Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 रामधारी सिंह दिनकर
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
‘अनल-किरीट’ शब्द से कवि दिनकर का तात्पर्य है
(क) अनल-ज्वाल
(ख) अनल-माल
(ग) मुश्किलों का ताज
(घ) अनल-भाल
उत्तर:
(ग) मुश्किलों का ताज
प्रश्न 2.
ऐसे लोगों को नींद नहीं आती जो
(क) हिम्मत वाले हैं।
(ख) धीरज वाले हैं।
(ग) धुन के मतवाले हैं।
(घ) साहस वाले हैं।
उत्तर:
(ग) धुन के मतवाले हैं।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘कालकूट पहले पी लेना’ पंक्ति में ‘कालकूट’ शब्द को क्या अर्थ
उत्तर:
कालकूट’ शब्द को सामान्य अर्थ भयानक जहर है। प्रस्तुत कविता में इसका आशय भयानक बाधाएँ एवं कष्ट लिया गया है।
प्रश्न 2.
“पड़ी समय से होड़ खींच मत पाँवों के काँटे रुककर।” पंक्ति में ‘होड़’ शब्द का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘होड़’ का आशय ऐसी प्रतिस्पर्धा है जिसमें कम समय में अधिक काम कुशलता से करना है।
प्रश्न 3.
जीवन-संग्राम में किन व्यक्तियों की जय निश्चित होती है?
उत्तर:
जीवन-संग्राम में सदा सचेत, जागरूक और आगे बढ़ने वालों की जय निश्चित होती है।
प्रश्न 4.
“दाँतों उँगली धरे खड़ा अचरज से भरा जमाना है।” काव्य-पंक्ति में प्रयुक्त मुहावरे का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘दाँतों तले उँगली दबाना’ मुहावरे का अर्थ आश्चर्यचकित होना है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सुधा बीज बोने वालों को कैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
सुधा बीज बोने से आशय दूसरों का अथवा देश का हित करना है। जो भी व्यक्ति लोकहित या देशहित का काम करता है, उसे अनेक विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस कारण उसे अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं, लोगों से मिलने वाली तीखे जहर जैसी मिन्दा झेलनी पड़ती है। उसे अमृत बाँटने से पहले स्वयं भयानक विष पीना पड़ता है। लोकहित का कार्य बिना संघर्ष के नहीं हो सकता और संघर्ष करने में कष्ट अवश्य होता है। इस तरह अमृत का बीज बोने की कोशिश करने पर विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न 2.
“फेंक-फूक चलती न जवानी चोटों से बचकर झुककर।” पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार बताते हुए परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
इस पंक्ति में वर्णावृत्ति से अनुप्रास अलंकार है, परन्तु जवानी पर मानवव्यापार का आरोप होने से मानवीकरण अलंकार है। पैरों में चोट लगने के भय से व्यक्ति सावधानी से आगे बढ़ता है। परन्तु जवानी में जोश कुछ अधिक होता है, इसलिए वह बिना डरे चलती है। जब अमूर्त भावों या जड़ पदार्थों को चेतनवत् प्रयोग किया जावे, या मानव व्यापार का आरोप किया जावे, तो वहाँ पर चैतन्यीकरण या मूर्तिवत् चित्रण से मानवीकरण अलंकार होता है।
प्रश्न 3.
ऐसे कौन-से व्यक्ति हैं जिनके जादू पानी में भी आग लगाने का कार्य करते हैं? समझाइये।
उत्तर:
सामान्यतः अन्धविश्वासी लोग ही जादू-टोने में विश्वास रखते हैं और वे ही जादूगर द्वारा पानी में आग लगाने के कपटी दृश्य पर आस्था रखते हैं। परन्तु जो लोग कठिनाइयों का सहर्ष मुकाबला करते हैं, कोरे अन्धविश्वासी न होकर अपनी शक्ति और संघर्ष-क्षमता को सबसे बड़ा मन्त्र-जाप मानते हैं और ऐसे कठिनतम एवं असाध्य कार्य कर दिखाते हैं जिन्हें देखकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं, ऐसे लोग ही पानी में आग लगाने का अर्थात् कायरों और अकर्मण्यों में भी जोश फेंक देने का कार्य करते हैं। ऐसे लोग स्वयं निर्भय रहते हैं और दूसरों को भी संघर्षशील बनाने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न 4.
विजित श्रृंगों पर किस प्रकार के लोग झण्डा उड़ाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि का कथन है कि पर्वत-शिखरों पर विजय प्राप्त करके झण्डा फहराना कोई सरल काम नहीं है। इसके लिए पहले तो पर्वत की चोटी पर चढ़ने का प्रयास करना पड़ेगा, अर्थात् अनेक कष्ट सहने पड़ेंगे, संघर्ष करना पड़ेगा, फिर उसे विजय मिलेगी। इस तरह विजयी-झण्डा फहराने से पहले, सफलता पाने से पूर्व वैसी कठिन तैयारी करनी पड़ेगी, वैसे कष्ट सहने पड़ेंगे, तभी विजयश्री का आनन्द मिलेगा । अतएव कठिन श्रम करने वाले और कष्टों को सहते हुए साहसपूर्वक आगे बढ़ने वाले ही सफलता का झण्डा उड़ाते हैं।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“अनल-किरीट’ कविता उदात्त और ओज भावमयी है।” पठित कविता के आधार पर उक्त कथन को समझाइये।
उत्तर:
उदात्त शब्द का आशय मानव-हृदय की करुणा, मानवीय-चेतना, सांस्कृतिक भावोज्ज्वलता एवं उदारता आदि है। आत्मिक भावों की हृदयगत निष्कलंक अभिव्यक्ति ही उदात्त रूप में होती है। कवि दिनकर ने अपने काव्य में ऐसे उच्च विचारों का सहजता से प्रतिपादन किया, जो समाज के लिए मार्गदर्शक हैं, कल्याणकारी हैं। साथ ही उन्होंने हृदय के भावों को कुछ प्रखरता, पौरुष, क्रान्ति एवं ओज के स्वर सहज रूप में व्यक्त किया है। एक प्रकार से कवि दिनकर सामाजिक चेतना के साथ राष्ट्रीयता की निश्छल अभिव्यक्ति ओजस्वी भावों में करते रहे हैं तथा इसी से उन्हें अपने युग का चारण एवं वैतालिक कहा गया है। वस्तुतः उदात्त एवं ओजपूर्ण भावों की अभिव्यक्ति कवि दिनकर के काव्य की अन्यतम विशेषता है।
इस दृष्टि से ‘अनल-किरीट’ कविता को देखा जाए तो इसमें कवि ने सुधाबीज बोने की, कष्टों का जहर पीकर भी दूसरों का हित करने की बात कहकर उदात्त चेतना का परिचय दिया है। मानव परहित तभी कर पाता है जब उसमें साहस, वीरता और संघर्षशीलता आदि गुण आदर्श रूप में हों। इसके बिना सफल और सार्थक जीवन सम्भव नहीं है। ‘अनल-किरीट’ कविता में कवि दिनकर ने ‘जागरूके की जय निश्चित है’ तथा ‘जिनके जादू पानी में आग लगाते हैं’ इत्यादि कथनों से जहाँ ओज-तेज एवं संघर्षशीलता की व्यंजना हुई है, वहीं सुन्दर उदात्त भावों का प्रकाशन भी हुआ है।
प्रश्न 2.
पठित कविता’ अनल-किरीट’ का केन्द्रीय भाव लिखते हुए कवि का कविता में निहित उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कविता का केन्द्रीय भाव-‘अनल-किरीट’ कविता में कवि दिनकर ने यह भाव व्यक्त किया है कि ओज, संकल्पनिष्ठा, दृढ़ता, साहस एवं संघर्षशीलता के बिना लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव नहीं है।’ अनल’ अर्थात् आग का ताज अथवा कठिनाइयों का ताज वही पहन सकता है, जिसमें आत्मिक बल हो, हृदय में लोकहित की भावना हो, अपनी उँगली पर खंजर की धार परखने का साहस हो और पानी में आग लगाने की क्षमता हो। कवि का स्पष्ट कथन है कि दीवानों की किश्ती ही उत्ताल तरंगों को पार कर पाती है और बाधाओं के आने पर उनकी चाल बढ़ती रहती है।
इस प्रकार प्रस्तुत कविता का मूल भाव यही है कि जीवन में संघर्षशील एवं जागरूक व्यक्ति ही सफलता पाता है और वही लोकहित का कार्य भी कर सकता है। कविता में निहित उद्देश्य-‘अनल-किरीट’ कविता में ओजस्वी भावों की अभिव्यक्ति हुई है। कवि का लक्ष्य लोकहित एवं सामाजिक जीवन के प्रति मानवीय चेतना रखने का सन्देश देना है। इस निमित्त कवि चाहता है कि समाज में संघर्षशील एवं साहसी व्यक्ति हों; वीरता, ओजस्विता, साहस और दृढ़-निश्चय के साथ जागरूकता गुण से मण्डित लोग हों। ऐसे लोग ही अपना जीवन सार्थक कर पाते हैं और समाज हित के लिए अनल का किरीट धारण कर सकते हैं।
प्रश्न 3.
‘अनल-किरीट’ कविता के आधार पर दिनकर के काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कवि दिनकर के काव्य में भारतीय संस्कृति, सामाजिक चेतना एवं राष्ट्रीय भावना पूरी ओजस्विता एवं स्पष्टता से प्रतिध्वनित हुई है। इसी कारण दिनकर को भारतीय संस्कृति का उद्घोषक और ओजस्वी गायक कहा जाता है। उन्होंने समय की आवाज के अनुरूप साहित्य रचा और राष्ट्र के सच्चे साहित्यकार की तरह प्रतिनिधित्व किया। उनके काव्य का मुख्य स्वर क्रान्ति, पौरुष, ओज और राष्ट्रीयता का है।
दिनकर की काव्यगत विशेषताएँ – दिनकर की काव्य-साधना की अनेक विशेषताएँ हैं। यहाँ उनका संक्षेप में उल्लेख किया जा रहा है –
- युगानुरूप विचार – दिनकर के काव्य में राष्ट्र एवं समाज की समस्याओं को लेकर सुन्दर प्रेरणादायी विचार व्यक्त हुए हैं।
- क्रान्ति और पौरुष का स्वर दिनकर ने देश की आजादी के साथ सामाजिक अन्याय, कायरता, आलस्य-अकर्मण्यता के प्रति प्रखर स्वर व्यक्त किया है।
- अतीत का गौरव-गान – दिनकर ने भारतीय संस्कृति एवं देश के स्वर्णिम अतीत का ओजस्वी वर्णन कर देशवासियों को सत्प्रेरणा दी है।
- कर्मठता का स्वर – दिनकर ने कर्मठता, दृढ़ता, संघर्षशीलता, उद्यमिता एवं श्रमनिष्ठा का प्रतिपादन कर युवा पीढ़ी को दायित्वबोध का सन्देश दिया है।
- अन्य – दिनकर ने राष्ट्रीय अखण्डता, सौन्दर्य भावना, प्रगतिशीलता आदि विविध भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता ‘अनल-किरीट’ का कला-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि दिनकर ने ‘अनल-किरीट’ कविता में उदात्त एवं ओजस्वी भावों की अभिव्यक्ति की है। इसका कला-सौन्दर्य अर्थात् कलापक्ष व शिल्प-सौन्दर्य भावानुरूप है। इसकी भाषा सरल और बोधगम्य होते हुए भी परिमार्जित है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें भावाभिव्यक्ति के अनुरूप सुन्दर शब्दावली प्रयुक्त हुई है। तत्सम, तद्भव एवं उर्दू शब्दों को प्रयोग सूक्ष्म से सूक्ष्म भावों को व्यक्त करने में सक्षम है। इसमें आवश्यकतानुसार लक्षणा एवं व्यंजना शब्द-शक्तियों का प्रयोग किया गया है। ‘अनल-किरीट’ कविता में ओज गुण प्रमुखता से है। इस कारण इसे वीर रस की भावमयी रचना कह सकते हैं।
इसमें मात्रिक छन्द हैं जिसमें तुकान्त-योजना अतीव आकर्षक है। दिनकर के काव्य में कथ्य को अधिक व्यंजनापूर्ण बनाने के लिए अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। इसमें अनुप्रास, रूपक, दृष्टान्त, उपमा एवं पर्यायोक्त अलंकार का प्रयोग किया गया है। इसमें मानवीकरण एवं प्रतीकात्मकता भी है। संक्षेप में कह सकते हैं कि कला-सौन्दर्य की दृष्टि से यह लघु-कविता श्रेष्ठ है। इसमें भावोज्ज्वलता के अनुरूप अभिव्यक्ति-पक्ष का पूरा ध्यान रखा गया है।
व्याख्यात्मक प्रश्न –
1. पड़ी समय में ………… जब छाले हैं।
2. अभय बैठ ……….. होने वाले।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्याएँ देखकर लिखिए।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि दिनकर की महत्त्वपूर्ण प्रबन्धात्मक रचना है –
(क) अनल-किरीट
(ख) रेणुका
(ग) कुरुक्षेत्र
(घ) किसान
उत्तर:
(ग) कुरुक्षेत्र
प्रश्न 2.
कवि दिनकर को किस काव्यकृति पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया?
(क) ‘कुरुक्षेत्र’ पर
(ख) ‘उर्वशी’ पर
(ग) ‘हुँकार’ पर
(घ) “रश्मिरथी’ पर
उत्तर:
(ख) ‘उर्वशी’ पर
प्रश्न 3.
‘अनल-किरीट’ कविता के अनुसार जीवन में सफलता पाने के लिए आवश्यक है –
(क) कठिन परिश्रम
(ख) संघर्षशील चेतना
(ग) साहस, वीरता एवं संघर्षशीलता
(घ) जागरूकता
उत्तर:
(ग) साहस, वीरता एवं संघर्षशीलता
प्रश्न 4.
ज्वालामुखियों पर मन्त्र जगाने वाले किन्हें बताया गया है?
(क) जादूगरों को
(ख) कुशल नाविकों को
(ग) धर्म-कर्म करने वालों को
(घ) निडर साहसियों को
उत्तर:
(घ) निडर साहसियों को
प्रश्न 5.
‘दाँतों तले उँगली धरे खड़ा’ इसका अर्थ है
(क) दाँतों में उँगली डाले हुए
(ख) आश्चर्यचकित
(ग) काम में डूबे हुए
(घ) दाँतों से काटे हुए।
उत्तर:
(ख) आश्चर्यचकित
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“कालकूट पहले पी लेना, सुधा-बीज बोने वाले।” पंक्ति का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
इसका भावार्थ यह है – दूसरों के कल्याण के लिए समाज-सुधार का कार्य करने वालों को कष्ट सहन करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
प्रश्न 2.
‘पड़ी समय से होड़’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
‘पड़ी समय से होड़’ से कवि का आशय है कि समय कम और करने के लिए काम अधिक है। सामाजिक परिवर्तन के इच्छुक लोगों में होड़ चल रही है।
प्रश्न 3.
‘जागरूक की जय निश्चित है’-पंक्ति का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर:
कवि कहता है कि धुन के मतवालों की आँखों में नींद नहीं होती है। पैरों में छाले पड़ जावें, तब लक्ष्य-प्राप्ति हेतु उनके पैरों की गति और बढ़ जाती
प्रश्न 4.
कवि दिनकर की ‘अनल-किरीट’ कविता किस कोटि की है?
उत्तर:
दिनकर की ‘अनल-किरीट’ कविता उनकी काव्य-यात्रा के प्रथम चरण की रचना है। यह उदात्त अनुभूतिमय एवं ओजपूर्ण कविता है।
प्रश्न 5.
”लेना अनल-किरीट भाल पर ओ आशिक होने वाले।” इसमें ‘आशिक होने वाले’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
इसमें कवि ने सामाजिक चेतना रखने के कारण मानवीय उदात्त भावना से संवलित व्यक्ति को ‘आशिक होने वाले’ कहा है।
प्रश्न 6.
”अपनी ही उँगली पर जो खंजर की जंग छुड़ाते हैं।” इस कथन से कवि ने किसकी ओर संकेत किया है?
उत्तर:
इस कथन से कवि ने साहसी, वीर, संघर्षशील और कष्टों की जरा भी परवाह न करके लक्ष्य की ओर बढ़ने वालों की ओर संकेत किया है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘अनल-किरीट’ कविता का निहितार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि दिनकर ने ‘अनल-किरीट’ कविता में यह भाव व्यक्त किया है। कि दूसरों के कल्याण के लिए कार्य करने वालों को कष्ट सहन करने को तैयार रहना होगा। ‘काँटों का ताज’ या ‘मुसीबतों का ताज’ आसानी से धारण करना सम्भव नहीं रहता है। ऐसे लोगों के सामने अनेक बाधाएँ आती हैं। अतः इन्हें उनसे नहीं घबराना चाहिए। वस्तुतः बाधाओं एवं कठिनाइयों में काम करने से उनका उत्साह और भी बढ़ जाता है। बड़े-बड़े साहसी व्यक्ति भी उनकी हिम्मत देखकर चकित रह जाते हैं। भाल पर अनल-किरीट रखने वाले सदैव धैर्य, साहस और संघर्ष से आगे बढ़ते हैं। ऐसे व्यक्ति ही अपने उद्देश्य में सफल होते हैं।
प्रश्न 2.
प्रेम और कल्याण के लिए संकल्पित व्यक्ति के मार्ग में आने वाली मुश्किलों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रेम और कल्याण के मार्ग में बाधाएँ आना स्वाभाविक है। ऐसे कार्यो। में लगे व्यक्तियों को निन्दा का जहर पीने को तैयार रहना चाहिए। उन्हें अपने मार्ग की बाधाओं को दूर करने में कष्ट उठाने पड़ते हैं। असावधानी और आलस्य से भी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा आती है। लोगों के तरह-तरह के विचार होते हैं, जो बुद्धि को चक्कर में डाल देने वाले हो सकते हैं। उनसे होकर अपना रास्ता स्वयं बनाना पड़ता है। ‘अनल-किरीट’ अपने सिर पर धारण करने वालों को मुफ्त में कुछ नहीं मिलता है; उन्हें विनम्रता, साहस, धैर्य एवं संघर्ष से ही सफलता मिलती है। अतः प्रेम और कल्याण के मार्ग पर चलने वालों को मुश्किलें ही मिलती हैं।
प्रश्न 3.
‘अनल-किरीट’ कविता में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए क्या सन्देश दिया गया है?
उत्तर:
‘अनल-किरीट’ कविता में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कई सुझाव दिये गये हैं। इसके लिए उस व्यक्ति को अपना पक्का इरादा, पक्की धुन रखनी चाहिए, साथ ही उसे अपनी निन्दा और लक्ष्य-प्राप्ति में आने वाली बाधाओं की परवाह नहीं करनी चाहिए। धुन के पक्के लोगों को अपनी निन्दा की चिन्ता नहीं करनी चाहिए, विष के घूट की तरह वह निन्दा पी लेनी चाहिए। उसे निरन्तर गतिशील और कर्मठ रहना चाहिए, आलस्य को त्यागकर संघर्षशील रहना चाहिए। उसे परेशानियों में भी आनन्द, उमंग और उत्साह का त्याग नहीं करना चाहिए। कवि ने सन्देश दिया है। कि जीवन को सार्थक एवं सफल बनाने का हर सम्भव प्रयास करना चाहिए।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
”दिनकर की कविता का मूल स्वर राष्ट्रीय और सांस्कृतिक है।” ‘अनल-किरीट’ कविता के आधार पर इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि दिनकर मैथिलीशरण गुप्त के बाद राष्ट्रकवि माने गये हैं। इनकी कविताओं में मूल रूप से राष्ट्रीय चेतना व्यक्त हुई है। इन्होंने भारतीय संस्कृति की गौरव-गरिमा को उजागर करने का प्रयास किया है। दिनकर किसी सम्प्रदाय, वाद, वर्ग या धर्म के पक्षपाती नहीं रहे। उन्होंने वे ही बातें कही हैं जो पूरे भारत राष्ट्र के लिए कल्याणकारी हैं। उनका दृष्टिकोण मानवतावादी है और मानवता के पुजारी का दृष्टिकोण कभी संकीर्ण नहीं हो सकता। भारतीय संस्कृति में लोकमंगल एवं परोपकार को सर्वश्रेष्ठ आदर्श माना गया है। इसके लिए उज्ज्वल भावों का प्रकाशन हुआ है। दिनकरजी ने इस विशेषता का अप्रतिम वर्णन किया है। ‘अनल-किरीट’ कविता में उन्होंने कालकूट पीकर भी सुधा-बीज बोने की बात कही है। इससे ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई’ इस मान्यता के अनुरूप ही दूसरों की भलाई करने की भावना व्यक्त हुई है।
भारतीय संस्कृति में शिवत्व की साधना प्रमुखता से की जाती है। शिवजी ऐसा देवता हुए जिन्होंने स्वयं विषपान किया, परन्तु वे दूसरों का सदा कल्याण ही करते रहे। ऐसे विषपायी लोग अपनी नहीं, दूसरों के हित की ही सोचा करते हैं। कवि दिनकर ने ‘अनल-किरीट’ कविता में यह प्रतिपादित किया है कि लोक-कल्याण के लक्ष्य को वही पा सकता है जो साहस, दृढ़ता और संघर्ष के साथ सफल जीवन जीने की ललक रखता है। इस तरह स्पष्ट हो जाता है कि दिनकर की कविता का मूल स्वर राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक है।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
कवि दिनकर का साहित्यिक परिचय संक्षेप में दीजिए।
अथवा
दिनकर का संक्षिप्त परिचय एवं प्रमुख कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संक्षिप्त परिचय – कवि दिनकर का आविर्भाव छायावाद में हुआ, परन्तु इन पर राष्ट्रीयता की छाप अधिक रही। ये शुष्क नैतिकतावाद एवं नीरस कविता के पक्षपाती नहीं थे। ‘रेणुका’ इनकी प्रथम रचना है, जिसमें प्रणयानुभूतियों का प्रवाह मिलता है, परन्तु ‘हुँकार’ में कवि की राष्ट्रीयता की भावना भीषण गर्जना के साथ उभरी। दिनकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर पहले शिक्षक, फिर बिहार सरकार के रजिस्ट्रार, प्रचार विभाग के उपनिदेशक तथा कॉलेज के प्राध्यापक रहे। फिर नौकरी त्यागकर राज्यसभा के सदस्य बने तत्पश्चात् भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति और अन्त में भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने। इस लम्बी यात्रा में साहित्य-सृजन का कर्म भी अबाध गति से करते रहे और ओजस्वी राष्ट्रकवि कहलाये।
कृतियों का उल्लेख – सामाजिक-राष्ट्रीय चेतना के कवि दिनकर बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न थे। उन्होंने गद्य व पद्य दोनों में पर्याप्त साहित्य रचा। उनकी प्रमुख काव्य कृतियों के नाम इस प्रकार हैं- ‘रेणुका’, ‘हुँकार’, ‘रसवन्ती’, ‘द्वन्द्वगीत’, ‘सामधेनी’, ‘बापू’, ‘इतिहास के आँसू’, ‘धूप और धुआँ’, ‘दिल्ली’, ‘नीम के पत्ते’, ‘नील कुसुम’, ‘परशुराम की प्रतीज्ञा’ आदि कविता-संग्रह। ‘कुरुक्षेत्र’ एवं ‘रश्मिरथी’ प्रबन्ध काव्य, ‘उर्वशी’ प्रबन्धात्मक गीतनाट्य तथा संस्कृति के चार अध्याय’ इनकी श्रेष्ठ गद्य-रचना है। इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार एवं ‘पद्मभूषण’ उपाधि का सम्मान प्राप्त हुआ।
रामधारीसिंह ‘दिनकर’ कवि-परिचय-
राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्यधारा के ओजस्वी कवि रामधारीसिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव में सन् 1908 ई. में हुआ। प्रारम्भ में ये छायावादी रहे, परन्तु राष्ट्रीयता की छाप अधिक रही। फिर सामाजिक विषमता एवं शोषण को लेकर प्रगतिवादी विचारधारा से प्रभावित रहे। अपनी कविताओं में सामाजिक चेतना की मुखरता के कारण इन्हें ‘युग चारण’ भी कहा गया। पटना विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण कर ये सर्वप्रथम शिक्षक बने, फिर विभिन्न विभागों में कार्य करते हुए रजिस्ट्रार, हिन्दी विभागाध्यक्ष, कुलपति एवं सांसद के पद को सुशोभित किया। ये गृह मंत्रालय में हिन्दी सलाहकार भी रहे। दिनकरजी ने काव्य, निबन्ध, इतिहास और सांस्कृतिक विषयों पर अपनी लेखनी चलायी। उत्कृष्ट साहित्य-सेवा करने से इन्हें पद्मविभूषण, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार आदि से सम्मानित किया गया। इनका निधन सन् 1973 ई. में हुआ।
पाठ-परिचय-
प्रस्तुत पाठ में दिनकर की ‘अनल किरीट’ शीर्षक कविता संकलित है जो उनकी काव्ययात्रा के प्रथम चरण की कविता है। इस कविता में दिनकर ने ओजपूर्ण भाषा में साहस, संघर्षशीलता और वीरता जैसे गुणों का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए स्पष्ट किया है कि ऐसे गुणों से युक्त व्यक्ति ही जीवन में कुछ कर पाते हैं। संघर्षशील व्यक्तियों को बाधाएँ नहीं रोक पाती हैं, उन्हें अवश्य सफलता मिलती है। यह कविता सभी के लिए अतीव प्रेरणादायी है।
सप्रसंग व्याख्याएँ
अनल किरीट
(1)
लेना अनल-किरीट भाल पर ओ आशिक होने वाले।
कालकूट पहले पी लेना, सुधा बीज बोने वाले।
धरकर चरण विजित श्रृंगों पर झण्डा वही उड़ाते हैं,
अपनी ही उँगली पर जो खंजर की जंग छुड़ाते हैं।
कठिन शब्दार्थ-अनल = आग। किरीट = मुकुट। भाल = ललाट। आशिक = प्रेमी, आसक्त। कालकूट = तीखा जहर। सुधा = अमृत। विजित = जीते गये। श्रृंगों = पर्वत शिखरों। खंजर = कटार। जंग = लोहे पर दाग-धब्बा।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण रामधारीसिंह दिनकर द्वारा रचित ‘अनल-किरीट’ शीर्षक कविता से उद्धत है। इसमें बताया गया है कि जीवन में सफलता पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, शौर्य-प्रदर्शन करना पड़ता है।
व्याख्या-कवि कहता है कि हे मानवता से प्रेम करने वालो, तुम अपने मस्तक पर आग का मुकुट धारण कर लो, अर्थात् कठिन से कठिन परीक्षा के लिए तैयार रहो। यदि तुम अमृत के बीज बोना चाहते हो, तो तुम्हें पहले तीखा विष पीना पड़ेगा। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति देश के हितार्थ कोई महान् कार्य करना चाहता है, तो उसे कष्ट सहने पड़ेंगे, लोगों से मिलने वाली तीखे जहर जैसी निन्दा सहनी पड़ेगी। यदि कोई पर्वत की चोटियों पर झण्डा फहराना चाहता है, तो उसे अपनी तलवार की जंग अपनी ही उंगलियों पर छुड़ाने का साहस दिखाना पड़ेगा। आशय यह है कि जीवन में सफलता पाने से पहले संघर्ष करना पड़ता है व कष्ट सहने पड़ते हैं।
विशेष-
(1) जीवन में सफलता पाने के लिए साहस, वीरता एवं संघर्षशीलता की जरूरत होती है। कवि ने इसे अपनाने का सन्देश दिया है।
(2) सार्थक एवं सफल जीवन जीने का ओजस्वी स्वर व्यक्त हुआ है।
(2) पड़ी समय से होड़, खींच मत तलवों से काँटे रुककर,
फेंक-फूक चलती न जवानी चोटों से बचकर, झुककर।
नींद कहाँ उनकी आँखों में जो धुन के मतवाले हैं?
गति की तृषा और बढ़ती, पड़ते पग में जब छाले हैं।
जागरूक की जय निश्चित है, हार चुके सोने वाले,
लेना अनल-किरीट भाल पर ओ आशिक होने वाले।
कठिन शब्दार्थ-धुन = लगन, इरादे। तृष्णा = प्यास। दिलेर = वीर-साहसी।
प्रसंग-यह अवतरण रामधारीसिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘अनल-किरीट’ कविता से उद्धृत है। इसमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति में निरन्तर प्रयासरत रहने वालों का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-कवि वर्णन करता है कि जब निरन्तर आगे बढ़ने की होड़ लग जाती है तथा जब जरा भी रुकने का मौका नहीं मिलता है, तब पैरों में चुभने वाले काँटों को निकालने की फुर्सत नहीं रहती है। जवानी में शरीर में शक्ति होती है, जिससे व्यक्ति चोटों की परवाह नहीं करता है। इस तरह जो व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की धुन रखते हैं, जो सफलता अर्जित करने के लिए अतीव उत्साही बने रहते हैं, उन्हें तब तक नींद कहाँ आती है? वे तो निरन्तर चलते रहने पर भी पैरों में छाले पड़ने पर रुकते नहीं हैं, अपितु अपनी गति को और तेज कर देते हैं। उनकी आगे बढ़ने की प्यास तो बढ़ती ही जाती है। जो जागरूक रहते हैं, वे अपना लक्ष्य पाने में निश्चित ही सफल रहते हैं, उन्हें विजय मिलती है, परन्तु जो सोते रहते हैं, परिश्रम न कर विश्राम करते हैं, वे जीवन-संघर्ष में हार जाते हैं। इसलिए कवि कहता है कि जीवन से प्रेम करने वाले लोगों को कठिनाइयाँ नहीं रोक पाती हैं, वे तो कठिन-से-कठिन लक्ष्य को सहर्ष स्वीकार कर पूरे साहस से आगे बढ़ते हैं। इसलिए सभी को लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कठिनाइयों को झेलने में तत्पर रहना चाहिए।
विशेष-
(1) लक्ष्य प्राप्त करने के लिए केवल इच्छा ही नहीं, कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति एवं क्षमता भी होनी चाहिए।
(2) संघर्षशील बनने तथा धुन का पक्का होने का सन्देश व्यक्त हुआ है।
(3) जिन्हें देखकर डोल गयी हिम्मत दिलेर मरदानों की.
उन मौजों पर चली जा रही किश्ती कुछ दीवानों की।
बेफिक्री का समाँ कि तूफाँ में भी एक तराना है,
दाँतों उँगली धरे खड़ा अचरज से भरा जमाना है।
अभय बैठ ज्वालामुखियों पर अपना मंत्र जगाते हैं,
ये हैं वे, जिनके जादू पानी में आग लगाते हैं।
रूह जरा पहचान रखें इनकी जादू-टोने वाले,
लेना अनल-किरीट भाल पर आशिक होने वाले।
कठिन शब्दार्थ-किश्ती = नाव। दीवानों = पागलों, धुन के पक्के लोगों। मौजों = लहरों। बेफिक्री = निश्चिन्तता। समाँ = दृश्य। तूफाँ = तूफान। तराना = गीत। अचरज = आश्चर्य। अभय = निर्भय। रूह = आत्मा। जरा = बुढ़ापा।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण रामधारीसिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘अनल-किरीट’ कविता से लिया गया है। कवि बताता है कि धुन के पक्के लोगों के कार्य सभी को आश्चर्यचकित कर देते हैं। उनकी संघर्षशीलता सदैव सफल रहती है।
व्याख्या-कवि कहता है कि साहसी लोगों की संघर्ष-क्षमता और वीरता को देखकर बड़ी हिम्मत वालों की तथा धुन के पक्के लोगों की हिम्मत डोल जाती है। ऐसे साहसी लोगों की जीवन रूपी नौका अपने प्रयासों से आगे बढ़ती है। वे किसी की परवाह नहीं करते हैं और मस्ती से आगे बढ़ते जाते हैं। इस तरह संघर्षशील लोग निश्चिन्त भाव से आगे बढ़ते रहते हैं, वे तो तूफानों और कठिनाइयों में भी सफलता के गीत गाते रहते हैं। उन्हें तो कठिनाइयाँ खेल जैसी प्रतीत होती हैं। दुनियाँ उनके कार्यों को देखकर, उनके व्यवहार को देखकर दाँतों तले उँगली दबा लेती है। वे तो मानो मृत्यु ला देने वाली ज्वालामुखियों पर बैठकर अपने मन्त्र का जाप किया करते हैं। आशय यह है कि वे कठिनाइयों से जरा भी भयभीत नहीं होते हैं। वे पानी में भी आग लगा देने की, कायरों एवं अकर्मण्यों में भी जोश फेंक देने की क्षमता रखते हैं। वे तो जादू-टोने में विश्वास न कर परिश्रम करने में विश्वास रखते हैं, उनकी आत्मा तो साहस एवं संघर्ष में रहती है। कवि अन्त में कहता है कि लक्ष्य के प्रति प्रेम रखने वालों, जीवन में सफलता की लालसा रखने वालों, सिर पर आग का मुकुट धारण करना सीखो, कठिनाइयों को सहर्ष झेलने की हिम्मत रखो।
विशेष-
(1) कठिनाइयों से डरने वाले जीवन में लक्ष्य प्राप्ति में सफल नहीं रहते हैं। कवि ने ऐसे लोगों को साहसी, वीर एवं संघर्षशील बनने की प्रेरणा दी
(2) इससे कवि की देश-प्रेम एवं देश-सेवा की भावना भी व्यक्त हुई है। भाषा लाक्षणिक, सांकेतिक तथा ओजस्वी भावों के अनुकूल है।