Rajasthan Board RBSE Class 12 Geography Chapter 16 जैविक एवं अजैविक संसाधन
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गाय पालने में विश्व में भारत का कौन-सा स्थान है?
(अ) दूसरा
(ब) पहला
(स) तीसरा
(द) चौथा
प्रश्न 2.
भारत में विश्व की कितने प्रतिशत भैसें पाली जाती हैं?
(अ) 40 प्रतिशत
(ब) 56 प्रतिशत
(स) 48 प्रतिशत
(द) 42 प्रतिशत
प्रश्न 3.
भारत में सर्वाधिक ऊँट कौन से राज्य में पाले जाते हैं?
(अ) गुजरात
(ब) पंजाब
(स) हरियाणा
(द) राजस्थान
प्रश्न 4.
भारत में वनों का विस्तार कितने भौगोलिक क्षेत्र पर है?
(अ) 22 प्रतिशत
(ब) 21.34 प्रतिशत
(स) 14 प्रतिशत
(द) 19 प्रतिशत
प्रश्न 5.
वनों के अन्तर्गत सर्वाधिक प्रतिशत भूमि किस राज्य में है?
(अ) मिजोरम
(ब) मेघालय
(स) अरुणाचल प्रदेश
(द) हिमाचल प्रदेश
प्रश्न 6.
50 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाने वाले वन हैं?
(अ) शुष्क
(ब) मरुस्थलीय
(स) मानसूनी
(द) सदाबहार
प्रश्न 7.
पश्चिमी घाट पर पाई जाने वाली वनस्पति का प्रकार है।
(अ) सदाहरित
(ब) अल्पाइन
(स) सवाना
(द) पर्णपाती
प्रश्न 8.
उष्ण कटिबंधीय आई सदाबहार वन पाए जाते हैं –
(अ) अरावली पर्वतमाला
(ब) शिलांग पठार पर
(स) प्रायद्वीपीय पठार पर
(द) शिवालिक श्रेणी पर
प्रश्न 9.
आयस्टर कल्चर का विकास किया जा रहा है –
(अ) सौराष्ट्र तट पर
(ब) मुम्बई तट पर
(स) कोचीन तट पर
(द) चेन्नई तट पर
प्रश्न 10.
भारत की सबसे लम्बी नदी है –
(अ) ब्रह्मपुत्र
(ब) गंगा
(स) यमुना
(द) कृष्णा
प्रश्न 11.
धरातलीय जल का सर्वाधिक उपयोग किस क्षेत्र में होता है?
(अ) कृषि
(ब) उद्योग
(स) घरेलू
(द) अन्य
प्रश्न 12.
नीरू-मीरू कार्यक्रम चलाया जा रहा है –
(अ) राजस्थान
(ब) आन्ध्र प्रदेश
(स) गुजरात
(द) कर्नाटक
प्रश्न 13.
ताँबा का उत्पादन होता है –
(अ) राजस्थान तथा बिहार
(ब) मध्य प्रदेश एवं राजस्थान
(स) बिहार, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान
(द) ओडिशा, राजस्थान, बिहार एवं उत्तर प्रदेश
प्रश्न 14.
भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित बाबाबूदन की पहाड़ियों से कौन-सा खनिज पदार्थ निकाला जाता है?
(अ) लौह-अयस्क
(ब) मैंगनीज
(स) निकेल
(द) पैट्रोलियम
प्रश्न 15.
भारत में अभ्रक का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य कौन-सा है?
(अ) आन्ध्र प्रदेश
(ब) बिहार
(स) झारखण्ड
(द) राजस्थान
प्रश्न 16.
भारत में अभ्रक खनन का केन्द्र है –
(अ) खेतड़ी
(ब) कोडरमा
(स) कालाहांडी
(द) गुरुमहिसानी
प्रश्न 17.
बैलाडीला में पाया जाने वाला लौह-अयस्क प्रायः है –
(अ) हैमेटाइट
(ब) सिडेराइट
(स) लिमोनाइट
(द) मैग्नेटाइट
प्रश्न 18.
भारत में सर्वाधिक लौह-अयस्क किस राज्य में मिलता है?
(अ) गोआ
(ब) छत्तीसगढ़
(स) ओडिशा
(द) कर्नाटक
प्रश्न 19.
बाल्को किस खनिज उत्पादन से सम्बन्धित है?
(अ) एल्युमिनियम
(ब) सोना
(स) ताँबा
(द) जस्ता
प्रश्न 20.
ताँबा उत्पादन में अग्रणी राज्य है –
(अ) झारखण्ड
(ब) राजस्थान
(स) मध्य प्रदेश
(द) कर्नाटक
प्रश्न 21.
निम्नांकित में से बॉक्साइट की प्रमुख खदान है –
(अ) जावर
(ब) खेतड़ी
(स) लोहारदग्गा
(द) कलोल
उत्तरमाला:
1. (अ), 2. (ब), 3. (द), 4. (ब), 5. (अ), 6. (ब), 7. (अ), 8. (ब), 9. (अ), 10. (ब)
11. (अ), 12. (ब), 13. (ब), 14. (अ), 15. (अ), 16. (ब), 17. (अ), 18. (द), 19. (अ), 20. (स), 21. (स)
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 22.
भारत में विश्व का कितने प्रतिशत पशुधन पाया जाता है?
उत्तर:
भारत में विश्व का लगभग 20 प्रतिशत पशुधन मिलता है।
प्रश्न 23.
ऊन व माँस के लिए कौन-सा पशु पाला जाता है?
उत्तर:
भारत में ऊन व माँस के लिए भेड़े पाली जाती हैं।
प्रश्न 24.
मानसूनी वनों की सबसे महत्त्वपूर्ण इमारती लकड़ी का नाम बताइये।
उत्तर:
मानसूनी वनों की सबसे महत्त्वपूर्ण इमारती लकड़ी सागवान व साल है।
प्रश्न 25.
मत्स्य व्यवसाय से भारत में कितने व्यक्तियों को रोजगार मिला हुआ है।
उत्तर:
भारत में मत्स्य व्यवसाय से लगभग 1.14 करोड़ व्यक्तियों को रोजगार मिला हुआ है।
प्रश्न 26.
भारत में वर्तमान में कितने प्रतिशत भाग पर वन पाये जाते हैं?
उत्तर:
सन् 2015 में भारत के 21.34 प्रतिशत भाग पर वनों की उपस्थिति रही।
प्रश्न 27.
भारत में मछली पकड़ने के प्रमुख क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत में मछली पकड़ने के प्रमुख क्षेत्रों में समुद्री तटीय क्षेत्र, गंगा, ब्रह्मपुत्र, हुगली, महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी नदियों के मुहाने क्षेत्र तथा देश के आन्तरिक भागों में मिलने वाले मीठे जले के जलीय भाग सम्मिलित हैं।
प्रश्न 28.
भारत में वर्षा का वार्षिक औसत कितने सेमी है?
उत्तर:
भारत में वर्षा का वार्षिक औसत 108 सेमी है।
प्रश्न 29.
भारत में सिंचाई के प्रमुख साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत में सिंचाई के प्रमुख साधनों में नहरें, नलकूप, कुएँ, तालाब तथा बाँध सम्मिलित हैं।
प्रश्न 30.
खनिज से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वे सभी प्राकृतिक पदार्थ जो भूमि को खोदकर, निकाले जाते हैं, खनिज संसाधन कहलाते हैं।
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 31.
ऊँट को रेगिस्तान का जहाज क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
ऊँट गर्म एवं शुष्क भागों में आसानी से पाला जा सकता है तथा यह 7 दिनों तक भीषण गर्मी में भी बिना पानी पिये जीवित रह सकता है। रेगिस्तानी भागों में इसके गद्दीदार पैर धरती में न धंसने के कारण यह तेज गति से यहाँ दौड़ सकता है तथा एक दिन में लगभग 50 किमी तक चल सकता है। ऊँट में वर्षों बाद भी मार्ग याद रखने की अद्भुत क्षमता होती है। रेतीले मरुस्थलीय भागों में परिवहन के साधनों में ऊँट का कोई विकल्प नहीं है। इसी कारण ऊँट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है।
प्रश्न 32.
भारत में पाये जाने वाले प्रमुख पालतू पशुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में पाए जाने वाले प्रमुख पालतू पशुओं में गाय-बैल, भैंसें, बकरियाँ, भेड़, ऊँट, घोड़े, खच्चर, टट्टू, गधे, सुअर व याक भी सम्मिलित हैं।
प्रश्न 33.
भारत में पशु संसाधन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भारत में पशु संसाधनों का विभिन्न कृषि कार्यों, दूध उत्पादन, चमड़ा प्राप्त करने, खाद बनाने, यातायात के साधन के रूप में, माँस प्राप्त करने तथा सीगों से विभिन्न कलात्मक वस्तुओं के निर्माण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। भारत में पशु आज भी कृषि करने वे परिवहन में प्रयुक्त होते हैं। इसी कारण इनको अत्यधिक महत्व है।
प्रश्न 34.
अधात्विक खनिज से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऐसे खनिज जिनमें धातु का अंश नहीं मिलता, उन्हें अधात्विक खनिज कहा जाता है। जैसे-अभ्रक, एसबैस्टस, पाइराइट, नमक, हीरा, इमारती पत्थर, चूना पत्थर, रॉक फॉस्फेट आदि।
प्रश्न 35.
भारत में प्रमुख सिंचाई के साधनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में नहरें, नलकूप, कुएँ तथा तालाब सिंचाई के प्रमुख साधन हैं। इनमें सर्वाधिक सिंचाई नलकूप तथा नहरों से की जाती है। उत्तरी भारत में नहरों, कुँओं तथा नलकूपों से सिंचाई की जाती है जबकि दक्षिणी भारत में तालाबों तथा नहरों द्वारा प्रमुख रूप से सिंचाई की जाती है।
प्रश्न 36.
भारत में ताँबा उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में ताँबा उत्पादन के सर्वप्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं –
- मध्यप्रदेश में बालाघाट (मलजखण्ड), तारेगाँव तथा बैतूल जिले।
- राजस्थान में झुंझुनू (खेतड़ी, सिंघाना) जिला।
- झारखण्ड राज्य में सिंहभूमि, हजारीबाग, संथाल परगना तथा मानभूमि जिले।
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 37.
भारत में पशुओं से प्राप्त होने वाले पदार्थों का वर्णन करते हुए इनकी कमजोर स्थिति के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में पशुओं से प्राप्त होने वाले पदार्थ–भारत में पशुओं से निम्नलिखित पदार्थ प्राप्त होते हैं –
- भारत में दुधारू पशुओं से बड़ी मात्रा में दूध प्राप्त किया जाता है। दूध से खोया (मावा), पनीर, दही, मक्खन, छाछ, घी तथा दूध का पाउडर आदि पौष्टिक पदार्थ प्राप्त होते हैं।
- पशुओं से प्राप्त गोबर व मल-मूत्र तथा हड्डियों से खाद प्राप्त की जाती है।
- भारत में पशुओं से चमड़ा, खादं तथा ऊन प्राप्त की जाती है जिनका प्रयोग विविध मानव उपयोगी उत्पादों के निर्माण में किया जाता है।
- भारत में वर्तमान में लगभग 4 हजार बूचड़खाने या पशु वधघर कार्यरत हैं जिनसे अरबों रुपए मूल्य के माँस व माँस पदार्थ प्राप्त किए जाते हैं।
- कुछ पशुओं के सींगों से विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुएँ एवं कंघे निर्मित किए जाते हैं।
भारत में पशुधन की कमजोर स्थिति के कारण:
भारत में पाले जाने वाले पशु कम दूध देने वाले व कम माँस प्रदान करने वाले होते हैं। भारत में पशुधन की कमजोर स्थिति के लिए प्रमुख रूप से चार निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं –
1. पौष्टिक आहार व हरे चारे की कमी:
भारत में जनसंख्या की विशालता के कारण कृषि में खाद्यान्नों का उत्पादन प्रमुख रूप से किया जाता है जबकि पशुओं के लिए हरे चारे के उत्पादन पर कृषक कम ध्यान देते हैं। साथ ही देश में उत्तम चरागाहों का अभाव मिलता है। इसके कारण पशुपालक अपने पशुओं को उचित व पर्याप्त पौष्टिक आहार व हरा चारा नहीं खिला पाते। इसका परिणाम यह होता है कि पशु कमज़ोर रह जाते हैं तथा इनसे कम दूध व माँस प्राप्त होता है।
2. अच्छी नस्लों का अभाव:
भारत में अच्छी नस्ल के पशुओं की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है। यद्यपि भारत सरकार पशु नस्ल सुधार हेतु कृत्रिम गर्भाधान केन्द्रों व पशु चिकित्सालयों की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों में कर रही है लेकिन अभी भी पशु नस्ल सुधार के क्षेत्र में अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं।
3. पशुओं की बीमारियाँ-भारत में पशुओं के रहन:
सहन की निम्न स्तरीय सुविधाओं के होने, प्रदूषित जल पिलाने, सड़ी-गली चीजें खिलाने से तथा बीमार पशुओं के सम्पर्क में रहने से अनेक पशु विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। वर्षाकाल में भारत के विभिन्न भागों में खुरपका, मुंहपका, जहरवाद, जहरी बुखार तथा गलघोंटू जैसी अनेक बीमारियों से बड़ी संख्या में पशुओं की मृत्यु हो जाती है।
4. पशुपालकों की अज्ञानता व लापरवाही:
भारत के अधिकांश पशुपालक अपने पशुओं को परम्परागत रूप से पालते ही नहीं, वरन् उनमें पशुपालने की आधुनिक विधियों की जानकारी का अभाव मिलता है साथ ही वे अपने पशुओं के लालन-पालन व रखरखाव के प्रति लापरवाह होते हैं। यद्यपि भारत के कुछ भागों में आधुनिक दुग्धशालाओं की स्थापना की गई है।
प्रश्न 38.
भारत में घटते वन क्षेत्र के कारणों का उल्लेख करते हुए वन विनाश से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत की नवीन वन नीति के अनुसार देश की कुल भूमि के 33 प्रतिशत भाग पर वन होने चाहिए लेकिन सन् 2015 में भारत की कुल भूमि के केवल 21.34 प्रतिशत भाग पर वनों की आच्छादिता थी।
भारत में घटते वन क्षेत्र के प्रमुख कारण: भारत में घटते वन क्षेत्र के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं –
1. कृषि हेतु भूमि की माँग में निरन्तर वृद्धि:
देश की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए देश में खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की गई। कृषि भूमि के विस्तार के लिए देश में बड़े पैमाने पर वनक्षेत्रों का सफाया किया गया जिसके कारण देश में वनों के क्षेत्रफल में गिरावट होती जा रही है।
2. तीव्र औद्योगिकीरण व शहरीकरण:
देश में आजादी के बाद हुए तीव्र औद्योगिकीकरण व शहरीकरण के फलस्वरूप देश के विभिन्न भागों में औद्योगिक भवनों, आवासीय क्षेत्रों, व्यापारिक क्षेत्रों, कार्यालयों, प्रशासनिक भवनों, मनोरंजन क्षेत्रों तथा सड़क व रेल मार्गों का निर्माण किया गया है जिसके लिए बड़े पैमाने पर वनों का सफाया कर दिया गया।
3. घरेलू आवश्यकताओं के लिए वनों की कटाई:
फर्नीचर, भवन निर्माण तथा ईंधन आदि घरेलू आवश्यकताओं के लिए – वनों की कटाई की गई है।
4. अनियंत्रित चराई:
पशुओं की अनियन्त्रित चराई के प्रचलन से छोटे-छोटे पौधे पशुओं के खुरों से नष्ट हो जाते हैं वहीं इससे मृदा अपरदन को बढ़ावा मिलता है जो वन विनाश का एक प्रमुख कारण है।
5. स्थानान्तरित कृषि प्रणाली:
भारत के कुछ क्षेत्रों में जनजातियों द्वारा आज भी स्थानान्तरित कृषि की जा रही है जिसमें आदिवासी जनजातियाँ वनों को काटकर कृषि योग्य भूमि का निर्माण करती हैं तथा ऐसी भूमि पर 3-4 वर्ष कृषि कार्य कर दूसरे वन क्षेत्र में यही प्रक्रिया दुहराते हैं। इस प्रक्रिया से वन क्षेत्र कम होते जाते हैं।
6. अन्य कारण:
भारत में घटते वन क्षेत्र के लिए उत्तरदायी अन्य कारकों में बहुउद्देशीय योजनाओं का विकास, बढ़ता खनन क्षेत्र, दावाग्नि, सरकारी नियमों का उल्लंघन तथा वृक्षों में विभिन्न बीमारियाँ आदि सम्मिलित हैं।
वन विनाश से होने वाली हानियाँ: वन विनाश से होने वाली हानियाँ निम्नवत् हैं –
- वन विनाश से वर्षा की मात्रा घटती है तथा जलवायु में शुष्कता आने लगती है।
- इससे वनों पर निर्भर उद्योग नष्ट होने लगते हैं तथा बेरोजगारी में वृद्धि तथा राष्ट्रीय आय में कमी आती है।
- नदी जल प्रवाह तीव्र होता है जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है साथ ही भूमि अपरदन में वृद्धि होती है।
- भूमिगत जल स्तर में गिरावट आती है तथा पशुओं के लिए चारे की कमी होने लगती है।
- इमारती लकड़ी व ईंधन लकड़ी की कमी होने लगती है।
- आँधी-तूफानों की प्रचण्डता बढ़ती है तथा मरुस्थलों का प्रसार बढ़ जाता है।
- वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ने लगता है जिससे भूमण्डलीय तापन का खतरा बढ़ जाता है।
- वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है साथ ही मानव को अनेक बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
- वन विनाश से पारिस्थितिकी असंतुलन उत्पन्न होने लगती है।
- वन्य जीव-जन्तुओं के निवास क्षेत्र समाप्त हो जाने के कारण अनेक वन्य जीव-जन्तुओं की प्रजातियाँ नष्ट होने लगती हैं।
प्रश्न 39.
भारत में वन संसाधन का महत्त्व स्पष्ट करते हुए वन संसाधन के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वन संसाधनों का महत्व:
वनों से ही सभ्यता का जन्म, विकास हुआ है। वन राष्ट्रीय सम्पत्ति होते हैं। वन लोगों को आश्रय, भोजन व रोजगार प्रदान करते हैं। भारत में वन संसाधनों के महत्व को उनके द्वारा प्राप्त होने वाले प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लाभों से समझा जा सकता है। वनों से प्राप्त होने वाले प्रत्यक्ष लाभ –
- देश की कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 2 प्रतिशत भाग वन संसाधनों से प्राप्त होता है।
- वन क्षेत्रों में देश के लगभग 2.5 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं, जिनकी आजीविका प्रमुख रूप से वनों पर निर्भर है।
- देश में वन संसाधनों से लाखों व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है।
- देश के लगभग 5.5 करोड़ पशु वनों को चरागाह क्षेत्र के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
- वनों से साल, सागवान, शीशम, देवदार तथा चीड़ जैसी प्रमुख इमारती लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं जिनका उपयोग फर्नीचर, कृषि उपेकंरण, रेल के डिब्बों, वाहनों तथा ईंधन आदि के लिए किया जाता है।
- वंनों से अनेक उद्योग; जैसे-कागज, माचिस, रेशम, लाख, फर्नीचर, प्लाईवुड, पैकिंग तथा खिलौनों के उत्पाद निर्मित करने हेतु कच्चा माल प्राप्त होता है।
- वनों से अनेक उत्पाद; जैसे-गोंद, बाँस, कत्था, तारपीन का तेल, फल-फूल, बाँस, बैंत, बिरौजा तथा चमड़ा रंगने के पदार्थ प्राप्त होते हैं।
- वनों से हरड़, बहेड़ा, आँवला के अलावा अनेक बहुमूल्य जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं।
- वनों से वन्य जीवों को भोजन व आश्रये प्राप्त होता है।
वनों से प्राप्त होने वाले अप्रत्यक्ष लाभ –
- वन वर्षा कराने में सहायक होते हैं।
- वन तापमान को कम कर जलवायु को सम बनाने में सहायक होते हैं, तथा हरित गृह प्रभाव को कम करते हैं।
- वन भूमि अपरदन की गति को मन्द कर बाढ़ के प्रकोप को कम करते हैं।
- वन भूमिगत जल स्तर में वृद्धि करते हैं।
- वन पवन मार्ग में अवरोध उत्पन्न कर आंधी व तूफानों की प्रचण्डता को कम करते हैं।
- वृक्षों की पत्तियों से मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़कर मृदा उर्वरकता में वृद्धि होती है।
- वन वायु व ध्वनि प्रदूषण को नियन्त्रित करते हैं तथा वायुमण्डल की कार्बन डाइऑक्साइड को शोषित कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं।
वनों के प्रकार:
भारत के विशाल आकार के कारण यहाँ उच्चावच, जलवायु तथा मिट्टी की भिन्नताएं मिलती हैं जिस कारण देश में निम्नलिखित 6 प्रकार के वन मिलते हैं –
1. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन:
भारत के जिन क्षेत्रों में 200 सेमी. से अधिक वार्षिक वर्षा तथा औसत वार्षिक तापमान 28° सेग्रे. मिलता है, वहाँ वर्ष भर हरे-भरे रहने वाले वन मिलते हैं। भारत में ऐसे वन निम्नलिखित 3 क्षेत्रों में मिलते हैं –
- उत्तरी-पूर्वी भारत तथा हिमालय के तराई क्षेत्र
- पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल।
- अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह
इन वनों की लकड़ी कठोर होती है, तथा अति सघन होने के कारण इन वनों की भूमि पर सूर्य प्रकाश बहुत कम पहुँच पाता है। इन वनों में एक ही स्थान पर अनेक प्रजातियों के वृक्ष साथ-साथ मिलते हैं।
मुख्य वृक्ष:
महोगनी, गटापार्चा, एबोनी, लौह काष्ठ, तून, ताड़, रबर, सिनकोना, बाँस, साल, गुरजन, बैंत, चपलूस तथा तुलसर।
2. मानसूनी या पतझड़ी वन:
इस प्रकार के वन 100 सेमी. से 200 सेमी. औसत वार्षिक वर्षा तथा 26° सेग्रे. से 31° सेग्रे. तक औसत वार्षिक तापमान वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। यह वन ग्रीष्म काल से पूर्व अपनी पत्तियाँ एक बार गिरा देते हैं जिस कारण इन्हें पतझड़ी वन कहा जाता है। वृक्षों की सघनता कम होने के कारण इन वनों का विदोहन आसानी से किया जा सकता है। भारत में मानसूनी वनों के निम्नलिखित 4 प्रमुख क्षेत्र हैं –
- हिमालय पर्वत श्रेणी के बाह्य व निचले ढाल।
- मध्य भारत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड व उड़ीसा राज्य।
- पश्चिमी घाट के पूर्वी ढाल।
- पूर्वी घाट के दक्षिणी भाग।
प्रमुख वृक्ष:
शीशम, साल, सागवान, चन्दन, रोजवुड, बाँस, पलाश, हल्दू, आम, एबोनी, मेहुआ, पीपल, बरगद, सेमल व खैर।
3. उष्ण कटिबन्धीय शुष्क वन:
इस प्रकार के वन भारत के उन क्षेत्रों में मिलते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 50 से 100 सेमी. तथा औसत वार्षिक तापमान 20° सेग्रे. से 35° सेग्रे. के मध्य मिलता है। भारत में इन वनों के निम्नलिखित 2 क्षेत्र हैं –
- उत्तरी-पश्चिमी भारत में दक्षिण-पश्चिमी पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान, अरावली पर्वत तथा दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश।
- दक्षिणी प्रायद्वीप के शुष्क भाग इन वनों के वृक्षों की जड़े लम्बी, पत्तियाँ मोटी तथा तना खुरदरा होता है।
प्रमुख वृक्ष:
बबूल, नीम, आम, जामुन, खेजड़ा, बरगद, कीकर तथा महुआ।
4. मरुस्थलीय वन:
भारत में मरुस्थलीय वन 50 सेमी. से कम औसत वार्षिक वर्षा तथा 25° सेग्रे. सें 35° सेग्रे. तक औसत वार्षिक तापमान वाले क्षेत्रों में प्रमुख रूप से मिलते हैं। ये वन दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब, पश्चिमी राजस्थान तथा गुजरात राज्य में प्रमुख रूप से मिलते हैं। इन वनों में वृक्षों की जड़े मोटी तथा लम्बी होती हैं तथा पत्तियाँ छोटी, मोटी तथा कांटेदार होती हैं। झाड़ियों की संख्या अधिक होती है। वृक्ष दूर-दूर तथा बहुत कम संख्या में मिलते हैं।
प्रमुख वृक्ष:
नागफनी, कैर, खैर, खेजड़ा, खजूर, बबूल, बेर, नीम, पीपल, बरगद तथा रामबॉस आदि।
5. पर्वतीय वन या शीतोष्ण सदाबहारी वन:
भारत में पर्वतीय वन प्रमुख रूप से पूर्वी हिमालय, पश्चिमी हिमालय, असम की पहाड़ियों तथा महाराष्ट्र के महाबलेश्वर पहाड़ी भागों में मिलते हैं। इन सदाबहारी वनों के वृक्षों की पत्तियाँ घनी तथा तना मोटा होता है जिनके नीचे झाड़ियाँ मिलती हैं। प्रमुख वृक्ष-चीड़, सनोवर, देवदार, फर, स्पूस, लार्च, मेपिल, एल्म तथा चेस्टनट, यूजेनिया, मिचोलिया तथा रोडेनड्रोस नामक वृक्ष अधिक ऊंचाई वाले पर्वतीय भागों में मिलते हैं।
6. ज्वारीय या दलदली वन:
ज्वारीय वन के वृक्ष प्रमुख रूप से गंगा-ब्रह्मपुत्र व हुगली नदी के डेल्टाई भागों तथा कृष्णा, कावेरी, महानदी व गोदावरी नदियों के मुहानों पर सागरीय तट के समीप प्रमुख रूप से मिलते हैं। इन वृक्षों की जड़े ज्वार-भाटा के कारण सागरीय जल में डूबी रहती हैं तथा जड़ों की शाखाएं चारों तरफ फैली होती हैं। इन वृक्षों की लकड़ी मुलायम होती है।
प्रमुख वृक्ष:
गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टाई भाग में और हुगली नदी के डेल्टाई भाग में सुन्दरी वृक्ष बहुतायत से मिलते हैं।
प्रश्न 40.
भारत के मत्स्य संसाधनों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
भारत में मत्स्य उत्पादन योग्य सम्भावित क्षेत्र के केवल 25 प्रतिशत भाग पर ही मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। भारत के कुल मत्स्य उत्पादन का 60 प्रतिशत महासागरों से तथा 40 प्रतिशत आन्तरिक जलाशयों से प्राप्त किया जाता है। महासागरीय क्षेत्रों से प्राप्त कुल मछलियों का 70% भाग पश्चिमी सागरीय तट तथा शेष 30% पूर्वी सागरीय तट से प्राप्त किया जाता है। भारत में मत्स्य उद्योग का महत्व –
- मछलियों का सेवन प्रोटीन युक्त भोजन होने से ये आहार को संतुलित बनाकर कुपोषण से बचाती हैं।
- इस उद्योग से देश के एक करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्राप्त है।
- मछली निर्यात से देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
- मत्स्य व्यवसाय से अनेक सहायक व्यवसाय (जैसे-नांव निर्माण, मछली पकड़ने में प्रयुक्त सामान, डिब्बा बन्द करने, तेल निकालने, खाद निर्माण आदि) विकसित हुए हैं।
भारत में मत्स्य प्राप्ति के प्रमुख क्षेत्र: भारत में मत्स्य प्राप्ति के निम्नलिखित 5 क्षेत्र हैं –
1. समुद्रतटीय मत्स्य क्षेत्र:
सागर तट रेखा से 100 किमी दूर तक खुले सागर की सीमा तक ये मत्स्य क्षेत्र विस्तृत है। इस मत्स्य क्षेत्र की अधिकांश मछलियाँ तट से 40 किमी दूरी तक विस्तृत सागरीय भागों में पकड़ी जाती हैं। शार्क, मेकरेल, एंकाकी, सारडाइन, ओल, केटफिश, टूना, हेरिंग, झींगा तथा मुलैट यहाँ पकड़ी जाने वाली प्रमुख मछलियाँ हैं।
2. नदीमुख मत्स्य क्षेत्र:
गंगा, ब्रह्मपुत्र, हुगली, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नामक भारत की प्रमुख नदियों के मुहानों पर वर्ष में 6 से 9 माह तक मछली पकड़ने का कार्य किया जाता है। पर्च, अप, कार्क, कतला, केटफिश, रेहू, हिलसा, फाम्फ्रेट तथा पर्लस्पाट यहाँ पकड़ी जाने वाली प्रमुख मछलियाँ हैं।
3. मीठे जल के मत्स्य क्षेत्र:
भारत के विभिन्न भागों में मिलने वाले नदियों, तालाबों, बाँधों, झीलों, पोखरों, नालों तथा नहरों से मीठे जल वाली मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी तथा उनकी सहायक नदियों के प्रवाहित जल से यह मछलियाँ प्रमुख रूप से पकड़ी जाती हैं। .
4. मोती मत्स्य क्षेत्र:
भारत के सांगरीय भागों में विस्तृत कच्छ की खाड़ी, सौराष्ट्र तटवर्ती सागर, मन्नार की खाड़ी तथा तमिनलाडु के पाम्पन द्वीप के समीपवर्ती सागरीय भागों में आयस्टार मछलियाँ प्रमुख रूप से पकड़ी जाती हैं जिनसे एक रासायनिक इन्जेक्शन के माध्यम से मोती प्राप्त किया जाता है।
5. शंख मत्स्य क्षेत्र:
तमिनलाडु, केरल तथा गुजरात के पश्चिमी सौराष्ट्र तट के समीप स्थित सागर के दलदली तथा बलुई क्षेत्र में 13 मीटर की गहराई तक विभिन्न प्रकार की शंख मछलियाँ मिलती हैं जिनको अक्टूबर से मई तक पकड़ा जाता है। इन शंखों का उपयोग मन्दिरों तथा अन्य सजावटी सामानों में किया जाता है।
उत्पादन:
मत्स्य उत्पादन की दृष्टि से भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है। सन् 2012-13 में देश में सर्वाधिक सामुद्रिक मछली उत्पादन करने वाले राज्यों में आन्ध्र प्रदेश (18.08 लाख टन), पश्चिमी बंगाल (14.09 लाख टन), गुजरात (7.86 लाख टन), केरल (6.33 लाख टन), तमिनलाडु (6.20 लाख टन), महाराष्ट्र (5.79 लाख टन), कर्नाटक (5.75 लाख टन) तथा उड़ीसा (4.10 लाख टन) शामिल हैं। भारत के प्रमुख मत्स्य केन्द्रों को निम्न चित्र की सहायता से दर्शाया गया है –
प्रश्न 41.
भारत में जल संसाधन की उपलब्धता एवं उपयोग पर लेख लिखिए।
उत्तर:
जले एक अनिवार्य, सीमित एवं अति संवेदनशील एवं चक्रीय संसाधन है। समस्त मानवीय क्रियाकलाप तथा पर्यावरणीय प्रक्रियाएँ जल के अभाव में सम्भव नहीं हैं।
भारत में जल संसाधनों की उपलब्धता:
पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध जल एक चक्रीय संसाधन है। विश्व में उपलब्ध कुल जल का केवल 3 प्रतिशत भाग ही अलवणीय या पीने योग्य है जबकि शेष 97 प्रतिशत भाग लवणीय होने के कारण प्रायः मानव के लिए अनुपयोगी है। भारत में विश्व के कुछ अलवणीय जल का केवल 4 प्रतिशत भाग मिलता है जबकि भारत में विश्व की 17.5 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। भारत के जलीय संसाधनों के निम्नलिखित 2 स्रोत हैं –
- धरातलीय जल
- भूमिगत जल
1. धरातलीय जल-उपलब्धता तथा उपयोग:
वह जेल जो वर्षण द्वारा नदियों, झीलों, तालाबों, बाँधों और नालों से प्राप्त होता है उसे धरातलीय जल कहलाता है। वर्षण में वर्षा तथा हिम वर्षा सम्मिलित है लेकिन वर्षा धरातलीय जल का मूल स्रोत है। भारत में प्रतिवर्ष औसतन 108 सेमी. वर्षा होती है। वर्षण से भारत में कुल 4000 घन किमी. जल प्राप्त होता है। इसमें से 1869 घन किमी जल नदियों, झीलों, तालाबों, बाँधों और अन्य जलाशयों द्वारा धरातलीय जल के रूप में प्राप्त होता है जबकि 1341 घन किमी जल वाष्पीकरण और मिट्टी में नमी के रूप में चला जाता है।
शेष 790 घन किमी. जल भूमि द्वारा सोख लिया जाता है तथा भूमिगत जल के रूप निहित रहता है। 1869 घन किमी धरातलीय जल में से केवल 690 घन किमी नदी जल सिंचाई के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है लेकिन तकनीकी क्षमता के अभाव में इस सिंचाई जल क्षमता का केवल 60% भाग ही उपयोग में लाया जा सकता है। भारतीय नदियों को प्राप्त कुल जलीय राशि में विभिन्न नदियों का योगदान निम्नवत् है –
- हिमालय क्रम की नदियाँ-(सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र)-60 प्रतिशत
- दक्षिणी भारत की नदियाँ-(गोदावरी, कृष्णा, कावेरी)-24 प्रतिशत
- मध्य भारत की नदियाँ-(नर्मदा, ताप्ती तथा महानदी)-16 प्रतिशत
भारत में नदियों, झीलों, तालाबों तथा नहरों से प्राप्त धरातलीय जल का लगभग 89 प्रतिशत भाग कृषि कार्यों में, 9 प्रतिशत घरेलू कार्यों में तथा शेष 2 प्रतिशत औद्योगिक कार्यों में प्रयुक्त होता है। भारत के कुछ तटीय क्षेत्रों से जुड़ी लैगून झीलों के खारे जल का उपयोग मत्स्यपालन के अलावा नारियल तथा चावल की कुछ विशिष्ट किस्मों की सिंचाई हेतु किया जाता है।
2. भूमिगत जल-उपलब्धता तथा उपयोग:
भारत में वर्षण से प्रतिवर्ष 790 घन किमी जल भूमिगत जल के रूप में प्राप्त होता है। लेकिन इस भूमिगत जल में से केवल 225 घन किमी जल का ही आर्थिक दृष्टि से उपयोग सम्भव है लेकिन इस भूमिगत जलीय भण्डार में से भी केवल 78 घन किमी भूमिगत जल का उपयोग सिंचाई कार्यों हेतु किया गया है। भारत के उपयोग योग्य हेतु कुल भूमिगत जलीय भण्डारों का 92 प्रतिशत भाग कृषि कार्यों में, 5 प्रतिशत उद्योगों में तथा शेष 3 प्रतिशत घरेलू कार्यों में उपयोग किया जाता है।
भारत में उपलब्ध कुल भूमिगत जल का 44 प्रतिशत भाग सतलज-गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन की रन्ध्रयुक्त कोमल चट्टानों में मिलता है। यही कारण है कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल राज्यों में पर्याप्त भूमिगत जलीय भण्डार होने के कारण नलकूप व कुएँ सर्वाधिक संख्या में हैं। देश के दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठारी भागों में जहाँ आग्नेय व कायान्तरित कठोर चट्टानें हैं, वहाँ इन चट्टानों की जलीय अप्रवेश्यता के कारण भूमिगत जल की उपस्थिति केवल चट्टानों की सन्धियों तक सीमित है।
प्रश्न 42.
आधुनिक युग में लोहे का क्या महत्त्व है। भारत में लोहे के वितरण, उत्पादन एवं व्यापार का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक युग में लोहे का महत्त्व:
आधुनिक युग में लोहा किसी भी देश के आर्थिक विकास की आर्थिक धुरी है। भवन निर्माण सामग्री, वाहन, मशीनें, विशालकाय इंजन, रेल पटरी तथा फर्नीचर आदि के निर्माण में लोहे का प्रमुख रूप से उपयोग होता है। लोहे में मैंगनीज, टंगस्टन तथा निकिल आदि मिश्रित कर विभिन्न प्रकार के इस्पात का निर्माण किया जाता है। लोहे के अत्यधिक उपयोग के कारण ही वर्तमान युग को लौह-इस्पात युग कहा जाता है।
भारत में लौह अयस्क का वितरण एवं उत्पादन:
भारत में लौह अयस्क का उत्पादन प्रमुख रूप से कर्नाटक, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, गोवा तथा झारखण्ड राज्यों से किया जाता है जबकि महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश तथा तमिनलाडु देश के अन्य लौह अयस्क उत्पादक राज्य हैं।
1. कर्नाटक:
देश के लौह अयस्क उत्पादक राज्यों में कर्नाटक का प्रथम स्थान है। वर्तमान में यह राज्य प्रतिवर्ष देश का लगभग 25 प्रतिशत लौह अयस्क उत्पादित कर रहा है। इस राज्य में प्रमुख रूप से हेमेटाइट किस्म का लौह अयस्क खनन किया जाता है। इस राज्य के प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक क्षेत्रों में कादर (बाबाबूदन पहाड़ियाँ), बेलारी, होस्पेट, शिमोगा, धारवाड़, तुमकुर, चिकमंगलूर तथा चित्रदुर्ग जिले शामिल हैं।
2. उड़ीसा:
देश के लौह अयस्क उत्पादक राज्यों में उड़ीसा का कर्नाटक के बाद दूसरा स्थान है। वर्तमान में इस राज्य से देश का लगभग 22 प्रतिशत लौह उत्पादित किया जा रहा है। इस राज्य के प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक जिलों में मयूरभंज (गुरुमहिसानी, सुलेपात व बादाम पहाड़), सुन्दरगढ़, बोनाई, सम्बलपुर व कटक सम्मिलित हैं। इस राज्य में प्रमुख रूप से हेमेटाइट किस्म के लौह अयस्क का खनन किया जाता है।
3. छत्तीसगढ़:
वर्तमान में इस राज्य में देश का लगभग 20 प्रतिशत लौह अयस्क उत्पादित किया जाता है तथा देश के लौह अयस्क उत्पादक राज्यों में इस राज्य का तीसरा स्थान है। बस्तर तथा दुर्ग इस राज्य के प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक जिले हैं। बस्तर जिले में बैलाडीला-रावघाट श्रेणी तथा दुर्ग जिले में दल्ली-राजहरा श्रेणी की खदानें देश की महत्वपूर्ण लौह अयस्क खदानें हैं।
4. गोवा:
यह राज्य वर्तमान में देश का लगभग 18 प्रतिशत लौह अयस्क उत्पादित करता है। मिरना, अदोल पाले, ओनडा, कुडनम तथा प्रिन्ससलेम इसे राज्य के प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक जिले हैं। इस राज्य में घटिया किस्म (लोहांश 50% तक) का लौह अयस्क उत्पादित किया जाता है।
5. झारखण्ड:
वर्तमान में झारखण्ड राज्य में देश को लगभग 14% लौह अयस्क उत्पादित किया जाता है। सिंहभूमि (नोआमण्डी), मातृभूमि तथा हजारीबाग इस राज्य के प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक जिले हैं।
6. महाराष्ट्र:
इस राज्य में चन्द्रपुर जिले के पीपलगाँव, लोहार, देवल गाँव व रत्नागिरी जिले में लौह अयस्क का उत्पादन किया जाता है।
7. आन्ध्र प्रदेश:
आदिलाबाद, करीमनगर, निजामाबाद, कृष्णा, करनूल, कुडप्पा, गुन्टूर, नेल्लोर, चिन्तूर तथा वारंगल जिले।
8. तमिलनाडु: सलेम, तिरूचिरापल्ली व नीलगिरी जिले।
लौह अयस्क उत्पादन प्रतिरूप:
सन् 2001 – 02 में भारत में 7.4 करोड़ टन, सन् 2010 – 11 में 22.5 करोड़ टन तथा सन् 2013 – 14 में 15.24 कॅरोड़ टन लौह अयस्क उत्पादित किया गया।
व्यापार:
सन् 2010-11 में भारत से 214.2 अरब रुपए मूल्य का लौह अयस्क विदेशों को दिया गया। भारत द्वारा जिन देशों को लौह अयस्क का निर्यात किया जाता है, उनमें जापान सर्वप्रमुख (कुल निर्यात का 8%) है जबकि चेकोस्लोवाकिया, जर्मनी, रूमानिया, इटली, पोलैण्ड, बेल्जियम तथा हंगरी अन्य देश हैं।
प्रश्न 43.
एल्युमिनियम की उपयोगिता स्पष्ट करते हुए भारत में बॉक्साइट के वितरण एवं व्यापार को सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एल्युमिनियम की उपयोगिता-एल्युमिनियम एक बहुउपयोगी, हल्की, मुलायम, लचीली तथा श्रेष्ठ विद्युत चालक धातु है जिसका उपयोग प्रमुख रूप से विद्युत तार, प्रक्षेपास्त्रे, वायुयान, मिसाइल, जहाजों के पेदों की चादर, कलपुर्जे, घरेलू बर्तन, इमारतों के दरवाजे, खिड़कियाँ और शटर आदि निर्मित करने में किया जाता है।
भारत में बॉक्साइट का वितरण:
बॉक्साइट एल्युमिनियम का एकमात्र स्रोत है। उड़ीसा, गुजरात, झारखण्ड, महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ देश के प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक राज्य हैं।
1. उड़ीसा:
वर्तमान में इस राज्य में देश का लगभग 50 प्रतिशत बॉक्साइट उत्पादित किया जाता है। देश के बॉक्साइट उत्पादक राज्यों में उड़ीसा का प्रथम स्थान है। यहाँ खनन किए जाने वाले बॉक्साइट अयस्क के बॉक्साइट का अंश 62.5% तक मिलता है। कालाहांडी तथा सम्बलपुर इस राज्य के महत्वपूर्ण बॉक्साइट उत्पादक जिले हैं जबकि बोलानगिरी तथा कोरापुट जिलों का गंधमर्दन पठार बॉक्साइट खनन के क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है।
2. झारखण्ड:
देश के बॉक्साइट उत्पादक राज्यों में झारखण्ड राज्य का द्वितीय स्थान (देश को लगभग 12%) है। राँची, पलामू, गिरिडीह, लोहरदग्गा, शाहाबाद तथा गुमला इस राज्य के प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक जिले हैं।
3. गुजरात:
इस राज्य में बॉक्साइट के अनुमानित संचित भंडार 5 करोड़ टन हैं। भावनगर तथा जामनगर इस राज्य के प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक जिले हैं जबकि सांबरकोठा, सूरत, खेड़ा तथा पोरबन्दर अन्य बॉक्साइट उत्पादक जिले हैं।
4. महाराष्ट्र:
देश के बॉक्साइट उत्पादक राज्यों में चौथा स्थान रखने वाले इस राज्य में कोल्हापुर, कोलाबा, थाणे, सतारा, रत्नागिरी तथा पुणे बॉक्साइट उत्पादित करने वाले प्रमुख जिले हैं।
5. छत्तीसगढ़:
देश के बॉक्साइट उत्पादक राज्यों में पाँचवाँ स्थान रखने वाले इस राज्य में देश का लगभग 6 प्रतिशत बॉक्साइट उत्पादित किया जाता है। उत्तम कोटि के बॉक्साइट की संचित राशि की दृष्टि से यह राज्य देश में प्रथम स्थान (30-35 करोड़ टन की संचित राशि) रखता है। सरगुजा, रामगढ़, महासमर, कोरबा, राजनन्दगाँव तथा विलासपुर इस राज्य के प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक जिले हैं।
6. तमिलनाडु:
इस राज्य में सलेम, मदुरैई, नीलगिरि व कोयम्बटूर जिले प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक जिले हैं। इस राज्य का उत्पादन की दृष्टि से भारत में छठा स्थान है।
7. मध्यप्रदेश:
शहडोल, मांडला, कटनी, बालाघाट, जबलपुर तथा सिवोन जिले इस राज्य के प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक जिले हैं।
8. कर्नाटक:
बेलगाँव, दक्षिणी कनारा जनपद तथा बांबाबूदन पहाड़ियाँ।
9. आन्ध्र प्रदेश:
तेलंगाना-विशाखापट्टनम, विजयनगर तथा श्रीकाकुलम जिले।
व्यापार:
भारत में बॉक्साइट का 2001 – 02 में 85.85 लाख टन व 2005 – 06 में 123.35 लाख टन तथा 2013 – 14 में 217 लाख टन उत्पादन हुआ था। इसलिए भारत यूरोपीय देशों व रूस की उत्तम किस्म की अर्द्धनिर्मित धातु एल्युमिना निर्यात करने लगा है। बॉक्साइट के उत्पादन का 80 प्रतिशत भाग अकेले एल्युमिनियम से लिया जाता है।
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
भेड़पालन की दृष्टि से विश्व में भारत का स्थान है –
(अ) प्रथम
(ब) द्वितीय
(स) तृतीय
(द) चतुर्थ
प्रश्न 2.
भारत में शूमिंग कृषि निम्नलिखित में से किस राज्य में प्रचलित है?
(अ) झारखण्ड
(ब) हिमाचल प्रदेश
(स) नागालैण्ड
(द) जम्मू-कश्मीर
प्रश्न 3.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय सदाबहारी वन निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में नहीं मिलते हैं?
(अ) उत्तरी-पूर्वी भारत
(ब) अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह
(स) पश्चिमी घाट
(द) पूर्वी घाट
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा एक वृक्ष मरुस्थलीय वनों से सम्बन्धित नहीं है?
(अ) शीशम
(ब) खजूर
(स) बबूल
(द) खेजड़ा
प्रश्न 5.
सुन्दरी वृक्ष प्रमुख रूप से मिलते हैं –
(अ) हुगली नदी डेल्टाई भाग में
(ब) गोदावरी डेल्टाई भाग में
(स) कावेरी डेल्टाई भाग में
(द) कृष्णा डेल्टाई भाग में
प्रश्न 6.
भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है –
(अ) पीपल
(ब) अर्जुन
(स) देवदार
(द) अशोक
प्रश्न 7.
भारत में मत्स्य उत्पादन योग्य सम्भावित क्षेत्र के कितने प्रतिशत भाग से मछली पकड़ी जाती हैं?
(अ) 25
(ब) 30
(स) 35
(द) 40
प्रश्न 8.
शंख मछली पकड़ने का कार्य निम्नलिखित में से किस एक क्षेत्र में होता है?
(अ) चिल्का झील
(ब) खम्भात की खाड़ी
(स) सौराष्ट्र के पूर्वी तट
(द) सौराष्ट्र का पश्चिमी तट
प्रश्न 9.
भारत में भूमिगत जल के संचित भण्डारों की दृष्टि से सम्पन्न क्षेत्र है –
(अ) पश्चिमी तटीय क्षेत्र
(ब) पूर्वी तटीय क्षेत्र
(स) सुन्दरवन डेल्टाई क्षेत्र
(द) सतलज-गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन
प्रश्न 10.
हरियाली परियोजना सम्बन्धित है –
(अ) मत्स्य पालन से
(ब) वृक्षारोपण से
(स) जल संभर प्रबंध से
(द) इन सभी से
प्रश्न 11.
अखारी पानी संसद नामक जल संभर विकास परियोजना निम्नलिखित में से किस राज्य से सम्बन्धित है?
(अ) राजस्थान,
(ब) उत्तर प्रदेश
(स) महाराष्ट्र
(द) केरल
प्रश्न 12.
राजस्थान में वर्षा जल संग्रहण ढाँचे कहलाते हैं –
(अ) जोहड़
(ब) झील
(स) कुएँ
(द) तालाब
प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से किस राज्य में भवन निर्माण हेतु जल संग्रहण संरचना अनिवार्य है?
(अ) आन्ध्र प्रदेश
(ब) महाराष्ट्र
(स) तमिनलाडु
(द) उड़ीसा
प्रश्न 14.
भारत में लौह अयस्क उत्पादन की दृष्टि से अग्रणी राज्यों के नाम हैं –
(अ) छत्तीसगढ़-झारखण्ड
(ब) कर्नाटक-उड़ीसा
(स) उड़ीसा-गोवा
(द) कर्नाटक-झारखण्ड
प्रश्न 15.
भारत में सर्वाधिक बॉक्साइट उत्पादक राज्य है –
(अ) झारखण्ड
(ब) उड़ीसा
(स) गुजरात
(द) पहाराष्ट्र
प्रश्न 16.
कालाहांडी तथा सम्बलपुर जिले निम्नलिखित में से किस अयस्क का उत्पादन प्रमुख रूप से करते हैं?
(अ) ताम्र
(ब) लौह
(स) बॉक्साइट
(द) माइका (अभ्रक)
प्रश्न 17.
भारत में अभ्रक उत्पादन की दृष्टि से अग्रणी राज्य है –
(अ) आन्ध्र प्रदेश
(ब) राजस्थान
(स) झारखण्ड
(द) तमिनलाडु
प्रश्न 18.
विश्व में बकरी पालन में प्रथम स्थान रखता है?
(अ) ब्राजील
(ब) भारत
(स) चीन
(द) आस्ट्रेलिया
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए –
(क)
स्तम्भ (अ) (नस्ल) |
स्तम्भ (ब) (पालतु पशु) |
(i) थारपारकर | (अ) भेड़ |
(ii) जाफराबादी | (ब) ऊँट |
(iii) नाचना | (स) बकरी |
(iv) जखराना | (द) गाय |
(v) चोकला | (य) भैस |
उत्तर:
(i) द (ii) य (iii) ब (iv) स (v) अ
(ख)
स्तम्भ (अ) (प्रजाति) |
स्तम्भ (ब) (वनों का प्रकार) |
(i) गटापार्चा | (अ) ज्वारीय वन |
(ii) रोजवुड | (ब) उष्ण कटिबंधीय वन |
(iii) नागफनी | (स) मानसूनी वन |
(iv) देवदार | (द) मरुस्थलीय वन |
(v) रीठा | (य) पर्वतीय वन |
(vi) सोनरीटा | (र) सदाबहार वन |
उत्तर:
(i) र (ii) स (iii) द (iv) य (v) ब (vi) अ
(ग)
स्तम्भ (अ) (खनिज का नाम) |
स्तम्भ (ब) (उत्पादक क्षेत्र) |
(i) लौह अयस्क | (अ) खेतड़ी |
(ii) ताँबा | (ब) कालाहांडी |
(iii) बॉक्साइट | (स) नेल्लोर |
(iv) अभ्रक | (द) बैलाडिला |
उत्तर:
(i) द (ii) अ (iii) ब (iv) स
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संसाधनों को उत्पत्ति के आधार पर कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों को दो भागोंजैविक व अजैविक संसाधनों में बाँटा गया है।
प्रश्न 2.
डॉ. डार्लिंग ने भारतीय पशुधन के महत्व को कैसे वर्णित किया है?
उत्तर:
डॉ. डालिंग के अनुसार, “इसके बिना खेत बिना जुते-बोये पड़े रहते हैं, खलिहान खाद्यान्नों के अभाव में खाली पड़े रहते हैं तथा यहाँ पशुओं के अभाव में घी, दूध, मक्खन, पनीर व अन्य पशु उत्पादों की प्राप्ति का अकाल ही पड़ सकता है।
प्रश्न 3.
भारत में पशुओं पर निर्भरता कम क्यों होती जा रही है?
उत्तर:
वर्तमान में ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, पम्पों, नहरों के साथ-साथ पर्याप्त विद्युत आपूर्ति तथा आधुनिक परिवहन, साधनों के बढ़ते उपयोग से भारत में पशुओं पर निर्भरता कम होती जा रही है।
प्रश्न 4.
पर्वतीय क्षेत्रों में किन पशुओं का कोई विकल्प नहीं है?
उत्तर:
टट्टू, गधों तथा घोड़ों का पर्वतीय क्षेत्रों में कोई विकल्प नहीं है।
प्रश्न 5.
भारत में वर्तमान में बूचड़खानों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
लगभग 4 हजार।
प्रश्न 6.
भारत में पशुपालन के प्रमुख क्षेत्र कौन-से है?
उत्तर:
भारत में पशुपालन के प्रमुख क्षेत्रों में हिमालय पर्वतीय क्षेत्र, उत्तर-पश्चिमी जलवायु क्षेत्र, पूर्वी व पश्चिमी तटीय क्षेत्र व मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र प्रमुख हैं।
प्रश्न 7.
भारत में भैसों की कौन-कौन सी नस्ल मिलती हैं?
उत्तर:
भारत में भैंसों की मुर्रा, जाफराबादी, भदावरी, सूरती नीली, मेहसाना आदि प्रमुख नस्लें मिलती हैं।
प्रश्न 8.
भारत में बकरी पालन का कार्य कहाँ-कहाँ किया जाता है?
उत्तर:
भारत में बकरी पालन का कार्य मुख्यतः राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश व झारखण्ड नामक राज्यों में किया जाता है।
प्रश्न 9.
भारत में भेड़ पालन कहाँ किया जाता है?
उत्तर:
भारत में भेड़ पालन मुख्यतः राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश पंजाब, हरियाणा, उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश में किया जाता है।
प्रश्न 10.
भारत में पशुओं की कमजोर स्थिति के लिए उत्तरदायी कारण कौन से हैं?
उत्तर:
भारत में पशुओं की कमजोर स्थिति हेतु पौष्टिक आहार व हरे चारे की कमी, अच्छी पशु नस्लों का अभाव, पशुओं की बीमारियाँ तथा पशु पालकों की अज्ञानता व लापरवाही आदि उत्तरदायी कारण हैं।
प्रश्न 11.
सदाबहार वन किसे कहते हैं? इनकी भौतिक दशाएँ कैसी होती हैं?
उत्तर:
ऐसे वन जो वर्ष भर हरे-भरे रहते हैं उन्हें सदाबहार वन कहते हैं। ये वन 200 सेमी से अधिक वर्षा वाले और 28°C वार्षिक तापमान वाले क्षेत्रों में मिलते हैं।
प्रश्न 12.
भारत में सदाबहार वन के क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत में सदाबहार वनों के तीन प्रमुख क्षेत्र है-उत्तरी-पूर्वी भारत व हिमालय के तराई प्रदेश, पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल तट पर व अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह हैं।
प्रश्न 13.
सदाबहार वनों की मुख्य वृक्ष प्रजातियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सदाबहार वनों की मुख्य वृक्ष प्रजातियों में लौह काष्ठ, महोगनी, गटापार्चा, इबोनी, तून, नारियल, ताड़, रबड़, सिनकोना, बाँस, साल, जंगली आम, गुरजन, तुलसर, बैंत, चपलास आदि शामिल हैं।
प्रश्न 14.
पतझड़ या पर्णपाती वन किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे वन जो ग्रीष्मकाल के प्रारम्भ में अपनी पत्तियों को गिरा देते हैं उन्हें पतझड़ या पर्णपाती वन कहते हैं।
प्रश्न 15.
मानसूनी वनों की प्रमुख वृक्ष प्रजातियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मानसूनी वनों की प्रमुख वृक्ष प्रजातियों में सागवान, साल, शीशम, चंदन, रोजवुड, कुसुम, बाँस, पलाश, हरड़, बहेड़ा, आँवला, हल्दू, इबोनी, आम, जामुन, सिरस, महुआ, पीपल, बरगद, खैर, सेमल व गूलर प्रमुख हैं।
प्रश्न 16.
मरुस्थलीय वनों की वृक्ष प्रजातियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मरुस्थलीय वनों की वृक्ष प्रजातियों में नागफनी, कैर, खैर, खेजड़ा, खजूर, बबूल, बेर, नीम, पीपल, बरगद, रामबॉस व थूअर प्रमुख हैं।
प्रश्न 17.
भारत में पर्वतीय वन मुख्यतः कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
भारत में, पर्वतीय वन मुख्यतः पूर्वी-पश्चिमी हिमालय प्रदेश, असम की पहाड़ियों, मध्यप्रदेश के पंचमढ़ी व महाराष्ट्र के महाबलेश्वर के पहाड़ी भागों में पाये जाते हैं।
प्रश्न 18.
भारत में ज्वारीय वन मुख्यतः कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
ये वन मुख्यत: गंगा-ब्रह्मपुत्र व हुगली नदी के डेल्टाई भागों में मिलते हैं।
प्रश्न 19.
ज्वारीय वनों की प्रमुख वृक्ष प्रजातियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ज्वारीय वनों की प्रमुख वृक्ष, प्रजातियों में बाँस, ताज, बेंत, ताड़, नारियल, रोजीफोरा, सोनरीटा, हेरीटीरिया व फोनिक्स शामिल हैं।
प्रश्न 20.
भारत में वन क्षेत्र निरन्तर कम क्यों होते जा रहे हैं?
उत्तर:
देश में बढ़ती जनसंख्या, नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के कारण वन क्षेत्र निरन्तर कम होते जा रहे हैं।
प्रश्न 21.
भारत में मछली पकड़ने के आधुनिक तरीकों के प्रशिक्षण केन्द्र किन स्थानों पर स्थापित हैं?
उत्तर:
तमिनलाडु राज्य में कोजन व तुतुकुण्डी, महाराष्ट्र में सतपारी, केरल में कोच्चि, आन्ध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम तथा गुजरात में वेरा नामक स्थानों पर है।
प्रश्न 22.
भारत में सर्वाधिक मछली उत्पादन करने वाले दो राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. आन्ध्र प्रदेश
2. पश्चिम बंगाल।
प्रश्न 23.
जल संसाधन क्या है?
उत्तर:
धरातल के ऊपर एवं भूगर्भ के आंतरिक भागों में पाये जाने वाले समस्त जल भण्डारों जिनका उपयोग मानव करता है, उनको जल संसाधन कहते हैं।
प्रश्न 24.
पृथ्वी के धरातल का कितना प्रतिशत भाग जल से आच्छादित है?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से आच्छादित है।
प्रश्न 25.
पृथ्वी के धरातल पर कुल कितना प्रतिशत भाग अलवणीय जल है?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर जल का लगभग 3 प्रतिशत भाग अलवणीय जल है।
प्रश्न 26.
धरातलीय जल के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
धरातलीय जल के चार प्रमुख स्रोत हैं-नदियाँ, झीलें, तालाब एवं तलैया।
प्रश्न 27.
भारत में सभी नदी बेसिनों का औसत अनुमानित कितना धरातलीय जल वर्षण से प्रति वर्ष प्राप्त होता है?
उत्तर:
भारत में सभी नदी बेसिनों में वर्षण से औसत अनुमानित वार्षिक धरातलीय जल की प्राप्ति 1869 घन किमी है।
प्रश्न 28.
नदी के जल का प्रवाह किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
नदी के जल का प्रवाह नदी के जल ग्रहण क्षेत्र के आकार पर निर्भर करता है।
प्रश्न 29.
भारत में किन तीन नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र देश के कुल क्षेत्र के एक-तिहाई भाग पर विस्तृत हैं?
उत्तर:
भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र तथा सिन्धु नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र देश के लगभग एक-तिहाई भाग पर विस्तारित मिलते हैं जिनमें देश के कुल धरातलीय जल संसाधनों का 60 प्रतिशत जल मिलता है।
प्रश्न 30.
धरातलीय जल के उपयोग को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धरातलीय जल का उपयोग 89% कृषि कार्यों में, 9% घरेलू कार्यों व 2% औद्योगिक कार्यों हेतु किया जाता हैं।
प्रश्न 31.
लैगून एवं पश्च जल के दो उपयोग लिखिए।
उत्तर:
लैगून एवं पश्च जल का उपयोग मछली पालन, चावल की कुछ निश्चित किस्मों के उत्पादन एवं नारियल आदि की सिंचाई में किया जाता है।
प्रश्न 32.
भारत में भूमिगत जल का सर्वाधिक उपयोग करने वाले राज्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा तमिलनाडु भारत के ऐसे चार राज्य हैं जिनमें भूमिगत जल का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 33.
भूमिगत जल के विविध सेक्टरों में उपयोग को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूमिगत जल का 92% उपयोग कृषि कार्यों, 5% उद्योगों व 3% घरेलू कार्यों में किया जाता है।
प्रश्न 34.
धरातलीय एवं भूमिगत जल का सबसे अधिक उपयोग किस सेक्टर में होता है?
उत्तर:
धरातलीय एवं भूमिगत जल का सबसे अधिक उपयोग कृषि सेक्टर में होता है।
प्रश्न 35.
सिंचाई किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्षा की कमी या अभाव के कारण शुष्क मौसम में खेतों में कृत्रिम तरीके से जल की आपूर्ति की क्रिया को सिंचाई कहा जाता है।
प्रश्न 36.
सिंचाई की व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभ क्या है?
उत्तर:
सिंचाई की व्यवस्था बहुफसलीकरण को सम्भव बनाती है।
प्रश्न 37.
सिंचाई के साधनों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जो साधन सिंचाई के लिए खेतों में जल उपलब्ध करवाते हैं, उन्हें सिंचाई के साधन कहते हैं; यथानदी, नहरें, तालाब, झील, बॉध आदि।
प्रश्न 38.
सिंचाई उपकरणों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जिन यंत्रों द्वारा नदियों, नहरों, झीलों, बाँधों तालाबों, नालों, नलकूपों, कुंओं, आदि से पानी बाहर निकालकर सिंचाई की जाती है। उन्हें सिंचाई के उपकरण कहते हैं।
प्रश्न 39.
भारत में जल समस्या क्यों उत्पन्न हुई है?
उत्तर:
निरन्तर जनसंख्या वृद्धि से जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। औद्योगिक कृषि व घरेलू अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण से स्वच्छ जल की मात्रा कम हो रही है जिससे जल समस्या उत्पन्न हुई है।
प्रश्न 40.
जल गुणवत्ता से क्या आशय है?
उत्तर:
जल गुणवत्ता से आशय जल की शुद्धता अथवा आवश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल से है।
प्रश्न 41.
भारत में बढ़ते जल प्रदूषण का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
भारत में बढ़ते जल प्रदूषण का मुख्य कारण यह है कि औद्योगिक, कृषि एवं घरेलू निस्तारणों को वृहद स्तर पर स्वच्छ जलीय भागों में मिला दिया जाता है।
प्रश्न 42.
जल प्रदूषण से क्या आशय है?
उत्तर:
अवांछित पदार्थों से रहित जल शुद्ध होता है। जब जल में अनेक अवांछित पदार्थ मिल जाते हैं तो जल की गुणवत्ता समाप्त हो जाती है तथा इसको प्रयुक्त करने पर हानिकारक प्रभाव पड़ने लगते हैं, जल की ऐसी स्थिति जल प्रदूषण कहलाती है।
प्रश्न 43.
जल संरक्षण के प्रमुख उपाय कौन से हैं?
उत्तर:
जल संरक्षण के प्रमुख उपायों में जल प्रदूषण के निवारण जल के पुनर्चक्रण व पुन: उपयोग, जल संरक्षण प्रबन्धन व वर्षा जल संचयन को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 44.
भारत की प्रमुख खनिज पेटियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत की प्रमुख खनिज पेटियों में झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल पेटी, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु पेटी, राजस्थान, गुजरात पेटी, केरल पेटी व हिमालय पेटी मुख्य है।
प्रश्न 45.
खनिजों की आत्मनिर्भरता की दृष्टि से विश्व में भारत का कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
खनिजों की आत्मनिर्भरता की दृष्टि से विश्व में भारत का संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरा स्थान है।
प्रश्न 46.
धात्विक खनिज क्या है? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वे खनिज जिनमें धातु का अंश प्राप्त होता है, धात्विक खनिज कहलाते हैं। उदाहरण-लौह-अयस्क, ताँबा, सोना, मैंगनीज आदि।
प्रश्न 47.
अधात्विक खनिज क्या हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वे खनिज जिनमें धातु का अंश नहीं होता है, अधात्विक खनिज कहलाते हैं। उदाहरण–चूना पत्थर, डोलोमाइट, अभ्रक आदि।।
प्रश्न 48.
धात्विक खनिजों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
1. लौह खनिज
2. अलौह खनिज।
प्रश्न 49.
लौह धात्विक खनिज क्या हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वे समस्त प्रकार के धात्विक खनिज जिनमें लौह अंश होता है, लौह धात्विक खनिज कहलाते हैं। उदाहरण – लौह अयस्क, मैंगनीज, टंगस्टन, क्रोमाइट आदि।
प्रश्न 50.
भारत में लौह अयस्क के प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत में लौह अयस्क के चार प्रकार हैंमैग्नेटाइट, हेमेटाइट, लिमोनाइट व सिडेराइट।
प्रश्न 51.
अलौह धात्विक खनिज क्या हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वे समस्त प्रकार के धात्विक खनिज जिनमें लौह अंश नहीं होता है, अलौह धात्विक खनिज कहलाते हैं। उदाहरण – ताँबा, बॉक्साइट, सीसा, जस्ता, चॉदी आदि।
प्रश्न 52.
भारत में हेमेटाइट लौह अयस्क किन चट्टानी समूहों से प्राप्त होता है?
उत्तर:
धारवाड़ तथा कुडप्पा चट्टान समूह।
प्रश्न 53.
कर्नाटक राज्य में प्रमुख रूप से किस लौह अयस्क का खनन किया जाता है?
उत्तर:
हेमेटाइट अयस्क का।
प्रश्न 54.
गोवा राज्य के परिष्कृत लौह अयस्क का निर्यात किस बन्दरगाह से होता है?
उत्तर:
मारमागोवा बन्दरगाह से।
प्रश्न 55.
भारत के लौह अयस्क का सर्वाधिक निर्यात किस देश को किया जाता है?
उत्तर:
जापान को।
प्रश्न 56.
ताँबे का मुख्य उपयोग बताइये।
उत्तर:
- ताँबे का मुख्य उपयोग विद्युत उपकरणों के निर्माण के लिए किया जाता है।
- ताँबा आभूषणों को मजबूती प्रदान करने के कारण सोने के साथ मिलाया जाता है।
प्रश्न 57.
ताँबे के तीन मुख्य उत्पादक राज्य बताइये।
उत्तर:
1. मध्यप्रदेश
2. राजस्थान
3. झारखण्ड
प्रश्न 58.
बॉक्साइट का मुख्य उपयोग बताइये।
उत्तर:
बॉक्साइट का मुख्य उपयोग एल्युमिनियम बनाने में होता है।
प्रश्न 59.
बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
उड़ीसा।
प्रश्न 60.
उड़ीसा के प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. कालाहांडी
2. सम्बलपुर
3. बोलनगीर
4. कोरापुट
प्रश्न 61.
अभ्रक का क्या उपयोग है?
उत्तर:
विद्युतरोधी व उच्च वोल्टेज सहनक्षमता होने के कारण अभ्रक का सर्वाधिक उपयोग विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है।
प्रश्न 62.
भारत में अभ्रक के मुख्य उत्पादक राज्यों के नाम बताइये।
उत्तर:
आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान तथा झारखण्ड भारत के मुख्य अभ्रक उत्पादक राज्य हैं।
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA-I)
प्रश्न 1.
भारत में ऊँट पालने वाले क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ऊँट रेगिस्तानी भागों का एक अति महत्वपूर्ण एवं उपयोगी पशु है। भारत में वर्तमान में ऊँटों की संख्या लगभग 4 लाख है जो विश्व के कुल ऊँटों की संख्या का 2.4 प्रतिशत है। भारत में सर्वाधिक ऊँट राजस्थान राज्य में हैं जहाँ देश के लगभग 50 प्रतिशत ऊँट मिलते हैं। राजस्थान की सीमा से सटे राज्य-पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश देश में ऊँट पालन करने वाले अन्य राज्य हैं।
प्रश्न 2.
भारत में पशु संसाधन विकास के उपायों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
भारत में पशु संसाधन विकास के निम्नलिखित उपाय महत्वपूर्ण हैं –
- पशुओं के लिए पौष्टिक व पूर्ण आहार प्रदान करने के लिए उत्तम चरागाहों का विकास।
- ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत स्तर पर पशु चिकित्सालय व कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र खोलकर संकर प्रजनन द्वारा पशुओं की नस्लों में सुधार करना।
- पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए टीके व दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है।
- वैज्ञानिक ढंग से पशुपालन के तरीकों को ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार करना।
प्रश्न 3.
भारतीय वनों से प्राप्त उपजों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय वनों से प्राप्त उपजों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है –
1. मुख्य उपजें:
वनों से प्राप्त विभिन्न वृक्षों की लकड़ियाँ प्रमुख उपज हैं। भारत में जिन वृक्षों की लकड़ी प्राप्त की जाती है, उनमें देवदार, चीड़, मेपिल, फर, स्पूस, श्वेत, सनोवर, साल, सागवान, शीशम, महुवा, चन्दन, सेमल, हल्दू, अर्जुन, आम, खैर, बबूल, बाँस, नीम आदि महत्वपूर्ण हैं।
2. गौण उपजे:
भारतीय वनों से गौण उपजों में लाख, कत्था, गोंद, महुआ, तुंग, बैत, रबर, फल, शहद, जड़ी-बूटियाँ, औषधियाँ, चमड़ा पकाने व रंगने के पदार्थ, तारपीन का तेल, विरोजा तथा प्राकृतिक रेशम प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं।
प्रश्न 4.
वन संसाधनों के महत्व को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
वन संसाधनों का निम्नलिखित क्षेत्रों में महत्व हैं –
- वनों से सभ्यता का जन्म, विकास व फलना-फूलना हुआ है।
- वन संसाधन प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से समस्त जैव जगत को भोजन, पोषण, रोजगार व आश्रय प्रदान करते हैं।
- वनों से मानव को उपयोगी लकड़ियाँ, औषधियाँ, जड़ी-बूटियाँ तथा फल-फूल प्राप्त होते हैं।
- वन पशुओं के लिए चरागाह स्थल प्रदान करते हैं।
- जलवायु को सम बनाने तथा वर्षा करने में सहयोग प्रदान करते हैं।
- मरुस्थल प्रसार व भूमि अपरदन को नियन्त्रित करते हैं।
- मृदा उर्वरकता में वृद्धि करते हैं।
- वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा हरित गृह प्रभाव को कम करते हैं।
प्रश्न 5.
भारत में मत्स्य पालन विकास के लिए किए जा रहे प्रमुख प्रयासों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मत्स्यपालन विकास के प्रमुख प्रयास –
- मत्स्य उत्पादन बढ़ाने के लिए मत्स्य क्षेत्रों में विशिष्ट प्रकार के पोताश्रयों का निर्माण किया जा रहा है।
- मछली पकड़ने के लिए आधुनिक प्रकार की बड़ी नौकाओं का प्रयोग किया जाने लगा है।
- पकड़ी गई मछलियों को सुरक्षित रखने के लिए शीत भण्डारों का निर्माण तथा मछलियों को सुखाने वाली इकाइयों की स्थापना की जा रही है।
- प्रमुख रेलमार्गों पर द्रुतगामी मालगाड़ियों में शीत भण्डार युक्त रेल डिब्बों की उपलब्धता को बढ़ाया जा रहा है।
- मछली पकड़ने के आधुनिक तरीकों के लिए उपयुक्त स्थानों पर प्रशिक्षण केन्द्र खोले गये हैं।
- मछलियों के नवीन उत्पादों की खोज के लिए अनुसंधानशालाएं स्थापित की गई हैं।
- गहरे सागरीय मत्स्य क्षेत्रों में मछलियाँ पकड़ने के लिए ट्रालरों की उपयोग की व्यवस्था की जा रही है।
- मछुआरों के लिए सहकारी समितियाँ स्थापित कर मछलियों के विक्रय और अनुदान की व्यवस्था उपलब्ध करवायी जा रही है।
प्रश्न 6.
भारत के मत्स्य बन्दरगाहों के नाम लिखिए तथा भारत के प्रमुख मत्स्य केन्द्रों को मानचित्र पर प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
पूर्वी तट के प्रमुख मत्स्य बन्दरगाह-कोलकाता, कटक, पुरी, गोपालपुर, गंजम, कलिंगपट्टनम, विमलीपट्टनम, काकीनाडा, मछलीपट्टनम, नेल्लोर, चेन्नई, पुडुचेरी, नागपट्टनम तथा तूतीकोरन। पश्चिमी तट के प्रमुख मत्स्य बन्दरगाह-पोरबन्दर, मांगरोल, सूरत, माहिम, मुम्बई, जयगढ़, रत्नागिरी, देवगढ़, मालवन, मंगलोर, तेल्लिचेरी, कोझीखोड, कोचीन (कोच्चि), एलेप्पी तथा तिरुअनन्तपुरम हैं।
प्रश्न 7.
भारत में मछली उत्पादन की स्थिति तथा प्रमुख मछली उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में सन् 2001-02 में 59.60 लाख टन, सन् 2012-13 में 90.4 लाख टन तथा सन् 2013-14 में 95.80 लाख टन मछलियाँ पकड़ी गईं। स्पष्ट है कि देश में मत्स्य उत्पादन में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। सन् 2013-14 में भारत के प्रमुख मत्स्य उत्पादक राज्यों में मत्स्य उत्पादन निम्नवत् रहा
राज्य | मत्स्य उत्पादने (2013-14) |
(i) आन्ध्र प्रदेश | 18.08 लाख टन |
(ii) पश्चिमी बंगाल | 14.09 लाख टन |
(iii) गुजरात | 7.86 लाख टन |
(iv) केरल | 6.33 लाख टन |
(v) तमिलनाडु | 6.20 लाख टन |
(vi) महाराष्ट्र | 5.79 लाख टन |
(vii) कर्नाटक | 5.75 लाख टन |
(viii) उड़ीसा | 4.10 लाख टन |
प्रश्न 8.
भारत में धरातलीय जल संसाधनों की उपलब्धता का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत हैं-नदियाँ, झील, बाँध एवं तालाब आदि। इनमें से नदियाँ प्रमुख हैं। भारत में सभी नदी बेसिनों में औसत अनुमानित वार्षिक प्रवाह 1869 घन किमी है। स्थलाकृतिक, जलीय एवं अन्य दबावों के कारण प्राप्त धरातलीय जल का केवल लगभग 690 घन किलोमीटर (32%) भाग का उपयोग ही वर्तमान में स्थानीय लोगों द्वारा किया जा सकता है।
गंगा, ब्रह्मपुत्र एवं सिंधु नदियाँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग एक-तिहाई भाग पर विस्तृत हैं। जिनमें कुल धरातलीय जल संसाधनों का 60 प्रतिशत जल मिलता है जबकि मध्य भारत की नदियों (नर्मदा, ताप्ती तथा महानदी) द्वारा कुल धरातलीय जल संसाधनों का 16 प्रतिशत तथा दक्षिणी भारत की नदियों (गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी) द्वारा शेष 24 प्रतिशत धरातलीय जल मिलता है।
प्रश्न 9.
भारत के विभिन्न सेक्टरों में जल के उपयोग की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
अथवा
भारत में जल के उपयोग के विभिन्न क्षेत्रों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के विभिन्न सेक्टरों में जल का उपयोग: भारत में जल का उपयोग निम्नलिखित तीन सेक्टरों में किया जाता है –
1. कृषि सेक्टर:
भारत में धरातलीय एवं भूमिगत जल का सर्वाधिक उपयोग कृषि सेक्टर में किया जाता है। इसमें धरातलीय जल का 89 प्रतिशत एवं भौमजल का 92 प्रतिशत उपयोग किया जाता है।
2. औद्योगिक सेक्टर:
औद्योगिक सेक्टर में भी जल का उपयोग किया जाता है। इस क्षेत्र में सतही जल का 24 प्रतिशत एवं भौमजल का 5 प्रतिशत भाग ही उपयोग किया जाता है।
3. घरेलू सेक्टर:
घरेलू सेक्टर में धरातलीय जल का उपयोग भौमजल की तुलना में अधिक किया जाता है। इस क्षेत्र में धरातलीय जल का 9 प्रतिशत उपयोग तथा भौमजल का 3 प्रतिशत उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 10.
धरातलीय जल एवं भूमिगत जल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. धरातलीय जल:
धरातल पर स्थित विभिन्न जल स्रोतों-नदियों, झीलों, नहरों, तालाबों आदि में उपलब्ध जल को धरातलीय जल कहते हैं। इसका मुख्य स्रोत नदियाँ होती हैं। इसे सतही जल भी कहते हैं।
2. भूमिगत जल:
धरातल के नीचे चट्टानों की दरारों व छिद्रों में पाया जाने वाला जल भूमिगत जल कहलाता है। यह नलकूपों, कुंओं एवं अन्य साधनों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 11.
भारत की प्रमुख नदियों की लम्बाई तथा अपवाह क्षेत्र को सारिणीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
स्रोत- भारत जल संसाधन सूचना तंत्र।
प्रश्न 12.
सिंचाई से क्या आशय है? सिंचाई के साधनों तथा उपकरणों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
1. सिंचाई से आशय:
वर्षा की कमी या अभाव के कारण शुष्क मौसम में खेतों में कृत्रिम ढंग से जल की आपूर्ति की क्रिया को सिंचाई कहते हैं।
2. सिंचाई के साधन:
ऐसे साधन जो सिंचाई के लिए खेतों में जल उपलब्ध करवाते हैं, सिंचाई के साधन कहलाते हैं। जैसे-नदियाँ, नहरें, झीलें, तालाब, कुएँ, नलकूप आदि।
3. सिंचाई के उपकरण:
ऐसे यन्त्र या उपकरण जिनकी सहायता से नदियों, नहरों, झीलों, बाँधों, तालाबों, नालों, नलकूपों, कुंओं आदि से पानी बाहर निकालकर सिंचाई की जाती है, सिंचाई के उपकरण कहलाते हैं। जैसे–रहट, चड़स, ढेकुली, डीजल पम्प, विद्युत पम्प आदि।
प्रश्न 13.
भारत में सिंचाई के लिए जल संसाधनों की आवश्यकता के प्रमुख कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत में सिंचाई के लिए जल संसाधनों की आवश्यकता के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं –
- तेजी से बढ़ती जनसंख्या के लिए अधिक कृषि उत्पादन की आवश्यकता हेतु।
- वर्षा की अनिश्चितता तथा अनियमितता के कारण।
- वर्षा की मौसमीय प्रकृति तथा असमान वितरण के कारण।
- शुष्क क्षेत्रों में कृषि फसलों के उत्पादन के लिए।
- गहने कृषि वे बहुफसली व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए।
- व्यावसायिक फसलों के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए।
- नवीन व संकर किस्मों के लिए समय पर अपेक्षाकृत अधिक जल की आवश्यकता।
- सूखे की समस्या के समाधान हेतु।
- चारागाह विकास हेतु।
प्रश्न 14.
भारत में सिंचाई के धरातलीय एवं भूमिगत जल संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
भारत में सिंचाई के धरातलीय एवं भूमिगत जल संसाधनों का वर्गीकरण अग्रवत् किया जा सकता है –
प्रश्न 15.
जलीय गुणवत्ता में ह्रास या जल प्रदूषण से क्या आशय है? जल प्रदूषणों के कारणों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
जलीय गुणवत्ता में ह्रास या जल प्रदूषण-विषाक्त पदार्थों, सूक्ष्म जीवों, रासायनिक पदार्थों तथा अन्य अपशिष्ट पदार्थों के मिलने से जल अपनी स्वाभाविक गुणवत्ता खोकर इस स्तर तक प्रदूषित हो जाता है कि वह मानव के लिए उपयोगी नहीं रह पाता। इसे जल प्रदूषण या जलीय गुणवत्ता में ह्रास कहा जाता है। जल प्रदूषण के कारण विषाक्त पदार्थों को निरन्तर नदियों, नालों, झीलों तथा तालाबों में डालना जल प्रदूषण का प्रमुख कारण है। अत्यधिक प्रदूषक जल में मिलकर भूमिगत जल को भी प्रदूषित करते हैं।
प्रश्न 16.
जल संभरण प्रबन्धन से क्या आशय है? सरकार द्वारा संचालित हरियाली ‘जल संभरण विकास परियोजनाओं को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
फ्रमुख रूप से धरातलीय तथा भूगर्भिक जलीय संसाधनों का कुशल प्रबन्धन जल संभरण प्रबन्धन कहलाता है। केन्द्र, राज्य सरकारों तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा देश में अनेक जल संभरण विकास और प्रबन्धन कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिनमें हरियाली जल संभरण विकास परियोजना भी सम्मिलित है। हरियाली परियोजना केन्द्र सरकार द्वारा देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल, सिंचाई, मत्स्यपालन तथा वृक्षारोपण तथा वन संरक्षण के लिए क्रियान्वित की गई है। यह परियोजना ग्राम पंचायतों के माध्यम से ग्रामीण लोगों के सहयोग से संचालित की जा रही है।
प्रश्न 17.
खनिजों की प्रमुख विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर:
खनिजों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं –
- खनिज प्राकृतिक रूप से रवेदार, निश्चित रासायनिक संगठन तथा विशिष्ट संरचना वाले पदार्थ हैं।
- कुछ खनिज एक ही तत्व से निर्मित सामान्य संगठन वाले होते हैं; जैसे-कार्बन तथा हीरा जबकि अधिकांश खनिज दो तत्वों या अधिक तत्वों के संगठन वाले होते हैं; जैसे-लोहा, सल्फर आदि।
- प्रत्येक खनिज का एक विशिष्ट रंग, आभा, घनत्व, कठोरता, पारदर्शिता, भार तथा रासायनिक संगठन होता है।
- भूगर्भ में खनिजों का निर्माण एक अति दीर्घकालीन प्रक्रिया के माध्यम से होता है।
प्रश्न 18.
लौह अयस्क के प्रमुख प्रकारों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
लौह अयस्क में लोहांश की मात्रा के अनुसार लौह अयस्क के निम्नलिखित 4 प्रकार होते हैं –
1. मैग्नेटाइट अयस्क:
इस अयस्क में लोहांश 72 प्रतिशत तक होता है। लोहांश की अधिकता के कारण इस अयस्क का रंग काला अथवा गहरा भूरा होता है। आग्नेय चट्टानों में मिलने वाला यह सर्वोत्तम किस्म का लौह अयस्क माना जाता है।
2. हेमेटाइट अयस्क:
इस अयस्क में लोहांश की मात्रा 60 से 70 प्रतिशत तक होती है। इस अयस्क का रंग लाल या भूरा होता है। यह लौह अयस्क भारत में धारवाड़ तथा कुडप्पा क्रम की चट्टानों में मिलता है।
3. लिमोनाइट अयस्क:
इस अयस्क में लोहांश 30 से 60 प्रतिशत तक होता है। निम्न कोटि का यह लौह अयस्क परतदार चट्टानों में मिलता है तथा इस अयस्क का रंग पीलापन लिए होता है।
4. सिडेराइट अयस्क:
इस लौह अयस्क में लोहांश 10 से 48 प्रतिशत तक होता है। कम लोहांश होने के कारण इस लौह अयस्क का खनन अनार्थिक होने से नहीं किया जाता है। इस लौह अयस्क का रंग राख जैसा या हल्का भूरा होता है।
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA-II)
प्रश्न 1.
सदाबहार वनों की विशेषता बताइए।
अथवा
सदाहरित वनों के भौतिक लक्षणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सदाबहार वनों की निम्न विशेषताएँ हैं –
- ये वन सदा हरे-भरे रहते हैं।
- ये वन शीघ्र बढ़ने वाले होते हैं।
- इन वनों की लकड़ी कठोर व काले रंग की होती है।
- ये वन अत्यधिक सघन होते हैं। इन वनों का विदोहन करना अत्यधिक कठिन व खर्चीला होता है।
- इन वनों में कई प्रकार की वृक्ष प्रजाति के पेड़ मिलते हैं।
- इन वनों में पेड़ों की लम्बाई 40-60 मीटर तक होती है।
प्रश्न 2.
उष्ण कटिबंधीय वनों की भौगोलिक दशाओं व भारत में वितरण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय वन-ये वन 50 सेमी से 100 सेमी औसत वार्षिक वर्षा तथा 20°C से 35°C तक औसत वार्षिक तापमान वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं। इन वनों के भारत में दो प्रमुख क्षेत्र हैं –
- उत्तर-पश्चिमी भारत (द. प. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के पूर्वी भाग व अरावली पर्वत, द. प. उत्तर प्रदेश)।
- दक्षिणी प्रायद्वीप के शुष्क भाग (आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और आन्ध्र प्रदेश के आन्तरिक भाग)। इन वनों में पाये जाने वाले वृक्षों की जड़े लम्बी, पत्तियाँ मोटी व तना खुरदरा होता है। वर्षा की कमी के कारण वृक्षों की ऊँचाई 6 से 9 मीटर तक होती है।
प्रश्न 3.
मत्स्य संसाधन के विकास हेतु आवश्यक दशाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
मत्स्य पालन की अनुकूल दशाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मत्स्य पालन हेतु निम्न दशाएं अनुकूल होती हैं –
1. समुद्र तटों का छिछलापन:
100 फैदम (600 फुट) तक गहरे छिछले समुद्र तक मछलियों के लिये अनुकूल होते हैं। इस गहराई तक सूर्य की किरणें आसानी से पहुँच जाती हैं। जिससे मछलियों की वृद्धि तथा विकास होता है। छिछले समुद्र तटों पर प्लैकंटन व काई पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है। इनको खाने के लिये तथा अण्डे देने के लिये मछलियाँ अधिक मात्रा में आती है।
2. प्लैंकटन का पर्याप्त मात्रा में मिलना:
प्लैंकटन नामक छोटे जीव के लिये भोजन के आवश्यक तत्व नदियों के मुहाने पर पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं। इसलिये नदियों के मुहानों पर प्लैकटंन अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। नदियों द्वारा कई प्रकार के सड़े-गले पदार्थ भी प्रवहित कर यहाँ लाये जाते हैं। अत: प्लैकटंन व सड़े-गले पदार्थों को खाने के लिए मछलियाँ नदियों के मुहानों पर आती हैं।
3. ठण्डी और गर्म जल धाराओं के मिलन स्थल भी मछली प्राप्ति के मुख्य क्षेत्र हैं। दो भिन्न तापमान वाली जल धाराओं के आपस में मिलने पर मछलियाँ परिवर्तित ताप को सहन नहीं कर पाती हैं और सतह पर एकत्र हो जाती हैं। ठण्डी और गर्म जल धाराओं के मिलन स्थल पर प्लैकटंन भी बहुत अधिक वृद्धि और विकास करते हैं अतः भोजन प्राप्ति के लिये मछलियाँ यहाँ पर्याप्त मात्रा में एकत्र हो जाती हैं।
प्रश्न 4.
भारत में मिलने वाली खनिज पटियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में खनिजों की मेखलाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में खनिजों के जमाव की मुख्यत: निम्न छ: मेखलाएँ मिलती हैं –
- झारखण्ड-उड़ीसा-पश्चिमी बंगाल मेखला।
- मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़-आन्ध्र प्रदेश-महाराष्ट्र मेखला।
- कर्नाटक-तमिलनाडु मेखला।
- राजस्थान-गुजरात मेखला।
- केरल मेखला।
- हिमालय मेखला।
1. झारखण्ड-उड़ीसा-पश्चिमी बंगाल मेखला:
यह मेखला भारत के उत्तरी पूर्वी पठारी प्रदेश में छोटा नागपुर, उड़ीसा पठार, प. बंगाल और छत्तीसगढ़ के कुछ भाग में विस्तृत है। यहाँ लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, अभ्रक, ताँबा, इल्मेनाइट, बॉक्साइट, क्रोमाइट, फास्फेट व चूना पत्थर आदि के विशाल भण्डार हैं।
2. मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़-आन्ध्र प्रदेश-महाराष्ट्र मेखला:
इस मेखला में लौह अयस्के, मैंगनीज, बॉक्साइट, चूना पत्थर, अभ्रक, ताँबा, ग्रेनाइट व हीरे के विशाल भण्डार हैं।
3. कर्नाटक-तमिलनाडु मेखला:
इस मेखला में सोना, लौह अयस्क, मैंगनीज, ताँबा, बॉक्साइट, लिग्नाइट, कोयला, चूना पत्थर, जिप्सम, क्रोमाइट आदि के विशाल भण्डार हैं।
4. राजस्थान-गुजरात मेखला:
इस मेखला में चाँदी, सीसा, जस्ता, अभ्रक, मैंगनीज, ताँबा, लिग्नाइट, कोयला, संगमरमर, जिप्सम, एस्बेस्टौस, नमक, मुल्तानी मिट्टी, यूरेनियम, बेरेलियन, पैट्रोलियम, प्राकृतिक गैस के भण्डार हैं।
5. केरल मेखला:
इस मेखला में मोनोजाइट, जिरकन, इल्मेनाइट, गारनेट, चिकनी मिट्टी आदि खनिज पाये जाते हैं।
6. हिमालय मेखला:
इस मेखला में ताँबा, सीसा, जस्ता, निकिल, सुरमा, कोबाल्ट, टंगस्टन, सोना, चाँदी, क्रोमाइट और बेरेलियम आदि खनिज पाये जाने की पर्याप्त संभावनाएँ हैं।
प्रश्न 5.
भारत के प्रमुख ताँबा उत्पादक क्षेत्रों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में ताँबे के जमाव के आधार पर वर्तमान में निम्न ताँबा राज्यों से ताँबे का उत्पादन किया जा रहा है –
1. मध्य प्रदेश:
इस राज्य का भारत में ताँबा उत्पादन में प्रथम स्थान है। यहाँ 56.86 प्रतिशत ताँबे का उत्पादन होता है। मुख्य ताँबा उत्पादक जिले बालाघाट (मलजखण्ड) तथा तारे गाँव तथा बैतूल है। यहाँ 848 लाख टन ताँबे के भण्डार है, जिनमें 10.06 लाख टन शुद्ध ताँबा उपस्थित है।
2. राजस्थान:
यह भारत में दूसरा बड़ा ताँबा उत्पादक राज्य है। यहाँ झुंझुनूं (खेतड़ी, सिंघाना) मुख्य उत्पादक जिला है। यहाँ हिन्दुस्तान कॉपर कॉरपोरेशन खेतड़ी द्वारा ताँबा अयस्क निकालने व ताँबा शोधन का कार्य किया जाता है। कारखाने की ताँबा संद्रावक क्षमता 40 हजार टन वार्षिक है। सीकर, उदयपुर, बाँसवाड़ा, दौसा, भीलवाड़ा में नये भण्डारों का पता चला है।
3. झारखण्ड:
यह राज्य भारत का 4.0 लाख टन ताँबा अयस्क उत्पादन करता है। यहाँ सिंहभूमि, हजारीबाग, संथाल, परगना, मानभूमि आदि प्रमुख उत्पादक जिले है। यहाँ भारत का लगभग 4 प्रतिशत ताँबा निकाला जाता है। झारखण्ड में ताँबा अयस्क निकालने का कार्य इण्डियन कॉपर कॉरपोरेशन 1924 से कर रहा है। इसी संस्था द्वारा 1930 से ताँबा निकाला जाता है तथा ताम्बे की चादरें बनाई जाती है।
अन्य क्षेत्र:
सिक्किम, आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, जम्मू और कश्मीर आदि राज्यों में भी ताँबे के भण्डार पाये जाते हैं।
RBSE Class 12 Geography Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत के पशुपालन क्षेत्रों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के बाद पशुपालने सर्वप्रमुख व्यवसाय है। वर्तमान में भारत की अनेक जातियों के जीवन-यापन का मुख्य आधार पशुपालन ही है। भारत में पशुपालन व्यवसाय के निम्नलिखित 4 क्षेत्र हैं –
1. हिमालय पर्वतीय प्रदेश:
इस पशुपालन क्षेत्र में उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर राज्यों के अलावा हिमालय के तराई क्षेत्र व पूर्वोत्तर राज्य सम्मिलित हैं। पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र में भेड़ तथा बकरी प्रमुख पालित पशु हैं। यहाँ भेड़ों को उत्तम किस्म की श्वेत रंग की ऊन प्राप्त करने के लिए पाला जाता है। पर्यटन व्यवसाय में हुई उल्लेखनीय प्रगति के कारण कुछ क्षेत्रों में दुग्ध प्रदान करने वाले पशुओं को पालने को प्रचलन बढ़ा है।
2. उत्तरी-पश्चिमी शुष्क व अर्द्ध-शुष्क जलवायु प्रधान क्षेत्र:
यह पशुपालन क्षेत्र थार मरुस्थल तथा इसके चारों ओर विस्तृत शुष्क व अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों पर विस्तारित है जिसमें पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश तथा पश्चिमी गुजरात सम्मिलित हैं। न्यून वर्षा के कारण कृषि के स्थान पर पशुपालन व्यवसाय इन क्षेत्रों में प्रमुख रूप से किया जाता है। इस पशुपालन क्षेत्र के सिंचित क्षेत्रों में गेहूं की कृषि की जाती है तथा गेहूं के भूसे का उपयोग पशु चारे के रूप में किया जाता है। वर्षा ऋतु में ज्वार-बाजरा की कृषि की जाती है तथा इसके भूसे का उपयोग भी पशुचारे के रूप में किया जाता है। ऊँट, भेड़, गाय, भैंस, बकरी, घोड़े, खच्चर तथा गधे इस क्षेत्र में पालित प्रमुख पशु हैं।
3. पूर्वी एवं पश्चिमी तटीय क्षेत्र:
इस पशुपालन क्षेत्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, असम, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, पूर्वी तमिनलाडु तथा केरल की पश्चिमी समुद्रतटीय पट्टी सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में चावल की कृषि के लिए उपयुक्त दशाएं मिलती हैं। चावल का डण्ठल (पुआल) तथा चरी पशुओं को प्रमुख चारा है। भैंस यहाँ पाले जाने वाला प्रमुख दुधारू पशु है जबकि भैंसों का उपयोग कृषि कार्यों में किया जाता है।
4. मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र:
इस पशुपालन क्षेत्र में दक्षिणी उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पश्चिमी आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी तमिलनाडु, कर्नाटक तथा पूर्वी महाराष्ट्र राज्य सम्मिलित हैं। मध्यम वर्षा प्राप्त करने के कारण ज्वार-बाजरा प्रमुख कृषि फसलें हैं। भेड़ यहाँ पालित प्रमुख पशु है जिससे घटिया किस्म की ऊन प्राप्त की जाती है। जिन क्षेत्रों में नलकूप व अन्य स्रोतों से सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध हैं, वहाँ उन्नत किस्म की गाय तथा भैंसें पाली जाती हैं।
प्रश्न 2.
भारत के प्रमुख पालतू पशुओं पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
भारत में सन् 2012 में पालतू पशुओं की कुल संख्या 51.21 करोड़ रही। भारत में पाले जाने वाले पशुओं में गाय-बैल, भैंसें, बकरी, भेड़ तथा ऊँट सर्वप्रमुख हैं।
1. गाय-बैल:
विश्व के गाय-बैल पालक देशों में भारत का ब्राजील के बाद दूसरा स्थान है। सन् 2012 में देश में गाय-बैलों की कुल संख्या 19.1 करोड़ थी जो विश्व की कुल गाय-बैल संख्या का 12.7 प्रतिशत भाग है। भारतीय नस्ल की गाय का दूध विश्व में सर्वश्रेष्ठ एवं A2 वर्ग का है। भारत के अधिकांश भागों में गाय-बैल पाले जाते हैं। गाय का दूध अपनी उत्तम गुणवत्ता तथा पौष्टिकता के कारण स्वास्थ्य के लिए अमृत तुल्य माना जाता है।
2. भैंसे:
विश्व के भैंस पालक देशों में भारत का प्रथम स्थान है। सन् 2012 में भारत में भैंसों की कुल संख्या लगभग 11 करोड़ थी जो विश्व की कुल भैस संख्या का 56.7 प्रतिशत भाग है। भैंसों के लिए अपेक्षाकृत ठण्डक तथा अधिक जल की आवश्यकता होने के कारण अधिकांश भैंसे देश के आर्दै प्रदेशों में पाली जाती हैं। उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र भारत के प्रमुख भैंस पालक राज्य हैं जबकि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार तथा तमिनलाडु अन्य भैंस पालक राज्य हैं। गाय की तुलना में भैस अधिक दूध देती है तथा उसका दूध अधिक वसायुक्त, पौष्टिक तथा गाढ़ा होता है।
3. बकरियाँ:
भारत में बकरियाँ दूध तथा माँस उत्पादन के लिए पाली जाती हैं। इनके रखरखाव का खर्च कम तो होता ही है साथ ही इनकी वंश वृद्धि बहुत शीघ्र होती है। भारत में 13.5 करोड़ बकरियाँ हैं जो विश्व की कुल बकरियों की संख्या का 14.5 प्रतिशत (विश्व में प्रथम) भाग है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिनलाडु, आन्ध्र प्रदेश तथा झारखण्ड भारत के प्रमुख बकरी पालक राज्य हैं।
4. भेड़े:
विश्व के भेड़ पालक देशों में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है। देश में लगभग 65 करोड़ भेड़ पाली जाती है। भारत में भेड़ को ऊन व माँस प्राप्ति के लिए प्रमुख रूप से पाला जाता है। देश के शुष्क, अर्द्ध-शुष्क तथा पर्वतीय भागों में भेड़ पालन जीविकोपार्जने का प्रमुख साधन है। देश की लगभग 60 प्रतिशत भेड़ राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में पाली जाती है। मध्यप्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखण्ड तथा उत्तर प्रदेश भेड़ पालन की दृष्टि से देश के अन्य राज्य हैं। भारतीय भेड़ों से घटिया किस्म की ऊन प्राप्त होती है जिसका उपयोग प्रमुख रूप से गलीचा निर्माण हेतु किया जाता है।
5. ऊँट:
भारत में विश्व के केवल 2.4 प्रति ऊँट पाले जाते हैं। देश में ऊँटों की कुल संख्या लगभग 4 लाख है जिसमें से लगभग 50 प्रतिशत अकेले राजस्थान राज्य में मिलते हैं। शेष ऊँट पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश राज्यों में हैं। ऊँट रेगिस्तान का एक अति महत्वपूर्ण एवं उपयोगी पशु है जो वहाँ के गर्म वातावरण में बिना पानी पिये सात दिनों तक जीवित रहने की क्षमता रखता है। रेतीले मरुस्थलीय भागों में परिवहन के लिए ऊँट का कोई दूसरा विकल्प नहीं है, इसीलिए ऊँट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है।
प्रश्न 3.
भारत के मानचित्र पर प्रमुख नदी जल बेसिनों को प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 4.
जल संरक्षण एवं प्रबन्ध के प्रमुख उपायों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
जल संरक्षण एवं प्रबन्धन के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं –
1. जल प्रदूषण का निवारण:
मानव के बढ़ते क्रियाकलापों से जल संसाधनों की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आती जी रही है। जल प्रदूषण या जल की गिरती गुणवत्ता के निवारण के लिए कृषि में रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के स्थान पर जैविक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का अधिक प्रयोग तो किया ही जाय साथ ही प्रदूषित जल को उन्नत तकनीक के माध्यम से शोधन कर शोधित जल का कृषि कार्यों में उपयोग किया जाय तथा उद्योगों के प्रदूषित जल का उप
उत्पादकों में उपयोग आवश्यक है।
2. जल का पुनर्चक्रण तथा पुनःउपयोग:
जल के पुनर्चक्रण एवं पुन:उपयोग की आधुनिक तकनीक के माध्यम से अलवणीय जल की उपलब्धता एवं गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है। साथ ही कम गुणवत्ता वाले शोधित अपशिष्ट जल का उपयोग शीतलन व अग्निशमन, स्नान, बर्तन धोने तथा वाहन धुलाई हेतु किया जा सकता है।
3. जल संभरण प्रबन्धन:
जले संभरण प्रबन्धन का आशय प्रमुख रूप से वर्षा जल, धरातलीय जल तथा भूगर्भिक जलीय संसाधनों के कुशल प्रबन्धन से है। इसके अन्तर्गत सतही प्रवाहित जल को बाँधों, झीलों, तालाबों में संग्रह करना तथा भूमिगत जल को पुनर्भरण कुँओं में संचयन एवं पुनर्भरण करना सम्मिलित है। भारत की केन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा देश के अनेक भागों में जल संभरण विकास और प्रबन्धन की योजनाएं संचालित की गई हैं जिनमें हरियाली जल संभरण विकास परियोजना सर्वप्रमुख है। इसके अलावा राजस्थान के अलवर जनपद में अरवारी पानी संसद, आन्ध्र प्रदेश में नीरू-मीरू (जल और आप) योजनाओं द्वारा जन सहयोग से तालाब, ताल व बाँध निर्मित किये गए हैं। तमिनलाडु राज्य में भवन निर्माण के लिए भवन में जल संग्रहण संरचना का निर्माण अनिवार्य कर दिया गया है।
4. वर्षा जल संचयन:
वर्षा जल को विभिन्न उपयोगों के लिए रोकने और संग्रहण करने की विधि को वर्षा जल संचयन कहा जाता है। इस विधि का उपयोग भूमिगत जलीय भण्डारों के पुनर्भरण के लिए किया जाता है। इस विधि के द्वारा वर्षा जल को गड्ढों, तालाबों तथा कुँओं के अलावा मानव निर्मित भूमिगत टैंकों में संग्रहित किया जाता है जिसके कारण भूमिगत जल स्तर में वृद्धि होती है। भारत में परम्परागत रूप से वर्षा जल को झीलों, तालाबों, ताल-तलैया तथा टांकों में संग्रहित किया जाता रहा है।
प्रश्न 5.
भारत में अभ्रक के प्राप्ति स्थानों एवं उत्पादन का विवरण दीजिए।
उत्तर:
अभ्रक प्राप्ति स्थान:
भारत विश्व के अभ्रक उत्पादक देशों में प्रथम स्थान रखता है तथा देश में विश्व का प्रति वर्ष लगभग 80 प्रतिशत अभ्रक खनन किया जाता है। United States Geological Survey के अनुसार सन् 2013 में विश्व के अभ्रक उत्पादक राष्ट्रों में चीन का प्रथम स्थान, रूस का द्वितीय स्थान तथा भारत का 8वाँ स्थान रहा। पाठ्य-पुस्तक में अभ्रक उत्पादन में भारत का 80 प्रतिशत योगदान सम्बन्धी तथ्य पूर्णतया गलत है। भारत के अभ्रक उत्पादन में आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड तथा तमिलनाडु सर्वप्रमुख हैं।
1. आन्ध्र प्रदेश:
देश के अभ्रक उत्पादक राज्यों में आन्ध्र प्रदेश का प्रथम स्थान है। इस राज्य में देश के कुल अभ्रक उत्पादन का लगभग 70 से 75 प्रतिशत भाग उत्पादित किया जाता है। विशाखापट्टनम, कृष्णा, पूर्वी गोदावरी, पश्चिमी गोदावरी, खम्माम तथा अनंतपुर इस राज्य के प्रमुख अभ्रक उत्पादक जिले हैं। नेल्लोर की अभ्रक खदान अपनी उच्च गुणवत्ता के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। इस राज्य में हरे रंग का अभ्रक उत्पादित किया जाता है।
2. राजस्थान:
देश के अभ्रक उत्पादक राज्यों में राजस्थान का दूसरा स्थान है। इस राज्य में प्रतिवर्ष 12 से 18 प्रतिशत अभ्रक उत्पादित किया जाता है। भीलवाड़ा, उदयपुर, अजमेर तथा राजसमंद इस राज्य के प्रमुख अभ्रक उत्पादक जिले हैं। टोंक, अलवर, भरतपुर तथा डूंगरपुर इस राज्य के अन्य लघु अभ्रक उत्पादक जिले हैं। राजस्थान राज्य में उत्तम किस्म का हल्के हरे व गुलाबी रंग का अभ्रक उत्पादित किया जाता है।
3. झारखण्ड-बिहार:
देश के कुल अभ्रक उत्पादन में इन दोनों राज्यों का लगभग 10 से 12 प्रतिशत योगदान रहता है। हजारीबाग, गया, कोडरमा, भागलपुर, मुंगेर तथा संथाल परगना यहाँ के प्रमुख अभ्रक उत्पादक जिले हैं। यहाँ बंगाल मणिक नाम का अभ्रक निकाला जाता है जो हल्के लाल रंग वाला उत्तम किस्म का अभ्रक होता है।
4. तमिलनाडु:
इस राज्य के प्रमुख अभ्रक उत्पादक जिलों में तिरूनेलवेली, कोयम्बटूर, मदुरै तथा तिरुचिरापल्ली सम्मिलित हैं।
अन्य राज्य:
- केरल: नय्यूर, पुन्नालूर, एलैघी व क्विलोन जिले।
- उड़ीसा: ढेकनाल, सम्बलपुर, कोरापुट, कटक व गंजाम जिले।
- कर्नाटक: हासन व मैसूर जिले।
- छत्तीसगढ़: बस्तर जिला।
- पश्चिम बंगाल: बांकुरा व मिदनापुर जिले।
- हरियाणा: गुरुग्राम जिला।
उत्पादन:
विद्युत उद्योग में अभ्रक के प्रतिस्थापक के रूप में प्लास्टिक जैसे पदार्थों के बढ़ते उपयोग से विश्व स्तर पर अभ्रक की माँग में भारी कमी आई है जिसके परिणामस्वरूप भारत में अभ्रक उत्पादन में धीमी गति से वृद्धि हुई है। 2003 – 04 में भारत में 1217 टन, सन् 2007 – 08 में 1300 टन तथा सन् 2013 – 14 में 1610 टने अभ्रक उत्पादित किया गया।