Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Chapter 13 भोजन के पोषक तत्व-वृहत् मात्रिक पोषक तत्व
RBSE Class 11 Home Science Chapter 13 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर चुनें –
(i) मोनोसैकेराइड है –
(अ) सुक्रोज
(ब) माल्टोज
(स) फ्रक्टोज
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(स) फ्रक्टोज।
(ii) प्राणिज कार्बोज (जान्तव स्टार्च) किसे कहते हैं?
(अ) सैल्यूलोज
(ब) पेक्टिन
(स) ग्लाइकोजन
(द) डैक्सट्रीन
उत्तर:
(स) ग्लाइकोजन।
(iii) आवश्यक अमीनो अम्ल है –
(अ) हिस्टिडीन
(ब) ल्युसिन
(स) लाइसिन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी।
(iv) दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन है –
(अ) फाइब्रिन
(ब) कैसीन
(स) एल्ब्यूमिन
(द) जीन
उत्तर:
(ब) कैसीन।
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. दूध का प्रोटीन ……… है।
2. वसा ……… में घुलनशील होती है।
3. जल का रासायनिक सूत्र ……… है।
4. जल की कुल मात्रा शरीर में ………तक पायी जाती है।
5. शारीरिक वृद्धि एवं विकास में ……… सहायक है।
6. प्रोटीन की कमी से ……… रोग हो जाता है।
उत्तर:
1. लेक्टो एल्ब्यूमिन
2. बेंजीन, ईथर
3. H2 0
5. प्रोटीन
6. क्वाशियोरकर, सूखा रोग और मैरास्मिक क्वाशियोरकर।
प्रश्न 3.
आण्विक संरचना के आधार पर कार्बोज का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
आण्विक संरचना के आधार पर कार्बोज निम्न प्रकार के होते हैं
प्रश्न 4.
प्रोटीन का वर्गीकरण संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
प्रोटीन का वर्गीकरण:
प्रोटीन को निम्न आधार पर वर्गीकृत किया गया है –
1. गुणवत्ता के आधार पर:
प्रोटीन की गुणवत्ता उसमें उपस्थित अमीनो अम्ल की मात्रा, प्रकार और गुण पर निर्भर करती है। गुणवत्ता के आधार पर प्रोटीन अग्र प्रकार की होती है –
(i) उत्तम या पूर्ण प्रोटीन:
इनमें सभी आवश्यक अमीनो अम्ल पर्याप्त मात्रा में एवं उचित अनुपात में होते है। ये शरीर में निर्माणात्मक कार्य करते हैं। दूध, दही, मांस, मछली, अण्डा, यकृत, सूखे मेवे, सोयाबीन आदि से उत्तम प्रकार के प्रोटीन प्राप्त होते हैं।
(ii) मध्यम या आंशिक पूर्ण प्रोटीन:
इनमें कुछ आवश्यक अमीनो अम्ल उपस्थित रहते हैं, किन्तु एक या दो आवश्यक अमीनो अम्ल की कमी रहती है।
(iii) निकृष्ट या अपूर्ण प्रोटीन:
इनमें आवश्यक अमीनो अम्लों का पूर्णत: अभाव होता है। इसलिए ये शारीरिक वृद्धि एवं विकास में सहायक नहीं होते हैं। कन्द-मूल, साग-सब्जी, फल, मक्का आदि में ही ये भी पाए जाते
हैं। फलों का जिलेटिन भी अपूर्ण प्रोटीन है।
2. प्राप्ति के साधन के आधार पर:
- वनस्पतिज प्रोटीन – ये प्रोटीन आंशिक पूर्ण या निकृष्ट प्रकार के होते हैं और इनके स्रोत पादप होते हैं।
- प्राणिज प्रोटीन – ये जन्तुओं से प्राप्त होते हैं; जैसे – दूध, दही, अण्डा, मांस, यकृत आदि। ये उत्तम प्रकार के प्रोटीन होते हैं।
3. रासायनिक संरचना के आधार पर:
प्रोटीन को भौतिक गुण एवं घुलनशीलता के आधार पर मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया गया है –
(i) साधारण प्रोटीन-ये केवल अमीनो अम्ल के बने होते हैं। इनके जल अपघटन से इनकी एकलक इकाइयाँ. अमीनो अम्ल प्राप्त होते हैं। इन प्रोटीन्स के उदाहरण हैं –
अण्डे के पीले भाग का प्रोटीन – एल्ब्यूमिन।
गेहूँ का प्रोटीन – ग्लूटेमिन, ग्लाइडिन।
दूध का प्रोटीन – लैक्ट एल्ब्यूमिन।
मक्के का प्रोटीन – जीइन
(ii) संयुक्त प्रोटीन – इन प्रोटीन्स का निर्माण साधारण प्रोटीन में अन्य अणुओं के जुड़ने से होता है।
साधारण प्रोटीन + अन्य पोषक तत्व = संयुक्त प्रोटीन
उदाहरण:
ग्लाइको प्रोटीन = साधारण प्रोटीन + कार्बोहाइड्रेट
न्यूक्लिओ प्रोटीन = साधारण प्रोटीन + न्यूक्लिक अम्ल
(iii) व्युत्पन्न प्रोटीन:
भौतिक क्रियाओं, ताप, शारीरिक दबाव, पाचन क्रिया एवं जल विश्लेषण की क्रिया द्वारा जब प्रोटीन का आंशिक परिवर्तन होता है तब व्युत्पन्न प्रोटीन बनते हैं; जैसे
जमे हुए दूध में – कैसीन प्रोटीन
जमे हुए रक्त में – फाइब्रिन प्रोटीन
उबले अण्डे में – एल्ब्यूमिन
पेप्टोन्स, प्रोटिओज एवं पेप्टाइड-पाचक रसों की क्रिया द्वारा।
प्रश्न 5.
सामान्य जल और इलैक्ट्रोलाइट सन्तुलन बनाए रखने में हार्मोन की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जल एवं इलैक्ट्रोलाइट संन्तुलन में ADH हार्मोन की विशेष भूमिका होती है। जब शरीर में पानी की अत्यधिक कमी होती है तो रक्त की तरलता कम हो जाती है जिससे इसका परासरण दाब बढ़ जाता है। इसके प्रभाव से अधश्चेतक में परासरणग्राही कोष उत्तेजित हो जाते हैं और ADH का स्रावण बढ़ जाता है।
इसके प्रभाव से मूत्रलता (Diuresis) की क्रिया बन्द हो जाती है, और गुर्दो की नलिकाओं में अवशोषण की क्षमता बढ़ जाती है। प्यास लगने पर पानी पीने से रक्त की तरलता बढ़ जाती है फलस्वरूप परासरण दाब में कमी हो जाती है। इसके प्रभाव से अधश्चेतक में परासरणग्राही कोशिकाएँ पुन: अपनी स्थिति में आ जाती हैं और ADH का स्रावण बन्द हो जाता है इसके प्रभाव से मूत्र त्यागने की इच्छा होती है और मूत्र का अधिक निष्कासन होता है।
प्रश्न 6.
जल और रेशों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जल का महत्व (जल के कार्य):
1. घोलक के रूप में:
जल एक अच्छा घोलक (विलायक) होता है। जल के माध्यम से पोषक तत्व घुलित अवस्था में शरीर के सभी कोषों तक पहुँचाए जाते हैं। जल पाचन, अवशोषण एवं चपापचय क्रियाओं के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
2. शारीरिक तापमान का नियन्त्रण:
जल का एक विशिष्ट ताप होता है। यही कारण है कि जल शरीर के तापमान को स्थिर रखने में सक्षम है। जल शरीर की भीतरी गर्मी को पूरे शरीर में वितरित कर देता है तथा शारीरिक तापमान में वृद्धि होने पर ऊष्मा पसीने के रूप में शरीर से निष्कासित कर देता है जिससे शरीर का तापमान स्थिर रहता है।
3. स्नेहक के रूप में:
जल आन्तरिक अंगों, जोड़ों तथा अंगों के मध्य स्नेहक की भाँति कार्य करता है। यह कोषों को नम बनाए रखता है। मुँह में लार के कारण भोजन निगलने में आसानी होती है। श्वसन संस्थान, पाचन संस्थान, उत्सर्जन संस्थान आदि में जल श्लेष्मा (Mucous) में उपस्थित रहता है। जोड़ों के मध्य जल की उपस्थिति के कारण रगड़ नहीं लगती। यही कारण है कि वृद्धावस्था में जोड़ों में उपस्थित जल की कमी होने से जोड़ों में दर्द रहता है।
4. कोषों के संरचनात्मक घटक के रूप में:
जल नवीन कोषों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
5. निर्माणात्मक कार्य:
शरीर के प्रत्येक कोष, तन्तु एवं ऊतकों में जल उपस्थित रहता है। कुछ में जल अधिक तथा कुछ में जल की मात्रा कम होती है।
6. कोमल अंगों की सुरक्षा:
जल शरीर के नाजुक अंगों के चारों ओर उपस्थित रहकर उन्हें बाह्य आघातों से बचाता है। जैसे – मस्तिक के चारों ओर प्रमस्तिष्क मेरु द्रव (Cerebrospinal fluid)।
7. अनुपयोगी पदार्थों का निस्कासन:
जल शरीर की उपापचयी क्रियाओं में बने निरर्थक एवं हानिकारक पदार्थों; जैसे – मल – मूत्र, पसीना आदि को शरीर से बाहर निकालने का कार्य करता है।
8. पोषक पदार्थों का परिवहन:
जल विभिन्न पदार्थों का विलायक है। अनेक उपयोगी पदार्थ जल में घुलकर शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाए जाते हैं।
रेशों का महत्व:
- भोज्य पदार्थ में उपस्थित रेशों (सैल्यूलोज, हेमीसैल्यूलोज, पेक्टिन, लिग्निन आदि) का पाचन नहीं होता। अत: ये पदार्थ ऊर्जा प्रदान नहीं करते और भोज्य पदार्थों के ऊर्जा मान को कम करते हैं। रेशा युक्त भोज्य पदार्थ कम कैलोरी पर भी सन्तुष्टि प्रदान करते हैं।
- भोजन में उपस्थित रेशे आँतों में क्रमाकुंचन की गति को बढ़ाते हैं तथा कब्ज की शिकायत को दूर करते हैं।
- भोजन में उपस्थित रेशे विभिन्न पोषक तत्वों को अपने साथ बाँध लेते हैं तथा आँतों में उनके अवशोषण की गति को धीमा करते हैं, परिणामस्वरूप ये रक्त के ग्लूकोज व कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम करने में मदद करते हैं।
इस प्रकार मधुमेह व हृदय रोगियों के लिए रेशा युक्त भोजन विशेष रूप से लाभदायक है। ये भोजन व पित्त से प्राप्त कोलेस्ट्रॉल को बाँधकर उनके अवशोषण की गति को धीमा कर देते हैं एवं आँत में विटामिनों का संश्लेषण करते हैं। इन जीवाणुओं द्वारा रेशे के अपघटन से बने उत्पाद आँत एवं श्लेश्मिक झिल्ली को स्वस्थ बनाए रखते हैं एवं आँतों को कैंसर से बचाते हैं।
RBSE Class 11 Home Science Chapter 13 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 11 Home Science Chapter 13 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सा पॉलीसैकेराइड है?
(अ) ग्लूकोज
(ब) गैलेक्टोज
(स) लैक्टोज
(द) सैल्यूलोज
उत्तर:
(द) सैल्यूलोज
प्रश्न 2.
फलों की शर्करा कहते हैं –
(अ) ग्लूकोज
(ब) फ्रक्टोज को
(स) गेलैक्टोज को
(द) लैक्टोज को
उत्तर:
(ब) फ्रक्टोज को
प्रश्न 3.
संतृप्त वसीय अम्ल है –
(अ) पामिटिक अम्ल
(ब) लिनोलिक अम्ल
(स) फोलिक अम्ल
(द) ये सभी
उत्तर:
(अ) पामिटिक अम्ल
प्रश्न 4.
प्रोटीन में अमीनो अम्ल जुड़े होते हैं –
(अ) हाइड्रोजन बन्ध द्वारा
(ब) फास्फोडाइएस्टर बन्ध द्वारा
(स) पेप्टाइड बन्ध द्वारा
(द) वाण्डरवाल बलों द्वारा
उत्तर:
(स) पेप्टाइड बन्ध द्वारा
प्रश्न 5.
साधारण प्रोटीन के साथ कार्बोहाइड्रेट के मिलने से बनता है –
(अ) लाइपो प्रोटीन
(ब) फास्फो प्रोटीन
(स) ग्लाइको प्रोटीन
(द) न्यूक्लिओ प्रोटीन
उत्तर:
(स) ग्लाइको प्रोटीन
रिक्त स्थान भरिए
निम्नलिखित वाक्यों में खाली स्थान भरिए –
1. मोनोसैकेराइड के दो अणु जब घनीभूत क्रिया द्वारा मिलते हैं तब…………का निर्माण होता है।
2. …………ऊर्जा का सान्द्र स्रोत है।
3. वसा के जल अपघटन से प्राप्त ग्लिसरॉल…………का कार्य करता है।
4. अब तक कुल…………प्रकार के अमीनो अम्लों का पता चलता है जो हमारे शरीर एवं भोजन में पाए जाते हैं।
5. प्राणि जगत से प्राप्त प्रोटीन…………के प्रोटीन होते हैं।
उत्तर:
1. डाइसैकेराइड
2. वसा
3. ऊर्जा उत्पादन
4. 22
5. उत्तम कोटि।
सुमेलन स्तम्भ A तथा स्तम्भ B के शब्दों का मिलान कीजिए
स्तम्भ A स्तम्भ B
1. ग्लूकोज (a) दुग्ध शर्करा
2. ग्लाइकोजन (b) अंगूर की शर्करा
3. एल्ब्यूमिन (c) प्राणिज कार्बोज
4. फास्फोलिपिड (d) उबले अण्डे की प्रोटीन
5. लैक्टोज (e) यौगिक वसा
उत्तर:
1. (b) अंगूर की शर्करा
2. (c) प्राणिज कार्बोज
3. (d) उबले अण्डे की प्रोटीन
4. (e) यौगिक वसा
5. (a) दुग्ध शर्करा
RBSE Class 11 Home Science Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
एक साधारण व्यक्ति के भोजन में कितनी ऊर्जा कार्बोज से मिलती है?
उत्तर:
एक साधारण व्यक्ति के भोजन में 55 से 65 प्रतिशत तक ऊर्जा कार्बोज से मिलती है।
प्रश्न 2.
कार्बोहाइड्रेट का रासायनिक सूत्र लिखिए।
उत्तर:
कार्बोहाइड्रेट का रासायनिक सूत्र है – C, (H2O),
प्रश्न 3.
सबसे सरल कार्बोहाइड्रेट, जो स्वाद में मीठे होते हैं, कौन-से होते हैं?
उत्तर:
मोनोसैकेराइड स्वाद में मीठे तथा सरल कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
प्रश्न 4.
सबसे अधिक मीठी शर्करा का नाम लिखिए।
उत्तर:
फ्रक्टोज शर्करा।
प्रश्न 5.
शर्कराओं का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर:
शरीर को ऊर्जा प्रदान करना।
प्रश्न 6.
सुक्रोज अणु के निर्माण में कौन-से अणु भाग लेते हैं?
उत्तर:
सुक्रोज के एक अणु में ग्लूकोज तथा फ्रक्टोज का एक-एक अणु होता है।
प्रश्न 7.
1 ग्राम कार्बोज से कितनी ऊर्जा प्राप्त होती है?
उत्तर:
1 ग्राम कार्बोज से 4.2 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
प्रश्न 8.
भोजन में रेशा के स्रोत बताइए।
उत्तर:
ताजे फल व हरी सब्जियाँ, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, साबुत अनाज व दालें।
प्रश्न 9.
व्युत्पन्न वसा किसे कहते हैं?
उत्तर:
सरल एवं संयुक्त लिपिड के जल अपघटन से जो नये पदार्थ बनते हैं उन्हें ही व्युत्पन्न वसा कहते हैं।
प्रश्न 10.
प्रोटीन की खोज किसने की?
उत्तर:
प्रोटीन की खोज सर्वप्रथम 1838 में डच रसायनशास्त्री मुल्डर (Mulder) ने की थी।
प्रश्न 11.
आवश्यक अमीनो अम्ल क्या होते हैं?
उत्तर:
वे अमीनो अम्ल जो शरीर के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं किन्तु इन्हें भोजन से ही प्राप्त किया जा सकता है, आवश्यक अमीनो अम्ल कहलाते हैं।
प्रश्न 12.
अनावश्यक अमीनो अम्ल क्या होते हैं?
उत्तर:
अमीनो अम्ल जो शरीर के लिए आवश्यक तो हैं किन्तु इनका निर्माण शरीर में स्वत: ही हो जाता है, अनावश्यक अमीनो अम्ल कहलाते हैं।
प्रश्न 13.
किसने बताया कि अमीनो अम्ल पेप्टाइड बन्ध के द्वारा एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं?
उत्तर:
1920 ई० में एमिल फिशर तथा हाफ मिशर ने।
प्रश्न 14.
दो आवश्यक अमीनो अम्लों के नाम बताइए।
उत्तर:
- हिस्टिडीन
- आर्जीनिन।
प्रश्न 15.
एक किलो कैलोरी किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक किलोग्राम पानी के ताप को 1°C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा एक किलो कैलोरी कहलाती है।
प्रश्न 16.
कौन-सा हार्मोन शरीर में जल सन्तुलन बनाए रखता है?
उत्तर:
एन्टी डाइयूरेटिक हार्मोन (ADH)।
प्रश्न 17.
ORS का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
ओरल रिहाइड्रेशन सौल्यूसन (Oral Rehydration Solution)।
RBSE Class 11 Home Science Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वृहत्त मात्रिक पोषक तत्त्व तथा लघु मात्रिक पोषक तत्त्व से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वृहत्त मात्रिक पोषक तत्त्व (Macro-nutrients):
ऐसे पोषक तत्त्व जिनकी हमारे शरीर को अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है, वृहत्त मात्रिक पोषक तत्व कहलाते हैं। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, रेशा तथा जल वृहत्त मात्रिक पोषक तत्त्व हैं। सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्त्व (Micro-nutrients):
ऐसे पोषक तत्त्व जिनकी हमारे शरीर में अल्प मात्रा में किन्तु अनिवार्य आवश्यकता होती है, सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्त्व कहलाते है; जैसे-लवण एवं विटामिन्स।
प्रश्न 2.
कार्बोज की उत्पत्ति किस प्रकार होती है?
उत्तर:
कार्बोज प्राप्ति का मुख्य स्रोत वनस्पति जगत है, अर्थात् पादप ही कार्बोज के प्राथमिक उत्पत्ति कर्ता हैं। पौधे, हरी पत्तियों में उपस्थित क्लोरोफिल वर्णक की सहायता से, जल एवं कार्बन डाईआक्साइड द्वारा, सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं। ये कार्बोज, शर्करा, स्टार्च, सैल्यूलोज एवं हेमीसैल्युलोज के रूप में संचित रहता है।
प्रश्न 3.
कार्बोज का रासायनिक संगठन बताइए।
उत्तर:
कार्बोज का रासायनिक संगठन:
कार्बोज की आधारीय रचनात्मक इकाई शर्करा है। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन तत्त्व पाए जाते हैं। हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का अनुपात जल (H,0) के समान 2:1 का होता है। ये कार्बन के हाइड्रेट हैं इसलिए इन्हें कार्बोहाइड्रेट्स कहते हैं। इनका सामान्य रासायनिक सूत्र C, (H2O). होता है।
प्रश्न 4.
कार्बोज के स्रोत बताइए।
उत्तर:
कार्बोज सभी प्रकार के अनाज; जैसे – गेहूँ, चावल, बाजरा, मक्का, कुछ प्रकार की दालों, शक्कर, गुड़, शहद, जड़वाली सब्जियाँ जैसे—शकरकन्द, आलू, अरबी, चुकन्दर, सूखे फल; जैसे – किशमिश, अंजीर, मुनक्का, खजूर, सेब, दूध तथा दूध के उत्पादों में प्रचुरता में पाए जाते हैं।
प्रश्न 5.
भोजन में कार्बोहाइड्रेट की कमी के शरीर पर प्रभाव बताइए।
उत्तर;
हमें प्रतिदिन के आहार में कुल आवश्यक ऊर्जा का 55-66 प्रतिशत भाग कार्बोहाइड्रेट से प्राप्त होना चाहिए। कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की अनुपस्थिति में प्रोटीन ऊर्जा प्रदान करने का कार्य करता है, जिसके कारण प्रोटीन का कार्य गौण रह जाता है। इसके फलस्वरूप शरीर के वृद्धि एवं विकास अवरुद्ध हो जाते हैं। कार्बोज की कमी के अन्य प्रभाव निम्न हैं –
- वजन कम होना,
- थकावट, घबराहट एवं स्वभाव में चिड़चिड़ापन,
- शारीरिक क्रियाशीलता में कमी।
- पाचन संस्थान सम्बन्धी विकार उत्पन्न होना।
प्रश्न 6.
कार्बोहाइड्रेट की अधिकता के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
भोजन में कार्बोहाइड्रेट युक्त भोज्य पदार्थों के अत्यधिक सेवन से अतिरिक्त ऊर्जा वसा के रूप में जमा हो जाती है जिससे व्यक्ति में मोटापा आने लगता है। व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। मोटापा बढ़ने से हृदय रोग, मधुमेह, कीटोसिस आदि बीमारियाँ होने की सम्भावना रहती है।
प्रश्न 7.
वसा को वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
वसा का वर्गीकरण:
प्रश्न 8.
संतृप्त एवं असंतृप्त वसीय अम्ल क्या होते हैं?
उत्तर:
संतृप्त वसीय अम्ल:
वसीय अम्ल जिनमें कार्बन के सभी बन्ध संतृप्त रहते हैं, संतृप्त वसीय अम्ल कहलाते हैं; जैसे – ब्यूटाइरिक अम्ल, पामिटिक अम्ल आदि।
असंतृप्त वसीय अम्ल:
इन वसीय अम्लों में कार्बन तथा हाइड्रोजन अणुओं की संख्या में असमानता होती है। अतः हाइड्रोजन परमाणु कार्बन परमाणुओं द्वारा द्विबन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं। इनमें फोलिक अम्ल, लिनोलिक अम्ल आदि आते हैं।
प्रश्न 9.
वसा के विभिन्न स्रोत बताइए।
उत्तर:
वसा के स्रोत:
वसा एवं तेल प्राकृतिक रूप से प्राणिज और वनस्पतिज दोनों ही स्रोतों से प्राप्त होते हैं।
वनस्पतिज स्रोत:
अनाज, दालें, मूंगफली, तिल, नारियल, सरसों, सोयाबीन व इनके वनस्पति घी एवं सूखे मेवे; जैसे – काजू, बादाम आदि।
प्राणिज स्रोत:
घी, मक्खन, क्रीम, दूध व दूध से बने पदार्थ, मछली का तेल, पशुओं की चर्बी आदि।
प्रश्न 10.
वसा की कमी के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
वसा की कमी के प्रभाव – आहार में पर्याप्त मात्रा में वसा का सेवन नहीं करने से निम्नांकित प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं –
- शरीर को मिलने वाली ऊर्जा में कमी होना
- सामान्य वृद्धि रुक जाना।
- त्वचा का सूखी, खुरदरी एवं चमकहीन हो जाना
- फ्राइनोडर्मा होना।
- कोशिकाओं की कार्य क्षमता में कमी हो जाना।
- आवश्यक वसीय अम्ल लिनोलीक, लिनोलिनिक व एरेकिडोनिक अम्ल एवं वसा विलेय विटामिन ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’, व ‘के’ की कमी होना।
प्रश्न 11.
प्रोटीन को वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
प्रोटीन्स का वर्गीकरण:
प्रश्न 12.
मध्यम या आंशिक पूर्ण प्रोटीन क्या होते हैं? समझाइए।
उत्तर:
मध्यम या आंशिक पूर्ण प्रोटीन:
ऐसे प्रोटीन्स जिनमें कुछ आवश्यक अमीनो अम्ल उपस्थित रहते हैं, परन्तु एक या दो आवश्यक अमीनो अम्ल की कमी रहती है, ये प्रोटीन जीवन को तो बनाए रखते हैं किन्तु शारीरिक वृद्धि एवं विकास में अधिक उपयोगी नहीं होते हैं। ये प्रोटीन नये तन्तुओं और कोशिकाओं का निर्माण नहीं करते हैं। वनस्पति जगत से प्राप्त प्रोटीन मध्यम श्रेणी के या आंशिक पूर्ण प्रोटीन के अन्तर्गत ही आते हैं; जैसे-दाल, अनाज, सोयाबीन आदि। अनाजों में लाइसिन तथा दालों में मिथियोनीन अमीनो अम्ल की कमी रहती है।
प्रश्न 13.
पोषक तत्त्व की उपस्थिति के आधार पर प्रोटीन्स के नाम बताइए।
उत्तर:
पोषक तत्त्वों की उपस्थिति के आधार पर निम्न प्रकार के संयुक्त प्रोटीन प्राप्त होते हैं –
- ग्लाइको प्रोटीन = साधारण प्रोटीन + कार्बोहाइड्रेट
- लाइपो प्रोटीन = साधारण प्रोटीन + लिपिड
- न्यूक्लियो प्रोटीन = साधारण प्रोटीन + न्यूक्लिक अम्ल
- हीमोग्लोबिन = साधारण प्रोटीन (ग्लोबिन) + हीम (लौह तत्त्व)
- फास्फो प्रोटीन = साधारण प्रोटीन + फास्फोरस
प्रश्न 14.
मैरास्मिक क्वाशियोरकर क्या है? मैरास्मस एवं क्वाशियोरकर में उपचार सम्बन्धी भेद बताइए।
उत्तर:
मैरास्मिक क्वाशियोरकर (Marasmic kwashiorkar):
अविकसित एवं विकासशील देशों में जहाँ प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण अधिक है वहाँ बच्चों में मैरास्मस एवं क्वाशियोरकर दोनों व्याधियों के लक्षण साथ-साथ दृष्टिगत होते हैं। इसे मैरास्मिक क्वाशियोरकर कहा जाता है। बालक एक प्रकार के प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण की स्थिति से दूसरी स्थिति में स्थानान्तरित हो सकता है। समुचित उपचार तथा पौष्टिक आहार द्वारा क्वाशियोरकर से पीड़ित बालकों का स्वास्थ्य जल्दी सुधर जाता है। परन्तु मैरास्मस से पीड़ित बालकों के स्वास्थ्य में सुधार धीरे-धीरे आता है।
प्रश्न 15.
शरीर में जल वितरण को तालिकाबद्ध कीजिए।
उत्तर:
शरीर में जल वितरणशरीर भार का प्रतिशत
प्रश्न 16.
शरीर को जल किन स्रोतों से प्राप्त होता है?
उत्तर:
शरीर को जल मुख्यतः तीन स्रोतों से प्राप्त होता है –
- तरल भोज्य पदार्थों से – चाय, दूध, छाछ, सब्जियों का सूप, चावल का पानी, लस्सी, शर्बत, दाल का पानी, फलों का जूस, नारियल पानी आदि।
- ठोस भोज्य पदार्थों से – दही, पनीर, खोया, अनाज, दाल, सरस फल।
- ऑक्सीकरण की क्रिया से – कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन के ऑक्सीकरण से तथा चपापचय द्वारा।
प्रश्न 17.
निर्जलीकरण की स्थिति में प्रारम्भिक उपचार बताइए।
उत्तर:
निर्जलीकरण की स्थिति में शरीर में पानी की कमी को दूर करने के लिए व्यक्ति को नीबु पानी, नमक व शक्कर का घोल दिया जाना चाहिए। घर में उपलब्ध सभी प्रकार के तरल पदार्थ; जैसे-दही, छाछ, दाल का पानी, चावल का मॉड, फलों का रस, सब्जियों का सूप, नारियल का पानी, फटे दूध का पानी आदि दिया जाना चाहिए। आजकल स्वास्थ्य केन्द्रों और बाजार में तैयार किया ORS पैकेट मिलता है, जिसे पानी में घोलकर दिलाया जाना चाहिए।
RBSE Class 11 Home Science Chapter 13 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मोनोसैकेराइड्स एवं डाइसैकेराइड्स के प्रमुख सदस्य कार्बोहाइड्रेटस को समझाइए।
अथवा
निम्नलिखित के स्रोत बताइए –
(i) ग्लूकोज
(ii) फ्रक्टोज
(iii) गेलैक्टोज
(iv) सुक्रोज
(v) माल्टोज
(vi) लैक्टोज
उत्तर:
1. मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides):
ये कार्बोज की सबसे सरलतम इकाई होते हैं। पाचन क्रिया के उपरान्त सभी कार्बोज इसी शर्करा के सरलतम रूप में बदल जाते हैं।, मोनोसैकेराइड्स में 6 कार्बन परमाणु होते हैं। इसलिए इन्हें हैक्सोसेज (Hexoses) भी कहते हैं। इनमें तीन प्रमुख हैं –
(i) ग्लूकोज:
इसे डेक्सट्रोज (Dextrose), रक्त शर्करा (Blood sugar) या अंगूर शर्करा (Grape sugar) भी कहते हैं। अधिकांश कार्बोहाइड्रेट शरीर में जाकर ग्लूकोज में परिवर्तित होकर ऊर्जा प्रदान करते हैं।
(ii) फ्रक्टोज:
इन्हें फलों की शर्करा (Fruit sugar) भी कहते हैं। ये सबसे मीठी शर्करा होती है। इसका अवशोषण अतिशीघ्रता से होता है।
(iii) गेलैक्टोज:
ये स्वतन्त्र रूप से विद्यमान न होकर अन्य खाद्य पदार्थों के साथ मिश्रण के रूप में विद्यमान होते हैं। दुग्ध शर्करा लैक्टोज, एक अणु ग्लूकोज तथा एक अणु गेलैक्टोज से मिलकर बनी होती है। ये वनस्पतियों में नहीं पायी जाती है।
2. डाइसैकेराइड्स (Disaccharides):
मोनोसैकेराइड के दो अणु जब आपस में घनीभूत क्रिया (Condensation process) द्वारा मिलते हैं तो डाइसैकेराइड का निर्माण होता है। प्रमुख डाइसैकेराइड निम्नलिखित हैं –
(i) सुक्रोज:
यह गन्ने के रस एवं चुकन्दर में पर्याप्त मात्रा में उपस्थित होता है।
ग्लूकोज + फ्रक्टोज → सुक्रोज
(ii) माल्टोज-यह अनाजों के अंकुरण के समय बनती है, इसे माल्ट शर्करा भी कहते हैं।
ग्लूकोज + ग्लूकोज → माल्टोज
(iii) लैक्टोज—इसे दुग्ध शर्करा भी कहते हैं। यह कम मीठी, अन्य की अपेक्षा पानी में कम घुलनशील होती है।
ग्लूकोज + गैलेक्टोज → लैक्टोज
प्रश्न 2.
विभिन्न प्रकार के पौलीसैकेराइड्स का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
पौलीसैकेराइड्स (Polysaccharides):
ये जटिल कार्बोहाइड्रेट होते हैं। ये जल में अत्यन्त कम घुलनशील होते हैं, इसलिए पेड़-पौधों में संग्रहित हो जाते हैं। प्रमुख पौलीसैकेराइड्स निम्न प्रकार हैं –
(i) स्टार्च:
स्टार्च मुख्यत: एमाइलोज तथा एमाइलोपेक्टिन से मिलकर बना होता है। यह गेहूँ, चावल, बाजरा आदि अनाजों, जड़ एवं तने वाली सब्जियों, सूखे बीजों, मटर, सेब आदि में पाया जाता है। कच्चे फलों में भी स्टार्च पाया जाता है किन्तु पकने पर यह मोनोसैकेराइड्स में परिवर्तित हो जाता है।
(ii) ग्लाइकोजन:
इसे प्राणिज कार्बोज या जान्तव कार्बोज भी कहते हैं। यह मानव एवं पशुओं के यकृत एवं माँसपेशियों में उपस्थित होता है। आवश्यकता होने पर यह ग्लूकोज में परिवर्तित होकर ऊर्जा प्रदान करने का कार्य करता है।
(iii) डेक्सट्रीन:
यह स्टार्च के आंशिक खण्डन (Partial hydrolysis) से प्राप्त होता है। यह स्टार्च से कम जटिल होता है। यह कॉर्न शुगर, कॉर्न सिरप तथा शहद में पाया जाता है। आंशिक
(iv) सैल्यूलोज:
यह ग्लूकोज की असंख्य इकाइयों से बना होता है। यह पौधों की कोशिका भित्ति का प्रमुख घटक है। मानव में इसका पाचन नहीं होता किन्तु यह आँतों की क्रियाशीलता एवं क्रमाकुंचन को बनाए रखने में सहायक होता है। आटे का चोकर, साबुत अनाज, छिलके, सलाद आदि में पर्याप्त मात्रा में उपस्थित होता है।
(v) हेमी सैल्यूलोज:
मनुष्य में इसका भी पाचन नहीं होता, किन्तु यह आँतों की क्रियाशीलता के लिए आवश्यक होता है। यह दाल एवं अनाजों के छिलकों में बहुलता में पाया जाता है।
(vi) पेक्टिन:
यह पके फलों के छिलकों तथा कुछ जड़ वाली सब्जियों में पाया जाता है। इसका भी मानव में पाचन नहीं होता है। जैम व जैली बनाने में यह उपयोगी पदार्थ है।
प्रश्न 3.
कार्बोहाइड्रेट्स के कार्य समझाइए।
उत्तर:
कार्बोहाइड्रेट्स के कार्य –
1. शरीर को कार्बोहाइड्रेट मुख्य रूप से ऊर्जा प्रदान करता है। एक ग्राम कार्बोज से 4.2 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। आवश्यकता से अधिक कार्बोज ग्लाइकोजन के रूप में यकृत एवं पेशियों में संग्रहित हो जाता है और आवश्यकता पड़ने पर पुन: ग्लूकोज में परिवर्तित होकर ऊर्जा प्रदान करता है।
2. यह प्रोटीन की बचत करता है। प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर की वृद्धि एवं विकास है। कार्बोज की अनुपलब्धता में प्रोटीन ऊर्जा देता है जिससे प्रोटीन का निर्माणात्मक कार्य प्रभावित होता है।
3. विटामिन ‘बी’ समूह के संश्लेषण में लैक्टोज की आवश्यकता होती है। मनुष्य की छोटी आंत में उपस्थित जीवाणु विटामिन ‘बी’ समूह के संश्लेषण में सहायक होते हैं।
4. सैल्यूलोज, हेमीसैल्यूलोज, पेक्टिन आदि कार्बोज कब्ज दूर करने एवं आँतों की क्रमाकुंचन गति को बनाए रखने में सहायक होते हैं।
5. दूध में उपस्थित लैक्टोज अन्य शर्कराओं की अपेक्षा कम घुनलशील होता है और जीवाणु द्वारा लैक्टिक अम्ल में बदलकर आँत में अम्लीय माध्यम बनाता है जो कैल्शियम के अवशोषण में सहायता करता है।
6. ग्लूकोज वसा के ऑक्सीकरण में सहायता करता है तथा वसा की उपयोगिता को बढ़ाता है।
7. रेशेदार व जटिल कार्बोहाइड्रेट के सेवन से रक्त कोलेस्ट्रॉल व ग्लूकोज के स्तर में कमी आती है जिससे हृदय रोग एवं मधुमेह की तीव्रता कम होती है।
8. कार्बोज यकृत को स्वस्थ रखने, नाड़ी संस्थान को स्वस्थ रखने एवं विषाक्त पदार्थो से सुरक्षा में सहायक होते हैं।
प्रश्न 4.
वसा क्या है? वसाओं के विभिन्न प्रकारों को समझाइए।
उत्तर:
वसा (Fats):
वसा ऊर्जा के सान्द्र स्रोत हैं। वसा वे कार्बनिक यौगिक हैं जो जल में अघुलनशील किन्तु कार्बनिक विलायकों; जैसे – क्लोरोफॉर्म, बेन्जीन, ईथर आदि में सरलता से घुल जाते हैं। ये छूने पर चिकने प्रतीत होते हैं। वसा में मुख्य रूप से कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन उपस्थित होते हैं। वसा में ऑक्सीजन की मात्रा कार्बन तथा हाइड्रोजन की तुलना में काफी कम होती है। वसा को मुख्यत: 3 प्रकारों में बाँटा गया है –
1. साधारण वसा – ये ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्लों के बने होते हैं।
ग्लिसरॉल + वसीय अम्ल = साधारण वसा
(एक अणु) (तीन अणु)
(i) उदासीन वसा:
इसके अन्तर्गत वसा एवं तेल आते हैं। 20°C पर जो संघनित होकर ठोस हो जाते हैं, उन्हें वसा कहते हैं और जो 20°C ताप पर ठोस नहीं होते बल्कि द्रव अवस्था में रहते हैं, उन्हें तेल कहते हैं।
(ii) मोम:
ये अवसीय अम्लों तथा ग्लिसरॉल से उच्चतर स्तर के एल्कोहल से मिलकर बनते हैं।
2. यौगिक वसा:
जब वसीय अम्लों एवं ग्लिसरॉल के साथ-साथ कुछ अन्य कार्बनिक यौगिक मिले रहते हैं तो उन्हें यौगिक लिपिड कहा जाता है।
वसा + अवसीय पदार्थ = यौगिक लिपिड
ग्लिसरॉल + कार्बनिक या
(वसीय अम्ल) (अकार्बनिक पदार्थ)
- वसा + कार्बोज + सल्फ्यूरिक अम्ल = सल्फोलिपिड
- वसीय अम्ल + ग्लिसरॉल + कार्बोज = ग्लाइकोलिपिड
- वसीय अम्ल + ग्लिसरॉल + फास्फोरिक अम्ल + नाइट्रोजन क्षार = फस्फोलिपिड
- वसा + प्रोटीन = लाइपोप्रोटीन
3. व्युत्पन्न वसा:
सरल एवं संयुक्त लिपिड के जल अपघटन से जो नये पदार्थ बनते हैं, उन्हें व्युत्पन्न वसा कहते हैं।
- वसीय अम्ल-वसा के जल अपघटन से वसीय अम्ल प्राप्त होते हैं। वसीय अम्लों को उनमें व्यवस्थित कार्बन परमाणुओं के साथ हाइड्रोजन वसीय अम्लों में वर्गीकृत किया जाता है।
- ग्लिसरॉल-वसा के जल अपघटन से प्राप्त ग्लिसरॉल ऊर्जा उत्पादन करते हैं।
- स्टिरॉल-रासायनिक रूप से वसा से सम्बन्धित नहीं होते परन्तु इसमें वसीय अम्ल एवं एल्कोहल उपस्थित – होते हैं। ये वे कार्बनिक यौगिक होते हैं जो मिश्रित चक्रीय रचना के बने होते हैं। प्राप्ति स्रोत के आधार पर स्टिारॉल निम्न वर्गों में बाँटे गए हैं –
(a) कोलेस्ट्रॉल:
यह प्राणी जगत में पाया जाता है। यह मनुष्य एवं पशुओं के रक्त, यकृत, अधिवृक्क ग्रन्थियों, पीयूष ग्रन्थि, मस्तिष्क व परिधीय तन्त्रिकाओं में पाया जाता है। कोलेस्ट्रॉल अण्डे के पीले भाग, मक्खन, घी, पनीर, मांस आदि में पाया जाता है।
(b) अर्गोस्टेरॉल:
यह वसा खमीर (Yeast) में सबसे अधिक पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह हमारे शरीर में त्वचा के नीचे स्थित रहता है जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों की उपस्थिति में विटामिन ‘डी’ में परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 5.
वसा के कार्य समझाइए।
उत्तर:
वसा के कार्य –
1. ऊर्जा प्रदान करना:
वसा ऊर्जा का संघनित स्रोत है। एक ग्राम वसा से 9 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। उच्च . सघनता तथा निम्न घुलनशीलता के कारण वसीय ऊतकों में संग्रहित रहती है तथा आवश्यकता पड़ने पर ऑक्सीकृत होकर ऊर्जा प्रदान करती है।
2. शरीर के कोमल अंगों को सुरक्षा प्रदान करना:
वसा शरीर में त्वचा के नीचे वसीय ऊतकों में जमा होकर एक मोटी परत बनाती है। शरीर के सभी कोमल अंगों; जैसे – हृदय, यकृत, फेफड़े, गुर्दे, अग्न्याशय आदि के ऊपर वसा की दोहरी परत होती है। यह परत सुरक्षा कवच की तरह कार्य करती है।
3. शरीर के तापक्रम को नियन्त्रित रखना:
त्वचा के नीचे स्थित वसा की परत हमारे शरीर में ताप अवरोधक का कार्य करती है।
4. वसा में घुलनशील विटामिन के स्रोत:
वसा में घुलनशील विटामिन ए, डी, ई व के की प्राप्ति का उत्तम साधन वसा है। इनका अवशोषण वसा की उपस्थिति में सरलता से हो जाता है।
5. आवश्यक वसीय अम्लों की प्राप्ति:
कुछ आवश्यक वसीय अम्लों का शरीर में निर्माण नहीं होता किन्तु ये शरीर के स्वास्थ्य तथा त्वचा की सुरक्षा के लिए आवश्यक होते हैं तथा वसा युक्त भोजन इनकी पूर्ति करता है।
प्रश्न 6.
भोजन में वसा की अधिकता के क्या प्रभाव होते हैं? समझाइए।
उत्तर:
भोजन में वसा की अधिकता के प्रभाव –
1. मोटापा बढ़ना:
आवश्यकता से अधिक वसा भोजन में होने पर यह शरीर में त्वचा के नीचे जमने लगती है तथा शारीरिक भार में वृद्धि होती है। इसे मोटापा कहते हैं।
2. मधुमेह हो जाना:
वसा एवं कार्बोज के अत्यधिक सेवन से अत्यधिक मात्रा में ग्लूकोज का निर्माण होता है। रक्त में सीमित मात्रा में ही ग्लूकोज संग्रहित हो सकता है। ग्लूकोज मूत्र के साथ मिलकर मूत्रमार्ग से निष्कासित होने लगता है। जिसे मधुमेह (Diabetes) कहते हैं।
3. हृदय सम्बन्धी रोग:
वसा की अधिकता से रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है। सामान्य से अधिक कोलेस्ट्रॉल रक्त धमनियों की आन्तरिक दीवारों पर जमने लगते हैं। जिसे एथेरोस्टकलेरोसिस कहते हैं। फलतः रक्त चाप बढ़ जाता है और इसका सीधा असर हृदय पर पड़ता है जिससे हृदयाघात की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
प्रश्न 7.
प्रोटीन क्या हैं? इसका रासायनिक संगठन बताइए।आवश्यक एवं अनावश्यक अमीनो अम्लों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
प्रोटीन (Protein):
प्रोटीन ग्रीक भाषा के शब्द ‘प्रोटियस’ से बना है जिसका अर्थ होता है प्रथम स्थान ग्रहण करने वाला। प्रोटीन की खोज डच रसायनशास्त्री मुल्डर ने 1838 ई० में की। मनुष्य के शरीर का लगभग 1/5 भाग अर्थात् 20% भार प्रोटीन का होता है। प्रोटीन को “शरीर को आधारशिला’ की संज्ञा दी जाती है। प्रोटीन वृहत् कार्बनिक अणु हैं।
रासायनिक संगठन:
प्रोटीन एक कार्बनिक यौगिक है, इसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्त्व पाए जाते हैं। प्रोटीन में मुख्य भाग नाइट्रोजन होता है और इसका औसत 16% होता है। प्रोटीन की लघुतम इकाई अमीनो अम्ल है। अनेक अमीनो अम्ल मिलकर प्रोटीन का निर्माण करते हैं। प्रत्येक अमीनो अम्ल में दो समूह होते हैं। अमीनो समूह (-NH,) क्षारीय प्रकृति का होता है और प्रोटीन को क्षारीय गुण प्रदान करता है। कार्बोक्सिल समूह (-COOH) अम्लीय प्रकृति का होता है। दोनों समूहों की उपस्थिति के कारण अमीनो अम्ल की प्रकृति उदासीन होती है।
अमीनो अम्ल का रासायनिक सूत्र निम्नानुसार है –
सन् 1920 ई० में एमिल फिशर एवं हॉफ मिशर ने बताया कि अमीनो अम्ल पेप्टाइड बन्ध द्वारा एक-दूसरे से जुड़कर लम्बी श्रृंखला बनाते हैं। अब तक कुल 22 प्रकार के अमीनो अम्लों का पता चला है।
आवश्यक अमीनो अम्ल:
ऐसे अमीनो अम्ल जो हमें केवल भोजन से प्राप्त हो सकते हैं और जिनके बिना शरीर की वृद्धि एवं विकास अवरुद्ध हो जाता है, आवश्यक अमीनो अम्ल कहलाते हैं। इनकी संख्या 10 है, जो निम्न प्रकार हैं –
- हिस्टींडीन
- ल्यूसिन
- आइसोल्यूसिन
- लाइसिन
- आर्जीनिन
- मिथियोनीन
- थ्रियोनिन
- फिनाइल,एलानिन
- वैलीन तथा
- ट्रिप्टोफैन।
अनावश्यक अमीनो अम्ल:
इन अमीनो अम्लों का निर्माण हमारे शरीर में नाइट्रोजन की उपस्थिति में स्वयं हो जाता है। इन्हें भोजन द्वारा लेने की आवश्यकता नहीं होती है। उदाहरण के लिए एलानिन, हाइड्रोक्सीप्रोलीन, प्रोलीन, एस्पार्टिक अम्ल आदि।
प्रश्न 8.
प्रोटीन के कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रोटीन के कार्य –
1. शरीर की वृद्धि एवं विकास में भाग लेना:
प्रोटीन शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक है। कोशिकाओं का निर्माण प्रोटीन्स द्वारा होता है। इनकी कार्यक्षमता, टूट-फूट की मरम्मत प्रोटीन द्वारा ही की जाती है। शैशवावस्था, बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था तक प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि ये तीव्र विकास की अवस्थाएँ हैं।
2. ऊतकों के निर्माण कार्य एवं मरम्मत में भागीदारी:
निरन्तर श्रम एवं विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के कारण ऊतकों में टूट-फूट होती रहती है। इनकी मरम्मत एवं पुनर्निर्माण का कार्य प्रोटीन द्वारा ही किया जाता है। आन्त्र मार्ग आवरण में, लाल रुधिराणुओं के निर्माण में एवं रक्त का थक्का बनाने में प्रोटीन की आवश्यकता होती है।
3. नियमन:
प्रोटीन हमारे शरीर में अम्ल एवं क्षार को नियमित करता है, अत: ये बफर की तरह कार्य करते हैं।
4. हार्मोन्स एवं एन्जाइम का निर्माण:
हार्मोन्स हमारे शरीर की विभिन्न क्रियाओं पर नियन्त्रण करते हैं। इनमें से कुछ हार्मोन्स प्रोटीन के बने होते हैं। इसी प्रकार विभिन्न जैविक क्रियाओं का संचालन एन्जाइम्स द्वारा होता है। अधिकांश एन्जाइम प्रोटीन के बने होते हैं।
5. माँसपेशियों के संकुचन में माँसपेशियों के संकुचन:
एवं प्रसरण के लिए मायोसिन एवं एक्टिन प्रोटीन्स अनिवार्य होते हैं।
6. विटामिन के निर्माण में:
कुछ अमीनो अम्ल शरीर में विटामिनों के निर्माण में पूर्ववर्ती (Precursor) के रूप में भाग लेते हैं। जैसे-बी समूह की विटामिन कोलीन के लिए मिथियोनीन, नियासिन के लिए ट्रिप्टोफैन आदि।
7. सामान्य दृष्टि में सहायक:
आँखों के रेटिना में शंकु (Cones) एवं शलाका (Rods) पाए जाते हैं जो प्रोटीन की उपस्थिति में विशिष्ट पदार्थों का निर्माण करते हैं एवं रंगों को मन्द प्रकाश में देखने में सहायता देते हैं।
8. ऊर्जा प्रदान करना:
कार्बोज एवं वसा की अनुपस्थिति में प्रोटीन ऊर्जा भी प्रदान करते हैं। 1 ग्राम प्रोटीन से 4 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
9. जल सन्तुलन:
प्लाज्मा में उपस्थित प्रोटीन हमारे शरीर में परासरण दाब उत्पन्न करते हैं जिससे शरीर में जल सन्तुलन बना रहता है।
प्रश्न 9.
क्वाशियोरकर रोग का कारण तथा इस रोग के लक्षण लिखिए।
उत्तर:
क्वाशियोरकर (Kwashiorkar):
यह सामान्यत: 1 से 4 साल के बच्चों में प्रोटीन की कमी से होने वाला रोग है। यह रोग उन बच्चों में होता है जिनके भोजन में कार्बोहाइड्रेट तो पर्याप्त मात्रा में होता है, किन्तु प्रोटीन की कमी होती है। इस रोग का पता 1935 में सिसली विलियम ने लगाया। क्वाशियोरकर एक अफ्रीकन शब्द है जिसका अर्थ है – वह रोग जो पहले बच्चे को दूसरे बच्चे के जन्म के बाद होता है। इसका कारण स्तनपान छुड़ाने के बाद बच्चों को उपयुक्त पूरक दुग्ध आहार का नहीं मिलना है।
रोग लक्षण:
- बच्चों की वृद्धि एवं विकास, दोनों अवरुद्ध हो जाते हैं। लम्बाई तथा वजन भी कम हो जाते हैं।
- शरीर में प्रोटीन की कमी के कारण सूजन (Oedema) हो जाती है। शरीर की सभी कोशिकाओं और ऊतकों में पानी भरने के कारण उत्पन्न सूजन से बच्चा तन्दुरुस्त दिखाई देता है।
- माँसपेशियाँ नष्ट होने लगती हैं। बाँहें, हाथ एवं पैर पतले एवं कमजोर हो जाते हैं।
- स्वभाव में उदासीनता एवं चिड़चिड़ापन आ जाता है। बच्चा, आलसी, सुस्त एवं थका-थका महसूस करता है।
- प्रोटीन की कमी से हीमोग्लोबिन का निर्माण नहीं होता जिससे रक्त हीनता रोग हो जाता है।
- मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास होने से अन्य बीमारियाँ जल्दी घेर लेती हैं।
प्रश्न 10.
सूखा रोग या मैरेस्मस का कारण एवं रोग के लक्षण लिखिए।
उत्तर:
सूखा रोग या मैरेस्मस (Marasmus):
यह रोग प्राय: 6 से 12 माह के शिशुओं में होता है। यह रोग उन बच्चों में होता है जिनको शीघ्र ही स्तनपान छुड़ा दिया जाता है और उन्हें उचित पौष्टिक आहार नहीं दिया जाता है। यह रोग प्रोटीन तथा ऊर्जा की कमी के कारण होता है। मैरेस्मस (Marasmus) ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है – व्यर्थ होना (to waste)।
रोग के लक्षण:
- शारीरिक वृद्धि और विकास रुक जाना, लम्बाई में कमी, बौनापन व शारीरिक भार में गिरावट होना।
- त्वचा के नीचे वसा के जमाव की कमी एवं सूजन आना।
- आंत्र मार्ग में संक्रमण के कारण बार-बार निर्जलीकरण की समस्या पैदा होना।
- त्वचा रूखी-सूखी, बेजान व कान्तिहीन हो जाती है।
- माँसपेशियों का अत्यधिक क्षय होना। 6. हाथ-पैर पतले एवं कमजोर दिखते हैं।
प्रश्न 11.
जल सन्तुलन से आप क्या समझते हैं? धनात्मक एवं ऋणात्मक जल सन्तुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जल सन्तुलन (Water balance) हमारे शरीर में जल एक निश्चित मात्रा में पाया जाता है, जितना जल हम ग्रहण करते हैं, उत्सर्जन द्वारा उतना ही जल शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। इसे एक आदर्श स्थिति कहते हैं। इसे ही जल सन्तुलन कहा गया है।
जल सन्तुलन = जल ग्रहण की मात्रा = जल उत्सर्जन की मात्रा
शरीर में जल की अधिकता या कमी, दोनों ही स्थितियाँ स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होती हैं।
जल सन्तुलन मुख्यत: दो प्रकार का होता है –
1. धनात्मक जल सन्तुलन (Positive water balance):
यदि शरीर द्वारा ग्रहण की गई जल की मात्रा, शरीर द्वारा निष्कासित जल की मात्रा से अधिक होती है तो इसे धनात्मक जल सन्तुलन कहते हैं। इस स्थिति में शरीर के ऊतकों एवं तन्तुओं में जल भर जाता है।
ऐसा इसलिए होता है कि जब रक्त में प्रोटीन की कमी हो जाती है तथा परासरण दाब (Osmotic pressure) सामान्य नहीं रह पाता है, तब ऊतकों में जल भरने लगता है। इस दौरान बाह्य कोशिकीय द्रव (Extra cellular fluid) की मात्रा भी अधिक हो जाती है। धनात्मक जल सन्तुलन से शरीर में सोडियम की अधिकता, प्रोटीन की कमी, सूजन (Oedema) तथा यकृत सम्बन्धी रोग हो जाते हैं।
2. ऋणात्मक जल सन्तुलन (Negative water balance):
जब शरीर द्वारा ग्रहण किए गए जल की मात्रा, शरीर द्वारा निष्कासित मात्रा से कम होती है तो इसे ऋणात्मक जल सन्तुलन कहते हैं। यदि शरीर से 10 प्रतिशत तक जल अधिक निकल जाता है तो भोजन का अवशोषण ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है। इस स्थिति में शरीर का तापमान बढ़ जाता है। प्लाज्मा तथा बाह्यकोशिकीय तरल की मात्रा कम हो जाती है।
यदि शरीर में 15-20 प्रतिशत जल की कमी हो जाती है तो व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, क्योकि इस दशा में बाह्य कोशिकीय द्रव्य सघन हो जाता है। इसके कारण परासरण क्रिया के द्वारा अन्त: कोशिकीय द्रव बाहर की ओर खिंचता है जिससे अन्त:कोशिकीय द्रवों की मात्रा काफी कम हो जाती है इसे निर्जलीकरण (Dehydration) कहते हैं।
प्रश्न 12.
शरीर में जल की कमी के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
शरीर से जल का उत्सर्जन निरन्तर होता है। मल-मूत्र, पसीने, फेफड़े आदि के माध्यम से जल का उत्सर्जन होता है। अत: यह अतिआवश्यक है कि जल की उचित मात्रा प्रतिदिन अनिवार्य रूप से ग्रहण की जाए ताकि शरीर में पानी की कमी न हो। शरीर में जल की कमी से निम्नांकित स्थिति उत्पन्न हो सकती है –
- पाचक रसों में असन्तुलन होना, जिससे पाचन सम्बन्धी अनियमितताएँ हो जाती हैं।
- शरीर में यूरिक अम्ल, यूरिया, विष, टॉक्सिन आदि का पूर्णत: निष्कासन नहीं हो पाता है। इससे शरीर में विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
- व्यक्ति अशान्त एवं चिड़चिड़ा हो जाता है।
- भूख कम लगती है।
- शारीरिक वजन कम हो जाता है।
- शारीरिक वृद्धि प्रभावित होती है।
- शरीर के तापमान में वृद्धि हो जाती है।
- वृक्कों की क्रिया में बाधा उत्पन्न होती है।
- रक्त की तरलता में कमी आ जाती है, अत: परिसंचरण में बाधा उत्पन्न होती है।
- कभी-कभी निर्जलीकरण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।