Rajasthan Board RBSE Class 11 History Chapter 4 विश्व में राष्ट्रवाद का विकास
RBSE Class 11 History Chapter 4 पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 History Chapter 4 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के मूल निवासियों की प्राचीन सभ्यताएँ कौन-कौन सी थीं?
उत्तर:
1. एजटेक सभ्यता
2. माया सभ्यता।
प्रश्न 2.
अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस किस दिनांक को मनाया जाता है?
उत्तर:
अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस 4 जुलाई को मनाया जाता है।
प्रश्न 3.
रूसो द्वारा लिखित पुस्तक़ का नाम बताइए।
उत्तर:
सामाजिक संविदा (The Social Contract)।
प्रश्न 4.
एस्टेट्स जनरल से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
फ्रांस में राजाओं के शासनकाल में प्रतिनिधि सभा को एस्टेट्स जनरल के नाम से जाना जाता था। इसमें कुलीन वर्ग, पादरी वर्ग, अभिजात वर्ग एवं सामान्य नागरिकों का प्रतिनिधित्व था।
प्रश्न 5.
पालैमा क्या थी?
उत्तर:
फ्रांस में राजाओं के शासनकाल में कानूनों को रजिस्टर्ड करने वाली संस्था जो उच्च न्यायालय के समकक्ष थी, उसे पालैमा कहा जाता था।
प्रश्न 6.
‘टेनिस कोर्ट की शपथ’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
20 जून 1789 ई. को फ्रांस के जनसाधारण वर्ग के सदस्यों ने देश का नया संविधान बनने तक टेनिस मैदान में डटे रहने की शपथ ली। यह शपथ ही ‘टेनिस कोर्ट की शपथ’ के नाम से जानी जाती है।
प्रश्न 7.
कोंकोर्दा की संधि किस-किस के मध्य व कब हुई थी?
उत्तर:
कोंकोर्दा की संधि 1801 ई. में नेपोलियन बोनसपर्ट एवं पोप के मध्य हुई थी।
प्रश्न 8.
‘आर्डर इन कॉन्सिल’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इंग्लैण्ड द्वारा जारी एक प्रकार का आदेश जिसके तहत नेपोलियन के पक्षधर देशों की नाकेबंदी, जहाज पकड़ने एवं उन्हें नष्ट करने का आदेश दिया गया था।
प्रश्न 9.
भारतीय विद्वानों की दृष्टि से आदर्श राष्ट्र के आवश्यक तत्व बताइए।
उत्तर:
1. जन अर्थात व्यक्तियों का समूह।
2. संस्कृति।
3. भू-भाग।
4. सम्प्रभु शक्ति।
प्रश्न 10.
जर्मनी के राजनैतिक एकीकरण में चरणबद्ध प्रमुख संधियाँ कौन-कौन सी थीं?
उत्तर:
- गेस्टाइन संधि (14 अगस्त 1865 ई.)।
- प्राग की संधि (23 अगस्त 1866 ई.)।
- फ्रैंकफर्ट की संधि (26 फरवरी 1871 ई.)।
प्रश्न 11.
युवा इटली का निर्माण कब व किसने किया था?
उत्तर:
युवा इटली का निर्माण 1831 ई. में मेजिनी ने किया था।
प्रश्न 12.
रक्त और तलवार की नीति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बिस्मार्क द्वारा अपनाई गई एक नीति जिसके तहत वह प्रशा के नेतृत्व में सैन्य शक्ति के बल पर जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था।
RBSE Class 11 History Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महाद्वीपीय व्यवस्था से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
महाद्वीपीय व्यवस्था से तात्पर्य–फ्रांस के शासक नेपोलियन बोनापार्ट ने इंग्लैण्ड को आर्थिक क्षेत्र में पराजित करने की एक नवीन योजना बनाई जिसे महाद्वीपीय व्यवस्था कहते हैं। नेपोलियन इस व्यवस्था द्वारा इंग्लैण्ड को व्यापार के क्षेत्र में हानि पहुँचाना चाहता था। उसका विश्वास था कि यदि इंग्लैण्ड का व्यापार बंद हो जाएगा तो वह संधि करने को विवश होगा।
इस योजना की सफलता हेतु उसने योजनाबद्ध तरीके से एवं कठोरतापूर्वक कार्य किया। नेपोलियन की यह भी आशा थी कि इंग्लैण्ड पर व्यापारिक प्रतिबंधों के बाद इंग्लैण्ड के स्थान पर यूरोप में फ्रांस का व्यापार व उद्योग के केन्द्र के रूप में विकास सम्भव हो सकेगा। लेकिन महाद्वीपीय व्यवस्था फ्रांस के लिए घातक सिद्ध हुई।
प्रश्न 2.
जर्मनी के सजनैतिक एकीकरण में जॉलवरीन नामक संघ किस प्रकार सह्ययक सिद्ध हुआ?
उत्तर:
जर्मनी के राजनैतिक एकीकरण में जॉलवरीन नामक संघ बहुत अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ। 1818 ई. में प्रशा ने भवार्जवर्ग-सोंदर शोसन नामक छोटे राज्यों के साथ सीमा शुल्क संघ नामक संधि की जिसे जॉलवरीन नाम दिया गया। इस संधि के तहत इन राज्यों के मध्ये माल की स्वतंत्र आवाजाही प्रारम्भ हो गयी। साथ ही साथ इनके मध्य चुंगी भी समाप्त कर दी गयी, जिससे व्यापार में बहुत अधिक प्रगति हुई।
प्रारम्भ में तो अन्य जर्मन राज्यों ने इस आर्थिक सहयोग में रुचि नहीं दिखाई लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने इस आर्थिक सहयोग का महत्व समझा और आपसी मतभेदों को भुलाकर 1834 ई. में लगभग सभी राज्य इस संघ से जुड़ गए। इस प्रकार इसने क्षेत्रीय भावना को सामाप्त कर साम्राज्यवादी नेतृत्व को मजबूती प्रदान की।
प्रश्न 3.
धर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धर्म की अवधारणा:
धर्म शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की धृ धातु से हुई है। जिसका अर्थ है धारण करना। इसके अन्तर्गत किसी व्यक्ति द्वारा धारण करने योग्य जीवन मूल्य, जिसमें क्षमा, दया, सत्य, विद्या, चोरी न करना (अस्तेय), आवश्यकता से अधिक वस्तुएँ संग्रह नहीं करना (अपरिग्रह), क्रोध न करना आदि सम्मिलित हैं।
प्रश्न 4.
”मैं ही क्रांति हूँ” “मैंने क्रांति का अंत किया है।’ नेपोलियन द्वारा कहे गए ये कथन कितने सार्थक एवं सत्य हैं?
उत्तर:
फ्रांस में नेपोलियन का उदय उन परिस्थितियों की देन था जो फ्रांस के क्रांतिकाल में उदित हुई। नेपोलियन ने फ्रांस की क्रांति में जन्मी भावना के अनुसार कार्य करते हुए शिक्षा सम्बन्धी अनेक सुधार किये। शिक्षा को प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्चशिक्षा में विभाजित किया। धर्म को शिक्षा से अलग किया। चर्च व पादरियों को राज्य के अधीन कर दिया। प्रतिभा को सम्मान देकर नौकरियों में समानता के सिद्धांत के आधार पर सभी को समान अवसर प्रदान किया। कानून की समानता का सिद्धांत लागू किया।
नेपोलियन ने विधि संहिता का निर्माण कर उसमें श्रेष्ठ कानूनों को सम्मिलित किया। लेकिन नेपोलियन ने साम्राज्यवादी नीति अपनाकर जनता की सम्प्रभुता व प्रजातांत्रिक सिद्धांतों को त्याग दिया। उसने फ्रांस की जनता के राजनीतिक अधिकारों को छीन लिया। जनता की मेहनत की कमाई को अपने वैभवे पर खर्च किया। अपने समर्थकों को समान अधिकार प्रदान किया। इन समस्त बातों के आधार पर कहा जा सकता है कि नेपोलियन द्वारा कहा गया यह कथन कि ‘मैं ही क्रांति हूँ। मैंने क्रान्ति का अंत किया है’ पूर्णतः सत्य व सार्थक नहीं है।
प्रश्न 5.
फ्रांस की क्रांति के समय गठित प्रमुख गणतंत्रवादी राजनैतिक दलों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस की क्रान्ति के समय गठित प्रमुख गणतंत्रवादी राजनैतिक दल निम्नलिखित थे –
- जिरोंदिस्त दल
- जैकोबिन दल
1. जिरोंदिस्त दल:
इस दल के अधिकांश नेता फ्रांस के जिरोंद प्रांत के थे। इस दल के नेता आदर्शवादी, गणतंत्रवादी एवं उत्साही थे, लेकिन अनुभवहीन व अव्यवहारिक लोग थे। 1791 ई. में यह दल व्यवस्थापिका में बहुमत प्राप्त होने के बावजूद जैकोबिन दल से हार गया था। इस दल के प्रमुख नेता ब्रिसो व मादाम रोला थे।
2. जैकोबिन दल:
इस दल के सदस्य उग्र गणतंत्रवादी व अधिक व्यावहारिक थे। इस दल ने गणतंत्र की सुरक्षा हेतु आतंक का राज्य स्थापित किया ‘थत इस दल का प्रमुख केन्द्र पेरिस था। यह दल फ्रांस में सदगुणों का राजतंत्र स्थापित करना चाहता था। इस दल के प्रमुख नेता दान्ते, राब्सपियर, हैबर, मारा आदि थे।
प्रश्न 6.
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम विश्व को प्रभावित करने वाली 18 वीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। 4 जुलाई 1776 ई. को अमेरिका को स्वतंत्र घोषित किया गया। अमेरिका के स्वतत्रता संग्राम के स्वरूप पर विचार करने पर यह तथ्य सामने आता है कि यह संग्राम किसी सामन्ती व्यवस्था, निर्धनता एवं आर्थिक शोषण के विरुद्ध संघर्ष नहीं था, बल्कि यह संघर्ष मानव की स्वाभाविक स्वतंत्रता जैसे प्राकृतिक अधिकार के लिए लड़ा गया था।
इंग्लैण्ड की शासन नीति को अपनी स्वतंत्रता पर कुठाराघात मानकर अमेरिका के लोग संगठित हुए तथा संघर्ष कर सफलता प्राप्त की। स्वतंत्रता की उद्घोषणा के पीछे आर्थिक एवं व्यापारिक कारण भी निहित थे। इस संघर्ष में व्यापारी व मध्यम वर्ग ने भी भाग लिया था। कार्ल एल. बेकर के अनुसार यह क्रान्ति उपनिवेशों एवं ब्रिटेन के मध्य आर्थिक हितों का संघर्ष था।
प्रश्न 7.
अमेरिकी मूल निवासियों की प्रमुख सभ्यता एजटेक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एजटेक मेक्सिको का एक प्रमुख समुदाय था। बारहवीं शताब्दी में एजटेक लोग उत्तर से आकर मेक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में बस गए थे। एजटेक समाज श्रेणीबद्ध था। अभिजात वर्ग में उच्च कुलोत्पन्न, पुरोहित आदि लोग सम्मिलित थे। अभिजात लोग अपने में से एक सर्वोच्च नेता चुनते थे जो आजीवन शासक बना रहता था। योद्धा, पुरोहित एवं अभिजात वर्गों को सबसे अधिक सम्मान दिया जाता था। इस समुदाय का प्रमुख देवता ‘मेक्सिली’ था। इसी के नाम पर मेक्सिको नाम पड़ा।
एजटेक लोगों द्वारा निर्मित राजमहल एवं पिरामिड बड़े सुंदर थे। इनमें सोने-चाँदी का प्रयोग होता था। ये लोग अपने बच्चों को स्कूलों में भेजते थे। अभिजात वर्ग के बच्चे सेना अधिकारी और धार्मिक नेता बनने के लिए प्रशिक्षण लेते थे। इस सभ्यता में राजा सर्वोच्च सत्ता का प्रमुख होता था। देवता के रूप में सूर्य की भी पूजा की जाती थी। यह समुदाय अपनी समस्त भूमि को सामूहिक स्वामित्व के सिद्धान्त के तहत मानता था।
प्रश्न 8.
यूरोपवासियों के अमेरिका पहुँचने से, पहले अमेरिकी मूल निवासियों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
यूरोपवासियों के अमेरिका पहुँचने से वहाँ के मूल निवासियों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। अमेरिका के मूल निवासियों का सम्पर्क जैसे ही यूरोपवासियों से हुआ वह उनके लिए नुकसानदेह साबित हुआ। यूरोपवासियों ने न केवल उनको मूल निवास स्थान से हटा दिया बल्कि उनकी संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, धार्मिक सोच आदि को समाप्त कर दिया। यूरोपवासी अपने साथ विभिन्न प्रकार की बीमारियों जैसे चेचक, इन्फ्लूएंजा, ब्यूबोनिक, प्लेग आदि भी लेकर आए जिससे यहाँ के निवासी संक्रमित हो गए।
उनकी जनसंख्या में तेजी से कमी आने लगी। युद्ध, हिंसा, शोषण, हत्या, विस्थापन, विघटन व नरसंहार आदि ने यहाँ के मूल निवासियों को अल्पसंख्यक बना दिया। मूल निवासियों को जबरदस्ती एक छोटे से हिस्से में रहने को मजबूर किया गया। यूरोपीय लोगों ने मूल निवासियों को गोरी बस्तियों से दूर कर दिया। इस प्रकार यूरोपवासियों द्वारा किए गए शारीरिक व मानसिक अत्याचारों से अमेरिकी मूल निवासी विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गए।
प्रश्न 9.
नेपोलियन को दूसरा ‘जस्टीवियन’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट ने सम्पूर्ण यूरोप पर फ्रांस का एकछत्र प्रभाव स्थापित कर यूरोप के मानचित्र को ही बदल दिया था। उसने फ्रांस में अनेक महत्वपूर्ण सुधार किए। उसने एक विधि संहिता का निर्माण करवाया। उसने समस्त असंगत व असंख्य कानूनों को समाप्त कर उन्हें फ्रांस की व्यवस्था के अनुकूल बनाया। इन कानूनों को बनाते समय समानता, धर्म, सहिष्णुता, नैतिकता, अनुशासन, देशभक्ति, संयुक्त परिवार प्रथा एवं सम्पत्ति का व्यक्तिगत अधिकार आदि को महत्व प्रदान किया। इसी संहिता में मानव अधिकारों की घोषणा की गई।
सभी को कानून के समक्ष समान स्वीकार किया गया। इस संहिता में किसी भी प्रकार का सामाजिक, राजनीतिक अथवा धार्मिक पक्षपात नहीं था। सामान्य बौद्धिक ज्ञान और अनुभव के आधार पर निर्मित यह संहिता नेपोलियन की महान देन मानी जाती है। जस्टीवियन ने भी इसी प्रकार से सुधार किए थे। इस कारण नेपोलियन को दूसरा जस्टीवियन कहा जाता है।
प्रश्न 10.
इटली के एकीकरण में सहायक प्रमुख संगठनों का वर्णन कीजिए?
उत्तर:
इटली के एकीकरण में सहायक प्रमुख संगठन निम्न थे –
- कार्बोनरी संगठन
- युवा इटली संगठन
1. कार्बोनरी संगठन:
इटली में अनेक स्थानों पर गुप्त संगठन स्थापित किये गये। इन संगठनों में कार्बोनरी प्रमुख संगठन था। इसकी स्थापना 1810 ई. में नेपल्स में हुई थी। इस संगठन के दो प्रमुख उद्देश्य थे –
- विदेशियों को इटली से बाहर निकालना।
- इटली में वैधानिक स्वतंत्रता की स्थापना करना।
2. युवा इटली संगठन:
1831 ई. में फ्रांस के मार्सेल्स नगर में मेजिनी ने युवा इटली नामक संगठन की स्थापना की। उसने इटली के नवयुवकों को संगठन को सदस्य बनाया। इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य थे –
- ऑस्ट्रिया को इटली से बाहर निकालना।
- इटली को एक संयुक्त राष्ट्र के रूप में एकीकृत करना।
- इटली में गणतंत्र की स्थापना करना।
- इटली को स्वतंत्रता संग्राम इटलीवासियों द्वारा ही लड़ा जाए।
प्रश्न 11.
‘लाल कुर्ती दल’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘लाल कुर्ती दल’ इटली के प्रमुख गणतंत्रवादी नेता गैरीबाल्डी द्वारा स्थापित देशभक्तों का एक संगठन था। इसी संगठन के सैनिकों के बल पर गैरीबाल्डी ने सिसली में प्रवेश कर नेपल्स की सेना को परास्त किया था। गैरीबाल्डी को जब देशद्रोह के आरोप में मृत्युदण्ड की सजा दी गई तो वह कैद से भागकर दक्षिण अमेरिका चला गया। इस दौरान वह अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लेता रहा। यहीं पर उसने ‘लाल कुर्ती दल’ का संगठन किया। इसके सदस्य लाल कमीज पहनते थे। इसे दल ने इटली के राजनीतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
प्रश्न 12.
किन-किन कारणों से प्रेरित होकर अमेरिकी उपनिवेशवादी लोग मातृदेश इंग्लैण्ड के विरुद्ध संघर्ष हेतु एक हुए? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अमेरिकी उपनिवेशवादी लोग मातृदेश इंग्लैण्ड के विरुद्ध संघर्ष को लेकर निम्नलिखित कारणों से एक हुए –
- इंग्लैण्ड के प्रति प्रेम व सद्भाक्ना की कमी।
- सैद्धांतिक मतभेद।
- सम्राट जार्ज तृतीय की गलत आर्थिक नीतियाँ।
- गवर्नर व स्थानीय विधान परिषद् में तनाव।
- इंग्लैण्ड के वाणिज्यवादी कानून।
- बौद्धिक चेतना का प्रभाव।
- बोस्टन हत्याकांड।
- इंग्लैण्ड, फ्रांस के मध्य लड़ा गया सप्तवर्षीय युद्ध।
- लार्ड नार्थकुंड के दमनात्मक कानून।
- अमेरिकावासियों के साथ हीनता का व्यवहार।
RBSE Class 11 History Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
इटली के एकीकरण में कावूर के योगदान को विस्तारपूर्वक समझाइए?
उत्तर:
इटली के एकीकरण में कावूर का योगदान:
इटली के एकीकरण में कावूर के योगदान को समझने के लिए हमें कावूर के उद्देश्य एवं कार्यों सहित सम्बद्ध विभिन्न घटनाओं को समझना होगा –
कावूर के उद्देश्य:
कावूर के राजनीतिक उद्देश्य निम्नलिखित थे –
- आस्ट्रिया को इटली से बाहर निकालना।
- इटली का एकीकरण सानिया व पीडमांट के नेतृत्व में करना।
इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कॉवूर ने निम्नलिखित कार्य किए –
- सानिया का औद्योगिक विकास किया।
- सेना का पुनर्गठन कर उसे आधुनिक शस्त्रों से सुसज्जित किया।
- इटली की समस्या को अन्तर्राष्ट्रीय बनाया ताकि अन्य यूरोपिय देशों का भी उसे सहयोग मिल सके।
क्रीमिया का युद्ध:
कावूर ने 1854 ई. में हुए क्रीमिया के युद्ध में रूस के विरुद्ध इंग्लैण्ड और फ्रांस की सेना को 18000 सैनिकों की सहायता प्रदान कर उनकी सहानुभूति व मित्रता प्राप्त कर ली थी।
पेरिस शांति सम्मेलन:
1856 ई. में क्रीमिया युद्ध में रूस के समर्थन के पश्चात् पेरिस शांति सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में कावूर ने बड़े ही प्रभावशाली ढंग से इटली के एकीकरण की समस्या तथा आस्ट्रिया की इटली के प्रति नीति को यूरोपियन राष्ट्रों के सम्मुख रखा। इंग्लैण्ड के विदेश मंत्री ने कावूर की माँग का जोरदार शब्दों में समर्थन किया। इस प्रकार कावूर ब्रिटेन और फ्रांस का नैतिक समर्थन प्राप्त किरने में सफल रहा।
नेपोलियन तृतीय से एलोम्बियर्स समझौता:
फ्रांस का नेपोलियन तृतीय प्रारम्भ से ही इटली के राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थक था। अत: कावूर ने 21 जुलाई 1858 ई. को सार्डिनिया के निकट प्लोम्बियर्स नामक स्थान पर नेपोलियन तृतीय के साथ एक गुप्त समझौता किया। इस समझौते की प्रमुख शर्तों के तहत नेपोलियन ने वचन दिया था कि सानिया व आस्ट्रिया के बीच युद्ध होने पर फ्रांस द्वारा सानिया को सैनिक सहायता दी जाएगी।
ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध:
प्लोम्बियर्स से लौटते ही कावूर ने युद्ध की तैयारी प्रारम्भ कर दी। वह ऐसे अवसर खोजने लगा जिससे आस्ट्रिया युद्ध करने के लिए विवश हो जाए। कावूर ने आस्ट्रिया के माल पर चुंगी बढ़ा दी तथा आस्ट्रिया के मस्स व कर्रारा प्रान्तों में विद्रोह करवा दिया। भाषणों व समाचार पत्रों के माध्यम से आस्ट्रिया की आलोचना की। इन समस्त गतिविधियों के फलस्वरूप युद्ध अवश्यंभावी हो गया। 29 अप्रैल 1859 ई. को ऑस्ट्रिया ने सानिया पर हमला कर दिया।
युद्ध में सानिया की विजय हुई। कावूर विलाफ्रेंका की विरामं संधि (11 जुलाई 1859) से अप्रसन्न था। उसने फ्रांस को नीस और सेवाय प्रदेश देने का वायदा कर अपनी ओर मिला लिया। 6 जून 1861 ई. को कावूर की मृत्यु हो गई। दुर्भाग्यवश वह सम्पूर्ण इटली को नहीं देख सका। यद्यपि कावूर ने इटली के एकीकरण में अभूतपूर्व योगदान दिया था।
प्रश्न 2.
राष्ट्र के सम्बन्ध में भारत की अवधारणा यूरोपीय अवधारणा से किस प्रकार व किन-किन बिन्दुओं पर भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्र शब्द का अर्थ:
राष्ट्र जातीय एकता के सूत्र में बँधी हुई वह जनता है जो किसी अखण्ड भौतिक प्रदेश में निवास करती है। इनकी एक सामान्य भाषा और साहित्य, सामान्य परम्परा और इतिहास, सामान्य रीति-रिवाज तथा उचित और अनुचित की सामान्य समझ होती है।
राष्ट्र के सम्बन्ध में भारत की अवधारणा:
राष्ट्र के सम्बन्ध में भारतीय अवधारणा के अन्तर्गत एक आदर्श राष्ट्र के चार आवश्यक तत्व माने गए हैं –
- जन अर्थात् व्यक्तियों का समूह।
- भू-भाग।
- सम्प्रभु शक्ति।
- संस्कृति।
1. जन:
जन अर्थात व्यक्तियों का समूह। किसी भी राष्ट्र का जन के बिना अस्तित्व ही नहीं रह सकता है। उदाहरण के रूप में ग्रीनलैण्ड यद्यपि एक निश्चित भू-भाग है, लेकिन वहाँ निर्जनता होने के कारण उसे राष्ट्र का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
2. भू-भाग:
भारतीय धारणा के अनुसार यह राज्य व देश का एक आवश्यक तत्व है। अर्थात् राज्य व देश बनने के लिए भू-भाग अर्थात् भूमि का होना अति आवश्यक है। ऐसा भू-भाग जिस पर मनुष्य निवास करते हों तथा जिन पर शासन किया जा सके।
3. सम्प्रभु शक्ति:
सम्प्रभु शक्ति से आशय बाहरी दबाव व शासन से मुक्त एक स्वतंत्र शासन से है। यह राज्य का एक आवश्यक तत्व है, अर्थात् भूमि व सम्प्रभुता दोनों राज्य के आवश्यक तत्व हैं। लेकिन यह देश का आवश्यक तत्व नहीं है, जैसे–स्वतंत्रता से पूर्व भारत एक देश था। उसका एक निश्चित भू-भाग था एवं उस भू-भाग पर लोग निवास करते थे, लेकिन वह राज्य नहीं था क्योंकि वह ब्रिटिश शासन के अधीन था। इसलिए वह सम्प्रभु नहीं थी। इसी कारण भारत को स्वतंत्रता से पूर्व एक देश की संज्ञा तो दी जाती थी लेकिन राज्य की संज्ञा नहीं दी जा सकती थी।
4. संस्कृति:
यह राष्ट्र का एक अनिवार्य तत्व है। कोई भी राष्ट्र बिना संस्कृति के अस्तित्व में नहीं रह सकता। भारत प्राचीन काल से एक राष्ट्र रहा है। इसकी एक संस्कृति है जो उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम चारों दिशाओं में एक समान रही है।
राष्ट्र के सम्बन्ध में भारतीय अवधारणा की यूरोपीय अवधारणा से भिन्नता:
1. जहाँ राष्ट्र के सम्बन्ध में भारत की अवधारणा में आदर्श राज्य के चार तत्व–जन, संस्कृति, भू-भाग व सम्प्रभु शक्ति बताए गए हैं। वहीं यूरोपीय अवधारणा में संस्कृति की पूर्णत: अवहेलना कर दी गई है। वास्तव में किसी भी राष्ट्र का प्राण उसकी संस्कृति ही होती है।
2. भारतीय अवधारणा के विपरीत यूरोपीय अवधारणा राजनैतिक आधार लिए हुए है। यूरोपीय विद्वान राष्ट्र हेतु एक समान रिलीजन, भाषा, नस्ल, आर्थिक सम्बन्ध आदि को भी आवश्यक तत्व मानते हैं। यूरोपीय धारणा के अनुसार यदि रिलीजन राष्ट्र का आधार होता तो अरब प्रायद्वीप के देश समान धर्म के होने के बावजूद भिन्न-भिन्न देशों में संगठित नहीं। हुए होते।
इसी प्रकार भाषा भी वह तत्व नहीं हो सकती जो एक जन समुदाय को राष्ट्र में परिवर्तित कर दे। राष्ट्र के सन्दर्भ में संस्कृति को नकारना वास्तविकता से दूर जाना है। भारत में कई धर्म हैं लेकिन संस्कृति एक है। इसी कारण भारत एक राष्ट्र है। संस्कृति उस नदी के समान होती है जो समय, काल एवं परिस्थितियों से प्रभावित होते हुए भी अपने मूल तत्व व पहचान को बनाए रखती है।
प्रश्न 3.
फ्रांसीसी क्रांति का कारण स्पष्ट करते हुए इसके विश्व पर पड़े प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फ्रांसीसी क्रान्ति के कारण:
फ्रांस की क्रांति निरकुंश, स्वेच्छाचारी शासन, आर्थिक शोषण एवं असमानता के विरुद्ध जागृति थी। इस क्रांति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. राजनीतिक कारण:
फ्रांस के राजा को पद निरंकुश एवं दैवीय अधिकारों से विभूषित था। राजा की इच्छा ही कानून था, जिसका उल्लंघन दण्डनीय अपराध था। राजा की आज्ञा ही करारोपण एवं राजकोष के व्यय का आधार थी। राजा के कृपापात्र, विशेषाधिकार प्राप्त लोग राजा के नाम पर अपने अधिकारों को दुरुपयोग करते थे। फ्रांस का तत्कालीन राजा लुई 16 वां निरंकुश, स्वेच्छाचारी व दैवीय अधिकारों से युक्त था।
वह खर्चीला और विवेकशून्य शासक था। कई वर्षों से फ्रांस की प्रतिनिधि सभा ‘एस्टेट्स जनरल’ की बैठक नहीं बुलाई गई थी। लुई 16 वें की अविवेकपूर्ण नीतियों के कारण फ्रांस के हाथ से भारत और अमेरिका के उपनिवेश निकल गए थे तथा सप्तवर्षीय युद्ध में फ्रांस की हार हो गई थी।
2. आर्थिक कारण:
इस समय फ्रांस की अर्थव्यवस्था अत्यन्त ही दयनीय व शोचनीय दौर से गुजर रही थी। असमान एवं पक्षपातपूर्ण कर पद्धति से कुलीन एवं निर्धन वर्ग में खाई अत्यधिक चौड़ी होती जा रही थी। कुलीन व पादरी वर्ग प्रत्यक्ष करों से मुक्त थे। नमक, शराब व तम्बाकू पर परोक्ष कर लिए जाते थे। राजकोष को प्राप्त अधिकतम राजस्व राजा व राज परिवार के विलासी जीवन पर ही खर्च हो जाता था। बहुसंख्यक फ्रांसीसी लोग भूख से जूझते हुए जीवन यापन कर रहे थे। अतः जन अन्दोलन स्वाभाविक था।
3. सामाजिक कारण:
अनेक विद्वान फ्रांस के समाज में व्याप्त सामाजिक असमानता को फ्रांस की क्रांति का कारण मानते हैं। कुलीन, पादरी एवं सामान्य वर्ग समाज के प्रमुख वर्ग थे। प्रथम दो वर्ग आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न थे। सामान्य वर्ग की दशा सर्वाधिक दयनीय थी। कुलीन व पादरी वर्ग विशेषाधिकारों से युक्त था। राजा, सामन्त व पादरी सामान्य वर्ग का शोषण करते थे। सामन्ती अत्याचार से कृषकों की दुर्दशा हो रही थी। इससे असन्तोष में वृद्धि हुई।
4. धार्मिक असन्तोष:
फ्रांस में इस समय एक लाख पच्चीस हजार धर्म प्रचारक व पादरी थे। कुछ पादरियों का जीवन ऐश्वर्ययुक्त था। जबकि कुछ के पास दो समय के भोजन की व्यवस्था भी नहीं थी। निर्धन व भूखी जनता को चर्च की सम्पत्ति अच्छी नहीं लग रही थी। धर्म के नाम पर ‘टाइथ’ नामक धार्मिक कर, जो स्वैच्छिक था। उसे जबरन वसूलना प्रारम्भ कर दिया गया, इससे असंतोष में वृद्धि हुई।
5. बौद्धिक कारण:
18 वीं शताब्दी में फ्रांस में अनेक प्रतिभाशाली चिन्तक, दार्शनिक व लेखक जन्मे जिन्होंने अपने लेखन से फ्रांस के प्राचीन गौरव और परम्पराओं को उजागर कर फ्रांस के समाज को जागृत किया बौद्धिक क्षेत्र में यह जागृति ही फ्रांस की क्रांति की आत्मा मानी जाती है। इन विद्वानों में रूसो, वाल्टेयर, दिदरो, मोंटेस्क्यू आदि नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
6. अमेरिकी संघर्ष में अपनाई गई फ्रांस की अविवेकपूर्ण नीति:
अमेरिका के स्वतंत्रता संघर्ष की सफलता ने फ्रांस पर दोहरा प्रभाव डाला। खराब आर्थिक स्थिति होने के बावजूद अमेरिका को सैनिक सहायता देने से फ्रांस की आर्थिक स्थिति और दयनीय हो गई। दूसरी ओर फ्रांस के जो सैनिक अमेरिका के स्वतंत्रता युद्ध में इंग्लैण्ड के विरुद्ध लड़ने गए थे, उन पर अमेरिका के लोगों की स्वच्छंदता, स्वतंत्रताप्रियता और स्वाभिमानपूर्ण जीवन-यापन का बहुत प्रभाव पड़ा। फ्रांस के सैनिकों के मन में भी राष्ट्रभक्ति और स्वतंत्रता की भावना जागृत हुई। इस प्रकार अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम फ्रांस की क्रांति के लिए प्रेरणा बन गया।
फ्रांसीसी क्रान्ति का विश्व पर प्रभाव:
फ्रांसीसी क्रान्ति के विश्व पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –
1. राष्ट्रीयता का विकास:
फ्रांस की क्रांति ने समस्त यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का संचार किया। फ्रांस की क्रांति के फलस्वरूप ही यूरोप में निरन्तर राष्ट्रीय क्रान्तियाँ होने लगीं।
2. जनतंत्र की विजय:
फ्रांस की क्रांति ने सदियों से चले आ रहे वंशानुगत राजतंत्र का अंत कर जनतंत्रात्मक शासन की स्थापना के युग का प्रारम्भ किया। धर्मनिरपेक्ष एवं जनप्रतिनिधि आधारित शासन प्रणाली अनेक राज्यों द्वारा अपनाई जाने लगी।
3. सामंती व्यवस्था का अंत:
फ्रांसीसी क्रांति ने वंशानुगत, कुलीन, भ्रष्ट सामंती व्यवस्था को पूर्णतः समाप्त कर दिया। यह अपमानजनक व्यवस्था सदियों से आर्थिक शोषण का पर्याय बन चुकी थी।
4. मानवाधिकारों की घोषणा:
असमानता व अन्याय के विरुद्ध हुई क्रान्ति ने फ्रांस में सभी लोगों को संविधान द्वारा समान घोषित किया। देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कानून के समक्ष समानता, सम्पत्ति की सुरक्षा, योग्यतानुसार पद, पदों के समान अवसर आदि अधिकार नागरिकों को समान रूप से प्रदान किये गये। यह अधिकार विश्व के निरकुंश शासकों के विरुद्ध चुनौती के रूप में उभरे।
5. चर्च के अधिकारों की समाप्ति:
फ्रांसीसी क्रान्ति के द्वारा चर्च के अधिकारों को समाप्त कर उनकी सम्पत्ति को राज्य द्वारा अधिगृहीत कर लिया गया। पादरियों को राजा के नियंत्रण में लाया गया। इस प्रकार क्रान्ति ने राजनीति पर धर्म के प्रभाव को समाप्त किया।
6. समाजवाद का प्रारूप:
फ्रांस में क्रान्ति के पश्चात् कुलीन वर्ग, सामन्त वर्ग एवं पादरियों के विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया। चर्च की सम्पत्ति किसानों को दे दी गई। दास प्रथा का अंत हुआ। सामाजिक असमानता समाप्त हुई, जिसका प्रभाव सभी देशों पर पड़ा।
7. राजनीतिक दलों का गठन:
फ्रांसीसी क्रान्ति ने शासन की बागडोर जनता के हाथ में दे दी। जनता अपने सामूहिक हितों के लिए दलों या संगठन के रूप में एकत्रित होकर संघर्ष करने लगी। प्रमुख दल जिरोदिस्त एवं जैकोबिन थे।
8. शिक्षा व संस्कृति का विकास:
शिक्षा पर चर्च का नियंत्रण समाप्त कर दिया गया। शिक्षा को राष्ट्रीय व धर्म निरपेक्ष बनाया गया। शिक्षा में अनुशासन व राष्ट्रीयता को विशेष स्थान देने का प्रयास किया गया। फ्रांस के साहित्यकार लेखन में स्वतंत्र व स्वच्छंद हो गए।
9. स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व:
फ्रांस की क्रांति का यह सबसे अधिक प्रभावित करने वाला परिणाम था। स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व के नारे ने न केवल फ्रांस बल्कि यूरोप को भी प्रभावित किया। इस प्रकार फ्रांसीसी क्रान्ति का सम्पूर्ण विश्व पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 4.
अमेरिकी संघर्ष अथवा स्वतंत्रता का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अमेरिकी संघर्ष अथवा स्वतंत्रता का विश्व पर प्रभाव:
1. लोकतांत्रिक राष्ट्र का उदय व लिखित संविधान:
पेरिस की संधि से एक शक्तिशाली लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका का जन्म हुआ। देश में लिखित संविधान के आधार पर राज्यों को आंतरिक स्वतंत्रता दी गई तथा संघीय शासन व्यवस्था लागू की गई। नागरिकों की भावना, मताधिकार एवं समानता का सिद्धांत देश में स्वीकार किया गया।
2. राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार:
18 वीं शताब्दी में अमेरिका के राष्ट्रवादियों ने राष्ट्रीयता की जिस भावना का बिगुल बजाया था। उसका प्रभाव 19 वीं शताब्दी में सम्पूर्ण विश्व में दिखाई दिया। 1789 ई. की फ्रांसीसी क्रान्ति से इसका प्रारम्भ हुआ और 1848 ई. तक यह भावना जर्मनी, इटली, आयरलैंड, आस्ट्रिया व यूनान तक सभी जगह फैल गई।
3. फ्रांस की क्रान्ति को प्रेरणा:
अमेरिका से लौटकर आए फ्रांसीसी सैनिकों ने अमेरिका के लोगों की स्वतंत्रता की भावना एवं राष्ट्र के प्रति समर्पण के आदर्श को फ्रांसीसी समाज में प्रसारित किया। स्वतंत्रता, समानता व मातृत्व के फ्रांसीसी सिद्धांत अमेरिका की क्रान्ति में निहित थे। आर्थिक दृष्टि से दयनीय एवं शोषित फ्रांसीसी भी अमेरिका के समानं स्वतंत्र होना चाहते थे।
4. आयरलैण्डं को अधिक सुविधाएँ:
अमेरिकी संघर्ष की सफलता से आयरलैण्ड भी उत्साहित हुआ। वह भी इंग्लैंड के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ। इंग्लैण्ड ने आयरिस लोगों की माँगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर वहाँ की संसद की व्यवस्थापिका को स्वतंत्र कर दिया।
5. ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल का जन्म:
अमेरिकी लोगों की जीत ने अन्य औपनिवेशिक देशों को इंग्लैण्ड के विरुद्ध लड़ने हेतु खड़ा कर दिया। फलस्वरूप इंग्लैण्ड ने अपने उपनिवेशों के प्रति नीति बदलते हुए ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल का निर्माण किया। इस संगठन के माध्यम से इंग्लैण्ड ने औपनिवेशिक राष्ट्रों की समस्याओं को जानने व समझने का मंच तैयार कर लिया ताकि अमेरिकी संघर्ष में हुई घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
6. संसद की शक्तियों में वृद्धि:
अमेरिका में इंग्लैण्ड की पराजय से सम्राट जार्ज तृतीय की व्यक्तिगत अयोग्यता सिद्ध हो चुकी थी। संसद ने प्रधानमंत्री लार्ड नार्थ तथा राजा जॉर्ज तृतीय को उत्तरदायी ठहराया। अब राजा की शक्तियों पर अंकुश लगाया गया तथा संसद की शक्ति को पुनः स्थापित किया गया।
7. वाणिज्यवाद का अंत:
अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष के कारण इंग्लैण्ड को अपनी वाणिज्यवादी नीति त्यागने को मजबूर होना पड़ा। इस नीति में आयात कर व निर्यात अधिक को महत्व दिया जाता था।
8. धार्मिक स्वतंत्रता:
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात् शिक्षा को उपासना पद्धति से अलग कर दिया गया तथा उपासना पद्धति को राज्य से अलग कर व्यक्तिगत विषय के रूप में मान्यता दी गई। प्रत्येक व्यक्ति को उपासना अर्थात् पूजा का अधिकार दिया गया। इस प्रकार अमेरिका का स्वतंत्रता संघर्ष विश्व की औपनिवेशिक दासता में जीवन बिता रही मानव जाति को मुक्ति का संदेश देने वाला सिद्ध हुआ। अमेरिका के स्वतंत्रता संघर्ष से पूरी दुनिया में नवीन युग का प्रारम्भ हुआ।
प्रश्न 5.
यूरोपीय महाद्वीप के देश अन्य देशों के समुद्री मार्गों की खोज के लिए क्यों निकले थे? विस्तार, पूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यूरोपीय महाद्वीप के देशों का अन्य देशों के समुद्री मार्गों की खोज के लिए निकलने के कारण:
यूरोपीय महाद्वीप के देश अन्य देशों के समुद्री मार्गों की खोज के लिए निम्नलिखित कारणों से निकले –
1. पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु:
यूरोपीय देशों के व्यापारियों, अभिजात वर्गों, जमींदारों, धनी व्यक्तियों एवं ईसाई मिशनरियों द्वारा अन्य देशों के समुद्री मार्गों की खोज को प्रोत्साहन दिया गया ताकि ईसाई धर्म एवं संस्कृति का विश्व के समस्त देशों में प्रचार-प्रसार हो सके। स्पेन व पुर्तगाल ने बाहरी दुनिया के लोगों को ईसाई बनाने के लिए सबसे पहले कदम उठाया। इस भावना ने ही उन्हें अमेरिका में मूल निवासियों के नरसंहार हेतु प्रेरित किया।
2. स्थाई धातु एवं मसालों की खोज:
1453 ई. में कुस्तुन्तुनिया पर तुर्की की जीत ने यूरोपीय व्यापार में रुकावट पैदा कर दी। अब उन्हें अधिक कर देना पड़ता था। साथ ही यूरोपीय देशों में सोने व चाँदी जैसी मूल्यवान वस्तुओं के संग्रह हेतु उन्हें अन्य देशों की खोज हेतु प्रेरित होना पड़ा तथा यूरोप में मसाले उत्पन्न न होने के कारण उन्हें उष्ण कटिबन्धीय देशों की खोज हेतु बाध्य होना पड़ा।
3. विस्तारवाद एवं औपनिवेशिक भावना:
यूरोपीय देशों में अधिकाधिक उपनिवेश बढ़ाना राष्ट्रीयता व सम्पन्नता, का प्रतीक माना जाने लगा। नगरों के उदय व राष्ट्रीयता की भावना ने औपनिवेशीकरण की प्रक्रिया को तेज कर दिया। यूरोपीय देश जानते थे कि कृषि सम्बन्धी कच्चे माल की आवश्यकता उष्णकटिबन्धीय देशों से ही पूरी हो सकती है। इसी. कारण यूरोपीय देश अन्य देशों की खोज के लिए निकले।
4. राजनैतिक अधिकारों के लाभ प्राप्ति की आकांक्षा:
यूरोपीय देशों में राजनैतिक अधिकार मुख्य रूप से अभिजात वर्ग एवं पादरियों के पास थे। मध्यम वर्ग इन अधिकारों व लाभों से वंचित था। यही मध्यम वर्ग राजव्यवस्था से दुखी होकर अन्य देशों की खोज हेतु निकला ताकि उसकी सत्ता स्थापित हो सके।
5. चर्च के अत्याचार:
यूरोपीय लोग चर्च के अत्याचारों व धार्मिक उत्पीड़न से परेशान थे। इस बात ने उन्हें यूरोप से बाहरी देशों में बसने के लिए बाध्य किया। उदाहरण के लिए अमेरिका में प्लीमथ उपनिवेश की स्थापना करने वाले। अँग्रेज धार्मिक स्वतंत्रता की आकांक्षा में ही अमेरिका पहुँचे थे।
6. जनसंख्या वृद्धि एवं अपराधियों को बसाने की समस्या:
यूरोपीय देशों में लगातार जनसंख्या में वृद्धि होती जा रही थी। इसके अतिरिक्त वहाँ अपराधियों की संख्या में भी निरन्तर वृद्धि होती जा रही थी। ऐसी स्थिति में बढ़ती जनसंख्या व अपराधियों के लिए नई भूमि की तलाश करना अति आवश्यक था। इस काल में ‘देश निकाला’ नामक सजा का भी प्रावधान था। इन सब स्थितियों में नये देशों पर अधिकार लाभप्रद सिद्ध हुआ।
7. जनसंहारक युद्ध:
यूपरोपीय राष्ट्रों के मध्य निरन्तर जनसंहारक युद्ध हो रहे थे, जिससे कुछ लोग परेशान थे। ऐसे लोग सुरक्षित स्थानों की खोज में थे। फलस्वरूप उन्हें अन्य देशों की खोज के लिए निकालना पड़ा।
8. भूगोल का नवीन ज्ञान:
इस काल में टालेमी नामक भूगोलवेत्ता द्वारा लिखित पुस्तक ज्योग्राफी ने यूरोपीय देशों के लोगों को अन्य देशों की खोज हेतु प्रोत्साहन प्रदान किया। टालेमी ने बताया कि यह दुनिया गोल है। इसे रोमांच ने यूरोप के साहसिक नाविकों को समुद्र में यात्रा करने हेतु प्रेरित किया। फलस्वरूप यूरोपीय महाद्वीप के विभिन्न देशों के लोग नाविकों का अनुसारण करने हेतु अन्य देशों में बसने हेतु निकल पड़े।
प्रश्न 6.
जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क के योगदान का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क का योगदान:
बिस्मार्क एक चतुर राजनीतिज्ञ, अन्तरराष्ट्रीय मामलों का जानकार तथा कूटनीतिक कुशलता से परिपूर्ण व्यक्तित्व का धनी व्यक्ति था उसकी इन्हीं विशेषताओं के कारण प्रशा के सम्राट विलियम प्रथम ने उसे अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
विस्मार्क की रक्त और लौह की नीति:
बिस्मार्क प्रशी के नेतृत्व में सैन्य शक्ति के आधार पर जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था। सैन्य बजट सम्बन्धी विषय पर बिस्मार्क व संसद में तनाव उत्पन्न हो गया। बिस्मार्क ने राष्ट्रहित में निम्न सदन की अवहेलना कर उच्च सदन से बजट पारित करवाने का असंवैधानिक निर्णय लिया। 1862 ई. से 1866 ई. तक वह उच्च सदन से बजट पारित करवाता रहा।
इस कार्य में सम्राट विलियम का भी उसे पूर्ण सहयोग प्राप्त होता रहा। यद्यपि इस प्रक्रिया में बिस्मार्क को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन बिस्मार्क ने दृढ़ निश्चय के बल पर प्रशा की सेना को पुर्नगठन कर इसे यूरोप की सर्वश्रेष्ठ सेना बना दिया। इस समय अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ भी बिस्मार्क के अनुकूल थीं। अतः उसने अब आस्ट्रिया को कमजोर बनाने का कदम उठाया।
बिस्मार्क की विदेश नीति:
सैन्य संगठन के पश्चात् विस्मार्क ने यूरोप में आस्ट्रिया को मित्रविहीन करने एवं प्रशा के लिए शक्तिशाली मित्रों की तलाश प्रारम्भ की। इस हेतु बिस्मार्क ने निम्नलिखित प्रयास किए –
1. रूस से मित्रता:
रूस का जार अलेक्जेण्डर द्वितीय विस्मार्क का मित्र था। 1863 ई. में पौलेण्ड विद्रोह के समय प्रशा ने रूस का समर्थन किया जिससे इस मित्रता में और प्रगाढ़ता आयी। बिस्मार्क ने अपना एक विशेष दूत रूस भेजा तथा रूस के साथ संधि की।
2. फ्रांस से मित्रता:
फ्रांस अप्रत्यक्ष रूप से ऑस्ट्रिया का विरोधी था। बिस्मार्क ने इसका लाभ उठाकर फ्रांस को यह आश्वासन दिया कि यदि फ्रांस ऑस्ट्रिया-प्रशा युद्ध में तटस्थ रहता है तो राइन तट की ओर या वैल्जियम की ओर के कुछ प्रदेश फ्रांस को दे दिए जाएँगे। बिस्मार्क ने फ्रांस के साथ एक व्यापारिक संधि भी की।
3. इटली से मित्रता:
इटली भी अपने एकीकरण की मुख्य बाधा ऑस्ट्रिया को मानता था और इटली से आस्ट्रिया का प्रभाव समाप्त करना चाहता। ऐसी दशा में इटली व प्रशा के मध्य 1866 ई. में एक संधि हुई। इस प्रकार बिस्मार्क ने अपनी कूटनीति से अपनी स्थिति सुदृढ़ की एवं अब वह जर्मनी के एकीकरण की ओर अग्रसर हुआ। बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण निम्न चरणों में पूर्ण किया।
(i) डेनमार्क से युद्ध:
फरवरी 1864 ई. में ऑस्ट्रिया-प्रशा की संयुक्त सेना ने डेनमार्क पर हमला कर दिया। डेनमार्क को किसी भी राष्ट्र की सहायता नहीं मिली और वह पराजित हो गया। 14 अगस्त 1865 ई. को ऑस्ट्रिया के शासक फ्रांसिस जोसेफ व प्रशा के शासक विलियम प्रथम के मध्य गेस्टाइन नामक स्थान पर एक समझौता हुआ। यह समझौता बिस्मार्क की कूटनीतिक सफलता थी। इससे प्रशा की सैनिक शक्ति बढ़ गयी।
(ii) ऑस्ट्रिया से युद्ध:
गेस्टाइन समझौते के फलस्वरूप ऑस्ट्रिया व प्रशा के मध्य संघर्ष अनिवार्य हो गया। युद्ध से पूर्व ही अपनी कूटनीति के द्वारा बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया को पूर्ण रूप से अकेला कर दिया था तथा अब सैन्य तैयारी के साथ अवसर की तलाश करने लगा। 3 जुलाई 1866 ई. को सेडोवा के युद्ध में प्रशा ने ऑस्ट्रिया को पराजित कर दिया। इंस युद्ध के पश्चात् 23 अगस्त 1866 ई. में प्राग की संधि हुई। इस संधि में बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया के प्रति नरम व्यवहार रखा ताकि प्रशा को भविष्य में ऑस्ट्रिया की मित्रता प्राप्त हो सके।
(iii) फ्रांस के साथ युद्ध:
सेडोवा युद्ध में फ्रांस तटस्थ रहा था। इस युद्ध के उपरान्त फ्रांस को जो उम्मीदें थीं वे पूर्ण न हो सकीं। प्रशा की प्रतिष्ठा में वृद्धि व फ्रांस की प्रतिष्ठा में कमी आई जिसके परिणाम स्वरूप दोनों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया। 15 जुलाई 1870 ई. को फ्रांस और प्रशा के मध्य युद्ध प्रारम्भ हो गया। निर्णायक युद्ध सीडान में 1 सितम्बर 1870 को हुआ। इसमें फ्रांस पराजित हुआ। बिस्मार्क की सेना पेरिस तक पहुँच गयी।
(iv) एकीकृत जर्मनी साम्राज्य की स्थापना:
18 जनवरी 1871 ई. को बिस्मार्क ने वर्साय के शीशमहल में एक दरबार का आयोजन किया। दक्षिण जर्मनी के चारों राज्य पूर्व में ही जर्मनी में सम्मिलित हो गए थे। इस भव्य दरबार में विलियम प्रथम को एकीकृत जर्मनी का सम्राट घोषित कर बिस्मार्क द्वारा राज्याभिषेक किया गया। बर्लिन इस एकीकृत जर्मनी की राजधानी तथा बिस्मार्क जर्मनी का चांसलर घोषित किया गया। इस प्रकार जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क का योगदान अविस्मरणीय है।
RBSE Class 11 History Chapter 4 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 History Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
नई दुनिया के नाम से प्रसिद्ध महाद्वीप है –
(अ) एशिया
(ब) अफ्रीका
(स) अमेरिका
(द) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर:
(स) अमेरिका
प्रश्न 2.
निम्न में से किस महाद्वीप से एजटेक सभ्यता सम्बन्धित है?
(अ) उत्तरी अमेरिका
(ब) एशिया
(स) अफ्रीका
(द) यूरोप
उत्तर:
(अ) उत्तरी अमेरिका
प्रश्न 3.
इंका संस्कृति का सम्बन्ध किस महाद्वीप से है?
(अ) एशिया
(ब) यूरोप
(स) दक्षिण अमेरिका
(द) अस्ट्रेलिया
उत्तर:
(स) दक्षिण अमेरिका
प्रश्न 4.
मैक्सिको की माया संस्कृति व सभ्यता का आधार जुड़ा हुआ था –
(अ) मक्के की खेती से
(ब) गेहूँ की खेती से
(स) चना की खेती से
(द) चावल की खेती से
उत्तर:
(अ) मक्के की खेती से
प्रश्न 5.
माया सभ्यता के प्राचीन अवशेष कहाँ मिले हैं?
(अ) इंग्लैण्ड में
(ब) रूस में
(स) मेक्सिको में
(द) भारत में।
उत्तर:
(स) मेक्सिको में
प्रश्न 6.
कोलम्बस द्वारा खोजे गए उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का नामकरण किसके नाम पर किया गया?
(अ) अमेरिको वेस्पुची
(ब) वास्कोडिगामा
(स) कोलम्बस
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) अमेरिको वेस्पुची
प्रश्न 7.
निम्न में से किस समुद्री यात्री ने अमेरिका के मूल निवासियों को रेड इण्डियन्स के नाम से सम्बोधित किया?
(अ) अमेरिगो वेस्पुची
(ब) क्रिस्टोफर कोलम्बस
(स) वास्कोडिगामा
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) क्रिस्टोफर कोलम्बस
प्रश्न 8.
निम्न में से यूरोपीय देशों के लोगों का अमेरिका पहुँचने का कारण था –
(अ) स्थायी धातु
(ब) विस्तारवाद की भावना
(स) ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 9.
निम्न में से किन-किन देशों के मध्य सप्तवर्षीय युद्ध हुआ था?
(अ) इंग्लैण्ड-फ्रांस
(ब) भारत-चीन
(स) अमेरिका-इंग्लैण्ड
(द) जर्मनी-आस्ट्रिया।
उत्तर:
(अ) इंग्लैण्ड-फ्रांस
प्रश्न 10.
बोस्टन हत्याकांड हुआ था –
(अ) 26 दिसम्बर 1773 ई.
(ब) 5 मार्च 1770 ई.
(स) 19 अप्रैल 1775 ई.
(द) 10 मई 1775 ई.
उत्तर:
(ब) 5 मार्च 1770 ई.
प्रश्न 11.
निम्न में किस वर्ष प्रथम महाद्वीपीय काँग्रेस का सम्मेलन हुआ था?
(अ) 1774 ई.
(ब) 1767 ई.
(स) 1773 ई.
(द) 1775 ई.
उत्तर:
(अ) 1774 ई.
प्रश्न 12.
संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।
(अ) 5 जुलाई को
(ब) 4 जुलाई को
(स) 15 अगस्त को
(द) 26 जनवरी को
उत्तर:
(ब) 4 जुलाई को
प्रश्न 13.
फ्रांस की क्रांति का राजनैतिक कारण था –
(अ) केन्द्रीयकृत शासन
(ब) अयोग्य शासक
(स) खर्चीली राज व्यवस्था
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 14.
निम्न में किस विचारक ने आदर्श समाज की स्थापना पर बल दिया?
(अ) मोंटेस्क्यू
(ब) रूसो
(स) बाल्तेयर
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
प्रश्न 15.
निम्न में किस विचारक ने शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत दिया था –
(अ) रूसो
(ब) वाल्तेयर
(स) मोंटेस्क्यू
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) मोंटेस्क्यू
प्रश्न 16.
“मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है लेकिन आज वह सर्वत्र जंजीरों से जकड़ा हुआ है।” यह कथन किस विद्वान का।
(अ) दिदरो
(ब) रूसो
(स) तुर्गों
(द) वाल्तेयर।
उत्तर:
(ब) रूसो
प्रश्न 17.
टेनिस कोर्ट की शपथ का सम्बन्ध निम्न में से किस क्रांति से है?
(अ) अमेरिकी क्रांति
(ब) रूसी क्रान्ति
(स) चीनी क्रान्ति
(द) फ्रांसीसी क्रान्ति
उत्तर:
(द) फ्रांसीसी क्रान्ति
प्रश्न 18.
जैकोबिन दल का केन्द्र था –
(अ) पेरिस
(ब) जिरोद
(स) दिल्ली
(द) वाशिंगटन
उत्तर:
(अ) पेरिस
प्रश्न 19.
फ्रांसीसी क्रान्ति के समय फ्रांस का शासक था –
(अ) लुई 14 वाँ
(ब) लुई 16 वाँ।
(स) नेपोलियन बोनापार्ट
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) लुई 16 वाँ।
प्रश्न 20.
दूसरा जस्टीवियन किसे कहा जाता है।
(अ) नेपोलियन को
(ब) बिस्मार्क को
(स) विलियम प्रथम को
(द) गैरीबाल्डी को
उत्तर:
(अ) नेपोलियन को
प्रश्न 21.
नेपोलियन के पतन का प्रमुख कारण था –
(अ) महाद्वीपीय व्यवस्था
(ब) रूस के विरुद्ध अभियान
(स) पोप का अपमान
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 22.
“मैं ही क्रान्ति हूँ, मैंने ही क्रांन्ति का अंत किया है।” यह कथन किसका था?
(अ) नेपोलियन का
(ब) रूसो का
(स) बिस्मार्क का
(द) मेटरनिटव का
उत्तर:
(अ) नेपोलियन का
प्रश्न 23.
राष्ट्र, राज्य व देश के लिए आवश्यक तत्व है।
(अ) जन
(ब) भूमि
(स) संप्रभुता
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 24.
जॉलवरीन नामक संधि का सम्बन्ध है –
(अ) जर्मनी से
(ब) फ्रांस से
(स) रूस से
(द) भारत से
उत्तर:
(अ) जर्मनी से
प्रश्न 25.
जर्मनी के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी –
(अ) बिस्मार्क ने
(ब) गैरीबाल्डी ने
(स) नेपोलियन ने
(द) विलियम प्रथम ने
उत्तर:
(अ) बिस्मार्क ने
प्रश्न 26.
14 अगस्त 1865 ई. को प्रशा के विलियम प्रथम एवं ऑस्ट्रिया के शासक फ्रांसिस जोसेफ का समझौता कहाँ हुआ था?
(अ) गेस्टाइन में
(ब) बर्लिन में
(स) पेरिस में
(द) सेदोवा में
उत्तर:
(अ) गेस्टाइन में
प्रश्न 27.
फ्रेंकफर्ट की संधि कब हुई?
(अ) 26 जनवरी 1873
(ब) 26 फरवरी 1871
(स) 15 जुलाई 1870
(द) 15 अगस्त 1747
उत्तर:
(ब) 26 फरवरी 1871
प्रश्न 28.
युवा इटली के संस्थापक थे –
(अ) मेजिनी
(ब) गैरीबाल्डी
(स) नेपोलियन
(द) कावूर
उत्तर:
(अ) मेजिनी
प्रश्न 29.
लाल कुर्ती नामक देशभक्तों का संगठन किसने बनाया
(अ) कावूर ने
(ब) मैजिनी ने
(स) गैरीबाल्डी ने
(द) विलियम ने
उत्तर:
(स) गैरीबाल्डी ने
प्रश्न 30.
12 जून 1871 ई. को संयुक्त इटली की संसद का उद्घाटन किसने किया था?
(अ) गैरीबाल्डी ने
(ब) कावूर ने
(स) विक्टर इमैनुअल ने
(द) नेपोलियन ने।
उत्तर:
(स) विक्टर इमैनुअल ने
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
प्रश्न 1.
मिलान कीजिए –
उत्तर:
1. (छ), 2. (घ), 3. (क), 4. (ख), 5. (झ), 6. (ज), 7. (ग), 8. (अ), 9. (च), 10. (ड़)।
प्रश्न 2.
मिलान कीजिए –
उत्तर:
1. (ङ), 2. (ग), 3. (छ), 4. (अ), 5. (ख), 6. (क), 7. (घ), 8. (ज), 9. (च), 10. (झ)।
RBSE Class 11 History Chapter 4 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप की खोज किसने की?
उत्तर:
1492 ई. में क्रिस्टोफर कोलम्बस ने।
प्रश्न 2.
उत्तरी अमेरिका महाद्वीप की प्रमुख सभ्यताओं का नाम बताइए।
उत्तर:
1. एजटेक।
2. माया।
प्रश्न 3.
अरावान जनजाति का निवास स्थान बताइए।
उत्तर:
बहाया समूह।
प्रश्न 4.
दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में किस संस्कृति का उद्भव हुआ?
उत्तर:
इंको संस्कृति का।
प्रश्न 5.
माया संस्कृति कहाँ प्रचलित थी?
उत्तर:
मैक्सिको में।
प्रश्न 6.
एजटेक समुदाय का प्रमुख देवता कौन था?
उत्तर:
मेक्सिली।
प्रश्न 7.
मेक्सिको का नाम करण किस एजटेक देवता के नाम पर हुआ था?
उत्तर:
मेक्सिली देवता के नाम पर।
प्रश्न 8.
कोलम्बस ने अमेरिका के निवासियों को किस नाम से पुकारा था?
उत्तर:
रेड इण्डियन्स के नाम से।
प्रश्न 9.
वास्तव में क्रिस्टोफर कोलम्बस किस देश के समुद्री मार्ग की खोज के लिए निकला था।
उत्तर:
भारत के समुद्री मार्ग की खोज के लिए।
प्रश्न 10.
टालेमी ने किस पुस्तक की रचना की?
उत्तर:
ज्योग्राफी।
प्रश्न 11.
अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष के सन्दर्भ में यह किसने कहा था कि यह क्रान्ति उपनिवेशों में ब्रिटेन के मध्य आर्थिक हितों का संघर्ष था।
उत्तर:
कार्ल. एल. बेकर ने।
प्रश्न 12.
अमेरिकी संघर्ष के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
- इंग्लैण्ड के प्रति सहानुभूति की कमी।
- बौद्धिक जागृति।
प्रश्न 13.
टॉमस पेन द्वारा लिखित पुस्तक का नाम बताइए।
उत्तर:
कामनसेंस।
प्रश्न 14.
अमेरिकन फिलोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना किसने की?
उत्तर:
बेंजामिन फ्रेंकलिन ने।
प्रश्न 15.
अमेरिका में प्रथम समाचार पत्र का क्या नाम था? यह कब प्रकाशित हुआ?
उत्तर:
बोस्टन न्यूजलेटर, यह सन् 1704 ई. में प्रकाशित हुआ।
प्रश्न 16.
सप्तवर्षीय युद्ध कब वे किसके मध्य लडा गया?
उत्तर:
सप्तवर्षीय युद्ध 1757 ई. से 1763 ई. के दौरान इंग्लैण्ड व फ्रांस के मध्य लड़ा गया।
प्रश्न 17.
सप्तवर्षीय युद्ध में किस देश को विजय प्राप्त हुई?
उत्तर:
इंग्लैण्ड को।
प्रश्न 18.
अमेरिका में शुगर एक्ट कब लागू हुआ?
उत्तर:
1764 ई. में।
प्रश्न 19.
बोस्टन टी पार्टी की घटना कब हुई?
उत्तर:
26 दिसम्बर 1773 ई. को।
प्रश्न 20.
प्रथम महाद्वीपीय काँग्रेस कब हुई?
उत्तर:
5 सितम्बर 1774 ई. में।
प्रश्न 21.
द्वितीय महाद्वीपीय काँग्रेस कब व किसकी अध्यक्षता में आयोजित की गई?
उत्तर:
10 मई 1775 ई. को जॉन हेनकॉक की अध्यक्षता में।
प्रश्न 22.
महाद्वीपीय काँग्रेस में किसने अमेरिका की स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा?
उत्तर:
रिचर्ड हेनरी ने।
प्रश्न 23.
महाद्वीपीय काँग्रेस ने कब अमेरिका की स्वतंत्रता के प्रस्ताव को पारित किया था।
उत्तर:
2 जुलाई 1776 ई. को।
प्रश्न 24.
अमेरिका को कब स्वतंत्र घोषित किया गया था?
उत्तर:
4 जुलाई 1776 ई. को।
प्रश्न 25.
पेरिस की संधि पर इंग्लैण्ड व अमेरिकी उपनिवेशों के प्रतिनिधियों ने कब हस्ताक्षर किए?
उत्तर:
3 दिसम्बर 1783 ई. को।
प्रश्न 26.
फ्रांस की क्रान्ति के समय फ्रांस का राजा कौन था?
उत्तर:
लुई सोलहवाँ।
प्रश्न 27.
फ्रांस की क्रांति के कोई दो सामाजिक कारण बताइए।
उत्तर:
1. सामाजिक असमानता।
2. चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार।
प्रश्न 28.
किन्हीं चार प्रमुख विचारकों के नाम लिखिए जो फ्रांस की क्रान्ति में सहायक सिद्ध हुए?
उत्तर:
1. वाल्तेयर
2. रूसो
3. दिदरो
4. मोन्टेस्क्यू।
प्रश्न 29.
नेपोलियन ने किस विद्वान को फ्रांस की क्रान्ति का मुख्य उत्तरदायी व्यक्ति बताया था?
उत्तर:
रूसो को।
प्रश्न 30.
एस्टेट्स जनरल का प्रथम अधिवेशन कब व किसके समय में हुआ था?
उत्तर:
1320 ई में फिलिप द फेयर के समय में।
प्रश्न 31.
फ्रांस में विशेषाधिकारों का अंत कब हुआ?
उत्तर:
4 अगस्त 1789 ई. को।
प्रश्न 32.
फ्रांस में प्रथम बार लिखित संविधान की रचना कब की गई?
उत्तर:
1791 ई. में।
प्रश्न 33.
फ्रांस में संविधान किसकी इच्छाओं के आधार पर तैयार किया गया?
उत्तर:
जनता की इच्छाओं के आधार पर।
प्रश्न 34.
नेशनल कन्वेंशन क्या थी?
उत्तर:
यह क्रांतिकारी फ्रांस की तृतीय संसद थी। इसके कार्यकाल में ही 21 सितम्बर 1793 ई. को राजतंत्र की समाप्ति व गणतंत्र की स्थापना हुई।
प्रश्न 35.
नेशनल कन्वेंशन के अंगों के नाम बताइए।
उत्तर:
1. जन रक्षा समिति।
2. सामान्य सुरक्षा समिति।
3. न्यायपालिका।
प्रश्न 36.
फ्रांसीसी राजनीति में गणतंत्रवादी समर्थक प्रमुख राजनीतिक दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. जिरोदिस्त दल।
2. जेकोबिन दल।
प्रश्न 37.
किस फ्रांसीसी राजनीतिक दल के नेता आदर्शवादी व गणतंत्रवादी थे?
उत्तर:
जिरोदिस्त दल के नेता।
प्रश्न 38.
जेकोबिन दल के प्रमुख नेता कौन-कौन थे?
उत्तर:
दांते, रोब्सपियर, हैबर व मारा आदि। प्रश्न 39. फ्रांस में डायरेक्टरी व्यवस्था की समयावधि बताइए। उत्तर-अक्टूबर 1795 ई. से नवम्बर 1799 ई. के मध्य।
प्रश्न 40.
फ्रांसीसी क्रांति के कोई दो प्रभाव बताइए।
उत्तर:
1. सामंती व्यवस्था का अंत।
2. राष्ट्रीयता को उदय।
प्रश्न 41.
फ्रांस में चर्च की सम्पत्ति किसे सौंप दी गई?
उत्तर:
फ्रांस में चर्च की सम्पत्ति किसानों को सौंप दी गई।
प्रश्न 42.
फ्रांस का कौन-सा दल श्रमिकों व निर्धनों का समर्थक था?
उत्तर:
जेकोविन दल।
प्रश्न 43.
फ्रांस की क्रान्ति के दौरान कौन-सा नारा दिया गया था?
उत्तर:
स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व का नारा।
प्रश्न 44.
नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म 15 अगस्त 1769 ई. को कोर्सिका द्वीप पर हुआ था।
प्रश्न 45.
नेपोलियन बोनापार्ट के माता-पिता के नाम बताइए।
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट के पिता का नाम कार्लो बोनापार्ट एवं माता का नाम लीतिशिया रेमालिनो था।
प्रश्न 46.
फ्रांस में डायरेक्टरी शासन की समाप्ति के पश्चात प्रधान कौंसुल कौन बना?
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट।
प्रश्न 47.
नेपोलियन बोनापार्ट ने कब व कहाँ फ्रांस के सम्राट पद की शपथ ली?
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट ने 2 दिसम्बर 1804 ई. को नौत्रेदामे चर्च में फ्रांस के सम्राट पद की शपथ ली।
प्रश्न 48.
ट्राफलगर का युद्ध कब हुआ और इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
ट्रॉफलगर का युद्ध 21 अक्टूबर 1805 ई. को हुआ। इस युद्ध में इंग्लैण्ड के सेनानायक नेल्सन ने नौसेना के युद्ध मैं नेपोलियन को पराजित किया था।
प्रश्न 49.
आस्टरलिज का युद्ध कब हुआ और इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
आस्टरलिज का युद्ध 2 दिसम्बर 1805 ई. को हुआ था, जिसमें नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया व प्रशा की सयुंक्त सेना को पराजित किया।
प्रश्न 50.
नेपोलियन ने किस संधि के माध्यम से जर्मनी के छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर राइन संघ का निर्माण किया?
उत्तर:
प्रेसबर्ग की संधि।
प्रश्न 51.
बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
1800 ई. में नेपोलियन ने बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना की।
प्रश्न 52.
महाद्वीपीय व्यवस्था ने किस देश को फ्रांस का विरोधी बना दिया?
उत्तर:
रूस को।
प्रश्न 53.
वाटरलू के युद्ध में कौन पराजित हुआ।
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट।
प्रश्न 54.
नेपोलियन बोनापार्ट ने आत्मसमर्पण कब व किसके समक्ष किया?
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट ने 15 जुलाई 1815 ई. में अंग्रेजी नौ सैन्य अधिकारी मेटलेण्ड के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
प्रश्न 55.
नेपोलियन बोनापार्ट की मृत्यु कब व कहाँ हुई?
उत्तर:
5 मई 1821. ई. को सेन्टहेलेना द्वीप पर हुई।
प्रश्न 56.
नेपोलियन के पतन के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
1. महाद्वीपीय व्यवस्था।
2. पोप का अपमान।
प्रश्न 57.
लिप्सन के अनुसार आधुनिक जर्मनी का जन्मदाता कौन था?
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट।
प्रश्न 58.
नेपोलियन ने जर्मनी के छोटे-छोटे राज्यों का जो संघ बनाया उसका नाम क्या था?
उत्तर:
राइन संघ।
प्रश्न 59.
जर्मनी के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा कौन-सा देश था?
उत्तर:
ऑस्ट्रिया।
प्रश्न 60.
जर्मनी के आर्थिक एकीकरण के फलस्वरूप किस संघ की स्थापना की गई?
उत्तर:
जॉल्वरीन संघ की।
प्रश्न 61.
बर्शेनशैफ्ट संगठन की स्थापना कब व किस विश्वविद्यालय में की गई थी?
उत्तर:
1815 ई. में जर्मनी के जेना विश्वविद्यालय में।
प्रश्न 62.
जर्मनी के एकीकरण के लिए बिस्मार्क ने कौन-सी नीति अपनाई?
उत्तर:
रक्त और लौह की नीति।
प्रश्न 63.
जर्मनी का एकीकरण किस शक्तिशाली राज्य के नेतृत्व में हुआ?
उत्तर:
प्रशा के नेतृत्व में।
प्रश्न 64.
ऑस्ट्रिया और प्रशा के मध्य 23 अगस्त 1866 ई. को कौन-सी संधि हुई थी?
उत्तर:
प्रांग की संधि।
प्रश्न 65.
जर्मन सम्राट विलियम का राज्याभिषेक कब व कहाँ किया गया?
उत्तर:
18 जनवरी 1871 ई. को वर्साय के महल में।
प्रश्न 66.
फ्रेंकफर्ट की संधि कब व किसके मध्य हुई?
उत्तर:
10 मई 1871 ई. को फ्रांस व प्रशा के मध्य।
प्रश्न 67.
इटली के एकीकरण में सहायक प्रमुख संगठन कौन-कौन से थे?
उत्तर:
1. कार्बोनरी
2. युवा इटली।
प्रश्न 68.
कार्बोनरी नामक गुप्त संगठन की स्थापना कब व कहाँ हुई थी?
उत्तर:
1810 ई. में नेपल्स में।
प्रश्न 69.
मेजिनी ने किस संगठन की स्थापना की थी?
उत्तर:
युवा इटली की।
प्रश्न 70.
इटली के एकीकरण का मस्तिष्क व आध्यात्मिक शक्ति किसे माना जाता है?
अथवा
इटली के एकीकरण की आत्मा किसे कहा जा सकता है?
उत्तर:
मेजिनी को।
प्रश्न 71.
एलोम्बियर्स समझौता किनके बीच हुआ था?
उत्तर:
सम्मट नेपोलियन तृतीय एवं कावूर के मध्य।
प्रश्न 72.
“हम इतिहास बनाने जा रहे हैं।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
कावूर का।
प्रश्न 73.
ज्यूसप गैरीबाल्डी का जन्म कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
ज्यूसप गैरीबाल्डी का जन्म 1807 ई. में नीस नगर में हुआ था।
प्रश्न 74.
लाल कुर्ती दल का संस्थापक कौन था?
उत्तर:
ज्यूसप गैरीबाल्डी।
प्रश्न 75.
इटली का एकीकरण किस वर्ष पूर्ण हुआ?
उत्तर:
1871 ई. को।
प्रश्न 76.
ऑस्ट्रिया व प्रशा के युद्ध के पश्चात इटली को कौन-सा प्रदेश मिला?
उत्तर:
वेनेशिया।
RBSE Class 11 History Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
एजटेक संस्कृति के बारे में संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
एजटेक संस्कृति का उद्भव उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के मेक्सिको में हुआ था। यहाँ का एजटेक समाज श्रेणीबद्ध था। इस समुदाय में योद्धा, पुरोहित, अभिजात वर्ग एवं व्यापारियों को पर्याप्त सम्मान प्राप्त था। राजा को सर्वोच्च माना जाता था। सूर्य को आराध्य देव माना जाता था। इस समुदाय का प्रमुख देवता मेक्सिली था। यह समुदाय शिक्षा के प्रति जागृत था। यह समुदाय शहरी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता था। यहाँ के विद्यार्थियों को सेना व धर्माधिकारी बनने की शिक्षा प्रदान की जाती थी।
प्रश्न 2.
यूरोपवासियों के अमेरिका पहुँचने के कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
यूरोपवासियों के अमेरिका पहुँचने के तीन कारण निम्नलिखित थे –
1. गोल्ड:
गोल्ड से आशय स्थायी धातु से है, जिसके अन्र्तगत सोना, चाँदी व अन्य मूल्यवान धातुएँ सम्मिलित हैं। इनको प्राप्त करना यूरोपवासियों का प्रमुख उद्देश्य था।
2. ग्लोरी:
ग्लोरी से आशय विस्तारवाद की भावना से है। इससे ओत-प्रोत होकर यूरोपवासी अन्य देशों पर अधिकार कर उपनिवेश स्थापित करना व क्षेत्राधिकार बढ़ाना अपना गौरव समझते थे।
3. गॉड:
गॉड से आशय ईसाई धर्म का विश्व के समस्त देशों में प्रचार-प्रसार करने से है। यूरोपीय देशों के व्यापारियों, जमीदारों, अभिजात वर्गों एवं ईसाई मिशनरियाँ ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु नए मार्गों की खोज करते हुए अमेरिका तक पहुँच गए। स्पेन व पुर्तगाल देशों के शासकों ने उनके इन अभियानों का खर्चा भी उठाया था।
प्रश्न 3.
मातृदेश इंग्लैण्ड के प्रति प्रेम और सद्भावना की कमी किस प्रकार अमेरिकी स्वतत्रता संघर्ष का कारण बनी? बताइए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में असहनीय धार्मिक अत्याचारों से दुखी होकर अथवा अपराध में दण्डस्वरूप देश निकाला पाकर अमेरिका आए अँग्रेजों और वहाँ के अन्य यूरोपीय लोगों में इंग्लैण्ड के प्रति किसी प्रकार की सद्भावना या प्रेम नहीं था। अमेरिका में निवास कर रहे लोगों में सामाजिक समानता की भावना का पूर्णतः विकास हो चुका था। जबकि इग्लैण्ड में अभी भी वर्ग भेद विद्यमान था। अमेरिका में निवास कर रहे लोगों के कल्याण हेतु इंग्लैण्ड की सरकार ने कोई कार्य नहीं किया था।
अत: आकस्मिक आर्थिक बोझ अमेरिकी निवासियों द्वारा सहन करना अस्वाभाविक था। अमेरिकी भावनाओं को इग्लैण्ड के पक्ष में किए बिना अनुचित करारोपण को अमेरिका के लोगों की स्वच्छंद जीवन शैली तथा अमेरिका की स्वतत्रंता पर आघात की कुचेष्टा के रूप में देखा गया। अत: इंग्लैण्ड के कानूनों के विरुद्ध स्वाभाविक रूप में संघर्ष प्रारम्भ हो गया।
प्रश्न 4.
अमेरिका में शुगर एक्ट क्या था?
उत्तर:
1764 ई. में अमेरिका में विदेशी शराब का आयात बंद कर इंग्लैण्ड के अतिरिक्त अन्य देशों से शीरा खरीदने पर कर लगा दिया गया। शीरा चीनी उद्योग का एक उप उत्पाद था जो एल्कोहल बनाने के काम आता था। अमेरिका के व्यापारी शीरा या शक्कर आदि फ्रांसीसी व डच उपनिवेशों से मँगाते थे जो सस्ता पड़ता था। उस पर आयात कर भी नहीं था।
इस कानून से अमेरिका के व्यापारी महँगी दर पर इग्लैण्ड का शीरा व शक्कर खरीदने को बाध्य थे क्योंकि वे अन्य देशों से इसे नहीं खरीद सकते थे। इंग्लैण्ड के शीरा उत्पादकों को इसमें लाभ थी। शीरा या शक्कर की तस्करी रोकने हेतु समुद्र में ब्रिटिश जलपोतों को आदेश दिए गए। साथ ही साथ इस एक्ट का कठोरता से पालन करने के आदेश दिए गए। अमेरिका में इस कानून के विरूद्ध भारी आक्रोश उत्पन्न हो गया।
प्रश्न 5.
अमेरिका में स्टाम्प एक्ट (1765 ई.) क्या था? बताइए।
उत्तर:
1765 ई. में अमेरिका में लागू इस कानून द्वारा अमेरिका में अदालती व गैर अदालती अनुबन्ध पत्रों, समाचार पत्रों, अनुज्ञापत्रों, विज्ञापनों, पंजीकरण तथा अन्य समस्त प्रकार के दस्तावेजों के लिए स्टाम्पपत्रों का उपयोग करना अनिवार्य कर दिया गया। इस कानून को कठोरता पूर्वक लागू किया गया। कानून का उल्लंघन करने पर न्यायालयों द्वारा सजा दी जाने लगी। अमेरिका में इसकी भारी विरोध हुआ। अमेरिकी व्यापारियों ने इंग्लैण्ड से माल आयात करना बंद कर दिया जिससे ब्रिटिश व्यापारियों को हानि होने लगी। अधिक विरोध होता देख इंग्लैण्ड की सरकार ने इस कानून को समाप्त कर दिया।
प्रश्न 6.
बोस्टन हत्याकांड के बारे में आप क्या जानते हैं?
अथवा
बोस्टन हत्याकांड से अमेरिका में स्वतंत्रता संघर्ष हेतु किस प्रकार प्रेरणा मिली?
उत्तर:
टाउन शेड कानूनों के विरुद्ध अमेरिका के विभिन्न उपनिवेशों में विरोधस्वरूप व्यापक प्रतिक्रिया हुई। जून 1767 ई. में विलेटिंग एक्ट के तहत अंग्रेज सैनिकों के रहने वे खाने की व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण न्यूयार्क विधानसभा को भंग कर दिया गया। इस मुद्दे पर अंग्रेज सैनिकों व अमेरिकी नागरिकों में तनाव उत्पन्न हो गया। बोस्टन शहर में स्थिति उग्र व हिंसात्मक हो गई।
5 मार्च 1770 ई. को सेना द्वारा गोलीबारी में तीन अमेरिकी नागरिक मारे गए। अमेरिका के लोगों ने इसे बोस्टन हत्याकांड कहा और इसकी सर्वत्र व्यापक निंदा की गई। इस हत्याकांड ने टाउन शेड करों को समाप्त करा दिया। बोस्टन हत्याकांड को अमेरिका में काफी प्रचारित किया गया। इंग्लैण्ड विरोधी जनसभाएँ आयोजित की गई। इससे अमेरिका में स्वतंत्रता संघर्ष हेतु प्रेरणा प्राप्त हुई।
प्रश्न 7.
बोस्टन टी पार्टी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की ईस्ट इंडिया कम्पनी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। ऐसी स्थिति में कम्पनी ने दिवालियापन से बचने के लिए अमेरिका में चाय बेचने का ब्रिटिश सरकार से एकाधिकार प्राप्त कर लिया। यह कम्पनी सामान्य दरों से कम दरों पर चाय बेचने जा रही थी जिससे कि अमेरिका में तस्करी व्यापार समाप्त हो जाए।
जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी के क्य की पेटियों से भरे जहाज बोस्टन बंदरगाह पर पहुँचे तो 16 दिसम्बर 1773 ई. को सेम्युअल एडम्स के नेतृत्व में अमेरिकी राष्ट्रवादियों ने कुलियों के भेष में जहाजों पर हमला कर, चाय की पेटियों को समुद्र में फेंक दिया इस घटना को बोस्टन टी पार्टी के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 8.
इंग्लैण्ड की सरकार ने बोस्टन चाय कांड को चुनौती मानते हुए ब्रिटिश संसद से कौन-कौन दमनात्मक कानून पारित कराए?
उत्तर:
- नष्ट की गई चाय का हर्जाना न चुकाने तक बोस्टने बंदरगाह को बंद कर दिया जाए ताकि बोस्टन के व्यापारियों को हानि हो।
- ब्रिटिश सैनिकों के ठहरने व खान-पान की पूर्ण व्यवस्था स्थानीय प्राधिकारियों पर डाल दी गई।
- अमेरिकी न्यायालयों में चल रहे हत्या सम्बन्धी मुकदमे अब इग्लैण्ड के अन्य उपनिवेशों में चलाने का निर्णय किया गया।
- कैथोलिक मतावलम्बियों को उपासना सम्बन्धी स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई।
- मेसाचुसेट्स के सांसदों को चुनने का अधिकार राजा को दे दिया गया।
प्रश्न 9.
अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जून 1776 ई. में महाद्वीपीय काँग्रेस में राष्ट्रवादियों का बहुमत था। रिचर्ड हेनरी ने अमेरिका की स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा, जिसका जॉन एडम्स ने अनुमोदन किया। स्वतंत्रता की घोषणा हेतु पाँच सदस्यों की समिति बनाई जिसमें जेफरसन, बेंजामिन फ्रेंकलिन, जॉन एडम्स, रोजर सर्मन तथा राबर्ट लिविंगस्टन सम्मिलित थे। 2 जुलाई 1776 ई. को काँग्रेस ने स्वतत्रंता के प्रस्ताव को स्वीकृत कर 4 जुलाई 1776 ई. को अमेरिका को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
स्वतंत्रता के घोषणा पत्र में कहा गया कि “हम उन तत्वों को स्वयं स्पष्ट समझते हैं कि जन्म से सभी मनुष्य समान हैं और सृष्टिकर्ता ने उन्हें अविच्छिन्न अधिकारों से विभूषित किया है, जिनमें प्रमुख हैं-जीवन स्वाधीनता तथा सुख की खोज, इसलिए हम संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिनिधि उन समस्त जन्मजात अधिकारों की प्राप्ति के लिए, जो स्वाधीन देश के लोगों को प्राप्त होते हैं, स्वतत्रंता की घोषणा करते हैं।’ इस घोषणा के साथ ही समस्त अमेरिकी उपनिवेश स्वतंत्र हो गए।
प्रश्न 10.
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का फ्रांसीसी क्रांति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में फ्रांसीसी सैनिक इंग्लैण्ड के विरुद्ध लड़ने के लिए गये थे। इन पर अमेरिका के लोगों की स्वच्छंदता, स्वतंत्रताप्रियता एवं स्वाभिमान पूर्ण जीवन-यापन का व्यापक प्रभाव हुआ। फ्रांस के सैनिकों के मन में राष्ट्रभक्ति और स्वतंत्रता की भावना जागृत हुई। अमेरिका से लौटकर आए फ्रांसीसी सैनिकों और अधिकरियों ने अमेरिका के लोगों की स्वतंत्रता की भावना एवं राष्ट्र के प्रति समर्पण के आदर्शों को फ्रांसीसी समाज में प्रसारित किया। उन्हें लोगों के राजनीतिक, धार्मिक व सामाजिक अधिकारों का आभास हुआ। वे स्वयं फ्रांस में इन अधिकारों की माँग करने लगे। अतः अमेरिका की क्रान्ति स्वरूप में भिन्न होते हुए भी फ्रांस की क्रान्ति के लिए प्रेरणादायी सिद्ध हुई।
प्रश्न 11.
केन्द्रीकृत शासन और अधिनायकवादी सता ने किस प्रकार फ्रांस में क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार की?
उत्तर:
फ्रांस में वंशानुगत निरंकुश राजतंत्र था। यहाँ राजा का पद निरंकुश व दैवीय अधिकारों से विभूषित था, राजा को देवतुल्य माना जाता था। राजा की इच्छा ही कानून था, जिसका उल्लंघन दण्डनीय अपराध था। राजा की आज्ञा ही करारोपण या राजकोष के व्यय का आधार थी। लैत्र-द-काशे नामक अधिकार पत्र से राजा किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सजा दे सकता था।
अतः फ्रांस में आम व्यक्ति सहमा हुआ रहता था। व्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं थी। लुई 14 वाँ ने निरंकुशता में और अधिक वृद्धि कर दी उसका कहना था कि “मैं ही राज्य हूँ।” यह कथन अधिनायकवादी सत्ता का द्योतक था। इन सब बातों ने फ्रांस में क्रान्ति की पृष्ठभूमि तैयार की।
प्रश्न 12.
अठारहवीं शताब्दी में फ्रांस की सामाजिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन् 1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति से पूर्व फ्रांस का समाज तीन वर्गों में विभाजित था। फ्रांस की सामाजिक स्थिति निम्नलिखित प्रकार थी –
1. पादरी वर्ग:
इस वर्ग में चर्च के उच्च श्रेणी के पादरी थे। उन्हें कई विशेषाधिकार प्राप्त थे तथा कोई कर नहीं देना पड़ता था। इस वर्ग में सम्मिलित लोग धनी थे और विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे।
2. कुलीन वर्ग:
इस वर्ग में उच्चाधिकारी एवं बड़े-बड़े जमींदार होते थे। उन्हें भी उनके विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे कृषकों से सामंती कर वसूल करते थे। इतना ही नहीं इन लोगों के पास अपनी-अपनी जागीरें होती थीं।
3. मध्यम वर्ग:
इस वर्ग में किसान, कारीगर, छोटे कर्मचारी, मजदूर, वकील, डॉक्टर, अध्यापक एवं छोटे व्यापारी आदि सम्मिलित थे। इन लोगों पर करों का अत्यधिक बोझ था। इनसे बेगार भी ली जाती थी। यह फ्रांस का सबसे असंतुष्ट वर्ग था। इस वर्ग में सबसे बड़ा भाग किसानों का था। यह वर्ग अधिकारों से विहीन था। फ्रांस की राज्यक्रान्ति के विस्फोट में इस वर्ग ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 13.
फ्रांस के इतिहास में 14 जुलाई का क्या महत्व है?
उत्तर:
फ्रांस के इतिहास में 14 जुलाई का विशेष महत्व है। इस दिन फ्रांस के क्रान्तिकारियों ने बास्तील के किले पर विजय प्राप्त की थी। बास्तील फ्रांस का एक अतिप्राचीन किला था, जिसमें राजनीतिक कैदियों को रखा जाता था। इस किले को राजाओं की निरंकुशता तथा स्वेच्छाचारिता का प्रतीक समझा जाता था। 12 जुलाई 1789 ई. को एक युवा वकील केसमाईल देसमोला ने पेरिस में एक उत्तेजनापूर्ण भाषण दिया तथा जनता को हथियार उठाने हेतु उद्वेलित किया, जिससे पेरिस की भीड़ अनियंत्रित हो गयी।
14 जुलाई सन् 1789 को क्रुद्ध भीड़ ने बास्तील के किले पर आक्रमण कर वहाँ के कैदियों को छुड़ा लिया। यह किला जनता पर अत्याचार का गवाह रहा था। इसका पतन राजनैतिक रूप से निरंकुश शासन का अंत था। विश्व के इतिहास में यह महत्वपूर्ण एवं अनुपम घटना थी। फ्रांस में यह घटना लोकतंत्रवाद की विजय निंरकुशवाद की पराजय थी।
प्रश्न 14.
1791 ई. के फ्रांस के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
1791 ई. के फ्रांस के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- फ्रांस में जनता की इच्छाओं के आधार पर लिखित संविधान की रचना की गई।
- इसके द्वारा फ्रांस को एक संवैधानिक राजतंत्र घोषित किया गया।
- सम्राट की शक्तियों को सीमित कर दिया गया। उसकी भूमिका अब केवल नाम मात्र की रह गयी। उसे वेतनभोगी बना दिया गया।
- राष्ट्रीय एसेम्बली को कानून बनाने का अधिकार दिया गया।
- जनता की शक्ति को सर्वोच्च माना गया अर्थात् जन सम्प्रभुता का सिद्धांत लागू किया गया।
- मोंटेस्क्यू द्वारा दिया गया शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त लागू किया गया। सरकार की शक्तियों को कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका के मध्य विभजित कर दिया गया।
प्रश्न 15.
आतंक के शासन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जैकोबिन दल के नेता रोब्सपीयर ने गणतंत्र की रक्षा, आन्तरिक विद्रोह के दमन व फ्रांस से आक्रमणों से रक्षा हेतु सन् 1793 ई. से 1794 ई. तक फ्रांस में जो आतंक की नीति अपनाई। उसे आतंक का शासन कहा जाता है।
इस शासन व्यवस्था के अन्तर्गत विद्रोहियों के दमन हेतु रोब्सपीयर ने उन्हें गिलोटिन पर चढ़ाया जाना प्रारम्भ कर दिया। गिलोटिन मृत्युदण्ड हेतु प्रयुक्त यंत्र था। यूरोपीय देश फ्रांस के विरूद्ध संगठित हो रहे थे। सतर्कता समितियाँ बनाई गईं जो विरोधियों को ढूंडकर मौत के घाट उतारती थीं। इस आतंकित कर देने वाली व्यवस्था के बहुत विनाशकारी परिणाम हुए।
वास्तव में जेकोबिन दल के नेताओं ने आतंक का उपयोग व्यक्तिगत व दलगत वैमनस्य एवं व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के लिए किया था।
इस महा आतंक के शासन की समाप्ति 27 जुलाई, 1794 ई. को रोब्सपीयर के पतन के साथ ही हुई। फ्रांस में यह दौर सम्पूर्ण क्रांति पर एक कलंक के समान था।
प्रश्न 16.
नेपोलियन बोनापार्ट के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म 15 अगस्त 1769 ई. को कोर्सिका द्वीप पर हुआ था। इनके पिता का नाम कार्लो बोनापार्ट व माता का नाम लीतिशिया रेमालिनो था। नेपोलियन ने फ्रांस की राजनीतिक व आर्थिक अस्थिरता का लाभ उठाकर सेना की मदद से सत्ता पर अधिकार कर लिया। उसने सन् 1804 ई में स्वयं को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया।
उसने कई पड़ोसी यूरोपीय देशों पर विजय प्राप्त की। पुराने राजवंशों को हटाकर नए साम्राज्य बनाए। उसने फ्रांस में शिक्षा सम्बन्धी अनेक सुधार किए तथा विधि संहिता का निर्माण करवाया। उसके मास्को अभियान ने उसकी शक्ति को ध्वस्त कर दिया। 1815 ई. के वाटरलू के युद्ध में वह बुरी तरह पराजित हुआ। उसे सेन्ट हेलेग द्वीप पर कैद कर दिया गया। जहाँ 5 मई 1821 ई को उसकी मृत्यु हो गयी।
प्रश्न 17.
नेपोलियन के मास्को अभियान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट यूरोप पर एकाधिकार करना चाहता था। वह रूस को यूरोप के बाहर करना चाहता था। ऑस्ट्रिया व प्रशा से संधि व सहायता प्राप्त कर अप्रैल 1812 ई. में नेपोलियन ने रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। रूस की सेना को परास्त करते हुए वह मास्को तक पहुँच गया। रूसी सेना पीछे हटती गई। कड़ाके की सर्दी और बर्फ पड़ने तक रूसी जार ने प्रतिक्षा की बीमारी, भूख व सर्दी से फ्रांसीसी सेना को बड़ी क्षति हुई।
उसके लाखों सैनिक ठण्ड से मर गए। इस प्रकार नेपोलियन का मास्को अभियान असफल रहा। फिशर के अनुसार मास्को अभियान दो राष्ट्रों के मध्य संघर्ष नहीं था बल्कि वो तो एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति और एक धार्मिक जाति की राष्ट्रीय भावना के बीच संघर्ष था।
प्रश्न 18.
नेपोलियन के पतन के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
नेपोलियन के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
- प्रायद्वीपीय युद्ध।
- महाद्वीपीय व्यवस्था।
- पाप का अपमान।
- रूस से विरुद्ध अभियान।
- राष्ट्रीय चरित्र का समाप्त होना।
- इंग्लैण्ड की मजबूत स्थिति एवं सर्वश्रेष्ठ नौ सैनिक सेना।
- राष्ट्रीयता की भावना का समाप्त होना।
- युद्धों का निरन्तर जारी रहना।
- चारित्रक दोष।
- सगे-सम्बन्धियों के प्रति प्रेम।
- अधिनायकवादी सत्ता।
प्रश्न 19.
नेपोलियन की विधि संहिता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नेपोलियन ने फ्रांस में कई महत्वपूर्ण सुधार किए जिनमें विधि संहिता का निर्माण प्रमुख था। नेपोलियन ने चार विधि विशेषज्ञों की एक समिति बनाकर फ्रांस के कानूनों को संकलित करने का प्रयास किया। उसने असंगत व असंख्य कानूनों को समाप्त किया। 1804 ई. में बनी इस विधि संहिता को ‘नेपोलियन कोड’ कहा जाता है। इसमें पाँच प्रकार के कानून सम्मिलित थे –
- नागरिक संहिता।
- नागरिक प्रक्रिया संहिता।
- दण्ड विधान।
- अपराध प्रक्रिया संहिता।
- व्यवसाय संहिता।
इस संहिता में किसी भी प्रकार का सामाजिक, राजनीतिक या धार्मिक पक्षपात नही किया गया बल्कि कानूनों को बनाते समय समानता, धर्म, सहिष्णुता, नैतिकता, संयुक्त परिवार व्यवस्था, अनुशासन, देशभक्ति, सम्पत्ति का व्यक्तिगत अधिकार, मानवाधिकार आदि को भी महत्व दिया गया। सामान्य बौद्धिक ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर निर्मित यह संहिता नेपोलियन की महान देन मानी जाती है।
प्रश्न 20.
नेपोलियन के शिक्षा सम्बन्धी सुधारों को बताइए।
उत्तर:
नेपोलियन ने शिक्षा सम्बन्धी अनेक सुधार किए। उसने शिक्षा को चर्च के प्रभाव से मुक्त कर राज्य के अधीन कर दिया। महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति नेपोलियन स्वयं करता था। शिक्षा को प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा में विभाजित किया गया। धर्म को शिक्षा से अलग कर दिया गया। व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया गया।
पाठ्यक्रम में पारिवारिक अनुशासन एवं सैनिक शिक्षा को सम्मिलित किया गया। माध्यमिक स्तर तक प्रत्येक नगर में लाइसी नामक विद्यालय खोले गए। शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु नार्मल विद्यालय खोले गए। शिक्षक सरकारी कर्मचारी बन नेपोलियन की नीतियाँ पढ़ाने लगे। इस प्रकार शिक्षा के माध्यम से नेपोलियन ने अपनी राजव्यवस्था को सुदृढ़ किया।
प्रश्न 21.
गेस्टाइन समझौते की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
14 अगस्त 1865 ई. को प्रशा के सम्राट विलियम प्रथम व ऑस्ट्रिया के सम्राट फ्रांसिस जोसेफ के मध्य गेस्टाइन नामक स्थान पर एक समझौता हुआ। इस समझौते की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
- भलेसविग पर प्रशा का अधिकार माना गया।
- हाल्सटाइन पर ऑस्ट्रिया का अधिकार माना गया।
- लावेनबुर्ग को प्रशा ने कीमत देकर ऑस्ट्रिया से खरीद लिया।
- सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कील बदंरगाह पर किलेबंदी का अधिकार प्रशा को प्राप्त हो गया।
प्रश्न 22.
प्राग की संधि के प्रमुख परिणाम क्या हुए?
उत्तर:
सेडोवा के युद्ध में प्रशा के हाथों आस्ट्रिया की पराजय के बाद 23 अगस्त 1866 ई. को प्राग की संधि हुई। इस संधि में बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया के प्रति नरम व्यवहार रखा ताकि प्रशा को भविष्य में आस्ट्रिया की मित्रता प्राप्त हो सके। इस संधि की प्रमुख परिणाम निम्नलिखित थे –
- जर्मन परिसंघ को समाप्त कर दिया गया।
- हनोवर्ग, भलेसविग व हाल्सटाइन पर प्रशा का अधिकार माना गया।
- प्रशा के नेतृत्व में उत्तरी जर्मनी परिसंघ बनाया गया। उसमें ऑस्ट्रिया को सम्मिलित नहीं किया गया।
- वेनेशिया का प्रदेश इटली को दे दिया गया।
- दक्षिणी राज्यों को उनकी इच्छा पर स्वतंत्र छोड़ दिया गया।
प्रश्न 23.
एलोम्बियर्स समझौते की मुख्य बातें क्या थीं?
उत्तर:
21 जुलाई 1858 ई. को फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय एवं कावूर के मध्य सानिया के समीप एलोम्बियर्स नामक स्थान पर एक समझौता हुआ। इस समझौते की प्रमुख बातें निम्नलिखित थीं –
- सानिया और ऑस्ट्रिया के बीच युद्ध होने पर फ्रांस द्वारा सानिया को सैनिक़ सहायता दी जाएगी।
- सैनिक सहायता के बदले सार्जीनिया फ्रांस को नीस व सेवाय के प्रदेश देगा।
- आस्ट्रिया को पराजित करने के पश्चात् लोम्बार्डी व वेनेशिया सानिया को दे दिए जाएँगे।
- नेपल्स, सिसली और पोप के राज्य बन रहेंगे।
- विक्टर इमेन्युअल की पुत्री क्लेथिडे का विवाह नेपोलियन के चचेरे भाई जरोम नेपोलियन के साथ किया जाएगा।
- परमा, मोडेना तथा टस्कनी मिलकर एक नया राज्य बनेगा जिस पर नेपोलियन तृतीय का चचेरा भाई जरोम नेपोलियन बोनापार्ट राजा करेगा।
प्रश्न 24.
ज्यूसप गैरीबाल्डी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
ज्यूसप गैरीबाल्डी इटली के सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। इनका जन्म 1807 ई. में नीस नगर में हुआ। इनके पिता एक व्यापारिक जहाज में अधिकारी थे। एक नौ गैनिक विद्रोह में भाग लेने पर उन्हें मृत्युदण्ड की सजा दी गई। उस समय गैरीबाल्डी अमेरिका चले गए। जहाँ उन्होंने छापामार युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने ‘लालकुर्ती नामक देशभक्तों का संगठन बनाया।
1860 ई. में सिसली की जनता ने बूर्नो वंश के निरकुंश शासकों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा विद्रोह का नेतृत्व करने हेतु गैरीबाल्डी को आमंत्रित किया। गैरीबाल्डी ने जून 1860 ई. में सिसली पर अधिकार कर लिया। गैरीबाल्डी ने विक्टर इमेनुअल को विजित प्रदेशों का शासक घोषित कर दिया।
प्रश्न 25.
इटली के एकीकरण में मेजिनी की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मेजिनी इटली का एक महान क्रांतिकारी नेता था। इसका जन्म 1805 ई. में जिनेवा में हुआ था। यह कार्बोनरी के गुप्त संगठन का सदस्य बन गया। 1831 ई. में उसने यंग इटली नामक संगठन की स्थापना की। वह ऑस्ट्रिया को इटली से बाहर निकालना चाहता था तथा इटली को एक संयुक्त राष्ट्र के रूप में एकीकृत कर वहाँ गणतंत्र की स्थापना करना चाहता था। मेजिनी की संस्था यंग इटली के तीन नारे थे-ईश्वर में विश्वास रखो, सब भाईयों एक हो जाओ तथा इटली को स्वतंत्र करो।
मेजिनी को इटली के एकीकरण का मस्तिष्क, आध्यात्मिक शक्ति तथा इटली के एकीकरण की आत्मा माना जाता है। उसने अपनी संस्था के माध्यम से इटली के निवासियों में देशभक्ति, संघर्ष, त्याग, बलिदान एवं स्वतंत्रता की भावना भर दी। वह गणतंत्रीय विचारों एवं क्रांतिकारी साधनों का पोषक था। इस प्रकार मेजिनी को इटली के एकीकरण में अविस्मरणीय योगदान है।
प्रश्न 26.
फ्रैंकफर्ट, की संधि कब और किसके मध्य हुई? इसके प्रमुख परिणाम बताइए।
उत्तर:
10 मई 1871 ई. को फ्रांस व प्रशा के मध्य फ्रैंकफर्ट की संधि हुई। इसके प्रमुख परिणाम निम्नलिखित थे –
- इस संधि से जर्मनी का एकीकरण पूर्ण कर प्रशां के नेतृत्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण हुआ।
- युद्ध के पश्चात् हुई संधि में फ्रांस को अल्सारा लारेन जैसे देश जर्मनी को सौपने पड़े।
- संधि में हुए फ्रांस के अपमान ने प्रथम विश्व युद्ध की नींव रख दी।
- बिस्मार्क की रक्त लौह की नीति ने उदारवाद पर घातक प्रहार किया।
- फ्रांस पर 20 करोड़ पौण्ड युद्ध का हर्जाना थोपा गया। युद्ध हर्जाने की रकम की वसूली तक जर्मन सेना का फ्रांस में रहना भी निश्चित किया गया, जिसका खर्च फ्रांस को वहन करना था। यह फ्रांस का अपमान था।
- युद्ध के पश्चात् रोम पर इटली का अधिकार हो गया। जर्मनी के साथ इटली का एकीकरण भी पूर्ण हो गया।
RBSE Class 11 History Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
यूरोपीय देशों से लोगों के अमेरिका पहुँचने के क्या कारण थे?
उत्तर:
यूरोपीय देशों से लोगों के अमेरिका पहुँचने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति का प्रचार-प्रसार:
बाहरी दुनिया के लोगों को ईसाई बनाने की सम्भावना ने यूरोप के देशों को समुद्र में उतरने को प्रेरित किया। स्पेन व पुर्तगाल पर इन विचारधाराओं का अंत्यधिक प्रभाव था।
2. स्थायी धातु व मसालों की खोज:
1453 ई. में तुर्को द्वारा कुस्तुन्तुनिया की विजय ने यूरोपीय व्यापार को मंदो कर दिया था तथा उन्हें अधिक कर देना पड़ता था। साथ ही यूरोपीय देशों में सोने व चाँदी की कमी होती जा रही थी। अधिक से अधिक सोने का संग्रह उनको समुद्री यात्रा कर नए मार्गों की खोज को प्रेरित कर रहा था।
3. राजनैतिक अधिकारों के प्राप्ति की आकांक्षा:
यूरोपीय राज्यों में सत्ता राजनैतिक रूप से लार्ड, अभिजात एवं पादरी वर्गों के हाथों में थी। दूसरा वर्ग अर्थात् मध्यम समुदाय राजनैतिक लाभों के अधिकारों से वंचित था। वे अपने देश की राजव्यवस्था से दुखी होकर अमेरिका पहुँचने का प्रयास कर रहे थे। जहाँ रहकर वे स्वयं की सत्ता स्थापित कर सकें।
4. विस्तारवाद एवं औपनिवेशिक भावना:
अधिक से अधिक देशों पर अधिकार कर उन्हें उपनिवेश बनाना राष्ट्रीयता का प्रतीक माना जाने लगा। यह यूरोपीय देशों के मध्य सम्मान का प्रतीक था। नगरों के अभ्युदय व औद्योगिकीकरण की भावना ने औपनिवेशीकरण की प्रक्रिया को तेज कर दिया। यह उपनिवेश कच्चे माल की प्राप्ति व तैयार माल बेचने की मण्डी बन सकते थे। यही कारण था कि भारत के बदले संयोगवश अमेरिका के मार्ग की खोज हो गई।
5. चर्च के अत्याचार:
चर्च के अत्याचार और मजहबी उत्पीड़न ने यूरोपीय लोगों को बाहरी देशों में बसने को प्रेरित किया। अमेरिका में मेसाचुसेट्स उपनिवेश के समीप प्लीमथ उपनिवेश की स्थापना करने वाले अंग्रेज मजहबी स्वतंत्रता की आकांक्षा में ही यहाँ पहुँचे थे।
6. जन संहारक युद्ध:
कुछ लोग यूरोपीय देशों के मध्य होने वाले निरन्तर जन संहारक युद्धों से परेशान थे। इनसे बचने के लिए ये लोग एक सुरक्षित स्थान की तलाश में अमेरिका पहुँचे।
7. जनसंख्या वृद्धि के अपराधियों को बसाने की समस्या:
उस समय यूरोप में दासों का विक्रय होता था। उन्हें युद्ध में लड़ने हेतु बेचा जाता था। उससे बचने के लिए ये अपना देश छोड़कर अमेरिका जाने लगे। बढ़ती जनसंख्या और अपराधियों के लिए एक नई भूमि की तलाश करना अनिवार्य था, जिससे इस समस्या के हल के साथ-साथ उनके आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति भी हो जाती। उस काल में देश निकाला नामक सजा का प्रावधान था। अत: इस कानूनी प्रावधान के कारण भी कुछ लोग अमेरिका आये।
8. भूगोल का नवीन ज्ञान:
टालेमी द्वारा लिखित पुस्तक ”ज्योग्राफी” लोगों के भौगोलिक ज्ञान वृद्धि में मील का पत्थर साबित हुई। उसने प्रथम बार यूरोप को बताया कि दुनिया गोल है। इस रोमांच ने साहसिक नाविकों को समुद्री यात्रा के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न 2.
अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष के प्रमुख कारणों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
अमेरिका की क्रान्ति के उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष (क्रांति) के प्रमुख कारण:
अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष (क्रांति) के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. इंग्लैण्ड के प्रति प्रेम और सद्भावना का अभाव:
इंग्लैण्ड में धार्मिक अत्याचारों से दुखी होकर अथवा अपराध के दण्ड स्वरूप अमेरिका आए अंग्रेजों और वहाँ के अन्य यूरोपीय लोगों में अपने मातृ देश इंग्लैण्ड के प्रति किसी भी प्रकार की सद्भावना या प्रेम नहीं था।
2. बौद्धिक चेतना का विकास:
शिक्षा, साहित्य एवं पत्रकारिता के निरन्तर विकास ने अमेरिका के लोगों में स्वअस्तित्व के प्रति प्रेरणा उत्पन्न की। कॉमनसेन्स नामक पुस्तक में टॉमस पेन ने राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना का संचार किया। बेंजामिन फ्रेंकलिन ने अमेरिकन फिलोसोफिकल सोसाइटी की, स्थापना की जहाँ नए-नए विचारों का अदान-प्रदान व विचार गोष्ठियों का आयोजन किया जाता था।
बौद्धिक चेतना के विकास में जेम्स ओटिस, पैट्रिक हेनरी व सेम्युअल एडम्स ने बहुत योगदान दिया। शिक्षा व पत्रिकारिता ने भी बौद्धिक चेतना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1636 ई. में हारवर्ड कालेज की स्थापना हुई। 1704 ई. में बोस्टन न्यूजलेटर नामक समाचार पत्र प्रकाशित हुआ। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में क्रमशः विकास ने राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया।
3. सप्तवर्षीय युद्ध के प्रभाव:
औपनिवेशिक सर्वोच्चता हेतु इंग्लैण्ड और फ्रांस के मध्य युद्ध इंग्लैण्ड. की विजय के साथ 1763 ई. में समाप्त हो गया। अमेरिका में फ्रांसीसी सत्ता का अंत हो गया। समस्त अमेरिकी फ्रांसीसी उपनिवेश इंग्लैण्ड के अधिकार क्षेत्र में आ गए। वहाँ फ्रेंच कैथोलिक व मूल निवासी रेड इण्डियन की संख्या अधिक थी। रेड इण्डियनों व इंग्लैण्डवासियों में शुरू से ही तनाव की स्थिति बनी हुई थी। अतः इंग्लैण्ड द्वारा उन्हें कुछ आरक्षित क्षेत्र दे दिए गए। इससे वहाँ उपनिवेशों का प्रसार रुक गया।
4. गवर्नर व स्थानीय विधान परिषद् में तनाव:
उपनिवेशों की शासन व्यवस्था का संचालन गवर्नर के नेतृत्व में गठित उसकी कार्यकारिणी करती थी। ये दोनों ब्रिटिश सम्राट के प्रति उत्तरदायी थे, लेकिन स्थानीय लोगों की विधान परिषद् इनके हस्तक्षेप का विरोध करती थी। फलस्वरूप दोनों में तनाव बना रहता था।
5. सम्राट जार्ज तृतीय की गलत आर्थिक नीतियाँ व अधिनियम:
सम्राट जार्ज तृतीय के समय इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री ग्रेनविले ने 1763 ई. में यह निष्कर्ष निकाला था कि अमेरिका पर होने वाले व्यय की तुलना में वहाँ से प्राप्त आय कम है। अत: उसने अमेरिका के सम्बन्ध में नवीन योजना बनाई, जिसमें प्रत्यक्ष कर लगाने, तस्करी व्यापार रोकने एवं अमेरिका में स्थायी सेना रखने के प्रस्ताव शामिल थे।
ग्रेनविले ने अमेरिका में प्रत्यक्ष करारोपण हेतु कानून बनाए। जिनमें शुगर एक्ट, स्टाम्प एक्ट, करेन्सी एक्ट, क्वाटरिंग एक्ट एवं चाय कर प्रमुख थे। उपर्युक्त करारोपण ने अमेरिकावासियों को चुपचाप बैठे न रहने हेतु प्रेरित किया। उनका तर्क था कि इंग्लैण्ड की संसद को अमेरिका के लोगों पर कर थोपने का अधिकर नहीं है।
6. अमेरिकावासियों के साथ हीनता का व्यवहार:
अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में नियुक्त कर्मचारी, सैनिक व अधिकारी अमेरिका के लोगों को अपने से हीन समझते थे। उनके साथ अभद्र व्यवहार करते थे। अमेरिका स्थित अंग्रेजी क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत अमरीकी सैनिकों को अंग्रेज अधिकारी पशुतुल्य समझकर कार्य करवाते थे। इन्हीं असंतुष्ट सैनिकों ने स्वतंत्रता युद्ध के दौरान स्वतंत्र अमेरिकी सेना के संगठन के समय प्रशिक्षित सैनिकों का कार्य किया। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि उक्त कारणों ने अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष को गति प्रदान की।
प्रश्न 3.
अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष की प्रमुख घटनाएँ अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं –
1. बोस्टन हत्याकाण्ड:
बिलेटिंग एक्ट के तहत अंग्रेज सैनिकों के रहने व खाने की व्यवस्था नहीं कर पाने के कारण जून 1767 ई. में न्यूयार्क विधानसभा को भंग कर दिया गया। इसके अतिरिक्त टाउनशेड कानूनों के विरुद्ध अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में विरोध स्वरूप व्यापक प्रतिक्रिया और दंगे हुए। इन मुद्दों पर बोस्टन शहर की स्थिति उग्र व हिंसात्मक हो। गयी। अंग्रेज अधिकारियों ने सेना के सहयोग से बोस्टन विद्रोह को दबाने की कोशिश की।
सेना द्वारा गोलीबारी में 5 मार्च 1770 ई. को तीन अमेरिकन नागरिकों की मृत्यु हो गयी। अमेरिका के लोगों ने इसे बोस्टन हत्याकांड कहा और इसकी निंदा की गई। इस हत्याकांड ने टाउनशेड करों को समाप्त करा दिया। इंग्लैण्ड को झुकना पड़ा लेकिन चाय पर कर बनाए रखा गया। बोस्टन हत्याकांड को अमेरिका में बहुत अधिक प्रचारित किया गया। इंग्लैण्ड विरोधी जनसभाएँ अयोजित की गईं। इससे अमेरिका में स्वतंत्रता संघर्ष हेतु प्रेरणा मिली।
2. बोस्टन टी पार्टी:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपने दिवालिएपन से बचने के लिए अमेरिका में चाय बेचने का एकाधिकार माँगा। कम्पनी की माँग पर ब्रिटिश संसद ने अमेरिका में चाय बेचने का अधिकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिया। यह कम्पनी सामान्य दरों से कम मूल्य पर चाय बेचने जा रही थी ताकि अमेरिका का तस्करी व्यापार समाप्त हो जाए। इंग्लैण्ड की इस चाय नीति का अमेरिका के राष्ट्रवादियों ने विरोध किया।
अनेक स्थानों पर सभाएँ आयोजित की गईं। मेसाचुसेट्स के बोस्टन नगर में विरोध अत्यन्त उग्र था। 26 दिसम्बर 1773 ई. को जब चाय की पेटियों से भरे जहाज बोस्टन बंदरगाह पर पहुँचे तो सैम्युअल एडम्स के नेतृत्व में अमेरिकी राष्ट्रवादी कुलियों के वेष में बंदरगाह पर खड़े चाय से लदे जहाजों में घुस गए और चाय की लगभग 340 पेटियों को समुद्र में फेंक दिया। इस घटना को ‘बोस्टन टी पार्टी’ के नाम से जाना जाता है।
3. प्रथम महाद्वीपीय काँग्रेस अधिवेशन:
इंग्लैण्ड की सरकार ने बोस्टन टी पार्टी को चुनौती मानते द्वारा ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किए दमनात्मक कानूनों का विरोध करने के लिए 5 सितम्बर 1774 ई. को फिलाडेल्फिया में जार्जिया को छोड़ समस्त अमरीकी उपनिवेशों के प्रतिनिधियों का एक अधिवेशन आयोजित किया गया। यह सम्पूर्ण अमेरिका का प्रथम अधिवेशन था। इस अधिवेशन का उद्देश्य उपनिवेशों की वर्तमान स्थिति पर विचार करना व अपनी माँगों को इंग्लैण्ड से मनवाना था। इस हेतु एक प्रतिनिधि मंडल इंग्लैण्ड भेजा गया।
4. लेक्सिगटन हत्याकांड:
19 अप्रैल 1775 ई. को जॉन हेनकॉक व सैम्युअल एडम्स को गिरफ्तार करने के विरोध में स्वयं सेवकों की एक टुकड़ी ने ब्रिटिश सैनिकों पर हमला कर दिया। इस घटना में 8 स्वयंसेवक मारे गये। इस हत्यकांड का बदला अमेरिकी स्वयंसेवकों ने कनकार्ड नामक स्थान पर ब्रिटिश सैनिकों को मार कर लिया।
5. द्वितीय महाद्वीपीय काँग्रेस अधिवेशन:
लेक्सिगटन की हिंसात्मक घटना के पश्चात 10 मई 1775 ई. को फिलाडेल्फिया में जॉन हेनकॉक की अध्यक्षता में द्वितीय महाद्वीपीय काँग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया। प्रथम बार इस अधिवेशन में अमेरिका की स्वतंत्रता पर गंभीरतापूर्वक विचार किया गया। इस बैठक में यह निर्णय किया गया कि ब्रिटिश सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष अनिवार्य है। इस हेतु जार्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में एक महाद्वीपीय सेन, के गठन का भी निर्णय किया गया। इसके अतिरिक्त इंग्लैण्ड से सम्बन्ध समाप्त कर विदेशी सहायता की आवश्यकता भी महसूस की गई।
6. अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा:
जून 1776 ई. में महाद्वीपीय काँग्रेस में अमेरिकी राष्ट्रवादियों को बहुमत था। रिचर्ड हेनरी ने अमेरिका की स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा जिसका जॉन एडम्स ने अनुमोदन किया। स्वतन्त्रता की घोषणा हेतु पाँच सदस्यों की एक समिति बनाई गई जिसमें जेफरसन, बेंजामिन फ्रेंकलिन, जॉन एडम्स, रोजर सर्मन एवं रॉबर्ट लिविंगस्टन सम्मिलित थे। 2 जुलाई 1776 ई. को काँग्रेस ने स्वतंत्रता के प्रस्ताव को स्वीकृत कर 4 जुलाई 1776 ई. को अमेरिका को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया।
प्रश्न 4.
अमेरिका में इंग्लैण्ड की पराजय के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष में इंग्लैण्ड की असफलता के कारणों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अमेरिका में इंग्लैण्ड की पराजय के कारण अमेरिकी स्वतंत्रता संघर्ष में इंग्लैण्ड की पराजय (असफलता) के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. इंग्लैण्ड व अमेरिका के मध्य लम्बी दूरी:
इंग्लैण्ड व अमेरिका के मध्य हजारों किलोमीटर की दूरी थी। इसके साथ-साथ अँग्रेज सैनिक अमेरिका की भौगोलिक परिस्थितियों से पूर्णत: परिचित भी नहीं थे। दूसरी ओर स्पेन, फ्रांस व हालैण्ड की नौसेना ने इंग्लैण्ड को अति आवश्यक युद्ध सामग्री अमेरिका पहुँचाने से समुद्र में ही रोके रखा। इस प्रकार अमेरिका की सेना को फ्रास, स्पेन व हालैण्ड का सहयोग एक साथ प्राप्त हुआ जो उसके लिए लाभदायक रहा।
2. इंग्लैण्ड के सैनिकों में जोश का अभाव:
इंग्लैण्ड के सैनिकों को अमेरिका में रह रहे अपने स्वजातीय बंधुओं से ही लड़ना था। अत: उनमें जोश का अभाव था। वहीं अमरिकी लोग अपने राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक अधिकारों के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर संघर्ष को पक्ष में करने के लिए कृत संकल्पित थे।
3. इंग्लैण्ड की सेना में अधिकांश किराए के सैनिक होना:
इंग्लैण्ड की सेना में अधिकांश सैनिक किराए के थे जिन्हें जर्मनी से लिया गया था। उनमें विजय के प्रति विशेष रुचि का अभाव था। उन्हें केवल अपनी किराया राशि से ही सरोकार था। इस कारण वे राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत अमेरिकी स्वयंसेवकों के समक्ष नहीं टिक सके।
4. जार्ज तृतीय की दमनकारी नीति:
इंग्लैण्ड के सम्राट जार्ज तृतीय की दमनात्मक नीति भी अमेरिका के लिए लाभदायक सिद्ध हुई। लोगों में इंग्लैण्ड के विरुद्ध रोष व्याप्त था। वहीं अंग्रेज सेनानियों ने विजय के अवसरों को जानबूझकर खोया। स्थिति यहाँ तक खराब थी कि इंग्लैण्ड का युद्ध मंत्री लार्ड जर्मन तो कभी-कभी ही युद्ध स्थल से आए संदेशों व पत्रों को पढ़ता था। वहीं दूसरी ओर जार्ज वाशिंगटन योग्य सेनानायक सिद्ध हुआ।
5. अमेरिका में संघर्ष के क्षेत्र का विस्तृत होना:
क्षेत्रफल की दृष्टि से अमेरिका एक विशाल देश है। यहाँ संघर्ष का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत था जिसका नुकसान ब्रिटिश सेना को उठाना पड़ा। ब्रिटिश सेना के लिए प्रत्येक मोर्चे पर लड़ना अत्यन्त दुष्कर कार्य हो गया था।
6. इंग्लैण्ड के राजनीतिक घटनाक्रम का अमेरिका के पक्ष में होना:
इंग्लैण्ड के दिन-प्रतिदिन के राजनीतिक घटनाक्रम पर अमेरिका के लोगों की नजर थी। इंग्लैण्ड के विभिन्न यूरोपीय देशों से बिगड़ते रिश्ते अमेरिका के लिए लाभप्रद सिद्ध हुए। फ्रांस, स्पेन व हालैण्ड का अमेरिका को सहयोग प्राप्त हुआ।
7. अमेरिका को योग्य नेतृत्व प्राप्त होना:
अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम को जार्ज वाशिंगटन व अब्राहम लिंकन जैसे योग्य नेताओं का नेतृत्व प्राप्त हुआ जो उसके लिए सहायक और इंग्लैण्ड के लिए मुसीबत बन गया।
8. अमेरिकी देशभक्तों को समर्पण:
अमेरिकी जनता इंग्लैण्ड द्वारा किए जा रहे उनके मानवाधिकारों के हनन से परेशान थी। उसने देशभक्त स्वयंसेवकों की एक फौज तैयार कर पूर्ण समर्पण व बलिदान देकर अमेरिका को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। स्वतंत्रता युद्ध में अमेरिकी देशभक्तों का यही समर्पण एवं बलिदान अमेरिकी सफलता में सहायक सिद्ध हुआ।
प्रश्न 5.
दोषपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था किस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति के लिए जिम्मेदार थी ? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
फ्रांस की दोषपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए जिम्मेदार होना:
निश्चित रूप से फ्रांस की दोषपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए जिम्मेदार थी। इसके दोषों को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझ सकते हैं –
1. केन्द्रीयकृत शासन एवं अधिनायकवादी सत्ता:
फ्रांस में वंशानुगत निरंकुश राजतंत्र था। यहाँ राजा का पद निरंकुश व दैवीय अधिकारों से विभूषित था। राजा को देवतुल्य माना जाता था। राजा की इच्छा ही कानून था, जिसका उल्लंघन दण्डनीय अपराध था। राजा की आज्ञा ही करारोपण व राजकोष के व्यय का आधार थी। लैत्र-द-काशे नामक अधिकार पत्र से राजा किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करवाकर सजा दे सकता था। अत: फ्रांस में आम व्यक्ति सहमा हुआ रहता था। व्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं थी। लुई 14वें ने निरंकुशता में और अधिक वृद्धि कर दी।
2. अयोग्य शासक:
फ्रांस का शासक लुई 15वाँ विलासी और अयोग्य शासक था। उसने शासन व्यवस्था में सुधार की अपेक्षा अपना सम्पूर्ण समय आमोद-प्रमोद में व्यतीत कर दिया। लुई 16वाँ भी एक अयोग्य, अकर्मण्य, विलासी एवं बुद्धिहीन व्यक्ति था। वह अपनी पत्नी और साहुकारों के प्रभाव में फ्रांस की दयनीय स्थिति से बेखबर था।
3. न्याय व्यवस्था का भ्रष्टाचार युक्त होना:
फ्रांस की न्याय व्यवस्था दोषपूर्ण, अव्यवस्थित, खर्चीली, अन्यायपूर्ण एवं भ्रष्टाचार युक्त थी। राजा के शब्द ही कानून का कार्य करते थे। जिस प्रकार प्रत्येक 5 से 8 मील की दूरी पर बोली बदल जाती है। उसी प्रकार फ्रांस में कानून बदल जाता था। राजा के पास एक ऐसा कानून-पत्र था जिससे वह जब चाहे किसी को भी गिरफ्तार करवाकर सजा दे सकता था। दण्ड प्रणाली कठोरतम थी। कोई न्यायिक पद्धति भी नहीं थी। ऐसी राजनीतिक अव्यवस्था के परिदृश्य में फ्रांस का मनुष्य कैसे और कब तक नीची गर्दन किए रह सकता था। अत: इस व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह अवश्यंभावी हो गया।
4. खर्चीली राज्य व्यवस्था:
फ्रांस के राजा पेरिस से दूर वर्साय के महलों में अपना अधिकांश समय व्यतीत करते थे। उन महलों में हजारों की संख्या में नौकर, उनकी शान-शौकत एवं भोगविलास सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए उपस्थित रहते थे। इन पर खर्च होने वाली राशि बहुत अधिक होती थी। फ्रांस की स्थिति यहाँ तक बिगड़ गयी कि देश की आमदनी कम और व्यय अधिक होने लगा। फलस्वरूप अत्यधिक कर थोपने से आम जनता परेशान हो गयी जो क्रांति का एक कारण बनी।
5. असक्षम प्रतिनिधि सभा:
फ्रांस में एस्टेट्स जनरल नामक एक प्रतिनिधि सभा थी, जिसमें कुलीन वर्ग, पादरी वर्ग, अभिजात वर्ग एवं सामान्य नागरिकों का प्रतिनिधित्व था। इस सभा में कुलीन, पादरी एवं अभिजात वर्गों का बोलबाला था। वह आम जनता के पक्ष में निर्णय लेने में असक्षम सिद्ध हो रही थी। 1614 ई. के बाद दूसरा कोई अधिवेशन भी नहीं बुलाया गया था। आम जनता की कोई सुनने वाला नहीं था। इस प्रकार फ्रांस की दोषपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए पृष्ठभूमि तैयार की।
प्रश्न 6.
फ्रांसीसी क्रांति के लिए उत्तरदायी सामाजिक कारणों का विस्तार से उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
फ्रांसीसी क्रांति के लिए उत्तरदायी सामाजिक कारण फ्रांसीसी क्रांति के लिए उत्तरदायी सामाजिक कारण निम्नलिखित थे –
1. सामाजिक असमानता:
अनेक विद्वान फ्रांस के समाज में व्याप्त सामाजिक असमानता को फ्रांस की क्रांति का कारण मानते हैं। फ्रांस में उस समय समाज चार वर्गों में विभाजित था –
- पादरी वर्ग
- कुलीन वर्ग
- मध्यम वर्ग
- सामान्य वर्ग।
प्रथम दो वर्ग आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न थे। सामान्य वर्ग की स्थिति सर्वाधिक दयनीय थी। पादरी व कुलीन वर्ग कई विशेषाधिकारों एवं रियायतों से युक्त थे। उन पर किसी भी प्रकार का कोई आर्थिक दायित्व नहीं था। इसके विपरीत फ्रांस की सम्पूर्ण सम्पत्ति का 5वाँ भाग इनके पास था। दूसरी ओर मध्यम वर्ग व निम्न वर्ग करों के बोझ से दबे हुए थे। उन्हें राजा को अतिरिक्त अदायगी भी करनी होती थी। किसान व मजदूर वर्ग विशेषाधिकार विहीन वर्ग था। यह वर्ग सर्वाधिक जनसंख्या वाला था।
कृषकों की दशा राजा, पादरी व कुलीन वर्ग की तुलना में अत्यन्त दयनीय हो चुकी थी। उनकी आमदनी का लगभग 80 प्रतिशत भाग करों में चला जाता था। मध्यम वर्ग में छोटे व्यापारी, शिक्षक, वकील, डाक्टर, कलाकार एवं राजकीय कर्मकारी आते थे। फ्रांसीसी क्रांति में सर्वाधिक योगदान इसी वर्ग का था। शिक्षित व धन सम्पन्न होने के कारण कुलीन वर्ग से ईष्र्या की भावना उन्हें व्यवस्था परिवर्तन करने के लिए प्रेरित कर रही थी। पादरी वर्ग से भी उन्हें द्वेष था। नेपोलियन बोनापार्ट ने भी मध्यम वर्ग को क्रांति के लिए उत्तरदायी माना।
2. चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार:
फ्रांस के चर्चे में भारी भ्रष्टाचार फैला हुआ था। वे जनता पर धार्मिक कर लगाते थे। चर्च के पास भारी धन संपदा थी। पादरी वर्ग शान-शौकत का विलासी जीवन यापन करता था। आम जनता से प्राप्त धन का उपयोग अनैतिक कार्यों में हो रहा था, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे चर्चा के पादरी साधारण जीवन यापन को मजबूर थे।
निर्धन व भूखी जनता को चर्च का क्रिया कलाप खलने लगा। ‘टाइथ’ नामक धार्मिक कर जो कि स्वेच्छा से दिया जाता था, जबरन वसूला जाने लगा। चर्च के इस व्यवहार के प्रति किसानों में घृणा का भाव उत्पन्न हो गया। अत: फ्रांस का गरीब भूख से बचने के लिए चर्च की विलासिता का साधन बनी इस अथाह सम्पत्ति को लूटने के बारे में सोचने को बाध्य था।
3. वंशानुगत एवं उच्चाधिकार प्राप्त प्रशासनिक वर्ग:
फ्रांस में उच्च पदों पर कुलीन वर्ग के लोग कार्यरत थे। ये सभी समाज में प्रतिष्ठा व सम्मान प्राप्त लाः। थे। यह वर्ग करों से भी मुक्त था। यह अधिकारी वर्ग ही करों का संग्रह, कानुन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था के साथ-साथ देश की सुरक्षा को भी देखता था। यह वर्ग निर्धन एवं कृषकों से बेगार लेता था। इस उच्चाधिकार प्राप्त प्रशासनिक वर्ग से फ्रांसीसी आम जनता परेशान थी। उसे रोजगार, व्यापार, वेतन, उद्योग, कृषि आदि कार्यों के लिए कुलीन वर्गों का मुँह ताकना पड़ता था। ऐसी स्थिति व्यापक असंतोष का कारण बनी। यह असंतोष 1789 ई. में ऐसा फूटा कि उसे रोक पाना असम्भव हो गया।
प्रश्न 7.
नेपोलियन बोनापार्ट द्वारा फ्रांस में किए गए महत्वपूर्ण सुधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट द्वारा फ्रांस में किए गए महत्वपूर्ण सुधार:
नेपोलियन बोनापार्ट ने फ्रांस में कई महत्वपूर्ण सुधार किए। ये सुधार निम्नलिखित हैं –
1. शिक्षा में सुधार:
नेपोलियन बोनापार्ट ने फ्रांस में शिक्षा को चर्च के प्रभाव से मुक्त कर राजा के अधीन कर दिया। राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति को समस्त स्तरों पर व्यापक व प्रभावशाली बनाया गया। तकनीकी, व्यावसायिक एवं सैन्य शिक्षा हेतु अलग से व्यवस्था की गई। महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति स्वयं नेपोलियन करता था। माध्यमिक स्तर पर ‘लाइसी’ नामक विद्यालय एवं शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु नार्मल विद्यालयों की स्थापना की गई। पाठयक्रम में पारिवारिक अनुशासन व सैन्य शिक्षा को सम्मिलित किया गया। इस प्रकार शिक्षा के माध्यम से नेपोलियन अपनी राज्य व्यवस्था को सुदृढ़ करना चाहता था।
2. विधि संहिता का निर्माण:
नेपोलियन ने समस्त असंगत व असंख्य कानूनों को समाप्त करके उन्हें फ्रांस की व्यवस्था के अनुकूल बनाया। नेपोलियन ने चार विधि-विशेषज्ञों की एक समिति बनाकर फ्रांस के कानून को संकलित करने का प्रयास किया। 1804 ई. में विधि-विशेषज्ञों द्वारा बनाई गई विधि संहिता को ‘नेपोलियन कोड’ कहा जाता है। इसमें पाँच प्रकार के कानून थे –
- नागरिक संहिता।
- दण्ड विधान।
- नागरिक प्रक्रिया संहिता।
- अपराध प्रक्रिया संहिता एवं।
- व्यवसाय संहिता।
इसी विधि संहिता में मानवाधिकारों की घोषणा की गई थी। सभी को कानून के समक्ष समान स्वीकार किया गया। इस संहिता में किसी भी प्रकार का सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक पक्षपात नहीं था। इस संहिता को बनाते समय समानता, धर्म, सहिष्णुता, नैतिकता, संयुक्त परिवार व्यवस्था, अनुशासन, देशभक्ति, सम्पत्ति का व्यक्तिगत अधिकार आदि को महत्व दिया गया। पादरी वर्ग के प्रभाव को समाप्त करने के लिए सिविल मैरिज तथा तलाक को मान्यता दी गई। परिवार में स्त्रियों व पुरुषों की स्थिति पुरुष मुखिया से नीचे रखी गयी। सामान्य बौद्धिक ज्ञान और अनुभव के आधार पर निर्मित यह संहिता नेपोलियन की महान देन मानी जाती है।
3. शासन में सुधार:
नेपोलियन ने केन्द्रीय शासन को सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया। वह राज्य के अधिकारियों पर पूरा नियंत्रण रखता था। अकुशल अधिकारी को कठोर दण्ड दिया जाता था। नेपोलियन कर्मठ, कुशल एवं अनुशासनप्रिय शासक था। उसने फ्रांस को विभागों, उपविभागों में बाँटा। उसने प्रत्येक जिले में सैनिक अधिकारियों को नियुक्त किया। नेपोलियन ने विद्रोही पादरियों, सामन्तों और कुलीनों को पुन: फ्रांस में आमन्त्रित कर उन्हें वहाँ बसा दिया। सरकारी सेवाओं को सभी वर्गों के लिए खोल दिया गया।
4. आर्थिक सुधार:
नेपोलियन ने फ्रांस में बैंक ऑफ फ्रांस’ की स्थापना की। आय-व्यय एवं मुद्रा प्रणाली को व्यवस्थित किया। स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहन प्रदान कर इंग्लैण्ड से आयात पर प्रतिबंध लगाया। शराब, नमक, तम्बाकू पर कर बढ़ाया गया। खाद्य सामग्री का वितरण एवं यातायात व्यवस्था प्रारम्भ की गई। करों की वसूली राजकीय अधिकारियों के माध्यम से की जाने लगी। नेपोलियन ने फ्रांस के अधीन प्रदेशों से कच्चा माल सस्ती दरों पर आयात किया एवं महँगे दामों पर निर्यात करके फ्रांस की पूँजी को बढ़ाया। अप्रत्यक्ष कर समाप्त कर दिए गए। प्रत्यक्ष करों को कठोरता से वसूल किया जाने लगा।
5. धार्मिक नीति:
नेपोलियन ने 1801 ई. में पोप के साथ ‘कोंकोर्दा की संधि’ नामक समझौता किया। उसने चर्च को राजा के नियंत्रण में माना। पादरियों को राज्य का वेतनभोगी कर्मचारी बना दिया। नेपोलियन फ्रांस की रोमन कैथोलिक जनता को प्रसन्न करना चाहता था। वह स्वयं किसी धर्म का अनुयायी नहीं था। उसकी मान्यता थी कि ईश्वर नहीं भी है तो भी हमें ईश्वर का निर्माण करना होगा। फ्रांस में अन्य धर्मों को भी स्वतंत्रता प्रदान की गई। यह नेपोलियन की कूटनीतिक सफलता थी। वह धर्मावलम्बियों के क्रांति विरोधी प्रचार को रोक पाने में सफल हुआ।
प्रश्न 8.
नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के प्रमुख कारण नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
1. अतिवादी महत्वाकांक्षा:
एक सामान्य परिवार से जीवन प्रारम्भ करने वाला नेपोलियन केवल जीतते रहने में ही अपनी महत्वाकांक्षा खोजता रहा। स्वयं को क्रांति पुत्र कहते हुए, स्वतंत्रता, समानता एवं भातृत्व के क्रांतिजनित सिद्धान्तों के नाम पर यूरोप के राष्ट्रों से युद्ध करता रहा। उसका सम्पूर्ण यूरोप का स्वामी बनने की अतिवादी महत्वाकांक्षा उसके पतन का कारण बनी। फ्रांस में गणतंत्रवादी उसके विरोधी हो गए थे।
2. अधिनायकवादी सत्ता:
नेपोलियन ने फ्रांस में गणतंत्र को समाप्त कर निरंकुश राजतंत्र को पुनः प्रारम्भ कर दिया। उसने समाचारपत्रों को कठोर नियंत्रण में ले लिया। उसने श्रमिक संघों के निर्माण पर रोक लगा दी। नेपोलियन ने फ्रांसीसी क्रांति से उत्पन्न स्वतंत्रता का गला घोंट दिया। फ्रांसीसी क्रांति ने जिस आत्मनिर्णय के अधिकार के सिद्धांत को जन्म दिया था नेपोलियन ने सम्राट बनते ही निरंकुश राजतंत्र के माध्यम से जनता से उस अधिकार को भी छीन लिया।
3. प्रायद्वीपीय युद्ध:
नेपोलियन बोनापार्ट के द्वारा स्पेन पर अधिकार करना उसके लिए बहुत नुकशानदायक सिद्ध हुआ। इस घटना ने समस्त यूरोप को एक होने का अवसर प्रदान किया। स्पेन में इस घटना का तीव्र विरोध हुआ। वहाँ राष्ट्रीयता की एक लहर उठी और मित्र राष्ट्रों ने फ्रांस के विरूद्ध स्पेन की सहायता हेतु एक संयुक्त मोर्चे का निर्माण कर लिया। इस प्रायद्वीपीय युद्ध में फ्रांस को बहुत अधिक हानि झेलनी पड़ी। इस युद्ध में फ्रांस ने लगभग तीन लाख सैनिकों को खो दिया।
4. महाद्वीपीय व्यवस्था:
नेपोलियन ने इंग्लैण्ड को आर्थिक क्षेत्र में पराजित करने की एक नवीन योजना बनाई जिसे महाद्वीपीय व्यवस्था कहते हैं। वह इस व्यवस्था द्वारा इंग्लैण्ड को व्यापार के क्षेत्र में हानि पहुँचाना चाहता था। नेपोलियन मानता था कि उसके विश्व विजेता बनने के मार्ग में इंग्लैण्ड ही अकेला रोड़ा है। इसे सीधे युद्ध में नहीं हराया जा सकता है। अत: उसने महाद्वीपीय व्यवस्था के माध्यम से इंग्लैण्ड के साथ अन्य देशों के व्यापारिक सम्बन्धों को बनाए रखने पर नाकेबंदी द्वारा रोक लगा दी।
इस व्यवस्था ने सम्पूर्ण यूरोप में वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि कर दी। इसके अतिरिक्त वस्तुओं को अभाव भी उत्पन्न हो गया। रूस जैसे मित्र राष्ट्र भी इस महाद्वीपीय व्यवस्था के कारण फ्रांस के विरूद्ध हो गए। फ्रांस का । इंग्लैण्ड को आर्थिक क्षेत्र में पराजित करने का उसका लक्ष्य भी पूरा नहीं हो सका। महाद्वीपीय व्यवस्था ने फ्रांस के शत्रुओं में वृद्धि की। फ्रांस को कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं हुआ। यह व्यवस्था नेपोलियन के पतन का कारण बनी।
5. रूस के विरूद्ध अभियान:
नेपोलियन का रूस पर आक्रमण करना घातक सिद्ध हुआ। इस युद्ध में दो तिहाई फ्रांसीसी सैनिक रसद व साधनों के अभाव में भूख व सर्दी से.मर गए। रूस की भौगोलिक स्थिति की जानकारी न करके आत्माभिमान के कारण नेपोलियन ने स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली।
6. पोप के प्रति अपमानजनक व्यवहार:
नेपोलियन बोनापार्ट ने पोप से दुर्व्यवहार किया, जिससे जनमत उसका विरोधी हो गया। फ्रांस के सम्राट पद पर राज्याभिषेक के समय पोष को आमंत्रित कर उसका अपमान किया गया। जब पोप नेपोलियन को राजमुकुट पहनाने जा रहा था तब नेपोलियन ने राजमुकुट को स्वयं हाथों में लेकर उसे सिर पर धारण कर लिया और ये शब्द कहे-“यह ताज मुझे धूल में पड़ा मिला है जिसे मैंने तलवार की नोक पर उठाया है। यह एक प्रकार से पोप का अपमान था। इस कारण समस्त’यूरोपीय कैथोलिक मताबलम्बी उसके विरोधी हो गए।
7. नेपोलियन का कुटुम्ब प्रेम:
स्वयं को क्रांति पुत्र कहकर भी नेपोलियन अपने भाइयों व सगे-सम्बन्धियों के प्रति मोह को त्याग न सका। वह अपने परिवार के सदस्यों को राज्य पद देकर स्वयं को कुलीन सिद्ध करने का प्रयास करता रहा। उसने एक भाई लुई नेपोलियन को हालैण्ड, दूसरे भाई, जोसेफ को स्पेन तथा तीसरे भाई जोरेम को वेस्टफेलिया का शासक बनाया। यद्यपि सभी इस योग्य नहीं थे।
8. राष्ट्रीय चरित्र का समाप्त होना:
नेपोलियन की सेना में अधिकांश सैनिक अलग-अलग देशों से, भिन्न-भिन्न राष्ट्रीयता वाले बलात् भर्ती किए गए थे, जिनमें राष्ट्रीय चरित्र का अभाव था।
9. चारित्रिक दोष:
नेपोलियन बोनापार्ट जिद्दी स्वभाव का महत्वाकांक्षी शासक था। फ्रांस का सम्राट बनने के पश्चात् उसने अपने हितैषी लोगों से सलाह लेना बंद कर दिया। वह स्वयं द्वारा किए गए निर्णयों को ही सर्वश्रेष्ठ मानने लगा। यह उसके लिए घातक सिद्ध हुआ।
प्रश्न 9.
फ्रांसीसी क्रान्ति की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
फ्रांसीसी क्रान्ति की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं –
1. एस्टेट्स जनरल का आह्वान (5 मई, 1789 ई.):
केलोन के त्यागपत्र के बाद राजा द्वारा लगाये गये नये करों का पार्लेमाओं ने विरोध किया तथा एस्टेट्स जनरल को अधिवेशन बुलाने की मांग की। जनता व सेना भी पार्लेमा के साथ हो गई तब 5 मई, 1789 ई. में अधिवेशन बुलाया गया।
2. टेनिस कोर्ट की शपथ (20 जून, 1789 ईस्वी):
20 जून को राजा ने कुलीनों के पक्ष में सभा भवन पर ताला लगवा दिया इस परिस्थिति में जनसाधारण वर्ग ने पास के टेनिस मैदान पर ही सभा कर डाली। सभी सदस्यों ने संविधान बनने तक उसी टेनिस मैदान में डटे रहने की शपथ ली। यह शपथ “टेनिस कोर्ट की शपथ” के नाम से जानी जाती है।
3. राष्ट्रीय महासभा (27 जून, 1789 ईस्वी):
27 जून को राजा ने अफसल होकर तीनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन का आदेश दे दिया। यह फ्रांस की जनता की विजय थी।
4. बास्तील दुर्ग का पतंन (14 जुलाई, 1789 ईस्वी):
संविधान सभा के कार्य के दौरान ही राजा ने रानी व कुलीनों के दबाच में नेकर को वित्तमंत्री पद से पदच्युत कर दिया, साथ ही सेना को बुलावा भेजा। केसमाईल देसमोला नामक नेता ने जनता को हथियार उठाने हेतु आवान किया। 14 जुलाई को पेरिस में भीड़ ने बास्तोल नामक किले पर अधिकार कर वहाँ के कैदियों को छुड़ा लिया। यह किला जनता राजा के अत्याचार का गवाह रहा था। इसका पतन राजनैतिक रूप से निरंकुश शासन का अंत था। 14 जुलाई को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया।
5. विशेषाधिकारों का अन्त (4 अगस्त, 1789 ईस्वी):
4 अगस्त 1789 ई. की रात फ्रांस में एक नये युग की शुरूआत लेकर आयी। इस दिन कुलीनों और पादरी वर्ग ने स्वयं विशेषाधिकार त्याग दिये। सरकारी सेवाओं के द्वार सभी के लिए समान रूप से खोल दिए गए।
6. मानव अधिकारों की घोषणा (27 अगस्त, 1789 ईस्वी):
राष्ट्रीय सभा ने लफायत के प्रस्ताव पर मानव अधिकार घोषण पत्र जारी किया। इस घोषणा पत्र में क्रांति के वे निश्चित उद्देश्य व सिद्धान्त निहित थे जिन्हें जनता समझ पाएँ और ये भविष्य में बनने वाले संविधान का आधार बनें।
7. स्त्रियों का अभियान:
5 अक्टूबर को 6-7 हजार महिलाएँ सम्राट के महल वर्साय पहुँच गई और रोटी की मांग करने लगी। पेरिस में राजा की स्थिति एक बन्दी के समान हो गई। दस दिन पश्चात् राष्ट्रीय सभा भी पेरिस में आ गई।
8. 1791 ईस्वी का लिखित संविधान:
1791 ई. में प्रथम बार लिखित संविधान की रचना की गयी। संविधान जनता की इच्छाओं (काहियाओं) के आधार पर तैयार किया गया।
9. राजा का पलायन:
20 जून 1791 ई. को फ्रांस का राजा लुई बरेन गाँव के समीप भागने का प्रयास करते हुए पकड़ लिया गया। इस घटना ने राजतंत्र की समाप्ति और गणतंत्र की स्थापना सुनिश्चित कर दी। 21 जनवरी 1793 को फ्रांस के राजा लुई सोहलवे को मृत्युदण्ड दे दिया गया।
10. सितम्बर हत्याकांड:
प्रशा के सेनापति ने फ्रांसिसी जनता को फ्रांस के शासक को मुक्त करने का आदेश दिया। ऐसा नहीं करने पर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी। इस घोषणा ने फ्रांसीसी जनता को भड़का दिया। दांते ने उन सभी लोगों को मौत के घाट उतार दिया जिन पर रोजा या शत्रु देशों को सहायता पहुँचाने की आशंका थी। यह हत्याकाण्ड 2 से 6 सितम्बर के बीच हुआ। इसीलिए इसे “सितम्बर हत्याकाण्ड” कहा जाता है।
11. नेशनल कन्वेंशन (1792-1795 ईस्वी):
इसका शासन 20 सितम्बर 1792 ईस्वी से 26 अक्टूबर 1795 ईस्वी के मध्य रहा। यह काल जैकोबिन व जिरोंदिस्त दलों के मध्य हुए संघर्ष तथा जैकोबिनों द्वारा किए गए हत्याकाण्डों के लिए जाना जाता है। इसके बावजूद कन्वेंशन द्वारा देश को स्थायित्व प्रदान करते हुए गणतंत्र की स्थापना की गयी थी।
प्रश्न 10.
फ्रांसीसी क्रान्ति के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांसीसी क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हुए –
1. सामन्ती व्यवस्था का अन्त:
लुई 14वें के समय यद्यपि सामन्ती व्यवस्था पर नियंत्रण करते हुए शासन को केन्द्रीकृत कर दिया गया था, लेकिन क्रांतिकाल में सामन्त व्यवस्था को पूर्णतया समाप्त कर दिया गया।
2. राष्ट्रीयता का उदय:
फ्रांस से उठी राष्ट्रीयता की लहर ने जल्दी ही समस्त यूरोप को अपनी जकड़ में ले लिया। यही राष्ट्रीयता की लहर इटली व जर्मनी में एकीकरण की प्रेरणा रही है।
3. प्रजातांत्रिक भावना का उदय:
फ्रांस की जनता ने निरंकुश व वंशानुगत राजतंत्र शासन समाप्त करें गणतंत्र की स्थापना की। अब देश की सर्वोच्च सत्ता जनता में निवास करने लगी।
4. मानवाधिकारों की घोषणा:
देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कानून के समक्ष समानता, सम्पत्ति की सुरक्षा, योग्यता अनुसार पद, पदों के समान अवसर इत्यादि को मानव अधिकारों के रूप में कानून का अधिरि देकर स्थापित किया गया।
5. सेकुलर राज्य की घोषणा एवं चर्च के अधिकारों की समाप्ति:
प्रत्येक व्यक्ति को उपासना पद्धति चुनने का अधिकार दिया गया। मजहबी सहिष्णुता फ्रांसिसी. क्रांति की महत्वपूर्ण देन थी। मजहबी समस्याओं एवं पादरियों को राज्य के नियंत्रण में लाया गया एवं उन्हें भी संविधान के अनुसार कार्य व व्यवहार करने को बाध्य किया गया। इसका अर्थ था-शासन की चर्च के हस्तक्षेप से मुक्ति ।
6. राजनैतिक दलों का गठन:
फ्रांसिसी क्रांति में जनता को स्वयं के अधिकारों का ज्ञान हो चुका था। वह अब राजनैतिक अधिकारों से परिचित हो चुकी थी। शासन करने का दैवीय सिद्धांत अर्थात् राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है। इस कारण उसे शासन करने का अधिकार है, उसे अब समाप्त कर दिया गया। शासन की बागडोर जनता के हाथ में आ गई।
7. समाजवाद का प्रारम्भ:
क्रांतिकाल में कुलीन वर्ग, सामन्त वर्ग एवं पादरियों के विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया। समानता के सिद्धांत पर सामन्त व्यवस्था का अन्त कर किसानों के सामन्तों के लिए एक समान कानून व्यवस्था स्थापित की गई।
8. शिक्षा सम्बन्धी सुधार:
शिक्षा को चर्च से अलग कर उसके नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया। शिक्षा के मजहबी स्वरूप को बदल कर मानवतावादी बनाने का प्रयास किया गया। शिक्षा में अनुशासन व राष्ट्रीयता को विशेष महत्व देने का प्रयास किया गया।
9. स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व:
स्वतंत्रता, समानता एवं बन्धुत्व के नारे ने न केवल फ्रांस बल्कि सम्पूर्ण यूरोप को प्रभावित किया। भाषण व लेखन, सम्पत्ति के अधिकार की सुरक्षा, राजनैतिक दलों के गठन की आजादी, समान अवसर, योग्यता को महत्व, विधि के समक्ष समानता इत्यादि को स्थापित किया गया।
10. उदारवादी प्रजातंत्र का प्रारम्भ:
उदारवाद की विचारधारा ने चूंकि विशेषाधिकारों के अन्त का समर्थन एवं निरंकुश शासन का विरोध किया था, अतः अब उदारवार को संसदीय प्रजातांत्रिक सरकार का समानार्थी माना जाने लगा। फ्रांस ने यूरोप में उदारवादी लोकतंत्र का झण्डा बुलन्द किया। यह उदारवाद का राजनीतिक पक्ष था।
11. राजतंत्र की समाप्ति व जनता की शक्ति का उदय:
फ्रांसिसी क्रांति ने देश का भविष्य और वर्तमान दोनों ही जनता में निहित कर दिए थे। अब फ्रांस में राष्ट्र की प्रभुसत्ता शासक या राजतंत्र से बाहर फ्रांस के सक्रिय नागरिकों के समूह में निहित हो गई। फ्रांस में एक नया फ्रांसिसी झण्डा तिरंगा चुना गया। एस्टेट्स जनरल असेम्बली का स्थान नेशनल असेम्बली ने ले लिया जो सक्रिय नागरिकों का प्रतिनिधित्व करती थी। यूरोपीय राजनीति में राष्ट्रवाद का प्रारम्भ 1789 ई. की इसी फ्रांसिसी क्रांति से माना जाता है।
प्रश्न 11.
जर्मनी के एकीकरण के प्रमुख बाधक तत्व कौन-कौन से थे ? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
जर्मनी के एकीकरण के प्रमुख बाधक तत्व:
जर्मनी के एकीकरण के प्रमुख बाधक तत्व निम्नलिखित थे –
1. ऑस्ट्रिया का प्रतिक्रियावादी शासन:
आस्ट्रिया तत्कालीन समय में यूरोप की राजनीति में एक प्रमुख शक्तिशाली देश था। वह जर्मन राज्यों के एकीकरण में प्रमुख प्रतिक्रियावादी शक्ति था। वह जर्मनी में लगातार अपना हस्तक्षेप बनाए रखता था। ऑस्ट्रिया के चांसलर मैटरनिख ने जर्मनी के राष्ट्रीय आन्दोलनों को कठोरता से दमन किया।
2. बौद्धिक जागृति का अभाव:
जर्मन राज्यों में रहने वाले लोग नवीन विचारों से अनभिज्ञ थे। यहाँ रूढ़िवादी विचारधाराएँ ही प्रचलित थीं। यहाँ के शासकों के विचार संकीर्ण थे तथा एकीकृत जर्मनी की परिकल्पना इनकी समझ से परे थी। जर्मन एकता के प्रश्न पर यहाँ के बौद्धिक वर्ग के विचार भी अलग-अलग थे। कुछ जर्मनी का एकीकरण राजतंत्र के तहत चाहते थे लेकिन वे नेतृत्व के प्रश्न पर विभाजित थे। कुछ प्रशा के समर्थक थे तो कुछ ऑस्ट्रिया को समर्थन करते थे।
3. इंग्लैण्ड का हस्तक्षेप:
फ्रांस की भांति इंग्लैण्ड भी जर्मन राज्यों में रुचि रखता था। उसने हनोवर प्रान्त के बहाने उत्तरी राज्यों में निरन्तर अपना हस्तक्षेप बनाए रखा।
4. जर्मन राज्यों की आपसी प्रतिस्पर्द्ध:
जर्मन राज्यों के लिए राष्ट्रीय एकता का कोई महत्व नहीं था। यहाँ के शासक अपनी स्वतंत्रता और अपने हितों की रक्षा के लिए एक दूसरे राज्य से निरन्तर संघर्षरत थे।
5. जर्मनी की सामाजिक व आर्थिक विषमताएँ:
सम्पूर्ण जर्मनी छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था तथा प्रत्येक राज्य सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक रूप से एक दूसरे से भिन्न था। इन्हीं भिन्नताओं के फलस्वरूप जर्मनी को एकीकरण सम्भव नहीं हो पा रहा था।
6. फ्रांस का विरोधी होना:
यूरोप में राजनीति का मुख्य केन्द्र फ्रांस की राजधानी पेरिस थी। फ्रांस किसी भी कीमत पर स्वयं की सीमा पर किसी और शक्तिशाली देश को उदय होते नहीं देख सकता था। वह जर्मनी के एकीकरण का विरोधी था।
प्रश्न 12.
जर्मनी के राजनैतिक एकीकरण में सहायक तत्व कौन-कौन से थे ?
अथवा
जर्मनी के एकीकरण के साधक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जर्मनी के एकीकरण के साधक/सहायक तत्व:
जर्मनी के एकीकरण के प्रमुख साधक (सहायक) तत्व निम्नलिखित थे –
1. जॉलवरीन:
जर्मनी के राजनैतिक एकीकरण की शुरूआत से पूर्व उसके आर्थिक एकीकरण ने जो आधारशिला तैयार की उसने जर्मन लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना बलवती कर दी। प्रशा द्वारा 1818 ई. में भवार्जबर्ग -सोंदर शोसन नामक छोटे राज्यों से सीमा शुल्क संघ नामक संधि जॉलवरीन की। इसके तहत इन दोनों राज्यों के मध्य चुंगी समाप्त कर दी गई। माल की आवाजाही निर्बाध रूप से होने लगी। इसने व्यापार में अत्यधिक वृद्धि कर दी। आर्थिक एकता ने उस प्रादेशिक व क्षेत्रीय प्रभाव को कम कर दिया जो जर्मनी के एकीकरण में बाधक था। केटलबी ने कहा कि ‘जॉलवरिन के निर्माण ने भविष्य में प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया।”
2. बौद्धिक आन्दोलन:
किसी भी राष्ट्र के निर्माण में वहाँ के दार्शनिकों, इतिहासकारों, साहित्यकारों व कवियों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। लिफ्टे, ईगल, डालमेन, हार्डेनबर्ग, हॅटिक हाईन इत्यादि दार्शनिकों ने जर्मन आन्दोलन को सर्वश्रेष्ठ होने की संज्ञा दी। जर्मनी के जेना विश्वविद्यालय में 1815 ई. में बर्शेनशैफ्ट नामक एक देशभक्त संगठन का निर्माण किया गया। इस संस्था ने देशवासियों में न्याय, स्वतंत्रता एवं एकता की भावना भर दी।
3. औद्योगिक प्रगति:
औद्योगिक प्रगति के लिए आवश्यक कोयला और लोहा जर्मनी के हर क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में विद्यमान था। यही दोनों आज भी प्रत्येक उद्योग की आधारशिला माने जाते हैं। इन संसाधनों ने जर्मनी में औद्योगिक क्रांति की शुरूआत कर दी। परिवहन के लिए रेलमार्गों का निर्माण किया गया। प्रशा और भवार्जबर्ग के मध्य जॉलवरीन की संधि में प्रशा को यूरोप के अग्रणी औद्योगिक नगरों में ला खड़ा किया। इस औद्योगिक प्रगति ने उस व्यापारिक वर्ग को जन्म दिया जो अब जर्मनी के एकीकरण में ही स्वयं का लाभ देख रहा था। वे चाहते थे कि जर्मनी में व्यापार निर्बाध रूप से हो।
4. जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क का योगदान:
प्रशा का सम्राट विलियम प्रथम (1861 – 1888 ई.) सुलझे विचारों का दृढ़ निश्चयी व्यक्ति था। वह जानता था कि जर्मनी का एकीकरण राजतंत्र एवं उसके अधीन सुदृढ़ सेना के माध्यम से ही हो सकता है। इसी कारण उसने बिस्मार्क कों प्रधानमंत्री नियुक्त किया। बिस्मार्क एक चतुर राजनीतिज्ञ, अन्तरराष्ट्रीय मामलों का जानकार तथा कूटनीतिक कुशलता से परिपूर्ण व्यक्तित्व का धनी व्यक्ति था।
बिस्मार्क एक ओर तो ऑस्ट्रिया को, सेना के दम पर, जर्मन राज्यों से बाहर निकालना चाहता था। दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थिति का लाभ लेना चाहता था। इस दिशा में उसने अन्य देशों के साथ गुप्त संधियाँ तथा कूटनीति के प्रयास आरम्भ कर दिए। सम्पूर्ण जर्मनी के एकीकरण की घटनाओं को तीन संधियों के मध्य विभाजित किया जा सकता है –
युद्ध | उद्देश्य | संधि |
डेनमार्क से युद्ध (1864 ई.)। | आस्ट्रिया से युद्ध का आधार तैयार करना। | गेस्टाइन संधि (14 अगस्त 1865 ई.)। |
आस्ट्रिया से युद्ध (1866 ई.) (सेडावा को युद्ध)। | जर्मन परिसंघ से आस्ट्रिया का निष्कासन। | प्राग की संधि (23 अगस्त, 1866 ई.)। |
फ्रांस से युद्ध 1870 ई. (सेडान का युद्ध)। | दक्षिणी जर्मन राज्यों को उत्तरी जर्मन संघ से मिलाकर जर्मनी का एकीकरण पूर्ण करना। | फ्रेंकफर्ट की संधि (26 फरवरी 1871 ई.)। |
प्रश्न 13.
फ्रेंको-प्रशियन युद्ध एवं फ्रेंकफर्ट की संधि के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसके परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
फ्रेंको-प्रशियन युद्ध एवं फ्रेंकफर्ट की संधि:
स्पेन की गद्दी पर प्रशा के शासक के सम्बन्धी राजकुमार लियोपोल्ड को बैठाने का आमंत्रण मिला। इससे प्रशा के प्रतिष्ठा व अधिकार में वृद्धि होना स्वाभाविक था। दू री ओर फ्रांस में इस निर्णय का तीव्र विरोध हुआ। लियोपोल्ड को स्पेन की गद्दी मिलने से प्रशा की शक्ति बढ़ना तथा फ्रांस की सुरक्षा को भयंकर खतरा होना दिखाई दे रहा था।
फ्रांस के राजदूत ने एम्स नामक स्थान पर सम्राट विलियम से मिलकर लियोपोल्ड को स्पेन के सिंहासन पर नहीं बैठने के लिए मना किया। फ्रांसिसी राजदूत ने सम्राट विलियम से भविष्य में ऐसा नहीं करने के लिए भी वचन मांगा। इस बातचीत का लिखित विवरण तार द्वारा बिस्मार्क को मिल गया। बिस्मार्क ने कूटनीति का परिचय देते हुए पत्र को प्रकाशित करवा दिया। उसका वही प्रभाव हुआ जो बिस्मार्क चाहता था। फ्रांस व प्रशा दोनों ने इस पत्र को अपने-अपने अनुसार स्वयं का अपमान माना।
15 जुलाई 1870 ई. को फ्रांस व प्रशा के मध्य युद्ध प्रारम्भ हो गया। निर्णायक युद्ध सेडान में 1 सितम्बर 1870 ई. को हुआ। इसमें प्रशा के सेनापति वानमोल्टके ने फ्रांसिसी सेना को पराजित किया। नेपोलियन तृतीय ने स्वयं 83000 सेना सहित आत्मसमर्पण कर दिया। 18 जनवरी 1871 ई. में वर्साय के महल में जर्मनी के सम्राट विलियम का राज्याभिषेक किया गया। परिणाम स्वरूप 26 फरवरी 1871 ई. को फ्रेंकफर्ट की संधि हुई।
फ्रेंकफर्ट संधि के परिणाम:
- इस संधि ने जर्मनी का एकीकरण पूर्ण कर प्रशा के नेतृत्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण किया।
- युद्ध पश्चात् संधि में फ्रांस को अल्लास-लारेन जैसे औद्योगिक प्रदेश जर्मनी को सौंपने पड़े। फ्रांस के अल्लास – लारेन जैसे समृद्ध प्रदेश जर्मनी को मिलने से वहाँ भविष्य में तेजी से औद्योगिक प्रगति हुई।
- संधि में हुए फ्रांस के अपमान ने प्रथम विश्व युद्ध की नींव रख दी।
- बिस्मार्क ने जिन गुप्त संधियों की शुरूआत जर्मनी के एकीकरण के लिए की वही अब यूरोप की राजनीति को दबलने जा रही थी। बिस्मार्क ने कुशल राजनीतिज्ञ व कूटनीति के पण्डित के रूप में विश्व में अपनी एक पहचान बना ली।
- फ्रांस पर 20 करोड़ पौण्ड युद्ध का हर्जाना थोपा गया। यह भी तय हुआ कि जब तक हर्जाने की राशि नहीं चुका दी जाती जर्मन सैनिक उत्तरी फ्रांस में बने रहेंगे। यह फ्रांस का अपमान था।
- यह युद्ध के कारण रोम पर इटली का अधिकार हो गया। जर्मनी के साथ ही इटली का एकीकरण भी पूर्ण हो गया।
प्रश्न 14.
इटली के एकीकरण में सहायक प्रमुख संगठन एवं व्यक्ति कौन-कौन थे? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
इटली के एकीकरण में सहायक प्रमुख संगठन एवं व्यक्ति –
1. कार्बोनरी:
इस गुप्त संस्था की स्थापना 1810 ई. में नेपल्स में हुई थी। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य विदेशियों को बाहर निकाल कर इटली में वैधानिक स्वतंत्रता की स्थापना करना था।
2. युवा इटली:
यंग इटली की स्थापना मेजिनी द्वारा 1831 ई. में की गई थी। इस संस्था के तीन नारे थे-परमात्मा में विश्वास रखो, सब भाइयों एक हो जाओ और इटली को स्वतन्त्र करो। मेजिनी को इटली के एकीकरण का मस्तिष्क माना जाता है। इस संस्था ने इटली के निवासियों में देशभक्ति, संघर्ष, त्याग, बलिदान और स्वतंत्रता की भावना भर दी। मेजिनी ने इटली की जनता का आह्वान करते हुए कहा कि ‘‘संयुक्त इटली के आदर्श को छोड़कर अन्य किसी चीज के पीछे मत दौड़ो। इटली एक राष्ट्र है, एक राष्ट्र बनकर रहेगा।” मेजिनी देशभक्तों की दृष्टि में देवदूत था जो इटली के भविष्य को निर्मित करने आया था।
3. काउण्ट कावूर (1810 – 1961 ई.):
कावूर का जन्म 1810 ई. में ट्यूरिन (सार्जीनिया) के एक कुलीन परिवार में हुआ था।
इटली के एकीकरण को वह पीडमाण्ट प्रान्त के सेवाय राजवंश के माध्यम से पूर्ण करना चाहता था। इसी दिशा में उसने अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए ‘इल रिसर्जिमेण्टों” नामक समाचार-पत्र निकाला था। सन् 1852 ई. में विक्टर इमेनुअल द्वारा उसे प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। कोवूर एक व्यवहारिक, कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ एवं राजतंत्र समर्थक व्यक्ति था। वह इटली की शक्ति व सामर्थ्य से भली-भांति परिचित था। इसी कारण वह इटली के एकीकरण के प्रश्न का। अन्तर्राष्ट्रीयकरण करना चाहता था ! कावूर की आन्तरिक नीति, सुधारों और विदेश नीति ने इटली का एकीकरण पूर्ण कर यूरोप के पटल पर एक नया इतिहास व भूगोल बना दिया।
4. गैरीबाल्डी:
ज्यूसप गैरीबाल्डी पर जन्म नीस नगर में 1807 ई. को हुआ। उसके पिता एक व्यापारिक जहाज में अधिकारी थे। इस कारण गैरीबाल्डी को भूमध्य सागर की यात्राओं का अनुभव हुआ। इन यात्राओं में वह इटली के राष्ट्रभक्तों के सम्पर्क में आया था। यह वही व्यक्ति था जिसके कारण नेपल्स व सिसली इटली में शामिल हुए थे। वह इटली की तलवार था। उसने ‘‘लाल कुर्ती” नामक देशभक्तों का एक संगठन बनाया एवं इसके दम पर ही वह सिसली में प्रवेश कर पाया था।
5. रोम:
रोम में कैथोलिक पंथ सम्राट पोप का शासन था। साथ ही फ्रांस की सेनाएँ इसकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहती थी। इस कारण रोम पर आक्रमण कर दूसरे कैथोलिक देशों को अपने विरूद्ध करता इटली के वश में नहीं था। इस पर अधिकार का सपना तब पूर्ण हुआ जब अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ फ्रांस के विपरीत साबित हुईं। 1870 ई. में प्रशा और फ्रांस के मध्य युद्ध हुआ। इसमें फ्रांस को प्रशा के विरूद्ध सारी ताकत झोंकनी पड़ी। रोम से उसने सेना बुला ली। इसके बावजूद भी उसकी हार हुई।
इस मौके का फायदा इटली ने उठाया और रोम पर अधिकार कर लिया। रोम को संयुक्त इटली की राजधानी बनाया गया। 12 जून 1871 ई. को विक्टर इमेन्युअल द्वारा संयुक्त इटली का संसद का उद्घाटन किया गया। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि इटली के एकीकरण में मेजिनी, गैरीबाल्डी, कावूर एवं विक्टर इमेन्युअल का संयुक्त योगदान रहा। इटली के एकीकरण के रथ का सारथी एक पीण्डमाड जैसा छोटा सा राज्य था।
कुछ विद्वानों द्वारा तो इटली की एकीकरण को ईश्वर का आर्शीवाद” कह कर भी संबोधित किया जाता है। क्योंकि इटली की जनता शताब्दियों से अलग-अलग रहने व सोचने की आदी थी। साथ ही उनमें एकता व स्वतंत्रता के प्रति उस स्तर की भावना भी नहीं थी कि इटली का एकीकरण हो ही जाय। इटली का एकीकरण कावूर के राजनीतिक कौशल व कूटनीति के चारों ओर ही घूमता है।