Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Chapter 19 तंतु विज्ञान
RBSE Class 11 Home Science Chapter 19 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर चुनें –
(i) जान्तव रेशा है –
(अ) कपास
(ब) ऊन
(स) लिनन
(द) कपोक
उत्तर:
(ब) ऊन।
(ii) सर्वाधिक लम्बा रेशा है –
(अ) रेशम
(ब) कपास
(स) ऊन
(द) लिनन
उत्तर:
(अ) रेशम
(iii) निम्न में रासायनिक रेशा है –
(अ) हेम्प
(ब) लिनन
(स) नायलॉन
(द) रेयॉन
उत्तर:
(स) नॉयलान
(iv) लिनन रेशा है –
(अ) जान्तव
(ब) वानस्पतिक
(स) खनिज
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) वानस्पतिक
प्रश्न 2.
मिश्रित रेशे किसे कहते हैं?
उत्तर:
मिश्रित रेशे (Mixed Fibers):
दो या दो से अधिक प्रकार के रेशों को मिलाकर बनाये जाने वाले रेशों को मिश्रित रेशा कहा जाता है। इसी प्रकार दो प्रकार के रेशों की कताई एक साथ करके मिश्रित धागा या दो प्रकार के रेशों वाले अलग-अलग धागों को एक साथ बुनकर भी मिश्रित वस्त्र बनाते हैं। जैसे-टैरिकॉट, कॉट्स वूल आदि।
प्रश्न 3.
ऊनी वस्त्रों पर पानी का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
ऊनी वस्त्रों पर पानी का प्रभाव –
- ऊनी रेशा प्राकृतिक तन्तुओं में सबसे कमजोर रेशा होता है। अत: गीला होने पर इसकी मजबूती में 25% की कमी आ जाती है।
- गीली होने पर ऊन सिकुड़कर मोटी हो जाती है। इसलिए इसके वस्त्रों को गीली अवस्था में कम-से-कम रखना चाहिए।
- नमी, गर्मी एवं दबाव से ऊनी रेशों के शल्क फूलकर तथा खुलकर फैल जाते हैं तथा सूख जाने पर आपस में जुड़ने लगते हैं।
- ऊनी वस्त्र पानी को शीघ्र सोखता है।
- 30 प्रतिशत तक नमी रहने पर भी बाहर से देखने पर यह गीला महसूस नहीं होता है।
प्रश्न 4.
कपास के रेशे में कितना प्रतिशत सेल्युलोज होता है?
उत्तर:
कपास के रेशे में 80 – 90 प्रतिशत सेल्युलोज होता है।
प्रश्न 5.
फ्लीस ऊन किसे कहते हैं?
उत्तर:
फ्लीस ऊन (Fleece Wool):
ऊन तैयार करने के लिए पहले जानवरों को कीटाणुनाशक के घोल से नहलाया जाता है, इसके बाद शरीर के भिन्न-भिन्न भागों से ऊन हाथों या मशीनों द्वारा काटी जाती है, इसे फ्लीस ऊन कहा जाता है।
प्रश्न 6.
रेशम पर अम्ल व क्षार का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
तीव्र अम्ल से रेशम के रेशे खराब हो जाते हैं जबकि कार्बनिक व तनु अम्ल रेशों की चमक बढ़ा देते हैं। उदासीन .. या हल्के क्षार से रेशम के रेशे प्रभावित नहीं होते हैं।
प्रश्न 7.
जान्तव रेशे कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
जन्तुओं से प्राप्त हो वाले तन्तु; जैसे-ऊन, रेशम आदि जान्तव रेशे होते हैं।
प्रश्न 8.
रेयॉन को मानवीकृत रेशा क्यों कहा जाता है? यह रासायनिक रेशों से किस प्रकार भिन्न होता है?
उत्तर:
रेयॉन (Rayon):
रेयॉन रेशे में रेशम के समान चमक होती है, इसलिए इसे कृत्रिम रेशम (Artificial silk) भी कहा जाता है। इसे मानवीकृत तन्तु इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें रासायनिक पदार्थों के साथ प्रकृति से प्राप्त बाँस तथा लकड़ी की लुग्दी तथा कपास के सेल्युलोज का प्रयोग तन्तु बनाने के लिए किया जाता है। रेयॉन का रेशा बनाने के लिए प्राकृतिक चीजों को रासायनिक पदार्थों में मिलाकर गाढ़ा घोल बनाया जाता है।
इसके बाद इस घोल को स्पिनरैट के छिद्रो में से निकालकर इच्छानुसार लम्बाई तथा मोटाई के रेशे प्राप्त किये जाते हैं। यह रेशा कच्चे माल की किस्म, प्रयुक्त रसायन तथा निर्माण की विधियों के आधार पर अलग-अलग प्रकार का होता है; जैसे – नाइट्रोसेल्यूलोज रेयॉन, विस्कोस रेयॉन, क्यूप्रामोनियम रेयॉन एवं एसिटेट सेल्युलोज से बने रेयॉन के वस्त्र।
रेयॉन का रेशा रासायनिक रेशों से भिन्न होता है क्योंकि रासायनिक रेशा पूर्णतः रसायनों से बना होता है, जबकि रेयॉन के रेशे का मुख्य आधार सेल्युलोज होता है। रासायनिक रेशों में प्राकृतिक तन्तुओं के गुणों का पूर्णत: अभाव होता है परन्तु रेयॉन में प्राकृतिक तन्तुओं के गुण भी पाए जाते हैं।
प्रश्न 9.
जूट, हेम्प, कपोक के बारे में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
जूट (Jute):
जूट के रेशे जूट के पौधे के तने से प्राप्त होते हैं। भारत में कपास के बाद इसका ही उपयोग अधिक होता है। जूट के पौधे के तने को काटकर गलने के लिए पानी में छोड़ दिया जाता है, जिससे इसकी ऊपरी छाल गल जाती है। इनके रेशे लिनन के रेशे के समान पृथक्-पृथक् हो जाते हैं। स्पर्श में चिकने एवं रेशम के समान चमकदार होते हैं –
लेकिन कड़कीले (Brittle):
होते हैं। अत: इससे चमकदार परन्तु कड़े एवं खुरदरे सूत का निर्माण होता है। इसलिए इन रेशों से पहनने के कपड़े नहीं बनाए जाते हैं। इसका उपयोग टाट, बोरी, डोरी, दरियाँ, गलीचे आदि बनाने के लिए किया जाता है। मुख्यतः इसका उपयोग बोरी बनाने में किया जाता है। पैकिंग में इसका उपयोग अधिक होता है क्योंकि इन रेशों में प्राकृतिक रूप से कीड़े-मकोड़ों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विद्यमान होती है।
हेम्प (Hemp) :
हेम्प का रेशा गहरे भूरे रंग का होता है। यह रेशा सीधा एवं चमकदार होता है, परन्तु रूक्ष, कड़ा एवं खुरदरा होता है। हेम्प का रेशा काफी मजबूत एवं टिकाऊ होता है। इसका उपयोग घरेलू चीजें; जैसे – गलीचे, केनवास, रस्से, टोकरी, डोरी, बेल्ट आदि बनाने में किया जाता है। हेम्प के रेशे सान्द्र व गर्म क्षार से नष्ट हो जाते हैं।
कपोक (Kapok):
कपोक कपास के समान होता है लेकिन कताई के लिए उपयुक्त नहीं होता, क्योंकि इसके रेशों में ऐंठन के गुण का सर्वथा अभाव होता है। जिसके कारण इसके धागे नहीं बनाए जा सकते हैं। इस रेशे में नमी अवरोधक गुण होने के कारण इसका उपयोग वायुयानों में ध्वनि अवरोधक के रूप में किया जाता है इसके अलावा तकिया एवं गद्दे भरने के काम आते हैं। इसके रेशे शीघ्रता से सूख जाते हैं।
प्रश्न 10.
लिनन के रेशे के संगठन, संरचना एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लिनन (Linen):
ये रेशे सन (Flax) के पौधे के तने और डंठल से प्राप्त होते हैं। पौधे के पकने पर इन्हें जड़ सहित उखाड़कर बण्डल बनाकर सुखा लिया जाता है। सूखने पर बीज व पत्ते अलग करके तनों के बण्डलों को पानी में गलने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस क्रिया के दौरान खमीरीकरण होने से रेशों को जोड़ने वाले पदार्थ गोंद, पैक्टिन, मोम आदि नष्ट हो जाते हैं और रेशे अलग हो जाते हैं। बण्डल के सूखने पर, मशीनों से कूट कर छाल पूरी तरह से हटा दी जाती है और रेशे अलग हो जाते हैं। इन रेशों की कंघी (Combing) करके कताई द्वारा धागा तैयार कर लिया जाता है।
विशेषताएँ
भौतिक विशेषताएँ –
- लिनन में 70% सेलुलोज तथा शेष 30% पैक्टिन, पानी व अन्य अशुद्धियाँ होती हैं।
- सूक्ष्मदर्शी यन्त्र द्वारा देखने पर ये तन्तु बेलनाकार, गोल तथा चमकदार व बाँस के समान गाँठ लिए होता है।
- लिनन का रेशा प्राकृतिक रेशों में रेशम के बाद सर्वाधिक लम्बा रेशा है।
- लिनन के रेशे में तनाव सामर्थ्य कम होती है अत: ये खींचने पर शीघ्र ही टूट जाता है।
- लिनन का रेशा कम लचीला होने से इसके बने वस्त्रों में सलवटें पड़ जाती हैं।
- लिनन ताप का सुचालक होने के कारण शरीर की गर्मी को बाहर निकाल देता है अतः गर्मी में यह शीतलता प्रदान करता है।
- यह नमी को शीघ्र सोखकर वस्त्र को सुखा देता है, इस कारण लिनन से बने तोलिये एवं रूमाल अच्छे रहते हैं।
- यह रेशा कोमल एवं चमकीला होने के कारण इस पर धूल व मिट्टी नहीं जमती तथा धब्बे भी सरलता से नहीं पड़ते हैं।
- यह रेशा गीला होने पर मजबूत हो जाता है अतः आसानी से धुलाई कर सकते हैं।
- इस पर जीवाणु एवं कीटाणु आसानी से नहीं पनपते हैं।
- लिनन के रेशे प्रकाश एवं धूप से भी जल्दी प्रभावित नहीं होते हैं लेकिन लम्बे समय तक प्रकाश में रखने पर धीरे-धीरे ये खराब होने लगते हैं।
- लिनन के तौलिये, चादर, पर्दे, मेजपोश आदि बनाए जाते हैं।
रासायनिक विशेषताएँ –
- लिनन का रेशा सान्द्र अम्ल से नष्ट हो जाता है।
- इस पर क्षार का कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन तीव्र क्षार युक्त साबुन से अधिक समय तक प्रयोग करने पर सफेद वस्त्र में पीलापन आ जाता है।
- लिनन की सतह कड़ी होने के कारण इसे सरलता से रंगा नहीं जा सकता और रंग आसानी से उतर भी जाते हैं।
- लिनन पर तीव्र ब्लीच से तन्तु खराब हो जाते हैं। इस पर केवल घरेलू विरंजक ही काम में लाये जा सकते हैं।
- पसीने को अति शीघ्रता से सोख लेता है, लेकिन उसके बाद इसे जल्दी से धो लेना चाहिए क्योंकि पसीना अम्लीय होता है।
प्रश्न 11.
वस्त्रोपयोगी रेशों का वर्गीकरण लिखिए।
उत्तर:
वस्त्रोपयोगी रेशों का वर्गीकरण _
RBSE Class 11 Home Science Chapter 19 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Home Science Chapter 19 बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प का चयन कीजिए –
प्रश्न 1.
कपास के रेशे में सर्वाधिक प्रतिशत होता हैं –
(अ) सेल्यूलोज
(ब) ग्लूकोज का
(स) पैक्टिन का
(द) लिग्निन का
उत्तर:
(अ) सेल्यूलोज
प्रश्न 2.
लिनन प्राप्त होता है –
(अ) कपास
(ब) जूट के पौधे से
(स) फ्लैक्स के पौधे से
(द) कपोक से
उत्तर:
(स) फ्लैक्स के पौधे से
प्रश्न 3.
वस्त्रों की रानी कहलाता है –
(अ) कपास
(ब) रेशम
(स) नायलॉन
(द) पॉलिस्टर
उत्तर:
(ब) रेशम
प्रश्न 4.
ऊन प्राप्त होता है –
(अ) भेड़ से
(ब) बकरी से
(स) ऊँट से
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
प्रश्न 5.
रेयॉन का मुख्य घटक है –
(अ) सेल्यूलोज
(ब) पॉली एस्टर
(स) हेमी सेल्यूलोज
(द) नाइट्रोबेन्जीन
उत्तर:
(अ) सेल्यूलोज
रिक्त स्थान भरिए
निम्नलिखित वाक्यों में खाली स्थान भरिए –
1. कपास का रेशा सान्द्र अम्ल से ……… हो जाता है।
2. ………रेशा गद्दों एवं तकियों को भरने के काम आता है।
3. मृत जानवरों की खाल से उतारी गई ऊन ……… कहलाती है।
4. नायलॉन के वस्त्रों से दाग धब्बे ……… से छूटते हैं।
5. एस्बेस्टस का उपयोग ……… वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है।
उत्तर:
1. नष्ट
2. कपोक
3. खींची हुई ऊन
4. आसानी
5. अग्नि अवरोधक।
सुमेलन
स्तम्भ A तथा स्तम्भ B के शब्दों का मिलान कीजिए
स्तम्भ A स्तम्भ B
1. धात्विक रेशा (a) मानवीकृत
2. टेरीकॉट (b) प्राकृतिक
3. रेयॉन (c) जरी
4 कपास (d) रासायनिक
5. पौलिस्टर (e) मिश्रित रेशा
उत्तर:
1. (c) जरी
2. (e) मिश्रित रेशा
3. (a) मानवीकृत
4. (b) प्राकृतिक
5. (d) रासायनिक
RBSE Class 11 Home Science Chapter 19 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राचीन समय के लोग किस से बने वस्त्र प्रयोग करते थे?
उत्तर:
प्राचीन समय में पेड़-पौधों तथा पशुओं के बालों से प्राप्त रेशे वस्त्र निर्माण में काम आते थे।
प्रश्न 2.
रेशा क्या है?
उत्तर:
रेशा या तन्तु (Fiber), बाल सदृश व्यास की इकाई है जिसकी लम्बाई, उसकी मोटाई से कई सौ गुना अधिक होती है।
प्रश्न 3.
वस्त्रोपयोगी रेशों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
वस्त्रोपयोगी रेशों को मुख्यत: तीन भागों में बाँटा गया हैं –
- प्राकृतिक रेशा
- कृत्रिम रेशा
- विशिष्ट रेशा।
प्रश्न 4.
कपास के पौधे के किस भाग से कपास प्राप्त होता है?
उत्तर:
कपास के पौधे के पुष्प झड़ने के बाद बने कोए (Pools) से पकने पर।
प्रश्न 5.
कपास के तन्तु पर धलाई का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
कपास का तन्तु मजबूत होने के कारण धुलाई के समय रगड़ने, पीटने से वस्त्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
प्रश्न 6.
लिनन किस प्रकार के वस्त्र बनाने के लिए उपयोगी रहता है?
उत्तर:
लिनन तौलिये, चादर, पर्दे, मेज पोश आदि कपड़े बनाने के लिए उपयोगी रहता है।
प्रश्न 7.
जूट के तन्तुओं से बनाई जाने वाली वस्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
टाट, बोरी, डोरी, दरियाँ, गलीचे आदि।
प्रश्न 8.
रेशम, रेशम कीट की किस अवस्था से प्राप्त होता है?
उत्तर:
कोकून अवस्था से।
प्रश्न 9.
रेशम तन्तु का संगठन बताइए।
उत्तर:
रेशम तन्तु में 95% प्राकृतिक गोंद, सैरिसिन तथा फाइब्रिन प्रोटीन और शेष 5% मोम, वसा एवं लवण होते हैं।
प्रश्न 10.
रेशम के तन्तुओं से बने वस्त्र गर्मियों के लिए उपयुक्त क्यों नहीं होते हैं?
उत्तर:
रेशम के तन्तु ताप के कुचालक होने के कारण शरीर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देते हैं अत: गर्मियों में आरामदायक नहीं हैं।
प्रश्न 11.
ऊन में पाया जाने वाला प्रोटीन कौन-सा होता हैं?
उत्तर:
किरेटिंन (Keratin) प्रोटीन।
प्रश्न 12.
ऊन के बने वस्त्र सर्दियों के लिए क्यों उपयुक्त रहते हैं?
उत्तर:
ऊनी रेशे में प्रोटीन तन्तु होने के कारण रिक्त स्थानों में वायु ठहरकर वातावरण की वायु से गर्म हो जाती है और ऊनी वस्त्रों का गर्म रहने का गुण बढ़ जाता है।
प्रश्न 13.
किसी एक प्राकृतिक रेशे तथा एक कृत्रिम रेशे का नाम बताइए।
उत्तर:
प्राकृतिक रेशा-रेशम, कृत्रिम रेशा – रेयॉन।
प्रश्न 14.
एस्बेस्टस का प्रयोग किस प्रकार के वस्त्र बनाने में किया जाता है?
उत्तर:
एस्बेस्टस का प्रयोग अग्नि अवरोधक वस्त्र बनाने में किया जाता है।
प्रश्न 15.
वस्त्रों की सूक्ष्मतम एवं प्रारम्भिक इकाई क्या है?
उत्तर:
वस्त्रों की सूक्ष्मतम एवं प्रारम्भिक इकाई रेशा हैं।
प्रश्न 16.
कपास, लिनन तथा रेयॉन में क्या समानता है?
उत्तर:
कपास, लिनन तथा रेयॉन तीनों का मुख्य अवयव सेल्यूलोज ही है।
प्रश्न 17.
दो मिश्रित रेशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- टेरीकॉट
- टैरीसिल्क।
RBSE Class 11 Home Science Chapter 19 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वानस्पतिक एवं जान्तव तन्तु क्या होते हैं? दोनों का एक-एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
वानस्पतिक तन्तु:
ये तन्तु पौधों से प्राप्त होते हैं और पौधों की कोशिकाओं से उत्पन्न सेल्यूलोज के बने होते हैं। जैसे-कपास, लिनन। जान्तव तन्तु-जानवरों एवं कीड़ों से प्राप्त रेशे को जान्तव या प्राणि रेशे कहते हैं। ये रेशे प्रोटीन के बने होते हैं। उदाहरण के लिए रेशम कीट (Silkworm) से रेशम प्राप्त होता है और भेड़, बकरी, ऊँट, खरगोश आदि के बालों से ऊन प्राप्त होता है।
प्रश्न 2.
रेशम क्या हैं? यह कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर:
रेशम (Silk) रेशम, एक कीट द्वारा उत्पादित रेशा है। इस रेशे या तन्तु से बने वस्त्र अलौकिक सुन्दरता एवं उत्कृष्टता के कारण सभी वस्त्रों की रानी (Queen of all fabrics) कहलाती है। क्योंकि इसका रेशा सर्वाधिक चमक, कोमलता, सुन्दरता एवं आकर्षण लिए होता है। रेशम के कीड़ों को शहतूत की पत्तियों पर पाला जाता है।
कीड़े के मुख के पास अति महीन छिद्र उपस्थित होते हैं जिनसे होकर कोड़े की लार (Saliva) जैसे पदार्थ को सावित करते हैं और इस पदार्थ को कीड़े अपने चारों ओर लपेटते जाते हैं। वायु के सम्पर्क में आकर लार सूखती जाती है, यह अवस्था कोकून कहलाती है। रेशे प्राप्त करने के लिए कोकून को खौलते पानी में डालकर मार दिया जाता है और रेशों को खोलकर रील पर लपेट लिया जाता है। सबसे पहले रेशम का उत्पादन चीन में प्रारम्भ हुआ था।
प्रश्न 3.
ऊन की रासायनिक विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
ऊन की रासायनिक विशेषताएँ –
- ऊनी रेशों पर तनु अम्ल का कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता है।
- क्षार के प्रभाव से ऊनी रेशा पीला एवं कड़ा हो जाता है।
- शक्तिशाली एवं गर्म क्षार से ऊनी वस्त्र गल जाते हैं।
- ऊनी रेशों पर अमोनियम कार्बोनेट और बोरेक्स जैसे तनु क्षार सुरक्षित रहते हैं।
- ऊनी रेशों पर सभी प्रकार के रंग; जैसे-अम्लीय व क्षारीय आसानी से एवं पक्के चढ़ते हैं तथा रंग सब तरफ एक साथ चढ़ते हैं।
- ऊनी वस्त्रों पर ब्लीचिंग पाउडर नुकसानदायक होता है। आवश्यक होने पर केवल हाइड्रोजन परऑक्साइड जैसे हल्के ब्लीच प्रयोग किये जा सकते हैं।
- ऊनी वस्त्रों को नमी वाले स्थान पर रखने से फफूंदी लग जाती है। कीड़े भी ऊन को नष्ट कर देते हैं। इसलिए इन्हें रखते समय नेप्थलीन कपूर की गोली या नीम की सूखी पत्तियाँ रखकर बन्द कर देना चाहिए।
प्रश्न 4.
खनिज (धात्विक) तन्तु क्या होते हैं? समझाइए।
उत्तर:
खनिज (धात्विक) तन्तु:
प्रकृति में कुछ ऐसे भी खनिज पदार्थ एवं धातु पाए जाते हैं जिन्हें विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा गलाकर, खींचकर, बटकर व ऐंठन देकर सूक्ष्म, कोमल व लचीले रेशे तैयार किये जाते हैं। सभी खनिज रेशों से बने वस्त्र भारी होते हैं। इन्हें धोना व स्वच्छ रखना भी एक समस्या हो जाती है। सोना, चाँदी, ताँबा आदि के पतले तारों का प्रयोग वस्त्रों में जरी, गोटा आदि बनाने में किया जाता है। एस्बेस्ट्स का प्रयोग अग्नि अवरोधक वस्त्र बनाने में किया जाता है।
प्रश्न 5.
रेयॉन क्या है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
रेयॉन (Rayon):
रेयॉन मानवीकृत कृत्रिम रेशा है। इस रेशे को कृत्रिम रेशम भी कहते हैं क्योंकि इसकी चमक रेशम के समान होती है। इसे मानवीकृत रेशा इसलिए कहा जाता है क्योकि इसे बनाने में रासायनिक पदार्थ के साथ प्रकृति से प्राप्त बांस व लकड़ी की लुग्दी तथा कपास का प्रयोग होता है।
इन सभी प्राकृतिक चीजों को रासायनिक पदार्थों में मिलाकर गाढ़ा घोल बनाकर अत्यन्त सटीक व महीन छिद्रयुक्त नली जिसे स्पिनरेट (Spinneret) कहते हैं, से गुजारकर इच्छानुसार लम्बाई तथा मोटाई के रेशे प्राप्त किए जाते हैं। रेयॉन का रेशा प्रयुक्त रसायन तथा निर्माण की विशिष्ट विधियों के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। जैसे-नाइट्रोसैल्यूलोज रेयॉन, विस्कोस रेयॉन, क्यूप्रामोनियम रेयॉन व एसिटेट सेल्यूलोज रेयॉन आदि।
प्रश्न 6.
नायलॉन क्या है? समझाइए। इससे रेशे कैसे बनाए जाते हैं?
उत्तर:
नायलॉन (Nylon):
नायलॉन एक प्रकार का रासायनिक रेशा है, जिससे अनेक प्रकार के वस्त्र, मोजे, पर्दे, नाइट सूट तथा अन्य मिश्रित रेशे प्राप्त किए जाते हैं। इन रेशों में ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन तथा कार्बन निश्चित अनुपात तथा संरचना में पाये जाते हैं। नायलॉन बनाने के लिए कोलतार से प्राप्त दो रयायनों एडिपिक एसिड एवं हैक्सामिथिलीन डाई अमीन को मिलाकर ऑटोक्लेव (प्रेसर कुकर जैसा यंत्र) में गर्म करते हैं, जिससे नायलॉन पॉलीमर तैयार होता है। इस पॉलीमर पर ठण्डा पानी डालकर परत के रूप में जमा लिया जाता है। इन्हें फ्लेक्स (Flakes) कहते हैं। इन्हें फिर से पिघलाकर गाढ़ा घोल बनाकर स्पिनरेट के छिद्रो में से रेशों के रूप में निकाल लेते हैं जो कि हवा के सम्पर्क में आकर सूख जाते हैं।
प्रश्न 7.
पॉलिस्टर क्या है? इससे रेशे कैसे बनाए जाते हैं?
उत्तर:
पॉलिस्टर (Polyester):
पॉलिस्टर एक रासायनिक रेशा है जो एस्टर्स का पॉलीमर है। पॉलिस्टर का रेशा बनाने की विधि नायलॉन के समान ही होती है। इसके निर्माण हेतु डाईकार्बोक्सिलिक अम्ल व डाईहाइड्रिक एल्कोहल की क्रिया कराई जाती है, जिससे ये दोनों पदार्थ पॉलीमराइज्ड (Polymerized) होकर पौलीमराइजिंग पात्र (Polymerizing vessel) द्वारा रिबन के आकार में निष्कासित होते हैं।
रिबिन को चिप्स के आकार में काटकर एक होपर (Hopper) में भेजा जाता है जहाँ से ये मेल्टस्पिनिंग टैंक (Melt Spining Tank) में मिश्रित करने हेतु डाला जाता है। इस प्रकार प्राप्त गर्म घोल को हवा के सम्पर्क के साथ स्पिनरेट के छिद्रों द्वारा प्रवाहित किया जाता है। प्राप्त रेशो को गर्म अवस्था में ही खींचकर मजबूत व वांछित व्यास का रेशा प्राप्त कर लिया जाता है।
प्रश्न 8.
पॉलिस्टर की विशेषताएँ व उपयोगिताएँ लिखिए।
उत्तर:
पॉलिस्टर की विशेषताएँ व उपयोगिताएँ –
- पॉलिस्टर से बने वस्त्रों में कणन सामर्थ्य (Breaking tenacity), प्रत्यास्थता (Plasticity), प्रतिस्कन्दता (Resiliency) उच्च व श्रेष्ठ होती है।
- पॉलिस्टर के वस्त्र उच्च ताप पर सिकुड़ते हैं व पिघलने लगते हैं और एक काले अवशिष्ट में बदल जाते हैं।
- पॉलिस्टर के वस्त्र सलवट प्रतिरोधक होते हैं अत: इस्त्री करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- पॉलिस्टर एक मजबूत रेशा है। इसे अन्य रेशों के साथ मिलाकर, विभिन्न प्रकार के वस्त्र बनाए जाते हैं।
RBSE Class 11 Home Science Chapter 19 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हमारे लिए वस्त्रों का क्या महत्त्व है? वस्त्रों के इतिहास पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
मनुष्य के जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकताओं में से एक आवश्यकता है – कपड़ा। वस्त्र एक ऐसी चीज है जिसका सम्बन्ध प्रत्येक व्यक्ति के साथ हर वक्त रहता है। प्राचीन समय में मनुष्य शरीर ढकने के लिए एवं शरीर को धूप, वर्षा, सर्दी आदि से बचाने के लिए जानवरों की खाल, पेड़ों के पत्ते आदि का उपयोग किया करते थे।
लेकिन धीरे – धीरे मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ वस्त्र निर्माण कला का भी विकास हुआ। प्राचीन काल में पहने जाने वाले वस्त्र आधुनिक वस्त्रों से भिन्न होते थे। आज के समय में हम गर्मी में सूती वस्त्र, सर्दियों में ऊनी वस्त्र तो बारिश से बचने के लिए विशेष प्रकार के वस्त्र पहनते हैं।हम घर पर प्रतिदिन अलग-अलग परिधान पहनते हैं तो विशेष अवसर जैसे विवाह – समारोह पर अलग परिधान पहनते हैं।
इसी प्रकार अलग-अलग व्यवसाय से सम्बन्धित; जैसे – पुलिस, फायरमैन, डॉक्टर, नर्स, विद्यार्थी आदि विशेष परिधान पहनते हैं। एक कहावत है कि वस्त्र ही व्यक्ति को बनाते हैं (Cloths makes the man) जो कि काफी हद तक सही है। वस्त्रों का मानव मन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। अवसर के अनुकूल उचित वस्त्र पहनने पर व्यक्ति में आत्मविश्वास उत्पन्न होता है तथा उचित वस्त्र व्यक्तित्त्व को निखारते हैं। वस्त्र हमारे शरीर की सुरक्षा करने के अलावा घरेलू कार्यों में भी प्रयोग किए जाते हैं; जैसे-फर्श की दरी, कालीन आदि।
सुन्दर एवं आकर्षक डिजाइनों से बने सोफा सेट कवर, कुरान कवर, बैडशीट, तकिया के गिलाफ, परदे आदि के प्रयोग से घर की सुन्दरता एवं आकर्षण में वृद्धि हो जाती है। साफ-सफाई एवं नहाने – धोने आदि कार्यों के लिए भी तौलिया, झाड़न आदि विभिन्न वस्त्रों का उपयोग किया जाता है। तात्पर्य यह है कि मानव जीवन के विभिन्न क्रिया – कलापों से वस्त्रों का घनिष्ठ सम्बन्ध है।
वस्त्र हमारी सभ्यता एवं संस्कृति के सूचक हैं। वस्त्र निर्माण कला में उत्तरोतर विकास होता रहा है। प्रारम्भ में जिन रेशों की खोज की गई वे सभी प्रकृति प्रदत्त थे। प्राचीन समय में पेड़-पौधों तथा पशुओं के बालों से प्राप्त रेशे ही वस्त्र निर्माण में काम आते थे। सभ्यता व संस्कृति के विकास के साथ-साथ एक-से-एक सुन्दर वस्त्रों का निर्माण होने लगा।
प्रश्न 2.
कपास का विवरण देते हुए, इसके तन्तु की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कपास (Cotton):
यह रेशा कपास के पौधे से प्राप्त होता है। यह सभी वानस्पतिक रेशों में सर्वश्रेष्ठ होता है। कपास के पौधे ग्रीष्म ऋतु में उगाए जाते हैं। कपास के पौधों में फूल निकलते हैं और पककर झड़ जाते हैं तो उसमें से कोए (Pools) निकल आते हैं। कोए परिपक्व होकर फट जाते हैं तथा कपास के रेशे बीजों के चारों ओर चिपके दिखाई देने लगते हैं। इसी अवस्था में कोए को तोड़कर एकत्र कर लिया जाता है तथा उनसे रुई निकालकर सूत का निर्माण कर वस्त्र बनाए जाते हैं। विशेषताएँ भौतिक विशेषताएँ।
- कपास के रेशे में 80-90 प्रतिशत तक सैल्यूलोज होता है।
- सूक्ष्मदर्शी यन्त्र द्वारा देखने पर कपास का तन्तु चपटा, बलखाए फीते के समान दिखाई देता है।
- कपास के रेशे की लम्बाई अन्य रेशों से लगभग 1/2 से 2 1/2 इंच कम होती है।
- कपास के रेशे की सतह खुरदरी होती है तथा इसमें चिकनाहट एवं चमक का अभाव होता है।
- कपास का रेशा अत्यधिक मजबूत होता है तथा गीला होने पर इसकी मजबूती और बढ़ जाती है।
- कपास के रेशे में प्रत्यास्थता (Elasticity) का अभाव होने के कारण इसे खींचकर बढ़ा नहीं सकते हैं एवं यह शीघ्र ही सिकुड़ जाता है।
- कपास का रेशा अधिक खींचने पर टूट जाता है।
- कपास का रेशा नमी को जल्दी सोखता है, इसी करण गर्मी में इस तन्तु से बने वस्त्र पसीने को सोखकर शीतलता प्रदान करते हैं। जैसे-तौलिया, अन्तः वस्त्र आदि।
- कपास का तन्तु मजबूत होने के कारण धुलाई के समय रगड़ने, पीटने से वस्त्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
रासायनिक विशेषताएँ –
- कपास का रेशा सान्द्र अम्ल से नष्ट हो जाता है।
- इस रेशे पर क्षार का प्रभाव नहीं पड़ता है अत: इसे साफ करने के लिए क्षारीय पदार्थ का उपयोग किया जाता है।
- कपास के रेशे पर ब्लीच का प्रभाव नहीं पड़ने के कारण सूती वस्त्रों पर विरंजक का प्रयोग कर सकते हैं।
- कपास के रेशे की ताप को सहने की क्षमता सर्वाधिक होती है किन्तु लगातार सूर्य के प्रकाश में रहने पर यह निर्बल पड़ने लगता है एवं पीलापन आ जाता है।
- कपास के रेशे पर अन्य रंग शीघ्रता से नहीं चढ़ते हैं।
- नम, उष्ण तथा प्रकाशहीन स्थान पर अधिक समय तक रखे जाने से कपास के रेशों में फफूंद लग जाती है, चित्तीदार धब्बे से बन जाते हैं तथा अन्ततः सड़ गल जाते हैं।
प्रश्न 3.
रेशम तन्तु की भौतिक तथा रासायनिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भौतिक विशेषताएँ –
- रेशम के रेशे का 25% भाग प्राकृतिक गोंद सैरिसिन तथा फाइब्रिन प्रोटीन का बना होता है, शेष 5% भाग मोम,वसा एवं लवण से बना होता है।
- सूक्ष्मदर्शी से देखने पर रेशम का रेशा बारीक, सीधा, चिकना, चमकदार, पारदर्शी, छड़ के समान दिखाई देता है।
- रेशों के बीच-बीच में कहीं-कहीं चिपकने वाले पदार्थ भी दिखाई देते हैं, ये सैरिसिन होते हैं।
- प्राकृतिक तन्तुओं में सबसे अधिक लम्बाई रेशम के रेशों की होती है। इन्हें फिलामेंट कहते हैं।
- लम्बाई अधिक होने के कारण ये रेशा सर्वाधिक मजबूत होता है।
- सीधे व लम्बे होने के कारण इनमें लचीलापन एवं पर्याप्त प्रत्यास्थता तथा प्रतिस्कन्दता होती है। इसी कारण – रेशमी वस्त्र सर्वाधिक कोमल होते हैं।
- ये रेशे साधारण खींचतान व दबाव से प्रभावित नहीं होते हैं।
- रेशे के तन्तु के गीला होने पर इसकी शक्ति 20% तक कम हो जाती है, इसलिए इसे रगड़कर व मसलकर नहीं धोना चाहिए। ड्राईक्लीनिंग इसके लिए उपयुक्त विधि है।
- रेशम नमी को शीघ्र सोख लेता है। अच्छी अवशोषण क्षमता होने के कारण यह पनने में आरामदायक वस्त्र है।
- रेशम ताप का कुचालक होने के कारण शरीर की गर्मी को बाहर नहीं जाने देता, इसलिए सर्दियों के लिए उपयुक्त वस्त्र है।
- धूप में सूखने से इसके रेशे कमजोर हो जाते हैं। इसी प्रकार इस्त्री भी कम तापमान पर करनी चाहिए।
रासायनिक विशेषताएँ –
- तीव्र अम्ल से रेशम के रेशे खराब हो जाते हैं जबकि कार्बनिक एवं तनु अम्ल रेशे की चमक बढ़ा देते हैं।
- उदासीन या हल्के क्षार से प्रभावित नहीं होते हैं।
- रेशम पर तीव्र ब्लीच का प्रयोग न करके, हाइड्रोजन परॉक्साइड जैसे हल्के ब्लीच प्रयोग में लाने चाहिए।
- रेशम का रेशा सामान्यतया जीवाणुरोधी है लेकिन गीली स्थिति में बन्द करने पर फफूंद लग जाती है।
- रेशम के धागे की विभिन्न प्रकार के रंगों जैसे अम्लीय, क्षारीय, अदि से आसानी से रंगा जा सकता है।
प्रश्न 4.
ऊन क्या है? विभिन्न प्रकार के ऊन का विवरण देते हुए इसे तैयार करने की विधि बताइए।
उत्तर:
ऊन जानवरों से प्राप्त प्राकृति प्रोटीनयुक्त तन्तु है। अधिकांशत: ऊन भेड़ के बालों से प्राप्त होती है, इसके अलावा ऊँट, खरगोश, हिरण, बकरी आदि के बालों से भी ऊन प्राप्त की जाती है। ऊन तैयार करने के लिए पहले जानवर को कीटाणुनाशक के घोल से नहलाया जाता है इसके बाद शरीर के भिन्न-भिन्न भागों से ऊन हाथों या मशीनों द्वारा काटी जाती है।
इस कटी ऊन को फ्लीस (Fleece) ऊन कहते हैं। यह क्रिया बसंत ऋतु में की जाती है। मरे हुए जानवर से ऊन निकालने के लिए उसके शरीर पर रसायनिक पदार्थ लगाया जाता है और खींचकर बाल निकाले जाते हैं, इस प्रकार की ऊन को खींची ऊन (Pulled wool) कहते हैं।जानवर के अलग-अलग भागों से काटे गए रेशे अलग-अलग किस्म के होते हैं, जिन्हें उनकी लम्बाई, रंग आकार, लचीलापन और बारीकी के अनुसार छाँट लिया जाता है।
छोड़ी हुई ऊन की अशुद्धियाँ दूर करने हेतु उसे हल्के क्षार के घोल में रखा जाता है जिससे पसीना, मोम, आदि अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं। यदि इससे भी ऊन साफ न हो तो इसे कार्बोनाइजिंग की क्रिया से साफ किया जाता है एवं सल्फ्यूरिक अम्ल या हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से धोकर नमीयुक्त वातावरण में सुखाते हैं। जिससे इसकी कोमलता व लचीलापन बना रहे। इसके बाद ऊन पर जैतून के तेल का छिड़काव करके कार्डिंग की प्रक्रिया द्वारा रेशों को समानान्तर रखकर पूनियां बना ली जाती हैं, जिनकी आवश्यकतानुसार रंगाई व कताई कर ली जाती है।
प्रश्न 5.
ऊन की भौतिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
ऊन की भौतिक विशेषताएँ –
- ऊन का रेशा प्रोटीन प्रधान रेशा है जो कि फिरेटिन (Keratin) नामक प्रोटीन का बना होता है।
- ऊनी रेशों में गंधक भी पाया जाता है।
- सूक्ष्मदर्शी से देखने पर ऊनी रेशा बहुकोशिकीय, टेढ़ा-मेढ़ा तथा दोनों किनारों पर नुकीला तथा मध्य में कुछ गोलाकार दिखाई देता है।
- ऊनी रेशे की कोमलता, रंग व चमक जानवर की जाति तथा शारीरिक अंग जहाँ से ऊन निकाली गई है, इस पर निर्भर करती है।
- ऊनी रेशा प्राकृतिक रेशों में सबसे कमजोर रेशा होता है। गीला होने पर इसकी मजबूती 25% तक कम हो जाती है, अत: इसकी रगड़ कर धुलाई नहीं करनी चाहिए।
- नमी, गर्मी एवं दबाव से ऊनी रेशे फूलकर व खुलकर फैल जाते हैं तथा सूखने पर आपस में जुड़ने लगते हैं।
- ऊनी रेशों में प्रत्यास्थता का गुण होने के कारण ये दबाने या खींचकर छोड़ देने पर पुन: अपने मौलिक स्वरूप में आ जाते हैं। इसी कारण इनमें सलवटें नहीं पड़ती हैं।
- ऊनी रेशा शुष्क ताप को सहन नहीं कर सकता है। इसलिए ऊनी वस्त्र पर नरम-पतला कपड़ा डालकर इस्त्री करनी चाहिए।
- ऊनी वस्त्र पानी को जल्दी सोखता है।
- ऊनी रेशा आसानी से आग नहीं पकड़ता है। इसी कारण ऊन द्वारा बने हुए कम्बल आग बुझाने में काम आते हैं।
- छोटे तन्तुओं से ऊनी वस्त्र तथा लम्बे तन्तुओं से वस्टेंड वस्त्र बनाए जाते हैं।
- ऊनी रेशे में प्रोटीन तन्तु होने के कारण रिक्त स्थानों में वायु ठहरकर वातावरण की वायु की अपेक्षा गर्म होजाती है और ऊनी वस्त्रों का गर्म रहने का गुण बढ़ जाता है।
प्रश्न 6.
रेयॉन तन्तु की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
रेयॉन की भौतिक विशेषताएँ –
1. रेयॉन चाहे जिस विधि से निर्मित किया जाए, इसका मूल आधार पौधों में पाया जाने वाला सैल्यूलोज (Cellulose) ही रहता है।
2. रेयॉन की सूक्ष्मदर्शीय रचना उसकी निर्माण विधियों पर निर्भर करती है। जैसे – विस्कॉस रेयॉन छड़ जैसा दिखाई देता है, जिसमें पतले-पतले धागों के समान धारियाँ पूरी लम्बाई में दिखाई देती है। ये धारियाँ चमकदार दिखती हैं। क्यूप्रामोनियम रेयॉन, महीन, चिकना, छड़नुमा व चमकदार रेशम के समान दिखाई देता है। एसीटेट रेयॉन भी छड़ के समान दिखाई देता है। इसमें चमक कम होती है।
3. मानवीकृत रेशा होने के कारण इस रेशे की लम्बाई इच्छानुसार रखी जा सकती है। लम्बे रेशे को फिलामेन्ट कहते हैं। इनसे अत्यन्त सुन्दर रेशम के समान चिकनी सतह वाले व कोमल वस्त्रों का निर्माण होता है। छोटे रेशे जिन्हें स्टेपल कहते हैं, इससे फुज्जीदार कपड़े बनाये जाते हैं।
4. रेयॉन का रेशा ऊन की अपेक्षा अधिक मजबूत होता है परन्तु सिल्क की अपेक्षा एक तिहाई कम मजबूत होता है। यह सूखी अवस्था में अधिक मजबूत होता है, गीली अवस्था में इसकी मजबूती 40-70% कम हो जाती है। इन वस्त्रों को रगड़-रगड़ कर नहीं धोना चाहिए।
5. एसिटेट रेयॉन से बने वस्त्र पानी देर से सोखते हैं तथा ऊपर से ही भीगते हैं। पानी इनमें भीतर तक प्रविष्ट नहीं होता अत: ये शीघ्रता से सूख भी जाते हैं। इस रेयॉन से पानी वाले स्थान के पर्दे, छाते, बरसाती आदि बनाए जाते हैं।
6. क्यूप्रामोनियम रेयॉन ताप का सुचालक होने के कारण गर्मी में ठंडक देता है। इससे बने वस्त्र हल्के होते हैं।
7. विस्कॉस रेयॉन भी गर्मी में पहना जा सकता है लेकिन इसके धागे मोटे होने के कारण वस्त्र भारी होते हैं।
8. एसिटेट रेयॉन ताप का कुचालक होने के कारण गर्म वस्त्रों में अस्तर लगाने के काम आता है।
9. अत्यधिक ताप से रेयॉन का रेशा पिघल जाता है। नमी, ताप व दाब के सम्मिलित प्रभाव से; जैसे – भाप वाली इस्त्री (Steam press) से इसमें विशेष चमक आ जाती है।
रासायनिक विशेषताएँ
- अम्ल का रेयॉन पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। गर्म, तनु एवं तीव्र अम्ल से रेशे नष्ट हो जाते हैं।
- क्षार को सहन कर लेता है परन्तु क्षार के तीव्र घोल से रेशे कमजोर हो जाते हैं और वस्त्र की चमक भी कमजोर हो जाती है।
- रेयॉन पर रंग बहुत अच्छे चढ़ते हैं। इसे किसी भी रंग से सुन्दर व आकर्षक डिजाइनों में रंगा जा सकता है।
- रेयॉन का रेशा ब्लीच से प्रभावित होता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड इसके लिए अच्छा विरंजक है।
- रेयॉन के रेशे पर जीवाणु तथा कीटाणु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु नमी होने पर वस्त्रों पर फफूंद लग जाती है।
प्रश्न 7.
नायलॉन तन्तु की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
नायलॉन तन्तु की भौतिक विशेषताएँ –
- नायलॉन संश्लेषित कृत्रिम रेशा है। सूक्ष्मदर्शी यन्त्र द्वारा देखने पर इसके तन्तु गोलाकार, चिकने, चमकदार, सीधे व पारदर्शी होते हैं।
- नायलॉन का रेशा मजबूत होता है। यह रगड़ने, मोड़ने एवं ऐंठने पर भी नहीं टूटता है। इनसे वस्त्रों को काटने के लिए तेज धार वाली कैंची की आवश्यकता होती है।
- नायलॉन से बने वस्त्रों में नमी सोखने का अभाव होता है अत: ये शीघ्र सूख जाते हैं। ये वस्त्र गर्मी के मौसम में त्वचा के लिए आरामदायक नहीं होते हैं।
- ताप के कुचालक होने के कारण नायलॉन के वस्त्र सर्दी के लिए उपयुक्त रहते हैं।
- अधिक ताप पर ये रेशे पिघलकर दानों के रूप में जम जाते हैं।
- नायलॉन के रेशे में लचीलापन होने के कारण होजरी के वस्त्र बनाए जाते हैं।
- सामान्य ताप पर ये न तो फैलते हैं और न ही सिकुड़ते हैं।
- नायलॉन में रेशे को एक निश्चित आकार एवं आकृति में हीट सेट कर दिए जाने पर वस्त्र सदैव अपना आकार, क्रीज, प्लीट आदि पर स्थिर रहते हैं।
- नायलॉन के वस्त्रों की सतह चिकनी होती है अतः धूल नहीं जम पाती और इन्हें आसानी से धोया जा सकता है।
रासायनिक विशेषताएँ –
- इसके कई प्रकार होते हैं; जैसे – नायलॉन, डेक्रोन, एक्रेलिक आदि।
- नायलॉन पर अम्ल का हानिकारक प्रभाव पड़ता है; जैसे-सल्फ्यूरिक अम्ल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल। इनसे रेशा नष्ट हो जाता है।
- नायलॉन का रेशा क्षार से अप्रभावित रहता है इसलिए इसे किसी भी साबुन से धोया जा सकता है।
- रंगों के लिए नायलॉन वस्त्रों में अच्छा सादृश्य रहता है तथा सुन्दर से सुन्दर रंग इन पर खिल उठते हैं।
- हल्के रंग के वस्त्रों पर धूप व प्रकाश का प्रभाव पड़ता है।
- नायलॉन के वस्त्रों पर फफूंद एवं कीड़े नहीं लगते हैं।
- नायलॉन के वस्त्र पर्दे और रात के परिधान हेतु प्रयोग में लाये जाते हैं तथा दूसरे रेशों के साथ मिलाकर इनका बहुमुखी प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 8.
मिश्रित रेशे क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के मिश्रित रेशों के संगटक बताते हुए किन्हीं तीन मिश्रित रेशों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
मिश्रित रेशे (Mixed Fibers):
दो या दो से अधिक प्रकार के रेशों को मिलाकर बनाए गए नए प्रकार के रेशे मिश्रित रेशे कहलाते हैं। इसी प्रकार दो प्रकार के रेशों की कताई एक साथ करके मिश्रित धागा या दो प्रकार के रेशों वाले अलग – अगल धागों को एक साथ बुनकर, मिश्रित वस्त्र बनाए जाते हैं। जैसे – टेरीकाट, कॉट्सवूल, टेरीवूल, खादी सिल्क आदि। मिश्रित वस्त्रों की आसान देखभाल, कम कीमत एवं अधिक विशेषताएँ होने के कारण ये आजकल अधिक प्रचलन में हैं।
मिश्रित संगठन
टेरीकॉट टेरीलिन + कॉटन
कॉटस वूल कॉटन + वूल
टेरी वूल कॉटन + वूल
टेरी सिल्क टेरीलिन + सिल्क
कॉटन सिल्क कॉटन + सिल्क
प्रमुख मिश्रित रेशे –
1. टेरीकॉट (Terry-cot):
इस मिश्रित वस्त्र में टेरीलिन व कॉटन, दोनों की विशेषताएँ होती हैं। सूती रेशों के गुण जैसे-शीतलता, पसीना सोखना, आरामदायक आदि पाये जाते हैं। टेरीलिन की वजह से ये वस्त्र टिकाऊ, सुन्दर, चमकदार, सिकुड़न अवरोधक होते हैं। ऐसे वस्त्र धोओ और पहनो (wash and wear) प्रकार के होते हैं क्योंकि इन पर इस्त्री करने की आवश्यकता नहीं होती है।
2. टेरी सिल्क (Terry-Silk):
ऐसे मिश्रित वस्त्रों में टेरीलिन की वजह से मजबूती, टिकाऊपन व सिकुड़न प्रतिरोधकता होती है तथा सिल्क की वजह से चमकदार व आकर्षक होते हैं।
3. टेरी वूल (Terry-wool):
ऐसे वस्त्रों में टेरीलिन की उपस्थिति के कारण सलवट प्रतिरोधी गुण, सिकुड़न प्रतिरोधकता, मजबूती, रगड़ व घर्षणरोधी गुण होते हैं। ऊनी रेशों की उपस्थिति के कारण लचीलापन, सुन्दरता, गर्म होना आदि गुण पाए जाते हैं।