These comprehensive RBSE Class 9 Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 9 Science Chapter 13 Notes हम बीमार क्यों होते हैं
→ सामान्य परिचय-कोशिका सजीवों की मौलिक इकाई है। यह सक्रिय होती है। इसके अन्दर कुछ न कुछ क्रियाएँ सदैव होती रहती हैं। इन क्रियाओं को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा इन्हें भोजन के रूप में बाहर से प्राप्त होती है। यदि कोशिकाओं के कार्य में बाधा उत्पन्न होती है, तो यह हमारे शरीर में पोषण की कमी को इंगित करता है।
→ स्वास्थ्य-स्वास्थ्य वह अवस्था है जिसके अन्तर्गत शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक कार्य समुचित क्षमता द्वारा उचित प्रकार से किया जा सके।
→ स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली व्यक्तिगत तथा सामाजिक समस्या-स्वास्थ्य किसी व्यक्ति की| शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक जीवन क्षमता की पूर्णरूपेण समन्वयित स्थिति है किन्तु कोई भी व्यक्ति स्वयं ही पूर्ण नहीं कर सकता क्योंकि मानव सामाजिक प्राणी है। सभी जीवों का स्वास्थ्य उसके आस-पड़ोस अथवा उसके आसपास के पर्यावरण पर आधारित होता है।
→ स्वस्थ रहने तथा रोगमुक्त’ में अन्तर-स्वास्थ्य किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित न होकर समाज एवं समुदाय पर आधारित है जबकि रोग का सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष से होता है।
→ रोग के लक्षण-जब कोई रोग होता है तब शरीर के एक अथवा अनेक अंगों एवं तंत्रों में क्रिया अथवा संरचना में खराबी परिलक्षित होने लगती है। ये बदलाव रोग के लक्षण दर्शाते हैं । जैसे-दस्त लगना, सिरदर्द आदि रोग के लक्षण हैं।
→ तीव्र तथा दीर्घकालिक रोग-खाँसी. जकाम आदि जो कम अवधि के रोग हैं. तीव्र रोग कहलाते हैं। ऐसे रोग जो लम्बी अवधि अथवा जीवनपर्यन्त रहते हैं, उन रोगों को दीर्घकालिक, रोग कहते हैं; जैसे एलिफेनटाइसिस अथवा फीलपाँव रोग । दीर्घकालिक रोग तीव्र रोग की अपेक्षा लोगों के स्वास्थ्य पर लम्बे समय तक विपरीत प्रभाव बनाए रखते हैं।
→ रोग के जनक-सभी रोगों के तात्कालिक कारण तथा सहायक कारण होते हैं। साथ ही रोग होने का एक नहीं बल्कि अनेक कारण हो सकते हैं।
→ संक्रामक तथा असंक्रामक कारक-जिन रोगों के तात्कालिक कारण सूक्ष्म जीव होते हैं, उन्हें संक्रामक रोग कहते हैं। कैंसर रोग आनुवंशिक असामान्यता के कारण होता है जो असंक्रामक है।
→ पेप्टिक व्रण रोग का कारण हेलीकोबैक्टर पायलोरी-बैक्टीरिया है जिसकी खोज का श्रेय रॉबिन वॉरेन तथा बैरी मार्शल को जाता है।
→ संक्रामक रोग व कारक-संक्रामक रोग का कारण विभिन्न वाइरस, बैक्टीरिया, कुछ फंजाई व एककोशिक जन्तु अथवा प्रोटोजोआ हो सकते हैं। वाइरस, बैक्टीरिया तथा फंजाई का गुणन तीव्रता से होता है।
→ कोई औषधि किसी एक जैव क्रिया को रोकती है तो इस वर्ग के अन्य सदस्यों को भी प्रभावित करती है पर वही औषधि अन्य वर्ग से सम्बन्धित रोगाणुओं पर प्रभाव नहीं डालती।
→ एंटिबायोटिक बैक्टीरिया के महत्वपूर्ण जैव रासायनिक मार्ग को बंद कर देते हैं। परन्तु वायरस में ऐसा मार्ग नहीं होता, इसलिए वायरस पर एंटिबायोटिक का प्रभाव नहीं पड़ता।
→ रोग फैलने के साधन-बहुत से सूक्ष्मजीवीय कारक रोगी से अन्य स्वस्थ मनुष्य तक विभिन्न तरीकों |से फैलते हैं। वायु द्वारा खाँसी, जुकाम, निमोनिया, क्षय रोग के रोगाणु फैलते हैं। हैजा आदि के रोगाणुओं का संचरण जल द्वारा होता है। AIDS मुख्यतः लैंगिक सम्पर्क व रक्त स्थानान्तरण द्वारा फैलता है। मलेरिया, डेंगू आदि मच्छर के माध्यम से फैलते हैं।
→ अंग-विशिष्ट तथा ऊतक-विशिष्ट अभिव्यक्ति-सूक्ष्म जीव की विभिन्न स्पीशीज शरीर के विभिन्न भागों में विकसित होती हैं। हवा से नाक में प्रवेश करने पर वे फेफड़ों में जाते हैं या मुँह के द्वारा प्रवेश करने से आहार नाल में जाते हैं। HIV वायरस लैंगिक अंगों से शरीर में प्रवेश करता है पर लसीका ग्रन्थियों में फैलता है। जापानी मस्तिष्क ज्वर का वायरस मच्छर के काटने से शरीर में पहुँचता है पर मस्तिष्क को संक्रमित करता है। इस प्रकार सूक्ष्म जीव जिस ऊतक या अंग पर आक्रमण करते हैं, रोग के लक्षण उसी पर निर्भर करते हैं । HIV संक्रमण में वाइरस प्रतिरक्षा तंत्र में जाते हैं और इसके कार्य को नष्ट कर देते हैं। इसीलिए HIV-AIDS के कारण शरीर छोटे संक्रमणों का मुकाबला नहीं कर पाता जो रोगी की मृत्यु का कारण बनते हैं।
→ उपचार के नियम-रोग उपचार के दो उपाय हैं, एक तो यह कि रोग के प्रभाव क दूसरा, रोग के कारण को समाप्त कर दें। इसके लिए औषधियों का उपयोग करते हैं। एंटीवायरल औषधि का बनाना एंटीबैक्टीरियल औषधि के बनाने की अपेक्षा कठिन होता है क्योंकि बैक्टीरिया में अपनी जैव रासायनिक प्रणाली होती है जबकि वाइरस में नहीं होती।
→ निवारण के सिद्धान्त-रोगों के निवारण की दो विधियाँ हैं-सामान्य और विशिष्ट। संक्रामक रोगों से बचने के लिए स्वच्छता आवश्यक है। हमारे शरीर में स्थित प्रतिरक्षा तंत्र रोगाणुओं से लड़ता है। विशिष्ट कोशिकाएँ रोगाणुओं को मार देती हैं। संक्रामक रोगों से बचने के लिए उचित मात्रा में पौष्टिक भोजन आवश्यक है। विश्व भर से चेचक का उन्मूलन किया जा चुका है। चेचक के एक बार हो जाने के बाद पुनः इससे ग्रसित होने की संभावना नहीं रहती। यह प्रतिरक्षाकरण के नियम का आधार है। टिटेनस, डिफ्थीरिया, कूकर खाँसी, चेचक, पोलियो, हिपेटाइटिस A आदि से बचने के टीके अब उपलब्ध हैं।
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