Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 भारतीय नारी
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
वेदविहित से तात्पर्य है –
(क) वेद विरुद्ध
(ख) वेद के अनुसार
(ग) वेद द्वारा निर्धारित
(घ) वेद निरपेक्ष
उत्तर:
(ग) वेद द्वारा निर्धारित
प्रश्न 2.
‘संघमित्रा’ कौन थी ?
(क) वेदकालीन एक विदुषी
(ख) सम्राट अशोक की पुत्री
(ग) गौतम बुद्ध की पुत्री
(घ) कनिष्क की पत्नी
उत्तर:
(ख) सम्राट अशोक की पुत्री
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
याज्ञवल्क्य से वाद-विवाद करने वाली नारी कौन थी ?
उत्तर:
याज्ञवल्क्य से वाद-विवाद करने वाली नारी गार्गी थी।
प्रश्न 2.
बौद्धधर्म का प्रधान लक्ष्य क्या बताया गया है ?
उत्तर:
बौद्धधर्म का प्रधान लक्ष्य केवल एक ही मार्ग से बाह्य जगत् की क्षणभंगुरता को अनुभव करना है।
प्रश्न 3.
परस्त्री के स्थूल सौन्दर्य की प्रशंसा करने में कैसे भावों का उद्रेक होता है?
उत्तर:
परस्त्री के स्थूल सौन्दर्य की प्रशंसा करने में निम्नतर (कामुकता) के भावों का उद्रेक होता है।
प्रश्न 4.
‘शकुन्तला’ आख्यान परं किस संस्कृत कवि ने नाटक लिखा ?
उत्तर:
‘शकुन्तला’ आख्यान पर संस्कृत के कवि कालिदास ने नाटक लिखा है।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आर्यों और सेमेटिक लोगों के नारी सम्बधी आदर्शों में क्या अन्तर रहा है?
उत्तर:
आर्यों और सेमेटिक लोगों के नारी सम्बंधी आदर्शों में मूलभूत अन्तर है। आर्यों में नारी को पुरुष के समान अधिकार प्राप्त थे। गार्हपत्य अग्नि में आहुति प्रदान करने की वैदिक क्रिया में धर्मपत्नी का साथ बैठना अनिवार्य है। उसके बिना पुरुष कोई धार्मिक कार्य नहीं कर सकता। इसके विपरीत सेमेटिक लोगों में नारी की उपस्थिति उपासना विधि में विघ्नस्वरूप मानी गई है। उनके आदर्शों के अनुसार स्त्रियों को धर्म-कर्म का अधिकार नहीं है। आहार के लिए पक्षी मारना भी उनके लिए निषिद्ध है।
प्रश्न 2.
स्वामी विवेकानन्द ने शिक्षा की क्या परिभाषा दी है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द शिक्षा की परिभाषा देने के विरुद्ध थे। किन्तु उनके मतानुसार सच्ची शिक्षा वहीं है, जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। व्यक्ति में योग्य कर्म की आकांक्षा पैदा करना तथा उस कार्य को सफलता के साथ पूरा करने की क्षमता पैदा करना ही शिक्षा का उद्देश्य है।
प्रश्न. 3.
किन गुणों के समुच्चय से मनुष्य अनर्थ कर डालता है?
उत्तर:
यौवन, अनभिज्ञ, चंचलता और सम्पत्तिशीलता मनुष्य के ऐसे गुण (अवगुण) हैं कि इनमें से एक के होने पर भी मनुष्य अनर्थ कर बैठता है किन्तु जहाँ ये चारों ही एकत्र हों, वहाँ तो अनर्थ की सम्भावना सर्वाधिक होती है।
प्रश्न. 4.
स्वामी जी का स्त्रियों के लिए क्या संदेश है?
उत्तर:
स्वामी जी का स्त्रियों के लिए वही संदेश है जो पुरुषों के लिए है। उनका कहना है कि भारत और भारतीयता के प्रति श्रद्धा और विश्वास रखना चाहिए। उनको तेजस्विनी और उत्साहपूर्ण बनना चाहिए। भारत में जन्म लेने में लज्जा का नहीं गौरव का अनुभव करना चाहिए। यह स्मरण रखना चाहिए कि भारत के पास विश्व को देने के लिए बहुत कुछ है, उसे विश्व से लेना बहुत कम है।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ब्रह्मचर्य की महिमा पर एक आलेख लिखिए।
उत्तर:
भारतवर्ष में मनुष्य के जीवन की सौ वर्ष की अवधि मानकर उसको पच्चीस-पच्चीस वर्ष की चार अवस्था में विभाजित किया गया था-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। इनमें प्रथम अवस्था ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य में बचपन, किशोरावस्था से यौवनावस्था तक सम्मिलित हैं। ब्रह्मचर्य शारीरिक और मानसिक विकास का संयम है। इसको कौमार्य अथवा कुमारावस्था भी कहते हैं। ब्रह्मचर्य की अवस्था में बालक-बालिकायें शिक्षा प्राप्त करते हैं, आचार-व्यवहार तथा सद्गुण सीखते हैं। इस अवस्था में संयम के नियमों का पालन करने से शरीर पुष्ट और बुद्धि तीक्ष्ण होती है। ब्रह्मचर्य अर्जन का समय है। विद्या, ज्ञान, स्वास्थ्य, सदाचार और सद्व्यवहार का अर्जन इसी अवस्था में किया जाता है। जो इस अवस्था को अनुचित कार्यों के फेर में पड़कर नष्ट कर देते हैं, वे पीछे पछताते हैं। ऐसे ही लोगों के बारे में कहा गया है-प्रथमे नार्जितो विद्या, द्वितीये नार्जितम् धनम्। तृतीये नार्जितम् पुण्य, चतुर्थे किं करिष्यति।
प्रश्न. 2.
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार भारतीय नारी में कौन-कौन से सद्गुण विद्यमान हैं ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द का मानना है कि भारतीय नारियाँ परम गुणसम्पन्ना हैं। यद्यपि कुछ परिस्थितियोंवश उसे पुरुष के संरक्षण में रहना पड़ा है। परन्तु भारतीय समाज में उनको समान अधिकार प्राप्त रहे हैं। भारतीय स्त्रियाँ पाश्चात्य स्त्रियों की तरह कानूनी बंधनों में नहीं जकड़ी हैं। वे उनसे सर्वथा मुक्त हैं।’ भारतीय स्त्रियों में यद्यपि अशिक्षा है किन्तु उनको केवल शिक्षा का अवसर दिए जाने की आवश्यकता है। वे अत्यन्त समझदार हैं। तथा अपनी समस्याओं को स्वयं हल करने की सामर्थ्य उनमें है।
पाश्चात्य स्त्रियों की तुलना में भारतीय स्त्रियाँ अनेक मामलों में अधिक सद्गुणी हैं। भारत की स्त्रियाँ पवित्र और त्यागमूर्ति हैं। उनके पास वह बल और शक्ति है जो परमात्मा को चरणों में सर्वस्व समर्पण से प्राप्त होती है। भारतीय स्त्रियों में मातृत्व और पत्नीत्व के पालन की दृढ़ बोध भावना है। यह अपनी पवित्रता और सतीत्व को सुरक्षित रखने के प्रति सतर्क रहती हैं। वे इतनी शिक्षा-सम्पन्न नहीं हैं परन्तु उनमें परिवार, समाज और देश के प्रति दायित्व का बोध है। वे अपनी संतति के पालन, पति की सुश्रूषा आदि के प्रति सावधान रहती हैं। अपने आचार-विचार को शुद्ध बनाए रखने का उनको सदैव ध्यान रहता है तथा अपने कर्तव्यों के पालन के प्रति वे सदा सावधान रहती हैं।
प्रश्न 3.
प्रत्येक पुरुष अन्य स्त्री को मातृवत् समझे इस कथन के पीछे का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्त्री एवं पुरुष-मानव समाज में ही नहीं सभी जीव-जन्तुओं में ये दो लिंग प्रकृति ने बनाए हैं। मनुष्य अन्य जीवों से भिन्न एक बौद्धिक प्राणी है। बुद्धि के साथ ही उसमें प्रेम, स्नेह, आदर, सम्मान आदि भाव भी पाए जाते हैं। उसने संस्कृति और सभ्यता का विकास किया है। अत: स्त्री और पुरुष के बीच अनेक रिश्ते या सम्बन्ध भी बने हैं। माता और पुत्र को सम्बन्ध सनातन सम्बन्ध है। यह प्रकृति से नहीं संस्कृति से बना है। प्रत्येक पुरुष अन्य स्त्री को माता के समान समझे, यह उपदेश भारत में बहुत प्राचीन काल से दिया जाता रहा है’मातृवत् परदारेषु यः पश्यति स पण्डितः’ के अनुसार दूसरे की स्त्री को अपनी माता के समान मानने वाला पुरुष पण्डित अर्थात् विद्वान् माना जाता है।
स्वामी विवेकानन्द ने पाश्चात्य नारियों से दूसरे पुरुषों को अपने पुत्र के समान मानने को कहा है। आशय की दृष्टि से दोनों बातों में कोई भेद नहीं है। पराई स्त्री को माता मानने से समाज में फैले व्यभिचार के नियंत्रण में मदद मिलेगी। आज-कल समाचार-पत्र अपहरण और बलात्कार के समाचारों से भरे रहते हैं। सरकार ने इस अपराध के लिए दण्ड व्यवस्था को और अधिक कठोर बनाया है। तब भी वे रुक नहीं पा रहे हैं। यदि अन्य स्त्रियों को माता के समान समझने का भाव विकसित हो सके तो समाज में फैले इन समस्त दोषों से मुक्ति मिल जायेगी और सर्वत्र सुख-शांति-पवित्रता का वातावरण बन सकेगा।
प्रश्न 4.
पाश्चात्य नारी की स्वतंत्रता से उत्पन्न अच्छी और बुरी बातों को समझाइए।
उत्तर:
विवेकानन्द ने विश्व को पर्यटन किया। विभिन्न देशों में स्त्रियों की दशा देखी। उन्होंने पाया कि भारतीय नारियों की तुलना में पश्चिमी देशों की स्त्रियाँ अधिक स्वतंत्र हैं। उन पर पुरुष वर्ग का नियंत्रण नहीं है तथा वहाँ के समाज में समता का भाव अधिक है। इस स्वतंत्रता के कारण वहाँ की महिलाओं को अनेक उपलब्धियाँ हुई हैं, उनमें कुछ अच्छी हैं तो कुछ हानिप्रद भी हैं। पाश्चात्य नारी स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हैं। यह दूसरों पर आश्रित नहीं है। वह अपना काम स्वयं कर सकती है। वह आर्थिक दृष्टि से समृद्ध है। वह सुशिक्षित है। समाज में उसका मान है तथा पुरुषों से उसको आदर प्राप्त होता है। उसे पुरुष के समान अधिकार प्राप्त हैं। वह प्रगतिशील है तथा प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करते हुए देश और समाज की उन्नति में योगदान देती है। इतना होने पर भी पाश्चात्य नारी को मिली स्वतंत्रता के कुछ दु:खद पहलू भी हैं।
विदेशों का परिवार अशांति और अस्थिरता की समस्या से जूझ रहा है। कहा जा सकता है कि वहाँ परिवार टूट रहा है। इससे बच्चों के पालन-पोषण तथा उनके सुरक्षित भविष्य की गम्भीर समस्या उन देशों में बढ़ती जा रही है। वहाँ वयोवृद्ध स्त्री-पुरुषों अर्थात् वरिष्ठ जनों की देखभाल की भी गम्भीर समस्या है। उनको अपने बच्चों से अलग ‘ओल्डएजशेल्टर होम’ में रहना पड़ता है। दूसरी समस्या स्वतंत्रता के उच्छृख़लता में बदलने की भी है। वहाँ विवाहपूर्ण प्रेमालाप तथा विवाहों के विच्छेद की समस्या गहन होती जा रही है। इससे अवैध संतानों का जन्म हो रहा है। विवाह के स्थान पर लिव इन रिलेशनशिप बढ़ रही है। इसमें संदेह नहीं कि इन बातों के कारण समाज में अशांति और अपराध भी बढ़ रहे हैं।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सन् 1893 में विश्वधर्म सम्मेलन आयोजित हुआ था अमेरिका के शहर –
(क) शिकागो में
(ख) वाशिंगटन में
(ग) न्यूयार्क में
(घ) कैलीफोर्निया में
उत्तर:
(क) शिकागो में
प्रश्न 2.
स्वामी विवेकानन्द से साक्षात्कार लेने पत्रकार पहुँची –
(क) कोलकाता
(ख) शिकागो
(ग) रामकृष्ण मिशन
(घ) हिमालय की उपत्यका
उत्तर:
(घ) हिमालय की उपत्यका
प्रश्न 3.
मठ प्रथा अर्थात धर्म-संध में रहने की प्रथा है –
(क) हिन्दूधर्म में
(ख) बौद्ध धर्म में
(ग) जैन धर्म में
(घ) सिख धर्म में
उत्तर:
(ख) बौद्ध धर्म में
प्रश्न 4.
धर्म शिक्षा का मेरुदण्ड है’-यह मत है –
(क) महात्मा गाँधी का
(ख) रवीन्द्र नाथ ठाकुर का
(ग) स्वामी विवेकानन्द का
(घ) स्वामी दयानन्द सरस्वती को
उत्तर:
(ग) स्वामी विवेकानन्द का
प्रश्न 5.
स्वामी विवेकानन्द ने पाश्चात्य महिलाओं से कहा-अपने पति के अतिरिक्त अन्य सभी पुरुष को समझो अपना –
(क) भाई
(ख) मित्र
(ग) पुत्र
(घ) पिता
उत्तर:
(ग) पुत्र
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वामी विवेकानन्दं का साक्षात्कार किस समाचार पत्र में तथा कब छपा था ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द का साक्षात्कार ‘प्रबुद्ध भारत’ समाचार पत्र में सन् 1898 में प्रकाशित हुआ था।
प्रश्न 2.
स्वामी विवेकानन्द का संदेश क्या है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द का संदेश है – “भारत और भारतीयता में विश्वास रखो, तेजस्विनी बनो। मौलिकता की रक्षा करते हुए देशोद्धार करो।”
प्रश्न 3.
विवेकानन्द के बारे में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने क्या कहा है ?
उत्तर:
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा है-“भारत को जानने के लिए विवेकानन्द को पढ़ना चाहिए। इसमें कुछ भी नकारात्मक नहीं है, सब कुछ सकारात्मक है।”
प्रश्न 4.
आर्यों के मतानुसार पुरुष के जीवन में पत्नी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
आर्यों के मतानुसार पुरुष पत्नी के बिना कोई धार्मिक कार्य नहीं कर सकता।
प्रश्न 5.
स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दूधर्म के बारे में क्या कहा है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि हिन्दूधर्म अधिकांशतः एक पौराणिक धर्म है। उसका उदय बौद्ध युग के बाद हुआ है।
प्रश्न 6.
स्त्री-पुरुष के अधिकारों में भेदभाव किसके प्रभाव का परिणाम है ?
उत्तर:
स्त्री-पुरुष के अधिकारों में भेदभाव बौद्धधर्म के प्रभाव का परिणाम है।
प्रश्न 7.
नारी स्वातंत्र्य के सम्बन्ध में पश्चिम से प्रेरणा लेने के बारे में स्वामी जी का क्या विचार है ?
उत्तर:
स्वामी जी पश्चिम से नारी स्वातंत्र्य की प्रेरणा लेने के समर्थक नहीं हैं। इससे पाश्चात्य नारी के चरित्रगत दोष भारत में आ जायेंगे।
प्रश्न 8.
भगवान् बुद्ध ने अपनी किस विशेषता के बल पर संसार को अपना अनुयायी बनाया ?
उत्तर:
भगवान् बुद्ध ने अपनी संगठन क्षमता के बल पर संसार को अपना अनुयायी बनाया।
प्रश्न 9.
वैदिक मत के अनुसार संन्यासी कौन हो सकते हैं?
उत्तर:
वैदिक मत के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों संन्यासी हो सकते हैं।
प्रश्न 10.
हिन्दू जाति में स्त्री को सम्मान प्राप्त होने के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द ने किसका नामोल्लेख किया है।
उत्तर:
हिन्दू जाति में नारी को सर्वाधिक सम्मान प्राप्त है-इस सम्बन्ध में स्वामी जी ने सीता का नाम उदाहरणस्वरूप लिया है।
प्रश्न 11.
सच्ची शिक्षा किसको कहते हैं ?
उत्तर:
मनुष्य की मानसिक शक्तियों को विकसित करने वाली शिक्षा को सच्ची शिक्षा कहते हैं।
प्रश्न 12.
धर्म से स्वामीजी का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
धर्म से स्वामीजी का तात्पर्य किसी भी प्रकार की पूजा-पद्धति से नहीं है। धर्म कर्त्तव्यपरायणता है।
प्रश्न 13.
रोगी पति की सेवा में लगी स्त्री तथा मांस विक्रेता धर्म नामक कसाई ने पूर्ण ज्ञान किस तरह प्राप्त किया था?
उत्तर:
रोगी पति की सेवा में लगी स्त्री तथा मांस बेचने वाले धर्म नामक कसाई ने अपने कर्तव्य का पालन करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया था।
प्रश्न 14.
पाश्चात्य नारियों की वास्तविक उन्नति कब होगी ?
उत्तर:
पाश्चात्य स्त्रियों की वास्तविक उन्नति तब तक नहीं हो सकती जब तक वहाँ के निवासी स्त्री-पुरुष का भेद भूलकर सब में मानवता के दर्शन नहीं करेंगे।
प्रश्न 15.
उन चार अवगुणों के नाम लिखिए जो पश्चिम को पतन की ओर ले जा रहे हैं ?
उत्तर:
पश्चिम को पतन की ओर ले जाने वाले चार अवगुण हैं-यौवन, अनभिज्ञता, चंचलता और धन-सम्पत्ति।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार हिन्दू धर्म कैसा धर्म है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार हिन्दू धर्म अधिकांशतः पौराणिक धर्म है। उसका उदय बौद्ध के पश्चात् हुआ है। गार्हपत्य अग्नि में आहुति देना एक वैदिक क्रिया है। इसमें पुरुष के साथ उसकी पत्नी को भी बैठने का अधिकार है परन्तु वह शालिग्राम अथवा गृहदेवता की मूर्ति को स्पर्श नहीं कर सकती। यहाँ हिन्दू धर्म पर पौराणिकता का प्रभाव स्पष्ट है।
प्रश्न 2.
स्त्रियों की समस्याओं के समाधान के लिए स्वामी विवेकानन्द ने क्या सुझाव दिया है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द का कहना है कि स्त्रियाँ अपनी समस्यायें सुलझाने में स्वयं समर्थ हैं। इसमें पुरुषों को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। जरूरत इस बात की है कि स्त्रियों के लिए शिक्षा प्राप्त करने की अच्छी व्यवस्था हो जिससे वे अपनी समस्याओं को पहचान सकें और उनका समाधान तलाश कर सकें।
प्रश्न 3.
वैदिक काल में स्त्री-पुरुषों में समानता थी – यह किस तरह प्रमाणित होता है ?
उत्तर:
वैदिक काल में स्त्री-पुरुषों में समानता थी। महर्षि याज्ञवल्क्य के साथ ब्रह्मवादिनी गार्गी ने शास्त्रार्थ किया था। उसको स्त्री होने के कारण किसी ने रोका नहीं था। स्त्री-पुरुष दोनों संन्यास ग्रहण कर सकते थे। गुरुकुलों में बालक-बालिकाएँ समान रूप से शिक्षा ग्रहण करते थे।
प्रश्न 4.
हिन्दूधर्म में मनुष्य का क्या कर्तव्य बताया गया है ?
उत्तर:
हिन्दूधर्म में मनुष्य का एक ही कर्तव्य बताया गया है। यह संसार नश्वर और अस्थायी है। इसमें रहकर नित्य और शाश्वत पद की प्राप्ति मनुष्य का कर्तव्य है। इस पद की प्राप्ति के लिए कोई भी साधन अपनाया जा सकता है-विवाह या ब्रह्मचर्य, पाप या पुण्य, ज्ञान या अज्ञान सभी को माध्यम बनाया जा सकता है। देखना यह है कि वह इस चरम लक्ष्य की ओर ले जाने में सहायक होना चाहिए।
प्रश्न 5.
“जब मैं इस आचरण को जिसे आप नारी सम्मान का भाव कहते हो।” अमेरिका में नारी सम्मान का भाव किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
अमेरिका में स्त्रियों को पूरी स्वतंत्रता प्राप्त है। वे पुरुषों के साथ घुलमिल सकती हैं। पुरुष भी स्त्रियों को सम्मान देते हैं। वे उनके लिए सीट छोड़ते हैं, उनके सामने झुकते हैं, उनकी चापलूसी करते हैं और उनके रूप-सौन्दर्य की प्रशंसा करते हैं। इसी को वहाँ नारी का सम्मान कहते हैं।
प्रश्न 6.
स्वामी विवेकानन्द भारतीय नारियों के लिए अमेरिकी नारियों जैसी जीवन शैली क्यों नहीं चाहते ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द अमेरिकी नारियों की बौद्धिक प्रगति को देखकर प्रसन्न हैं और चाहते हैं कि भारतीय स्त्रियों की भी बौद्धिक प्रगति हो। परन्तु वह वहाँ स्त्रियों जैसी जीवन शैली को अपनाये जाने के पक्षधर नहीं हैं। उनको भय है कि इससे भारतीय नारियों की पवित्रता नष्ट हो जायेगी।
प्रश्न 7.
‘भारतीय नारी’ पाठ गद्य की किस विधा के अन्तर्गत आता है ?
उत्तर:
‘भारतीय नारी’ पाठ हिन्दी गद्य की साक्षात्कार विधा के अन्तर्गत आता है। जब कोई पत्रकार किसी व्यक्ति से किसी विषय में प्रश्न पूछता है और वह व्यक्ति उनके सतर्क उत्तर देता है तो इसको साक्षात्कार अथवा इण्टरव्यू’ कहते हैं। इन प्रश्नोत्तरों को सम्पादित कर समाचार पत्र में प्रकाशित किया जाता है।
प्रश्न 8.
स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय जीवनशैली की अमेरिका में क्या कहकर प्रशंसा की ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका में लोगों से कहा कि अमेरिका की स्त्रियों की बौद्धिक प्रगति प्रशंसनीय है, परन्तु बौद्धिक, विकास से मानव का परम कल्याण सिद्ध नहीं हो सकता। इसके लिए नैतिकता और आध्यात्मिकता की आवश्यकता है। भारत में इनको उच्च स्थान दिया जाता है। भारतीय स्त्रियाँ अधिक शिक्षित नहीं हैं परन्तु उनका आचार-विचार पवित्र है।
प्रश्न 9.
अमेरिका के युवकों और युवतियों के किस विवाहपूर्व आचरण को स्वामी जी अनुचित मानते हैं ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द कहते हैं कि अमेरिका में नारी के सम्मान के नाम पर उच्छृखलता चलती है। ज्यों ही एकान्त मिलता है, नवयुवक नवयुवतियों के रूप की प्रशंसा करने लगते हैं। युवतियाँ भी इसको अच्छा समझती हैं। पत्नी बनने से पूर्व वे अनेक नवयुवकों से प्रेमालाप कर चुकी होती हैं। इससे उनका आचरण अपवित्र होता है। स्वामी जी इसको अनुचित मानते हैं।
प्रश्न 10.
विश्व धर्म सम्मेलन कहाँ हुआ था तथा उसमें हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किसने किया था ?
उत्तर:
विश्व धर्म सम्मेलन अमेरिका के शिकागो शहर में सन् 1898 में हुआ था। उसमें हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने किया था।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 14 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हिन्दू धर्म तथा बौद्ध धर्म में मानव जीवन के लक्ष्य के बारे में क्या मतभेद हैं ?
उत्तर:
हिन्दू धर्म में मनुष्य के जीवन के चरम लक्ष्य के बारे में बताया गया है। उसमें कहा गया है कि यह संसार अनित्य और नश्वर है। इसमें रहकर मनुष्य नित्य और शाश्वत पद को प्राप्त करता है। इस लक्ष्य को पाने के लिए उसे किसी साधन की आवश्यकता होगी। इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए कोई एक बँधा-बँधाया मार्ग नहीं है। वहाँ तक पहुँचने के लिए कोई भी मार्ग अपनाया जा सकता है। विवाह अथवा ब्रह्मचर्य, पाप अथवा पुण्य, ज्ञान अथवा अज्ञान-इनमें से प्रत्येक सार्थक हो सकता है। शर्त केवल यही है कि वह इस चरम लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायता करे। यदि उस लक्ष्य को प्राप्त करने में इनमें से कोई भी सहायक है, तो उसको अपनाया जा सकता है। हिन्दू धर्म में चरम लक्ष्य की प्राप्ति ही प्रमुख बात है। बौद्ध धर्म चरम लक्ष्य को पाने की बात नहीं करता।
बौद्धधर्म में जीवन का प्रधान लक्ष्य वह भी मोटेतौर पर यही है कि केवल एक ही मार्ग से यह अनुभव कर लिया जाय कि बाह्य जगत क्षणिक और नश्वर है। हिन्दू धर्म में जहाँ लक्ष्य तक पहुँचने के अनेक मार्ग हैं और उनमें से किसी को भी अपनाया जा सकता है, वहाँ बौद्ध धर्म केवल एक ही मार्ग की बात करता है। दूसरा अन्तर लक्ष्य के सम्बन्ध में है। हिन्दू धर्म में जीवन का ध्येय है अनश्वर शाश्वत और स्वामी परमपद की प्राप्ति। बौद्धधर्म में परम पद की प्राप्ति नहीं जगत् की क्षणिकता का अनुभव कर लेना ही लक्ष्य है। इस प्रकार हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म में मौलिक मतभेद हैं।
प्रश्न 2.
पाश्चात्य देशों की महिलाओं तथा भारतीय महिलाओं में स्वामी विवेकानन्द ने क्या अन्तर बताया है ?
अथवा
‘महिला स्वातंत्र्य तथा सशक्तीकरण के बारे में स्वामी विवेकानन्द का क्या मत है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द एक परिव्राजक थे। उन्होंने पृथ्वी के दोनों पूर्वी और पश्चिमी गोलार्थों का भ्रमण किया था। इस भ्रमण के दौरान उनका सम्पर्क पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों ही प्रदेशों के निवासियों से हुआ था। स्वामी जी भारतीय थे। वह भारत की महिलाओं की समस्याओं तथा आचार-विचार से अच्छी तरह परिचित थे। भारतीय महिलाएँ अधिक शिक्षित नहीं होतीं। उनका बौद्धिक विकास अधिक नहीं हो पाता। प्राचीन भारत में कुछ ऐसी परिस्थितियाँ रही हैं कि उनको पुरुषों के संरक्षण की आवश्यकता हुई है। वैदिक युग में यद्यपि महिलाओं को समाज में पुरुषों जैसे समानता प्राप्त थी किन्तु बौद्ध धर्म के उदय के साथ वह वैसी नहीं रह गई थी। तथापि आज भी भारतीय महिलाएँ पश्चिमी महिलाओं की अपेक्षा उन अनेक कानूनी बन्धनों से मुक्त हैं जो पश्चिमी देशों की महिलाओं को बाँधे हुए हैं। भारतीय महिलाएँ आचार-विचार से पवित्र हैं।
वे अपने परिवार का उत्तरदयित्व उठाने में समर्थ हैं। पति और परिवारीजनों की सेवा-सुश्रूषा को वे बुरा नहीं समझतीं। सेवाभाव भी परमपद प्राप्ति और आध्यात्मिकता का अंग हैं। पाश्चात्य समाज में जिसको महिलाओं का सम्मान कहा जाता है, वैसी प्रथा भारत में नहीं है। वहाँ पुरुष महिलाओं के सामने झुकते हैं, उनको आसन प्रदान करते हैं। परन्तु निकटता होने पर उनके रूप-सौन्दर्य की प्रशंसा करते हैं। वहाँ का पुरुष विवाह से पूर्व अनेक स्त्रियों से यौनाचार कर चुका होता है। उनकी दृष्टि में यह मनोविनोद मात्र है और इसमें कोई दोष नहीं है। वहाँ बार-बार विवाह-विच्छेद होते हैं।
परिवार टूट रहे हैं, सुख-शान्ति भंग हो रही है। बच्चे और बुजुर्गों की देखभाल समस्या बनती जा रही है। भारतीय महिलाओं को पूरी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता प्राप्त नहीं है। वे पश्चिम की महिलाओं के समान बौद्धिक प्रगति भी नहीं कर सकी हैं। परन्तु उनका आचरण शुद्ध है। वे पवित्रता और नैतिकता का ध्यान रखती हैं। परिवार में बच्चों और बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्य पालन में वे सतर्क रहती हैं। सामाजिकता और सदाचार उनके जीवन में व्याप्त रहता है। अतः स्वामी जी के मतानुसार पश्चिम की तर्ज पर भारत में महिला स्वातंत्र्य और महिला सशक्तीकरण के आन्दोलन की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न 3.
भारत के नव जागरण में स्वामी विवेकानन्द का क्या योगदान है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द एक भारतीय संन्यासी थे। सितम्बर सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो नगर में विश्व धर्म सम्मेलन हुआ था। स्वामी जी ने उसमें हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। स्वामी जी ने वहाँ ओजस्वी भाषण दिया था। उसका प्रभाव लोगों पर पड़ा तथा पूरे संसार का भारत के बारे में दृष्टिकोण ही बदल गया। स्वामी विवेकानन्द महीनों विदेशों में भ्रमण करते रहे और अपने ओजस्वी भाषणों से लोगों को प्रभावित करते रहे। उनके भाषणों में भारत की संस्कृति को श्रेष्ठता, भारतीय चरित्र में सदाचार की महिमा तथा समसामयिक वैश्विक परिदृश्य पर विचार प्रकट किए जाते थे। स्वामी जी ने भारत की महान् संस्कृति से विश्व को परिचित कराया।
इससे संसार में भारत का सम्मान बढ़ा तथा उसके तथा वहाँ के आचार-विचार के प्रति लोगों की जिज्ञासा बढ़ी। स्वामी जी ने विदेशों में हुई प्रगति से भारतीयों को अवगत कराया और उनको स्वदेश के उद्धार और विकास की प्रेरणा दी। उनका कहना था कि अच्छी परम्पराओं का संरक्षण करते हुए, भारत की मौलिकता को सुरक्षित रखते हुए, भारतीयों को विश्व के अन्य देशों के साथ भारत की उन्नति के लिए प्रयास करना चाहिए। स्वामी विवेकानन्द ने भारत में ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की तथा पीड़ितों की सेवा-सुश्रूषा की प्रेरणा दी। उन्होंने संन्यासियों के नवीन कर्तव्यों का प्रतिपादन किया।
संन्यासी के समाज से टूटकर अलग होने को वह उचित नहीं मानते थे। – स्वामी जी के ओजस्वी व्यक्तित्व का प्रभाव साहित्य के क्षेत्र में भी हुआ। अनेक साहित्यकारों ने उनसे प्रेरणा लेकर अपने लेखन का परिष्कार किया तथा भारत के पुनरुत्थान तथा स्वाधीनता का संदेश दिया। स्वामी जी शिक्षा को धर्म से जोड़ने के पक्षधर थे परन्तु धर्म का तात्पर्य पूजा-पाठ से नहीं था, वह संस्कृत भाषा की पुन: प्रतिष्ठा कराना चाहते थे। भारत के पुनर्निर्माण का बीजमंत्र उनके जीवन तथा कार्यों में विद्यमान है।
प्रश्न 4.
‘प्रबुद्ध भारत’ के पत्रकार ने स्वामी विवेकानन्द का साक्षात्कार कहाँ लिया था? वहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण कीजिये।
उत्तर:
‘प्रबुद्ध भारत’ समाचार – पत्र का पत्रकार स्वामी विवेकानन्द से साक्षात्कार करने हिमालय की उपत्यका में पहुँचा। वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अत्यन्त मनोरम था। स्वामी जी ने उससे कहा-‘चलो, घूमने चलते हैं। वे दोनों चल दिए। वहाँ की अनुपम नैसर्गिक सुन्दरता देखकर पत्रकार मंत्र मुग्ध हो गया। मार्ग में कहीं सूर्य की धूप थी तथा कहीं छाया थी। ग्रामों में शान्ति थी। वहाँ बच्चे प्रसन्नतापूर्वक खेल रहे थे। चारों ओर सुनहरे खेत लहलहा रहे थे। वहाँ ऊँचे-ऊँचे वृक्ष थे।
ऐसा लग रहा था कि वे नीले आकाश को चीरकर उसके पार जाना चाहते हों। किसान स्त्रियाँ अपने हाथों में हँसिया लिए शीतऋतु के लिए बाजरे के भुट्टे काटकर इकट्ठा कर रही थीं। वहाँ सेब के सुन्दर बगीचे थे। उनमें वृक्षों के नीचे लाल सेबों की ढेरियाँ लगी र्थी जो अत्यन्त सुन्दर लग रही थीं। इस प्रकार चलते हुए कुछ समय बाद वे खुले मैदान में आ गए। उनके सामने बर्फ से ढके हुए सफेद रंग की पर्वतों की चोटियाँ थीं। आगे की पर्वत की चोटियों के पीछे उनकी शोभा अत्यन्त मनोहर प्रतीत हो रही थी।
भारतीय नारी लेखक-परिचय
जीवन-परिचय-
स्वामी विवेकानन्द का वास्तविक नाम नरेन्द्र दत्त था। आपका जन्म 12 जनवरी, 1863 में कोलकाता में हुआ था। आपके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। नरेन्द्र बचपन में अत्यन्त मेधावी थे। युवक होने पर आप दक्षिणेश्वर काली मंदिर के उपासक रामकृष्ण परमहंस के सम्पर्क में आए। इसके पश्चात् उनका झुकाव अध्यात्म जगत की ओर हुआ। सन् 1887 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हुई। उसके पश्चात् नरेन्द्र ने संन्यास ग्रहण कर लिया। इसके पश्चात् आप परिव्राजक के रूप में देश में भ्रमण करते रहे। कन्याकुमारी में श्रीपादशिला पर तीन दिन और तीन रात को ध्यान अवस्था में आपको भारत का स्वरूप ज्ञात हुआ। 11 सितम्बर, 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्वधर्म सम्मेलन में आपने भारत का प्रतिनिधित्व किया। आप विदेशों में रहकर भारत की संस्कृति और धर्म का प्रचार करते रहे। भारत लौटकर आपने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
आधुनिक सन्त-समाज सुधारकों में विवेकानन्द का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आपका अल्पायु में ही देहावसान हो गया।
साहित्यिक परिचय-विवेकानन्द के भाषणों का संग्रह प्रकाशित हो चुका है। प्रस्तुत पाठ एक साक्षात्कार का अंश है, जो प्रबुद्ध भारत समाचार पत्र में दिसम्बर 1898 के अंक में प्रकाशित हुआ था।
कृतियाँ-विवेकानन्द लेखक और साहित्यकार नहीं थे। वे एक विद्वान् संन्यासी थे। अनेक स्थानों पर दिए गए उनके भाषण आज संग्रहीत कर लिए गए हैं।
पाठ-सार
‘भारतीय नारी’ पाठ स्वामी विवेकानन्द के एक साक्षात्कार से उधृत है। यह साक्षात्कार ‘प्रबुद्ध भारत’ नामक समाचार पत्र में दिसम्बर 1898 में प्रकाशित हुआ था। एक रविवार को समाचार पत्र के साक्षात्कारकर्ता ने स्वामीजी से भारतीय नारियों की अवस्था तथा उनके भविष्य के बारे में उनका मत जानने के लिए हिमालय की उपत्यका में भेंट की थी। … स्वामी जी ने बताया कि आर्यों तथा सेमेटिक लोगों के नारी सम्बन्धी आदर्श बिलकुल विपरीत रहे हैं। आर्यों में नारी को अपने पति के साथ धार्मिक कार्य करने का अधिकार था किन्तु उपासना-विधि में स्त्री की उपस्थिति को विघ्नस्वरूप मानते थे।
वर्तमान हिंदू धर्म एक पौराणिक धर्म है। वह बौद्ध काल के बाद का है। वैदिक धर्म से वह भिन्न है। स्त्री-पुरुष के अधिकारों का भेद बौद्धधर्म के प्रभाव के कारण है। पाश्चात्य स्त्रियों की तुलना में भारतीय नारियों को समानता का अधिकार प्राप्त नहीं है। इसके पीछे हीन दृष्टि नहीं है। परिस्थितियोंवश भारत में स्त्रियों को विशेष संरक्षण दिया गया है।
भारतीय स्त्रियों की दशा में सुधार की आवश्यकता है। इसके लिए उनको ऐसी शिक्षा देना आवश्यक है जो उनको आत्मनिर्भर बना सके और अपनी समस्याओं को वे स्वयं हल कर सकें। प्राचीनकाल में स्त्रियाँ सुरक्षित होती थीं। गुरुकलों में बालकों के साथ ही पढ़ती र्थी, महारांज जनक की राजसभा में महर्षि याज्ञवल्क्य के साथ धर्म के गूढ़ तत्वों पर विदुषी गार्गी ने वाद-विवाद किया था। जिस देश ने सीता को जन्म दिया हो और सम्मान प्रदान किया हो, वहाँ नारी जाति के अपमान का प्रश्न ही नहीं उठता, किन्तु वर्तमान में भारतीय स्त्रियों का जीवन समस्याओं से रहित नहीं है। इन समस्याओं को शिक्षा द्वारा ही हल किया जा सकता है।
सच्ची शिक्षा शब्दों की रचना मात्र नहीं है। सच्ची शिक्षा से मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास होता है। शिक्षा का वास्तविक अर्थ है। मनुष्य में योग्य कर्म की आकांक्षा और उसका कुशलता के साथ सम्पादित करने की क्षमता उत्पन्न करना। भारतीय स्त्रियों को ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए कि वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर सकें। धर्म को शिक्षा का अंग होना ही चाहिए परन्तु धर्म का अर्थ कोई उपासना पद्धति नहीं होनी चाहिए।
ब्रह्मचर्य स्त्री-पुरुषों दोनों के लिए आवश्यक है। हिंदू धर्म में आत्मा का कर्तव्य इस अनित्य संसार में नित्य एवं शाश्वत पद की प्राप्ति है। इसके लिए कोई भी मार्ग अपनाया जा सकता है। विवाह, ब्रह्मचर्य, पाप-पुण्य, ज्ञान-अज्ञान प्रत्येक की सार्थकता है। यदि वह इस महान् लक्ष्य प्राप्ति में सहायक हो। रोगी पति की सेवा में लगी स्त्री तथा माँस बेचने वाला कसाई भी अपना कर्तव्य पूरा करके परम ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं।
भारतीय स्त्री-पुरुषों के लिए स्वामी जी का एक ही संदेश है- भारत और भारतीय धर्म के प्रति श्रद्धा और विश्वास रखो। तेजस्विनी और उत्साही बनो, भारत में जन्म लेने पर लज्जा नहीं गौरव का अनुभव करो।
न्यूयार्क में भाषण देते समय स्वामी जी ने कहा था कि वह अमेरिकी नारियों की प्रगति देखकर प्रभावित हैं। यदि भारतीय नारियों की भी ऐसी प्रगति हो तो वह प्रसन्न होंगे। किन्तु वह अमेरिकी नारियों में जो अनियंत्रित स्वच्छन्दता है, भारतीय नारियों से उसका अनुकरण करने को नहीं कहेंगे। प्रत्येक स्त्री को अपने पति के अतिरिक्त अन्य पुरुषों को पुत्रवत् समझना चाहिए। प्रत्येक पुरुष को भी अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों को मातृवत् मानना चाहिए। जिसे अमेरिका में नारी सम्मान कहा जाता है, उसे देखकर वह क्षुब्ध होते हैं। वहाँ स्त्रियाँ खिलौने से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
इसी कारण वहाँ असंख्य विवाह-विच्छेद होते हैं। नवयुवक किसी नारी से मिलते ही उसके रूप की। प्रशंसा करने लगता है। विवाह से पूर्व वहाँ स्त्री-पुरुष दो सौ स्त्रियों से प्रेमाचार कर चुके होते हैं। भारत में रहते हुए स्वामी जी जानते थे कि यह केवल मनोविनोद है। विश्वभ्रमण के पश्चात् उनको यह सब अनुचित प्रतीत होता है। पाश्चात्य देशों के लोग इसमें दोष नहीं देखते, उन देशों में यौवन है, वे अनभिज्ञ, चंचल और धनवान् हैं। इनमें से किसी एक के प्रभाव से अनिष्ट हो सकता है तो यहाँ तो ये चारों एकत्र हैं। वहाँ कितना अनर्थ हो सकता है, इसकी कल्पना भी संभव नहीं है।
शब्दार्थ-
(पृष्ठ सं. 80)-
उपत्यका = घाटी। वाटिका = बगीचा। हिमाच्छादित = बर्फ से ढका। शुभ्र = स्वच्छ। शिखर = चोटी। सेमेटिक = अरब, यहूदी, मिस्री आदि जातियों के आधुनिक लोग। उपासना = पूजा। निषिद्ध = मना, वर्जित। सहधर्मिणी = पत्नी। पौराणिक = पुराणों से सम्बन्धित। उद्गम = उत्पत्ति। गार्हपत्य अग्नि = गृहपति द्वारा सम्पादित यज्ञ। आहुति = हवन में डाली जाने वाला सामग्री।
(पृष्ठ सं. 81)-
सदियों = सैकड़ों वर्ष। मिथ्या = असत्य। हस्तक्षेप करना = दखल देना। उपादान = कारण जो स्वयं कार्य रूप में बदल जाए। अनुगामी = अनुयायी। कुफल = दुष्परिणाम। प्रवर्तन = संचालन। भिक्षुणी = बौद्धधर्म को मानने वाली स्त्री। एकसूत्रता = एकता। वेदविहित = वेदों द्वारा चलाया गया। मूढ़ = गम्भीर। तीक्ष्ण = पैने। साम्यभाव = समानता। आख्यान = कहानी।
(पृष्ठ सं 82)-
गोलार्द्ध = आधा गोल हिस्सा। पर्यटन = भ्रमण। अपवाद = नियम भंग की स्थिति। साधुता = सज्जनता। प्रणाली = तरीका। स्मित = मुस्कराहट। मानसिक = मस्तिष्क सम्बन्धी। आकांक्षा = इच्छा। पात्रता = क्षमता, योग्यता। वीर प्रसूता = वीरों को जन्म देने वाली। सर्वस्वार्पण = सब कुछ भेंट कर देना। समावेश = मिश्रण, प्रवेश। मेरुदण्ड = रीढ़ की हड्डी।
(पृष्ठ सं. 83)-
वंचित = दूर। प्रतिष्ठित = स्थापित। दायित्व = जिम्मेदारी। मानवात्मा = मानव की आत्मा। अनित्य = अस्थायी। नश्वर = नाशवान। शाश्वत = अमर, सार्थकता = उपयोगिता। चरम लक्ष्य = परम उद्देश्य, परमात्मा की निक़टता-प्राप्ति। क्षणिकता = अस्थायीपन। वृतान्त = कथा। धन्यता = कृतकृत्य होने का भाव। निरत = लीन। साक्षात्कार = दर्शन, प्राप्त करना। तेजस्विनी = तेज से पूर्ण। अभीष्ट = वांछित। सतीत्व = पातिव्रत्य। अक्षुण्ण = सशक्त, अभग्न। नीतिमत्ता = नैतिकता। मातृवत् = माता के समान॥
(पृष्ठसं. 84)-
विवाह-विच्छेद = तलाक। चापलूसी = खुशामद। नखशिख सौन्दर्य = पैर के नाखून से सिर तक के प्रत्येक अंग की सुन्दरता। उद्रेक = उफान। लावण्य = सुन्दरता। अंगीकार = स्वीकार। प्रेमाचार = प्रेमालाप। विवाहेच्छुक = विवाह करने की इच्छा वाला। आडम्बर = दिखावा, ढोंग। मनोविनोद = मनोरंजन। पाश्चात्य = पश्चिमी। अनभिज्ञ = अज्ञानी। अनर्थ = हानि।
महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ
1. कहीं धूप और कहीं छाया से ढंके मार्गों को काटते हुए हम शान्तिपूर्ण ग्रामों में चले जा रहे थे। कहीं ग्रामीण बच्चे आनन्द से खेलकूद कर रहे थे, और कहीं चारों ओर सुनहले खेत लहलहा रहे थे। ऊँचे-ऊँचे वृक्ष ऐसे दीखते थे, मानो वे नीलगगन को पार कर उसके परे चले जाना चाहते हों। खेतों में कहीं पर कुछ कृषक-बालाएँ हाथों में हँसिया लिए शीत ऋतु के लिए बाजरे के भुट्टे काटकर इकट्ठा कर रही थीं, तो अन्य कहीं सेवों की एक सुन्दर वाटिका दिखाई देती थी, जिसमें वृक्षों के नीचे लाल फलों के ढेर बड़े ही सुहावने लगते थे। फिर कुछ क्षण बाद ही हम खुले मैदान में आ गए और हमारे सामने हिमाच्छादित शुभ्र शिखर, अग्रमाला, को चीरकर, अद्भुत सौन्दर्य के साथ विराजमान् थे।
(पृष्ठसं. 80)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तके अपरा में संकलित ‘भारतीय नारी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। यह स्वामी विवेकानन्द से लिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
‘प्रबुद्ध भारत’ नामक समाचार पत्र का पत्रकार स्वामी जी का साक्षात्कार लेने हेतु पहुँचा। पत्रकार का उद्देश्य जानकर स्वामी जी ने कहा-थोड़ा टहल आएँ।’ बाहर का दृश्य अत्यन्त सुन्दर था।
व्याख्या-बाहर का मार्ग कहीं धूप और कहीं छाया से ढंका था। पत्रकार और स्वामी जी ग्रामों में चले जा रहे थे। ग्रामों में शांति थी। वहाँ ग्रामीण बच्चे आनन्दपूर्वक खेल रहे थे। चारों ओर सुनहरी फसलों वाले खेत थे। ऊँचे-ऊँचे पेड़ आकाश को छूना चाहते थे। खेतों में किसान स्त्रियाँ अपने हाथों में हँसिया लेकर बाजरा के भुट्टे काटकर जाड़ों के लिए इकट्ठा कर रही थीं। किसी खेत में सेबों का एक बगीचा दिखाई दे रहा था। जिसमें पेड़ों के नीचे लाल रंग के सेबों के ढेर लगे थे। जो अत्यन्त सुन्दर लग रहे थे। कुछ क्षण पश्चात् ही वे दोनों खुले मैदान में आ पहुँचे। वहाँ आगे की पंक्ति के पार बर्फ से ढकी हुई पहाड़ों की चोटियाँ दिखाई दे रही थीं और सुन्दर लग रही थीं।
विशेष-
(i) हिमालय की घाटी के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।
(ii) भाषा सरल, तत्सम प्रधान तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iii) शैली चित्रात्मकता लिए सजीव है।
2. नर श्रेष्ठ भगवान् बुद्ध में संगठन करने की अद्भुत शक्ति थी और इसी शक्ति के बल पर उन्होंने संसार को अपना अनुगामी बनाया था। किंतु, उनका धर्म केवल संन्यासियों के लिए ही उपयोगी था। अतः उसका एक कुफल यह हुआ कि संन्यासी की वेश-भूषा तक सम्मानित होने लगी। फिर उन्होंने सर्वप्रथम मठ-प्रथा अर्थात् धर्म-संघ में रहने की प्रथा का प्रवर्तन किया। इसके लिए उन्हें बाध्य होकर स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा निम्न स्थान देना पड़ा; क्योंकि प्रमुख भिक्षुणियाँ कुछ विशिष्ट मठ-अध्यक्षों की अनुमति के बिना किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य में हाथ नहीं डाल सकती थीं।
(पृष्ठ सं. 81)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित पाठ ‘भारतीय नारी’ से लिया गया है। यह स्वामी विवेकानन्द से ‘प्रबुद्ध भारत’ समाचार-पत्र के पत्रकार द्वारा लिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
स्वामी जी के अनुसार वैदिक युग में नारी पूर्णतः स्वाधीन और आत्मनिर्भर थी। बौद्ध धर्म के साथ ही भारतीय नारी को निषेधों के बन्धन में बँधना पड़ा।
व्याख्या-स्वामी जी ने बताया कि गौतम बुद्ध श्रेष्ठ पुरुष थे। उनमें संगठन करने की अद्भुत शक्ति थी। इसी शक्ति के बल पर वह संसार को अपना अनुयायी बनाने में सफल हुए थे। लेकिन उनके द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धर्म केवल संन्यासियों के लिए ही उपयोगी था। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि संन्यासी की वेशभूषा भी सम्मान का पात्र बन गई। इसके बाद उन्होंने मंठ प्रथा चलाई। मठ प्रथा धर्म-संघ में रहने का ही नाम था। धर्म संघ के प्रवर्तन के लिए वह स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में नीचा स्थान देने को बाध्य हुए। कुछ प्रमुख भिक्षुणियाँ विशिष्ट अध्यक्षों का आदेश प्राप्त हुए बिना किसी भी महत्त्वपूर्ण काम को करने की अधिकारिणी नहीं थीं।
वशेष-
(i) स्वामी जी के अनुसार वैदिक कालीन स्त्रियों की आत्मनिर्भरता बौद्ध युग में समाप्त हो गई थी।
(ii) भाषा सरल, विषयानुरूप तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iii) शैली वर्णनात्मक है।
3. सच्ची शिक्षा वह है, जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह केवल शब्दों का रटना मात्र नहीं है। शिक्षा का वास्तविक अर्थ है-व्यक्ति में योग्य कर्म की आकांक्षा एवं उसको कुशलतापूर्वक करने की पात्रता उत्पन्न करना। हम चाहते हैं कि भारत की स्त्रियों को ऐसी शिक्षा दी जाये, जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को भली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई तथा मीराबाई आदि भारत की महान् देवियों द्वारा चलाई गई परम्परा को आगे बढ़ा सकें एवं वीर प्रसूता बन सकें।
(पृष्ठ सं. 82)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘ भारतीय नारीयाँ’ से उद्धृत है। यह स्वामी जी से हिमालय की उपत्यका में लिए गए साक्षात्कार पर आधारित है। पत्रकार ने पूछा कि भारतीय स्त्रियों की समस्याओं को कैसे हल किया जा सकता है। स्वामी जी ने बताया कि इनका हल शिक्षा के द्वारा ही हो सकता है। शिक्षा की परिभाषा पूछने पर उन्होंने बताया कि सच्ची शिक्षा क्या होती है।
व्याख्या-शिक्षा के सम्बन्ध में अपना मत व्यक्त करते हुए स्वामी जी ने बताया कि सच्ची शिक्षा मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास करती है। केवल शब्दों को रट लेने क़ो शिक्षा नहीं कहते हैं। शिक्षा का वास्तविक अर्थ यह है कि मनुष्य में अच्छा काम करने की इच्छा उत्पन्न हो और वह उस काम को कुशलता के साथ पूरा भी कर सकें। भारत की नारियों को जो शिक्षा प्राप्त हो वह ऐसी होनी चाहिए कि वे निर्भयतापूर्वक स्वदेश के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर सकें। वे संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई तथा मीराबाई आदि भारत की चहेती नारियों द्वारा जो परम्परायें स्थापित की गई हैं, उनको आगे बढ़ा सकें। उनकी शिक्षा ऐसी हो कि वे वीर संतान को जन्म दे सकें।
विशेष-
(i) स्वामी विवेकानन्द शिक्षा के स्वरूप के बारे में अपने विचार बता रहे हैं।
(ii) स्वामी जी के मतानुसार नारी-शिक्षा उनको कर्तव्य निर्वाह में समर्थ बनाने वाली होनी चाहिए।
(iii) भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली वर्णनात्मक और विवेचनात्मक है।
4. हिन्दू धर्म में मानवात्मा का केवल एक ही कर्तव्य बतलाया गया है और वह है इस अनित्य और नश्वर जगत् में नित्य एवं शाश्वत पद की प्राप्ति। उसकी प्राप्ति के लिए कोई एक ही बँधा हुआ मार्ग नहीं है। विवाह हो यो ब्रह्मचर्य, पाप हो या पुण्य, ज्ञान हो यो अज्ञान-इनमें से प्रत्येक की सार्थकता हो सकती है, यदि वह इस चरम लक्ष्य की ओर ले जाने में सहायता करे।
(पृष्ठसं. 83)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘भारतीय नारी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। यह ‘प्रबुद्ध भारत’ नामक समाचार पत्र के लिए पत्रकार द्वारा लिया गया स्वामी विवेकानन्द का साक्षात्कार है।
पत्रकार के मन में ब्रह्मचर्य पालन और धर्म के सम्बन्ध में उत्पन्न हुए भ्रम का निवारण करते हुए स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दू धर्म के एकमात्र लक्ष्य को स्पष्ट किया है।
व्याख्या-स्वामी विवेकानन्द ने बताया कि हिन्दूधर्म में मनुष्य की आत्मा का एक ही कर्तव्य है। यह संसार नाशवान और स्थायी है। यह क्षणभंगुर है। इसमें रहते हुए उसको अमर और स्थायी पद प्राप्त करना है। मानव जीवन का यही लक्ष्य हिन्दू धर्म में बताया गया है। इस लक्ष्य को पाने का कोई एक सुनिश्चित मार्ग नहीं है। विवाह हो अथवा ब्रह्मचर्य पालन हो, पाप हो अथवा पुण्य हो, ज्ञान हो अथवा अज्ञान-सभी माध्यम सार्थक हो सकते हैं। इनमें से किसी मार्ग को ग्रहण किया जा सकता है। आवश्यकता यह देखने की है कि वह माध्यम उसे चरम लक्ष्य तक ले जाने में सहायक होना चाहिए। आशय यह है कि जीवन के चरम लक्ष्य नित्य और शाश्वत पद को पाने के लिए सभी माध्यम सहायक हो सकते हैं।
विशेष-
(i) हिन्दूधर्म का चरम जीवन-लक्ष्य शाश्वत पद की प्राप्ति बताया गया है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावली युक्त साहित्यिक है।
(iii) शैली उपदेशात्मक है।
5. “भारत और भारतीय धर्म के प्रति विश्वास और श्रद्धा रखो। तेजस्विनी बनो, हृदय में उत्साह भरो, भारत में जन्म लेने के कारण लज्जित न हो, वरन् उसमें गौरव का अनुभव करो और स्मरण रखो कि यद्यपि हमें दूसरे देशों से कुछ लेना अवश्य है, पर हमारे पास दुनिया को देने के लिए दूसरे की अपेक्षा सहस्र गुना अधिक है।
(पृष्ठ सं. 83)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित’ भारतीय नारी’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। यह प्रबुद्ध भारत’ समाचार पत्र के लिए लिया गया स्वामी विवेकानन्द का एक साक्षात्कार है। : साक्षात्कारकर्ता पत्रकार ने स्वामी जी से अन्तिम प्रश्न करते हुए उनसे पूछा कि वह भारतीय नारियों के लिए क्या संदेश देना चाहते
व्याख्या-स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय नारियों को संदेश देते हुए कहा कि उनका संदेश वही है जो पुरुषों के लिए है। उनको भारत और भारतीय धर्म पर पूरा विश्वास रखना चाहिए तथा उस पर श्रद्धाभाव रखना चाहिए। उनको अपने व्यक्तित्व को तेजपूर्ण बनाना चाहिए। उनको अपना हृदय उत्साह की भावना से परिपूर्ण रखना चाहिए। उनके मन में इस कारण लज्जा उत्पन्न नहीं होनी चाहिए कि उनको जन्म भारत में हुआ है। इसके विपरीत उनको भारत में जन्म लेने पर अपने मन में गौरव की भावना का अनुभव होना चाहिए। यह। सदा याद रखना चाहिए कि भारत को भले ही दुनिया के अन्य देशों से कुछ लेना हो, कुछ सीखना हो किन्तु उसके पास दूसरे देशों को देने के लिए अपने धर्म और संस्कृति का अपार भण्डार है। उसे लेना कम है, देना अधिक है।
विशेष-
(i) भाषा सरल, तत्सम शब्दमयी तथा पाठकों की समझ में आने वाली है।
(ii) शैली उपदेशात्मक है।
(iii) भारतीय नारियों को भारत से प्रेम करने, उस पर गौरव अनुभव करने तथा तेजस्विनी बनने का उपदेश दिया गया है।
(iv) शैली वर्णनात्मक एवं सजीव है।
6. जब मैं भारतवर्ष में था और इन चीजों को केवल दूर से देखता-सुनता था, तब मुझे बताया गया कि उनमें कोई दोष नहीं है, यह केवल मनोविनोद है। उस समय मैंने उस पर विश्वास कर लिया था। तब से अब तक मुझे बहुत यात्रा करने का अवसर आया है और मेरा दृढ़-विश्वास हो गया है कि यह अनुचित है, यह अत्यंत दोषपूर्ण है। केवल आप पाश्चात्यवासी ही॥
अपनी आँख बन्दकर इसे निर्दोष कहते हैं। पाश्चात्य राष्ट्रों का अभी यौवन है, साथ-ही-साथ वे अनभिज्ञ, चंचल और धनवान् हैं। जब इन गुणों में से किसी एक के प्रभाव में ही मनुष्य कितना क्या अनर्थ कर डालता है तब यहाँ ये तीनों-चारों एकत्र हों वहाँ कितना भीषण अनर्थ हो सकता है ? वहाँ को तो फिर कहना ही क्या।
(पृष्ठसं. 84)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित भारतीय नारी’ पाठ से लिया गया है। इस पाठ के उत्तरार्ध से लिया गया यह अंश स्वामी विवेकानन्द के शिकागो (अमेरिका) में दिए गए भाषण से सम्बन्धित है॥ स्वामी जी ने अपने भाषण में अमेरिकी महिलाओं को सद्गुणों के साथ ही उनके दोषों का भी उल्लेख किया है। स्वामी जी ने भारतीय महिलाओं की प्रगति की कामना तो की है परन्तु वह उनकी प्रगति अमेरिका की शैली पर नहीं चाहते।
व्याख्या-स्वामी जी ने अपने भाषण में कहा कि जब वह भारत में थे, तो उनको अमेरिकी महिला-समाज की स्वच्छन्दता तक बढ़ी हुई आत्मनिर्भरता के बारे पता चला था। उन्होंने इस बारे में देखा और सुना था। उनको बताया गया था कि परपुरुषों से सम्बन्ध रखना और प्रेमालाप करना भी नारी-स्वातंत्र्य का हिस्सा है और इसमें कोई दोष नहीं है। यह तो केवल मनोरंजन है। उस समय स्वामी जी ने इस सुनी हुई बात पर विश्वास कर लिया था। उसके पश्चात् उनको देश-विदेश भ्रमण का अवसर मिला। उससे उनको जो अनुभव प्राप्त हुआ उससे उन्हें यह पक्का विश्वास हो गया कि ऐसा आचरण उचित नहीं है। इसमें बहुत दोष हैं, उन्होंने स्रोताओं से कहा कि पश्चिम के रहने वाले वे लोग ही इन बातों को बिना सोचे-विचारे दोषरहित कह सकते हैं। पश्चिमी देश अभी नए हैं। उनमें ज्ञान का अभाव है। आत्मनियंत्रण का भाव नहीं है तथा उनके पास बहुत धन-सम्पत्ति है। इन गुणों में से जहाँ एक भी होता है, उसका प्रभाव मनुष्य पर अत्यन्त अनिष्टकारक होता है। जहाँ ये सभी गुण (अवगुण ) एकत्र हों, वहाँ कितना बड़ा अनर्थ होगा, यह अनुमान लगाया जा सकता है।”
विशेष-
(i) भाषा सरल है तथा पाठकों की समझ में आने वाली है।
(ii) शैली-विवेचनपूर्ण और विचारात्मक है।
(iii) स्वामी जी ने अमेरिकी समाज में व्याप्त दोषों का वर्णन किया है तथा उनसे संतर्क रहने का उपदेश दिया है।