Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 6 जैव प्रक्रम Textbook Exercise Questions and Answers.
RBSE Class 10 Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम
RBSE Class 10 Science Chapter 6 जैव प्रक्रम InText Questions and Answers
पृष्ठ 105.
प्रश्न 1.
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है?
उत्तर:
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में सभी कोशिकाएँ अपने आसपास के पर्यावरण के सीधे संपर्क में नहीं रह सकतीं । इसलिए साधारण विसरण सभी कोशिकाओं की ऑक्सीजन की आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
प्रश्न 2.
कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदण्ड का उपयोग करेंगे?
उत्तर:
कोई वस्तु सजीव है, इसके लिए उसमें निम्नलिखित लक्षण होने चाहिए
- सजीवों का शरीर कोशिका/कोशिकाओं/ऊतकों का बना होता है।
- सजीवों में विभिन्न उपापचयी क्रियाएँ, जैसे – पाचन, श्वसन आदि पाई जाती हैं।
- सजीवों में वृद्धि होती है तथा सजीव गति करते हैं।
- सजीवों का एक निश्चित आकार एवं आकृति होती है।
- सजीवों की मृत्यु होती है तथा सजीव जनन द्वारा अपनी संतति को बढ़ाते हैं।
प्रश्न 3.
किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:
किसी जीव द्वारा कच्ची सामग्रियों का उपयोग कार्बन आधारित अणुओं के रूप में किया जाता है क्योंकि पृथ्वी पर जीवन कार्बन आधारित अणुओं पर निर्भर है अतः अधिकांश खाद्य पदार्थ भी कार्बन आधारित होते हैं।
प्रश्न 4.
जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?
उत्तर:
जीवन के अनुरक्षण के लिए निम्न प्रक्रमों को आवश्यक मानते हैं
- पोषण
- उपापचय
- श्वसन
- उत्सर्जन
- परिवहन।
पृष्ठ 111.
प्रश्न 1.
स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है?
उत्तर:
स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में अन्तर
स्वयंपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition) | विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition) |
1. पोषण की वह विधि, जिसमें जीवधारी सरल अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं कर लेते हैं, स्वयंपोषी पोषण कहलाती है तथा ऐसे जीवधारी स्वयंपोषी कहलाते हैं। | 1. पोषण की वह विधि, जिसमें जीवधारी सरल अकार्बनिक पदार्थों से भोजन निर्मित नहीं कर पाते और इसे दूसरे जीवों से प्राप्त करते हैं, विषमपोषी पोषण कहलाती है तथा ऐसे जीवधारी विषमपोषी कहलाते हैं। |
2. सभी हरे पौधे स्वयंपोषी पोषण विधि अपनाते हैं और सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पर्णहरित (क्लोरोफिल) द्वारा जल एवं CO2 से ग्लूकोज का निर्माण करते हैं। | 2. सभी जन्तु विषमपोषी पोषण विधि अपनाते हैं और ये शाकाहारी, मांसाहारी, परजीवी या मृतोपजीवी हो सकते हैं। |
3. उदाहरण – सभी हरे पौधे, नील-हरित शैवाल एवं प्रकाश – संश्लेषी जीवाणु। | 3. उदाहरण – सभी जन्तु, कवक, अधिकांश जीवाणु, परजीवी पादप (जैसे – अमरबेल)। |
प्रश्न 2.
प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है?
उत्तर:
पौधे प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री के रूप में, प्रकाश सूर्य से प्राप्त करते हैं और जल की पूर्ति जड़ों द्वारा मिट्टी में उपस्थित जल के अवशोषण से करते हैं। विभिन्न पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, लोहा, मैंग्नीज, मैग्नीशियम आदि भी मिट्टी से लिए जाते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल से ली जाती है।
प्रश्न 3.
हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?
उत्तर:
आमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रन्थियों द्वारा जठर रस का स्रवण होता है। यह अम्लीय होता है, क्योंकि इसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) होता है। इस अम्ल की निम्नलिखित भूमिका है
- यह भोजन को सड़ने से बचाता है।
- यह अम्लीय माध्यम प्रदान करता है, जो पेप्सिन एंजाइम की क्रिया में सहायक होता है।
- HCl कठोर ऊतकों को घोलने में सहायता करता है।
- यह भोजन को रोगाणुरहित (sterilize) करता है।
प्रश्न 4.
पाचक एन्जाइमों का क्या कार्य है?
उत्तर:
एन्जाइम कार्बनिक जैव – उत्प्रेरक होते हैं, जो विभिन्न जैव-रासायनिक क्रियाओं की दर को बढ़ाते हैं। पाचक एन्जाइमों का मुख्य कार्य भोजन का पाचन करना है अर्थात् जटिल एवं अघुलनशील भोजन को सरल एवं घुलनशील भोजन में बदलना है।
प्रश्न 5.
पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर:
क्षुद्रांत्र के आंतरिक स्तर पर अनेक अंगुली जैसे प्रवर्ध होते हैं, जिन्हें दीर्घरोम कहते हैं। ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं । दीर्घरोम में रुधिर वाहिकाओं की बहुतायत होती है, जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाते हैं।
पृष्ठ 116.
प्रश्न 1.
श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर:
जलीय जीव जल में विलेय ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं क्योंकि जल में विलेय ऑक्सीजन की मात्रा वायु में ऑक्सीजन की मात्रा की तुलना में बहुत कम है, इसलिए जलीय जीवों की श्वास दर स्थलीय जीवों की अपेक्षा अधिक तेज होती है। इसके विपरीत स्थलीय जीव श्वसन के लिए वायुमण्डल की ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। विभिन्न जीवों में यह ऑक्सीजन भिन्न – भिन्न अंगों द्वारा ग्रहण की जाती है। इन सभी अंगों में एक रचना होती है जो उस सतही क्षेत्रफल को बढ़ाती है जो ऑक्सीजन बाहुल्य वायुमण्डल के सम्पर्क में रहता है।
प्रश्न 2.
ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं?
उत्तर:
विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है, जो कि ATP के रूप में संचित रहती है। विभिन्न जीवधारियों में ग्लूकोज का ऑक्सीकरण निम्न प्रकार से हो सकता है
1. वायवीय श्वसन:
जब ग्लूकोज का ऑक्सीकरण. कोशिका द्रव्य में ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है, तब उसे वायवीय श्वसन कहते हैं। अधिकांश जीवों में इसी प्रकार से ऊर्जा उत्पादन होता है।
2. अवायवीय श्वसन:
यदि ग्लूकोज का ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है, तो उसे अवायवीय श्वसन कहते हैं। यह प्रक्रम किण्वन के समय यीस्ट में होता है, यहाँ पायरुवेट, इथेनॉल तथा CO2 में परिवर्तित हो जाता है। कभी – कभी जब हमारी पेशी कोशिकाओं में ऑक्सीजन का अभाव हो जाता है, तब पायरुवेट एक अन्य तीन कार्बन वाले अणु लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 3.
मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर:
मानव में श्वसन वर्णक वस्तुतः हीमोग्लोबिन होता है, जो ऑक्सीजन के लिए उच्च बंधुता रखता है। यह वर्णक लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित होता है। अतः वायु कूपिकाओं से विसरित होकर ऑक्सीजन, हीमोग्लोबिन के अणुओं से बंध जाती है। रुधिर इस ऑक्सीजन को ऑक्सीजन कमी वाले ऊतकों में पहुँचा देता है। कार्बन डाइऑक्साइड जल में अधिक विलेय है, इसलिए इसका परिवहन हमारे रुधिर में विलेय अवस्था में होता है। रुधिर में विलेय होकर CO2 फेफड़ों तक लाई जाती है। वायु कूपिकाओं में CO2 की सान्द्रता कम होने के कारण यीस्ट में) रुधिर से यह विसरित होकर फेफड़ों में आ जाती है। यह CO2 युक्त वायु निःश्वसन द्वारा शरीर से बाहर निकाल दी जाती है।
प्रश्न 4.
गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया है?
उत्तर:
मनुष्य में दो फेफड़े होते हैं जिन्हें क्रमशः दायां व बायां फेफड़ा कहते हैं। फेफड़ों के अन्दर मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाता है जो अंत में गुब्बारे जैसी रचना में अंतकृत हो जाता है जिसे कूपिका कहते हैं। कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है। कूपिकाओं के चारों ओर रुधिर केशिकाओं का घना जाल होता है, जो श्वसनीय सतह का कार्य करती हैं। यदि मनुष्य के दोनों फेफड़ों की कूपिकाओं की सतह को फैला दिया जाये तो यह लगभग 80 वर्गमीटर क्षेत्र ढक लेती हैं। अतः फेफड़ों में स्थित कूपिकाएँ गैसों के विनिमय के लिए विस्तृत स्थान उपलब्ध करवाती हैं।
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प्रश्न 1.
मानव में वहन तंत्र के घटक कौनसे हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
मानव में वहन तन्त्र के दो मुख्य घटक हैं जिन्हें क्रमशः (अ) परिसंचरण तन्त्र (Circulatory system) (ब) लसीका तन्त्र (Lymphatic system) कहते हैं।
(अ) परिसंचरण तन्त्र (Circulatory system): परिसंचरण तन्त्र के निम्न तीन भाग होते हैं
(1) हृदय (Heart): यह एकपेशीय अंग है जो पूरे शरीर में रुधिर पम्प करने के लिए संकुचन करता है।
(2) रुधिर (Blood): यह एक तरल संयोजी ऊतक है, जिसमें तरल प्लाज्मा एवं रुधिर कोशिकाओं के रूप में स्वतन्त्र कोशिकाएँ होती हैं। ये रुधिर कोशिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं
- लाल रुधिर कोशिकाएँ (Red Blood Corpuscles) के कार्य: ये ऑक्सीजन को फेफड़ों से ऊतकों तक पहुँचाती हैं एवं कार्बन डाइऑक्साइड का कोशिकाओं से फेफड़ों तक संवहन करती हैं।
- श्वेत रुधिर कोशिकाएँ (White Blood Corpuscles) के कार्य: ये भक्षकाणु (phagocytosis) का कार्य करती हैं एवं ये एन्टीबॉडीज का निर्माण करती हैं।
- प्लेटलेट्स (Platelets) के कार्य: ये रक्त स्कंदन (clotting) में सहायता करती हैं, जिससे रक्तवाहिनी के. कटे भाग से रक्तस्राव बंद हो
- जाता है।प्लाज्मा (Plasma) के कार्य: यह भोजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजनी वर्ण्य पदार्थ का विलीन रूप में वहन करता है।
(3) रुधिर वाहिकाएँ (Blood Vessels): ये तीन प्रकार की होती हैं
- धमनियाँ (Arteries): ये मोटी भित्ति वाली रुधिर वाहिकाएँ हैं, जो रुधिर को हृदय से विभिन्न अंगों में ले जाने का कार्य करती हैं।
- शिराएँ (Veins): ये पतली भित्ति वाली वाहिकाएँ होती हैं, जो रुधिर को विभिन्न अंगों से हृदय की ओर लाने का कार्य करती हैं।
- केशिकाएँ (Capillaries): ये अत्यधिक पतली एवं संकीर्ण वाहिकाएँ हैं, जो धमनियों को शिराओं से जोड़ती हैं।
(ब) लसीका तन्त्र (Lymphatic system):
केशिकाओं की भित्ति में उपस्थित छिद्रों द्वारा कुछ प्लाज्मा, प्रोटीन तथा रुधिर कोशिकाएँ बाहर निकलकर ऊतक के अंतर्कोशिकीय अवकाश में आ जाते हैं तथा ऊतक तरल या लसीका का निर्माण करते हैं। यह रुधिर के प्लाज्मा की तरह ही है, लेकिन यह रंगहीन तथा इसमें अल्प मात्रा में प्रोटीन होते हैं।
लसीका अंतर्कोशिकीय अवकाश से लसीका केशिकाओं में चला जाता है, जो आपस में मिलकर बड़ी लसीका वाहिका बनाती हैं और अंत में बड़ी शिरा में खुलती हैं। पचा हुआ तथा क्षुद्रांत्र द्वारा अवशोषित वसा का वहन लसीका द्वारा होता है और अतिरिक्त तरल को बाह्य कोशिकीय अवकाश से वापस रुधिर में ले जाता है।
प्रश्न 2.
स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
स्तनधारी तथा पक्षियों को उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है क्योंकि इन्हें अपने शरीर का तापक्रम बनाये रखने के लिए निरन्तर ऑक्सीजन एवं ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसलिंए स्तनधारी एवं पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना आवश्यक है।
प्रश्न 3.
उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं?
उत्तर:
उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के निम्न दो घटक हैं।
- जायलम (Xylem)
- फ्लोएम (Phloem)
(1) जायलम (Xylem): इसे जल संवहन ऊतक (Water conducting tissue) भी कहते हैं। इसका प्रमुख कार्य जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवणों को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाना है।
(2) फ्लोएम (Phloem): फ्लोएम का प्रमुख कार्य पर्ण में प्रकाश-संश्लेषण के फलस्वरूप बने कार्बनिक भोज्य पदार्थों तथा हार्मोन्स को पौधे के प्रत्येक भाग तक पहुँचाना होता है।
प्रश्न 4.
पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?
उत्तर:
पादप में जल और खनिज लक्षणों का परिवहन जाइलम ऊतक द्वारा किया जाता है । जाइलम में जड़ों, तनों और पत्तियों की वाहिनिकाएँ तथा वाहिकाएँ आपस में जुड़कर जल संवहन वाहिकाओं का एक सतत जाल बनाती हैं जो पादप के सभी भागों से सम्बद्ध होता है। जड़ों की कोशिकाएँ मृदा के सम्पर्क में रहती हैं तथा वे सक्रिय रूप से आयन प्राप्त करती हैं। यह जड़ और मृदा के मध्य आयन सान्द्रण में एक अन्तर उत्पन्न करता है। इस अन्तर को समाप्त करने के लिए मृदा से जल जड़ में प्रवेश कर जाता है। जल अनवरत गति से जड़ के जाइलम में जाता है और जल के स्तम्भ का निर्माण करता है जो लगातार ऊपर की ओर धकेला जाता है।
जल की रंध्र के द्वारा हुई हानि का प्रतिस्थापन पत्तियों में जाइलम वाहिकाओं द्वारा हो जाता है। वास्तव में कोशिका से जल के अणुओं का वाष्पन एक चूषण उत्पन्न करता है जो जल को जड़ों में उपस्थित जाइलम कोशिकाओं द्वारा खींचता है। अतः वाष्पोत्सर्जन जल के अवशोषण एवं जड़ से पत्तियों तक जल तथा उसमें खनिज लवणों के उपरिमुखी गति में सहायक है।
प्रश्न 5.
पादप में भोजन का स्थानान्तरण कैसे होता है?
उत्तर:
प्रकाश – संश्लेषण के विलेय उत्पादों का वहन स्थानान्तरण कहलाता है और यह संवहन ऊतक के फ्लोएम नामक भाग द्वारा होता है। प्रकाश-संश्लेषण के उत्पादों के अलावा फ्लोएम अमीनो अम्ल तथा अन्य पदार्थों का परिवहन भी करता है। ये पदार्थ विशेष रूप से जड़ के भण्डारण अंगों, फलों, बीजों तथा वृद्धि वाले अंगों में ले जाए जाते हैं । भोजन तथा अन्य पदार्थों का स्थानान्तरण संलग्न साथी कोशिका की सहायता से चालनी नलिका में उपरिमुखी तथा अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है।
फ्लोएम द्वारा भोजन का स्थानान्तरण ऊर्जा के उपयोग से पूरा होता है। सुक्रोज सरीखे पदार्थ फ्लोएम ऊतक में ए.टी.पी. से प्राप्त ऊर्जा से ही स्थानान्तरित होते हैं। यह ऊतक का परासरण दाब बढ़ा देता है जिससे जल इसमें प्रवेश कर जाता है। यह दाब पदार्थों को फ्लोएम से उस ऊतक तक ले जाता है जहाँ दाब कम होता है। अतः फ्लोएम पादप की आवश्यकता के अनुसार पदार्थों का स्थानान्तरण कराता है।
पृष्ठ 124.
प्रश्न 1.
वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. नेफ्रोन की रचना (Structure of Nephron): प्रत्येक वृक्क में अनेक निस्यंदन एकक होते हैं जिन्हें वृक्काणु (नेफ्रॉन) कहते हैं। निस्यंदन एकक में, फुफ्फुस की तरह ही बहुत पतली भित्ति वाली रुधिर केशिकाओं का गुच्छ होता है जिसे केशिका गुच्छ (ग्लोमेरुलस) कहते हैं। वृक्क में प्रत्येक केशिका गुच्छ, एक नलिका के रूप के आकार के सिरे के अन्दर होता है जिसे बोमन सम्पुट कहते हैं। नलिका छने हुए मूत्र को एकत्र करती है।
2. वृक्काशु (नेफ्रॉन) की क्रियाविधि: प्रारम्भिक निस्पंद में कुछ पदार्थ, जैसे ग्लूकोस, अमीनो अम्ल, लवण और प्रचुर मात्रा में जल रह जाते हैं। जैसे – जैसे मूत्र इस नलिका में प्रवाहित होता है इन पदार्थों का चयनित पुनरवशोषण हो जाता है। जल की मात्रा का पुनरवशोषण, शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर तथा कितना विलेय वयं उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है। शेष बचे पदार्थों को संग्राहक वाहिनी में स्रावित कर दिया जाता है।
प्रश्न 2.
उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं?
उत्तर:
उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप निम्न विधियों का उपयोग करते हैं
- पादपों में श्वसन क्रिया के दौरान बनी CO2 मुख्य उत्सर्जी पदार्थ है। अतः श्वसन क्रिया में उत्पन्न CO2 एवं जलवाष्प का निष्कासन सामान्य विसरण द्वारा रन्ध्रों एवं वातरन्ध्रों द्वारा किया जाता है।
- पौधों के उत्सर्जी वर्ण्य पदार्थ को पत्तियों, छाल एवं फलों में पहुँचा दिया जाता है। इनके पौधों से पृथक् होने पर पौधों को इनसे छुटकारा मिल जाता है।
- अनेक उत्सर्जी पदार्थ कोशिकाओं की रिक्तिकाओं में संचित कर दिए जाते हैं।
- अनेक अपशिष्ट उत्पाद रेजिन तथा गोंद के रूप में विशेष रुप से पुराने जाइलम में संचित रहते हैं।
- कुछ अपशिष्ट पदार्थों को पौधों की जड़ों द्वारा मृदा में स्रावित कर दिया जाता है।
प्रश्न 3.
मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
मूत्र बनाने की मात्रा का नियमन शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर तथा कितना विलेय वयं उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है। अतिरिक्त जल की मात्रा अधिक होने पर मूत्र भी अधिक मात्रा में बनता है।
RBSE Class 10 Science Chapter 6 जैव प्रक्रम Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबंधित है
(a) पोषण।
(b) श्वसन।
(c) उत्सर्जन।
(d) परिवहन।
उत्तर:
(c) उत्सर्जन।
प्रश्न.2:
पादप में जाइलम उत्तरदायी है
(a) जल का वहन
(b) भोजन का वहन
(c) अमीनो अम्ल का वहन
(d) ऑक्सीजन का वहन
उत्तर:
(a) जल का वहन
प्रश्न 3.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है।
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल
(b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 4.
पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है
(a) कोशिकाद्रव्य
(b) माइटोकॉन्ड्रिया
(c) हरित लवक
(d) केन्द्रक
उत्तर:
(b) माइटोकॉन्ड्रिया।
प्रश्न 5.
हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर:
हमारे शरीर में वसा का पाचन आहार नाल में लाइपेज नामक एंजाइम द्वारा होता है। पित्त रस में उपस्थित पित्त लवण वसा का इमल्सीकरण करते हैं अर्थात् वसा को छोटी गोलिकाओं में खंडित कर देते हैं। इससे एंजाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। यह साबुन का मैल पर इमल्सीकरण की तरह ही है। जठर रस, अग्न्याशयी रस तथा आंत्र रस में उपस्थित लाइपेज एंजाइम इस इमल्सीकृत वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदल देता है। इस प्रकार वसा का पाचन हो जाता है। वसा के पाचन की क्रिया छोटी आंत्र (क्षुदांत्र) में होती है।
प्रश्न 6.
भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर:
- लार द्वारा भोजन को गीला किया जाता है ताकि इसका मार्ग आसान हो जाए।
- लार में एक एंजाइम होता है जिसे लार एमिलेस कहते है, यह मंड जटिल अणु को सरल शर्करा में खंडित कर देता है।
प्रश्न 7.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौनसी हैं और उसके उपोत्पाद क्या हैं?
उत्तर:
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ निम्न हैं
- कार्बन डाइऑक्साइड
- पादपों में उपस्थित क्लोरोफिल
- सूर्य का प्रकाश
- जल
- उचित तापमान।
स्वपोषी क्लोरोफिल की सहायता से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में CO2 तथा जल द्वारा भोजन (कार्बोहाइड्रेट) का निर्माण करते हैं।
इस क्रिया का मुख्य उत्पाद ग्लूकोज (C6H12O6 ) तथा उपोत्पाद जल तथा ऑक्सीजन होते हैं।
प्रश्न 8.
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अन्तर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।
उत्तर:
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में अन्तर:
वायवीय श्वसन | अवायवीय श्वसन |
1. यह क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है। | 1. यह क्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है। |
2. इसमें ग्लूकोज का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। | 2. इसमें ग्लूकोज का अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है। |
3. इसमें अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है। | 3. इसमें अपेक्षाकृत कम ऊर्जा प्राप्त होती है। |
4. इस क्रिया के अन्त में CO2 और जल बनता है। | 4. इस क्रिया के अन्त में CO2 और एथिल ऐल्कोहॉल (C2H5OH)बनता है। |
5. यह क्रिया कोशिका के जीवद्रव्य एवं माइटोकॉण्ड्रिया दोनों में पूर्ण होती है। | 5. यह क्रिया केवल जीवद्रव्य में ही पूर्ण होती है। |
6. यह साधारण श्वसन क्रिया है जो समस्त जीवों में होती है। | 6. यह असाधारण श्वसन क्रिया है जो प्रमुख रूप से कवक, जीवाणुओं तथा जन्तुओं के कुछ विशेष ऊतकों में ही होती है। |
निम्नलिखित जीवों में अवायवीय श्वसन होता है
- यीस्ट (yeast)
- जीवाणुओं में
- अंतः परजीवियों में।
प्रश्न 9.
गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कुपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?
उत्तर:
फेफड़ों की सबसे छोटी इकाई कूपिकाएँ हैं। कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है। कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है। मनुष्य के यदि दोनों फेफड़ों की कूपिकाओं की सतह को फैला दिया जाये तो यह लगभग 80 वर्गमीटर क्षेत्र ढक लेगी। अतः कूपिकाएँ विनिमय के लिए विस्तृत सतह उपलब्ध करवाती हैं जिससे गैस-विनिमय अधिक दक्षतापूर्वक होता है।
प्रश्न 10.
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन का मुख्य कार्य फेफड़ों से ऑक्सीजन ग्रहण करके शरीर के विभिन्न ऊतकों तक पहुँचाना है। अतः इसे श्वसन वर्णक भी कहते हैं। शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के कारण फेफड़ों से शरीर की कोशिकाओं के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी हो जाएगी। परिणामस्वरूप भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण में बाधा उत्पन्न होगी। ऐसा होने से शरीर की विभिन्न क्रियाओं के संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा में कमी हो जाएगी। इसके कारण स्वास्थ्य खराब हो सकता है तथा शरीर में थकान महसूस हो सकती है। हीमोग्लोबिन की कमी से होने वाला रोग रक्ताल्पता (एनीमिया) कहलाता है। इसकी अत्यधिक कमी से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
प्रश्न 11.
मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
मानव में रुधिर प्रत्येक चक्र में हृदय से दो बार गुजरता है अर्थात् रुधिर शरीर में एक बार पहुँचने के लिए मानव हृदय से दो बार गुजरता है। इसे ही दोहरा परिसंचरण कहते हैं। इसके अन्तर्गत विऑक्सीजनित रुधिर शरीर के विभिन्न भागों से शिराओं द्वारा इकट्ठा करके महाशिरा में पहुँचाया जाता है और अन्त में यह रुधिर दाएँ आलिन्द में पहुँचता है। दाएँ आलिन्द से बाएँ निलय में जाता है। विऑक्सीजनित रुधिर दाएँ निलय से ऑक्सीजनित होने के लिए फेफड़ों में भेजा जाता है। ऑक्सीजनित रुधिर फिर से मानव हृदय के बाएँ आलिन्द में आता है। फिर बाएँ आलिन्द से बाएँ निलय में, बाएँ निलय से महाधमनी में और फिर शरीर में चला जाता है। इस प्रकार हृदय में एक परिसंचरण चक्र में दो बार रुधिर आता है – एक बार दायीं तरफ से तथा दूसरी बार बायीं तरफ से। इसलिए यह दोहरा परिसंचरण कहलाता है।
आवश्यकता: मानव हृदय का दायां व बायां भाग ऑक्सीजनित व विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने नहीं देता है। इस तरह का बँटवारा शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति कराता है ताकि मानव अपने शरीर का तापक्रम बनाए रखने के लिए निरन्तर उच्च ऊर्जा प्राप्त कर सके।
प्रश्न 12.
जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अन्तर है?
उत्तर:
जाइलम, मृदा से प्राप्त जल और खनिज लवणों का वहन करता है जबकि फ्लोएम पत्तियों से प्रकाश संश्लेषण के संश्लेषित उत्पादों को पौधे के अन्य भागों तक वहन करता है।
प्रश्न 13.
फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए।
उत्तर:
कूपिका – रचना | नेफ्रॉन – रचना |
1. कूपिका गोल. गुब्बारे जैसी रचना है। | 1. नेफ्रॉन-कुण्डलित नलिकाकार रचना है। |
2. कूपिका एकल कोशिकीय स्तर से बनी होती है। | 2. नेफ्रॉन भी एकल कोशिकीय स्तर से बनी होती है। |
3. कूपिका की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है। | 3. नेफ्रॉन की नलिकीय रचना के चारों ओर रुधिर वाहिकाओं का जाल पाया जाता है। |
4. केशिका गुच्छ जैसी रचना नहीं पायी जाती है। | 4. केशिका गुच्छ पाया जाता है। |
कूपिका – क्रियाविधि | नेफ्रॉन – क्रियाविधि |
1. कूपिका फुफ्फुस की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई है | 1. नेफ्रॉन वृक्क की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई है। |
2. कूपिका श्वसनीय सतह उपलध्ध कराती है जहाँ गैसों का विनिमय होता है। | 2. नेफ्रॉन में रुधिर निस्यंदन होता है जिससे अपशिष्ट पदार्थ पृथक् किए जाते हैं। |
3. कूपिका में विसरण क्रिया द्वारा गैसों का विनिमय होता है। | 3. नेफ्रॉन में निस्यंदन चयनित पुनरवशोषण व स्रवण की क्रियाएँ होती हैं। |
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