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RBSE Solutions for Class 11 Hindi आलोक Chapter 3 राष्ट्रमंदिर का सुवासित पुष्प : केसरीसिंह बारहठ

RBSE Solutions for Class 11 Hindi आलोक Chapter 3 राष्ट्रमंदिर का सुवासित पुष्प : केसरीसिंह बारहठ

July 12, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 3 राष्ट्रमंदिर का सुवासित पुष्प : केसरीसिंह बारहठ

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
वंश भास्कर’ ग्रंथ के रचयिता का नाम है –
(क) केसरीसिंह बारहठ
(ख) जोरावर सिंह
(ग) प्रतापसिंह।
(घ) सूर्यमल्ल मिश्रण।
उत्तर:
(घ) सूर्यमल्ल मिश्रण।

प्रश्न. 2.
‘राष्ट्रमंदिर का सुवासित पुष्प’ किसे कहा गया है ?
(क) दयानंद सरस्वती
(ख) विवेकानंद
(ग) केसरीसिंह बारहठ
(घ) सुभाषचंद बोस।
उत्तर:
(ग) केसरीसिंह बारहठ

प्रश्न. 3.
केसरीसिंह बारहठ का बाल्यकाल कहाँ व्यतीत हुआ ?
(क) मेवाड़ में
(ख) ढूंढाड़ में
(ग) हाड़ौती में
(घ) मेवात में।
उत्तर:
(क) मेवाड़ में

प्रश्न. 4.
केसरीसिंह किसके समकालीन थे ?
(क) दयानंद सरस्वती
(ख) कबीरदास
(ग) तुलसीदास
(घ) बिहारी।
उत्तर:
(क) दयानंद सरस्वती

प्रश्न. 5.
केसरीसिंह बारहठ का अंतिम समय कहाँ व्यतीत हुआ ?
उत्तर:
केसरीसिंह बारहठ का अंतिम समय कोटा नगर में व्यतीत हुआ।

प्रश्न. 6.
माणिक भवन किसकी स्मृति में बनाया गया ?
उत्तर:
गुमान पुरा में अवस्थित ‘माणिक भवन’ अमर शहीद प्रतापसिंह की मातृश्री माणिक कुँवर की स्मृति में बनाया गया ।

प्रश्न. 7.
केसरीसिंह बारहठ सदैव किसके पक्षधर रहे ?
उत्तर:
केसरीसिंह बारहठ सदैव स्वराज्य, स्वाधीनता और स्वाभिमान के पक्षधर रहे।

प्रश्न. 8.
उदयपुर महाराणा के स्वाभिमान को जगाने के लिए केसरीसिंह ने किस रचना का सृजन किया ?
उत्तर:
उदयपुर महाराणा के स्वाभिमान को जगाने के लिए केसरीसिंह ने चेतावनी री चूंगट्या’ शीर्षक से मर्मभेदी भाषा में तेरह सोरठे लिखे।

प्रश्न. 9.
केसरीसिंह को किसे जेल में रखा गया ?
उत्तर:
केसरीसिंह को बिहार के हजारीबाग जेल में रखा गया।

प्रश्न 10.
‘अभिनव भारत’ संगठन किनका था ? इसमें कौन-कौन शामिल थे ?
उत्तर:
अभिनव भारत क्रांतिकारियों का गुप्त संगठन था। इसमें खरवा के ठाकुर गोपाल सिंह, जयपुर के अर्जुनलाल सेठी, जोरावर सिंह तथा प्रतापसिंह शामिल थे।

प्रश्न. 11.
प्रतापसिंह कौन थे ? इन्हें गिरफ्तार क्यों किया गया ?
उत्तर:
प्रतापसिंह, केसरीसिंह बारहठ के पुत्र थे। इन्हें जोधपुर के आशानाड़ा स्टेशन पर दिल्ली षड्यंत्र केस के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया।

प्रश्न. 12.
जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट फिलिप लेंड ने किस शर्त पर प्रतापसिंह को छोड़ने की बात कही ?
उत्तर:
जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट फिलिप लेंड ने आग्रह किया कि यदि रासबिहारी बोस, शचीन्द्र सान्याल और गोपाल सिंह खरवा के. छिपने के ठिकाने बता दिए जायें तो प्रतापसिंह को छोड़ा जा सकता है।

प्रश्न. 13.
केसरीसिंह और प्रतापसिंह के बीच जेल में हुए संवाद को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
केसरीसिंह ने प्रतापसिंह को कही-बेटे प्रताप ! आजादी बिकती नहीं है, आजादी छीनी जाती है, अपहरण करने वालों से। आज़ादी मिलती नहीं हासिल की जाती है, संघर्ष से। हेर संघर्ष की कीमत होती है, वह हमें चुकानी है, यह एक अनंत सिलसिला है। बेटे तुम्हारे दीर्घ जीवन की अब क्या कामना करू, कॅष्टपूर्ण यात्रा है, भारत माँ के लाड़ले बनो, प्रताप ही, प्रताप बनो।

प्रश्न. 14.
स्वतंत्रता संग्राम में केसरीसिंह बारहठ के योगदान को विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
केसरीसिंह बारहठ सदैव स्वदेश, स्वराज्य, स्वाधीनता और स्वाभिमान के पक्षधरे रहे। राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए उन्होंने उदयपुर महाराणा को अपनी कविता से प्रेरित कर अंग्रेजों के पास जाने से रोक दिया, लेकिन वे ब्रिटिश सरकार की आँख की किरकिरी बन गए। राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्रता प्राप्ति के दूसरा प्रयास का नेतृत्व केसरीसिंह बारहठ और ठा. गोपाल सिंह आदि कर रहे थे।

‘अभिनव भारत’ नाम से क्रांतिकारियों का संगठन इसी उद्देश्य से बना था। 21 फरवरी सन् 1914 ई. को क्रांति का शंखनाद होना था, लेकिन अंग्रेज गुप्तचरों को इसकी भनक लग गई। सैनिक विद्रोह एवं सशस्त्र क्रांति की तमाम तैयारियाँ विफल कर दी गईं। 31 मार्च को केसरीसिंह बारहठ गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें बीस वर्ष के आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। बिहार के हजारीबाग जेल में आजीवन कैद काटते हुए जब उनके पुत्र को बेड़ियों में जकड़ कर लाया गया तो उन्होंने अपने बेटे को स्पष्ट कहा कि बेटे, तुम्हारे दीर्घ जीवन की अब क्या कामना करू, कष्टपूर्ण यात्रा है, भारत माँ के लाड़ले बनो, प्रताप हो प्रताप बनो।

बेटे ने अपना बलिदान दे दिया और केसरीसिंह ने पुत्रशोक की निर्मम पीड़ा को सहज रूप में स्वीकार कर लिया। वे गाँधीजी से प्रभावित होकर वर्धा भी जाना चाहते थे। एक पत्र के उत्तर में उन्होंने सेवाग्राम को पत्र में लिखा- “शेष जानकारी मेरे संबंध में पुरुषोत्तम दास टंडन और डॉ. भगवान दास केला से प्राप्त कर लें।” यह पत्र स्थापित करता है कि वे स्वतंत्रता आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण कड़ी थे। भारत के क्रांतिकारी जनतंत्रीय आन्दोलन के इतिहास में केसरीसिंह बारहठ का योगदान अक्षुण्ण है। वे आत्मबलिदान और निःश्रेयस पूजा की साकार प्रतिमा हैं।

प्रश्न. 15.
केसरीसिंह के व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
केसरीसिंह बारहठ का जन्म एक स्वातंत्र्य प्रेमी परिवार में हुआ था। कोटा में स्थित ‘माणिक भवन’ केसरीसिंह के बलिदान की कहानी का स्मृति शेष है। उनके व्यक्तित्व का अवगाहन निम्न बिन्दुओं के माध्यम से किया जा सकता है –

  1. विद्वान व शास्त्रज्ञ – केसरीसिंह संस्कृत के उदभट विद्वान और शास्त्रों के ज्ञाता थे। राजनीति, क्षात्रधर्म, समाज-सुधार, शिक्षा-प्रसार आदि विषयों के संबंध में प्रकाशित उनके लेखों से भारतीय पाठक वर्ग परिचित हो चला था। वे राजधानी और ब्रजभाषा के सुप्रसिद्ध कवि थे।
  2. प्रभावशाली व्यक्तित्व – केसरीसिंह बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में राजपूताने में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के रूप में उभर चुके थे। राजपूताने के अधिकांश राजा-महाराजा, जागीरदार एवं प्रबुद्ध जन उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते थे।
  3. स्वाभिमानी – वे सदैव स्वदेश, स्वराज्य, स्वाधीनता और स्वाभिमान के पक्षधर रहे। वे नहीं चाहते थे कि राष्ट्रीय स्वाभिमान के रक्षक मेवाड़ के महाराणा दिल्ली दरबार में जाकर कोर्निश बजाएँ। उन्होंने चेतावनी रा चूंगट्या’ शीर्षक से तेरह सोरठे लिखकर महाराणा को समय रहते आगाह किया और राष्ट्रीय स्वाभिमान को बनाये रखा।
  4. क्रांतिकारी – उन्होंने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया। ठा. गोपालसिंह एवं अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर सैनिक विद्रोह व सशस्त्र क्रांति की योजना बनाई, लेकिन अंग्रेजों को गुप्तचरों से भनक लग गई व क्रांति विफल हो गई।
  5. पुत्र का बलिदान – भारत माँ पर न्योछावर होने के लिए उन्होंने पुत्र को सीख दी कि आजादी छीनी जाती है। प्रताप नाम है। तो प्रताप बनो। अंग्रेजों ने गोली मारकर प्रतापसिंह की निर्मम हत्या कर दी, उस दुखद घटना को उन्होंने सहज भाव से स्वीकार कर लिया।
  6. स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान – उनका गाँधीजी, पुरुषोत्तम दास टंडन व अन्य नेताओं से निरन्तर संपर्क था। उनके पत्र इसके प्रमाण हैं। वे वर्धा जाकर गाँधीजी की सेवा भी करना चाहते थे, परन्तु 14 अगस्त 1941 को उन्होंने देह त्याग दी। इस प्रकार वे उत्कृष्ट कोटि के बुद्धिजीवी, विचारक, लेखक एवं कवि थे। वे राष्ट्रीय एकता, स्वतंत्रता और समता को सादर। समर्पित थे। वे आज भी स्मरणीय हैं। “

प्रश्न. 1.
यदि प्रतापसिंह की जगह आप होते तो क्या करते ? कल्पना के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
जिस प्रकार प्रतापसिंह ने जेल सुपरिटेन्डेन्ट के प्रस्ताव को अस्वीकार कर अपनी जुबान काट ली और होठ स लिए पर क्रांतिकारियों का ठिकाना नहीं बताया। यदि राष्ट्र-सेवा का ऐसा सुअवसर हमें मिलता तो हम भी वही करते, जो प्रतापसिंह ने किया। देशभक्तों का ठिकाना बताकर हम मातृभूमि के प्रति गद्दारी नहीं कर सकते, हम मरकर अपना जीवन समर्पित कर देते, पर राष्ट्रविरोधी कृत्य नहीं करते और न ही किसी प्रलोभन या बहकावे में आते।

प्रश्न. 2.
‘आजादी बिकती नहीं, आजादी छीनी जाती है’-कथन से केसरीसिंह का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
केसरीसिंह ने यह कथन अपने पुत्र प्रताप को कहा। इसका आशय यह है कि स्वतंत्रता व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, परन्तु यह व्यक्ति अथवा जाति के सामर्थ्य पर निर्भर है कि वह अपनी स्वतंत्रता की रक्षा किस सीमा तक कर पाता है। परतंत्र होने पर आजादी कहीं बिकती हुई नहीं मिलेगी, जहाँ से उसे खरीदा जा सके। आजादी को तो छीना जाता है। यह व्यक्ति के पुरुषार्थ पर निर्भर है। कि वह अपनी आजादी किस तरह प्राप्त करता है। उक्त कथन के माध्यम से उन्होंने अपने पुत्र को आजादी के लिए संघर्ष करते रहने की प्रेरणा दी।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 3 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 3 लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
राजस्थान में इतिहास-काव्य ग्रंथ लिखने की परम्परा रही है।’ कैसे ? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में इतिहास लेखन और इतिहास निर्माण की विशिष्ट परम्परा रही है। महाकवि चंदबरदायी के बाद यह परम्परा महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण से. चलती हुई उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में शाहपुरा के लोक विख्यात इतिहासज्ञ श्री कृष्ण सिंहजी बारहठ तक पहुँची, जिन्होंने महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण के विशाल काव्य ग्रंथ ‘वंश भास्कर’ को सुपाठ्य बनाने के लिए टीका तैयार की। इस समृद्ध परम्परा से राजस्थान का गौरवशाली इतिहास सुरक्षित रह सका है।

प्रश्न. 2.
“माणिक भवन हाड़ौती अंचल का ‘स्वराज भवन’ है।”-कथन की युक्तियुक्त समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
गुमानपुर (कोटा) में अवस्थित ‘माणिक भवन’, जो अमर शहीद प्रतापसिंह की मातृश्री माणिक कुँवर की स्मृति में बनाया गया था उसके बाहर चबूतरे में माणिक कुंवर के अस्थि-अवशेष सुरक्षित हैं। केसरीसिंह बारहठ ने इसी चबूतरे पर बैठकर प्रतापसिंह के आत्म-बलिदान एवं श्रीमती माणिक कुँवर की अनंत जुदाई के बाद के एकाकी क्षण बिताए थे। इस भवन को हाड़ौती का स्वराज भवन इसीलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ देश की आजादी के ताने-बाने बुने गए थे।

प्रश्न. 3.
केसरीसिंह का कार्यक्षेत्र व कर्मक्षेत्र कहाँ रहा ? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
केसरीसिंह बारहठ ने अपनी शिक्षा-दीक्षा ‘वीर विनोद’ ग्रंथ के सुप्रसिद्ध लेखक कविराजा श्यामलदास की छत्रछाया में प्राप्त की। अपना अध्ययन समाप्त कर सन् 1900 ई. में कोटा के तत्कालीन शासक महाराव उम्मेदसिंह के आग्रह पर कोटा रियासत में राजकीय दायित्वों का निर्वाह करने लगे। यही कोटड़ी ठिकाने के कविराजा देवीदान की बहिन माणिक कुँवर से आपका विवाह हुआ और कोटा ही जीवन-पर्यन्त आपका कार्यक्षेत्र व कर्मक्षेत्र रहा।

प्रश्न. 4.
चेतावनी रा चूंगट्या’ शीर्षक रचना क्यों लिखी गई ? इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जब केसरीसिंह बारहठ को यह ज्ञात हुआ कि उदयपुर के महाराणा अंग्रेजों के दरबार में दासता के भव्य प्रदर्शन में सम्मिलित होने जा रहे हैं तो कवि का राष्ट्रीय स्वाभिमान आहत हो उठा। उन्होंने तत्क्षण ही ‘चेतावनी रा चेंगट्या’ शीर्षक से मर्मभेदी भाषा में तेरह सोरठे लिखकर महाराणा को भेजे, जिनके द्वारा उन्होंने महाराणा प्रताप द्वारा सर्वस्व त्याग एवं बलिदान की परम्परा का भान कराया। ट्रेन,उदयपुर से रवाना हो चुकी थी, अत: संदेश वाहक चित्तौड़ स्टेशन पर मिला। इस रचना का प्रभाव यह पड़ा कि लार्ड कर्जन देखता रहा गया और उदयपुरे महाराणा कभी दिल्ली दरबार नहीं गए।

प्रश्न. 5.
‘अभिनव भारत’ संगठन का परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘अभिनव भारत’ संगठन क्रांतिकारियों का संगठन था। इसका गठन खरवा के ठाकुर गोपाल सिंह, जयपुर के अर्जुन लाल सेठी, जोरावर सिंह एवं प्रतापसिंह के सहयोग से किया गया। 23 दिसम्बर 1912 ई. को दिल्ली में शाही हाथी की सवारी पर जाते हुए वायसराय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंका गया, जिसमें केसरीसिंह के छोटे भाई जोरावर सिंह व पुत्र प्रताप सिंह सम्मिलित थे। राष्ट्रीय स्तर पर सन् 1857 ई. के विफल स्वातंत्र्य-समर के बाद स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए यह दूसरा प्रयास था।

प्रश्न. 6.
केसरीसिंह को क्यों गिरफ्तार किया गया ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
केसरीसिंह बारहठ अभिनव भारत संगठन के माध्यम से क्रांतिकारी गतिविधियाँ संचालित कर रहे थे। 21 फरवरी, सन् 1914 ई. को क्रांति का शंखनाद होना था, लेकिन अंग्रेज गुप्तचरों को उसकी भनक लग गई। सैनिक विद्रोह एवं सशस्त्र क्रांति की तमाम तैयारियाँ विफल कर दी गईं और 31 मार्च को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 6 अक्टूबर, 1919 ई. को केसरीसिंह को बीस वर्ष के . आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें अंग्रेज सरकार एक ‘बागी’ के रूप में स्वीकार करती थी।

प्रश्न. 7.
फिलिप लेण्ड के प्रस्ताव पर केसरीसिंह का क्या प्रत्युत्तर था ?
उत्तर:
जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट फिलिप लेण्ड ने आग्रह किया कि यदि रासबिहारी बोस, शचीन्द्र सान्याल और गोपाल सिंह खरवा के छिपने के ठिकाने बता दिए जाएँ, तो प्रतापसिंह को छोड़ा जा सकता है। केसरीसिंह का स्वाभिमान जाग्रत हो उठा। उन्होंने कहा तुम जैसे – गुलाम ही जूठन के लिए पूँछ हिलाते हैं और बाद में तुम्हारी भाषा बोलते हैं। केसरीसिंह का बेटा शेर की तरह दहाड़ सकता है, जीवन के लिए मिमिया नहीं सकता।

प्रश्न. 8.
केसरीसिंह-प्रतापसिंह यानी पिता-पुत्र की अंतिम भेंट कहाँ हुई ? उस दृश्य को संक्षेप में वर्णित कीजिए।
उत्तर:
दिल्ली षड्यंत्र केस के अन्तर्गत प्रतापसिंह को गिरफ्तार कर बरेली जेल में भयंकर शारीरिक यंत्रणा दी गई। इसी समय केसरीसिंह बारहठ ने बिहार के हजारीबाग जेल में आजीवन कैद काटते समय काल-कोठरी में अन्नत्याग कर दिया। लगभग 30 दिन बीत चुके थे प्रतापसिंह ने पिताश्री से मिलने की इच्छा प्रकट की और पिता-पुत्र की यह अंतिम भेट हजारीबाग जेल में संपन्न हुई। जर्जर बागी पिता जेल के सींखचों में बंद और इधर बेड़ियों में जकड़ा आहत प्रतापसिंह, यह दृश्य हृदयविदारक था।

प्रश्न. 9.
पुत्र की निर्मम पीड़ा को केसरीसिंह ने किस रूप में स्वीकार किया ?
उत्तर:
पिता के मार्ग पर चलते हुए प्रतापसिंह ने बरेली जेल जाकर जबान काट ली, होठ सी लिए, परन्तु क्रांतिकारियों का ठिकाना नहीं बताया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गोली मार दी। केसरीसिंह ने पुत्र शोक की निर्मम पीड़ा को सहज रूप में स्वीकार कर लिया। हजारीबाग जेल से कोटा आने पर एक सज्जन को इस प्रसंग में कहा, “यह मैं आपके मुँह से सुन रहा हूँ कि वह मर गया, हाँ, देश की स्वतंत्रता के लिए वह शहीद हो गयी, यह मेरे लिए संतोष का विषय है।”

प्रश्न. 10.
केसरीसिंह ने अपने पुत्र को जेल में क्या शिक्षा दी ? लिखिए।
उत्तर:
केसरीसिंह ने अपने पुत्र से कहा, “बेटे प्रताप ! आजादी बिकती नहीं है, आजादी छीनी जाती है, अपहरण करने वाले से। आजादी मिलती नहीं हासिल की जाती है, संघर्ष से। हर संघर्ष की कीमत होती है, वह हमें चुकानी है। यह एक अनंत सिलसिला है। बेटे तुम्हारे दीर्घ जीवन की अब क्या कामना करूं, कष्टपूर्ण यात्रा हैं। भारत माँ के लाड़ले बनो, प्रताप हो प्रताप बनो।” यह सीख प्रतापसिंह के लिए प्रेरक सिद्ध हुई और वह शहीद हुआ।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 3 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
केसरीसिंह बारहठ के व्यक्तित्व एवं कर्तव्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केसरीसिंह बारहठ ने स्वातंत्र्य प्रेमी बारहठ परिवार में जन्म लिया था अत: उन्होंने भी उसी पथ का अनुसरण किया। उनके जीवन में दयानंद सरस्वती, श्यामजी कृष्ण वर्मा, कवि श्यामलदास, महाराव उम्मेद सिंह, पुरुषोत्तमदास टंडन, डॉ. भगवानदास केला जैसे व्यक्तित्व,आए और उनके साथ कार्य किया। ‘अभिनव भारत’ संगठन के माध्यम से स्वातंत्र्य-समर की तैयारियाँ। स्वयं जेल गए एवं पुत्र को आत्मबलिदान के लिए प्रेरित किया। केसरीसिंह संस्कृत के उद्भट विद्वान, शास्त्रों के ज्ञाता थे।

राजनीति, क्षात्रधर्म, समाज-सुधार, शिक्षा-प्रसार आदि विषयों के संबंध में प्रकाशित उनके लेखों से भारतीय पाठक वर्ग परिचित हो चला था। वे राजस्थानी एवं ब्रजभाषा के सुप्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने स्वदेश स्वराज्य, स्वाधीनता और स्वाभिमान का सदैव पक्ष लिया। उदयपुर महाराणा को चेतावनी रा चूंगट्या’ लिखकर दिल्ली दरबार में जाने। से रोक दिया। आजीवन कारावास काटते हुए अपने पुत्र प्रतापसिंह को नई सीख दी। अंततः प्रताप ने अपने पिता के मार्ग का अनुसरण किया, वे शहीद हो गए। भारत के क्रांतिकारी जनतंत्रीय आन्दोलन के इतिहास में स्व. ठाकुर केसरीसिंह बारहठ का नाम सदैव अंकित रहेगा।

प्रश्न. 2.
‘केसरीसिंह ब्रिटिश आँख की किरकिरी बन गए थे। वह कौनसी घटना थी ? इसका उल्लेख कीजिए।
अथवा
केसरीसिंह ने चेतावनी रा चूंगट्या’ कृति किस उद्देश्य से लिखी ? उन्हें कहाँ तक सफलता मिली ? घटना का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केसरीसिंह बारहठ सदैव स्वदेश, स्वराज्य, स्वाधीनता और स्वाभिमान के पक्षधर रहे। उनके लिए राष्ट्रीय स्वाभिमान सर्वोपरि था। वे नहीं चाहते थे कि राष्ट्रीय स्वाभिमान के रक्षक मेवाड़ के महाराणा दिल्ली दरबार में जाकर अन्य भारतीय नरेशों की भाँति तलवार जमीन पर रखकर कोर्निश बजाएँ। अतः जब उन्हें पता चला कि उदयपुर के महाराणा भी दासता के इस भव्य प्रदर्शन में सम्मिलित होने जा रहे हैं तो कवि का राष्ट्रीय स्वाभिमान आहत हो उठी।

इन्होंने तत्क्षण ही ‘चेतावनी रा चूंगट्या’ शीर्षक से मर्मभेदी भाषा में तेरह सोरठे लिखकर महाराणा को भेजे, जिनके द्वारा उन्होंने महाराणा प्रताप के सर्वस्व त्याग एवं बलिदान की परंपरा का भान कराया। महाराणा की ट्रेन उदयपुर से रवाना हो चुकी थी, अत: संदेशवाहक उनसे चित्तौड़ स्टेशन पर मिला। कर्जन राजस्थान गौरव को अपने दरबार में सिर झुकाए खड़ा देखने की राह देख रहा था, लेकिन उदयपुर के महाराणा दिल्ली दरबार में न तब गए न अब गए, इस घटना से केसरीसिंह की काव्योचित प्रतिभा का प्रसार तो हुआ, लेकिन वे ब्रिटिश सरकार की आँख की किरकिरी बन गए।

प्रश्न. 3.
हजारीबाग जेल में पिता-पुत्र के मिलन का वह स्मरणीय क्षण क्या था ? पिता ने पुत्र को किस तरह प्रेरित किया ? घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जोधपुर के आशानाड़ा स्टेशन पर दिल्ली षड्यंत्र केस के अन्तर्गत केसरी सिंह के पुत्र प्रतापसिंह को गिरफ्तार कर बरेली जेल में भयंकर शारीरिक यातना दी गईं। उस नवयुवक को बेहद पीड़ित किया गया। इसी समय केसरीसिंह बारहठ ने बिहार के हजारीबाग जेल में आजीवन कैद काटते समय काल कोठरी में अन्नत्याग कर दिया अन्न त्यागे उन्हें लगभग 30 दिन बीत चुके थे। प्रतापसिंह ने पिताश्री से मिलने की इच्छा प्रकट की। पिता-पुत्र की यह अंतिम भेट हजारीबाग जेल में संपन्न हुई। जर्जर बागी पिता जेल के सींखचों में बंद और इधर बेड़ियों में जकड़ा आहत प्रतापसिंह। ‘वंदेमातरम्’ संबोधन के आदान-प्रदान के बाद दोनों की आँखों में केवल आँसू ही आँसू थे।

इसी बीच जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट फिलिप लेण्ड ने आग्रह किया कि यदि रासबिहारी बोस, शचीन्द्र सान्याल और गोफल सिंह खरवा के छिपने के ठिकाने बता दिए जाएँ तो प्रतापसिंह छोड़ा जा सकता है। यह सुनकर केसरीसिंह का स्वाभिमान जाग उठा। उन्होंने फिलिप लेण्ड से कहा तुम जैसे गुलाम ही झूठन के लिए पूँछ हिलाते हैं और बाद में तुम्हारी भाषा में बोलते हैं। केसरीसिंह का.बेटा शेर की तरह दहाड़ सकता है, जीवन के लिए मिमिया नहीं सकता।

फिर बेटे की तरफ झुकते हुए कहा- “बेटे प्रताप ! आजादी बिकती नहीं है; आजादी छीनी जाती है, अपहरण करने वाले से। आजादी मिलती नहीं हासिल की जाती है, संघर्ष से और हर संघर्ष की कीमत होती है, वह हमें चुकानी है, यह एक अनंत सिलसिला है। बेटे तुम्हारे दीर्घ जीवन की अब क्या कामना करू, कष्टपूर्ण यात्रा है, भारत माँ के लाडले बनो, प्रताप हो, प्रताप बनो।” . भेंट का यह क्रम जल्दी ही टूट गया और प्रताप ने बरेली जेल जाकर अपनी जबान काट ली, अपने होंठ स लिए, और ब्रिटिश सरकार के रहनुमाओं ने उन्हें गोली मार दी। केसरीसिंह ने पुत्र शोक की निर्मम पीड़ा को सहज रूप में स्वीकार कर लिया।

राष्ट्रमंदिर का सुवासित पुष्प : केसरीसिंह बारहठ

पाठ-सारांश

केसरीसिंह बारहठका बाल्यकाल-भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में केसरीसिंह बारहठ की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। बाल्यकाल मेवाड़ में बीता व प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं संपन्न हुई, किन्तु जीवन संघर्ष का केन्द्र कोटा बना। ‘माणिक भवन’ हाड़ौती अंचल का ‘स्वराज भवन’ है, जहाँ देश की आजादी के ताने-बाने बुने गए थे। आर्य समाज से आपका घनिष्ठ संपर्क रहा और राष्ट्रीय स्वातंत्र्य संग्राम से जुड़ने के बाद वे राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में स्वीकार कर लिए गए थे।

शिक्षा-दीक्षा-कार्यक्षेत्र-“वीर विनोद’ के रचनाकार कविराजा श्यामलदास की छत्रछाया में अपना अध्ययन समाप्त कर 1900 ई. में कोटा के तत्कालीन शासक महाराव उम्मेदसिंह के आग्रह पर कोटा के राजकीय दायित्व संभालने लगे। कोटड़ी ठिकाने के कविराजा देवीदान की बहिन माणिक कुँवर से आपका विवाह हुआ। संस्कृत, शास्त्र, राजनीति, शिक्षा प्रसार तथा समाज सुधार के क्षेत्र में आप ख्याति प्राप्त कर चुके थे। महाराणा को सन्देश-केसरीसिंह को जब पता चला कि उदयपुर के महाराणा अंग्रेजों की दासता स्वीकार करने दिल्ली दरबार
जा रहे हैं तो उन्होंने चेतावनी रा चूंगट्या’ शीर्षक से मर्मभेदी भाषा में तेरह सोरठे लिखकर महाराणा को भेजे। उन्हें प्रताप की आन याद दिलाई। जब महाराणा दिल्ली नहीं पहुँचे तो लार्ड कर्जन इन्तजार करता रह गया। उनकी काव्योचित प्रतिभा का प्रसार तो हुआ, पर ब्रिटिश सरकार की आँख की किरकिरी बन गए।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान-‘अभिनव भारत’ नाम से क्रांतिकारियों को गुप्त संगठन खरवा के ठाकुर गोपाल सिंह, अर्जुनलाल सेठी, जोरावर सिंह एवं प्रतापसिंह के सहयोग से चल रहा था। जोरावर सिंह व प्रतापसिंह केसरीसिंह के भाई थे। 1857 ई. के विफल स्वातंत्र्य समर के बाद दूसरे प्रयास का नेतृत्व केसरीसिंह बारहठ, ठा. गोपाल सिंह कर रहे थे। 21 फरवरी, 1914 ई. को क्रांति का शंखनाद होना था, लेकिन गुप्तचरों को भनक लग गई। सैनिक विद्रोह की तैयारियाँ विफल कर दी गईं। 6 अक्टूबर, 1919 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

पुत्र का बलिदान-दिल्ली खड्यंत्र केस के अंतर्गत उनके पुत्र प्रतापसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। केसरीसिंह ने हजारी बाग जेल में 30 दिन से अन्न त्याग कर रखा था। प्रतापसिंह को उनसे मिलने के लिए बेड़ियों में जकड़े उनके सामने लाया गया। जब जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट फिलिप लेंड ने आग्रह किया कि यदि रासबिहारी बोस, शचीन्द्र सान्याल और गोपाल सिंह खरवा के छिपने के ठिकाने बता दिए जाएँ तो प्रतापसिंह को छोड़ा जा सकता है।

तब केसरीसिंह ने प्रताप को कहा “बेटे प्रताप! आजादी बिकती नहीं है ………………… यह एक अनंत सिलसिला है।” प्रताप ने बरेली जेल जाकर अपनी जबान काट ली, होठ सी लिए तो उन्हें गोली मार दी गई। केसरीसिंह ने भारत माँ के लिए पुत्र शोक की निर्मम पीड़ा को सहज रूप में स्वीकार कर लिया।

महाप्रयाण-केसरीसिंह बारहठ एक सजग क्रांतिकारी थे। वे गाँधीजी से प्रभावित होकर वर्धा जाना चाहते थे। वे राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए लड़े जा रहे आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण कड़ी थे। वे बापू की देखभाल में अपना समय बिताना चाहते थे, लेकिन 14 अगस्त, 1941 ई. को इस महान आत्मा की जीवन लीला समाप्त हो गई। भारत के क्रांतिकारी जनतंत्रीय आन्दोलन के इतिहास में स्व. ठाकुर केसरीसिंह बारहठ का नाम सदैव अंकित रहेगा।

कठिन शब्दार्थ

सुवासित = सुगंधित। आत्मबलिदानी = स्वयं का बलिदान करने वाले। स्याह = काला। हुतात्माओं = महान् आत्माओं। सुपाठ्य = अच्छी तरह से पढ़ने योग्य। उदधिमंथनी = समुद्र मंथन करने वाली। जुदाई = बिछोह। (पृष्ठ-21)

प्रसून = पुष्प। छत्र-छाया = आश्रय। उद्भट = प्रकांड। कोर्निश = झुककर सलाम करना। तत्क्षण = उसी समय। आहत = चोटग्रस्त। मर्मभेदी = हृदय को भेदने वाला। सोरठे = एक प्रकार का छंद। आँख की किरकिरी = अप्रिय, खटकने वाला। स्वातंत्र्य-समर = आजादी की लड़ाई। शंखनाद = शुभारंभ। (पृष्ठ-22)

बागी = विद्रोही। यंत्रणा = पीड़ा, तकलीफ, सजा। जर्जर = क्षीण। मिमियाना = बकरी की आवाज, गिड़गिड़ाना। रहनुमा = दया दिखाने वाले। निर्मम = क्रूरतापूर्वक। निःश्रेयस = परमार्थकारी। (पृष्ठ-23)

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