Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 प्रबन्ध: प्रक्रिया या कार्य, प्रबन्धकीय भूमिका एवं स्तर
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रबन्ध प्रक्रिया किसे कहते है?
उत्तर:
प्रबन्धकीय कार्यों को व्यवस्थित रूप से निष्पादित करने के तरीकों को प्रबन्ध प्रक्रिया कहते है।
प्रश्न 2.
नवप्रवर्तन से क्या आशय है?
उत्तर:
नवप्रवर्तन उत्पादन के नये डिजाइन, नयी उत्पादन पद्धति एवं विपणन की तकनीकी है।
प्रश्न 3.
प्रबन्ध के कार्यों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रबन्धक को उपक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु जो कर्तव्य करने पड़ते हैं, उन्हें ही प्रबन्ध के कार्य कहा जाता है।
प्रश्न 4.
प्रबन्ध के प्रमुख कार्य कौन – कौन – से हैं?
उत्तर:
- नियोजन
- संगठन
- निर्देशन
- नियन्त्रण
- समन्वय
प्रश्न 5.
अन्तर्वैयक्तिक भूमिका क्या होती है?
उत्तर:
अन्तर्वैयक्तिक भूमिका में प्रबन्धक अपनी औपचारिक सत्ता, पद एवं स्थिति के कारण संस्था अध्यक्ष नेता या नायक, सम्पर्क अधिकारी आदि भूमिकाओं का निर्वाह करते हैं।
प्रश्न 6.
पीटर डुकर ने प्रबन्ध का कौन – सा कार्य प्रमुख माना है?
उत्तर:
नवप्रवर्तन या नवाचार।
प्रश्न 7.
मिन्ट्ज बर्ग के शोध कार्य का प्रश्न या विषय क्या था?
उत्तर:
कम्पनियों के उच्च स्तरीय प्रबन्धकों की क्रियाओं एवं व्यवहार (भूमिका) का अध्ययन।
प्रश्न 8.
प्रबन्ध के विभिन्न स्तर बताइए।
उत्तर:
- उच्च स्तरीय प्रबन्ध
- मध्यम स्तरीय प्रबन्ध
- निम्न स्तरीय प्रबन्ध
प्रश्न 9.
सम्पर्क भूमिका क्या है?
उत्तर:
सम्पर्क भूमिका के अन्तर्गत प्रबन्धक अपने संगठन एवं बाह्य पक्षों तथा विभिन्न विभागों व संगठनात्मक इकाइयों के मध्य सूचना सम्प्रेषण एवं समन्वय का कार्य करते हैं।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रबन्ध प्रक्रिया की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रबन्ध प्रक्रिया की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- प्रबन्ध एक सामाजिक क्रिया है क्योंकि प्रबन्ध की क्रियायें मूलत: व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों पर आधारित है।
- लक्ष्य प्राप्ति में प्रबन्ध प्रक्रिया व्यक्तिगत जीवन से लेकर सभी छोटे – बड़े, व्यावसायिक, गैर – व्यावसायिक संगठनों में प्रयुक्त होती है, इसलिए इसे सार्वभौमिक प्रक्रिया भी कहा जाता है।
प्रश्न 2.
हेनरी मिन्ट्ज बर्ग के शोध अध्ययन की मान्यतायें क्या थीं?
उत्तर:
हेनरी मिन्ट्ज बर्ग ने पाँच बड़ी कम्पनियों के उच्च स्तरीय प्रबन्धकों की क्रियाओं एवं व्यवहार (भूमिका) का अध्ययन किया। उनके शोध अध्ययन की मान्यतायें निम्नलिखित हैं –
- प्रबन्धकों को संस्था में उच्च पद स्थिति और अधिकार सत्ता प्राप्त होती है।
- अधिकारिक शक्ति या सत्ता एवं उच्च पद स्थिति उन्हें अधीनस्थों वे सहकर्मियों के साथ लोक व्यवहार के कारण अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों का निर्माण करने में सहायता करता है।
- प्रबन्धकों की संस्था में उच्च पद स्थिति एवं अधीनस्थों से अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्ध संगठन व लोक व्यवहार में प्रबन्धकों की कई भूमिका उत्पन्न करता है।
प्रश्न 3.
प्रबन्धक की निर्णयात्मक भूमिका बताइए।
उत्तर:
प्रबन्धक की निर्णयात्मक भूमिका व्यूह रचना निर्माण करने सम्बन्धी होती है जिसमें प्रबन्धक एक उद्यमी के रूप में विभिन्न सम्भावनाओं, अवसरों व खतरों का पता लगाता है और उनके अनुरूप परिवर्तन व सुधारों को लागू करता है। उपद्रव निवारक के रूप में प्रबन्धक संगठन में उत्पन्न संघर्षों को दूर करता है तथा संसाधन वितरक के रूप में प्रबन्धक अपने अधीनस्थों के साथ प्रबन्धन, संसाधनों के कार्यों के बारे में कार्य योजना बनाता हैं। साथ ही संगठन के संसाधनों को क्यों, कब, कैसे, किसके लिये खर्च करने सम्बन्धी निर्णय लेता है।
प्रश्न 4.
उच्च स्तरीय प्रबन्ध किसे कहते है?
उत्तर:
सामान्यतः उच्चे या शीर्ष पदों पर क्रियाशील प्रबन्धकों का समूह उच्च स्तरीय या उच्च प्रबन्ध कहलाता है, जिसका मुख्य कार्य संस्था की नीतियों का निर्धारण करना है। उच्च स्तरीय प्रबन्ध में संचालक मण्डल, अध्यक्ष, प्रबन्ध संचालक, महाप्रबन्धक आदि आते हैं। लुईस ए. एलन के अनुसार, “उच्च प्रबन्ध, नीति-निर्धारक समूह है, जो कम्पनी की समस्त क्रियाओं के निर्देशन एवं सफलता के लिए उत्तरदायी है।”
प्रश्न 5.
उच्च एवं मध्य स्तरीय प्रबन्ध में क्या अन्तर है?
उत्तर:
उच्च एवं मध्य स्तरीय प्रबन्ध में निम्न अन्तर हैं –
- उच्च स्तरीय प्रबन्ध का मुख्य कार्य संस्था के उद्देश्य की व्याख्या करना, नीतियों का निर्धारण करना और निर्देशन करना है। जबकि मध्य स्तरीय प्रबन्ध का मुख्य कार्य क्रियात्मक या परिचालन प्रबन्ध, तथा उच्चवर्गीय प्रबन्धकों के मध्य समन्वय स्थापित करना है।
- उच्च स्तरीय प्रबन्ध को समस्त क्रियाओं के निर्देशन एवं सफलताओं के लिए उत्तरदायी माना जाता है। जबकि मध्यम स्तरीय प्रबन्ध में उच्च स्तर प्रबन्ध द्वारा दिए गए कार्य क्षेत्र (विभागों) के प्रति उत्तरदायी माना जाता है।
- उच्च स्तरीय प्रबन्ध में आदेश, निर्देश एवं परामर्श मध्य स्तर प्रबन्ध को प्रेषित करते हैं। जबकि मध्य स्तर प्रबन्ध में आदेश-निर्देश निम्न स्तरीय प्रबन्ध को प्रेषित करते हैं।
प्रश्न 6.
पर्यवेक्षीय प्रबन्धक के कार्य बताइए।
उत्तर:
पर्यवेक्षीय प्रबन्धक के कार्य निम्नलिखित हैं –
- कार्य संचालन कर्मचारियों का व्यक्तिगत निरीक्षण एवं निर्देश देना।
- कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना एवं उनमें अनुशासन बनाये रखना।
- कर्मचारियों को उचित परामर्श, मार्गदर्शन देना तथा उनकी कार्य समस्याओं को हल करना।
- उच्च अधिकारियों की योजनानुसार कार्य करना तथा उनको आवश्यक सूचनाओं से अवगत कराना।
- विभिन्न संचालकीय कार्यों में समन्वय स्थापित करना आदि।
प्रश्न 7.
प्रबन्ध के सहायक कार्य बताइए।
उत्तर:
प्रबन्ध के प्रमुख कार्यों को सम्पन्न करने के लिए जो कार्य किए जाते हैं, वे सहायक कार्य कहलाते हैं, जो निम्न प्रकार है –
- किसी कार्य को करने या न करने के सम्बन्ध में उपलब्ध विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन करना।
- कर्मचारियों की नियुक्ति करना।
- उत्पादन की नयी डिजाइन, पद्धति एवं विपणन की तकनीकी का विकास करना।
- संगठन के विभिन्न कर्मचारियों के मध्य विचारों, तथ्यों, सूचनाओं एवं भावनाओं का सम्प्रेषण करना।
- संस्था के बाहर एवं आन्तरिक प्रतिनिधित्व का कार्य करना।
प्रश्न 8.
वार्ताकार भूमिका क्या है?
उत्तर:
वार्ताकार भूमिको एक निर्णयात्मक भूमिका है जिसमें प्रबन्धक विभिन्न पक्षकारों, विभिन्न समूहों जैसे – श्रम, संघ, पूर्तिकर्ता, ग्राहक, सरकार व अन्य एजेन्सियों के साथ समझौते सम्बन्धी वार्ताये करके संगठन को लाभान्वित करता है तथा विभिन्न विवादों की दशा में भी उनके हल के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाता है।
प्रश्न 9.
प्रबन्ध के मध्य स्तरीय अधिकारी कौन होते हैं?
उत्तर:
संगठन के आकार एवं स्थिति के अनुसार प्रबन्ध के मध्य स्तरीय निम्न अधिकारी हो सकते हैं –
- क्षेत्रीय प्रबन्धक
- मण्डल प्रबन्धक
- संयन्त्र प्रबन्धक
- विभागीय प्रबन्धक उत्पादन, विपणन, वितरण एवं कार्मिक आदि।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रबन्ध प्रक्रिया से आप क्या समझते है? इसकी विशेषताओं को वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध प्रक्रिया:
प्रारम्भ में योजना बनाने से क्रियान्वयन तक तत्पश्चात् किए गए कार्यों का मूल्यांकन करने तक की क्रियाओं में प्रबन्धक के उद्देश्य निर्धारण, नियोजन, संगठन नियुक्ति निर्देशन, नेतृत्व, सम्प्रेषण, अभिप्रेरण एवं नियन्त्रण आदि कई प्रबन्धकीय कार्यों को निष्पादित करने को संयोजित या सामूहिक रूप से प्रबन्ध प्रक्रिया कहते हैं।
प्रबन्ध प्रक्रिया की विशेषताएँ:
प्रबन्ध प्रक्रिया की विशेषताएँ निम्नलिखित है –
- प्रबन्ध एक निरन्तर एवं गतिशील प्रक्रिया है –
प्रबन्ध कार्यों की निरन्तर एवं गतिशील प्रक्रिया है। जब तक संस्था के निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाते है, तब तक निरन्तर प्रयासों में गतिशीलला रहती है। प्रबन्ध प्रक्रिया एवं निरन्तर जारी रहने वाली प्रक्रिया है। - प्रबन्ध एक मानवीय प्रक्रिया है –
प्रबन्ध मानवीय क्रियाओं से सम्बन्धि ति है क्योंकि प्रबन्ध के सभी कार्य (नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय एवं नियन्त्रण आदि) प्रबन्धक द्वारा ही सम्पन्न किए जाते हैं तथा उत्पादन के निष्क्रिय साधनों में गतिशीलता कुशल प्रबन्धक द्वारा ही लायी जाती है। - प्रबन्ध एक सामाजिक क्रिया है –
प्रबन्ध की क्रियायें मूलतः व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों पर निर्भर करती है। प्रबन्ध निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये समाज के साथ सामूहिक रूप से मनुष्य को एक साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। अत: प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया है। - प्रबन्ध एक सामूहिक प्रक्रिया है –
संगठन अलग – अलग आवश्यकता वाले विभिन्न लोगों का समूह होता है। समूह का प्रत्येक सदस्य संगठन में किसी – न – किसी अलग उद्देश्य को लेकर सम्मिलित होता है, लेकिन संगठन के सदस्य के रूप में वह संगठन के समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिये कार्य करता है। - प्रबन्ध एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है –
संगठन चाहे आर्थिक हो, सामाजिक हो या राजनैतिक, प्रबन्ध की क्रियायें सभी में समान रूप से लागू होती है। प्रभावी कार्य निष्पादन के लिये प्रबन्ध सभी संगठनों के लिये आवश्यक होता है। इसमें लोच होती है, इसलिए इसे संस्थाओं की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है। - प्रबन्ध एक विवेकपूर्ण प्रक्रिया है –
प्रबन्धक अपने प्रभाव का प्रयोग कर लक्ष्य प्राप्ति का पूर्ण प्रयास करता है तथा सम्भावित लागत, श्रम एवं त्याग के द्वारा अधिकतम लाभ प्राप्त करने का प्रयास करता है, इसलिए प्रबन्ध को विवेकपूर्ण प्रक्रिया कहा जाता है।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध प्रक्रिया क्या है? प्रबन्ध के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध प्रक्रिया का आशय:
प्रबन्धकीय कार्यों को व्यवस्थित रूप से निष्पादित करने के तरीकों को प्रबन्ध प्रक्रिया कहते हैं। प्रबन्ध प्रक्रिया में संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सामूहिक प्रयासों द्वारा नियोजन, संगठन, समन्वय, निर्देशन एवं नियन्त्रण सम्बन्धी कार्य किये जाते हैं।
प्रबन्ध के कार्य:
प्रबन्ध प्रक्रिया में प्रबन्ध के कार्यों के बारे में विद्वानों के बीच भिन्नता पायी जाती है, किन्तु अध्ययन की दृष्टि से प्रबन्ध के कार्यों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है –
प्रमुख कार्य –
प्रबन्ध के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –
- नियोजन –
किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले अपेक्षित कार्यों की रूपरेखा या चित्रण ही नियोजन है। यह पहले से ही निर्धारित करने का कार्य है कि क्या करना है, किस प्रकार करना है तथा किसके द्वारा करना है। नाइल्स के शब्दों में, “नियोजन किसी उद्देश्य को पूरा करने हेतु सर्वोत्तम कार्य पथ पर चुनाव करने एवं विकास करने की जागरूक प्रक्रिया है।” - संगठन –
यह निर्धारित योजना के क्रियान्वयन के लिए कार्य सौंपने, कार्यों को समूहों में बाँटने, अधिकार निश्चित करने एवं संसाधनों के आबंटन के कार्य का प्रबन्धन करता है। यह आवश्यक कार्यों एवं संसाधनों का निर्धारण करता है। यह निर्णय लेता है कि किस कार्य को कौन करेगा, इन्हें कहाँ किया जाएगा तथा कब किया जायेगा। - निर्देशन –
निर्देशन का कार्य कर्मचारियों को नेतृत्व प्रदान करना, प्रभावित करना एवं अभिप्रेरित करना है जिससे कि वह सुपुर्द कार्य को पूरा कर सकें। इसके लिए एक ऐसा वातावरण तैयार करना होगा जो कर्मचारियों को सर्वश्रेष्ठ ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित कर सके। - नियंत्रण –
नियंत्रण कार्य में निष्पादन के स्तर निर्धारित किये जाते हैं, वर्तमान निष्पादन को मापा, जाता है। इसका पूर्व निर्धारित स्तरों से मिलान किया जाता है और विचलन की स्थिति में सुधारात्मक कदम उठाये जाते हैं। इसके लिए प्रबन्धकों को यह निर्धारित करना होता है कि सफलता के लिए क्या कार्य एवं उत्पादन महत्वपूर्ण है, उसका कैसे और कहाँ मापन किया जा सकता है तथा सुधारात्मक कदम उठाने के लिए कौन अधिकृत होगा। - समन्वय –
किसी संस्था के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में सामूहिक प्रयासों में किया जाने वाला तालमेल ही समन्वय है। प्रबन्ध के कार्यों में समन्वय एक रचनात्मक व सृजनात्मक शक्ति है। क्योंकि बिना समुचित समन्वय के भौतिक एवं मानवीय साधन केवल साधन मात्र रह जाते हैं, कभी उत्पादक नहीं बन पाते हैं। मैसी के अनुसार, “समन्वय अन्य प्रबन्धकीय कार्यों के उचित क्रियान्वयन का परिणाम है।”
सहायक कार्य –
प्रबन्ध के सहायक कार्य निम्नलिखित हैं –
- निर्णयन –
निर्णयन किसी कार्य को करने या नहीं करने के सम्बन्ध में उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से किसी एक श्रेष्ठ विकल्प के चयन की प्रक्रिया है। व्यावसायिक क्रिया के सफल संचालन में समय-समय पर उचित निर्णय लेना अत्यन्त आवश्यक होता है, इसलिए हरबर्ट साइमन कहते हैं कि -“निर्णयन एवं प्रबन्ध समानार्थक है।” - नियुक्ति करना –
सही कार्य के लिए उचित व्यक्ति को ढूँढ़ना ही नियुक्तिकरण कहलाता है। प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण पहलू संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सही योग्यता वाले सही व्यक्तियों को, सही स्थान एवं समय पर उपलब्ध कराने को सुनिश्चित करना है। इसे मानव संसाधन कार्य भी कहते हैं तथा इसमें कर्मचारियों की भर्ती, चयन, कार्य पर नियुक्ति एवं प्रशिक्षण सम्मिलित है। - नवप्रवर्तन या नवाचार –
नवप्रवर्तन या नवाचार उत्पादन के नये डिजायन, नयी उत्पादन पद्धति, एवं विपणन की तकनीकी है। प्रबन्ध एक गतिशील प्रक्रिया होने के कारण प्रबन्ध में आये दिन परिवर्तन होते रहते हैं। ऐसी स्थिति में प्रबन्धक को प्रबन्ध जगत में नवीन तकनीकों को लागू करते रहना चाहिए। पीटर ड्रकर ने इस कार्य को प्रबन्ध का सबसे महत्वपूर्ण व प्रमुख कार्य बताया है। - सम्प्रेषण –
प्रबन्धक व कर्मचारियों के मध्य विचारों, तथ्यों, सूचनाओं एवं भावनाओं के आदान – प्रदान को सम्प्रेषण कहते हैं। संगठन में सुचारु सम्प्रेषण व्यवस्था या प्रणाली को लागू करना प्रबन्धक का विशेष कार्य है। प्रभावी सम्प्रेषण प्रणाली से कर्मचारियों में फैलने वाले भ्रम, अफवाह, मनमुटाव को दूर किया जा सकता है। - प्रतिनिधित्व –
प्रबन्धक संस्था के हित में बाहरी उद्योगपतियों, पूंजीपतियों, व्यवसायियों, श्रमिक संगठनों से एवं वित्तीय संस्थाओं से सम्पर्क बनाये रखना तथा फर्म के अन्दर भी स्वामियों एवं संस्था के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
प्रश्न 3.
प्रबन्धकीय भूमिका से क्या तात्पर्य है? मिन्ट्ज बर्ग की प्रबन्धकीय भूमिकाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्धकीय भूमिका से आशय:
प्रबन्धकीय भूमिका से आशय प्रबन्धक के व्यवहार एवं व्यवहारों के समूह तथा कार्य व क्रियाओं के समूह से है, जिसकी अपेक्षा में समाज व संगठन उससे व्यवहार करता है और उसके अनुरूप प्रबन्धक उनसे व्यवहार करता है या भूमिका निभाता है।
मिन्ट्ज बर्ग की प्रबन्धकीय भूमिकायें:
मिन्ट्ज बर्ग ने प्रबन्धकों की 10 तरह की भूमिकाएँ निर्धारित की एवं उनका वर्गीकरण करते हुए मूलत: निम्न तीन प्रमुख भूमिकाओं का वर्णन किया है –
- अन्तर्वैयक्तिक भूमिकायें
- सूचनात्मक भूमिकायें
- निर्णयात्मक भूमिकायें।
1. अन्तर्वैयक्तिक भूमिकाएँ –
मिन्ट्ज बर्ग की अन्तर्वैयक्तिक भूमिका के अन्तर्गत प्रबन्धक अपनी औपचारिक सत्ता, पद एवं स्थिति के कारण अन्तर्वैयक्तिक भूमिकाओं का निर्वाह करते हैं। इन भूमिकाओं में संस्था अध्यक्ष या मुखिया के नाते प्रबन्धक वैधानिक प्रपत्रों पर हस्ताक्षर करते हैं। नेता की भूमिका में प्रबन्धक अपने अधीनस्थों को संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उत्प्रेरित करने का कार्य करते हैं तथा सम्पर्क अधिकारी के रूप में प्रबन्धक अपने संगठन एवं बाह्य पक्षों तथा विभिन्न विभागों व संगठनात्मक इकाइयों के मध्य सम्पर्क सूत्र की भूमिका भी निभाते हैं।
2. सूचनात्मक भूमिकाएँ –
सूचनात्मक भूमिकाओं में प्रबन्धक विभिन्न सूचनाओं, तथ्यों व ज्ञान का संग्रहण एवं वितरण करते हैं। इसमें प्रबन्धक अपने संगठन तथा इसके वातावरण के बारे में विभिन्न ज्ञात स्रोतों से सूचना सामग्री प्रबोधक के रूप में करता है। प्रबन्धक प्रसारक की भूमिका में एकत्रित सूचनाओं को उपयोगिता एवं आवश्यकता अनुसार अपने अधीनस्थों व सम्बन्धित इकाइयों को वितरित एवं प्रसारित करता है तथा प्रवक्ता की भूमिका में प्रबन्धक अपने संगठन की योजनाओं, नीतियों, कार्यक्रमों के बारे में बाह्य पक्षकारों – ग्राहकों, सरकार, समुदाय, संस्थाओं आदि को विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ संचार माध्यम से प्रेषित करता है।
3. निर्णयात्मक भूमिकाएँ –
प्रवन्धक की निर्णयात्मक भूमिका व्यूह रचना निर्माण करने सम्बन्धी होती है जिसमें प्रबन्धक एक उद्यमी के रूप में विभिन्न सम्भावनाओं, अवसरों व खतरों का पता लगाना और उनके अनुरूप परिवर्तन व सुधारों को लागू करता है। उपद्रव निवारक के रूप में प्रबन्धक संगठन में उत्पन्न संघर्षों को दूर करता है तथा संसाधन वितरक के रूप में प्रबन्धक अपने अधीनस्थों के समय प्रबन्धन, संसाधन एवं कार्यों के बारे में कार्य योजना बनाता है। साथ ही संगठन के संसाधनों को क्यों, कब, कैसे, किसके लिये खर्च सम्बन्धी निर्णय लेता है। निर्णयात्मक भूमिका में प्रबन्धक की वार्ताकार के रूप में अहम भूमिका होती है।
प्रश्न 4.
प्रबन्धकीय कार्य में विभिन्न स्तरों की आवश्यकता क्यों है? विभिन्न स्तरीय प्रबन्धकों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्धकीय स्तरों की आवश्यकता:
प्रत्येक संगठन में सर्वोच्च स्तर से लेकर निम्न स्तर (प्रथम पंक्ति) तक के कर्मचारियों में कार्यों व अधिकारों का विभाजन करने से अधिकारी एवं उनके अधीनस्थों के सम्बन्धों का निर्माण होता है। ये सम्बन्ध लम्बवत् होते हैं एवं इससे ही प्रबन्धकीय स्तर का निर्माण होता है। किसी संस्था में प्रबन्ध व्यवस्था की स्थिति प्रबन्ध स्तर के रूप में जानी जाती है। प्रबन्ध के स्तर से यह आभास होता है कि संस्था में कार्य संचालन व्यवस्था कौन – कौन से अधिकारी देख रहे हैं? प्रबन्ध की क्रम व्यवस्था क्या है? जिस प्रकार किसी व्यक्ति के चेहरे को देखकर उसके व्यक्तित्व का पता चल जाता है, उसी प्रकार किसी संस्था के प्रबन्ध के स्तर को देखकर उस संस्था के विकास का पता चलता है, इसीलिए किसी व्यवसाय में विभिन्न प्रबन्धकीय स्तरों की आवश्यकता पड़ती है।
प्रबन्धकीय स्तरों के कार्य:
सामान्यतः विभिन्न व्यावसायिक संस्थाओं में उच्च शीर्ष, मध्यम तथा निम्न (प्रथम पंक्ति) स्तर की प्रबन्धकीय व्यवस्था होती है, जिनके कार्य निम्न हैं –
(i) उच्च स्तरीय प्रबन्ध के कार्य –
- संगठन के उद्देश्यों का निर्धारण करना।
- व्यवसाय से सम्बन्धित नीतिगत निर्णय लेना।
- व्यवसाय संचालन से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेना।
- योजनाओं को कार्यरूप देने के लिए आवश्यक संसाधन जुटाना।
- सरकारी नीतियों, जनता की विचारधारा, राष्ट्रीय – अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं को ध्यान में रखकर संगठन के भविष्य की कार्ययोजना तैयार करना।
- बजट बनाना।
- संस्था की बिक्री में वृद्धि हेतु विज्ञापन करना।
- मध्य स्तरीय प्रबन्धकों को निर्देशित करना।
(ii) मध्य स्तरीय प्रबन्ध के कार्य –
- विभागीय योजनाएँ एवं बजट बनाना।
- निम्न स्तरीय प्रबन्धकों को निर्देश देना।
- अपने विभागों से सम्बन्धित संशोधित नीतियों की सिफारिश करना।
- निम्न स्तरीय प्रबन्धकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण देना।
- निम्न स्तरीय प्रबन्ध के कार्यों को अवलोकित करना एवं उन्हें प्रोत्साहित करना।
- प्रगति रिपोर्ट एवं अन्य महत्वपूर्ण तथ्य उच्च प्रबन्धकों को प्रस्तुत करना।
(iii) निम्न स्तरीय प्रबन्ध के कार्य –
- मध्य स्तरीय प्रबन्ध एवं कर्मचारियों के मध्य कड़ी के रूप में कार्य करना।
- मध्य स्तरीय प्रबन्ध से प्राप्त निर्देशों को कार्यान्वित करना।
- मजदूरों की समस्याओं का समाधान करना, उन्हें कार्य सौंपना, निरीक्षण करना तथा कार्य करने के लिए प्रेरित करना।
- कारखाने में मधुर वातावरण एवं अनुशासन बनाये रखना।
- मजदूरों, मशीनों एवं अन्य उपकरणों को सुरक्षा प्रदान करना।
- मजदूरों में संस्था के प्रति अपनत्व की भावना पैदा करना तथा संस्था की गरिमा बनाये रखना।
- कच्चा माल, मशीन, उपकरण आदि को दुरुपयोग एवं क्षति से बचाना।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
“प्रक्रिया कार्यों को व्यवस्थित रूप से करने का तरीका हैं।” यह कथन है –
(अ) स्टोनर का
(ब) ब्रेक का
(स) हेनरी फेयोल का
(द) लूथर गुलिक को।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध प्रक्रिया की विशेषता है –
(अ) प्रबन्ध कार्यों की निरन्तर एवं गतिशील प्रक्रिया है।
(ब) यह मानवीय प्रक्रिया है।
(स) यह सामाजिक प्रक्रिया है।
(द) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 3.
हेनरी फेयोल द्वारा बताये गये प्रबन्ध के कार्यों की संख्या है –
(अ) तीन
(ब) चार
(स) पांच
(द) सात
प्रश्न 4.
राल्फ डेविस द्वारा उल्लेखित प्रबन्ध का कार्य नहीं है –
(अ) नियोजन
(ब) संगठन
(स) निर्देशन
(द), नियन्त्रण।
प्रश्न 5.
प्रबन्ध का प्रमुख कार्य नहीं है –
(अ) नियोजन
(ब) सम्प्रेषण
(स) समन्वय
(द) नियन्त्रण।
प्रश्न 6.
पीटर डुकर ने किस कार्य को प्रबन्ध को सबसे महत्वपूर्ण व प्रमुख कार्य बताया है –
(अ) समन्वय
(ब) नवप्रवर्तन
(स) निर्णयन
(द) संगठन।
प्रश्न 7.
हेनरी मिन्ट्ज बर्ग ने प्रबन्धकों की भूमिकायें निर्धारित की थी –
(अ) 21 तरह की
(ब) 6 तरह की
(स) 25 तरह की
(द) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 8.
प्रबन्धक की अन्तर्वैयक्तिक भूमिका है –
(अ) मुखिया की भूमिका
(ब) नायक की भूमिका
(स) सम्पर्क अधिकारी की भूमिका
(द) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 9.
प्रबन्धक की निर्णयात्मक भूमिका नहीं है –
(अ) साहसी की भूमिका
(ब) उपद्रव निवारक की भूमिका
(स) वार्ताकार की भूमिका
(द) प्रसारक की भूमिको।
प्रश्न 10.
“उच्च प्रबन्ध नीति-निर्धारक समूह है, जो कम्पनी की समस्त क्रियाओं के निर्देशन एवं सफलता के लिये उत्तरदायी है।” यह कथन है –
(अ) लुईस ए. ऐलन का
(ब) हेनरी फेयोल का
(स) हेनरी मिन्ट्ज बर्ग
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरमाला:
1. (अ)
2. (द)
3. (स)
4. (स)
5. (ब)
6. (ब)
7. (अ)
8. (द)
9. (द)
10. (अ)
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रबन्ध प्रतिरूप किसे कहा जाता है?
उत्तर:
प्रबन्ध प्रक्रिया को प्रबन्ध प्रतिरूप कहा जाता है।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध प्रक्रिया की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- प्रबन्ध कार्यों की निरन्तर एवं गतिशील प्रक्रिया है।
- प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया है।
प्रश्न 3.
कुण्ट्ज़ ओ’ डोनेल द्वारा प्रबन्ध के कितने तत्वों (कार्यो) का उल्लेख किया गया है? नाम बताइए।
उत्तर:
- नियोजन
- संगठन
- नियुक्ति
- निर्देशन
- नियन्त्रण
प्रश्न 4.
लूथर गुलिक द्वारा बताये गये प्रबन्ध के कार्यों को बताइये।
उत्तर:
- नियोजन
- संगठन
- नियुक्ति
- निर्देशन
- समन्वय
- विवरण देना
- बजटिंग
प्रश्न 5.
अध्ययन की दृष्टि से प्रबन्ध के कार्यों को कितने भागों में बांटा जाता है?
उत्तर:
- प्रमुख कार्य
- सहायक कार्य
प्रश्नं 6.
प्रबन्ध के दो प्रमुख कार्य बताइए।
अथवा
प्रबन्ध प्रक्रिया के कोई दो चरण बताइए।
उत्तर:
- नियोजन
- संगठन
प्रश्न 7.
नियोजन किसे कहते है?
उत्तर:
किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये किये जाने वाले अपेक्षित कार्यों की रूपरेखा या चित्रण ही नियोजन है।
प्रश्न 8.
योजना बनाने का कार्य किस प्रबन्धकीय कार्य के अन्तर्गत किया जाता है?
उत्तर:
नियोजन के।
प्रश्न 9.
नियोजन कार्य के किन्हीं दो घटकों (तत्वों) को बताइए।
उत्तर:
- उद्देश्य
- नीतियाँ।
प्रश्न 10.
प्रबन्धकीय कार्यों में प्रबन्ध चिन्तकों द्वारा किसे मानव शरीर में स्थित ‘मेरुदण्ड’ के समकक्ष बताया है?
उत्तर:
संगठन को।
प्रश्न 11.
संगठन किसे कहते है?
उत्तर:
संस्था के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये कर्मचारियों का समूहीकरण करने तथा उनके मध्य औपचारिक सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया को संगठन कहते हैं।
प्रश्न 12.
प्रबन्ध के निर्देशन कार्य से क्या आशय है?
उत्तर:
कार्य को पूर्ण कराने हेतु कर्मचारियों को नेतृत्व प्रदान करना, प्रभावित करना एवं उन्हें अभिप्रेरित करना निर्देशन कहलाता है।
प्रश्न 13.
निर्देशन के दो मूल तत्व बताइए।
उत्तर:
- अभिप्रेरणा
- नेतृत्व
प्रश्न 14.
प्रबन्ध अपने नियन्त्रण कार्य के अन्तर्गत क्या करता है?
उत्तर:
प्रबन्ध अपने नियन्त्रण कार्य के अन्तर्गत कार्य के निष्पादित स्तरों का निर्धारण करता है।
प्रश्न 15.
नियन्त्रण प्रक्रिया के कोई दो तत्व बताइए।
उत्तर:
- प्रमाप का निर्धारण करना।
- कार्य का मूल्यांकन व परिणाम विवरण तैयार करना।
प्रश्न 16.
वह शक्ति जो प्रबन्ध के सभी कार्यों को एक सूत्र में बाँधती है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
वह शक्ति जो प्रबन्ध के सभी कार्यों को एक सूत्र में बांधती है, उसे समन्वय कहते हैं।
प्रश्न 17.
समन्वय का अर्थ बताइये।
उत्तर:
विभिन्न समूह एवं व्यक्तियों को संस्था के लक्ष्यों के प्रति व्यवस्थित एवं एकीकृत करना ही समन्वय है।
प्रश्न 18.
समन्वय की एक विशेषता बताइये।
उत्तर:
समन्वय सामूहिक कार्यों में एकात्मकता लाता है।
प्रश्न 19.
समन्वय की आवश्यकता के कारणों को बताइए।
उत्तर:
समन्वय की आवश्यकता व्यवसाय के आकार में वृद्धि होने पर होती है।
प्रश्न 20.
समन्यव के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
- उपरिव्यय लागतों में कमी
- उच्च मनोबल
प्रश्न 21.
“समन्वय प्रबन्ध का सार है।” यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
कुण्टज् ओ’ डोनेल का।
प्रश्न 22.
प्रबन्ध के दो सहायक कार्यों के नाम बताइए।
उत्तर:
- निर्णयन
- नियुक्ति करना।
प्रश्न 23.
किसी कार्य को करने या नहीं करने के सम्बन्ध में उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से किसी एक श्रेष्ठ विकल्प के चयन की प्रक्रिया को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
निर्णयन।
प्रश्न 24.
व्यावसायिक संगठन में निर्णयन की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर:
व्यावसायिक संगठन में किसी समस्या के समाधान या उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कुछ सम्भावित विकल्पों में से एक उपयुक्त विकल्प का चयन करने हेतु निर्णयन की आवश्यकता पड़ती है।
प्रश्न 25.
“निर्णयन एवं प्रबन्ध समानार्थी हैं।” यह कथन निर्णयन के सम्बन्ध में किस विद्वान द्वारा कहा गया है?
उत्तर:
हरबर्ट साइमन द्वारा।
प्रश्न 26.
नियुक्तिकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
सही कार्य के लिये उचित व्यक्ति का चयन करना ही नियुक्तिकरण कहलाता है।
प्रश्न 27.
प्रबन्ध में नियुक्तिकरण को निरन्तर चलते रहने वाला सहायक कार्य क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
परिवर्तन के दौर में बदलती उत्पाद तकनीकी व बाजार के कारणं श्रमिक या कर्मचारियों की छंटनी व नियुक्ति निरन्तर चलती रहती है, इसलिए प्रबन्ध में नियुक्तिकरण को निरन्तर चलने वाला सहायक कार्य कहा जाता है।
प्रश्न 28.
नवप्रवर्तन कार्य के अन्तर्गत किन क्रियाओं का समावेश होता है?
उत्तर:
प्रबन्धक द्वारा बदलते परिवेश में निरन्तर उत्पादन विकास व शोध पर कार्य करते रहना तथा नये बाजार का सृजन करना आदि।
प्रश्न 29.
सम्प्रेषण क्या है?
उत्तर:
प्रबन्धक व कर्मचारियों के मध्य विचारों, तथ्यों, सूचनाओं एवं भावनाओं के आदान-प्रदान को सम्प्रेषण कहते हैं।
प्रश्न 30.
संगठन में प्रबन्ध के सम्प्रेषण कार्य की उपयोगिता को समझाइए।
उत्तर:
संगठन में प्रभावी सम्प्रेषण प्रणाली के द्वारा कर्मचारियों में फैलने वाले भ्रम, अफवाह, मनमुटाव या दुर्भावनाओं को दूर किया जा सकता है।
प्रश्न 31.
प्रतिनिधित्व से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध द्वारा संस्था के हित में बाहरी व्यक्तियों एवं फर्म के अन्दर स्वामियों एवं कर्मचारियों के मध्य सम्पर्क बनाये रखना प्रतिनिधित्व कहलाता है।
प्रश्न 32.
प्रोफेसर हेनरी मिन्ट्ज बर्ग किस विश्वविद्यालय के प्रबन्ध विचारक थे?
उत्तर:
मैकलिन विश्वविद्यालय के।
प्रश्न 33.
मिन्ट्ज़ बर्ग के शोध अध्ययन के आधार पर उच्च स्तरीय प्रबन्धकीय कार्यों में नियोजन पर कितने प्रतिशत समय व्यतीत किया जाता है?
उत्तर:
35%.
प्रश्न 34.
मिन्ट्ज बर्ग के शोध अध्ययन में प्रथम पंक्ति प्रबन्धक स्तर पर सर्वाधिक समय किस कार्य पर व्यतीत होता है?
उत्तर:
नेतृत्व पर।
प्रश्न 35.
हेनरी मिन्ट्ज बर्ग के शोध अध्ययन की कोई एक मान्यता बताइए।
उत्तर:
प्रबन्धकों को संस्था में उच्च पद स्थिति (Position) और अधिकार सत्ता प्राप्त होती है।
प्रश्न 36.
मिन्ट्र्ज बर्ग द्वारा प्रबन्धकों की मूलतः किन तीन भूमिकाओं का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
- अन्तर्वैयक्तिक भूमिकाएँ
- सूचनात्मक भूमिकाएँ
- निर्णयात्मक भूमिकाएँ।
प्रश्न 37.
अन्तर्वैयक्तिक भूमिकाओं में प्रबन्धकों की दो भूमिका बताइए।
उत्तर:
- मुखिया या संस्था अध्यक्ष की भूमिका
- नायक या नेता की भूमिका।
प्रश्न 38.
सूचनात्मक भूमिका से क्या आशय है?
उत्तर:
सूचनात्मक भूमिकाओं में प्रबन्धकों द्वारा विभिन्न सूचनाओं, तथ्यों व ज्ञान का संग्रहण एवं वितरण का कार्य किया जाता है।
प्रश्न 39.
सूचनात्मक भूमिकाओं में प्रबन्धक की कितनी भूमिकायें होती हैं?
उत्तर:
तीन (प्रबोधक, प्रसारक, प्रवक्ता)।
प्रश्न 40.
प्रवक्ता भूमिका क्या है?
उत्तर:
प्रबन्धक प्रवक्ता की भूमिका में अपने संगठन की योजनाओं, नीतियों, कार्यकर्ताओं के बारे में बाह्य पत्रकारों, ग्राहकों, सरकार आदि को विभिन्न प्रकार की सूचनायें संचार माध्यम से प्रेषित करता है।
प्रश्न 41.
निर्णयात्मक भूमिका क्या होती है?
उत्तर:
निर्णयात्मक भूमिका व्यूह रचना निर्माण करने सम्बन्धी भूमिका होती है।
प्रश्न 42.
प्रबन्धक की दो निर्णयात्मक भूमिका बताइए।
उत्तर:
- उद्यमी की भूमिका
- उपद्रव निवारक की भूमिका।
प्रश्न 43.
प्रबन्धक की उद्यमी भूमिका क्या होती है?
उत्तर:
उद्यमी भूमिका में प्रबन्धक अपने संगठन के लिये विभिन्न सम्भावनाओं, अवसरों व खतरों का पता लगाता है तथा उनके अनुरूप परिवर्तनों में सुधारों को लागू करता है।
प्रश्न 44.
प्रबन्धकीय पदानुक्रम किसे कहते है?
उत्तर:
वे प्रबन्ध स्तर जो विभिन्न प्रबन्धकों के बीच आदेश या सम्प्रेषण व श्रृंखला का निर्माण करते हैं तथा उनके बीच लम्बवत् (सीधी रेखा) सम्बन्धों को बतलाते है, उसे प्रबन्धकीय पदानुक्रम कहते हैं।
प्रश्न 45.
प्रबन्ध के स्तरों में प्रथम स्तर किसे कहा जाता है?
उत्तर:
सर्वोच्च या शीर्ष प्रबन्ध को।
प्रश्न 46.
उच्च स्तरीय प्रबन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर:
उच्च या शीर्ष पदों पर क्रियाशील प्रबन्धकों का समूह उच्च स्तरीय या उच्च प्रबन्ध कहलाता है।
प्रश्न 47.
उच्च स्तरीय प्रबन्ध के दो कार्य बताइए।
उत्तर:
- उपक्रम के उद्देश्य को निश्चित करना एवं नीतियों की व्याख्या करना।
- बजट का अनुमोदन करना।
प्रश्न 48.
उच्च स्तरीय प्रबन्धकों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
- संचालक मण्डल
- प्रबन्ध संचालक।
प्रश्न 49.
संगठन में उच्च स्तर पर बैठे प्रबन्धक अपना अधिकांश समय किस कार्य में लगाते हैं?
उत्तर:
संगठन में उच्च स्तर पर बैठे प्रबन्धक अपना अधिकांश समय नियोजन व संगठन में लगाते हैं।
प्रश्न 50.
मध्य स्तरीय प्रबन्ध क्या है?
उत्तर:
मध्यस्तरीय प्रबन्ध का आशय उस स्तर से है जो उच्च एवं निम्न स्तरीय प्रबन्ध के मध्य होता है।
प्रश्न 51.
प्रबन्ध के मध्यम स्तर के दो अधिकारी बताइये।
उत्तर:
- मण्डल प्रबन्धक
- संयन्त्र प्रबन्धक।
प्रश्न 52.
मध्य स्तरीय प्रबन्ध के मुख्य कार्य बताइए।
उत्तर:
मध्य स्तरीय प्रबन्ध का मुख्य कार्य क्रियात्मक या परिचालन प्रबन्ध तथा उच्च वर्गीय प्रबन्धकों के मध्य समन्वय स्थापित करना होता है।
प्रश्न 53.
मध्य स्तरीय प्रबन्ध के दो सहायक कार्य बताईए।
उत्तर:
- दैनिक कार्यों की प्रगति का मूल्यांकन करना।
- पर्यवेक्षीय प्रबन्धकों को आवश्यक प्रशिक्षण देना।
प्रश्न 54.
प्रथम पंक्ति या निम्न स्तरीय प्रबन्ध के दो अधिकारी बताइए।
उत्तर
- शाखा प्रबन्धक
- मुख्य पर्यवेक्षक।
प्रश्न 55.
प्रथम पंक्ति प्रबन्ध के दो मुख्य कार्य बताइए।
उत्तर:
- योजनानुसार कार्य सम्पन्न करना।
- कार्यों में समन्वय स्थापित करना।
प्रश्न 56.
मुख्य अधिशासी के नाम से किस प्रबन्ध स्तर को जाना जाता है?
उत्तर:
उच्च स्तर प्रबन्ध को।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – 1)
प्रश्न 1.
प्रबन्ध प्रक्रिया से क्या आशय है?
उत्तर:
प्रारम्भ में योजना बनाने से क्रियान्वयन तक, तत्पश्चात् किये गये कार्य का मूल्यांकन करने तक की प्रक्रिया में प्रबन्धक उद्देश्य निर्धारण नियोजन, संगठन, नियुक्ति, निर्देशन, नेतृत्व, सम्प्रेषण, अभिप्रेरणा एवं नियन्त्रण आदि कई प्रबन्धकीय कार्यों को निष्पादित करता है। इसे ही संयोजित या सामूहिक रूप से “प्रबन्ध प्रक्रिया” कहते हैं।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध प्रक्रिया के प्रमुख कार्यों को बताइए।
उत्तर:
प्रबन्ध के प्रमुख कार्य –
- नियोजन
- संगठन
- निर्देशन
- नियन्त्रण
- समन्वय
प्रश्न 3.
नियोजन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये किये जाने वाले अपेक्षित कार्यों की रूपरेखा या चित्रण ही नियोजन है। नाइल्स के शब्दों में, “नियोजन किसी उद्देश्य को पूरा करने हेतु सर्वोत्तम कार्यपथ का चुनाव करने एवं विकास करने की जागरूक प्रक्रिया है।”
प्रश्न 4.
प्रबन्धकीय कार्य नियोजन के प्रमुख घटक या तत्व कौन – कौन – से है?
उत्तर:
नियोजन कार्य के प्रमुख घटक या तत्व निम्नलिखित हैं –
- उद्देश्य
- नीतियाँ
- कार्य विधियाँ
- प्रविधियाँ
- रीतियाँ
- नियम
- कार्यक्रम
- व्यूहरचना
- प्रमाप या मापदण्ड
- समय
- बजट आदि
प्रश्न 5.
निर्देशन किसे कहते हैं? इसके प्रमुख घटकों को बताइए।
उत्तर:
निर्देशन – कार्यों को पूर्ण कराने हेतु कर्मचारियों को नेतृत्व प्रदान करना, प्रभावित करना एवं उन्हें अभिप्रेरित करना ही निर्देशन कहलाता है। इसके प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं –
अनुशासन, आदेश – निर्देश, अधिकारों का भारार्पण, सम्प्रेषण, अभिप्रेरण, नेतृत्व, पर्यवेक्षण इत्यादि।
प्रश्न 6.
नियन्त्रण प्रक्रिया के तत्वों को बताइए।
उत्तर:
नियन्त्रण प्रक्रिया के चार तत्व निम्नवत् हैं –
- प्रमाप का निर्धारण करना।
- कार्यों का मूल्यांकन करना व परिणाम विवरण तैयार करना।
- वास्तविक परिणामों की प्रमापों से तुलना कर विचलन ज्ञात करना।
- विचलनों के आधार पर संशोधन या सुधारात्मक कार्यवाही करना।
प्रश्न 7.
समन्वय क्या है? समझाइए।
उत्तर
संगठन के सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विभिन्न विभागों एवं व्यक्तियों के कार्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करना ही समन्वय कहलाता है। समन्वय में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है –
- विभिन्न विभागों के मध्य सामंजस्य की स्थापना करना।
- विभिन्न कर्मचारियों के प्रयासों एवं शक्तियों को समन्वित करना।
- प्रबन्धकों एवं अधीनस्थों के प्रयासों के मध्य सामंजस्य स्थापित करना।
प्रश्न 8.
समन्वय की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समन्वय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- सामूहिक प्रयासों को एकीकृत करना।
- सामूहिक क्रिया एवं कार्यों की एकात्मकता सुनिश्चित करना।
- समन्वय अनवरत चलने वाली एक सतत् प्रक्रिया है।
- समन्वय एक ऐच्छिक तथा व्यापक कार्य है।
- समन्वय स्थापित करना सभी प्रबन्धकों का दायित्व होता है।
प्रश्न 9.
नियुक्तिकरण से क्यो आशय है? इसमें कौन – कौन – से कार्य सम्मिलित होते हैं?
उत्तर:
सही कार्य के लिये उचित व्यक्ति का चयन करना ही नियुक्तिकरण कहलाता है। इसमें निम्नलिखित कार्य शामिल होते हैं –
- कर्मचारियों का चुनाव करना एवं उन्हें प्रशिक्षित करना।
- कर्मचारियों के लिए पारिश्रमिक की व्यवस्था करना।
- कर्मचारियों का विकास, जैसे-प्रशिक्षण, स्थानांतरण तथा पदोन्नति करना।
प्रश्न 10.
मिन्ट्ज बर्ग ने प्रबन्धक के कार्यों व उसकी भूमिकाओं के मेल को किस प्रकार व्यक्त किया है?
उत्तर:
प्रश्न 11.
अन्तर्वैयक्तिक भूमिका क्या है? इसमें प्रबन्धक की कौन – कौन – सी भूमिका सम्मिलित होती है?
उत्तर:
अन्तर्वैयक्तिक भूमिकाओं में प्रबन्धक अपनी सत्ता, पद एवं स्थिति के कारण अन्तर्वैयक्तिक भूमिकाओं का निर्वाह करते हैं। इन भूमिकाओं में निम्नलिखित शामिल है –
- संस्था अध्यक्ष या मुखिया की भूमिका।
- नायक या नेता की भूमिका।
- सम्पर्क अधिकारी की भूमिका।
प्रश्न 12.
नायक या नेता की भूमिका क्या है?
उत्तर:
प्रबन्धक नेता की भूमिका में अपने अधीनस्थों को संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये उत्प्रेरित करते हैं। वे अपनी सत्ता समन्वय, तकनीकी तथा अभिप्रेरण उपायों के द्वारा व्यक्तियों की आवश्यकता तथा संगठन के लक्ष्यों में एकीकरण स्थापित करते हैं।
प्रश्न 13.
प्रबन्धक की उद्यमी भूमिका को बताइए।
अथवा
प्रबन्धक की कोई एक निर्णयात्मक भूमिका बताइए।
उत्तर:
उद्यमी भूमिका में, प्रबन्धक अपने संगठन के लिये विभिन्न सम्भावनाओं, अवसरों व खतरों का पता लगाता है तथा उसके अनुरूप परिवर्तनों व सुधारों को लागू करता है। वह वातावरण में होने वाले परिवर्तन से लाभ उठाने के लिये संगठन में नवप्रवर्तन को लागू करता है।
प्रश्न 14.
उच्च स्तरीय प्रबन्ध के चार सहायक कार्य बताइये।
उत्तर:
उच्च स्तरीय प्रबन्ध के चार सहायक कार्य निम्नवत् हैं –
- आवश्यक आदेश – निर्देश प्रसारित करना।
- महत्वपूर्ण मामलों पर विचार – विमर्श देना।
- उपक्रम में दीर्घकालीन स्थायित्वता लाना।
- योजनाओं एवं परिणामों की जाँच करना।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – 2)
प्रश्न 1.
प्रबन्ध के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं –
- नियोजन –
नियोजन का आशय उद्देश्यों को पहले से ही निश्चित करके उन्हें दक्षता एवं प्रभावी ढंग से प्राप्त करने से है। प्रबन्ध नियोजन का कार्य करता है। - संगठन – संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न चीजों का संगठन करना (एकत्रित करना) ही प्रबन्ध का कार्य है।
- नियुक्तिकरण – सही कार्य के लिए सही व्यक्ति का चयन करना ही नियुक्तिकरण कहलाता है। यह कार्य भी प्रबन्ध द्वारा ही किया जाता है।
- निर्देशन –
प्रबन्ध का कार्य कर्मचारियों को नेतृत्व प्रदान करना, प्रभावित करना एवं अभिप्रेरित करना है जिससे वे अपने कार्यों को उत्तम प्रकार से पूर्ण कर सकें। - नियन्त्रण –
नियन्त्रण को प्रबन्ध के उस कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें वह संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संगठन के निष्पादन को निर्देशित करता है। अत: नियन्त्रण के अन्तर्गत निष्पादन के स्तर निर्धारित किये जाते हैं।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध प्रक्रिया के संगठन कार्य से आप क्या समझते हैं?
अथवा
संगठन को मानव शरीर में स्थित मेरुदण्ड के समकक्ष क्यों माना जाता है?
उत्तर:
संस्था की सफलता एवं स्थायित्व उसके संगठन रचना व संगठन कार्य पर निर्भर करती है, इसलिए प्रबन्ध चिन्तकों ने इसे मानव शरीर में स्थित मेरुदण्ड के समकक्ष बताया है। संगठन प्रबन्ध प्रक्रिया का नियोजन के बाद महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है। उद्देश्य प्राप्ति हेतु जो आवश्यक कार्य या क्रियायें सम्पन्न करनी होती हैं, उसका निर्धारण, उन कार्यों का विभाजन व वर्गीकरण करना, उस कार्य को करने हेतु योग्य व्यक्तियों की योग्यता का निर्धारण करना, अधिकार व दायित्व तय करना, सभी कार्य करने वाले व्यक्तियों (कर्मचारियों) के आपसी सम्बन्ध निर्धारित करना, समान कार्यों का विभागीकरण करना आदि महत्वपूर्ण संगठनात्मक कार्य होते हैं। संगठन के माध्यम से न्यूनतम प्रयासों से संस्था के उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है जिसमें प्रबन्धक को एक संगठक तथा संगठन को प्रबन्ध का एक तन्त्र माना जाता है।
प्रश्न 3.
नियन्त्रण से क्या आशय है? इसके प्रमुख तत्वों को बताइये।
उत्तर:
नियन्त्रण से आशय:
संगठन के कार्य में निष्पादन के स्तरों का निर्धारण करना एवं मानव स्तर पर निष्पादन बनाये रखना ही नियन्त्रण कहलाता है। हेनरी फेयोल के अनुसार, “नियन्त्रण का आशय यह जांचने से है कि संस्था के सभी कार्य या योजनायें, दिये गये निर्देश एवं निर्धारण नियमों के अनुसार हो रहे हैं या नहीं। नियन्त्रण का उद्देश्य कार्य की त्रुटियों का पता लगाना है जिससे यथा समय उसमें सुधार किया जा सके तथा भविष्य में इस प्रकार की त्रुटियों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।”
नियन्त्रण के तत्व:
नियन्त्रण के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं –
- प्रमाप का निर्धारण करना।
- कार्यों का मूल्यांकन व परिणाम विवरण तैयार करना।
- वास्तविक परिणामों की प्रमापों से तुलना कर विचलन ज्ञात करना।
- विचलनों के आधार पर संशोधन या सुधारात्मक कार्यवाही करना।
प्रश्न 4.
“समन्वय प्रबन्ध का सार है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“समन्वय प्रबन्ध का सार है”:
समन्वय प्रबन्धक का सार है, क्योंकि सभी प्रबन्धकीय क्रियाएँ समन्वय प्राप्ति के लिए ही कार्य करती हैं। इसलिए समन्वय को प्रबन्धकीय कार्य की आत्मा बना देती है। समन्वय के महत्व को प्रबन्ध के विशेषज्ञों द्वारा स्थापित सत्य के आधार पर और भी अच्छी प्रकार से समझा जा सकता है। इनके अनुसार प्रबन्ध, समन्वय से पृथक् कार्य है। समन्वय का उद्देश्य सभी विभागों, कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों के मध्य आपसी सम्बन्धों को सौहार्दपूर्ण बनाना होता है। प्रभावी समन्वय की स्थापना विभिन्न विधियों की अपेक्षा विभिन्न क्रियाओं में एकता लाकर की जा सकती है। यह संतुलित एवं समन्वित विकास, कार्यों की पुनरावृत्ति पर रोक तथा पारस्परिक सहयोग एवं विश्वास का परिणाम होता है। इस प्रकार ठीक ही कहा गया है कि समन्वय, प्रबन्ध का सार है।
प्रश्न 5.
प्रबन्ध के निर्णयन’ कार्य को समझाइए।
उत्तर:
निर्णयन किसी कार्य को करने या नहीं करने के सम्बन्ध में उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से किसी एक ‘श्रेष्ठ विकल्प’ के चयन की प्रक्रिया है जिसे बौद्धिक प्रक्रिया भी कहा जाता है। निर्णयन के द्वारा किसी समस्या के समाधान या उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कुछ सम्भावित विकल्पों में से एक उपयुक्त विकल्प का चयन किया जाता है। प्रबन्धक को प्रत्येक क्षण महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते है जो संगठन के कार्यों व कार्य प्रणाली को प्रभावित करते है। यह प्रबन्धकीय कार्य निर्णयन” प्रबन्ध के प्रत्येक कार्य में अन्तर्याप्त होते हैं। इसलिए हरबर्ट साइमन ने कहा कि, “निर्णयन एवं प्रबन्ध समानार्थक हैं।”
प्रश्न 6.
प्रबन्धक की दो निर्णयात्मक भूमिकायें समझाइए।
अथवा
प्रबन्धक की प्रबोधक एवं प्रसारक की भूमिका समझाइये।
उत्तर:
- प्रबोधक की भूमिका:
प्रबोधक या निरीक्षक की भूमिका में प्रबन्धक नियोजन, निर्णयन व अन्य प्रबन्धकीय कार्यों के लिये विभिन्न सूचनाओं की आवश्यकता के लिए अपने संगठन तथा इसके वातावरण के बारे में विभिन्न ज्ञान स्रोतों से सूचना सामग्री एकत्रित करता है तथा वह अपने अधिकारियों, अधीनस्थों, सह – प्रबन्धकों तथा अन्य सम्पर्क सूत्रों के माध्यम से जानकारी प्रदान करता है। - प्रसारक की भूमिका:
प्रबन्धक इस भूमिका में एकत्रित सूचनाओं को उपयोगिता एवं आवश्यकतानुसार अपने अधीनस्थों व सम्बन्धित इकाइयों को वितरित एवं प्रसारित करता है। इससे तथ्यात्मक तथा मूल्य सूचनायें प्रसारित की जाती हैं। इसमें मूल्य सूचनायें प्रबन्धकों के दृष्टिकोण, प्राथमिकता आदि से सम्बन्धित होती हैं।
प्रश्न 7.
लिविंग्स्टन के अनुसार उच्च स्तरीय प्रबन्ध के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लिविंग्सटन ने उच्च स्तरीय प्रबन्ध के तीन कार्य बताये हैं जो निम्न प्रकार हैं –
- निर्णयात्मक कार्य – विचारों का उद्गम, नियोजन, उद्देश्यों का निर्धारण, प्रक्रिया संरचना, समन्वय एवं अधिकारियों की नियुक्ति, नीति – निर्धारण एवं विश्लेषण, क्रियान्वयन, अधिकारों का हस्तान्तरण, वित्तीय साधनों का चुनाव एवं उन्हें जुटाना और लाभ का वितरण करना।
- मंशा जानना।
- न्याय सम्बन्धी कार्य – नीतियों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति की तुलना करना, लागत एवं वैकल्पिक आधार का मूल्यांकन करना।
प्रश्न 8.
मध्य स्तरीय प्रबन्ध से क्या आशय है? इसके कार्य भी बताइए।
उत्तर:
मध्य स्तरीय प्रबन्ध:
मध्य स्तरीय प्रबन्ध के अन्तर्गत क्षेत्रीय प्रबन्धक, संयन्त्र प्रबन्धक, शाखा प्रबन्धक, विक्रय प्रबन्धक एवं विभागाध्यक्ष आदि आते हैं। इन्हें उच्च स्तरीय प्रबन्धकों से जो निर्देश प्राप्त होते हैं, उन्हें ये निम्न स्तरीय प्रबन्धक तक पहुँचाते हैं। अतः ये दोनों के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य करते हैं तथा उच्च प्रबन्ध के प्रति जवाबदेह होते हैं।
मध्य स्तरीय प्रबन्ध के कार्य –
- विभागीय योजनाएँ एवं बजट बनाना।
- निम्न स्तरीय प्रबन्धकों को निर्देश देना।
- अपने विभागों से सम्बन्धित संशोधित नीतियों की सिफारिश करना।
- निम्न स्तरीय प्रबन्धकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण देना।
- निम्न स्तरीय प्रबन्ध के कार्यों को अवलोकित करना एवं उन्हें प्रोत्साहित करना।
- प्रगति रिपोर्ट एवं अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों को उच्च प्रबन्धकों को प्रस्तुत करना।
प्रश्न 9.
निम्न स्तरीय प्रबन्ध से क्या आशय है? इसके कार्य बताइए।
उत्तर:
निम्नस्तरीय प्रबन्ध:
इसे पर्यवेक्षीय या प्रचालन यो कार्यकारी प्रबन्ध के नाम से भी जाना जाता है। इसमें ऐसे अधिकारी शामिल होते हैं। जो कार्य करने वाले कर्मचारी से सीधा सम्बन्ध रखते हैं तथा उन्हें निर्देश देते हैं, जैसे – फोरमैन, पर्यवेक्षक, निरीक्षक आदि। ये सभी मध्य स्तरीय प्रबन्ध के प्रति जवाबदेह होते हैं।
निम्नस्तरीय या प्रचालन प्रबन्ध के कार्य –
- मध्य स्तरीय प्रबन्ध एवं कर्मचारियों के मध्य कड़ी के रूप में कार्य करना।
- मध्य स्तरीय प्रबन्ध से प्राप्त निर्देशों को कार्यान्वित करना।
- मजदूरों की समस्याओं का समाधान करना, उन्हें कार्य सौंपना, निरीक्षण करना तथा कार्य करने के लिए प्रेरित करना।
- कारखाने में मधुर वातावरण एवं अनुशासन बनाये रखना।
- मजदूरों, मशीनों एवं अन्य उपकरणों को सुरक्षा प्रदान करना।
- मजदूरों में संस्था के प्रति अपनत्व की भावना पैदा करना तथा संस्था की गरिमा बनाये रखना।
- कच्चा माल, मशीन, उपकरण आदि को दुरुपयोग एवं क्षति से बचाना।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 2 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
“प्रबन्ध अन्य व्यक्तियों से कार्य कराने की तकनीकी है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए तथा प्रबन्ध के प्रमुख कार्य बताइये।
उत्तर:
किसी भी संस्था की प्रबन्धक वह व्यक्ति होता है जो उस संस्था को संचालित करने के लिए नीति – निर्धारण, नियोजन एवं निर्णयन का कार्य करता है। वह अपने द्वारा लिए गये निर्णयों को लागू कराने के लिए संस्था में कार्य करने वाले अन्य व्यक्तियों से कार्य करवाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उनका मार्गदर्शन करता है। प्रबन्धक एक अधिकारी के रूप में कार्य करता है जो अन्य व्यक्तियों से कार्य लेता है तथा उनके बीच बेहतर समन्वय बनाये रखने का प्रयास करता है। कोई एक व्यक्ति सभी कार्यों को नहीं कर सकता है। अतः एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता प्रत्येक संस्था को होती है जो कर्मचारियों के मध्य समन्वय रखकर संस्था के कार्यों को पूर्ण करा सके। निर्देशन करने एवं अन्य व्यक्तियों से कार्य करवाने के कार्य को प्रबन्धक करता है। अत: यह कहना उचित हीं होगा कि प्रबन्ध अन्य व्यक्तियों से कार्य कराने की तकनीक है।
प्रबन्ध के प्रमुख कार्य – प्रबन्ध के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –
- नियोजन –
किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये किये जाने वाले अपेक्षित कार्यों की रूपरेखा या चित्रण ही नियोजन है। यह पहले से ही निर्धारित करने का कार्य है कि क्या करना है, किस प्रकार करना है तथा किसके द्वारा करना है। नाइल्स के शब्दों में, “नियोजन किसी उद्देश्य को पूरा करने हेतु सर्वोत्तम कार्य पथ का चुनाव करने एवं विकास करने की जागरूक प्रक्रिया है।” - संगठन –
यह निर्धारित योजना के क्रियान्वयन के लिए कार्य सौंपने, कार्यों को समूहों में बाँटने, अधिकार निश्चित करने एवं संसाधनों के आबंटन के कार्य का प्रबन्धन करता है। यह आवश्यक कार्यों एवं संसाधनों का निर्धारण करता है। यह निर्णय लेता है कि किस कार्य को कौन करेगा, इन्हें कहाँ किया जायेगा तथा कब किया जायेगा। - निर्देशन –
निर्देशन का कार्य कर्मचारियों को नेतृत्व प्रदान करना, प्रभावित करना एवं अभिप्रेरित करना है जिससे कि वह सुपुर्द कार्य को पूरा कर सके। इसके लिए एक ऐसा वातावरण तैयार करना होगा जो कर्मचारियों को सर्वश्रेष्ठ ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित कर सके। - नियंत्रण –
नियंत्रण कार्य में निष्पादन के स्तर निर्धारित किये जाते हैं, वर्तमान निष्पादन को मापा जाता है। इसका पूर्व निर्धारित स्तरों से मिलान किया जाता है और विचलन की स्थिति में सुधारात्मक कदम उठाये जाते हैं। इसके लिए प्रबन्धकों को यह निर्धारित करना होता है कि सफलता के लिए क्या कार्य एवं उत्पादन महत्वपूर्ण है, इसका कैसे और कहाँ मापन किया जा सकता है तथा सुधारात्मक कदम उठाने के लिए कौन अधिकृत होगा। - समन्वय –
किसी संस्था के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में सामूहिक प्रयासों में किया जाने वाला तालमेल ही समन्वय हैं। प्रबन्ध कार्यों से समन्वय एक रचनात्मक व सृजनात्मक शक्ति है, क्योंकि बिना समुचित समन्वय, के भौतिक एवं मानवीय साधन केवल साधन मात्र रह जाते है, कभी उत्पादन नहीं बन पाते है।
प्रश्न 2.
प्रबन्धकीय भूमिका क्या है? प्रबन्धक की निर्णयात्मक भूमिका को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
प्रबन्धकीय भूमिका:
प्रबन्धकीय भूमिका से आशय प्रबन्ध के व्यवहार एवं व्यवहारों के समूह तथा कार्य व क्रियाओं के समूह से है, जिसकी अपेक्षा समाज व संगठन उससे करता है, उसके अनुरूप प्रबन्ध कि उनसे व्यवहार करता है या भूमिका निभाता है।
प्रबन्धक की निर्णयात्मक भूमिका:
प्रबन्धकों की निर्णयात्मक भूमिका व्यूह रचना निर्माण करने से सम्बन्धित होती है। ये भूमिकायें निम्नलिखित है –
- साहसी या उद्यमी भूमिका –
उद्यमी की भूमिका में प्रबन्धक अपने संगठन के लिए विभिन्न सम्भावनाओं, अवसरों व खतरों का पता लगाता है तथा उनके अनुरूप परिवर्तनों व सुधारों को लागू करता है। वह वातावरण में होने वाले परिवर्तन से लाभ उठाने के लिये संगठन में नवप्रवर्तनों को लागू करता है। - अशान्ति या उपद्रव निवारक भूमिका –
उपद्रव निवारक की भूमिका में प्रबन्धक अपने संगठन में उत्पन्न होने वाले दिन-प्रतिदिन के झगड़ों, उपद्रवों, मनमुटावों, संघर्षों, अशान्तियों को दूर करता है। वह कर्मचारियों की विभिन्न समस्याओं व दबावों के प्रति प्रतिक्रिया प्रकट करता है। वह हड़तालों, अनुबन्ध खण्डन, कच्चे माल की कमी, कर्मचारियों की शिकायतों व कठिनाइयों पर विचार कर पद स्थिति तथा अधिकारों का प्रयोग करते हुए उन्हें दूर करता है। - संसाधन वितरक या आबंटक भूमिका –
संसाधन वितरक की भूमिका में प्रबन्धक अधीनस्थों के समय प्रबन्धन, कच्चे माल, यन्त्र, अन्य आपूर्ति आदि का आबंटन निर्णय, संसाधनों व कार्यों के बारे में कार्य योजना बनाना तथा विभिन्न विभागों की संसाधन – प्राथमिकतायें निश्चित कराता है। - मध्यस्थ या वार्ताकार की भूमिका –
वार्ताकार की भूमिका में प्रबन्धक श्रम संघ, पूर्तिकर्ता, ग्राहक, सरकार व अन्य एजेन्सियों के साथ समझौते सम्बन्धी वार्तायें करके संगठन को लाभान्वित करता है तथा विभिन्न विवादों की दशा में भी उनके हल के लिये मध्यस्थ की भूमिका निभाता है।