Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 3 आदर्श जीवनम्
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 3 पाठ्य-पुस्तकस्य अभ्यास-प्रणोत्तराणि
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
संसारस्य मातापितरौ कौ स्तः? (संसार के माता-पिता कौन हैं-)
(क) सूर्य-चन्द्रौ
(ख) उमाशंकरौ
(ग) सीताराम
(घ) लक्ष्मीनारायणौ
उत्तराणि:
(ख) उमाशंकरौ
प्रश्न 2.
रघुवंशीयाः नृपाः शैशवे किं कुर्वन्ति? (रघुवंशी राजा बालपन में क्या करते थे-)
(क) विद्याभ्यासम्
(ख) ऐश्वर्यभोगम्
(ग) वनभ्रमणम्
(ध) राज्यपालनम्।
उत्तराणि:
(क) विद्याभ्यासम्
प्रश्न 3.
छन्दसां ऊँकारमिव कः आसीत्? (छन्दों में कार के समान कौन था?)
(क) वशिष्ठः
(ख) विश्वामित्रः
(ग) वैवस्वत मनुः
(घ) दशरथः
उत्तराणि:
(ग) वैवस्वत मनुः
प्रश्न 4.
केन कारणेन राजा प्रजाभ्यः करं गृह्णाति? (किस कारण से राजा प्रजा से कर ग्रहण करते थे?)
(क) प्रजाजनानां कल्याणार्थं
(ख) प्रासाद-निर्माणार्थम्
(ग) स्वस्यभोगार्थ
(घ) किञ्चित् कारणं नास्ति।
उत्तराणि:
(क) प्रजाजनानां कल्याणार्थं
प्रश्न 5.
जन्मदातुः अतिरिक्तं पिता कः आसीत्? (जन्म देने वाले के अलावा पिता कौन था?)
(क) रघुवंशीयः नृपः
(ख) यः तीर्थाटनं कारयति
(ग) यः धनादिकं ददाति
(घ) यः दण्ड न ददाति।
उत्तराणि:
(क) रघुवंशीयः नृपः
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
रघोः वंशे उत्पन्नानां राज्ञां धनं कस्यार्थं वर्तते? (रघुवंश में उत्पन्न राजाओं के धन किसके लिए हैं?)
उत्तरम्:
रघो: वंशे उत्पन्नानां राज्ञां धनं प्रजानां भृत्यर्थं त्यागीय आसीत्। (रघु के वंश में उत्पन्न राजाओं का धन प्रजाजनों के कल्याण के लिए त्यागार्थ था।)
प्रश्न 2.
सूर्यः केन कारणेन पृथिव्याः जलं शोषयति? (सूर्य किस कारण से पृथ्वी क; जल सोखता है?)
उत्तरम्:
सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते रविः पृथिव्याः जलं शोषयति। (हजार गुणा देने के लिए सूर्य पृथिवी का जल सोखता है।)
प्रश्न 3.
अर्थकामौ तस्य राज्ञः कः आस्ताम्? (अर्थ और काम उस राजा के कौन थे?)
उत्तरम्:
तस्य राज्ञः अर्थकामौ धर्मः आस्ताम्। (उस, राजा के अर्थ और काम धर्म हो गये थे।)
अधोलिखितानां पद्यानां सप्रसंग व्याख्या कार्या –
उत्तरम्:
उत्तर के लिए क्रमशः श्लोक संख्या-3, 10, 7 की सप्रसंग व्याख्या देखें।
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
रघुवंशीयानां नृपाणां गुणेषु निबन्धः लेख्यः। (रघुवंशीय राजाओं के गुणों पर निबन्ध लिखिए।)
उत्तरम्:
रघुवंशीयाः नृपाः प्रजानां कल्याणाय् करम् गृहन्ति स्म। स्वकीयान् जनान् अत्रस्ता: सन्तः रक्षन्ति स्म। अपीडिताः ते धर्म अर्जन्ति स्म। लोभं विना ते धनं गृह्णन्ति स्म। अनासक्ताः सुखमनुभवन्ति स्म। ज्ञानं प्राप्य अपि मौनम् अधारयन्। शक्तिवन्तः अपि क्षमाशीलाः आसन् । त्यागं विधाय अपि आत्मश्लाघां नेच्छन्ति स्म। गुणाः तु तेषां सहोदराः इव आसन्। इन्द्रियाणां विषयान् प्रति नासीत् तेषां कापिरुचिः। विद्याषु ते पारंगताः आसन्। ते सदैव धर्मे रताः आसन्। अल्पायुषि एव ते ज्ञान-वृद्धा आसन्। प्रजानां सन्मार्ग गमनात् प्रजा रक्षणात् पोषणाच्च ते प्रजानां पितेव आसन्। व्यवस्था रक्षणाय एव अपराधिने एव दण्डयन्ति स्म। (रघुवंशीय राजा प्रजाहित एवं कल्याण के लिए ही कर संग्रह करते थे। अपने व्यक्तियों की बिना त्रस्त हुए रक्षा करते थे। वे पीड़ारहित धर्म अर्जित करते थे।
बिना लोभ के धन ग्रहण करते थे। आसक्तिरहित होकर सुख का अनुभव करते थे। ज्ञान प्राप्त करके भी वे मौन रहते थे। शक्तिमान् होते हुए भी क्षमाशील थे। त्याग करके भी अपनी सराहना पसन्द नहीं करते थे। गुण तो उनके सगे भाई की तरह थे। इन्द्रियों के विषयों के प्रति उनकी कोई रुचि नहीं थी। वे शास्त्रों में पारंगत थे। वे सदैव धर्म में रत रहते थे। अल्पायु में ही ते ज्ञानवृद्ध थे। प्रजाजों के सन्मार्ग पर चलने, प्रजा की रक्षा करने और पालन-पोषण करने के कारण वे प्रजा के पिता के समान थे! व्यवस्था की रक्षा के लिए अपराधियों को दण्ड देते थे।
प्रश्न 2.
अस्य पाठानुसार प्रजापालनम् अधिकृत्य लेखः लेख्यः। (इस पाठ के अनुसार प्रजापालन पर आधारित लेख लिखिए।)।
उत्तरम्:
शासकस्य अयं कर्तव्यः अस्ति यत् असौ प्रजायाः कल्याणाय एव धनं संग्रहं कुर्यात् यदि सः प्रजाजनेभ्यः करं गृह्णाति तर्हि तद्रार्थिं प्रजाहिते एवं उत्स्रजेत् । तेन धनेन विकास कार्याणि करणीयानि न च लोभेन धनं संग्रहणीयम्। सदैव प्रजानां रक्षणं भरण-पोषणं च कुर्यात् । यतः नृपः प्रजाजनस्य पिता इव भवति। कृतापराधान् प्रति दण्डविधानस्तु करणीय परन्तु मात्र व्यवस्थायै एव अपराधिनः दण्डीयाः। तदा एव प्रजा पुत्रवत् भवति सन्मार्ग गमनं च करोति।
(शासक का यह कर्तव्य है कि वह प्रजा के कल्याण के लिए ही धन संग्रह करे। यदि वह प्रजा से कर ग्रहण करता है तो उस राशि को प्रजाहित में ही खर्च करे। इस धन से विकास-कार्य किए जाने चाहिए। न कि लोध से धन संग्रह करना चाहिए। सदैव प्रजाजनों की रक्षा । और पालन-पोषण करना चाहिए क्योंकि राजा प्रजा के पिता के समान होता है। अपराधियों को दण्ड भी देना चाहिए परन्तु मात्र व्यवस्था के लिए अरधियों को भी दण्ड़ दिया जाना चाहिए। तभी प्रजा पुत्रवत् होती है और सन्मार्ग पर चलती है।)
प्रश्न 3.
अधोलिखितेषु पद्येषु अलंकार निर्देशपूर्वकम् लक्षणं संगमयत। (निम्नलिखित पद्यों में अलंकार बताइये तथा निर्देशपूर्वक लक्षण कीजिए।)
(अ) वैवस्वत मनुन मानवीयो मनीषिणाम्।
आसीन्महीक्षितामाद्यः प्रणवश्छन्दशामिव।।
(ब) प्रजानाऐवं भृत्यर्थ स ताभ्यो बलिमग्रहीत्।
सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रतं रवि:।
उत्तरम्:
(अ) अस्मिन् श्लोके ‘प्रणवश्छन्दसापिव’ इति वाक्ये ‘उपमा’ अलंकार अस्ति। (इस श्लोक में उपमा अलंकार है।)
परिभाषा – प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यमुपमेत्यमिधीयते। (अति स्पष्ट और सुन्दर साम्य (समता) को उपमा अलंकार कहते हैं।)
अस्मिन् श्लोके मनीषिणां महीक्षिताम् च यदौ उपमेय एतयोः उपमानमत्र ‘छन्दसाम्’ पदम्। एवमेव वैवस्वतो मनुः उपमेयस्योपमानं प्रणवः पदमस्ति एतयोः उपमेयोपमानयो स्फुटं साम्यं ‘आद्यः’ इति समान्य धर्मत्वात् यत् इव इति वाचक-पदेन निर्दिष्टम्। (इस श्लोक में मनीषिणाम् और महीक्षिताम् पद उपमेय हैं। इनका उपमान यहाँ छन्दसाम् पद है। इसी प्रकार ‘वैवस्वतमनु’ उपमेय का उपमान ‘प्रणवः’ पद है। इन दोनों उपमेय और उपमानों में ‘आद्यः’ साधारण धर्म के कारण स्पष्ट साम्य है, जिसे इव’ वाचक शब्द से निर्दिष्ट किया गया है। अतः यहाँ उपमा अलंकार है।
(ब) अस्मिन् श्लोके दृष्टान्तो अलंकारोऽस्ति। (इस श्लोक में दृष्टान्त अलंकार है।)
लक्षणम् – चेत डिम्ब प्रतिबिम्वत्वं दृष्टान्तस्तदलङ्कृतिः। यत्र उपमानोपमेययोः वाक्यार्थयोः बिम्बप्रतिबिम्ब भाव भवति तत्र दृष्टान्तः अतङ्कारः भवति।
(उपमान उपमेय’ रूप वाक्यार्थों में यदि बिम्बप्रतिबिम्ब भाव हो तो वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है।)
संगति – अस्मिन् श्लोके ‘प्रजानामेव…….बलिमग्रहीत्’ ‘सहस्र……….रवि:’ च एतयोः। उपमेयोपमानरूपयो वाक्यार्थयो बिम्बप्रतिबिम्ब भावः अस्ति अतः अत्र दृष्टान्ते अलंकारः। (इस श्लोक में ऊपर और नीचे के दोनों वाक्यार्थों में बिम्ब प्रतिबिम्ब शब्द हैं। अत: यहाँ दृष्टान्त अलंकार है।)
प्रश्न 4.
अधोलिखित पद्ये छन्दोनिर्देशनपुरस्सरं लक्षणं संगमयत् (निम्नलिखित पद्य में छन्द का निर्देश करते हुए लक्षण का संयोजन कीजिए।)
वागर्थाविव सम्पृक्तौ, वागर्थप्रतिपत्तये।
जगतः पितरौ वन्दे, पार्वती परमेश्वरौ॥
उत्तरम्:
श्लोकेऽस्मिन् ‘अनुष्टप्’ छन्दः।
लक्षणम् – पञ्चमं लघु सर्वत्र, षष्ठं गुरु विजानीयात्।।
सप्तमं द्विचतुर्थयो एतत्पद्यस्य लक्षणम् ॥
(इसके प्रत्येक चरण का पंचम वर्ण लघु, छटा गुरु तथा दूसरे और चौथे चरण में सातवाँ वर्ण लघु होता है तथा शेष में गुरु। अन्य वर्गों के लिए कोई नियम नहीं।)
व्याकरणात्मक प्रश्नोत्तराणि –
प्रश्न 1.
अधोलिखितेषु पदेषु धातु-उपसर्ग-प्रत्ययानां निर्देशं कुरुत- (निम्नलिखित पदों में धातु, उपसर्ग और प्रत्यय का निर्देशकीजिए-)
उत्तरम्:
प्रश्न 2.
अधोलिखितेषु पदेषु शब्द-विभक्ति-लिङ्ग-वचनानां निर्देशं कुरुत- (निम्नलिखित पदों में शब्द, लिंग और वचनों का निर्देश कीजिए-)
उत्तरम्:
प्रश्न 3.
अधोलिखितानां शब्दानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धि-नाम निर्देशं कुरुते- (निम्नलिखित शब्दों का सन्धि–विच्छेद करके सन्धि का नाम बताइये-)
उत्तरम्:
प्रश्न 4.
अधोलिखितानां पदानां समास विग्रहं कृत्वा समासस्य नाम निर्देशं कुरुत- (निम्नलिखित पदों का समास विग्रह करके समास का नाम बताइये-)
उत्तरम्:
प्रश्न 5.
अधोलिखितान् शब्दान् अधिकृत्य वाक्य-निर्माणं कुरुत- (निम्नलिखित शब्दों के आधार पर वाक्य बनाइये)
उत्तरम्:
प्रश्न 6.
अधोलिखितानिं वाक्यानि संशोधनीयानि- (निम्नलिखित वाक्यों का संशोधन कीजिए-)
- धनिकानां धनं दानं भवितव्यम्।
- राममहेशः तत्र गच्छतः।
- ज्ञानं सदृशं एव तस्य वक्तव्यम्।
- सूर्यः पृथ्वीं जलं प्रदानं एव तस्याः जलं गृह्णाति।
- मनीषी धर्मार्जनं कुर्वन्ति।
उत्तरम्:
- धनिकानां धनं दानाय भवितव्यम्
- राममहेशौ तत्र गच्छतः।
- ज्ञानेन सदृश एव तस्य वक्तव्यम्।
- सूर्यः पृथिव्यै जलं प्रदानाय एव तस्याः जलं गृह्णाति।
- मनीषिणः धर्मार्जनं कुर्वन्ति।
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोतराणि
प्रश्न 1.
कविः कालिदास केन प्रयोजनेन पार्वतीपरमेश्वरौ वन्दते? (कवि कालिदास किस प्रयोजन से पार्वती परमेश्वर की वन्दना करते हैं ?)
उत्तरम्:
कविः वागर्थप्रतिपत्तये पार्वती-परमेश्वरौ वन्दते। (कवि वाणी (शब्द) और अर्थ के सम्यक् ज्ञान के लिए पार्वती-परमेश्वर की वन्दना करते हैं।)
प्रश्न 2.
वागर्थी अत्र केन सह उपमितौ? (शब्द और अर्थ की यहाँ किसके साथ उपमा दी गई है?)
उत्तरम्:
वागर्थी अत्र ‘पार्वती-परमेश्वरौ’ इति पदेन सह उपमितौ। (वागर्थी यहाँ ‘पार्वती-परमेश्वरौ’ पद के साथ उपमा दी गई है।)
प्रश्न 3.
पार्वतीपरमेश्वरौ कस्य पितरौ? (पार्वती-परमेश्वर किसके माता-पिता हैं?)
उत्तरम्:
पार्वतीपरमेश्वरौ जगतः पितरौ स्तः। (पार्वती-परमेश्वर संसार के माता-पिता हैं।)
प्रश्न 4.
‘पार्वतीपरमेश्वरौ’ अत्र ‘परमेश्वरः’ इति पदं कस्मै देवाय प्रयुक्तम्? (‘पार्वती-परमेश्वरौ’ यहाँ ‘परमेश्वर पद किस देव के लिए प्रयोग हुआ है?)
उत्तरम्:
‘परमेश्वरः’ इति पदम् अत्र शिवाय प्रयुक्तम्। (‘परमेश्वर’ पद यहाँ शिव के लिए प्रयोग किया गया है।)
प्रश्न 5.
पार्वतीपरमेश्वरौ कौ इव सम्पृक्तौ? (पार्वती-परमेश्वर का किनकी तरह नित्य सम्बन्ध है?)
उत्तरम्:
पार्वती परमेश्वरौ वागर्थी इव सम्पृक्तौ। (पार्वती परमेश्वर शब्द-अर्थ की तरह नित्य सम्बन्ध है।)
प्रश्न 6.
रघुवंशीयानां सम्भृतार्थानां कि प्रयोजनम्? (रघुवंशियों के संचित धन का क्या प्रयोजन है?)
उत्तरम्:
रघुवंशीयानां संभृतार्थानां प्रयोजनं त्यागं भवति। (रघुवंशियों के संचित धन का प्रयोजन त्याग होता है।)
प्रश्न 7.
रघुवंशीयाः कस्मात् अल्पं भाषन्ते? (रघुवंशी किस कारण से कम बोलते हैं?)
उत्तरम्:
रघुवंशीयाः सत्यभाषणाय अल्पं भाषन्ते । (रघुवंशी सत्य भाषण के लिए कम बोलते हैं।)
प्रश्न 8.
रघुवंशीयाः नृपाः कस्मात् विजयेच्छां कुर्वन्ति। (रघुवंशी राजा किसलिए विजय की इच्छा करते हैं?)
उत्तरम्:
रघुवंशीयाः नृपाः यशसे विजयेच्छां कुर्वन्ति। (रघुवंशी राजा यश के लिए विजय की इच्छा करते हैं।)
प्रश्न 9.
रघुवंशीयाः नृपाः केन प्रयोजनेन गृह यज्ञान् सम्पादयन्ति? (रघुवंशी राजा किस प्रयोजन से गृहयज्ञ (पंचयज्ञ) सम्पन्न करते हैं?)
उत्तरम्:
रघुवंशीयाः नृपाः प्रजायै गृहयज्ञान् सम्पादयन्ति। (रघुवंशी राजा प्रजा के लिए गृहयज्ञ करते हैं।).
प्रश्न 10.
रघुवंशीयानां विषयेषु एषणा कदा भवति? (रघुवंशियों की विषयों में इच्छा कब होती है?)
उत्तरम्:
रघुवंशीयानां यौवने विषयेषु एषणा भवति। (रघुवंशियों की जवानी में विषयों की इच्छा होती है।)
प्रश्न 11.
रघुवंशीयाः शरीरं कथं त्यजन्ति? (रघुवंशी शरीर को कैसे त्यागते हैं?)
उत्तरम्:
रघुवंशीयाः शरीरं योगेन त्यजन्ति। (रघुवंशी शरीर को योग साधना से त्यागते हैं।)
प्रश्न 12.
रघुवंशीयाः वार्द्धके किं कुर्वन्ति? (रघुवंशी बुढ़ापे में क्या करते हैं?)
उत्तरम्:
रघुवंशीयाः वार्द्धके मुनिवृत्तिं धारयन्ति। (रघुवंशी बुढ़ापे में मुनिवृत्ति धारण करते हैं।)
प्रश्न 13.
रघुवंशीयाः नृपाः शैशवे किं कुर्वन्ति? (रघुवंशी राजा बचपन में क्या करते हैं?)
उत्तरम्:
रघुवंशीयाः नृपाः शैशवे विद्याभ्यास (विद्यार्जनं) कुर्वन्ति। (रघुवंशी राजा बचपन में विद्याभ्यास करते हैं।)
प्रश्न 14.
रघूणां पूर्वपुरुषः कः आसीत्? (रघुवंशियों का पुरखा कौन था?)
उत्तरम्:
रघूणां पूर्वपुरुषः वैवस्वतो मनुः आसीत्। (रघुवंशियों का पुरुखा वैवस्वत मनु था।)
प्रश्न 15.
मनुः कस्य पुत्रः आसीत्? (मनु किसका पुत्र था?)
उत्तरम्:
मनु विवस्वत: (सूर्यस्य) पुत्रः आसीत्। (मनु विवस्वत अर्थात् सूर्य का पुत्र था।)
प्रश्न 16.
मनुः कान् इव आद्यः आसीत् ? (मनु किनकी तरह प्रथम था?)
उत्तरम्:
यथा वेदेषु प्रणवः (ॐ) प्रथमः तथैव मनुः मनीषिणां नृपाणां प्रथमः आसीत्। (जैसे वेदों में प्रणव (ॐ) प्रथम है वैसे ही मनु विद्वान राजाओं में सबसे पहला था।
प्रश्न 17.
मनोः प्रज्ञा कीदृशी आसीत्? (मनु की बुद्धि कैसी थी?)
उत्तरम्:
मनोः प्रज्ञा आकार-सदृशमासीत्। (मनु की बुद्धि आकार के समान थी।)
प्रश्न 18.
मनुः केषां आद्यः आसीत्? (मनु किनमें आदि था?)
उत्तरम्:
मनुः मनीषिणां नृपाणाम् च आद्यः आसीत्। (मनु विद्वानों और राजाओं में प्रथम था।)
प्रश्न 19.
मनोः प्रज्ञया सदृशः किम् आसीत्? (मनु की बुद्धि के समान क्या था?)
उत्तरम:
मनो प्रज्ञया सदृशः शास्त्राणां ज्ञानं आसीत्। (मनु की प्रज्ञा के समान शास्त्रों का ज्ञान था।)
प्रश्न 20.
मनोः कार्यारम्भः कीदृशाः? (मनु का कार्य आरम्भ कैसा है?)
उत्तरम्:
मनोः कार्यारम्भः आगमैः सदृशः भवति। (मनु का कार्य आरम्भ शास्त्रों के अनुरूप होता है।)
प्रश्न 21.
महाकवि कालिदासेन कौ जगतः पितरौ उक्तौ? (महाकवि कालिदास ने किन्हें संसार के माता-पिता कहा है?)
उत्तरम्:
महाकवि कालिदासेन पार्वतीपरमेश्वरौ जगतः पितरौ उक्तौ। (महाकवि कालिदास ने पार्वती परमेश्वर को जगत् का माता-पिता कहा।)
प्रश्न 22.
रघुवंशीयाः त्याग-प्रयोजनेन किं कुर्वन्ति? (रघुवंशीय त्याग के प्रयोजन से क्या करते हैं?
उत्तरम्:
रघुवंशीयाः त्यागीय अर्थ-सञ्चयं कुर्वन्ति। (रघुवंशीय त्याग के प्रयोजन से धन-संचय करते हैं।)
प्रश्न 23.
ते सत्यं कथं पालयन्ति? (वे सत्य का पालन कैसे करते हैं?
उत्तरम्:
ते अल्पं भाषित्वा सत्यं पालयन्ति। (वे थोड़ा बोलकर सत्य का पालन करते हैं।)
प्रश्न 24.
रघुवंशीयाः यशसे किं कुर्वन्ति? (रघुवंशीय राजा यश के लिये क्या करते हैं?)
उत्तरम्:
रघुवंशीयाः यशसे विजयेच्छां कुर्वन्ति। (रघुवंशीय राजा यश के लिए विजय की इच्छा करते हैं।)
प्रश्न 25.
ते प्रजायै कि सम्पादयन्ति? (वे सन्तान के लिये क्या करते हैं।)
उत्तरम्:
ते प्रजायै गृहयज्ञान् सम्पादयन्ति। (वे सन्तान के लिए गृहयज्ञों का सम्पादन करते हैं।)