Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 महिला एवं बाल श्रम के विविध आयाम, राजस्थान में महिलाओं की स्थिति एवं सामाजिक चेतना
RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 अभ्यासार्थ प्रश्न
RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
ब्रह्म समाज की स्थापना किस वर्ष में हुई?
(अ) 1828
(ब) 1820
(स) 1819
(द) 1825
उत्तरमाला:
(अ) 1828
प्रश्न 2.
हिन्दू विवाह अधिनियम कब पारित हुआ?
(अ) 1976
(ब) 1946
(स) 1937
(द) 1955
उत्तरमाला:
(द) 1955
प्रश्न 3.
किसकी अध्यक्षता में ‘देश हितैषिणी सभा’ की स्थापना की गई?
(अ) महाराणा सज्जन सिंह
(ब) महाराणा रतन सिंह
(स) महाराणा जय सिंह
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) महाराणा सज्जन सिंह
प्रश्न 4.
ऑल इंडिया वूमेन्स कॉन्फरेन्स की स्थापना किस सन् में हुई?
(अ) 1929
(ब) 1920
(स) 1919
(द) 1918
उत्तरमाला:
(अ) 1929
प्रश्न 5.
1866 में ह्यूसन गर्ल्स स्कूल किस राजा ने खोला था?
(अ) महाराणा सज्जन सिंह
(ब) राजा कुमार सरदार सिंह
(स) महाराणा जय सिंह
(द) महाराणा रतन सिंह
उत्तरमाला:
(ब) राजा कुमार सरदार सिंह
प्रश्न 6.
बाल श्रमिकों के व्यवसाय को मुख्य तौर पर कितने वर्गों में बाँटा गया है?
(अ) पाँच
(ब) चार
(स) तीन
(द) छः
उत्तरमाला:
(ब) चार
प्रश्न 7.
मानव दुर्व्यवहार एवं बलात् श्रम का प्रतिरोध किस अनुच्छेद में किया गया है?
(अ) अनुच्छेद 24
(ब) अनुच्छेद 23
(स) अनुच्छेद 28
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) अनुच्छेद 23
RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतीय संस्कृति के किस काल में नारी की प्रतिष्ठा को पुरुषों के समानांतर ही स्वीकार किया गया था?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति के उन्मेषकाल में नारी की मान – प्रतिष्ठा को पुरुषों के समानांतर ही स्वीकार किया गया था।
प्रश्न 2.
के. एम. पणिक्कर की पुस्तक का नाम लिखें।
उत्तर:
के. एम. पणिक्कर की पुस्तक का नाम “Hindu Society at cross roads” है।
प्रश्न 3.
‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना किसने की थी?
उत्तर:
1828 में सर्वप्रथम राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी।
प्रश्न 4.
बाल विवाह नियंत्रण अधिनियम (शारदा एक्ट) कब पारित हुआ?
उत्तर:
1929 में बाल विवाह नियंत्रण अधिनियम (शारदा एक्ट) पारित हुआ।
प्रश्न 5.
भारत के संविधान के किस संशोधन में महिलाओं को पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण प्राप्त हुआ?
उत्तर:
73वें और 74वें संशोधन में विशेष रूप से अनुसूचित जनजाति महिलाओं को पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण निश्चित किया।
प्रश्न 6.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (IV) के अनुसार किस राज्य की महिलाओं के पास सर्वाधिक स्वयं का बैंक खाता है?
उत्तर:
गोवा’ राज्य की महिलाओं के पास सर्वाधिक स्वयं के बैंक खाते हैं।
प्रश्न 7.
राज्य की महिला साक्षरता दर वर्तमान में कितनी है?
उत्तर:
राज्य की महिला साक्षरता दर केवल 52.66 प्रतिशत है।
प्रश्न 8.
‘श्री सावित्री कन्या पाठशाला’ की स्थापना कब और कहाँ हुई?
उत्तर:
4 फरवरी, 1914 में अजमेर में ‘श्री सावित्री कन्या पाठशाला’ की स्थापना हुई थी।
प्रश्न 9.
‘राजस्थान महिला विद्यालय’ की स्थापना किसने की थी?
उत्तर:
स्वतंत्रता से पूर्व मेवाड़ अंचल में भैरुलालजी गेलडा’ ने 1916 में ‘राजस्थान महिला विद्यालय’ की स्थापना की थी।
प्रश्न 10.
भारतीय संविधान के अनुसार किस आयु के बच्चे बाल श्रमिक माने जाते हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुसार 5 से 14 वर्ष के बीच में बालक/बालिका जो वैतनिक श्रम करते हैं या श्रम के द्वारा पारिवारिक कर्ज चुकाते हैं, बाल श्रमिक हैं।
प्रश्न 11.
बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम किस सन् में लागू हुआ?
उत्तर:
1986 में बालश्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम लागू किया गया।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अथर्ववेद में नारी की प्रस्थिति की विवेचना जिन शब्दों में की गयी है, लिखें।
उत्तर:
अथर्ववेद में यह स्पष्ट किया गया है कि – “नववधु, तू जिस घर में जा रही है, वहाँ की तू साम्राज्ञी है। तेरे ससुर, सास, देवर व अन्य तुझे साम्राज्ञी समझते हुए तेरे शासन में आनंदित हैं।”
अतः उपरोक्त परिभाषा से निम्न तथ्य स्पष्ट होते हैं –
- उन्नत स्थिति: इस परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं की स्थिति समाज व परिवारों में उन्नत थी।
- पुरुषों के समानांतर मान प्रतिष्ठा: महिलाओं की प्रस्थिति समाज व घरों में पुरुषों के समान ही आँकी जाती थी। उन्हें निम्न नहीं समझा जाता था, तथा उन्हें पुरुषों की भाँति ही अधिकारों की प्राप्ति थी।
- शासक के रूप में स्त्रियों की भूमिका: इस परिभाषा से यह भी स्पष्ट होता है कि महिलाओं की स्थिति घरों में एक शासक की भाँति शक्तिशाली थी, जिसके पास संपूर्ण शक्तियाँ थीं, जिससे वह अपने पारिवारिक सदस्यों की जिम्मेदारियों का वहन उचित प्रकार से कर सकती थी।
प्रश्न 2.
प्रथम भक्ति आंदोलन का आरम्भ किसने और कब किया?
उत्तर:
प्रथम भक्ति आंदोलन का आरम्भ रामानुजाचार्य ने मध्यकाल में किया था। भक्ति आंदोलन ने समाज में महिलाओं के लिए अनेक कार्य किये, जो इस प्रकार हैं
- स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में बदलाव: इन आंदोलनों ने समाज में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में काफी बदलाव किये, उन्हें कई प्रकार के धार्मिक अधिकार भी प्रदान किये गए थे।
- धार्मिक जीवन में उत्थान: नानक, मीरा, तुलसी तथा तुकाराम जैसे संतों ने स्त्रियों के लिए धार्मिक पूजा व अर्चना का सबल पक्ष प्रस्तुत किया। इसके अलावा इन आंदोलनों ने स्त्रियों की धार्मिक स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया व उन्हें धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन व स्वयं को शिक्षित बनाने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न 3.
प्रमुख स्त्री संगठनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारतीय स्त्रियों की सामाजिक प्रस्थिति में बदलाव के लिए अनेक स्त्री संगठनों द्वारा अथक प्रयास किए गए। जिनमें प्रमुख स्त्री संगठनों के नाम निम्नलिखित हैं –
- ‘बंग महिला समाज’ तथा ‘महिला थियोसोफिकल सोसायटी’ ने समाज में स्त्रियों के लिए आधुनिक आदर्शों को स्थापित करने का प्रयास किया।
- 1917 में एनी बेसेंट द्वारा संचालित महिला भारतीय संघ का निर्माण किया गया।
- 1925 में लेडी एबरडन तथा लेडी टाटा द्वारा प्रारम्भ किया गया ‘भारतीय महिला राष्ट्रीय परिषद्’।
- 1927 में मार्गरेट कसिन्स तथा अन्य के द्वारा 1929 में स्थापित ‘ऑल इंडिया वूमेन्स कॉन्फरेंस’ किया गया।
इन समस्त संगठनों का उद्देश्य पर्दा एवं बाल विवाह जैसी बुराइयों का उन्मूलन, हिंदू अधिनियमों में सुधार, अधिकारों व
अवसरों की समानता जैसे अन्य मुद्दों को उठाया गया।
प्रश्न 4.
दसवीं पंचवर्षीय योजना में महिलाओं के लिए क्या प्रावधान प्रमुख था?
उत्तर:
दसवीं पंचवर्षीय योजना में महिलाओं के मुख्य रूप से दो प्रावधानों पर विशेष बल दिया गया, जो अग्र प्रकार से हैं –
- लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना:
इस योजना के अंतर्गत महिलाओं के प्रति समाज में बरती जाने वाली लैंगिक असमानता को खत्म करना था। जहाँ महिलाओं को पुरुषों से सदैव कम आंका जाता है। वहाँ महिलाओं की प्रस्थिति में सुधार करके, समाज में व्याप्त लिंग असमानता को जड़ से खत्म कराना था। इसके लिए समाज में अनेक बार शिविर व शिक्षा रैलियों का प्रयास किया गया, महिलाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए, उन्हें पुरुषों के ही भाँति समान अधिकार भी दिए गए। - ‘जेंडर बजटिंग’:
इसके अन्तर्गत लैंगिक प्रतिबद्धताओं को बजट प्रतिबद्धताओं में परिवर्तित करने के लिए ‘जेंडर बजटिंग’ के प्रति प्रतिबद्धता को विशेष तौर पर प्रमुख माना गया। इसमें महिलाओं के विकास के लिए किए जाने वाले वित्त की व्यवस्था की जाती थी।
प्रश्न 5.
राजस्थान में विधवा दहन को तत्कालीन किन – किन राज्यों ने गैर – कानूनी घोषित किया था?
उत्तर:
समाज सुधारकों के दबाव के कारण ही ब्रिटिश अधिकारियों ने ‘सती – प्रथा’ या ‘विधवा – दहन’ जैसी अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए राजस्थान के शासकों को विवश किया गया। इसके पश्चात् इसके फलस्वरूप जोधपुर एवं उदयपुर के शासकों के आरम्भिक विरोध के बाद धीरे – धीरे राजस्थान के दूसरे शासक भी तैयार हो गए।
सर्वप्रथम 1822 में बूंदी में विधवा दहन को गैर – कानूनी घोषित किया गया। इसके पश्चात् अलवर, 1844 में जयपुर, 1846 में डूंगरपुर, बांसवाड़ा तथा प्रतापगढ़, 1848 में जोधपुर तथा कोटा, उदयपुर आदि राज्यों ने विधवा दहन को अवैध करार या घोषित कर दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप समाज में महिलाओं की प्रस्थिति में कुछ परिवर्तन अवश्य हुए व उनकी स्थिति में भी सुधार दृष्टिगोचर हुआ।
प्रश्न 6.
किस राजा ने कहाँ और किनसे बेटियों का वध न करने की शपथ दिलवायी?
उत्तर:
‘बांकीदास’ की ख्यात के अनुसार 1836 में ‘महाराणा रतन सिंह’ ने ‘गया’ में अपने सभी सामंतों की सभा आयोजित कर शपथ दिलायी थी, कि वे अपनी बेटियों का वध नहीं करेंगे। इसके पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने इसे हत्या बताते हुए ‘कन्या वध प्रथा’ को बंद करने को चेष्टा की गई।
अंत: 1834 में तत्कालीन कोटा राज्य ने इसे गैर – कानूनी घोषित किया, उसके बाद 1837 में बीकानेर, 1839 – 44 के मध्य जोधपुर, जयपुर तथा 1857 में तत्कालीन उदयपुर राज्य ने भी इसे गैर – कानूनी घोषित कर दिया। इस प्रकार से अनेक राज्यों में कन्या – वध का काफी संख्या में विरोध हुआ।
प्रश्न 7.
महिला मताधिकार की मांग भारत में कब और किस समय स्वीकार की गई?
उत्तर:
भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त महिलाओं को दो प्रमुख अधिकार हैं – “महिलाओं को मताधिकार और विधानमंडल के लिए योग्यता।” महिला मताधिकार की मांग सर्वप्रथम 1917 में की गई थी, किन्तु साउथ ब्यूरो फ्रेन्चाइज कमेटी ने 1918 में इस मांग को अस्वीकार कर दिया। 1919 में सरकार ने राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया कि वे स्त्री मताधिकार के संबंध में अपने अलग विधान या नीतियों को लागू करें।
इस प्रकार के विधान राजकोट में 1923 में, मद्रास तथा उत्तर प्रदेश में 1925 में, बिहार तथा उड़ीसा में 1929 में पारित किए गए। इस प्रकार स्त्रियों को राजनीतिक अधिकारों की प्राप्त हुई तथा वर्ष 1993 में पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण को प्राप्त हो गया।
प्रश्न 8.
राजस्थान में आरंभिक दो बालिका विद्यालय कहाँ और कब खोले गए?
उत्तर:
राज्य में, तत्कालीन अजमेर (मेरवाड़ा) जिले में 1861 में ब्यावर और 1863 में अजमेर में वर्ताकुलर बालिका विद्यालय खोले गए। इसके साथ ही 1893 तक स्कूल खोले जाने तथा नगण्य उपस्थिति के कारण बंद किये जाने का सिलसिला भी चलता रहा।
इन विद्यालयों की विशेषताएँ:
- ईसाई धर्म पर आधारित शिक्षा:
इन विद्यालयों में मूलतः ईसाई धर्म की शिक्षा बच्चों को उपलब्ध करवायी जाती है। उसी धर्म के नीतियों व विधानों का उल्लेख इस शिक्षा पद्धति में की जाती थी। - बालिकाओं का विकास करना:
इन विद्यालयों का उद्देश्य बालिकाओं का सर्वांगीण विकास करना था। जिससे वे अपने जीवन को सुरक्षित रखते हुए अपना पूर्ण विकास करते हुए अपना कुशल जीवन यापन कर सकें।
प्रश्न 9.
मुख्यमंत्री उच्च शिक्षा छात्रवृत्ति योजना क्या है?
उत्तर:
मुख्यमंत्री उच्च शिक्षा छात्रवृत्ति योजना को निम्न तथ्यों के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –
- यह राज्य में बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने वाली एक सरकारी योजना है।
- यह योजना सन् 2012 में आरम्भ की गई।
- इस योजना के अंतर्गत अल्प आय वर्ग के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों हेतु छात्रवृत्ति योजना प्रारंभ की गई है।
- इसके अंतर्गत राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में 60% या अधिक अंक प्राप्त किए गए हों तथा जो कोई अन्य छात्रवृत्ति प्राप्त न कर रहे हों, उन्हें यह छात्रवृत्ति अधिकतम 5 वर्षों के लिए दिये जाते हैं।
प्रश्न 10.
बाल श्रम के प्रमुख सिद्धांतों के नाम लिखें।
उत्तर:
बालश्रम की प्रवृत्ति को समाजशास्त्रियों ने मुख्यतः चार सिद्धान्तों में बाँटा है –
- नवपुरातनवादी सिद्धांत:
यह सिद्धांत कहता है कि समाज बच्चों को उपयोग व निवेष की सामग्री मानता है और इसलिए उनके श्रम का उपयोग अपने स्वार्थहित के लिए करता है। - समाजीकरण का सिद्धांत:
इस सिद्धांत के अनुसार बाल श्रम को पारिवारिक प्रक्रिया के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। कृषि व घरेलू उद्योग आदि इसके अंतर्गत आते हैं। - श्रम बाजार के विखंडन का सिद्धांत:
बाजार का मालिक-श्रमिक संबंधों के आधार पर यह सिद्धांत या विभाजन, श्रम बाजार के विखंडन के सिद्धांत को बताता है। - मार्क्सवादी सिद्धांत:
मार्क्स के अनुसार बाल श्रम पूँजीवादी व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग है। समाज में नवीन तकनीक ने अकुशल तथा सस्ते श्रमिकों की मांग को बढ़ाया है।
प्रश्न 11.
सर्वप्रथम बाल श्रम की समस्या हेतु कब और कौन – सी समिति गठित हुई?
उत्तर:
बाल श्रम की समस्या हेतु ‘बाल श्रम समिति’ सर्वप्रथम 1979 में सरकार ने बाल श्रम की समस्या के अध्ययन और उससे निपटने के लिए उपाय सुझाने हेतु ‘गुरुपादस्वामी समिति’ नामक समिति का गठन किया गया था।
समिति की मुख्य बातें:
- इस समिति ने बाल श्रम की समस्या का विस्तार से परीक्षण किया तथा दूरगामी सिफारिशें भी की।
- इस समिति ने वैधानिक प्रावधानों के माध्यम से बाल श्रम को समाप्त करने का प्रयास किया।
- इसके लिए इस समिति ने अन्य क्षेत्रों में कार्यकारी परिस्थितियों को विनियमित किया।
- इस समिति ने 1986 में बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम को लागू किया गया तथा इसी के आधार पर 1987 में बाल श्रम पर एक राष्ट्रीय नीति भी तैयार की गई।
प्रश्न 12.
कारखाना एक्ट, 1948 क्या है?
उत्तर:
भारत के संविधान में निम्नलिखित आधारों पर बाल श्रमिकों को उनके जटिल जीवन से मुक्ति दिलाने हेतु राष्ट्र द्वारा किया गया यह प्रयास है जिसे 1948, कारखाना एक्ट के नाम से संबोधित किया जाता है। इस एक्ट के अन्तर्गत दो बातों पर विशेष तौर पर बल दिया गया है –
- बच्चों की आयु निर्धारित की गई:
इस एक्ट के अंतर्गत सर्वप्रथम बच्चों की कारखानों में काम करने की आयु को निश्चित किया गया है। इसके अंतर्गत जिन बच्चों की आयु 14 वर्ष या उससे कम है, ऐसे किसी भी बच्चों को काम पर नहीं लगाया जाएगा तथा उनसे बलपूर्वक कार्य भी नहीं लिया जाएगा। - कार्य के घंटे निश्चित:
कारखानों में काम करने वाले बालकों की आयु निश्चित करने के पश्चात् उनके कारखानों में काम करने के घंटों को भी सुनिश्चित किया गया। इसके लिए सरकार ने काम के घंटे 4% मध्यांतर सहित 5 घंटे निश्चित किये हैं। यदि कोई भी मालिक बाल श्रमिकों से अधिक घंटों तक कार्य करवाता है, तो वह व्यक्ति सजा का भागीदार होगा, उसे कारावास भेजा जाएगा साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में स्त्रियों की प्रस्थिति का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करें।
उत्तर:
भारतीय स्त्रियों की प्रस्थिति का विश्लेषण करने के लिए ऐतिहासिक दृष्टिकोण को अनेक कालखंडों में विभाजित करते हुए उसके अपूर्व वैभव, समाज की संरचना एवं विन्यास को जानना होगा, इसे हम निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं, जो इस प्रकार से हैं –
(1) वैदिक काल:
- इस काल में स्त्रियों को काफी स्वतंत्रताएँ प्राप्त थीं।
- स्त्रियाँ वैदिक वाङ्मय का अध्ययन करती थीं तथा साथ ही यज्ञों में भाग लेकर मंत्रोच्चारण भी किया करती थीं।
- वैदिक काल में पर्दा प्रथा एवं बाल विवाह जैसी कुरीतियाँ नहीं थीं।
- इस काल में उन्हें संपत्ति पर अधिकार प्राप्त था।
- उन्हें अपने विवाह के लिए जीवनसाथी के चयन व विवाह – विच्छेद का अधिकार भी प्राप्त था।
- धार्मिक संस्कारों में पत्नी का होना अनिवार्य माना जाता था।
(2) उत्तर – वैदिक काल:
- इस काल की अवधि 600 वर्ष पूर्व से लेकर 300 वर्ष बाद तक माना जाता है।
- इस काल में भी महिलाओं की सामाजिक प्रस्थिति हर दृष्टि से सम्मानीय थी।
- जननी होने के कारण माता का स्थान आदरणीय माना जाता था।
- पितृसत्तात्मक समाज होने के बावजूद महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में देखने को मिलती थी।
- इस काल में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार व स्वतंत्रता प्राप्त थी।
(3) धर्मशास्त्र काल:
- इस काल में महिलाओं की प्रस्थिति में बदलाव हुए।
- इस काल का प्रारंभ तीसरी शताब्दी से लेकर 11वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध का माना जाता है।
- इस काल में महिलाओं की स्वतंत्रता को कम कर दिया गया तथा यह भी माना जाने लगा कि महिलाओं को जीवन के
- किसी पड़ाव पर स्वतंत्र रहने का कोई अधिकार नहीं है।
- इस काल में महिलाओं का परम धर्म पति की सेवा करना माना गया।
(4) मध्य काल:
- इसे 16वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी का काल माना जाता है।
- यह महिलाओं के सर्वस्व अधिकारों के हनन का काल था।
- इस काल में महिलाओं से सभी शिक्षा के अधिकार छीन लिये गए थे।
- उनके जीवन का उद्देश्य सिर्फ ‘सेवा’ कार्य ही निश्चित कर दिया गया।
- विवाह की आयु 4 – 6 वर्ष निर्धारित कर दी गई।
- स्त्रियों की सामाजिक प्रस्थिति समाज में पुरुषों से निम्न समझी जाने लगी।
प्रश्न 2.
राजस्थान की महिलाओं की स्थिति में सुधार हेतु क्या – क्या प्रयास हुए?
उत्तर:
राजस्थान की महिलाओं की स्थिति में सुधार हेतु अनेक प्रयास किये गए जो निम्नलिखित हैं –
- राजस्थान में परिवर्तन की अलख जगाने में ‘आर्य समाज’ का अभूतपूर्व योगदान रहा है। राजाओं तथा सामंतों को, परिवर्तन का नेतृत्व करने हेतु अथक प्रयास किये। उन्होंने शिक्षा पर विशेष बल देते हुए अनेक विद्यालय खोलकर स्त्रियों की शिक्षा के लिए नवीन द्वार खोले।
- समाज सुधारकों के प्रयासों के कारण ब्रिटिश सरकार ने ‘डायन (डाकन) प्रथा’ को समाप्त करते हुए, इसे अवैध घोषित कर दिया।
- बहुपत्नी विवाह, बाल विवाह तथा विधवा विवाह निषेध जैसी कुप्रथाओं का अंत करने के लिए विवाह संबंधी नियम बनाने पर विचार हुआ तथा ‘देश हितैषिणी सभा’ की स्थापना की गई। यह एकमात्र ऐसी संस्था थी जिसके माध्यम से शासकों ने प्रथम बार महिलाओं के हित के लिए कदम उठाए और विवाह संबंधी नियम बनाए गए।
- स्वतंत्रता के पश्चात् महिलाओं की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए दो महत्त्वपूर्ण कानून बने, पहला दहेज निरोधक नियम तथा दूसरा घरेलू हिंसा से सुरक्षा संबंधी अधिनियम।
- राजस्थान में समाज सुधारकों के दबाव के कारण ही ब्रिटिश अधिकारियों ने सती प्रथा या विधवा दहन जैसी अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए शासकों को विवश किया, जिसके परिणामस्वरूप अनेक राज्यों में इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया गया।
- राजस्थान राज्य में महिलाओं के प्रस्थिति में सुधार के लिए अनेक स्वयंसेवी संस्थाएँ स्थापित हुईं।
- स्वतंत्रता के पश्चात् विभिन्न संवैधानिक व्यवस्थाओं एवं महिलाओं की समानता, सुरक्षा एवं हितों को ध्यान में रखते हुए बने विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों ने ‘स्त्री की प्रस्थिति’ को उच्च करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
अत: उपरोक्त तथ्यों से यह विदित होता है कि उक्त प्रयासों व सुधारों के माध्यम से महिलाओं की प्रस्थिति में अनेक बदलाव दृष्टिगोचर हुए।
प्रश्न 3.
सामाजिक चेतना से आप क्या समझते हैं? क्या भारत की महिलाएं अपने राजनैतिक एवं सामाजिक अधिकारों के प्रति जागृत हैं? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
सामाजिक चेतना का अर्थ:
सामान्यतः सामाजिक चेतना से हमारा तात्पर्य किसी देश तथा काल विशेष से संबंधित मानव समाज में अभिव्यक्त परिवर्तनशील जागृति से है। इसका उद्भव सामाजिक अन्याय, शोषण, अनीति आदि जैसी नकारात्मक भावनाओं के विरुद्ध होता है।
भारत की महिलाएँ अपने राजनैतिक एवं सामाजिक अधिकारों के प्रति काफी जागरूक हुई हैं, जिसे निम्न आधारों पर दर्शाया जा सकता है –
1. देश के कई राज्यों में चोरी:
छिपे बाल विवाह संपन्न किए जाते हैं जो महिलाओं के जीवन के सभी मार्ग को अवरुद्ध कर ‘देता है। परन्तु महिलाएँ इसका विरोध पूरे साहस से कर रही हैं तथा देश की स्त्रियाँ अब बौद्धिक रूप से चेतन और मानसिक स्तर पर सक्षम हुई हैं।
उदाहरण:
पश्चिम बंगाल के सबसे पिछड़े जिलों में से एक पुरुलिया, जहाँ की महिला साक्षरता दर देश में सबसे कम है, कि 12 वर्षीय बीड़ी मजदूर रेखा कालिंदी ने शादी से इनकार कर, उन बच्चियों के लिए एक राह खोली जो कम उम्र में ही ब्याह दी जाती हैं।
2. बाल विवाह के अलावा, खुले में शौच की प्रथा का महिलाएँ पुरजोर तरीके से विरोध कर रही हैं। इसका संबंध स्त्री के स्वास्थ्य के साथ ही साथ उसके सम्मान के साथ भी जुड़ा हुआ है और यही कारण है कि देश के सुदूर अंचलों से इसके विरोध में स्वर उठ रहे हैं।
उदाहरण:
- छत्तीसगढ़ के पिछड़े इलाके से आने वाली जानकीबाई ने साल 2011 में अपने गांव के लिए घर में शौचालय निर्माण शुरू करवाया और साफ – सफाई की आदर्श व्यवस्था स्थापित की। उनके इस कार्य के लिए उन्हें ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सम्मानित किया।
उदाहरण: - 2012 में मध्य प्रदेश के रतनपुर गांव की एक महिला ने अपने विवाह के दो दिन बाद पति का घर इसलिए छोड़ दिया क्योंकि घर में शौचालय नहीं था। अत: यह समस्त उदाहरण इस ओर इशारा कर रहे हैं कि भारतीय महिलाएँ सामाजिक तौर पर काफी जागरूक हुई हैं। साथ ही राजनीतिक गतिविधियों में भी सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं। जैसे – मतदान देने में भागीदारी, पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण का मिलना एवं अनेक न्यायालय संबंधी, आदि कार्यवाही में काफी क्षेत्रों में अपनी भूमिका को काफी हद तक सार्थक सिद्ध किया है।
प्रश्न 4.
राजस्थान में बालिका शिक्षा के लिए कौन – कौनसी योजनाएँ हैं? विस्तार से लिखें।
उत्तर:
राजस्थान में बालिका शिक्षा के लिए अनेक योजनाएँ क्रियान्वित की गयी हैं। जिसका विवरण निम्न प्रकार से है –
- विशेष योग्यजन छात्रवृत्ति योजना:
इस योजना का आरंभ 1981 में हुआ था। राजकीय एवं मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में नियमित अध्ययनरत विशेष योग्य छात्र – छात्राएँ, जिनके परिवार की आर्थिक आय 2 लाख रुपये से अधिक न हो, ऐसे परिवारों के विशेष योग्यजन विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति व उत्तर मैट्रिक कक्षाओं में सामान्य व अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के विशेष योग्यजन विद्यार्थियों को फीस पुनर्भरण की सुविधा भी प्रदान की जा रही है। - प्रोत्साहन योजना:
2008 – 2009 में प्रारंभ हुई इस योजना में कक्षा 12 में 75% से अधिक अंक प्राप्त करने वाली बालिकाओं को एकमुश्त 5000 रुपये का प्रोत्साहन पुरस्कार राज्य सरकार की ओर से दिया जाता है। - छात्राओं को निःशुल्क साइकिल वितरण योजना:
समस्त राजकीय विद्यालयों में शैक्षिक सत्र वर्ष 2015 – 16 से कक्षा 9 में नवीन प्रवेश लेने वाली समस्त शहरी व ग्रामीण छात्राओं को साइकिल प्रदान करने की योजना का उद्देश्य, बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना है। - शारीरिक असमतायुक्त बालिकाओं हेतु सबलता पुरस्कार:
2005 – 06 में आरंभ की गई इस योजना में शारीरिक रूप से विकलांग एवं मूक – बधिर तथा नेत्रहीन बालिकाएँ जो राजकीय विद्यालयों में कक्षा 9 से 12 में नियमित रूप से अध्ययनरत हैं, 2000 रुपये की आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी जाती है। - गार्गी पुरस्कार (जूनियर योजना):
यह योजना वर्ष 1998 में आरंभ हुई। इस योजना के अंतर्गत डाइट द्वारा आयोजित कक्षा 8 परीक्षा में पंचायत समिति एवं जिला मुख्यालय पर सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाली बालिकाओं को कक्षा 9 एवं 10 में नियमित अध्ययनरत रहने पर प्रतिवर्ष 1000 रुपये एवं प्रमाण – पत्र देकर पुरस्कृत किया जाता है। - ट्रांसपोर्ट वाउचर योजना:
यह योजना सन् 2007 – 08 में शुरू की गई। इस योजना के अंतर्गत निवास स्थान से विद्यालय की दूरी 5 कि.मी. से अधिक होनी चाहिए तथा न्यूनतम पाँच बालिकाओं के समूह का होना आवश्यक है।
प्रश्न 5.
स्वंतत्रता के पश्चात् राजस्थान में बालिका शिक्षा की स्थिति के बारे में लिखें।
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् राजस्थान में बालिका शिक्षा की स्थिति को निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर दर्शाया जा सकता
है –
- स्वतंत्रता के पश्चात् देश की केन्द्र प्राथमिकताओं में बाल शिक्षा का विकास था।
- राज्य में प्रारंभिक शिक्षा पर प्रथम पंचवर्षीय योजना में जहाँ 2.29 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया था।
- विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सरकार ने निरंतर बालिका शिक्षा की प्रगति के लिए काफी प्रयास किये। जिसका परिणाम यह रहा कि नामांकन में प्राथमिक स्तर पर उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- स्वतंत्रता के पश्चात् महिला शिक्षिकाओं की वृद्धि हुई है।
- राज्य में बालिकाओं के विद्यालय नामांकन में वृद्धि हुई है।
- स्वतंत्रता के बाद भी कुछ स्थानों पर बालिकाओं को योजना का लाभ नहीं मिल पाया है।
- विद्यालयों में महिला शिक्षिकाओं के अनुपात में 24.18 प्रतिशत से 30.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। परंतु वे विद्यालय जिनमें कम से कम एक महिला शिक्षिका है, की संख्या में 64.99 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
- राजस्थान में 11 – 14 वर्ष की आयु वर्ग में, ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल बीच में छोड़ देने वाली बालिकाओं का प्रतिशत, वर्ष 2009 में 5.56 प्रतिशत, बालकों की तुलना में 12.55 प्रतिशत बालिकाओं का रहा, जो लैंगिक भेद को दर्शाता है।
- राजस्थान में आज भी बाल विवाह और बालिकाओं द्वारा शारीरिक श्रम, राज्य की बालिकाओं की निरंतर शिक्षा में बाधक तत्त्व है।
- राज्य की महिला साक्षरता दर केवल 52.66 प्रतिशत है, जो भारत के कई राज्यों से कम नहीं है, अपितु भारत की महिला साक्षरता दर के राष्ट्रीय औसत 65.54 प्रतिशत से भी कम है।
- अभी पोषण से लेकर मूलभूत आवश्यकताओं तक के लिए माता – पिता द्वारा बच्चियों और बेटों में अंतर किया जाता है।
अत: वर्णित तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि राज्य में कहीं पर तो महिलाओं को शिक्षा की समुचित व्यवस्था मिली है, परंतु कुछ सामाजिक कुरीतियों के प्रचलन के कारण वे पूर्ण रूप से सशक्त नहीं बन पायी है।
प्रश्न 6.
बाल श्रम के कारण एवं दुष्प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर:
बाल श्रम के कारण निम्नलिखित हैं-
- आर्थिक विवशता:
विकासशील देशों में गरीबी एक जटिल समस्या है। इस समस्या की छाप समाज के समस्त उन्नत क्षेत्रों पर पड़ती है। श्रम बाजार में बाल श्रमिकों की मांग है, इस कारण अभिभावक, अपने बच्चों को उद्योगों से लेकर कृषि कार्य हेतु श्रम करने के लिए भेजते हैं। - परिवार का बड़ा आकार होना:
ऐसे परिवार जहाँ सदस्यों की संख्या अधिक होती है वहाँ एक व्यक्ति की आय से परिवार चलाना कठिन तथा दुष्कर कार्य होता है ऐसी स्थिति में बच्चों की आय, परिवार की आजीविका का साधन बनती है। - सस्ता श्रम होना:
अनेक शोध यह स्पष्ट करते हैं कि जितना नियोक्ता एक वयस्क श्रमिक पर खर्च होता है, उसकी तुलना में मामूली – सी रकम चुकाकर वह बाल श्रमिकों से कार्य लेता है। - सामाजिक ढांचा:
भारतीय समाज में ग्रामीण परिवेश में अल्पायु में विवाह हो जाते हैं, जिसके चलते पारिवारिक दायित्वों का भार, गरीबी तथा धन की जीविकोपार्जन हेतु आवश्यकता भी बाल श्रम का कारण बनती है।
बाल श्रम के दुष्प्रभाव:
- इसका प्रत्यक्ष प्रभाव बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
- बच्चों को अनेक प्रकार के रोग; जैसे – सांस की बीमारी, चर्म रोग, फोटोबिया, दमा, टीबी आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।
- बाल श्रम में लगे हुए बच्चों को शारीरिक ही नहीं बल्कि सामाजिक व मानसिक पीड़ा भी होती है।
- गरीबी की समस्या के कारण उन्हें बाल श्रमिक के रूप में कार्य करना पड़ता है।
- शिक्षा के स्तर में भी उनकी स्थिति न के बराबर ही होती है। जिसके कारण उनका संपूर्ण जीवन अंधकारमय हो जाता है।
- इन कार्यों के परिणामस्वरूप बच्चे अपराधों में संलग्न हो जाते हैं।
- इन समस्याओं के कारण उनमें अलगाव की भावना का उदय होता है। अत: यह स्पष्ट है कि बाल श्रम समाज में एक जटिल समस्या है।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
किस काल में महिलाओं की प्रस्थिति पुरुषों के समान थी –
(अ) उन्मेषकला
(ब) भक्ति काल
(स) मध्य काल
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) उन्मेषकला
प्रश्न 2.
किस युग में महिलाएँ यज्ञों में भाग लेती थीं –
(अ) भक्ति युग
(ब) वैदिक युग
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) वैदिक युग
प्रश्न 3.
किस वेद के अनुसार ‘नारी ही घर है’ –
(अ) सामवेद
(ब) यर्जुवेद
(स) ऋग्वेद
(द) अथर्ववेद
उत्तरमाला:
(स) ऋग्वेद
प्रश्न 4.
‘वीरप्रसु’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है –
(अ) पिता
(ब) पुत्र
(स) पुत्री
(द) माता
उत्तरमाला:
(द) माता
प्रश्न 5.
‘Religion of India’ किसके द्वारा रचित है –
(अ) हाफकिंस
(ब) कर्वे
(स) कपाड़िया
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) हाफकिंस
प्रश्न 6.
पौराणिक काल के बाद किस काल की गणना की जाती है –
(अ) भक्ति काल
(ब) धर्म काल
(स) बौद्धकाल
(द) मध्य काल
उत्तरमाला:
(स) बौद्धकाल
प्रश्न 7.
‘सेवा कार्य’ किसका उद्देश्य है –
(अ) स्त्री
(ब) महिलाएँ
(स) माताएँ
(द) सभी
उत्तरमाला:
(द) माताएँ
प्रश्न 8.
भक्ति आंदोलन का शंखनाद किसने किया था?
(अ) रामानुजाचार्य
(ब) कबीर
(स) मीरा
(द) रामदास
उत्तरमाला:
(अ) रामानुजाचार्य
प्रश्न 9.
किस वर्ष ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना हुई?
(अ) 1826
(ब) 1827
(स) 1828
(द) 1829
उत्तरमाला:
(स) 1828
प्रश्न 10.
विधवा पुनर्विवाह के लिए आंदोलन किसने चलाया?
(अ) ईश्वरचंद्र विद्यासागर
(ब) कर्वे
(स) राजा राममोहन राय
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) ईश्वरचंद्र विद्यासागर
प्रश्न 11.
हिन्दू विवाह अधिनियम कब बना था –
(अ) 1953
(ब) 1954
(स) 1955
(द) 1956
उत्तरमाला:
(स) 1955
प्रश्न 12.
‘मार्गरेट कसिन्स’ महिला संगठन कब बना?
(अ) 1926
(ब) 1927
(स) 1928
(द) 1929
उत्तरमाला:
(ब) 1927
प्रश्न 13.
पहली लोकसभा बैठक कब हुई थी?
(अ) 1951
(ब) 1952
(स) 1953
(द) 1954
उत्तरमाला:
(अ) 1951
प्रश्न 14.
8वीं योजना का कार्यकाल कितना था?
(अ) 1992 – 1997
(ब) 1997 – 2002
(स) 2002 – 2007
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) 1992 – 1997
प्रश्न 15.
राजस्थान की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्या था –
(अ) सामंतवादी व्यवस्था
(ब) कृषि व्यवस्था
(स) पूँजीवादी व्यवस्था
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) कृषि व्यवस्था
प्रश्न 16.
‘देश हितैषिणी सभा’ की स्थापना कब की गयी?
(अ) 1875
(ब) 1876
(स) 1877
(द) 1878
उत्तरमाला:
(स) 1877
प्रश्न 17.
कितने प्रतिशत महिलाओं ने घरेलू निर्णयों में कोई योगदान नहीं दिया है –
(अ) 56.2%
(ब) 53.8%
(स) 59.6
(द) 57.8%
उत्तरमाला:
(द) 57.8%
प्रश्न 18.
महिला मताधिकार की सर्वप्रथम मांग कब की गई?
(अ) 1916
(ब) 1917
(स) 1918
(द) 1919
उत्तरमाला:
(ब) 1917
प्रश्न 19.
महिलाओं को किस वर्ष पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण प्राप्त हुआ?
(अ) 1993
(ब) 1994
(स) 1995
(द) 1996
उत्तरमाला:
(अ) 1993
प्रश्न 20.
पश्चिम बंगाल में महिलाओं के निर्णयों में सशक्तीकरण कितनी प्रतिशत दर्ज की गई है?
(अ) 82.6%
(ब) 83.8%
(स) 84.5%
(द) 89.8%
उत्तरमाला:
(द) 89.8%
प्रश्न 21.
ह्यूसन गर्ल्स स्कूल कब खोला गया?
(अ) 1855
(ब) 1866
(स) 1877
(द) 1888
उत्तरमाला:
(ब) 1866
प्रश्न 22.
वनस्थली विद्यापीठ की स्थापना कब हुई?
(अ) 1934
(ब) 1936
(स) 1935
(द) 1937
उत्तरमाला:
(स) 1935
प्रश्न 23.
मत्स्य उद्योग कहाँ पर है, जहाँ सर्वाधिक बाल श्रमिक पाए जाते हैं –
(अ) तमिलनाडु
(ब) गोवा
(स) आंध्र प्रदेश
(द) केरल
उत्तरमाला:
(द) आंध्र प्रदेश
प्रश्न 24.
राजस्थान के किस शहर में बहुमूल्य पत्थर पॉलिश उद्योग पाया जाता है?
(अ) अलवर
(ब) भरतपुर
(स) जयपुर
(द) धौलपुर
उत्तरमाला:
(स) जयपुर
प्रश्न 25.
बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति किस वर्ष तैयार की गई?
(अ) 1987
(ब) 1986
(स) 1985
(द) 1984
उत्तरमाला:
(अ) 1987
RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 अति लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
किसे संपत्ति, ज्ञान एवं शक्ति की स्वामिनी माना गया है?
उत्तर:
नारी को वैदिक काल में संपत्ति, ज्ञान एवं शक्ति की स्वामिनी माना गया है।
प्रश्न 2.
‘पूर्व – मीमांसा’ किसकी रचना है?
उत्तर:
पूर्व – मीमांसा’ जैमिनी की रचना है।
प्रश्न 3.
बौद्धकाल में महिलाओं के संघ का क्या नाम था?
उत्तर:
बौद्धकाल में महिलाओं के संघ को भिक्षुणी संघ’ कहा गया था।
प्रश्न 4.
किस काल में महिलाओं से शिक्षा के अधिकार छीन लिये गए थे?
उत्तर:
मध्यकाल में महिलाओं से शिक्षा के अधिकार छीन लिये गये थे।
प्रश्न 5.
बड़ौदा साम्राज्य के शासक कौन थे?
उत्तर:
बड़ौदा साम्राज्य के शासक ‘सायाजी राव गायकवाड’ थे, जिन्होंने स्त्रियों को शिक्षा दिलाने के लिए हर संभव प्रयास किये।
प्रश्न 6.
शारदा एक्ट के तहत् विवाह के लिए लड़के व लड़की की आयु कितनी निर्धारित की गई है?
उत्तर:
इस एक्ट के अनुसार कन्या के विवाह के लिए न्यूनतम आयु 14 वर्ष तथा लड़के के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई।
प्रश्न 7.
हिन्दू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार का अधिनियम कब लागू या पारित किया गया था?
उत्तर:
वर्ष 1937 में महिलाओं को संपत्ति के अधिकार से अभिभूत किया गया था।
प्रश्न 8.
किसने महिलाओं को आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया?
उत्तर:
महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए महिलाओं को प्रेरित किया।
प्रश्न 9.
‘CMCA’ का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
Children’s Movement for Civil awareness (CMCA) का पूर्ण नाम है।
प्रश्न 10.
समाज में स्त्रियों की प्रस्थिति को मापने का क्या तरीका है?
उत्तर:
किसी भी महिला के निर्णय लेने की क्षमता के आधार पर समाज में उनकी प्रस्थिति को मापा जा सकता है।
प्रश्न 11.
महिलाओं के प्रति कार्यस्थलों में किसका अभाव पाया जाता है?
उत्तर:
भारत में महिलाओं के प्रति कार्यस्थलों में संवेदनशीलता’ का अभाव पाया जाता है।
प्रश्न 12.
महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने के लिए कौन – सा अधिनियम बनाया गया?
उत्तर:
महिलाओं पर किये जाने वाले उत्पीड़न को रोकने के लिए “महिला उत्पीड़न रोकथाम विनिवारण अधिनियम” बनाया गया।
प्रश्न 13.
पहली लोकसभा बैठक में महिलाओं की संख्या कितनी थी?
उत्तर:
1951 में पहली लोकसभा बैठक में सिर्फ 22 महिला सदस्यों की संख्या थी।
प्रश्न 14.
IPU का पूरा नाम बताइए तथा ये क्या है?
उत्तर:
‘Inter Parliamentary union’ एक रिपार्ट है।
प्रश्न 15.
किस योजना में ‘महिला घटक योजना’ को अंगीकार किया गया?
उत्तर:
9वीं पंचवर्षीय योजना में महिला घटक योजना’ को एक प्रमुख कार्य नीति के रूप में अंगीकार किया गया।
प्रश्न 16.
किस योजना में ‘जेंडर बजटिंग’ पर विशेष बल दिया गया?
उत्तर:
10वीं पंचवर्षीय योजना में लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए ‘जेंडर बजटिंग’ पर विशेष बल दिया गया।
प्रश्न 17.
राजस्थान के किस काल में सामंतवादी संरचना मजबूत हुई थी?
उत्तर:
मध्यकाल में राजस्थान में सामंतवादी संरचना मजबूत हुई थी।
प्रश्न 18.
‘मधुमालती’ में किसे आजीविका का स्रोत बताया गया है?
उत्तर:
‘मधुमालती’ में शिक्षा को ज्ञान तथा आजीविका का स्रोत बताया गया है।
प्रश्न 19.
राजस्थान में प्राथमिक शिक्षा के विद्यालयों को किन भागों से जाना जाता था?
उत्तर:
राजस्थान में प्राथमिक शिक्षा के विद्यालयों को ‘उपासरा’, ‘पोसाल’ तथा ‘मकतब’ आदि नामों से जाना जाता था।
प्रश्न 20.
स्त्रियों की शिक्षा में राजस्थान में कौन – सी कुप्रथा बाधक तत्त्व बनी?
उत्तर:
राजस्थान में महिलाओं की शिक्षा में बाल – विवाह’ कुप्रथा सबसे बड़ी बाधक तत्त्व बनी।
प्रश्न 21.
‘जौहर प्रथा’ को किस परंपरा से संबोधित किया जाता है?
उत्तर:
‘जौहर प्रथा’ को राजस्थान में गौरवमय परंपरा के नाम से संबोधित किया जाता था।
प्रश्न 22.
राजस्थान के भक्ति आंदोलन में कौन – कौन शामिल थे?
उत्तर
राजस्थान के भक्ति आंदोलन में संत रैदास, जांभोजी, रामचरण दादू तथा धन्ना आदि शामिल थे।
प्रश्न 23.
‘वाल्टर कृत राजपूत हितकारिणी सभा’ का गठन किस वर्ष किया गया?
उत्तर:
1887 में ‘वाल्टर कृत राजपूत हितकारिणी सभा’ का गठन किया गया था।
प्रश्न 24.
1837 में राजस्थान के किस शहर में ‘कन्या वध’ को अवैध घोषित किया गया?
उत्तर:
बीकानेर में 1837 में ‘कन्या वध’ को अवैध घोषित किया गया।
प्रश्न 25.
अमेरिका के कानून के अनुसार बाल श्रमिकों की कितनी आयु निर्धारित की गई है?
उत्तर:
अमेरिका के कानून के अनुसार 12 वर्ष बाल श्रमिकों की आयु निर्धारित की गई है।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वैदिक काल में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वैदिक काल में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति को निम्न बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं –
- वेदों का अध्ययन:
वैदिक काल में स्त्रियों को शैक्षिक अधिकार प्राप्त थे। स्त्रियाँ पूर्ण रूप से वेदों का अध्ययन करती थीं, अर्थात् वैदिक वाङ्मय का अध्ययन करती थीं। उन्हें वेदों के अध्ययन के विषय में जानकारी भी होती थी। - मंत्रोच्चारण करना:
चूँकि महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त था। इस कारण वे यज्ञों में भाग लेती थीं तथा मंत्रों व श्लोकों का उच्चारण भी ये यज्ञों में किया करती थीं। - धार्मिक गतिविधियों की जानकारी:
वैदिक युगीन स्त्रियों को शिक्षा के द्वारा ही धार्मिक आचरण, पवित्रता व अन्य गतिविधियों को संपन्न करने में कुशल थी। इस कारण शिक्षा के द्वारा हो उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में जानकारी भी प्राप्त होती रहती थी।
प्रश्न 2.
मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट के क्या कारण थे?
उत्तर:
मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट के अनेक कारण जिम्मेदार थे, जिन्हें निम्नलिखित आधारों पर दर्शाया जा सकता है –
- शिक्षा के अधिकार का हनन:
वैदिक काल में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति जितनी उन्नत थी, वहीं मध्यकाल में पूर्णतः विपरीत हो गयी। महिलाओं से इस काल में शिक्षा – दीक्षा से संबंधी समस्त अधिकार (उपनयन) पूर्ण रूप से छीन लिए गए थे। उन्हें शिक्षा ग्रहण का कोई भी अधिकार इस काल में नहीं दिया गया था। - केवल सेवा – कार्यों तक सीमित:
इस काल में महिलाओं को केवल घर की चार दीवारी के अंदर हो कैद कर दिया गया था। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य औरों की सेवा करना निश्चित कर दिया गया था तथा मनुस्मृति में भी यह स्पष्ट किया गया है कि “विवाह का विधान ही महिलाओं का उपनयन है, पति की सेवा ही गुरुकाल का वास है तथा घर का काम ही अग्नि की सेवा करना है।” - अल्प आयु में विवाह:
मध्य काल में रक्त की पवित्रता की संकीर्ण विचारधारा ने इतना जोर पकड़ा कि अल्प आयु में ही कन्याओं का विवाह सुनिश्चित कर दिया गया। विवाह की आयु (4-6) वर्ष तक की निर्धारित कर दी गई थी।
अतः स्पष्ट है कि मध्यकाल में महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय हो चुकी थी।
प्रश्न 3.
ब्रिटिश काल में महिलाओं की प्रस्थिति कैसी थी?
उत्तर:
ब्रिटिश काल में महिलाओं की प्रस्थिति को अनेक आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
- सुधार के प्रयास:
ब्रिटिश शासन काल में स्त्रियों की प्रस्थिति के सुधारात्मक प्रयासों में ब्रिटिश शासन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, परंतु इस काल में भारतीयों द्वारा समय-समय पर समाज सुधार के जो प्रयास किए गए उसमें अंग्रेजी सरकार के द्वारा इन प्रयासों को विशेष एवं व्यावहारिक सहयोग प्राप्त नहीं हुआ था। - अनेक निर्योग्यताएँ:
इस काल में महिलाओं पर अनेक प्रकार की सामाजिक एवं आर्थिक निर्योग्यताएँ लाद दी गई थीं। आर्थिक तौर पर उन्हें केवल घरेलू कार्यों तक ही सीमित कर दिया गया था और साथ ही पारिवारिक निर्णयों में उनकी भागीदारी न के बराबर ही थी तथा सामाजिक तौर पर पर्दा प्रथा, बाल – विवाह तथा विधवा विवाह पर प्रतिबंध आदि लगा दिये गये।
अतः इस काल में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं थी, किंतु अनेक सुधारकों के द्वारा उनकी स्थिति में सुधार लाने के प्रयास अवश्य किये गए।
प्रश्न 4.
किन समाज सुधारकों ने महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास किये हैं?
उत्तर:
अनेक भारतीय समाज-सुधारकों ने समय – समय पर स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के अनेक प्रयास किए हैं –
- महर्षि कर्व:
इन्होंने स्त्रियों के लिए समाज में विधवा पुनर्विवाह तथा स्त्रियों की शिक्षा के लिए महर्षि कर्वे ने काफी प्रयास किए। उन्होंने 1916 में SNDT विश्वविद्यालय की स्थापना महाराष्ट्र में की थी। - ईश्वरचंद्र विद्यासागर: इन्होंने विधवाओं के लिए आंदोलन चलाया और स्त्रियों की शिक्षा के लिए वकालत भी की।
- राजा राममोहन राय: इन्होंने 1828 में सर्वप्रथम ब्रह्म समाज की स्थापना करके सती प्रथा के विरुद्ध संघर्ष किया।
प्रश्न 5.
सती प्रथा की विशेषता बताइए।
उत्तर:
सती प्रथा की विशेषताओं को निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –
- सती प्रथा समाज में महिलाओं की ऐसी शोषण की प्रथा है जिसमें महिलाओं के विवाह के उपरांत उनके पति की मृत्यु पर उन्हें जीवित जलाने की प्रथा पायी जाती थी।
- इसमें समाज में यह माना जाता था कि पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी को जीवित रहने का कोई हक नहीं है।
- महिलाओं का धर्म सिर्फ सेवा कार्य ही निश्चित किया गया था, जिसमें उनके पति की सेवा करना परम धर्म माना जाता था, इस कारण भी उन्हें पति के साथ जलने के लिए प्रेरित किया जाता था।
प्रश्न 6.
महिलाओं की प्रस्थिति को उच्च करने के लिए कौन से वैधानिक अधिनियम बनाए गए हैं?
उत्तर:
भारत में महिलाओं की प्रस्थिति को उच्च व सशक्त करने के लिए अनेक अधिनियम बनाए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं –
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (संशोधन विधेयक), 1929।
- हिंदू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार का अधिनियम, 1937।
- हिंदू विवाह अयोग्यता निवारण अधिनियम, 1946।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954।
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955।
- दहेज प्रतिबंध अधिनियम, 1961 तथा मातृत्व लाभ अधिनियम।
- समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976।
अतः उपरोक्त अधिनियमों के निर्माण से महिलाओं की प्रस्थिति में काफी बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं।
प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आंदोलन से महिलाओं की प्रस्थिति में किस प्रकार परिवर्तन हुए हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय आंदोलन ने महिलाओं की प्रस्थिति में निम्न प्रकार से बदलाव किए हैं, जिसे विभिन्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
- उच्च सामाजिक स्तर:
आंदोलनों के परिणामस्वरूप स्त्रियों की सामाजिक प्रस्थिति समाज, घर व परिवारों में काफी उन्नत हुई है। उन्हें वैधानिक रूप से अनेक अधिकार प्राप्त हुए हैं, जिनका उपयोग करके वह अपने जीवन को सफल बना सकती हैं। - सामाजिक कुरीतियों का अंत:
इन आंदोलनों के फलस्वरूप समाज में अनेक सामाजिक कुरीतियों का अंत हुआ है जिनमें बाल विवाह, सती प्रथा व विधवा विवाह प्रतिबंध आदि पर रोक लगी है। जिससे महिलाओं को अपना संपूर्ण विकास करने की स्वतंत्रता दी गई है।
प्रश्न 8.
9वीं पंचवर्षीय योजना की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
9वीं पंचवर्षीय योजना की प्रमुख तौर पर दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- ‘महिला घटक योजना’:
9वीं पंचवर्षीय योजना में महिला घटक योजना’ को एक प्रमुख कार्य नीति के रूप में अंगीकार किया गया है अर्थात् महिलाओं को विकास क्रम में एक अहम् केन्द्र बिंदु माना गया है। - असुविधा प्राप्त महिला वर्गों को सशस्त बनाना:
इस योजना के अंतर्गत समाज में अनेक साधनों से वंचित महिला वर्गों को जो सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है, उन्हें सशक्त बनाना, जिससे उनका जीवन अभावों से मुक्त हो सके।
प्रश्न 9.
राजस्थान में महिलाओं की ऐतिहासिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राजस्थान में महिलाओं की ऐतिहासिक स्थिति:
- राजस्थान के संघर्ष में मध्यकाल का समय वह था, जहाँ एक ओर सामंतवादी संरचना सुदृढ़ हुई वहीं दूसरी ओर मुस्लिम आक्रमण हुए और इन दोनों ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से महिलाओं की स्थिति को और भी अधिक दयनीय बना दिया था।
- पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने संपूर्ण भारत की ही तरह राजस्थान में स्त्री के महत्व को कम कर दिया।
- राजस्थान में कन्या के जन्म के पश्चात् उसके वध की प्रथा भी पायी जाती थी।
- राजस्थान में सामंतवादी व्यवस्था में नारी, नैतिकता व भूमि को एक ही दृष्टि से देखा जाता था तथा इस व्यवस्था में बहुविवाह प्रथा अपनी पराकाष्ठा पर थी।
प्रश्न 10.
राजस्थान में सामाजिक परिवर्तन के लिए क्या – क्या प्रयास किए गए महिलाओं के लिए?
उत्तर:
राजस्थान में किए गए महिलाओं के लिए प्रयास:
- राजस्थान में ‘डायन प्रथा’ को समाप्त करने के समाज सुधारकों के प्रयासों के चलते ब्रिटिश सरकार ने शासकों को पत्र लिखे, जिसके परिणामस्वरूप 1853 में उदयपुर राज्य ने इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।
- अनेक संघ व संगठनों का निर्माण हुआ जैसे अजमेर में राजस्थान सेवा संघ, मारवाड़ की मरुधर हितकारिणी सभा, देशी राज्य परिषद् संस्थाओं ने सामाजिक महिलाओं तथा आम जनों में जागृति का प्रयास किया।
- समाज सुधारकों के दबाव के कारण ही ब्रिटिश अधिकारियों ने सती प्रथा या विधवा दहन, जैसी अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए राजस्थान के शासकों को विवश किया।
प्रश्न 11.
राजस्थान में स्वतंत्रता से पूर्व बालिका शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राजस्थान में स्वतंत्रता से पूर्व बालिका शिक्षा की स्थिति:
- महिला शिक्षा को लेकर जोधपुर के राजा कुमार सरदार सिंह संवेदनशील थे। उन्होंने 1866 में ह्यूसन गर्ल्स स्कूल खोला तथा 1913 तक यहाँ 136 छात्राएँ थीं।
- 1944 में जयपुर शहर में महारानी कॉलेज की नींव, श्रीमती सावित्री के अथक प्रयासों से रखी गयी।
- 1943 में राजस्थान महिला विद्यालय’ में मॉन्टेसरी शाला को भी जोड़ा गया तथा 1976 में श्री दुर्गावत कला एवं औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र आरंभ हुआ।
- सन् 1935 में दयाशंकर क्षत्रिय ने गांधी दर्शन के प्रचार के उद्देश्य से चरखा द्वादशी का 12 दिवसीय आयोजन किया तथा इसी सभा में नारी शिक्षा की संस्था को प्रारंभ करने की घोषणा भी की गई।
प्रश्न 12.
विभिन्न देशों के अनुसार बाल श्रमिकों की कितनी आयु निश्चित की गई है?
उत्तर:
- संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु का श्रमिक बाल श्रमिक है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 16 वर्ष या कम आयु का श्रमिक बाल श्रमिक है।
- अमेरिका कानून के अनुसार 12 वर्ष या कम आयु का श्रमिक बाल श्रमिक है।
- इंग्लैण्ड एवं अन्य यूरोपीय देशों में 13 वर्ष या कम आयु के श्रमिकों को बाल श्रमिकों की श्रेणी में रखा जाता है।
- भारत में 5 से 14 वर्ष तक के बालकों को बाल श्रमिक माना जाता है।
प्रश्न 13.
बाल श्रम के उद्भव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बाल श्रम का उद्भव:
बाल श्रम का उद्भव पूँजीवादी वर्ग द्वारा न्यूनतम निवेश पर अधिकतम लाभ की मानसिकता की परिणति थी, चूँकि बच्चे न्यूनतम राशि में श्रम के लिए सहजता से उपलब्ध होते हैं इसलिए उन्हें श्रम में लगाया गया। इन बाल श्रमिकों की स्थिति दयनीय थी। उनका शारीरिक तथा मानसिक रूप से शोषण होता था। जिसका प्रभाव उनके ऊपर स्पष्ट रूप से दिखायी देता था।
यह अमानवीय प्रथा, प्रथम बार 1853 में प्रकाश में तब आयी, जब इंग्लैण्ड में चार्टिस्ट आंदोलन ने विश्व का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। उसी समय साहित्यकारों ने भी इस पर लिखकर संपूर्ण विश्व को जागृत किया। इन साहित्यकारों में से प्रमुख विक्टर ह्यूगो, आस्कर बाइन्ड आदि थे, जिन्होंने बाल श्रम को एक नवीन दिशा प्रदान की।
प्रश्न 14.
बाल श्रम उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा विधायी नीति के विषय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बाल श्रम उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा विधायी नीति:
- बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986, 18 व्यवसायों और 65 प्रक्रियाओं में 14 वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है।
- अधिनियम के तहत अनुसूची में और व्यवसायों तथा प्रक्रियाओं को शामिल करने का परामर्श देने के लिए एक तकनीकी सलाहकार समिति का गठन किया गया है।
- अधिनियम की धारा 3 के प्रावधानों के उल्लंघन में किसी भी बच्चे को नियोजित करने वाला कोई भी व्यक्ति कारावास सहित दंड का भागी होगा, जिसकी अवधि तीन महीने से कम नहीं होगी, जो एक वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
प्रश्न 15.
बाल श्रमिक (निषेध तथा नियमन) अधिनियम 1986 की मुख्य विशेषता बताइए।
उत्तर:
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य यह है कि कुछ रोजगारों में उन बालकों को काम पर लगाने से रोका जाये, जिन्होंने 14 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है तथा अन्य रोजगारों में बालकों की कार्य करने की दशाओं का नियमन किया जाए। इसके साथ ही कोई भी बालक रात्रि के 7 बजे से प्रात: 8 बजे के बीच काम पर नहीं लगाया जाये।
इस अधिनियम में पारिवारिक काम – धंधे या मान्यता प्राप्त स्कूल पर आधारित गतिविधियों को छोड़कर बच्चों से निम्न तरह के व्यवसायों में काम करने की मनाही है –
- रेलवे द्वारा या माल या डांक का यातायात।
- रेलवे में खान – पान या प्रबंध की संस्थाएँ।
- बीड़ी बनाना, कालीन बुनना, सीमेंट बनाना व उसे बोरियों में भरना आदि।
- विस्फोट व आतिशबाजी का सामान तैयार करना, साबुन बनाना, चमड़ा रंगना तथा ऊन आदि को साफ करने की मनाही है।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आधुनिक भारत में महिलाओं की प्रस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक भारत में महिलाओं की प्रस्थिति:
(1) विवाह संबंधी अधिकार:
- विवाह के क्षेत्र में स्त्रियों की अनेक निर्योग्यताएँ समाप्त हो गई हैं।
- बेहुपत्नी विवाह व बाल विवाह का निषेध हो गया है एवं विधवा विवाह को मान्यता मिल चुकी है।
- स्त्रियों को विवाह – विच्छेद का अधिकार प्राप्त हो गया है।
- अंतर्जातीय विवाहों को समाज में स्वीकृति मिल चुकी है।
- स्त्रियों को विवाह से संबंधित हिंदू विवाह अधिनियम 1955 भी प्राप्त हो चुका है।
(2) गृहस्थ संबंधी अधिकार:
- घर में अब नारी की स्थिति दासी के रूप में नहीं रही है।
- परिवार के निर्णयों में नारियों की भागीदारी में वृद्धि हुई है।
- महिलाएँ आज गृहस्वामिनी है तथा गृहस्थी के प्रत्येक कार्य में उसका सहयोग अब अनिवार्य हो गया है।
- परिवार में बच्चों के लालन – पोषण से लेकर शिक्षा – दीक्षा तक का महत्त्वपूर्ण कार्य स्त्री के सहारे ही चलता है।
(3) आर्थिक अधिकार:
- पारिवारिक संपत्ति के मामलों में महिलाओं को पुरुषों की भाँति अधिकार व सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं।
- भारत में सबसे पहला अधिनियम 1874 में विवाहित स्त्रियों की संपत्ति संबंधी अधिनियम पारित हुआ।
- 1929 में हिंदू कानून का उत्तराधिकारी (संशोधन) अधिनियम पारित हुआ, यह संशोधन मिताक्षरा नियम मानने वालों के लिए था।
- महिलाओं के आर्थिक या संपत्ति के क्षेत्र में अधिकार संबंधी अधिनियम के रूप में ‘हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
- महत्त्वपूर्ण है। इसमें स्त्री – पुरुष के उत्तराधिकार के भेद को दूर करके हिंदू स्त्री को संपत्ति में समान स्वामित्व प्रदान किया गया। लड़के व लड़कियों दोनों का ‘सह – अधिकार’ माना गया है।
अत: उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि आज के वर्तमान समाज में महिलाओं की प्रस्थिति में आमूलचूलकारी परिवर्तन हुए हैं।
प्रश्न 2.
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955):
इस कानून द्वारा हिंदू पुरुष – स्त्रियों के वैवाहिक तथा दाम्पत्य अधिकारों में (Marital Conjugal Rights) पूरी समानता ला दी गयी है। स्त्री तथा पुरुष के अधिकारों की विषमता को समाप्त कर दिया गया है। पति बहुविवाह नहीं कर सकता जब तक पहली पत्नी की मृत्यु न हो गयी हो।
इस कानून की सबसे महत्त्वपूर्ण व्यवस्था द्वारा विवाह (Bigamy) अथवा बहुविवाह (Polygamy) को समाप्त कर एकविवाह (Monogamy) के एक नियम की व्यवस्था है। दूसरी व्यवस्था तलाक के अधिकारों की हैं। तलाक के लिए कुछ अवस्थाओं को निश्चित कर दिया गया है। ‘हिंदू विवाह कानून, 1955 की 13वीं धारा के अनुसार ये अवस्थाएँ या शर्ते निम्न प्रकार से हैं
आवेदनकारी का प्रतिपक्षी:
- व्याभिचारी हो।
- हिंदू धर्म का परित्याग कर चुका हो।
- किसी असाध्य रोग, पागलपन या कुष्ठ रोग से पीड़ित हो।
- किसी यौन संबंधी रोग से पीड़ित हो।
- किसी धार्मिक विश्वास के कारण वैराग्य धारण कर चुका हो।
- 7 वर्ष हो गए हों तथा उसके जीवित रहने का समाचार प्राप्त न हुआ हो।
- धारा 10 के अनुसार न्यायिक पृथक्करण (Judicial seperation) की डिक्री प्राप्त करने के दो वर्ष या उससे अधिक समय तक आवेदनकारी के साथ सहवास न किया हो।
- धारा 9 के अनुसार दाम्पत्य अधिकारों की डिक्री (Decrce for Restitution of Conjugal Rights) का डिक्री जारी होने के दो वर्ष या उससे अधिक समय तक पालन किया हो।
तलाक के लिए पत्नी को दो कारण और अधिक प्राप्त हुए हैं –
1. यदि आवेदन के समय पति की दूसरी पत्नी जीवित हो।
- यदि, पति विवाह के बाद, बलात्कार (Rape), अप्राकृतिक व्याभिचार (Sodomy or Bestiality) अथवा असभ्य व्यवहार का अधिकारी पाया गया हो।
- अतः उपरोक्त तथ्यों से यह विदित होता है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 महिलाओं के लिए एक सशस्त साधन के रूप में विकसित हुआ है।
प्रश्न 3.
समाज में स्त्रियों की प्रस्थिति पर नये विधानों या अधिनियमों के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
समाज में स्त्रियों की सामाजिक प्रस्थिति पर नये विधानों या अधिनियमों के प्रभावों को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –
- परिवार में स्त्री व पुरुषों को संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त हुए हैं। पत्नी, माँ और पुत्री के रूप में स्त्रियों को पारिवारिक
- संपत्ति में पुरुषों के समान ही अधिकार मिले हैं।
- पुरुषों की भाँति स्त्रियों को भी तलाक के अधिकार मिले है।
- नाबालिग बच्चों को संरक्षण प्राप्त हुआ है तथा अब माँ भी संरक्षक बन सकती है।
- कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियों को पृथक् रहने पर भी भरण – पोषण के अधिकार प्राप्त हुए हैं।
- विधवाओं को पुनर्विवाह की स्वीकृति मिली है।
- बहुपत्नी तथा बाल विवाह की समाप्ति हुई है।
- दहेज की संपत्ति पर स्त्रियों को अधिकार प्राप्त हुए हैं।
- समाज में स्त्रियों को भी बालकों को गोद लेने का अधिकार प्राप्त हुआ है।
- स्त्रियों की शिक्षा एवं जागृति में वृद्धि हुई है।
- समाज में महिलाओं की मानसिक क्षितिज का विस्तार हुआ है।
- वे सामाजिक, शैक्षणिक तथा राजनीतिक आदि समस्त क्षेत्रों में पुरुषों के समकक्ष कार्य करने लगी हैं।
- इन अधिनियमों के विकास से समाज में पुरुषों की प्रभुता में कमी दृष्टिगोचर हुई है।
अतः उपर्युक्त सभी सुविधाओं एवं व्यवस्थाओं के कारण परिवार एवं समाज में स्त्री व पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त हुए हैं, जिससे स्त्रियों की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है तथा पुरुषों का एकाधिकार समाप्त हुआ है।
प्रश्न 4.
समाज में बाल – विवाह के कारणों की सविस्तार व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बाल विवाह के कारण:
1. धर्मशास्त्रों की स्वीकृति: अनेक धार्मिक शास्त्रों व स्मृतिकारों ने वयस्कता प्राप्त करने या होने से पूर्व विवाह को पवित्र माना जाता है।
2. अनुलोम विवाह पर रोक:
अनुलोम विवाह में लड़का उच्च कुल का होता है तथा लड़की निम्न कुल की होती है। जिसके परिणामस्वरूप अनुलोम विवाह पर रोक ने भी पिता को अच्छा वर मिलते ही विवाह के लिए प्रोत्साहित किया है।
3. आक्रमणकारियों का प्रभाव:
समय – समय पर भारत में अनेक आक्रमणकारी जातियाँ आयीं, जो भोगवाद एवं तंत्रवाद में विश्वास करती थीं तथा मैथुन में जाति भेदभाव को नहीं मानती थीं। उनसे बचने के लिए भी बाल विवाह किये जाने लगे।
4. दहेज की मांग:
समाज में लड़की के विवाह में बढ़ती हुई दहेज की मांग ने भी समाज में माता-पिता को बाल विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया।
5. स्त्री स्वतंत्र होने योग्य नहीं:
हिंदुओं में स्त्री को स्वतंत्र होने योग्य नहीं माना गया है। बचपन में माता – पिता, विवाह के बाद पति एवं वृद्धावस्था में पुत्र का उस पर अधिकार होता है। विवाह द्वारा पिता अपना आधिपत्य उसके पति को सौंपता है। इस कारण भी बाल विवाह को बल मिलता है।
6. अन्य महत्त्वपूर्ण कारण:
- अशिक्षित होने के कारण भी बाल विवाहों को प्रोत्साहन मिलता है।
- संयुक्त परिवार में पति – पत्नी पर परिवार चलाने का भार न होने के कारण भी माता – पिता छोटे बच्चों का विवाह कर देते हैं।
- सामाजिक निंदा से बचने के लिए भी बाल – विवाह समाज में आरंभ हुए।
- अपनी जाति में विवाह करने के नियम के कारण प्रत्येक पिता अपनी कन्या के लिए उत्तम वर चाहता है, अतः अच्छा लड़का मिलते ही शीघ्र विवाह कर देता है।
प्रश्न 5.
समाज में विधवा पुनर्विवाह की औचित्यता को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
विधवा पुनर्विवाह के औचित्यता को सिद्ध करने के लिए निम्नांकित तर्क दिये जा सकते है –
- विधवाओं की हृदयस्पर्शी अवस्था:
समाज में विधवाओं को अनेक सुविधाओं से वंचित किया गया है और उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लागू किये गये हैं। आज नैतिकता का तकाजा है कि विधवाओं को पुनर्विवाह की छूट दी जाए। - यौन – संबंधी नैतिकता का दोहरा मापदंड:
पुरुष को तो स्त्री की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह करने की समाज ने छूट दी. है, किंतु स्त्री को नहीं। यौन – संबंधी इस दोहरे मापदंड को समाप्त करने के लिए विधवा पुनर्विवाह होने चाहिए। - व्याभिचार को रोकने के लिए: यौन अनाचार को रोकने के लिए आवश्यक है कि विधवाओं को पुनर्विवाह की स्वीकृति दी जाए।
- अपराध रोकने हेतु: विधवा पुनर्विवाह स्वीकृति होने पर यौन अपराध, भ्रूण हत्या एवं आत्महत्याओं की संख्या घटेगी।
- व्यक्तित्व के विकास के लिए: विधवा स्त्रियों एवं उनके बच्चों के व्यक्तित्व के विाकस के लिए आवश्यक है कि उनका पुनर्विवाह कराया जाए।
- समाज के एक बड़े अंग की समस्या: यह समस्या समाज की लगभग ढाई करोड़ से अधिक विधवाओं की समस्या है जिसे हल करना मानवता का तकाजा है।
- मानवता की मांग:
मानवता की मांग है कि स्त्री व पुरुष को सभी अधिकार समान रूप से दिए जाएँ विधवाओं को भी जीवित रहने का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए। जीने का अधिकार एक सार्वभौमिक मौलिक अधिकार है। - आत्म संयम – एक विडम्बना:
हिन्दू धर्मशास्त्रों में स्त्री से संयमित जीवन व्यतीत करने की आशा की गयी जो संभव नहीं है। काम पूर्ति एक प्राकृतिक आवश्यकता है, इसके अभाव में कई शारीरिक एवं मानसिक रोग पैदा होते हैं। अतः विधवा पुनर्विवाह आवश्यक है।
अतः उपरोक्त वर्णित तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि समाज में विधवा पुनर्विवाह एक सार्वभौमिक आवश्यकता है।
प्रश्न 6.
स्त्रियों की स्थिति को उच्च करने के लिए सरकार ने कौन – कौन – सी वैधानिक व्यवस्थाएं की हैं?
उत्तर:
स्त्रियों की प्रस्थिति को सुधारने के लिए सरकार ने स्वतंत्रता से पूर्व एवं बाद में अनेक कानून बनाए उनमें से प्रमुख इस प्रकार से हैं –
- सती प्रथा निषेध अधिनियम, 1829 इसके द्वारा सती होने एवं विधवा स्त्री को इसके लिए उकसाने को दंडनीय करार दिया गया। 1986 में इसमें संशोधन कर इसे और कठिन बना दिया गया व सती को महिमा मंडित करने को भी दंडनीय बना दिया।
- हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में विवाह की आयु में वृद्धि करके लड़के की आयु 21 वर्ष तथा लड़की के लिए 18 वर्ष कर दी गयी है।
- हिन्दू स्त्रियों का संपत्ति पर अधिकार अधिनियम, 1937 द्वारा हिन्दू विधवा स्त्री का मृत पति की संपत्ति में अधिकार प्रदान किया गया है।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के द्वारा किसी भी धर्म या जाति को मानने वाले स्त्री पुरुष को परस्पर विवाह करने की छूट दी गयी है।
- स्त्रियों व कन्याओं का अनैतिक व्यापार अधिनियम, 1956 के द्वारा वेश्यावृत्ति एवं अनैतिक व्यापार पर रोक लगा दी गयी।
- दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 के द्वारा दहेज लेने व देने को दंडनीय अपराध करार दिया गया। 1985 में इसमें संशोधन कर इसे और कठोर बना दिया गया है।
- हिन्दू नाबालिग तथा संरक्षता अधिनियम, 1956 में नाबालिग बच्चों के पिता की मृत्यु होने पर माँ को भी उनके संरक्षक होने का अधिकार प्रदान किया गया।
- अलग रहने तथा भरण – पोषण हेतु स्त्रियों का अधिकार अधिनियम, 1946 के द्वारा कुछ परिस्थितियों; जैसे – पति का निर्दयतापूर्ण व्यवहार करने, धर्म परिवर्तन कर लेने, अन्य स्त्री से संबंध होने, दूसरा विवाह कर लेने या पत्नी को छोड़ देने की स्थिति में पत्नी को पति से अलग रहने पर भरण – पोषण का अधिकार प्राप्त होता है।
प्रश्न 7.
बाल श्रम उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा निर्मित संवैधानिक अनुच्छेदों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में निम्नलिखित अनुच्छेदों के द्वारा बाल श्रमिकों को उनके जटिल जीवन से मुक्ति दिलाने हेतु सरकार द्वारा अनेक प्रयास किये गए हैं, जो निम्नलिखित हैं –
- अनुच्छेद – 23:
इस अनुच्छेद के द्वारा मानव का दुर्व्यवहार तथा बेगार एवं इसी प्रकार का अन्य बलात् श्रम को प्रतिबंधित किया गया है। इसे ‘मानवं दुर्व्यवहार एवं बलात् श्रम का प्रतिरोध’ भी कहा जाता है। - अनुच्छेद – 24:
इसमें 14 वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा। - 1922, कारखाना एक्ट:
इस एक्ट के अनुसार 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को बच्चा माना गया है तथा उनके काम करने की अवधि 6 घंटे नियत की गयी है। - खान एक्ट, 1962:
इस एक्ट के तहत 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खान में किसी भी भाग में चाहे यह भूमिगत हो या खुले में खुदाई का कार्य हो, काम पर रखना मना किया गया है। - 1948, कारखाना एक्ट:
14 वर्ष की आयु का होने पर ही किसी व्यक्ति को काम पर रखा जा सकता है। काम के घंटे 4से दोपहर सहित 5 घंटे कर दिये गए हैं। - बागान श्रमिक एक्ट – 1951: इसके अंतर्गत रोजगार के लिए न्यूनतम आयु 22 वर्ष रखी गयी है।
- बाल श्रमिक (निषेध तथा नियमन) अधिनियम 1986:
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य यह है कि कुछ रोजगारों में उन बालकों को काम पर लगाने से रोका जाए, जिन्होंने 14 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है तथा अन्य रोजगारों में बालकों की कार्य करने की दशाओं का नियमन किया जाए।
बाल श्रम (निषेध एवं नियमन) संशोधन: मई, 2015 को इस नीति में 1986 में संशोधित किया गया।