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RBSE Solutions for Class 12 Sociology

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 9 जनसंचार, सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक आन्दोलन

August 21, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 जनसंचार, सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक आन्दोलन

RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में कौन – सी इकाई जनसंचार से संबंधित है –
(अ) समय
(ब) संदेश
(स) संस्था
(द) समुदाय
उत्तरमाला:
(ब) संदेश

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन – सा तत्व सामाजिक आंदोलन से संबंधित नहीं है –
(अ) विचारधारा
(ब) चमत्कारी नेतृत्व
(स) संरचना
(द) संगठन
उत्तरमाला:
(स) संरचना

प्रश्न 3.
सीताराम दास कौन से आंदोलन से जुड़े थे?
(अ) बिजौलिया
(ब) भगत
(स) खेजड़ली
(द) आर्य समाज
उत्तरमाला:
(अ) बिजौलिया

प्रश्न 4.
भगत आंदोलन का केन्द्र क्या था?
(अ) टाटगढ़
(ब) मानगढ़
(स) खेजड़ली
(द) बिजौलिया
उत्तरमाला:
(ब) मानगढ़

RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंचार का अर्थ क्या है?
उत्तर:
जब कोई संदेश या समाचार किसी माध्यम से आमजन तक पहुँचाया जाता है, तो इसे जनसंचार कहा जाता है।

प्रश्न 2.
जनसंचार की प्रमुख इकाइयों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जनसंचार की प्रमुख तीन इकाइयाँ हैं – स्रोत, संदेश तथा लक्ष्य।

प्रश्न 3.
संदेश का अर्थ बताइए।
उत्तर:
संदेश जनसंचार की वह इकाई है जो प्रतीकात्मक हो सकता है अथवा उसका प्रयोग भाषा के रूप में भी हो सकता है।

प्रश्न 4.
सामजिक आंदोलन का अर्थ बताइए।
उत्तर:
समाज में जब कोई समूह या अनेक लोग इच्छित परिवर्तन लाने के लिए सामूहिक प्रयास करते हैं तो इसे सामाजिक आंदोलन कहा जाता है।

प्रश्न 5.
सामाजिक आंदोलन के किन्हीं दो तत्त्वों को बताइए।
उत्तर:
विचारधारा एवं स्रोत सामाजिक आंदोलन के दो तत्त्व हैं।

प्रश्न 6.
बिजौलिया किसान आंदोलन कब प्रारंभ हुआ?
उत्तर:
बिजौलिया किसान आंदोलन की शुरुआत सन् 1899 के समय पड़े महा अकाल के कारण हुई थी।

प्रश्न 7.
भगत आंदोलन का संचालन किसने किया था?
उत्तर:
भगत आंदोलन का संचालन गोविंद गुरु ने किया था, जो बंजारा समुदाय के थे।

प्रश्न 8.
खेजड़ली आंदोलन का प्रमुख कारण क्या था?
उत्तर:
खेजड़ी के हरे वृक्षों की वृहद् स्तर पर कटाई करने से रोकना ही इस आंदोलन के होने का प्रमुख कारण था।

प्रश्न 9.
ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की थी?
उत्तर:
1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राममोहन राय ने की थी।

प्रश्न 10.
स्वामी विवेकानंद ने किस संस्था की स्थापना की?
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद ने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंचार एवं सामाजिक परिवर्तन को समझाइए।
उत्तर:
जनसंचार:
यह एक माध्यम है जिसके द्वारा संदेश, सूचना एवं विचार आम लोगों तक पहुँचते हैं, इसी के प्रभाव से लोगों को समस्त सूचनाएं व जानकारी उपलब्ध होती हैं तथा लोग सामाजिक आंदोलन के प्रति जागरूक होते हैं। जब समाज में व्यक्तियों का समूह आंदोलन करता है तो समाज बदलाव या परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं।

सामाजिक परिवर्तन:
जब समाज के सदस्य जागरूक होकर समाज में व्याप्त किसी समस्या के निदान के लिए एकत्रित होकर क्रांति या आंदोलन करते हैं, तो समाज में सामाजिक परिवर्तन होता है। जनसंचार के साधनों से; जैसे – रेडियो, टी.वी., समाचार – पत्र व इंटरनेट आदि साधनों के माध्यम से परिवर्तन समाज में दिखायी देता है।

प्रश्न 2.
जनसंचार का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
जनसंचार का महत्त्व:

  1. जागरूकता पैदा करने में सहायक:
    जनसंचार के साधनों के माध्यम से लोगों में जागरूकता व चेतना का प्रसार हुआ है। इससे उन्हें अपने अधिकारों व कर्तव्यों के विषय में भी जानकारी प्राप्त हुई है।
  2. सामाजिक परिवर्तन में सहायक:
    संचार के साधनों के द्वारा ही लोगों को परिवर्तन लाने की प्रेरणा मिली। इन्हीं साधनों को आधार बनाकर उन्होंने अन्य लोगों तक विचारों का प्रसार किया, जिससे समाज में सामाजिक परिवर्तन को बल मिला।
  3. राष्ट्रीय एकता में वृद्धि:
    समस्त नागरिकों में राष्ट्रभक्ति की भावना को जागृत करने में संचार साधनों ने अपनी अहं भूमिका का निर्वाह किया है। इससे लोगों को संगठित होने का प्रोत्साहन भी मिला है।

प्रश्न 3.
जनसंचार के संरचनात्मक पक्ष को समझाइए।
उत्तर:
समाज में जनसमूह के विचारों, क्रियाओं, अंतक्रियाओं तथा व्यवहारों को प्रभावित कर देना, उनमें परिवर्तन लाने के लिए उन तक पहुँचा देना ही जनसंचार है जो कि क्रमशः तीन इकाइयों से निर्मित होता है। जनसंचार के संरचनात्मक पक्ष को निम्न प्रकार से समझ सकते हैं –
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 9 जनसंचार, सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक आन्दोलन 1

  1. स्रोत: जनसंचार में स्रोत प्रथम इकाई है तथा इसे किसी विचार, संदेश या समाचार का उत्पत्ति स्थल कहते हैं।
  2. संदेश: ये अनेक रूप में हो सकता है; जैसे – भाषा या कथन के रूप में।
  3. लक्ष्य: यह जनसंचार की वह इकाई है, जिसके लिए संदेश प्रेषित किया जाता है।

प्रश्न 4.
बिजौलिया आंदोलन का स्रोत क्या था? समझाइए।
उत्तर:
बिजौलिया आंदोलन के स्रोतों को निम्नलिखित तथ्यों के माध्यम से समझा सकते हैं –

  1. राजस्थान के किसान आंदोलन या बिजौलिया आंदोलन का आरंभ 1899 में पड़े महा अकाल के कारण हुई थी।
  2. अकाल से राजस्थान में मेवाड़ क्षेत्र के भीलवाड़ा जिले के बिजौलिया के किसानों पर संकट के बादल मंडराने लगे।
  3. ब्रिटिश शासकों के पास सत्ता थी व शासन व्यवस्था का संचालन जागीर प्रथा से हो रहा था।
  4. प्राकृतिक प्रकोप तथा ठेकेदारों द्वारा भारी लगान वसूली और शोषण हुआ जिससे लोगों का पलायन प्रारंभ हुआ।

इसी आधार पर बिजौलिया क्षेत्र से पलायन के बाद शेष बचे किसानों ने शोषण और भारी लगान के विरोध में विद्रोह कर दिया, यही बिजौलिया आंदोलन का मुख्य स्रोत रहा।

प्रश्न 5.
बिजौलिया किसान आंदोलन के परिणाम पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बिजौलिया किसान आंदोलन के परिणाम:

  • किसान आंदोलन का परिणाम किसानों के लिए अनुकूल रहा।
  • इस आंदोलन से किसानों की अनेक मांगें स्वीकार कर ली गई थीं।
  • किसानों ने 84 प्रकार के कर वसूले जा रहे थे। उनमें से 35 लागतें माफ कर दी गयीं।
  • शोषण करने वाले अनेक अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया।
  • किसानों को जमींदारों के शोषण, दमन तथा लगान के बढ़ते बोझ से काफी राहत मिली।

प्रश्न 6.
भगत आंदोलन की पृष्ठभूमि बताइए।
उत्तर:
भगत आंदोलन की पृष्ठभूमि:

  1. के. एस. सिंह एक प्रसिद्ध मानवशास्त्री हैं। उन्होंने कालखंड के आधार पर पहला खंड 1795 से 1860 तक बताया। जोकि जनजातीय आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने वाला था अर्थात् इसी से भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना हुई थी।
    के. एस. सिंह के अनुसार दूसरा खंड 1860 से 1920 तक का है। इस अवधि में भारत में उपनिवेशवाद की जड़ें बहुत मजबूत हो गयीं।
  2. तीसरे खंड में ब्रिटिश शासन के समय 1920 से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक जो नीतियाँ क्रियान्वित हुईं, उनसे जनजातीय समुदाय में शोषण का विरोध हुआ।

प्रश्न 7.
भगत आंदोलन के प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
भगत आंदोलन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. आंदोलन का केन्द्र:
    बिंदु जनजातीय समुदाय विशेष रूप से भील जनजाति था। इस आंदोलन का प्रथम उद्देश्य था – जनजातीय समुदाय का धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्थान।
  2. दूसरा उद्देश्य:
    ब्रिटिश शासकों एवं स्थानीय शासकों द्वारा किये जा रहे शोषण, दमन एवं बेगार के विरुद्ध आंदोलन करना था।
    जनजातीय समुदाय के लोगों को राहत पहुँचाना। भगत आंदोलन को सशक्त बनाने के लिये गांव के स्तर पर सामाजिक धार्मिक संगठन की स्थापना करना भी इसका एक अहम् उद्देश्य था। बेट बेगार से मुक्ति दिलाना भी एक महत्वपूर्ण उद्देश्य था।

प्रश्न 8.
खेजड़ली आंदोलन क्यों हुआ? कारण समझाइए।
उत्तर:
खेजड़ली आंदोलन सन् 1730 में इसी गांव में हुआ था। आंदोलन को प्रथम चिपको आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। खेजड़ी के हरे वृक्षों को कटने से बचाने के लिए इस आंदोलन की अग्रणी एक साहसी महिला थी। उनका नाम अमृता देवी था। खेजड़ली आंदोलन के होने का एक मुख्य कारण यह था कि, अमृता देवी को ज्ञात हुआ कि जोधपुर महाराज के यहाँ से अनेक लोग खेजड़ली गांव में आ गये थे।

वे एक विशेष प्रयोजन से इस गांव में आए थे। उनका उद्देश्य था खेजड़ी के हरे वृक्षों की वृहद् स्तर पर कटाई करना। हरे वृक्षों को काटकर उनकी लकड़ियों को चूना बनाने के लिए काम में उपयोग करना था तथा साथ ही यह चूना जोधपुर महाराज द्वारा एक नया महल निर्मित करने के लिए तैयार करना भी था। यही अहम् कारण था। इस आंदोलन का जिसे बचाने के लिए अनेक लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।

प्रश्न 9.
खेजड़ली आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
हरे वृक्षों को बचाने के लिए अनेक लोगों ने अपने प्राण त्याग दिये। इस संपूर्ण घटना को सुनकर जोधपुर के तत्कालीन महाराज अभय सिंह ने अपने ही अधिकारियों द्वारा किये गए कृत्य के प्रति अफसोस प्रकट किया तथा ताम्रपत्र पर एक आदेश जारी किया –

  1. विश्नोई गांवों की राजस्व सीमाओं के अंदर सभी प्रकार के हरे वृक्षों की कटाई एवं जानवरों के शिकार को कठोरता से प्रतिबंधित किया गया।
  2. यह भी आदेशित किया गया कि यदि भूल से कोई व्यक्ति उपर्युक्त आदेश का उल्लंघन करता है तो उसे राज्य द्वारा गंभीर रूप से दंड दिया जाएगा।
  3. इस प्रकार के घटनाक्रम के प्रभाव से शासक परिवार के किसी भी सदस्य ने विश्नोई गांवों में व उनके आस – पास के गांवों में कोई भी शिकार नहीं किया।

प्रश्न 10.
आर्य समाज की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
आर्य समाज की मुख्य विशेषताएँ:

  1. मानव – मानव के बीच बंधुत्व की भावना को विकसित करना।
  2. स्त्री – पुरुष के मध्य पायी जाने वाली असमानता को दूर करना।
  3. बहुदेववाद एवं मूर्ति पूजा का विरोध करना।
  4. बाल विवाह तथा जाति प्रथा का विरोध करना।
  5. स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार करना।
  6. ‘शुद्धि आंदोलन’ द्वारा धर्म परिवर्तन कर लेने वाले हिंदुओं को पुनः हिंदू धर्म में लाना।
  7. सामाजिक, धार्मिक एवं राष्ट्रीय एकता को स्थापित करना।
  8. समस्त नागरिकों के प्रति प्रेम तथा स्नेह की भावना का विकास करना।

प्रश्न 11.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना के उद्देश्य समझाइए।
उत्तर:
रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1897 में स्वामी विवेकानंद के द्वारा की गयी थी, इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. जाति प्रथा का विरोध करना तथा ब्राह्मणों के अधिकारवाद का विरोध करना।
  2. मानवतावादी विचारों से जनकल्याण के कार्यक्रमों का संचालन करना।
  3. छुआछूत जैसी समस्या का विरोध करना।
  4. जन – सामान्य के जीवन में यूरोप और अमेरिका के अंधे अनुकरण का विरोध करना।
  5. ‘बहुजन हिताय: बहुजन सुखायः’ के आदर्श पर आधारित मानव सेवा के कार्य करना।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंचार के अवधारणात्मक पक्ष को समझाते हुए इसकी संरचना की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जनसंचार का अवधारणात्मक पक्ष:
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से जनसंचार एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सूचनाओं, संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जाता है।

लारसेन के अनुसार – किसी अवैयक्तिक साधन से अपेक्षाकृत बहुत से जनों को एक ही समय में किसी संदेश का प्रेषण जनसंचार कहलाता है। ये सभी अवैयक्तिक साधन तकनीक (प्रेस, रेडियो, सिनेमा व टी.वी.) से सीधे ही अपने श्रोताओं, पाठकों और दर्शकों को अपना संदेश देते हैं। ये संदेश नियमित भी होते हैं तथा तात्कालिक भी।

जनसंचार साधनों के लिए तीन बातें आवश्यक व महत्त्वपूर्ण हैं –

  1. दिये जाने वाले संदेश के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट हो।
  2. अपेक्षा के अनुसार ही लोग संदेश को ग्रहण करें।
  3. लोग उस संदेश के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देने में सक्षम हों।
  4. जनसंचार की अवधारणात्मक विवेचना से यह स्पष्ट है कि जनसंचार एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है, इससे आम लोगों को वैचारिक रूप से प्रभावित किया जा सकता है। उनकी मनोवृत्तियों एवं व्यवहारों में भी परिवर्तन की अपेक्षा की जा सकती है।

जनसंचार की संरचना:
जनसंचार के संरचनात्मक पक्ष को इसके तीन महत्त्वपूर्ण इकाइयों के माध्यम से समझा जा सकता है –

  1. प्रथम इकाई ‘स्रोत:
    जनसंचार की प्रथम इकाई स्रोत के रूप में होती है। स्रोत से तात्पर्य विचार की उत्पत्ति, घटना का घटित होना अथवा प्रकटीकरण है। जैसे – राजनेता का भाषण व कोई अवांछनीय कृत्य करना आदि सब जनसंचार के स्रोत कहे जाते है, जो किसी विचार, संदेश व समाचार का उत्पत्ति स्थल है। यही जनसंचार की प्रथम इकाई है।
  2. दूसरी इकाई ‘संदेश:
    जनसंचार संरचना की दूसरी इकाई है ‘संदेश’ जो कि प्रतीकात्मक हो सकता है या किसी भाषा के रूप में हो सकता है इसे ‘विषय – वस्तु’ भी कहते हैं। इसके साथ ही यह कथन अथवा प्रत्यक्ष घटित होने वाली घटना भी हो सकती है। जैसे हिंसा के लिए उकसाना, अभद्र व्यवहार या अराजकता फैलाना आदि। ये सभी उदाहरण एक संदेश के रूप में हैं अर्थात् जनसंचार संरचना की दूसरी इकाई है।
  3. तीसरी इकाई ‘लक्ष्य’:
    जनसंचार की तीसरी इकाई ‘लक्ष्य’ है। ‘लक्ष्य’ से तात्पर्य उस जनसमूह से है, जिसके लिए संदेश प्रेषित किया जाता है तथा साथ ही विचार उत्पन्न भी किये जाते हैं।
    जनसमूह के विचारों, क्रियाओं व अंतक्रियाओं और व्यवहारों को प्रभावित कर देना, उनमें परिवर्तन लाने के लिए उन तक पहुँचा – देना ही जनसंचार है जो कि क्रमशः तीन इकाइयों से निर्मित होता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक आंदोलन के प्रमुख तत्वों का वर्णन करिए।
उत्तर:
सामाजिक आंदोलन के प्रमुख तत्त्वों का विवेचन निम्न प्रकार से है –

  1. विचारधारा:
    सामाजिक आंदोलन का एक ठोस व मजबूत आधार विचारधारा होती है। यह विचारधारा ही सामाजिक आंदोलन की परिस्थिति को समझने में सहायता करती है व उसकी पूर्ण रूपरेखा भी प्रस्तुत करती है। विचारधारा के आधार पर ही सामाजिक आंदोलन के उद्देश्यों एवं उन्हें प्राप्त करने के तरीकों को प्रस्तुत किया जाता है।
  2. चमत्कारी नेतृत्व:
    सामाजिक आंदोलन की विचारधारा को प्रभावी तरीके से आम लोगों तक संप्रेषित करने के लिए चमत्कारी नेतृत्व एक महत्वपूर्ण तत्व है। नेतृत्व के अभाव में कोई भी आंदोलन सफल नहीं हो सकता है। आंदोलन के उद्देश्य के अनुसार अधिक से अधिक लोगों को साथ लेकर आगे बढ़ना नेतृत्व पर ही निर्भर करता है।
  3. कटिबद्ध अनुयायी:
    नेतृत्व को मान्यता प्रदान करने वाले अनुयायी ही सामाजिक आंदोलन को सफल बनाते हैं। अनुयियों के कारण सभी प्रकार के अवरोध आंदोलनों में दूर करने से सामूहिक प्रयास सफल हो जाते हैं।
  4. संगठन:
    संगठन को सामाजिक आंदोलन का केन्द्रीय तत्व कह सकते हैं। इसके माध्यम से आंदोलन के उद्देश्य की ओर व्यूह – रचना के अनुसार आगे बढ़ते हैं। संगठन के अभाव में आंदोलन दिशाहीन होकर कमजोर पड़ जाता है।
  5. व्यूह – रचना:
    व्यूह योजना एक प्रकार से संपूर्ण आंदोलन को चरणबद्ध तरीके से संचालित करने की योजना है। संक्षेप में सामाजिक आंदोलन की व्यूह – रचना सामाजिक आंदोलन की धुरी होती है। इसी के इर्द – गिर्द नेतृत्व एवं अनुयायी अपनी योग्यता एवं क्षमताओं का प्रदर्शन करते रहते हैं।

अतः उपरोक्त आंदोलन के तत्वों से आंदोलन को एक नवीन दिशा मिलती है, जिससे आंदोलन सफल होता है।

प्रश्न 3.
बिजौलिया किसान आंदोलन के घटनाक्रम की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
बिजौलिया किसान आंदोलन के जनक ‘विजय सिंह पथिक’ थे। उनका नाम भूपसिंह गुर्जर था। इनसे पूर्व बिजौलिया के एक साधु सीताराम दास ने बिजौलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व किया था। विजय सिंह पथिक ने 1916 में बिजौलिया पहुँचकर वहाँ पर आंदोलन की कमान संभाल ली। उन्होंने बिजौलिया के किसानों को एकजुट कर तत्कालीन सामंती व्यवस्था के विरुद्ध जनचेतना जागृत की। माणिक्यलाल वर्मा भी पथिक के संपर्क में आये तथा बिजौलिया में सामंती शोषण एवं उत्पीड़न के विरोध में किसानों को जागरूक किया।
बिजौलिया किसान आंदोलन के घटनाक्रम को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. ब्रिटिश शासनकाल में जागीर प्रथा का प्रचलन व सामंत शाही चरम पर थी। आंदोलन के घटनाक्रम में प्रकृतिक प्रकोप के साथ ठिकानेदारों द्वारा किसानों का शोषण करना प्रमुख था। किसानों में जागृति उत्पन्न कर उन्हें संगठित करने के प्रयास हुए।
  2. विजय सिंह पथिक ने प्रत्येक गांव में किसान पंचायत की शाखाएँ खोली।
  3. किसान पंचायतों के माध्यम से भूमिकर अधिभार एवं किसानों को बेगार से मुक्त करवाना आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य था।
  4. किसान पंचायतों ने भूमिकर देने से मना कर दिया। इस तरह से यह किसान आंदोलन अन्य क्षेत्रों के किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गया।
  5. साहूकार किसानों का शोषण कर रहे थे क्योंकि साहूकारों को जमींदारों का सहयोग व संरक्षण मिल रहा था, परंतु किसान आंदोलन निरंतर सशक्त होता रहा।
  6. विजय सिंह पथिक के प्रयासों से 1920 में अजमेर में ‘राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना हुई। इससे आंदोलन की गति में तीव्रता आ गयी।
  7. ब्रिटिश सरकार किसान आंदोलन के अग्रणी नेताओं और संगठन से वार्ता को तैयार हो गयी तथा वार्ता के लिए राजस्थान के ए. जी. जी., हालैण्ड को नियुक्त किया।
  8. ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि ने किसान पंचायत बोर्ड और राजस्थान सेवा संघ से वार्ता की। शीघ्र ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया व किसानों की अभूतपूर्व विजय हुई।

प्रश्न 4.
खेजड़ली आंदोलन की घटना का वर्णन कीजिए। इससे क्या संदेश मिला समझाइए?
उत्तर:
खेजड़ली आंदोलन को प्रथम चिपको आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। खेजड़ी के वृक्षों को बचाने के लिए साहसी महिला अमृता देवी ने अपने प्राणों की आहुति भी दी थी। अमृतादेवी की दृढ़ता व साहस की घटना से इस आंदोलन की शुरुआत हुई। खेजड़ी के हरे वृक्ष से लिपट कर स्वयं का सिर कटवाने वाली सशक्त महिला की प्रेरणा से विश्नोई समुदाय के 294 पुरुषों और 69 महिलाओं ने अर्थात् विश्नोई समुदाय के कुल 363 सदस्यों ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया।

प्रमुख घटनाक्रम:
खेजड़ली आंदोलन की सबसे प्रमुख घटना सिंतबर 1730 में घटित हुई। इतिहास के अनुसार भारतीय पंचांग में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि पर्यावरण सुरक्षा के लिए बलिदान की तिथि मानी जाती है। इस तिथि को अमृता देवी को ज्ञात हुआ कि जोधपुर महाराजा के यहाँ से अनेक लोग विशेष प्रयोजन से आए थे। प्रयोजन था खेजड़ी के हरे वृक्षों की वृहद् स्तर पर कटाई करना। हरे वृक्षों को काटकर उनकी लकड़ियों को चूना बनाने के लिए काम में लेना। यह चूना जोधपुर महाराजा द्वारा एक नया महत्व निर्मित करने के लिए तैयार करना था। खेजड़ी के वृक्ष सहज रूप से उपलब्ध थे।

यद्यपि यह क्षेत्र रेगिस्तान का ही एक भाग था। लेकिन खेजड़ी के असंख्य वृक्षों के कारण इस क्षेत्र में बहुत हरियाली थी। अमृता देवी ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि किसी भी परिस्थितियों में खेजड़ी के एक भी हरे वृक्ष को नहीं कटने देगी। इसके बदले उसे अपना बलिदान भी देना है तो वह तैयार है। अमृता देवी ने अपने जीवन का सर्वोच्च मूल्य के अनुसार अपना बलिदान देना स्वीकार किया।

उसके साथ उनकी तीनों बेटियों ने भी अपने प्राणों की आहुति दे दी। अमृता देवी व उनकी बेटियों के बलिदान का समाचार जंगल में आग के समान फैल गया। समुदाय के 83 गाँवों में सूचना हो गई। सभी ने एक साथ मिलकर सामूहिक कार्यवाही का निर्णय लिया। अब तक कुल 294 पुरुष और 69 महिलाएँ शहीद हो चुके थे। ये सभी विश्नोई समुदाय के थे। बूढ़े, प्रौढ़, युवतियाँ, विवाहित, अविवाहित व अमीर – गरीब सभी का प्रतिनिधित्व हो गया। खेजड़ली गांव के आंदोलन से बलिदान, त्याग, साहस व संगठित एकता का संदेश मिलता है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंचार क्या है?
(अ) माध्यम
(ब) साधन
(स) स्रोत
(द) सभी
उत्तरमाला:
(द) सभी

प्रश्न 2.
संपर्क कैसा होता है?
(अ) प्रत्यक्ष
(ब) अप्रत्यक्ष
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) दोनों

प्रश्न 3.
जनंसचार की गति किस स्तर की है?
(अ) वैश्विक
(ब) क्षेत्रीय
(स) मानवीय
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) वैश्विक

प्रश्न 4.
जनसंचार संबंधित है –
(अ) आंदोलन
(ब) परिवर्तन
(स) जागरूकता
(द) सभी
उत्तरमाला:
(द) सभी

प्रश्न 5.
“जनसंचार के साधन लोगों की मनोवृत्तियों व मूल्यों को प्रभावित करते हैं।” यह कथन किसका है?
(अ) लारसेन
(ब) सीमेल
(स) कर्वे
(द) पेज
उत्तरमाला:
(ब) सीमेल

प्रश्न 6.
जनसंचार की संरचना का निर्माण कितनी इकाइयों से होता है?
(अ) चार
(ब) सात
(स) ग्यारह
(द) विभिन्न इकाई
उत्तरमाला:
(द) विभिन्न इकाई

प्रश्न 7.
जनसंचार का विकसित रूप किस सदी में तीव्र हुआ?
(अ) 21वीं सदी
(ब) 19वीं सदी
(स) 18वीं सदी
(द) 17वीं सदी
उत्तरमाला:
(अ) 21वीं सदी

प्रश्न 8.
सामाजिक आंदोलन का केन्द्रीय तत्त्व है –
(अ) विरोध
(ब) संगठन
(स) योजना
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) संगठन

प्रश्न 9.
सामाजिक परिवर्तन है –
(अ) सार्वभौमिक
(ब) अवश्यंभावी
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) दोनों

प्रश्न 10.
बिजौलिया आंदोलन था –
(अ) किसान
(ब) मजदूर
(स) जाति
(द) सामंतवादी
उत्तरमाला:
(अ) किसान

प्रश्न 11.
पथिक ने बिजौलिया आंदोलन की कमान कब संभाली?
(अ) 1915
(ब) 1916
(स) 1917
(द) 1918
उत्तरमाला:
(ब) 1916

प्रश्न 12.
किसानों से कितने प्रकार के कर वसूल किए जा रहे थे?
(अ) 82
(ब) 83
(स) 84
(द) 88
उत्तरमाला:
(स) 84

प्रश्न 13.
पथिक को जेल से कब रिहा किया?
(अ) 1926
(ब) 1927
(स) 1928
(द) 1929
उत्तरमाला:
(ब) 1927

प्रश्न 14.
भगत आंदोलन संबंधित था –
(अ) भील
(ब) मीणा
(स) कूकी
(द) खासी
उत्तरमाला:
(अ) भील

प्रश्न 15.
संप किसका नाम है?
(अ) समुदाय
(ब) जाति
(स) गांव
(द) सभा
उत्तरमाला:
(द) सभा

प्रश्न 16.
ब्रिटिश शासकों के समक्ष कितने सूत्र का मांगपत्र रखा?
(अ) 30 सूत्रीय
(ब) 32 सूत्रीय
(स) 33 सूत्रीय
(द) 35 सूत्रीय
उत्तरमाला:
(स) 33 सूत्रीय

प्रश्न 17.
भगत आंदोलन का स्थल ………. था।
(अ) मानगढ़
(ब) भानगढ़
(स) टाटगढ़
(द) सूरजगढ़
उत्तरमाला:
(अ) मानगढ़

प्रश्न 18.
गोविंद गुरु किस जेल में रहे थे?
(अ) फैजाबाद
(ब) हैदराबाद
(स) फिरोजाबाद
(द) फरीदाबाद
उत्तरमाला:
(ब) हैदराबाद

प्रश्न 19.
चिपको आंदोलन में कितनी महिलाएँ शहीद हो गयीं?
(अ) 68
(ब) 70
(स) 69
(द) 72
उत्तरमाला:
(स) 69

प्रश्न 20.
प्रार्थना समाज की स्थापना कहाँ हुई?
(अ) मुंबई
(ब) कोलकाता
(स) दिल्ली
(द) मद्रास
उत्तरमाला:
(अ) मुंबई

RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या जनसंचार एक सामाजिक प्रक्रिया है?
उत्तर:
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से जनसंचार एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सूचनाओं, संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जाता है।

प्रश्न 2.
अवैयक्तिक साधना किसे कहते हैं?
उत्तर:
ये साधन सीधे ही अपने श्रोताओं व पाठकों को अपना संदेश देते हैं; जैसे – सिनेमा, टी.वी. तथा प्रेस आदि।

प्रश्न 3.
जनसंचार की इकाई स्रोत के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजनेता का भाषण तथा भड़काऊ बयान आदि स्रोत के उदाहरण हैं।

प्रश्न 4.
जनसंचार का सबसे सशक्त माध्यम आज कौन – सा है?
उत्तर:
जनसंचार का सबसे सशक्त माध्यम ‘इंटरनेट’ है।

प्रश्न 5.
प्रिंट मीडिया किसे कहते हैं?
उत्तर:
जहाँ छापेखाने या प्रेस के द्वारा संदेश, सूचना एवं विचार को पुस्तकों, पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों के माध्यम से आम जनों तक पहुँचाया जाता है, उसे प्रिंट मीडिया कहते हैं।

प्रश्न 6.
सांस्कृतिक परिवर्तन का आधार क्या है?
उत्तर:
मानवीय क्रियाएँ एवं अंतक्रियाएँ ही सामाजिक परिवर्तन का आधार होती है।

प्रश्न 7.
संचार के महत्त्व को किस आधार पर समझा जाता है?
उत्तर:
संचार के महत्त्व को देश, काल व परिस्थिति के आधार पर समझा जाता है।

प्रश्न 8.
प्रचलित समाज व्यवस्था किससे प्रभावित होती है?
उत्तर:
सामूहिक प्रयास से प्रचलित समाज व्यवस्था प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती है।

प्रश्न 9.
बिजौलिया किसान आंदोलन के जनक कौन थे?
उत्तर:
बिजौलिया किसान आंदोलन के जनक ‘विजय सिंह पथिक’ थे, उनका वास्तविक नाम भूपसिंह गुर्जर था।

प्रश्न 10.
पथिक किस किले में नजरबंद थे?
उत्तर:
पथिक ‘टाटगढ़ के किले में नजरबंद थे।

प्रश्न 11.
बिजौलिया किसान आंदोलन की शुरुआत किसने की थी?
उत्तर:
बिजौलिया किसान आंदोलन की शुरुआत ‘सीताराम दास’ ने की थी।

प्रश्न 12.
माणिक्यलाल वर्मा कौन थे?
उत्तर:
किसान आंदोलन में माणिक्यलाल वर्मा पथिक के संपर्क में आये तथा बिजौलिया में सामंती शोषण एवं उत्पीडन के विरोध में किसानों को जागरूक किया।

प्रश्न 13.
के. एस. सिंह कौन है?
उत्तर:
के. एस. सिंह एक प्रसिद्ध मानवशास्त्री हैं।

प्रश्न 14.
भगत आंदोलन क्यों प्रारंभ हुआ?
उत्तर:
भगत आंदोलन तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक परिस्थितियों के कारण प्रारंभ हुआ था।

प्रश्न 15.
गोविंद गुरु किस समुदाय से संबंध रखते थे?
उत्तर:
गोविंद गुरु बंजारा समुदाय के थे।

प्रश्न 16.
धूणी किसे कहा जाता है?
उत्तर:
गोविंद गुरु ने जनजातीय समुदाय के लोगों को हवन करना सिखाया, जिसे धूणी कहा जाता था।

प्रश्न 17.
धूणी की स्थापना कहाँ पर की गयी थी?
उत्तर:
गोविंद गुरु ने मानगढ़ की पहाड़ी पर मुख्य धूणी की स्थापना की थी।

प्रश्न 18.
गोविंद गुरु को किन – किन नामों से जाना जाता था?
उत्तर:
गोविंद गुरु को भगत, सामान्य भील, उजला भील तथा भगत भील आदि नामों से जाना जाता था।

प्रश्न 19.
मैला भील किसे कहा जाता था?
उत्तर:
जो नियमित स्नान नहीं करता, मांसाहारी भोजन तथा जो हवन नहीं करता है। उसे मैला भील कहा जाता है।

प्रश्न 20.
भगत आंदोलन कहाँ तक फैला था?
उत्तर:
यह आंदोलन राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र, विशेष रूप से बांसवाड़ा, डूंगरपुर तथा कुशलगढ़ तक सीमित था।

प्रश्न 21.
गोविंद गुरु की मृत्यु कब तथा कहाँ पर हुई?
उत्तर:
गोविंद गुरु अपने जीवनकाल के अंतिम दौर में गुजरात के कम्बोई में लिम्बड़ी के पास रहे तथा सन् 1931 में उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 22.
पर्यावरणीय आंदोलन किससे संबंधित आंदोलन थे?
उत्तर:
वे आंदोलन जो प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकारों से संबंधित थे, उन्हें पर्यावरणीय आंदोलन कहा जाता है।

प्रश्न 23.
खेजड़ी क्या है?
उत्तर:
खेजड़ी एक वृक्ष का नाम है, और इसी के आधार पर गांव का नाम खेजड़ली पड़ा व आंदोलन भी हुआ है।

प्रश्न 24.
किस समुदाय के सदस्यों का जीवन बलिदान हुआ था, खेजड़ली आंदोलन में?
उत्तर:
विश्नोई समुदाय के कुल 363 सदस्यों ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया।

प्रश्न 25.
प्रार्थना समाज की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रार्थना समाज की दो विशेषताएँ:

  1. नारी शिक्षा का प्रचार करना।
  2. विधवा विवाह का समर्थन प्रदान करना।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंचार के साधन किस प्रकार से व्यक्ति के मूल्यों व मनोवृत्तियों को प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
जनसंचार के साधन व्यक्ति के मूल्यों तथा मनोवृत्तियों को प्रभावित करते हैं, जो इस प्रकार से हैं –

  1. मूल्यों में बदलाव से व्यक्ति को सही व गलत के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
  2. इन साधनों के प्रभाव से व्यक्ति को समाज के स्वीकृत मानदंडों के बारे में ज्ञात होता है।
  3. इन साधनों के विकास के परिणामस्वरूप लोगों की मनोवृत्ति या आचार – विचार में भी बदलाव देखने को मिलता है।
  4. इन साधनों के विकास से लोगों में चेतना का विकास भी होता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन किसे कहते हैं?
उत्तर:
समाज में होने वाले परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहते हैं अर्थात् जब किसी भी सामाजिक घटना में किसी भी प्रकार का अंतर उसकी भूत अवस्था से वर्तमान अवस्था में होता है, तो इस अंतर को सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है।

सामाजिक परिवर्तन समाज से संबंधित होता है तथा समाज सामाजिक संगठन, सामाजिक ढांचे तथा सामाजिक संबंधों का मिला हुआ रूप है। अतः समाज के इन सभी भागों में परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है।

सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया सार्वभौमिक है। संसार के सभी देशों में सामाजिक परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन सभी कालों में होता आया है। परिवर्तन की यह प्रक्रिया विश्व के सभी समाजों में क्रियाशील रहती है।

प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन एवं सांस्कृतिक परिवर्तन में भेद कीजिए।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 9 जनसंचार, सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक आन्दोलन 2

प्रश्न 4.
प्रिंट मीडिया की विशेषता बताइए।
उत्तर:
प्रिंट मीडिया की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. लिखित रूप में सूचनाओं की प्राप्ति:
    प्रिंट मीडिया के द्वारा लोगों को समस्त जानकारी या सूचनाएँ लिखित रूप में प्राप्त हो जाती हैं, जिसमें उन्हें समस्त जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
  2. समस्त गतिविधियों की जानकारी:
    प्रिंट मीडिया के द्वारा समाज के समस्त नागरिकों को समस्त क्षेत्रों की जानकारी व विभिन्न गतिविधियों के विषय में तथ्य प्राप्त होते हैं जिससे उनमें जागरूकता का विकास होता है।

प्रश्न 5.
इंटरनेट के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
इंटरनेट के दो लाभ:

  1. देश – विदेश की जानकारी: इससे लोगों को देश – विदेश को जानकारी आसानी से बहुत जल्द उपलब्ध हो जाती है।
  2. कम समय में काम का होना: इससे लोगों के समस्त काम कुछ मिनटों में ही पूरा हो जाते हैं। इससे गणना भी आसानी से हो जाती है।

प्रश्न 6.
सामाजिक आंदोलन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी भी समाज में सामाजिक आंदोलन का प्रारंभ तब होता है, जब वहाँ के लोग वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट हों, व उसमें परिवर्तन लाना चाहते हों। अनेक बार सामाजिक आंदोलन किसी परिवर्तन का विरोध करने के लिए भी किये जाते हैं। सामाजिक आंदोलन के पीछे कोई विचारधारा अवश्य होती है। किसी भी आंदोलन का प्रभाव पहले असंगठित रूप में होता है तथा धीरे – धीरे उसमें व्यवस्था व संगठन पैदा हो जाता है।

सामाजिक आंदोलन में प्रारंभिक समाजशास्त्रियों की रुचि परिवर्तन के एक प्रयास के रूप में ही रही, जबकि वर्तमान समाजशास्त्री सामाजिक आंदोलन को परिवर्तन उत्पन्न करने या उसे रोकने के प्रयास के रूप में देखते हैं। अतः सामाजिक आंदोलन एक सामूहिक प्रयास है जिसका उद्देश्य समाज अथवा संस्कृति में कोई आंशिक अथवा पूर्ण परिवर्तन लाना अथवा परिवर्तन का विरोध करना होता है।

प्रश्न 7.
सामाजिक आंदोलन का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
सामाजिक आंदोलन का महत्व:

  1. परिवर्तन का सूचक:
    सामाजिक आंदोलन समाज में परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण सूचक या द्योतक है। इससे समाज में गतिशीलता पायी जाती है तथा समाज को एक नवीन दिशा की प्राप्ति होती है जिसके आधार पर समाज विकास के मार्ग पर अग्रसर होता है।
  2. कुरीतियों का अन्त:
    सामाजिक आंदोलनों के परिणामस्वरूप समाज में व्याप्त अनेक सामाजिक कुरीतियों; जैसे बाल – विवाह, सती प्रथा व विधवा विवाह पर प्रतिबंध आदि का समाज में अंत हुआ है।

प्रश्न 8.
सामाजिक आन्दोलन में व्यूह – रचना का क्या महत्व है?
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलन में व्यूह-रचना का महत्व:

  1. चरणबद्ध योजना का संचालन:
    व्यूह – रचना से आन्दोलन में समस्त गतिविधियों का संचालन योजनाबद्ध तरीके से होता है जिससे संपूर्ण आन्दोलन एक निश्चित दिशा में अग्रसर होता है।
  2. उद्देश्य प्राप्ति में सहायक:
    व्यूह – रचना के माध्यम से आन्दोलन में उद्देश्य प्राप्ति की सम्भावना में वृद्धि होती है जिससे सदस्यों को उद्देश्य प्राप्ति में आसानी होती है। इससे लोगों में संगठनों की भावना का भी विकास होता है।

प्रश्न 9.
भगत आन्दोलन के स्रोत की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भगत आन्दोलन को दो महत्वपूर्ण स्रोतों के आधार पर समझाया जा सकता है –

  1. पहला स्रोत सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य से महत्त्वपूर्ण है। इसका तात्पर्य है जनजातीय समुदाय के लोगों का उद्धार करना। राजस्थान और गुजरात की सीमा पर जो जनजातीय समुदाय के लोग हैं उनका सामाजिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से उद्धार करना। गलत आदतों की मुक्ति और धार्मिक – सांस्कृतिक उत्थान को बढ़ाना। सभी प्रकार के व्यसनों से मुक्ति और केवल शाकाहार अपनानां।
  2. भगत आंदोलन का दूसरा स्रोत ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियाँ तथा स्थानीय शासकों द्वारा शोषण। दक्षिण राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर और कुशलगढ़ क्षेत्र के जनजातीय समुदाय विशेष रूप से भील जनजातीय के लोगों में अपने शोषण, दमन और बेगार के विरोध में सामूहिक चेतना की जागृति, विरोध एवं आंदोलन करना।

प्रश्न 10.
अल्पसंख्यक समुदाओं में हुए समाज सुधार आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत में मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा का प्रचार – प्रसार करने तथा विश्व – बंधुत्व की भावना को उजागर करने के लिए आंदोलन हुए। इनमें अहमदिया आंदोलन, अलीगढ़ आंदोलन व सर महमूद इकबाल द्वारा शुरू किया गया आंदोलन और शेख अब्दुल हामिल शाह का आंदोलन प्रमुख है।

भारत में पारसी समुदाय के निर्धन लोगों तथा महिलाओं को शिक्षित करने में सहायता के लिए चलाए गए कार्यक्रम आंदोलन के रूप में ही थे। इसमें ‘पारसी पंचायत’ प्रमुख है। इसके माध्यम से पारसी समुदाय के जटिल सामाजिक रीति – रिवाजों में सुधार लाने के प्रयत्न होते रहे हैं।

सिक्ख समुदाय में गुरुद्वारे के माध्यम से सामाजिक धार्मिक सुधार के अनेक कार्यक्रम संचालित हुए जो समाज सुधार आंदोलन के रूप में ही थे।

प्रश्न 11.
पर्यावरण आंदोलन की विशेषता बताइए।
उत्तर:
पर्यावरण आंदोलन की विशेषताएँ:

  1. पर्यावरण संरक्षण:
    पर्यावरण आंदोलन की विशेषता यह है कि ये पर्यावरण पर आधारित आंदोलन होते हैं। जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण को सुरक्षित रखना व उसे संरक्षण प्रदान करना है।
  2. प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ते हुए दबाव को रोकना:
    इन आंदोलन का संचालन प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ते हुए दबाव को रोकना है। औद्योगीकरण व नगरीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता गया। इनका अप्रत्याशित दोहन होने लगा। ऐसी दशा में पर्यावरण को बचाना विकास प्रक्रिया के लिए एक पूर्व आवश्यकता बनी।

प्रश्न 12.
खेजड़ली आंदोलन का स्रोत बताइए।
उत्तर:
राजस्थान के जोधपुर शहर के दक्षिण पूर्व में 26 किलोमीटर की दूरी पर खेजड़ली गांव बसा हुआ है। इस गांव का नाम खेजड़ी नामक वृक्ष के आधार पर ही रखा गया था। खेजड़ी के वृक्ष को बहुत पवित्र माना जाता है, इसलिए इस वृक्ष को पुराने समय से ही बहुत आदर भाव से देखा जाता रहा है। 1730 में यह आंदोलन इसी गांव में हुआ था। इसे ‘चिपको आंदोलन’ के नाम से भी जाना जाता है।

खेजड़ी के वृक्षों को बचाने के लिए अमृता देवी ने पहल करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। इस आंदोलन में खेजड़ली क्षेत्र के लोग, जो विश्नोई समुदाय से थे, अमृता देवी के साथ जुड़ गए। खेजड़ली के हरे वृक्ष से लिपट कर स्वयं का सिर कटवाने वाली सशक्त महिला की प्रेरणा से विश्नोई समुदाय के 294 पुरुषों एवं 69 महिलाओं ने अर्थात् विश्नोई समुदाय के कुल 363 सदस्यों ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 9 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक जीवन में जनसंचार के साधनों पर प्रकाश डालते हुए, उनकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक युग प्रचार का युग है और आधुनिक समाज, जनसमाज है। जनसमाज में जनता से संपर्क करने और विशाल जनसंख्या तक अपने विचारों को पहुँचाने के लिए जनसंचार के माध्यम उपयोगी होते हैं। जनसंचार के प्रमुख माध्यम निम्नलिखित हैं –
(1) समाचार – पत्र:

  • समाचार – पत्र में नित्य प्रति की स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं की सूचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं।
  • इसमें व्यवसाय, सेवा व विवाह इत्यादि से संबंधित विज्ञापन छपते हैं जिनके आधार पर संबंधित लोगों में पारस्परिक संपर्क होता है।
  • जनता के विचार ‘संपादक के नाम पत्र’ के कॉलम में प्रकाशित होते हैं।
  • संपादकीय (Editorial) समाचार – पत्र का महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि उसके माध्यम से स्वयं संपादक अपना विचार जनता तक पहुँचाते हैं व जनता उन पर विचार करती है।

(2) टेलीविजन:

  • स्वाभाविक रूप से व्यक्ति का प्रत्यक्ष दर्शन होने से अधिक प्रभाव पड़ता है।
  • ये मनोरंजन का एक सशक्त साधन है, ज्ञानवर्धन में सहायक है और लोगों के व्यवहार निर्देशन का एक यंत्र भी है।
  • परिवार में अब बातचीत के स्थान पर दृश्य दर्शन बढ़ रहा है और परिवार एक वार्ता – समूह के स्थान पर श्रोता समूह होता जा रहा है।

(3) चलचित्र:

  • यह जनसंचार का सरल अत्यंत प्रभावशाली साधन है।
  • चलचित्रों में संक्षिप्त समाचारों को प्रत्यक्ष दर्शाया जाता है।
  • देश – विदेश की महत्वपूर्ण घटनाएँ, सामाजिक जीवन में होने वाले परिवर्तन आदि चलचित्रों के माध्यम से जनता तक पहुँचते हैं।

(4) इंटरनेट:

  • वर्तमान युग में इंटरनेट जनसंचार का एक बहुत ही शक्तिशाली माध्यम है।
  • लोग इंटरनेट के माध्यम से किसी भी देश के कोने में अन्य लोगों से संपर्क स्थापित कर सकते हैं।
  • आज इंटरनेट जनता की एक शक्तिशाली आवाज है जो संसार के समस्त क्षेत्रों में गूंजती है।

प्रश्न 2.
प्रजातांत्रिक समाजों में प्रेस के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आधुनिक युग में प्रेस प्रचार का सबसे प्रमुख साधन बना गया है। इसके द्वारा विभिन्न समाचार – पत्रों, पत्रिकाओं, विज्ञापनों, पुस्तकों, इश्तहारों तथा अन्य प्रकार की सामग्री का प्रकाशन होता है।
प्रेस को जनसंचार का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन कहा जा सकता है, जिसके द्वारा समाचारों, विज्ञापनों, कार्टूनों, लेखों, कहानियों, उपन्यासों, कविताओं और संपादकीय लेखों आदि का प्रकाशन होता है। प्रेस में प्रकाशित सामग्री सुविधा के साथ सर्वसाधारण को उपलब्ध होती है और उनके विचारों और व्यवहारों पर इसका प्रभाव पड़ता है। प्रेस के महत्व को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. प्रजातंत्र बहुमत पर आधारित शासन व्यवस्था है। प्रजातंत्र एक बहुदलीय व्यवस्था की है, जिसमें विभिन्न राजनैतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए चुनाव की राजनीति में भाग लेते हैं। प्रेस सामग्री के माध्यम से राजनैतिक दल जनता तक पहुँचते हैं। संपादकीय लेखों के द्वारा व अपीलों या आकर्षित विज्ञापनों के माध्यम से विशिष्ट प्रत्याशियों को सफल बनाने का आग्रह करते हैं। पोस्टर, बिल्ले एवं दुकानों पर छपे हुए झंडे भी प्रेस की ही देन है।
  2. वर्तमान युग विज्ञापन का युग है। कोई वस्तु तभी अधिक बिकती है जब उसका विज्ञापन अधिक होता है। मासिक पत्रिकायें एवं दैनिक तथा साप्ताहिक समाचार – पत्र इन विज्ञापनों से भरे रहते हैं जिन्हें देखकर व्यक्ति उन वस्तुओं को आवश्यकतानुसार एक बार अवश्य खरीदने के लिए तत्पर हो जाते हैं।
  3. नये विचार और पाश्चात्य परिवार प्रणाली की जानकारी प्रेस के द्वारा मिलती है जिसके फलस्वरूप भारतवर्ष में प्रजातांत्रिक परिवार का विकास हो रहा है जिसमें बच्चों के अधिकारों का ध्यान रखा जाता है और नारी को समानता के स्तर पर ही नहीं बल्कि परिवार स्वामिनी समझा जाता है।
  4. शिक्षा प्रजातंत्र का आधार है। प्रेस शिक्षा प्रसार का मुख्य साधन है। संपूर्ण शिक्षा ही प्रेस पर निर्भर करती है। साक्षरता और स्कूली शिक्षा के प्रसार के अतिरिक्त सामाजिक शिक्षा के विस्तार में भी प्रेस बहुत सहायक सिद्ध हुआ है। प्रेस द्वारा उपलब्ध ज्ञान सामग्री समाज में राजनैतिक चेतना जाग्रत करने तथा लोकतांत्रिक मूल्यों और आचरण प्रतिमानों का प्रसार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
  5. धार्मिक क्षेत्र में प्रेस का विशेष योगदान है। जैसे ‘गीता प्रेस गोरखपुर’ के द्वारा हिंदू धर्म पर विशाल धार्मिक साहित्य का प्रकाशन व प्रसार-प्रचार हुआ है। घर – घर में रामायण और गीता पहँचाने का श्रेय गीता प्रेस को ही जाता है। इसी प्रकार से नित्य – प्रति धार्मिक पुरुषों के विचार, प्रवचन आदि छपकर जनता के सामने आते हैं जिनका प्रभाव अनिवार्य रूप से समाज पर पड़ता है।

प्रश्न 3.
अशिक्षित समाज में संचार की समस्या क्या है?
उत्तर:
अशिक्षित समाज में संसार की अनेक समस्याएँ पायी जाती हैं, जिन्हें अनेक आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. अकेलेपन की भावना:
    जन – समाज के लोग भीड़-भाड़ में आनंद को खोजते हैं। वे मित्रों के साथ या परिवार के साथ पार्क, क्रीड़ा स्थल एवं सिनेमा में जाते हैं। अकेलेपन से बचने के लिए व्यक्ति उपन्यास या पत्रिकाएँ पढ़ता है। किंतु ये समस्त द्वितीयक संपर्क भी उसे भावात्मक घनिष्ठता, सुरक्षा व एकता प्रदान नहीं कर पाते हैं।
  2. अवैयक्तिक संबंध:
    जन – समाज में संचार की दूसरी समस्या लोगों के मध्य पाये जाने वाले संबधों की अवैयक्तिकता है। इन संबंधों में स्थायित्व एवं निरंतरता नहीं होती है।
  3. मानसिक तनाव:
    जन – समाज में व्याप्त उपरोक्त परिस्थितियों के कारण व्यक्ति के अंदर मानसिक तनाव बढ़ते हैं। सफलता के लिए व्यक्ति भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, दूसरों को हानि सब कुछ करने को तैयार होता है। स्वंतत्रता का सिद्धांत और सामाजिक बंधन एक – दूसरे से संघर्ष करते हैं।
  4. जन – राजनीति:
    जन समाज का सीधा सम्बन्ध राज्य से होता है। राज्य ही व्यक्ति के कार्यों पर नियंत्रण करता है। प्राथमिक समूहों का महत्व कम हो जाने से उसके अधिकारों और कर्तव्यों का निश्चय भी राज्य के द्वारा होता है।
    व्यक्ति के अच्छे – बुरे कार्यों और गतिविधियों से किसी को कोई मतलब नहीं होता है। वह भीड़ की तरह व्यवहार करने लगता है। यही कारण है कि जन – समाज को भ्रमित करना आसान होता है।

प्रश्न 4.
सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. परिवर्तन समाज का एक मौलिक तत्व है। सभी समाजों में परिवर्तन निश्चय ही होता है। यह संभव है कि प्रत्येक समाज में
  2. परिवर्तन की मात्रा भिन्न हो। परंतु सामाजिक परिवर्तन के न होने की कोई संभावना नहीं होती है। समाज निरंतर परिवर्तनशील रहा है।
  3. सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया सार्वभौमिक है। संसार के सभी देशों में सामाजिक परिर्वतन होता है। यह परिवर्तन सभी कालों में होता आया है।
  4. सामाजिक परिवर्तन को मापना संभव नहीं है। भौतिक वस्तुओं का माप आसान होता है, जबकि अभौतिक वस्तुओं की
  5. प्रकृति गुणात्मक होती है, इस कारण परिवर्तन भी अमूर्त होते हैं तथा अमूर्त तथ्यों का मापन संभव नहीं है।
  6. सामाजिक परिवर्तन अनिश्चित होता है। परिवर्तन का समय, परिवर्तन की दिशा व परिवर्तन के परिणाम सभी कुछ अनिश्चित होते हैं। इस संबध में किसी प्रकार की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
  7. परिवर्तन की गति में भिन्नता होती है। कुछ समाजों में परिवर्तन तीव्र होता है तो कहीं पर मंद। समाज में होने वाले परिवर्तन की गति, उस समाज के मूल्यों तथा मान्यताओं पर निर्भर करती है।
  8. सामाजिक परिवर्तन एक व्यक्तिगत परिवर्तन न होकर एक सामुदायिक परिवर्तन को दर्शाता है।
  9. सामाजिक परिवर्तन अनेक तत्वों की अंतक्रिया का परिणाम होती है।
  10. इसका संबंध समाज की संरचना व उसके प्रकार्यों में परिवर्तन से है।

प्रश्न 5.
सामाजिक आंदोलन की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सामाजिक आंदोलन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. प्रत्येक सामाजिक आंदोलन का जन्म किसी संकट या समस्या के कारण ही होता है।
  2. किसी भी आंदोलन को सामाजिक आंदोलन उसी समय कहा जाएगा जब उसमें समाज के अनेक व्यक्ति सम्मिलित हों।
  3. प्रत्येक सामाजिक आंदोलन का एक अनौपचारिक संगठन होता है। इस संगठन के द्वारा ही आंदोलन के लक्ष्यों को प्राप्त करने की योजना बनायी जाती है।
  4. सामाजिक आंदोलन में परिवर्तन की एक निश्चित दिशा होती है।
  5. सामाजिक आंदोलन के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं, जिन्हें पाने के लिए आंदोलन किया जाता है।
  6. प्रत्येक सामाजिक आंदोलन का कोई न कोई नेता अवश्य होता है, उसके अभाव में आंदोलन चल नहीं सकता।
  7. कोई भी आंदोलन एक निर्मित वस्तु नहीं होता वरन् उसका धीरे – धीरे विकास होता है।
  8. सामाजिक आंदोलन के लिए निश्चित योजना बनायी जाती है और विभिन्न चरणों में उसे पूरा करने का सामूहिक प्रयास किया जाता है।
  9. सामजिक आंदोलन की प्रकृति प्रचलित समाज व्यवस्था अथवा संस्कृति में पूर्ण या आंशिक सुधार लाना होता है। जब पुरानी
  10. व्यवस्था में दोष उत्पन्न हो जाते हैं, तो उसमें परिवर्तन एवं सुधार लाना आवश्यक हो जाता है, तब सामाजिक आंदोलन का मार्ग अपनाया जाता है।
  11. प्रत्येक सामाजिक आंदोलन के पीछे एक विचारधारा या वैचारिकी होती है। यह मूल्यों एवं प्रकृति का एक ऐसा योग होता है
  12. जिसमें मानव के भूतकाल के अनुभव निहित होते हैं व इसका प्रयोग वह वर्तमान की किसी घटना की व्याख्या करने अथवा उसे उचित सिद्ध करने के लिए करता है।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 8 महिला एवं बाल श्रम के विविध आयाम, राजस्थान में महिलाओं की स्थिति एवं सामाजिक चेतना

August 21, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 महिला एवं बाल श्रम के विविध आयाम, राजस्थान में महिलाओं की स्थिति एवं सामाजिक चेतना

RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रह्म समाज की स्थापना किस वर्ष में हुई?
(अ) 1828
(ब) 1820
(स) 1819
(द) 1825
उत्तरमाला:
(अ) 1828

प्रश्न 2.
हिन्दू विवाह अधिनियम कब पारित हुआ?
(अ) 1976
(ब) 1946
(स) 1937
(द) 1955
उत्तरमाला:
(द) 1955

प्रश्न 3.
किसकी अध्यक्षता में ‘देश हितैषिणी सभा’ की स्थापना की गई?
(अ) महाराणा सज्जन सिंह
(ब) महाराणा रतन सिंह
(स) महाराणा जय सिंह
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) महाराणा सज्जन सिंह

प्रश्न 4.
ऑल इंडिया वूमेन्स कॉन्फरेन्स की स्थापना किस सन् में हुई?
(अ) 1929
(ब) 1920
(स) 1919
(द) 1918
उत्तरमाला:
(अ) 1929

प्रश्न 5.
1866 में ह्यूसन गर्ल्स स्कूल किस राजा ने खोला था?
(अ) महाराणा सज्जन सिंह
(ब) राजा कुमार सरदार सिंह
(स) महाराणा जय सिंह
(द) महाराणा रतन सिंह
उत्तरमाला:
(ब) राजा कुमार सरदार सिंह

प्रश्न 6.
बाल श्रमिकों के व्यवसाय को मुख्य तौर पर कितने वर्गों में बाँटा गया है?
(अ) पाँच
(ब) चार
(स) तीन
(द) छः
उत्तरमाला:
(ब) चार

प्रश्न 7.
मानव दुर्व्यवहार एवं बलात् श्रम का प्रतिरोध किस अनुच्छेद में किया गया है?
(अ) अनुच्छेद 24
(ब) अनुच्छेद 23
(स) अनुच्छेद 28
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) अनुच्छेद 23

RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संस्कृति के किस काल में नारी की प्रतिष्ठा को पुरुषों के समानांतर ही स्वीकार किया गया था?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति के उन्मेषकाल में नारी की मान – प्रतिष्ठा को पुरुषों के समानांतर ही स्वीकार किया गया था।

प्रश्न 2.
के. एम. पणिक्कर की पुस्तक का नाम लिखें।
उत्तर:
के. एम. पणिक्कर की पुस्तक का नाम “Hindu Society at cross roads” है।

प्रश्न 3.
‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना किसने की थी?
उत्तर:
1828 में सर्वप्रथम राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी।

प्रश्न 4.
बाल विवाह नियंत्रण अधिनियम (शारदा एक्ट) कब पारित हुआ?
उत्तर:
1929 में बाल विवाह नियंत्रण अधिनियम (शारदा एक्ट) पारित हुआ।

प्रश्न 5.
भारत के संविधान के किस संशोधन में महिलाओं को पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण प्राप्त हुआ?
उत्तर:
73वें और 74वें संशोधन में विशेष रूप से अनुसूचित जनजाति महिलाओं को पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण निश्चित किया।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (IV) के अनुसार किस राज्य की महिलाओं के पास सर्वाधिक स्वयं का बैंक खाता है?
उत्तर:
गोवा’ राज्य की महिलाओं के पास सर्वाधिक स्वयं के बैंक खाते हैं।

प्रश्न 7.
राज्य की महिला साक्षरता दर वर्तमान में कितनी है?
उत्तर:
राज्य की महिला साक्षरता दर केवल 52.66 प्रतिशत है।

प्रश्न 8.
‘श्री सावित्री कन्या पाठशाला’ की स्थापना कब और कहाँ हुई?
उत्तर:
4 फरवरी, 1914 में अजमेर में ‘श्री सावित्री कन्या पाठशाला’ की स्थापना हुई थी।

प्रश्न 9.
‘राजस्थान महिला विद्यालय’ की स्थापना किसने की थी?
उत्तर:
स्वतंत्रता से पूर्व मेवाड़ अंचल में भैरुलालजी गेलडा’ ने 1916 में ‘राजस्थान महिला विद्यालय’ की स्थापना की थी।

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान के अनुसार किस आयु के बच्चे बाल श्रमिक माने जाते हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुसार 5 से 14 वर्ष के बीच में बालक/बालिका जो वैतनिक श्रम करते हैं या श्रम के द्वारा पारिवारिक कर्ज चुकाते हैं, बाल श्रमिक हैं।

प्रश्न 11.
बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम किस सन् में लागू हुआ?
उत्तर:
1986 में बालश्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम लागू किया गया।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अथर्ववेद में नारी की प्रस्थिति की विवेचना जिन शब्दों में की गयी है, लिखें।
उत्तर:
अथर्ववेद में यह स्पष्ट किया गया है कि – “नववधु, तू जिस घर में जा रही है, वहाँ की तू साम्राज्ञी है। तेरे ससुर, सास, देवर व अन्य तुझे साम्राज्ञी समझते हुए तेरे शासन में आनंदित हैं।”
अतः उपरोक्त परिभाषा से निम्न तथ्य स्पष्ट होते हैं –

  1. उन्नत स्थिति: इस परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं की स्थिति समाज व परिवारों में उन्नत थी।
  2. पुरुषों के समानांतर मान प्रतिष्ठा: महिलाओं की प्रस्थिति समाज व घरों में पुरुषों के समान ही आँकी जाती थी। उन्हें निम्न नहीं समझा जाता था, तथा उन्हें पुरुषों की भाँति ही अधिकारों की प्राप्ति थी।
  3. शासक के रूप में स्त्रियों की भूमिका: इस परिभाषा से यह भी स्पष्ट होता है कि महिलाओं की स्थिति घरों में एक शासक की भाँति शक्तिशाली थी, जिसके पास संपूर्ण शक्तियाँ थीं, जिससे वह अपने पारिवारिक सदस्यों की जिम्मेदारियों का वहन उचित प्रकार से कर सकती थी।

प्रश्न 2.
प्रथम भक्ति आंदोलन का आरम्भ किसने और कब किया?
उत्तर:
प्रथम भक्ति आंदोलन का आरम्भ रामानुजाचार्य ने मध्यकाल में किया था। भक्ति आंदोलन ने समाज में महिलाओं के लिए अनेक कार्य किये, जो इस प्रकार हैं

  1. स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में बदलाव: इन आंदोलनों ने समाज में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में काफी बदलाव किये, उन्हें कई प्रकार के धार्मिक अधिकार भी प्रदान किये गए थे।
  2. धार्मिक जीवन में उत्थान: नानक, मीरा, तुलसी तथा तुकाराम जैसे संतों ने स्त्रियों के लिए धार्मिक पूजा व अर्चना का सबल पक्ष प्रस्तुत किया। इसके अलावा इन आंदोलनों ने स्त्रियों की धार्मिक स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया व उन्हें धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन व स्वयं को शिक्षित बनाने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 3.
प्रमुख स्त्री संगठनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारतीय स्त्रियों की सामाजिक प्रस्थिति में बदलाव के लिए अनेक स्त्री संगठनों द्वारा अथक प्रयास किए गए। जिनमें प्रमुख स्त्री संगठनों के नाम निम्नलिखित हैं –

  1. ‘बंग महिला समाज’ तथा ‘महिला थियोसोफिकल सोसायटी’ ने समाज में स्त्रियों के लिए आधुनिक आदर्शों को स्थापित करने का प्रयास किया।
  2. 1917 में एनी बेसेंट द्वारा संचालित महिला भारतीय संघ का निर्माण किया गया।
  3. 1925 में लेडी एबरडन तथा लेडी टाटा द्वारा प्रारम्भ किया गया ‘भारतीय महिला राष्ट्रीय परिषद्’।
  4. 1927 में मार्गरेट कसिन्स तथा अन्य के द्वारा 1929 में स्थापित ‘ऑल इंडिया वूमेन्स कॉन्फरेंस’ किया गया।

इन समस्त संगठनों का उद्देश्य पर्दा एवं बाल विवाह जैसी बुराइयों का उन्मूलन, हिंदू अधिनियमों में सुधार, अधिकारों व
अवसरों की समानता जैसे अन्य मुद्दों को उठाया गया।

प्रश्न 4.
दसवीं पंचवर्षीय योजना में महिलाओं के लिए क्या प्रावधान प्रमुख था?
उत्तर:
दसवीं पंचवर्षीय योजना में महिलाओं के मुख्य रूप से दो प्रावधानों पर विशेष बल दिया गया, जो अग्र प्रकार से हैं –

  1. लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना:
    इस योजना के अंतर्गत महिलाओं के प्रति समाज में बरती जाने वाली लैंगिक असमानता को खत्म करना था। जहाँ महिलाओं को पुरुषों से सदैव कम आंका जाता है। वहाँ महिलाओं की प्रस्थिति में सुधार करके, समाज में व्याप्त लिंग असमानता को जड़ से खत्म कराना था। इसके लिए समाज में अनेक बार शिविर व शिक्षा रैलियों का प्रयास किया गया, महिलाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए, उन्हें पुरुषों के ही भाँति समान अधिकार भी दिए गए।
  2. ‘जेंडर बजटिंग’:
    इसके अन्तर्गत लैंगिक प्रतिबद्धताओं को बजट प्रतिबद्धताओं में परिवर्तित करने के लिए ‘जेंडर बजटिंग’ के प्रति प्रतिबद्धता को विशेष तौर पर प्रमुख माना गया। इसमें महिलाओं के विकास के लिए किए जाने वाले वित्त की व्यवस्था की जाती थी।

प्रश्न 5.
राजस्थान में विधवा दहन को तत्कालीन किन – किन राज्यों ने गैर – कानूनी घोषित किया था?
उत्तर:
समाज सुधारकों के दबाव के कारण ही ब्रिटिश अधिकारियों ने ‘सती – प्रथा’ या ‘विधवा – दहन’ जैसी अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए राजस्थान के शासकों को विवश किया गया। इसके पश्चात् इसके फलस्वरूप जोधपुर एवं उदयपुर के शासकों के आरम्भिक विरोध के बाद धीरे – धीरे राजस्थान के दूसरे शासक भी तैयार हो गए।

सर्वप्रथम 1822 में बूंदी में विधवा दहन को गैर – कानूनी घोषित किया गया। इसके पश्चात् अलवर, 1844 में जयपुर, 1846 में डूंगरपुर, बांसवाड़ा तथा प्रतापगढ़, 1848 में जोधपुर तथा कोटा, उदयपुर आदि राज्यों ने विधवा दहन को अवैध करार या घोषित कर दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप समाज में महिलाओं की प्रस्थिति में कुछ परिवर्तन अवश्य हुए व उनकी स्थिति में भी सुधार दृष्टिगोचर हुआ।

प्रश्न 6.
किस राजा ने कहाँ और किनसे बेटियों का वध न करने की शपथ दिलवायी?
उत्तर:
‘बांकीदास’ की ख्यात के अनुसार 1836 में ‘महाराणा रतन सिंह’ ने ‘गया’ में अपने सभी सामंतों की सभा आयोजित कर शपथ दिलायी थी, कि वे अपनी बेटियों का वध नहीं करेंगे। इसके पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने इसे हत्या बताते हुए ‘कन्या वध प्रथा’ को बंद करने को चेष्टा की गई।

अंत: 1834 में तत्कालीन कोटा राज्य ने इसे गैर – कानूनी घोषित किया, उसके बाद 1837 में बीकानेर, 1839 – 44 के मध्य जोधपुर, जयपुर तथा 1857 में तत्कालीन उदयपुर राज्य ने भी इसे गैर – कानूनी घोषित कर दिया। इस प्रकार से अनेक राज्यों में कन्या – वध का काफी संख्या में विरोध हुआ।

प्रश्न 7.
महिला मताधिकार की मांग भारत में कब और किस समय स्वीकार की गई?
उत्तर:
भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त महिलाओं को दो प्रमुख अधिकार हैं – “महिलाओं को मताधिकार और विधानमंडल के लिए योग्यता।” महिला मताधिकार की मांग सर्वप्रथम 1917 में की गई थी, किन्तु साउथ ब्यूरो फ्रेन्चाइज कमेटी ने 1918 में इस मांग को अस्वीकार कर दिया। 1919 में सरकार ने राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया कि वे स्त्री मताधिकार के संबंध में अपने अलग विधान या नीतियों को लागू करें।

इस प्रकार के विधान राजकोट में 1923 में, मद्रास तथा उत्तर प्रदेश में 1925 में, बिहार तथा उड़ीसा में 1929 में पारित किए गए। इस प्रकार स्त्रियों को राजनीतिक अधिकारों की प्राप्त हुई तथा वर्ष 1993 में पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण को प्राप्त हो गया।

प्रश्न 8.
राजस्थान में आरंभिक दो बालिका विद्यालय कहाँ और कब खोले गए?
उत्तर:
राज्य में, तत्कालीन अजमेर (मेरवाड़ा) जिले में 1861 में ब्यावर और 1863 में अजमेर में वर्ताकुलर बालिका विद्यालय खोले गए। इसके साथ ही 1893 तक स्कूल खोले जाने तथा नगण्य उपस्थिति के कारण बंद किये जाने का सिलसिला भी चलता रहा।

इन विद्यालयों की विशेषताएँ:

  1. ईसाई धर्म पर आधारित शिक्षा:
    इन विद्यालयों में मूलतः ईसाई धर्म की शिक्षा बच्चों को उपलब्ध करवायी जाती है। उसी धर्म के नीतियों व विधानों का उल्लेख इस शिक्षा पद्धति में की जाती थी।
  2. बालिकाओं का विकास करना:
    इन विद्यालयों का उद्देश्य बालिकाओं का सर्वांगीण विकास करना था। जिससे वे अपने जीवन को सुरक्षित रखते हुए अपना पूर्ण विकास करते हुए अपना कुशल जीवन यापन कर सकें।

प्रश्न 9.
मुख्यमंत्री उच्च शिक्षा छात्रवृत्ति योजना क्या है?
उत्तर:
मुख्यमंत्री उच्च शिक्षा छात्रवृत्ति योजना को निम्न तथ्यों के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. यह राज्य में बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने वाली एक सरकारी योजना है।
  2. यह योजना सन् 2012 में आरम्भ की गई।
  3. इस योजना के अंतर्गत अल्प आय वर्ग के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों हेतु छात्रवृत्ति योजना प्रारंभ की गई है।
  4. इसके अंतर्गत राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में 60% या अधिक अंक प्राप्त किए गए हों तथा जो कोई अन्य छात्रवृत्ति प्राप्त न कर रहे हों, उन्हें यह छात्रवृत्ति अधिकतम 5 वर्षों के लिए दिये जाते हैं।

प्रश्न 10.
बाल श्रम के प्रमुख सिद्धांतों के नाम लिखें।
उत्तर:
बालश्रम की प्रवृत्ति को समाजशास्त्रियों ने मुख्यतः चार सिद्धान्तों में बाँटा है –

  1. नवपुरातनवादी सिद्धांत:
    यह सिद्धांत कहता है कि समाज बच्चों को उपयोग व निवेष की सामग्री मानता है और इसलिए उनके श्रम का उपयोग अपने स्वार्थहित के लिए करता है।
  2. समाजीकरण का सिद्धांत:
    इस सिद्धांत के अनुसार बाल श्रम को पारिवारिक प्रक्रिया के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। कृषि व घरेलू उद्योग आदि इसके अंतर्गत आते हैं।
  3. श्रम बाजार के विखंडन का सिद्धांत:
    बाजार का मालिक-श्रमिक संबंधों के आधार पर यह सिद्धांत या विभाजन, श्रम बाजार के विखंडन के सिद्धांत को बताता है।
  4. मार्क्सवादी सिद्धांत:
    मार्क्स के अनुसार बाल श्रम पूँजीवादी व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग है। समाज में नवीन तकनीक ने अकुशल तथा सस्ते श्रमिकों की मांग को बढ़ाया है।

प्रश्न 11.
सर्वप्रथम बाल श्रम की समस्या हेतु कब और कौन – सी समिति गठित हुई?
उत्तर:
बाल श्रम की समस्या हेतु ‘बाल श्रम समिति’ सर्वप्रथम 1979 में सरकार ने बाल श्रम की समस्या के अध्ययन और उससे निपटने के लिए उपाय सुझाने हेतु ‘गुरुपादस्वामी समिति’ नामक समिति का गठन किया गया था।

समिति की मुख्य बातें:

  1. इस समिति ने बाल श्रम की समस्या का विस्तार से परीक्षण किया तथा दूरगामी सिफारिशें भी की।
  2. इस समिति ने वैधानिक प्रावधानों के माध्यम से बाल श्रम को समाप्त करने का प्रयास किया।
  3. इसके लिए इस समिति ने अन्य क्षेत्रों में कार्यकारी परिस्थितियों को विनियमित किया।
  4. इस समिति ने 1986 में बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम को लागू किया गया तथा इसी के आधार पर 1987 में बाल श्रम पर एक राष्ट्रीय नीति भी तैयार की गई।

प्रश्न 12.
कारखाना एक्ट, 1948 क्या है?
उत्तर:
भारत के संविधान में निम्नलिखित आधारों पर बाल श्रमिकों को उनके जटिल जीवन से मुक्ति दिलाने हेतु राष्ट्र द्वारा किया गया यह प्रयास है जिसे 1948, कारखाना एक्ट के नाम से संबोधित किया जाता है। इस एक्ट के अन्तर्गत दो बातों पर विशेष तौर पर बल दिया गया है –

  1. बच्चों की आयु निर्धारित की गई:
    इस एक्ट के अंतर्गत सर्वप्रथम बच्चों की कारखानों में काम करने की आयु को निश्चित किया गया है। इसके अंतर्गत जिन बच्चों की आयु 14 वर्ष या उससे कम है, ऐसे किसी भी बच्चों को काम पर नहीं लगाया जाएगा तथा उनसे बलपूर्वक कार्य भी नहीं लिया जाएगा।
  2. कार्य के घंटे निश्चित:
    कारखानों में काम करने वाले बालकों की आयु निश्चित करने के पश्चात् उनके कारखानों में काम करने के घंटों को भी सुनिश्चित किया गया। इसके लिए सरकार ने काम के घंटे 4% मध्यांतर सहित 5 घंटे निश्चित किये हैं। यदि कोई भी मालिक बाल श्रमिकों से अधिक घंटों तक कार्य करवाता है, तो वह व्यक्ति सजा का भागीदार होगा, उसे कारावास भेजा जाएगा साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में स्त्रियों की प्रस्थिति का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करें।
उत्तर:
भारतीय स्त्रियों की प्रस्थिति का विश्लेषण करने के लिए ऐतिहासिक दृष्टिकोण को अनेक कालखंडों में विभाजित करते हुए उसके अपूर्व वैभव, समाज की संरचना एवं विन्यास को जानना होगा, इसे हम निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं, जो इस प्रकार से हैं –
(1) वैदिक काल:

  • इस काल में स्त्रियों को काफी स्वतंत्रताएँ प्राप्त थीं।
  • स्त्रियाँ वैदिक वाङ्मय का अध्ययन करती थीं तथा साथ ही यज्ञों में भाग लेकर मंत्रोच्चारण भी किया करती थीं।
  • वैदिक काल में पर्दा प्रथा एवं बाल विवाह जैसी कुरीतियाँ नहीं थीं।
  • इस काल में उन्हें संपत्ति पर अधिकार प्राप्त था।
  • उन्हें अपने विवाह के लिए जीवनसाथी के चयन व विवाह – विच्छेद का अधिकार भी प्राप्त था।
  • धार्मिक संस्कारों में पत्नी का होना अनिवार्य माना जाता था।

(2) उत्तर – वैदिक काल:

  • इस काल की अवधि 600 वर्ष पूर्व से लेकर 300 वर्ष बाद तक माना जाता है।
  • इस काल में भी महिलाओं की सामाजिक प्रस्थिति हर दृष्टि से सम्मानीय थी।
  • जननी होने के कारण माता का स्थान आदरणीय माना जाता था।
  • पितृसत्तात्मक समाज होने के बावजूद महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में देखने को मिलती थी।
  • इस काल में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार व स्वतंत्रता प्राप्त थी।

(3) धर्मशास्त्र काल:

  • इस काल में महिलाओं की प्रस्थिति में बदलाव हुए।
  • इस काल का प्रारंभ तीसरी शताब्दी से लेकर 11वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध का माना जाता है।
  • इस काल में महिलाओं की स्वतंत्रता को कम कर दिया गया तथा यह भी माना जाने लगा कि महिलाओं को जीवन के
  • किसी पड़ाव पर स्वतंत्र रहने का कोई अधिकार नहीं है।
  • इस काल में महिलाओं का परम धर्म पति की सेवा करना माना गया।

(4) मध्य काल:

  • इसे 16वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी का काल माना जाता है।
  • यह महिलाओं के सर्वस्व अधिकारों के हनन का काल था।
  • इस काल में महिलाओं से सभी शिक्षा के अधिकार छीन लिये गए थे।
  • उनके जीवन का उद्देश्य सिर्फ ‘सेवा’ कार्य ही निश्चित कर दिया गया।
  • विवाह की आयु 4 – 6 वर्ष निर्धारित कर दी गई।
  • स्त्रियों की सामाजिक प्रस्थिति समाज में पुरुषों से निम्न समझी जाने लगी।

प्रश्न 2.
राजस्थान की महिलाओं की स्थिति में सुधार हेतु क्या – क्या प्रयास हुए?
उत्तर:
राजस्थान की महिलाओं की स्थिति में सुधार हेतु अनेक प्रयास किये गए जो निम्नलिखित हैं –

  1. राजस्थान में परिवर्तन की अलख जगाने में ‘आर्य समाज’ का अभूतपूर्व योगदान रहा है। राजाओं तथा सामंतों को, परिवर्तन का नेतृत्व करने हेतु अथक प्रयास किये। उन्होंने शिक्षा पर विशेष बल देते हुए अनेक विद्यालय खोलकर स्त्रियों की शिक्षा के लिए नवीन द्वार खोले।
  2. समाज सुधारकों के प्रयासों के कारण ब्रिटिश सरकार ने ‘डायन (डाकन) प्रथा’ को समाप्त करते हुए, इसे अवैध घोषित कर दिया।
  3. बहुपत्नी विवाह, बाल विवाह तथा विधवा विवाह निषेध जैसी कुप्रथाओं का अंत करने के लिए विवाह संबंधी नियम बनाने पर विचार हुआ तथा ‘देश हितैषिणी सभा’ की स्थापना की गई। यह एकमात्र ऐसी संस्था थी जिसके माध्यम से शासकों ने प्रथम बार महिलाओं के हित के लिए कदम उठाए और विवाह संबंधी नियम बनाए गए।
  4. स्वतंत्रता के पश्चात् महिलाओं की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए दो महत्त्वपूर्ण कानून बने, पहला दहेज निरोधक नियम तथा दूसरा घरेलू हिंसा से सुरक्षा संबंधी अधिनियम।
  5. राजस्थान में समाज सुधारकों के दबाव के कारण ही ब्रिटिश अधिकारियों ने सती प्रथा या विधवा दहन जैसी अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए शासकों को विवश किया, जिसके परिणामस्वरूप अनेक राज्यों में इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया गया।
  6. राजस्थान राज्य में महिलाओं के प्रस्थिति में सुधार के लिए अनेक स्वयंसेवी संस्थाएँ स्थापित हुईं।
  7. स्वतंत्रता के पश्चात् विभिन्न संवैधानिक व्यवस्थाओं एवं महिलाओं की समानता, सुरक्षा एवं हितों को ध्यान में रखते हुए बने विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों ने ‘स्त्री की प्रस्थिति’ को उच्च करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।

अत: उपरोक्त तथ्यों से यह विदित होता है कि उक्त प्रयासों व सुधारों के माध्यम से महिलाओं की प्रस्थिति में अनेक बदलाव दृष्टिगोचर हुए।

प्रश्न 3.
सामाजिक चेतना से आप क्या समझते हैं? क्या भारत की महिलाएं अपने राजनैतिक एवं सामाजिक अधिकारों के प्रति जागृत हैं? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
सामाजिक चेतना का अर्थ:
सामान्यतः सामाजिक चेतना से हमारा तात्पर्य किसी देश तथा काल विशेष से संबंधित मानव समाज में अभिव्यक्त परिवर्तनशील जागृति से है। इसका उद्भव सामाजिक अन्याय, शोषण, अनीति आदि जैसी नकारात्मक भावनाओं के विरुद्ध होता है।
भारत की महिलाएँ अपने राजनैतिक एवं सामाजिक अधिकारों के प्रति काफी जागरूक हुई हैं, जिसे निम्न आधारों पर दर्शाया जा सकता है –
1. देश के कई राज्यों में चोरी:
छिपे बाल विवाह संपन्न किए जाते हैं जो महिलाओं के जीवन के सभी मार्ग को अवरुद्ध कर ‘देता है। परन्तु महिलाएँ इसका विरोध पूरे साहस से कर रही हैं तथा देश की स्त्रियाँ अब बौद्धिक रूप से चेतन और मानसिक स्तर पर सक्षम हुई हैं।
उदाहरण:
पश्चिम बंगाल के सबसे पिछड़े जिलों में से एक पुरुलिया, जहाँ की महिला साक्षरता दर देश में सबसे कम है, कि 12 वर्षीय बीड़ी मजदूर रेखा कालिंदी ने शादी से इनकार कर, उन बच्चियों के लिए एक राह खोली जो कम उम्र में ही ब्याह दी जाती हैं।

2. बाल विवाह के अलावा, खुले में शौच की प्रथा का महिलाएँ पुरजोर तरीके से विरोध कर रही हैं। इसका संबंध स्त्री के स्वास्थ्य के साथ ही साथ उसके सम्मान के साथ भी जुड़ा हुआ है और यही कारण है कि देश के सुदूर अंचलों से इसके विरोध में स्वर उठ रहे हैं।
उदाहरण:

  1. छत्तीसगढ़ के पिछड़े इलाके से आने वाली जानकीबाई ने साल 2011 में अपने गांव के लिए घर में शौचालय निर्माण शुरू करवाया और साफ – सफाई की आदर्श व्यवस्था स्थापित की। उनके इस कार्य के लिए उन्हें ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सम्मानित किया।
    उदाहरण:
  2. 2012 में मध्य प्रदेश के रतनपुर गांव की एक महिला ने अपने विवाह के दो दिन बाद पति का घर इसलिए छोड़ दिया क्योंकि घर में शौचालय नहीं था। अत: यह समस्त उदाहरण इस ओर इशारा कर रहे हैं कि भारतीय महिलाएँ सामाजिक तौर पर काफी जागरूक हुई हैं। साथ ही राजनीतिक गतिविधियों में भी सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं। जैसे – मतदान देने में भागीदारी, पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण का मिलना एवं अनेक न्यायालय संबंधी, आदि कार्यवाही में काफी क्षेत्रों में अपनी भूमिका को काफी हद तक सार्थक सिद्ध किया है।

प्रश्न 4.
राजस्थान में बालिका शिक्षा के लिए कौन – कौनसी योजनाएँ हैं? विस्तार से लिखें।
उत्तर:
राजस्थान में बालिका शिक्षा के लिए अनेक योजनाएँ क्रियान्वित की गयी हैं। जिसका विवरण निम्न प्रकार से है –

  1. विशेष योग्यजन छात्रवृत्ति योजना:
    इस योजना का आरंभ 1981 में हुआ था। राजकीय एवं मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में नियमित अध्ययनरत विशेष योग्य छात्र – छात्राएँ, जिनके परिवार की आर्थिक आय 2 लाख रुपये से अधिक न हो, ऐसे परिवारों के विशेष योग्यजन विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति व उत्तर मैट्रिक कक्षाओं में सामान्य व अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के विशेष योग्यजन विद्यार्थियों को फीस पुनर्भरण की सुविधा भी प्रदान की जा रही है।
  2. प्रोत्साहन योजना:
    2008 – 2009 में प्रारंभ हुई इस योजना में कक्षा 12 में 75% से अधिक अंक प्राप्त करने वाली बालिकाओं को एकमुश्त 5000 रुपये का प्रोत्साहन पुरस्कार राज्य सरकार की ओर से दिया जाता है।
  3. छात्राओं को निःशुल्क साइकिल वितरण योजना:
    समस्त राजकीय विद्यालयों में शैक्षिक सत्र वर्ष 2015 – 16 से कक्षा 9 में नवीन प्रवेश लेने वाली समस्त शहरी व ग्रामीण छात्राओं को साइकिल प्रदान करने की योजना का उद्देश्य, बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना है।
  4. शारीरिक असमतायुक्त बालिकाओं हेतु सबलता पुरस्कार:
    2005 – 06 में आरंभ की गई इस योजना में शारीरिक रूप से विकलांग एवं मूक – बधिर तथा नेत्रहीन बालिकाएँ जो राजकीय विद्यालयों में कक्षा 9 से 12 में नियमित रूप से अध्ययनरत हैं, 2000 रुपये की आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी जाती है।
  5. गार्गी पुरस्कार (जूनियर योजना):
    यह योजना वर्ष 1998 में आरंभ हुई। इस योजना के अंतर्गत डाइट द्वारा आयोजित कक्षा 8 परीक्षा में पंचायत समिति एवं जिला मुख्यालय पर सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाली बालिकाओं को कक्षा 9 एवं 10 में नियमित अध्ययनरत रहने पर प्रतिवर्ष 1000 रुपये एवं प्रमाण – पत्र देकर पुरस्कृत किया जाता है।
  6. ट्रांसपोर्ट वाउचर योजना:
    यह योजना सन् 2007 – 08 में शुरू की गई। इस योजना के अंतर्गत निवास स्थान से विद्यालय की दूरी 5 कि.मी. से अधिक होनी चाहिए तथा न्यूनतम पाँच बालिकाओं के समूह का होना आवश्यक है।

प्रश्न 5.
स्वंतत्रता के पश्चात् राजस्थान में बालिका शिक्षा की स्थिति के बारे में लिखें।
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् राजस्थान में बालिका शिक्षा की स्थिति को निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर दर्शाया जा सकता
है –

  1. स्वतंत्रता के पश्चात् देश की केन्द्र प्राथमिकताओं में बाल शिक्षा का विकास था।
  2. राज्य में प्रारंभिक शिक्षा पर प्रथम पंचवर्षीय योजना में जहाँ 2.29 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया था।
  3. विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सरकार ने निरंतर बालिका शिक्षा की प्रगति के लिए काफी प्रयास किये। जिसका परिणाम यह रहा कि नामांकन में प्राथमिक स्तर पर उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  4. स्वतंत्रता के पश्चात् महिला शिक्षिकाओं की वृद्धि हुई है।
  5. राज्य में बालिकाओं के विद्यालय नामांकन में वृद्धि हुई है।
  6. स्वतंत्रता के बाद भी कुछ स्थानों पर बालिकाओं को योजना का लाभ नहीं मिल पाया है।
  7. विद्यालयों में महिला शिक्षिकाओं के अनुपात में 24.18 प्रतिशत से 30.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। परंतु वे विद्यालय जिनमें कम से कम एक महिला शिक्षिका है, की संख्या में 64.99 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
  8. राजस्थान में 11 – 14 वर्ष की आयु वर्ग में, ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल बीच में छोड़ देने वाली बालिकाओं का प्रतिशत, वर्ष 2009 में 5.56 प्रतिशत, बालकों की तुलना में 12.55 प्रतिशत बालिकाओं का रहा, जो लैंगिक भेद को दर्शाता है।
  9. राजस्थान में आज भी बाल विवाह और बालिकाओं द्वारा शारीरिक श्रम, राज्य की बालिकाओं की निरंतर शिक्षा में बाधक तत्त्व है।
  10. राज्य की महिला साक्षरता दर केवल 52.66 प्रतिशत है, जो भारत के कई राज्यों से कम नहीं है, अपितु भारत की महिला साक्षरता दर के राष्ट्रीय औसत 65.54 प्रतिशत से भी कम है।
  11. अभी पोषण से लेकर मूलभूत आवश्यकताओं तक के लिए माता – पिता द्वारा बच्चियों और बेटों में अंतर किया जाता है।

अत: वर्णित तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि राज्य में कहीं पर तो महिलाओं को शिक्षा की समुचित व्यवस्था मिली है, परंतु कुछ सामाजिक कुरीतियों के प्रचलन के कारण वे पूर्ण रूप से सशक्त नहीं बन पायी है।

प्रश्न 6.
बाल श्रम के कारण एवं दुष्प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर:
बाल श्रम के कारण निम्नलिखित हैं-

  1. आर्थिक विवशता:
    विकासशील देशों में गरीबी एक जटिल समस्या है। इस समस्या की छाप समाज के समस्त उन्नत क्षेत्रों पर पड़ती है। श्रम बाजार में बाल श्रमिकों की मांग है, इस कारण अभिभावक, अपने बच्चों को उद्योगों से लेकर कृषि कार्य हेतु श्रम करने के लिए भेजते हैं।
  2. परिवार का बड़ा आकार होना:
    ऐसे परिवार जहाँ सदस्यों की संख्या अधिक होती है वहाँ एक व्यक्ति की आय से परिवार चलाना कठिन तथा दुष्कर कार्य होता है ऐसी स्थिति में बच्चों की आय, परिवार की आजीविका का साधन बनती है।
  3. सस्ता श्रम होना:
    अनेक शोध यह स्पष्ट करते हैं कि जितना नियोक्ता एक वयस्क श्रमिक पर खर्च होता है, उसकी तुलना में मामूली – सी रकम चुकाकर वह बाल श्रमिकों से कार्य लेता है।
  4. सामाजिक ढांचा:
    भारतीय समाज में ग्रामीण परिवेश में अल्पायु में विवाह हो जाते हैं, जिसके चलते पारिवारिक दायित्वों का भार, गरीबी तथा धन की जीविकोपार्जन हेतु आवश्यकता भी बाल श्रम का कारण बनती है।

बाल श्रम के दुष्प्रभाव:

  1. इसका प्रत्यक्ष प्रभाव बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
  2. बच्चों को अनेक प्रकार के रोग; जैसे – सांस की बीमारी, चर्म रोग, फोटोबिया, दमा, टीबी आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।
  3. बाल श्रम में लगे हुए बच्चों को शारीरिक ही नहीं बल्कि सामाजिक व मानसिक पीड़ा भी होती है।
  4. गरीबी की समस्या के कारण उन्हें बाल श्रमिक के रूप में कार्य करना पड़ता है।
  5. शिक्षा के स्तर में भी उनकी स्थिति न के बराबर ही होती है। जिसके कारण उनका संपूर्ण जीवन अंधकारमय हो जाता है।
  6. इन कार्यों के परिणामस्वरूप बच्चे अपराधों में संलग्न हो जाते हैं।
  7. इन समस्याओं के कारण उनमें अलगाव की भावना का उदय होता है। अत: यह स्पष्ट है कि बाल श्रम समाज में एक जटिल समस्या है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
किस काल में महिलाओं की प्रस्थिति पुरुषों के समान थी –
(अ) उन्मेषकला
(ब) भक्ति काल
(स) मध्य काल
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) उन्मेषकला

प्रश्न 2.
किस युग में महिलाएँ यज्ञों में भाग लेती थीं –
(अ) भक्ति युग
(ब) वैदिक युग
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) वैदिक युग

प्रश्न 3.
किस वेद के अनुसार ‘नारी ही घर है’ –
(अ) सामवेद
(ब) यर्जुवेद
(स) ऋग्वेद
(द) अथर्ववेद
उत्तरमाला:
(स) ऋग्वेद

प्रश्न 4.
‘वीरप्रसु’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है –
(अ) पिता
(ब) पुत्र
(स) पुत्री
(द) माता
उत्तरमाला:
(द) माता

प्रश्न 5.
‘Religion of India’ किसके द्वारा रचित है –
(अ) हाफकिंस
(ब) कर्वे
(स) कपाड़िया
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) हाफकिंस

प्रश्न 6.
पौराणिक काल के बाद किस काल की गणना की जाती है –
(अ) भक्ति काल
(ब) धर्म काल
(स) बौद्धकाल
(द) मध्य काल
उत्तरमाला:
(स) बौद्धकाल

प्रश्न 7.
‘सेवा कार्य’ किसका उद्देश्य है –
(अ) स्त्री
(ब) महिलाएँ
(स) माताएँ
(द) सभी
उत्तरमाला:
(द) माताएँ

प्रश्न 8.
भक्ति आंदोलन का शंखनाद किसने किया था?
(अ) रामानुजाचार्य
(ब) कबीर
(स) मीरा
(द) रामदास
उत्तरमाला:
(अ) रामानुजाचार्य

प्रश्न 9.
किस वर्ष ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना हुई?
(अ) 1826
(ब) 1827
(स) 1828
(द) 1829
उत्तरमाला:
(स) 1828

प्रश्न 10.
विधवा पुनर्विवाह के लिए आंदोलन किसने चलाया?
(अ) ईश्वरचंद्र विद्यासागर
(ब) कर्वे
(स) राजा राममोहन राय
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) ईश्वरचंद्र विद्यासागर

प्रश्न 11.
हिन्दू विवाह अधिनियम कब बना था –
(अ) 1953
(ब) 1954
(स) 1955
(द) 1956
उत्तरमाला:
(स) 1955

प्रश्न 12.
‘मार्गरेट कसिन्स’ महिला संगठन कब बना?
(अ) 1926
(ब) 1927
(स) 1928
(द) 1929
उत्तरमाला:
(ब) 1927

प्रश्न 13.
पहली लोकसभा बैठक कब हुई थी?
(अ) 1951
(ब) 1952
(स) 1953
(द) 1954
उत्तरमाला:
(अ) 1951

प्रश्न 14.
8वीं योजना का कार्यकाल कितना था?
(अ) 1992 – 1997
(ब) 1997 – 2002
(स) 2002 – 2007
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) 1992 – 1997

प्रश्न 15.
राजस्थान की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्या था –
(अ) सामंतवादी व्यवस्था
(ब) कृषि व्यवस्था
(स) पूँजीवादी व्यवस्था
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) कृषि व्यवस्था

प्रश्न 16.
‘देश हितैषिणी सभा’ की स्थापना कब की गयी?
(अ) 1875
(ब) 1876
(स) 1877
(द) 1878
उत्तरमाला:
(स) 1877

प्रश्न 17.
कितने प्रतिशत महिलाओं ने घरेलू निर्णयों में कोई योगदान नहीं दिया है –
(अ) 56.2%
(ब) 53.8%
(स) 59.6
(द) 57.8%
उत्तरमाला:
(द) 57.8%

प्रश्न 18.
महिला मताधिकार की सर्वप्रथम मांग कब की गई?
(अ) 1916
(ब) 1917
(स) 1918
(द) 1919
उत्तरमाला:
(ब) 1917

प्रश्न 19.
महिलाओं को किस वर्ष पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण प्राप्त हुआ?
(अ) 1993
(ब) 1994
(स) 1995
(द) 1996
उत्तरमाला:
(अ) 1993

प्रश्न 20.
पश्चिम बंगाल में महिलाओं के निर्णयों में सशक्तीकरण कितनी प्रतिशत दर्ज की गई है?
(अ) 82.6%
(ब) 83.8%
(स) 84.5%
(द) 89.8%
उत्तरमाला:
(द) 89.8%

प्रश्न 21.
ह्यूसन गर्ल्स स्कूल कब खोला गया?
(अ) 1855
(ब) 1866
(स) 1877
(द) 1888
उत्तरमाला:
(ब) 1866

प्रश्न 22.
वनस्थली विद्यापीठ की स्थापना कब हुई?
(अ) 1934
(ब) 1936
(स) 1935
(द) 1937
उत्तरमाला:
(स) 1935

प्रश्न 23.
मत्स्य उद्योग कहाँ पर है, जहाँ सर्वाधिक बाल श्रमिक पाए जाते हैं –
(अ) तमिलनाडु
(ब) गोवा
(स) आंध्र प्रदेश
(द) केरल
उत्तरमाला:
(द) आंध्र प्रदेश

प्रश्न 24.
राजस्थान के किस शहर में बहुमूल्य पत्थर पॉलिश उद्योग पाया जाता है?
(अ) अलवर
(ब) भरतपुर
(स) जयपुर
(द) धौलपुर
उत्तरमाला:
(स) जयपुर

प्रश्न 25.
बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति किस वर्ष तैयार की गई?
(अ) 1987
(ब) 1986
(स) 1985
(द) 1984
उत्तरमाला:
(अ) 1987

RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 अति लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसे संपत्ति, ज्ञान एवं शक्ति की स्वामिनी माना गया है?
उत्तर:
नारी को वैदिक काल में संपत्ति, ज्ञान एवं शक्ति की स्वामिनी माना गया है।

प्रश्न 2.
‘पूर्व – मीमांसा’ किसकी रचना है?
उत्तर:
पूर्व – मीमांसा’ जैमिनी की रचना है।

प्रश्न 3.
बौद्धकाल में महिलाओं के संघ का क्या नाम था?
उत्तर:
बौद्धकाल में महिलाओं के संघ को भिक्षुणी संघ’ कहा गया था।

प्रश्न 4.
किस काल में महिलाओं से शिक्षा के अधिकार छीन लिये गए थे?
उत्तर:
मध्यकाल में महिलाओं से शिक्षा के अधिकार छीन लिये गये थे।

प्रश्न 5.
बड़ौदा साम्राज्य के शासक कौन थे?
उत्तर:
बड़ौदा साम्राज्य के शासक ‘सायाजी राव गायकवाड’ थे, जिन्होंने स्त्रियों को शिक्षा दिलाने के लिए हर संभव प्रयास किये।

प्रश्न 6.
शारदा एक्ट के तहत् विवाह के लिए लड़के व लड़की की आयु कितनी निर्धारित की गई है?
उत्तर:
इस एक्ट के अनुसार कन्या के विवाह के लिए न्यूनतम आयु 14 वर्ष तथा लड़के के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई।

प्रश्न 7.
हिन्दू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार का अधिनियम कब लागू या पारित किया गया था?
उत्तर:
वर्ष 1937 में महिलाओं को संपत्ति के अधिकार से अभिभूत किया गया था।

प्रश्न 8.
किसने महिलाओं को आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया?
उत्तर:
महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए महिलाओं को प्रेरित किया।

प्रश्न 9.
‘CMCA’ का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
Children’s Movement for Civil awareness (CMCA) का पूर्ण नाम है।

प्रश्न 10.
समाज में स्त्रियों की प्रस्थिति को मापने का क्या तरीका है?
उत्तर:
किसी भी महिला के निर्णय लेने की क्षमता के आधार पर समाज में उनकी प्रस्थिति को मापा जा सकता है।

प्रश्न 11.
महिलाओं के प्रति कार्यस्थलों में किसका अभाव पाया जाता है?
उत्तर:
भारत में महिलाओं के प्रति कार्यस्थलों में संवेदनशीलता’ का अभाव पाया जाता है।

प्रश्न 12.
महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने के लिए कौन – सा अधिनियम बनाया गया?
उत्तर:
महिलाओं पर किये जाने वाले उत्पीड़न को रोकने के लिए “महिला उत्पीड़न रोकथाम विनिवारण अधिनियम” बनाया गया।

प्रश्न 13.
पहली लोकसभा बैठक में महिलाओं की संख्या कितनी थी?
उत्तर:
1951 में पहली लोकसभा बैठक में सिर्फ 22 महिला सदस्यों की संख्या थी।

प्रश्न 14.
IPU का पूरा नाम बताइए तथा ये क्या है?
उत्तर:
‘Inter Parliamentary union’ एक रिपार्ट है।

प्रश्न 15.
किस योजना में ‘महिला घटक योजना’ को अंगीकार किया गया?
उत्तर:
9वीं पंचवर्षीय योजना में महिला घटक योजना’ को एक प्रमुख कार्य नीति के रूप में अंगीकार किया गया।

प्रश्न 16.
किस योजना में ‘जेंडर बजटिंग’ पर विशेष बल दिया गया?
उत्तर:
10वीं पंचवर्षीय योजना में लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए ‘जेंडर बजटिंग’ पर विशेष बल दिया गया।

प्रश्न 17.
राजस्थान के किस काल में सामंतवादी संरचना मजबूत हुई थी?
उत्तर:
मध्यकाल में राजस्थान में सामंतवादी संरचना मजबूत हुई थी।

प्रश्न 18.
‘मधुमालती’ में किसे आजीविका का स्रोत बताया गया है?
उत्तर:
‘मधुमालती’ में शिक्षा को ज्ञान तथा आजीविका का स्रोत बताया गया है।

प्रश्न 19.
राजस्थान में प्राथमिक शिक्षा के विद्यालयों को किन भागों से जाना जाता था?
उत्तर:
राजस्थान में प्राथमिक शिक्षा के विद्यालयों को ‘उपासरा’, ‘पोसाल’ तथा ‘मकतब’ आदि नामों से जाना जाता था।

प्रश्न 20.
स्त्रियों की शिक्षा में राजस्थान में कौन – सी कुप्रथा बाधक तत्त्व बनी?
उत्तर:
राजस्थान में महिलाओं की शिक्षा में बाल – विवाह’ कुप्रथा सबसे बड़ी बाधक तत्त्व बनी।

प्रश्न 21.
‘जौहर प्रथा’ को किस परंपरा से संबोधित किया जाता है?
उत्तर:
‘जौहर प्रथा’ को राजस्थान में गौरवमय परंपरा के नाम से संबोधित किया जाता था।

प्रश्न 22.
राजस्थान के भक्ति आंदोलन में कौन – कौन शामिल थे?
उत्तर
राजस्थान के भक्ति आंदोलन में संत रैदास, जांभोजी, रामचरण दादू तथा धन्ना आदि शामिल थे।

प्रश्न 23.
‘वाल्टर कृत राजपूत हितकारिणी सभा’ का गठन किस वर्ष किया गया?
उत्तर:
1887 में ‘वाल्टर कृत राजपूत हितकारिणी सभा’ का गठन किया गया था।

प्रश्न 24.
1837 में राजस्थान के किस शहर में ‘कन्या वध’ को अवैध घोषित किया गया?
उत्तर:
बीकानेर में 1837 में ‘कन्या वध’ को अवैध घोषित किया गया।

प्रश्न 25.
अमेरिका के कानून के अनुसार बाल श्रमिकों की कितनी आयु निर्धारित की गई है?
उत्तर:
अमेरिका के कानून के अनुसार 12 वर्ष बाल श्रमिकों की आयु निर्धारित की गई है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैदिक काल में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वैदिक काल में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति को निम्न बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. वेदों का अध्ययन:
    वैदिक काल में स्त्रियों को शैक्षिक अधिकार प्राप्त थे। स्त्रियाँ पूर्ण रूप से वेदों का अध्ययन करती थीं, अर्थात् वैदिक वाङ्मय का अध्ययन करती थीं। उन्हें वेदों के अध्ययन के विषय में जानकारी भी होती थी।
  2. मंत्रोच्चारण करना:
    चूँकि महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त था। इस कारण वे यज्ञों में भाग लेती थीं तथा मंत्रों व श्लोकों का उच्चारण भी ये यज्ञों में किया करती थीं।
  3. धार्मिक गतिविधियों की जानकारी:
    वैदिक युगीन स्त्रियों को शिक्षा के द्वारा ही धार्मिक आचरण, पवित्रता व अन्य गतिविधियों को संपन्न करने में कुशल थी। इस कारण शिक्षा के द्वारा हो उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में जानकारी भी प्राप्त होती रहती थी।

प्रश्न 2.
मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट के क्या कारण थे?
उत्तर:
मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट के अनेक कारण जिम्मेदार थे, जिन्हें निम्नलिखित आधारों पर दर्शाया जा सकता है –

  1. शिक्षा के अधिकार का हनन:
    वैदिक काल में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति जितनी उन्नत थी, वहीं मध्यकाल में पूर्णतः विपरीत हो गयी। महिलाओं से इस काल में शिक्षा – दीक्षा से संबंधी समस्त अधिकार (उपनयन) पूर्ण रूप से छीन लिए गए थे। उन्हें शिक्षा ग्रहण का कोई भी अधिकार इस काल में नहीं दिया गया था।
  2. केवल सेवा – कार्यों तक सीमित:
    इस काल में महिलाओं को केवल घर की चार दीवारी के अंदर हो कैद कर दिया गया था। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य औरों की सेवा करना निश्चित कर दिया गया था तथा मनुस्मृति में भी यह स्पष्ट किया गया है कि “विवाह का विधान ही महिलाओं का उपनयन है, पति की सेवा ही गुरुकाल का वास है तथा घर का काम ही अग्नि की सेवा करना है।”
  3. अल्प आयु में विवाह:
    मध्य काल में रक्त की पवित्रता की संकीर्ण विचारधारा ने इतना जोर पकड़ा कि अल्प आयु में ही कन्याओं का विवाह सुनिश्चित कर दिया गया। विवाह की आयु (4-6) वर्ष तक की निर्धारित कर दी गई थी।
    अतः स्पष्ट है कि मध्यकाल में महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय हो चुकी थी।

प्रश्न 3.
ब्रिटिश काल में महिलाओं की प्रस्थिति कैसी थी?
उत्तर:
ब्रिटिश काल में महिलाओं की प्रस्थिति को अनेक आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. सुधार के प्रयास:
    ब्रिटिश शासन काल में स्त्रियों की प्रस्थिति के सुधारात्मक प्रयासों में ब्रिटिश शासन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, परंतु इस काल में भारतीयों द्वारा समय-समय पर समाज सुधार के जो प्रयास किए गए उसमें अंग्रेजी सरकार के द्वारा इन प्रयासों को विशेष एवं व्यावहारिक सहयोग प्राप्त नहीं हुआ था।
  2. अनेक निर्योग्यताएँ:
    इस काल में महिलाओं पर अनेक प्रकार की सामाजिक एवं आर्थिक निर्योग्यताएँ लाद दी गई थीं। आर्थिक तौर पर उन्हें केवल घरेलू कार्यों तक ही सीमित कर दिया गया था और साथ ही पारिवारिक निर्णयों में उनकी भागीदारी न के बराबर ही थी तथा सामाजिक तौर पर पर्दा प्रथा, बाल – विवाह तथा विधवा विवाह पर प्रतिबंध आदि लगा दिये गये।

अतः इस काल में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं थी, किंतु अनेक सुधारकों के द्वारा उनकी स्थिति में सुधार लाने के प्रयास अवश्य किये गए।

प्रश्न 4.
किन समाज सुधारकों ने महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास किये हैं?
उत्तर:
अनेक भारतीय समाज-सुधारकों ने समय – समय पर स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के अनेक प्रयास किए हैं –

  1. महर्षि कर्व:
    इन्होंने स्त्रियों के लिए समाज में विधवा पुनर्विवाह तथा स्त्रियों की शिक्षा के लिए महर्षि कर्वे ने काफी प्रयास किए। उन्होंने 1916 में SNDT विश्वविद्यालय की स्थापना महाराष्ट्र में की थी।
  2. ईश्वरचंद्र विद्यासागर: इन्होंने विधवाओं के लिए आंदोलन चलाया और स्त्रियों की शिक्षा के लिए वकालत भी की।
  3. राजा राममोहन राय: इन्होंने 1828 में सर्वप्रथम ब्रह्म समाज की स्थापना करके सती प्रथा के विरुद्ध संघर्ष किया।

प्रश्न 5.
सती प्रथा की विशेषता बताइए।
उत्तर:
सती प्रथा की विशेषताओं को निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. सती प्रथा समाज में महिलाओं की ऐसी शोषण की प्रथा है जिसमें महिलाओं के विवाह के उपरांत उनके पति की मृत्यु पर उन्हें जीवित जलाने की प्रथा पायी जाती थी।
  2. इसमें समाज में यह माना जाता था कि पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी को जीवित रहने का कोई हक नहीं है।
  3. महिलाओं का धर्म सिर्फ सेवा कार्य ही निश्चित किया गया था, जिसमें उनके पति की सेवा करना परम धर्म माना जाता था, इस कारण भी उन्हें पति के साथ जलने के लिए प्रेरित किया जाता था।

प्रश्न 6.
महिलाओं की प्रस्थिति को उच्च करने के लिए कौन से वैधानिक अधिनियम बनाए गए हैं?
उत्तर:
भारत में महिलाओं की प्रस्थिति को उच्च व सशक्त करने के लिए अनेक अधिनियम बनाए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (संशोधन विधेयक), 1929।
  • हिंदू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार का अधिनियम, 1937।
  • हिंदू विवाह अयोग्यता निवारण अधिनियम, 1946।
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955।
  • दहेज प्रतिबंध अधिनियम, 1961 तथा मातृत्व लाभ अधिनियम।
  • समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976।

अतः उपरोक्त अधिनियमों के निर्माण से महिलाओं की प्रस्थिति में काफी बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आंदोलन से महिलाओं की प्रस्थिति में किस प्रकार परिवर्तन हुए हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय आंदोलन ने महिलाओं की प्रस्थिति में निम्न प्रकार से बदलाव किए हैं, जिसे विभिन्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. उच्च सामाजिक स्तर:
    आंदोलनों के परिणामस्वरूप स्त्रियों की सामाजिक प्रस्थिति समाज, घर व परिवारों में काफी उन्नत हुई है। उन्हें वैधानिक रूप से अनेक अधिकार प्राप्त हुए हैं, जिनका उपयोग करके वह अपने जीवन को सफल बना सकती हैं।
  2. सामाजिक कुरीतियों का अंत:
    इन आंदोलनों के फलस्वरूप समाज में अनेक सामाजिक कुरीतियों का अंत हुआ है जिनमें बाल विवाह, सती प्रथा व विधवा विवाह प्रतिबंध आदि पर रोक लगी है। जिससे महिलाओं को अपना संपूर्ण विकास करने की स्वतंत्रता दी गई है।

प्रश्न 8.
9वीं पंचवर्षीय योजना की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
9वीं पंचवर्षीय योजना की प्रमुख तौर पर दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. ‘महिला घटक योजना’:
    9वीं पंचवर्षीय योजना में महिला घटक योजना’ को एक प्रमुख कार्य नीति के रूप में अंगीकार किया गया है अर्थात् महिलाओं को विकास क्रम में एक अहम् केन्द्र बिंदु माना गया है।
  2. असुविधा प्राप्त महिला वर्गों को सशस्त बनाना:
    इस योजना के अंतर्गत समाज में अनेक साधनों से वंचित महिला वर्गों को जो सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है, उन्हें सशक्त बनाना, जिससे उनका जीवन अभावों से मुक्त हो सके।

प्रश्न 9.
राजस्थान में महिलाओं की ऐतिहासिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राजस्थान में महिलाओं की ऐतिहासिक स्थिति:

  1. राजस्थान के संघर्ष में मध्यकाल का समय वह था, जहाँ एक ओर सामंतवादी संरचना सुदृढ़ हुई वहीं दूसरी ओर मुस्लिम आक्रमण हुए और इन दोनों ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से महिलाओं की स्थिति को और भी अधिक दयनीय बना दिया था।
  2. पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने संपूर्ण भारत की ही तरह राजस्थान में स्त्री के महत्व को कम कर दिया।
  3. राजस्थान में कन्या के जन्म के पश्चात् उसके वध की प्रथा भी पायी जाती थी।
  4. राजस्थान में सामंतवादी व्यवस्था में नारी, नैतिकता व भूमि को एक ही दृष्टि से देखा जाता था तथा इस व्यवस्था में बहुविवाह प्रथा अपनी पराकाष्ठा पर थी।

प्रश्न 10.
राजस्थान में सामाजिक परिवर्तन के लिए क्या – क्या प्रयास किए गए महिलाओं के लिए?
उत्तर:
राजस्थान में किए गए महिलाओं के लिए प्रयास:

  1. राजस्थान में ‘डायन प्रथा’ को समाप्त करने के समाज सुधारकों के प्रयासों के चलते ब्रिटिश सरकार ने शासकों को पत्र लिखे, जिसके परिणामस्वरूप 1853 में उदयपुर राज्य ने इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।
  2. अनेक संघ व संगठनों का निर्माण हुआ जैसे अजमेर में राजस्थान सेवा संघ, मारवाड़ की मरुधर हितकारिणी सभा, देशी राज्य परिषद् संस्थाओं ने सामाजिक महिलाओं तथा आम जनों में जागृति का प्रयास किया।
  3. समाज सुधारकों के दबाव के कारण ही ब्रिटिश अधिकारियों ने सती प्रथा या विधवा दहन, जैसी अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए राजस्थान के शासकों को विवश किया।

प्रश्न 11.
राजस्थान में स्वतंत्रता से पूर्व बालिका शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राजस्थान में स्वतंत्रता से पूर्व बालिका शिक्षा की स्थिति:

  1. महिला शिक्षा को लेकर जोधपुर के राजा कुमार सरदार सिंह संवेदनशील थे। उन्होंने 1866 में ह्यूसन गर्ल्स स्कूल खोला तथा 1913 तक यहाँ 136 छात्राएँ थीं।
  2. 1944 में जयपुर शहर में महारानी कॉलेज की नींव, श्रीमती सावित्री के अथक प्रयासों से रखी गयी।
  3. 1943 में राजस्थान महिला विद्यालय’ में मॉन्टेसरी शाला को भी जोड़ा गया तथा 1976 में श्री दुर्गावत कला एवं औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र आरंभ हुआ।
  4. सन् 1935 में दयाशंकर क्षत्रिय ने गांधी दर्शन के प्रचार के उद्देश्य से चरखा द्वादशी का 12 दिवसीय आयोजन किया तथा इसी सभा में नारी शिक्षा की संस्था को प्रारंभ करने की घोषणा भी की गई।

प्रश्न 12.
विभिन्न देशों के अनुसार बाल श्रमिकों की कितनी आयु निश्चित की गई है?
उत्तर:

  • संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु का श्रमिक बाल श्रमिक है।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 16 वर्ष या कम आयु का श्रमिक बाल श्रमिक है।
  • अमेरिका कानून के अनुसार 12 वर्ष या कम आयु का श्रमिक बाल श्रमिक है।
  • इंग्लैण्ड एवं अन्य यूरोपीय देशों में 13 वर्ष या कम आयु के श्रमिकों को बाल श्रमिकों की श्रेणी में रखा जाता है।
  • भारत में 5 से 14 वर्ष तक के बालकों को बाल श्रमिक माना जाता है।

प्रश्न 13.
बाल श्रम के उद्भव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बाल श्रम का उद्भव:
बाल श्रम का उद्भव पूँजीवादी वर्ग द्वारा न्यूनतम निवेश पर अधिकतम लाभ की मानसिकता की परिणति थी, चूँकि बच्चे न्यूनतम राशि में श्रम के लिए सहजता से उपलब्ध होते हैं इसलिए उन्हें श्रम में लगाया गया। इन बाल श्रमिकों की स्थिति दयनीय थी। उनका शारीरिक तथा मानसिक रूप से शोषण होता था। जिसका प्रभाव उनके ऊपर स्पष्ट रूप से दिखायी देता था।

यह अमानवीय प्रथा, प्रथम बार 1853 में प्रकाश में तब आयी, जब इंग्लैण्ड में चार्टिस्ट आंदोलन ने विश्व का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। उसी समय साहित्यकारों ने भी इस पर लिखकर संपूर्ण विश्व को जागृत किया। इन साहित्यकारों में से प्रमुख विक्टर ह्यूगो, आस्कर बाइन्ड आदि थे, जिन्होंने बाल श्रम को एक नवीन दिशा प्रदान की।

प्रश्न 14.
बाल श्रम उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा विधायी नीति के विषय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बाल श्रम उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा विधायी नीति:

  1. बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986, 18 व्यवसायों और 65 प्रक्रियाओं में 14 वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है।
  2. अधिनियम के तहत अनुसूची में और व्यवसायों तथा प्रक्रियाओं को शामिल करने का परामर्श देने के लिए एक तकनीकी सलाहकार समिति का गठन किया गया है।
  3. अधिनियम की धारा 3 के प्रावधानों के उल्लंघन में किसी भी बच्चे को नियोजित करने वाला कोई भी व्यक्ति कारावास सहित दंड का भागी होगा, जिसकी अवधि तीन महीने से कम नहीं होगी, जो एक वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।

प्रश्न 15.
बाल श्रमिक (निषेध तथा नियमन) अधिनियम 1986 की मुख्य विशेषता बताइए।
उत्तर:
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य यह है कि कुछ रोजगारों में उन बालकों को काम पर लगाने से रोका जाये, जिन्होंने 14 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है तथा अन्य रोजगारों में बालकों की कार्य करने की दशाओं का नियमन किया जाए। इसके साथ ही कोई भी बालक रात्रि के 7 बजे से प्रात: 8 बजे के बीच काम पर नहीं लगाया जाये।
इस अधिनियम में पारिवारिक काम – धंधे या मान्यता प्राप्त स्कूल पर आधारित गतिविधियों को छोड़कर बच्चों से निम्न तरह के व्यवसायों में काम करने की मनाही है –

  1. रेलवे द्वारा या माल या डांक का यातायात।
  2. रेलवे में खान – पान या प्रबंध की संस्थाएँ।
  3. बीड़ी बनाना, कालीन बुनना, सीमेंट बनाना व उसे बोरियों में भरना आदि।
  4. विस्फोट व आतिशबाजी का सामान तैयार करना, साबुन बनाना, चमड़ा रंगना तथा ऊन आदि को साफ करने की मनाही है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 8 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक भारत में महिलाओं की प्रस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक भारत में महिलाओं की प्रस्थिति:
(1) विवाह संबंधी अधिकार:

  • विवाह के क्षेत्र में स्त्रियों की अनेक निर्योग्यताएँ समाप्त हो गई हैं।
  • बेहुपत्नी विवाह व बाल विवाह का निषेध हो गया है एवं विधवा विवाह को मान्यता मिल चुकी है।
  • स्त्रियों को विवाह – विच्छेद का अधिकार प्राप्त हो गया है।
  • अंतर्जातीय विवाहों को समाज में स्वीकृति मिल चुकी है।
  • स्त्रियों को विवाह से संबंधित हिंदू विवाह अधिनियम 1955 भी प्राप्त हो चुका है।

(2) गृहस्थ संबंधी अधिकार:

  • घर में अब नारी की स्थिति दासी के रूप में नहीं रही है।
  • परिवार के निर्णयों में नारियों की भागीदारी में वृद्धि हुई है।
  • महिलाएँ आज गृहस्वामिनी है तथा गृहस्थी के प्रत्येक कार्य में उसका सहयोग अब अनिवार्य हो गया है।
  • परिवार में बच्चों के लालन – पोषण से लेकर शिक्षा – दीक्षा तक का महत्त्वपूर्ण कार्य स्त्री के सहारे ही चलता है।

(3) आर्थिक अधिकार:

  • पारिवारिक संपत्ति के मामलों में महिलाओं को पुरुषों की भाँति अधिकार व सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं।
  • भारत में सबसे पहला अधिनियम 1874 में विवाहित स्त्रियों की संपत्ति संबंधी अधिनियम पारित हुआ।
  • 1929 में हिंदू कानून का उत्तराधिकारी (संशोधन) अधिनियम पारित हुआ, यह संशोधन मिताक्षरा नियम मानने वालों के लिए था।
  • महिलाओं के आर्थिक या संपत्ति के क्षेत्र में अधिकार संबंधी अधिनियम के रूप में ‘हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
  • महत्त्वपूर्ण है। इसमें स्त्री – पुरुष के उत्तराधिकार के भेद को दूर करके हिंदू स्त्री को संपत्ति में समान स्वामित्व प्रदान किया गया। लड़के व लड़कियों दोनों का ‘सह – अधिकार’ माना गया है।

अत: उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि आज के वर्तमान समाज में महिलाओं की प्रस्थिति में आमूलचूलकारी परिवर्तन हुए हैं।

प्रश्न 2.
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955):
इस कानून द्वारा हिंदू पुरुष – स्त्रियों के वैवाहिक तथा दाम्पत्य अधिकारों में (Marital Conjugal Rights) पूरी समानता ला दी गयी है। स्त्री तथा पुरुष के अधिकारों की विषमता को समाप्त कर दिया गया है। पति बहुविवाह नहीं कर सकता जब तक पहली पत्नी की मृत्यु न हो गयी हो।

इस कानून की सबसे महत्त्वपूर्ण व्यवस्था द्वारा विवाह (Bigamy) अथवा बहुविवाह (Polygamy) को समाप्त कर एकविवाह (Monogamy) के एक नियम की व्यवस्था है। दूसरी व्यवस्था तलाक के अधिकारों की हैं। तलाक के लिए कुछ अवस्थाओं को निश्चित कर दिया गया है। ‘हिंदू विवाह कानून, 1955 की 13वीं धारा के अनुसार ये अवस्थाएँ या शर्ते निम्न प्रकार से हैं

आवेदनकारी का प्रतिपक्षी:

  • व्याभिचारी हो।
  • हिंदू धर्म का परित्याग कर चुका हो।
  • किसी असाध्य रोग, पागलपन या कुष्ठ रोग से पीड़ित हो।
  • किसी यौन संबंधी रोग से पीड़ित हो।
  • किसी धार्मिक विश्वास के कारण वैराग्य धारण कर चुका हो।
  • 7 वर्ष हो गए हों तथा उसके जीवित रहने का समाचार प्राप्त न हुआ हो।
  • धारा 10 के अनुसार न्यायिक पृथक्करण (Judicial seperation) की डिक्री प्राप्त करने के दो वर्ष या उससे अधिक समय तक आवेदनकारी के साथ सहवास न किया हो।
  • धारा 9 के अनुसार दाम्पत्य अधिकारों की डिक्री (Decrce for Restitution of Conjugal Rights) का डिक्री जारी होने के दो वर्ष या उससे अधिक समय तक पालन किया हो।

तलाक के लिए पत्नी को दो कारण और अधिक प्राप्त हुए हैं –
1. यदि आवेदन के समय पति की दूसरी पत्नी जीवित हो।

  • यदि, पति विवाह के बाद, बलात्कार (Rape), अप्राकृतिक व्याभिचार (Sodomy or Bestiality) अथवा असभ्य व्यवहार का अधिकारी पाया गया हो।
  • अतः उपरोक्त तथ्यों से यह विदित होता है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 महिलाओं के लिए एक सशस्त साधन के रूप में विकसित हुआ है।

प्रश्न 3.
समाज में स्त्रियों की प्रस्थिति पर नये विधानों या अधिनियमों के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
समाज में स्त्रियों की सामाजिक प्रस्थिति पर नये विधानों या अधिनियमों के प्रभावों को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –

  • परिवार में स्त्री व पुरुषों को संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त हुए हैं। पत्नी, माँ और पुत्री के रूप में स्त्रियों को पारिवारिक
  • संपत्ति में पुरुषों के समान ही अधिकार मिले हैं।
  • पुरुषों की भाँति स्त्रियों को भी तलाक के अधिकार मिले है।
  • नाबालिग बच्चों को संरक्षण प्राप्त हुआ है तथा अब माँ भी संरक्षक बन सकती है।
  • कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियों को पृथक् रहने पर भी भरण – पोषण के अधिकार प्राप्त हुए हैं।
  • विधवाओं को पुनर्विवाह की स्वीकृति मिली है।
  • बहुपत्नी तथा बाल विवाह की समाप्ति हुई है।
  • दहेज की संपत्ति पर स्त्रियों को अधिकार प्राप्त हुए हैं।
  • समाज में स्त्रियों को भी बालकों को गोद लेने का अधिकार प्राप्त हुआ है।
  • स्त्रियों की शिक्षा एवं जागृति में वृद्धि हुई है।
  • समाज में महिलाओं की मानसिक क्षितिज का विस्तार हुआ है।
  • वे सामाजिक, शैक्षणिक तथा राजनीतिक आदि समस्त क्षेत्रों में पुरुषों के समकक्ष कार्य करने लगी हैं।
  • इन अधिनियमों के विकास से समाज में पुरुषों की प्रभुता में कमी दृष्टिगोचर हुई है।

अतः उपर्युक्त सभी सुविधाओं एवं व्यवस्थाओं के कारण परिवार एवं समाज में स्त्री व पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त हुए हैं, जिससे स्त्रियों की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है तथा पुरुषों का एकाधिकार समाप्त हुआ है।

प्रश्न 4.
समाज में बाल – विवाह के कारणों की सविस्तार व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बाल विवाह के कारण:
1. धर्मशास्त्रों की स्वीकृति: अनेक धार्मिक शास्त्रों व स्मृतिकारों ने वयस्कता प्राप्त करने या होने से पूर्व विवाह को पवित्र माना जाता है।

2. अनुलोम विवाह पर रोक:
अनुलोम विवाह में लड़का उच्च कुल का होता है तथा लड़की निम्न कुल की होती है। जिसके परिणामस्वरूप अनुलोम विवाह पर रोक ने भी पिता को अच्छा वर मिलते ही विवाह के लिए प्रोत्साहित किया है।

3. आक्रमणकारियों का प्रभाव:
समय – समय पर भारत में अनेक आक्रमणकारी जातियाँ आयीं, जो भोगवाद एवं तंत्रवाद में विश्वास करती थीं तथा मैथुन में जाति भेदभाव को नहीं मानती थीं। उनसे बचने के लिए भी बाल विवाह किये जाने लगे।

4. दहेज की मांग:
समाज में लड़की के विवाह में बढ़ती हुई दहेज की मांग ने भी समाज में माता-पिता को बाल विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया।

5. स्त्री स्वतंत्र होने योग्य नहीं:
हिंदुओं में स्त्री को स्वतंत्र होने योग्य नहीं माना गया है। बचपन में माता – पिता, विवाह के बाद पति एवं वृद्धावस्था में पुत्र का उस पर अधिकार होता है। विवाह द्वारा पिता अपना आधिपत्य उसके पति को सौंपता है। इस कारण भी बाल विवाह को बल मिलता है।

6. अन्य महत्त्वपूर्ण कारण:

  • अशिक्षित होने के कारण भी बाल विवाहों को प्रोत्साहन मिलता है।
  • संयुक्त परिवार में पति – पत्नी पर परिवार चलाने का भार न होने के कारण भी माता – पिता छोटे बच्चों का विवाह कर देते हैं।
  • सामाजिक निंदा से बचने के लिए भी बाल – विवाह समाज में आरंभ हुए।
  • अपनी जाति में विवाह करने के नियम के कारण प्रत्येक पिता अपनी कन्या के लिए उत्तम वर चाहता है, अतः अच्छा लड़का मिलते ही शीघ्र विवाह कर देता है।

प्रश्न 5.
समाज में विधवा पुनर्विवाह की औचित्यता को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
विधवा पुनर्विवाह के औचित्यता को सिद्ध करने के लिए निम्नांकित तर्क दिये जा सकते है –

  1. विधवाओं की हृदयस्पर्शी अवस्था:
    समाज में विधवाओं को अनेक सुविधाओं से वंचित किया गया है और उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लागू किये गये हैं। आज नैतिकता का तकाजा है कि विधवाओं को पुनर्विवाह की छूट दी जाए।
  2. यौन – संबंधी नैतिकता का दोहरा मापदंड:
    पुरुष को तो स्त्री की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह करने की समाज ने छूट दी. है, किंतु स्त्री को नहीं। यौन – संबंधी इस दोहरे मापदंड को समाप्त करने के लिए विधवा पुनर्विवाह होने चाहिए।
  3. व्याभिचार को रोकने के लिए: यौन अनाचार को रोकने के लिए आवश्यक है कि विधवाओं को पुनर्विवाह की स्वीकृति दी जाए।
  4. अपराध रोकने हेतु: विधवा पुनर्विवाह स्वीकृति होने पर यौन अपराध, भ्रूण हत्या एवं आत्महत्याओं की संख्या घटेगी।
  5. व्यक्तित्व के विकास के लिए: विधवा स्त्रियों एवं उनके बच्चों के व्यक्तित्व के विाकस के लिए आवश्यक है कि उनका पुनर्विवाह कराया जाए।
  6. समाज के एक बड़े अंग की समस्या: यह समस्या समाज की लगभग ढाई करोड़ से अधिक विधवाओं की समस्या है जिसे हल करना मानवता का तकाजा है।
  7. मानवता की मांग:
    मानवता की मांग है कि स्त्री व पुरुष को सभी अधिकार समान रूप से दिए जाएँ विधवाओं को भी जीवित रहने का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए। जीने का अधिकार एक सार्वभौमिक मौलिक अधिकार है।
  8. आत्म संयम – एक विडम्बना:
    हिन्दू धर्मशास्त्रों में स्त्री से संयमित जीवन व्यतीत करने की आशा की गयी जो संभव नहीं है। काम पूर्ति एक प्राकृतिक आवश्यकता है, इसके अभाव में कई शारीरिक एवं मानसिक रोग पैदा होते हैं। अतः विधवा पुनर्विवाह आवश्यक है।

अतः उपरोक्त वर्णित तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि समाज में विधवा पुनर्विवाह एक सार्वभौमिक आवश्यकता है।

प्रश्न 6.
स्त्रियों की स्थिति को उच्च करने के लिए सरकार ने कौन – कौन – सी वैधानिक व्यवस्थाएं की हैं?
उत्तर:
स्त्रियों की प्रस्थिति को सुधारने के लिए सरकार ने स्वतंत्रता से पूर्व एवं बाद में अनेक कानून बनाए उनमें से प्रमुख इस प्रकार से हैं –

  1. सती प्रथा निषेध अधिनियम, 1829 इसके द्वारा सती होने एवं विधवा स्त्री को इसके लिए उकसाने को दंडनीय करार दिया गया। 1986 में इसमें संशोधन कर इसे और कठिन बना दिया गया व सती को महिमा मंडित करने को भी दंडनीय बना दिया।
  2. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में विवाह की आयु में वृद्धि करके लड़के की आयु 21 वर्ष तथा लड़की के लिए 18 वर्ष कर दी गयी है।
  3. हिन्दू स्त्रियों का संपत्ति पर अधिकार अधिनियम, 1937 द्वारा हिन्दू विधवा स्त्री का मृत पति की संपत्ति में अधिकार प्रदान किया गया है।
  4. विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के द्वारा किसी भी धर्म या जाति को मानने वाले स्त्री पुरुष को परस्पर विवाह करने की छूट दी गयी है।
  5. स्त्रियों व कन्याओं का अनैतिक व्यापार अधिनियम, 1956 के द्वारा वेश्यावृत्ति एवं अनैतिक व्यापार पर रोक लगा दी गयी।
  6. दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 के द्वारा दहेज लेने व देने को दंडनीय अपराध करार दिया गया। 1985 में इसमें संशोधन कर इसे और कठोर बना दिया गया है।
  7. हिन्दू नाबालिग तथा संरक्षता अधिनियम, 1956 में नाबालिग बच्चों के पिता की मृत्यु होने पर माँ को भी उनके संरक्षक होने का अधिकार प्रदान किया गया।
  8. अलग रहने तथा भरण – पोषण हेतु स्त्रियों का अधिकार अधिनियम, 1946 के द्वारा कुछ परिस्थितियों; जैसे – पति का निर्दयतापूर्ण व्यवहार करने, धर्म परिवर्तन कर लेने, अन्य स्त्री से संबंध होने, दूसरा विवाह कर लेने या पत्नी को छोड़ देने की स्थिति में पत्नी को पति से अलग रहने पर भरण – पोषण का अधिकार प्राप्त होता है।

प्रश्न 7.
बाल श्रम उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा निर्मित संवैधानिक अनुच्छेदों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में निम्नलिखित अनुच्छेदों के द्वारा बाल श्रमिकों को उनके जटिल जीवन से मुक्ति दिलाने हेतु सरकार द्वारा अनेक प्रयास किये गए हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. अनुच्छेद – 23:
    इस अनुच्छेद के द्वारा मानव का दुर्व्यवहार तथा बेगार एवं इसी प्रकार का अन्य बलात् श्रम को प्रतिबंधित किया गया है। इसे ‘मानवं दुर्व्यवहार एवं बलात् श्रम का प्रतिरोध’ भी कहा जाता है।
  2. अनुच्छेद – 24:
    इसमें 14 वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा।
  3. 1922, कारखाना एक्ट:
    इस एक्ट के अनुसार 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को बच्चा माना गया है तथा उनके काम करने की अवधि 6 घंटे नियत की गयी है।
  4. खान एक्ट, 1962:
    इस एक्ट के तहत 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खान में किसी भी भाग में चाहे यह भूमिगत हो या खुले में खुदाई का कार्य हो, काम पर रखना मना किया गया है।
  5. 1948, कारखाना एक्ट:
    14 वर्ष की आयु का होने पर ही किसी व्यक्ति को काम पर रखा जा सकता है। काम के घंटे 4से दोपहर सहित 5 घंटे कर दिये गए हैं।
  6. बागान श्रमिक एक्ट – 1951: इसके अंतर्गत रोजगार के लिए न्यूनतम आयु 22 वर्ष रखी गयी है।
  7. बाल श्रमिक (निषेध तथा नियमन) अधिनियम 1986:
    इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य यह है कि कुछ रोजगारों में उन बालकों को काम पर लगाने से रोका जाए, जिन्होंने 14 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है तथा अन्य रोजगारों में बालकों की कार्य करने की दशाओं का नियमन किया जाए।
    बाल श्रम (निषेध एवं नियमन) संशोधन: मई, 2015 को इस नीति में 1986 में संशोधित किया गया।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 7 नगरीय समाज में परिवर्तन, विकास एवं चुनौतियाँ, आधारभूत संरचना, आव्रजन, नियोजन, आवास

August 20, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 नगरीय समाज में परिवर्तन, विकास एवं चुनौतियाँ, आधारभूत संरचना, आव्रजन, नियोजन, आवास

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीय का अर्थ कहाँ रहने वाले समुदाय से है?
(अ) कस्बा
(ब) नगर
(स) गाँव
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) नगर

प्रश्न 2.
कितने प्रतिशत भारतीय परिवार 1 वर्गमीटर से कम जगह में रहते हैं?
(अ) लगभग 32 प्रतिशत
(ब) लगभग 28 प्रतिशत
(स) लगभग 19 प्रतिशत
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) लगभग 19 प्रतिशत

प्रश्न 3.
किस लेखक ने शहरों की व्यथा पर ‘ए टेल ऑफ टू सिटीज’ पुस्तक लिखी?
(अ) चार्ल्स डिकेंस
(ब) पैट्रिक एबरकामी
(स) एल. डी. स्टाम्प
(द) लेविस
उत्तरमाला:
(अ) चार्ल्स डिकेंस

प्रश्न 4.
“नगर नियोजन का विचार नागरिकों के कल्याण और जनता के जीवन – स्तर के उन्नयन से सम्बन्धित है।” यह वक्तव्य किस विद्वान का है?
(अ) एल. डी. स्टाम्प
(ब) ए. ऑगिस्टन
(स) जॉन हॉब्स
(द) चार्ल्स डिकेंस
उत्तरमाला:
(अ) एल. डी. स्टाम्प

प्रश्न 5.
एडवर्ड एम. बैसेट ने नगर नियोजन में कितने तत्त्वों के महत्त्व का उल्लेख किया है?
(अ) पाँच
(ब) दो
(स) सात
(द) छः
उत्तरमाला:
(स) सात

प्रश्न 6.
2011 की जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार, कितने प्रतिशत घर प्रकाश के स्रोत के रूप में विद्युत का उपयोग कर
रहे हैं?
(अ) लगभग 90 प्रतिशत
(ब) लगभग 92 प्रतिशत
(स) लगभग 93 प्रतिशत
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) लगभग 93 प्रतिशत

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीय समाज के कैसे मूल्य हैं?
उत्तर:
नगरीय समाज के मूल्य व्यक्तिवादी हैं, अर्थात् हर व्यक्ति के दृष्टिकोण का दायरा स्वयंहित है।

प्रश्न 2.
स्वार्थजनित सामाजिक संबंध किस समाज की विशेषता या लक्षण है?
उत्तर:
स्वार्थजनित सामाजिक संबंध नगरीय समाज की विशेषता है।

प्रश्न 3.
सुनियोजित बस्तियों का अभाव कहाँ पाया जा रहा है?
उत्तर:
सुनियोजित बस्तियों का अभाव शहरी या नगरीय क्षेत्रों में पाया जाता है।

प्रश्न 4.
सामान्य आर्थिक विचारधारा के कारण संपूर्ण विश्व देशों के संघ की जगह किसका संघ बन गया है?
उत्तर:
तीव्र तकनीकी विकास तथा सामान्य आर्थिक विचारधारा के कारण संपूर्ण विश्व देशों में संघ की जगह ‘नगरों का संघ’ बन गया है।

प्रश्न 5.
देश में कितने प्रतिशत नगरीय जनसंख्या के लिए अपने घरों के आस – पास बरसाती पानी के निकासी की व्यवस्था नहीं है?
उत्तर:
देश में करीब 34 प्रतिशत नगरीय जनसंख्या के लिए अपने घरों के आस – पास बरसाती पानी के निकासी की व्यवस्था नहीं है।

प्रश्न 6.
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कितने प्रतिशत शहरी जनसंख्या को पेयजल की आपूर्ति उसके परिसर में है? उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 71.2 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को पेयजल की आपूर्ति उनके परिसर में प्राप्त होती है।

प्रश्न 7.
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रिपोर्ट 2009 के अनुसार अधिकांश नगरों में निस्तारण से पहले उत्पादित सीवेज के कितने प्रतिशत का उपचार होता है?
उत्तर:
अधिकांश नगरों में निस्तारण से पहले उत्पादित सीवेज के केवल 20 प्रतिशत का उपचार होता है।

प्रश्न 8.
आव्रजन में भाग लेने वालों को क्या कहते हैं?
उत्तर:
आव्रजन में भाग लेने वालों को आप्रवासी कहते हैं।

प्रश्न 9.
वर्ष 1991 की जनगणना में कितने मनुष्य नगरीय अप्रवासियों के रूप में वर्गीकृत किये गये?
उत्तर:
वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार 2.5 करोड़ मनुष्य नगरीय अप्रवासियों के रूप में वर्गीकृत किये गये।

प्रश्न 10.
नगर नियोजन के संबंध में मैगस्थनीज ने भारत के किस नगर का उदाहरण प्रस्तुत किया?
उत्तर:
नगर नियोजन के संबंध में मैगस्थनीज ने भारत के ‘पाटलिपुत्र’ नगर का उदाहरण प्रस्तुत किया।

प्रश्न 11.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कितने प्रतिशत आवास अच्छी स्थिति में है?
उत्तर:
लगभग 70% शहरी जनगणना आवास अच्छी हालत में हैं।

प्रश्न 12.
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के कितने प्रतिशत घरों के परिसर के अंदर शौचालयों की आवश्यकता है?
उत्तर:
अभी भी 18% घरों के परिसर के अंदर शौचालय की सुविधा की आवश्यकता है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्वीन और कारपेंटर ने नगरीयता के संबंध में क्या कहा, लिखें।
उत्तर:
नगरीयता के संबंध में समाजशास्त्री क्वीन और कारपेंटर ने कहा है, “हम नगरीयता का प्रयोग निवास की प्रघटना को पहचानने के लिए करते हैं।”
अर्थात् नगरीयता को क्वीन तथा कारपेंटर ने समाज में ऐसी प्रघटना माना है जिसके आधार पर लोगों के निवास करने के तरीकों को ज्ञात किया जा सकता है। इस परिभाषा में नगरीयता से संबंधित दो तथ्य दृष्टिगोचर हो रहे हैं –

  1. नगरीयता की अवधारणा समाज में पायी जाने वाली एक आधारभूत प्रघटना है।
  2. लोगों के निवास करने के आधार पर व उनकी जीवन – शैली को जानने के लिए नगरीयता का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 2.
नगरीय समाज के तीन प्रमुख परिवर्तनों के नाम लिखें।
उत्तर:
नगरीय समाज के तीन प्रमुख परिवर्तन निम्नलिखित हैं –

  1. व्यक्तिवादिता:
    व्यक्तिवादिता की भावना व्यक्ति के निजी स्वार्थ पर आधारित अवधारणा है। इसके अंतर्गत एक व्यक्ति दूसरों के हितों की अपेक्षा अपने हितों को सर्वाधिक प्राथमिकता देता है। व्यक्तिवादिता की भावना व्यक्ति में ‘मैं’ की भावना का समावेश करती है। नगरों में लोगों में यही भावना अधिक पायी जाती है। जहाँ सब लोग अपने स्वार्थों को पूरा करने में लीन रहते हैं।
  2. व्यवसायों की बहुलता:
    नगरों में अन्य व्यवसायों की बहुलता होती है। वहाँ द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्रों में अनेक लोग लगे होते हैं। गाँव से बहुत से व्यक्ति रोजगार की तलाश में तथा दैनिक कार्यों की पूर्ति के लिए नगरों में जाते रहते हैं।
  3. गुमनामी:
    नगरों में व्यस्तता के कारण लोगों में एक – दूसरे को जानने का समय ही नहीं है। हर व्यक्ति अपने तक ही सीमित रहता है। जिससे लोगों में गुमनामी की प्रवृत्ति का विकास होता है।

प्रश्न 3.
जल प्रबंधन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जल प्रबंधन से आशय उस व्यवस्था से है जहाँ जल को सामूहिक संसाधन मानते हुए उसे सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध करवाया जाए। नगरीय समाज के विकास के लिए जल प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। जल प्रबंधन महत्त्वपूर्ण भाग इसलिए भी है क्योंकि इसके माध्यम से शहरों के विकास में जल को बेहतर उपयोग हेतु बनाया जाता है तथा जल संरक्षण एवं वर्षा जल को सुनियोजित तरीके से उपयोग पर भी बल दिया जाता है।

प्रश्न 4.
जॉन हॉब्स ने ‘सामाजिक समानता’ के संबंध में क्या कहा? लिखें।
उत्तर:
जॉन हॉब्स के अनुसार उनके सिद्धांत:
“राज्य की उत्पत्ति व सामाजिक समझौते का सिद्धांत यह कहता है कि सामाजिक तौर से राज्य का निर्माण हो और एक सफल राज्य के निर्माण के लिए यह चुनौती होती है कि वह अपने नागरिकों को कैसे संतुष्ट रखेगा।” हॉब्स ने इस बात को स्पष्ट किया है कि सामाजिक व्यवस्था की सबसे बड़ी समस्या गरीब व्यक्ति का अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति न कर पाना है और इसी से समाज में सामाजिक समानता स्थापित नहीं हो पाती है।

ऐसे संसाधनों को विकसित करें जिससे गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों का जीवन स्तर उच्च या सुधर सके। इसी माध्यम से समाज में सामाजिक विषमता या असमानता को कम किया जा सकता है तथा इसके पश्चात् ही समाज में लोगों को समान अवसर भी प्राप्त होंगे।

प्रश्न 5.
आधारभूत संरचना से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आधारभूत संरचना से तात्पर्य परिवहन, इमारतें, सार्वजनिक सुविधाएँ हैं जो कि किसी नगर में रहने वाले निवासियों का जीवन सहन व सरल बनाती हैं। इन सुविधाओं के अभाव में नगर खोखले ढांचे के समान होता है जहाँ नगरीय समाज अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष करता है।

नगरों में व्यवस्था तथा अव्यवस्था साथ – साथ चलती है। बढ़ती जनसंख्या व घटती सुविधाओं के कारण नगरों की पहचान अब समस्या स्थलों के रूप में होने लगी है। बिजली, पानी, सीवर व परिवहन प्रणाली के अभाव में नगरों की आधारभूत संरचना स्थिर नहीं हो पा रही है।

प्रश्न 6.
‘स्मार्ट सिटीज कार्यक्रम’ के बारे में संक्षिप्त में लिखें।
उत्तर:
‘स्मार्ट सिटीज कार्यक्रम’ की विशेषताओं को निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य भारत में विभिन्न शहरों को स्मार्ट शहरों में परिवर्तित करना है।
  2. इस कार्यक्रम के द्वारा व्यक्तियों को आर्थिक विकास की सुविधाएँ, स्वस्थ पर्यावरण तथा प्रौद्योगिकी को उपलब्ध करवा कर उनके जीवन – स्तर में सुधार लाया जाएगा।
  3. इसमें विद्युत आपूर्ति, पर्याप्त पानी आपूर्ति व उचित स्वच्छता को सम्मिलित किया गया है।
  4. इसमें आधारभूत संरचना को ठोस आधार प्रदान के लिए नागरिकों की सुरक्षा, उनकी शिक्षा, प्रभावी शासन व नागरिकों की भागीदारी पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा।

प्रश्न 7.
आकार एवं क्षेत्र के अनुसार आव्रजन के प्रकार लिखें।
उत्तर:
(1) आकार के अनुसार आव्रजन के प्रकार:

  • वृहत् या बृहद् संख्यक आव्रजन: जब व्यक्तियों का समूह बड़ी मात्रा में प्रवास करता है तब उसे वृहत् आव्रजन कहा जाता है।
  • लघु आव्रजन: जब व्यक्तियों का समूह बहुत ही कम मात्रा में प्रवास करता है, तब उसे लघु आव्रजन कहते हैं।

(2) क्षेत्र के अनुसार आव्रजन के प्रकार:

  • अन्तर्राष्ट्रीय आव्रजन: जब समाज में व्यक्तियों द्वारा प्रवास एक देश से अन्य दूसरे देशों में किया जाता है, तब उसे अंतर्राष्ट्रीय आव्रजन कहते हैं।
  • अंतर्देशीय या आंतरिक आव्रजन: जब व्यक्तियों के द्वारा प्रवास एक देश के अंदर या भीतर किया जाता है तो उस प्रवास को आंतरिक आव्रजन कहते हैं।

प्रश्न 8.
लेविस द्वारा नगर नियोजन की दी गई परिभाषा लिखें।
उत्तर:
लेविस ने नगर नियोजन को नगरीय विकास का भावी कार्यक्रम माना है। उनके अनुसार – “नगर नियोजन बिल्कुल ऐसा दूरदर्शी प्रयास है जो नगर और उसके निकटस्थ क्षेत्रों के क्रमबद्ध और आकर्षित विकास का स्वास्थ्य, सेवा, सुविधा और व्यापारिक तथा औद्योगिक उन्नयन को समुचित ध्यान में रखते हुए युक्तिसंगत आधारों पर प्रोत्साहित करता है।”

अर्थात् नगर नियोजन के द्वारा व्यक्तियों की आधारभूत आवश्यकताएँ पूरी होंगी तथा उन्हें सुविधाओं को प्राप्त करने के समान अवसर भी प्राप्त होंगे।

अतः स्पष्ट है कि नगर नियोजन एक प्रशासकीय योजना है जो नगर के वर्तमान तथा भावी विकास के लिए विस्तृत कार्यक्रमों का निर्माण करती है। जिससे संपूर्ण समाज के नागरिकों को समुचित रूप से सुविधाएँ उपलब्ध हो सकें।

प्रश्न 9.
एडवर्ड एम. बैसंट ने नगर नियोजन के जिन तत्त्वों का उल्लेख किया है, लिखें।
उत्तर:
एडवर्ड एम. बैंसेट ने सात तत्त्वों का उलेख नगर – नियोजन के संदर्भ में किया है, जो निम्न प्रकार से है –

  1. सड़कें: सर्वप्रथम नगर नियोजन के लिए पक्की व मजबूत सड़कों का निर्माण किया जाना चाहिए।
  2. पार्क: व्यक्तियों व बच्चों के मनोरंजन के लिए उत्तम पार्कों की व्यवस्था करवाना।
  3. सार्वजनिक भवनों के लिए स्थान: लोगों के सामूहिक कार्यों जैसे – मैरिज होम आदि के लिए स्थानों का आरक्षित
    करना।
  4. सार्वजनिक सुरक्षित स्थल: वृद्धों व अनाथ बच्चों के लिए सार्वजनिक सुरक्षित स्थानों का प्रबंध करवाना।
  5. कटिबंधीय जिले: लोगों के विकास के लिए जिलों में उत्तम व्यवस्था का निर्माण करना।
  6. सार्वजनिक उपयोगी मार्ग: लोगों के सुरक्षित आवागमन के लिए मार्गों की उत्तम व्यवस्था करना।
  7. छोटी सड़कें: देश के संपूर्ण विकास के लिए गांवों को शहरों से जोड़ने के लिए छोटी सड़कों का निर्माण करना।

प्रश्न 10.
आवास निर्माण के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
आवास का निर्माण करते समय निम्नांकित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –

  1. ऊँचे स्थानों पर निर्मित:
    आवासों को सदैव उच्च या ऊँचे स्थानों पर निर्मित किये जाने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि ऊँचे स्थानों पर बने आवासों में पानी या गंदगी व अन्य समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।
  2. रोशनी व हवा की व्यवस्था: आवास का निर्माण ऐसा होना चाहिए जिसमें समुचित रूप से रोशनी व हवा की उपर्युक्त व्यवस्था हो।
  3. कमरों का निर्माण: परिवार के आकार के अनुसार कमरों का निर्माण किया जाना चाहिए।
  4. रसोईघर व अन्य स्थानों की व्यवस्था: आवास का निर्माण करते समय रसोईघर, पूजा स्थल, स्नानाघर व शौचालय की समुचित व्यवस्था का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

अतः उपर्युक्त सभी विशेषताएँ आवास निर्माण की अपेक्षित आवश्यकताएँ हैं, जिसमें परिस्थिति अनुसार बदलाव किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
आवासों के प्रकार लिखें।
उत्तर:
आवासों के प्रकारों को हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं –

  1. प्रथम प्रकार या श्रेणी:
    इस श्रेणी में पक्के आवास आते हैं, जिनकी दीवारें ईंट तथा पत्थर की होती हैं। जिसमें छत पक्की खपरैल या सीमेंट चादरों की होती है। ऐसे आवास नगरों में पाये जाते हैं।
  2. द्वितीय प्रकार या श्रेणी:
    इस श्रेणी में मिट्टी की दीवार वाले मकान आते हैं। इस प्रकार के मकान में छत खपरैल या टीन की चादरों की होती है। इस श्रेणी के आवास नगर की मलिन बस्तियों में पाये जाते हैं।
  3. तृतीय श्रेणी या प्रकार: इस श्रेणी के अंतर्गत घास-फूस से बनी झोपड़ियाँ आती हैं। ऐसे आवास मूलत: गांवों में ही पाये जाते हैं।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीय समाज के परिवर्तनों के बारे में लिखें।
उत्तर:
नगरीय समाज के परिवर्तनों को हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. स्वार्थजनित सामाजिक संबंध:
    नगरों में व्यक्तियों के मध्य द्वितीयक संबंधों की प्रधानता पायी जाती है। उनके संबंध स्वार्थ पर आधारित होते हैं। वहाँ स्वार्थहित की समाप्ति के पश्चात् लोग एक – दूसरे से कोई सरोकार नहीं रखते हैं। लोगों में मानवीय भावनाएँ लुप्त होती जा रही हैं।
  2. मानवीय संबंधों का टूटना:
    नगरीय संस्कृति में सामाजिक संबंध इस तरह बिखर चुके हैं कि यहाँ हर व्यक्ति भीड़ में नितांत अकेला है। प्रतियोगिता, आपसी द्वेष व कलह की भावना के परिणामस्वरूप लोगों में आपसी मतभेद हुए हैं, जिससे उनके मध्य दूरी आ गयी है तथा संबंध भी शिथिल हो गए हैं।
  3. अनेक व्यवसाय:
    नगरों में अनेक व्यवसायों की बहुलता के परिणामस्वरूप लोगों का गांवों से शहरों की ओर आव्रजन हुआ है जिससे नगरों में जनसंख्या – वृद्धि की समस्या उत्पन्न हुई।
  4. स्त्रियों की स्थिति में बदलाव:
    नगरीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप जहाँ महिलाओं को स्वतंत्रता मिली है, वहीं उनके लिए अनेक समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं। उन्हें घर व कार्य स्थल दोनों ही जगह दोहरी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है जिसके कारण वे समाज व घर दोनों जगह तालमेल स्थापित नहीं कर पाती हैं।
  5. बच्चों में बढ़ता एकाकीपन:
    नगरों में माता – पिता दोनों का घर के बाहर कार्य करने के परिणामस्वरूप बच्चों की उचित देखभाल व पालन – पोषण नहीं हो पाता है जिसके परिणामस्वरूप बच्चों में एकाकीपन की भावना का संचार होता है तथा वे स्वयं को घर से व अपने अभिभावकों से अलगाव की स्थिति में पाते हैं।
  6. परिवार के आकार में ह्रास:
    नगरीय परिवार में दिन – प्रतिदिन आकार में कमी होती जा रही है। जहाँ पहले अनेक सदस्य एक ही छत के नीचे साथ – साथ निवास करते थे, संयुक्त रूप से अब उसकी जगह एकाकी परिवारों के चलन में वृद्धि हुई है। जहाँ सिर्फ माता – पिता व उनके अविवाहित बच्चे पाये जाते हैं। उनके संबंधों में भी पहले की भाँति मधुरता का अभाव पाया जाता है।

अतः इस प्रकार से नगरीय समाज में परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न 2.
नगरीय समाज में विकास के मुद्दों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
नगरीय समाज में विकास के मुद्दों को निम्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. सुनियोजित बस्तियाँ:
नगरीय समाज में सर्वप्रथम विकास के मुद्दों में सुनियोजित बस्तियों पर ध्यान दिया जाना अति आवश्यक है। गांवों से लाखों की संख्या में लोग रोजगार व अन्य कारणों से शहरों में आते हैं तथा निवास भी करते हैं जिससे नगरों में जनसंख्या वृद्धि तो होती ही है साथ में आवासीय समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। इस कारण नगरों के विकास के लिए यह अति आवश्यक है कि पहले लोगों को लिए समुचित रूप से सुनियोजित बस्तियों का निर्माण करवाया जाए।

2. सहज आवागमन केन्द्रिक विकास:
नगरों में एक अन्य समस्या आवागमन के साधनों की भी होती है। इसलिए नगरों के विकास के लिए यह आवश्यक है कि लोगों के लिए सहज रूप से आवागमन का संपूर्ण विकास किया जाए, जिससे लोगों को कहीं भी आने – जाने में कठिनाई न हो। इसके लिए साथ ही मजबूत व पक्की सड़कों का निर्माण भी करना चाहिए, जिससे गांवों से लोगों को नगरों तक आने में कठिनाई न हो। इस कारण नगरों के उचित विकास के लिए यह आवश्यक है कि सहज आवागमन के साधनों को पूर्ण रूप से विकसित किया जाए।

3. जल – प्रबंधन:
नगरीय समाज के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक आवश्यकता जल प्रबंधन की है। जल – प्रबंधन से तात्पर्य है कि जल को एक सामूहिक संसाधन मानते हुए, उसका उचित रूप से प्रयोग किया जाए व सभी को उपलब्ध भी कराया जाए। नगरों में जल-प्रबंधन एक कठिन कार्य है क्योंकि साधारणतः जल – प्रबंधन स्थानीय स्तर पर ही होता है, जिसके अंतर्गत सैकड़ों घटक प्रबंधन के साथ जुड़े होते हैं। इसलिए विकास के लिए जरूरी है कि जल को सुरक्षित व उसके उपयोग के सुनियोजित तरीकों पर भी विशेष ध्यान दिया जाए।

4. ऊर्जा प्रबंधन:
नगरों के विकास के लिए यह आवश्यक है कि नगरों में रहने वाले लोगों के लिए उचित प्रकाश की व्यवस्था की जाए, जिससे उन्हें अंधकार से मुक्ति मिल सके व अपने जीवन में सर्वांगीण विकास को प्राप्त कर सके।

5. कचरे का प्रबंधन:
नगरों के विकास के लिए आवश्यक है कि कचरे के निकास के लिए उसका उचित प्रबंध किया जाए, ताकि लोगों को बीमारियों का सामना न करना पड़े तथा गंदगी भी पैदा न हो। इसलिए कचरे के प्रबंध के लिए उचित व्यवस्था की जानी चाहिए तथा लोगों की मदद से गंदगी को दूर करने के लिए अनेक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाने चाहिए।

प्रश्न 3.
नगरीय समाज की क्या चुनौतियाँ हैं? लिखें।
उत्तर:
वर्तमान में नगरीय समाज के समय अनेक चुनौतियाँ हैं, जिसे निम्न आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –
1. आवासीय समस्या:
आज नगरों में लोगों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जिसमें से एक मुख्य समस्या लोगों की आवास की है। नगरों में लाखों की संख्या में ऐसे लोग भी निवास करते हैं जिनके पास रहने के लिए घर भी नहीं है। ऐसे में नगरों के समक्ष यह समस्या एक विकराल रूप में मौजूद है।

2. गरीबी की समस्या:
नगरों में व्यक्तियों को गरीबी की समस्या से भी जूझना पड़ता है। नगरों में ऐसे कई गरीब व्यक्तियों के समूह पाये जाते हैं जो गरीबी रेखा से नीचे का जीवन – यापन कर रहे हैं। उनके पास अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी साधन उपलब्ध नहीं है। गरीबी की समस्या के कारण ही नगरों में भिक्षावृत्ति की एक अन्य समस्या का भी जन्म हुआ है।

3. जनसंख्या – वृद्धि:
जनसंख्या वृद्धि की समस्या ने नगरों में एक विकराल रूप धारण कर लिया है जिसके परिणामस्वरूप नगर वहाँ पर निवास करने वाले लोगों के लिए संसाधनों की समुचित व्यवस्था कर पाने में असफल रहे हैं।

4. अपराधों में वृद्धि:
गरीबी के परिणामस्वरूप नगरीय समाज में अपराधों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। चोरी, लूट – पाट व डकैती के कारण लोगों को जान – माल की काफी क्षति हुई है।

5. प्रदूषण की समस्या:

  • औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप इस समस्या का उदय हुआ है।
  • प्रदूषण के कारण लोगों में अनेक बीमारियों का संचार हुआ है।
  • प्रदूषण के कारण नगरों की वायु दूषित हुई है।
  • प्रदूषण के कारण ही तापमान में वृद्धि हुई है।

6. बेरोजगारी की समस्या:

  • नगरों में शिक्षित बेरोजगारी काफी संख्या में पायी जाती है।
  • बेरोजगारी के परिणामस्वरूप युवाओं में असंतोष की भावना का संचार हुआ है।
  • बेरोजगारी की समस्या ने अकर्मण्य व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि की है।
  • बेरोजगारी के परिणामस्वरूप समाज में हिंसा व तनावों में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 4.
नगरीय आधारभूत ढांचे की स्थिति के बारे में लिखें।
उत्तर:
नगरीय आधारभूत ढांचे की स्थिति को निम्न आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –
1. जलापूर्ति स्थिति:

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 71.2% शहरी जनसंख्या को पेयजल की आपूर्ति उनके परिसर में प्राप्त होती है, जबकि वर्ष 2001 की जनगणना में यह 65.4% था।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 20.7% जनसंख्या को जलापूर्ति परिसर के निकट प्राप्त होती है, जबकि 2001 की जनगणना में यह प्रतिशत 25.2% था।
    अत: वर्तमान में किसी भी नगर में चौबीस घंटे की जल – आपूर्ति नहीं है।

2. स्वच्छता स्थिति:

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 32.1% शहरी जनसंख्या पाइपयुक्त सीवेज प्रणाली का प्रयोग करती है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 12.6% नगरीय जनसंख्या अभी भी खुले में शौच करती है।
  • भारत सरकार द्वारा 423 वर्ग – 1 शहरों का स्वच्छता मूल्यांकन से ज्ञात होता है कि गंदापन, अवशिष्ट क्लोरीन और थर्मोटोलेरेंट कोलिफॉर्म जीवाणु के आधारभूत जल गुणवत्ता मानदंडों पर केवल 39 शहर ही खरे उतरे हैं।

3. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन:

  • CPCB रिपोर्ट 2005 के अनुसार लगभग काफी एमटी नगर अपशिष्ट का उत्पादन होता है।
  • अधिकांश शहरों में अपशिष्ट को अपशिष्ट भरणस्थल में ले जाकर भर दिया जाता है।
  • ठोस अपशिष्ट का वैज्ञानिक उपचार और निस्तारण व्यावहारिक रूप से कहीं भी मौजूद नहीं है।

4. शहरी परिवहन की स्थिति

  • सार्वजनिक परिवहन निम्न मध्य आय वाले देशों (फिलीपींस, इजिप्ट) में 49% और ऊपरी मध्य आय वाले देशों (जैसे-दक्षिण अफ्रीका, कोरिया) में 40% की तुलना में भारत में नगरीय परिवहन का लगभग 22% है।
  • 2012 के अनुसार 423 वर्ग – I, शहरों में से केवल 65 शहरों में ही औपचारिक सिटी बस सेवा उपलब्ध है।
  • अधिकांश व्यक्ति आज भी सार्वजनिक परिवहन का ही उपयोग करते हैं।
  • सिटी परिवहन के लिए बसों के वित्त पोषण के कार्यक्रमों में केन्द्र सरकार का हस्तक्षेप पाया जाता है।

प्रश्न 5.
आव्रजन को परिभाषित करते हुए, उसके कारणों का विश्लेषण करें।
उत्तर:
आव्रजन सामाजिक परिवर्तन का सूचक है। अन्य स्थानों से आकर जिस स्थान पर मनुष्य बस जाते हैं उसके संदर्भ में स्थानांतरण को ‘अप्रवास या आव्रजन’ कहते हैं तथा इसमें भाग लेने वालों को ‘आप्रवासी’ कहते हैं।
आव्रजन को प्रभावित करने वाले अनेक कारण हैं, जैसे – जनसंख्या स्थानांतरण के आकार, गति तथा दिशा को दो विपरीत गुणों वाली शक्तियाँ नियंत्रित करती है।
जनसंख्या आव्रजन को प्रभावित करने वाले कारकों को चार मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है –
1. प्राकृतिक कारक:

  • प्राकृतिक कारकों में जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा व भूकंप आदि के कारण लोगों में आव्रजन बढ़ता है।
  • किसी स्थान की मिट्टी का अनुपजाऊ होने तथा खनिज संसाधनों के समाप्त होने से भी आव्रजन में तीव्र वृद्धि होती है।
  • लोगों का जीविका के साधनों की प्राप्ति के लिए भी उनमें आव्रजन की प्रक्रिया दृष्टिगोचर होती है।

2. राजनीतिक कारक:

  • जो क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से मजबूत होता है वहाँ लोग अधिक आव्रजन करते हैं।
  • युद्ध में बनाये गए बंदियों तथा दास बनाये गए लोगों को विजेता देशों के लिये स्थानांतरित करने से भी इस प्रक्रिया में वृद्धि होती है।

3. आर्थिक कारक:

  • नगरों की आर्थिक सुदृढ़ता के कारण नगरों में गांव से लोगों का आव्रजन अधिक होता हैं।
  • जिन स्थानों पर उपर्युक्त साधन हों, वे जनसंख्या के आकर्षण केन्द्र बन जाते हैं तथा वहाँ बाहर से जनसंख्या का आव्रजन बढ़ जाता है।

4. सामाजिक – सांस्कृतिक कारक:

  • शिक्षा के केन्द्र में भी आव्रजन होता है, क्योंकि यह एक ओर मनुष्य की कार्यकुशलता और योग्यता को बढ़ाते हैं, वहीं दूसरी ओर उन प्राचीन परंपराओं तथा रूढ़ियों से मुक्ति दिलाते हैं जो कि व्यक्ति के विकास में बाधक हैं।
  • शहरों में रहने वाले परिवारों से जब ग्रामीण परिवार से संपर्क रखने वाली कन्या का विवाह होता है तो स्वाभाविक रूप से शहरों में उनका आव्रजन होता है।
    अतः उपरोक्त कारणों से यह स्पष्ट होता है कि इन समस्त कारकों से आव्रजन की प्रक्रिया में तीव्र गति से वृद्धि होती है।

प्रश्न 6.
नगर नियोजन के उद्देश्यों एवं आदर्शों की चर्चा करें।
उत्तर:
नगर नियोजन के उद्देश्यों के संदर्भ में ‘पैट्रिक एवरक्रामी’ ने तीन उद्देश्यों की व्याख्या की है –

  1. सौंदर्य:
    नगरों के विकास के लिए नगरों का सौंदर्य व आकर्षकता काफी महत्त्वपूर्ण है, परंतु साथ में यह भी आवश्यक है समय के साथ उसमें क्षीणता न आये। नगरों का सौंदर्य बनाने के लिए उसमें पानी, ऊर्जा व जल प्रबंधन की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  2. स्वास्थ्य:
    स्वस्थ नागरिक किसी भी देश की निधि होते हैं। इसके लिए यह आवश्यक है कि देश का वातावरण, वायु एवं जल प्रदूषण रहित हो, जिससे समाज में निवास करने वाले प्रत्येक नागरिक का स्वास्थ्य उत्तम रह सके। इसके अलावा उद्योगों व अन्य कारखानों की प्रदूषणकारी गतिविधियों की स्थापना आवासीय क्षेत्रों से दूर करनी चाहिए, जिससे नागरिकों पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
  3. सुविधा:
    नगर में आधारभूत सुविधाएँ नगरवासियों के जीवन के सहजता और सुलभता के लिए अपरिहार्य है। उदाहरणत: यदि किसी नगर के औद्योगिक श्रमिकों को निवास स्थल से कार्य स्थल तक जाने में 2 घंटे का समय लग जाए तो उन्हें असुविधा होगी, परंतु यदि परिवहन की समुचित व्यवस्था हो जाए, तो इससे उनकी दूरी तो कम होगी ही साथ में उनका जीवन भी सुरक्षित व सुलभ रहेगा।

नगर नियोजन के आदर्श:

  1. सब के अनुकूल विकास: नगर का विकास नगर के निवासियों की संस्कृति, मूल्यों तथा रीति – रिवाजों के अनुकूल होना चाहिए।
  2. समुचित भवनों का निर्माण:
    नगरवासियों के लिए भवनों तथा बहुमंजिला इमारतों का निर्माण, मूलभूत सेवाओं तथा सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए तथा साथ ही अनियोजित विकास को नियंत्रित किये जाने को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  3. क्रमबद्ध योजना का निर्माण:
    नगर के सुनियोजित विकास के लिए यह आवश्यक है कि नगरवासियों के लिए क्रमबद्ध योजना प्रारूप का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे भविष्य में किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की बाधा क सामना न करना पड़े।
  4. ठोस आर्थिक आधार:
    नगर तथा नगरवासियों को एक ठोस आर्थिक आधार प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है कि व्यापार, वाणिज्य व अन्य क्षेत्रों में दोषमुक्त नीतियों का प्रावधान किया जाए।
  5. भूमि को नगर नियोजन में शामिल करना:
    नगरों में लोगों के विकास के लिए तथा आवासीय स्थिति में सुधार के लिए समस्त नगर निकट भूमि को नगर नियोजन में सम्मिलित कर लेना चाहिए।

प्रश्न 7.
आवास उपलब्धता के लिए सरकारी स्तर पर किये जाने वाले प्रयासों के संबंध में लिखें।
उत्तर:
आवास उपलब्धता के लिए सरकारी स्तर पर किये जाने वाले प्रयासों को हम निम्नांकित आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –
1. राष्ट्रीय आवास नीति:

  • वर्ष 1950 के बाद भारत सरकार ने 12 पंचवर्षीय योजनाएँ बनायीं जिनका उद्देश्य आवास तथा शहरी विकास करना है।
  • नेहरू जी ने रोजगार योजना के शहरी निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम की शुरुआत की।
  • इन योजनाओं में संस्था निर्माण तथा सरकारी कर्मचारियों तथा कमजोर वर्गों के लिए मकानों के निर्माण पर जोर दिया गया।
  • ग्लोबल शेल्टर स्टेट’ की अनुवर्ती कार्यवाई के रूप में 1998 में राष्ट्रीय आवास नीति की घोषणा की गई, जिसका उद्देश्य आवासों की कमी को दूर करना तथा सब के लिए बुनियादी सेवाओं को मुहैया कराना था।

2. प्रधानमंत्री आवास योजना:
सबके लिये आवास (शहरी):
इस मिशन का आरंभ सन् 2015 में हुआ था। 20152022 के मध्य इस मिशन को क्रियान्वित किया जाएगा तथा निम्नलिखित कार्यों के लिये शहरी स्थानीय निकायों व अन्य क्रियान्वयन ऐजेंसियों को राज्यों/संघ शामिल प्रदेशों के जरिये केन्द्रीय सहायता उपलब्ध करायी जाएगी जो निम्न प्रकार से है –

  1. पुनर्वास की स्थापना:
    इसके अंतर्गत नगरों में निवास करने वाले नगरवासियों या झुग्गीवासियों के रहने के लिए, नगरों में अतिरिक्त पायी जाने वाली भूमि का पूर्ण रूप से उपयोग करके इन लोगों के लिए उपर्युक्त आवास की व्यवस्था करना।
  2. ऋण संबंधी सहायता:
    नगरों में ऐसे व्यक्तियों के समूह को जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं तथा जो अपनी दैनिक मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में असफल रहे हैं साथ ही जिनके पास जीवन – यापन के लिए उचित संसाधनों का अभाव है, ऐसे लोगों को ऋण देकर उनकी सहायता की जाएगी।
  3. किफायती आवास:
    जो नगरवासी अपने जीवन – यापन के लिए साधनों की व्यवस्था कर रहे हैं उनके लिए किफायती या कम दरों पर आवास की व्यवस्था मुहैया करायी जाएगी।
  4. नेतृत्व वाले आवास के लिए सहायता: इसके अलावा नगरों में लाभार्थी के नेतृत्व वाले आवास के निर्माण या विस्तार के लिए लोगों को सहायता प्रदान करना।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीय का अर्थ किससे संबंधित है?
(अ) समुदाय से
(ब) संस्था से
(स) समिति से
(द) संस्कृति से
उत्तरमाला:
(अ) समुदाय से

प्रश्न 2.
किन समाजशस्त्रियों ने नगरीय समाज का अध्ययन किया है?
(अ) पार्क
(ब) विर्थ
(स) बर्गेस
(द) सभी ने
उत्तरमाला:
(द) सभी ने

प्रश्न 3.
नगरीय पारिवारिक इकाई कैसी इकाई है?
(अ) आर्थिक
(ब) व्यावसायिक
(स) सांस्कृतिक
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) व्यावसायिक

प्रश्न 4.
‘American General of Sociology’ पुस्तक के रचियता कौन हैं?
(अ) पार्क
(ब) जिमरमैन
(स) विर्थ
(द) बर्गेस
उत्तरमाला:
(स) विर्थ

प्रश्न 5.
‘जीवन का ढंग’ क्या कहलाता है?
(अ) क्षेत्र
(ब) नगरीयता
(स) कस्बा
(द) गांव
उत्तरमाला:
(ब) नगरीयता

प्रश्न 6.
व्यक्तिवादिता कहाँ की विशेषता है?
(अ) गांव
(ब) समुदाय
(स) नगर
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) नगर

प्रश्न 7.
एकाकी परिवार सर्वाधिक कहाँ पाए जाते हैं?
(अ) गांव में
(ब) क्षेत्र में
(स) समुदाय में
(द) नगरों में
उत्तरमाला:
(द) नगरों में

प्रश्न 8.
भारतीय समाज में किस सत्ता का प्रचलन है?
(अ) पितृसत्तात्मक
(ब) मातृसत्तात्मक
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) पितृसत्तात्मक

प्रश्न 9.
किशोर अपराधों में कितने प्रतिशत वृद्धि हुई है?
(अ) 44%
(ब) 45%
(स) 46%
(द) 47%
उत्तरमाला:
(द) 47%

प्रश्न 10.
भारत में विवाह – विच्छेद की दर प्रति हजार पर कितनी हो गयी है?
(अ) 12
(ब) 13
(स) 14
(द) 15
उत्तरमाला:
(ब) 13

प्रश्न 11.
वर्तमान में बड़े नगरों की संख्या कितनी है?
(अ) 17
(ब) 18
(स) 19
(द) 20
उत्तरमाला:
(स) 19

प्रश्न 12.
हैमिल्टन ने किससे पुरस्कार प्राप्त किया था?
(अ) पर्यावरण संरक्षण एजेंसी से
(ब) जलवायु संरक्षण एजेंसी से
(स) प्रदूषण संरक्षण एजेंसी से
(द) वायु संरक्षण एजेंसी से
उत्तरमाला:
(अ) पर्यावरण संरक्षण एजेंसी से

प्रश्न 13.
भारत में कितने प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन – यापन कर रहे हैं?
(अ) 19%
(ब) 20%
(स) 22%
(द) 28%
उत्तरमाला:
(स) 22%

प्रश्न 14.
‘राज्य’ की उत्पत्ति का सिद्धांत किसने दिया था?
(अ) रूसो
(ब) हॉब्स
(स) लॉक
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) हॉब्स

प्रश्न 15.
‘बेस्ट’ बस की औसत गति कितनी है?
(अ) 9 किमी. प्रति घण्टा
(ब) 10 किमी. प्रति घण्टा
(स) 12 किमी. प्रति घण्टा
(द) 14 किमी. प्रति घण्टा
उत्तरमाला:
(स) 12 किमी. प्रति घण्टा

प्रश्न 16.
2011 की जनगणनानुसार कितनी प्रतिशत जनसंख्या खुले में शौच करती है?
(अ) 13.2%
(ब) 14.3%
(स) 15.2%
(द) 12.6%
उत्तरमाला:
(द) 12.6%

प्रश्न 17.
आव्रजन सामाजिक ………………… का सूचक है?
(अ) स्थिति
(ब) विषमता
(स) परिवर्तन
(द) गतिशीलता
उत्तरमाला:
(स) परिवर्तन

प्रश्न 18.
आव्रजन के कितने रूप होते हैं?
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तरमाला:
(ब) दो

प्रश्न 19.
नगर नियोजन कैसी योजना है?
(अ) राजनीतिक
(ब) प्रशासकीय
(स) सामाजिक
(द) आर्थिक
उत्तरमाला:
(ब) प्रशासकीय

प्रश्न 20.
अयोध्या का निर्माण किस काल में हुआ था?
(अ) वैदिक काल
(ब) उत्तर वैदिक काल
(स) पुरा वैदिक काल
(द) मध्य वैदिक काल
उत्तरमाला:
(अ) वैदिक काल

प्रश्न 21
‘जयपुर’ का निर्माण किस वर्ष में हुआ था?
(अ) 1725
(ब) 1726
(स) 1727
(द) 1728
उत्तरमाला:
(स) 1727

प्रश्न 22.
2011 में कितने प्रतिशत घर विद्युत का उपयोग कर पाये?
(अ) 90%
(ब) 91%
(स) 92%
(द) 93%
उत्तरमाला:
(द) 93%

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय आवास नीति की घोषणा कब की गई?
(अ) 1998
(ब) 1999
(स) 1995
(द) 1994
उत्तरमाला:
(अ) 1998

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नगरीय’ शब्द किसे दर्शाता है?
उत्तर:
‘नगरीय’ शब्द नगरीय समुदाय को दर्शाता है जो कि नगरीय क्षेत्र में निवास करता है।

प्रश्न 2.
‘नगरीय समाज में परिवर्तन’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘नगरीय समाज में परिवर्तन’ का तात्पर्य नगरीय सामाजिक पारिवारिक – आर्थिक संरचना में परिवर्तन है।

प्रश्न 3.
‘श्रम – विभाजन’ तथा ‘विशेषीकरण’ कहाँ की विशेषता है?
उत्तर:
‘श्रम – विभाजन’ तथा ‘विशेषीकरण’ नगरीय समाज की विशेषता है।

प्रश्न 4.
एकाकी परिवार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस परिवार में माता – पिता तथा उनके अविवाहित बच्चे निवास करते हैं, उसे एकाकी परिवार कहते हैं।

प्रश्न 5.
किस संस्कृति ने नगरीय समाज को भावनात्मक रूप से शून्य कर दिया है?
उत्तर:
भौतिकवादी संस्कृति ने नगरीय समाज को भावनात्मक रूप से शून्य कर दिया है।

प्रश्न 6.
नाबालिगों द्वारा किये जाने वाले अपराधों की संख्या 2014 तक कितनी हो गयी है?
उत्तर:
नाबालिगों द्वारा किये जाने वाले अपराधों की संख्या 2014 तक 33,526 हो गयी है।

प्रश्न 7.
बोरनेट कहाँ के प्रसिद्ध समाजशास्त्री हैं?
उत्तर:
‘University of Southern California’ के प्रसिद्ध समाजशास्त्री हैं।

प्रश्न 8.
प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक संसाधनों का संरक्षण सर्वाधिक किस शहर में है?
उत्तर:
‘चंडीगढ़’ देश के उन शहरों में से एक है, जहाँ प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक संसाधनों का संरक्षण सर्वाधिक होता है।

प्रश्न 9.
‘National Award for Smart Growth Achievement’ का पुरस्कार किसे मिला है?
उत्तर:
ओहायो के हैमिल्टन को अपनी एक परियोजना के लिए 2015 में यह पुरस्कार मिला था।

प्रश्न 10.
आधुनिक भारत के निर्माता कौन थे?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर को आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न 11.
नगरों में सबसे बड़ी समस्या कौन – सी उत्पन्न हुई है?
उत्तर:
अत्यधिक जनसंख्या के संकेन्द्रण के कारण विश्व के वृहत् नगरों में आवास की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है।

प्रश्न 12.
किस देश का जनसंख्या घनत्व सबसे अधिक है?
उत्तर:
भारत में जनसंख्या का घनत्व विश्वभर में सबसे अधिक है।

प्रश्न 13.
कितने शहरों में औपचारिक सिटी बस सेवा उपलब्ध है?
उत्तर:
केवल 65 शहरों में ही औपचारिक सिटी बस सेवा उपलब्ध है।

प्रश्न 14.
चार्ल्स डिकेंस की पुस्तक का क्या नाम है?
उत्तर:
‘A Tale of Two Cities’ चार्ल्स डिकेंस की पुस्तक का नाम है जिसमें उन्होंने नगरों के विषय में व्याख्या की है।

प्रश्न 15.
दिवंगत राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने नगरों के विकास के लिए किस कार्यक्रम की पहल की थी?
उत्तर:
‘Provision of Urban Amenities to Rural Areas’ में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने नगरों के विकास के लिए केन्द्र सरकार से पहल की थी।

प्रश्न 16.
‘अमृत मिशन’ का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
‘अमृत मिशन’ का मुख्य उद्देश्य है घरों में बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराना जैसे कि जल आपूर्ति, सीवेज आदि जिससे सभी नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि हो सके।

प्रश्न 17.
सरकारी योजनाओं और नीतियों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
सभी सरकारी योजनाओं और नीतियों का मूलभूत उद्देश्य यही है, नगर में आधारभूत संरचना का निर्माण एवं संरक्षण इस तरह किया जाये कि नगरीय समाज जीवन को खुशहाल तरीके से व्यतीत कर सके।

प्रश्न 18.
यूरोपीय आप्रवासी किसे कहा जाता है?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका में यूरोप से आये हुए लोगों को यूरोपीय आप्रवासी कहा जाता है।

प्रश्न 19.
आव्रजन के कितने रूप होते हैं?
उत्तर:
आव्रजन के दो रूप होते हैं – आंतरिक आव्रजन तथा अन्तर्राष्ट्रीय आव्रजन।

प्रश्न 20.
आंतरिक आव्रजन की प्रक्रिया का आरंभ किस काल में हुआ?
उत्तर:
आंतरिक आव्रजन की प्रक्रिया उपनिवेश काल से ही आरंभ हुई है।

प्रश्न 21.
किन राज्यों में अधिक शहरीकरण नहीं हुआ है?
उत्तर:
बिहार, उत्तर – प्रदेश तथा उड़ीसा जैसे राज्यों में अधिक शहरीकरण नहीं हुआ है।

प्रश्न 22.
कौन – सी दो विपरीत गुणों वाली शक्तियाँ जनसंख्या में आकार, गति व दिशा को नियंत्रित करती हैं?
उत्तर:
‘आकर्षण शक्ति’ और ‘प्रतिकर्षण शक्ति’ दो ऐसी विपरीत गुणों वाली शक्तियां हैं जो जनसंख्या के आकार, गति व दिशा को नियंत्रित करती हैं।

प्रश्न 23.
प्रागैतिहासिक आव्रजन किस कारण से होता है?
उत्तर:
प्रागैतिहासिक आव्रजन मुख्यतः जलवायु परिवर्तन के कारण होता है।

प्रश्न 24.
जयपुर’ का निर्माण किस राजा ने किया था?
उत्तर:
वर्ष 1727 ई. में महाराज सवाई जयसिंह ने सुनियोजित ढंग से बनवाया था।

प्रश्न 25.
ग्रामीण आवास योजना किसके अंतर्गत शुरू की गई?
उत्तर:
1957 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण आवास योजना शुरू की गई।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरीय शब्द की अवधारणा को स्पस्ट कीजिए।
उत्तर:
नगरीय शब्द की अवधारणा को हम निम्नांकित बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. ‘नगरीय’ का अर्थ नगर में रहने वाले समुदाय से है।
  2. ‘नगरीय’ शब्द नगरीय समुदाय विशेष को इंगित करता है जो कि नगरीय क्षेत्र में निवास करता है।
  3. नगरीय क्षेत्र उस परिपूर्णता के रूप में समझा जाता है जो मुख्यतः उद्योग, नौकरी, व्यापार तथा अन्य व्यवसायों में संलग्न होता है।
  4. नगरीय समुदाय प्रमुखतः तकनीकी कार्यों, वस्तुओं के निर्माण से संबंधित रहता है।
  5. नगरीय मानव जीवन की विशिष्ट सामाजिक व्यवस्था होती है।
  6. नगरीय सामाजिक व्यवस्था में व्यक्ति को व्यावसायिक क्रियाएँ करने की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्री विर्थ ने नगरीय समाज के किन लक्षणों की विवेचना की है?
उत्तर:
विर्थ ने नगरीय समाज की अनेक लक्षणों की विवेचना की है जो निम्नलिखित है –

  1. विषमता:
    विर्थ के अनुसार नगरों में विषमता पायी जाती है। वहाँ पर अनेक प्रकार के लोग होते हैं जिनमें संस्कृति, खान – पान, रिवाजों व मूल्यों में विषमता पायी जाती है।
  2. पारस्परिक निर्भरता:
    विर्थ के अनुसार नगरों में श्रम – विभाजन व विशेषीकरण के कारण लोगों की एक – दूसरे पर निर्भरता में वृद्धि हुई है।
  3. दिखावे की प्रवृत्ति:
    उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि नगरों में निवास करने वाले लोगों में दिखावे की प्रवृत्ति दृष्टगोचर होती है। उनके संबंधों की प्रकृति भावनात्मक न होकर कृत्रिम होती है।
  4. उच्च जीवन प्रणाली:
    नगरों में निवास करने वाले कुछ वर्गों का जीवन काफी उच्च होता है। उनके पास समस्त साधन होते हैं जिनका प्रयोग वे सूझ – बूझ के साथ करते हैं।

प्रश्न 3.
नगरों में महिलाओं की प्रस्थिति में क्या सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं?
उत्तर:
नगरों में महिलाओं की प्रस्थिति में अनेक सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं –

  1. शैक्षिक स्तर में सुधार:
    नगरों में महिलाओं की शैक्षिक प्रस्थिति में सुधार हुआ है। उन्हें भी बालकों की भाँति अच्छे विद्यालय में शिक्षा प्रदान करवायी जाती है।
  2. कामकाज में बदलाव:
    नगरों में महिलाएँ केवल अब घरेलू कार्यों तक सीमित न होकर बल्कि पुरुषों के समान कार्य क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण भागीदारी का निर्वाह कर रही हैं।
  3. अधिकारों में वृद्धि:
    महिलाओं को नगरों में अधिकारों की प्राप्ति हुई है जिसके परिणामस्वरूप उनमें सजगता आयी है तथा उनमें जागरूकता का भी संचार हुआ है। अब महिलाओं की स्थिति को एक अबला नारी न मानकर एक सशक्ति के रूप में हुई है।

प्रश्न 4.
नगरों में बच्चों में बढ़ते एकाकीपन के क्या कारण हैं?
उत्तर:
नगरों में बच्चों में बढ़ते हुए एकाकीपन के निम्नलिखित कारण हैं –

  1. अभिभावकों की व्यस्तता:
    नगरों में माता-पिता दोनों ही कार्य – स्थलों पर जाकर कार्य करते हैं जिससे उनके पास अपने बच्चों के लिए समय ही नहीं होता है। जिसके कारण बच्चों में अकेलेपन की भावना प्रवेश करती है।
  2. विवाह – विच्छेद की प्रवृत्ति:
    नगरों में आजकल विवाह – विच्छेद की प्रवृत्ति में काफी वृद्धि हुई है जिसके कारण माता व पिता अलग रहते हैं। ऐसे में बच्चों की उचित देखरेख नहीं हो पाती है व बच्चों को अपने माता – पिता का प्रेम भी नहीं मिल पाता है जिसके कारण बच्चों में एकाकीपन की भावना आती है।
  3. एकाकी परिवार की प्रवृत्ति:
    नगरों में एकाकी परिवारों का चलन पाया जाता है जिसमें माता-पिता व उनके बच्चे ही शामिल रहते हैं, जबकि संयुक्त परिवारों में अनेक सदस्य एक साथ निवास करते हैं जहाँ सभी सदस्यों का मनोरंजन होता रहता है। इस कारण एकाकी परिवार में सदस्यों की कम संख्या व पर्याप्त समय के अभाव के कारण बच्चों में अकेलेपन की प्रवृत्ति जन्म लेती है।

प्रश्न 5.
नगरीय समाज में सोशल नेटवर्किंग तथा इंटरनेट ने किस प्रकार से बदलाव उत्पन्न किया है?
उत्तर:
नगरीय समाज में सोशल नेटवर्किंग तथा इंटरनेट प्रणाली ने अनेक प्रकार से लोगों की जीवन पद्धति में तीव्र बदलाव उत्पन्न किये हैं, जो निम्न प्रकार हैं –

  1. नवीन सूचनाओं की प्राप्ति:
    सोशल साइट व इंटरनेट से लोगों को देश-विदेश व अपने सभी सहकर्मी तथा पारिवारिक सदस्यों की सूचनाएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं।
  2. समय की बचत:
    इन प्रणालियों से व्यक्तियों को जिन कार्यों को करने में काफी समय लगता था, अब E-mail तथा chat के जरिये चंद मिनटों में वह काम पूरा हो जाता है जिससे समय की बचत होती है।
  3. दूरी में कमी:
    इंटरनेट प्रणाली ने पूरे विश्व को एक ग्लोबल बना दिया है। जहाँ हर कार्य इस प्रणाली के माध्यम से आसानी से हो जाता है। लोगों की दूरी में कमी आयी है। अब हर व्यक्ति दुनियाँ के किसी भी कोने में व्यक्तियों से संपर्क स्थापित कर सकता है। इस प्रणाली ने लोगों के मध्य दूरी को घटा दिया है।

प्रश्न 6.
सुनियोजित बस्तियों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सुनियोजित बस्तियों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. नगरों में स्थापित बस्तियों का निर्माण लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप किया जाता है जिससे उन्हें रहने में कोई समस्या न हो।
  2. नगरों में सुनियोजित बस्तियों का निर्माण विकास नीतियों के आधार पर किया जाता है।
  3. सुनियोजित बस्तियों में लोगों को सभी सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। उनमें लोगों को पीने, ऊर्जा आदि की सुविधाएँ भी प्राप्त होती हैं।
  4. सुनियोजित बस्तियों में लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अनुकूल वातावरण को उपलब्ध कराया जाता है।

प्रश्न 7.
सहज आवागमन के लिए क्या प्रयास किये जाने चाहिए?
उत्तर:
सहज आवागमन के लिए अनेक प्रयास किये जाने चाहिए –

  1. पक्की सड़कों का निर्माण:
    निवासियों को एक सहज आवागमन प्रदान के लिए यह आवश्यक है कि पक्की व मजबूत सड़कों का निर्माण किया जाए, जिससे लोगों को असुविधा न हो।
  2. छोटी सड़कों का निर्माण:
    सहज आवागमन के लिए यह आवश्यक है कि गांवों को नगरों से जोड़ा जाए, इसके लिए छोटी सड़कों के निर्माण पर विशेष रूप से बल दिया जाना चाहिए, जिससे ग्रामीण विकास को भी बल मिले।
  3. समुचित बस सेवा:
    निवासियों को सहज आवागमन प्रदान करने के लिए समुचित बस सेवा उपलब्ध करानी चाहिए। नगरों में सिटी बस सेवा को प्रोत्साहन देना चाहिए, जिससे लोगों को सफर करने के दौरान कोई भी असुविधा न हो।

प्रश्न 8.
जल प्रबंधन की समस्याओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जल प्रबंधन से संबंधित अनेक समस्याएँ हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. जल प्रबंधन की कठिनाई:
    जल प्रबंधन का कार्य एक कठिन कार्य है क्योंकि साधारणत: जल प्रबंधन स्थानीय स्तर पर ही होता है क्योंकि कई घटक इसके प्रबंधन के साथ जुड़े होते हैं और उनके मध्य सामंजस्य बैठाना सरल नहीं होता है, इस कारण यह एक चुनौती बन जाता है।
  2. एजेंसियों की लापरवाही:
    नगरों में जल की आपूर्ति करना एक जटिल कार्य है। इस कार्य को पूरा करने की जिम्मेदारी कुछ निजी व सरकारी दोनों ही एजेंसियों को प्रदान की जाती हैं जिससे लोगों को पर्याप्त मात्रा में जल मिल सके, परंतु एजेंसियों के कर्मचारी इस कार्य का उत्तरदायित्व उचित प्रकार से निभा नहीं पाते हैं।

प्रश्न 9.
कचरे के प्रबंध से होने वाले दो लाभ का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कचरे के प्रबंध से दो लाभों का वर्णन निम्न प्रकार से है –

  1. खाद या उर्वरक के रूप में प्रयोग:
    नगरों में जमा होने वाले कचरे के प्रबंध से उसका प्रयोग कृषि में खाद के रूप में किया जाता है। नगरों में कचरों को अर्थात् मिले कचरे को एकत्रित करके उसे कृषि में उपयोग किया जाता है, जिससे कृषि की पैदावार में वृद्धि होती है।
  2. बिजली के निर्माण में सहायक:
    नगरों में जमा होने वाले सूखे कचरों की सहायता से उसका प्रयोग बिजली के निर्माण में किया जाता है। इसमें सूखे कचरे को एकत्रित करके उसे रूपांतरित कर बिजली का निर्माण किया जाता है, जिससे बिजली तो बनती ही है साथ ही लोगों के लिए बिजली की कमी को पूरा भी करती है।

प्रश्न 10.
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के उपायों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हम निम्न उपायों के आधार पर कर सकते हैं –

  1. वृक्षारोपण के माध्यम से:
    पर्यावरण या प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए यह आवश्यक है कि अधिक से अधिक वृक्षों को लगाया जाए, वृक्षों के द्वारा हमारा वातावरण शुद्ध रहता है तथा जलवायु पर भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। इससे लोगों का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।
  2. वनों की कटाई पर रोक:
    मानव ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लए वनों की काफी मात्रा में कटाई की है, जिसके परिणामस्वरूप जलवायु व वातावरण पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे मृदा का क्षय भी होता है।
  3. प्राकृतिक संसाधनों का उचित मात्रा में प्रयोग:
    आने वाले भविष्य में नए पीढ़ी के सदस्यों के लिए यह आवश्यक है कि संसाधनों के उचित प्रयोग पर ध्यान दिया जाए। मृदा, वायु, बिजली तथा पानी इन सभी प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आवश्यकतानुसार ही किया जाना चाहिए।

प्रश्न 11.
पर्यावरण प्रदूषण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण का अर्थ:
पर्यावरण समस्त भौतिक (हवा, जल, ध्वनि, मृदा) और सामाजिक कारकों (परिवार, समुदाय आदि) की वह व्यवस्था है जो मानव को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित करती है। पर्यावरण शब्द ‘परि + आवरण’ दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः ‘चारों ओर’ तथा ‘ढका’ हुआ है।

प्रदूषण:

  1. इसका अर्थ है ‘दूषित वातावरण’। पर्यावरण के घटकों (जैसे – वायु, जल व भूमि आदि) के भौतिक, रासायनिक या जैविक लक्षणों का वह अवांछनीय परिवर्तन जो मानव और उसके लिए लाभदायक, दूसरे जीवों, औद्योगिक प्रक्रमों, जैविक दशाओं एवं सांस्कृतिक विरासतों को हानि पहुँचाता है। वह ‘पर्यावरण प्रदूषण’ कहलाता है।
  2. संक्षेप में पर्यावरण में होने वाले किसी ऐसे परिवर्तन को जो मनुष्य व उसके लाभदायक सजीवों व निर्जीवों को हानि पहुँचाए, उसे पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं।

प्रश्न 12.
अमृत मिशन’ पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
‘अमृत मिशन’ का मुख्य उद्देश्य है घरों में बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करना जैसे कि जल आपूर्ति, सीवेज, शहरी परिवहन आदि जिससे सभी नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि हो सके।

‘अमृत मिशन’ के मूल तत्त्व:

  1. सेप्टिक सुधार के अंतर्गत मल प्रबंधन व नाली की यांत्रिक सफाई कराना।
  2. उचित फुटपाथों तथा रास्तों का निर्माण करना।
  3. गैर – मोटर चलित परिवहन के लिए सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
  4. सीवेज सुविधा के अंतर्गत भूमिगत सीवेज प्रणाली का निर्माण एवं रख – रखाव करना।
  5. जलापूर्ति प्रणालियों का निर्माण एवं रख – रखाव, पुराने जल निकायों का कायाकल्प करना आदि।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति के उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस नीति का उद्देश्य अपने शहरों के भीतर नौकरी, मनोरंजन तथा ऐसी अन्य आवश्यकताओं को बढ़ती नगरीय आबादी के लिए सुरक्षित करना आदि है। इस नीति के उद्देश्यों को निम्न आधारों के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है –

  1. शहरी यातायात को परिणामी जरूरत की बजाए शहरी नियोजन स्तर पर प्रमुख मानक के रूप में समाहित करना।
  2. सभी शहरों में एकीकृत भूमि उपयोग पर बल देना।
  3. परिवहन नियोजन को बढ़ावा देना ताकि यात्रा में दूरी को कम किया जा सके।
  4. सार्वजनिक परिवहन और गैर – मोटरकृत सार्वजनिक परिवहनों के साधन को बढ़ावा देने के लिए इनके अधिकतम उपयोग को बढ़ावा देना।

प्रश्न 2.
अवधि के आधार पर आव्रजन के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अवधि के आधार पर आव्रजन के प्रकारों को चार भागों में विभाजित कर सकते हैं –

  1. दीर्घकालीन आव्रजन: ब्रिटिश काल में चाय बगानों में काम करने के लिए श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका आदि में भारतीय श्रमिकों का आव्रजन काफी हुआ है।
  2. अल्पकालीन आव्रजन: देशाटन, तीर्थयात्रा एवं राजनीतिक उद्देश्यों के लिए हुआ स्थानांतरण इसमें सम्मिलित है।
  3. दैनिक आव्रजन: बड़े नगर या औद्योगिक केन्द्र में बाहर उपनगरीय क्षेत्रों से बड़ी संख्या में रोज लोगों का आव्रजन होता है।
  4. मौसमी आव्रजन: जिन स्थलों का मौसम अत्यधिक ठंडा तथा शुष्क होता है वहाँ मानव स्थानांतरण होता है।

प्रश्न 3.
नगर – नियोजन की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
नगर – नियोजन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. नगर नियोजन, नगरों में पायी जाने वाली समस्याओं को दूर करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
  2. नगर नियोजन के द्वारा नगरों में पुराने नगरों के उद्धार की उपर्युक्त योजनाओं को क्रियान्वित किया जाता है।
  3. नगर नियोजन नगरों की विकास की प्रक्रिया से संबंधित है।
  4. नगर नियोजन व्यक्तियों के कल्याण व उनके जीवन स्तर को उन्नत करने में सहायक है।
  5. नगर नियोजन एक प्रशासकीय योजना है जो नगर के वर्तमान तथा भावी विकास कि लिए विस्तृत कार्यक्रमों का निर्माण करती है।

प्रश्न 4.
भारत में नगर – नियोजन के मार्ग में कौन – सी बाधाएँ हैं?
उत्तर:
भारत में नगर नियोजन के मार्ग में अनेक बाधाएँ हैं जो निम्नलिखित हैं –

  1. नगरीय योजना नगर निगम की सीमा द्वारा सीमित होती है। इस सीमित योजना के परिणामस्वरूप पंचायतों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले उपनगरों के बिना आधार संरचनात्मक समर्थन के उद्योगों की स्थापना, एक ऐसी समस्या बन कर उभरी है जिसके कारण नगरीय स्थान का अव्यवस्थित विकास होता है।
  2. आधारभूत संरचनाओं के मध्य समन्वयता के अभाव के चलते नगरीय विकास अवरुद्ध होता है यथा विद्युत, जलापूर्ति, गंदगी निस्तारण तथा टेलीफोन जैसी सेवाओं के मध्य समन्वय का अभाव नवस्थापित उद्योगों का विकास धीमे कर देता है।
  3. योजना निर्माण एवं उसके क्रियान्वयन के मध्य एक गहरा अंतराल होने के कारण अल्पविकसित आधार संरचना के
    फलस्वरूप नगरीय विस्तार मूलभूत सुविधाओं के बगैर होता है।

प्रश्न 5.
आवास निर्माण में सहायक संस्थाओं की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
देश में आवास समस्या को देखते हुए आवासों के निर्माण की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र की अनेक संस्थाएँ आवासों के निर्माण में संलग्न हैं। जो निम्नलिखित हैं –

  1. आवास निर्माण में निजी क्षेत्र की भूमिका:
    नगरीय क्षेत्र में आवास निर्माण में ठेकेदारों का प्रायः सहयोग लिया जाता है। आवासों की मांग बढ़ने के कारण निजी बिल्डर्स का व्यवसाय भी निरंतर बढ़ता जा रहा है, किंतु इस क्षेत्र में केवल उच्च आय समूह तथा उच्च मध्यम आय समूह के लोगों की ही आवास आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
  2. आवास निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका:
    आवास निर्माण के कार्य में केन्द्र सरकार, सार्वजनिक वित्तीय संस्थाएँ तथा विकास प्राधिकरण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्ष 1957 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अंतर्गत एक ग्रामीण आवास योजना शुरू की गई। इसके साथ ही न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम और बीस सूत्री कार्यक्रम में ग्रामीण आवास स्थल एवं आवास निर्माण योजना को उच्च प्राथमिकता दी गई।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरों का समाज पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगरों का समाज पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों को अनेक आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –
1. नगरों का आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव:

  • नगरों में उपलब्ध सुविधाओं के कारण ही नगरों में औद्योगीकरण अधिक हुआ है।
  • नगर व्यापार तथा वाणिज्य के केन्द्र बन गए हैं, जिसमें लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए हैं।
  • नगरों में श्रम – विभाजन व विशेषीकरण पाया जाता है जिसमें लोगों में पारस्परिक निर्भरता देखने को मिलती है।

2. स्त्रियों की स्थिति में बदलाव:

  • नगरों में स्त्रियों की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है।
  • स्त्रियों को आर्थिक निर्भरता पुरुषों पर से अब समाप्त हुई है।
  • बाल – विवाह की संख्या में कमी एवं विधवा पुनर्विवाह के कारण स्त्रियों की पारिवारिक प्रस्थिति भी ऊँची उठी है। 4. अब महिलाएँ सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक सभी क्षेत्रों में कार्य करने लगी है।

3. नगरों का जाति प्रथा पर प्रभाव:

  • नगरों में व्यक्ति का मूल्यांकन उसके गुणों के आधार पर किया जाता है।
  • खान – पान के संबंधों एवं छुआछूत में भी शिथिलता आयी है।
  • एक जाति के व्यक्ति कई व्यवसायों में और एक व्यवसाय में कई जातियों के व्यक्ति लगे हुए हैं।
  • आज विभिन्न जातियों के नगर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक संगठन पाये जाते हैं जो अपनी जाति के सदस्यों के लिए शिक्षा, छात्रवृत्ति, अस्पताल व धर्मशाला आदि की व्यवस्था करते हैं। इस प्रकार नगरों में जाति के परंपरागत स्वरूप में परिवर्तन देखा जा सकता है।

4. ग्रामीण समुदायों पर प्रभाव:

  • गांव के सदस्य गांव से नगरों में दूध, घी व सब्जी आदि बेचने आते हैं, जिसमें उनकी आर्थिक स्थिति सुहढ़ हुई है।
  • गांव में भी अब नगरीय संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था पनपने लगी है।
  • ग्रामीण लोग भी अब नगरीय फैशन, वस्त्र, खान – पान, जीवन – शैली आदि का प्रयोग करने लगे हैं।
  • ग्रामीण लोग भी नगरीय समाज में निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने लगे हैं तथा गांवों में नल व बिजली की सुविधाएँ हो गयी हैं, वहाँ पर भी नगरों की भाँति लोग व्यवसायों को अपनाने लगे। अतः उपरोक्त तथ्यों से यह विदित होता है कि नगरों का समाज पर भी कई क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव हुआ है।

प्रश्न 2.
नगरों का समाज पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगरों का समाज पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को विभिन्न आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. अपराधों में वृद्धि:
    गांवों की तुलना में नगरीय समाजों में अपराध अधिक होते हैं। नगरों में परिवार, धर्म, पड़ोस, रक्त संबंध एवं जाति के नियंत्रण में शिथिलता के कारण अपराध बढ़ जाते हैं।
  2. आवास की समस्या:
    नगरों में एक भयंकर समस्या मकानों की है। नगरों में हवा एवं रोशनीदार मकानों का अभाव होता है। इन मकानों में शोचालय आदि का अभाव होता है। नगरीय क्षेत्रों में कई मकान तो बीमारियों के घर होते हैं।
  3. मानसिक तनाव एवं संघर्ष:
    नगरों में मानसिक तनाव एवं संघर्ष अधिक हैं जिनसे मुक्ति पाने हेतु लोग नींद की गोलियाँ आदि के सेवन में लीन रहते हैं।
  4. सामाजिक विघटन:
    व्यक्तिवादिता के कारण नगरों में सामाजिक नियंत्रण शिथिल हुआ है। वहाँ परिवार, धर्म, ईश्वर व जाति के नियंत्रण के अभाव में समाज विरोधी कार्य अधिक होते हैं। गरीबी, तलाक, बाल-अपराध व अपराध नगरीय जीवन की प्रमुख समस्याएँ हैं। हड़ताल, नारेबाजी व नगरीय जीवन की आम घटनाएँ हैं।
  5. भिक्षावृत्ति:
    नगरों में भिक्षावृत्ति अधिक है। सड़क के किनारे मंदिर, मस्जिद एवं धार्मिक स्थानों पर भिखारियों की भीड़ देखी जा सकती है। भिक्षावृत्ति नगरों में व्याप्त गरीबी का सूचक है।
  6. बढ़ती जनसंख्या:
    नगरों में बढ़ती जनसंख्या ने यातायात, शिक्षा, प्रशासन एवं सुरक्षा की समस्या पैदा की है। सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना, यातायात एवं सुरक्षा के स्थान जुटाना और नगर प्रशासन चलाना एक कठिन कार्य हो गया है।
  7. बेकारी की समस्या:
    उद्योगों में मशीनों ने मनुष्य का स्थान ले लिया है पहले जिस कार्य को काफी लोग करते थे, वही काम आज कुछ व्यक्तियों के माध्यम से ही निपटा दिये जाते हैं।
  8. मनोरंजन की समस्या:
    नगरों में मनोरंजन का व्यापारीकरण पाया जाता है। सिनेमा, टेलीविजन, खेलकूद, पार्क एवं बगीचों के लिए काफी पैसा खर्च करना होता है। यहाँ व्यापारिक संस्थाओं द्वारा मनोरंजन जुटाया जाता है। गांवों में खेलकूद, नृत्य, भजन, गायन आदि के माध्यम से सुगमता से लोगों का मनोरंजन होता है।

प्रश्न 3.
जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप नगरों में किन समस्याओं का उदय होता है?
उत्तर:
जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप नगरों में अनेक समस्याओं का उदय होता है जिनके निम्नलिखित कारण हैं –

  1. जनसंख्या वृद्धि एवं पूँजी निर्माण:
    जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति प्राकृतिक साधनों में भी कमी हो जाती है और उत्पादकता गिरती है। ऐसी परिस्थिति में नगरों में पूँजी निर्माण का कार्य एक समस्या बन जाती है।
  2. जनसंख्या वृद्धि एवं खाद्य समस्या:
    जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने पर पिछड़े एवं विकासशील राष्ट्रों में जनसंख्या की मांग के अनुरूप पूर्ति नहीं हो पाती है। अतः नगरों में भुखमरी की समस्या पैदा होती है और विदेशी से अनाजों का आयात करना पड़ता है।
  3. जनसंख्या वृद्धि एवं शिक्षा:
    जनसंख्या वृद्धि के कारण पिछड़े राष्ट्रों में निरक्षरों की संख्या बढ़ने की संभावना रहती है। नगरों में जो व्यक्ति मलिन बस्तियों में निवास करते हैं वे अपने बच्चों को शिक्षा कम आय के कारण दिला नहीं पाते हैं।
  4. जनसंख्या एवं मूलक वृद्धि:
    जनसंख्या के बढ़ने से वस्तुओं की प्रभावपूर्ण मांग में भी वृद्धि हो जाती है किंतु उसी मात्रा में पूर्ति न होने पर नगरों में वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि भी हो जाती है।
  5. जनसंख्या वृद्धि एवं आवास की समस्या:
    नगरों में जनसंख्या वृद्धि होने पर लोगों को बसाने और उनके लिए स्वास्थ्यप्रद मकानों की व्यवस्था करने की समस्या पैदा होती है।
  6. जनसंख्या वृद्धि एवं अपराध:
    जब नगरों में जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से होती है, तो सभी के भरण-पोषण के लिए साधन जुटा पाना संभव नहीं होता है। ऐसी दशा में देश में या नगरों में गरीबी, बेकारी व अपराध बढ़ते हैं।
  7. जनसंख्या वृद्धि और नागरिक समस्याएँ:
    नगरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। औद्योगीकरण तथा नगरीकरण ने भी समाज में अनेक समास्याओं जैसे – मानसिक तनाव, संघर्ष, प्रतिस्पर्धा व मध्यपान जैसी समस्याओं को उत्पन्न किया है।
  8. जनसंख्या वृद्धि और गरीबी:
    नगरों में आवश्यकता से अधिक मात्रा में जनसंख्या में वृद्धि होने पर गरीबी बढ़ती है। प्रत्येक देश में प्राकृतिक साधन एवं भूमि सीमित मात्रा में होते हैं जिनका उपयोग अधिक जनसंख्या के लिए करने पर प्रति व्यक्ति साधनों की उपलब्धि कम हो जाती है। इसका प्रभाव राष्ट्रीय उत्पादन एवं राष्ट्रीय तथा प्रति व्यक्ति आय पर भी पड़ता है। फलतः नगरों में सामान्य गरीबी बनी रहती है।

प्रश्न 4.
जल प्रदूषण का नगरीय जन जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? जल प्रदूषण की रोकथाम के उपाय बताइए।
उत्तर:
जल प्रदूषण का नगरीय जन जीवन पर प्रभाव:

  1. रोगों की संभावना: प्रदूषित जल के उपयोग से अनेक रोगों के होने की संभावना रहती है, जैसे – पीलिया, मियादी बुखार, हैजा, डायरिया, क्षय रोग तथा अक्फेलाइटिस आदि बीमारियाँ हो जाती है।
  2. जलीय जीवों को हानि: जल की मछलियों, अन्य जंतुओं व वनस्पतियों को जल की विषाक्तता जान से मार सकती है, जिससे बहुत बड़ा पारिस्थितिक असंतुलन पैदा हो सकता है।
  3. फसलों की क्षति: प्रदूषित जल से सिंचाई करने से फसलें खराब हो जाती हैं क्योंकि जल के प्रदूषण अपनी विषाक्तता का प्रभाव फसलों, फलों व सब्जियों पर देखने को मिलता है।
  4. विभिन्न पर्यावरणीय घटकों पर प्रभाव: जल प्रदूषण से प्राकृतिक जल का pH मान, इसकी ऑक्सीजन व कैल्सियम मात्राएँ परिवर्तित हो जाती हैं। जस्ता व सीसा से प्रदूषित जल में कोई जीव जीवित नहीं रह सकता है।

जल प्रदूषण की रोकथाम के उपाय:

  1. पुन:चक्रण:
    नगरीय तथा औद्योगिक गंदे जल को नदियों में मिलाने से पहले साफ करना तथा निथारना एक बहुत ही खर्चीला कार्य है। अतः ठोस अवशिष्ट पदार्थों जैसे कूड़ा – करकट, सीवेज (मल – मूत्र) और अवशिष्ट जल से रासायनिक विधियों द्वारा अन्य उपयोगी पदार्थ बनाए जा सकते हैं। इस प्रकार हानि को लाभ में परिवर्तित किया जा सकता है।
  2. जैव नियंत्रण: झीलों, तालाबों आदि के जल को शुद्ध रखने के लिए शैवालों का प्रयोग करना चाहिए।
  3. जल प्रदूषण से संबंधित नियमन:
    सरकार की तरफ से जल प्रदूषण को रोकने के लिए केवल पर्याप्त नियम ही नहीं बनाए जाने चाहिए बल्कि शक्ति से लागू भी किए जाने चाहिए।
  4. पर्यावरण शिक्षा:
    प्रदूषण को कम करने के लिए आम जनता में जागरूकता बहुत आवश्यक है जो बिना पर्यावरण शिक्षा के संभव नहीं है इसलिए समय – समय पर पर्यावरण पर आधारित कार्यक्रमों व शिविर का आयोजन किया जाना चाहिए, जिसमें लोगों में जल प्रदूषण के प्रति चेतना का विकास हो।

प्रश्न 5.
नगरीय विकास योजनाओं की आवश्यकताओं के क्या कारण हैं?
उत्तर:
नगरीय विकास योजनाओं की असफलताओं के निम्नलिखित कारण हैं –
1. अनुपयुक्त विकास रणनीति:
नगरीय योजनाओं में मुख्य रूप से भारी उद्योगों वाली विकास रणनीति को अपनाया गया था। संभावना यह थी, कि विकास की गति को तेज कर उसका लाभ अपने आप जनसाधारण तक पहुँचेगा किंतु न विकास की दर ही तेज हो सकी, न रोजगार बढ़ा तथा न ही विकास के लाभ गरीब वर्गों तक पहुँच सके।

2. कृषि क्षेत्र की धीमी प्रगति के कारण:

  • कृषि की मानसून पर निर्भरता।
  • वर्षा की अनिश्चितता।
  • सिंचाई सुविधाओं की कमी।
  • कृषि के पुराने तरीके।
  • कृषि इनपुट्स की कमी।
  • कृषि साख की अपर्याप्तता।

कृषि में इन समस्त कारणों से नगरीय विकास योजनाएँ सफल नहीं हो पायीं क्योंकि नगर गांव से जुड़े हुए हैं। वहाँ समस्त माल गांव के माध्यम से ही पहुँचता है। जिसके परिणामस्वरूप नगरीय विकास योजनाएँ सफल नहीं हो सकी।

3. अकुशल प्रशासनिक ढांचा:
चुनाव व वोट की राजनीति के कारण आर्थिक नीतियों में बार – बार परिवर्तन करने के कारण भी नगरीय विकास के कार्य को नुकसान पहुंचा है। प्रशासनिक मशीनरी के अकार्यकुशल एवं भ्रष्ट होने के कारण योजनाओं को ठीक से लागू नहीं किया जा सका है। इस प्रकार दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति, ईमानदार व कार्यकुशल प्रशासन के अभाव के कारण योजनाओं का क्रियान्वयन पूरी गति के साथ नहीं हो सका है।

4. संघीय ढांचा:
भारत में संघीय ढांचा भी अनेक बार नगरीय विकास योजनाओं के मार्ग में बाधक बना है। केन्द्र व राज्यों के बीच मधुर एवं सहयोग के संबंध न होने पर यह कठिनाई आती है। विशेषकर जब केन्द्र एवं राज्य में अलग – अलग राजनैतिक दलों की सरकार होती है, तब अनेक बार टकराव की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है।

5. औद्योगिक क्षेत्र में धीमी प्रगति के कारण:
बिजली की कमी, आधारभूत उद्योगों की कमी, कच्चे माल अपर्याप्त पूर्ति, मशीनों व तकनीकी के लिए विदेशी निर्भरता, औद्योगिक अशांति, पूँजी की कमी, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की अकार्यकुशलता आदि।
अत: उपरोक्त वर्णित कारणों के परिणामस्वरूप ही नगरीय विकास योजनाएँ सफल नहीं हो सकी हैं।

प्रश्न 6.
नगरों पर आव्रजन के पड़ने वाले दुष्प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नगरों पर आव्रजन के परिणामस्वरूप पड़ने वाले दुष्प्रभावों को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. खाद्य समस्या:
लोगों में आव्रजन की प्रक्रिया के फलस्वरूप नगरों में भूमि की मात्रा सीमित हो जाती है। कई बार नगरों में इसके कारण लोगों की आवश्यकता की तुलना में अनाज का उत्पादन कम पड़ जाता है जिसकी वजह से नगरों के सदस्यों को पर्याप्त एवं संतुलित आहार नहीं मिल पाता है।

2. पँजी निर्माण में कमी:
आव्रजन से जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने पर उपयोग व्यय बढ़ जाता है तथा बचत कम हो जाती है। सरकार को भी सार्वजनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पहले की तुलना में अधिक सार्वजनिक व्यय करना पड़ता है। इस प्रकार व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक बचत कम हो जाती है। इससे देश में पूँजी निर्माण की दर की घट जाती है। पूँजी निर्माण की दर घट जाने से आर्थिक विकास पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

3. निम्न रहन – सहन स्तर:
आव्रजन के उपरांत उपभोग के लिए प्रति व्यक्ति कम वस्तुएँ मिल पाती हैं व रहन – सहन का स्तर घटता जाता है। इससे आवास, चिकित्सा, सफाई, पानी व बिजली, नगरों में गंदी बस्तियों का निर्माण, नैतिक मूल्यों में गिरावट आदि समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कुल मिलाकर उत्पादन में जितनी वृद्धि होती है, उसकी तुलना में उपभोग करने वाले लोगों की संख्या काफी बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप देश के लोगों का रहन – सहन का स्तर गिरने लगता है।

4. भूमि से संबंधित समस्याएँ:
आव्रजन के कारण भूमि पर जनसंख्या का भार बढ़ता जाता है। इसके कारण औसत जोत का आकार घटता जाता है। तथा अनार्थिक जोत की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसी प्रकार, उपविभाजन एवं अपखंडन की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।

5. आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव:

  • आर्थिक विकास के मार्ग में आव्रजन से जनसंख्या में वृद्धि होती है।
  • इससे नगरों में बेरोजगारी व गुप्त बेरोजगारी की समास्या में वृद्धि होती है।
  • परिवहन व संसार साधनों व ऊर्जा स्रात्रों पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है।
  • शिक्षा, स्वास्थ्य एवं जीवन की अन्य अनिवार्य आवश्यकताओं के पूरा न होने से भय की उत्पादकता पर विरीत प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 7.
नगरों में आवासीय समस्या को हल करने के लिए उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नगरों में आवासीय समस्या को हल करने के लिए अनेक उपाय किये गए हैं –
1. आवास वित्त व्यवस्था:
आजादी के बाद भारत में आवास के लिए संस्थागत वित्त व्यवस्था की सुविधाओं में वृद्धि करने की दृष्टि से अनेक कदम उठाए गए हैं। 1970 तक तो जीवन बीमा निगम ही एकमात्र ऐसी सार्वजनिक वित्त संस्था थी जो आवास
निर्माण के लिए ऋण देने का काम करती थी। मध्यम एवं निम्न आय श्रेणी के लोगों को दीर्घकालीन वित्त प्रदान करने की दृष्टि से 1977 में आवास विकास वित्त निगम (HDFC) की स्थापना की गई।

इसके अलावा जीवन बीमा निगम, राज्य हाउसिंग बोर्ड तथा राष्ट्रीयकृत वाणिज्य बैंक आदि भी आवास के लिए वित्त व्यवस्था करते हैं। आवास के लिए अधिक मात्रा में संस्थागत वित्त उपलब्ध कराने और आवास वित्त व्यवस्था से संबंधित संस्थाओं को प्रोत्साहित एवं नियमित करने की दृष्टि से सरकार ने जुलाई, 1988 में राष्ट्रीय आवास बैंक (National Housing Bank) की स्थापना की थी।

यह बैंक आवास क्षेत्र की उपर्युक्त संस्थाओं को पुनर्वित्तपोषण तथा प्रत्यक्ष ऋण के माध्यम से वित्त उपलब्ध कराता है। फुटपाथों पर रहने वाले लोगों के लिए महानगरों और अन्य प्रमुख शहरी केन्द्रों में केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रायोजित रैनबसेरा योजना को क्रियान्वित भी किया गया।

2. राष्ट्रीय बिल्डिंग संगठन:
सामाजिक आर्थिक पहलुओं के साथ – साथ कम लागत वाली बिल्डिंग डिजाइन में शोध करने तथा बिल्डिंग व आवास की दशाओं में सुधार लाने की दृष्टि से राष्ट्रीय बिल्डिंग संगठन की 1954 में स्थापना की गई थी। इन सब पहलुओं से संबंधित जानकारियों तथा आवास आँकड़ों का प्रकाशन किया जाता हैं।

3. केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए आवास:
केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों को आवास की सुविधाएँ प्रदान करने के लिए शहरी कार्य एवं रोजगार मंत्रालय के तत्वाधान में केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी कल्याण आवास संगठन की स्थापना पंजीकृत संस्था के रूप में की गई है।

4. अन्य उपाय:

  • सरकार को नगर नियोजन की प्रणाली पर विशेष बल देना चाहिए।
  • लोगों के लिए सुनियोजित व उचित आय के आधार पर मकानों की व्यवस्था करनी चाहिए।
  • मलिन बस्तियों में रहने वालों लोगों को सस्ते दरों पर मकान के साथ ही अन्य सुविधाएँ भी प्रदान की जानी चाहिए।
  • सार्वजनिक व निजी दोनों ही क्षेत्रों को आवासीय समस्या को दूर करने में अहम् नीति को क्रियान्वित करना चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 6 ग्रामीण समाज में परिवर्तन के उपकरण-पंचायती राज, राजनैतिक दल एवं दबाव समूह

August 20, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 ग्रामीण समाज में परिवर्तन के उपकरण-पंचायती राज, राजनैतिक दल एवं दबाव समूह

RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान के कौन से अनुच्छेद में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है?
(अ) 42वाँ
(ब) 41वाँ
(स) 40वाँ
(द) 39वाँ
उत्तरमाला:
(स) 40वाँ

प्रश्न 2.
श्री बलवन्त राय मेहता अध्ययन दल का गठन कब किया गया?
(अ) 1953
(ब) 1954
(स) 1956
(द) 1957
उत्तरमाला:
(द) 1957

प्रश्न 3.
73वाँ संविधान संशोधन कब किया गया?
(अ) 1992
(ब) 1993
(स) 1994
(द) 1995
उत्तरमाला:
(ब) 1993

प्रश्न 4.
पंचायती राज व्यवस्था कितने स्तर की है?
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तरमाला:
(स) तीन

प्रश्न 5.
भारत में राजनीतिक दलों के गठन का आधार निम्न में से क्या है?
(अ) क्षेत्रीयता
(ब) धर्म
(स) भाषा
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
इनमें से क्षेत्रीयता पर आधारित दल कौनसा है?
(अ) झारखण्ड मुक्ति मोर्चा
(ब) भारतीय जनता पार्टी
(स) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरमाला:
(अ) झारखण्ड मुक्ति मोर्चा

प्रश्न 7.
इनमें से राष्ट्रीय दल कौन सा है?
(अ) अकाली दल
(ब) नेशनल कॉन्फ्रेंस
(स) भारतीय जनता पार्टी
(द) डी.एम.के.
उत्तरमाला:
(स) भारतीय जनता पार्टी

प्रश्न 8.
कौन से दबाव समूह अपनी मांगों को पूर्ण करने में सफल होते हैं?
(अ) शक्तिशाली
(ब) कमजोर
(स) उदार
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) शक्तिशाली

प्रश्न 9.
दबाव समूह एक ………… होते हैं।
(अ) राजनीतिक दल
(ब) प्रशासक
(स) स्वयंसेवी समूह
(द) शासन व सत्ता
उत्तरमाला:
(स) स्वयंसेवी समूह

RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बलवंत राय मेहता के अनुसार पंचायतीराज की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
पंचायती राज की चार विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. पंचायती राज के कर्मचारी जन प्रतिनिधियों के अधीन काम करते हैं।
  2. पंचायती राज संस्थाएँ जनता के लिए निर्वाचित की जाती हैं।
  3. पंचायती राज प्रणाली में स्थानीय लोगों को कार्य करने की छूट होती है।
  4. पंचायती राज के तीन स्तर हैं ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खंड स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद्।

प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक ……… दल है। (क्षेत्रीय/राष्ट्रीय)
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक ‘राष्ट्रीय’ दल है।

प्रश्न 3.
दो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. भारतीय जनता पार्टी।
  2. काँग्रेस पार्टी।

प्रश्न 4.
दो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. झारखंड मुक्ति मोर्चा।
  2. तेलंगाना राष्ट्र समिति।

प्रश्न 5.
दबाव समूह की परिभाषा एवं अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दबाव समूह का अर्थ:
जब हित समूह सत्ता को प्रभावित करने के उद्देश्य से राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय हो जाते हैं, तब ये दबाव समूह बन जाते हैं।

परिभाषा – प्रो. गुप्ता के अनुसार – “दबाव समूह वास्तव में एक ऐसा माध्यम है, जिनके द्वारा सामान्य हित वाले व्यक्ति सार्वजनिक मामलों को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं।”

RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजस्थान में पंचायतीराज की शुरुआत कब व कैसे हुई है?
उत्तर:
राजस्थान में पंचायतीराज:
ग्रामीण सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण एवं सामुदायिक विकास के कार्यक्रमों को सफल बनाने हेतु पंचायतीराज संस्थाएँ मील का पत्थर साबित हुई हैं। जनता की समाज में सहभागिता सुनिश्चित करने एवं सहयोग प्रयोग करने के लिए पंचायतीराज की त्रिस्तरीय व्यवस्था शुरू की गई।

राजस्थान की विधानसभा में 2 सितंबर, 1959 को पंचायतीराज अधिनियम पारित किया गया। इस नियम के प्रावधानों के आधार पर 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायतीराज का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा किया गया। इसके बाद अनेक राज्य में पंचायतीराज व्यवस्था को प्रारंभ किया गया।

प्रश्न 2.
73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतीराज व्यवस्था में क्या प्रावधान किये गये हैं?
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतीराज व्यवस्था में अनेक प्रावधान किये गए हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –

  1. भारतीय संविधान के 73वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को मुख्य रूप से संवैधानिक मान्यता दी गई है।
  2. संविधान में एक नया अध्याय – 9 भी जोड़ा गया है।
  3. अध्याय – 9 द्वारा संविधान में 16 अनुच्छेद और एक अनुसूची – ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गई है।
  4. 25 अप्रैल, 1993 से 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1993 को लागू किया गया है।
  5. 11वीं अनुसूची में 29 विषयों पर पंचायतें कानून बनाकर कार्य करेंगी।

प्रश्न 3.
ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में पंचायतीराज की क्यों आवश्यकता है?
उत्तर:
ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में पंचायतीराज की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है –

  1. भारतीय ग्रामीण समाज में पंचायतीराज व्यवस्था ठोस आधार प्रदान करती है।
  2. पंचायतीराज व्यवस्था ग्रामवासियों में लोकतांत्रिक संगठनों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करती है।
  3. इस व्यवस्था के कारण ये जन प्रतिनिधि ग्रामीण समस्याओं से अवगत होते हैं।
  4. यह स्थानीय समाज व राजनीतिक व्यवस्था के मध्य एक कड़ी का कार्य करते हैं।
  5. पंचायतें अपने नागरिकों को राजनीतिक अधिकारों के प्रयोग की शिक्षा प्रदान करती हैं।

प्रश्न 4.
राजनीतिक दलों की कोई पाँच विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
राजनीतिक दलों की पाँच विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. प्रत्येक राजनीतिक दलों की अपनी विशिष्ट नीतियाँ व उद्देश्य होते हैं।
  2. प्रत्येक राजनीतिक दल अनेक प्रकार के कार्यक्रमों का क्रियान्वयन व संचालन करते हैं।
  3. राजनीतिक दल औपचारिक सदस्यों वाले लोगों की एक संगठित संस्था होती है।
  4. सभी राजनीतिक दलों का लक्ष्य सत्ता को लोकतांत्रिक ढंग से प्राप्त करना है।
  5. सभी राजनीतिक दलों का अहम् कार्य सरकार को नागरिकों की समस्या से अवगत कराना है।

प्रश्न 5.
राजनीतिक दलों के गठन के 5 आधार लिखिए।
उत्तर:
राजनीतिक दलों के 5 आधार निम्न प्रकार से हैं –

  1. धार्मिक आधार: कुछ राजनीतिक दलों का गठन धार्मिक आधारों पर किया जाता है, जिससे लोगों को धार्मिक आधार पर सुरक्षा प्राप्त हो सके। मुस्लिम लीग व अकाली दल इसके उदाहरण हैं।
  2. भाषायी आधार: कुछ राजनीतिक दलों को भाषायी आधार पर गठित किया जाता है जैसे डी. एम. के. आदि।
  3. क्षेत्रीयता के आधार पर: क्षेत्रीय समानता के आधार पर क्षेत्रीय राजनीतिक दल गठित किये जाते हैं, जैसे झारखंड मुक्ति मोर्चा आदि।
  4. वातावरण के आधार पर: राजनीतिक दलों पर व्यक्ति की सोच व स्वभाव का प्रभाव पड़ता है जिससे राजनीतिक दलों का निर्माण किया जाता है।
  5. मनोवैज्ञानिक आधार: मानसिक आधार पर समान सोच या विचार रखने वाले व्यक्ति अपने अलग राजनीतिक दलों को गठित करते हैं।

प्रश्न 6.
राजनीतिक दल का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
राजनीतिक दल नागरिकों के उस संगठित समुदाय को कहते हैं, जिसके सदस्य समान राजनैतिक विचार रखते हैं और जो एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हुए शासन को अपने हाथ में रखने की चेष्टा करते हैं।

लक्षण:

  1. यह दल लोगों की समस्याओं का निवारण करता है।
  2. यह दल राजनीतिक प्रक्रिया को जोड़ने व सरल बनाने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 7.
दबाव समूहों का उदाहरण सहित वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
(1) सामाजिक सांस्कृतिक दबाव समूह:

  • ऐसे दबाव समूह सामुदायिक सेवाओं से संबंधित होते हैं।
  • ये संपूर्ण समुदायों के हितों को बढ़ावा देते हैं।
  • यह भाषा एवं धर्म प्रचार का कार्य भी करते हैं जैसे – आर्य समाज, तथा रामकृष्ण मिशन आदि।

(2) संस्थागत दबाव समूह:

  • ऐसे दबाव समूह सरकारी तंत्र के अंतर्गत ही कार्य करते हैं।
  • ये दबाव समूह राजनीतिक पद्धति में सम्मिलित हुए बिना ही सरकार की नीतियों को अपने हितों के लिए प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 8.
भारतीय दबाव समूह की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारतीय दबाव समूह की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  • दबाव समूहों पर राजनीतिक दलों का नियंत्रण होता है।
  • दबाव समूह सरकार के निर्णयों को प्रभावित करते हैं।
  • यह केन्द्र की निर्धारित फैसलों को भी प्रभावित करते हैं।
  • भारत में परंपरावादी दबाव समूह जैसे – जति व धर्म के आधार पर दबाव समूह बनते हैं।

प्रश्न 9.
“लॉबी’ क्या है? ये सरकारी निर्णयों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
दबाव समूहों की गतिविधियाँ ‘लॉबी’ नाम से प्रचलित है। ‘लॉबी’ एक अमरीकी शब्द है, लेकिन इसका प्रयोग आजकल यूरोप के देश जापान एवं अन्य देशों में भी किया जाता है। यह सदन के भीतर लॉबी की ओर इंगित करता है। जहाँ सदस्य व विधायक सदन से संबंधित कार्यवाहियों पर चर्चा करते हैं।

‘लॉबी’ शब्द को हीन दृष्टि से देखा जाता है और इसे धोखा, भ्रष्टाचार तथा बुराई आदि का प्रतीक माना जाता है। लोकतंत्र के सहयोगी के रूप में भी इसे जाना जाता है।

‘लॉबी’ का महत्त्व अब राजनीतिक क्रियाशीलता एवं सार्वजनिक नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए भी स्वीकार किया जाने लगा है। दबाव समूह या लॉबी सरकार व प्रशासन की नीतियों को प्रभावित करते हैं। विदेशी लॉबी विदेशी सरकार एवं गैर – सरकारी हितों के लिए कार्य करती है। ये ‘लॉबियाँ’ आर्थिक सहायता एवं प्रशासकों को विदेशी कंपनियों में ऊँचे पद देकर सरकारी फैसलों को प्रभावित करती है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रामीण विकास में पंचायतीराज की भूमिका की विस्तृत व्याख्या करें।
उत्तर:
भारतीय संविधान में 1993 से 73वें संशोधन द्वारा पंचायतीराज अधिनियम, 1993 लागू किया गया है। अब तक पंचायतीराज ने अनेक उपलब्धियाँ हासिल की हैं व भारत में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के द्वारा भारत के ग्रामीण, सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो निम्नलिखित है –
1. आर्थिक विकास में वृद्धि:
पंचायतीराज की स्थापना से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिला है। अनेक लोगों को रोजगार के नए अवसर प्राप्त हुए हैं।

2. जन:
सहभागिता में बढ़ोत्तरी – पंचायतीराज से अनेक क्षेत्रों में विशेष तौर पर आम जनों की सहभागिता में वृद्धि हुई है। उनमें नवीन कार्यों के प्रति जागरूकता का समावेश हुआ है।

3. कमजोर वर्गों के हितों को बढ़ावा:
यह व्यवस्था ग्रामीण कार्यक्रमों में कमजोर व पिछड़े वर्गों को सहायता प्रदान करती है जिससे उनकी स्थिति में काफी सुधार संभव हुआ है।

4. शिक्षा का प्रसार:
पंचायतीराज व्यवस्था ने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की प्रणाली के प्रचार व प्रसार में काफी योगदान दिया है। इससे दूरस्थ स्थानों पर रहने वाले सदस्यों को भी इसका लाभ मिला है। इससे लोगों की सोच या मानसिकता में बदलाव दृष्टिगोचर हुए व साथ ही अपने अधिकारों के प्रति उनमें सजगता का भी समावेश हुआ है।

5. सार्वजनिक स्वच्छता पर बल:
पंचायतीराज व्यवस्था के फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में अब काफी विकास हुआ है तथा परिवर्तन भी देखने को मिलता है। पक्की सड़कों का निर्माण हुआ है, पक्की निवास के लिए व्यवस्था की गयी है। अब गांव में रहने वाले सदस्य अपनी आस – पास की सफाई का भी ध्यान रखते हैं व स्वयं भी सफाई व स्वच्छता से रहते हैं।

6. सामूहिक भावना को प्रोत्साहन:
इस व्यवस्था ने गांव के सदस्यों में हम की भावना का प्रयास किया है, उन्हें एकता के सूत्र में बांधने के लिए काफी प्रयास किये हैं। इससे उनमें सामुदायिक भावना की विशेषता दृष्टिगोचर रहती है। इस प्रकार से लोगों में सामुदायिकता या एकीकरण की भावना के अंश दृष्टिगोचर हुए हैं।

7. समानता पर बल:
पंचायतीराज प्रणाली का अहम् उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले सदस्यों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराना था। जिससे सभी नागरिकों को स्वयं के विकास के लिए उचित अवसर प्राप्त हो सकें व उचित प्रकार से अपना जीवन – यापन कर सके।

8. पंचायतीराज की अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाएँ या कार्य:

  • लोगों के जीवन – स्तर में सुधार करना।
  • ग्रामीण जनता में नई आशा व विश्वास को उत्पन्न करना।
  • इससे लोगों में राजनीति के प्रति सक्रियता की भावना का उदय हुआ है।
  • इससे लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण को बल मिला है।
  • इससे ग्रामीण क्षेत्रों में नवीन प्रतिमानों के उदय को बल मिला है।

प्रश्न 2.
वर्तमान पंचायतीराज व्यवस्था की समस्याएँ एवं उनके समाधान के उपाय लिखो।
उत्तर:
वर्तमान पंचायतीराज व्यवस्था की समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

  1. अशिक्षा:
    ग्रामीण जनता अधिकांशतः अशिक्षित है। जिससे वह इस व्यवस्था का महत्त्व समझ ही नहीं पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप वे विकास नहीं कर पा रहे हैं तथा ग्रामीण नेतृत्त्व भी विकसित नहीं हो पा रहा है।
  2. सहयोग का अभाव:
    ज्ञान के अभाव में ग्रामीण जनता इस प्रणाली के महत्त्व के विषय में अनभिज्ञ पायी गई व उनके इस अज्ञानता के कारण वे पंचायतीराज प्रणाली के सदस्यों को अपना पूर्ण सहयोग भी नहीं भी दे पाते हैं।
  3. वित्त की समस्या:
    पंचायतीराज संस्थाओं को उनके विकास के लिए पर्याप्त आर्थिक स्रोत उपलब्ध नहीं कराये गये हैं। संस्थाओं को शासकीय अनुदानों पर ही विकास कार्यों को करना पड़ता है। धन के अभाव के कारण पंचायतें विकास कार्य कराने में असफल रही हैं।
  4. योग्य नेतृत्व का अभाव:
    पेशेवर नेता सार्वजनिक हित के स्थान पर स्व हित को ही आर्थिक प्राथमिकता देते हैं। जिसके परिणामस्वरूप इस व्यवस्था में एक योग्य नेतृत्त्व का अभाव पाया जाता है। जिससे पंचायतीराज का कार्य समुचित प्रकार से क्रियान्वनित नहीं हो पाता है।
  5. जातिवाद की भावना:
    कुछ नेता जातिवाद के आधार पर स्व हितों की पूर्ति में लीन हो जाते हैं। वे केवल अपने जाति सदस्यों को ही महत्त्व देते हैं जिससे इस व्यवस्था की स्थिति काफी दयनीय हो जाती है।
  6. योग्य कर्मचारियों का अभाव:
    कार्यों को उचित रूप में करवाने के लिए इस प्रणाली में योग्य व्यक्तियों का अभाव पाया जाता है जिससे विकास कार्यों में संचालन में बाधा उत्पन्न होती है।
  7. विकास कार्यों की उपेक्षा:
    शासकीय अधिकारियों एवं जन प्रतिनिधियों के असहयोग के कारण विकास कार्यों की लगातार उपेक्षा होती रहती है।
  8. राजनीति जागरूकता में कमी:
    ग्रामीण लोगों का अधिकांश समय जीवन – यापन एवं परिवार के पालन – पोषण पर ही व्यतीत हो जाता है। ग्रामीण नागरिकों में अभी भी राजनीतिक जागरूकता का अभाव पाया जाता है।

समस्याओं के समाधान के उपाय:

  1. पंचायती राज व्यवस्था में योग्य प्रशिक्षित कर्मचारियों का चयन किया जाना चाहिए।
  2. पंचायती राज संस्थाओं में व्याप्त गुटबंदी को समाप्त किया जाना चाहिए।
  3. पंचायत में विकास कार्य हेतु पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
  4. पंचायतों को जातिवाद से दूर रखा जाना चाहिए।
  5. पंचायत चुनावों में मतदान प्रणाली को सदस्यों के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए।
  6. पंचायततों में चुनाव की प्रक्रिया सरल, सुगम व गुप्त होनी चाहिए।
  7. निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  8. लोगों को जन – सहभागिता के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
  9. लोगों के लिए शिक्षा की व्यवस्था पर जोर देना चाहिए।
  10. अधिकारियों में पाए जाने वाले तनावों को कम करने के प्रयास किये जाने चाहिए।

प्रश्न 3.
पंचायतीराज संस्थाओं द्वारा ग्रामीण समाज में हुए परिवर्तन पर लेख लिखो।
उत्तर:
पंचायतीराज संस्थाओं द्वारा ग्रामीण समाज में हुए परिवर्तनों को अग्रलिखित बिंदुओं के माध्यम से दर्शाया जा सकता है –
1. महिलाओं की भागीदारी:
पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 33% आरक्षण प्रदान किया गया है जिससे इस व्यवस्था में उनकी भागीदारी निश्चित हो जाती है।

2. ग्रामीण सत्ता का विकेन्द्रीकरण:
जहाँ सत्ता पहले कुछ हाथों में ही पायी जाती थी। अब पंचायतीराज व्यवस्था की स्थापना के परिणामस्वरूप ग्रामीण सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो गया है अर्थात् सत्ता की डोर अब कुछ व्यक्तियों के हाथों में न होकर सब के हाथों में आ गयी है।

3. शिक्षा के स्तर में वृद्धि:
जहाँ पहले गाँव के सदस्यों व बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। अब पंचायतीराज व्यवस्था के कारण वयस्क सदस्यों के लिए प्रौढ़ कार्यक्रम व बालकों व बालिकाओं के लिए विद्यालयों की स्थापना की गई है। जिससे दूरस्थ स्थानों पर भी लोगों को शिक्षा प्राप्ति के अवसर हुए हैं।

4. लोकतांत्रिक प्रणाली को बढ़ावा:
इस व्यवस्था से लोगों में लोकतंत्र के गुणों का समावेश होते हुए परिवर्तन को देखा गया है। इससे ग्रामीण समाज में न्याय व समानता की भावना को बल मिला है तथा मतदान प्रणाली में भी लोगों में जागरूकता का संचार हुआ है।

5. स्वच्छता:
पंचायतीराज व्यवस्था ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता संबंधी अनेक अभियानों का संचालन किया है, जिसके कारण गाँव के सदस्यों में सफाई की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है व लोगों में पायी जाने वाली बीमारियाँ भी कम हुई हैं।

6. कृषि विकास कार्यक्रम को बढ़ावा:
पंचायतीराज व्यवस्था से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि में काफी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। कृषि में नवीन तकनीक, उपकरण व नये बीज के कारण खेती में काफी पैदावार हुई है। किसानों को कृषि विकास कार्यक्रम के जरिये नई विधियों का ज्ञान हुआ है।

7. भेदभाव में कमी:
ग्रामीण समाजों में जो जाति का धर्म के आधार पर लोगों के साथ जो भेदभाव की नीति अपनायी जाती थी, उसमें कमी आयी है। ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पृश्यता एवं छुआछूत की भावना का इस हुआ है।

8. प्रकाश व सड़कों की व्यवस्था:
पंचायतीराज व्यवस्था ने गाँवों में समुचित बिजली, पानी, पक्की नालियाँ व शहरों से जोड़ने के लिए पक्की सड़कों का निर्माण करवाया है जिससे लोगों को अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं।

9. जीवन स्तर में सुधार:
पंचायतीराज प्रणाली ने ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को अनेक सुख – सुविधाएँ उपलब्ध करायी हैं जिससे उनके जीवन – स्तर में अत्यधिक सुधार हुआ है।

10. ग्रामीण क्षेत्रों में हुए अन्य परिवर्तन:

  • रोजगार के नए अवसरों की प्राप्ति।
  • महिलाओं के स्वास्थ्य व बच्चों के टीकाकरण पर विशेष बल दिया गया।
  • लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आयी है।
  • उनको अपने कर्तव्यों के विषय में जानकारी प्राप्त हुई है।
  • पंचायतीराज के कारण निम्न स्तर के लोगों को उच्च स्तर के लोगों के शोषण से मुक्ति मिली है।

प्रश्न 4.
राजनीतिक दल की परिभाषा लिखते हुए उसके महत्त्वपूर्ण कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर:
“राजनीतिक दल लोगों की एक संगठित संस्था है, जिनमें देश व समाज की राजनीतिक व्यवस्था के संबंध में सर्वमान्य सिद्धांत व लक्ष्य होते हैं।”

राजनीतिक दलों के महत्त्वपूर्ण कार्य:

  1. चुनावों का संचालन:
    राजनीतिक दल चुनावों से संबंधित सभी प्रक्रियाओं का संचालन करते हैं। जैसे – घोषणा – पत्र को जारी करना व उनका प्रचार – प्रसार करना आदि।
  2. सदस्यों की समस्याओं से सरकार को अवगत कराना:
    राजनीतिक दल सदस्यों की समस्याओं से सरकार को अवगत कराने का एक मुख्य कार्य करते हैं जिससे सदस्यों की समस्याओं को दूर करने की उचित नीतियाँ बनायी जा सकें व उन्हें उचित समय पर क्रियान्वित भी किया जा सके।
  3. शासन का संचालन:
    राजनीतिक दल चुनाव में बहुमत प्राप्त कर सरकार का निर्माण करते हैं जिससे शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाया जा सके।
  4. नीतियों का निर्माण:
    राजनीतिक दल जनता के विकास व उनके हितों की रक्षा के लिए उचित व सशक्त नीतियों का निर्माण करते हैं जिससे उनके जीवन में कल्याण हो सके व समस्त सुविधाओं का लाभ भी उठा सके।
  5. शासन व जनता के मध्य एक कड़ी का कार्य करना:
    राजनीतिक दल जनता की इच्छाओं व समस्याओं को सरकार के समक्ष रखते हैं। जनता की स्थिति से सरकार को अवगत कराते हैं। इस प्रकार से राजनीतिक दल सरकार एवं जनता के बीच मध्यस्थ का कार्य करते हैं।
  6. लोकमत का निर्माण करना:
    राजनीतिक दलों के अभाव में जनता दिशाहीन हो सकती है। इस कारणवश राजनीतिक दल शासन की नीतियों पर लोकमत प्राप्त करते हैं।
  7. सामाजिक व सांस्कृतिक कार्य:
    समाज में राजनीतिक दल सदस्यों के सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन को ऊँचा उठाने का अहम् कार्य भी करते हैं।
  8. उत्थान के लिए कार्य करना:
    राजनीतिक दल समाज में जनता के कल्याण के लिए व उनके जीवन को उन्नत करने के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाओं का सृजन भी करते हैं।

प्रश्न 5.
राजनीतिक दलों के सामाजिक आधार का लोकतंत्र पर प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में राजनीतिक दलों द्वारा निम्न सामाजिक आधारों पर भारतीय लोकतंत्र पर अपना प्रभाव डाला है –

सकारात्मक प्रभाव:

  • राजनीतिक दलों ने भारत के गरीब मजदूर एवं किसानों के हितों को लाभबन्द कर भारत की सत्ता में उनकी भागीदारी निश्चित की है।
  • राजनीतिक दलों ने धर्म के आधार पर सरकारी निर्णय को संतुलित बनाये रखने में सहयोग दिया है।
  • राजनीतिक दलों के योगदान के कारण ही भारत में समता मूलक समाज का निर्माण होने में सहायता मिली है।
  • राजनीतिक दलों के कारण ही निम्न वर्ग एवं पिछड़ी जातियों को उनकी सत्ता में सहभागिता को सुनिश्चित कराया है।
  • राजनीतिक दलों ने निम्न जातियों में राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न कर मतदान करने के लिए प्रेरित किया है।

नकारात्मक प्रभाव:

  • राजनीतिक दलों ने समाज को अनेक जातीय समूह में विभक्त कर दिया है।
  • राजनीतिक दलों ने समाज में जातिगत तनावों व संघर्ष को जन्म दिया है।
  • राजनीतिक दलों ने समाज में विषमता की जड़ें को काफी गहरा किया है।
  • राजनीतिक दलों ने देश में क्षेत्रवाद व भाषावाद जैसी समस्याओं को समाज में उत्पन्न किया है।
  • राजनीतिक दलों ने अपने स्वार्थपूण हितों की पूर्ति की है।
  • राजनीतिक दलों ने समाज में वर्ग – विभेद की समस्या को बढ़ावा दिया है।
  • राजनीतिक दलों ने राष्ट्रीय भावना के स्थान पर क्षेत्रीय भावना को अधिक महत्त्व दिया है।

प्रश्न 6.
वर्तमान राजनीतिक दलों की चुनौतियाँ एवं समाधान हेतु अपने सुझाव व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
समाज में राजनीतिक दलों की चुनौतियाँ निम्न प्रकार से हैं –

  • धन के बढ़ते प्रभाव के कारण आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों की राजनीतिक दलों में भागादारी कमजोर हुई है।
  • राजनीतिक दलों में अपराधीकरण के कारण योग्य एवं ईमानदार व्यक्तियों में राजनीति के प्रति उदासीनता बढ़ी है।
  • राजनीतिक दलों में अनेक विकल्प होने से मतदाता भ्रमित हो जाते हैं।
  • राजनीतिक दलों में दल बदल के कारण भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
  • राजनीतिक दलों में पूरी तरह से लोकतंत्र कायम नहीं हो पाया है।
  • राजनीतिक दलों में भाई – भतीजावाद की प्रवृत्ति पायी जाती है।

उपाय:

  • अपराधी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने पर रोक लगानी चाहिए।
  • चुनाव के लिए उम्मीदवारों की योग्यता निर्धारित करनी चाहिए।
  • राजनीतिक दलों में अपराधीकरण को रोकने के लिए सख्त कानून बनाना चाहिए।
  • चुनाव के समय जनता को लुभाने वाली योजनाओं पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
  • सरकार को चुनाव का खर्च स्वयं वहन करना चाहिए।
  • चुनाव के समय सभी राजनीतिक दलों को आचार – संहिता को पालन करने के लिए बाध्य करना चाहिए।
  • चुनावों में खर्च होने वाली राशि की एक निश्चित सीमा बनायी जाए।

प्रश्न 7.
सार्वजनिक एवं सामाजिक हित में दवाब समूह के कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दवाब समूह के निम्नलिखित कार्यों का उल्लेख इस प्रकार से है –

  1. ये समूह राजनीतिक दलों की तरह चुनावों में भाग नहीं लेते।
  2. ये समूह राजनीतिक में अपनी एक अहम् भूमिका निभाते हैं।
  3. लोकतंत्र की सफलता के लिए ये लोकमत तैयार करते हैं।
  4. दबाव समूह सरकार को कठिनाइयों से परिचित कराते हैं।
  5. यह समूह सरकार की निरंकुशता को रोकते हैं।
  6. ये समूह शोध के लिए आंकड़ों को एकत्रित करते हैं।
  7. इन समूहों के कारण प्रभावशील सत्ता का उदय नहीं होता है।
  8. यह सामाजिक हितों के लिए संतुलन बनाये रखने का कार्य करते हैं।
  9. दबाव समूह अपने हितों के लिए सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं।
  10. ये समूह जनता व सरकार के मध्य एक कड़ी का कार्य करते हैं।
  11. इन समूहों का संबंध मीडिया, प्रशासन व सरकार से होता है।
  12. ये दबाव समूह भाषा एवं धर्म प्रचार के लिए कार्य करते हैं।
  13. ये समूह प्राकृतिक आपदाओं के समय सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं।
  14. ये समूह संपूर्ण समुदाय के हितों को बढ़ावा देने के लिए कार्य करते हैं।
  15. जनमत को लामबंद करने में दबाव समूह अपनी प्रमुख भूमिका का निर्वाह करते हैं।
  16. ये समूह अनेक माध्यमों के द्वारा सरकार पर अपना दबाव बनाते हैं।
  17. यह व्यक्तिगत हितों के साथ राष्ट्रीय हितों में भी सामंजस्य स्थापित करते हैं।

प्रश्न 8.
वर्तमान राजनीति में दबाव समूह की आवश्यकता पर लेख लिखिए।
उत्तर:
वर्तमान राजनीति में दबाव समूह की आवश्यकता को निम्न बिंदुओं के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. भारत में दबाव समूह राष्ट्रीय जागरूकता एवं वर्ग – चेतना को सुनिश्चित का एक ठोस आधार प्रदान करते हैं।
  2. यह समाज में शिक्षा व कर्मचारियों को जनमत द्वारा लामबंद करते हैं।
  3. यह अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं।
  4. कुछ दबाव समूह भाषा एवं धर्म के प्रचार के लिए कार्य करते हैं।
  5. दबाव समूह प्रभावशाली नेतृत्त्व का निर्माण करते हैं तथा भविष्य में नेताओं को एक प्रशिक्षण मंच मुहैया कराते हैं।
  6. ये दबाव समूह आर्थिक एवं वाणिज्य नीतियों पर सरकार के विचार सुनते हैं व उन्हें अपनी सलाह देकर प्रभावित करते हैं।
  7. ये समाज के लोगों को सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।
  8. ये समूह समाज के अनेक परंपरागत मूल्यों के बीच पाये जाने वाले अंतर को कम करने का प्रयास करते हैं।
  9. ये लोगों के कल्याण के लिए कार्य करते हैं जिसमें उनका जीवन – स्तर समाज में उच्च हो सके।
  10. यह समूह राज व्यवस्था को स्थिरता प्रदान करते हैं।
  11. यह समूह सामाजिक व राजनीतिक प्रणाली में अपनी एक अहम् भूमिका का निर्वाह करते हैं।
  12. ये समाज में विषमता को कम करते हुए लोगों के मध्य एकात्मकता या एकीकरण की भावना का संचार करते हैं जिसमें लोगों में आपसी दूरी कम हो और वह मिलकर एक साथ कार्य करें।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
“यदि गांव नष्ट होते हैं तो भारत नष्ट हो जाएगा”, यह कथन किसका है?
(अ) गांधी जी
(ब) नेहरू जी
(स) गोखले जी
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) गांधी जी

प्रश्न 2.
किस वर्ष पंचायती राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दी गई?
(अ) 1992
(ब) 1993
(स) 1994
(द) 1995
उत्तरमाला:
(ब) 1993

प्रश्न 3.
किस अनुसूची में पंचायतों के कार्यों के व्यापक प्रबंध किये गए?
(अ) 9वीं
(ब) 10वीं
(स) 11वीं
(द) 12वीं
उत्तरमाला:
(स) 11वीं

प्रश्न 4.
श्री बलवंत राय मेहता समिति का गठन कब हुआ?
(अ) 1954
(ब) 1955
(स) 1956
(द) 1957
उत्तरमाला:
(द) 1957

प्रश्न 5.
देश की प्रगति किस पर निर्भर है?
(अ) गांवों पर
(ब) कस्बों पर
(स) नगरों पर
(द) काई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) गांवों पर

प्रश्न 6.
मेहता अध्ययन दल ने अपनी रिपोर्ट को किस नाम से संबोधित किया?
(अ) पूँजी विकेन्द्रीकरण
(ब) लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण
(स) समाजवादी विकेन्द्रीकरण
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण

प्रश्न 7.
73वां संविधान संशोधन अधिनियम कब लागू किया गया?
(अ) 20 अप्रैल, 1993
(ब) 21 अप्रैल, 1993
(स) 23 अप्रैल, 1993
(द) 25 अप्रैल, 1993
उत्तरमाला:
(द) 25 अप्रैल, 1993

प्रश्न 8.
पंचायतीराज को कितने स्तरों की व्यवस्था माना जाता है?
(अ) द्विस्तरीय
(ब) त्रिस्तरीय
(स) पंचस्तरीय
(द) सभी
उत्तरमाला:
(ब) त्रिस्तरीय

प्रश्न 9.
किस अनुच्छेद में त्रिस्तरीय पंचायतीराज का प्रावधान है?
(अ) 241 (अ)
(ब) 242 (ब)
(स) 243 (ख)
(द) 244 (स)
उत्तरमाला:
(स) 243 (ख)

प्रश्न 10.
पंचायतीराज संस्थाओं का कार्यकाल कितने वर्षों का है?
(अ) 2 वर्ष
(ब) 3 वर्ष
(स) 4 वर्ष
(द) 5 वर्ष
उत्तरमाला:
(द) 5 वर्ष

प्रश्न 11.
11वीं अनुसूची में कितने विषयों को शामिल किया गया है?
(अ) 15
(ब) 20
(स) 25
(द) 29
उत्तरमाला:
(द) 29

प्रश्न 12.
पंचायतों में महिलाओं के लिए कितने प्रतिशत स्थान आरक्षित किया गया है?
(अ) 30%
(ब) 33%
(स) 36%
(द) 40%
उत्तरमाला:
(ब) 33%

प्रश्न 13.
पंचायतीराज का उद्घाटन किस जिले में किया गया था?
(अ) नागौर
(ब) कानपुर
(स) सहारनपुर
(द) जयपुर
उत्तरमाला:
(अ) नागौर

प्रश्न 14.
राजस्थान में कुल कितनी पंचायत समितियाँ हैं?
(अ) 236
(ब) 237
(स) 240
(द) 242
उत्तरमाला:
(ब) 237

प्रश्न 15.
देश में पंचायतीराज की शुरुआत को कैसी घटना मानी जाती है?
(अ) सामाजिक
(ब) आर्थिक
(स) ऐतिहासिक
(द) सांस्कृतिक
उत्तरमाला:
(स) ऐतिहासिक

प्रश्न 16.
पंचायतीराज अधिनियम किस वर्ष पारित किया गया?
(अ) 1956
(ब) 1957
(स) 1958
(द) 1959
उत्तरमाला:
(द) 1959

प्रश्न 17.
फिक्की किस क्षेत्र का प्रभावशाली संगठन है?
(अ) सार्वजनिक
(ब) मिश्रित
(स) निजी
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) निजी

प्रश्न 18.
‘लॉबी’ किस भाषा का शब्द है?
(अ) अमरीकी
(ब) पुर्तगाली
(स) ग्रीक
(द) लैटिन
उत्तरमाला:
(अ) अमरीकी

प्रश्न 19.
केन्द्र व राज्यों में जब सत्ता शक्तिशाली होती है, तब दबाव समूह की स्थिति कैसी होती है?
(अ) शक्तिशाली
(ब) कमजोर
(स) मिश्रित
(द) सभी
उत्तरमाला:
(ब) कमजोर

प्रश्न 20.
सरपंच की अनुपस्थित में कार्यों का संचालन कौन करता है?
(अ) सचिव
(ब) प्रधान
(स) उप – सरपंच
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) उप – सरपंच

RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायतराज संस्था को संवैधानिक मान्यता कब प्रदान की गई?
उत्तर:
संविधान का 73वाँ संशोधन, वर्ष 1993 में पंचायतराज को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।

प्रश्न 2.
पंचायतीराज की शुरुआत क्यों की गई?
उत्तर:
लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण तथा विकास कार्यक्रमों में जनता का सहयोग लेने के ध्येय से पंचायतीराज की शुरुआत की गई।

प्रश्न 3.
पंचायतों का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
पंचायतों का मूल उद्देश्य ग्रामीण समाज के विकास के प्रयासों और जनता के बीच तारतम्य स्थापित करना है।

प्रश्न 4.
पंचायतीराज का कार्यकाल कितना है?
उत्तर:
पंचायतीराज का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए निश्चित किया गया है।

प्रश्न 5.
पंचायत के किस अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप में किया जाता है?
उत्तर:
मध्यवर्ती तथा जिला – स्तर के पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।

प्रश्न 6.
पंचायत के वित्त आयोग का गठन कौन करता है?
उत्तर:
राज्य के राज्यपाल के द्वारा पंचायत के वित्त आयोग का गठन किया जाता है।

प्रश्न 7.
महाराष्ट्र में पंचायतीराज का उद्घाटन कब हुआ था?
उत्तर:
वर्ष 1962 में महाराष्ट्र में पंचायती राज का उद्घाटन हुआ था।

प्रश्न 8.
राजस्थान में नया पंचायतीराज अधिनियम कब बनाया गया?
उत्तर:
वर्ष 1994 में संशोधन करके पंचायतीराज अधिनियम बनाया गया।

प्रश्न 9.
पंचायतीराज की शुरुआत किस प्रधानमंत्री ने की थी?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू ने सर्वप्रथम पंचायतीराज की शुरुआत 2 अक्टूबर, 1959 में राजस्थान के जिले नागौर से की थी।

प्रश्न 10.
ग्राम पंचायत का अध्यक्ष कौन होता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत का अध्यक्ष सरपंच होता है जो ग्राम पंचायत के समस्त कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है।

प्रश्न 11.
पंचायतीराज की सबसे निचले स्तर की संस्था कौन – सी है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत पंचायतीराज की सबसे निचले स्तर की एक महत्त्वपूर्ण संस्था है।

प्रश्न 12.
पंचायतीराज व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण स्तर किसे माना जाता है?
उत्तर:
त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण स्तर ‘पंचायत समिति’ को माना गया है।

प्रश्न 13.
ग्राम पंचायत के कार्यों का प्रावधान किस अनुसूची में किया गया है?
उत्तर:
पंचायतीराज अधिनियम 1994 की प्रथम अनुसूची में ग्राम पंचायत के कार्यों के संबंध में प्रावधान किये गए हैं।

प्रश्न 14.
पंचायत समिति की स्थापना किस प्रकार से की गई है?
उत्तर:
पूरे जिले को कुछ खण्डों में विभाजित कर प्रत्येक खण्ड स्तर पर पंचायत समिति की स्थापना की गई है।

प्रश्न 15.
पंचायत समिति में होने वाली बैठकों की अध्यक्षता कौन करता है?
उत्तर:
पंचायत समिति का प्रधान परिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करता है एवं प्रशासनिक तंत्र पर नियत्रंण व पर्यवेक्षण भी करता है।

प्रश्न 16.
बैठक का कोरम कब पूर्ण माना जाता है?
उत्तर:
बैठक का कोरम तब पूरा माना जाता है, जब कुल सदस्यों में एक – तिहाई सदस्य बैठक में उपस्थित हों।

प्रश्न 17.
जिला परिषद् के लिए निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या कौन निर्धारित करता है?
उत्तर:
राज्य सरकार जिला परिषद् के लिए निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या निर्धारित करती है।

प्रश्न 18.
अन्य वर्गों के लिए निर्वाचन में स्थान किस आधार पर आरक्षित किये जायेंगे?
उत्तर:
अन्य वर्गों के लिए उनकी जनसंख्या के आधार पर स्थान चक्रानुक्रम के आधार पर आरक्षित किये जायेंगे।

प्रश्न 19.
परिषद् का निर्माण कौन करता है?
उत्तर:
जनता द्वारा निर्वाचित सदस्य ही परिषद् का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 20.
अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को परिषद् में किस नाम से संबोधित किया जाता है?
उत्तर:
अध्यक्ष को ‘जिला प्रमुख’ एवं उपाध्यक्ष को ‘उप – जिला प्रमुख’ कहा जाता है।

प्रश्न 21.
जिला परिषद् की बैठकें कब आयोजित की जाती हैं?
उत्तर:
जिला परिषद् की बैठकें 3 माह में एक बार आयोजित की जाती हैं, जो जिला परिषद् मुख्यालय पर होती हैं।

प्रश्न 22.
निर्वाचन के बाद प्रथम बैठक कौन आयोजित करता है?
उत्तर:
निर्वाचन के पश्चात् प्रथम बैठक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) द्वारा आयोजित की जाती है।

प्रश्न 23.
बैठक में निर्णय किस आधार पर लिये जाते हैं?
उत्तर:
बैठक में सभी निर्णय बहुमत के आधार पर लिये जाते हैं।

प्रश्न 24.
भाषा व धर्म का प्रचार करने वाले दो दबाव समूहों का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. संस्कृत साहित्य अकादमी।
  2. शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी।

प्रश्न 25.
दो संस्थागत समूहों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सिविल सर्विस एसोसिएशन।
  2. पुलिस वेलफेयर संगठन।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 लधूसरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायतराज की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
पंचायतराज की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. सभी पंचायती राज संस्थाएँ जनता द्वारा निर्वाचित होती हैं।
  2. पारस्परिक तनावों और संघर्षों को कम करके स्थानीय आधार पर न्याय प्रणाली की स्थापना करना।
  3. इसकी मुख्य विशेषता ग्रामीण समाज को स्वावलंबी व स्व – शासित बनाना है।
  4. ग्रामीण जीवन पद्धति का विकास करना।
  5. ग्रामीण क्षेत्रों को एक सुसंगठित इकाई बनाना है।

प्रश्न 2.
पंचायतीराज व्यवस्था के मुख्य उद्देश्य बनाइए।
उत्तर:
पंचायतीराज व्यवस्था के मुख्य उद्देश्य:

  1. कृषि उत्पादन में वृद्धि करके ग्रामीण समाज को आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बनाना तथा देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाना पंचायतराज का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
  2. ग्रामों में लघु उद्योगों का विस्तार करना भी पंचायतराज का उद्देश्य है।
  3. देश में सहकारिता का विस्तार करना।
  4. सत्ता का विकेन्द्रीकरण करके स्थानीय प्रतिनिधियों का सामाजिक, आर्थिक नियोजन, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था से संबंधित अधिकार प्रदान करना और लोकतांत्रिक प्रणाली का विस्तार करना।

प्रश्न 3.
पंचायत व्यवस्था के विकास में मुख्य बाधाएँ क्या हैं?
उत्तर:
पंचायत व्यवस्था के विकास में अनेक बाधाएँ हैं –

  1. लोगों में राजनीतिक चेतना का पाया जाना।
  2. ग्रामों में परपंरागत अधिनायकवादी प्रवृत्ति का पाया जाना।
  3. गांवों में प्रभु जाति व उच्च वर्गों का प्रभुत्व का पाया जाना।
  4. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयंसेवी संगठनों की निष्क्रियता का होना।

प्रश्न 4.
सामुदायिक विकास योजना किसे कहते हैं?
उत्तर
भारत में “ग्रामीण पुनर्निर्माण” के लिए किये गये कार्यों में ‘सामुदायिक विकास योजना’ का विशेष महत्त्व है। सामुदायिक विकास योजना का तात्पर्य सामुदायिक विकास से संबंधित योजना व कार्यक्रम से है। इस प्रकार ‘सामुदायिक’ का तात्पर्य एक निश्चित भू – भाग पर रहने वाले समूह से संबंधित अन्तः क्रियाओं से है। ‘विकास’ का तात्पर्य प्रगति व उत्कर्ष से है।

संक्षिप्त अर्थ में ‘सामुदायिक विकास’ का तात्पर्य है – ‘समुदाय या ग्रामीण समुदाय की प्रगति व उत्कर्ष’। अतः सामुदायिक विकाय योजना का तात्पर्य एक ऐसे कार्यक्रम व आंदोलन से है, जिसमें समुदाय व ग्रामीण समुदाय के व्यक्ति श्रेष्ठतर जीवन व्यतीत करने अर्थात् अपनी बहुमुखी प्रगति करने के लिए स्वयं प्रयास करते हैं तथा इसके लिए सरकार से भी सहयोग प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं।

प्रश्न 5.
सामुदायिक विकास योजना के मुख्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
सामुदायिक विकास योजना के उद्देश्य निम्न हैं –

  1. ग्राम के सामाजिक आर्थिक जीवन में परिवर्तन करना।
  2. गांवों को आत्म – निर्भर तथा प्रगतिशील बनाना।
  3. ग्रामों में उत्तरदायी और क्रियाशीलता नेतृत्त्व तैयार करना।
  4. सुधारों को व्यावहारिक बनाने के लिए गांवों की स्त्रियों तथा परिवारों की दशा को उन्नत बनाना।
  5. राष्ट्र के भावी नागरिकों का समुचित विकास करना।

प्रश्न 6.
सामुदायिक विकास कार्यक्रम की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर:
सामुदायिक विकास कार्यक्रम की मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में जन – सहभागिता का अभाव पाया जाना।
  2. सरकारी सहायता में विलंब का होना।
  3. जनप्रतिनिधियों तथा जनसेवकों में मतभेद का होना।
  4. गांव में दलगत राजनीति का होना।
  5. सामूहिक भावना का अभाव।

प्रश्न 7.
पंचायत में सरपंच की प्रमुख शक्तियाँ कौन – कौनसी हैं?
उत्तर:
सरपंच की मुख्य शक्तियाँ:

  1. ग्राम पंचायतों की बैठकों की अध्यक्षता करना।
  2. पंचायत के समस्त अभिलेखों व दस्तावेजों की रक्षा करना।
  3. पंचायत की वित्तीय व्यवस्था पर नियंत्रण रखना।
  4. सरकार द्वारा दिये गये कार्यों को सही तरीके से संचालित करना।
  5. पंचायत की प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण रखना।

प्रश्न 8.
जिला परिषद् के सदस्य कौन – कौन होते हैं?
उत्तर:
जिला परिषद् जिले की सर्वोच्च स्तर की परिषद् होती है। जिला परिषद् में निम्न सदस्य होते हैं –

  1. निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित सभी सदस्य।
  2. जिला परिषद् क्षेत्र के अंतर्गत प्रतिनिधित्व करने वाले लोक सभा एवं राज्य विधान सभा के सभी सदस्य।
  3. जिला परिषद् क्षेत्र के अंतर्गत निर्वाचकों के रूप में पंजीकृत य नामांकित राज्य सभा के सभी सदस्य।
  4. जिला परिषद् क्षेत्र के सभी पंचायत समितियों के प्रधान।

प्रश्न 9.
जिला प्रमुख की शक्तियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पंचायतीराज अधिनियम, 1994 में जिला प्रमुख को निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान की गई हैं –

  1. जिला परिषद् की संपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण रखना।
  2. प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता के लिए वित्तीय एवं प्रशासनिक स्वीकृति प्रदान करना।
  3. जिले के विकास कार्यक्रमों को प्रोत्साहन के लिए विभिन्न योजनाओं का निर्माण करना।
  4. जिले के सभी पंचायतीराज संस्थाओं पर नियंत्रण रखना।
  5. जिले में ग्रामीण विकास के लिए योजनाओं को संचालित करना।

प्रश्न 10.
मेरियम ने राजनीतिक दलों के कौन – कौन से कार्य बताए हैं?
उत्तर
मेरियम ने राजनीतिक दलों के पाँच प्रमुख कार्य बताए हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. नीतियों का निर्धारण करना।
  2. पदाधिकारियों का चुनाव करना।
  3. राजनीतिक शिक्षण एवं प्रचार करना।
  4. सरकार के रूप में शासन का संचालन करना तथा उसकी रचनात्मक आलोचना करना।
  5. जनता व शासन के मध्य मधुर संबंधों की स्थापना करना।

प्रश्न 11.
दबाव समूह के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दबाव समूह के निम्नलिखित महत्त्व हैं –

  1. शासन के लिए सूचनाएँ एकत्रित करने वाले संगठन के रूप में दबाव समूह एक गैर – सरकारी स्रोत के रूप में अपनी
    भूमिका निभाते हैं।
  2. दबाव समूह अपने साधनों के द्वारा सरकार की निरंकुशता पर अंकुश लगाते हैं।
  3. दबाव समूह सामाजिक एवं सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए सरकारी मशीनरी पर अपना प्रभाव डालते हैं।
  4. दबाव समूह लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में व्यक्तियों के हितों का राष्ट्रीय हितों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हैं।

प्रश्न 12.
संस्थागत दबाव समूह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संस्थागत दबाव समूह वे संगठन हैं, जो सरकारी तंत्र के अंदर ही अपना कार्य करते हैं।
संस्थागत दबाव समूह की विशेषताएँ:

  1. ये समूह राजनीतिक प्रक्रिया में सम्मिलित हुए बिना ही सरकार की नीतियों को अपने हित में प्रभावित करते हैं।
  2. इन दबाव समूहों के कारण ही स्थानान्तरण, अवकाश नियम, महँगाई भत्ता निर्धारण, मकान भत्ता आदि मामलों पर दबाव बनाया जता है।
  3. ये दबाव समूह सरकार के अधीन ही रहते हुए अपनी मांगे उठाते हैं व उन्हें मनवाते भी हैं।
  4. आर्मी ऑफीसर संगठन व रेड क्रॉस सोसायटी इसी दबाव समूह के उदाहरण हैं।

प्रश्न 13.
राजनीतिक दलों के गठन के मनोवैज्ञानिक आधार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समान विचारधारा वाले व्यक्ति राजनीतिक कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के लिए विभिन्न दलों में सम्मिलित हो जाते हैं। समाज में मुख्य रूप से चार प्रकार की सोच वाले लोग पाये जाते हैं –

  1. प्रतिक्रियावादी लोग: वे लोग जो प्राचीन संस्थाओं एवं रीति – रिवाजों की ओर वापस लौटना चाहते हैं।
  2. अनुदारवादी लोग: वे लोग जो वर्ततान में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं करना चाहते हैं।
  3. उदारवादी लोग: वे लोग जो वर्तमान परिस्थितियों में सुधार करना चाहते हैं।
  4. उग्रवादी लोग: वे लोग जो वर्तमान संस्थाओं का उन्मूलन करना चाहते हैं।

अत: यह स्पष्ट है कि लोगों के जैसे विचार एवं स्वभाव होते हैं, वैसे – वैसे ही समाज में प्रतिक्रियावादी, अनुदारवादी, उदारवादी तथा उग्रवादी राजनीतिक दल के रूप में विभक्ति होने लगते हैं।

प्रश्न 14.
पंचायत समिति के दो प्रमुख कार्य बताइए।
उत्तर:
पंचायत समिति अपने क्षेत्रों में निम्न कार्य करती है –
(1) कृषि संबंधी कार्य:

  • कृषि के विकास के लिए किसानों को उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करती है।
  • सिंचाई के साधनों का विकास करती है।
  • किसानों को यंत्र खरीदने की व्यवस्था के अंतर्गत बैंकों से सस्ते ऋण की सिफारिश करती है।
  • किसानों को समय – समय पर प्रशिक्षण प्रदान कराती है।

(2) भूमि सुधार संबंधी कार्य:

  • किसानों को अपने खेत की मिट्टी की जाँच कराने की सलाह देती है।
  • भूमि सुधार कार्यक्रम एवं योजनाओं को क्रियान्वियत करती है।

प्रश्न 15.
जिला परिषद् के तीन महत्त्वपूर्ण कार्यों के विषय में बताइए।
उत्तर:
जिला परिषद् के तीन महत्त्वपूर्ण कार्य:

  1. सिंचाई कार्य: ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था करना तथा क्षेत्र के विकास के लिए नये व पुराने जल स्रोतों का विकास किया जाना।
  2. ग्रामीण विद्युतीकरण: ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण के लिए राज्य सरकार के ऊर्जा विभाग से ग्रामीण विद्युतीकरण योजना को अपने क्षेत्रों में लागू करना।
  3. प्रशिक्षण कार्यक्रम: ग्रामीण लोगों को प्रशिक्षण देकर उन्हें लघु उद्योग लगाने के लिए प्रेरित करना व सोथ ही उन्हें सस्ते ऋण की व्यवस्था करना।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्राम पंचायतों के कार्यों व उनके अधिकारों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्राम पंचायतों के कार्यों का विवरण निम्नलिखित है –

  1. कृषि एवं बागवानी का विकास तथा उन्नति तथा भूमि का विकास एवं साथ ही अनाधिकृत अधिग्रहण एवं प्रयोग की
    रोकथाम करना।
  2. भूमि विकास, भूमि सुधार तथा भूमि चकबंदी में सरकार एवं अन्य एजेन्सियों की सहायता करना।
  3. लघु वन उत्पादों की उन्नति एवं विकास करना।
  4. सामाजिक एवं कृषि वानिकी रेशम उत्पादन का विकास एवं उन्नति, वृक्षारोपण एवं वृक्षों की रक्षा करना।
  5. कुटीर व लघु ग्रामीण उद्योगों के विकास में सहायता करना।
  6. गैर – पारंपरिक ऊर्जा के स्रोतों का विकास एवं रक्षा करना।
  7. प्रौढ़ एवं अनौपचारिक शिक्षा में उन्नति करना।
  8. सांस्कृतिक क्रियाकलापों एवं खेलकूद का विकास करना।
  9. ग्राम पंचायत क्षेत्र के आर्थिक विकास हेतु योजना तैयार करना।
  10. महिला (प्रसूति) तथा बाल विकास कार्यक्रमों में भाग लेना।
  11. सामाजिक न्याय के लिए योजनाओं की तैयारी एवं क्रियान्वयन करना।
  12. सड़कों, पुलियों, पुलों, जल – मार्गों का निर्माण, रक्षा एवं सार्वजनिक स्थानों पर से अतिक्रमण को दूर करना।

ग्राम पंचायत के अधिकार:

  1. अपने क्षेत्र में तालाबों, कुओं एवं जमीन पर अधिकार जिनमें ग्राम पंचायत आवश्यक परिवर्तन कर सकती है।
  2. उपर्युक्त सार्वजनिक स्थानों के उपयोग के संबंध में नियमों के निर्माण का अधिकार।
  3. प्राथमिक पाठशालाओं पर नियंत्रण रखने का अधिकार।
  4. अपने क्षेत्र के किसी भी पदाधिकारी के कार्य की जाँच कर उसके संबंध में शासन को रिपोर्ट देने का अधिकार।
  5. अपने क्षेत्र के अंतर्गत कार्य करने वाले सचिव एवं अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति और उनके वेतन निर्धारण का अधिकार।

प्रश्न 2.
जिला पंचायत या परिषद् की संगठन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(1) जिला पंचायत की रचना:
राज्य सरकार गजट में अधिसूचना के आधार पर प्रत्येक जिले के लिए एक जिला पंचायत का गठन करेगी जिसका नाम जिले के नाम पर होगा। प्रत्येक जिला पंचायत निर्गमित निकाय होगी। जिला परिषद् में एक अध्यक्ष, जिले की समस्त क्षेत्र पंचायतों के प्रमुख, निर्वाचित सदस्य, लोकसभा व राज्य विधनसभा के सदस्य व राज्य सभा एवं राज्य की विधान परिषद् आदि को सम्मिलित किया जाता है। प्रत्येक जिला परिषद में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे। जिला परिषद् में निर्वाचित स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे।

(2) जिला पंचायत के सदस्यों की योग्यता:

  • ऐसे सभी व्यक्ति, जिनका नाम उस जिला पंचायत के किसी प्रादेशिक क्षेत्र के लिए निर्वाचक नामावली में शामिल है।
  • जिन्होंने 21 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो जिला पंचायत के किसी पद के लिए चुने जा सकते हैं।

(3) अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष: जिला पंचायत के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से एक व्यक्ति अध्यक्ष तथा एक व्यक्ति उपाध्यक्ष चुना जायेगा।

(4) जिला पंचायत और उसके सदस्यों का कार्यकाल:
प्रत्येक जिला पंचायत आदि धारा 232 के अंतर्गत उसे पहले से ही विघटित नहीं कर दिया गया हो तो अपनी प्रथम बैठक के लिए निश्चित दिनांक से 5 वर्ष की अवधि तक के लिए बनी रहेगी। यदि किसी जिला पंचायत को धारा 232 के अंतर्गत विघटित कर दिया गया है तो नई जिला पंचायत के चुनाव विघटन के दिनांक से 6 माह पूर्व करा लिये जायेंगे। जिला पंचायत के सदस्य अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का कार्यकाल भी जिला पंचायत के साथ ही समाप्त होगा। इस प्रकार जिला पंचायत तथा उसके सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा।

(5) जिला पंचायत समितियाँप्रमुख समितियाँ:

  • कार्य समिति।
  • वित्त समिति।
  • शिक्षा व जनस्वास्थ्य समिति।
  • नियोजन समिति।
  • समता समिति।
  • कृषि उद्योग एवं निर्माण समिति।

प्रश्न 3.
ग्रामीण सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन में ग्राम पंचायतों के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
ग्रामीण सामाजिक जीवन में ग्राम पंचायतों का महत्त्व निम्नलिखित है –

  1. सामाजिक सुधार:
    ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याएँ पायी जाती हैं। जैसे बाल – विवाह, पर्दा – प्रथा तथा विधवा पुनर्विवाह आदि। ग्राम पंचायतें गांवों के सदस्यों को इन समस्याओं से छुटकारा दिलाने में मदद करती हैं।
  2. बाल कल्याण कार्य:
    ग्राम पंचायतें बालकों के लिए पार्क निर्माण करना, मनोरंजन की व्यवस्था तथा पुस्तकालय का निर्माण इत्यादि पर बल देती हैं।
  3. मद्यपान निषेध:
    प्रायः ग्रामवासी अफीम, शराब, भांग आदि के सेवन में लीन रहते हैं जिससे उन्हें आर्थिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार की हानि उठानी पड़ती है। ग्राम पंचायतें ग्रामों में मध्य निषेध संपादित कर सकती है।
  4. सार्वजनिक बाजारों तथा मेलों की देखरेख:
    ग्राम पंचायतें वस्तुओं को खरीदने व मुनाफाखोरी आदि से बचाने में मार्ग दर्शन तथा देखरेख का कार्य करती हैं तथा इसके अलावा लोगों में मनोरंजन के लिए मेलों की व्यवस्था भी करती हैं।

ग्रामीण राजनीतिक जीवन में ग्राम पंचायतों का महत्त्व:

  1. प्रशासन संबंधी शिक्षा:
    ग्राम पंचायतें सामुदायिक विकास योजनाओं को सफल बनाने तथा ग्रामोन्नति को सफल बनाने के लिए ग्रामवासियों को प्रशासन संबंधी ज्ञान से परिचित करा सकती है।
  2. शांति तथा सुरक्षा की व्यवस्था:
    ग्रामीण जीवन में प्रत्यक्ष कार्य तथा नियंत्रण द्वारा ग्राम पंचायतें शांति तथा सुरक्षा की भलीभाँति व्यवस्था कर सकती हैं। जो सुखमय जीवन बिताने के लिए अति आवश्यक है।
  3. ग्राम उन्नति:
    ग्रामीण पंचायतें ग्रामीणों में राष्ट्रीय चेतना तथा स्वावलंबन की भावना को विकसित करते हुए श्रमदान, साप्ताहिक स्वास्थ्य दिवस तथा सचल पुस्तकालय आदि कार्यों द्वारा ग्रामोन्नति में सफल सहायक सिद्ध हो सकती है।
  4. मुकदमेबाजी की समस्या का हल:
    ग्राम पंचायतें अनेक छोटे – मोटे विवादों व झगड़ों का निपटारा कराती है तथा ग्रामीण वासियों के लिए ऐसा वातावरण प्रस्तुत करती हैं जिसके परिणामस्वरूप ग्रामवासियों में आपस में द्वेष व कलह न हो।

प्रश्न 4.
पंचायतों की उन्नति के सुझावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचायतों की उन्नति के लिए निम्नलिखित सुझावों को कुछ बिंदुओं के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. संविधान में वर्णित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ग्राम पंचायतों को स्थानीय स्वराज की इकाई के रूप में काम करने के
    साथ – साथ सामाजिक न्याय एवं समस्त निवासियों की उचित आय के साधनों की भी व्यवस्था करनी चाहिए।
  2. राज्य की तरफ से ग्राम पंचायतों को कर वसूली, ऋण, व्यापार आदि कार्यों में हाथ बटाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिए।
  3. ग्राम पंचायतों के द्वारा कुशल नेतृत्व के विकास के लिए प्रयत्न करना चाहिए ताकि सारे समुदाय के कार्य भलीभांति
    क्रियान्वित हो सकें।
  4. सरकार को ग्राम पंचायत की संस्था के द्वारा आर्थिक और राजनैतिक विकेन्द्रीकरण के लिए व्यवस्थित तथा गंभीर कदम उठाने चाहिए।
  5. ग्राम पंचायतों को दलबंदी और राजनीतिक पार्टी बंदी से यथाशक्ति पृथक् रखना चाहिए।
  6. ग्राम पंचायत का निर्वाचन बालिग मताधिकार के आधार पर होना चाहिए एवं ग्राम सभा के समस्त सदस्य बालिग होने चाहिए।
  7. ग्राम पंचायतों के कार्यों का निरीक्षण करने के लिए एक तहसील के सरपंचों द्वारा चुना हुआ एक निरीक्षक होना चाहिए।
  8. समस्त योजनाएँ ग्राम पंचायत के आधार पर बननी चाहिए।
  9. ग्राम पंचायत की निर्वाचित पद्धति गुप्त तथा सरल होनी चाहिए ताकि ग्रामों में वैमनस्य फैलने की संभावना न हो।
  10. धीरे – धीरे ग्राम पंचायतों को जमीन कर वसूल करने का कार्य सौंप देना चाहिए तथा उन्हें लगान का 15 से 25 प्रतिशत तक हिस्सा तथा पंचायतों के दैनिक कार्यों को करने के लिए दे देना चाहिए।
  11. ग्राम पंचायतों को म्युनिसिपिल को सामाजिक, आर्थिक तथा न्यायिक कार्यों को करने का अवसर प्रदान करना चाहिए।

प्रश्न 5.
दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कौन – कौन से साधनों का प्रयोग करते हैं?
उत्तर:
किसी भी देश में विभिन्न हितों के आधार पर संगठित वे हित समूह दबाव समूह कहलाते हैं जिनका उद्देश्य शासन पर दबाव डालकर अपने हितों को पूर्ण करना होता है। ये दबाव समूह सरकार के भाग नहीं होते हैं।
अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दबाव समूहों द्वारा विभिन्न साधन या तरीके अपनाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख निम्नवत् हैं –

  1. लॉबिंग:
    इसका सामान्य अर्थ है विधानमंडल के सदस्यों को प्रभावित करके उनके हित में कानूनों का निर्माण करवाना है। लॉबिंग में व्यवस्थापिका के अधिवेशन काल में किसी विशेष विधेयक को कानून बनवाने या न बनने देने में रुचि ली जाती है। इस लक्ष्य से विधायकों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित किया जाता है।
  2. आँकड़े प्रकाशित करना:
    नीति निर्माताओं के सामने अपने पक्ष को प्रभावशाली ढंग से पेश करने के लिए दबाव समूह आँकड़े प्रकाशित करते हैं ताकि अपने हितों को पूरा करवा सकें।
  3. गोष्ठियाँ आयोजित करना:
    दबाव समूह विचार – विमर्श और वाद – विवाद के लिए गोष्ठियाँ, सेमिनार एवं वार्ताएं आयोजित करते रहते हैं। इन गोष्ठियों में विधायकों तथा प्रमुख प्रशासकीय अधिकारियों को बुलाते हैं और अपने विचारों से उन्हें प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।
  4. प्रचार व प्रसार के साधन:
    दबाव समूह समाचार – पत्रों, पोस्टरों विज्ञापनों तथा गोष्ठियों आदि के द्वारा अपने हितों का प्रचार करते हैं ताकि उनके पक्ष में वातावरण का निर्माण हो सके।
  5. शांतिपूर्ण आंदोलन:
    जिन दबाव समूहों के पास अधिक जनशक्ति होती है। वे अपने हितों की सिद्धि के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन भी करते हैं। वे जन – सभाएँ करते हैं व प्रदर्शन भी करते हैं। लोकतांत्रिक देशों में मजदूर संघ इन्हीं साधनों का प्रयोग करते हैं। भारत के किसान यूनियनें सशक्त दबाव समूह हैं, वह भी इन्हीं साधनों का उपयोग कर सरकार व राजनीति को प्रभावित करती हैं।
  6. सांसदों के मनोनयन में रुचि
    दबाव समूह ऐसे व्यक्तियों के चुनाव में दलीय प्रत्याशी मनोनीत करवाने में मदद देते हैं जो बाद में संसद में उनके हितों की अभिवृद्धि में सहायक हों। सांसदों को चुनाव लड़ने के लिए धन चाहिए और अनेक बार यह धन दबाव समूह उपलब्ध करवाते हैं।

प्रश्न 6.
दबाव समूहों के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दबाव समूहों का वर्गीकरण किसी एक आधार पर नहीं, बल्कि अनेक आधारों पर किया जाता है। इसी कारण इनका वर्गीकरण एक कठिन कार्य हो गया है। सामान्यतया ये वर्गीकरण समूहों के उद्देश्यों उनके संगठन की प्रकृति तथा कार्य – क्षेत्र आदि के आधार पर किया जाता है।
दबाव समूहों का वर्गीकरण उनके हितों के आधार पर अधिक अच्छी तरह से किया जा सकता है। इस आधार पर वर्गीकरण निम्नलिखित हो सकता है –

  1. राजनीतिक दबाव समूह:
    विभिन्न दबाव समूहों में राजनीतिक दल सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं। आधुनिक युग में राजनीतिक दलों को दबाव समूह नहीं माना जाता है क्योंकि उनका उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना न होकर सत्ता पर दबाव डालना होता है।
  2. सांप्रदायिक दबाव समूह:
    विभिन्न संप्रदाय अपने हितों को पूरा करने हेतु साम्प्रदायिक आधार पर संस्थाओं का गठन करते हैं। भारत में साम्प्रदायिक हितों की रक्षार्थ राजनीतिक दलों का गठन भी होता है।
  3. भाषायी दबाव समूह:
    गुजरात, पंजाब तथा हरियाणा आदि राज्यों का निर्माण भाषा के आधार पर किया गया है। भाषायी दबाव समूह केन्द्र सरकार पर सशक्त रूप से दबाव डालते हैं।
  4. क्षेत्रीय दबाव समूह:
    क्षेत्रीयता के आधार पर ही ये अपने क्षेत्र के विकास या मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व के लिए दबाव बनाये रहते हैं। ये दबाव समूह केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय स्तर पर कार्य करते रहते हैं।
  5. जातीय दबाव समूह:
    समाज में अनेक जातीय दबाव समूह बन गये हैं, जो शासन के निर्णयों को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। उच्चतर शासकीय अधिकारियों की नियुक्ति और मंत्रियों की नियुक्ति जातीय दबाव समूहों के कारण होती है।
  6. आर्थिक दबाव समूह:
    मनुष्य अपने आर्थिक हितों की रक्षा और उनकी अभिवृद्धि के लिये उनके आर्थिक समूहों का निर्माण करता है। ये आर्थिक समूह शासन पर अपने आर्थिक व व्यावसायिक हितों के लिए दबाव डालते रहते हैं।
  7. महिला अधिकार संरक्षण दबाव समूह:
    महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने हेतु अनेक प्रकार के दबाव समूह बनते हैं। जो जन आंदोलन करते हैं तथा महिलाओं को उनके हक की प्राप्ति के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं।
  8. नैतिक दबाव समूह:
    भारतीय जन – जीवन पर नैतिकता का विशेष महत्त्व है। इसी वजह से नैतिक आधार पर भी विभिन्न दबाव समूहों का गठन होता है। नैतिक दबाव समूह मद्यनिषेद्य, दहेज विरोधी आदि नैतिक अभियान चलाते रहते हैं।

प्रश्न 7.
राजनीतिक दल एवं दबाव समूह में अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक दल एवं दबाव समूह में निम्न आधारों पर अंतर को स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. राजनीतिक दल दबाव समूह की अपेक्षा अधिक विशाल संगठन है। राजनीतिक दल के कार्यक्रम होते हैं, जबकि दबाव समूह के सामने मुख्य उद्देश्य समूह के हितों की रक्षा करना होता है। दबाव समूह का कार्यक्रम सीमित तथा प्रभाव का क्षेत्र भी संकुचित होता है।
  2. राजनीतिक दल का सर्वप्रथम और घोषित उद्देश्य शासन सत्ता पर नियंत्रण प्राप्त करना होता है। इसके विपरीत दबाव समूह शासन शक्ति प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते हैं।
  3. राजनीतिक दल खुद अपने लिये सत्ता पाना चाहते हैं, जबकि दबाव समूह औपचारिक रूप में शासन से बाहर रहकर शासन को प्रभावित करने की चेष्टा में लगे रहते हैं।
  4. राजनीतिक दल का संबंध राष्ट्रीय हित की सभी समस्याओं और प्रश्नों से होता है। अतः स्वाभाविक रूप से उनका अत्यधिक व्यापक कार्यक्रम होता है। लेकिन दबाव समूह एक विशेष वर्ग के हितों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए दबाव समूहों का कार्यक्रम सीमित एवं संकुचित होता है।
  5. राजनीतिक दल अपने उद्देश्यों की पूर्ति के पश्चात् भी समाप्त नहीं होते, जबकि दबाव समूह अपने हितों या उद्देश्यों की पूर्ति के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं।
  6. राजनीतिक दल अनिवार्य रूप से औपचारिक संगठन होते हैं लेकिन दबाव समूह औपचारिक रूप से संगठित या असंगठित दोनों ही स्थितियों में हो सकते हैं। कई बार शक्तिशाली दबाव समूह भी असंगठित स्थिति में होते हैं।
  7. राजनीतिक दलों से यह आशा की जाती है कि वे अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिये केवल संवैधानिक साधनों को ही अपनायेंगे, लेकिन दबाव समूह जरूरत पड़ने पर संवैधानिक और असंवैधानिक व अनैतिक सभी प्रकार के साधन अपना सकते हैं।
  8. राजनीतिक दल सामाजिक व राजनीतिक कार्यक्रम पर आधारित होते हैं, उनके उद्देश्य व कार्य बहुमुखी होते हैं, जबकि विचारधारा व कार्यक्रम की दृष्टि से दबाव समूह राजनीतिक दल की अपेक्षा अधिक संयुक्त और सताजीय समूह होते हैं। दबाव समूह उन्हीं व्यक्तियों का गुट होता है जिनके समान हित व रुचि होती है।

प्रश्न 8.
राजनीतिक दलों की निर्माण प्रक्रिया पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
विभिन्न विद्वानों के मतानुसार राजनीतिक दलों के निर्माण के मूल में वस्तुतः निम्नलिखित आधार प्रमुख रूप से उत्तरदायी होते हैं –

  1. मानव स्वभाव के आधार पर:
    मानव मात्र विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार स्वयं से संबंधित विभिन्न संस्थाओं के स्वरूपों, गतिविधियों आदि में परिवर्तन को स्वीकार करता है। इससे स्पष्ट होता है कि मानव स्वभाव भी महत्त्वपूर्ण रूप से राजनैतिक दलों के निर्माण हेतु उत्तरदायी कारक होता है।
  2. राजनैतिक उद्देश्यों के आधार पर: विभिन्न राजनीतिक हितों या उद्देश्यों के आधार पर राजनीतिक दलों का निर्माण होता है।
  3. धार्मिक तथा साम्प्रदायिक आधार पर:
    देशों में राजनैतिक दलों का निर्माण धार्मिकता और साम्प्रदायिकता के आधार पर भी संपन्न होता है। वामपंथी धर्म विरोधी दल भी धार्मिक दल के उदाहरण हैं। इसके अलावा मुस्लिम लीग, अरबी दल आदि धार्मिक व साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक दल हैं।
  4. आर्थिक तत्त्वों के आधार पर:
    राजनीतिक दलों के निर्माण में आर्थिक कारक ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। कोई भी राजनीतिक दल तभी विकास करता है, जब उसके पास एक ठोस कार्यक्रम हो। अत: आर्थिक तत्त्वों के आधार पर ही राजनीतिक दलों का निर्माण किया जाता है।
  5. सामाजिक – आर्थिक कारकों के आधार पर:
    राजनीतिक दलों के निर्माण की प्रक्रिया में विभिन्न प्रकार के सामाजिक – आर्थिक कारकों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। किसी भी देश या समाज में आर्थिक विकास का स्तर ही अन्तगोगत्वा दल की संरचना पर इस स्वरूप को प्रभावित करता है।
  6. विचारधाराओं के आधार पर:
    कुछ व्यक्ति अपनी विचारधाराओं के आधार पर राजनीतिक दलों की सदस्यता ग्रहण करते हैं। भारत में शिवसेना, अकाली दल, तेलुगूदेशम, अन्नाद्रमुक तथा फ्रण्ट आदि राजनीतिक दलों का निर्माण वस्तुतः क्षेत्रीय विचारधारा के आधार पर ही हुआ है।

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RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 5 सांस्कृतिक परिवर्तन, पश्चिमीकरण, संस्कृतीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण एवं उत्तर आधुनिकीकरण

August 20, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 सांस्कृतिक परिवर्तन, पश्चिमीकरण, संस्कृतीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण एवं उत्तर आधुनिकीकरण

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मुस्लिम महिलाओं की राष्ट्र स्तरीय संस्था “अजुमन – ए – ख्वातीन – ए – इस्लाम” की स्थापना किस वर्ष हुई?
(अ) 1920
(ब) 1916
(स) 1914
(द) 1918
उत्तरमाला:
(स) 1914

प्रश्न 2.
पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के किस क्षेत्र पर पड़ा?
(अ) सांस्कृतिक क्षेत्र
(ब) राजनीतिक क्षेत्र
(स) धार्मिक क्षेत्र
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
भारत में धर्म निरपेक्षीकरण के कारक कौन से हैं?
(अ) पश्चिमीकरण
(ब) सामाजिक व धार्मिक आंदोलन
(स) नगरीकरण
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 4.
“सोशल चेंज एन मॉडर्न इंडिया” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) एबर क्रॉमी
(ब) जी. एस. घुर्ये
(स) एम. जन. श्रीनिवास
(द) डी. एन. मजूमदार
उत्तरमाला:
(स) एम. जन. श्रीनिवास

प्रश्न 5.
लर्नर ने आधुनिकीकरण की किस विशेषता का उल्लेख किया है?
(अ) शिक्षा का प्रसार
(ब) नगरीकरण में वृद्धि
(स) वैज्ञानिक भावना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
“पोस्ट मॉडर्न कंडीशन” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) अरनाल्ड टॉयन्बी
(ब) डेविड हारवे
(स) एम. एन. श्रीनिवास
(द) रिचार्ड गोट
उत्तरमाला:
(अ) अरनाल्ड टॉयन्बी

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस समाज सुधारक ने अखिल भारतीय मुस्लिम महिला सम्मेलन में बहु विवाह के विरुद्ध प्रस्ताव प्रस्तुत किया?
उत्तर:
जहाँ आराशाह नवाज ने अखिल भारतीय मुस्लिम महिला सम्मेलन में बहु विवाह के विरुद्ध प्रस्ताव प्रस्तुत किया।

प्रश्न 2.
‘अंग्रेजी शासन के कारण भारतीय समाज और संस्कृति के बुनियादी और स्थायी परिवर्तन हुए।’ यह कथन किस समाजशास्त्री का है?
उत्तर:
उक्त कथन एम. एन. श्रीनिवास के द्वारा कहे गए हैं।

प्रश्न 3.
पश्चिमीकरण ने समाज में किस नवीन वर्ग को जन्म दिया?
उत्तर:
पश्चिमीकरण ने समाज में एक नवीन वर्ग “अभिजात वर्ग” को जन्म दिया।

प्रश्न 4.
श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण के कितने स्तरों की चर्चा की है?
उत्तर:
श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण के दो स्तरों की चर्चा की है, जो इस प्रकार से है –

  1. मानववाद।
  2. बुद्धिवाद।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र की कौन – सी अवधारणा जाति प्रथा संस्तरण पर आधारित सामाजिक स्तरीकरण की व्याख्या करती है?
उत्तर:
समाजशास्त्र में “संस्कृतिकरण” की अवधारणा जाति प्रथा संस्तरण पर आधारित सामाजिक स्तरीकरण की व्याख्या करती है।

प्रश्न 6.
किस समाजशास्त्री ने जाति व्यवस्था को ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता के आधार पर विवेचित किया था?
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास ने जाति व्यवस्था को ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता के आधार पर विवेचित किया था।

प्रश्न 7.
“हिस्ट्री ऑफ कास्ट इन इंडिया” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
एस.वी. केतकर इस पुस्तक के लेखक हैं।

प्रश्न 8.
“कास्ट एंड कम्युनिकेशन इन एन इंडियन विलेज” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
डी. एन. मजूमदार इस पुस्तक के लेखक हैं।

प्रश्न 9.
धर्मनिरपेक्षीकरण ‘एक ऐसी प्रक्रिया को इंगित करती है, जिसके अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ, धार्मिक अवधारणाओं को पकड़ या प्रभाव से बहुत हद तक मुक्त हो जाती है’। यह कथन किस विद्वान ने दिया है?
उत्तर:
यह कथन ब्रायन आर. विल्सन ने दिया है।

प्रश्न 10.
‘आधुनिकता का मतलब ये समझ में आता है कि इसके समक्ष सीमित संकीर्ण स्थानीय दृष्टिकोण कमजोर पड़ जाते हैं……..’। यह कथन किसका है?
उत्तर:
रूडॉल्फ एवं रूडॉल्फ ने इस कथन को दिया है।

प्रश्न 11.
‘आधुनिकीकरण कोई उद्देश्य नहीं है बल्कि एक प्रक्रिया है, कोई अपनाई जाने वाली वस्तु नहीं है बल्कि उसमें सम्मिलित होना है……..’, यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
डब्ल्यू जे. स्मिथ ने इस कथन को प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 12.
‘आधुनिक समाज ने प्रकृति का ही अंत कर दिया है।’ यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
मक्कीबेन ने उक्त कथन को प्रस्तुत किया है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संरचनात्मक परिवर्तन शब्द किस परिवर्तन को बताता है?
उत्तर:
संरचनात्मक परिवर्तन:
समाज की संरचना में परिवर्तन को दर्शाता है। जब किसी समाज की संरचना में परिवर्तन होता है तो वहाँ सांस्कृतिक परिवर्तन भी दृष्टिगोचर होता है। इसके साथ ही संरचनात्मक परिवर्तन मनुष्य के आचार, व्यवहार व उनके मनोभावों में परिवर्तन को भी व्यक्त करता है। संरचनात्मक परिवर्तन एक प्रकार से समाज की आधारशिला है, जिसके आधार पर किसी को समाज की सांस्कृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी उपलब्ध होती है।

अतः संरचनात्मक परिवर्तन समाज में एक परिवर्तनशील व्यवस्था है। विभिन्न प्रक्रियाएँ समय – समय पर मानवीय सम्बन्धों, स्थितियों व भूमिकाओं तथा सामाजिक नियमों में परिवर्तनों को उत्पन्न करती है। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन हो जाता है। परन्तु सामाजिक संरचनाओं में धीरे – धीरे क्रमिक परिवर्तन होता है।

प्रश्न 2.
औपनिवेशिक शासन के प्रभाव की उत्पत्ति किन दो घटनाओं की परिणति है जो कि परस्पर सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के प्रभाव की उत्पत्ति प्रमुख दो घटनाओं की परिणति से परस्पर रूप से सम्बन्धित है, जो निम्न प्रकार से है –

  1. प्रथम घटना: 19वीं सदी के समाज सुधारकों की भूमिका।
  2. द्वितीय घटना: 20वीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं के द्वारा किए गए सुनियोजित एवं अथक प्रयास।

अतः इन समाज सुधारकों एवं राष्ट्रवादी नेताओं का मूल उद्देश्य सामाजिक व्यवहारों में परिवर्तन लाना था, जो महिलाओं एवं वंचित समूहों के साथ भेदभाव किया करते थे। इन दो घटनाओं के परिणामस्वरूप ही औपनिवेशिक शासन की समाज में उत्पत्ति को बल मिला था। इन घटनाओं को ही आधार बनाकर समाज सुधारकों ने समाज में व्याप्त अनेक समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया।

प्रश्न 3.
सतीश सबरवाल ने औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तन के किन तीन पक्षों की चर्चा की है?
उत्तर:
सतीश सबरवाल ने औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तन की रूपरेखा से जुड़े तीन पक्षों की चर्चा की है जो निम्न प्रकार से है –

  1. संचार माध्यम।
  2. संगठनों के स्वरूप।
  3. विचारों की प्रकृति।

औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तनों को बल प्रदान करने में इन तीनों पक्षों ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। इन पक्षों ने समाज को एक छोर से दूसरे छोर पर रहने वाले लोगों को एक सूत्र में बांधने का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया है। जिसके परिणामस्वरूप लोगों को अन्य विद्वानों के विचारों को जानने का अवसर प्राप्त हुआ जिससे उनमें जागरुकता का संचार भी हुआ।

प्रश्न 4.
संचार के उन साधनों के नाम लिखे जिन्होंने समाज सुधारकों एवं राष्ट्रवादी नेताओं के विचारों को प्रचारित और प्रसारित किया।
उत्तर:
प्रिंटिग प्रेस, टेलीग्राफ तथा माइक्रोफोन ने समाज सुधारकों एवं राष्टवादी नेताओं के विचारों को समाज में उत्तम नागरिकों तक प्रसारित व प्रचारित किया। रेल के माध्यम से भी उनके विचारों को भारत के प्रत्येक क्षेत्रों तक पहुँचाया गया था।
संचार के इन साधनों ने समाज में अनेक ही महत्त्वपूर्ण कार्य किए जिसे कुछ बिन्दुओं में स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. समाज के प्रत्येक व्यक्तियों तक सूचनाओं के प्रसार का कार्य।
  2. लोगों में चेतना उत्पन्न करने का कार्य।
  3. सदस्यों को अपनी समस्याओं व अधिकारों के प्रति सजग करने आदि का महत्त्वपूर्ण कार्य किए।

प्रश्न 5.
पश्चिमीकरण का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र में सर्वप्रथम इस अवधारणा का प्रयोग एम. एन. श्रीनिवास ने किया था।

  1. पश्चिमीकरण का अर्थ:
    पश्चिमी देशों के रीति – रिवाजों, जीवन – शैली, रहन – सहन के तरीके आदि का अनुसरण जब पूर्वी देशों के व्यक्तियों के द्वारा जब किया जाता है तो इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण की संज्ञा दी जाती है।
  2. योगेन्द्र सिंह के अनुसार:
    पश्चिमीकरण मानववाद एवं बुद्धिवाद का ही दूसरा नाम है। इनके अनुसार समाज में वैज्ञानिक प्रगति, औद्योगिक विकास एवं शिक्षण प्रणाली की स्थापना व राष्ट्रीयता का उदय आदि पश्चिमीकरण के ही विकास के फल है।

प्रश्न 6.
पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के किन क्षेत्रों पर पड़ा?
उत्तर:
पश्चिमीकरण के प्रक्रिया का प्रभाव भारतीय समाज के समस्त क्षेत्रों पर दृष्टिगोचर होता है, जिसका विवरण इस प्रकार से है –

  1. पश्चिमीकरण के प्रभाव से भारत में शिक्षा पद्धति को अंग्रेजी शिक्षा में बदलने का कार्य इस प्रक्रिया का ही है।
  2. पश्चिमीकरण से पारम्परिक कर्मकांडों में कमी आई है।
  3. इस प्रक्रिया से राष्ट्रीयवाद को बढ़ावा मिला है।
  4. इस प्रक्रिया से समाज में एक नए वर्ग का जन्म हुआ जिसे ‘अभिजात वर्ग’ कहा जाता है।

प्रश्न 7.
भारतीय संस्कृति की भोजन – शैली को पश्चिमीकरण ने किस रूप में प्रभावित किया?
उत्तर:
भारतीय भोजन – शैली पर पश्चिमीकरण निम्न रूपों में दृष्टिगोचर होता है –

  1. जहाँ पहले भारतीय संस्कृति के अनुरूप व्यक्तियों को धरती पर बिठाकर भोजन करवाया जाता था, अब पश्चिमीकरण के प्रभाव से टेविल – कुर्सी का प्रयोग किया जाने लगा है।
  2. भोजन के पश्चात् पूरे फर्श को गोबर से लीप कर साफ व पवित्र किया जाता था, किन्तु अब मेजों पर कपड़े हटाकर ही उन्हें साफ कर दिया जाता है।
  3. भारतीय समाज में जहाँ भोजन कराने की परम्परा को एक धार्मिक कृत्य माना जाता था, वहीं पाश्यात्य संस्कृति के प्रभाव से उसमें अब औपचारिकता की भावना का समावेश हो गया है। समाज के सदस्यों में भोजन करने के तरीकों में काफी परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं।

प्रश्न 8.
श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण का सिद्धान्त देने से पूर्व किस समाज का अध्ययन किया था?
उत्तर:
भारत में एक जाति दूसरी जाति की तुलना में उच्च या निम्न मानी जाती है। एम. एन. श्रीनिवास ने इन्हीं जातियों के सम्बन्ध में विस्तार से अध्ययन किया था। श्रीनिवास ने जातियों की विवेचना करने के लिए समाज में वंचित वर्गों के लिए निम्न जाति शब्द का प्रयोग किया था।

उन्होंने दक्षिण भारत के मैसूर के रामपुरा गाँव की कुर्ग जाति के लोगों की सामाजिक और आर्थिक जीवन के विश्लेषण के लिए 1952 में संस्कृतिकरण की अवधारणा का प्रयोग किया था। उन्होंने इस अवधारणा का प्रयोग अपनी पुस्तक ‘The Religion and Society among the Cobrgs ot South India’ में किया है। प्रारम्भ में

उन्होंने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को ब्राह्मणीकरण’ का नाम दिया था, क्योंकि उन्होंने देखा कि यह जाति बाह्मणों को ही आदर्श मानकर उनके प्रथाओं आदि का अनुसरण कर रही है। किन्तु बाद में वे उन्होंने पाया कि यह जाति केवल एक ब्राह्मणों को ही नहीं बल्कि अन्य उच्च जातियों के रिवाजों को ग्रहण करती है, तब उन्होंने इस प्रक्रिया को संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के नाम से संबोधित किया।

प्रश्न 9.
एस. वी. केतकर ने संस्कृतिकरण की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
केतकर ने ‘History of Caste in India’ नामक अपनी पुस्तक में संस्कृतिकरण की अवधारणा पर प्रकाश डाला है।

उनके अनुसार – “एक जाति की सदस्यता केवल उन व्यक्तियों तक ही सीमित होती है जो कि उस जाति विशेष के सदस्यों में ही पैदा होते हैं।” अन्य में नहीं। संस्कृतिकरण की अवधारणा का स्पष्टीकरण समाजशास्त्री केतकर ने जाति के संदर्भ में ही किया है।

केतकर के अनुसार जाति समाज में एक जटिल व्यवस्था है जो जन्म पर आधारित होती है। जो व्यक्ति जिस भी जाति में जन्म लेगा, उसकी प्रस्थिति का निर्धारण समाज में उसी से ही आँका जाएगा, इसके साथ ही जातिगत नियमों, रिवाजों व परम्पराओं का पालन भी उसी के अंतर्गत ही रहकर किया जाएगा।

प्रश्न 10.
संस्कृतिकरण एक प्रोत्साहन के तीन कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर:
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन देने वाले कारकों का विवरण इस प्रकार से है –

  1. यातायात व संचार के साधन:
    इस संचार व यातायात के साधनों के माध्यम से दूर – दराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का सम्पर्क एक – दूसरे से बढ़ा है।
  2. कर्मकांडी क्रियाओं में सुलभता:
    मंत्रोच्चारण की पृथकता के कारण ही ब्राह्मणों के संस्कार सभी हिन्दू जातियों के लिए सुलभ हो गये हैं।
  3. राजनीतिक प्रोत्साहन:
    श्रीनिवास के अनुसार प्रजातांत्रिक व्यवस्था ने संस्कृतीकरण की प्रक्रिया को समाज में बढ़ावा दिया है।

प्रश्न 11.
लम्बवत् सामाजिक गतिशीलता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
श्रीनिवास के अनुसार यदि कोई निम्न जाति का सदस्य संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को अपनाकर अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सकता है। तब उसे लम्बवत् सामाजिक गतिशीलता कहा जाता है। संस्कृतिकरण एक विषम एवं जटिल अवधारणा है, जिसका अनुसरण करके निम्न जाति अपनी स्थिति को स्थानीय तौर पर सदृढ़ बना सकती है।

अनेक समाजशास्त्रियों ने भारत के विभिन्न भागों में निम्न जातियों द्वारा संस्कृतिकरण कर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाने के प्रयत्नों का उल्लेख किया है। श्रीनिवास ने दक्षिणी भारत के कुर्ग लोगों द्वारा ब्राह्मणों व लिंगायतों के सम्पर्क में आकर अपने को क्षत्रिय कहलाने के प्रयत्नों का उल्लेख किया है।

इसी प्रकार से राजस्थान व मध्य प्रदेश की कुछ जनजातियाँ जैसे भील, गोंड आदि जातियाँ संस्कृतिकरण का सहारा लेकर अपने क्षत्रिय होने का दावा कर रही हैं।

प्रश्न 12.
धर्मनिरपेक्षीकरण के सम्बन्ध में एवरक्रामी ने क्या कहा?
उत्तर:
एवरक्रामी के विचार धर्मनिरपेक्षीकरण के विषय में इस प्रकार से है –
एवरक्रामी के अनुसार:
धर्मनिरपेक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत धार्मिक विचार, रिवाज एवं संस्थाएँ अपने सामाजिक महत्त्व को समाज में कम कर रही है। इस परिभाषा के माध्यम से वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि धर्मनिरपेक्षीकरण वह प्रक्रिया है जो ‘सर्वधर्म समभाव’ की भावना को विकसित करके सभी धर्मों के प्रति समान आदर व श्रद्धा प्रकट करने के लिए प्रोत्साहित करती रहती है।
अतः धर्मनिरपेक्षीकरण में ऐसी भावना निहित है जो धर्म के प्रभाव को कम करके धार्मिक रूढ़ियों को प्रभावहीन बनाती है।

प्रश्न 13.
श्रीनिवास ने धर्मनिरपेक्षीकरण की परिभाषा में तीन कौन से मुख्य तत्वों का उल्लेख किया?
उत्तर:
श्रीनिवास द्वारा धर्मनिरपेक्षीकरण की परिभाषा में मुख्य रूप से तीन तत्त्वों का उल्लेख किया है जो निम्न प्रकार से है –

  1. धार्मिकता में कमी:
    श्रीनिवास के अनुसार समाज में जैसे – जैसे धर्मनिरपेक्षीकरण की भावना का विकास होगा, वैसे – वैसे लोगों की धार्मिक भावनाओं में कमी होती जाएगी।
  2. तार्किकता:
    इस प्रक्रिया के कारण लोगों में तर्क की भावना का संचार होता है वे किसी भी तथ्य को बुद्धि या तर्क के आधार पर ही स्वीकार करेंगे। इस प्रकार से धर्मनिरपेक्षीकरण से लोगों में ज्ञान-विज्ञान के प्रसार से उनकी तार्किकता में वृद्धि होगी।
  3. विभेदीकरण:
    इस प्रक्रिया के कारण सम्पूर्ण समाज के अंतर्गत लोगों को अनेक आधारों पर विभाजित किया जाता है। श्रीनिवास के अनुसार समाज में जैसे – जैसे धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, ज्यों – ज्यों ही समाज में विभेदीकरण की प्रक्रिया भी समाज में प्रबल होती जाएगी।

प्रश्न 14.
ब्रायन विल्सन ने धर्मनिरपेक्षीकरण के उद्भव के किन मुख्य दो कारकों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
ब्रायन आर. विल्सन के अनुसार – “धर्मनिरपेक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया को दर्शाती हैं, जिसके अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ व धार्मिक अवधारणाओं की पकड़ का प्रभाव से बहुत हद तक मुक्त हो जाती है।”
उन्होंने धर्मनिरपेक्षीकरण के उद्भव के मुख्य रूप से दो कारकों का उल्लेख किया है –

  1. साम्यवादी विचारधारा का उदय।
  2. ट्रेड यूनियन जैसे संगठनों का विकास।

विल्सन के अनुसार समाज में साम्यवादी विचारधारा के उत्पन्न होने से तथा ट्रेड यूनियन जैसे संगठनों के विकास से धर्मनिरपेक्षीकरण की भावना को काफी बल मिला है। इस प्रक्रिया में किसी भी धर्म विशेष पर जोर नहीं दिया जाता है और न ही किसी धर्म विशेष को प्राथमिकता दी जाती है।
धर्मनिरपेक्षीकरण समाज में सर्वप्रथम प्राथमिकता समाज के अधिकतम सदस्यों के अधिकतम लाभ को दी जाती है। इस प्रकार धर्मनिरपेक्षीकरण सर्वहितकारी समाज की विचारधारा (कल्पना) को जन्म देता है।

प्रश्न 15.
योगेन्द्र सिंह द्वारा आधुनिकीकरण की दी गई परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
योगेन्द्र सिंह के अनुसार – “आधुनिकीकरण एक संस्कृति प्रत्युत्तर के रूप में मौजूद है, जिनमें उन विशेषताओं का समावेश है, जो प्राथमिक रूप से विश्वव्यापक एवं उद्विकासीय है।” इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आधुनिकीकरण का. आशय केवल प्राविधिक उन्नति से ही नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक विश्व दृष्टिकोण, समकालीन समस्याओं के लिए मानविकी का आन्तरीकरण एवं विज्ञान का दार्शनिक दृष्टिकोण होना भी आवश्यक है।
जब किसी समाज की सांस्कृतिक व्यवस्था अपने सदस्यों को यह अवसर प्रदान करती है कि वे मानवीय प्रकृति तथा सामाजिक सम्बन्धों के विषय में स्वतंत्रतापूर्वक विचार कर सकें तथा विवेकपूर्ण निर्णय ले सकें तो आधुनिकीकरण के विकास का मार्ग समाज में प्रशस्त हो जाता है। अतः आधुनिकीकरण की प्रक्रिया आधुनिकत्तम जीवन विधि को अपनाने के पक्ष में है।

प्रश्न 16.
लर्नर द्वारा आधुनिकीकरण की दी गई विशेषताओं में से चार विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
लर्नर ने प्रसिद्ध पुस्तक “दि पासिंग ऑफ ट्रेडीशनल सोसायटी” में आधुनिकीकरण की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है –

  1. वैज्ञानिक भावना।
  2. नगरीकरण में वृद्धि।
  3. संचार साधनों में क्रान्ति।
  4. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि।

इन सभी विशेषताओं का प्रमुख दृष्टिकोण मानव जीवन के सभी पक्षों में सुधार, नवीनता के प्रति लचीलापन एवं परिवर्तन को स्वीकार करना है। इसके साथ ही लर्नर ने आधुनिकीकरण के संदर्भ में यह भी स्पष्ट किया है कि आधुनिकीकरण को प्रक्रिया का सम्बन्ध उन दशाओं के निर्माण से है जिनमें कोई समाज व्यक्तिगत क्रियाओं और संस्थागत संरचना की दृष्टि से विभेदीकृत हो जाता है और उनमें विशेषिकरण बढ़ जाता है।

प्रश्न 17.
उत्तर – आधुनिकीकरण क्या है? संक्षिप्त में लिखें।
उत्तर:
उत्तर – आधुनिकीकरण को आधुनिकीकरण के एक विकल्प के तौर पर देखा जा सकता है। सर्वप्रथम समाजशास्त्र में “Post Modernity Condition” में उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा का प्रतिपादन अरनॉल्ड टॉयनबी ने किया था।

उत्तर – आधुनिकीकरण का अर्थ:
इससे आशय एक ऐतिहासिक काल से है। यह काल आधुनिकता के काल की समाप्ति के बाद प्रारम्भ होता है तथा यह आधुनिकीकरण का एक प्रकार से विकल्प ही है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री ‘एंथनी गिडेन्स’ ने आधुनिकता में होने वाले ऐसे परिवर्तनों को उत्तर या पछेती आधुनिकता कहा है जिसकी दो

प्रमुख विशेषताएँ हैं –

  1. वैश्वीकरण।
  2. परावर्तकता। (अर्थात् दूसरों ने व्यवहार के साथ – साथ अपने व्यवहार पर भी नजर रखने व नियंत्रण करने से है।)

प्रश्न 18.
उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा के सम्बन्ध में कोलिनिकोस ने क्या लिखा है?
उत्तर:
कोलिनिकोस ने अपनी पुस्तक “अगेंस्ट पोस्ट मोडरनिटी माक्सीस्ट क्रिस्टिस” में लिखा है कि उत्तर – आधुनिकता और कुछ न होकर केवल यह बताती है कि समाज के कुछ सफेदपोश (white coller) अत्यधिक उपयोग करते हैं। इसके साथ ही यह अवधारणा एक पूँजीवादी अवधारणा कहलाती है। समाज में समकालीन समाजशास्त्री जो प्रकार्यवाद तथा मार्क्सवाद के प्रणेता माने जाते हैं वे इस प्रक्रिया को स्वीकार नहीं करते हैं। कोलनिकोस भी एक समकालीन समाजशास्त्री हैं जिनके अनुसार उत्तर – आधुनिकता को अवधारणा का प्रयोग समाज के उच्च वर्गों के व्यक्ति के द्वारा जो अपने पेशे के अंतर्गत कुछ गलत कार्यों को करते हैं।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज सुधार आन्दोलन किस प्रकार 19वीं सदी में भारत में सांस्कृतिक परिवर्तन के उत्तरदायी कारक बने, विवेचित कीजिए।
उत्तर:
समाज सुधार आंदोलनों ने भारतीय समाज में अपनी अहं भूमिका का निर्वाह किया है समाज सुधार आंदोलनों के अनेक ऐसे महत्त्वपूर्ण कारक हैं, जिसके वजह से समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए हैं। जिनका विवरण निम्न प्रकार से है –
1.बाल – विवाह प्रथा:
प्राचीन समय में भारतीय समाज में बाल – विवाह का चलन काफी प्रबल था। माता – पिता के द्वारा कम आयु में ही बच्चों की शादियाँ करवा दी जाती थीं जिससे आगे चलकर महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय हो गई।

2. सती – प्रथा:
इस प्रथा ने भी महिलाओं के जीवन में काफी समस्याओं को उत्पन्न किया। प्राचीन समय में महिलाओं को अपने स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार प्राप्त नहीं था। जिस भी विवाहित स्त्री का पति का देहांत हुआ है, उस स्त्री को अपने पति के साथ ही उसकी शैय्या पर सती होना पड़ता था।

3. महिलाओं व वंचित वर्गों के साथ भेदभाव:
19वीं सदी से पूर्व चूँकि महिलाओं व वंचित वर्गों को स्वतंत्र जीवनयापन का अधिकार प्राप्त नहीं था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अनेक त्रासदियों को भुगतना पड़ा। समाज में महिलाओं को लोक – लाज का प्रतीक माना जाता है जिसके कारण उन्हें घर की चार दीवारी के भीतर ही कैद होके रहना पड़ता था। उनका पालन – पोषण पारम्परिक विचारधाराओं के आधार पर ही किया जाता था।

समाज में महिलाओं को सदैव पुरुषों से कम आंका जाता था, जिससे समाज में लिंग – भेद की समस्या उत्पन्न हो गई। महिलाओं का कम आयु में ही विवाह हो जाना, विधवा विवाह की समस्या आदि अनेक ऐसे कारक थे, जिन्होंने महिलाओं की स्थिति को काफी हद तक तोड़ दिया था। भारतीय समाज में वंचित समूह कहे जाने वाले निम्न जातियों की स्थिति भी काफी दयनीय रही है। उनके निम्न जातियों में जन्म लेने के कारण उन्हें अनेक निर्योग्ताओं का सामना करना पड़ता था।

उच्च जाति के सदस्य उन्हें हीन दृष्टि से देखते थे। उन्हें कई अधिकारों से वंचित रखा गया था। उन्हें सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक रूप से कई समस्याओं से गुजरना पड़ता था। इसी वजह से छुआछूत की भावना भारतीय समाज में इतनी प्रबल थी। अत: उपरोक्त कारकों के विवरण से यह स्पष्ट होता है कि इन समस्त कारकों ने सामाजिक सुधार आंदोलनों को प्रेरित किया जिसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में सांस्कृतिक परिवर्तनों को इतना बल मिला।

इन आंदोलनों के फलस्वरूप ही समाज में अनेक समस्याओं से व्यक्तियों को मुक्ति मिली, जिससे वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र होकर अपने जीवन का विकास करते हुए समाज को कल्याण की ओर अग्रसर कर सके। इस प्रकार से 19वीं सदी में समाज सुधारकों के अथक प्रयास से उन्होंने सांस्कृतिक परिवर्तनों में एक अच्छी भूमिका निभाई। समाज में चली आ रही रूढ़िवादी परम्पराओं में तथा समाज की सोच में परिवर्तन लाकर व्यक्तियों के आचरण व व्यवहारों को समाज सुधारकों ने एक नवीन तथा सकारात्मक दिशा प्रदान की जो समाज में सांस्कृतिक परिवर्तनों को दर्शाती है।

प्रश्न 2.
भारत में पश्चिमीकरण के फलस्वरूप हुई सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर:
पश्चिमीकरण का अर्थ व परिभाषाअर्थ – पश्चिमीकरण की प्रक्रिया का अर्थ है पश्चिमी संस्कृति को ग्रहण करना या उसका अनुसरण करना।
परिभाषा – श्रीनिवास के अनुसार – “पश्चिमीकरण की प्रक्रिया विकास भारतीय समाज में अंग्रेजों के आगमन से प्रारम्भ हुआ है।” उनके अनुसार जब पश्चिमी देशों के रिवाजों, कार्यप्रणाली, रहन-सहन के स्तर आदि का अनुपालन जब भारतीय समाज या पूर्वी देशों के नागरिकों के द्वारा किया जाता है। तब उस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण के नाम से संबोधित किया जाता है। पश्चिमीकरण के फलस्वरूप भारतीय समाज में हुए सामाजिक परिवर्तनों का विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. परम्परागत संस्थाओं के स्थान पर नवीन संस्थाओं का उदय हुआ:
    पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में परम्परागत संस्थाए जैसे विवाह पद्धति, परिवार आदि संस्थाओं में अब बदलाव दृष्टिगोचर होता है। जो रूढ़िवादी विचारधाराओं का पालन इन संस्थाओं के अंतर्गत किया जाता था, अब उनके नियमों में परिवर्तनों को देखा जा सकता है।
  2. अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का प्रसार:
    इस प्रक्रिया के कारण भारतीय समाज में चली आ रही प्राचीन शिक्षा पद्धति के स्थान पर आधुनिक शिक्षा प्रणाली के महत्त्व में वृद्धि हुई है।
  3. नए मध्यवर्ग का उदय:
    इस प्रक्रिया के कारण समाज में उच्च व निम्न वर्ग के अलावा एक नवीन श्रेणी या वर्ग का उदय हुआ, जिसे मध्यम वर्ग के नाम से जाना जाता है। यह वर्ग प्रगतिशील है जो सदैव विकास के पथ पर अग्रसर है।
  4. भोजन – प्रणाली में बदलाव:
    जहाँ भारतीय समाज में प्राचीन समय में लोगों को जमीन पर बैठाकर पत्तलों पर भोज्य कराया जाता था, अब परिश्चमीकरण की प्रक्रिया के कारण अब उत्सवों पर लोगों को भोजन टेबल व कुर्सी पर करवाया जाता है। इससे आधुनिक भोजन प्रणाली का समाज में बदलाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
  5. जातिगत भेदभाव में शिथिलता का आना:
    समाज में पहले निम्न जातियों के सदस्यों के साथ भेदभाव किया जाता था, उन्हें हीन दृष्टि से देखा जाता था। परन्तु इस प्रक्रिया के कारण उनकी स्थिति में सुधार हुआ है, उन्हें अब अधिकार भी प्राप्त हुए हैं जिससे वह अपना जीवनयापन कर सकते हैं।

अत: उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप भारतीय समाज के प्रत्येक क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक आदि में परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न 3.
संस्कृतिकरण की अवधारणा का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा का प्रतिपादन समाजशास्त्र में सर्वप्रथम. श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक “The Religion and Society among the Coorgs of South India” में किया है।
श्रीनिवास के अनुसार:
संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई भी निम्न हिन्दू जाति के सदस्य उच्च जातियों जैसे बाह्मणों के रीति – रिवाजों, संस्कारों, विश्वासों, जीवन – विधि व अन्य प्रणालियों को ग्रहण करते हुए अपने रिवाजों व जीवन – शैली में बदलाव लाते हैं।

श्रीनिवास ने यह बताया है कि किसी भी समूह का संस्कृतिकरण उसकी प्रस्थिति को स्थानीय जाति संस्तरण में उच्चता की ओर ले जाता है। संस्कृतिकरण किसी समूह की आर्थिक अथवा राजनीतिक स्थिति में एक सुधार की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत व्यक्ति सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रतिष्ठित समूह के रीति – रिवाजों एवं उनके नामों का अनुकरण कर अपनी सामाजिक प्रस्थिति को उच्च बनाते हैं।

संस्कृतिकरण का आलोचनात्मक विश्लेषण:
श्रीनिवास के द्वारा प्रतिपादित अवधारणा संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से अनेक विद्वान सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार संस्कृतिकरण एक विषम एवं जटिल अवधारणा है। विद्वानों के अनुसार यह प्रक्रिया कोई एक अवधारणा न होकर अनेक अवधारणाओं का योग है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया यह विश्लेषण में बाधा उत्पन्न करने वाली संस्कृतिकरण की ही प्रक्रिया है।

विभिन्न विद्वानों के द्वारा दी गई संस्कृतिकरण के विपक्ष में परिभाषाएँ:

  1. मजूमदार के अनुसार:
    “संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत सैद्धान्तिक केवल एक सैद्धान्तिक रूप में ही होता है। जब हम विशिष्ट मामलों पर ध्यान देने लगते हैं। यह गतिशीलता से सम्बन्धित ज्ञान एवं अनुभव मान्यता की दृष्टि से उचित नहीं है।
  2. बैली के अनुसार: “संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के द्वारा सांस्कृतिक परिवर्तन की स्पष्ट व्याख्या करना सम्भव नहीं है।”

इस प्रकार बैली संस्कृतिकरण की अवधारणा को सांस्कृतिक परिवर्तन की व्याख्या में स्पष्ट नहीं मानते हैं। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने संस्कृतिकरण पर आलोचनात्मक टिप्पणी की है जिसे निम्न बिन्दुओं में दर्शाया जा सकता है –

  1. यह अवधारणा अपवर्जन तथा असमानता पर आधारित है।
  2. यह प्रक्रिया उच्च जाति के लोगों के द्वारा निम्न जाति के लोगों के प्रति किए जाने वाला भेदभाव एक प्रकार का विशेषधिकार है।
  3. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के व्यवहारिक दृष्टिकोण के साथ स्वाभाविक रूप से समानता की कल्पना करना सम्भव नहीं हो सकता।
  4. इस प्रक्रिया के अंतर्गत उच्च जाति की जीवन – शैली का अनुकरण को उचित मानना ठीक नहीं ठहराया जा सकता।

अतः इन आलोचनाओं के बाद भी हम संस्कृतिकरण की भावना को खारिज नहीं कर सकते क्योंकि भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विषय में जानने के लिए विशेष तौर पर जातियों के मध्य पाए जाने वाली सामाजिक – सांस्कृतिक गतिशीलता के अध्ययन में इससे काफी सहयोग प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 4.
भारत में धर्मनिरपेक्षीकरण के उद्भव के कारकों की विस्तार से व्याख्या करें।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण:
“यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ धार्मिक अवधारणाओं की पकड़ या प्रभाव से मुक्त हो जाती है।” अर्थात् धर्मनिरपेक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत धार्मिक विश्वासों में कमी आती है व समाज में बुद्धि व तर्क की महत्ता में वृद्धि होती जाती है।
भारत में धर्मनिरपेक्षीकरण के उद्भव के कारक – भारत में धर्मनिपेक्षीकरण के उद्भव के निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं –

  1. सामाजिक एवं धार्मिक आंदोलन:
    धार्मिक एवं सामाजिक आंदोलनों के उद्भव का प्रमुख उद्देश्य पुराने समय से चले आ रहे धार्मिक रीति – रिवाजों के ऐसे स्वरूपों का विरोध करना था, जो तर्क पर आधारित नहीं थे। इन आंदोलनों के द्वारा समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया गया तथा साथ ही समाज में समानता, न्याय व मानवता की भावना को स्थापित करने के प्रयास किए गए।
  2. पश्चिमीकरण:
    इस प्रक्रिया ने समाज के हर पक्ष को प्रभावित किया है, जिससे प्रत्येक क्षेत्र में बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं। पश्चिमीकरण के कारण व्यक्ति का जीवन के प्रति दृष्टिकोण में भी बदलाव आया है। इससे समाज में अलौकिक एवं अप्राकृतिक सत्ता के प्रति विश्वास में भी कमी आई है।
  3. धार्मिक संगठनों का अभाव:
    भारत में लौकिकीकरण के विकास में प्रमुख धार्मिक संगठनों के अभाव ने एक प्रमुख कारक के रूप में प्रमुख रूप से कार्य किया है।
  4. नगरीकरण:
    लौकिकीकरण की प्रक्रिया के कारण नगरों का विकास हुआ जिससे गाँवों से लोगों का नगरों की ओर पलायन हुआ। इसके साथ ही शहरों में वैज्ञानिक तथा तर्क पूर्ण चिंतन का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है।
  5. यातायात व संचार के साधन:
    इन साधनों के विकास के कारण दूरस्थ रहने वाले लोगों के बीच की दूरी कम हुई है। धर्म, जाति एवं राज्यों के नाम पर बँटे हुए लोग एक-दूसरे के करीब आए।

अत: उपरोक्त कारकों के परिणामस्वरूप समाज में धर्मनिपेक्षीकरण की स्थिति काफी सुदृढ़ हुई है।

प्रश्न 5.
आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताते हुए उत्तर – आधुनिकीकरण के बारे में बताइए।
उत्तर:
अलातास ने आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में कहा था – “आधुनिकीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान का समाज में प्रचार एवं प्रसार होता है, जिससे समाज में व्यक्तियों के स्तर में सुधार होता है तथा समाज अच्छाई की ओर बढ़ता है।” लर्नर ने अपनी पुस्तक “The Passing of Traditional Society” में आधुनिकीकरण की सात विशेषताओं का उल्लेख किया है –

  1. वैज्ञानिक भावना।
  2. नगरीकरण में वृद्धि।
  3. संचार के साधनों में क्रान्ति।
  4. शिक्षा का प्रसार।
  5. मतदान व्यवहार में वृद्धि।
  6. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि।
  7. व्यापक आर्थिक साझेदारी।

उपर्युक्त विशेषताओं का केन्द्र – बिन्दु जीवन के सभी पक्षों में सुधार, दृष्टिकोण की व्यापकता, नवीनता के प्रति लचीलापन एवं परिवर्तन के प्रति स्वीकारोक्ति है।
डेविड हारवे ने अपनी पुस्तक “Condition of Post Modernity” में उत्तर – आधुनिकीकरण के कुछ महत्त्वपूर्ण लक्षणों का विवेचन प्रस्तुत किया है, जो इस प्रकार से है –

  1. उत्तर – आधुनिकतावाद एक सांस्कृतिक पैराडिम है, यह आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक प्रक्रियाओं का सम्मिश्रण है।
  2. इसकी अभिव्यक्ति जीवन की विभिन्न शैलियों में जैसे साहित्य, दर्शन व कला आदि में दृष्टिगोचर होता है।
  3. उत्तर – आधुनिकीकरण समानता की अपेक्षा विविधता को स्वीकार करती है।
  4. यह एक बहुआयामी प्रक्रिया है।
  5. इसके केन्द्र – बिन्दु अपेक्षित महिलाएँ व हाशिए पर रहने वाले लोग हैं।

अतः उत्तर – आधुनिकीकरण आधुनिकीकरण के विकल्प के रूप में। समाज वैज्ञानिकों का मानना है कि समाज उत्तर – आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में प्रवेश कर रहा है। 20वीं सदी के दूसरे भाग में उत्तर – आधुनिकीकरण से सम्बन्धित है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी में सती प्रथा का विरोध किस समाज सुधारक ने किया?
(अ) गोविन्द रानाडे
(ब) राजा राममोहन राय
(स) दयानन्द
(द) कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) राजा राममोहन राय

प्रश्न 2.
अखिल भारतीय मुस्लिम महिला सम्मेलन में बहु विवाह के विरुद्ध प्रस्ताव किसने प्रस्तुत किया?
(अ) जहाँआरा शाहनवास
(ब) सर सैय्यद अहमद खान
(स) राजा राममोहन राय
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) जहाँआरा शाहनवास

प्रश्न 3.
मानववाद तथा बुद्धिवाद पर जोर पश्चिमीकरण का है। यह किसने कहा था?
(अ) केतकर
(ब) योगेन्द्र सिंह
(स) श्रीनिवास
(द) सभी
उत्तरमाला:
(ब) योगेन्द्र सिंह

प्रश्न 4.
“आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) श्रीनिवास
(ब) रानाडे
(स) केतकर
(द) मजूमदार
उत्तरमाला:
(अ) श्रीनिवास

प्रश्न 5.
श्रीनिवास ने 1952 में एक सरकारी बुलडोजर के चालक को जमीन समतल करते देखा। वह चालक मनोरंजन के लिए गाँव में पारम्परिक खेल दिखाता था। यह घटना कहाँ की है?
(अ) मेरठ
(ब) जयपुर
(स) मैसूर के रामपुर गाँव
(द) मथुरा
उत्तरमाला:
(स) मैसूर के रामपुर गाँव

प्रश्न 6.
परम्परागत भोजन पद्धति में भोजन के पश्चात् जूठी पत्तलों के स्थान को किससे पवित्र किया जाता था?
(अ) गोबर से लेपकर
(ब) और कूड़ा डालकर
(स) गंगाजल से पूजा करके
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) गोबर से लेपकर

प्रश्न 7.
पश्चिमीकरण ने समाज में एक नवीन वर्ग को जन्म दिया जिसे किस नाम से जाना जाता है?
(अ) अभिजात वर्ग
(ब) पूँजीवादी वर्ग
(स) सामन्तवादी वर्ग
(द) सभी
उत्तरमाला:
(अ) अभिजात वर्ग

प्रश्न 8.
“हिस्ट्री ऑफ कास्ट इन इंडिया” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) श्रीनिवास
(ब) मजूमदार
(स) केतकर
(द) सभी
उत्तरमाला:
(स) केतकर

प्रश्न 9.
“जाति एक बन्द वर्ग है” किसने कहा है?
(अ) मजूमदार एवं मदान
(ब) केतकर
(स) केतकर
(द) सभी
उत्तरमाला:
(अ) मजूमदार एवं मदान

प्रश्न 10.
श्रीनिवास ने जाति व्यवस्था को किस आधार पर विवेचना करने का प्रयास किया है?
(अ) ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता
(ब) विकासशील गतिशीलता
(स) लम्बवत् गतिशीलता
(द) सभी
उत्तरमाला:
(अ) ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता

प्रश्न 11.
संस्कृतीकरण की प्रक्रिया में सदैव किस जाति का अनुकरण किया जाता है?
(अ) ठाकुर जाति
(ब) ब्राह्मण जाति
(स) कायस्थ जाति
(द) वैश्य जाति
उत्तरमाला:
(ब) ब्राह्मण जाति

प्रश्न 12.
“कास्ट एण्ड कम्युनिकेशन इन एन इंडियन विलेज” किस समाजशास्त्री की रचना है?
(अ) केतकर
(ब) मजूमदार
(स) श्रीनिवास
(द) सभी
उत्तरमाला:
(स) श्रीनिवास

प्रश्न 13.
एफ. जी. बैली की पुस्तक का नाम है –
(अ) कास्ट एण्ड इकोनोमिक फ्रण्टियर
(ब) कास्ट इन इण्डिया
(स) हिस्ट्री ऑफ कास्ट इन इण्डिया
(द) कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) कास्ट एण्ड इकोनोमिक फ्रण्टियर

प्रश्न 14.
संस्कृतीकरण के प्रोत्साहन के प्रमुख कारक हैं –
(अ) संचार एवं यातायात के साधनों का विकास
(ब) कर्मकाण्डी क्रियाओं में सुलभता
(स) राजनीतिक प्रोत्साहन
(द) सभी
उत्तरमाला:
(द) सभी

प्रश्न 15.
धर्म निरपेक्षीकरण की परिभाषा में तीन बातें मुख्य हैं –
(अ) धार्मिकता में कमी
(ब) तार्किक चिन्तन की भावना में वृद्धि
(स) विभेदीकरण की प्रक्रिया
(द) सभी
उत्तरमाला:
(द) सभी

प्रश्न 16.
आधुनिकता को कौन नहीं स्वीकार करते हैं?
(अ) प्रकार्यवाद एवं मार्क्सवाद
(ब) पूँजीवाद
(स) समाजवाद
(द) धर्मवाद
उत्तरमाला:
(अ) प्रकार्यवाद एवं मार्क्सवाद

प्रश्न 17.
आधुनिक समाज ने प्रकृति का अंत कर दिया है। यह कथन किसका है?
(अ) केतकर
(ब) मैकमीवेन
(स) श्रीनिवास
(द) सभी का
उत्तरमाला:
(ब) मैकमीवेन

प्रश्न 18.
“दि पासिंग ऑफ ट्रेडीशनल सोसायटी” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) लर्नर
(ब) केतकर
(स) मुरे
(द) योगेन्द्र सिंह
उत्तरमाला:
(अ) लर्नर

प्रश्न 19.
आधुनिकीकरण कोई उद्देश्य नहीं है, बल्कि एक प्रक्रिया है – किसने कहा है?
(अ) लर्नर
(ब) जे. स्मिथ
(स) मुरे
(द) योगेन्द्र सिंह
उत्तरमाला:
(अ) लर्नर

प्रश्न 20.
“कन्डीशन ऑफ पोस्ट मोडर्निटी” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) डेविड हारवे
(ब) मुरे
(स) लर्नर
(द) सभी
उत्तरमाला:
(अ) डेविड हारवे

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“सामाजिक संरचना” क्या है?
उत्तर:
सामाजिक संरचना:
“सामाजिक संरचना” लोगों के सम्बन्धों की वह सतत् व्यवस्था है, जिसे सामाजिक रूप से स्थापित प्रारूप अथवा व्यवहार के प्रतिमान के रूप में सामाजिक संस्थाओं और संस्कृति के द्वारा परिभाषित और नियन्त्रित किया जाता है।

प्रश्न 2.
किस समाज सुधारक ने सती प्रथा का विरोध किया था?
उत्तर:
19वीं शताब्दी में राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का विरोध किया था।

प्रश्न 3.
अंजुमन – ए – ख्वातिन – ए – इस्लाम की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
अंजुमन – ए – ख्वाति – ए – इस्लाम की स्थापना 1914 ई. में हुई थी।

प्रश्न 4.
बहु विवाह के विरुद्ध लाए गये प्रस्ताव का किस महिलाओं की पत्रिका ने समर्थन किया?
उत्तर:
बहु विवाह के लाए गये प्रस्ताव का पंजाब से निकलने वाली महिलाओं की पत्रिका “तहसिव – ए – निसवान” ने समर्थन किया।

प्रश्न 5.
समाज सुधारकों एवं राष्ट्रवादी नेताओं का मूल उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
समाज सुधारकों एवं राष्ट्रवादी नेताओं का मूल उद्देश्य उन सामाजिक व्यवहारों में परिवर्तन लाने का था, जो महिलाओं एवं वंचित समूहों के साथ भेदभाव करते थे।

प्रश्न 6.
उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अंग्रेजों ने भारत में किन कुरीतियों को मिटाया था?
उत्तर:
19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अंग्रेजों ने भारतीय जनमत के समर्थन में सती प्रथा (1829), बालिका हत्या, मानव बलि और दास प्रथा (1833) जैसी कुरीतियों को मिटाया था।

प्रश्न 7.
“आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
“आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन” पुस्तक के लेखक श्रीनिवास हैं।

प्रश्न 8.
योगेन्द्र सिंह ने पश्चिमीकरण की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
योगेन्द्र सिंह की पश्चिमीकरण की परिभाषा-“मानववाद तथा बुद्धिवाद पर जोर पश्चिमीकरण का है, जिसने भारत में संस्थागत तथा सामाजिक सुधारों का सिलसिला प्रारम्भ कर दिया। वैज्ञानिक, औद्योगिक एवं शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, राष्ट्रीयता का उदय, देश में नवीन राजनीतिक संस्कृति और नेतृत्व सब पश्चिमीकरण के उपोत्पादन हैं।”

प्रश्न 9.
पश्चिमीकरण के कारण भोजन ग्रहण करने के तरीकों में क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर:
पहले लोग जमीन पर बैठकर भोजन करते थे और उस स्थान को गोबर से लेपकर पवित्र किया जाता था। पश्चिमीकरण के कारण लोग जमीन पर बैठकर भोजन ग्रहण करने के स्थान पर टेबल और कुर्सी का प्रयोग भोजन करने के लिए किया जाने लगा है।

प्रश्न 10.
“निम्न जाति” शब्द का प्रयोग किस समाजशास्त्री ने किया?
उत्तर:
श्रीनिवास ने जातिगत संस्तरण व्यवस्था को विवेचित करने के लिए समाज के वंचित समूह के लिए “निम्न जाति” शब्द का प्रयोग किया था।

प्रश्न 11.
जाति एक बन्द वर्ग है। यह कथन किस समाजशास्त्री का है?
उत्तर:
“जाति एक बन्द वर्ग है” यह कथन समाजशास्त्री मजूमदार एवं मदान का है।

प्रश्न 12.
संस्कृतिकरण की अवधारणा से पूर्व जाति व्यवस्था को किस पर आधारित माना जाता रहा था?
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा से पूर्व यह माना जाता था कि जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित कठोर व्यवस्था है।

प्रश्न 13.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में सदैव किस जाति का अनुकरण किया जाता है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में सदैव ब्राह्मण जाति का ही अनुकरण किया जाता है।

प्रश्न 14.
संस्कृतिकरण के प्रोत्साहन के कौन – कौन कारक हैं?
उत्तर:
संस्कृतिकरण के प्रोत्साहन के तीन प्रमुख कारक हैं –

  1. संचार एवं यातायात के साधनों का विकास।
  2. कर्मकाण्डी क्रियाओं में सुलभता।
  3. राजनीतिक प्रोत्साहन।

प्रश्न 15.
संस्कृतिकरण की अवधारणा कैसी है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा एक विषम एवं जटिल अवधारणा है।

प्रश्न 16.
“कास्ट एण्ड इकोनोमिक फ्रण्टियर” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
“कास्ट एण्ड इकोनोमिक फ्रण्टियर” पुस्तक के लेखक एफ. जी. बैली हैं।

प्रश्न 17.
धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में किस पर अधिक बल दिया गया है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में तर्कयुक्त चिंतन, स्वतन्त्रता एवं विचारों पर अधिक बल दिया गया है।

प्रश्न 18.
“सोशल चेंज इन मॉडर्न इण्डिया” नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
सोशल चेंज इन मॉडर्न इण्डिया नामक पुस्तक के लेखक एम. एन. श्रीनिवास है।

प्रश्न 19.
एबर क्रॉमी ने धर्मनिरपेक्षीकरण की कौन – सी परिभाषा दी है?
उत्तर:
एबर क्रॉमी:
धर्मनिरपेक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत धार्मिक विचार, रिवाज एवं संस्थाएँ अपनी सामाजिक महत्ता खो देती है।

प्रश्न 20.
पुनर्जागरण आन्दोलन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
पुनर्जागरण आन्दोलन-पुनर्जागरण आन्दोलन की शुरूआत इंग्लैण्ड से हुई है। पुनर्जागरण आन्दोलन तर्कसंगत ज्ञान में वृद्धि करने वाला आन्दोलन था। इससे ज्ञान के क्षेत्र में पुर्नव्याख्याएँ प्रारम्भ होने लगी थी। ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में तर्कसंगत खोज का दौर प्रारम्भ हुआ था।

प्रश्न 21.
उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा को किस समाजशास्त्री ने सर्वप्रथम प्रयोग किया?
उत्तर:
उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा को सर्वप्रथम अरनाल्ड टोयन्बी ने अपनी पुस्तक “पोस्ट मॉडर्न कन्डीशन” में प्रयोग किया।

प्रश्न 22.
समाजशास्त्री रिचार्ड गोट ने उत्तर – आधुनिकता की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
रिचार्ड गोट के अनुसार – “उत्तर – आधुनिकता, आधुनिकता से मुक्ति दिलाने वाला एक स्वरूप है। यह एक विखंडित आन्दोलन है, जिसमें सैकड़ों फूल खिल सकते हैं। उत्तर – आधुनिक में बहु – संस्कृतियों का निवास हो सकता है।”

प्रश्न 23.
“कन्डीशन ऑफ पोस्ट मोडर्निटी” नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
“कन्डीशन ऑफ पोस्ट मोडर्निटी” नामक पुस्तक के लेखक डेविड हारवे हैं।

प्रश्न 24.
लर्नर की पुस्तक का नाम लिखो।
उत्तर:
“दि पासिंग ऑफ ट्रेडीशनल सोसायटी” नामक पुस्तक के लेखक लर्नर हैं।

प्रश्न 25.
उत्तर – आधुनिकता कैसी अवधारणा है?
उत्तर:
उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा एक पूँजीवादी अवधारणा है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब समाज की समस्त इकाइयाँ आपस में मिलकर एक प्रतिपादित इकाई या ढांचे का निर्माण करते हैं तो उसे सामाजिक संरचना कहते हैं। सामाजिक संरचना का शाब्दिक अर्थ – ढांचा या आकार है।

विशेषताएँ:

  1. यह समाज की एक अभूर्त अवधारणा है।
  2. सामाजिक संरचनाएँ उपसंरचनाओं द्वारा निर्मित होती है।
  3. ये स्थानीय विशषताओं से प्रभावित होती है।
  4. सामाजिक संरचना कोई स्थित वस्तु नहीं है। यह एक परिवर्तनशील व्यवस्था है।
  5. यह इकाइयों की एक क्रमबद्ध व्यवस्था है।
  6. सामाजिक संरचना के माध्यम से ही समाज में विभिन्न पक्षों के ब्राह्य स्वरूप को जाना जा सकता है।
  7. सामाजिक संरचना की इकाइयाँ आपस में परम्पर रूप से सम्बन्धित होती हैं।

प्रश्न 2.
औद्योगीकरण से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन हस्त – उपकरणों के स्थान पर निर्जीव शक्ति द्वारा संचालित मशीनों के द्वारा किया जाता है। संचालित मशीनों का प्रयोग न केवल कारखानों, अपितु यातायात, संचार, परिवर्तन तथा खेती आदि सभी क्षेत्रों में भी किया जाता है।

विशेषताएँ:

  1. औद्योगीकरण की प्रक्रिया से नगरों का विकास हुआ है।
  2. इसने श्रम – विभाजन को बढ़ावा दिया है।
  3. औद्योगीकरण में श्रम – विभाजन एवं विशेषीकरण के कारण व मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर तीव्र मात्र में होने लगा।
  4. औद्योगीकरण के कारण मानव की सुख – सुविधाओं एवं जीवन – स्तर में वृद्धि हुई है।
  5. विचारों में विविधता पनपी है।
  6. कृषि का यंत्रीकरण हुआ है।

प्रश्न 3.
नगरीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँवों का नगरों में बदलने की प्रक्रिया को नगरीकरण की संज्ञा दी जाती है। कुछ विद्वानों ने ग्रामीण जनसंख्या के नगर की ओर पलायन की प्रक्रिया को नगरीकरण का नाम दिया है। नगरीकरण की प्रक्रिया का प्रयोग कई अर्थों में किया गया है, जैसे नगरीय होना, नगरों की ओर जाना, कृषि कार्यों को छोड़कर गैर – कृषिहर कार्यों को अपनाना आदि।

आजकल इस अवधारणा का प्रयोग वृहत् समुदायों (नगरों) में जनसंख्या के केन्द्रीकरण के लिए किया जाने लगा है जहाँ व्यवसायों की प्रकृति गैर – कृषि व्यवसाय होती है। वर्तमान औद्योगिक नगर औद्योगीकरण की ही देन हैं। जब एक स्थान पर एक विशाल उद्योग स्थापित हो जाते हैं तो उस स्थान पर कार्य करने के लिए लोग उमड़ पड़ते हैं तथा धीरे – धीरे वह स्थान नगर के रूप में विकसित हो जाता है। अत: नगरीकरण नगर निर्माण व नगरों की वृद्धि की प्रक्रिया है।

प्रश्न 4.
समाज सुधार आंदोलनों ने समाज में फैली किन सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया है?
उत्तर:
19वीं सदी में भारतीय समाज में समाज – सुधारकों द्वारा अनेक आंदोलन चलाए गए थे। इन सामाजिक आंदोलनों ने समाज में व्याप्त अनेक सामाजिक समस्याओं या कुरीतियों का अंत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। ये सामाजिक कुरीतियाँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. बाल – विवाह: कम आयु में बच्चों का विवाह कराना भारतीय समाज में एक आम बात थी। आंदोलनों से इसमें काफी कमी आई है।
  2. सती: प्रथा को भी खत्म करवा कर आंदोलनों ने अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  3. इन आंदोलनों ने समाज में जातिगत भेदभाव को भी कम किया था।
  4. इन आंदोलनों से लोगों में जागरूकता का प्रसार हुआ, जिससे अज्ञानता समाप्त हुई।

प्रश्न 5.
समाज सुधार आंदोलनों का समाज पर पड़ने वाले तीन सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाज सुधार आंदोलनों का समाज पर पड़ने वाले दो सकारात्मक प्रभाव इस प्रकार से है –

  1. मानसिकता में बदलाव: इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप समाज में आम जनों की सोच में बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं।
  2. भेदभाव में कमी: महिलाओं व वंचित वर्गों के साथ जो भेदभाव किए जाते थे, इन आंदोलनों से उन्हें मुक्ति मिल गई।
  3. सामाजिक कुरीतियों का अंत: इन आंदोलनों के प्रभाव से समाज में कई सामाजिक समस्याओं का अंत करने में सहायता मिली है।

प्रश्न 6.
जनसंचार साधनों से आम नागरिकों को क्या लाभ हुए?
उत्तर:
जनसंचार साधनों के माध्यम से समाज में लोगों को अनेक लाभ हुए है –

  1. जनसंचार माध्यमों से लोगों को बुद्धिजीवियों व समाज सुधारकों के विचारों को जानने का अवसर प्राप्त हुआ।
  2. दूरस्थ स्थानों पर रहने वाले लोगों को समस्त क्षेत्रों की जानकारी भी उपलब्ध हो जाती थी।
  3. लोगों को समाज में सामाजिक समस्याओं जैसे सती प्रथा आदि से मुक्ति मिली।
  4. सदस्यों को अपने अधिकारों के विषय में ज्ञात हुआ।
  5. इन साधनों से समाज में अंधविश्वास की प्रवृत्ति में कमी आई है।

प्रश्न 7.
पश्चिमीकरण की प्रमुख दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण की दो विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. यह प्रक्रिया नैतिक रूप से तटस्थ है, जिसका उद्देश्य अच्छे या बुरे को अभिव्यक्त करना नहीं है।
  2. यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसका प्रभाव सभी जगह समान रूप से नहीं पड़ता है तथा इसका आंकलन भी नहीं किया जा सकता।
  3. पश्चिमी संस्कृति को आधुनिक संस्कृति का ही एक रूप माना जाता है।
  4. पश्चिमीकरण की अवधारणा बुद्धिवाद पर आधारित है।
  5. पश्चिमीकरण की प्रक्रिया को तर्कसंगत प्रक्रिया भी माना जाता है क्योंकि इसमें तर्क पर आधारित तथ्यों को ही सत्य माना जाता है।

प्रश्न 8.
पश्चिमीकरण से समाज में हुए बदलावों को बिन्दुओं में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण से समाज में हुए बदलावों को हम दो बिन्दुओं में स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. बदलाव की प्रक्रिया: पश्चिमीकरण समाज में एक प्रकार से परिवर्तन की सूचक है जिसके आधार पर समाज के हर क्षेत्र में बदलाव दृष्टिगोचर होता है।
  2. शिक्षा का प्रसार: प्राचीन विद्या मंदिरों का स्थान नवीन स्कूलों ने ले लिया। भवन आदि का महत्त्व शिक्षा संस्थाओं में बढ़ गया है। नए उपकरण, नई शिक्षा प्रणलियाँ आदि पाश्चात्य प्रभावों का ही फल है।
  3. जाति पर प्रभाव: भारत में अनेक उद्योगों के विकास होने से विभिन्न जातियों के सदस्य एक ही स्थान पर कार्य करने लगे तथा जाति व्यवस्था में कठोर प्रतिबंधों में स्वाभाविक रूप से ढिलाई आ गई। नगरीकरण ने भी अनेक जातियों के लोगों को पारस्परिक सम्मिलन तथा सहवास के अवसर की आवश्यकता प्रदान की।

प्रश्न 9.
अभिजात – वर्ग की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी भी समाज में सर्वोच्च प्रस्थिति प्राप्त व्यक्तियों के समूह को अभिजात – वर्ग की संज्ञा दी जाती है इसका प्रयोग पेरेटो व मोजाका की कृतियों व अध्ययनों में देखने को मिलता है।

विशेषताएँ:

  1. यह समाज में उच्च प्रस्थिति प्राप्त करने वाला एक शक्तिशाली वर्ग होता है।
  2. इन्हें इनकी योग्यता व कार्य – क्षमता के आधार पर ही समाज में उच्च स्थान की प्राप्ति होती है।
  3. इनकी स्थिति समाज में सदैव परिवर्तनशील रहती है।

प्रश्न 10.
ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता सामाजिक गतिशीलता का ही एक मुख्य प्रकार है। यह वह गतिशीलता है जिसके अंतर्गत जब व्यक्ति की स्थिति एवं भूमिका में बदलाव के साथ – साथ सामाजिक वर्ग – प्रस्थिति में भी बदलाव आ जाता है। तब इसे ऊर्ध्वमुखी या शीर्ष सामाजिक गतिशीलता कहते हैं। समाज में कोई भी व्यक्ति या समूह इस गतिशीलता को अपनाकर समाज में अपनी प्रस्थिति को अन्य समूहों से उच्च कर सकते हैं। इस प्रकार की गतिशीलता किमी वर्ग प्रस्थिति अथवा प्रतिष्टा के पाने अथवा खोने का संकेत देती है।

प्रश्न 11.
जाति की मुख्य विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
जाति की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं –

  1. जाति की सदस्यता जन्म से ही निश्चित हो जाती हैं।
  2. जाति के पेशे प्रायः निश्चित होते हैं।
  3. जाति में भोजन, सहवास व विवाह पर प्रतिबन्ध पाया जाता है।
  4. जाति एक खंडात्मक व्यवस्था है जहाँ अनेक लोगों को समाज में खंडों में विभाजित किया जाता है।
  5. जाति में गतिशीलता के गुण का अभाव पाया है।

प्रश्न 12.
वर्ग का अर्थ बताइए।
उत्तर:
वर्ग सामाजिक स्तरीकरण की एक मुक्त व्यवस्था है। वर्ग के आधार पर आर्थिक स्थिति, योग्यता, क्षमता तथा शैक्षणिक स्थिति आदि हो सकते हैं। यह समाज का वह महत्त्वपूर्ण भाग होता है, जिसके सदस्यों की सामाजिक स्थितियाँ समान होती हैं, तथा उसके आधार पर इनमें सामाजिक जागरूकता भी पाई जाती है व समाज के अन्य वर्गों से ये अलग होते हैं।

प्रश्न 13.
वर्ग की सामान्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
वर्ग की सामान्य विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. वर्ग एक गतिशील धारणा है, जहाँ व्यक्ति की स्थिति समयानुसार परिवर्तित होती रहती है।
  2. वर्ग श्रेणी पर विभाजित एक व्यवस्था होती है।
  3. वर्गों के सदस्यों के बीच उच्चता व निम्नता की भावना भी पाई जाती है।
  4. यह एक मुक्त तथा लचीली प्रणाली है।

प्रश्न 14.
जाति तथा वर्ग व्यवस्था के मध्य अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जाति तथा वर्ग व्यवस्था के मध्य अंतर को निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. जाति एक स्थिर अवधारणा है, जबकि वर्ग एक गतिशील अवधारणा है।
  2. जाति एक बंद व्यवस्था है, जबकि वर्ग एक मुक्त व्यवस्था है।
  3. जाति जन्म पर आधारित होती है, जबकि वर्ग कर्म पर आधारित होती है।
  4. जाति के अंतर्गत व्यक्ति की प्रस्थिति प्रदत्त होती है, जबकि वर्ग में अर्जित प्रस्थिति पाई जाती है।

प्रश्न 15.
संस्कृतिकरण की अवधारणा को व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
श्रीनिवास के अनुसार:
“संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा निम्न जातियाँ उच्च जातियों विशेष तौर पर ब्राह्मणों के रिवाजों, संस्कारों, विश्वासों व अन्य सांस्कृतिक लक्षणों व प्रणालियों को ग्रहण करती है।” श्रीनिवास का मानना है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया अपनाने वाली जातियाँ एक – दो पीढ़ियों के बाद ही अपने से उच्च जाति में प्रवेश करने का दावा प्रस्तुत कर सकती है। किसी भी समूह का संस्कृतिकरण उसकी प्रस्थिति को स्थानीय जाति संस्तरण में उच्चता की तरफ ले जाता है।

प्रश्न 16.
संस्कृतिकरण की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
संस्कृतिकरण की विशेषताएँ:
संस्कृतिकरण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. संस्कृतिकरण में अन्य जातियाँ सदैव ब्राह्मण जाति का अनुकरण करती हैं।
  2. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया दो तरफा प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में उच्च जाति की प्रस्थिति प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील जातियाँ, जहाँ उच्च जातियों से बहुत कुछ पाया करती हैं या सीखती हैं। वहीं उन जातियों को कुछ प्रदान भी करती हैं।
  3. संस्कृतिकरण सामाजिक गतिशीलता की व्यक्तिगत क्रिया न होकर एक सामूहिक क्रिया है।
  4. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में “पदममूलक” परिवर्तन ही होते हैं। कोई संरचनात्मक मूलक परिवर्तन नहीं।
  5. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक लम्बी अवधि की प्रक्रिया है।

प्रश्न 17.
संस्कृतिकरण के प्रोत्साहन के कारक के रूप में कर्मकांडी क्रियाओं में सुलभता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रीनिवास ने कर्मकाण्डी क्रियाओं से मंत्रोच्चारण की पृथकता को संस्कृतिकरण का एक अहं व मुख्य कारक माना है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि मंत्रोच्चारण की पृथकता के कारण ब्राह्मणों के समस्त संस्कार सभी हिन्दू जातियों के लिए सुलभ हो गए। ब्राह्मणों द्वारा कथित निम्न (गैर – द्विज) जातियों पर वैदिक मंत्रोच्चारण पर प्रतिबंध भी लगाया गया था। इसके माध्यम से श्रीनिवास ने यह बताने का प्रयास किया है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से निम्न जाति के सदस्यों को उच्च जाति के सदस्यों को धार्मिक गतिविधियों का अनुसरण करने का अवसर मिला, जिससे उन्होंने अपनी धार्मिक गतिविधियों में इस प्रक्रिया के द्वारा काफी बदलाव किए।

प्रश्न 18.
संस्कृतिकरण ने समाज में किस समस्या को उत्पन्न किया?
उत्तर:
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया ने समाज में अ – संस्कृतिकरण की समस्या को उत्पन्न किया है, जिस प्रकार निम्न जाति के सदस्य जब उच्च जातियों के कार्य – प्रणालियों का अनुसरण करते हैं तो वे अपनी स्वयं की संस्कृति, रिवाजों व कर्मकाण्डों का त्याग करते हैं जिससे समाज में अ – संस्कृतिकरण की स्थिति से समस्या उत्पन्न हो जाती है। अर्थात् जहाँ इस प्रक्रिया से लोगों ने अनेक उच्च जातियों का अनुसरण किया, वहीं उन्होंने अपनी संस्कृति का भी त्याग किया, जिससे समाज में एक नवीन समस्या का उदय हुआ, जिसे अ – संस्कृतिकरण के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 19.
द्विज जाति किसे कहते हैं?
उत्तर:
द्विज संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है – ‘दोबारा जन्म लेना’। ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों का जन्म संसार में पुनः हुआ है। द्विज जाति को उच्च जाति भी कहा जाता है। यह वह जाति होती है, जिसे समाज के अंदर जनेऊ धारण करने का अधिकार प्राप्त होता है।
द्विज जाति की विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. यह समाज में एक उच्च प्रस्थिति वाली संपन्न जाति होती है।
  2. द्विज जाति को समाज में समस्त अधिकार प्राप्त होते हैं।
  3. द्विज जाति को आधार मानकर ही निम्न जाति के सदस्य इनकी जीवन-शैली का अनुसरण करती है।

प्रश्न 20.
प्रभुजाति की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘प्रभुत्त्वता’ को अंग्रेजी में ‘Dominance’ कहते हैं। समाजशास्त्र में सर्वप्रथम इसका प्रयोग M.N. Sriniwas ने किया था।
श्रीनिवास के अनुसार:
उस जाति को प्रबल या प्रभु जाति कहा जा सकता है जो किसी गाँव अथवा क्षेत्र विशेष में आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है। इस जाति का पारम्परिक एवं प्रथानुगत जातीय श्रेणी में सर्वोच्च स्थान होना जरूरी नहीं है। किसी भी जाति विशेष की ताकत, उसकी प्रस्थिति या उसकी शिक्षा किसी एक गाँव विशेष में अथवा ग्रामीण भारत के किसी क्षेत्र में उसे ‘प्रभु – जाति’ का दर्जा देते हैं।
प्रभु जाति की विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. प्रभु जाति अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ जाति होती है।
  2. प्रभु जाति आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक तौर पर शक्तिशाली होते हैं।
  3. प्रभु जाति को समाज में उच्च स्थिति प्राप्त होती है।

प्रश्न 21.
विभेदीकरण की प्रक्रिया का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“विभेदीकरण या विभेदन” से तात्पर्य विभिन्न घटनाओं में अन्तर को स्पष्ट करता है। समाजशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तरीकरण तथा सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में किया गया है। विभेदीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक संस्था के द्वारा संपादित किए जाने वाले सामाजिक कार्यकलाप विभिन्न संस्थाओं के बीच बँट जाते हैं। विभेदीकरण किसी समाज में उत्तरोतर बढ़ते हुए विशेषीकरण को प्रदर्शित करता है। विभेदीकरण, 19वीं सदी के समाजशास्त्रियों के अध्ययन का एक प्रमुख विषय रहा है।

प्रश्न 22.
ब्रायन आर. विलसन ने धर्मनिरपेक्षीकरण की क्या परिभाषा दी है? बताइए।
उत्तर:
ब्रायन आर. विलसन के अनुसार – “धर्मनिरपेक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया को इंगित करती है, जिसके अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ, धार्मिक अवधारणाओं की पकड़ या प्रभाव से बहुत हद तक मुक्त हो जाती है।” धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत प्रतिदिन के जीवन पर धार्मिक नियंत्रण कम हो जाता है। कर्मकाण्ड प्रक्रिया को तर्क द्वारा बताना तथा धार्मिक विश्वास के प्रति विरोधाभास की स्थिति का विकास करना है।

प्रश्न 23.
धर्मनिरपेक्षीकरण के लक्षणों को संक्षिप्त शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण के लक्षणों का विवरण निम्न प्रकार से है –

  1. यह प्रक्रिया तर्कसंगत चिंतन, स्वतंत्रता तथा विचारों पर बल देता है।
  2. यह धर्म के सिद्धांतों को व्यावहारिक क्रियाओं में परिवर्तित करती है।
  3. यह प्रक्रिया दकियानूसी विचारों का खंडन करती है।

प्रश्न 24.
धर्मनिरपेक्षीकरण में पुनर्जागरण आंदोलनों ने क्या कार्य किया है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया ने पुनर्जागरण आंदोलनों में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –

  1. पुनर्जागरण आंदोलन ने समाज में तर्कपूर्ण ज्ञान में वृद्धि की है।
  2. इस काल में आंदोलनों ने अंधविश्वासों पर प्रहार किया था।
  3. किसी भी ज्ञान को बिना तर्क या सत्यता के आधार के बिना स्वीकार नहीं किया जाता था।
  4. इस काल में ज्ञान का संचार हुआ था।

प्रश्न 25.
आधुनिकीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुरे ने अपनी पुस्तक “Social Change” में यह स्पष्ट किया है कि “आधुनिकीकरण के अंतर्गत परम्परागत अथवा पूर्ण आधुनिक समाज का पूर्ण परिवर्तन वहाँ की औद्योगिकी एवं उससे सम्बन्धित सामाजिक संगठन के रूप में होता है, जो पश्चिमी देशों के विकसित अथवा आर्थिक दृष्टि से समृद्धशाली और राजनीतिक दृष्टि से स्थिर राष्टों में पाई जाती है।” आधुनिकीकरण को सांस्कृतिक सर्वव्यापी प्रक्रिया माना जा सकता है। आधुनिकीकरण का आशय केवल प्राविधिक उन्नति से ही नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी है।

प्रश्न 26.
आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
लर्नर ने आधुनिकीकरण की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं –

  1. वैज्ञानिक भावना का पाया जाना।
  2. नगरीकरण में इस प्रक्रिया से वृद्धि हुई है।
  3. शिक्षा में विकास हुआ है।
  4. संचार के साधनों का विकास हुआ है।
  5. व्यापक आर्थिक साझेदारी बढ़ी है।
  6. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 27.
उत्तर – आधुनिकता के संदर्भ में समाजशास्त्री रिचार्ड गोट की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
गोट के अनुसार – “उत्तर – आधुनिकता आधुनिकता से मुक्ति दिलाने वाला एक स्वरूप है। यह एक विखंडित आंदोलन है, जिसमें सैकड़ों फूल खिल सकते हैं। उत्तर – आधुनिकता में बहु – संस्कृतियों का निवास हो सकता है।”
अत: उत्तर – आधुनिकता का आशय ऐतिहासिक काल से है। यह काल आधुनिकता के बाद प्रारम्भ होता है। यह सम्पूर्ण अवधारणा सांस्कृतिक है, जिससे समाज का विकास होता है।

प्रश्न 28.
डेविड हारवे ने उत्तर – आधुनिकता के कौन – से लक्षण बताए हैं?
उत्तर:
उत्तर – आधुनिकता के लक्षण – डेविड हारवे ने “कन्डीशन ऑफ पोस्ट मोडर्निटी” में उत्तर – आधुनिकता के निम्न लक्षण बताए हैं –

  1. उत्तर – आधुनिकतावाद एक सांस्कृतिक पैराडिम है।
  2. उत्तर – आधुनिकता बहुआयामी होती है।
  3. उत्तर – आधुनिकता में विखण्डन होता है, जो विखण्डन के रूप में यह समानता के स्थान पर विविधता को स्वीकार करती है।
  4. उत्तर – आधुनिकता का स्थानीय स्तर पर उसकी प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया जाना चाहिए।
  5. यह पूँजीवादी विकास का एक बड़ा चरण है।
  6. उत्तर – आधुनिकता की अपनी संस्कृति होती है।

प्रश्न 29.
उदारवादी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उदारवाद का विकास 18वीं व 19वीं सदी में जीवन के विभिन्न पक्षों – राजनीतिक, आर्थिक तथा धार्मिक पक्षों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता हेतु आंदोलन के फलस्वरूप हुआ है। यह विचारधारा सरकार अथवा समृद्ध वर्ग द्वारा व्यक्तियों पर प्रभुत्त्व या अन्य किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप का प्रतिकार करती है। यह एक ऐसी विचारधारा है जो व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा कल्याण को बढ़ावा देती है। तथा साथ ही यह सैनिकवाद, नौकरशाही व सामंतवाद जैसी विचारधाराओं का प्रतिकार करती है। यह एक प्रकार से सामाजिक हितों व कल्याण को बढ़ावा देती है।

प्रश्न 30.
आधुनिकता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आधुनिकता को अंग्रेजी में ‘Modernity’ कहते हैं। बुद्धिवाद तथा उपयोगितावाद के दर्शन पर आधारित सोचने – समझने तथा व्यवहार करने के ऐसे तौर – तरीकों को सामान्यतः आधुनिकता कहा जाता है, जिसमें प्रगति की आकांक्षा, विकास की आशा व परिवर्तन के अनुरूप अपने आपको ढालने का भाव निहित होता है।

आधुनिकता की विशेषताएँ:

  1. आधुनिकता एक प्रकार से आधुनिक बनने की प्रक्रिया है।
  2. आधुनिकता की प्रक्रिया विकास की परिचायक है।
  3. आधुनिकता तर्क व बुद्धि को महत्त्व प्रदान करती है।
  4. आधुनिकता की प्रक्रिया विचारधारा को व्यापक बनाती है।
  5. आधुनिकता परम्परा का विरोध करती है। अतः संक्षेप में आधुनिकता बुद्धिवादी बनने, अंधविश्वासों से बाहर निकलने एवं नैतिकता में उदारता बरतने की एक प्रक्रिया है।

प्रश्न 31.
उपनिवेशवाद ने प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
उपनिवेशवाद पूँजीवादी व्यवस्था पर आधारित थी। अंग्रेजों ने अपने हितों की पूर्ति एवं स्वयं के लाभ के लिए भारत में रेल की शुरूआत की जिसके कारण भारत के लोगों को एक स्थान से दूसरे तक आने – जाने की सुविधा मिली। रेल यातायात के कारण लोग रोजगार की तलाश में गाँव से नगरों की ओर पलायान करने लगे। इसके कारण औद्योगीकरण एवं नगरीकरण को भी बढ़ावा मिला।

औद्योगीकरण में बड़े – बड़े उद्योग लगे, जिसमें बड़ी – बड़ी मशीनों से अधिक उत्पादन हुआ। औद्योगीकरण का तात्पर्य मशीनों पर आधारित उत्पाद ही नहीं है। इसके कारण, नए सामाजिक सम्बन्ध और नए सामाजिक समूहों का भी उदय हुआ और इसके कारण नए विचारों का विकास भी सम्भव हो सका। लोग आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने से क्रान्ति के अवसर मिलने लगे।
अतः इस प्रकार से उपनिवेशवाद ने प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित किया था।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज सुधारकों के विचारों को प्रसार में संचार माध्यमों का क्या योगदान रहा है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समाज सुधारकों के विचारों को सम्पूर्ण भारत में फैलाने में संचार माध्यमों ने बहुत ही अहं भूमिका का निर्वाह किया है, जिसे हम निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझ सकते हैं –

  1. 19वीं सदी में संचार साधनों के द्वारा समाज सुधारकों ने समाज में फैली सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया।
  2. संचार के विभिन्न स्वरूपों के द्वारा नवीन तकनीक का विकास हुआ।
  3. प्रिंटिंग प्रेस, टेलीग्राफ व माइकोफोन ने भारतीय समाज में आम नागरिकों तक समाज सुधारकों के विचारों को पहुंचाया।
  4. प्रेस के माध्यम से पत्र – पत्रिकाएँ छापी गईं, जिससे लोगों को अनेक सूचनाएँ प्राप्त होती थी।
  5. प्रिंटिंग प्रेस के द्वारा ही अखबार की छपाई का कार्य काफी तीव्र गति से होने लगा।
  6. अखबारों के अध्ययन से लोगों में चेतना का प्रारम्भ हुआ।
  7. टेलीग्राफ व माइक्रोफोन द्वारा विभिन्न महत्त्वपूर्ण सूचनाओं का आदान – प्रदान किया गया।
  8. इन संचार के साधनों से लोगों के सांस्कृतिक व्यवहारों में बदलाव दृष्टिगोचर हुए।
  9. इनके माध्यमों से सामाजिक संगठनों ने भी जन – जागृति का कार्य प्रारम्भ किया।
  10. संचार साधनों के आधार पर ही समाज सुधारक समाज में अनेक राजनीतिक व सामाजिक गतिविधियों का संचालन करते थे।
  11. संचार साधनों के द्वारा ही अनेक सभाओं व गोष्ठियों का आयोजन किया जाता था।
  12. संचार साधनों के सहायता से ही लोगों को समाज की ज्वलत समस्याओं के विषय में जानकारी प्राप्त हुई।
  13. संचार माध्यमों ने समाज की एक प्रकार से दिशा व दशा दोनों को ही परिवर्तित कर दिया।
  14. इन साधनों की सहायता से ही समाज में स्त्रियों व वंचित समूहों की स्थिति में सुधार किया गया।
  15. महिलाओं में शिक्षा का अधिकार दिलाने में इन साधनों ने काफी सहायता की।
  16. बालिकाओं के अध्ययन के लिए अनेक विद्यालय खोले गए।
  17. इससे शिक्षा की चेतना का विकास हुआ।
  18. लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में संचार माध्यमों ने काफी सहायता की।
  19. विधवा – पुनर्विवाह का प्रसार हुआ।
  20. इसके अलावा उदारवाद, परिवार रचना व विवाह से सम्बन्धित अनेक विचारों ने सामाजिक परिवर्तन को लाने में अपना योगदान दिया।

प्रश्न 2.
पश्चिमीकरण से क्या तात्पर्य है? पश्चिमीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण:
परिभाषा एवं अर्थ – पश्चिमीकरण का तात्पर्य उस उप – सांस्कृतिक प्रतिमान से है, जिसे भारत में कुछ लोगों ने स्वीकार किया। ये लोग पश्चिमी संस्कृति के सम्पर्क में आये। इन लोगों ने मध्यम वर्गीय एवं बुद्धिजीवी वर्ग के लोग सम्मिलित थे।
“मानववाद तथा बुद्धिवाद पर जोर पश्चिमीकरण का है, जिसने भारत में संस्थागत तथा सामाजिक सुधारों का सिलसिला प्रारम्भ कर दिया। वैज्ञानिक, औद्योगिक एवं शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, राष्ट्रीयता का उदय, देश में नवीन राजनीतिक संस्कृति और नेतृत्व सब पश्चिमीकरण उपोत्पादन है” – योगेन्द्र सिंह
श्री निवास – “अंग्रेजी शासन के कारण भारतीय समाज और संस्कृति में बुनियादी और स्थायी परिवर्तन हुए।” पाश्चात्य संस्कृति का यह काल अन्य कालों से भिन्न था। इसके कारण भारत में गंभीर चिंतन तथा बहुविधि परिवर्तन हुए। पश्चिमीकरण की विशेषताएँ:
श्री निवास ने पश्चिमीकरण की निम्न विशेषताओं का उल्लेख किया है –

  1. पश्चिमीकरण का प्रभाव भारत में प्रत्येक क्षेत्र पर पड़ा है। यह क्षेत्र सांस्कृतिक क्षेत्र हो या आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक क्षेत्र।
  2. पश्चिमीकरण एक अन्तमूर्तकारी बहुस्तरीय अवधारणा है। पश्चिमीकरण के विभिन्न पक्ष कभी एक या किसी प्रक्रिया की पुष्टि करते हैं, कभी दूसरे पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।
  3. पश्चिमीकरण का प्रभाव सभी क्षेत्रों पर एकसमान रूप से नहीं पड़ता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है। पश्चिमीकरण का स्वरूप और गति एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में तथा जनसंख्या के एक भाग से दूसरे भाग में भिन्न – भिन्न रही है।
  4. पश्चिमीकरण शब्द का प्रयोग केवल परिवर्तन को दिखाने के लिए प्रयोग किया गया है।
  5. पश्चिमीकरण व्यक्ति के व्यक्तित्व के केवल एक पक्ष को प्रभावित करता है। दूसरे पक्ष को प्रभावित नहीं करता है।
  6.  यदि कोई व्यक्ति कार्य करने के साथ मनोरंजन करता है तो इसमें कोई भी असमान्यता नहीं है।
  7. पश्चिमीकरण का प्रभाव सदैव प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति पर प्रभाव डाले ऐसा जरूरी नहीं है। अनेक बार व्यक्ति परोक्ष रूप से भी प्रभावित होता है।
  8. पश्चिमीकरण ने भारतीय समाज में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित किया है।
  9. इसके द्वारा शिक्षा पद्धति में परिवर्तन आया है।
  10. पश्चिमीकरण के कारण एक नवीन मध्यम वर्ग का उदय हुआ है, जिसे अभिजात वर्ग भी कहते हैं।
  11. पश्चिमीकरण का प्रमुख उद्देश्य अच्छे या बुरे को बताना नहीं है।
  12. यह नैतिक दृष्टिकोण से तटस्थ अवधारणा है।

प्रश्न 3.
संस्कृतिकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। संस्कृतिकरण की विशेषताएँ भी लिखिए।
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा:
श्रीनिवास – “संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा निम्न जातियाँ उच्च जातियों, विशेषकर ब्राह्मणों के रीति – रिवाजों, संस्कारों, विश्वासों, जीवन विधि एवं अन्य सांस्कृतिक लक्षणों व प्रणालियों को ग्रहण करती है।”
“किसी भी समूह का संस्कृतिकरण उसकी प्रस्थिति को जाति संस्तरण में उच्चता की तरफ ले जाता है।”
“संस्कृतिकरण की प्रक्रिया अपनाने वाली जातियाँ एक – दो पीढ़ियों के पश्चात् ही अपने से उच्च जाति में प्रवेश करने का दावा प्रस्तुत कर सकती है।”
संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सांस्कृतिक दृष्टि से प्रतिष्ठित समूह के रीति – रिवाजों एवं नामों का अनुकरण कर अपनी सामाजिक प्रस्थिति को ऊँचा बनाती है।

संस्कृतिकरण की विशेषताएँ:
श्रीनिवास के अनुसार –

  1. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में सदैव ब्राह्मण जाति का ही अनुकरण किया जाता है।
  2. इस प्रक्रिया में प्रभु जातियों की आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभुत्व को जोड़ा गया है। प्रभु जाति की भूमिका को परिवर्तन करने में सांस्कृतिक संचरण का बड़ा ही महत्व है।
  3. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में उच्च जाति की प्रस्थिति प्राप्त करने के लिए कुछ जातियाँ प्रयत्नशील रहती है, जहाँ वह उच्च जाति से बहुत कुछ प्राप्त करती है या सीखती है, वहीं उन्हें कुछ प्रदान भी करती है।
  4. सम्पूर्ण भारत में देवी – देवताओं की पूजा केवल ब्राह्मण ही करते हैं, अन्य लोग नहीं।
  5. संस्कृतिकरण सामाजिक गतिशीलता की व्यक्तिगत क्रिया न होकर एक सामूहिक प्रक्रिया है।
  6. संस्कृतिकरण में पदम मूलक परिवर्तन ही होते हैं। कई संरचनात्मक मूलक परिवर्तन नहीं।
  7. संस्कृतिकरण एक लम्बी अवधि तक चलने वाली प्रक्रिया है।
  8. इस प्रक्रिया में उच्च जाति की प्रस्थिति को प्रयासरत जाति को एक लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी होती है।
  9. संस्कृतिकरण के फलस्वरूप लौकिक तथा कर्मकाण्डीय स्थिति के बीच पायी जाने वाली असमानता को दूर करने का कार्य करती है।
  10. यह उच्च प्रस्थिति को प्राप्त करने का प्रयत्न भी है।
  11. संचार के साधनों के कारण संस्कृतिकरण की प्रक्रिया तेज हुई है।
  12. वंचित समूहों को भी मुख्य धारा में लाना है।
  13. इस प्रक्रिया का सम्बन्ध निम्न जातियों से है।
  14. संस्कृतिकरण केवल हिन्दू जातियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जनजातियों एवं अर्द्ध – जनजातीय समूहों में भी यह पाई जाती है।
  15. एक निम्न जाति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा किसी अन्य प्रभु जाति को आदर्श मानकर उसके खान – पान व जीवन – शैली को अपना सकती है।
  16. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है जो भारतीय इतिहास के हर काल में दिखाई देती है।
  17. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन की सूचक है।
  18. योगेन्द्र सिंह के अनुसार “यह विचारधारा को ग्रहण करने वाली प्रक्रिया है।”
  19. इस प्रक्रिया में अनुकरण समाजीकरण आदि अवधारणाओं के अंश है।
  20. यह प्रक्रिया समाज व संस्क्रति में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख करती है।

प्रश्न 4.
“संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारत में सामाजिक – सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए किस प्रकार से जिम्मेदार है?” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा भारतीय समाज में तथा विशेष रूप से जाति – व्यवस्था में होने वाले सामाजिक – सांस्कृतिक परिवर्तनों को समझने में काफी सहायक सिद्ध हुई है। इसके द्वारा हम जाति व्यवस्था में होने वाले निम्नांकित परिवर्तनों का उल्लेख कर सकते हैं –

  1. संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एक निम्न जाति या जनजाति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या प्रभुजाति के खान – पान, रीति – रिवाजों, विश्वासों, भाषा, साहित्य तथा जीवन – शैली को ग्रहण करती है। इस प्रकार यह निम्न जाति में होने वाले विभिन्न सामाजिक – सांस्कृतिक परिवर्तन को स्पष्ट करती है।
  2. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया द्वारा एक निम्न जाति की स्थिति में पदमूलक परिवर्तन आता है। इससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जाती है तथा उसकी आस – पास की जातियों से स्थिति ऊँची हो जाती है।
  3. संस्कृतिकरण व्यक्ति या परिवार का नहीं वरन् एक जाति समूह की गतिशीलता का द्योतक है।
  4. संस्कृतिकरण उस प्रक्रिया को प्रकट करता है जिसके द्वारा जनजातियाँ हिन्दू जाति व्यवस्था में सम्मिलित होती है। ऐसा करने के लिए जनजातियाँ हिन्दुओं की किसी जाति की जीवन – विधि को ग्रहण करती है।
  5. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भूतकाल एवं वर्तमान समय में जाति – व्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों को भी प्रकट करती है।
  6. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति – प्रथा में गतिशीलता की द्योतक है। सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि जाति – प्रथा एक कठोर व्यवस्था है तथा इसकी सदस्यता जन्मजात होती है। व्यक्ति एक बार जिस जाति में जन्म लेता है, जीवन – पर्यन्त उसी जाति का सदस्य बना रहता है किन्तु यह धारणा सदैव ही सही नहीं होती है। इस प्रक्रिया के द्वारा यदाकदा जाति का बदलना सम्भव है।
  7. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया निम्न जातियों के विवाह एवं परिवार प्रतिमानों में होने वाले परिवर्तनों को भी प्रकट करती है। संस्कृतिकरण करने वाली जाति बाल – विवाह करती है, विधवा – विवाह निषेध का पालन करती है तथा संयुक्त परिवार प्रणाली को उच्च जातियों की तरह ही अपनाती है।

अतः उपरोक्त बिन्दुओं से यह स्पष्ट होता है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारतीय समाज में समस्त सामाजिक – सांस्कृतिक परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार है।

प्रश्न 5.
श्रीनिवास द्वारा धर्मनिरपेक्षीकरण की मुख्य बातें बताइए। धर्मनिरपेक्षीकरण के प्रमुख लक्षणों को सविस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रमुख बातें:
श्रीनिवास से धर्मनिरपेक्षीकरण की तीन बातें मुख्य हैं –
1. धार्मिकता में कमी:
श्रीनिवास ने बताया है कि जैसे – जैसे जनमानस में धर्मनिरपेक्षता या लौकिकता की भावना का विकास होता है; लोगों में धार्मिक भावनाएँ आसानी से आने लगती है तथा धार्मिक कठोरता के भाव लुप्त होने लगते हैं।

2. तार्किक चिन्तन की भावना में वृद्धि:
व्यक्ति का जीवन परम्परागत तरीके से ही चलता है। उनमें धार्मिक विश्वास अधिक पाया जाता है। धार्मिक विचारों एवं विश्वासों को तर्क द्वारा विश्लेषण नहीं किया जाता।

3. विभेदीकरण की प्रक्रिया:
समाज में जैसे – जैसे लौकिकीकरण की प्रक्रिया का विकास होगा, समाज में उतने ही तेज गति से विभेदीकरण भी बढ़ेगा। विदेशीकरण के कारण समाज में विभिन्न पहलुओं जैसे – राजनीतिक, समाजिक, सांस्कृतिक, कानूनी एवं धार्मिक एक – दूसरे से पृथक् हो रहे हैं।

धर्मरिनपेक्षीकरण के लक्षण:
धर्मनिरपेक्षीकरण के निम्नलिखित लक्षण दृष्टिगोचर हो रहे हैं –

  1. धर्मनिरपेक्षीकरण के कारण इहलौकिकता में लोगों का विश्वास बढ़ा है। लोगों की अलौकिक भावनाओं में कमी आई है।
  2. लोगों में प्राकृतिक सत्ता के प्रति आस्था में कमी आई है।
  3. धर्मनिरपेक्षीकरण के कारण तर्कवाद, चिंतन, स्वतन्त्रता एवं नए विचारों को बल मिला है।
  4. परम्परागत विचारों को तर्क की कसौटी पर कसा जा रहा है।
  5. मनुष्य ने अपने जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए धर्म के स्थान पर वनस्पति विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मार्ग को चुना है।
  6. समस्याओं के समाधान के लिए वैज्ञानिक सिद्धान्तों में विश्वास में वृद्धि हुई है और लोगों के धार्मिक विश्वास कम हुए हैं।
  7. धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया ने धर्म के सिद्धान्तों में परिवर्तन किया है।
  8. व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के अनुरूप विभिन्न प्रस्थितियों को स्वीकारने लगा है।
  9. लोगों में विभेदीकरण की धारणा बढ़ी है।
  10. इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है।
  11. धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया समाज को परम्परागत व रूढ़िवादी विचारधारा का खंडन करती है।
  12. यह प्रक्रिया समाज में आधुनिक परिवर्तन की द्योतक है।
  13. इस प्रक्रिया से समाज में अंधविश्वास की प्रवृत्ति पर रोक लगी है।
  14. यह सत्य सिद्ध कथनों अथवा तथ्यों पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है।
  15. यह प्रक्रिया समाज में सभी धर्मों के प्रति आदर का भाव प्रकट करती है।
  16. धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में विवेकशीलता को प्रोत्साहन मिलता है।
  17. इस प्रक्रिया से समाज में धार्मिक संकीर्णता कम हुई है।
  18. धर्मनिरपेक्षीकरण द्वारा प्रोत्साहित विवेकशीलता के कारण व्यक्ति में सभी धर्मों के प्रति उदारता की भावना भी पनपी है।
  19. इस प्रक्रिया में किसी भी धर्म विशेष पर जोर नहीं दिया जाता है और न ही किसी धर्म विशेष को प्राथमिकता दी जाती है।
  20. धर्मनिरपेक्षीकरण समाज में सर्वप्रमुख प्राथमिकता समाज के अधिकतम सदस्यों के अधिकतम लाभ को दी जाती है।
  21. यह प्रक्रिया समाज में सर्वहितकारी राज्य की विचारधारा (कल्पना) को जन्म देता है।
  22. इस प्रक्रिया से समाज में सैद्धांतिक तथा व्यवहारिक प्रवृत्तियों का विकास होता है।
  23. इस प्रक्रिया से समाज में नैतिक मूल्यों का विकास होता है।
  24. यह प्रक्रिया एक प्रकार से समाज में अनुशासन व कर्तव्यों को बढ़ावा देती है।
  25. यह बुद्धिवाद पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है जो व्यक्ति को व्यापकता की ओर अग्रसर करती है।

प्रश्न 6.
समाज पर धर्मनिरपेक्षीकरण के प्रभावों का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण के प्रमुख प्रभावों की विवेचना निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत की जा सकती है
1. पवित्रता व अपवित्रता की धारणा:
भारतीय जीवन – शैली और समाज – रचना में पवित्रता तथा अपवित्रता की धारणाओं पर विशेष प्रभाव रहा है। “पवित्रता” को विभिन्न अर्थों में समझा जाता है, जैसे स्वच्छता, सदाचरण तथा धार्मिकता। इसी प्रकार “अपवित्रता” को भी मलिनता, दुराचरण तथा पाप इत्यादि के अर्थों में समझा जा सकता है।

भारत में जातियों के बीच की दूरी का निर्धारण ऊँची जातियों की पवित्रता तथा नीची जातियों की अपवित्रता की धारणाओं के आधार पर किया जाता है। जो जातियाँ ऊँची बनना चाहती हैं वे संस्कृतिकरण के द्वारा अधिक पवित्रता की ओर बढ़ती हैं। जाति सोपान ऊँची जातियों के व्यवसाय, भोजन, रहन – सहन; पवित्रता की धारणा से परिभाषित किए जाते हैं। पवित्रता व अपवित्रता की धारणाएँ वस्त्रों तथा जीवनचर्या को भी प्रभावित करती रही है। विभिन्न अवसर जैसे – श्राद्ध आदि पर बाल कटवाना तथा स्नान करना भी इसी आधार पर अनुचित माना जाता है।

2. जीवन:
चक्र तथा कर्मकांड:
हिन्दू जीवन – चक्र में संस्कारों का प्रमुख महत्त्व है। संस्कारों को आधुनिक जीवन की व्यवस्था के अनुरूप संक्षिप्त कर दिया गया है। परम्परागत संस्कार जो पहले अनेक धार्मिक कृत्यों, कठिन व्रतों, जटिल अनुष्ठानों से परिपूर्ण लम्बे समय में सम्पन्न किए जाते थे, अब वह थोड़ी देर में भी समाप्त करवा दिए जाते हैं। समाज में कुछ संस्कारों का लौकिक महत्त्व कम है, उन्हें छोड़ भी दिया गया है; जैसे – वानप्रस्थ, गर्भाधान व संन्यास आदि संस्कार का चलन कम हो गए हैं।

3. सामाजिक संरचना:
श्रीनिवास के अनुसार – “हिन्दू धर्म सामाजिक संरचना पर निर्भर रहा है।” जाति, संयुक्त परिवार तथा ग्रामीण समुदाय आदि हिन्दू धर्म को जीवित रखते आए हैं। औद्योगीकरण, शिक्षा का प्रसार, अस्पृश्यता निवारण लोकतांत्रिक व्यवस्था व विकास कार्यक्रम आदि ने ग्रामीण समाज की मनोवृत्तियों में भारी परिवर्तन किया है।

4. धार्मिक जीवन:
धार्मिक जीवन में धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के विषय में पूर्व में ही संकेत किया जा चुका है। हिन्दू धर्म व संस्कृति को राष्ट्रीय व सामाजिक आधारों पर प्रतिपादित किया जाने लगा है।
अतः उपरोक्त तथ्यों से यह विदित होता है कि धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का समाज के प्रत्येक क्षेत्रों में प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। जिसके आधार पर समाज में तथ्यों को अब तर्कसंगत आधारों पर ही स्वीकृत किया जाता है।

प्रश्न 7.
आधुनिकीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। आधुनिकीकरण की विशेषताओं का वर्णन करो। उत्तर:
आधुनिकीकरण की अवधारणा-आधुनिकीकरण कोई जड़ वस्तु नहीं है। यह एक प्रक्रिया है। मुरे – मुरे ने सोशल चेंज में बताया है कि – “आधुनिकीकरण के अन्तर्गत परम्परागत अथवा पूर्ण आधुनिक समाज का पूर्ण परिवर्तन उस प्रकार की औद्योगिकी एवं उससे सम्बन्धित सामाजिक संगठन के रूप में हो जाता है। जो पश्चिमी दुनिया के विकसित, आर्थिक दृष्टि से समृद्धशाली और राजनैतिक दृष्टि से समृद्धशाली एवं स्थिर राष्ट्रों में पाई जाती है।”
योगेन्द्र सिंह – “आधुनिकीकरण एक संस्कृति प्रत्युत्तर के रूप में है, जिनमें उन विशेषताओं का समावेश है, जो प्राथमिक रूप से विश्व व्यापक एवं उद्विकासीय है।” आधुनिकीकरण को संस्कृति – सर्वव्यापी जैसा भी कहा जा सकता है। आधुनिकीकरण का अर्थ केवल प्राविधिक उन्नति से ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से है। समकालीन समस्याओं के लिए मानवीकरण के लिए दार्शनिक दृष्टिकोण का होना आवश्यक है।

आधुनिकीकरण की विशेषताएँ:
लर्नर ने आधुनिकीकरण की निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन किया है, जो निम्नलिखित है –

  1. वैज्ञानिक भावना का विकास होना।
  2. संचार के साधनों का विकास होना।
  3. नगरीकरण में वृद्धि।
  4. नगरीय जनसंख्या में वृद्धि होना।
  5. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि का होना।
  6. शिक्षा का प्रसार होना।
  7. राजनैतिक साझेदारी में वृद्धि होना।
  8. व्यापक आर्थिक साझेदारी में वृद्धि होना।
  9. जीवन के सभी पक्षों में सुधार होना।
  10. दृष्टिकोण की व्यापकता में वृद्धि करना।
  11. नवीनता के प्रति लचीलापन का भाव में वृद्धि होना।
  12. समाज में होने वाले परिवर्तनों को स्वीकार करना।
  13. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तेजी आना।
  14. समाज में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रचार – प्रसार होना।

प्रश्न 8.
उत्तर – आधुनिकता से क्या तात्पर्य है? डेविड हारवे ने इसके कौन – कौन से लक्षण बताए हैं?
उत्तर:
उत्तर – आधुनिकता – समाज वैज्ञानिक ने उत्तर-आधुनिककीकरण को उत्तर – आधुनिकता का प्रकार्यात्मक पक्ष माना है।
रिचार्ड गोट – “उत्तर-आधुनिकता आधुनिकता से मुक्ति दिलाने वाला एक स्वरूप है। यह एक विखंडित आन्दोलन है, जिसमें सैकड़ों फूल खिल सकते हैं। उत्तर आधुनिक में बहु – संस्कृतियों का निवास हो सकता है।”
उत्तर – आधुनिकता का तात्पर्य एक ऐतिहासिक काल से है। यह काल आधुनिकता के काल की समाप्ति के बाद प्रारम्भ होता है। उत्तर – आधुनिकतावाद का सम्बन्ध सांस्कृतिक तत्वों से है। यह सम्पूर्ण अवधारणा सांस्कृतिक है। उत्तर-आधुनिकता के बाद का समाज का विकास है।
लक्षण:
डेविड हारवे ने “कन्डीशन ऑफ पोस्ट मोडर्निटी” नामक पुस्तक में उत्तर – आधुनिकता के सम्बन्ध में विश्लेषण किया है। अपने विश्लेषण के आधार पर हारवे ने इसके निम्नलिखित लक्षण बताए हैं –

  1. उत्तर – आधुनिकतावाद सांस्कृतिक पैराडिम है, इसके अन्तर्गत आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है।
  2. उत्तर – आधुनिकता की अभिव्यक्ति जीवन की विभिन्न शैलियों में जैसे – साहित्य, दर्शन और कला में दिखाई देती है।
  3. उत्तर – आधुनिकता विखण्डित रूप में दिखाई देती है। यह समानता की जगह विविधता को स्वीकार करती है।
  4. उत्तर – आधुनिकता का एक गुण बहुआयामी होना है। यह इस प्रकार की संस्कृति है, जिसमें बहुलता पाई जाती है।
  5. उत्तर – आधुनिकता के अन्तर्गत अपेक्षित महिलाएँ एवं समाज से तिरस्कृत लोग आते हैं।
  6. उत्तर – आधुनिकता स्थानीय स्तर पर समस्त क्रियाओं का विश्लेषण करती है।
  7. उत्तर – आधुनिकता में पूँजीवादी विकास के चरण की संस्कृति का पाया जाना।
  8. उत्तर – आधुनिकता एक संस्कृति प्रधान है।
  9. उत्तर – आधुनिकता अति उपभोक्तावाद की संस्कृति पर आधारित है।
  10. उत्तर – आधुनिकता में तर्क पाया जाता है।
  11. समाज में उत्तर – आधुनिकता ने विचारों को अधिक तर्कसंगत बना दिया है।
  12. उच्च तकनीक, कैरियर के प्रति लोगों की सजगता तथा उदार प्रजांतत्र इसकी ही देन है।
  13. उत्तर – आधुनिकता की प्रक्रिया ने एक प्रकार से समाज में मनुष्य के जीवन का एक प्रकार से यंत्रीकरण ही दिया है।
  14. उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा एक पूँजीवादी अवधारणा है।
  15. आधुनिकता के अनुशासन व नियमबद्ध जीवन – पद्धति को तोड़ने का प्रयास ही उत्तर – आधुनिकता है।

प्रश्न 9.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का समाज के प्रत्येक क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को हम निम्नांकित प्रमुख क्षेत्रों में परिलक्षित कर सकते हैं –
1. सामाजिक क्षेत्र:

  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से सम्बन्धित सामाजिक क्षेत्र वस्तुतः परिवर्तन सम्बन्धी दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है क्योंकि संस्कृतिकरण अपने आंतरिक स्वरूप में धार्मिक व्यवस्था से सम्बन्धित प्रत्यय है।
  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का सर्वप्रथम उद्देश्य चूँकि सामाजिक ही है तथा छोटी निम्न जातियाँ अथवा समूह इस दिशा में इसलिए उन्मुख होते हैं कि वे अपने सामाजिक जीवन के परिप्रेक्षय में अपनी वर्तमान स्थिति को ऊँचा उठाना चाहते हैं।

2. धार्मिक क्षेत्र:

  • इस प्रक्रिया के फलस्वरूप विभिन्न निम्न जातियों ने ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य जैसी द्विज जातियों की भांति अपने – अपने पृथक् मंदिरों तथा पूजा – स्थलों की स्थापना की है।
  • नीची जातियों के व्यक्तियों ने यज्ञोपबीत धारण करते हुए चंदन का टीका आदि भी लगाना प्रारम्भ कर दिया है।
  • अनेक निम्न जातियों ने स्वच्छ शरीर तथा वस्त्राभूषण धारण करना प्रारम्भ कर दिया है तथा माँस – मदिरा भी कुछ जातियों ने त्याग दिया है।

3. आर्थिक क्षेत्र:

  • भारत सरकार की अछूत और अस्पृश्य तथा पिछड़ी जनजातियों के व्यक्तियों हेतु सरकारी नौकरी में रिजर्व कोटा अथवा आरक्षण नीति ने भी संस्कृतिकरण की दिशा में प्रेरित किया है।
  • सरकार द्वारा प्राप्त विभिन्न अधिकारों तथा सुविधाओं के परिणामस्वरूप वे उत्तरोत्तर आर्थिक रूप से सर्वथा आत्मनिर्भर होती जा रही हैं।

4. रहन – सहन की दशाएँ:

  • इस प्रक्रिया के माध्यम से निम्न जाति के सदस्य उच्च जातियों के समान ही पक्के सीमेन्टेड मकान बनवाने लगी है।
  • ग्रामीण समाजों में भी अब बड़ी – बड़ी उच्च जातियों के साथ वे चारपाई पर ही बैठते हैं।
  • निम्न जाति के सदस्य अब नियमपूर्वक स्नानादि भी प्रारम्भ करके साफ – स्वच्छ वस्त्रों को पहनना आरम्भ कर दिया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अब वे भी उच्च जातियों के समान ही रहन – सहन का स्तर अपनाने लगी है।

प्रश्न 10.
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया का समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण के प्रभावों का वर्णन निम्नांकित रूप में किया जा सकता है –
1. विवाह – पद्धति पर प्रभाव:

  • पाश्चात्य संस्कृति के परिणामस्वरूप विवाह आज दो परिवारों का सम्बन्ध न होकर दो व्यक्तियों का जीवन – संघ बन गया है।
  • प्रेम तथा आनन्द ने धर्म को पीछे धकेल दिया है।
  • जो रिवाजों को सम्पन्न करने में कई दिन व्यतीत हो जाते थे, अब वे कुछ घंटों में ही सम्पन्न करवा दिए जाते हैं।

2. परिवार पर प्रभाव:

  • भारतीय समाज में इस प्रक्रिया के कारण संयुक्त प्रणाली का विघटन होता जा रहा है।
  • संयुक्त परिवारों के स्थान पर अब एकाकी परिवारों का चलन में वृद्धि हुई है।
  • समूहवादी दृष्टिकोण का स्थान व्यक्तिवाद ने ले लिया है।
  • परिवारों में अब व्यक्तिवादी स्वतंत्रता को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है।

3. जाति पर प्रभाव:

  • पाश्चात्य संस्कृति ने विभिन्न जातियों में दूरी को कम कर दिया है।
  • ब्राह्मण जाति का प्रभुत्त्व समाज में अब कम हो गया है।
  • खान – पान के नियमों में बदलाव हो चुके हैं।
  • धार्मिक अधिकार की प्राप्ति अब निम्न जाति के सदस्यों को भी प्राप्त हो गई है।

4. स्त्रियों की स्थिति पर प्रभाव:

  • पाश्चात्य संस्कृति से महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।
  • स्त्रियों को शिक्षा पाने का सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त हुए हैं।
  • स्त्रियों को पाश्चात्य संस्कृति के कारण दासियों की तरह न रखकर उन्हें भी जीवन में कार्य करने के अवसर प्रदान किए गए हैं।

5. भाषा पर प्रभाव:

  • पाश्चात्य संस्कृति के कारण देश में अंग्रेजी भाषा का चलन काफी बढ़ गया है।
  • ग्रामीण भी स्टेशन, पैन आदि हजारों अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं।
  • भारतीय लेखकों ने भी पाश्चात्य शैली को अपनाया है।

6. कृषि पर प्रभाव:

  • पाश्चात्य संस्कृति से कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं।
  • कृषि कार्यों का पूर्ण रूप से अब यंत्रीकरण हो चुका है।
  • कृषि कार्यों से नए खाद व मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा है।
  • कृषि में अब श्रम – विभाजन के महत्त्व को भी देखा जा सकता है।

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