचार का महत्व (3) भारत में सूचना-प्रौद्योगिकी का विस्तार (4) सूचनाप्रौद्योगिकी का प्रभाव (5) उपसंहार।
भूमिका – विज्ञान ने कठिन को सरल, दूर को पास और मंद को तीव्र बनाकर मानव-जीवन में क्रांति ला दी है। दूरसंचार अथवा सूचना-प्रौद्योगिकी (आई.टी.) भी मानव के लिए। विज्ञान का अमूल्य उपहार है। सूचना प्रौद्योगिकी ने विश्व की दूरियों को समेटकरे विश्व को एक ग्राम बनाने की कल्पना को साकार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।

दूरसंचार का महत्त्व – आज दूरसंचार अथवा सूचना-प्रौद्योगिकी हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गयी है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति और सामर्थ्य का मानदण्ड आज सूचना-प्रौद्योगिकी ही समझी जाती है। सामान्य गृहस्थ, व्यवसायी, कर्मचारी, धर्माचार्य, ज्योतिषी, विज्ञानी सभी दूरसंचार पर आश्रित हो गये हैं। आज संचार माध्यमों से रहित। सभ्यसमाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

भारत में सूचना – प्रौद्योगिकी का विस्तार – भारत में आज सूचना-प्रौद्योगिकी का तीव्र गति से विस्तार हो रहा है। दूर-संचार के सभी साधनों का प्रयोग देश में हो रहा है। समाचार पत्र, टेलीफोन, मोबाइल फोन, रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, सेटेलाइट फोन तथा मल्टीमीडिया आदि के
प्रयोग ने भारतीय जन-जीवन में क्रांति पैदा कर दी है।

सूचना – प्रौद्योगिकी का प्रभाव – हम अपने देश में भी दूरसंचार माध्यमों के प्रभाव को देख रहे हैं। दूरसंचार माध्यमों ने जीवन को सुविधा और सुरक्षा दोनों प्रदान की है। दूरसंचार ने दूर स्थित और दुर्गम क्षेत्रों को देश की मुख्य जीवन-धारा से जोड़ा है। राष्ट्रीय चेतना को सुदृढ़ बनाया है। व्यावसायिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासकीय, शैक्षिक, वैज्ञानिक, चिकित्सकीय आदि सभी गतिविधियों के लिए, सूचना-प्रौद्योगिकी, वरदान जैसी साबित हो रही है। उपर्युक्त लाभों के साथ ही सूचना-प्रौद्योगिकी के विस्तार ने समाज के लिए कुछ संकट भी खड़े किये हैं। इंटरनेट पर परोसी जा रही अश्लील और मिथ्या प्रचार की सामग्री, बढ़ते साइबर अपराध तथा देश की आंतरिक तथा बाह्य सुरक्षा की चुनौतियाँ भी संचार-प्रौद्योगिकी के कपरिणाम के नमूने हैं।

उपसंहार – सूचना-प्रौद्योगिकी ने जहाँ देश के युवा वर्ग के लिए रोजगार के विविध द्वार खोले हैं वहीं उसने संस्कृति से भटकाव भी उपस्थित कर दिया है। अतः सूचनाप्रौद्योगिकी पर गहरी निगरानी और नियंत्रण की परम आवश्यकता है।

7. पर्यावरण की दुश्मन : प्लास्टिक की थैलियाँ
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका, (2) प्लास्टिक की थैलियाँ (3) थैलियों का प्रयोग बना समस्या (4) पर्यावरण की दुश्मन (5) समाधान (6) उपसंहार।

भूमिका – वर्तमान युग को ‘प्लास्टिक का युग’ कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। जीवन के हर क्षेत्र में सर्वव्यापी ईश्वर के समान प्लास्टिक उपस्थित है। गरीब से गरीब और अमीर से अमीर सबकी सेवा में प्लास्टिक हाजिर है। लाखों की कार में भी वह मौजूद है और टूटी झोंपड़ी में भी। प्लास्टिक के असंख्य उत्पादों में जो सर्वव्यापक बना हुआ है वह है उसकी थैलियाँ। बड़ी नाजुक काया वाली विविध रूप रंगों वाली ये थैलियाँ बाजार की जान हैं, ग्राहकों के हाथ की शान हैं।

प्लास्टिक की थैलियाँ – एक मित्र ने मुझसे पहेली पूछी-ग्राहक ले पैसा खड़ा, भरा दुकान में माल। एक चीज के बिन हुए दोनों ही बेहाल। वह चीज क्या है ? वह चीज है थैली। प्लास्टिक थैलियों पर बाजार कितना आश्रित हो चुका है-घर से हाथ हिलाते आइए, आपकी हर खरीद के लिए थैलियाँ सेवा में उपस्थित हैं। चाहे आप पाँच रुपये का दूध खरीदिए या हजारों रुपये की साड़ी थैली में ही मिलेंगे। बेस रंग रूप में फर्क हो जाएगा।

थैलियों का प्रयोग बना समस्या – प्लास्टिक की थैलियों की सुलभता, सामान ले जाने की सुगमता, सबसे सस्ता साधन, अनेक खूबियाँ थैलियों के पक्ष में जाती हैं, फिर लोग इनकी जान के पीछे क्यों पड़े हैं। छापे पड़ रहे हैं। थैलियाँ जब्त की जा रही हैं। रैलियाँ और जुलूस निकालकर प्लास्टिक थैलियों का बहिष्कार करने की अपीलें की जा रही हैं। कपड़े और जूट के थैले बाँटे जा रहे हैं। इन नाचीज-सी थैलियों से आदमी इतना क्यों घबरा गया है ? इसका कारण है इन बेकसूर और मासूम दिखाई पड़ने वाली थैलियों के दुष्परिणाम। ये थैलियाँ अजर-अमर हैं। न सड़ती हैं। न घुनती हैं। जहाँ भी पहुँच जाती हैं अड़कर पड़ जाती हैं। अगर आपके नाली क्षेत्र में प्रवेश कर गईं तो उसका गला अवरुद्ध हो जाएगा। पानी नालियों से जाने के बजाय आपके कमरे, आँगन में लहराएगा या फिर सड़कों और बाजारों में किलोल करता नजर आएगा।

पर्यावरण की दुश्मन – प्लास्टिक की थैलियाँ पर्यावरण की शत्रु बन गई हैं। मिट्टी में दबाएँ तो मिट्टी बेकार, जल में बहाएँ तो जल प्रदूषित, आग में जलाएँ तो वायु में जहर घोल देती हैं। इनका निस्तारण एक कठिन समस्या बन गया है। निर्धारित मानकों का प्रयोग न किए जाने से इनमें खाद्य पदार्थों का रखा जाना असुरक्षित है।

समाधान – थैलियों को प्रतिबंधित और त्याज्य बनाने के लिए जो नाटक-नौटंकी हो रही है। वह कभी स्थाई रूप से समस्या का समाधान नहीं बन सकती। छोटे-छोटे दुकानदारों या थैली विक्रेताओं को आतंकित करने से क्या होगा ? थैलियों के निर्माण पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगाया जाता ? जब थैलियाँ मिलेंगी ही नहीं तो लोग अपने आप वैकल्पिक साधनों को अपनाएँगे। थैलियों के निर्माण में ऐसे पदार्थ का प्रयोग होना चाहिए जो विघटनशीलता बन सकती हो। पर्यावरण के अनुकूल हो, सस्ता तथा सुलभ हो।

उपसंहार – प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग सरकारी स्तर प्रतिबंधित होना चाहिए। लोगों में इनसे होने वाली हानियों के प्रति जागरूकता उत्पन्न की जानी चाहिए। बुद्धिजीवी वर्ग को इस अभियान से जुड़ना चाहिए।

8. बढ़ता आतंकवाद : एक चुनौती
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) आतंकवाद विश्वव्यापी समस्या (3) भारत में आतंकी संकट (4) समाप्ति के उपाय (5) भारत की भूमिका (6) उपसंहार।

भूमिका – संसार का कोई भी धर्म मनुष्य को हिंसा और परपीड़न की शिक्षा नहीं देता। तुलसीदास कहते हैं – ‘परहित सरिस धरम नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।’ धर्म की आड़ लेकर निर्दोष लोगों की हत्या करने वाला महान पापी और नीच है। आज कुछ धर्मान्ध और सत्ता के भूखे लोग स्वयं को ‘जेहादी’ कहकर निर्दोष स्त्री, पुरुष, बालक और वृद्धों के प्राण ले रहे हैं। ये पतित लोग इस घृणित कार्य से अपने धर्म को ही लज्जित और बदनाम कर रहे हैं।

आतंकवाद विश्वव्यापी समस्या – आज संसार का हर देश आतंकवाद का निशाना बना हुआ है। भारत तो वर्षों से आतंकी घटनाओं से लहूलुहान हो रहा है। आज आतंकवाद एक विश्वव्यापी समस्या बन चुका है। इस समस्या के विस्तार के लिए ऐसे देश जिम्मेदार हैं जो अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए आतंकवाद को संरक्षण दे रहे हैं। इसका परिणाम भयंकर रूप में सामने आ रहा है। आई.एस.आई. एस. जैसे क्रूर संगठन जन्म ले रहे हैं। कुछ समय पूर्व फ्रांस पर हुये आतंकी हमले ने यूरोपीय देशों की आँखें खोल दी हैं। अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन आदि सभी आई.एस. को मिटाने में लग गए। अब सीरिया और इराक में चल रहे घमासान पर रोक के आसार नजर आ रहे हैं।

भारत में आतंकी संकट – भारत में आतंकवाद का इतिहास पुराना है। मुंबई विस्फोट, ‘ताज’ होटल पर हमला और अब पठानकोट एयरबेस की घटना सभी हमारे पड़ोसी देश की ईष्र्या और द्वेष का परिणाम हैं। भारत में आई.एस. की दस्तक सुनाई दे रही है। पाकिस्तान खुद भी आतंकवाद की आग में झुलस रहा है।

समाप्ति के उपाय – आतंक अब किसी खास देश की समस्या नहीं रह गई है। लगभग हर देश आतंकवाद का सामना करने को मजबूर है। अतः विश्व के सभी राष्ट्रों को अपनी जिम्मेदारी निभाने को आगे आना होगा। जैसे सीरिया में महाशक्तियों ने आई.एस. के विरुद्ध मोर्चा सम्भाला। ऐसे ही हर जगह आतंकवाद को परास्त करना होगा। दोमुंही नीति छोड़नी
होगी।

भारत की भूमिका – भारत को आतंकवाद का निर्यात पाकिस्तान से ही होता रहा है। अब भारत को एक निर्णायक नीति अपनानी होगी। बात और घात दोनों साथ नहीं चल। सकते। पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान के रुख में कुछ ही सही परिवर्तन का संकेत दिखता है लेकिन इस देश पर सोच-समझकर ही विश्वास करना होगा।

उपसंहार – आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता। वह सिर्फ और सिर्फ आतंकवादी ही होता है।अतः आतंक को धर्म का चोला पहनाने वाले अपनी हरकतों से बाज आएँ। आतंकवाद पूरी मानवता के नाम पर एक कलंक है। निर्दोषों का खून बहाने वाले पूरे मानव समाज के शत्रु हैं। अत: इनके विनाश के लिए सभी समाजों को सामने आना चाहिए।

9. कन्यो-भ्रूण हत्या : महापाप
अथवा
कन्या को जन्म लेने दो
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) कन्या भ्रूण-हत्या के कारण (3) कन्याभूण-हत्या के दुष्परिणाम (4) कन्याश्रूण-हत्या रोकने के उपाय (5) उपसंहार।

प्रस्तावना – हमारी भारतीय संस्कृति में कन्या को देवी का स्वरूप माना जाता है। नवरात्र और देवी जागरण के समय कन्या-पूजन की परम्परा से सभी परिचित हैं। हमारे धर्मग्रन्थ भी नारी की महिमा का गान करते हैं। आज उसी भारत में कन्या को माँ के गर्भ में ही समाप्त कर देने की लज्जाजनक परम्परा चल रही है। इस दुष्कर्म ने सभ्य जगत के सामने हमारे मस्तक को झुका दिया है।

बेटों का है मान जगत में, बेटी का कोई मान नहीं,
हे प्यारे भगवान ! बता तो, बेटी क्या इंसान नहीं ॥

कन्या-भ्रूण हत्या के कारण – कन्या-भ्रूण को समाप्त करा देने के चलन के पीछे अनेक कारण हैं। कुछ राजवंशों और सामन्त परिवारों में विवाह के समय वर पक्ष के सामने न झुकने के झूठे अहंकार ने कन्याओं की बलि ली। पुत्री की अपेक्षा पुत्र को महत्व दिया जाना, धन लोलुपता, दहेज प्रथा तथा कन्या के लालन-पालन और सुरक्षा में आ रही समस्याओं ने भी इस निन्दनीय कार्य को बढ़ावा दिया है। दहेज के लोभियों ने इस समस्या को विकट बना दिया है। वहीं झूठी शान के प्रदर्शन के कारण भी कन्या का विवाह सामान्य परिवारों के लिए बोझ बन गया है।

कन्या-भ्रूण हत्या के दुष्परिणाम – विज्ञान की कृपा से आज गर्भ में ही संतान के लिंग का पता लगाना सम्भव हो गया है। अल्ट्रासाउण्ड मशीन से पता लग जाता है कि गर्भ में कन्या है। या पुत्र। यदि गर्भ में कन्या है तो कुबुद्धि वाले लोग उसे डॉक्टरों की सहायता से नष्ट करा देते हैं। इस निन्दनीय आचरण के कुपरिणाम सामने आ रहे हैं। देश के अनेक राज्यों में लड़कियों और लड़कों के अनुपात में चिन्ताजनक गिरावट आ गयी है। लड़कियों की कमी होते जाने से अनेक युवक कुँवारे घूम रहे हैं। यदि सभी लोग पुत्र ही पुत्र चाहेंगे तो पुत्रियाँ कहाँ से आएँगी ? विवाह कहाँ से होंगे ? वंश कैसे चलेंगे ? इस महापाप में नारियों की भी सहमति होना बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है।

कन्या-भ्रूण हत्या रोकने के उपाय – इस घृणित कार्य को रोकने के लिए जनता और सरकार दोनों का प्रयास आवश्यक है। यद्यपि सरकार ने लिंग परीक्षण को अपराध घोषित करके कठोर दण्ड का प्रावधान किया है फिर भी चोरी छिपे यह काम चल रहा है। इसमें डॉक्टरों तथा परिवारीजन दोनों का सहयोग रहता है। इस समस्या का हल तभी सम्भव है जब लोगों का लड़कियों के प्रति हीनता का भाव समाप्त हो। पुत्र और पुत्री में कोई भेद नहीं किया जाये। लड़कियों को स्वावलम्बी बनाया जाये।

उपसंहार – कन्या-भ्रूण हत्या भारतीय-समाज के मस्तक पर कलंक है। इस महापाप में किसी भी प्रकार का सहयोग करने वालों को समाज से बाहर कर दिया जाना चाहिए और कठोर कानून बनाकर दण्डित किया जाना चाहिए। कन्या-भ्रूण हत्या मानवता के विरुद्ध अपराध है।

10. भारतीय नारी : कल और आज
अथवा
भारतीय नारी : प्रगति की ओर
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) बीते कल की नारी (3) आज की नारी (4) भविष्य की नारी (5) उपसंहार।

भूमिका – नर और नारी जीवन-रूपी रथ के दो पहिए हैं। एक के बिना दूसरे का काम नहीं चल सकता। अतः दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए। भारतीय महापुरुषों ने इसीलिए नारी की महिमा का बखान किया है। मनु कहते हैं- “जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ सभी देवता निवास करते हैं।” स्वार्थी और अहंकारी पुरुषों ने नारी को अबला और पुरुष की आज्ञाकारिणी मानकर उसकी गरिमा को गिरा दिया। उसे अशिक्षा और पर्दे की दीवारों में कैद करके, एक दासी जैसा जीवन बिताने को बाध्य कर दिया।

बीते कल की नारी – हमारे देश में प्राचीन समय में नारी को समाज में पूरा सम्मान प्राप्त था। वैदिक कालीन नारियाँ सुशिक्षित और स्वाभिमानिनी होती थीं। कोई भी धार्मिक कार्य पत्नी के बिना सफल नहीं माना जाता था। धर्म, दर्शन, शासन, युद्ध-क्षेत्र आदि सभी क्षेत्रों में नारियाँ पुरुषों से पीछे नहीं थीं। विदेशी और विधर्मी आक्रमणकारियों के आगमन के साथ ही भारतीय नारी का मान-सम्मान घटता चला गया। वह अशिक्षा और पर्दे में कैद हो गयी। उसके ऊपर तरह-तरह के पहरे बिठा दिये गये। सैकड़ों वर्षों तक भारतीय नारी इस दुर्दशा को ढोती रही।

आज की नारी – स्वतंत्र भारत की नारी ने स्वयं को पहचाना है। वह फिर से अपने पूर्व गौरव को पाने के लिए बेचैन हो उठी है। शिक्षा, व्यवसाय, विज्ञान, सैन्य-सेवा, चिकित्सा, कला, राजनीति हर क्षेत्र में वह पुरुष के कदम से कदम मिलाकर चल रही है। वह सरपंच है, जिला-अध्यक्ष है, मेयर है, मुख्यमंत्री है, प्रधानमंत्री है, राष्ट्रपति है, लेकिन अभी भी यह सौभाग्य नगर-निवासिनी नारी के ही हिस्से में दिखायी देता है। उसकी ग्रामवासिनी करोड़ों बहनें अभी भी अशिक्षा, उपेक्षा और पुरुष के अत्याचार झेलने को विवश हैं। एक ओर नारी के सशक्तीकरण (समर्थ बनाने) की, उसे संसद और विधान सभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बातें हो रही हैं तो दूसरी ओर पुरुष वर्ग उसे नाना प्रकार के पाखण्डों और प्रलोभनों से छलने में लगा हुआ है।

भविष्य की नारी – भारतीय नारी का भविष्य उज्ज्वल है। वह स्वावलम्बी बनना चाहती है। अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व बनाना चाहती है। सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाहती है। ये सारे सपने तभी पूरे होंगे जब वह भावुकता के बजाय विवेक से काम लेगी। स्वतंत्रता को स्वच्छंदता नहीं बनाएगी। पुरुषों की बराबरी की अंधी दौड़ में न पड़कर अपना कार्य-क्षेत्र स्वयं निर्धारित करेगी।

उपसंहार – पुरुष और नारी के संतुलित सहयोग में ही दोनों की भलाई है। दोनों एक-दूसरे को आदर दें। एक-दूसरे को आगे बढ़ने में सहयोग करें।

11. भ्रष्टाचार : एक विकराल समस्या
अथवा
भ्रष्टाचार : प्रगति का शत्रु
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) भ्रष्टाचार के विविध रूप (3) भ्रष्टाचार के कारण (4) निवारण के उपाय (5) उपसंहार।

भूमिका – मनुष्य को पशुओं से श्रेष्ठ प्रमाणित करने वाला गुण धर्म है। धर्म का अर्थ है- धारण करने योग्य श्रेष्ठ गुण या सदाचरण। ‘अच्छे गुणों को आचरण में उतारना सदाचार कहा जाता है। सदाचार के विपरीत चलना ही भ्रष्टाचार है।’ भ्रष्ट अर्थात् गिरा हुआ ‘आचार’ अर्थात् आचरण। कानून तथा नैतिक मूल्यों की उपेक्षा करके स्वार्थ-सिद्धि में लगा हुआ मनुष्य भ्रष्टचारी है। दुर्भाग्यवश आज हमारे समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। चरित्रवान् लोग थोड़े ही रह गये हैं।

भ्रष्टाचार के विविध रूप – आज देश में जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जहाँ भ्रष्टाचार का प्रवेश न हो। शिक्षा व्यापार बन गयी है। धन के बल पर मनचाहे परीक्षाफल प्राप्त हो सकते हैं। व्यापार में मुनाफाखोरी, मिलावट और कर-चोरी व्याप्त है। धर्म के नाम पर पाखण्ड और दिखावे को जोर है। जेहाद और फतवों के नाम पर निर्दोष लोगों के प्राण लिए जा रहे। हैं। सेना में कमीशन खोरी के काण्ड उद्घटित होते रहे हैं। भ्रष्टाचार का सबसे निकृष्ट रूप राजनीति में देखा जा सकता है। हमारे राजनेता वोट बैंक बढ़ाने के लिए देशहित को दाँव पर लगा रहे हैं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमनवेल्थ तथा आदर्श सोसाइटी घोटालों में तो भ्रष्टाचार की सारी सीमाएँ लाँघ दी। गयी हैं। घोटालों की यह परंपरा आगे ही बढ़ती जा रही है।

भ्रष्टाचार के कारण – देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के अनेक कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण है हमारे चरित्र का पतन होना। थोड़े से लोभ और लाभ के लिए मनुष्य अपना चरित्र डिगा रहा। है। शानदार भवन, कीमती वस्त्र, चमचमीती कार, ए.सी, टेलीविजन, वाशिंग मशीन आदि पाने के लिए लोग पागल हैं। वे उचित-अनुचित कोई भी उपाय करने के लिए तैयार हैं। वोट पाने के लिए हमारे राजनेता निकृष्ट हथकण्डे अपना रहे। हैं। हमारे धर्माचार्य भक्ति, ज्ञान, त्याग आदि पर प्रवचन देते हैं। और स्वयं लाखों की फीस लेकर घर भरने में लगे हैं। इनके अतिरिक्त बेरोजगारी, मॅहगाई और जनसंख्या में दिनों-दिन होती वृद्धि भी लोगों को भ्रष्ट बना रही है।

निवारण के उपाय – हम चरित्र की महत्ता को भूल चुके हैं। धन के पुजारी बन गये हैं। चरित्र को सँवारे बिना भ्रष्टाचार से मुक्त होना असम्भव है। इसके साथ ही सरकार को भ्रष्टाचारी लोगों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था करना और लोगों को जागरूक करना भी आवश्यक है। जनता को भी चाहिए कि वह चरित्रवान् लोगों को ही मत देकर सत्ता में पहुँचाएँ। शासन और प्रशासन में पारदर्शिता हो।

उपसंहार – संसार के भ्रष्टतम देशों में भारत भी शोभा पा रहा है। भ्रष्टाचार देश की प्रगति का शत्रु है। हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब ने सन् 2020 तक भारत को महाशक्ति बनाने का सपना दिखाया था। यह सपना आर्थिक सम्पन्नता और सैन्य-शक्ति के बल पर पूरा नहीं हो सकता। युवा पीढ़ी को परिश्रमी और चरित्रवान् बनाने से ही भारत विश्व-गुरु के पद पर आसीन हो सकता है। वर्तमान सरकार ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का प्रयास किया है। लेकिन जनता के सहयोग के बिना भ्रष्टाचार समाप्त हो पाना कठिन है।

12. भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव
अथवा
राष्ट्रीय एकता और विभिन्न सम्प्रदाय
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) धर्म और सम्प्रदाय (3) साम्प्रदायिकता क्या है ? (4) साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम (5) साम्प्रदायिकता कैसे मिटे ? (6) उपसंहार।

भूमिका – भारतीय-संस्कृति अनेकता में एकता का संदेश देती है। यही कारण है कि अनेक आचार, विचार, भाषा, वेश-भूषा और पंथ भारत-भूमि में हजारों वर्षों से फलते-फूलते रहे हैं। यह भारत की ही नहीं सारी मानवता की अमूल्य धरोहर है। जिसकी हर कीमत पर रक्षा होनी चाहिए।

धर्म और सम्प्रदाय – सम्प्रदाय या पंथ, उपासना की अलग-अलग रीतियाँ हैं। धर्म और संप्रदाय को एक मान लेना बड़ी भूल है। धर्म तो वे मानवीय गुण या मूल्य हैं। जिनको हर सम्प्रदाय और पंथ में आदर दिया गया है। भारतीय-संस्कृति में धर्म के दस लक्षण बताए गये हैं- धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, सत्य का पालन, पवित्र भावना, बुद्धिमान बनना, क्रोधं न करना, विद्या अर्जन करना आदि। संसार के सभी पंथों ने इन गुणों को अपनाने की शिक्षा दी है। अतः धर्म तो मानव मात्र का एक है।

साम्प्रदायिकता क्या है ? – किसी भी सम्प्रदाय या पंथ को अनुयायी बनने में तो कोई बुराई नहीं लेकिन अपने सम्प्रदाय को ही सर्वश्रेष्ठ मानना और अन्य संप्रदायों को नीचा बताना और उनसे द्वेष रखना तो नास्तिकता है। ईश्वर का अपमान है। अपने पंथ या संप्रदाय का कट्टर समर्थन ही साम्प्रदायिकता

साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम – साम्प्रदायिक द्वेष-भाव ने सारे संसार को घृणा और रक्तपात में डुबोया है। हमारे देश ने भी साम्प्रदायिकता के प्रहार झेले हैं। देश का विभाजन साम्प्रदायिकता ने ही कराया। करोड़ों निर्दोष लोगों को घर-बार छोड़ने पड़े, भीषण और निन्दनीय खून-खराबा हुआ। आज भी चाहे जब साम्प्रदायिकता का कोढ़ जरा-जरा सी। बातों पर फूट पडता है। साम्प्रदायिकता हमारी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की शत्रु है। साम्प्रदायिक दंगों में जन-धन की हानि होती है और संसार में देश की बदनामी होती है।

साम्प्रदायिकता कैसे मिटे – साम्प्रदायिकता से मुक्ति पाए बिना देश में सुख-शान्ति और विकास नहीं हो सकता। अतः इसे मियने के लिए सभी को आगे आना होगा। एक-दूसरे के। धर्मों को करीब से समझना होगा। एक-दूसरे के सुख-दुख, पर्व, त्यौहार में भागीदारी करनी होगी। राजनीतिक लोगों के जाल में न फंसकर अपनी बुद्धि और विवेक से काम लेना होगा।

उपसंहार – इसी देश के एक शायर ने कहा था मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा ॥ आज इसी भावना को आगे बढ़ाना होगा। देश के खिलाफ भीतर और बाहर षड़यंत्र रचे जा रहे हैं। साम्प्रदायिक भावनाओं को उभारने की निन्दनीय हरकतें हो रही हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव ही राष्ट्र की शक्ति और सम्मान को बचाएगा।

13. विद्यार्थी और अनुशासन
अथवा
घटता अनुशासन : उजड़ते विद्यालय
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) विद्यार्थी-जीवन और अनुशासन (3) अनुशासनहीनता के कारण (4) दुष्परिणाम (5) निवारण के उपाय (6) उपसंहार।

भूमिका – जिस जीवन में कोई नियम या व्यवस्था नहीं, जिसकी कोई आस्था और आदर्श नहीं, वह मानव-जीवन नहीं पशु जीवन ही हो सकता है। ऊपर से स्थापित नियंत्रण या शासन सभी को अखरता है। इसीलिए अपने शासन में रहना सबसे सुखदायी होता है। बिना किसी भय या लोभ के नियमों का पालन करना ही अनुशासन है। विद्यालयों में तो अनुशासन में रहना और भी आवश्यक हो जाता है।

विद्यार्थी – जीवन और अनुशासन – वैसे तो जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन आवश्यक है किन्तु जहाँ राष्ट्र की भावी पीढियाँ ढलती हैं उस विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। किन्तु आज विद्यालयों में अनुशासन की स्थिति अत्यन्त शोचनीय है। अनुशासन में रहना आज के विद्यार्थियो को शायद अपनी शान के खिलाफ लगता है। अध्ययन के बजाय अन्य बातों में छात्रों की रुचि अधिक देखने में आती है।

अनुशासनहीनता के कारण – विद्यालयों में बढ़ती अनुशासनहीनता के पीछे मात्र छात्रों की उद्दण्डता ही कारण नहीं है। सामाजिक परिस्थितियाँ और बदलती जीवन-शैली भी इसके लिए जिम्मेदार है। टीवी ने छात्र को समय से पूर्व ही युवा बनाना प्रारम्भ कर दिया है। उसे फैशन और आडम्बरों में उलझाकर उसका मानसिक और आर्थिक शोषण किया जा रहा है। बेरोजगारी, उचित मार्गदर्शन न मिलना तथा अभिभावकों का जिम्मेदारी से आँख चुराना भी अनुशासनहीनता के कारण हैं।

दुष्परिणाम – छात्रों में बढ़ती अनुशासनहीनता न केवल इनके भविष्य को अंधकारमय बना रही है बल्कि देश की भावी तस्वीर को भी बिगाड़ रही है। आज चुनौती और प्रतियोगिता का जमाना है। हर संस्था और कम्पनी श्रेष्ठ युवकों की तलाश में है। इस स्थिति में नकल से उत्तीर्ण और अनुशासनहीन छात्र कहाँ ठहर पायेंगे ? आदमी की शान अनुशासन तोड़ने में नहीं उसका स्वाभिमान के साथ पालन करने में है। अनुशासनहीनता ही अपराधियों और गुण्डों को जन्म दे रही है।

निवारण के उपाय – इस स्थिति से केवल अध्यापक या प्रधानाचार्य नहीं निपट सकते। इसकी जिम्मेदारी पूरे समाज को उठानी चाहिए। विद्यालयों में ऐसा वातावरण हो जिसमें शिक्षक एवं विद्यार्थी अनुशासित रहकर शिक्षा का आदान-प्रदान कर सकें। अनुशासनहीन राजनीतिज्ञों को भी अनुशासित होकर भावी पीढ़ी को प्रेरणा देनी होगी।

उपसंहार – आज का विद्यार्थी आँख बंद करके आदेशों का पालन करने वाला नहीं है। उसकी आँखें और कान, दोनों खुले हैं। समाज में जो कुछ घटित होगा वह छात्र के जीवन में भी प्रतिबिम्बित होगा। समाज अपने आपको सँभाले तो छात्र स्वयं सँभल जायेगा। अनुशासन की खुराक केवल छात्रों को ही नहीं बल्कि समाज के हर वर्ग को पिलानी होगी। जब देश में चारों ओर अनुशासनहीनता छायी हुई है, तो विद्यालयों में इसकी आशा करना व्यर्थ है।

14. योग भगाए रोग
अथवा
योगासन : स्वास्थ्य की कुंजी
संकेत बिंदु – (1) प्रस्तावना (2) योग क्या है? (3) योग-आसन और स्वास्थ्य (4) स्वामी रामदेव का योगदान (5) योग के विरुद्ध कुप्रचार (6) उपसंहार।

प्रस्तावना – भारतीय-संस्कृति ने सदा मानव मात्र के हित की कामना की है। हमारे ऋषियों, मुनियों, मनीषियों ने मानव-जीवन को सुखी बनाने के लिए अनेक उपाय बताए हैं। तन और मन दोनों को स्वस्थ रखना ही सुखी जीवन का मूलमंत्र है। इस दिशा में हमारे पूर्वजों ने तन और मन को स्वस्थ बनाये रखने का अमूल्य उपाय योग को बताया है। योग मानव-जाति के लिए भारतीय संस्कृति का अनुपम उपहार है।

योगें क्या है ? – योग भारत की अत्यन्त प्राचीन विद्या या विज्ञान है। ‘योग’ शब्द का साधारण अर्थ है, जुड़ना या मिलना। योग और योगियों के बारे में हमारे यहाँ अनेक कल्पनाएँ चली आ रही हैं। योग को एक कठिन और रहस्यमय साधना माना जाता रहा है। जन-साधारण के जीवन में भी योग की कोई उपयोगिता है, इससे लोग प्रायः अनजान बुने हुए हैं। योग के प्रथम आचार्य महर्षि पतंजलि माने गये हैं। योग के आठ अंग हैं-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इन अंगों को क्रमशः अपनाने और सिद्ध करने वाला योगी कहा जाता है।

योगासन और स्वास्थ्य – योग के बारे में लोगों की धारणाएँ अब बदल चुकी हैं। अब जन-साधारण के जीवन में भी योग का महत्व प्रमाणित हो चुका है। योगासनों और प्राणायाम से मनुष्य का तन और मन दोनों स्वस्थ बनते हैं। शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। योगासनों से साधारण रोग ही नहीं बल्कि मधुमेह, मोटापा, लकवा, स्लिपडिस्क, सियाटिका और कैंसर जैसे कठिन और असाध्य रोग भी ठीक हो रहे हैं। अतः ‘योग भगाए रोग’ यह कथन सत्य प्रमाणित होता है।

स्वामी रामदेव का योगदान – योग को जन-जन में लोकप्रिय बनाने और योगासन, प्राणायाम, आहार-विहार से लोगों को वास्तविक लाभ पहुँचाने में स्वामी रामदेव का योगदान अतुलनीय है। आपने देश और विदेश में सैकड़ों योगाभ्यास के शिविर लगाकर लोगों को स्वस्थ्य रहने का सहज उपाय सिखाया है। स्वामी रामदेव ने हरिद्वार में पतंजलि योगपीठ की स्थापना की है। यहाँ योग की शिक्षा और योग द्वारा रोगों की चिकित्सा का प्रबन्ध है। यहाँ हजारों योग के शिक्षक तैयार करने की व्यवस्था भी की गयी है। ये शिक्षक सारे देश में जाकर लोगों को योग की शिक्षा देंगे।

योग के विरुद्ध. कुप्रचारे – स्वामी रामदेव द्वारा योगासन और प्राणायाम द्वारा हजारों रोगियों को स्वस्थ किया गया है। उनकी सफलता और लोकप्रियता से ईर्ष्या करने वाले कुछ लोगों ने योग का विरोध भी किया। इनमें डॉक्टर और दवा कम्पनियाँ भी थीं, लेकिन सच्चाई के सामने विरोधी टिक नहीं पाए। योग के विरुद्ध धार्मिक फतवे भी दिये गये लेकिन लोगों ने इन सबको ठुकरा दिया।

उपसंहार – आज योग देश, धर्म, जाति की सीमाएँ तोड़कर सारे विश्व में लोकप्रिय हो चुका है। योग तो एक विज्ञान है, इसे जो भी अपनाए वही स्वस्थ और सुखी बनेगा। विद्यार्थी, शिक्षक, व्यापारी, वैज्ञानिक, सैनिक सभी के लिए योग लाभदायक सिद्ध हो रहा है।

15. राजस्थान के प्रमुख पर्व और त्यौहार :
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) प्रमुख हिन्दू त्योहार (3) अन्य धर्मावलम्बियों के त्योहार, मेले आदि, (4) उपसंहार।

भूमिका – विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ पूरे वर्ष पर्व और त्यौहार मनाए जाते हैं। पर्व, त्यौहार और मेलों के माध्यम से जन-जीवन की सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय चेतना फलती-फूलती रहती है। राजस्थान तो अपने रँगीलेपन से सभी को आकर्षित और उल्लासित करता रहा है। राजस्थान की इस रँगीली छटा में यहाँ के पर्वो, त्यौहारों तथा मेलों का महत्वपूर्ण स्थान है।

प्रमुख हिन्दू त्योहार – देश में मनाए जाने वाले प्रायः सभी प्रमुख त्यौहार राजस्थान में भी मनाए जाते हैं लेकिन कुछ त्यौहारों पर राजस्थानी अंदा का प्रभाव अलग ही दृष्टिगोचर होता है। राजस्थान में मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहार और पर्व इस प्रकार हैं।

  1. तीज का त्यौहार – यह त्यौहार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाया जाता है। यह महिलाओं का त्यौहार है। इस दिन नारियों की सौभाग्य-सूचक सामग्रियों का
  2. आदान – प्रदान होता है। कन्याएँ और नई बहुएँ बाग-बगीचों में झूला झूलती हैं। इस त्यौहार पर राजस्थान, नारी कण्ठों से निकले श्रावणी के गीतों से गूंज उठता है।
  3. रक्षा बंधन – सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई-बहिन के स्नेह-बंधन को दृढ़ता प्रदान करता है।
  4. गणेश चतुर्थी – यह विद्या और बुद्धि के प्रदाता गणेश के पूजन का त्यौहार है।
  5. जन्माष्टमी – श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर मनाया जाने वाला यह त्यौहार भादों मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं। मंदिरों में कृष्ण-लीलाओं से सम्बन्धित झाँकियाँ सजाई जाती हैं।
  6. दशहरा – यह त्यौहार क्वार मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। इसे मुख्य रूप से क्षत्रियों का त्यौहार माना जाता है। इस दिन क्षत्रिय शस्त्रों का पूजन करते हैं। कोटा में दशहरा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
  7. दीपावली – कार्तिक मास की अमावस्या को यह त्यौहार मनाया जाता है। यह धन-वैभव की देवी लक्ष्मी के पूजन का त्यौहार है।
  8. होली – फाल्गुन की पूर्णिमा तिथि को होली जलाई जाती है और अगले दिन रंगों की होली होती है। यह सामाजिक भाई-चारे को बढ़ाने वाला त्यौहार है।
  9. गणगौर – गणगौर राजस्थान का सबसे प्रमुख त्यौहार है। यह स्त्रियों का त्यौहार है। इस दिन कन्याएँ उत्तम वर पाने के लिए और विवाहिताएँ अखण्ड सौभाग्य के लिए ‘गौरा’ (पार्वती) का पूजन करती हैं, कन्याएँ व्रत रखती हैं और तीज के दिन राजस्थानी अँगार में सज-धजकर गणगौर का जलाशय पर विसर्जन करने जाती हैं। इस दिन राजस्थान में गणगौर की भव्य शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।

अन्य धर्मावलम्बियों के त्यौहार – हिन्दू त्यौहारों के साथ ही राजस्थान में अन्य धर्मों के त्यौहार भी उत्साहपूर्वक मनाए जाते हैं। मुसलमान ईद, मुहर्रम आदि ईसाई क्रिसमस, सिख लोग वैसाखी आदि मनाते हैं।

मेले आदि – त्यौहारों के अतिरिक्त राजस्थान में अनेक मेले भी लगते हैं। महावीर जी में जैन धर्मियों का मेला, अजमेर में चिश्ती का उर्स, पुष्कर का मेला, करौली का मेला, गोगामेड़ी का मेला आदि।

उपसंहार – पर्व, त्यौहार और मेले राजस्थानी-संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। गणगौर, तीज आदि त्यौहारों पर राजस्थानी छाप। उन्हें विशिष्टता प्रदान करती है। ये त्यौहार पारस्परिक एकता बढ़ाते हैं और जन-जीवन में सरसता का संचार करते हैं।

16. राजस्थान के दर्शनीय स्थल
अथवा
राजस्थान में पर्यटन
संकेत बिन्दु – (1) भूमिका (2) पर्यटन में बढ़ती रुचि (3) राजस्थान के दर्शनीय स्थल (4) पर्यटन में बाधक तत्व (5) पर्यटन को प्रोत्साहन (6) उपसंहार

भूमिका – मनुष्य सदा से पर्यटन प्रेमी रहा है। विश्व में धर्म, संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में घुमक्कड़ों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। सुन्दर प्राकृतिक दृश्य, रहस्य, रोमांच, कलाकृतियाँ, घुमक्कड़ों को सदा आकर्षित करती रही हैं। आज तो सारे संसार में पर्यटन की धूम-सी मची हुई है।

पर्यटन में बढ़ती रुचि – प्राचीन समय में पर्यटन एक साहस और जोखिम से भरा कार्य था। रास्ते असुरक्षित थे तथा आवागमन के साधन सीमित थे। इस प्रकार लोग दूर देशों की यात्रा बहुत कम करते थे। आजकल मार्ग सुगम हो गये हैं। अनेक प्रकार के वाहन उपलब्ध हैं। पर्यटन स्थलों पर सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इस कारण पर्यटन में लोगों की रुचि बहुत बढ़ गयी है। लाखों लोग देश-विदेश में पर्यटन के लिए जाते हैं।

राजस्थान के दर्शनीय स्थल – भारत के पर्यटन मानचित्र में राजस्थान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इतिहास में रुचि रखने। वालों के लिए यहाँ चित्तौड़, जैसलमेर, हल्दीघाटी आदि स्थान हैं। धार्मिक रुचि वाले पर्यटकों के लिए यहाँ पुष्कर, बालाजी, महावीरजी, आबू, अजमेर आदि स्थल हैं। इन स्थानों में देश-विदेश से अनेक धर्मावलम्बी लाखों की संख्या में आते रहते हैं। शिल्प तथा संस्कृति में रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए यहाँ की प्राचीन हवेलियाँ, महल और दुर्ग हैं। जयपुर का हवामहल और आबू के जैन मंदिर शिल्प-कला के बेजोड़ नमूने हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य के दर्शन के लिए आने वाले पर्यटकों के लिए यहाँ सरिस्का तथा घना जैसे अभयारण्य हैं। इस प्रकार राजस्थान सभी रुचियों वाले पर्यटकों को आकर्षित करता है।

पर्यटन में बाधक तत्व – पर्यटन में बाधा डालने वाले तत्व भी हैं। पर्यटकों की सुरक्षा तथा उनके साथ सद्व्यवहार अत्यन्त आवश्यक है। पर्यटकों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ प्रायः सुनने में आती रहती हैं। आतंकी घटनाओं का भी पर्यटन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यद्यपि सरकार ने पर्यटकों के लिए विशेष रेलगाड़ियाँ चला रखी हैं तथापि अबाध आवागमन तथा दर्शनीय स्थलों तक सुगमता से पहुँचने में समस्याएँ आती रहती हैं। इन बाधाओं को दूर करने से पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा।

पर्यटन को प्रोत्साहन – पर्यटन ने अब एक व्यवस्थित राष्ट्रीय उद्योग का रूप ग्रहण कर लिया है। इससे विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है तथा रोजगार और व्यवसाय के अवसर बढ़ते हैं। अतः सरकारी स्तर पर पर्यटन को प्रोत्साहन मिलना परम आवश्यक है। प्रशासन को पर्यटकों की सुरक्षा के समुचित प्रबन्ध करने चाहिए। परिवहन के साधन सुलभ कराने चाहिए। होटल, धर्मशाला आदि की सुव्यवस्था पर ध्यान दिया जाना चाहिए। पर्यटकों को ठगने वाले दलालों तथा महिला पर्यटकों के साथ दुर्व्यवहार करने वालों को कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए। सरकार के साथ ही राजस्थान के निवासियों को भी पर्यटकों को उचित सम्मान और सहानुभूति से पेश आना चाहिए।

उपसंहार – पर्यटक सामाजिक हेल-मेल और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव के दूत होते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं वहाँ की छवि को प्रसारित करते हैं। अतः आर्थिक लाभ और देश या प्रदेश की छवि को ध्यान में रखते हुए, इनको सभी आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध करायी जानी चाहिए।

17. मरुभूमि का जीवन-धन : जल
संकेत बिन्दु – (1) प्रस्तावना, (2) जल-संकट के कारण, (3) निवारण हेतु उपाय, (4) उपसंहार।

प्रस्तावना – रहीम ने कहा है|

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुस, चून।।

अर्थात् पानी मनुष्य के जीवन का स्रोत है। इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती। सभी प्राकृतिक वस्तुओं में जले महत्वपूर्ण है। राजस्थान का अधिकांश भाग मरुस्थल है, जहाँ जल नाम-मात्र को भी नहीं है। इस कारण यहाँ के निवासियों को कष्टप्रद जीवन-यापन करना पड़ता है। वर्षा के न होने पर तो यहाँ भीषण अकाल पड़ता है और जीवन लगभग दूभर हो जाता है। वर्षा को आकर्षित करने वाली वृक्षावली का अभाव है। जो थोड़ी-बहुत उपलब्ध है उसकी अन्धाधुन्ध कटाई हो रही है। अतः राजस्थान का जल-संकट दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है।

जल-संकट के कारण – राजस्थान के पूर्वी भाग में चम्बल, दक्षिणी भाग में माही के अतिरिक्त कोई विशेष जल स्रोत नहीं हैं, जो आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। पश्चिमी भाग तो पूरा रेतीले टीलों से भरा हुआ निर्जल प्रदेश है, जहाँ केवल इन्दिरा गाँधी नहर ही एकमात्र आश्रय है। राजस्थान में जल संकट के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं

  1. भूगर्भ के जल का तीव्र गति से दोहन हो रहा है।
  2. पेयजल के स्रोतों का सिंचाई में प्रयोग होने से संकट गहरा रहा है।
  3. उद्योगों में जलापूर्ति भी आम लोगों को संकट में डाल रही है।
  4. पंजाब, हरियाणा आदि पड़ोसी राज्यों का असहयोगात्मक रवैया भी जल-संकट का प्रमुख कारण है।
  5. राजस्थान की प्राकृतिक संरचना ही ऐसी है कि वर्षा की कमी रहती है।

निवारण हेतु उपाय – राजस्थान में जल-संकट के निवारण हेतु युद्ध-स्तर पर प्रयास होने चाहिए अन्यथा यहाँ घोर संकट उपस्थित हो सकता है। कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार है।

  1. भू-गर्भ के जल का असीमित दोहन रोका जाना चाहिए।
  2. पेयजल के जो स्रोत हैं, उनको सिंचाई हेतु उपयोग न किया जाये।
  3. वर्षा के जल को रोकने हेतु छोटे बाँधों का निर्माण किया जाये।
  4. पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश की सरकारों से मित्रतापूर्वक व्यवहार रखकर आवश्यक मात्रा में जल प्राप्त किया जाये।
  5. गाँवों में तालाब, पोखर, कुआँ आदि को विकसित कर बढ़ावा दिया जाये।
  6. मरुस्थल में वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान दिया जाये।
  7. खनन-कार्य के कारण भी जल-स्तर गिर रहा है, अतः इस ओर भी ध्यान अपेक्षित है।
  8. पहाड़ों पर वृक्ष उगाकर तथा स्थान-स्थान पर एनीकट बनाकर वर्षा-जल को रोकने के उपाय करने चाहिए।
  9. हर खेत पर गड्ढे बनाकर भू-गर्भ जल का पुनर्भरण किया जाना चाहिए ताकि भू-गर्भ जल का पेयजल और सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सके।

उपसंहार – अपनी प्राकृतिक संरचना के कारण राजस्थान सदैव ही जलाभाव से पीड़ित रहा है। किन्तु मानवीय प्रमाद ने इस संकट को और अधिक भयावह बना दिया है। पिछले दिनों राजस्थान में आई अभूतपूर्व बाढ़ ने जल-प्रबन्धन के विशेषज्ञों को असमंजस में डाल दिया है। यदि वह बाढ़ केवल एक अपवाद बनकर रह जाती है तो ठीक है; लेकिन यदि इसकी पुनरावृत्ति होती है तो जल-प्रबन्धन पर नये सिरे से विचार करना होगा।

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