Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 राजनीतिक सहभागिता
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 बहुंचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राजनीतिक सहभागिता का सूत्रपात किन विचारकों ने किया?
(अ) व्यवहारवादी
(ब) उदारवादी
(स) समाजवादी
(द) अतिवादी
प्रश्न 2.
इनमें से कौन-सा राजनीतिक सहभागिता का औजार नहीं है?
(अ) मतदान करना
(ब) चुनाव याचिका प्रस्तुत करना
(स) राजनीतिक दल को चन्दा देना
(द) देश की सीमा पार करने का प्रयास करना
प्रश्न 3.
प्रशासन गाँवों / शहरों की ओर कार्यक्रम राजनीतिक सहभागिता के किस अभिकरण का हिस्सा है?
(अ) आरम्भक
(ब) प्रत्याह्वान
(स) जनसुनवाई
(द) परिपृच्छा
प्रश्न 4.
‘प्रत्याह्वान’ का तात्पर्य है
(अ) कानूनी प्रस्ताव तैयार करना
(ब) निर्वाचित प्रतिनिधि को वापस बुलाना
(स) किसी प्रस्ताव पर मतदान करना
(द) विशेष अभियान चलाना
प्रश्न 5.
गैर परम्परागत राजनीतिक सहभागिता के उपायों में कौन-सा बेमेल है?
(अ) सविनय अवज्ञा
(ब) शासकीय पुरस्कार लौटाना
(स) नुक्कड़ नाटक
(द) आत्मघात
उतर:
1. (अ), 2. (द), 3. (स), 4. (ब), 5. (द)।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र का आरम्भ कहाँ से हुआ था
उत्तर:
रत्यक्ष लोकतन्त्र का आरम्भ स्विट्जरलैण्ड से हुआ था।
प्रश्न 2.
वर्तमान में लोकतन्त्र का कौन-सा रूप विद्यमान है?
उत्तर:
वर्तमान में प्रतिनिधि लोकतन्त्र का स्वरूप विद्यमान है।
प्रश्न 3.
राजनीतिक उदासीनता का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
शासकीय वर्ग जब राजनीतिक प्रक्रियाओं में जनता की सक्रिय भूमिका अदा करने के मार्ग में बाधा डालता है, तो जनता में राजनीतिक उदासीनता पैदा हो जाती है।
प्रश्न 4.
राजनीतिक सहभागिता के दो अभिकरणों के नाम लिखिए।
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता के दो प्रमुख अभिकरण इस प्रकार हैं
- दबाव समूह तथा
- सलाहकार परिषद।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अभिजात्य वर्ग की अधिक राजनीतिक सहभागिता से क्या आशय है?
उत्तर:
अभिजात्य वर्ग की अधिक राजनीतिक सहभागिता से आशय राजनीति में व्यावसायिक राजनीतिज्ञों की अति सक्रियता से है। जोसेफ शुम्पीटर की मान्यता है कि जनप्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिज्ञ अथवा राजनीतिक दलों के सक्रिय अथवा अग्रिम पंक्ति के व्यावसायिक राजनेता भी आर्थिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी जटिलताओं के कारण नीति।
निर्धारण में केवल सतही कार्य कर पाते हैं। वास्तविक सक्रियता अथवा सत्ता में भागीदारी तो केवल ब्यूरोक्रेट एवं टेक्नोक्रेट की ही होती है। वर्तमान समय में वास्तविक सहभागिता अल्पमात्रा में अभिजात्य वर्ग के हाथों में सिमट कर रह गयी है। आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था में लोकतन्त्र मूलत: राजनीतिज्ञों का शासन है जिसमें साधारण नागरिकों की भूमिका बहुत सीमित, अल्पकालिक, तथा काल्पनिक मात्र है।
प्रश्न 2.
सामुदायिक गतिविधि किसे कहते हैं?
उत्तर:
सामुदायिक गतिविधि राजनीतिक सहभागिता का एक स्वरूप है। इसके अन्तर्गत समुदाय के सदस्य किसी सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए (जैसे – स्वच्छता, सुरक्षा आदि) एक – दूसरे से मिलजुल कर कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त यदि कोई नागरिक अपने व्यक्तिगत अथवा सार्वजनिक मामलों के सन्दर्भ में जनप्रतिनिधियों से सम्पर्क करता है।
अथवा जब कोई नागरिक जलसे – जुलूस, विरोध प्रदर्शन, हड़ताल, धरना, बहिष्कार आदि गतिविधियों में भाग लेता है तो इसे । राजनीतिक सहभागिता का स्वरूप मान लेते हैं। नागरिक सहभागिता की वास्तविक कसौटी यह है कि कोई व्यक्ति अपने सामुदायिक कार्यों द्वारा सार्वजनिक नीति और निर्णयों को कहाँ तक प्रभावित कर पाता है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राजनीतिक सहभागिता के परम्परागत और गैर – परम्परागत स्वरूपों पर लेख लिखिए।
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता ऐसी गतिविधि है जिसके अन्तर्गत कोई व्यक्ति सार्वजनिक नीतियों एवं निर्णयों के निर्माण, निर्धारण और कार्यान्वयन की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेता है। राजनीतिक सहभागिता के दो स्वरूप हैं
(क) परम्परागत राजनीतिक सहभागिता
- नागरिक सहभागिता तथा
- राज्य सहभागिता
(ख) गैर – परम्परागत राजनीतिक सहभागिता
- नागरिक सहभागिता
- राज्य सहभागिता
परम्परागत राजनीतिक सहभागिता:
परम्परागत राजनीतिक सहभागिता में नागरिकों तथा राज्य सरकारों के उन कार्यों को सम्मिलित किया जाता है जिन्हें नागरिक प्राचीन काल से परम्परागत रूप से कर रहे हैं। इसमें राज्य सरकार भी अपनी सहभागिता अपने ढंग से प्रस्तुत करती है।
(i) नागरिक सहभागिता – परम्परागत राजनीतिक सहभागिता में नागरिक सहभागिता के प्रमुख रूप इस प्रकार हैं
- सरकार या जनप्रतिनिधियों के साथ सम्पर्क।
- पत्र, टेलीफोन, साक्षात्कार, सम्पादक के नाम पत्र लिखना, हस्ताक्षर अभियान आदि।
- दबाव समूहों के माध्यम से सहभागिता।
- राजनीतिक प्रचार अभियान।
- सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ना।
- चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुलाना तथा
- सार्वजनिक हित के किसी प्रस्ताव को आरम्भ करना।
(ii) राज्य सहभागिता – परम्परागत राजनीतिक सहभागिता में नागरिक सहभागिता के प्रमुख रूप इस प्रकार हैं
- चुनावों का आयोजन
- सार्वजनिक सुनवाई करना
- सलाहकार परिषदों का गठन
- परिपृच्छा (किसी प्रश्न पर निर्णय हेतु मतदान कराना)।
गैर – परम्परागत राजनीतिक सहभागिता: राजनीतिक सहभागिता का यह स्वरूप यदा-कदा नागरिकों द्वारा अपनाया जाता है। इसे राजनीतिक सहभागिता का विकृत या मानव श्रृंखला का उग्र रूप भी कहा जा सकता है।
(i) नागरिक सहभागिता-इसमें नागरिक सहभागिता के निम्न रूपों को शामिल किया गया है-
- विरोध प्रदर्शन, सभा, जुलूस, नारेबाजी, पोस्टरबाजी आदि।
- नुक्कड़ नाटक, हड़ताल, धरना, भूख हड़ताल आदि।
- सरकारी पुरस्कार को अस्वीकार करना या वापस करना आदि।
- सविनय अवज्ञा
- राजनीतिक हिंसा आदि।
(ii) राज्य सहभागिता-गैर-परम्परागत राजनैतिक सहभागिता में नागरिक सहभागिता के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं
- राष्ट्रीय पर्वो का आयोजन,
- गणतंत्र दिवस की परेड,
- विभिन्न अभियानों का संचालन करना यथा स्वच्छता, पल्सपोलियो, साक्षरता, टीकाकरण एवं वृक्षारोपण आदि।
- सार्वजनिक दौड़ यो मानव श्रृंखला का आयोजन करना यथा प्रश्नोत्तरी, निबन्ध, वाद-विवाद एवं चित्रकला प्रदर्शनी आदि।
प्रश्न 2.
राजनीतिक सहभागिता के पक्ष को रखते हुए आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता का तात्पर्य – जनसाधारण की राजनीतिक प्रक्रियाओं में प्रत्यक्ष या परोक्ष भागीदारी का होना राजनीतिक सहभागिता कहलाता है। जब राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों द्वारा व्यवस्था के सुचारु संचालन में विभिन्न स्तरों पर राजनीतिक प्रक्रियाओं में जन-भागीदारी सुनिश्चित की जाती है
तो इस प्रवृत्ति को जन सहभागिता या राजनीतिक सहभगिता कहा जाता है। लोकतन्त्र और राजनीतिक सहभागिता दोनों अविभाज्य हैं। पैरी ने लिखा है -“राजनीतिक सहभागिता से सम्बन्धित प्रत्येक पुस्तक लोकतन्त्र से भी सम्बन्धित है।” राजनीतिक सहभागिता के पक्ष में निम्नलिखित दृष्टिकोण महत्वपूर्ण हैं
- राजनीतिक सहभागिता स्वयं सहभागी व्यक्ति के हितों की रक्षा करती है या उन्हें बढ़ावा देती है। लोग राजनीतिक गतिविधि में भाग लेने से पूर्व उसके लाभ – हानि का आकलन करके उसमें सहभागिता करते हैं।
- सहभागिता के द्वारा नागरिकों में सामान्य नैतिकता, सामाजिक और राजनीतिक सजगता बढ़ती है।
- राजनीतिक सहभागिता किसी सामान्य हित के उद्देश्य को लेकर लोगों में एकजुटता की भावना पैदा करती है।
- राजनीतिक सहभागिता स्थानीय, जातीय व ऊँच – नीच के भेदभाव को भुलाकर सामान्य हित के बारे में लोगों को सोचने के लिए प्रेरित करती है।
समालोचना:
राजनीतिक सहभागिता लोकतन्त्र के लिए आवश्यक है किन्तु इसके लिए सिद्धान्त की अपेक्षा ठोस कार्यवाही की आवश्यकता है। वस्तुतः लोकतन्त्र के समर्थक आधुनिक लोकतान्त्रिक प्रणाली में नागरिकों की सहभागिता बढ़ाने पर जोर देते हैं, इसके लिए वे कोई वैकल्पिक व्यवस्था प्रस्तुत नहीं करते। राजनीतिक सहभागिता की समालोचना निम्नलिखित है
- जनतन्त्र में जनसाधारण की सहभागिता एक निश्चित सीमा तक तो लाभप्रद है किन्तु इसके आगे वह हानिकारक सिद्ध हो सकती है।
- सार्वजनिक नीतियों, कार्यक्रमों व निर्णयों के परिणाम आने में देर हो सकती है। इसके लिए समाज के कुछ वर्गों पर अतिरिक्त बोझ डालने की आवश्यकता भी पड़ सकती है।
- जन कल्याणकारी नीतियों के परिणामों की प्रतीक्षा जनसामान्य देर तक नहीं कर पाता और वह लोकतान्त्रिक व्यवस्था के विपरीत हथियार उठा लेता है।
- यदि जनसांमान्य की सहभागिता को अधिक प्रोत्साहन दिया जायेगा तो वे अपनी शिकायतों और विवादों को सड़कों पर ले जायेंगे जिससे सामान्य जनजीवन अस्त – व्यस्त हो जायेगा।
- आम नागरिक जब सड़कों पर आ जाता है तो उसे समझाना व नियन्त्रित करना बड़ा जटिल हो जाता है।
अत्यधिक राजनीतिक सहभागिता का कुत्सित रूप समाज में देखने को मिलता है। आये दिन सड़कों पर जलसे – जुलूस, नारेबाजी, रैलियाँ, प्रदर्शन, हड़ताल, धरना, सार्वजनिक सम्पत्तियों में तोड़ – फोड़, आगजनी, रास्ता रोकना, सड़क जाम, जेल भरो आन्दोलन, मारपीट, पथराव आदि घटनाएँ होती हैं। ऐसी स्थिति में सामान्यतः कथित राजनीतिक लोग लोकतन्त्र की आड़ में अपनी अनुचित माँगों को भी मनवा लेते हैं। यह सब राजनीतिक सहभागिता के नाम पर किया जाता है। वस्तुतः राजनीतिक सहभागिता का विवेक संगत उपयोग ही सार्थक परिणाम दे सकता है।
प्रश्न 3.
राजनीतिक सहभागिता के प्रमुख अभिकरणों की जानकारी देते हुए उनका इस प्रक्रिया में योगदान बताइए।
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता के प्रमुख अभिकरण व उनका इस प्रक्रिया में योगदान: वे कारक जिनके राजनीतिक सहभागिता में सहयोग मिलता है, जो राजनीतिक सहभागिता के साधन हैं, उन्हें ही राजनीतिक सहभागिता के उपकरण या अभिकरण कहा जाता है। राजनीतिक सहभागिता के प्रमुख अभिकरण और उनकी आवश्यकता (उपयोगिता) को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है
- बाव समूह – दबाव समूह किसी सामान्य हित के लिए निर्मित होते हैं और प्रशासन पर उसे मनवाने के लिए दबाव डालते हैं। पश्चिमी देशों में यह प्रक्रिया अधिक प्रभावी है।
- आरम्भक – यह प्रणाली स्विट्रलैण्ड में अधिक प्रचलित है। इसमें एक सामान्य मतदाता किसी कानून या संविधान संशोधन का प्रारूप तैयार करके विधानमण्डल में पास कराने, विचार अथवा मतदान के लिए भेज सकता है। इस प्रस्ताव पर मतदाताओं का निर्धारित संख्या के हस्ताक्षर होना अनिवार्य होता है।
- प्रत्याह्वान – इस व्यवस्था के अन्तर्गत मतदाता अपने चुने हुए प्रतिनिधि को उसका कार्यकाल समाप्त होने से पहले उसे उसके पद से हटाने का अधिकार रखता है। इस प्रस्ताव पर एक निर्धारित संख्या में मतदाताओं के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं। स्विट्जरलैण्ड में यह प्रथा प्रचलित है। भारत में विगत कई वर्षों से इस प्रकार के सुधार की माँग की जा रही है।
- जन सुनवाई – इस प्रक्रिया में जन प्रतिनिधि सार्वजनिक अधिकारों के विभिन्न विषयों पर जनता के विचार और उनकी समस्याओं को जानने की कोशिश करते हैं और उनके समाधान का त्वरित प्रयास करते हैं। वर्तमान में भारत में यह व्यवस्था संस्थाबद्ध हो चुकी है।
- सलाहकार परिषद – वर्तमान समय में सरकारें विभिन्न विभाग से जुड़े कार्यों के विशेष पक्षों पर सलाह लेने के लिए उससे सम्बद्ध नागरिकों का एक संगठन बना देती हैं, जिसे सलाहकार परिषद कहते हैं। भारत में अनेक विभागों में ऐसी सलाहकार समितियों एवं परिषदों का गठन किया गया है।
- परिपृच्छा – इसके अन्तर्गत किसी सार्वजनिक महत्व के प्रश्न पर जैसे कि किसी नए कानून, संविधान व संवैधानिक संशोधन के प्रश्न पर जनसाधारण से मतदान कराया जाता है। ब्रिटेन में यूरोपीय यूनियन की सदस्यता के लिए अभी मतदान करवाकर निर्णय लिया गया जिसमें जनता ने सदस्य बने रहने से मना कर दिया।
- सविनय अवज्ञा – सविनय अवज्ञा आन्दोलन गाँधीजी का भी एक अस्त्र था। इसमें किसी अन्यायपूर्ण कानून को जानबूझकर और खुले तौर पर तोड़ा जाता है अथवा किसी निषिद्ध स्थान पर पहुँचकर स्वेच्छा से गिरफ्तारी दी जाती है। इस माध्यम से जनता और सरकार का ध्यान विशेष मुद्दे की ओर आकर्षित किया जाता है।
- राजनीतिक प्रतिहिंसा – यह विरोध का उग्र रूप है। इसमें बमबारी, हिंसा, हत्या, उपद्रव, लोगों को बन्धक बनाना, सार्वजनिक सम्पत्ति को हानि पहुँचाना जैसी कार्यवाहियाँ की जाती हैं। ये गतिविधियाँ लोकतन्त्र का उल्लंघन हैं। सामान्यतः ऐसा देखा गया है कि ऐसी स्थितियों में सरकारें या तो मौन रहती हैं या फिर झुक जाती हैं।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 बहुंचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार किस देश में है ?
(अ) भारत में
(ब) संयुक्त राज्य अमेरिका में
(स) स्विट्जरलैण्ड में।
(द) न्यूजीलैण्ड में निबन्धात्मक
प्रश्न 2.
“राजनीतिक सहभागिता से सम्बन्धित प्रत्येक पुस्तक लोकतन्त्र से भी सम्बन्धित होती हैं” यह कथन है
(अ) मैक्ग्लोस्की का.
(ब) पैरी का
(स) काश और मार्श का
(द) सिडनी बर्बा का
प्रश्न 3.
“लोकतन्त्र की निराली विशेषता उसके नागरिकों को प्राप्त भूमिका में निहित है” – यह कथन है
(अ) पैरीक्लीज का
(ब) बेन्जामिन बार्बर का
(स) सिडनी बर्बा का
(द) राबर्ट डहल का
प्रश्न 4.
निम्न में से कौन से तत्व राजनीतिक सहभागिता को सुनिश्चित करते हैं?
(अ) नागरिकों की चेतना
(ब) शिक्षा का स्तर
(स) वैचारिक स्तर
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 5.
जोसेफ शुम्पीटर के अनुसार सत्ता में वास्तविक भागीदारी होती है —
(अ) व्यावसायिक राजनीतिज्ञों की
(ब) सामान्य नागरिकों की
(स) ब्यूरोक्रेट और टेक्नोक्रेट की
(द) उपर्युक्त सभी की।
प्रश्न 6.
‘सार्वजनिक पद के लिए चुनाव लड़ना’ किस प्रकार की राजनीतिक सहभागिता है?
(अ) परम्परागत नागरिक राजनीतिक सहभागिता
(ब) परम्परागत राज्य – राजनीतिक सहभागिता .
(स) गैर – परम्परागत नागरिक राजनीतिक सहभागिता
(द) गैर – परम्परागत राज्य राजनीतिक सहभागिता
प्रश्न 7.
भारत में राजनीतिक सहभागिता का कौन – सा स्वरूप लगभग संस्थाबद्ध हो चुका है?
(अ) दबाव समूह
(ब) प्रत्याह्वान
(स) जन सुनवाई
(द) परिपृच्छा
प्रश्न 8.
राजनीतिक सहभागिता के लिए आवश्यक है-
(अ) जनसाधारण को खुली छूट देना
(ब) कुछ चयनित सदस्यों को ही अवसर देना
(स) जाति और वर्ग का ध्यान रखना
(द) विवेकसंगत उपयोग को सुनिश्चित करना
प्रश्न 9.
राजनीतिक सहभागिता की सामुदायिक गतिविधि में जो शामिल नहीं है, बताइए
(अ) स्वच्छता अभियान
(ब) पल्स पोलियो कार्यक्रम
(स) सार्वजनिक सुरक्षा
(द) सरकार और नागरिकों के बीच
प्रश्न 10.
निम्न में से राजनीतिक सहभागिता के सन्दर्भ में जो कथन सत्य नहीं है, बताइए-
(अ) राजनीतिक सहभागिता लोकतान्त्रिक व्यवस्था का प्राण है।
(ब) राजनीतिक सहभागिता का सूत्रपात व्यवहारवादियों ने किया।
(स) राजनीतिक सहभागिता व्यवस्था को आधुनिक व उदार बनाती है।
(द) राजनीतिक सहभागिता जनसाधारण को निरंकुश बनाती है।
उतर:
1. (स), 2. (ब), 3. (अ), 4. (द), 5. (स), 6. (अ), 7. (स), 8. (द), 9. (द), 10. (द)।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राजनीतिक सहभागिता क्या है? बताइए। अथवा जन सहभागिता किसे कहते हैं?
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता का अर्थ है – जनसाधारण की राजनीतिक प्रक्रियाओं में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भागीदारी का होना।
प्रश्न 2.
राजनीतिक सहभागिता और प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के लिए विश्व का अग्रणी देश कौन-सा है?
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता और प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के लिए विश्व का अग्रणी देश स्विट्जरलैण्ड है।
प्रश्न 3.
कोई दो अधिकार बताइये जिनसे चयनित जनप्रतिनिधि निर्वाचकों की उपेक्षा नहीं कर सकते।
उत्तर:
- चयनित प्रतिनिधियों को समय से पूर्व वापस बुलाने का अधिकार
- जनमत संग्रह द्वारा जन सहमति से देश के कानूनों में परिवर्तन करने का अधिकार ।
प्रश्न 4.
स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्पराओं के विकास के लिए कोई दो उपाय बताइए।
उत्तर:
- राजनीतिक शक्ति सम्पन्न सत्ताधारी व्यक्ति द्वारा जनसाधारण को राजनीतिक सहभागिता हेतु प्रेरित करना
- जनसाधारण की राजनीतिक सहभागिता को सकारात्मक रूप में स्वीकार करना।
प्रश्न 5.
राजनीति विज्ञान में राजनीतिक सहभागिता का सूत्रपात किसने किया?
उत्तर:
व्यवहारवादियों ने।
प्रश्न 6.
राजनीतिक सहभागिता की अवधारणा का प्रारम्भिक स्वरूप कहाँ दिखता है?
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता की अवधारणा का प्रारम्भिक स्वरूप रूसो और गणतन्त्रवादियों के लेखों में मिलता है।
प्रश्न 7.
राजनीतिक सहभागिता के दो सैद्धान्तिक स्वरूप क्या हैं?
उत्तर:
सिद्धान्त रूप में राजनीतिक सहभागिता के दो रूप इस प्रकार हैं –
- विकासपरक तथा
- लोकतान्त्रिक।
प्रश्न 8.
राजनीतिक सहभागिता में वृद्धि के कोई दो पहलू बताइए।
उत्तर:
- जैसे – जैसे शासकीय गतिविधियों और उत्तरदायित्वों में वृद्धि हुई, राजनीतिक सहभागिता अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है।
- सोशल मीडिया ने राजनीतिक सहभागिता को और अधिक बढ़ावा दिया है।
प्रश्न 9.
लोकतन्त्र और राजनीतिक सहभागिता के सम्बन्ध में पैरी महोदय का क्या कथन है?
उत्तर:
पैरी महोदय के अनुसार-“राजनीतिक सहभागिता से सम्बन्धित प्रत्येक पुस्तक, लोकतन्त्र से भी सम्बन्धित होती है।”
प्रश्न 10.
लोकतन्त्र और राजनीतिक सहभागिता के सम्बन्ध के विषय में काश और मार्श के कथन को बताइए।
उत्तर:
लोकतन्त्र और राजनीतिक सहभागिता के सम्बन्ध के विषय में काश और मार्श ने लिखा है-“राजनीतिक सहभागिता की धारणा लोकतान्त्रिक राज्य की अवधारणा के केन्द्र में अवस्थित है।”
प्रश्न 11.
लोकतन्त्र और राजनीतिक सहभागिता पर वरबा और नी के क्या विचार थे?
उत्तर:
लोकतन्त्र और राजनीतिक सहभागिता पर वरबा और नी ने लिखा है-“जहाँ निर्णयों में कम लोग भाग लेते हैं, वहाँ लोकतन्त्र का अंश कम होता है, जहाँ निर्णयन में अधिक भागीदारी होती है, वहाँ अधिक प्रभावी लोकतन्त्र पाया जाता
प्रश्न 12.
राजनीतिक सहभागिता के विषय में पैरीक्लीज का क्या कथन है?
उत्तर:
लोकतन्त्र में प्रजातान्त्रिक निर्णयन में नागरिकों की भागीदारी एक अपरिहार्य शर्त है। पैरीक्लीज ने लिखा है-“लोकतन्त्र की निराली विशेषता उसके नागरिकों को प्राप्त भूमिका में निहित है।”
प्रश्न 13.
बैंजामिन बार्बर ने कमजोर उदार लोकतन्त्र की क्या कमी बताई है?
उत्तर:
बैंजामिन बार्बर ने ‘Thin Democracy or Politics as Zookeeping’ जैसी शब्दावली का प्रयोग करते हुए बताया है कि कमजोर उदार लोकतन्त्र में व्यापक रूप से निजीभाव (स्वार्थभाव) प्रभावी रहता है।
प्रश्न 14.
राजनीतिक सहभागिता का स्वरूप कैसे मुखर हुआ?
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता राजशाही से लोकशाही की परिवर्तन यात्रा, नागरिकों की बढ़ती आकांक्षा और अपेक्षाओं का परिणाम है। लोकशाही ने जब सैद्धान्तिक प्रक्रिया से आगे बढ़कर प्रतिनिधि लोकतन्त्र का रूप धारण किया तब राजनीतिक सहभागिता का स्वरूप मुखर हुआ।
प्रश्न 15.
राजनीतिक सहभागिता को सुनिश्चित करने वाले दो कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- साक्षरता तथा
- जनसंख्या का घनत्व व विस्तारित फैलाव।
प्रश्न 16.
साक्षरता और राजनीतिक सहभागिता में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
जिन देशों में साक्षरता का प्रतिशत जितना अधिक होता है वहाँ के नागरिकों की राजनीतिक सहभागिता का स्तर भी उतना ही अधिक होता है।
प्रश्न 17.
लोकतन्त्र में राजनीतिक सहभागिता के लिए अपनाये जाने वाले किन्हीं दो मानदण्डों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- मतदान में भाग लेने वाले नागरिकों की प्रतिशत मात्रा
- राजनीतिक दलों के प्रचार-प्रसार में हिस्सा लेने वाले नागरिकों की प्रतिशत मात्रा।
प्रश्न 18.
परम्परागत राजनीतिक नागरिक सहभागिता के दो रूप लिखिए।
उत्तर:
- सरकार या जनप्रतिनिधियों के साथ सम्पर्क
- राजनीतिक प्रचार अभियान
प्रश्न 19.
गैर – परम्परागत राजनीतिक नागरिक सहभागिता के दो रूप लिखिए।
उत्तर:
- सविनय अवज्ञा
- राजनीतिक हिंसा।
प्रश्न 20.
गैर – परम्परागत राजनीतिक-राज्य सहभागिता के दो रूप बताइये।
उत्तर:
गैर – परम्परागत राजनीतिक राज्य सहभागिता के दो रूप निम्न हैं
- राष्ट्रीय पर्वो का आयोजन, गणतंत्र दिवस परेड तथा
- सार्वजनिक दौड़ या मानव श्रृंखला का आयोजन।।
प्रश्न 21.
स्विट्जरलैण्ड में प्रचलित राजनीतिक सहभागिता के दो प्रमुख अभिकरणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- आरम्भक (प्रस्ताव तैयार करना),
- प्रत्याह्वान (प्रतिनिधि वापस बुलाना)।
प्रश्न 22.
क्या राजनीतिक प्रतिहिंसा राजनीतिक सहभागिता का अभिकरण है?
उत्तर:
राजनीतिक प्रतिहिंसा, राजनीतिक सहभागिता का गैर परम्परागत स्वरूप है। इसमें विरोध प्रदर्शन का सबसे उग्र रूप बमबारी, हत्या, उपद्रव, लोगों को बन्धक बनाना, सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान आदि क्रियाएँ सम्मिलित हैं। ये क्रियाएँ लोकतन्त्र का उल्लंघन माना जाता है।
प्रश्न 23.
सविनय अवज्ञा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सविनय अवज्ञा से तात्पर्य किसी अन्यायपूर्ण कानून को जानबूझकर तोड़ना अथवा किसी निषिद्ध स्थान पर जाकर स्वेच्छा से गिरफ्तारी देना आदि है। ऐसा करके किसी विशेष मुद्दे पर जनता और सरकार का ध्यान खींचा जाता है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्पराओं के विकास की शर्ते क्या हैं?
उत्तर:
प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक शक्ति कुछ लोगों के हाथ में ही सीमित होती है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था लोगों की इच्छा पर निर्भर करती है और सत्ता संघर्ष में यथासम्भव अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी की कामना की जाती है। लोकतंत्र में व्यापक जन सहभागिता रहती है। स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्पराओं के विकास के लिए आवश्यक है कि|
- राजनीतिक शक्ति सम्पन्न सत्ताधारी व्यक्ति जनसाधारण को राजनीतिक सहभागिता के लिए प्रेरित करें।
- राजनीतिक सहभागिता का अंश अधिक होने पर व्यवस्था सबल बनती है।
- राजनीतिक प्रक्रियाओं के प्रति जनता की उदासीनता शासकीय वर्ग की बेरुखी का परिणाम होती है। ऐसी स्थिति में व्यवस्था विघटित होने की आशंका बनी रहती है।
प्रश्न 2.
राजनीतिक सहभागिता के सम्बन्ध में मैक्ग्लोस्की ने क्या लिखा है?
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता के सम्बन्ध में मौक्लोस्की का कथन है-“यह उन स्वैच्छिक क्रियाओं व प्रतिक्रियाओं से सम्बन्धित हैं जिनमें नागरिक व जनता भाग लेती है तथा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में जन – नीतियों के निर्माण में भाग लेती हैं। वे अन्तत: शासन में नीति निर्माण की सम्पूर्ण प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं, व सत्ताधारी लोगों की मनमानी पर अंकुश लगाती हैं।” मैक्गुलोस्की की मान्यता है कि राजनीतिक सहभागिता केवल लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं की ही प्रवृत्ति नहीं है।
अपितु न्यूनाधिक मात्रा में यह सभी व्यवस्थाओं में विद्यमान रहती है। उनकी यह भी मान्यता है कि आधुनिक सुदृढ़ लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इसकी मात्रा का अधिक पाया जाना आवश्यक नहीं है। राजनीतिक सहभागिता विकासशील व अन्य व्यवस्थाओं में भी पाई जा सकती है। यह मात्रात्मक होने के स्थान पर गुणात्मक भी हो सकती है।
प्रश्न 3.
राजनीतिक सहभागिता के प्रमुख औजार कौन से हैं?
उत्तर:
विश्व में 1940 व 1950 के दशक में चुनावी सहभागिता पर केन्द्रित भागीदारी राजनीतिक व्यवस्था की प्रत्येक प्रक्रिया को प्रभावित करती है। इसके अन्तर्गत निम्न औजार अपनाये जाते हैं-
- वोट देना व दिलाना
- चंदा देना
- याचिका प्रस्तुत करना
- सत्ताधारी जनप्रतिनिधियों पर प्रभाव डालना
- रैली निकालना व किसी विशेष मुद्दे पर धरना प्रदर्शन करना
- जन प्रतिनिधियों का घेराव व विरोध प्रदर्शन करना आदि।
प्रश्न 4.
एक सशक्त व सहभागी लोकतन्त्र के लिए बेन्जामिन बार्बर ने क्या आवश्यक बताया है?
उत्तर:
बेन्जामिन बार्बर एक प्रसिद्ध राजनीतिशास्त्री थे। इन्होंने सशक्त लोकतंत्र का जोरदार ढंग से समर्थन किया। उनकी मान्यता है कि सशक्त सहभागी लोकतन्त्र, कमजोर उदार लोकतन्त्र की अपेक्षा श्रेष्ठ है। सशक्त लोकतन्त्र के लिए इन्होंने निम्न बातें आवश्यक मानी हैं
- प्रतिद्वंद्वी नागरिक समूह बिना किसी मध्यस्थ के सीधे स्वशासन में भाग लें।
- प्रत्येक व्यक्ति का एक-दूसरे से सीधा सम्पर्क हो।
- सम्पर्क हेतु किसी मध्यस्थ या विशेष योग्य बिचौलिये की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
प्रश्न 5.
जनसंख्या घनत्व व क्षेत्रीय विस्तार राजनीतिक सहभागिता को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता से तात्पर्य जनसामान्य की निर्णय: निर्माण में वास्तविक भागीदारी से है। नागरिकों की चेतना, उनका शैक्षिक स्तर तथा वैचारिक धरातल आदि ऐसे तत्व हैं जो राजनीतिक सहभागिता को सुनिश्चित करते हैं। वहीं अधिक जनघनत्व तथा अधिक क्षेत्रीय विस्तार राजनीतिक सहभागिता पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। अधिक जनसंख्या के कारण नागरिक अपने जनप्रतिनिधियों के साथ व्यापक रूप से चर्चा – परिचर्चा नहीं कर पाते।
ऐसा देखा गया है कि बड़े देशों में नागरिक अल्पसमय के लिए ही अपने जनप्रतिनिधियों से संवाद कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में नागरिकों की लोकतान्त्रिक तथा राजनीतिक सहभागिता अत्यल्प सक्रिय रह पाती है। यह स्थिति स्वस्थ लोकतन्त्र के लिए अधिक उपयुक्त नहीं मानी जा सकती।
प्रश्न 6.
वर्तमान समय में वास्तविक सहभागिता अल्पमात्रा में अभिजात्य वर्ग के हाथों में सिमट गयी है-इस सम्बन्ध में जोसेफ शुम्पीटर के विचार बताइए।
उत्तर:
लोकतन्त्र में नागरिकों की प्रभावी और सक्रिय सहभागिता प्रथम और अनिवार्य शर्त है लेकिन व्यावहारिकता में ऐसा नहीं है। जोसेफ शुम्पीटर की मान्यता है कि-शासन चलाना और सार्वजनिक नीतियाँ बनाना व्यावसायिक राजनीतिज्ञों का काम है। सामान्य नागरिक चुनावों के समय राजनीतिक दलों के माध्यम से केवल प्रतिनिधियों के चुनाव तक ही सीमित है। यह प्रक्रिया नागरिकों को नेपथ्य में धकेल देती है और शासन, सत्ता या विपक्ष में केवल चुनिन्दा राजनीतिज्ञ हैं।
जनप्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिज्ञ तथा राजनीतिक दलों के सक्रिय एवं अग्रिम पंक्ति के व्यावसायिक राजनेता आर्थिक वैज्ञानिक एवं तकनीकी पेचीदगियों के चलते नीति-निर्माण में केवल सतही कार्य कर पाते हैं। वास्तविक सक्रियता और सत्ता में भागीदारी ब्यूरोक्रेट एवं टेक्नोक्रेट की होती है। इस प्रकार जोसेफ शुम्पीटर के अनुसार वर्तमान समय में वास्तविक सहभागिता अल्पमात्रा में अभिजात वर्ग के हाथों में सिमट कर रह गयी है।
प्रश्न 7.
लोकतन्त्र के अभिजात्य स्वरूप के सम्बन्ध में राबर्ट डहल के क्या विचार हैं?
उत्तर:
राबर्ट डहल ने लोकतन्त्र के वर्तमान अभिजात्य स्वरूप की बहुत कठोरता पूर्वक आलोचना की है। इन्होंने कहा है कि यह ऐसी यन्त्रबद्ध व्यवस्था है जो बाजार के सिद्धान्तों का अनुसरण करती है तथा विभिन्न हित समूहों के परस्पर विरोधी हितों में सन्तुलन स्थापित करने के लिए स्वतः ही अभिजात्य प्रक्रिया का हिस्सा बन जाती है।
इस प्रक्रिया में सम्पूर्ण समाज शासन पर नियन्त्रण करने के लिए दो या कुछ अधिक समूहों में विभक्त होकर स्वनिर्मित अभिजात्य समूहों का अनुगामी बन जाता है। इस प्रकार ऐसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में नागरिकों की सहभागिता का स्तर अत्यन्त न्यून होता है जो किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है।
प्रश्न 8.
राजनीतिक सहभागिता के पक्ष में कोई तीन तर्क दीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता के पक्ष में तर्: राजनीतिक सहभागिता के पक्ष में तीन तर्क निम्नलिखित हैं
- राजनीतिक सहभागिता स्वयं सहभागी व्यक्ति के हितों की रक्षा करने के साथ-साथ उनको बढ़ावा देती है। लोग राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से पूर्व उसके लाभ-हानि का आकलन करके उसमें सहभागिता करते हैं।
- राजनीतिक सहभागिता की प्रक्रिया नागरिकों की सामान्य नैतिक सामाजिक एवं राजनीतिक सजगता में वृद्धि करती है।
- राजनीतिक सहभागिता सामान्य हितों के लिए नागरिकों की एकजुटता में वृद्धि करती है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राजनीतिक सहभागिता की उपादेयता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सहभागिता की उपादेयता – प्राचीन काल से ही यह धारणा रही है कि जनतन्त्र की सफलता की एक महत्वपूर्ण शर्त अधिक से अधिक सार्वजनिक राजनीतिक सहभागिता है। यह भी सत्य है कि आज के प्रतिनिधि लोकतन्त्र में नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में सार्थक सहभागिता के बहुत कम अवसर प्राप्त होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि इस प्रणाली के अन्तर्गत निर्वाचक मण्डल को राजनीतिक समस्याओं के बारे में जानकारी बहुत कम होती है। अन्य स्थितियाँ भी इससे मिलती – जुलती हैं। जो निम्नलिखित हैं
- मतदाता मतदान के प्रति उदासीन रहते हैं।
- राजनीतिक प्रतिनिधि सार्वजनिक उत्तरदायित्वों से प्रायः विमुख दिखाई देते हैं।
- प्रशासन में पद और शक्ति का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार विस्तृत रूप से फैला हुआ है।
उपर्युक्त विसंगतियों के बावजूद यदि नागरिकों को राजनीतिक सहभागिता के उचित अवसर मिलें तो वे निश्चय ही सार्वजनिक समस्याओं पर विस्तृत बातचीत करेंगे और राजनीतिज्ञों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखेंगे। इस स्थिति में निश्चय ही शक्ति का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार सीमित होगा। इस प्रकार राजनीतिक सहभागिता उत्तम समाज के लिए जरूरी होने के साथ ही उत्तम जीवन का भी एक आवश्यक पहलू है। वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि सार्वजनिक निर्णयों तक पहुँचने में आम नागरिकों की सहभागिता को बढ़ावा दिया जाये। विश्व के बड़े – बड़े लोकतान्त्रिक देश इस उद्देश्य की सार्थकता के लिए निम्न दो तरीकों का सुझाव देते हैं
- शासन और प्रशासन का विकेन्द्रीकरण हो अनेक सार्वजनिक निर्णय स्थानीय समुदायों को सौंप दिये जायें। भारत में पंचायती राज व्यवस्था प्रशासन के विकेन्द्रीकरण की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है।
- सार्वजनिक नीतियों को निर्धारित करने की प्रक्रिया में परिपृच्छा अर्थात् किसी नये कानून, संविधान तथा संविधान संशोधन के प्रश्न पर जनसामान्य से मतदान कराया जाए। इससे नागरिकों की राजनीतिक सहभागिता को बढ़ावा मिलेगा।