Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 13 लक्ष्मीस्वभावः
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 13 पाठ्य-पुस्तकस्य अभ्यास-प्रणोत्तराणि
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्ना
प्रश्न 1.
लक्ष्मीस्वभावः इति पाठः समुद्धृतोऽस्ति- (लक्ष्मी स्वभावः पाठ लिया गया है-)
(अ) हर्षचरितात्
(ब) कादम्बरीतः
(स) दशकुमार चरितात्
(द) शिवराजविजयात्
उत्तर:
(अ) हर्षचरितात्
प्रश्न 2.
रिक्तस्थानानि पूरयत- (रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए।)
(अ) लक्ष्मीः ……………… सागरात् उद्गता।
(ब) लक्ष्मीमदेन राजानः ……………………… भवन्ति।
(स) ………………. नगरलेखेव पश्यत एव नश्यति।
(द) ……………… अपवित्रमिव न स्पृशति।
उत्तर:
(अ) क्षीर
(ल) विक्लवाः
(स) गन्धर्व
(द) गुणवन्तम्
प्रश्न 3.
‘क’ खण्ड ‘ख’ खण्डेन सह योजयत – (क खण्ड को ख खण्ड के साथ जोड़ो)
उत्तर:
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 13 लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
तारापीडः कः? (तारापीड कौन है?)
उत्तरम्:
तारापीडः महाराजः आसीत्। (तारापीड महाराज था)
प्रश्न 2.
तारापीडस्य पुत्रस्य किं नाम? (तारापीड के पुत्र का क्या नाम था ?)
उत्तरम्:
तारापीडस्य पुत्रस्य नाम चन्द्रापीडः आसीत्। (तारापीड के पुत्र का नाम चन्द्रापीड था।)
प्रश्न 3.
शुकनासः कस्य अमात्यः? (शुकनास किसका मन्त्री था?)
उत्तरम्:
शुकनासः तारापीडस्य अमात्यः आसीत्। (शुकनास तारापीड का मन्त्री था।)
प्रश्न 4.
अविनयानाम् आयतनानि कानि? (अविनयों का घर क्या है?)
उत्तरम्:
गर्भेश्वरत्वम्, अभिनवयौवनम्, अप्रतिम रूपत्वम् अमानुष शक्तित्वम् च सर्वाविनयानाम् आयतनानि। (जन्म से प्रभुत्व, नवयौवन, अनुपम रूप तथा मानवेतर शक्ति ये सब अविनय के आयतन (घर) हैं।)
प्रश्न 5.
लक्ष्मी कस्मात् उद्गता? (लक्ष्मी किससे पैदा हुई?)
उत्तरम्:
लक्ष्मी क्षीरसागरात् उद्गता। (लक्ष्मी क्षीर-सागर से पैदा हुई।)
प्रश्न 6.
लक्ष्मीः कस्य सहोदरा? (लक्ष्मी किसकी सगी बहिन है?)
उत्तरम्:
लक्ष्मीः अमृतस्य सहोदरा। (लक्ष्मी अमृत की सगी बहिन है।)
प्रश्न 7.
जगति अनार्या का? (संसार में दुष्टा कौन है ?)
उत्तरम्:
लक्ष्मीः जंगति अनार्या। (लक्ष्मी संसार में दुष्टा है।)
प्रश्न 8.
लक्ष्मी मदेन राजानः कथमाचरन्ति? (लक्ष्मीमद से राजा कैसे आचरण करते हैं?)
उत्तरम्:
लक्ष्मीमदेन राजानः विह्वलतामुपयान्ति। ग्रह-ग्रसिता, भूताभिभूता परसंचालिता इव बन्धु-जनम् अपि नाभि जानन्ति। (लक्ष्मी-मद से राजा विह्वलता को प्राप्त हो जाते हैं, ग्रहों द्वारा ग्रसित भूतों द्वारा दबाये हुए, पर-संचालित की तरह से बन्धुजनों को भी नहीं पहचानते हैं।)
प्रश्न 9.
यौवने राजभिः कथं प्रयतनीयम्? (जवानी में राजाओं को क्या प्रयत्न करना चाहिए?)
उत्तरम्:
यौवने राजानः तथा कुर्युः यथा नोपहस्यते जनैः न निन्द्यते साधुभिः न धिक् क्रियते गुरुभिः नोपलभ्यते सुहृद्भिः, न शोच्यते विद्वद्भिः नाव लुप्यते सेवकवृकैः, न वञ्च्यते धूर्तेः न प्रलोभ्यते वनिताभिः नापहियते सुखेन। (जवानी में राजा लोग ऐसा करें जिससे कि लोग उनका उपहास न उड़ायें, साधु निन्दा न करें, बड़े धिक्कारें नहीं, मित्र उलाहना न दें, विद्वान् शोक न करें, सेवकरूपी भेड़िये नष्ट न करें, धूर्त छलें नहीं, स्त्रियाँ लुभायें नहीं तथा सुख अपहरण न करें।)
प्रश्न 10.
लक्ष्मी किं न पश्यति? (लक्ष्मी क्या नहीं देखती?)
उत्तरम्:
लक्ष्मी शीलं न पश्यति। (लक्ष्मी शील को नहीं देखती।)
प्रश्न 11.
लक्ष्मीः किं न गणयति? (लक्ष्मी किसे नहीं गिनती ?)
उत्तरम्:
लक्ष्मी: वैदग्ध्यं न गणयति। (लक्ष्मी विद्वता को नहीं गिनती।)
प्रश्न 12.
दीपशिखेव लक्ष्मी कि उदवमति? (दीपशिखा की तरह लक्ष्मी क्या उगलती है?)
उत्तरम्:
लक्ष्मी दीपशिखेव कज्जलमलिनमेव कर्म केवलमुद्द्वमति। (लक्ष्मी दीपशिखा की तरह काजल-से मलिन कर्मों को उगलती है।)
प्रश्न 3.
सप्रसंग संस्कृत व्याख्या कार्या – (सप्रसंग. संस्कृत व्याख्या करो।)
1. विदितवेदितव्यस्य ……………….. विषयविषास्वादमोहः।
प्रसङ्गः – अयं गद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य लक्ष्मीस्वभावः’ इति पाठात् उद्धृतः। मूलतोऽयं पाठः महाकवि भट्टेन विरचितात् ‘कादम्बरी’ इति गद्य-काव्यात् सङ्कलितः। गद्यांशेऽस्मिन् कवि लक्ष्म्याः स्वभावं वर्णयन् कथयति (यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के लक्ष्मी स्वभावः पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ महाकवि बाणभट्ट रचित ‘कादम्बरी’ गद्य काव्य से संकलित है। इस गद्यांश में कवि लक्ष्मी के स्वभाव का वर्णन करते हुए कहता है-)
व्याख्याः- वत्स चन्द्रापीड़! यत् त्वया ज्ञातव्यम् तत्सर्वमेव भवान् जानाति। यतः भवता सर्वाणि शास्त्राणि पठितानि अतः भवते काचिदपि शिक्षा न दातव्या। यौवनात् उत्पन्न अन्धकारः स्वभावतः एव प्रगाढः भवति। यतोऽयम् अन्धकारः रविकिरणैः रत्नानां प्रकाशैः दीपस्य प्रकाशेन अपि
अभेद्यः भवति। लक्ष्माः मदः अति सघनं भवति यत् वार्धक्ये अपि शान्तः न भवति । ऐश्वर्यप्राप्तिः रात्रधरुग्णता इव भवति यत् अञ्जन शलाकया अपि शान्तिं नाधिगच्छति। देर्प-दाह ज्वरस्य ऊष्मा एवं तीव्रा भवति यत् चन्दनादिभिः शीतल उपचारैः अपि नशाम्यति। इन्द्रियाणां विषयानां विषः विषमः भवति यत् निरन्तरं मूलैः औषधे, मन्त्रैः च अपि न शान्तिमाप्नोति। (वत्स चन्द्रापीड ! जो तुम्हें जानना चाहिए वह तो आप जानते हैं क्योंकि आपने सभी शास्त्रों का अध्ययन कर लिया है। अतः आपको कुछ भी शिक्षा देने योग्य नहीं है।
परत जवानी से उत्पन्न अन्धकार प्रकृति से ही गहन होता है। क्योंकि यह अंधेरा सूर्य की किरणों से रत्नों के प्रकाश और दीपक के प्रकाश से भी भेदने योग्य नहीं है। लक्ष्मी का मद इतना सघन होता है कि बुढ़ापे में भी शान्त नहीं होता। ऐश्वर्य की प्राप्ति राचोंध (रतौंधी) रोग की तरह होती है जो सुरमा की सलाई से भी शान्त नहीं होती। दर्प-दाह के ज्वर की गर्मी इतनी तीव्र होती है कि चन्दन आदि शीतल उपचारों से भी शान्त नहीं होती। इन्द्रियों के विषयों का विष इतना विषम होता है कि निरन्तर जड़ी बूटियों और मन्त्रों से शान्ति को प्राप्त नहीं करता।)
2. तदेवं प्राये कुटिलराजतन्त्रे …………………… नापहियसे सुखेन।
प्रसङ्गः – गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य लक्ष्मी-स्वभावः’ इति पाठात् उद्धृतः। अयम् पाठः महाकवि बाणेन रचितात् कादम्बरी-गद्यकाव्यात् संकलितः। अस्मिन् गद्यांशे लेखकः लक्ष्म्याः दोषान् वर्णयति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के लक्ष्मीस्वभावः’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ महाकवि बाण रचित कादम्बरी गद्य काव्य से संकलित है। इस गद्यांश में लेखक लक्ष्मी के दोषों का वर्णन करता है।)
व्याख्याः – अनेन प्रकारेण सामान्यतः महत्कुटिले अत्यधिकासक्तिप्रधाने यौवने तात ! त्वम् तथा प्रयत्नं कुरु येन जनाः न उपहसन्तु, सज्जनाः न निन्दन्तु, गुरुजनाः न धिक्कुर्वन्तु, मित्राणि उपालम्भं न वितरन्तु, विद्वांसः खिन्नाः न भवन्तु, वृकः इव भृत्याः न ग्रसन्तु, धूर्ता: कपटं न कुर्वन्तु, नार्यः प्रलोभनेन न आकर्षन्तु सुखेनापहरणं कुर्यात्। (इस प्रकार से प्रायः महान् कुटिल अत्यधिक आसक्ति प्रधान जवानी में हे तात तुम ऐसा प्रयास करो जिससे लोग, मजाक ने उड़ायें, सज्जन निन्दा न करें, गुरुजन नहीं धिक्कारें, मित्र उलाहना नहीं दें, विद्वान दुःखी न हों, भेड़िया जैसे नौकर ग्रसित न कर जायें, धूर्त छलें नहीं, नारियाँ लुभाएँ नहीं, आकर्षित नहीं करें, सुख अपहरण न करें।
प्रश्न 4.
सप्रसंग हिन्दी-व्याख्या कार्या – (सप्रसंग हिन्दी-व्याख्या कीजिए)|
1. आलोकयतु तावत् कल्याण अभिनिवेशी ………………….. सरस्वतीपरिगृहीतम् ईयैया इव।
प्रसंग – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के लक्ष्मीस्वभावः’ पाठ से उद्धृत है यह पाठ महाकवि बाणभट्ट की ‘कादम्बरी’ से संकलित है। इस गद्यांश में कवि लक्ष्मी के स्वभाव का वर्णन करते हुए कहता है
व्याख्याः – वत्स चन्द्रापीड! सबसे पहले आप लक्ष्मी को ही देखिए। पुराणों के अनुसार यह लक्ष्मी सागर मंथन करते हुए अन्य रत्नों के साथ निकली थी। अतः अन्य रत्नों के सम्पर्क में रहने पर उनमें विविध विशेषताएँ लेकर क्षीर-सागर से निकली थी। अतः इसने पारिजात के नये लाल-लाल पत्तों से राग (रंग, आसक्ति, अनुराग) ग्रहण किया है। चन्द्रमा की , कुटिल कला से टेढ़ापन लिया है, उच्चैःश्रवा घोड़ा जिसे इन्द्र ने ले लिया था, से चंचलता या चपलता ली। विष से मोहित (आकर्षित तथा मूर्छित) करने की शक्ति ली। मदिरा से मद (घमण्ड) लिया तथा कौस्तुभ मणि से कठोरता या निर्दयता गुण भी (इस प्रकार) यह बहुत से विरह और विनोद के चिह्न लेकर उदय हुई है। परन्तु यह जैसी दुष्टा है ऐसी कोई नहीं देखी। जैसे यह दुष्टा मिली हुई बड़े कष्टों से सुरक्षित रखी जाती है।
यह किसी से होने वाले परिचय की रक्षा नहीं करती, उच्च कुल को भी नहीं देखती है, न सुन्दरता को देखती है अर्थात् सुन्दरता को भी प्यार नहीं करती है। कुल परम्परा का भी अनुसरण नहीं करती, सदाचारी व्यक्ति को भी नहीं देखती, विद्वत्ता को गिनती में नहीं लाती। शास्त्रों के ज्ञान को भी नहीं सुनती, धर्म की ओर भी नहीं झुकती है। न त्याग का आदर करती है और न सत्य से बँधती है। आकाश में बादलों से बने गन्धर्व नगर के रेखा चित्रण की तरह देखते-देखते गायब (नष्ट) हो जाती है। विद्वानों के पास तो ऐसे नहीं जाती मानो उनसे ईष्र्या हो।
2. अन्या दुराचारया ………………… परप्रेरिता विनाशयन्ति।
प्रसंग – यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के लक्ष्मीस्वभावः’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ महाकवि बाणभट्ट विरचित कादम्बरी कथा से संकलित है। इस गद्यांश में अमात्य शुकनास चन्द्रापीड को लक्ष्मी की दुष्टताओं का वर्णन करते हुए कहता है।
व्याख्याः – यदि दुराचारिणी (उक्त दोषों से युक्त) भाग्यवश किसी को अपना भी लेती है अर्थात् किसी को मिल भी जाती है तो राजा लोग इसे पाकर बौरा जाते हैं, बेचैन हो जाते हैं। उनके अन्दर सब तरह के अवगुण पैदा हो जाते हैं। कुछ लोग तो सम्पत्ति के लोभ में, राग के आवेश में बाधा पहुँचाये जाते हुए विह्वल (विक्षुब्ध या व्याकुल) हो जाते हैं जैसे कोई प्रतिकूल ग्रहों के द्वारा पकड़ लिए गये हों, भूत या प्रेतों ने दबा लिए हों। अधर्म के मार्ग पर चलने के कारण उनकी गति रुक जाती है जिससे वे अपाहिज जैसे हो जाते हैं तथा दूसरों के द्वारा चलाये जाते हैं अर्थात् दूसरे धूर्त लोग उन्हें गलत मार्ग पर चलाते हैं।
जिस प्रकार कोई मरणासन्न व्यक्ति मरने से पूर्व अपने भाई-बन्धुओं को नहीं पहचान पाता उसी प्रकार लक्ष्मी के मद में ये भी अपनों को पहचान नहीं पाते अर्थात् अपने भी पराये हो जाते हैं। जिस प्रकार धार धरे तीखे बाण दूसरे के द्वारा चलाये हुए मनुष्य को मार देते हैं, ऐसे ही लक्ष्मी मद से मतवाले लोग भी दूसरों द्वारा संचालन किए जाते हुए मदिरा पान किये लोगों द्वारा नष्ट कर दिये जाते हैं।
व्याकरणात्मक प्रश्नोत्तराणि –
प्रश्न 5.
निम्नलिखितानां वाक्यानां वाच्य परिवर्तनं करणीयम् (निम्नलिखित वाक्यों का वाच्य परिवर्तन कीजिए)
1. लक्ष्मीमेव प्रथमम् आलोकयतु।
उत्तरम्:
लक्ष्मी एव प्रथमः आलोकयतु।
2. न परिचयं रक्षति।
उत्तरम्:
ने परिचयरक्ष्यते।
3. न अभिजनमीक्षते।
उत्तरम्:
न अभिजन: ईक्ष्यते
4. न शीलं पश्यति।
उत्तरम्:
न शीलः दृश्यते।
5. ने श्रुतम् आकर्णयति।
उत्तरम्:
श्रुतः आकर्त्यते।
6. न आचारं पालयति।
उत्तरम्:
न आचार: पाल्यते
प्रश्न 6.
इमानि पदानि प्रयुज्य वाक्यानि रचयत
1. विक्लवाः, 2. कदाचित्, 3. कामम्, 4. प्रीतहृदयः
उत्तरम्:
- लक्ष्मीम् प्राप्य राजानः विक्लवाः भवन्ति। (लक्ष्मी को प्राप्त कर राजा प्रायः बेचैन हो जाते हैं।)
- कदाचित् सः अद्य आगमिष्यति। (शायद वह आज आयेगा।)
- कामं भवान् प्रकृत्या एव धीरः। (आप स्वभाव से पर्याप्त वीर हैं।)
- प्रीतहृदयः चन्द्रापीडः स्वभवनं गच्छति। (प्रसन्न हृदय चन्द्रापीड अपने भवन को जाता है।)
प्रश्न 7.
निम्नलिखितानां शब्दानां निर्दिष्टं विभक्ति-वचनं लिख्यताम् (निम्नलिखित शब्दों के निर्देशानुसार विभक्ति व वचन लिखिए।)
उत्तरम्:
प्रश्न 8.
निम्नलिखितपदानां लिङ्गपरिवर्तनं करणीयम्। (निम्न पदों के लिंग-परिवर्तन करिए)
उत्तरम्:
प्रश्न 9.
निम्नलिखितात् उपसर्गान् आधारीकृत्य वाक्यनिर्माणं कर्तव्यम् – (निम्नलिखित उपसर्गों के आधार पर वाक्य निर्माण करिए)
उत्तरम्:
प्रश्न 10.
निम्नलिखितानां पदानां प्रकृति-प्रत्ययौ लेखनीयौ – (निम्नलिखित पदों का प्रकृति-प्रत्यय लिखिए)
उत्तरम्:
प्रश्न 11.
अधोलिखितपदेषु समास-विग्रहं कृत्वा समासस्य नाम निर्देशं कुरुत (निम्नलिखित पदों का समास विग्रह करके समास का नाम निर्देश कीजिए)
उत्तरम्:
प्रश्न 12.
अधोलिखितपदेषु सन्धि-विच्छेदं कृत्वा सन्धि-नाम निर्देशं कुरुत। (निम्नलिखित पदों की संधि-विच्छेद करके संधि का नाम लिखिए।)
उत्तरम्:
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 13 अन्य महत्वपूर्ण प्रजोतराणि
प्रश्न 1.
महाकवि कालिदासः कस्मात् गरिष्ठः वरिष्ठः च? (महाकवि कालिदास किसलिए महान् वरिष्ठ हैं?)
उत्तरम्:
कालिदासः रचना चातुर्येण: कल्पना वैचित्र्येण पद्यबन्धे गरिष्ठ वरिष्ठः च आसीत्। (कालिदास रचनाचातुर्य, कल्पना विचित्रता के कारण पद्य रचना में महान और श्रेष्ठ थे।)
प्रश्न 2.
कीदृक् काव्य निबन्धने बाणोऽन्यान् अति शेते? (किस काव्य की रचना में बाण अन्यों से अधिक था ?)
उत्तरम्:
गद्य काव्य निबन्धने बाणोऽन्यान् अति शेते। (गद्य काव्य रचना में बाण औरों से बढ़कर था।)
प्रश्न 3.
बाणेन समं कौ गद्यकाव्यबन्धेऽभवताम्? (कौन गद्य काव्य रचना में बाण के समान थे?)
उत्तरम्:
गद्यकाव्यबन्धे दण्डी सुबन्धुश्चेति द्वावेतौ बाणेन समं आस्ताम्। (गद्यकाव्य रचना में दण्डी और सुबंधु ये दोनों बाण के समान थे।)
प्रश्न 4.
बाणः कैः कारणैः गरिष्ठः वरिष्ठः च? (बाण किन कारणों से गरिष्ठ और वरिष्ठ हैं?)
उत्तरम्:
बाणः भूमिष्ठया मनोभावाभिव्यक्त्या, साधिष्ठया, कौशल्या, मृदिष्ठया मनोहरतया पदपरिष्कृत्या च अन्येषां गरिष्ठः वरिष्ठः च। (बाण बहुत मनोभावों की अभिव्यक्ति, साधकता, कुशलता, मृदुता, मनोहरता एवं पद परिष्कारिता के कारण अन्यों से गरिष्ठ और वरिष्ठ थे।)
प्रश्न 5.
चीनी यात्री ह्वेनसांगः कस्मिन् काल खण्डेऽभ्रमत्? (चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किस कालखण्ड में भ्रमण किया?)
उत्तरम्:
चीनी यात्री ह्वेनसांग: 629 तः 645 ई. पर्यन्तं भारतम् अभ्रमत्। (चीनी यात्री ह्वेनसांग सन् 629 से 645 ई. तक भारत में घूमा।)
प्रश्न 6.
बाणभट्टः कस्य नृपस्य समकालीनः आसीत्? (बाणभट्ट किस राजा का समकालीन था ?)
उत्तरम्:
बाणभट्टः हर्षदेवस्य समकालीनः आसीत्। (बाणभट्ट हर्षदेव का समकालीन था।)
प्रश्न 7.
हर्षमाधृत्य बाणेन कि काव्यं रचितम्? (हर्ष के आधार पर बाण ने कौन से काव्य की रचना की?)
उत्तरम्:
हर्षमाधृत्य बाणेन हर्षचरितम् इति गद्यकाव्यं विरचितम्। (हर्ष के आधार पर बाण ने हर्षचरित्र गद्यकाव्य की रचना की।)
प्रश्न 8.
बाणस्य पितुः नाम किमासीत्? (बाण के पिता का नाम क्या था?)
उत्तरम्:
बाणस्य पितुः नाम चित्रभानुः आसीत्। (बाण के पिता का नाम चित्रभानु था।)।
प्रश्न 9.
बाणस्य पूर्वजाः कुत्र निवसन्ति स्म? (बाण के पूर्वज कहाँ रहते थे?)
उत्तरम्:
बाणस्य पूर्वजाः बिहार प्रान्तस्ये शोणाख्यस्य महानदस्य तटे प्रीतिकूट नामके ग्रामेन्यवसन्। (बाण के पूर्वज बिहार प्रान्त के शोण नामक नदी के किनारे प्रीतिकूट नामक गाँव में रहते थे।)
प्रश्न 10.
बाणः गोत्रेण कः आसीत्? (बाण का गोत्र क्या था?)
उत्तरम्:
बाणः गोत्रेणवात्सायनः आसीत्। (बाण गोत्र से वात्सायन था।)
प्रश्न 11.
बाणेन कतिग्रन्थाः लिखताः? तेषां नामानि लिखत। (बाण ने कितने ग्रन्थ लिखे? उनके नाम लिखिए।)
उत्तरमु:
बाणेन द्वौ ग्रन्थौ लिखितौ-‘हर्षचरितम्’ इति आख्यायिका कादम्बरी कथा च। (बाण ने दो ग्रन्थ लिखे-हर्ष चरित आख्यायिका तथा कादम्बरी कथा।)
प्रश्न 12.
चन्द्रापीडस्य यौवराज्याभिषेक चिकीर्षः राजा प्रतिहारान् किमादिष्टवान्? (चन्द्रापीड का युवराज्याभिषेक करने के इच्छुक राजा ने द्वारपालों को क्या आदेश दिया?)
उत्तरम्:
राजा प्रतिहारान् उपकरणसम्भारसंग्रहर्थमादिष्टवान्। (राजा ने द्वारपालों को उपकरण और सामग्री लाने का आदेश दिया।)
प्रश्न 13.
चन्दापीडाय कः उपदिष्टवान्? (चन्द्रापीड को किसने उपदेश दिया?)
उत्तरम्:
चन्द्रापीडाय अमात्य शुकनासः उपदिष्टवान्। (चन्द्रापीड को अमात्य शुकनास ने उपदेश दिया।)
प्रश्न 14.
उपदेशात् पूर्वं चन्द्रापीडः कीदृशः आसीत्? (उपदेश से पूर्व चन्द्रापीड कैसा था?)
उत्तरम्:
उपदेशात् पूर्वं चन्द्रापीडः विदितवेदितव्य अधीत सर्वशास्त्रश्चासीत्। (उपदेश से पहले चन्द्रापीड जानने योग्य। को जानने वाला और सारे शास्त्रों का अध्ययन कर चुका था।)
प्रश्न 15.
यौवनप्रभवं तमः निसर्गतः कीदृशं भवति? (यौवन से उत्पन्न होने वाला अंधेरा कैसा होता है।)
उत्तरम्:
यौवनप्रभवं तमः निसर्गतः अभानुभेद्यम्, अरत्नालोकच्छद्यम् अप्रदीपप्रभापनेयं अतिगहनं भवति। (यौवन से उत्पन्न अंधेरा प्रकृति से ही सूर्य द्वारा अभेद्य, रत्नों के प्रकाश से अच्छेद तथा दीपक के प्रकाश से अच्छेद अत्यन्त गहरा होता है।)
प्रश्न 16.
लक्ष्मीमदः कीदृशः भवति? (लक्ष्मी का मद कैसा होता है?)
उत्तरम्:
लक्ष्मीमदः अपरिणामोपशम: दारुणः भवति। (लक्ष्मी को मद इतना भयंकर होता है कि बुढ़ापे में भी शान्त नहीं होता है।)
प्रश्न 17.
ऐश्वर्य तिमिरान्धत्वं कीदृशं भवति? (ऐश्वर्य से उत्पन्न तिमिर रूपी अन्धापन कैसा होता है।)
उत्तरम्:
ऐश्वर्य तिमिरान्धत्वं कष्टम् अञ्जनवर्तिकया अपि असाध्यं भवति। (ऐश्वर्य से उत्पन्न रात्रांध (तिमिररूपी अन्धापन) कष्टदायक तथा सुरमा की शलाका से भी असाध्य होता है।)
प्रश्न 18.
दर्पदाह ज्वरस्य ऊष्मा कीदृशी भवति? (दर्प-दाह के ज्वर की गर्मी कैसी होती है?)
उत्तरम्:
दर्पदाह ज्वरस्य ऊष्मा शिशिर उपचारैः अहार्यः अतितीव्रः च भवति। (दर्प-दाह के ज्वर की गर्मी इतनी अधिक तीव्र होती है कि ठण्डे उपचारों से भी शान्त नहीं होती।)
प्रश्न 19.
विषयविषास्वादमोहः कीदृशः भवति? (विषयोंरूपी जहर के स्वाद का मोह कैसा होता है ?)
उत्तरम्:
विषय-विषास्वादमोहः विषमः सतत मूल मन्त्रैः च अशाम्य भवति। (विषय-विष के स्वाद का मोह विषम तथा निरन्तर जड़ी-बूटी तथा मन्त्रों से न शान्त होने वाला है।)
प्रश्न 20.
नित्य शौच-स्नानादिभिः अबाध्यो बलवान् को भवति? (नित्य, स्नान शौचादि से भी दूर न होने वाला शक्तिशाली कौन है?)
उत्तरम्:
शौचस्नानादिभिरबाध्यः बलवान् रागमलावलेपः भवति। (शौच स्नान आदि द्वारा भी दूर न किए जाने योग्य बलवान् अनुराग रूपी मल का लेप होता है।)
प्रश्न 21.
राज्यसुख सन्निपात निद्रा कीदृशी भवति? (राज्य सुख रूपी सन्निपात की नींद कैसी होती है?)
उत्तरम्:
राज्यसुख सन्निपात निद्रा घोरा, अजस्रम् क्षपावासाने अति अप्रोधा भवति। (राज्य सुख भोग के सन्निपात की नींद गहरी लगातार तथा रात्रि की समाप्ति पर भी न जागने वाली होती है।)
प्रश्न 22.
का महती अनर्थ परम्परा? (महान् अनर्थों की क्या परम्परा है?)
उत्तरम्:
गर्भेश्वरत्वं अभिनवयौवनत्वं, अप्रतिमरूपत्वं अमानुषशक्तित्वं चेते चत्वारः खलु अनर्थ परम्परा। (जन्म से स्वामित्व, नवयौवन, अनुपम रूप, मानवेतर शक्ति निश्चित ही ये चारों अनर्थ की परम्परा हैं।)
प्रश्न 23.
लक्ष्म्या रागम् कुतः गृहीतम्? (लक्ष्मी ने राग कहाँ से लिया?)
उत्तरम्:
लक्ष्म्या रागः क्षीरसागरात् पारिजात-पल्लवेभ्यः गृहीतम्। (लक्ष्मी द्वारा राग क्षीरसागर से पारिजात के पल्लवों (पत्तों) से लिया।)
प्रश्न 24.
लक्ष्मी वक्रताम् कुतः गृहीतवती? (लक्ष्मी ने वक्रता कहाँ से ली?)
उत्तरम्:
लक्ष्मी वक्रता इन्दुशकलात् गृहीतम्। (लक्ष्मी ने वक्रता चन्द्रमा की कला से ली।)
प्रश्न 25.
केन परिगृहीताः राजानः विक्लवाः भवन्ति? (किसके द्वारा अपनाये गए राजा बेचैन कर दिये जाते हैं?)
उत्तरम्:
लक्ष्मया परिगृहीताः राजानः विक्लवाः भवन्ति। (लक्ष्मी द्वारा अपनाये हुए राजा लोग बेचैन हो जाते हैं।)