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RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 नरेश मेहता

RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 नरेश मेहता

July 25, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 नरेश मेहता

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘किरण धेनुएँ’ कविता में प्रभात के ग्वाले को मार्ग कौन दिखा रहा है?
(क) कोयल
(ख) कबूतर
(ग) गधा
(घ) सारस
उत्तर:
(घ) सारस

प्रश्न 2.
‘विडम्बना’ कविता में सत्य की खोज के लिए कवि किसे भेजता है ?
(क) सम्पाती को
(ख) गरुड़ को
(ग) जटायु को
(घ) कुरजा को
उत्तर:
(क) सम्पाती को

प्रश्न 3.
‘एक बोध’ कविता में सिर पर कौन आ गया है ?
(क) कौआ
(ख) उल्लू
(ग) मिहिर
(घ) चन्द्रमा
उत्तर:
(ग) मिहिर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किरण-धेनुएँ’ कविता में खेतों-खलिहानों में क्या बरस रहा है?
उत्तर:
किरण-धेनुएँ, कविता में खेतों और खलिहानों में सूर्य के प्रकाश का दूध बरस रहा है।

प्रश्न 2.
‘किरण-धेनुएँ’ कविता में शैलों से उतरकर कौन चली आ रही हैं ?
उत्तर:
‘किरण धेनुएँ कविता में प्रात:कालीन सूर्य की किरणों को पर्वत से नीचे उतरते बताया गया है।

प्रश्न 3.
‘विडम्बना’ कविता में कवि सम्पाती को किसकी खोज में भेजता है?
उत्तर:
कवि सम्पाती को सत्य की खोज में भेजता है।।

प्रश्न 4.
‘विडम्बना’ कविता में सम्पाती को विनेत्र देखकर कवि ने सत्य को क्या कहा ?
उत्तर:
‘विडम्बना’ कविता में कवि ने सम्पाती को विनेत्र देखकर सत्य को आग्नेय कहा।

प्रश्न 5.
एक बोध कविता के अनुसार हमारे लिए अनुधावित क्या रहा है ?
उत्तर:
एक बोध’ कविता के अनुसार हमारे लिए रेत के पद चिह्न अनुधावित रहे हैं।

प्रश्न 6.
‘एक बोध’ कविता में हम आयु के अश्वत्थ को क्या स्वीकार नहीं है?
उत्तर:
एक बोध कविता में हम आयु के अश्वत्थ को अपनी छाँह भी स्वीकार नहीं है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ने सूर्य की तुलना प्रभात के ग्वाले से क्यों की है ?
उत्तर:
सबेरा होने पर ग्वाला गायों को हाँककर लाता है। प्रात:काल सूर्य के उदय होने पर उसकी किरणें आगे फैलती हैं। वे किरणे गायों के समान हैं। गायों के पीछे ग्वाला चल रहा है। सूर्य भी अपनी किरणों के पीछे है।

प्रश्न 2.
किरण धेनुओं के लिए स्वर्ण-सींग चमकाकर शैल से उतरने की बात कवि क्यों कहता है ?
उत्तर:
पर्वत पर प्रात:काल सूर्योदय हो रहा है। पहले किरणे पर्वत प्रदेश पर फैलती हैं। फिर धीरे-धीरे नीचे उतरकर जंगलों और धरती पर फैलती हैं। ये किरणें सुनहरी हैं। किरणों को गाय तथा सुनहरेपन को उनके सींग माना गया है।

प्रश्न 3.
‘विडम्बना’ कविता में सत्य को अप्राप्य क्यों कहा गया है?
उत्तर:
सम्पाती इधर-उधर आसमानों में भटककर लौट आया तो कवि ने कहा कि सत्य अप्राप्य है। सत्य की खोज भ्रम और गलत तर्कों के आधार पर करने से सफलता नहीं मिलती। यथार्थपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने के कारण सत्य का साक्षात्कार नहीं हो पाता है और मनुष्य उसको अप्राप्य मान लेता है।

प्रश्न 4.
लोगों द्वारा सम्पाती को ऋषि न बताकर कवि को ऋषि क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
कवि ने सम्पाती की सत्य के खोज में भेजा। वह इधर-उधर भटकता फिरा, फिर लौट आया तो कवि ने सत्य को अप्राप्य कहा। सत्य की खोज का प्रयास अथवा सत्य के साक्षात्कार हेतु तप सम्पाती ने किया था किन्तु ऋषि की संज्ञा कवि को प्राप्त हुई। सूर्य को आग्नेय, तेजस तथा अप्राप्य बताने वाला सम्पाती नहीं कवि है। इससे प्रकट होता है कि सम्पाती नहीं कवि ही सत्य से साक्षात्कार करने में सफल हुआ है। उसकी उस उपलब्धि के कारण लोगों ने उसको ऋषि कहा है।

प्रश्न 5.
एक बोध’ कविता में कवि का प्रव्रजावसित क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
‘प्रव्रजावसित’ देश अथवा स्थान छोड़कर जाने तथा विदेश में बसने वाले को प्रव्रजावसित कहते हैं। कवि अपने जन्म के पुराने समय और संस्कारों से मुक्त होकर नवीन मशीनी युग से जुड़ने जा रहा है। उसका उस बीते हुए समय से यदि कोई सम्बन्ध है तो वह इतना ही है कि कभी वह उससे जुड़ा था और अब उसे छोड़ चुका है। अब वह प्रव्रजावसित है।

प्रश्न 6.
कवि को भाल पर संकोच और कण्ठ में विवशताएँ क्यों दिखाई देती हैं ?
उत्तर:
समय आगे बढ़ रहा है। विगत पीछे छूट रहा है। कवि के अन्तर्मन में जो संस्कार हैं, वे विगत से ही प्रभावित और प्रेरित हैं। उनको त्यागकर अनागत को स्वीकार करना कवि की विवशता है। उसको पुरातन को त्यागकर नवीन को ग्रहण करने में संकोच है। यह अन्तर्द्वन्द्व इतना विकट है कि वह न कुछ सोच सकता है और न कह सकता है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नरेश मेहता प्रकृति के अनुपम चितेरे हैं। पाठ्य-पुस्तक में दी गई इनकी कविताओं के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नरेश मेहता प्रयोगवाद के कवि हैं। द्वितीय तार सप्तक में उनकी कविताएँ प्रकाशित हुई थीं। बाद में वह ‘नयी कविता आन्दोलन से जुड़े तथा उसके प्रमुख कवियों में से हैं। नरेश मेहता प्रकृति के अनुपम चितेरे हैं। उनकी कविताओं में प्राकृतिक सौन्दर्य का भव्य चित्रण मिलता है। नरेश मेहता का प्रकृति-चित्रण छायावादी कल्पना लोक की उड़ान नहीं है। वह यथार्थ से जुड़ा है। कवि ने उसको कल्पनालोक से निकालकर लोगों के सामान्य जीवन से जोड़ा है। उनके प्रकृति-चित्रण में अलौकिकता न होकर जन-जीवन की यथार्थ छवि झलकती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कवि ने नवीन बिम्ब विधानों, उपमानों आदि को अपनी कविता में प्रयुक्त किया है। कवि पाठकों को कल्पना के स्वप्नलोक में भटकाने के बजाय वास्तविकता की दुनिया में ले जाना चाहता है।

किरण धेनुएँ कविता में मेहता जी ने प्रात:काल के मनोरम प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है। इसमें कवि ने परम्परागत प्रकृति-चित्रण से हटकर सूर्योदय की सुषमा का चित्रण किया है। प्रात:कालीन सूर्य की किरणें गायों की, सूर्य ग्वाले का तथा आकाश में छाए छोटे-छोटे सफेद बादल गायों के मुँह से गिरते झागों के प्रतीक हैं। गाय, ग्वाला तथा झाग, तीनों ही यथार्थ जीवन से सम्बन्धित उपमान हैं। इसी प्रकार क्षितिज को जंगलों, अंधकार को चारा, सूर्य को गायों का रखवाला, धरती को ग्वालिन, प्रकाश को दूध आदि के रूप प्रस्तुत किया गया है। इस बिम्ब विधान के द्वारा कवि ने प्राकृतिक सौन्दर्य को मानवजगत के साथ जोड़ दिया है। कवि ने प्रकृति-चित्रण के लिए जो भाषा प्रयुक्त की है, उसमें जन-जीवन में प्रचलित शब्दों का स्वीकार किया गया है, जो चित्रण को सजीवता प्रदान करने में सहायक हैं। कवि ने रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा तथा मानवीकरण अलंकारों को अपने काव्य में स्थान दिया है।

प्रश्न 2.
विडम्बना’ कविता में छिपे व्यंग्य को कविता में दिए गए उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘विडम्बना’ शीर्षक कविता में कवि ने मानव मस्तिष्क की तर्कपूर्ण तथा वस्तुनिष्ठ विश्लेषण किया है। मनुष्य सत्यान्वेषी है। किन्तु उसका यह अन्वेषण यथार्थ तथ्यों पर आधारित न होकर भ्रमों से जकड़ा हुआ है। वह भ्रम के साथ रहते हुए गलत तर्को के द्वारा सत्य की तलाश में निकलता है। उसका सम्पाती विभिन्न आसमानों में भटककर, झुलसकर और विनेत्र होकर लौट आता है।

सत्य की शोध में
मैंने उस दिन अपने सम्पाती को भेजा
सूर्य ओर और
वह न जाने किन आकाशों से
टूट कर लौट आया।

कवि सम्पाती को विनेत्र देखकर सूर्य को आग्नेय, झुलसा देखकर तेजस तथा लौटा हुआ देखकर अप्राप्य कहता है। सत्य की खोज में निकला सम्पाती नहीं कवि को ऋषि का गौरव प्राप्त होता है।

लोगों ने तपस्वी सम्पाती को नहीं
मुझे ऋषि कहा।

कवि ने सत्य के दर्शन हेतु प्रयासरत लोगों की भ्रमूपर्ण और कुतर्कमयी चिन्तन पद्धति पर व्यंग्य किया है। सत्यान्वेषण का उनका मार्ग ठीक नहीं है। ‘तपस्वी सम्पाती’ के बजाय ‘कवि’ को ऋषि कहना भी लोगों की भ्रमात्मक मनोदशा पर करारा व्यंग्य है।

प्रश्न 3.
एक बोध’ कविता के अनुसार हमारी स्थिति कैसी है ? और क्यों ?
उत्तर:
‘एक बोध’ कविता में कवि ने समय में होने वाले परिवर्तन के कारण अतीत तथा अनागत के बीच में द्वन्द्वग्रस्त मानव-मन का चित्रण किया है। हमारे मनोभाव तथा मन:स्थिति उस युग की उपज होती है, जिसमें हम जन्म लेते हैं तथा जिससे गुजरते हैं। आयु बढ़ने के साथ समय में भी परिवर्तन होता है। पुरातन परम्पराओं से जुड़ा समय नवीन वैज्ञानिक विचारों वाले समय में बदल जाता है। हमारे पुराने समय से सम्बन्धित विचार और संस्कार हमको उससे बँधे रहने को कहते हैं। हम उसकी ओर देखते हैं और मुग्ध होते हैं। दूसरी ओर नवयुग का आकर्षण भी हमको खींचते हैं। हम उससे खिंचकर उससे जुड़ना चाहते हैं। इससे हमारे मन में द्वन्द्व की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। हम सोचते हैं कि पीछे कुछ छूट गया है तथा बहुत कुछ टूट-फूट गया है।
भाल पर संकोच रेखा ।
विवशताएँ कण्ठ में ।
अनागत यात्री सम्मुख तवे-सी जल रही।

हमारी यह स्थिति अनिर्णय के कारण होती है। कवि चाहता है कि हम इससे मुक्त होकर आधुनिकता को स्वीकार करें।

प्रश्न 4.
पाठ में आए निम्निलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) स्मरण वैशाखी…… हम प्रव्रजावसित हैं।
(ख) गिरता जाता फेन ……. वंशी रखवाला।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्याओं के लिए ‘पद्यांशों की सन्दर्भ सहित व्याख्याएँ’ शीर्षक का अवलोकन करें।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
किरण धेनुएँ में अलंकार है|
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) अनुप्रास
उत्तर:
(ख) रूपक

प्रश्न 2.
नरेश मेहता हिन्दी काव्य की किस धारा के कवि हैं ?
(क) छायावाद
(ख) प्रगतिवाद
(ग) प्रयोगवाद
(घ) प्रगतिवाद
उत्तर:
(ग) प्रयोगवाद

प्रश्न 3.
किरन धेनुओं का चारा क्या है ?
(क) अंधकार
(ख) दूब
(ग) खेतों में उगी फसलें
(घ) जंगलों के पेड़
उत्तर:
(क) अंधकार

प्रश्न 4.
पृथ्वी किसके समान लग रही है ?
(क) सरिता
(ख) पर्वत
(ग) सारस :
(घ) ग्वालिन
उत्तर:
(घ) ग्वालिन

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“उदयाचल’ किसको कहा गया है?
उत्तर:
पूर्व दिशा, जहाँ सूर्य उदय होता है, को उदयाचल कहा गया हैं।

प्रश्न 2.
ग्वालिन-सी ले दूब मधुर’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
‘ग्वालिन-सी ले दूब मधुर’ में उपमा अलंकार है।

प्रश्न 3.
सारस क्या कर रहे हैं?
उत्तर:
सारस प्रात:कालीन सूर्य की किरणों को अपनी बोली सुनाकर पृथ्वी का मार्ग दिखा रहे हैं।

प्रश्न 4.
‘बरस रहा आलोक-दूध है खेतों, खलिहानों में’ कहने का क्या आशय है?
उत्तर:
खेतों तथा खलिहानों में सबेरे की धूप पड़ रही है।

प्रश्न 5.
“हाँक ला रहा वह प्रभात का ग्वाला’-में प्रभात का ग्वाला कौन है तथा किसको हाँक कर ला रहा है?
उत्तर:
प्रभात का ग्वाला सूर्य है। वह किरणों को धरती की ओर ला रहा है।

प्रश्न 6.
‘गिरता जाता फेन मुखों से नभ में बादल बन तिरता’ में कैसा बिम्ब है ?
उत्तर:
इसमें आकाश के बादलों को गायों के मुख से गिरा हुआ फेन बताने से चलित बिम्ब है।

प्रश्न 7.
‘वसुधा हँस-हँस कर गले मिली’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
इस पंक्ति में मानवीकरण तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

प्रश्न 8.
‘सत्य तेजस है’ -कवि को ऐसा क्यों लगा?
उत्तर:
सम्पाती को झुलसा हुआ देखकर कवि को लगा कि सत्य तेजस है।

प्रश्न 9.
सम्पाती कौन है ?
उत्तर:
सम्पाती एक कल्पित पक्षी है। पौराणिक मतानुसार वह गरुड़ की पुत्रे तथा जटायु का भाई है।

प्रश्न 10.
रेत के पद चिह्नों को अनुधावित क्यों कहा है ?
उत्तर:
रेत पर चलने वाले के पैरों के निशान उसके पीछे बन जाते हैं।

प्रश्न 11.
“हम असंगी/स्मरण-वैसाखी के सहारे चल रहे’, में कवि क्या कहना चाहता है। ?
उत्तर:
समय गुजरने पर बचपन के साथी छूट जाते हैं तथा मनुष्य पुरानी बातों को केवल याद कर सकता है।

प्रश्न 2.
एक बोध’ कविता का वण्र्य विषय क्या है ?
उत्तर:
‘एक बोध कविता’ को वर्त्य विषय आधुनिकता और प्राचीन संस्कारों के बीच अनिर्णय की स्थिति है।

प्रश्न 13.
कवि ने विडम्बना किसको कहा है ?
उत्तर:
यथार्थ दृष्टि को अभाव तथा भ्रमपूर्ण तर्कों के आधार पर सत्य का मूल्यांकन करने को कवि ने विडम्बना कहा है।

प्रश्न 14.
किरण धेनुएँ कविता में ‘मतवाला अहीर’ किसको कहा गया है ?
उत्तर:
किरण-धेनुएँ कविता में सूर्य को मतवाला अहीर कहा गया है।

प्रश्न 15.
‘स्मरण-बैसाखी सहारे चल रहे’ कहने का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि अपने अतीत से कह चुका है, उससे उसका जुड़ाव पुरानी घटनाओं को स्मरण करने से ही है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उदयाचल की किरण-धेनुएँ हाँक ला रहा वह प्रभाते को ग्वाला’ – के विम्ब विधान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘किरण धेनुएँ, कविता में सुन्दर बिम्ब रचना द्वारा प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य को प्रस्तुत किया गया है। सबेरे के समय पूर्व दिशा में सूर्योदय हो रहा है तथा उसकी किरणें पृथ्वी पर खेतों-खलिहानों में पड़ रही हैं। कवि ने उसमें किरणों को गायों तथा सूर्य को ग्वाले के रूप में प्रस्तुत किया है। ग्वाला पूर्व दिशा से गायों के पीछे चलकर उनको हाँक कर ला रहा है। गायों के पीछे ग्वाले के होने की बिम्ब रचना सुन्दर है तथा इसमें चलित बिम्ब है।

प्रश्न 2.
‘सारस सुना-सुनी बोली’ पंक्ति में अलंकार निर्देश कीजिए।
उत्तर:
‘सारस सुना-सुनी बोली’ पंक्ति में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति हुई है। इसमें अनुप्रास अलंकार है। इस पंक्ति में ‘सुना-सुना’ में सुना शब्द के पुनः आने से पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। इसमें प्रात:काल खेतों में उपस्थित तथा बोलते सारस पक्षियों का चित्रण है।

प्रश्न 3.
‘किरण धेनुएँ कविता के आधार पर प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य को वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘किरण धेनुएँ कविता में सुन्दर बिम्बों द्वारा प्रात:काल की सुन्दर प्रकृति का वर्णन कवि ने किया है। पूर्व दिशा में सूर्योदय हो रहा है। किरणें धरती पर फैल रही हैं, सारस बोल रहे हैं, धूप खेतों-खलिहानों तथा नदियों पर फैल रही है। इस सुन्दर दृश्य को कवि ने उदयाचल से गायों को हाँक कर लाते ग्वाले के रूप के द्वारा प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 4.
‘नभ की आम्र छाँह में बैठा बजा रहा बंशी रखवाला’ -पंक्ति के आधार पर बताइए कि वंशी कौन तथा कहाँ बजा रहा है ?
उत्तर:
सूर्य गायों को रखवाला ग्वाला है। आकाश में सूर्य चढ़ आया है। कवि को वह आम के पेड़ की छाया में बैठकर बाँसुरी बजाने वाले ग्वाले के समान लग रहा है। इसमें सूर्य के ऊपर चढ़ने तथा धूप के चारों ओर फैल जाने के दृश्य का चित्रण हुआ है।

प्रश्न 5.
ग्वालिन सी ले दूब मधुर/वसुधा हँस-हँसकर गले मिली-पंक्तियों में अलंकार निर्देश कीजिए।
उत्तर:
सूर्य की किरणें धरती पर पड़कर उसे प्रसन्न कर रही हैं। वह ग्वालिन के समान हाथों में दूब-घास लेकर किरण धेनुओं को खिला रही है तथा उनके गले मिल रही है। इस पंक्ति में ग्वालिन-सी में उपमा अलंकार है। वसुधा को संजीव मानवी के रूप में प्रस्तुत करने के कारण मानवीकरण अलंकार है। हँस-हँस’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार भी है। सम्पूर्ण पंक्ति में सांगरूपक अलंकार है।

प्रश्न 6.
‘किरण-धेनुएँ’ कविता को प्रकृति-चित्रण परम्परागत चित्रण से किस तरह भिन्न है ?
उत्तर:
प्रकृति-चित्रण कवियों का प्रिय विषय है। हिन्दी साहित्य में प्रकृति के काल्पनिक सुन्दर चित्र मिलते हैं। किरण धेनुएँ । कविता में नरेश मेहता ने प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण किया है। इसमें छायावादी कवियों की परम्परागत कोमल कल्पना नहीं है। कवि ने उसको सामाजिक सन्दर्भ प्रदान किया है तथा मानव जीवन के यथार्थ से जोड़ा है। इसमें सूर्य की किरणें गायों तथा सूर्य ग्वाले का प्रतीक है।

प्रश्न 7.
कवि ने आग्नेय, तेजस तथा अप्राप्य किसको कहा है तथा क्यों ? ‘विडम्बना’ कविता के आधार पर बताइए।
उत्तर:
विडम्बना कविता में कवि ने सत्य को आग्नेय, तेजस तथा अप्राप्य कहा है। इसमें सूर्य प्रखर सत्य का प्रतीक है। सत्यान्वेषी का प्रतीक सम्पाती सूर्य की ओर जाता है और भटककर लौटता है। उसको विनेत्र, झुलसा हुआ तथा असफल देखकर कवि सूर्य को अग्निवत् तेजस्वी तथा पहुँच से दूर घोषित कर रहा है। कवि कहना चाहता है कि सत्य को अवैज्ञानिक तथा भ्रमपूर्ण चिन्तन से नहीं पाया जा सकता है।

प्रश्न 8.
सत्य को जानने में क्या बाधाएँ हैं ? विडम्बना कविता के अनुसार उत्तर दीजिए।
उत्तर:
सत्य जानने में अनेक बाधाएँ हैं। हमारा दृष्टिकोण यथार्थ से परे तथा अवैज्ञानिक है। हम भ्रमपूर्ण विचारों से जकड़े हैं। हम कुतर्को का सहारा लेकर सत्य तक पहुँचना चाहते हैं। सत्य की प्राप्ति के लिए हमें इनसे बचना होगा तथा अपने विचारों को यथार्थ तथा वैज्ञानिक तथ्यों से जोड़ना होगा।

प्रश्न 9.
अब मिहिर सिर आ गया। तपने लगी यह रेत-प्रतीकार्थ लिखिए।
उत्तर:
सूर्य सिर पर आ गया है, सूर्य की किरणें गरम होने लगी हैं। रास्ते की रेत अब तपने लगी है। मनुष्य अपने जन्म के पुराने समय को छोड़कर आगे बढ़ आया है। इस नवीन मशीनी युग से उसके पुरातन संस्कार मेल नहीं खाते। उसको नये समय के साथ तादात्म्य स्थापित करने में कठिनाई होती है।

प्रश्न 10.
जिनके कुन्तलों की छाँह में हुआ सूर्योदय हमारा-सूर्योदय का अर्थ क्या है?
उत्तर:
‘सूर्योदय’ शब्द प्रतीकात्मक है। इसमें उस समय की ओर संकेत है जब मनुष्य इस संसार में जन्म लेता है। मनुष्य के संस्कार उसी समय की उपज होते हैं। उसका प्रभाव मनुष्य के जीवन पर सदा रहता है। किन्तु समय परिवर्तनशील है। बदले समय के साथ मनुष्य स्वयं को अजनवी-सा महसूस करता है।

प्रश्न 11.
‘अनागत यात्रा, सम्मुख तवे-सी जल रही’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पुरातन समय पीछे छूट गया है तथा मनुष्य भावी युग की ओर बढ़ रहा है। उसके संस्कार उसके जन्म के समय के तथा पुराने ही हैं। नए मशीनी युग के साथ तादात्म्य के अभाव से मनुष्य पीड़ित होता है। अनागत अर्थात् नए युग की ओर जाना उसकी विवशता है। किन्तु यह अत्यन्त पीड़ादायक है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 12 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नरेश मेहता के काव्य की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
नरेश मेहता आधुनिक काव्य की प्रयोगवादी धारा के कवि हैं। आपको दूसरे ‘तार सप्तक’ में स्थान प्राप्त हो चुका है। इसके बाद आपने ‘नयी कविता’ में भी स्थान बनाया है, दूसरे सप्तक में संकलित उस आदि तथा अन्य स्थानों पर प्रकाशित तीर्थजल, तृष, मेष में मेघ, मिथुन आदि कविताओं से उनका नयी कविता का कवि होना सिद्ध होता है। समय देवता में पृथ्वी तथा मानवता के प्रति कवि को प्रेम और उज्ज्वल भविष्य के प्रति विश्वास का भाव व्यक्त हुआ है। उनके प्रणय काव्य में सहज स्वच्छ प्रेम की व्यंजना मिलती है।

नरेश मेहता की काव्य-रचना आरम्भ में वैयक्तिकता प्रधान है। किन्तु बाद में उसमें समाज सापेक्षता आ गई है। कला और कल्पना प्रधान कवियों में अलग विशिष्ट स्थान है। नरेश मेहता का कवित्व किसी विशेष मत से नहीं जुड़ा है। अत: उसमें संकीर्णता नहीं है। उनकी कवितायें आधुनिक होते हुए भी आधुनिकता का ढिंढोरा नहीं पीट रही हैं। नरेश मेहता के काव्य में सरलता और सरसता है। बिम्ब सरल और सीधे तथा प्रभावशाली हैं। आपकी कविताओं में मानवीकरण, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक आदि अलंकारों की छटा दर्शनीय है। आपकी भाषा संस्कृतनिष्ठ तथा साहित्यिक है। किरण-धेनुएँ कविता का एक बिम्ब दर्शनीय है

उदयाचल से किरन धेनुएँ
हाँक ला रहा।
वह प्रभात को ग्वाला
पूँछ उठाये चली आ रही।
क्षितिज जंगलों से टोली।

प्रश्न 2.
‘विडम्बना’ कविता में कवि ने किस बात को विडम्बना कहा है ?
उत्तर:
विडम्बना’ कविता एक व्यंग्य प्रधान रचना है। इसमें कवि कहता है कि उसने सम्पाती को सूर्य की ओर भेजा, वह भटककर लौट आया। कवि ने उसके विनेत्र देखकर सत्य को आग्नेय, झुलसा देखकर तेजस् तथा वापस आया देखकर अप्राप्य घोषित कर दिया। सम्पाती के बजाय कवि को ऋषि संज्ञा प्राप्त हुई। विडम्बना कविता में सूर्य को सत्य तथा सम्पाती सत्य के अन्वेषक का प्रतीक है। कवि सम्पाती के माध्यम से बताना चाहती है। कि यथार्थ तथा वैज्ञानिक दृष्टि को अपनाकर ही हम सत्य को पा सकते हैं। यदि हम भ्रम की स्थिति में रहकर गलत तर्कों का सहारा लेकर सत्य को खोजने का प्रयास करेंगे तो हमको सफलता नहीं मिलेगी। यथार्थ से दूर काल्पनिक और अवैज्ञानिक चिन्तन तथा कुतर्क एवं भ्रम हमको सत्य तक पहुँचने ही नहीं देंगे। हमारा प्रयत्न सफल न होगा और न मानवता के हितों में होगा। यह बड़ी विडम्बना है कि हम उस पर ध्यान नहीं देते और यथार्थ से दूर रहकर अवैज्ञानिक दृष्टि और भ्रमपूर्ण कुतर्को का सहारा लेकर ही सत्य का अन्वेषण करना चाहते हैं। विडम्बना यह है कि हम गलत मार्ग पर चलते हैं, गलत अपनाते हैं और सत्य के साक्षात्कार में असफल रहकर भी उसी पथ पर चलते रहते हैं।

प्रश्न 3.
‘किरण-धेनुएँ’ कविता के प्रतिपाद्य पर टिप्प्णी लिखिए।
उत्तर:
‘किरण- धेनुएँ नरेश मेहता की प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य को व्यंजित करने वाली कविता है। इस कविता में कवि ने परम्परागत प्रकृति-चित्रण से हटकर और छायावादी कल्पना से दूर रहकर प्रकृति को मानवता के सामाजिक सरोकारों से जोड़ा है। इसमें सामान्य जन-जीवन का यथार्थ चित्रण है। ‘किरण धेनुएँ में प्रात:काल होने वाले सूर्योदय तथा उसकी किरणों के धरती पर, खेत-खलिहानों पर फैलने का चित्रण है। इस कविता में सूर्योदय के प्रात:कालीन सौन्दर्य में किरणें गायों की प्रतीक हैं। कवि ने सूर्य को ग्वाला कहा है। आकाश में जो बादलों के छोटे-छोटे टुकड़े इधर-उधर बिखरे हैं। उनको कवि ने गायों के मुख से गिरने वाले सफेद झाग बताया है। इन प्रतीकों से बना बिम्ब विधान अत्यन्त आकर्षक तथा मनोरमा है। किरणरूपी गायों की टोली पूँछ उठाए आकाश रूपी जंगलों से चली आ रही है।

किरण-गायें अन्धकार का चारी चर रही हैं। आकाश में स्थित सूर्य आम की छाया में बैठे बाँसुरी बजाते रखवाले की तरह है। किरणें धरती पर पड़ रही हैं। खेतों पर सूर्य की धूप बिखरी है। किरणें नदियों के जल में भी गिर रही हैं। कवि ने प्रात:कालीन प्रकृति सौन्दर्य का सुन्दर चित्र अंकित किया है। प्रात:काल की प्रकृति का चित्रण ही इस कविता का प्रतिपाद्य है।

प्रश्न 4.
किरण-धेनुएँ कविता की विशेषताओं पर विचार कीजिए।
उत्तर:
‘किरण धेनुएँ’ नरेश मेहता की प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य को व्यंजित करने वाली कविता है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. किरण-धेनुएँ कविता में प्रकृति की प्रात:कालीन मनोहरता का वर्णन है। कवि ने उसको परम्परागत चित्रण से दूर रखा है। उसमें छायावादी कल्पना प्रधान कोमलता नहीं है। इसका प्रकृति चित्रण मानव जीवन के यथार्थ से जुड़ा है तथा सामाजिक सरोकारों से सम्बन्धित है।
  2. कवि ने अपनी बात कहने के लिए सुन्दर बिम्ब योजना की सृष्टि की है। प्रात:कालीन सूर्य किरणें गायों तथा सूर्य ग्वाले का प्रतीक है। सूर्यरूपी ग्वाला अपनी किरणोंरूपी गायों को हाँककर ला रहा है। कुशल बिम्ब योजना ने कविता के सौन्दर्य में अपूर्व वृद्धि की है। इसमें चलित अथवा गतिशील बिम्ब है।
  3. कवि की भाषा संस्कृतनिष्ठ तथा साहित्यिक है। किन्तु उसमें दुरूहता नहीं है। वह बोधगम्य है तथा भावों की अभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. कवि ने प्रात:कालीन दृश्य के चित्रण में रूपक का सहारा लिया है। इस कविता में रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास, मानवीकरण इत्यादि अलंकारों का यथास्थान सुन्दर प्रयोग हुआ है।
  5. प्रात:काल के सौन्दर्य का चित्रण सजीव है। वह एक जीवन्त चित्र जैसा है। सूर्योदय होना, किरणों को धीरे-धीरे धरती पर फैलना, नदियों के जल पर गिरना, अंधकार मिटना तथा बाद में सूर्य के आसमान में ऊपर चढ़ जाने का चित्रण अत्यन्त भव्य है।

कवि – परिचय :

जीवन परिचय – नरेश मेहता का जन्म मध्य प्रदेश के शाजापुर में 15 फरवरी, सन् 1922 को हुआ था। इनके पिता गुजराती ब्राह्मण थे। इनकी शिक्षा माधव कॉलेज उज्जैन में हुई। इसके पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए आपने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया तथा वहाँ से हिन्दी विषय में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1942 में आप भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय हो गए। आप छात्र आन्दोलन से जुड़े रहे तथा भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और भारतीय साम्यवादी दल में पन्द्रह वर्ष तक जुड़े रहे। आप आकाशवाणी के अधिकारी पद पर भी रहे और इलाहाबाद में रहने लगे। सन् 2000 में आपका निधन हो गया।

साहित्यिक परिचय – नरेश मेहता अज्ञेय के सम्पादन में प्रकाशित ‘तार सप्तक’ के कवि हैं। बाद में आपने नई कविता को अपना लिया। आपकी प्रारम्भिक कविताओं में वैयक्तिकता है किन्तु बाद में आपने सामाजिक सरोकार सम्बन्धी रचनायें की हैं। आपकी कविताओं में सरलता, सरसता, बिम्ब-विधान, संस्कृतनिष्ठ भाषा तथा मानवीकरण, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का सौन्दर्य दिखाई देता है। इनके काव्य में मतवादी संकीर्णता नहीं है। रागात्मकता, संवेदना, उदात्तता, सर्जना के मूल तत्वों को प्रयोग आपकी कविताओं की प्रमुख विशेषताएँ हैं। पद्य के साथ आपने महत्वपूर्ण गद्य साहित्य भी रचा है।

इंदौर से प्रकाशित ‘चौथा संसार’ नामक दैनिक के आप सम्पादक रह चुके हैं। आपको सन् 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 1992 में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
कृतियाँ – नरेश मेहता की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं।
पद्य – बनपाखी सुनो, बोलने दो चीड़ को, मेरा समर्पित एकांत, उत्सवा, तुम मेरा मौन हो, संशय की एक रात, महा प्रस्थान, शबरी इत्यादि।
गद्य – यह पथ बंधु था, धूमकेतु एक श्रुति, नदी यशस्वी है, दो एकांत, प्रथम फाल्गुन, डूबते मस्तूल, उत्तर कथा आदि (उपन्यास)। इनके अतिरिक्त आपके दो कहानी संग्रह तथा दो एकांकी संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं।

पाठ – सारांश

किरन धेनुएँ

किरण धेनुएँ कविता में कवि ने प्रभातकालीन प्रकृति का सुन्दर चित्रण किया है। कवि ने प्राकृतिक सौन्दर्य को अलौकिकता से हटाकर यथार्थ जीवन से जोड़ा है। किरणें गायों, सूर्य, ग्वाले, गायों के मुख से निकलते झाग बादलों के प्रतीक हैं। सूर्य की किरण उदायचल से फूट रही है। सूर्यरूपी ग्वाला किरणरूपी गायों को हाँक कर ला रहा है और वे क्षितिजरूपी जंगलों से पूँछ उठाये चली आ रही हैं। सारस बोलकर उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं। अंधकाररूपी घास खाता हुआ किरण-धेनुओं का यह समूह बादल रूपी झाग मुँह से गिराता चला आ रहा है। चमकीली पृथ्वी पर उगी घास पर सूर्य की किरणें पड़ रही हैं-किरणे पर्वतों से उतरकर भूमि पर पड़ने लगी हैं। सूर्य का प्रकाश खेतों-खलिहानों में पड़ रहा है। मकई के खेतों में जैसे नवजीवन उतर आया है। दूध वाला सूर्य नदियों से अमृत दुह रहा है।

विडम्बना

‘विडम्बना’ शीर्षक कविता में कवि ने सम्पाती पक्षी को तिलस्मी पक्षी का प्रतीक माना है। उसके माध्यम से कवि कहना चाहता है सत्य को यथार्थ तथा वैज्ञानिक दृष्टि रखने से ही पाया जा सकता है। गलत तर्कों के सहारे निकाला गया निष्कर्ष भ्रम ही पैदा करेगा तथा सत्य को समझने में सहायक नहीं होगा। इस कविता में कवि ने मानव मन का तर्कपूर्ण विश्लेषण किया है।

एक बोध

‘एक बोध’ शीर्षक कविता में कवि ने समय के परिवर्तन के कारण मनुष्य के सामने उत्पन्न समस्या का चित्रण किया है। जो अपने पुरातन संस्कारों को छोड़कर आधुनिकता को अपनाने के सम्बन्ध में उत्पन्न होती है। जब मनुष्य इस आधुनिक मशीनी युग से जुड़ने का प्रयास करता है तो उसके सामने अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो जाता है। वह समझता है कि बहुत कुछ पीछे छूट गया है तथा टूट गया है।

पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ

किरन धेनुएँ

1. उदयाचल से किरन – धेनुएँ।
हाँक ला रहा
वह प्रभात का ग्वाला।
पूँछ उठाये चली आ रही
क्षितिज-जंगलों से टोली
दिखा रहे पथ इस भूमा का
सारस सुना-सुना बोली।
गिरता जाता फेन मुखों से
नभ में बादल बन तिरता
किरण-धेनुओं का समूह वह
आया अंधकार चरता।
नभ की आम्रछाँह में बैठा।
बैठा बजा रहा वंशी रखवाला।

शब्दार्थ – उदयाचल = पूर्व दिशा, वह पर्वत जहाँ सूर्य उदय होता है। किरण धेनु = किरणरूपी गायें । प्रभात का ग्वाला = सूर्य । क्षितिज = वह स्थान जहाँ धरती और आकाश मिलते प्रतीत होते हैं। भूमा = भूमि। फेन = झाग। तिरता = तैरता। छाँह = छाया। रखवाला = ग्वाला, सूर्य ।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘किरन धेनुएँ’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता नरेश मेहता हैं। कवि प्रभात की प्रकृति के सौन्दर्य का चित्रण कर रहा है। प्रात:कालीन सौन्दर्य को व्यक्त करने के लिए कवि ने प्रतीक-विधान का सहारा लिया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि प्रभात का ग्वाला अर्थात् सूर्य उदयाचल से किरणरूपी गायों को हाँक कर ला रहा है। उनकी टोली अपनी-अपनी पूँछ उठाकर क्षितिजरूपी जंगलों से आ रही है। आशय यह है कि पूर्व दिशा में सूर्य उदय हो रहा है तथा उसकी किरणे पर्वतों से उठकर जंगलों में होती हुई धरती पर पड़ रही हैं। सारस पक्षी उनको अपनी बोली सुनाकर रास्ता दिखा रहे हैं। आकाश में छाए हुए सफेद बादल गायों के मुँह से गिरते झागों (फैनों) के समान लगते हैं। किरणरूपी गायों को यह समूह अंधकार रूपी चारे को चरता हुआ आ रहा है। गायों का रक्षक अर्थात् सूर्य आकाशरूपी आम की छाया में बैठा वंशी बजा रहा है।
तात्पर्य यह है कि सूर्योदय हो रहा है। किरणें धरती पर पड़ रही हैं। आकाश में बादल छाए हैं। अन्धकार नष्ट हो गया है। सूर्य आसमान में ऊपर चढ़ आया है।

विशेष –

  1. प्रभातकालीन प्रकृति का मनोरम चित्रण है।
  2. वर्णन सजीव और चित्रोपम है।
  3. सूर्योदय के प्राकृतिक सौन्दर्य को कवि ने जन-जीवन से जोड़ा है।
  4. भाषा बोधगम्य, सरस तथा संस्कृतनिष्ठ है।
  5. मानवीकरण तथा रूपक अलंकार है।

2. ग्वालिन सी ले दूब मधुर
वसुधा हँस-हँसकर गले मिली।
चमका अपने अपने स्वर्ण-सींग वे
अब शैलों से उतर चलीं।
बरस रहा आलोक दूध है।
खेतों खलिहानों में
जीवन की नव-किरण फूटती
मकई के थानों में ।
सरिताओं में सोम दुह रहा
वह अहीर मतवाला।

शब्दार्थ – दूबे == घास। स्वर्ण-सींग = सुनहरी किरणें । शैल = पर्वत । आलोक = प्रकाश। सोम = अमृत ।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘किरन-धेनुएँ’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता नरेश मेहता हैं। आकाश में पूर्व दिशा में सूर्योदय हो रहा है। उसकी किरणें धरती पर पड़ रही हैं। ऐसा लगता है कि ग्वाला अपनी गायों को हाँक कर ला रहा है।

व्याख्या – कवि कहता है कि प्रात:कालीन सूर्य की किरणें धरती पर पड़ रही हैं। ऐसा लगता है कि जिस प्रकार ग्वालिन गायों को अपने हाथों दूब घास खिलाती है और प्रसन्न होती है, उसी प्रकार पृथ्वी इन किरणों से प्रसन्नतापूर्वक गले मिल रही है। किरणों रूपी ये गायें अपने स्वर्ण-जड़े सींगों को चमकाती हुई पर्वत के नीचे उतर रही हैं। अर्थात् चमकीली किरणें धरती पर पड़ रही हैं। खेतों और खलिहानों में गिरती ये किरणें (धूप) गायों के थन से त्यक्त दूध-सा लगा रही हैं। खेतों में उगे मकई के दानों पर सूर्य की नवीन किरणें पड़कर उनको नया जीवन दे रही हैं। सूर्य का प्रतिबिम्ब नदियों के जल में पड़कर उनमें अमृत की सृष्टि कर रहा है। वह गायों का दूध दुहाने वाले पशु पालक ग्वाले के समान लग रहा है।

विशेष –

  1. प्रात:कालीन प्रकृति का रम्य चित्रण हुआ है।
  2. सूर्य को ग्वाला (अहीर), पृथ्वी को ग्वालिन, किरणों को गाय कहा गया है।
  3. उपमा, पुनरुक्ति, रूपक, अनुप्रास तथा मानवीकरण आदि अलंकार हैं।
  4. भाषा संस्कृतनिष्ठ, चित्रात्मक तथा सरस-मधुर है। विडम्बना

3. सत्य की शोध में ।
मैंने उस दिन अपने सम्पाती को भेजा
सूर्य ओर।
और वह जाने किन आकाशों से
टूटकर लौट आया।
उसे विनेत्र देख
मैंने कहा
सत्य आग्नेय है।
उसे झुलसे देख मैंने कहा
सत्य तेजस है।
उसे लौटे देख
मैंने कहा –
सत्य अप्राप्य है।
लोगों ने तपस्वी सम्पाती को नहीं
मुझे ऋषि कहा।

शब्दार्थ – शोध = तलाश, खोजा । सम्पाती = पुराणों के अनुसार एक पक्षी जो गरुड़ का पुत्र तथा जटायु का बड़ा भाई है। विनेत्र = नेत्रहीन। आग्नेय= अग्नि जैसा। = झुलसे = जला हुआ। तेजस = तेजवान, तेजपूर्ण । अप्राप्य = जो प्राप्त न हो सके। तपस्वी = तपस्या करने वाला । ऋषि = वेदमंत्रों का दृष्टा।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘विडम्बना’ शीर्षक कविता से है। इसके रचयिता नरेश मेहता हैं। कवि ने सम्पाती के माध्यम से बताया है कि सत्य को यथार्थ दृष्टि तथा वैज्ञानिक चिन्तन द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

व्याख्या – कवि कहता है कि उसने सम्पाती नामक पक्षी को सूर्य की ओर भेजा। वह अनेक आकाशों से भटककर लौटा तो नेत्रहीन हो चुका था। कवि ने समझाया कि निष्कर्ष निकाला कि सत्य अग्नि के समान है। उसकी चमक से यह नेत्रहीन हो गया है। उसको जला हुआ देखकर कवि ने अनुमान किया सत्य तेजपूर्ण है, जिसने उसे झुलसा दिया है। उसे वापस आया देखकर कवि को भ्रम हुआ कि सत्य तक पहुँचा नहीं जा सकता, उसको पाया नहीं जा सकता। तपस्वी सम्पाती को नहीं कवि को ऋषि समझा गया।

विशेष –

  1. सत्य को यथार्थ दृष्टि से ही प्राप्त किया जा सकता है। भ्रम और कुतर्क सत्य की साधना में बाधक ही होते हैं।
  2. कभी आग्नेय, तेजस, अप्राप्य आदि मन के भ्रम के सूचक हैं और सत्यान्वेषण में बाधक हैं।
  3. भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।
  4. अनुप्रास, अपन्हुति अलंकार, मुक्त छंद है।

एक बोध

4. अब मिहिर सिर आ गया
तपने लगी यह रेत।
रह गए पीछे
जिनके कुन्तलों की छाँह में
हुआ सूर्योदये हमारा।
बहुत कुछ छूटा
और टूटा भी,
हम असंगी।
स्मरण-बैसाखी सहारे चल रहे।

शब्दार्थ – मिहिर = सूर्य, नवयुग का शोषक रूप। सूर्योदय = प्रभात, जन्म। असंगी = साथी विहीन, अकेला। स्मरण बैसाखी = यादों का सहारा।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘एक बोध’ शीर्षक कविता से लिया हुआ है। इसके रचयिता । नरेश मेहता हैं। कवि ने समय के परिवर्तन के साथ उसके साथ तादात्म्य स्थापित करने में आने वाली कठिनाइयों का चित्रण इस कविता में किया गया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि परिवर्तन समय का लक्षण है। समय बदलता है किन्तु मनुष्यं उसके अनुरूप स्वयं को बदल नहीं पाता। मनुष्य के संस्कार किसी काल विशेष से जुड़े होते हैं तथा उसके अनुरूप ही बनते हैं। जब उसका समय पीछे छूट जाता है तो समय का नया परिवर्तन स्वरूप उसको पीड़ित करने लगता है। जिन विचारों, मर्यादाओं और संस्कारों को लेकर वह पैदा हुआ था, वे पीछे छूट गए हैं। वह संगी साथी विहीन तथा अकेला है। पुरातन की स्मृति ही उसका एकमात्र सहारा है।

विशेष –

  1. कवि ने सूर्य के ऊपर चढ़ने तथा मार्ग की रेत के तपने को प्रतीक बनाकर समय के परिवर्तन के साथ होने वाली मनुष्य की कठिनाइयों का वर्णन किया है।
  2. नरेश मेहता नयी कविता के कवि हैं। उनकी यह रचना प्रवृत्ति से सम्बन्धित है।
  3. छन्दविहीन कविता है। रूपक अलंकार है।
  4. भाषा सरल तथा भावानुकूल है।

5. रेत के पदचिह्न क्या
ये ही हमारे लिए अनुधावित रहे।
इनकी मैत्री क्या!
अब हमारे और उस छूटे विगत के बीच
सम्बन्ध है तो यह कि
हम प्रव्रजावसित हैं –
ऋतु अभिषेक सिर पर झेलते।
भाल पर संकोच रेखा
विवशताएँ कण्ठ में
अनागत, यात्रा, सम्मुख तवे सी जल रही
हम आयु के अश्वत्थ
अपनी छाँह भी स्वीकार जिसको है नहीं।

शब्दार्थ – अनवाधित = पीछे दौड़ने वाले अनुयायी, पिछलग्गू। मैत्री = मित्रता । विगत = भूतकाल। प्रव्रजावासित = देश छोड़ कर अन्यत्र जा बसें । अभिषेक = तिलक। भाल = माथा । अनागत = भविष्य।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘एक बोध’ शीर्षक कविता से उधृत है। इसके रचयिता नरेश मेहता हैं। समय के बदलने के साथ मनुष्य के संगी-साथी पीछे छूट जाते हैं, वह अतीत की स्मृतियों के सहारे ही जीता है।

व्याख्या – कवि कहता है कि मनुष्य समय के जिस पथ पर आगे बढ़ जाता है, उसकी रेत पर बने उसके पैरों के निशान भी उसका साथ नहीं निभा पाते । बेस, वे तो उसके पीछे-पीछे चलते हैं। जो पीछे छूट गया है, उससे मित्रता व्यर्थ है। जो समय बीत गया है, उससे मनुष्य का यही सम्बन्ध हो सकता है कि कभी वह उसका अंग था किन्तु अब वह उसको छोड़ चुका है और नए युग में प्रवेश करना चाहता है। ऋतुओं को वह नवयुग का स्वागत करते देखने को विवश है। उससे जुड़ने में उसको एक तरह का संकोच होता है किन्तु इसे अनागत में प्रवेश करना उसकी विवशता है। यह नवयुग की यात्रा उसको गरम तवे के समान तपा रही है। नवयुग को अपनाने के फेर में पड़े मनुष्य के सामने अपने अस्तित्व को खोने का संकट उत्पन्न हो गया है।

विशेष –

  1. भाषा संस्कृत शब्दावली से सम्पन्न तथा प्रतीकात्मक है।
  2. रूपक, उपमा अलंकार, अतुकान्तयुक्त छन्द ।
  3. नयी कविता काव्यधारा की रचना है।
  4. अतीत और अनागत से अलग होने और जुड़ने के द्वन्द्व में पड़े मनुष्य का चित्रण है।

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