• Skip to main content
  • Skip to secondary menu
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • RBSE Model Papers
    • RBSE Class 12th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 10th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 8th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 5th Board Model Papers 2022
  • RBSE Books
  • RBSE Solutions for Class 10
    • RBSE Solutions for Class 10 Maths
    • RBSE Solutions for Class 10 Science
    • RBSE Solutions for Class 10 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 10 English First Flight & Footprints without Feet
    • RBSE Solutions for Class 10 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 10 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 10 Physical Education
  • RBSE Solutions for Class 9
    • RBSE Solutions for Class 9 Maths
    • RBSE Solutions for Class 9 Science
    • RBSE Solutions for Class 9 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 9 English
    • RBSE Solutions for Class 9 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 9 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 9 Physical Education
    • RBSE Solutions for Class 9 Information Technology
  • RBSE Solutions for Class 8
    • RBSE Solutions for Class 8 Maths
    • RBSE Solutions for Class 8 Science
    • RBSE Solutions for Class 8 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 8 English
    • RBSE Solutions for Class 8 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit
    • RBSE Solutions

RBSE Solutions

Rajasthan Board Textbook Solutions for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12

  • RBSE Solutions for Class 7
    • RBSE Solutions for Class 7 Maths
    • RBSE Solutions for Class 7 Science
    • RBSE Solutions for Class 7 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 7 English
    • RBSE Solutions for Class 7 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 6
    • RBSE Solutions for Class 6 Maths
    • RBSE Solutions for Class 6 Science
    • RBSE Solutions for Class 6 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 6 English
    • RBSE Solutions for Class 6 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 5
    • RBSE Solutions for Class 5 Maths
    • RBSE Solutions for Class 5 Environmental Studies
    • RBSE Solutions for Class 5 English
    • RBSE Solutions for Class 5 Hindi
  • RBSE Solutions Class 12
    • RBSE Solutions for Class 12 Maths
    • RBSE Solutions for Class 12 Physics
    • RBSE Solutions for Class 12 Chemistry
    • RBSE Solutions for Class 12 Biology
    • RBSE Solutions for Class 12 English
    • RBSE Solutions for Class 12 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit
  • RBSE Class 11

RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 जयशंकर प्रसाद

RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 जयशंकर प्रसाद

July 24, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 जयशंकर प्रसाद

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता किस काव्य संग्रह में संग्रहीत है?
(क) कानन कुसुम
(ख) लहर
(ग) झरना
(घ) चित्राधार
उत्तर:
(ख) लहर

प्रश्न 2.
कवि ने ‘पेशोला’ किसे कहा है ?
(क) अन्नासागर को
(ख) जयसमन्द को
(ग) उदयसागर झील को
(घ) पिछोला झील को
उत्तर:
(घ) पिछोला झील को

प्रश्न 3.
कविता में ‘गहन नियति-सा’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?
(क) सौभाग्य के लिए
(ख) दुर्भाग्य के लिए
(ग) डूबने के लिए
(घ) गहराई के लिए।
उत्तर:
(ख) दुर्भाग्य के लिए

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पेशोला झील कहाँ स्थित है?
उत्तर:
पेशोला झील उदयपुर में स्थित है।

प्रश्न 2.
गौरव-सी काया किसकी पड़ी है?
उत्तर:
गौरव-सी काया महाराणा प्रताप की पड़ी है।

प्रश्न 3.
साँस आशा में किसकी तरह लटकी हुई है?
उत्तर:
साँस आशा में मछली की तरह लटकी हुई है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि लोगों को मृत क्यों मान रहा है ?
उत्तर:
लोगों में स्वदेश के गौरवपूर्ण इतिहास तथा संस्कृति का पता नहीं है। वे उसको भूल चुके हैं। देश के अतीतकालीन गौरव पर वे गर्व अनुभव नहीं करते, न उससे कोई प्रेरणा ही ग्रहण करते हैं। कवि ऐसे लोगों को मृत मान रहा है।

प्रश्न 2.
कवि दुर्बलताओं की कसौटी किसे मानता है ?
उत्तर:
कवि ‘प्रलयोल्का खण्ड’ को दुर्बलताओं की कसौटी मानता है। जिस कसौटी पर कसकर सोने की शुद्धता प्रमाणित होती है, उसी प्रकार मनुष्य की दुर्बलताओं की परीक्षा जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों में होती है। यदि मनुष्य भीषण संकट के क्षणों में भी अडिग रहती है तो माना जाता है कि वह दुर्बल नहीं है।

प्रश्न 3.
पेशोला की झील में बने महलों के प्रतिबिम्ब विषद के शिल्प बने हुए क्यों लगते हैं?
उत्तर:
उदयपुर की पेशोला झील में महाराणाओं के महलों की परछाईं पड़ रही है। उन महलों को प्रतिबिम्ब इस झील के जेल में बन रहा है। कभी इन महलों में जीवन की चहल-पहल थी किन्तु आज वहाँ पूर्ण शांति है। ऐसा लगता है कि प्राचीन शिल्पकला के नमूने ये महल अपने पुराने ऐश्वर्य को स्मरण कर विषाद में गहरे डूबे हुए हैं।

प्रश्न 4.
‘दुन्दुभि-मृदंग-तूर्य शान्त-सब मौन हैं।
फिर भी पुकार-सी है। पूँज रही व्योम में’- उक्त पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
झील के जल में महलों का प्रतिबिम्ब बन रहा है, उनमें कभी जीवन की जगमगाहट थी। वहाँ संगीत की स्वर लहरी पूँजती थी। नगाड़ों, मृदंग तथा तुरही की मधुर ध्वनियाँ वहाँ के वातावरण में तैरती थीं। अब अतीत का वह वैभवपूर्ण वातावरण नहीं है। ये महल उसकी दु:खद याद में डूबे हैं फिर भी उनमें से उठकर एक पुकार आकाश में गूंजती है कि क्या कोई वीर और साहसी उस प्राचीन गौरव को पुन: स्थापित करेगा।

प्रश्न 5.
खेवा की पतवार कौन खींच रहा है और कहाँ ले जा रहा है?
उत्तर:
खेवा की पतवार काल – रूपी धीवर ने थाम ली है। समय का मल्लाह महाराणाओं के प्राचीन ऐश्वर्य और गौरव की नौको को खे रहा है। वह इसको गहरे अन्धकाररूपी दुर्भाग्य के सागर में खींचकर ले जा रहा है। इस नौका के चारों ओर दुर्भाग्य जैसा अनन्त सागर उमड़ रहा है। जिसमें प्रकाश की कोई किरण भी नहीं है। इन महाराणाओं के अतीतकालीन गौरव के पुनरुद्धार की कोई आशा नहीं है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता का मूलभाव लिखिए।
उत्तर:
उदयपुर स्थित पिछोला झील के किनारे पर महाराणाओं के महल बने हुए हैं। उनका प्रतिबिम्ब इस झील की विशाल जलराशि में बन रहा है। ये महल महाराणाओं के प्राचीन ऐश्वर्य और गौरव के स्मारक हैं। ये महल याद दिलाते हैं कि कभी देश में वैभव और गरिमा की बाढ़ आई हुई थी। ये महल तथा झील के जल में बनी हुई उनकी छाया लोगों से कह रही है कि वे अपने अतीत को भूल गए हैं। महलों की ये छायाएँ स्वदेशवासियों को विस्मृति की निद्रा से जगाकर उनसे स्वदेश के गौरवपूर्ण इतिहास को पुनः पढ़ने का आग्रह कर रही हैं। इस जल में बने प्रतिबिम्बों से एक पुकार उठ रही है। जो देशवासियों को जगाने और अपने अतीत के गौरव को पुनः स्थापित करने का आह्वान कर रही है। कवि ने इन महलों की परछाईं के माध्यम से देशवासियों का पुन: जागरण का संदेश दिया है। स्वदेश की भूतकालीन गरिमा को पुनः स्थापित करना जरूरी है। यह कार्य किसी को तो करना ही होगा। किसी-न-किसी को भी आगे बढ़कर कहना होगा- हाँ वह व्यक्ति मैं ही हूँ? मैं इस कार्य को अवश्य करूंगा।

प्रश्न 2.
पठित कविता के आधार पर प्रसाद के काव्य और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ प्रसाद जी की एक प्रबन्धात्मक कविता है। जयशंकर प्रसाद हिन्दी के छायावादी कवियों में प्रमुख हैं। आप सौन्दर्य और प्रेम के कवि हैं। उनके काव्य में छायावाद की सौन्दर्यानुभूति तथा भावुकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल पक्षों तथा इतिहास के गौरवशाली पलों को चमकीला रंग भी मिलता है। पेशोला की प्रतिध्वनि में कवि ने उदयपुर की पिछेला झील के तट पर बने महाराणाओं के महलों तथा झील में पड़ने वाली उनकी छाया के माध्यम से भारत के अतीत के गौरव का परिचय दिया है तथा उसके पुनरुद्धार तथा पुनस्र्थापना की प्रेरणा दी है। कवि कहना चाहता है कि इस अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त करना होगा और किसी-न-किसी भारतीय को आगे आकर यह दायित्व उठाना ही होगा। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रसाद का काव्य सौन्दर्य चेतना तथा प्रेम के साथ देशप्रेम तथा राष्ट्रीय भावनाओं का भी काव्य है। प्रसाद का व्यक्तित्व धीर-गम्भीर और विचारशील व्यक्ति का है। प्रसाद को अपने जीवन-काल में निरन्तर संघर्षशील रहना पड़ा।

व्यक्तिगत जीवन की अनेक दु:खद घटनाओं ने उनके तन को रुग्ण किन्तु मन को सबल बना दिया। प्रसाद प्रतिभाशाली थे। वह कुशल साहित्यकार थे, वह स्वभाव से विनम्र थे। अपने समय के ख्याति प्राप्त लोगों तथा साहित्यकारों से मित्रता थी। वह अन्तर्मुखी थे किन्तु अत्यन्त परिश्रमी थे। कवि ने हिन्दी के पद्य तथा गद्य साहित्य को अपनी अनेक महत्वपूर्ण रचनाओं से भरा है। उनके साहित्य में कोमल भावनाओं के साथ विचारों की दार्शनिकता भी मिलती है। प्रसाद जी की ‘कामायनी’ ‘रामचरितमानस’ के बाद का हिन्दी को महत्वपूर्ण महाकाव्य है। आपने उपन्यास, कहानी, निबन्ध आदि की रचना भी की है। प्रसाद भारत के गौरवपूर्ण अतीत के प्रति आकर्षित हैं तथा भारत की वर्तमान कठिनाइयों तथा समस्याओं का समाधान उसमें ही हूँढ़ते रहे हैं। उनका व्यक्तित्व एक भावुक कवि तथा विचारशील दार्शनिक का सम्मिलित स्वरूप है।

प्रश्न 3.
कविता में आए निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) दुर्बलता इस अस्थि …… दृप्त फुत्कार से।
(ख) आह ! इस खेवा ……. किसकी आशा में?
उत्तर:
देखिए पूर्व में दिए गए पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ, शीर्षक इनकी व्याख्याएँ वहाँ दी जा चुकी हैं।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य है
(क) साकेत
(ख) प्रिय प्रवास
(ग) कामायनी
(घ) वैदेही वनवास।
उत्तर:
(ग) कामायनी

प्रश्न 2.
पेशोला झील स्थित है|
(क) जयपुर में
(ख) उदयपुर में
(ग) भरतपुर में
(घ) जोधपुर में।
उत्तर:
(ख) उदयपुर में

प्रश्न 3.
“तट-तरु हैं चित्रित तरल चित्रसारी में-तरल चित्रसारी किसको कहा गया है ?
(क) पेशोला की जलराशि को
(ख) हरे-भरे बगीचे को
(ग) हवा से हिलती हुई चित्रशाला
(घ) चित्र बनाने के पटल को।
उत्तर:
(क) पेशोला की जलराशि को

प्रश्न 4.
“दुंदुभि, मृदंग, तूर्य, शांत, सब मौन हैं – ‘में दुंदुभि, मर्दूग, तूर्य हैं
(क) महलों में बजने वाले वाद्ययंत्र
(ख) महलों के पालतू पशु
(ग) महलों के विभिन्न सेवक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) महलों में बजने वाले वाद्ययंत्र

प्रश्न 5.
‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ में कवि ने संदेश दिया है
(क) महलों की सुरक्षा का
(ख) राष्ट्रप्रेम का
(ग) पुराना इतिहास पढ़ने का
(घ) अपने धर्म को मानने का।
उत्तर:
(ख) राष्ट्रप्रेम का

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जयशंकर प्रसाद आधुनिक कविता के किस वाद से सम्बन्धित हैं ?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद आधुनिक कविता के छायावाद से सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 2.
जयशंकर प्रसाद के काव्य की प्रमुख विशेषता क्या है ?
उत्तर:
देशप्रेम तथा राष्ट्रवाद जयशंकर प्रसाद के काव्य की प्रमुख विशेषता है।

प्रश्न 3.
प्रसाद जी के दो कविता संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
‘लहर’ तथा ‘झरना’ प्रसाद जी की कविताओं के संग्रह हैं।

प्रश्न 4.
प्रसाद जी को अपनी किस रचना पर मंगला प्रसाद पुरस्कार प्राप्त हुआ था ?
उत्तर:
प्रसाद जी को अपने महाकाव्य कामायनी पर मंगला प्रसाद पुरस्कार मिला था।

प्रश्न 5.
पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता का संदेश क्या है?
उत्तर:
पेशोला की प्रतिध्वनि कविता का संदेश राष्ट्रप्रेम है।

प्रश्न 6.
‘निर्धेम भस्मरहित ज्वलन पिण्ड’ किसको कहा गया है ?
उत्तर:
‘निर्धूम भस्मरहित ज्वलन पिण्ड’ सूर्य को कहा गया है।

प्रश्न 7.
सूर्य को निर्धूम तथा भस्मरहित ज्वलन पिण्ड कहने का क्या कारण है?
उत्तर:
सूर्य एक जलता हुआ गोला है किन्तु उससे धुआँ नहीं निकलता तथा जलने पर राख भी नहीं होती है।

प्रश्न 8.
पेशोला झील में किसका प्रतिबिम्ब पड़ रहा है ?
उत्तर:
पेशोला झील में महाराणा के महलों का प्रतिबिम्ब पड़ रहा है।

प्रश्न 9.
सन्ध्या का कलंक किसको कहा गया है ?
उत्तर:
बढ़ते हुए अंधकार को सन्ध्या का कलंक कहा गया है।

प्रश्न 10.
‘कौन लेगा भार यह?’ कवि किसका भार लेने के लिए कह रहा है?
उत्तर:
कवि देश के अतीतकाल के गौरव को पुनः स्थापित करने का उत्तरदायित्व लेने के बारे में कह रहा है।

प्रश्न 11.
“कौन थामता है पतवार ऐसे अंधड़ में” अंधड़ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
यहाँ ‘अंधड़’ शब्द देश में व्याप्त अनाचार, राष्ट्र तथा राष्ट्रीय संस्कृति तथा मूल्यों की उपेक्षा के वातावरण को अंधड़ कहा गया है।

प्रश्न 12.
काल धीवर में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
काल धीवर में रूपक अलंकार है।

प्रश्न 13.
इस ‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता में कौन-सा गुण है?
उत्तर:
इस कविता में ओज गुण है।

प्रश्न 14.
‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता किस छंद में रची हुई है ?
उत्तर:
पेशोला की प्रतिध्वनि कविता की रचना मुक्त छंद में हुई है।

प्रश्न 15.
पेशोला की प्रतिध्वनि, कविता के आरम्भ में अरुण-करुण बिम्ब, किसके लिए प्रयुक्त शब्द हैं ?
उत्तर:
‘अरुण-करुण बिम्ब’ शब्द सूर्य के लिए प्रयुक्त शब्द हैं।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता में कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
पेशोला उदयपुर स्थित झील है। उसके शांत जल में महाराणा के महलों का प्रतिबिम्ब पड़ रहा है। इन महलों तथा उनके प्रतिबिम्ब के माध्यम से कवि देश के प्राचीन गौरव-गरिमा से प्रेरणा लेने तथा उसको पुन: देश में प्रचारित करने का संदेश दे रहा है। वह कह रहा है कि इस महान कार्य को करने के लिए हमें आगे आना चाहिए।

प्रश्न 2.
पेशोला की प्रतिध्वनि कविता के आधार पर बताइए कि आज देश में कैसा वातावरण है तथा देश के हितार्थ क्या करना जरूरी है?
उत्तर:
‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता के अनुसार आज देश में अनाचार तथा स्वदेश की उपेक्षा का वातावरण है। इससे देश का अहित हो रहा है। लोग पुरानी अस्मिता को भूलकर सो गए हैं। उनको जगाना आवश्यक है। देश के पुनरुद्धार तथा पुरानी गरिमा को पुनः देश में वापस लानी देशहित के लिए जरूरी है।

प्रश्न 3.
श्रमित नमित-सा। पश्चिम के व्योम में है आज निरवलम्ब-सा कौन है तथा उसकी ऐसी दशा का क्या कारण है?
उत्तर:
पश्चिमी आकाश में अस्त होता हुआ सूर्य का बिम्ब है। कवि को लगता है कि वह थका हुआ, झुका हुआ तथा बेसहारा हो गया है। उसकी इस प्रकार की दशा होने का कारण यह है कि वह अस्त हो रहा है और उसका मध्याह्नकालीन तेज अब नहीं रहा। मेवाड़ के गौरवशाली अतीत की उपेक्षा देखकर भी वह थका-सा और बेसहारा-सा प्रतीत हो रहा है।

प्रश्न 4.
‘दुर्बलता इस अस्थि मांस की’ में अस्थि-मांस से कवि का क्या आशय है? उसकी किस दुर्बलता की ओर कवि ने संकेत किया है ?
उत्तर:
भारत पराधीनता तथा सांस्कृतिक पतन के जाल में फंसा है। वह इससे मुक्ति चाहता है। किन्तु भारतीय उसके पुनरुद्धार में अशक्त और अक्षम हैं। इस पंक्ति में ‘अस्थि मांस’ से तात्पर्य भारतीय जनों से है। जो विभिन्न व्यसनों में पड़कर अपनी शक्ति खो चुके हैं।

प्रश्न 5.
“कालिमा बिखरती है संध्या के कलंक-सी’ का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर:
संध्या का समय है। पेशोला झील के जल पर अँधेरा छाने लगा है, क्योंकि सूर्य पश्चिम दिशा में अस्त होने के लिए बढ़ रहा है। अन्धकार संध्या काल के लिए कलंक जैसा है। इसने संध्या के सुन्दर स्वरूप को अनाकर्षक बना दिया है।

प्रश्न 6.
कौन लेगा भार यह? कहकर कवि किसका भार लेने के लिए आह्वान कर रहा है?
उत्तर:
मेवाड़ का अतीत गौरव महलों के प्रतिबिम्ब के रूप में पेशोला झील के जल में चमक रहा है। वर्तमान में यह गौरव विलुप्त हो चुका है। प्रकारान्तर में यह भारत का ही गौरव है। महलों का यह प्रतिबिम्ब स्वदेश के पुनरुद्धार के लिए पुकार रहा है। वह चाहता है कि कोई देशवासी आगे बढ़े और इसका दायित्व ग्रहण करे।

प्रश्न 7.
“बोलो, कोई बोलो-अरे, क्या तुम सब मृत हो ?’ पंक्ति में कवि को यह संदेह क्यों हो रहा है कि सब मृत हैं ?
उत्तर:
महलों के प्रतिबिम्ब से पुकार उठ रही है कि कोई स्वदेशवासी आगे बढ़े और भारत के गौरवपूर्ण अतीत को पुनर्जीवित करे। भारतीय उसकी पुकार पर भी जाग्रत नहीं हो रहे। यह देखकर कवि को लगता है कि कहीं वे सब मृत तो नहीं हैं। किसी की सहायता की पुकार पर आगे न बढ़ने वाले को जीवित तो माना ही नहीं जा सकता।

प्रश्न 8.
“अरावली शृंग-सा समुन्नत सिर किसका’ – में कौन-सा अलंकार है तथा क्यों ?
उत्तर:
‘अरावली श्रृंग-सा समुन्नत सिर किसका’ में उपमा अलंकार है। इस पंक्ति में ‘सिर’ उपमेय तथा ‘अरावली शृंग’ उपमान है। ‘समुन्नत’ साधारण धर्म है तथा ‘सा’ वाचक शब्द है। उपमा के चारों अंग उपमेय, उपमान, साधारण धर्म तथा वाचक शब्दों के होने के कारण इसमें पूर्णोपमा अलंकार है।

प्रश्न 9.
“पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता के आरम्भ की पंक्तियों के आधार पर बताइए कि प्रसाद की प्रकृति मनुष्य के सुख-दुःख की सहचरी है।
उत्तर:
‘पेशोला की प्रतिध्वनि के समय सूर्य का लाल बिम्ब आकाश में अस्त हो रहा है। झील के जल में महाराणा के महलों का बना हुआ प्रतिबिम्ब भारत के विलुप्त हो चुके अतीत गौरव का स्मरण करा रहा है। भारत की वर्तमान (तत्कालीन) पराधीनता तथा पतन को देखकर प्रकृति भी दु:खी है। सूर्य करुण भाव से भ्रमित, नमित और निरवलम्ब-सा उसकी इस दयनीय अवस्था को देखकर दु:खी हो रहा है।

प्रश्न 10.
पेशोला की जलराशि में बने हुए प्रतिबिम्ब को अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संध्या के समय सूर्य का लाल बिम्ब पश्चिमी आकाश में अस्त हो रहा है। पेशोला के शान्त जल में महाराणा के महलों की परछाईं बनकर लोगों को भारत के गौरवपूर्ण अतीत की याद दिला रही है। वह लोगों का आह्वान कर रही है कि वे भारत का पुनरुद्धार करें तथा उसके पुराने गौरव को फिर से देश में फैलायें।

प्रश्न 11.
‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता के काव्य-सौन्दर्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता का आरम्भ प्रकृति चित्रण से हुआ है। संध्या के समय पश्चिमी आकाश में लाल सूर्य अस्त हो रहा है। झील के शान्त जल में महाराणा के महलों की परछाईं पड़कर लोगों को भारत के अतीत का बोध करा रही है तथा उनसे भारत के पुरातन गौरव को पुनः वापस लाने की प्रेरणा दे रही है। कविता की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। कवि ने मुक्त छंद में यह रचना की है। ओजयुक्त इस कविता में रूपक, उपमा, पुनरुक्ति, अनुप्रास आदि अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 12.
जयशंकर प्रसाद के काव्य की कौन-सी विशेषताएँ राष्ट्रीयता के भावों को जगाने में सहायक हैं ?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद के काव्य में छायावाद प्रभाव के कारण सौन्दर्यबोध विद्यमान है। उसमें भावना की प्रधानता है तथा भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण पृष्ठों का उज्ज्वल रंग भी बिखरा है। उनके साहित्य में भारत की पुरातन संस्कृति की गरिमा भी बिखरी हुई है। उनके साहित्य की ये विशेषताएँ पाठकों के मन में राष्ट्रीयता के पवित्र भावों को जगाने में समर्थ है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ की कविता का प्रतिपाद्य क्या है ? लिखिए।
उत्तर:
‘पेशोला’ की प्रतिध्वनि जयशंकर प्रसाद की एक प्रबन्धात्मक रचना है। उदयपुर में स्थित पेशोला झील में महाराणाओं के महलों की परछाईं पड़ रही है। यह मेवाड़ के गौरवपूर्ण अतीत का स्मरण दिला रही है। मेवाड़ का यह गौरवपूर्ण अतीत ही भारत के गौरवपूर्ण अतीत का सूचक है। आज देश में सांस्कृतिक पतन का दौर है तथा उस पुरातन गौरव को पुन: स्थापित करने की जरूरत है। कवि आह्वान करता है कि भारतीय जनों को अपनी अज्ञान की निद्रा का त्याग करना चाहिए तथा स्वदेश के पुरातन गौरव को पुनः स्थापित करके स्वदेश का उद्धार करना चाहिए। भारत के गौरव-गरिमापूर्ण अतीत का चित्रण करना तथा उसको पुन: देश में लाना भारतीयों की पावन कर्तव्य है। यह बताना ही पेशोला की प्रतिध्वनि कविता का प्रतिपाद्य है।

प्रश्न 2.
जयशंकर प्रसाद के काव्य की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद स्वदेश प्रेम तथा राष्ट्रीय गौरव के कवि हैं। आपके काव्य की प्रमुख विशेषता तो यही है कि उसमें भारत के पुराने गौरव का भव्य चित्रण पाया जाता है। उनके सम्पूर्ण साहित्य का एक ही उद्देश्य है और वह है राष्ट्रीय गौरव-गरिमा से देशवासियों को परिचित कराना तथा उनकी अज्ञान निद्रा को भंग करके उनको सजग बनाना।

प्रसाद जी के काव्य की अन्य प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. प्रसाद जी का काव्य छायावादी प्रभाव से युक्त है। उसमें प्रेम और सौन्दर्य का भव्य अंकन हुआ है।
  2. प्रसाद ने नये-नये विषयों को लेकर काव्य रचना की है। उसमें कल्पना की नवीनता भी पाई जाती है।
  3. कवि ने प्राकृतिक तथा मानवीय दोनों प्रकार के सौन्दर्य का चित्रण किया है।
  4. प्रसाद के काव्य में भावनाओं का सूक्ष्म चित्रण मिलता है।
  5. भाषा लाक्षणिक वक्रता से युक्त है।
  6. छायावाद के साथ ही रहस्यवाद की विशेषताएँ उनके काव्य में मिलती हैं।
  7. प्रसाद के साहित्य की सौन्दर्य चेतना अद्भुत है।
  8. भारतीय इतिहास, संस्कृति तथा दर्शन के प्रति प्रसाद जी का अनुराग है।
  9. कवि ने राष्ट्रीय चेतना पर ध्यान केन्द्रित किया है।

प्रश्न 3.
‘फिर भी पुकार-सी है गूंज रही व्योम में पंक्ति के अनुसार बताइए कि आकाश में क्या पुकार पूँज रही है ?
उत्तर:
पेशोला की लहरें शान्त हैं। महाराणाओं के महलों के जो प्रतिबिम्ब उसके जल में पड़ रहे हैं, वे भी शान्त हैं। फिर भी ऐसा लगता है कि उनसे निकलकर एक पुकार आकाश में गूंज रही है-है कोई भारतीय जो हमारे पुरातन गौरव को वापस लाए। महलों के ये प्रतिबिम्ब बता रहे हैं कि वर्तमान में देश में सांस्कृतिक पतन का वातावरण व्याप्त है, देश पराधीनता की श्रृंखलाओं में जकड़ा है, देश का भविष्य अंधकारमय है। मेवाड़ (भारत) के अतीत की महान् परम्परा को लोग भूल गए हैं। वे अज्ञान की निद्रा में सो गए हैं। राष्ट्र-हित में उनको जगाना जरूरी है। उनको यह बताना आवश्यक है कि कभी हम ज्ञान-विज्ञान और सांस्कृतिक श्रेष्ठता के वाहक थे। यह महान कर्तव्य है। क्या कोई आगे आयेगा और अविचलित रहकर इस कर्तव्य का भार उठाएगा। यही वह पुकार है, जो आकाश में गूंजती-सी प्रतीत हो रही है।

प्रश्न 4.
“प्रसाद जी भारत के प्राचीन इतिहास तथा गौरवशाली अतीत के चित्रकार हैं”- विचारपूर्ण टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
प्रसाद जी हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गद्य लेखक हैं। उनकी गद्य तथा पद्य सम्बन्धी रचनाओं में भारत के प्राचीन इतिहास तथा अतीत की गौरवपूर्ण घटनाओं तथा पात्रों का चित्रण मिलता है। उनकी कहानियों में अनेक कथावस्तु का आधार प्राचीन इतिहास ही है। उनके नाटक में चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त, विशाख, जन्मेजय का नागयज्ञ, ध्रुवस्वामिनी आदि की कथावस्तु ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर ही आधारित है। प्रसाद जी की रचनाओं में जो प्रेम-सौन्दर्य और राष्ट्रवाद है, वह ऐतिहासिक आधार के बिना प्रभावशाली नहीं बन सकता है।

“पेशोला की प्रतिध्वनि प्रसाद जी की एक प्रबन्धात्मक काव्य रचना है। कवि ने इसमें भारत के तत्कालीन पतन और पराधीनता पर क्षोभ व्यक्त करते हुए देशवासियों को सजग और सावधान होने के लिए कहा है। उन्होंने उनको याद दिलाया है कि वे उन्हीं पूर्वजों के वंशधर हैं जो गौरवशाली अतीत के निर्माता थे, उन्होंने उनके उसी अतीत गौरव को पुनः स्थापित करके देशोद्धार का आवाहन किया है। ‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ कविता में देशप्रेम और राष्ट्रीय भावना का जो संदेश है, उसे देने के लिए कवि ने पेशोला झील में पड़ने वाले महाराणा के महलों के प्रतिबिम्ब का सहारा लिया है। प्रसाद जी के लिए देशप्रेम और राष्ट्रवाद की बात कहने के लिए भारत के पुराने इतिहास, संस्कृति तथा अतीत के गौरव का सहारा लेना बहुत जरूरी है। भारत के पुराने इतिहास के प्रति प्रसाद की गहरी रुचि को देखकर ही एक बार किसी ने कह दिया था कि प्रसाद जी तो गड़े मुर्दे उखाड़ा करते हैं।

कवि – परिचय :

जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के सुंघनी साहु नाम से प्रसिद्ध वैश्य परिवार में 30 जनवरी सन् 1890 ई. में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री देवी प्रसाद तथा माता का नाम मुन्नी देवी था। आपके पिता तथा पितामह भी काव्यप्रेमी थे। इसका प्रभाव बालक प्रसाद पर पड़ा। आपने क्वींस कॉलेज में कक्षा 7 तक पढ़ाई की। प्रसाद जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब तक माता-पिता दिवंगत हो चुके थे। सत्रह वर्ष की अवस्था में बड़े भाई का भी देहावसान हो गया। प्रसाद जी ने स्वाध्याय द्वारा ही हिन्दी, उर्दू, संस्कृत तथा अंग्रेजी का अध्ययन किया। आपने व्यापार सँभाला तथा साहित्य सेवा भी करते रहे। आपके तीन विवाह हुए परन्तु तीनों ही पलियाँ साथ छोड़ गईं। इन परिस्थितियों में अड़तीस वर्ष की अवस्था में ही 14 नवम्बर, 1937 आपको देहावसान हो गया।

साहित्यिक परिचय – प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आपने गद्य तथा पद्य दोनों ही क्षेत्रों में हिन्दी की अपूर्व सेवा की है। कहानी, उपन्यास, निबन्ध, नाटक, समीक्षा आदि के साथ ही आपने महाकाव्य, खण्डकाव्य, गीतकाव्य आदि भी रचे हैं। आपको अपने ‘कामायनी’ नामक महाकाव्य पर मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हो चुका है। प्रसाद जी आधुनिक हिन्दी कविता की छायावादी धारा के प्रमुख कवि हैं। मूलतः आप सौन्दर्य और प्रेम के कवि हैं। आप भारत की प्राचीन संस्कृति व इतिहास से अत्यन्त प्रभावित हैं। भारत के अतीत के गौरव तथा गरिमा का चित्रण आपके साहित्य में मिलता है। आप देशप्रेम तथा राष्ट्रप्रेम के साथ ही मानवता के भी प्रेमी हैं। प्रसाद की भाषा संस्कृतनिष्ठ, परिष्कृत तथा शुद्ध है। उसमें तत्सम शब्दावली की बहुलता है। आपकी प्रारम्भिक रचनाओं में भाषा अपेक्षाकृत सरल है। पहले आप ब्रजभाषा में काव्य-रचना करते थे। बाद में खड़ी बोली की ओर प्रवृत्त हुई। प्रसाद की शब्दावली लाक्षणिक है तथा उसका ध्वनि सौन्दर्य अपूर्व है। आपके काव्य में ओज, माधुर्य और प्रसाद गुणों को समन्वय मिलता है। आपने अपने काव्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, यमक आदि अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। आपने विविध छंदों में रचनाएँ की हैं।

कृतियाँ – प्रसाद जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
काव्य – कामायनी (महाकाव्य), प्रेम राज्य, वन मिलन, अयोध्या का उद्धार, शोकोच्छ्वास, प्रेम पथिक, पहले ब्रजभाषा तथा बाद में खड़ी बोली में प्रकाशन, महाराणा का महल, आँसू (प्रबन्ध काव्य) चित्राधार (ब्रजभाषा) कानन कुसुम, झरना, लहर (मुक्तक) इत्यादि। कंकाल, तितली, इरावती (अधूरा उपन्यास). छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी, इन्द्रजाल (कहानी-संग्रह), सज्जन, कल्याणी करुणालय, विशाखा, अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, स्कन्दगुप्त का एक पैंट, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी (नाटक) हिन्दी साहित्य सम्मेलन, सरोज, हिन्दी कविता का विकास, प्रकृति सौन्दर्य, भक्ति (साहित्यक निबन्ध) सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, मौर्यों को राज्ये परिवर्तन, आर्यावर्त का प्रथम सम्राट, दशराज युद्ध (ऐतिहासिक निबन्ध), चम्पू, कवि और कविता, कविता का रसास्वाद, काव्य और कला, रहस्यवाद, रस, नाटकों में रस का प्रयोग, नाटकों का प्रारम्भ, रंगमंच (समीक्षा) इत्यादि।

कविता का सारांश

‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ शीर्षक कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में कवि ने राष्ट्र प्रेम का संदेश दिया है। सूर्य पश्चिम दिशा में अस्त हो रहा है। उसका बिम्ब लाल है। वह एक धुआँ और राख से रहित जलता हुआ पिण्ड है। वह संसार के पेचीदे चक्करों से व्याकुल है तथा मामूली नवीन आचारों से थका हुआ, झुका हुआ, बेसहारा-सा आज पश्चिमी आकाश में दिखाई दे रहा है। वह अपनी हजारों किरणों के हाथों से विश्व को ओज और तेज का दान दे रहा है। पेशोला में उठने वाली लहरें शांत हैं। उसके जल में बनी वृक्षों की परछाई के कारण वह चित्रसारी के समान लग रही है। आकाश में धूल-धूसरित छोटे-छोटे बादल इधर-उधर बिखरे हैं। संध्याकालीन अंधकार छा रहा है तथा सर्वत्र शान्ति विद्यमान है। झील के जल में बनी महाराणा के महलों की परछाई पूछ रही है कि देश की प्राचीन अस्मिता तथा गौरव की रक्षा का भार कौन उठायेगा। अपनी दुर्बलता पर विजय पाकर कौन-सा देश विरोधी शक्तियों को ललकारेगा। कठोर विघ्न-बाधाओं की कसौटी पर स्वयं को कराकर कौन आगे आयेगा और अपनी प्रबल फूत्कार से राष्ट्र विरोधी लोगों के प्रयास धूल बनकर उड़ जायेंगे।

राष्ट्र की तथा राष्ट्रीय संस्कृति की सुरक्षा का उत्तरदायित्व कौन ग्रहण करेगा। कोई है जो सीना तानकर यह कहे कि मैं इस महीन उत्तरदायित्व को उठाने के लिए तैयार हूँ। मैं मेवाड़ का पुत्र हूँ, अरावली पर्वत के समान मेरा उन्नत मस्तक है। मैं यह भार उठाऊँगा। राष्ट्रीय अस्मिता के इस भयानक संकट के समय इस नाव की पतवार कौन संभालेगा। निराशारूपी अन्धकार का सागर दुर्भाग्य के समान उमड़ रहा है। आशा के प्रकाश की कोई रेखा दिखाई नहीं देती है। समयरूपी नाविक इसको अज्ञात स्थल की ओर खींचकर ले जा रहा है। अभी भी इसकी साँसें किसी ऐसे सपूत की आशा में अटकी हैं जो इसको संकट से बचा सके। आज भी पेशोला झील के जल में वही व्याकुल पुकार गूंज रही है। यह प्रताप का वही गौरवशाली मेवाड़ है। किन्तु उसकी उस ललकार की गूंज आज कहाँ है।

पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।

1. अरुण-करुण बिम्ब
वह निर्धूम, भस्म रहित ज्वलन पिण्ड।
विकल विवर्तनों से
विरल प्रवर्तनों में
श्रमित नमित-सा
पश्चिम के व्योम में है आज निरवलम्ब-सा।
आहुतियाँ विश्व की अजस्र लुटाता रहा
सतत् सहस्त्र कर-माला से
तेज ओज बल जो वदान्यता कदम्ब-सा।

शब्दार्थ – अरुण = लाले। बिम्ब = गोला। निर्धूम = बिना धुएँ के। पिण्ड = ठोस। विवर्तन = चक्कर। विरल = कम। प्रवर्तन = नवीन आचार-विचारे, परिवर्तन। श्रमित = थका हुआ। आहुति = हवन-सामग्री। सतत् = निरन्तर। कर-माला = किरण समृह। वदान्यता = उदारता, दानशीलता।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक से संकलित ‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। कवि यहाँ पेशोला झील के जल में पड़ने वाली महाराणा के महलों की परछाईं का वर्णन करना चाहता है। संध्याकाल में वहाँ के दृश्य का चित्रण कवि इसकी पृष्ठभूमि के रूप में कर रहा है।

व्याख्या – कवि कहता है कि पश्चिमी आकाश में सूर्य का लाल करुणापूर्ण गोला है। वह धुएँ से रहित तथा भस्महीन जलता हुआ ठोस नक्षत्र है। वह सांसारिक चक्रों तथा अन्य नवीन आचार-विचारों से थका और झुका हुआ-सा तथा बेसहारा-सा पश्चिमी आकाश में स्थित है। वह अपनी हजारों किरणों के हाथों से अपने तेज-शक्ति तथा ओज की अपार आहुतियाँ निरन्तर कदम्ब सी उदार और दानशील होकर विश्व को लुटा रहा है।

विशेष –

  1. पश्चिमी आकाश में सूर्यास्त को वर्णन है।
  2. सूर्य अपने हजारों किरणों रूपी हाथों से उदारतापूर्वक विश्व को तेज, ओज और बल का दान देता है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ, साहित्यिक खड़ी बोली है।
  4. मुक्त छंद, रूपक, अनुप्रास, उपमा आदि अलंकार हैं।

2. पेशोला की उर्मियाँ हैं, शान्त, घनी छाया में
तट-तरु है चित्रित तरल चित्रसारी में।
झोंपड़े खड़े हैं बने शिल्प के विषाद केदग्ध अवसाद से।।
धूसर जलद-खण्ड झटके पड़े हैं।
जैसे विजन अनन्त में।
कालिमा बिखरती है संध्या के कलंक-सी,
दुन्दुभि-मृदंग-तूर्य शान्त-सब मौन हैं।

शब्दार्थ – पेशोला = पिछोला झील। उर्मियाँ = लहरें। चित्रसारी = चित्रशाला। दग्ध = जला हुआ। अवसाद = दु:ख। धूसर = धूल से सने हुए। विजन = निर्जन। अनन्त = आकाश। कालिमा = कालापन, अँधेरापन। दुंदुभि = नगाड़ा। मृदंग = ढोलक जैसा एक ताल वाद्य। तूर्य = तुरही।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कविता ‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ से लिया गया है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। संध्या का समय है। पश्चिम में सूर्य अस्त हो रहा है। महाराणा के महलों की परछाई पिछोला झील में बन रही है।

व्याख्या – कवि कहता है कि पिछोला झील में उठती हुई लहरें शान्त हैं। झील के जल में उसके तट पर उगे हुए वृक्षों का प्रतिबिम्ब बन रहा है। जो चित्रों से जड़ी हुई तरल चित्रशाला जैसी लगती है। महलों के प्रतिबिम्ब उस जल में अपने गत वैभव का विचार कर विषादमग्न से दिखाई देते हैं, वे वीरान आकाश में धूल के रंग के बादलों के टुकड़ों जैसे प्रतीत हो रहे हैं। धीरे-धीरे छाने वाला अन्धकार संध्या पर लगे कलंक जैसा लग रहा है। वहाँ महलों के प्रतिबिम्ब में पूर्ण निस्तब्धता है तथा पहले की तरह नगाड़ों, मर्दूग, तुरही आदि बाजों की कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही है।

विशेष –

  1. उदयपुर की पिछोला झील में पास स्थित पुराने महलों की छाया पड़ रही है।
  2. ये महल अपने अतीत वैभव का स्मरण करके दु:खी से लग रहे हैं।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ, साहित्यिक खड़ी बोली है।
  4. अनुप्रास तथा उपमा अलंकार हैं। मुक्त छंद है।

3. फिर भी पुकार-सी है पूँज रही व्योम में
कौन लेगा भार यह?
कौन विचलेगा नहीं?
दुर्बलता इस अस्थि मांस की
ठोक कर लोहे से, परख कर वज्र से
्रलयोल्का-खण्ड के निकष पर कसकर
चूर्ण अस्थि पुंज सा हँसेगा अट्टाहास कौन?
साधना पिशाचों की बिखरे चूर-चूर होके
धूलि-सी उड़ेगी किस दृप्त फूत्कार से।

शब्दार्थ – व्योम = आकाश। विचलेगा = विचलित होना। अस्थि मांस = हाड़-मांस का मनुष्य। प्रलयोल्का = प्रलयंकारी कठोर पत्थर। निकष = कसौटी। अट्टाहास = मुक्त हँसी। दृप्त = प्रबल। फूत्कार = फुफकार।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित “पेशोला की प्रतिध्वनि’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। पेशोला झील में उदयपुर के महाराणाओं के महल प्रतिबिम्बित हो रहे हैं। वे स्वदेशवासियों से पूछ रहे। हैं कि क्या उनमें कोई ऐसा देशप्रेमी है जो उनके अतीत के गौरव को पुन: स्थापित कर सके।

व्याख्या – कवि कहता है कि सायंकाल सूर्यास्त का समय है। झील के आस-पास पूर्ण शांति छाई है किन्तु तब भी आकाश में यह पुकार पूँज रही है कि देश की पुरानी गरिमा और गौरव की सुरक्षा का भार कौन उठायेगा ? कौन ऐसा दृढ़ संकल्प वाला होगा जो अविचलित रहकर अपना यह उत्तरदायित्व पूरा करेगा। इतने लम्बे पराधीनता काल में देशवासियों में जो दुर्बलता आ गई है, उसको दूर कर उनको दृढ़ और मजबूत कौन बनाएगा। उनमें लोहे और वज्र जैसी कठोरता कौन पैदा करेगा? अपने आत्मविश्वास तथा दृढ़ता को कठिन परिस्थितियों के कठोर पत्थर की कसौटी पर कसकर देखने तथा लोगों मन में चूर-चूर होकर बिखरी हुई स्वदेश और स्वसंस्कृति से प्रेम की भावना को पुन: जगाकर विजय के उत्साह हमें कौन मुक्त हास्य करेगा। किस वीर की प्रबल फुफकार के सामने देश का अहित करने में लगे नर-पिशाचों के प्रयास धूल के समान उड़ जायेंगे।

विशेष –

  1. देश के पुरातन गौरव और गरिमा को पुनस्र्थापना का आह्वान किया गया है।
  2. वीर रस है। राष्ट्रीय गौरव को जाग्रत किया गया है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ, साहित्यिक खड़ी बोली है।
  4. रूपक, उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश तथा प्रश्न अलंकार हैं।

4. कौन लेगा भार यह?
जीवित है कौन?
साँस चलती है किसकी
कहता है कौन ऊँची छाती कर, मैं हूँ –
मैं हूँ मेवाड़ मैं,
अरावली-शृंग-सा समुन्नत सिर किस का?
बोलो, कोई बोलो-अरे, क्या तुम सब मृत हो ?

शब्दार्थ – भार = उत्तरदायित्व। ऊँची छाती कर = साहस एवं दृढ़ता के साथ। शृंग = पर्वत की चोटी।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। कवि ने उदयपुर को पिछला झील में पड़ते यहाँ के महलों के प्रतिबिम्ब को देखा तो उसको स्वदेश के गौरवपूर्ण अतीत की याद आई। उसको लगा कि ये महल लोगों का आह्वान करके कह रहे हैं कि उस प्राचीन गरिमा को पुनः स्थापित करें।

व्याख्या – झील में पड़ रही महलों की परछाईं पूछ रही है कि देश के प्राचीन गौरव एवं गरिमा पुनः स्थापित करने का महान दायित्व आज कौन उठायेगा। पराधीनता में जकड़कर देशवासी महान् पुरातन संस्कृति को भुला बैठे हैं। वे जीवित रहकर भी मरे हुए-से हैं। उनमें उत्साह और कोई साहस नहीं है। ये महल पूछ रहे हैं कि क्या कोई साहसी पुरुष आगे आएगा और सिद्ध करेगा कि वह जीवित है। वह अपनी छाती ठोककर कहेगा कि मैं मेवाड़ हूँ। मैं मेवाड़ और स्वदेश का सच्चा सपूत हूँ। मेरा सिर स्वदेश के गौरव से अरावली पर्वत की चोटी के समान ऊँचा उठा हुआ है। ये परछाइयाँ ललकार कह रही हैं कि कोई साहसी देशप्रेमी उसके आह्वान से आगे आये और यह जिम्मेदारी उठाये। अन्यथा ऐसा लगेगा कि देश में कोई वीर पुरुष है ही नहीं।

विशेष –

  1. स्वदेशवासियों को साहस का प्रदर्शन करने तथा प्राचीन स्वदेश के गौरव को स्थापित करने के लिए प्रेरित किया गया है।
  2. स्वदेश प्रेम का संदेश दिया गया है।
  3. साहित्यिक सरल भाषा है।
  4. उपमा, अनुप्रास तथा प्रश्न अलंकार हैं।

5. आह ! इस खेवा की !
कौन थामता है पतवार ऐसे अंधड़ में,
अन्धकार-पारावार गहन नियति-सा।
उमड़ रहा है, ज्योति-रेखाहीन-क्षुब्ध हो।
खींच ले चला हैकाल-धीवर अनन्त में
साँस-सफरी-सी अटकी है किसकी आशा में?

शब्दार्थ – खेवा = नौका। अंधड़ = आँधी। पारावार = समुद्र। गहन नियति = दुर्भाग्य। धींवर = नाविक। सकरी = मछली।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कविता “पेशोला की प्रतिध्वनि” से उद्धृत है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। कवि कहता है कि पेशोला झील में बनने वाले महलों के प्रतिबिम्ब स्वदेश में व्याप्त पराधीनता तथा देश की प्राचीन अस्मिता के प्रति उपेक्षा का भाव देखकर निराश हैं।

व्याख्या – कवि कहता है कि सर्वत्र निराशापूर्ण वातावरण है। पराधीनता और गौरवशाली भूतकाल के प्रति व्याप्त अज्ञान के वातावरण में स्वदेश की नौका की पतवार थामने वाला कोई दिखाई नहीं दे रहा। चारों तरफ निराशा और उपेक्षा का अँधेरा दुर्भाग्य के समान छो रहा है। आशा के प्रकाश की एक रेखा भी दिखाई नहीं दे रही। समय का नाविक देश की इस नौका को अज्ञात अनन्त सागर में खींचे ले जा रहा है। उसकी साँस किसी जाल में फंसी मछली के समान उस आशा में अटकी है कि वीर पुरुष आगे आयेगा और स्वदेश को इस पराधीनता और निराशा के जाल से मुक्त करेगा।

विशेष –

  1. स्वदेश में व्याप्त निराशा और हीनता के भावों पर दुःख व्यक्त किया गया है।
  2. कवि ने देशवासियों को पराधीनता और निराशा से मुक्त होकर भारत के पुरातन गौरव को पुन: स्थापित करने की प्रेरणा दी है।
  3. तत्सम शब्दावली युक्त प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली है।
  4. मुक्त छन्द है, वीर रस है। उपमा, रूपक, अनुप्रास अलंकार हैं।

6. आज भी पेशोला के
तरल जल-मण्डलों में
वही शब्द घूमता-सा
पूँजता विकल है,
किन्तु वह ध्वनि कहाँ।
गौरव-सी काया पड़ी माया है प्रताप की
वही मेवाड़।
किन्तु आज प्रतिध्वनि कहाँ?

शब्दार्थ – पेशोला = पिछोला झील। जल-मण्डल = झील में भरा पानी। विकल = व्याकुल। काया = शरीर। प्रताप = महाराणा प्रताप। प्रतिध्वनि = गूंज।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित “पेशोला की प्रतिध्वनि’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। कवि स्वदेश में व्याप्त पराधीनता को देखकर व्याकुल है। वह देश के पुरातन गौरव की उपेक्षा देखकर भी पीड़ित है। वह झील में बने महाराणा के महलों का प्रतिबिम्ब दिखाकर लोगों को सजग और सावधान करना चाहता है।

व्याख्या – कवि कहता है कि उदयपुर की पिछोला झील की विशाल जलराशि में स्वदेशवासियों को देश में व्याप्त पराधीनता तथा उपेक्षा के प्रति सजग करने वाले प्रेरणास्पद शब्द आज भी घूमते से लग रहे हैं, उनमें व्याकुलती भरी हुई है। किन्तु वैसी गूंज आज सुनाई नहीं दे रही। यह महाराणा प्रताप का वही मेवाड़ है। उसकी गौरवरूपी काया आज भी इस झील के जल में दिखाई दे रही है। महलों के ये प्रतिबिम्ब उस मेवाड़ के पुरातन इतिहास और गौरव का स्मरण कराते हैं किन्तु आह्वान से भरे हुए उन शब्दों की वह प्रतिध्वनि आज सुनाई नहीं दे रही।

विशेष –

  1. कवि ने देश के पुरातन गौरव के प्रति उपेक्षा की भावना पर क्षोभ व्यक्त किया है।
  2. कवि चाहता है कि देश के युवक महाराणा प्रताप की तरह स्वदेश की स्वाधीनता तथा पुरातन गौरव की सुरक्षा में लगें।
  3. भाषा बोधगम्य प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली है।
  4. वीर रस है, ओज गुण है, मुक्त छंद है, उपमा अलंकार है।

शब्दार्थ – पेशोला = पिछोला झील। जल-मण्डल = झील में भरा पानी। विकल = व्याकुल। काया = शरीर। प्रताप = महाराणा प्रताप। प्रतिध्वनि = गूंज।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित “पेशोला की प्रतिध्वनि’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। कवि स्वदेश में व्याप्त पराधीनता को देखकर व्याकुल है। वह देश के पुरातन गौरव की उपेक्षा देखकर भी पीड़ित है। वह झील में बने महाराणा के महलों का प्रतिबिम्ब दिखाकर लोगों को सजग और सावधान करना चाहता है।

व्याख्या – कवि कहता है कि उदयपुर की पिछोला झील की विशाल जलराशि में स्वदेशवासियों को देश में व्याप्त पराधीनता तथा उपेक्षा के प्रति सजग करने वाले प्रेरणास्पद शब्द आज भी घूमते से लग रहे हैं, उनमें व्याकुलती भरी हुई है। किन्तु वैसी गूंज आज सुनाई नहीं दे रही। यह महाराणा प्रताप का वही मेवाड़ है। उसकी गौरवरूपी काया आज भी इस झील के जल में दिखाई दे रही है। महलों के ये प्रतिबिम्ब उस मेवाड़ के पुरातन इतिहास और गौरव का स्मरण कराते हैं किन्तु आह्वान से भरे हुए उन शब्दों की वह प्रतिध्वनि आज सुनाई नहीं दे रही।

विशेष –

  1. कवि ने देश के पुरातन गौरव के प्रति उपेक्षा की भावना पर क्षोभ व्यक्त किया है।
  2. कवि चाहता है कि देश के युवक महाराणा प्रताप की तरह स्वदेश की स्वाधीनता तथा पुरातन गौरव की सुरक्षा में लगें।
  3. भाषा बोधगम्य प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली है।
  4. वीर रस है, ओज गुण है, मुक्त छंद है, उपमा अलंकार है।

RBSE Solutions for Class 12 Hindi

Primary Sidebar

Recent Posts

  • RBSE Solutions for Class 6 Maths Chapter 6 Decimal Numbers Additional Questions
  • RBSE Solutions for Class 11 Psychology in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 11 Geography in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Hindi
  • RBSE Solutions for Class 3 English Let’s Learn English
  • RBSE Solutions for Class 3 EVS पर्यावरण अध्ययन अपना परिवेश in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Maths in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 4 Hindi
  • RBSE Solutions for Class 4 English Let’s Learn English
  • RBSE Solutions for Class 4 EVS पर्यावरण अध्ययन अपना परिवेश in Hindi Medium & English Medium

Footer

RBSE Solutions for Class 12
RBSE Solutions for Class 11
RBSE Solutions for Class 10
RBSE Solutions for Class 9
RBSE Solutions for Class 8
RBSE Solutions for Class 7
RBSE Solutions for Class 6
RBSE Solutions for Class 5
RBSE Solutions for Class 12 Maths
RBSE Solutions for Class 11 Maths
RBSE Solutions for Class 10 Maths
RBSE Solutions for Class 9 Maths
RBSE Solutions for Class 8 Maths
RBSE Solutions for Class 7 Maths
RBSE Solutions for Class 6 Maths
RBSE Solutions for Class 5 Maths
RBSE Class 11 Political Science Notes
RBSE Class 11 Geography Notes
RBSE Class 11 History Notes

Copyright © 2023 RBSE Solutions