Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 कन्हैयालाल सेठिया
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
राजस्थान की धरती की तुलना किससे की गई है?
(क) आकाश
(ख) स्वर्ग
(ग) पाताल
(घ) सृष्टि
उत्तर:
(ख) स्वर्ग
प्रश्न 2.
‘ओ तो रणवीरें रो पँटो’ में बँटो’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है सिह।
(क) चित्तौड़
(ख) बीकानेर
(ग) अजमेर
(घ) भरतपुर
उत्तर:
(क) चित्तौड़
प्रश्न 3.
भरतपुर के राजा का क्या नाम था –
(क) रतन मल।
(ख) सूरज मल
(ग) भरत सिंह
(घ) रतन सिंह
उत्तर:
(ख) सूरज मल
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘धरती धोरां री’ कविता का मूल भाव क्या है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता का मूल भाव वीर प्रसूता भूमि राजस्थान के गौरव का स्मरण कर इसके सभी अंचलों की विशेषताओं का उल्लेख करना है।
प्रश्न 2.
कवि ने किस प्रान्त की धरती को ‘धोरां री धरती’ कहा है?
उत्तर:
कवि ने राजस्थान प्रदेश की धरती को ‘धोरां री धरती’ कहा है।
प्रश्न 3.
कवि के अनुसार नगरों की पटरानी कौन-सा नगर है?
उत्तर:
कवि के अनुसार जयपुर नगर नगरों की पटरानी है।
प्रश्न 4.
राजस्थान की धरती पर अमृत की वर्षा कौन करता है?
उत्तर:
राजस्थान की धरती पर चन्द्रमा रात में अमृत की वर्षा करता है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
”आ तो सुरगां नै सरमावै, ईं पर देव रमण नै आवै” का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि कहता है कि राजस्थान में रेत के टीलों से सज्जित धरती अपने सौन्दर्य में अनुपम है। इसके प्राकृतिक सौन्दर्य को देखक़र स्वर्ग भी शरमाने लगता है। अर्थात् प्राकृतिक सुन्दरता तथा सांस्कृतिक विविधता में राजस्थान की धरा स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है। इसी कारण स्वर्ग के देवता भी इस धरती पर भ्रमण करने आते हैं और इसका यशोगान करते हैं। इस तरह उक्त पंक्ति का आशय राजस्थान की रेतीली धरा को हर तरह से प्राकृतिक सुषमा से सम्पन्न बताकर देवगणों के रमण के योग्य चित्रित करना है।
प्रश्न 2.
‘धरती धोरां री कविता में कवि धरती पर क्या-क्या न्यौछावर करने की बात करता है?
उत्तर:
‘धरती धोरां री’ कविता में कवि कहता है कि राजस्थान की धरती अनेक विशेषताओं से मण्डित है। यह राजस्थानी लोगों की मातृभूमि है, ऐसी धरती पर कवि अपना तन और मन न्यौछावर करना चाहता है। इतना ही नहीं, वह इस धरती पर अपना जीवन और अपने प्राणों को भी न्यौछावर करने की बात कहता है। आशय यह है वीर-प्रसूता राजस्थान की धरा पर सब कुछ न्यौछावर किया जा सकता है। इसकी मिट्टी को मस्तक पर लगाकर कवि गौरवान्वित होना चाहता है। अतः वह अपना सर्वस्व समर्पित करने को उद्यत हो जाता है।
प्रश्न 3.
‘धरती धोरां री कविता में विविध शहरों की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। शहरों के नाम लिखते हुए उनकी विशेषताएँ भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि बताता है कि राजस्थान में चित्तौड़गढ़ रणबाँकुरे वीरों का गढ़ है। आबू पर्वत आकाश को छूता हुआ दिखाई देता है। जैसलमेर सीमान्त क्षेत्र का स्वर्णिम आभा वाला, बीकानेर अत्यन्त गर्वीला, अलवर जबर्दस्त हठीला, अजमेर एकदम भड़कीला और जयपुर सभी नगरों की पटरानी है। यहाँ के कोटा और बूंदी शहर भी काफी प्रसिद्ध हैं। भरतपुर शहर का नाम भी छोटा नहीं है, यहाँ के राजा सूरजमल ने विपक्षियों पर विजय प्राप्त की थी और उससे शक्तिशाली अंग्रेज हार गये थे। इसी प्रकार जोधपुर शहर अपने प्रताप-वैभव से प्रसिद्ध है। इस प्रकार कवि ने शहरों की विशेषताएँ बतायी हैं।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘धरती धोरां री कविता के आधार पर कन्हैयालाल सेठियाजी के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कन्हैयालाल सेठिया द्वारा रचित ‘धरती धोरां री’ कविता राजस्थानी भाषा की सशक्त रचना है। इसमें वीर-प्रसूता मरुभूमि के गौरव का भावपूर्ण वर्णन किया गया है। इस कविता के आधार पर कवि कन्हैयालाल सेठिया का काव्य-सौन्दर्य इस प्रकार निरूपित किया जा सकता है –
भावपक्ष – सेठियाजी की कविताओं में मातृभूमि राजस्थान के प्रति विशेष अनुराग व्यक्त हुआ है। ‘धरती धोरां री’ कविता इसका ज्वलन्त उदाहरण है। इस कविता में यह भावानुभूति व्यंजित हुई है|
- त्याग एवं उत्सर्ग भावना – सेठियाजी की कविताओं में आत्मोत्सर्ग एवं त्याग-भावना का निरूपण राजपूती आन-बान के अनुसार हुआ है।
- अतीत का गौरव-गान – सेठियाजी ने राजस्थान के विविध अंचलों का उल्लेख कर अतीत के गौरव की भावपूर्ण विशेषताएँ व्यक्त की हैं।
- आस्थावादी स्वर – कवि सेठिया ने राजस्थान की वीर-प्रसूता धरा तथा यहाँ के लोगों के आचार-व्यवहार को लेकर सुन्दर आस्था व्यक्त की है।
- युगानुरूप आचरण का सन्देश – कवि सेठिया ने प्राचीनता का उल्लेख कर मरुभूमि पर जहाँ न्यौछावर होने का भाव व्यक्त किया है, वहीं युगानुरूप नये आचार-व्यवहार का भी समर्थन किया है।
- भावानुकूल शिल्प – सेठिया ने राजस्थानी भाषा का अलंकृत प्रयोग कर भावानुकूलता एवं ओजस्विता का पूरा निर्वाह किया है।
प्रश्न 2.
‘धरती धोरां री’ कविता में जन्मभूमि के प्रति प्रवल अनुराग की अभिव्यक्ति हुई है।” उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान के यशस्वी और ख्यातिप्राप्त कवि कन्हैयालाल सेठिया ने विविध प्रकार की कविताओं का सृजन किया है। इनकी अधिकांश कविताएँ वीरभावना, राजस्थान की धरती के प्रति अटूट प्रेम, राष्ट्रीयता, मानवता और प्रकृति के विविध रूपों से सम्बन्धित हैं। संकलित कविता ‘धरती धोरां री’ वीर-भावना से सम्बन्धित तो है ही, साथ ही साथ इसके माध्यम से कवि ने राजस्थान के विविध अंचलों की विशेषताओं का सूक्ष्म रूप में उल्लेख किया है। इस कविता में सेठियाजी ने अपनी जन्मभूमि राजस्थान के प्रति विशेष अनुराग व्यक्त किया है।
प्रारम्भ में तो उन्होंने राजस्थान की धोरां री धरती के प्रति अपना श्रद्धाभाव व्यक्त किया है, तत्पश्चात् उसके सौन्दर्य का वर्णन किया है और सौन्दर्य-निरूपण में उन्होंने ऋतुओं के सौन्दर्य को भी देखा-परखा है। इसके पश्चात् राजस्थान की धरती पर बसे हुए यहाँ के विविध अंचलों, जैसे–नागौर, चित्तौड़, बीकानेर, भरतपुर, जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, आबू आदि की विशेषताओं को भी रेखांकित किया है। उदाहरण के लिए, यह अंश देखिए ईं पर तनड़ो मनड़ो वारां, ईं पर जीवण प्राण उंवारां, ईं री धजा उडै गिगनारां, मायड़ कोड़ां री ! ईं नै मोत्यां थाळ बधावां ईं री धूळ लिलाड़ लगावां ई रो मोटो भाग सरावां धरती धोरां री !
व्याख्यात्मक प्रश्न –
1. नारा नागौरी …………… नौ कुंटो।
2. जैपर नगर्यां में …………… फिरंगी मोटो।
उत्तर:
व्याख्या के लिए सप्रसंग व्याख्याएँ देखिए।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि सेठिया ने किस प्रान्त की धरती को ‘धोरां री’ कहा है?
(क) राजस्थान की
(ख) गुजरात की
(ग) उत्तर प्रदेश की
(घ) हरियाणा की
उत्तर:
(क) राजस्थान की
प्रश्न 2.
कवि के अनुसार राजस्थान में नगरों की पटरानी है –
(क) भरतपुर
(ख) जयपुर
(ग) बीकानेर
(घ) जोधपुर
उत्तर:
(ख) जयपुर
प्रश्न 3.
राजस्थान की धरती पर रमण करने के लिए आते हैं –
(क) यात्रीगण
(ख) अप्सराएँ
(ग) देवदूत
(घ) देवगण
उत्तर:
(घ) देवगण
प्रश्न 4.
‘गंगाजी ही जाणै’ कवि ने किसे गंगा जैसी बताया है?
(क) चम्बल नदी को
(ख) माही नदी को
(ग) लूणी नदी को
(घ) बनास नदी को
उत्तर:
(ग) लूणी नदी को
प्रश्न 5.
कवि ने जबर हठीला’ शहर बताया है –
(क) बीकानेर
(ख) अलवर
(ग) अजमेर
(घ) जोधपुर
उत्तर:
(ख) अलवर
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘धरती धोरां री’ कविता में ‘धोरां’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कविता में ‘धोरां’ शब्द से ‘रेतीले टीले’ अर्थात् रेत के धोरे अभिप्राय लिया गया है।
प्रश्न 2.
सूरजमल का सम्बन्ध राजस्थान के किस शहर से है?
उत्तर:
सूरजमल का सम्बन्ध राजस्थान के भरतपुर शहर से है, क्योंकि वह भरतपुर का प्रसिद्ध राजा था।
प्रश्न 3.
चम्बल नदी किसकी कहानी कहती है? बताइये।
उत्तर:
चम्बल नदी कोटा और बूंदी जैसे नगरों की कहानी कहती है।
प्रश्न 4.
‘ई पर तनड़ो मनड़ो वारां’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान की वीरभूमि पर तन और मन न्यौछावर किया जा सकता है। अर्थात् आन-बान, गौरव-गरिमा एवं शौर्य-त्याग की भावना के कारण इस पर सर्वस्व समर्पित किया जा सकता है।
प्रश्न 5.
‘पंछी मधरा-मधरा बोलै’ इत्यादि वर्णन से कवि ने क्या भाव:व्यक्त किया है?
उत्तर:
उक्त वर्णन से कवि ने राजस्थान की रेतीली भूमि के प्राकृतिक सौन्दर्य को लेकर आत्मीय भाव को व्यक्त किया है।
प्रश्न 6.
‘सागी जामण जाया बीरा’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
ईडर और पालनपुर को राजस्थान का सगा भाई बताया गया है।
प्रश्न 7.
जयपुर को नगरों की पटरानी क्यों कहा गया है?
उत्तर:
अपनी सुन्दर बसावट एवं गुलाबी छटा के कारण जयपुर को नगरों की पटरानी कहा गया है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि ने ‘रणवीरां रो खुटो’ किसे और क्यों कहा है?
उत्तर:
‘धरती धोरां री’ कविता में कवि सेठिया ने राजस्थान के प्रमुख अंचलों का परिचय देते हुए चित्तौड़ की चर्चा की है, उसी प्रसंग में यह कहा है कि चित्तौड़गढ़ वीरों की प्रसिद्ध भूमि रही है। इस कारण चित्तौड़गढ़ रणबाँकुरे वीरों का प्रमुख केन्द्र-स्थल रहा है। ‘बॅटो’ शब्द से यहाँ यही अभिप्राय है कि वीर पुरुषविशेष रूप से राणा सांगा, कुम्भा, प्रताप आदि इसी चित्तौड़गढ़ की भूमि पर रहे और यहीं पर उनका शौर्य-पराक्रम व्यक्त हुआ। अतः यह ऐसा स्थान है जिस पर रणकुशल योद्धाओं ने अपने प्राणों की चिन्ता न कर शत्रुओं का डटकर सामना किया है। चित्तौड़गढ़ का विजय स्तम्भ इसका प्रतीक (बूंटा) है।
प्रश्न 2.
“नारा नागौरी हित ताता ……………” इत्यादि कथन से कवि ने नागौर की क्या विशेषता बतायी है?
उत्तर:
उक्त कथन से कवि ने बताया है कि नागौरी बैल सारे प्रदेश में प्रसिद्ध हैं। नागौर का बैंल समूची तपन सहन करता हुआ दूसरों के हित का कार्य करता है। यहाँ का ऊँट मस्त प्रकृति का होता है और अधिक मात्रा में चारा वगैरह खाता है। इसी प्रकार यहाँ के घोड़े भी काफी प्रसिद्ध हैं, जो कि वेग में हवा से बातें करते दिखाई देते हैं। आशय यह है कि राजस्थान में नागौरी बैल विशेष प्रसिद्ध हैं। यहाँ पर ऊँट और घोड़े भी काफी संख्या में पाले जाते हैं, जो कि चाल-ढाल में अपनी अलग विशेषता रखते हैं।
प्रश्न 3.
‘मिलतो तीन्या रो उणियारो’ – कवि ने यहाँ किसका वर्णन किया। है? ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि ने राजस्थान प्रदेश के भू-भागों का वर्णन करते हुए बताया है। कि इस प्रदेश से सटा हुआ मालवा प्रदेश अनेक बातों में इससे अलग नहीं है और हरियाणा भी राजस्थान की सीमा से जुड़ा हुआ है, जो कि नया प्रदेश होने से अभी प्रथम जन्मा बच्चा जैसा है। वास्तव में मालवा, हरियाण और राजस्थान ये तीनों प्रदेश अनेक विशेषताओं एवं आचार-व्यवहार आदि के कारण एक जैसे हैं, इनकी शक्ल-सूरत एक जैसी लगती है और तीनों के ही अंचल अपनी प्राकृतिक शोभा से भरपूर हैं। तीनों की सांस्कृतिक समानता को देखकर कवि ने ऐसा कहा है।
प्रश्न 4.
‘धरती धोरां री’ कविता के अन्त में ईं रै सत री आण’ कथन से कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है?
उत्तर:
कविता के अन्त में कवि सेठिया ने राजस्थान की धरती के प्रति मातृभूमि की अनुराग व्यक्त करते हुए कहा कि इसके सत्य की आन का निर्वाह करने का संकल्प लेते हैं, हम इसका प्राचीनकाल से चली आ रही मर्यादा का निर्वाह करेंगे, इसकी इज्जत-गरिमा को लज्जित नहीं करेंगे। कवि देशभक्ति की खातिर बलिदान एवं त्याग की भावना प्रकट कर कहता है कि इसकी आन-बान की रक्षार्थ यदि सिर भी भेट में चढ़ाना पड़े, तो उसे भी हम सहर्ष कर सकते हैं। हम इस वीरप्रसूता रेतीली धरती को लेकर गौरव का अनुभव करते हैं। यह स्वनामधन्य वीरों की जन्मभूमि के रूप में चर्चित-पूजित रही है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कन्हैयालाल सेठिया की ‘धरती धोरां री’ कविता के आधार पर उनके काव्यगत कलात्मक-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता के आधार पर कवि सेठिया की काव्यगत कलात्मक विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
- भाषा – कवि सेठिया ने अपनी कविताओं में भाषा-सौष्ठव का विशेष ध्यान रखा है। उन्होंने प्रमुख रूप से राजस्थानी भाषा या डिंगल भाषा का प्रयोग किया है। परन्तु उनकी कविताओं में कुछ तत्सम शब्द तथा उनसे निष्पन्न देशज शब्द भी पर्याप्त मात्रा में प्रयुक्त हुए हैं। सम्प्रेषण की दृष्टि से तथा सामयिक प्रभाव की दृष्टि से कवि सेठिया ने तद्भव एवं देशज दोनों तरह के शब्दों का सहज प्रयोग किया है। इसी प्रकार राजस्थानी में प्रचलित मुहावरों एवं क्षेत्रीय क्रियापदों को प्रयोग कर भाषा का अभिव्यक्ति-सौन्दर्य बढ़ाया है। कवि सेठिया की भाषा भावाभिव्यक्ति में अतीव प्रखर है।
- अलंकार – सेठियाजी की कविताओं में अलंकारों का जबरदस्ती प्रयोग कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। भाव के प्रवाह में सहज रूप से यदि कहीं कोई अलंकार आ गया है तो उसका प्रयोग किया है।
- शैली प्रयोग – सेठियाजी की कविताओं में वर्णनात्मक, प्रेरणात्मक, प्रबोधनपरक, भावात्मक और विचारात्मक शैलियों का प्रयोग हुआ है।
- छन्द प्रयोग – छन्द प्रयोग की दृष्टि से देखें तो उन्होंने गेयता को महत्त्व दिया है और कहीं भी मुक्त छन्द का प्रयोग संकलित कविताओं में नहीं हुआ है।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
राजस्थानी कवि सेठिया का साहित्यकार रूप में परिचय दीजिए।
उत्तर:
राजस्थानी एवं डिंगल भाषा में काव्य-रचना की परम्परा काफी प्राचीन एवं समृद्ध है। आधुनिक काल में कन्हैयालाल सेठिया को राजस्थानी भाषा का अग्रणी साहित्यकार माना जाता है। व्यवसायी परिवार में जन्म लेने से यद्यपि कवि सेठिया जन्मभूमि राजस्थान से प्रायः दूर ही रहे, परन्तु समय-समय वे इससे अटूट सम्बन्ध रखकर जुड़े रहे। कोलकाता में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वतन्त्रता आन्दोलन में इन्होंने सक्रिय भूमिका निभायी। इनकी काव्य-प्रतिभा का विकास युवावस्था में ही हो गया था। प्रारम्भ में ये राजस्थानी एवं खड़ी बोली हिन्दी में समान रूप से कविता-रचना करते रहे, परन्तु बाद में इन्होंने राजस्थानी भाषा को प्राथमिकता दी । उत्कृष्ट साहित्य-रचना के कारण इन्हें साहित्य मनीषी सम्मान’, ‘सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार’ तथा ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ का ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।
रचना-परिचय – कवि सेठिया की प्रथम रचना ‘रमणीयां रा सोरठा’ सन् 1940 में मारवाड़ी में प्रकाशित हुई। फिर खड़ी बोली हिन्दी में (सन् 1942) ‘अग्नि वीणा’ कविता-संग्रह का प्रकाशन हुआ। इसके बाद खड़ी बोली एवं राजस्थानी में समान रूप से साहित्य-सृजन करते हुए सेठियाजी ने बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया। अब तक इनकी खड़ी बोली हिन्दी में अठारह तथा राजस्थानी (मारवाड़ी) में चौदह रचनाएँ प्रकाशित हैं। इनकी प्रमुख रचनाओं में रमणीयां रा सोरठा’, ‘मीझर’, ‘सबद’, ‘मायड़ रो हेलो’, ‘धर कूचा धर मंजला’, ‘अग्नि वीणा’, ‘वनफूल’, ‘आज हिमालय बोला’, ‘मर्म अनाम’, ‘स्वगत’, ‘आकाश-गंगा’, ‘देह-विदेह’, ‘वामन विराट’ और श्रेयस’ आदि उल्लेखनीय हैं।
कन्हैयालाल सेठिया कवि-परिचय-
कन्हैयालाल सेठिया राजस्थान के मूर्धन्य साहित्यकारों में रहे हैं। इनका जन्म राजस्थान के सुजानगढ़ के एक व्यवसायी परिवार में सन् 1919 ई. में हुआ। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा सुजानगढ़ में तथा उच्च शिक्षा।
कोलकाता में प्राप्त की। देश की आजादी के आन्दोलन में सेठियाजी की सक्रिय भूमिका रही। इनकी पहली रचना ‘रमणीयाँ रा सोरठा’ नाम से सन् 1940 में मारवाड़ी में प्रकाशित हुई। इसके बाद ये राजस्थानी के साथ ही खड़ी बोली में साहित्य-सृजन करते रहे। इनकी तीस से अधिक रचनाएँ प्रकाशित हैं। सेठियाजी को भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’, राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा साहित्य मनीषी सम्मान तथा राजस्थान भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी द्वारा ‘सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
पाठ-परिचय-
पाठ में सेठियाजी की ‘धरती धोरां री’ कविता संकलित है। इसमें राजस्थान की वीरप्रसूता भूमि के विविध स्वरूपों का भावपूर्ण चित्रण किया गया है। राजस्थान के विभिन्न अंचलों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कवि ने इसमें यहाँ के प्राकृतिक-सौन्दर्य का शब्द-चित्र मनोरम ढंग से प्रस्तुत किया है। इससे कवि का मातृभूमि प्रेम भी सहज रूप में व्यक्त हुआ है।
सप्रसंग व्याख्याएँ धरती धोरां री
(1)
धरती धोरां री
आ तो सुरगां नै सरमावै,
ई पर देव रमण नै आवे,
ई रो जस नर नारी गावै,
धरती धोरां री!
सूरज कण कण नै चमकावै,
चन्दो इमरत रस बरसावे,
तारा निछरावळ कर ज्यावै,
धरती धोरां री!
काळा बादळिया घहरावै,
बिरखा घूघरिया घमकावै,
बिजळी डरती ओला खावै,
धरती धोरां री!
कठिन शब्दार्थ-धोरां = रेत के टीले। सुरगां = स्वर्ग। रमण =’लीला करके। जस = यश। इमरत = अमृत। निछरावळ = न्यौछावर। घूघरिया = घुघरू।
प्रसंग-यह अवतरण कन्हैयालाल सेठिया द्वारा रचित ‘धरती धोरां री’ कविता से उद्धत है। इसमें कवि ने राजस्थान की रेत के टीलों से सज्जित धरती के सौन्दर्य और महत्त्व का वर्णन किया है।
व्याख्या-कवि सेठिया वर्णन करते हैं कि राजस्थान में रेत के टीलों से सज्जित धरती बहुत ही आकर्षक प्रतीत होती है। यह वह धरती है, जिसके सौन्दर्य को देखकर स्वर्ग भी शरमाने लगता है और इस भूमि पर देवता भी भ्रमण करने के लिए आते हैं। इस रेतीली धरती का यशोगान स्त्री-पुरुष सभी करते हैं। सूर्य अपनी किरणों से इस धरती के कण-कण को चमकाता रहता है और चन्द्रमा अपनी शीतल किरणों से अमृते-रस की वर्षा करता है। तारागण चमककर इस धरती पर बलिहारी होते हैं या न्यौछावर हो जाते हैं। जब इस धरती पर काले-काले बादल उमड़घुमड़ कर आते हैं, तो वर्षा की झड़ी ऐसी लगती है जैसे मुँघरू बज रहे हों। बादलों में बिजली बार-बार चमककर डराती रहती है। उस समय इसका प्राकृतिक सौन्दर्य और भी अधिक बढ़ जाता है।
विशेष-
(1) राजस्थान की मरुधरा को लेकर कवि ने अपनत्व व्यक्त किया
(2) प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन एवं राजस्थानी भाषा की मिठास अतीव प्रशस्य .
(2)
लुळ लुळ बाजरियो लैरावे,
मक्की झालो देर बुलावै,
कुदरत दोन्यू हाथ लुटावै,
धरती धोरां री!
पंछी मधरा मधरा बोले,
मिसरी मीठे सुर स्यं घोलै,
झीणं बायरियो पंपोळे,
धरती धोरां री!
नारा नागौरी हिद तोता,
मदुआ ऊँट अणूता खाथा!
ई रै घोड़ां री के बात?
धरती धोरां री!
कठिन शब्दार्थ-लुळ-लुळ = झुक-झुककर। लैरावे = लहराये। झालो = इशारा। देर = देकर। मधरा = मधुर। बायरियो = हवा। पंपोळे = रोमांचति करे। नारा = बैल। नागौरी = नागौर के। हिद = हित। मदुआ = मस्त। अणूता = अधिक मात्रा में। खाथा = खाता।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण कवि कन्हैयालाल सेठिया की प्रसिद्ध कविता ‘धरती धोरां री’ से लिया गया है। इसमें कवि ने राज़स्थान के प्राकृतिक सौन्दर्य का नये रूप में वर्णन किया है। व्याख्या-कवि वर्णन करता है कि राजस्थान की रेतीली धरती पर बाजरे की फसल झुक-झुककर लहराती रहती है। मक्का के पौधे भी इशारा देकर सभी को जैसे अपनी ओर बुलाते हैं। वास्तव में यह वह धरती है, जहाँ पर प्रकृति दोनों हाथों से अन्न-धन लुटाती है। इस धरती पर अनेक तरह के पक्षी मधुर-मधुर वाणी में बोलते हैं, उनके स्वर में मिश्री की मिठास-सी घुली रहती है। यहाँ पर हवा भी मन्द-मन्द गति से बहती हुई हमारे मन को रोमांचित करती रहती है। यहाँ नागौर के बैल विशेष प्रसिद्ध हैं, वे समूची तपन को सहन करते हुए दूसरों के हित में काम आते हैं। यहाँ मस्त प्रकृति का ऊँट जल्दी-जल्दी अधिक मात्रा में खाता है।
और यहाँ के घोड़ों की क्या बात करें? वे तो हवा से बातें करते दिखाई देते हैं। इस तरह राजस्थान की रेतीली धरती सभी को प्रिय लगती है।
विशेष-
(1) कवि ने राजस्थान के आंचलिक परिवेश का भावपूर्ण चित्रण किया है।
(2) मुहावरेदार राजस्थानी शब्दावली का प्रयोग सराहनीय है।
(3)
ई रा फळ फुलड़ा मन भावण,
ईं रै धीणों आंगण आंगण
बाजे सगळाँ स्यू बड़ भागण
धरती धोरां री!
ईं रो चित्तौड़ो गढ़ लूंठो,
ओ तो रण वीरां रो खुटो,
ई रो जोधाणं नौ कुंटो,।
धरती धोरां री!
आबू आभै रै परवाणै,
लूणी गंगाजी ही जाणै.
ऊभो जयसलमेर सिंवाणै,
धरती धोरां री!
कठिन शब्दार्थ-मन भावण = मन को अच्छे लगने वाले। सगळाँ = सभी। बड़ भागण = भाग्यशाली। लूठो = ऊँचा। खुटो = केन्द्र। आभै = आकाश। परवाणै = प्रमाण, स्पर्श करता हुआ। ऊभो = खड़ा। सिंवाणै = सीमान्त पर।
प्रसंग-यह अवतरण कन्हैयालाल सेठिया द्वारा रचित ‘धरती धोरां री’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने राजस्थान के आंचलिक क्षेत्रों की विशेषताओं का और यहाँ के गौरवपूर्ण इतिहास का उल्लेख किया है।
व्याख्या-कवि वर्णन करता है कि राजस्थान की धरती पर फल-फूल बड़े मनभावन होते हैं और आँगन-आँगन में अर्थात् प्रत्येक घर में इसका सौन्दर्य देखा जा सकता है। वास्तव में यह भू-भाग सभी में अत्यन्त भाग्यशाली कहलाता है और यहाँ की धरती सभी का मन मोहित करने वाली है। यहाँ का सुप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला बहुत ऊँचा है और यह रणबाँकुरे वीरों का केन्द्र है। यहीं पर नौ बँटों का अर्थात् युद्धप्रिय साहसी लोगों से मण्डित जोधपुर है। यहीं पर आबू पर्वत इतना ऊँचा और श्रेष्ठ है कि वह आकाश को छूता हुआ दिखाई देता है। यहाँ लूणी नदी को मारवाड़ की गंगाजी ही माना जाता है और जैसलमेर यहाँ के सीमान्त छोर पर खड़ा दिखाई देता है। इस तरह राजस्थान की धरती सब तरह से सम्पन्न है।।
विशेष-
(1) चित्तौड़गढ़, माउंट आबू एवं जैसलमेर आदि का वर्णन भावपूर्ण शैली में किया गया है।
(2) भौगोलिक क्षेत्रों की विशेषताओं का सांकेतिक उल्लेख हुआ है।
(4)
ईं रो बीकाणं गरबीलो,
ईं रो अलवर जबर हठीलो,
ईं रो अजयमेर भड़कीलो,
धरती धोरां री!
जैपर नगर्यां में पटराणी,
कोटा बूंदी कद अणजाणी?
चम्बल कैवे आं री कांणी,
धरती धोरां री!
कोनी नांव भरतपुर छोटो,
घूम्यो सूरजमल रो घोटो,
खाई मात फिरंगी मोटो,
धरती धोरां री!
कठिन शब्दार्थ-गरबीलो = गर्व से युक्त। जबर = जबर्दस्त, बलशाली। कद = कब। कैवे = कहती है। कांणी = कहानी। कोनी = कोई नहीं। फिरंगी = अंग्रेज।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण कन्हैयालाल सेठिया द्वारा रचित ‘धरती धोरां री’ कविता से उद्धत है। इसमें कवि ने राजस्थान के आंचलिक क्षेत्रों एवं नगरों का वर्णन किया
व्याख्या-कवि वर्णन करते हुए कहता है कि राजस्थान का बीकानेर क्षेत्र भी अत्यन्त गर्वीला है तथा अलवर क्षेत्र भी जबर्दस्त हठीला है, अर्थात् दृढ़ संकल्पी है, जबकि अजमेर भड़कीला है। राजस्थान के नगरों में जयपुर नगरों की पटरानी है। कोटा, बूंदी जैसे क्षेत्र भी किसी बात में अपरिचित नहीं हैं। यहाँ प्रवाहित होने वाली चम्बल नदी स्वयं ही इन सभी की कहानी अर्थात् गौरव-गाथा कहती है। राजस्थान में भरतपुर का नाम भी छोटा नहीं है। यहाँ के राजा सूरजमल का घोड़ा इधर-उधर घूमता रहा है, अर्थात् उसने इधर-उधर घूमकर विजय प्राप्त की तथा शक्तिशाली अंग्रेजों ने उससे मात खायी थी, अर्थात् उससे पराजित हुए थे।
विशेष-
(1) राजस्थान के गौरव का उल्लेख करने के लिए सभी प्रमुख क्षेत्रों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है।
(2) राजस्थानी शब्दावली की लोतु एवं भावानुकूलता दर्शनीय है।
(5)
ईं स्यूं नहीं माळवो न्यारो,
मोबी हरियाणो है प्यारो,
मिलतो तीन्यां रो उणियारो,
धरती धोरां री!
ईडर पालनपुरे है ईं रा,
सागी जामण जाया बीरा,
ॐ तो टुकड़ा मरूरै जी रा,
धरती धोरां री!
सोरठ बंध्यो सारेठां लारे,
भेळप सिंध आप हंकारे
मूमल बिसयो हेत चितारे,
धरती धोरां री!
कठिन शब्दार्थ-ई स्यू = इससे। मोबी = पहला जन्मा हुआ बच्चा। तीन्यां = तीन। उणियारो = शक्ल-सूरत। सागी = सगा। जामण जाया = एक साथ उत्पन्न बेटे। बीरा = भाई। सोरठ = सौराष्ट्र। हंकारै = पुकारे। लारै = साथ। मूमल = एक स्त्री-विशेष जो महेन्द्र के प्रेमपाश में बँध गयी थी। हेत = हित, प्रेम।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण कन्हैयालाल सेठिया की ‘धरती धोरां री’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि सेठिया ने मालवा, हरियाणा, सौराष्ट्र आदि का उल्लेख कर राजस्थानी अंचल की महत्ता की ओर संकेत किया है। व्याख्या-कवि वर्णन करता है कि राजस्थान के आंचलिक क्षेत्रों से मालवा क्षेत्र भी अलग नहीं है। हरियाणा तो राजस्थान की सीमा से जुड़ा हुआ होने से प्रथम जन्मे बच्चे जैसा है। वास्तव में मालवा, राजस्थान और हरियाणा ये तीनों ही अंचल मिलकर यहाँ एकरूपता स्थापित करते हैं। ईडर और पालनपुर भी इसी से जुड़े हुए हैं, भले ही अब अलग हो गये हों, अर्थात् गुजरात में चले गये हों। ये तो एक ही माता से जन्मे सगे भाई जैसे प्रतीत होते हैं। वस्तुतः ये तो मरुभूमि एवं अरावली के ही हिस्से हैं या टुकड़े हैं। सौराष्ट्र भी इसी की सीमा से बँधा हुआ है। यहाँ के वीर सुदूर सिन्ध तक अपनी वीरता का प्रमाण देते रहे हैं। प्रेम के क्षेत्र में भी राजस्थानी धरा किसी से पीछे नहीं रही, मूमल और राजकुमार महेन्द्र का प्रेम उच्चकोटि का रहा है। वास्तव में इन दोनों की प्रेम-कहानी उदाहरण बनकर यहाँ की धरती को आज भी रोमांचित करती हैं।
विशेष-
(1) हरियाणा उस समय नया राज्य बना था, इसीलिए कवि ने उसे पहला जन्मा बच्चा जैसा कहा है।
(2) ईडर, पालनपुर एवं सौराष्ट्र का भूक्षेत्र राजस्थान की रेतीली धरती जैसा है, जो कि दक्षिण-पश्चिमी सीमा से जुड़ा हुआ है।
(3) राजस्थान में मूमल एवं महेन्द्र की प्रेम-कहानी अतीव प्रसिद्ध लोकगाथा जैसी है। (4) कवि ने राजस्थान के चारों ओर की आंचलिक सीमाओं का सुन्दर उल्लेख किया है।
(6)
ईं पर तनड़ो मनड़ो वारा,
ईं पर जीवण प्राण उवारां,
ईं री धजा उड़े गिगनारां,
मायड़ कोड़ां री!
ईं नै मोत्यां थाळ बधावां,
ईं री धूळ लिलाड़ लगावां,
ईं रो मोटो भाग सरावां,
धरती धोरां री!
ईं रै सत री आण निभावां,
ईं रै पत नै नहीं लजावां,
ईं नै माथो भेंट चढ़ावां,
मायड़ कोड़ां री,
धरती धोरां री!
कठिन शब्दार्थ-तनड़ो = शरीर। मनड़ो = मन। वारा = न्यौछावर करना। उवारां = समर्पित करना। धजा = ध्वजा। गिरनारां = आकाश में। मोत्यां थाळ = मोतियों के थाल। लिलाड़ = मस्तक। सरावां = सराहना करना। सत = सत्य। पत = मर्यादा।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण कन्हैयालाल सेठिया की प्रसिद्ध कविता ‘धरती धोरां री’ से उद्धृत है। इसमें कवि ने राजस्थान की वीर-प्रसूता धरती को प्रणाम करने का आह्वान किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि ऐसी राजस्थान की धरती पर हम सभी अपना तन-मन न्यौछावर करते हैं। इतना ही नहीं, इस धरती पर जीवन और प्राणों को भी समर्पित किया जा सकता है। यहाँ का इतिहास इसकी गवाही भी देता है। राजस्थान के गौरवपूर्ण इतिहास की ध्वजा आकाश में उड़ती हुई दिखाई देती है। यह धरती तो वीर-सपूतों की माता है। इस धरती पर मोतियों के थाल लेकर उसका स्वागत किया जा सकता है। इसकी धूल-मिट्टी को मस्तक पर लगाकर हम सभी गौरवान्वित होते हैं और इसके बड़े भाग्य की सराहना कर स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं। यह वह धरती है, जिसने सत्य-प्रतिज्ञा के पालन की आन को निभाया है और अपनी मर्यादा को लज्जित नहीं होने दिया है। अपनी आन, बान और शान के लिए प्रसिद्ध राजस्थान की धरती ने बड़े-बड़े शूर-वीरों के माध्यम से इतने उल्लेखनीय कार्य किये हैं कि इस निमित्त अपना मस्तक भी अर्पित किया जा सकता है। यह धरती तो वीरों की जन्मदात्री एवं माता है। इस कारण यह सदा प्रणाम करने योग्य है तथा देवताओं के द्वारा भी इसे प्रशंसित किया गया है।
विशेष-
(1) राजस्थान के विविध क्षेत्रों की विशेषताओं के साथ राणा प्रताप आदि प्रण-पालक वीरों, मान-मर्यादा का निर्वाह करने वाले महापुरुषों और शौर्यत्याग भावना का उल्लेख किया गया है।
(2) भाषा सशक्त एवं भावाभिव्यक्ति ओजस्वी है।