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RBSE Solutions for Class 12 Sociology

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 4 भारत में संरचनात्मक परिवर्तन-परम्परा एवं आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण

August 20, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 भारत में संरचनात्मक परिवर्तन-परम्परा एवं आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण

RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
आजादी से पहले भारत के लोगों में गतिशीलता को किसने बढ़ाया?
(अ) अंग्रेजों ने
(ब) फ्रांसीसियों ने
(स) पुर्तगालियों ने
(द) डचों ने
उत्तरमाला:
(अ) अंग्रेजों ने

प्रश्न 2.
‘मॉडर्नाइजेशन ऑफ इण्डियन ट्रेडीशन्स’ पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) श्रीनिवास
(ब) योगेन्द्र सिंह
(स) दुबे
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) योगेन्द्र सिंह

प्रश्न 3.
भारतीय सनातन परम्परा में जीवन का अन्तिम लक्ष्य क्या घोषित किया गया है?
(अ) धर्म
(ब) अर्थ
(स) मोक्ष
(द) काम
उत्तरमाला:
(स) मोक्ष

प्रश्न 4.
योगेन्द्र सिंह ने आधुनिकता के कितने लक्षण बताए हैं?
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तरमाला:
(द) चार

प्रश्न 5.
तकनीक ने भौगोलिक दूरी को …………… है।
(अ) बढ़ाया
(ब) कम किया
(स) बदलाव नहीं
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) कम किया

प्रश्न 6.
पारिवारिक तनाव को किसने बढ़ाया है?
(अ) नगरीकरण
(ब) औद्योगीकरण
(स) दोनों ने
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) दोनों ने

प्रश्न 7.
ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात कब हुआ?
(अ) 1560 के आस – पास
(ब) 1460 के आस – पास
(स) 1760 के आस – पास
(द) 1860 के आस – पास
उत्तरमाला:
(स) 1760 के आस – पास

प्रश्न 8.
लन्दन की आबादी बढ़ने का कारण क्या था?
(अ) पश्चिमीकरण
(ब) संस्कृतिकरण
(स) औद्योगीकरण
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) औद्योगीकरण

प्रश्न 9.
ब्रिटिश भारत में औद्योगीकरण का प्रारम्भिक प्रभाव क्या पड़ा?
(अ) ग्रामीण कारीगर कृषि की तरफ झुके
(ब) कुटीर उद्योग – धन्धों का विकास
(स) उपर्युक्त दोनों
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) ग्रामीण कारीगर कृषि की तरफ झुके

प्रश्न 10.
आजादी के बाद भारत में सरकार ने कैसी आर्थिक नीति प्रारम्भ की?
(अ) सार्वजनिक क्षेत्र को प्रोत्साहन
(ब) निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन
(स) मिश्रित
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) मिश्रित

प्रश्न 11.
भारत वर्तमान में कैसा देश है?
(अ) कृषि प्रधान
(ब) उद्योग प्रधान
(स) सेवा प्रधान
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) कृषि प्रधान

प्रश्न 12.
व्यवहार में कृत्रिमता तथा दिखावा किस प्रक्रिया का परिणाम है?
(अ) नगरीकरण
(ब) संस्कृतिकरण
(स) ब्राह्मणीकरण
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) नगरीकरण

प्रश्न 13.
जनगणना 2011 के अनुसार भारत में एक लाख से अधिक तथा दस लाख से कम आबादी वाले शहरों की संख्या कितनी है?
(अ) 408
(ब) 409
(स) 411
(द) 412
उत्तरमाला:
(द) 412

प्रश्न 14.
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार महानगरों (मेगासिटी) की संख्या कितनी है?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) एक
उत्तरमाला:
(ब) तीन

प्रश्न 15.
वर्तमान में भारत की सबसे बड़ी मेगासिटी कौन – सी है?
(अ) दिल्ली
(ब) कोलकाता
(स) ग्रेटर मुम्बई
(द) चेन्नई
उत्तरमाला:
(स) ग्रेटर मुम्बई

प्रश्न 16.
उपभोक्ता संस्कृति के केन्द्र हैं –
(अ) नगर
(ब) गाँव
(स) राज्य
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) नगर

RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय समाज एवं संस्कृति पर सर्वाधिक प्रभाव किस विदेशी संस्कृति का पड़ा है?
उत्तर:
ब्रिटिश संस्कृति का प्रभाव सर्वाधिक भारतीय समाज एवं संस्कृति पर पड़ा है।

प्रश्न 2.
भारत में चाय बागानों का विकास किसने किया?
उत्तर:
भारत में चाय बागानों का विकास अंग्रेजों ने अपने हितों के पूर्ति के लिए किया।

प्रश्न 3.
अंग्रेजों ने भारत में किस भाषा का प्रचार – प्रसार किया?
उत्तर:
अंग्रेजों ने भारत में अंग्रेजी भाषा का प्रचार – प्रसार किया।

प्रश्न 4.
व्यक्ति पर समूह की प्रधानता को स्थापित करने वाली परम्परा की विशेषता कौन – सी है?
उत्तर:
“सामूहिक सम्पूर्णता” व्यक्ति पर समूह की प्रधानता को स्थापित करने वाली परम्परा की विशेषता है।

प्रश्न 5.
“कर्म एवं पुनर्जन्म” की अवधारणा किसकी पोषक है?
उत्तर:
“कर्म एवं पुनर्जन्म” की अवधारणा निरंतरता की पोषक है।

प्रश्न 6.
भूत एवं वर्तमान के बीच कड़ी का काम कौन करती है?
उत्तर:
‘परम्परा’ भूत एवं वर्तमान के बीच कड़ी का एक महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।

प्रश्न 7.
धर्मनिरपेक्षता किसका लक्षण है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता आधुनिकता की अवधारणा का एक प्रमुख लक्षण है।

प्रश्न 8.
श्रम – विभाजन के बढ़ने से विभिन्न समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
श्रम विभाजन के बढ़ने से विभिन्न समुदायों में परस्पर अंतर्निर्भरता में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 9.
सामाजिक पृथक्करण की भावना में कमी का क्या कारण है?
उत्तर:
सामाजिक पृथक्करण की भावना में कमी का प्रमुख आधुनिक शिक्षा, औद्योगीकरण, नगरीकरण तथा श्रम – विभाजन की प्रक्रिया है।

प्रश्न 10.
वर्तमान में कौन – सी प्रस्थिति महत्त्वपूर्ण होती जा रही है?
उत्तर:
वर्तमान समय में प्रदत्त प्रस्थिति के स्थान पर अर्जित प्रस्थिति का महत्त्व बढ़ा है।

प्रश्न 11.
वंशानुगत नेतृत्व कौन से समाज की विशेषता रही है?
उत्तर:
वंशानुगत नेतृत्व परम्परागत समाज की एक अनूठी विशेषता रही है।

प्रश्न 12.
‘धर्मनिरपेक्षता’ के मूल्य में वृद्धि का क्या कारण है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता के मूल्य में वृद्धि का कारण प्रमुख कारण आधुनिकता है।

प्रश्न 13.
लोगों का रुझान कृषि के स्थान पर किस क्षेत्र की ओर बढ़ रहा है?
उत्तर:
लोगों का रुझान कृषि के स्थान पर सेवा क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा है।

प्रश्न 14.
मशीनों द्वारा उत्पादन बढ़ाने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर:
मशीनों द्वारा उत्पादन बढ़ाने की प्रक्रिया को “औद्योगीकरण” कहते हैं।

प्रश्न 15.
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में विश्व का सबसे बड़ा नगर कौन – सा था?
उत्तर:
लंदन बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में विश्व का सबसे बड़ा नगर था, जिसकी आबादी लगभग 7 करोड़ थी।

प्रश्न 16.
फोर्ट विलियम की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
1698 में फोर्ट विलियम की स्थापना रक्षा एवं सैन्य ठिकाने के विकास के उद्देश्य से की गई थी।

प्रश्न 17.
भारत में चाय उद्योग का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर:
भारत में 1851 ई. में असम में चाय उद्योग का प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 18.
लोगों के जीवन स्तर में सुधार का क्या कारण है?
उत्तर:
लोगों के जीवन स्तर में सुधार का प्रमुख कारण आधुनिक शिक्षा, विज्ञान, औद्योगीकरण तथा नगरीकरण आदि है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक काल में भारत में समाज की स्थिति कैसी थी?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में भारत में समाज की स्थिति को निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. भारत में समाज कई वर्गों व स्तरों में विभाजित था, जिसमें लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि करना था।
  2. समाज में जाति – प्रथा के कारण समाज में निम्न जातियों के साथ भेदभाव या छुआछूत की भावना पाई जाती थी।
  3. भारतीय समाज में एक स्वस्थ शिक्षा पद्धति का अभाव था।
  4. अंग्रेजों ने भारतीय समाज में फसल निर्धारण, उत्पादन प्रणाली व वितरण व्यवस्था आदि में परिवर्तन किए थे।
  5. भारत में जनजातियाँ जंगलों में निवास करती थीं तथा जंगलों के उत्पादों से ही अपना जीवन – यापन भी करते थे।
  6. अंग्रेजों ने चाय के बागान लगवाए।
  7. समाज में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार किया।
  8. अंग्रेजों ने अपने आर्थिक हितों की अधिकतम पूर्ति हेतु भारतीय लोगों की गतिशीलता में वृद्धि की।

प्रश्न 2.
योगेन्द्र सिंह के अनुसार भारत में परम्परा की विशेषताएँ बनाइए।
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री योगेन्द्र सिंह ने अपनी पुस्तक “Modernisation of Indian Traditions” में भारतीय परम्परा की चार महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का उल्लेख किया है –

  1. सामूहिक सम्पूर्णता:
    यह धारणा व्यक्तियों पर समूह की प्रधानता को स्थापित करती है। इस प्रवृत्ति ने जाति, गाँव आदि में व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान के स्थान पर सामूहिक समूह की पहचान को जन्म दिया है।
  2. संस्तरण:
    समाज में जातियों का ऊँच – नीच के आधार पर एक संस्तरण पाया जाता है। समाज में जाति, गुण तथा लक्ष्य संस्तरणात्मक व्यवस्था को स्थापित करते हैं।
  3. परलोकवादी विचारधारा:
    इसके अंतर्गत जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करना है जो जीवन में संन्यास आश्रम के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है।
  4. निरंतरता:
    समाज में परम्परा का आधार निरंतरता की प्रवृत्ति का होना है। इसके साथ ही कर्म व पुनर्जन्म की अवधारणा निरन्तरता की पोषक है।

प्रश्न 3.
परम्परा में परिवर्तन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
परम्परा भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही चली आ रही है। ये समाज में पीढ़ी – दर – पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। प्रसिद्ध विद्वान एडवर्ड शील्स का कहना है कि “परम्परागत समाज न तो पूर्णतया परम्परागत है और न ही आधुनिक समाज पूर्णतया परम्परा मुक्त।” भारतीय समाज में परम्परा में परिवर्तन दो प्रकार से दृष्टिगोचर होता है –

  1. प्रत्यक्ष परिवर्तन:
    यह वह परिवर्तन है जो समय – समय पर हमारी परम्पराओं में होते रहे हैं, जैसे – जैन, बौद्ध, आर्य समाज, ब्रह्म समाज आदि के चिंतकों ने अपनी विचारधाराओं से भारतीय परम्परा में परिवर्तन किया है।
  2. संरचनात्मक परिवर्तन:
    भारतीय सामाजिक संरचना में पर-संस्कृतिकरण तथा सात्मीकरण की परम्परा रही है, अर्थात् हमारी सामाजिक संरचना में परिवर्तनों को स्वीकार करने का संरचनात्मक प्रावधान विद्यमान था, जिससे बदलाव में कोई बाधा उत्पन्न नहीं हुई।

प्रश्न 4.
आधुनिकता के लक्षण कौन – कौन से होते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आधुनिकता सोचने – समझने अथवा विचार का एक विशिष्ट दृष्टिकोण होता है, जो तर्क पर आधारित होता है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री योगेन्द्र सिंह ने आधुनिकता के चार लक्षणों का उल्लेख किया है –

  1. व्यक्तिवादिता:
    इसके अंतर्गत व्यक्ति में औपचारिकता का समावेश होता है।
  2. समानता:
    यह व्यक्ति को समाज में रहते हुए उसे विकास करने के लिए समान अवसर प्रदान करता है, जिससे सदस्यों में समानता की भावना बनी रहती है।
  3. परिवर्तन के प्रति आस्था:
    आधुनिकता की धारणा समाज में परिवर्तन का सूचक है। एक व्यक्ति को आधुनिक तभी कहा जा सकता है, जब उसके अंतर्गत परिवर्तन को स्वीकार करने की क्षमता व आस्था दोनों हों।
  4. धर्म – निरपेक्षता:
    यह आधुनिकता का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है, जो समाज में सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखने को प्रेरित करता है।

प्रश्न 5.
एन. के. सिंघी के अनुसार आधुनिकता में कौन से तत्त्व होते हैं?
उत्तर:
प्रसिद्ध विद्वान एन. के. सिंघी ने. आधुनिकता की अवधारणा पर अपने विचारों को व्यक्त किया है, उनके अनुसार आधुनिकता में प्रमुख तौर पर तीन तत्त्वों की प्रधानता होती है, जो निम्न प्रकार से है –

  1. तार्किकता:
    आधुनिकता की अवधारणा एक प्रकार से तर्क पर ही आधारित है। तर्क के बिना आधुनिकता की प्रक्रिया को समझा नहीं जा सकता है। तार्किकता के आधार पर ही व्यक्ति सही व गलत तथ्यों की पहचान कर सकते हैं।
  2. वैज्ञानिकता:
    वैज्ञानिकता की धारणा आधुनिकता की प्रक्रिया का सार है। वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर घटनाओं की प्रकृति की जाँच की जा सकती है। विज्ञान वह होता है जहाँ ‘किन्तु या परन्तु’ की गुंजाइश न पाई जाए।
  3. आर्थिक संरचना:
    मार्क्स के अनुसार किसी भी समाज का विकास उसकी आर्थिक संरचना पर निर्भर करता है। यदि आर्थिक संरचना सबल है तो समाज विकसित अवस्था की ओर अग्रसर होगा, किन्तु यदि समाज में आर्थिक उत्पादन प्रणाली कमजोर है तो उस समाज में विकास पतन की ओर अग्रसर होगा।

प्रश्न 6.
औद्योगीकरण के प्रारम्भ के बारे में संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन हस्त उपकरणों के स्थान पर निर्जीव शक्ति द्वारा संचालित मशीनों के आधार पर किया जाता है। औद्योगीकरण के प्रारम्भ के विषय को कुछ बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं, जो इस प्रकार से है –

  1. 17वीं सदी से लेकर 18वीं सदी के मध्य में यूरोप में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी विकास हुआ, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 1760 ई. में ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति की शुरुआत हुई।
  2. औद्योगिक क्रान्ति के द्वारा मशीनों से उत्पादन प्रारम्भ हुआ।
  3. औपनिवेशीकरण की प्रक्रिया ने ब्रिटेन एवं यूरोप में औद्योगीकरण की ओर बढ़ावा प्रदान किया।
  4. औद्योगीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप समाज में श्रम – विभाजन, विशेषीकरण व नगरीकरण आदि में वृद्धि हुई।

प्रश्न 7.
‘मेनचेस्टर प्रतियोगिता’ क्या है?
उत्तर:
वस्त्र उद्योग में रेशम तथा सूती वस्त्र के निर्माण एवं ब्रिकी बाजार में माँग बढ़ने से दो देशों के वस्त्र उद्योगों के मध्य जो प्रतियोगिता हुई, उसे ‘मेनचेस्टर प्रतियोगिता’ कहते हैं। मेनचेस्टर प्रतियोगिता के कारण सूरत नाकी, तंजौर, मुर्शिदाबाद आदि स्थानों के बने हुए वस्त्र ब्रिटिश संरक्षण के मेनचेस्टर में बने कपड़े भारत की उच्च कोटि की तुलना में बहुत ही सस्ते थे। इस प्रतियोगिता के कारण भारत के वस्त्र उद्योग की माँग कम हो गई थी, जबकि ब्रिटिश में बने कपड़ों की माँग में वृद्धि हो गई थी।

प्रश्न 8.
जॉब चारनॉक ने कौन से क्षेत्र पट्टे पर लिए थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में प्राचीन शहरों का उनकी व्यावसयिक गतिविधियाँ ठप पड़ने से अस्तित्व कमजोर हो गया तथा इनकी जगह नए औपनिवेशिक शहरों का उद्भव तथा विकास हुआ। उसी समय भारत में कोलकाता पहला औपनिवेशिक शहर था। तभी सन् 1690 में ‘जॉब चारनॉक’ नाम के एक अंग्रेज व्यापारी ने लाभ प्राप्ति व व्यापार के लिए हुगली नदी के तट के तीन गाँवों को व्यापार का केन्द्र बनाने के लिए पट्टे पर लिया, जिनमें प्रमुख नाम शामिल हैं –

  • कोलीकाता (गाँव)।
  • गोविंदपुर (गाँव)।
  • सुतानुती (गाँव)।

इसके पश्चात् 1698 में फोर्ट विलियम की स्थापना रक्षा एवं सैन्य ठिकाने का विकास करने के उद्देश्य से की गई थी।

प्रश्न 9.
भारत में चाय उद्योग पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारत में चाय उद्योग पर आधारित निम्नलिखित तथ्यों को बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. भारत में 1851 में असम के क्षेत्र में चाय उद्योग का प्रारम्भ किया गया था।
  2. भारत में अधिकतर चाय बागान मालिक अंग्रेज व्यापारी थे।
  3. 1903 में असम के चाय बागानों में 4790 स्थायी तथा 930 अस्थायी लोगों को काम पर रखा गया था, जिनमें अधिकांश मजदूर बिहार एवं झारखंड के थे।
  4. श्रमिकों पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अंग्रेजों ने Transport of Native Labour Act, No.111. 1863 में बनाया, जिसमें 1865, 1870 व 1873 में संशोधन कर दिया गया था।
  5. चाय बागानों के अंतर्गत श्रमिकों की स्थिति काफी दयनीय थी, जबकि मालिकों का जीवन विलासितापूर्ण था।

प्रश्न 10.
स्वतंत्रता पश्चात् भारत में कौन – कौन से औद्योगिक क्षेत्र अस्तित्व में आए?
उत्तर:
औद्योगीकरण की प्रक्रिया से समाज में परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए। औद्योगीकरण के कारण भारी मशीनों द्वारा निर्मित उद्योग – धंधों का तेजी से विकास हुआ। रूई, जूट, कोयला खानें, रेलवे, लोहा, इस्पात उद्योग भारत के प्रथम आधुनिक उद्योग थे। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार ने देश के तीव्र आर्थिक विकास का लक्ष्य रखा था।

इसके अंतर्गत भारत सरकार ने परिवहन, सुरक्षा, ऊर्जा तथा संचार आदि उद्योगों को सम्मिलित किया था। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया जिसके अंतर्गत कुछ क्षेत्र सरकारी क्षेत्र में आरक्षित रखे गए तथा कुछ क्षेत्र निजी में रखे गए। आजादी के बाद मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई आदि प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र अस्तित्व में आए थे। इसके अलावा फरीदाबाद, पुणे, बोकारो, बड़ौदा तथा दुर्गापुर आदि अन्य क्षेत्र भी औद्योगिक बन गए थे।

प्रश्न 11.
नगरीकरण की प्रक्रिया से क्या आशय है? समझाइए।
उत्तर:
‘नगरीकरण’ की अवधारणा नगरों में होने वाले विकास की प्रक्रिया को इंगित करती है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री डेविस के अनुसार – “नगरीकरण एक निश्चित प्रक्रिया है। परिवर्तन का वह चक्र है जिससे कोई समाज कृषक से औद्योगिक समाज में परिवर्तित होता है।”
नगरीकरण का समाज पर पड़ने वाले प्रभाव या उसकी विशेषताएँ:

  • प्रव्रजन के माध्यम से शहरी जनसंख्या में वृद्धि होती है।
  • कृषि कार्य गैर – कृषि कार्यों में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • लोगों का औद्योगिक व्यवसायों के प्रति रुझान बढ़ता है।
  • पुराने नगरों में तेजी से जनसंख्या बढ़ती है तथा साथ ही नए नगरों की भी उत्पत्ति होती है।

प्रश्न 12.
भारत में मेगासिटीज के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार भारत में कुल आबादी का 31.16 फीसदी शहरी आबादी है जो कि आजादी के बाद की प्रथम जनगणना 1951 में 17.29% थी। इस प्रकार पिछले 60 वर्षों में 2011 तक भारत की कुल आबादी में ग्रामीण आबादी का हिस्सा लंगातार कम हो रहा है एवं नगरीय आबादी का हिस्सा बढ़ रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार 1 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले नगर महा – नगर (Megalopis/Megacities) की संख्या 3 थी। भारत में 1 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले मेगा-सिटी निम्नलिखित हैं –
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 4 भारत में संरचनात्मक परिवर्तन-परम्परा एवं आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण 1

प्रश्न 13.
जजमानी प्रथा की समाप्ति के क्या कारण दिखाई देते हैं?
उत्तर:
जजमानी व्यवस्था की अवधारणा का प्रथम प्रयोग समाजशास्त्र में विलियम वाइजर ने अपनी पुस्तक “The Hindu Jajmani System” में किया है। जजमान का शाब्दिक अर्थ है – ‘यजमान’ अर्थात् जो सेवाएँ लेते हैं। पर वहीं, एक अन्य शब्द है परजन अर्थात् जो सेवाएँ देते हैं। अर्थात् यह वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत प्राचीन समाजों में निम्न जाति (परजन) के सदस्य अपनी सेवाएँ ऊँची जातियों (जजमान) को देते हैं तथा उन सेवाओं के बदले वे उन्हें पारिश्रमिक देते हैं। जजमानी प्रथा के समाप्ति के अग्र कारण इस प्रकार से हैं –

  • शिक्षा के प्रसार के परिणामस्वरूप लोगों में जागरूकता का संचार हुआ है।
  • औद्योगीकरण के कारण लोगों को नए रोजगार की प्राप्ति हुई है।
  • नगरीकरण के कारण लोगों में जातीय भेद में कमी आई है।
  • धन के महत्त्व में वृद्धि से भी इस प्रथा का समाज में अंत हो गया है।
  • मानसिकता को परिवर्तित करने में संचार के साधनों ने भी अहम् भूमिका का निर्वाह किया है।

प्रश्न 14.
उपभोगवादी प्रवृत्ति में विकास के क्या कारण हैं?
उत्तर:
उपभोगवादी प्रवृत्ति में विकास के अनेक कारण हैं –

  • नगरों के विकास एवं पश्चिमी मूल्यों को बढ़ावा मिलने से उपभोगवादी प्रवृत्ति का विकास हुआ है।
  • भौतिक साधनों में वृद्धि जैसे – कूलर, फ्रिज, टी. वी., सिलाई मशीन, फैंसी साधन आदि के कारण इस प्रवृत्ति का विकास हुआ है।
  • साधनों में उपयोगिता के गुण में वृद्धि होने से इस प्रवत्ति का विकास हुआ है।
  • जीवन – शैली में सुधार होने से भी इसका समाज में विकास हुआ है।
  • सुख – सुविधाओं में सुधार होने से भी वृद्धि हुई है।

प्रश्न 15.
इन्द्रियपरक संस्कृति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इन्द्रियपरक संस्कृति वह संस्कृति है जिसके अंतर्गत एक व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने के प्रयास करता है। आज के भौतिकवादी युग में लोगों को एक उच्च जीवन जीने के लिए अनेक साधनों को जुटाना होता है जिससे वह आसानी से अपना जीवन – यापन कर सके। वर्तमान समय में नगरीय जीवन का प्रभाव, आपसी होड़ या प्रतियोगिता व पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से इन्द्रियपरक संस्कृति समाज के लोगों पर हावी होती जा रही है। समाज में सदस्यों की इच्छाएँ अब असीमित हो गई हैं। उनमें संतोष की भावना का अभाव पाया जाता है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परम्परा तथा आधुनिकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परम्परा तथा आधुनिकता की अवधारणा का स्पष्टीकरण निम्न प्रकार से है –
1. परम्परा:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री फेयरचाइल्ड ने अपनी पुस्तक ‘Dictionary of Sociology’ में परम्परा के अमूर्त तत्त्व पर बल दिया है। वे इसे सोच और भावनाओं का मिला – जुला रूप मानते हैं, जो विरासत में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता है। अर्थात् मूल्यों, प्रतिमानों व जीवन की पद्धति की प्रचलित प्रणालियाँ जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में निरन्तर हस्तांतरित होती रही हैं।
अतः परम्परा में निम्नलिखित तत्त्व सम्मिलित होते हैं –

  • परम्परा में जड़ता होती है जो सहज ही परिवर्तन को स्वीकार नहीं करती। इसमें परिवर्तन आसानी से नहीं होता है।
  • इसमें अभौतिक तत्त्वों की प्रधानता होती है। जैसे – विश्वास, आदर्श, विचार, ज्ञान व व्यवहार के तरीके।
  • इसमें निरंतरता पाई जाती है।
  • इसमें कठोरता भी पाई जाती है।
  • परम्परा में स्वीकृति के लक्षण होते हैं, उन्हें समाजीकरण की प्रक्रिया में ही आत्मसात् करा दिया जाता है। अतः उन्हें प्रत्येक व्यक्ति स्वीकार कर लेता है।
  • परम्परा का सम्बन्ध भूतकाल से होता है।

2. आधुनिकता:
शाब्दिक रूप में आधुनिकता परम्परा के विपरीत लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उत्तर – औद्योगिक काल की देन है। आधुनिकता एक दृष्टिकोण होता है जिसमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में गतिशीलता पाई जाती है। यह गतिशीलता हमारे धार्मिक जीवन, आर्थिक जीवन, चिंतन व अन्य तरीकों में देखी जा सकती है। संक्षेप में हम आधुनिकता को निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर समझ सकते हैं –

  • आधुनिकता व्यक्ति व समाज में प्रदत्त पदों के स्थान पर अर्जित पदों को स्थापित करती है।
  • यह एक दृष्टिकोण है जो परम्पराओं में परिवर्तन किए जाने के उपरान्त विकसित होता है।
  • आधुनिकता रूढ़िगत परम्पराओं को स्वीकार नहीं करती है।
  • तर्कवाद तथा विज्ञान के प्रति रुझान आधुनिकता का अनिवार्य लक्षण है।
  • इसमें गतिशीलता को महत्त्व दिया जाता है।
  • इसमें व्यक्ति अपनी प्रस्थिति व वर्ग को अपनी योग्यता के अनुसार बदल सकता है।

प्रश्न 2.
परम्परा एवं आधुनिकता के मध्य क्या सम्बन्ध हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सामान्यत:
आधुनिकता एवं परम्परा को एक – दूसरे का विरोधी माना जाता है। यह भी सच है कि परम्परागत समाज वर्तमान आधुनिक समाजों का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक सभी क्षेत्रों में अनुकरण कर रहे हैं परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि परम्परागत समाज आधुनिक से एकदम भिन्न है और परम्परागत ही हैं तथा आधुनिक समाज में परम्पराओं का कोई महत्त्व नहीं है।

वास्तविकता यह है कि कोई भी समाज न तो पूर्णत: आधुनिक होता है और न ही पूर्णतः परम्परागत। किसी भी समाज में आधुनिकता का निर्माण भी परम्परा के कन्धों व अनुभवों पर ही होता है। इस कारण वह भूत व वर्तमान के बीच एक कड़ी है। प्रो. शील्स परम्परा व आधुनिकता को एक सातत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। इन दोनों अवधारणाओं में पाए जाने वाले सम्बन्धों को हम निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. समाज में आर्थिक क्षेत्रों में विकास हुआ है व आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहे हैं।
  2. समाज में विषमता व विभाजन के स्थान पर समरसता व समानता को बढ़ावा मिला है।
  3. प्रदत्त प्रस्थिति के स्थान पर अर्जित प्रस्थिति का महत्त्व बढ़ा है।
  4. औद्योगीकरण व नगरीकरण की प्रक्रियाओं में वृद्धि हुई है।
  5. देश की जनसंख्या में नगरीय अनुपात बढ़ा है।
  6. प्रति व्यक्ति औसत आय में वृद्धि हुई है।
  7. समाज की प्रकृति अधिकाधिक लोकतांत्रिक हुई है।
  8. धार्मिक कट्टरता के स्थान पर धर्मनिरपेक्षता का विकास हुआ है।
  9. समाज में जन्म के स्थान पर गुण व योग्यता का महत्त्व बढ़ा है।
  10. वर्तमान समाज खुले समाज का पक्षधर है।
  11. वस्तु के स्थान पर मुद्रा विनिमय का प्रचलन बढ़ा है।
  12. धर्म, जाति व रंग आदि के आधार पर भेदभाव कम हुआ है।
  13. संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकाकी परिवारों का चलन बढ़ा है।
  14. व्यक्तिवादिता की भावना का संचार हुआ है।
  15. जागीरदारी तथा जमींदार प्रथा का उन्मूलन हुआ है।

प्रश्न 3.
औद्योगीकरण का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा है? प्रकाश डालिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण का भारतीय समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का विवरण इस प्रकार से है –

  1. नगरीकरण:
    औद्योगीकरण के कारण विशाल नगरों का विकास हुआ, जहाँ उद्योग स्थापित हो जाते हैं वहाँ कार्य करने के लिए गाँव में अनेक लोग आकर बस जाते हैं व धीरे-धीरे वह स्थान औद्योगिक नगर का रूप ले लेता है।
  2. श्रम: विभाजन एवं विशेषीकरण:
    जब उत्पादन मशीनों की सहायता से होने लगा तो सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया को अनेक छोटे – छोटे भागों में बाँट दिया गया। इसी कारण श्रम – विभाजन एवं विशेषीकरण का समाज में उदय हुआ।
  3. उत्पादन में वृद्धि: औद्योगीकरण में श्रम:
    विभाजन एवं विशेषीकरण के कारण व मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर तीव्र मात्रा में होने लगा।
  4. यातायात के साधनों का विकास:
    कारखानों में कच्चे माल को तथा निर्मित माल को मंडियों तक पहुँचाने में यातायात के साधनों ने एक अहम् भूमिका निर्वाह किया है। अनेक साधनों जैसे – रेल, मोटर, वायुयान व जहाज आदि का आविष्कार हुआ, कच्ची व पक्की सड़कें बनीं।
  5. सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि:
    इस प्रक्रिया से सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई है। लोग अपने व्यवसाय, स्थान व विचारों में परिवर्तन करने लगे।
  6. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन:
    औद्योगिक नगरों में स्त्रियाँ शिक्षा प्राप्त कर धनोपार्जन करने लगी। इससे उनकी पारिवारिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।
  7. मानवीय शक्ति में वृद्धि:
    इससे मानव की शक्तियों में वृद्धि हुई। उसने अनेक आविष्कारों एवं वैज्ञानिक खोजों के द्वारा मशीनों का आविष्कार किया है जिससे समस्त कार्य आसानी से हो जाते हैं।
  8. राजनीतिक प्रभाव:
    औद्योगीकरण के कारण देश में अनेक राजनीतिक व संसदीय सुधार हुए। दबाव समूहों के रूप में श्रम संघों का उदय हुआ। उनके प्रतिनिधि राज्य विधानसभाओं व संसद में जाने लगे।

प्रश्न 4.
भारत में नगरीकरण पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
‘नगर’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘सिटी’ (City) का हिन्दी अनुवाद है। स्वयं ‘सिटी’ शब्द लैटिन भाषा के सिविटाज’ (Civitas) से बना है जिसका तात्पर्य है नागरिकता। नगरीकरण शब्द नगर से ही बना है। सामान्यतः नगरीकरण का अर्थ नगरों के उद्भव, विकास, प्रसार एवं पुनर्गठन से लिया जाता है। वर्तमान औद्योगिक नगर औद्योगीकरण की ही देन हैं।
आज विश्व में सभी देशों में नगरीकरण की गति में तीव्रता से वृद्धि हुई है जैसे पहले कभी नहीं रही है। विकासशील देशों में जहाँ विश्व की तीन – चौथाई जनसंख्या रहती है, वहाँ जनसंख्या का स्थानान्तरण गाँव से नगरों की ओर बहुत हुआ है और हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में विश्व की नगरीय आबादी तीव्र गति से बढ़ी है।
नगरीकरण की विशेषताएँ:

  1. नगरीकरण में लोग नगरों में अन्य व्यवसायों को करने के लिए जाते हैं।
  2. नगरीकरण ग्रामों के नगरों में बदलने की प्रक्रिया का नाम है।
  3. नगरीकरण जीवन जीने की एक विधि है जिसका प्रसार नगरों से गाँवों की ओर होता है। नगरीय जीवन जीने की विधि को नगरीयता या नगरवाद कहते हैं। नगरवाद केवल नगरों तक ही सीमित नहीं होता है वरन् गाँव में रहकर भी लोग नगरीय जीवन – विधि को अपना सकते हैं।
  4. नगरीकरण के प्रक्रिया के परिणामस्वरूप भारत में अनेक सामाजिक परिवर्तन हुए हैं।
  5. नगरीकरण के कारण भारतीयों के विचार एवं मूल्यों में परिवर्तन आया है।
  6. परम्परावादी विचारों के स्थान पर वैज्ञानिक सोच का विकास हुआ है।
  7. आधुनिक शिक्षा, विज्ञान आदि के कारण समाज में भेदभावों में कमी आई है।
  8. संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ है तथा नगरीय परिवारों का चलन बढ़ा है।
  9. नगरों में उपभोक्तावादी प्रवृत्ति का विकास हुआ है।
  10. नगरों में पाश्चात्य जीवन शैली व पश्चिमी मूल्यों को प्रोत्साहन मिलता है।
  11. आधुनिक प्रवृत्ति का विकास नगरों में ही हुआ है।
  12. नगरों में द्वितीयक व तृतीयक समूहों की प्रधानता होती है।
  13. पश्चिमी शिक्षा पद्धति का विकास नगरों में ही हुआ है।
  14. महिलाओं की प्रस्थिति में बदलाव आया है, जिससे उनमें सजगता आई है, अपने अधिकारों के प्रति।
  15. नगरीकरण से लोगों के जीवन में विश्वव्यापीकरण को बल मिला है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
परिवर्तन का सम्बन्ध किससे है?
(अ) गतिशीलता
(ब) निरंतरता
(स) दोनों से
(द) किसी से नहीं
उत्तरमाला:
(स) दोनों से

प्रश्न 2.
विदेशी जाति कौन – सी है?
(अ) गोंड
(ब) भील
(स) मंगोल
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) मंगोल

प्रश्न 3.
ब्रिटिश उपनिवेशवाद किस पर आधारित था?
(अ) आर्थिक व्यवस्था
(ब) पूँजीवादी व्यवस्था
(स) सामाजिक व्यवस्था
(द) राजनीतिक व्यवस्था
उत्तरमाला:
(ब) पूँजीवादी व्यवस्था

प्रश्न 4.
परम्परा का सम्बन्ध किस काल से है?
(अ) भूतकाल
(ब) वर्तमान
(स) भविष्य काल
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) भूतकाल

प्रश्न 5.
परम्परा का सम्बन्ध किससे है?
(अ) प्राचीनता
(ब) नवीनता
(स) दोनों से
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) प्राचीनता

प्रश्न 6.
योगेन्द्र सिंह ने परम्परा की कितनी विशेषताओं का उल्लेख किया है?
(अ) दो
(ब) चार
(स) छः
(द) आठ
उत्तरमाला:
(ब) चार

प्रश्न 7.
व्यक्ति के जीवन में कितने गुणों की प्रधानता होती है?
(अ) तीन
(ब) पाँच
(स) सात
(द) नौ
उत्तरमाला:
(अ) तीन

प्रश्न 8.
जाति किस पर आधारित व्यवस्था है?
(अ) जन्म
(ब) प्रदत्त प्रस्थिति
(स) ऊँच – नीच पर
(द) सभी पर
उत्तरमाला:
(द) सभी पर

प्रश्न 9.
जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है?
(अ) धर्म
(ब) अर्थ
(स) काम
(द) मोक्ष
उत्तरमाला:
(द) मोक्ष

प्रश्न 10.
व्यक्ति के जीवन को कितने आश्रमों में बाँटा गया है?
(अ) दो
(ब) चार
(स) पाँच
(द) सात
उत्तरमाला:
(ब) चार

प्रश्न 11.
परम्परा में परिवर्तन कितने प्रकारों में दृष्टिगोचर होता है?
(अ) तीन
(ब) दो
(स) चार
(द) पाँच
उत्तरमाला:
(ब) दो

प्रश्न 12.
योगेन्द्र सिंह ने आधुनिकता के कितने लक्षण बताए हैं?
(अ) चार
(ब) पाँच
(स) दो
(द) छः
उत्तरमाला:
(अ) चार

प्रश्न 13.
आधुनिक समाज कैसा समाज है?
(अ) बंद
(ब) मुक्त
(स) गतिशील
(द) (ब) व (स) दोनों ही
उत्तरमाला:
(द) (ब) व (स) दोनों ही

प्रश्न 14.
औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात किस वर्ष में हुआ?
(अ) 1760 में
(ब) 1765 में
(स) 1780 में
(द) 1790 में
उत्तरमाला:
(अ) 1760 में

प्रश्न 15.
वह कौन – सा पहला शहर था, जो गाँव से नगर बना?
(अ) लंदन
(ब) ब्रिटेन
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) ब्रिटेन

प्रश्न 16.
1690 में किस अंग्रेज व्यापारी ने हुगली नदी पर व्यापार के लिए गाँव पट्टे पर लिए थे?
(अ) जॉब चारनॉक
(ब) विलियम
(स) डेविस
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) जॉब चारनॉक

प्रश्न 17.
फोर्ट विलियम की स्थापना किस वर्ष में हुई थी?
(अ) 1598
(ब) 1698
(स) 1798
(द) 1898
उत्तरमाला:
(ब) 1698

प्रश्न 18.
कहवा सबसे अधिक कहाँ उत्पन्न होता था?
(अ) सूरत
(ब) मुम्बई
(स) चेन्नई
(द) कोलकाता
उत्तरमाला:
(स) चेन्नई

प्रश्न 19.
कपास का उत्पादन सर्वाधिक कहाँ होता है?
(अ) मुम्बई
(ब) चेन्नई
(स) कोलकाता
(द) सूरत
उत्तरमाला:
(अ) मुम्बई

प्रश्न 20.
सर्वप्रथम चाय उद्योग का प्रारम्भ किस स्थान पर हुआ था?
(अ) दुर्गापुर
(ब) तंजौर
(स) कोलकाता
(द) असम
उत्तरमाला:
(द) असम

प्रश्न 21.
भारत में चाय उद्योग का आरम्भ किस वर्ष में हुआ था?
(अ) 1851
(ब) 1751
(स) 1651
(द) 1855
उत्तरमाला:
(अ) 1851

प्रश्न 22.
भारत में जनगणना कितने वर्षों के पश्चात् की जाती है?
(अ) 5 वर्ष
(ब) 8 वर्ष
(स) 10 वर्ष
(द) 12 वर्ष
उत्तरमाला:
(स) 10 वर्ष

प्रश्न 23.
इससे पहले जनगणना भारत में कब हुई थी?
(अ) 2001
(ब) 2005
(स) 2009
(द) 2011
उत्तरमाला:
(द) 2011

प्रश्न 24.
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार नगरीय आबादी कितने प्रतिशत है?
(अ) 31.16%
(ब) 30%
(स) 35.17%
(द) 32.16%
उत्तरमाला:
(अ) 31.16%

प्रश्न 25.
भारत में 1 लाख से अधिक एवं 10 लाख से कम आबादी वाले नगरों की संख्या कितनी है?
(अ) 140
(ब) 430
(स) 450
(द) 412
उत्तरमाला:
(द) 412

प्रश्न 26.
1901 विधेयक असम लेबर खंड इमीग्रेटस में क्या प्रावधान किया गया?
(अ) 5 वर्षों तक श्रमिक कार्य करेंगे
(ब) मजदूर मजदूरी के अलावा कुछ नहीं कर सकते
(स) 4 वर्षों के लिए मजदूरी के अलावा कुछ नहीं कर सकते
(द) सभी प्रावधान
उत्तरमाला:
(द) सभी प्रावधान

प्रश्न 27.
1991 तक कुल कार्यकारी जनसंख्या में से कितनी प्रतिशत जनसंख्या बड़े उद्योगों में कार्यरत थी?
(अ) 30%
(ब) 20%
(स) 19%
(द) 28%
उत्तरमाला:
(द) 28%

प्रश्न 28.
नगरीकरण की प्रक्रिया के विस्तार ने किस संस्कृति का प्रसार किया?
(अ) उपभोक्तावादी संस्कृति
(ब) पूँजीवादी संस्कृति
(स) मानवतावादी संस्कृति
(द) खाओ – पीओ संस्कृति
उत्तरमाला:
(अ) उपभोक्तावादी संस्कृति

प्रश्न 29.
20वीं सदी में लंदन में कितनी आबादी थी?
(अ) 6 करोड़
(ब) 7 करोड़
(स) 5 करोड़
(द) 3 करोड़
उत्तरमाला:
(ब) 3 करोड़

प्रश्न 30.
नगरों में किन परिवारों का चलन अधिक पाया जाता है?
(अ) संयुक्त परिवार
(ब) एकाकी परिवार
(स) मिश्रित परिवार
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) एकाकी परिवार

RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज में परिवर्तन किन विदेशी जातियों के आगमन से हुआ?
उत्तर:
शक, हूण, कुषाण, मंगोल तथा अरब जैसी आदि विदेशी जतियों के आगमन से भारतीय सामाजिक संरचना में बदलाव हुए।

प्रश्न 2.
ब्रिटिश उपनिवेशवाद का सम्बन्ध किस व्यवस्था से था?
उत्तर:
ब्रिटिश उपनिवेशवाद का सम्बन्ध पूँजीवादी व्यवस्था से था।

प्रश्न 3.
असम में चाय के बागानों में कार्य करने के लिए श्रमिक कहाँ से लाए गए?
उत्तर:
बिहार, झारखंड, बंगाल तथा मद्रास आदि स्थानों से कार्य करने के लिए श्रमिक लाए गए।

प्रश्न 4.
योगेन्द्र सिंह ने किस पुस्तक में परम्परा की विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर:
‘Modernization of Indian Traditions’ में योगेन्द्र सिंह ने परम्परा की विशेषता का उल्लेख किया है।

प्रश्न 5.
भारत में चाय के बागानों का विकास किस उद्देश्य से किया गया था?
उत्तर:
भारत में चाय के बागानों का विकास अंग्रेजों ने अपने हितों की पूर्ति के उद्देश्य से किया था।

प्रश्न 6.
व्यक्ति के जीवन में किन गुणों की प्रधानता होती है?
उत्तर:
व्यक्ति के जीवन – काल में मुख्यतः तीन गुण पाए जाते हैं –

  • सतोगुण।
  • तमोगुण।
  • रजोगुण।

प्रश्न 7.
व्यक्ति के जीवन को कितने आश्रमों में विभाजित किया गया है?
उत्तर:
व्यक्ति के जीवन को 4 आश्रमों में विभाजित किया गया है –

  • ब्रह्मचर्य आश्रम।
  • ग्रहस्थ आश्रम।
  • वानप्रस्थ आश्रम।
  • संन्यास आश्रम।

प्रश्न 8.
व्यक्ति के जीवन काल में अंतिम लक्ष्य क्या है?
उत्तर:
व्यक्ति के जीवन का अंतिम लक्ष्य ‘मोक्ष’ प्राप्ति है, जो संन्यास आश्रम के माध्यम से प्राप्त होता है।

प्रश्न 9.
परम्परा में निहित परिवर्तन कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय समाज में परम्परा में दो प्रकार से परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं –

  • प्रत्यक्ष परिवर्तन।
  • संरचनात्मक परिवर्तन।

प्रश्न 10.
पर – संस्कृतिकरण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
वह प्रक्रिया जिसमें एक संस्कृति के तत्त्व प्रतिमान या रीतियाँ दूसरी संस्कृति के द्वारा ग्रहण किए जाते हैं, उसे पर – संस्कृतिकरण कहते हैं।

प्रश्न 11.
एन. के. सिंघी के अनुसार आधुनिकता में कौन – से तत्त्व निहित होते हैं?
उत्तर:
तार्किकता, वैज्ञानिकता तथा आर्थिक संरचना में मुख्य तौर पर यही तीन तत्त्व निहित होते हैं।

प्रश्न 12.
औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात किस देश में हुआ था?
उत्तर:
1760 ई. सदी में ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ था।

प्रश्न 13.
वह कौन – सा देश था, जिसमें सर्वप्रथम लोग ग्रामीण से नगरीय बने थे?
उत्तर:
ब्रिटेन औद्योगीकरण वाला समाज या देश था, जिसमें सर्वप्रथम लोग ग्रामीण से नगरीय बने थे।

प्रश्न 14.
सात्मीकरण की प्रक्रिया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह वह प्रक्रिया है जिसमें एक संस्कृति के तत्त्व या रीतियाँ अपना अस्तित्त्व खोकर दूसरी संस्कृति में विलीन हो जाती हैं।

प्रश्न 15.
“परम्परा भूत एवं वर्तमान को जोड़ने का कार्य करती है” यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
एडवर्ड शील्ज का यह कथन है।

प्रश्न 16.
बंद व्यवस्था किसके लिए प्रयुक्त होता है?
उत्तर:
जाति व्यवस्था के लिए बंद व्यवस्था शब्द का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 17.
भारत में सबसे अधिक जनसंख्या वाला कौन – सा महानगर है?
उत्तर:
ग्रेटर मुम्बई सबसे अधिक जनसंख्या वाला महानगर है, जिसकी जनसंख्या 1,83,94,912 है।

प्रश्न 18.
भारत में किस कारण से उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रसार हुआ?
उत्तर:
नगरीकरण की प्रक्रिया के विकास के कारण उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रसार हुआ।

प्रश्न 19.
एकाकी परिवार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जहाँ पति – पत्नी (माता-पिता) व उनके अविवाहित बच्चे साथ में रहते हों, ऐसे परिवार को एकाकी परिवार कहा जाता है।

प्रश्न 20.
संयुक्त परिवार की विशेषता बताइए।
उत्तर:

  • संयुक्त परिवारों में हम की भावना पाई जाती है।
  • इस परिवार में एक से अधिक पीढ़ी के लोग साथ रहते हैं।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परम्परा की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाज में जब मूल्यों, मान्यताओं, विश्वासों, विचारों तथा आदतें आदि जब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित की जाती हैं तब उसे परम्परा के नाम से संबोधित किया जाता है। परम्परा में भूतकाल के अनुभव निहित होते हैं तथा समूह की स्वीकृति भी शामिल होती है।
परंपरा की विशेषताएँ:

  • परम्परा में कठोरता पाई जाती है।
  • इसमें गतिशीलता का अभाव पाया जाता है।
  • इसमें संस्कृति के भौतिक पक्षों की अवहेलना की जाती है।
  • इसमें हस्तांतरण का गुण निहित होता है।

प्रश्न 2.
आधुनिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आधुनिकता एक दृष्टिकोण होता है जिसमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में गतिशीलता पाई जाती है। एक संबोधन के रूप में आधुनिकता समाजशास्त्र में सामाजिक परिवर्तन को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण रही है। व्यावहारिक रूप में आधुनिकता में और भी आयाम शामिल होते हैं।
आधुनिकता की विशेषताएँ:

  • आधुनिकता उपयोगवादी संस्कृति में विश्वास रखती है।
  • यह परिवर्तन के प्रति खुला दृष्टिकोण रखती है।
  • आधुनिक समाज में प्रदत्त प्रस्थितियाँ गौण हो जाती हैं।
  • यह खुले समाज की पक्षधर है।
  • यह सोच या मानसिकता से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा है।

प्रश्न 3.
आधुनिकता के प्रभावों को संक्षिप्त रूप से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आधुनिकता के प्रभावों का विवरण हम निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं –

  • इससे समाजों में परम्परागत पेशों का पतन हुआ है।
  • कृषि में नवीन उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।
  • इससे राष्ट्रवादी भावनाओं में वृद्धि हुई है।
  • नवीन पेशों के विशिष्टीकरण में वृद्धि हुई है।
  • इससे समाज में अनेक सामाजिक कुरीतियों का अंत हुआ है, जैसे – बाल – विवाह, सती प्रथा व जातीय भेदभाव आदि।
  • इससे समाज में पृथक्करण की भावना में कमी आई है।

प्रश्न 4.
जजमानी प्रथा की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जजमानी प्रथा में जिस परिवार की सेवा की जाती है वह परिवार या परिवार का मुखिया सेवा करने वाले का जजमान कहलाता है तथा सेवा प्रदान करने वाला व्यक्ति ‘कमनि’ अथवा ‘काम करने वाला’ कहलाता है। इन शब्दों का प्रयोग उत्तरी पश्चिमी भारत में सर्वाधिक रूप से किया जाता है। भारत के अन्य भागों में भी यह प्रथा पाई जाती है।

जजमानी प्रथा को महाराष्ट्र में बलूटे’, चेन्नई में ‘मिरासी’ तथा मैसूर में ‘अद्दे’ कहते हैं। इस प्रथा के अंतर्गत प्रत्येक जाति का कोई निश्चित कार्य पीढ़ी – दर – पीढ़ी चलता रहता है। इस कार्य पर उसका एकाधिकार होता है। इसमें एक जाति दूसरी जाति की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।

प्रश्न 5.
जजमानी व्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
जजमानी व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  • इस प्रथा के अंतर्गत प्रत्येक जाति का व्यवसाय निश्चित होता था।
  • जजमानी प्रथा वंशानुगत होती है अर्थात् यह पिता से पुत्र को प्राप्त होती थी।
  • इस प्रथा में कमनि के लिए जजमान एक संपत्ति है तथा वह उससे अपना हक वसूल करता है।
  • इस व्यवस्था में भुगतान मुद्रा में नहीं होता था, बल्कि वस्तुओं में किया जाता था।

प्रश्न 6.
औद्योगिक क्रान्ति किसे कहते हैं?
उत्तर:
आधुनिक उद्योगवाद या औद्योगीकरण के फलस्वरूप उत्पन्न हुए परिवर्तनों की जटिल श्रृंखला को सामान्यतः औद्योगिक क्रान्ति की संज्ञा दी जाती है। विशिष्ट रूप से इस शब्द का प्रयोग इंग्लैंड में 18वीं शताब्दी के अंतिम चरण तथा 19वीं शताब्दी की प्रारम्भिक अवस्था में हुए परिवर्तन के काल के लिए किया गया है।

इस अवधि में ब्रिटेन में आर्थिक, प्रौद्योगिक, सामाजिक तथा संगठनात्मक अनेक परिवर्तन हुए जिन्होंने मुख्यतः खेतिहर तथा लघु स्तरीय आधार पर उत्पादन करने वाले समाज को विश्व के कारखानों पर आधारित मशीनीकृत उत्पादनकर्ता समाज में बदल दिया।

कोयला, लोहा तथा बाद में स्टील की खोज तथा उनके वृहत् आधार पर प्रयोग की नवीन प्रौद्योगिकी के विकास ने औद्योगिक क्रान्ति को जन्म दिया। ऊर्जा शक्ति के रूप में जल शक्ति तथा भाप के इंजन के आविष्कार ने वृहत् कारखाना प्रणाली की स्थापना में मुख्य भूमिका अदा की है।

प्रश्न 7.
औद्योगिक श्रमिकों की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
औद्योगिक श्रमिकों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था, जो इस प्रकार से है –

  • श्रमिकों के कार्य के लिए एक उचित स्वस्थ स्थितियों का अभाव था।
  • अधिक कार्य करने से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था।
  • उनके पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं होते थे।
  • उन्हें अनेक प्रावधानों के अंतर्गत अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था।
  • उनसे बलपूर्वक कार्य करवाया जाता था।
  • उनका जीवन – स्तर काफी दयनीय था।
  • उनका शोषण अंग्रेजों के द्वारा किया जाता था।

प्रश्न 8.
नगरीकरण की विशेषता बताइए।
उत्तर:
नगरीकरण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  • नगरीकरण की प्रक्रिया से लोगों को रोजगार के नए अवसर उपलब्ध हुए।
  • इस प्रक्रिया से लोगों के जीवन – स्तर में सुधार हुआ।
  • संचार के साधनों का विकास हुआ, जिससे लोगों को देश के समस्त क्षेत्रों से सूचनाएँ प्राप्त होने लगी।
  • इस प्रक्रिया से कृषि का यंत्रीकरण हुआ।
  • नगरीकरण की प्रक्रिया से समस्य लोगों में सामाजिक दूरी की भावना में कमी आई।
  • इससे समाज में चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं में वृद्धि हुई।

प्रश्न 9.
नगरीकरण की प्रक्रिया का जाति – व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
नगरीकरण की प्रक्रिया का जाति-व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों को हम निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं –

  • इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप अब व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी जाति के बजाय गुणों के आधार पर होने लगा है।
  • जातीय संस्तरण में बदलाव हुए हैं तथा उन जातियों की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है।
  • खान – पान के नियमों तथा छुआछूत में भी शिथिलता आई है।
  • एक व्यक्ति अब कई व्यवसायों में तथा एक व्यवसाय में कई जातियों के लोग लगे हुए हैं।
  • जजमानी प्रथा का विघटन भी नगरीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप ही हुआ है।

प्रश्न 10.
सार्वजनिक क्षेत्रों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान ‘Bureau of Public Enterprises’ ने भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं, जो इस प्रकार से हैं –

  • देश के तीव्र औद्योगिक विकास में सहभागी बनकर विकास के भार को वहन करना।
  • देश में रोजगार के अवसरों को उपलब्ध कराना।
  • देश में संतुलित क्षेत्रीय विकास की प्रक्रिया को अधिक प्रोत्साहन देना।
  • निवेश को उचित एवं अपेक्षित दिशा प्रदान की जा सके।

प्रश्न 11.
भारत में व्यापार के लिए अंग्रेजों ने किन – किन क्षेत्रों का चयन किया था?
उत्तर:
अंग्रेजों ने अनेक उद्योगों का आरम्भ भारत में व्यापार के लिए अनेक क्षेत्रों में किया था। मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता को अंग्रेजों ने अपने व्यापार तथा कच्चे माल को ब्रिटेन भेजने के लिए तथा तैयार माल को भारत में लाने के लिए मुम्बई से कपास, कोलकाता से जूट, चेन्नई से कहवा, नील तथा कपास को ब्रिटेन भेजने के लिए चुना गया था। ये सभी स्थान समुद्री बंदरगाह के रूप में थे, जहाँ से माल लाने एवं ले जाने की दृष्टि से अधिक उपयोगी थे। अंग्रेज इन बंदरगाहों से अपने देश को कच्चा माल भेजते थे तथा वहाँ से निर्मित माल को मंगवाया करते थे।

प्रश्न 12.
महिलाओं की स्थिति में हुए बदलावों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
महिलाओं की स्थिति में हुए बदलावों का विवरण इस प्रकार से है –

  • महिलाओं को उनके अधिकारों के विषय में जानकारी मिली है।
  • महिलाओं की शिक्षा प्रणाली की ओर भी ध्यान दिया गया, जिससे उनकी स्थिति में सुधार हुआ है।
  • महिलाओं का समाज में सशक्तिकरण हुआ है।
  • प्रजातांत्रिक मूल्यों ने महिलाओं की स्वतंत्रता को प्रोत्साहन दिया है।
  • महिलाएँ समाज के हर क्षेत्रों जैसे शिक्षण, बैंक, व्यापार व तकनीकी क्षेत्रों आदि में बढ़ – चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं।

प्रश्न 13.
नगरीकरण की प्रक्रिया से धार्मिक गतिविधियों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
नगरीकरण की प्रक्रिया से धार्मिक गतिविधियों पर अनेक प्रभाव दृष्टिगोचर हुए हैं –

  • नगरीकरण के प्रक्रिया के कारण धार्मिक अंधविश्वासों में कमी आई है।
  • इस प्रक्रिया के प्रभाव से जिन धार्मिक कार्यों को करने में काफी दिन लगा करते थे, वही कार्य अब कुछ घंटों में ही सम्पन्न हो जाते हैं।
  • समाज में रूढ़िवादी विचारों में बदलाव हुए हैं।
  • इसके कारण जो व्यक्ति अपने कार्यों को धर्म के आधार पर संपादित करता था, अब उसे तर्क के आधार पर जाँच कर प्रयोग में लाता है।
  • धर्म गुरुओं, ब्राह्मणों व कर्मकांडों आदि के प्रभाव में कमी आई है।

प्रश्न 14.
औद्योगीकरण के नकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण की प्रक्रिया में जहाँ समाज में अनेक सकारात्मक कार्य किए हैं, वहीं दूसरे ओर इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी समाज पर पड़े हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –

  • इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप नगरों में प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है।
  • मशीनों के प्रयोग के कारण बेरोजगारी की समस्या भी उत्पन्न हुई है।
  • इस प्रक्रिया ने समाज में व्यक्तिगत विघटन को प्रोत्साहन दिया है।
  • मशीनों पर कार्य करने से श्रमिकों को अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • इससे समाज में तनाव व संघर्ष की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 15.
नगरीकरण की प्रक्रिया का ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नगरीकरण की प्रक्रिया का ग्रामीण क्षेत्रों पर अनेक प्रकार से प्रभाव पड़ता है, जो निम्न प्रकार से है –

  • इस प्रक्रिया से गाँव में लोगों के रहन – सहन के स्तर में परिवर्तन देखने को मिलता है।
  • अब इस प्रक्रिया के प्रभाव से गाँव के सदस्यों के वस्त्रों के पहनने में बदलाव हुए हैं।
  • गाँव में भी नगरों की भाँति बिजली का प्रयोग किया जाता है।
  • गाँव में भी बच्चों के अध्ययन के लिए स्कूल खोले गए हैं।
  • गाँव में अनेक प्रकार के व्यवसायों को बल मिला है। जैसे – मुर्गी पालन, दुग्ध व्यवसाय, फूलों की कृषि तथा मत्स्य पालन आदि विभिन्न उद्योगों की शुरुआत हुई है।

प्रश्न 16.
आर्थिक विकास को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक विकास एक सापेक्षिक धारणा है, जिसका सम्बन्ध एक समय विशेष से न होकर दीर्घकालीन परिवर्तनों से होता है। अन्य भौतिक पदार्थों की भाँति इसे मापा नहीं जा सकता।
आर्थिक विकास की विशेषताएँ:

  • इसमें आकस्मिक तौर पर परिवर्तन होते हैं।
  • इसमें उन्नति तथा परिवर्तनों के लिए अथक प्रसाय करना होता है।
  • यह अल्पविकसित देशों के विकास से सम्बन्धित हैं।
  • यह प्रगति की प्रबल इच्छा व सृजनात्मक शक्तियों का प्रतिफल है।

प्रश्न 17.
सार्वजनिक व निजी क्षेत्र में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों में अन्तर को निम्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 4 भारत में संरचनात्मक परिवर्तन-परम्परा एवं आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण 2

प्रश्न 18.
समाज पर अंग्रेजी शिक्षा के प्रभावों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
समाज पर अंग्रेजी शिक्षा के प्रभावों का विवेचन निम्न प्रकार से है –

  1. उन्नत शिक्षा प्रणाली का विकास:
    अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से गाँवों व समाज के हर क्षेत्रों में लोगों को एक बेहतर शिक्षा को ग्रहण करने का अवसर मिला।
  2. मानसिकता में बदलाव:
    जहाँ प्राचीन शिक्षा पद्धति के अंतर्गत लड़के व लड़कियों को अलग शिक्षा देने का प्रावधान था, वही अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम में दोनों को ही Co-education अर्थात् सह – शिक्षा की प्रवृत्ति का विकास हुआ। साथ ही इसने लोगों के विचारों में भी बदलाव किए।
  3. नौकरियों के अवसर में वृद्धि:
    अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से लोगों को नगरों में उन्नत कम्पनियों तथा प्रत्येक क्षेत्र में रोजगार के अवसर प्राप्त हुए। इससे लोगों के रहन – सहन, आचार – विचार व सम्पूर्ण जीवन – शैली में बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं।

प्रश्न 19.
द्वितीयक समूहों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
द्वितीयक समूह की अवधारणा:
समाजशास्त्र में सर्वप्रथम ‘होमन्स तथा किंग्सले डेविस’ ने द्वितीयक समूहों पर प्रकाश डाला था। यह वह समूह है जिनमें सदस्यों के बीच अवैयक्तिक सम्बन्ध पाए जाते हैं। ऐसे समूहों में शारीरिक निकटता का होना अनिवार्य नहीं है। ये विशेष हितों पर आधारित तथा हस्तांतरित होते हैं।
विशेषताएँ:

  • ये समूह जान – बूझकर कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संगठित किए जाते हैं।
  • इन समूहों में सदस्यों का एक – दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानना जरूरी नहीं है।
  • इनका आकार प्राथमिक समूहों की तुलना में काफी विस्तृत होता है।
  • इन समूहों में सदस्यों के उत्तरदायित्व सीमित होते हैं।
  • यहाँ सम्बन्धों में घनिष्ठता का अभाव पाया जाता है।
  • सम्बन्धों में औपचारिकता पाई जाती है। यहाँ व्यक्ति के बजाय उसकी प्रस्थिति का महत्त्व ज्यादा होता है।

प्रश्न 20.
प्राथमिक समूह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘चार्ल्स कूले’ ने अपनी पुस्तक ‘Social Organization’ में सन् 1909 में प्राथमिक समूह की अवधारणा को प्रस्तुत किया था। वह समूह जिसके सदस्यों में निकटता हो तथा प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित हो, ऐसे समूहों को प्राथमिक समूह के नाम से संबोधित किया जाता था।
विशेषताएँ:

  • इन समूहों में सदस्यों के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध पाए जाते हैं।
  • इन समूहों का आकार छोटा होता है।
  • इन समूहों में सदस्यों के सम्बन्धों की लम्बी अवधि का होना आवश्यक है।
  • प्राथमिक समूहों में सम्बन्ध स्वतः स्वाभाविक रूप से बनते हैं, इनके लिए किसी पर कोई दवाब नहीं डाला जा सकता।
  • सदस्यों के मध्य व्यक्तिगत सम्बन्धों की प्रधानता होती है।
  • प्राथमिक समूह में सदस्यों की इच्छाएँ तथा प्रवृत्तियाँ प्रायः समान होती हैं।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परम्परा एवं आधुनिकता की अवधारणा में अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परम्परा एवं आधुनिकता की अवधारणा में अंतर को हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से दर्शा सकते हैं –
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 4 भारत में संरचनात्मक परिवर्तन-परम्परा एवं आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण 3

प्रश्न 2.
जजमानी प्रणाली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जजमानी प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. जजमानी व्यवस्था जाति व्यवस्था के संदर्भ में:
    जाति – व्यवस्था में प्रत्येक जाति का व्यवसाय निश्चित है तथा उसी के आधार पर उसे अपने जीवन में अपनाना होता है। अर्थात् इस व्यवस्था के अंतर्गत भी अन्य जातियों की सेवाएँ उच्च जाति के सदस्यों को लेनी ही पड़ेंगी।
  2. जजमानी व्यवस्था वंशानुगत:
    यह व्यवस्था वंशानुगत है। एक जजमान के जो परजन या कमीन है, वे पीढ़ी – दर – पीढ़ी चलते रहेंगे। पीढ़ियाँ परिवर्तित होती रहेंगी, पर जजमान व परजन का संबंध बना रहेगा।
  3. जजमानी व्यवस्था एक संपत्ति के रूप में:
    इस प्रणाली में परजन के लिए जजमान एक संपत्ति है और वह उससे अपना हक वसूल करता है। परम्परा व प्रथा के द्वारा इस व्यवस्था को मान्यता दी गई है। हिंदू धर्म – ग्रंथों में इस तथ्य की पुष्टि की गई है। ‘कमीन या परजन’ अपने अधिकारों के लिए जाति पंचायत, ग्राम पंचायत आदि में भी विवाद खड़ा कर सकता है तथा जजमान को विवश कर सकता है कि वह उसका हक दे।
  4. पारस्परिक अधिकारों एवं कर्तव्यों की व्यवस्था:
    इस प्रथा में जजमान का अधिकार है कि परजन से काम ले तथा अपनी सेवा करवाए। जजमान का कर्तव्य है कि वह कमीन की सेवाओं का हक दे। इस प्रकार यह पारस्परिक अधिकारों व कर्त्तव्यों की व्यवस्था है।
  5. मुद्रा पर आधारित नहीं:
    इस व्यवस्था में भुगतान मुद्रा में नहीं होता है। अधिकांशत अन्न (अनाज) के रूप में भुगतान किया जाता है तथा अलग से अनेक प्रकार की सुविधाएँ भी दी जाती हैं।
  6. परंपरागत आर्थिक व्यवस्था:
    यह व्यवस्था आर्थिक व्यवस्था पर आधारित है, न कि खुले बाजार की आर्थिक व्यवस्था पर। खुले बाजार की आर्थिक व्यवस्था में मुद्रा पर आधारित मोल – भाव करके सेवाएँ प्राप्त की जाती हैं और संबंध वही तक सीमित रहता है।
  7. जजमानी व्यवस्था में प्राथमिक संबंध:
    इसमें संबंधों का स्वरूप प्राथमिक होता है। इनके संबंध परिवार के सदस्यों के भाँति होते हैं। इस प्रकार जजमानी व्यवस्था एक आर्थिक – सामाजिक परंपरा पर आधारित व्यवस्था है जो पारस्परिक अन्तरजातीय संबंधों की पुष्टि करती है।

प्रश्न 3.
“जजमानी प्रणाली ने ग्रामीण समाज में गतिशीलता एवं प्रगति को बाधित किया है।” कथन की पुष्टि करते हुए जजमानी प्रणाली के निहित दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जजमानी व्यवस्था के दोष निम्न प्रकार से हैं –

  1. जजमानी व्यवस्था राष्ट्रीय एकता में बाधक:
    इस प्रथा के कारण सामाजिक संगठन एवं प्रभुता मिल जाया करती थी। इससे राष्ट्रीय एकता एवं एकीकरण में बाधा पहुँचती थी, क्योंकि ये ग्रामीण समुदाय के प्रति स्वामिभक्ति का भाव रखते थे तथा दूसरों से अपने को पृथक् समझते थे।
  2. जजमानी व्यवस्था गतिशील नहीं:
    जजमानी व्यवस्था स्थिर, अपरिवर्तनशील एवं अप्रगतिशील है। इसके कारण समाज भी वैसे का वैसा ही बना रहता है। यह अर्जित के स्थान पर प्रदत्त प्रस्थिति को वरीयता देती है।
  3. नवीन परिवर्तनों में बाधक:
    इसकी प्रकृति स्थिर एवं अपरिवर्तनीय है। इसके कारण यह नवीन परिवर्तनों के आने में बाधक रहती है यह नवीन परिवर्तनों को रोकती है।
  4. प्रगति में बाधक:
    यह प्रथा प्रगति में बाधक है क्योंकि यह नये परिवर्तनों को आने से रोकती है। यह व्यवस्था रूढ़िवादी विचारधारा को बढ़ावा देती है। इसके कारण समाज विकास नहीं कर पाता है।
  5. गुलामी की प्रतीक:
    जजमानी व्यवस्था गुलामी की प्रतीक रही है। इस प्रथा के कारण कमीन (कार्य करने वालों) को इस व्यवस्था में इस प्रकार फंसा दिया जाता है कि उनके पास पीढ़ी – दर – पीढ़ी गुलामी करने के अतिरिक्त कोई चारा ही नहीं रहता। वे इस गुलामी से कभी मुक्त नहीं हो पाते।
  6. शूद्रों के शोषण की व्यवस्था:
    यह व्यवस्था शूद्रों की शोषण की व्यवस्था है जिसमें वे मनचाहे तरीके से उनसे काम लेते हैं तथा काम के बदले उचित पारिश्रमिक भी नहीं दिया जाता है।
  7. अन्य व्यवसाय व उद्योग की प्रगति में बाधक:
    यह प्रथा अन्य व्यवसाय व उद्योग की प्रगति में बाधक है, क्योंकि इस प्रथा में हर व्यक्ति केवल अपना व्यवसाय परंपरागत रूप में ही कर सकता है। उसका विशेष कार्य जजमानों की सेवा करना ही है। वह उससे पृथक् होकर नयी दिशा में कार्य करने की सोच ही नहीं सकता। इस प्रकार इस प्रथा में किसी भी प्रकार की प्रगति का प्रश्न ही नहीं उठता है।

प्रश्न 4.
औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं? उद्योगवाद की स्थिति का समाजशास्त्रीय विवेचन कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन हस्त – उपकरणों के स्थान पर निर्जीव शक्ति द्वारा संचालित मशीनों के द्वारा किया जाता है। शक्ति संचालित मशीनों का प्रयोग न केवल कारखानों, अपितु यातायात, संचार तथा खेती आदि सभी क्षेत्रों में भी किया जाता है। इसे उद्योगवाद की स्थापना की एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

उद्योगवाद तथा औद्योगीकरण दोनों ही उत्पादन की ऐसी विधियों की ओर संक्रमण का संकेत देती हैं जो पांरपरिक व्यवस्थाओं की तुलना में आधुनिक समाजों में अपार धन – संपदा को अर्जित करने की क्षमता के लिए उत्तरदायी है। समाजशास्त्रीय दृष्टि से, उद्योगवाद से तात्पर्य उन सामाजिक संबंधों की उत्पत्ति से है जिनकी उत्पत्ति उत्पादनों की प्रक्रियाओं में भौतिक ऊर्जा शक्ति और मशीनों का व्यापक रूप में प्रयोग किया जाता है।

यह एक विशेष प्रकार की जीवन – शैली को जन्म देता है, जो उत्पादन प्रणाली के ढंग के अनुरूप हो। उद्योगवाद की अवधारणा केवल उद्योगों में मशीनों के प्रयोग तक ही सीमित नहीं है, अपितु यह खेती के क्षेत्र में उन्नत बीजों की किस्मों, रासायनिक खाद आदि के उत्पादन में यंत्रीकरण के विस्तार को भी अपने में समाहित किए हुए है।

उद्योगवाद की विशेषताएँ:

  • बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन।
  • समाज में बढ़ता श्रम – विभाजन एवं विशेषीकरण।
  • विशाल बाजार व्यवस्था।
  • यातायात व संचार के साधनों का विकास।
  • औपचारिक नियमों पर आधारित व्यवस्था।
  • आर्थिक विकास की सूचक।

अतः उद्योगवाद मात्र आर्थिक परिवर्तनों की सूचक एक अवधारणा नहीं है, बल्कि आर्थिक परिवर्तनों के साथ जुड़े हुए जटिल सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक संबंध आदि भी इसमें निहित है।

प्रश्न 5.
भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्योगों के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आधुनिक समय में सार्वजनिक क्षेत्र का बढ़ता हुआ विस्तार ही इसकी सबसे बड़ी महत्ता है परन्तु भारत जैसे देश में जहाँ पर भी निजी क्षेत्रों की जड़ें गहरी व प्रभावशाली बन गई हैं, वहाँ पर सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार की आवश्यकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को निम्न प्रकार से जाना जा सकता है –

  1. आर्थिक विकास को गति प्रदान करना:
    सार्वजनिक क्षेत्र का प्रथम कार्य भारत में अल्प विकास को दूर करके आर्थिक विकास को गति प्रदान करना है। इसके लिए समाज में भारी मात्रा में आधारभूत उद्योगों की स्थापना करना मुख्य कार्य है। यह कार्य सार्वजनिक क्षेत्रों के माध्यम से ही किया जा सकता है।
  2. आधारभूत संरचना का निर्माण:
    समाज में सभी प्रकार के उद्योगों के विकास के लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम संरचना की पूर्ण रूप से व्यवस्था कर ली जाए। ऐसे करने से सार्वजनिक क्षेत्रों का व्यापक विस्तार होगा।
  3. संसाधनों का आबंटन:
    सार्वजनिक क्षेत्रों की सबसे बड़ी भूमिका संसाधनों को उचित प्रकार से बांटने में है। इसके आधार पर ही सामाजिक विषमताओं को समाप्त किया जा सकता है तथा जिसके परिणामस्वरूप समाज में समानता की स्थापना होगी।
  4. निजी क्षेत्रों में नियंत्रण:
    समाज के सर्वाधिक हितों की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि सार्वजनिक क्षेत्र पूर्ण रूप से निजी क्षेत्रों पर नियंत्रण रखे। नियंत्रण रखने से मौद्रिक, राजकोषीय तथा प्रशासनिक नीतियों का निर्माण हो सकेगा।

प्रश्न 6.
आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) तथा आर्थिक विकास (Economic Development) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक वृद्धि तथा आर्थिक विकास को हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 4 भारत में संरचनात्मक परिवर्तन-परम्परा एवं आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण 4

प्रश्न 7.
नगरीकरण के भारतीय सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगरीकरण के भारतीय सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों का विवरण निम्न प्रकार से है –
(1) व्यक्तिवादी भावना:
वर्तमान समय में पाश्चात्य सभ्यता के कारण नगरों में व्यक्तिवादिता की भावना का उदय हुआ है। वहाँ सामूहिकता और पारिवारिकता के स्थान पर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत हितों को ही अधिक महत्व देने लगा है।

(2) सामाजिक गतिशीलता:
नगरीकरण के कारण सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई है। एक व्यक्ति अच्छे अवसर प्राप्त होने पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने तथा अपने पद, वर्ग एवं व्यवसाय को बदलने को तैयार रहता है।

(3) आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव:
नगरीकरण की प्रक्रिया ने आर्थिक क्रियाओं और संस्थाओं में भी अनेक परिवर्तन उत्पन्न कर दिये हैं। आज नगरों में बड़े – बड़े उद्योग स्थापित हुए हैं, जो उत्पादन के केन्द्र बन गए हैं।

(4) राजनीतिक क्षेत्र पर प्रभाव:
नगरों में ही लगभग सभी राजनीतिक दलों के कार्यालय होते हैं और नगर ही उनकी गतिविधियों के केन्द्र हैं। वे कई आंदोलन का प्रारम्भ नगरों से ही करते हैं। नगरों में सभी प्रकार के राजनीतिक दलों के अनुयायी पाए जाते हैं जो धरना, घेराव, हड़ताल करते हैं जिससे लोगों में राजनीतिक जागृति पैदा हुई है।

(5) स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन:

  • शिक्षा के अधिकारों की प्राप्ति हुई।
  • इस प्रक्रिया से स्त्रियों में चेतना का विकास हुआ है।
  • अब पारिवारिक प्रस्थिति भी इनकी उच्च हुई है।
  • नगरों में पर्दा – प्रथा तथा बूंघट प्रथा का प्रचलन भी लगभग समाप्त हो गया है।

(6) विवाह पर प्रभाव:

  • जीवन साथी के चयन में अब परिवारों की सहमति के बजाय लड़के व लड़की की राय को महत्व दिया जाता है।
  • अब पत्नी पति को परमेश्वर न मानकर एक मित्र व साथी भी मानने लगी है।
  • बाल – विवाह कम हुए हैं।
  • समाज में अब अविवाहित रहने तथा देर से विवाह करने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है।
  • समाज में अब प्रेम विवाहों का चलन बढ़ा है।
  • विवाह को अब धार्मिक संस्कार न मानकर उसे अब एक सामाजिक समझौते के रूप में देखा जाता है।
  • Court – Marriage का प्रचलन भी समाज में बढ़ा है।
  • विवाह का उद्देश्य समाज में आनंद की प्राप्ति करना है।

प्रश्न 8.
नगरीकरण के भारतीय सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगरीकरण के भारतीय समाज पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. अपराधों में वृद्धि:
    गाँवों की तुलना में नगरों में अपराध अधिक होते हैं। नगरों में परिवार, धर्म, पड़ोस एवं जाति के नियंत्रण में शिथिलता के कारण अपराधों में वृद्धि हो गयी है।
  2. स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    नगरों में स्वच्छ वातावरण का अभाव होता होता है। वायु – प्रदूषण, स्थान की कमी, जनसंख्या में वृद्धि अनेक बीमारियाँ तथा कारखानों का शोर आदि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
  3. सामाजिक विघटन:
    व्यक्तिवादिता के कारण नगरों में सामाजिक नियंत्रण शिथिल हुआ है। वहाँ परिवार, धर्म, ईश्वर, तथा जाति के नियंत्रण के अभाव में समाज विरोधी कार्य अधिक होते हैं। इससे सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिलता है।
  4. आवास की समस्या:
    नगरों में एक ज्वलंत समस्या मकानों की है। नगरों में हवा एवं रोशनीदार मकानों का अभाव होता है। नगरीय क्षेत्रों में कई मकान तो बीमारियों के घर होते हैं।
  5. मानसिक तनाव एवं संघर्ष:
    नगरों में प्रतियोगिता की स्थिति बनी रहती है। हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से आगे निकलना चाहता है। यही स्थिति उसे मानसिक रूप से उसे परेशान करती है तथा साथ ही ये समाज मे अनेक संघर्षों को उत्पन्न भी करती है।
  6. वेश्यावृत्ति की समस्या:
    नगरों में वेश्यावृत्ति अधिक पायी जाती है। वहाँ यौन रोग, एड्स, यौन अपराधों की अधिकता तथा नैतिक मूल्यों का पतन होता है।
  7. जनसंख्या:
    वृद्धि – नगरों में जनसंख्या वृद्धि आज एक अहम् समस्या है। बढ़ती जनसंख्या ने यातायात, शिक्षा, प्रशासन एवं सुरक्षा की समस्या पैदा की है। सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना, यातायात एवं सुरक्षा के स्थान जुटाना व नगरों में प्रशासन चलाना एक कठिन कार्य हो गया है।
  8. भिक्षावृत्ति:
    नगरों में भिक्षावृत्ति अधिक है। सड़क के किनारे मंदिर, मस्जिद एवं धार्मिक स्थानों के पास रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड एवं सार्वजनिक स्थानों पर भिखारियों की भीड़ देखी जा सकती है। भिक्षावृत्ति नगरों में व्याप्त गरीबी का सूचक है।

प्रश्न 9.
औद्योगीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन निम्न प्रकार से है –

  1. जड़ शक्ति का शोषण:
    औद्योगीकरण को जन्म देने एवं उसका विकास करने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका जड़ शक्ति ने निभायी है। जन उत्पादन कार्य, पशु शक्ति एवं मानव शक्ति के स्थान पर कोयला, भाप, पेट्रोल, डीजल, जल विद्युत एवं परमाणु शक्ति के द्वारा किया जाने लगा तो उत्पादन की प्राचीन व्यवस्था में आमूल – चूल परिवर्तन हुए तथा संपूर्ण अर्थव्यवस्था ही बदल गयी एवं नवीन उद्योगों की स्थापना हुई है।
  2. मशीनीकरण:
    औद्योगीकरण मशीनीकरण का ही प्रतिफल है। लकड़ी एवं लोहे के छोटे – मोटे औजारों के स्थान पर उत्पादन का कार्य जब विशालकाय मशीनों व स्वचालित यंत्रों से किया जाने लगा तो औद्योगीकरण की नींव रखी गयी।
  3. नवीन आविष्कार:
    मानव ने अब केवल स्थानीय ही नहीं वरन् विश्वव्यापी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नये-नये आविष्कारों को जन्म दिया। इन आविष्कारों के कारण ही ऐसी मशीनों का निर्माण किया गया जिससे श्रम एवं समय की बचत हो सके तथा कम समय और श्रम में अधिकाधिक उत्पादन किया जा सके। इन आविष्कारों के परिणामस्वरूप फैक्ट्रियों एवं कारखानों द्वारा उत्पादन किया जाने लगा है।
  4. खनिज पदार्थों का प्रयोग:
    औद्योगीकरण के विकास में विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों के प्रयोग ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इनमें कोयला और लोहा प्रमुख हैं। पत्थर के कोयले से लोहे को गलाकर मशीनें एवं औजार बनाना सरल हो गया। इन मशीनों ने उत्पादन की प्रक्रिया को तेज कर दिया।
  5. सभ्यता का विकास:
    मानव प्रगतिशील प्राणी है। उसने अपना जीवन पशु जीवन से प्रांरभ किया। उसके प्रगति के चरण बढ़ते ही गये तथा आज वह अपनी शारीरिक क्षमताओं और बुद्धि के कारण औद्योगिक सभ्यता एवं संस्कृति को जन्म दे सका। औद्योगीकरण मानव की सभ्यता एवं संस्कृति के विकास का ही परिणाम है।

अतः उपरोक्त कारकों के द्वारा औद्योगीकरण की प्रक्रिया समाज में तीव्र हुई।

प्रश्न 10.
औद्योगीकरण का समाज पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण का समाज पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव निम्न प्रकार से है –
1. नगरीकरण:
औद्योगीकरण के कारण विशाल नगरों का विकास हुआ। जहाँ उद्योग स्थापित हो जाते हैं वहाँ कार्य करने के लिए गाँव के अनेक लोग आकर बस जाते हैं तथा धीरे – धीरे वह स्थान औद्योगिक नगर का रूप ले लेता है।

2. यातायात के साधनों का विकास:
औद्योगीकरण की प्रक्रिया के कारण यातायात के साधनों का विकास हुआ है। इससे कारखानों के लिए कच्चा माल तथा निर्मित माल को भेजने में इन साधनों ने अपनी अहम् भूमिका का निर्वाह किया।

3. उत्पादन में वृद्धि:
औद्योगीकरण की प्रक्रिया के कारण श्रम – विभाजन एवं विशेषीकरण में वृद्धि हुई जिसके परिणामस्वरूप मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर अधिक मात्रा में होने लगा।

4. समाजवाद का उदय:

  • इस अवधारणा का प्रतिपादन कार्ल मार्क्स ने किया था।
  • यह अवधारणा समानता की पक्षधर है।
  • यह मजदूरों अथवा श्रमिकों के अधिकारों के लिए पक्ष में है।
  • यह पूँजी के समान वितरण पर आधारित है।
  • समाजवाद गरीब व अमीर के बीच की खाई को पाटने का कार्य करता है।
  • यह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार कार्य देने का पक्षधर है।

5. सांस्कृतिक सम्पर्क:

  • नवीन साधनों ने विभिन्न संस्कृतियों को नजदीक लाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।
  • इसमें सदस्यों में पारस्परिक समझ बढ़ी है।
  • इससे फैशन, धर्म, रिवाजों तथा जीवन – विधि आदि को अपनाने में सहायता मिली है।
  • इसने पारस्परिक आदान – प्रदान की नीति को प्रोत्साहन दिया है।

6. अन्य सकारात्मक प्रभाव:

  • इसके परिणामस्वरूप शिक्षा में वृद्धि हुई।
  • विचारों में विविधता पनपी है।
  • कृषि का यंत्रीकरण को बढ़ावा मिला है।
  • इससे अंधविश्वासों में कमी आई है।
  • इससे मानव के सुखों व ऐश्वर्य में वृद्धि हुई है।
  • सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई।
  • जाति – प्रथा में अनेक बदलाव दृष्टिगोचर हुए।
  • स्त्रियों की स्थिति में अनेक बदलाव हुए।
  • इस प्रक्रिया से समय व धन दोनों की ही बचत हुई है।
  • इससे धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को बल मिला है।

प्रश्न 11.
औद्योगीकरण के सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण के सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव इस प्रकार से हैं –
1. पूँजीवाद:
यह औद्योगिक व्यवस्था की ही देन है जो स्वयं अनेक समस्याओं के लिए उत्तरदायी है। श्रमिकों के श्रम का लाभ पूँजीपतियों को मिलता है। इस पूँजीवादी व्यवस्था ने ही समाज का दो वर्गों में बाँट दिया-पूँजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग।

2. सामाजिक विघटन एवं अपराध:
औद्योगीकरण के कारण समाज विरोधी कार्यों व अपराधों में वृद्धि हुई है। इससे आत्महत्या, चोरी, गबन एवं अपराधिक व्यवहारों में बढ़ोतरी हुई है।

3. बेरोजगारी की समस्या:
उद्योगों में मशीनों ने मनुष्य का स्थान ले लिया। पहले जिस कार्य को 50 व्यक्ति पूरा करते थे, अब मशीनों की सहायता से 10 व्यक्ति ही पूरा कर लेते हैं।

4. कुटीर उद्योगों का पतन:
इससे कुटीर उद्योगों का पतन हो गया क्योंकि इसके द्वारा बना हुआ माल टिक नहीं सका।

5. पराश्रितता की स्थिति:
इसके कारण एक गाँव की दूसरे गाँव पर ही नहीं वरन् एक राष्ट्र की दूसरे राष्ट्र पर निर्भरता बढ़ी। कच्चा माल खरीदने एवं बने हुए माल को बेचने के लिए दो देशों में समझौते हुए एवं पारस्परिक निर्भरता बढ़ी।

6. मकानों की समस्या:
उद्योगों में काम करने के लिए गाँव से लोग नगरों में हजारों की संख्या में आते हैं, जिसके कारण उनके निवास की समस्या पैदा होती है।

7. स्वास्थ्य की समस्या:
कारखानों का वातावरण अस्वास्थ्यकर होता है, जिससे क्षय रोग, अपच, साँस की अन्य बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।

8. दुर्घटनाओं में वृद्धि:
उद्योगों में चौबीसों घंटे काम चलता रहता है। निद्रा आने पर थोड़ी – सी असावधानी या थकान से हाथ – पाँव कटने व स्वयं को मृत्यु के मुख में धकेलने के अवसर होते हैं।

9. आर्थिक प्रतिस्पर्धा:
औद्योगीकरण ने आर्थिक प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया। एक कारखाने की दूसरे से व एक पूँजीपति की दूसरे पूँजीपति से गलाकाट प्रतियोगिता को बढ़ावा मिला है।

10. अन्य नकारात्मक कारक:

  • इससे सामुदायिक भावना का पतन हुआ है।
  • व्यक्तिवादी भावना में वृद्धि हुई है।
  • व्यक्तियों की असीमित इच्छाओं में वृद्धि हुई है।
  • प्राथमिक सम्बन्धों का ह्रास हुआ है।
  • नैतिक मूल्यों का पतन हुआ है।
  • इससे उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद की स्थापना को बल मिला है।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 3 सामाजिक असमानता एवं अपवर्जन के प्रतिरूप, जाति पूर्वाग्रह, अनुसूचित जातियाँ, राजस्थान की जनजातियाँ एवं अन्य पिछड़े वर्ग, महिला समानता का संघर्ष धार्मिक अल्पसंख्यकों को संरक्षण, नि:शक्तजनों की देखभाल

August 19, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 सामाजिक असमानता एवं अपवर्जन के प्रतिरूप, जाति पूर्वाग्रह, अनुसूचित जातियाँ, राजस्थान की जनजातियाँ एवं अन्य पिछड़े वर्ग, महिला समानता का संघर्ष धार्मिक अल्पसंख्यकों को संरक्षण, नि:शक्तजनों की देखभाल

RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हिस्ट्री ऑफ कास्ट इन इण्डिया’ पुस्तक के लेखक का नाम क्या है?
(अ) केतकर
(ब) दुबे
(स) मजूमदार
(द) मदान
उत्तरमाला:
(अ) केतकर

प्रश्न 2.
जातीय पूर्वाग्रह से सम्बन्धित सैकड़ों कहावतों की चर्चा की है –
(अ) केतकर
(ब) नर्मदेश्वर प्रसाद
(स) श्रीनिवास
(द) मजूमदार
उत्तरमाला:
(ब) नर्मदेश्वर प्रसाद

प्रश्न 3.
भारत की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति की जनसंख्या है?
(अ) 14.6%
(ब) 15.6%
(स) 16.6%
(द) 17.6%
उत्तरमाला:
(स) 16.6%

प्रश्न 4.
संविधान की कौन – सी धारा में अनुसूचित जातियों को अधिसूचित किया गया है?
(अ) धारा 339
(ब) धारा 340
(स) धारा 342
(द) धारा 341
उत्तरमाला:
(द) धारा 341

प्रश्न 5.
संविधान की कौन – सी धारा में अनुसूचित जनजातियों को अधिसूचित किया गया है?
(अ) धारा 332
(ब) धारा 342
(स) धारा 352
(द) धारा 362
उत्तरमाला:
(ब) धारा 342

प्रश्न 6.
राजस्थान में कितने जनजातीय समूह निवास करते हैं?
(अ) 9
(ब) 101
(स) 12
(द) 14
उत्तरमाला:
(स) 12

प्रश्न 7.
संविधान की कौन – सी धारा में पिछड़े वर्गों की स्थिति का जायजा लेने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है?
(अ) धारा 370
(ब) धारा 340
(स) धारा 15(4)
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) धारा 340

प्रश्न 8.
मण्डल आयोग के अध्यक्ष कौन थे?
(अ) वी.पी. सिंह
(ब) वी. पी. मण्डल
(स) प्रो. गाडगिल
(द) उपर्युक्त से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) वी. पी. मण्डल

प्रश्न 9.
मण्डल आयोग का गठन कब किया गया?
(अ) 1977 चुनाव के बाद
(ब) 1975 आपातकाल में
(स) 1984 आम चुनाव के बाद
(द) उपर्युक्त से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) 1977 चुनाव के बाद

प्रश्न 10.
मण्डल आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को कब दी?
(अ) 1980
(ब) 1981
(स) 1982
(द) उपर्युक्त से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) 1982

प्रश्न 11.
संविधान की धारा 15(4) व 16(4) के अनुसार कितने प्रतिशत से अधिक स्थान आरक्षित नहीं किया जा सकता?
(अ) 50%
(ब) 60%
(स) 40%
(द) उपर्युक्त से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) 50%

प्रश्न 12.
भारतीय संविधान की धारा 30 में अल्पसंख्यकों की कितनी श्रेणियों का उल्लेख किया गया?
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तरमाला:
(ब) दो

प्रश्न 13.
जैन समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय की श्रेणी में किस सन् में सम्मिलित किया गया?
(अ) 2014
(ब) 2010
(स) 2011
(द) 2015
उत्तरमाला:
(अ) 2014

प्रश्न 14.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग किस वर्ष में अधिनियमित किया गया है?
(अ) 1992
(ब) 1986
(स) 1984
(द) 1989
उत्तरमाला:
(अ) 1992

प्रश्न 15.
कौन – से समाजशास्त्री पुरुष और स्त्री में विद्यमान जैविक भेदों को समाज में श्रम के लैंगिक विभाजन पर आधार
मानते हैं?
(अ) एम.एन. श्रीनिवास
(ब) इरावती कर्वे
(स) जार्ज पीटर मुरडोक
(द) ऐन ओकले
उत्तरमाला:
(स) जार्ज पीटर मुरडोक

प्रश्न 16.
आई. पी. यू. की रिपोर्ट 2015 के मुताबिक, महिला जनप्रतिनिधियों के संदर्भ में वैश्विक स्तर पर भारत का कौन – सा
स्थान है?
(अ) 108वाँ
(ब) 103वाँ
(स) 110वाँ
(द) 105वाँ
उत्तरमाला:
(ब) 103वाँ

प्रश्न 17.
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल निःशक्तजनों (विशेष योग्यजनों) की कितनी जनसंख्या है?
(अ) 3 करोड़
(ब) 205 करोड़
(स) 2.68 करोड़
(द) 5 करोड़
उत्तरमाला:
(स) 2.68 करोड़

RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नर्मदेश्वर प्रसाद की पुस्तक का नाम बताइए।
उत्तर:
नर्मदेश्वर प्रसाद की पुस्तक का नाम “The Myth of Caste System” है।

प्रश्न 2.
अनुसूचित जातियों की निर्योग्यताएँ किस काल की सामाजिक व्यवस्था का भाग थीं?
उत्तर:
अनुसूचित जातियों की निर्योग्यताएँ किस काल की सामजिक व्यवस्था का भाग थीं।

प्रश्न 3.
राजस्थान में कितने अनुसूचित जातीय समूह निवास करते हैं?
उत्तर:
राजस्थान में 59 अनुसूचित जातीय समूह निवास करते हैं।

प्रश्न 4.
जनगणना 2011 के अनुसार राजस्थान में जनजातीय आबादी का प्रतिशत कितना है?
उत्तर:
जनगणना 2011 के अनुसार राजस्थान में जनजातीय आबादी का कुल 13.48 प्रतिशत है।

प्रश्न 5.
राजस्थान में कितने जनजातीय समूह निवास करते हैं?
उत्तर:
राजस्थान में कुल 12 जनजातीय समूह निवास करते हैं।

प्रश्न 6.
पिछड़े वर्ग का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पिछड़े वर्गों से आशय समाज में निवास करने वाले उन वर्गों से है, जो सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक निर्योग्यताओं के कारण समाज में अन्य वर्गों की तुलना में नीचे स्तर पर है।

प्रश्न 7.
आंद्रे बिताई कृषक वर्ग को पिछड़े वर्गों का सार क्यों मानते हैं?
उत्तर:
आंद्रे बिताई कृषक वर्ग को पिछड़े वर्गों का सार इसलिए मानते हैं क्योंकि उनके अनुसार जाति के संदर्भ पिछड़े वर्ग मध्यय कृषक एवं व्यवसायी जातियाँ हैं, जो शिक्षा व नौकरियों में उच्च जातियों से समाज में पीछे रह गए हैं।

प्रश्न 8.
भारत को लोकतंत्रात्मक भावनाओं का संरक्षण क्यों माना जाता है?
उत्तर:
भारत को लोकतंत्रात्मक भावनाओं का संरक्षण इसलिए माना जाता है क्योंकि यह भेदभाव तथा अपवर्जन के किसी भी रूप को स्वीकार नहीं करता है।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान की किन धाराओं में अल्पसंख्यकों का विवरण दिया गया है?
उत्तर:
भारतीय संविधान की धारा (29 – 30) तथा (35A – 35B) में अल्पसंख्यकों का स्पष्ट विवरण दिया गया है।

प्रश्न 10.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में, 1992 में किन दो योजनाओं को जोड़ा गया है?
उत्तर:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में 1992 में दो योजनाओं का समावेश किया गया है, जो निम्न प्रकार से हैं –

  • शैक्षिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों के लिए गहन क्षेत्रीय कार्यक्रम लागू किए गए।
  • मदरसा शिक्षा आधुनिकीकरण वित्तीय सहायता योजना 1993 – 94 के मध्य आरंभ की गयी।

प्रश्न 11.
अर्थशास्त्री सिलिव्या ने महिला असमानता के संदर्भ में क्या कहा?
उत्तर:
अर्थशास्त्री सिलिव्या एन हॉलिट ने अमेरिका में कामकाजी महिलाओं के समक्ष क्रूर दुविधा’ की अनेक परतें खोली थीं।

प्रश्न 12.
1882 में किस भार स्त्री ने महिला सामाजिक असमानता पर पुस्तक लिखी और उन्होंने उसमें क्या कहा था?
उत्तर:
1882 में ताराबाई शिंदे ने महिला सामाजिक असमानता पर “स्त्री पुरुष तुलना” नामक पुस्तक में पुरुष प्रधान समाज द्वारा अपनाये गये दोहरे मापदंडों का विरोध किया था।

प्रश्न 13.
निःशक्तजन अधिनियम, 1995 की धारा (न) में निःशक्तजनों की क्या परिभाषा दी गई है?
उत्तर:
नि:शक्तजन को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो किसी चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा यथा प्रमाणित किसी विकलांगता से न्यूनतम 40 प्रतिशत पीड़ित हो।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जातीय पूर्वाग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रत्येक जाति के सदस्य दूसरी जातियों के विषय में कुछ पूर्वाग्रह या धारणाएँ रखते हैं व उसका पालन भी इन्हीं धाराओं के आधार पर करते हैं। यद्यपि इनका कोई आनुभाविक सत्यापन नहीं होता है तथा पूर्वाग्रह या यही विचारधाराएँ समाज में चलकर जातिवाद का रूप धारण कर लेती हैं। जाति से संबंधित समाज में अनेक पूर्वाग्रह प्रचलित हैं जो निम्न प्रकार से हैं, जैसे –

  • ऋग्वेद पुरुषसूक्त में कहा गया है, विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य तथा पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई है।
  • अनेक स्थानों पर नाई जाति के लोगों को चालाक, बनिया को कंजूस व कायस्थों को झूठा माना जाता है। इसी प्रकार से विभिन्न जातियों के संदर्भ में इस तरह के पूर्वाग्रह हमें आज भी समाज में देखने व सुनने को मिलते हैं।

प्रश्न 2.
अनुसूचित जातियों की मध्यकालीन सामाजिक व्यवस्था में निर्योग्यताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
समाज द्वारा अनेक निर्योग्यताएँ अनुसूचित जातियों पर लगायी गई हैं जो निम्न प्रकार से हैं –

  • धार्मिक निर्योग्यताएँ: इन जातियों को समाज में अनेक प्रकार के संस्कारों से दूर रखा गया तथा पूजा व अराधना के अधिकार से भी वंचित रखा गया।
  • सामाजिक निर्योग्यताएँ: इन जातियों को शिक्षा से वंचित रखा गया, खान – पान व रहन – सहन आदि पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • आर्थिक निर्योग्यताएँ: इन जातियों के सदस्यों को समाज में बंधुआ मजदूरी करने पर विवश किया जाता था तथा अन्य व्यवसायों को करने पर भी प्रतिबंध लगाया गया था।
  • राजनीतिक निर्योग्यताएँ: इन जाति के सदस्यों को समस्त राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया था तथा चुनाव लड़ने व पंचायतों में भी कोई स्थान नहीं दिया गया था।

प्रश्न 3.
राजस्थान में जनजातियों की जनसंख्या पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में जनजातियों की जनसंख्या की स्थिति को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं, जो इस प्रकार से हैं –

  • भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में जनजातियों की संख्या 92,38,534 पायी गयी है।
  • राजस्थान में कुल आबादी का 13.48 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है।
  • राजस्थान में सर्वाधिक जनजातीय आबादी उदयपुर जिले में पायी जाती है।
  • राजस्थान में मीणा जनजाति सर्वाधिक पायी जाती है।
  • राजस्थान में कुल 12 जनजातीय समूह पाये जाते हैं।
  • जनजातियों की संख्या की दृष्टि से राजस्थान का भारत में पाँचवाँ अधिक जनजाति वाला राज्य है।

प्रश्न 4.
राजस्थान में जनजातीय निवास का भौगोलिक दृष्टि से विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
भौगोलिक दृष्टि से जनजातियों में निम्न तथ्य पाये जाते हैं, जो इस प्रकार से हैं –

  • राजस्थान में जनजाति सदस्य रियासतों के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहते हैं।
  • जनजातियाँ क्षेत्र यातायात के साधनों से वंचित रहे हैं।
  • ये जनजातियाँ अन्य लोगों से दूरी बनाए रखते हैं।

राजस्थान में तीन जनजातीय निवास क्षेत्र हैं –

  • दक्षिणी राजस्थान: यहाँ 45% जनजाति निवास करती हैं। इनमें भील, मीणा, डामोर आदि जनजातियाँ पायी जाती हैं। प्रतापगढ़, उदयपुर व सिरोही आदि जिले इसमें शामिल हैं।
  • पश्चिमी राजस्थान: यहाँ 7% जनसंख्या पायी जाती है। इसमें बीकानेर, गंगानगर, जोधपुर व जालौर जैसे जिले सम्मिलित हैं।
  • उत्तर पूर्वी राजस्थान: अलवर, भरतपुर, करौली, कोटा व जयपुर आदि जिलों में पायी जाती हैं।

प्रश्न 5.
आप कैसे स्पष्ट करेंगे कि पिछड़े वर्ग का निर्धारण जन्म या जाति के आधार पर न होकर अन्य कारणों से होता है?
उत्तर:
आन्द्रे बिताई ने कृषक वर्ग को पिछड़ा वर्ग माना है जो शिक्षा व नौकरियों में उच्च जातियों से पीछे है। भारत में कृषि करने वाली जातियाँ मध्यम श्रेणी की हैं। भारत में पिछड़े वर्ग का निर्धारण जन्म या जाति के आधार पर न होकर कृषि व अन्य व्यवसायों में लगा हुआ माना गया है। पिछड़ा वर्ग में उन सभी जातियों एवं समूहों को सम्मिलित किया गया है, जो जाति एवं व्यवसाय दोनों ही स्तर पर निम्न माने जाते हैं।
अतः उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि पिछड़ा वर्ग के लोग जाति में व व्यवसायों में दोनों ही दृष्टिकोणों से पिछड़े हुए हैं। ये मध्यम स्तर के सदस्य हैं जिन्हें विकास के अवसर नहीं मिले हैं।

प्रश्न 6.
उच्च वर्ग एवं निम्न वर्ग के मध्य पाये जाने वाले वर्ग को पिछड़ा कहेंगे। स्पष्ट करें।
उत्तर:
समाज में सामाजिक स्तरीकरण की एक व्यवस्था पायी जाती है जिसके आधार पर सदस्यों को उच्चता व निम्नता के श्रेणी में विभाजित किया जाता है। भारतीय इतिहास में पिछड़ा वर्ग उसे माना गया है, जो सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं। भारतीय संविधान की धारा 340 में राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह एक आयोग को नियुक्त कर देश में पिछड़े वर्ग की स्थिति का सही मूल्यांकन करे। जाति के संदर्भ में पिछड़ा वर्ग में मध्यम कृषक एवं व्यवसायी जातियाँ होती हैं, जो उच्च जातियों से शिक्षा, नौकरियों व व्यवसाय के क्षेत्र में पीछे रह गयी हैं। अतः पिछड़े वर्ग की स्थिति समाज में उच्च वर्ग व निम्न वर्ग से भिन्न होती है।

प्रश्न 7.
मंडल आयोग को कौन – कौन से कार्य दिये गये?
उत्तर:
सन् 1977 में जनता पार्टी ने पिछड़ी जातियों के विकास के लिए V.P. Mandal की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया, इसे मंडल आयोग के नाम से संबोधित किया गया प्रमुख कार्य –

  • पिछड़े वर्गों के उत्थान हेतु सुझाव देना।
  • पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए अनेक लाभकारी नीतियों का क्रियान्वयन करना।
  • सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की परिभाषा हेतु कसौटियों को निर्धारित करना।
  • पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की नीतियों को निर्धारित करना।
  • संकलित तथ्यों के आधार पर प्रतिवेदन प्रस्तुत करना एवं सिफारिशें करना।

प्रश्न 8.
समाजशास्त्र में अल्पसंख्यकों के संदर्भ में क्या परिभाषा दी गई है?
उत्तर:
अल्पसंख्यक का अर्थ व उसकी परिभाषा अल्पसंख्यक दो शब्दों से मिलकर बना है। अल्प + संख्यक का अर्थ कम एवं संख्यक से तात्पर्य संख्या से है। अर्थात् जिनकी संख्या कम हो, उसे अल्पसंख्यक कहा जाता है।
अल्पसंख्यक समूहों को समाजशास्त्र में व्यापक अध्ययन के रूप में प्रयुक्त हुआ है। अल्पसंख्यक की परिधि में संख्यात्मक ही नहीं बल्कि इसकी व्यापकता, हानि व असुविधा आदि के भाव भी शामिल किये जाते हैं। अल्पसंख्यक शब्द का अपना अलग ही महत्त्व है, समाजशास्त्र में जो लोगों की स्थिति को दर्शाता है।
गिडिंग्स के अनुसार – अल्पसंख्यक वर्ग के सदस्य एक सामूहिकता का निर्माण करते हैं अर्थात् उनमें अपने समूह के प्रति एकात्मकता व एकजुटता के भाव होते हैं।

प्रश्न 9.
भारत में कौन – से समुदाय अल्पसंख्यक माने जाते हैं?
उत्तर:
भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के तौर पर पाँच धार्मिक समुदाय – मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध तथा पारसी समुदायों को अल्पसंख्यक माना गया है। अल्पसंख्यक आयोग कानून 1992 की धारा 2 (ग) के अंतर्गत जैन समुदाय को अल्पसंख्यकों की सूची में शामिल किया गया है।
भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार मुस्लिमों की संख्या 17.22 करोड़ (14.2 प्रतिशत), ईसाइयों की संख्या 2.78 करोड़ (2.3 प्रतिशत), सिक्ख 2.08 (1.7 प्रतिशत), बौद्ध 84 लाख (0.7 प्रतिशत), जैन समुदाय की 45 लाख (0.4 प्रतिशत) तथा अन्य समुदायों की 78 लाख (0.7 प्रतिशत) है।

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्र के प्रतिवेदक फ्रेंसिस्को कॉपोटोर्टी ने अल्पसंख्यकों की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र के एक विशेष प्रतिवेदक फ्रेंसिस्को कॉपोटोर्टी ने एक वैश्विक परिभाषा दी है, उनके अनुसार, “किसी राष्ट्र-राज्य में रहने वाले समुदाय जो संख्या में कम हों और सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से कमजोर हों एवं जिनकी प्रजाति, धर्म, भाषा आदि बहुसंख्यकों से अलग होते हुए भी राष्ट्र के निर्माण, विकास, एकता, संस्कृति, परंपरा व राष्ट्रीय भाषा को बनाये रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हों, तो ऐसे समुदायों को उस राष्ट्र-राज्य में अल्पसंख्यक माना जाना चाहिए।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग क्या है?
उत्तर:
सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों के सामाजिक तथा आर्थिक विकास के लिए समय – समय पर अनेक कार्यक्रम एवं योजनाएँ संचालित की हैं। भारत सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के सशक्तिकरण करने और उन्हें अपनी संस्कृति, भाषा एवं धार्मिक स्वरूप को बनाये रखने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम का 1992 पारित किया। इस अधिनियम के अंतर्गत अल्पसंख्यक वर्ग उस समुदाय को माना गया है, जिसे केन्द्र सरकार अधिसूचित करे।
अल्पसंख्यक अधिनियम, 1982 के सफल क्रियान्वयन हेतु सरकार ने मई 1993 में एक अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया है।

प्रश्न 12.
महिलाओं के उत्थान के लिए, औपचारिक समानता की संवैधानिक गारण्टी क्या है?
उत्तर:
महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक संवैधानिक प्रावधानों को निर्मित किया गया है –

  • भारतीय संविधान में सामाजिक लिंग समानता का प्रावधान है।
  • हिंदू कानून महिलाओं को संबंध – विच्छेद और पुनर्विवाह का अधिकार प्रदान करता है।
  • उत्तराधिकार अधिनियम महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति में बराबरी का हिस्सा या अधिकार देता है।
  • भारत सरकार ने 1953 में महिला कल्याण और वंचित समूहों के विकास के लिए केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड की स्थापना की। इस बोर्ड द्वारा अनेक महिला संगठनों के विकास को बढ़ावा दिया, जिससे सामाजिक और राजनैतिक महिला कार्यक्रमों की शुरुआत हुई है।

प्रश्न 13.
1946 में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा गठित आयोग के प्रमुख कार्यों की चर्चा करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि विकास के लिए समाज में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण अनिवार्य है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं, जो इस प्रकार से हैं –

  • संघ एवं राज्यों के अधीन अल्पसंख्यकों के लिए किये गये विकास कार्यों का मूल्यांकन करना।
  • अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों को अपने सुझाव देना।
  • अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव की समस्या का अध्ययन कर उसे दूर करने के उपाय खोजना।
  • अल्पसंख्यकों से संबंधित निवेशों पर, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा दिये गये हैं, उस पर कार्यवाही करना।
  • अल्पसंख्यकों के आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षिक विकास के मुद्दे पर अध्ययन कर विश्लेषण करना।

प्रश्न 14.
भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम, 1992 के संबंध में लिखें।
उत्तर:
भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम 1992 के कार्य निम्न प्रकार से हैं –

  • विकलांगों के कल्याण एवं सशक्तिकरण को ध्यान में रखकर नीतियों को क्रियान्वित करना।
  • पुनर्वास व्यवसायियों और कर्मिकों के प्रशिक्षण का नियमन करना।
  • सदस्यों, व्यवसायों व कार्मिकों की देखभाल करना।
  • इनके पुनर्वास व विशेष शिक्षा में शोध को प्रोत्साहित करना।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में अनुसूचित जातियों की समकालीन स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल में भारत में अनुसूचित जातियों के साथ भेदभावपूर्ण व असमानता का व्यवहार किया जाता रहा है। ये जातियाँ समाज की मुख्य धारा से कटी हुई अवस्था में पायी जाती हैं। इन्हें समाज में आगे बढ़ने व विकास करने के उचित अवसर प्रदान नहीं किये गये हैं, इन्हें समाज में निम्न कार्य जैसे सफाई का कार्य व चमड़े का कार्य आदि करने को मजबूर किया जाता था। इन्हें अनेक अधिकारों से वंचित रखते हुए कई प्रतिबंध भी लगाए गए हैं, जो अग्र प्रकार से हैं –
(अ) सामाजिक प्रतिबंध:

  • उच्च जातियों के साथ संपर्क रखने पर प्रतिबंध।
  • शिक्षा प्राप्त करने पर प्रतिबंध।
  • कुओं से पानी, अच्छे वस्त्र पहनने तथा छात्रावास में साथ रहने पर प्रतिबंध।
  • उत्सवों, समारोह व पंचायतों में भाग लेने पर प्रतिबंध।

(ब) धार्मिक प्रतिबंध:

  • धार्मिक कार्यों को करने पर प्रतिबंध।
  • मंदिरों में जाने पर प्रतिबन्ध।
  • पूजा – अर्चना की विधियों में प्रतिबंध।
  • हिंदू संस्कारों में होने वाले प्रमुख संस्कारों पर प्रतिबंध।

(स) आर्थिक प्रतिबंध:

  • समाज में अन्य व्यवसायों को करने पर प्रतिबंध।
  • इन्हें धन संग्रह एवं भूमि पर अधिकार से वंचित रखा गया।
  • इन्हें समाज में घृणित कार्य करने पर विवश किया गया।
  • इन्हें अपनी मजदूरी के लिए दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता था।

(द) राजनीतिक प्रतिबंध:

  • इन्हें राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया।
  • इनको मतदान को करने पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • पंचायतों में भाग लेने पर प्रतिबंध।
  • इन्हें राजनीतिक सुरक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार प्राप्त नहीं था।

भारत में यह सभी निर्योग्यताएँ या प्रतिबंध मध्यकालीन सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत पायी जाती थीं। आजादी के पश्चात् इन सभी प्रतिबंधों को संविधान के निर्माण के बाद समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 2.
राजस्थान में अनुसूचित जनजातियों पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
राजस्थान में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य –

  1. राजस्थान में 2001 में 12.56 प्रतिशत जनजातियाँ निवास करती थीं।
  2. राजस्थान में भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार कुल भारत की आबादी का 8.61 प्रतिशत जनजातियों का यहाँ पर निवास करता है।
  3. राजस्थान में जनजातियों की संख्या 92,38,534 है।
  4. राजस्थान में राजस्थान की कुल आबादी का 13.48 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है।
  5. राजस्थान में सर्वाधिक जनजातियों की संख्या उदयपुर में निवास करती है।
  6. राजस्थान में भील जनजाति की संख्या सर्वाधिक है।
  7. राजस्थान में 12 जनजातीय समूह पाये जाते हैं।
  8. जनसंख्या की दृष्टि से राजस्थान भारत का पाँचवाँ जनजातीय वाला राज्य है।
  9. जनजातीय क्षेत्र के लोग सदैव यातायात व संपर्क से वंचित रहे हैं।
  10. उदारीकरण व वैश्वीकरण जैसी प्रतिक्रियाओं का इन पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है।
  11. ये जनजातीय क्षेत्र नगरीकरण के प्रभाव से दूर रहे हैं।
  12. सरकारी योजनाओं में इन जनजातियों की भूमिका नकारात्मक रही है।

राजस्थान में जनजातीय समूह की बसावट के भौगोलिक कारण –

  1. दक्षिणी राजस्थान: राजस्थान की जनजातीय आबादी की लगभग 45% जनसंख्या इन क्षेत्रों जैसे – उदयपुर, सिरोही व बांसवाड़ा में निवास करती है। दक्षिणी राजस्थान में प्रमुखतः भील, मीणा व डामोर जनजातियाँ पायी जाती हैं।
  2. पश्चिमी राजस्थान: राजस्थान की जनजातीय आबादी का लगभग 7.1 जनसंख्या इन क्षेत्रों जैसे – जैसलमेर, चुरू, सीकर व झुंझुनू आदि में निवास करती है। यहाँ मुख्य रूप से भील व मीणा आदि जनजातियाँ पायी जाती हैं।
  3. उत्तर: पूर्वी राजस्थान – राजस्थान की आधी जनजातियों की संख्या अलवर, भरतपुर, करौली, अजमेर, टोंक, बारा, कोटा, धौलपुर आदि जिलों में निवास करती है। यहाँ मुख्य रूप से भील, मीणा तथा सहरिया जनजातियाँ पायी जाती हैं।
    राजस्थान में इन जनजातियों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति तथा रहन – सहन को ध्यान में रखकर सरकार ने अनेक विकास एवं शिक्षा के लिए योजनाएँ बनायी हैं। इन योजनाओं के कारण इनकी शैक्षिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है। मीणा जाति इस विकास के क्रम में सबसे अधिक लाभान्वित हुई है।

प्रश्न 3.
मंडल आयोग की रिपोर्ट के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1977 में पिछड़ी जातियों की स्थिति को सुधारने के लिए V.P. Mandal की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया गया, जिसे मंडल आयोग कहते हैं। इस आयोग का प्रमुख कार्य भारत में सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ी हुई जातियों के आर्थिक विकास की गति को तेज करना था।
मंडल आयोग की रिपोर्ट के कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • 3 अप्रैल, 1982 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंपी।
  • आयोग ने सरकारी एवं गैर-सरकारी सेवाओं में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए 27% स्थान आरक्षित करने का सुझाव भारत सरकार को दिया था।
  • आयोग ने देश की 3,743 जातियों को पिछड़ी जातियाँ घोषित किया।
  • पिछड़ी जातियों की संख्या देश की कुल जनसंख्या की 52% है।
  • आयोग ने पिछड़ी जातियों के लिए सभी स्थानों पर पदोन्नति के लिए 27% आरक्षित किये।
  • आयोग ने पिछड़े वर्ग के लिए प्रौढ़ शिक्षा का प्रसार करने एवं इन वर्गों के छात्रों को आवासीय छात्रावास बनाने की भी सिफारिश की थी।

मंडल आयोग की रिपोर्ट के कुछ सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव:

  1. हड़तालों का होना: इस रिपोर्ट के पश्चात् स्कूल तथा कॉलेजों में एक महीने तक हड़ताल जारी रही तथा काफी लोगों की जानें भी गयीं।
  2. विरोध: इस रिपोर्ट के पश्चात् लोगों में विरोध की स्थिति पैदा हो गई थी।
  3. आयु सेवा में छुट: 13, अक्टूबर 1994 से अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों को सरकारी सेवाओं में पात्रता की ऊपरी आयु सीमा में 3 वर्ष की छूट भी दे दी।
  4. परीक्षाओं में छूट: पिछड़ी जातियों के अभ्यर्थियों को लिखित परीक्षा एवं साक्षात्कार के मानदंडों में भी छूट प्रदान की गई।
  5. अन्य जाति को शामिल: अन्य पिछड़े वर्गों में जाटों को भी सम्मिलित किया गया।

राजस्थान सरकार ने अपने राज्य में क्रीमीलेयर की आय सीमा ढाई लाख रुपये तक कर दी है। राजस्थान सरकार ने सरकारी नौकरियों, स्थानीय निकायों व पंचायतीराज व्यवस्था में 21% आरक्षण देने की व्यवस्था की है, जिनके अंतर्गत राज्य की लगभग 42.5% पिछड़ी जातियों की संख्या को शामिल किया गया है।

प्रश्न 4.
राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में मंडल आयोग की सिफारिशों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वी.पी. मंडल की अध्यक्षता में 1977 में मंडल आयोग का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य पिछड़ी जातियों की आर्थिक स्थिति की समीक्षा करके उनके सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए उचित कदम उठाना था। 3 अप्रैल, 1982 को मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंप दी थी।
मंडल आयोग के द्वारा की जाने वाली सिफारिशों का वर्णन अग्रांकित प्रकार से है –
1. 7 अगस्त, 1990 में प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह ने मंडल आयोग लागू करने के लिए संसद में पिछड़े वर्गों के लिए उनकी सामाजिक स्थिति एवं आर्थिक स्थिति का हवाला देकर उन्हें 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की तथा इसके लिए सरकारी अधिसूचना भी जारी की गई थी।

2. 16 नवम्बर, 1992 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़ी जातियों के लिए 27% आरक्षण को सही बताते हुए इस आयोग की सिफारिशों को लागू करने का आदेश दिया।

3. सिफारिश के आधार पर 8 सितंबर, 1993 से केन्द्र सरकार ने पिछड़ी जातियों के लिए 27.1 आरक्षण को लागू कर दिया।

4: राजस्थान सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के दिशा-निर्देशन में राजस्थान में पायी जाने वाली 52 पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए 21% आरक्षण दिया।

5. सिफारिश के आधार पर ही पिछड़ी जातियों के लिए लिखित परीक्षा एवं साक्षात्कार के मापदंडों में रियायत प्रदान की गयी।

6. राजस्थान सरकार ने आयोग की सिफारिश पर इन जातियों को सरकारी नौकरियों में 21% आरक्षण प्रदान किया, जिससे ये जातियाँ अपना शैक्षिक स्तर ऊँचा उठा सकें।

7. सिफारिश के आधार पर स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिका व नगर निगम आदि में इन जातियों को आरक्षण दिया गया है।

8. सिफारिश के आधार पर इन जातियों की संख्या का पता लगाया गया।
अतः उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि राजस्थान सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिश के आधार पर इन जातियों के लिए अनेक कार्यों का संचालन किया तथा राजस्थान सरकार ने सभी सरकारी नौकरियों, महाविद्यालयों एवं अन्य संस्थाओं में पिछड़ी जाति के सदस्यों के लिए आरक्षण प्रदान किया है।

प्रश्न 5.
धार्मिक अल्पसंख्यकों से आप क्या समझते हैं? उनके संरक्षण के लिए क्या उपाय किए गए हैं?
उत्तर:
अल्पसंख्यक शब्द दो शब्दों अल्प + संख्यक से मिलकर बना है। ‘अल्प’ का अर्थ है ‘कम’ तथा ‘संख्यक’ शब्द का अर्थ है ‘संख्या’ अर्थात् जिन जातियों या समूहों की संख्या कम हो, उन्हें अल्पसंख्यक कहा जाता है।
फ्रेंसिस्को कॉपटोर्टी के अनुसार, “किसी राष्ट्र/राज्य में रहने वाले समुदाय, जो संख्या में कम हों तथा सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से कमजोर हों एवं उनकी प्रजाति, धर्म, भाषा आदि बहुसंख्यकों से अलग होते हुए भी राष्ट्र के निर्माण, विकास, एकता, संस्कृति, परंपरा आदि को बनाये रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हों, तो ऐसे समुदायों को उस राष्ट्र – राज्य में अल्पसंख्यक माना जाना चाहिए”।
भारतीय संविधान में धारा 29 से 30 तक तथा 350 A से 350 B तक में अल्पसंख्यक शब्द का विवरण प्रस्तुत किया गया है। धार्मिक अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए भारतीय संविधान में विभिन्न अनुच्छेदों में प्रावधान किये गए हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –
(1) अल्पसंख्यकों के लिए प्रावधान: भारतीय संविधान के भाग 111 के अनुच्छेद 29 और 30 में अल्पसंख्यक वर्गों के लिए कुछ विशेष प्रावधान किए गए हैं –

  • संविधान में सभी अल्पसंख्यकों को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है।
  • राज्य के प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा, लिपि व संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 30 में सभी अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार है।

(2) राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग: भारत सरकार ने अल्पसंख्यकों के समुदायों के सशक्तिकरण व उनकी भाषा आदि को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 पारित किया गया।

(3) 15 सूत्रीय कार्यक्रम: प्रधानमन्त्री ने जून 2006 में इनके लिए शिक्षा व रोजगार में समान अवसर देने के लिए 15 सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की।

(4) शिक्षा व्यवस्था: राष्ट्रीय शिक्षा नीति में समानता के लिए इन समुदायों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया।

(5) मदरसा शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए वित्तीय सहायता देना।

(6) अल्पसंख्यकों की शिक्षा के लिए संसाधन उपलब्ध कराना।

(7) अल्पसंख्यकों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग की व्यवस्था करना।

(8) अरबी तथा फारसी भाषा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को वित्तीय सहायता देना।

प्रश्न 6.
स्त्री समानता संघर्ष पर भारतीय दृष्टिकोण की चर्चा करें।
उत्तर:
भारतीय दृष्टिकोण किसी समाज के अध्ययन के अंग के रूप में स्त्री और पुरुष समान रूप से आते हैं। भारत में परिवार तथा नातेदारी की संरचना और प्रक्रिया को पुरुष प्रधान मानकर अध्ययन किया जाता है।
आज यदि हम भारतीय ग्रामीण परिवेश के संदर्भ में देखें, तो यह स्पष्ट होगा कि महिलाएँ परिवार के दायित्वों को जितनी अच्छी प्रकार से निभाती हैं, उसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य से लेकर शारीरिक श्रम, मजदूरी एवं अन्य कार्य को भी करती हैं।
भारतीय दृष्टिकोण के संदर्भ में स्त्री समानता संघर्ष को निम्न माध्यमों के आधार पर दर्शाया जा सकता है –
1. मैलिनोवस्की एवं नाऊन जैसे अनेक मानवशास्त्री ने स्त्रियों की भूमिका को काफी कम आंका है, इनका अध्ययन का केन्द्रबिंदु प्रमुख रूप से पुरुष ही है।

2. महिलाओं द्वारा किये जाने वाले आर्थिक कार्यों को पुरुष समाज कोई महत्त्व न देकर उनके कार्य को घरेलू कार्य ही मानता है।

3. आज तक जितनी भी सामाजिक प्रक्रियाएँ व नीतियाँ हैं वे केवल स्त्री-पुरुष के बीच केवल भेद उत्पन्न करती हैं, स्त्री – पुरुष में समानता को स्पष्ट नहीं करती हैं।

4. भारत में आज भी स्त्रियों को दो पल दर्जे का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है, इससे मुक्ति प्राप्त करने के लिए महिलाओं को संघर्ष भी करना पड़ रहा है।

5. जार्ज पीटर मुरडोल स्त्री और पुरुष में पाए जाने वाले भेदों को समाज में श्रम के लैंगिक विभाजन का आधार मानते हैं।

6. आज भी महिलाओं को समानता का अधिकार प्रदान नहीं किया गया है, उनके साथ आज भी भेदभाव किया जाता है।

7. भारत में महिलाओं की प्रस्थिति को नकारा गया है व पुरुषों की प्रस्थिति को अधिक महत्त्व दिया गया है। आज भी समाज में महिलाएं पुरुषों के ही अधीन पायी जाती हैं।

प्रश्न 7.
निःशक्तजनों (विशेष योग्य जनों) की देखभाल हेतु सरकार की क्या नीतियाँ हैं?
उत्तर:
नि:शक्तजनों से अभिप्राय उस समूह या व्यक्तियों से होता है जो शारीरिक या मानसिक रूप से बाधित होते हैं। सरकार ने नि:शक्तजनों की देखभाल हेतु अनेक नीतियों का क्रियान्वयन किया है जो निम्न प्रकार से है –
1. अनुच्छेद 41 में राज्य अपनी सामर्थ्य व विकास की सीमाओं के भीतर काम पाने, शिक्षा व बेकारी में तथा बुढ़ापे में नि:शक्तजनों को लोक सहायता पाने के अधिकार को उपलब्ध कराएगा।

2. भारतीय पुर्नवास परिषद् अधिनियम 1992 के अंतर्गत व्यावसायिकों व श्रमिकों के प्रशिक्षण का नियमन तथा उसकी देखभाल करने व विशेष शिक्षा में शोध को प्रोत्साहित करता है।

3. केन्द्र सरकार ने विकलांग जन को समान अवसर, अधिकार, संरक्षण व भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए विकलांगता अधिनियम 1995 को लागू किया गया है जिससे इन जनों को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है।

4. राष्ट्रीय नीति 2006 में विकलांगजनों को अधिकार प्रदान किये गये हैं। इसमें उनके पुर्नवास, शिक्षा व सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।

5. विकलांग छात्रों को मैट्रिक पूर्व एवं मैट्रिक उपरांत वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

6. विदेशी छात्रवृत्ति योजना स्नातकोत्तर तथा पी.एच.डी. कर रहे छात्रों को विदेशों में अध्ययन करने पर विकलांग छात्रों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है, प्रत्येक वर्ष 20 छात्रवृत्तियाँ दी जाती हैं।

7. जागरूकता विकास एवं प्रचार योजना सितंबर, 2014 में चलायी गयी थी, इस योजना का उद्देश्य विकलांगजनों को सशक्त बनाना था।

8. 21 मार्च, 2015 को कौशल विकास व उद्यम वृत्ति मंत्रालय के सहयोग से विकलांगजनों के कौशल प्रशिक्षण की राष्ट्रीय कार्य योजना की शुरुआत की गई। इसका मुख्य उद्देश्य इन लोगों को प्रशिक्षण एवं रोजगार के अवसरों में सुधार करना है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक असमानता कैसी अवधारणा है?
(अ) सापेक्ष
(ब) निरपेक्ष
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) सापेक्ष

प्रश्न 2.
‘कास्टा’ किस भाषा का शब्द है?
(अ) स्पेनिश
(ब) पुर्तगाली
(स) ग्रीक
(द) लैटिन
उत्तरमाला:
(ब) पुर्तगाली

प्रश्न 3.
किस वेद में जाति के उत्पत्ति का वर्णन किया गया है?
(अ) सामवेद
(ब) यर्जुवेद
(स) ऋग्वेद
(द) अथर्ववेद
उत्तरमाला:
(स) ऋग्वेद

प्रश्न 4.
“जाति को एक सामाजिक समूह” किसने माना है?
(अ) मजूमदार
(ब) मदान
(स) कर्वे
(द) केतकर
उत्तरमाला:
(द) केतकर

प्रश्न 5.
कौन – सी पार्टी दलित राजनीति को केन्द्र बनाती है?
(अ) कांग्रेस पार्टी
(ब) भाजपा
(स) बहुजन समाजवादी पार्टी
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) बहुजन समाजवादी पार्टी

प्रश्न 6.
“जाति एक बंद वर्ग है” यह परिभाषा किसकी है?
(अ) मजूमदार व मदान
(ब) केतकर
(स) कर्वे
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) मजूमदार व मदान

प्रश्न 7.
‘डाँस ऑफ डेमोक्रेसी’ किसका लेख है?
(अ) आशीष त्रिपाठी
(ब) श्रीनिवास
(स) योगेन्द्र सिंह
(द) मदान
उत्तरमाला:
(अ) आशीष त्रिपाठी

प्रश्न 8.
“भारतीय जनजातियों को पिछड़े हिंदू” किसने माना है?
(अ) नर्मदेश्वर
(ब) मजूमदार
(स) घुरिये
(द) कर्वे
उत्तरमाला:
(स) घुरिये

प्रश्न 9.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जनजातियों का कितना प्रतिशत है?
(अ) 8.61 %
(ब) 8.0 %
(स) 7.6%
(द) 10 %
उत्तरमाला:
(अ) 8.61 %

प्रश्न 10.
राजस्थान में सर्वाधिक आबादी किस जनजाति की है?
(अ) भील
(ब) डामोर
(स) मीणा
(द) सहरिया
उत्तरमाला:
(स) मीणा

प्रश्न 11.
संविधान की किस धारा के अंतर्गत अनुसूचित जातियों को अधिसूचित किया गया है –
(अ) 339
(ब) 341
(स) 340
(द) 344
उत्तरमाला:
(ब) 341

प्रश्न 12.
राजस्थान में सर्वाधिक जनजातीय आबादी किस जिले में पायी जाती है?
(अ) अलवर
(ब) भरतपुर
(स) जयपुर
(द) उदयपुर
उत्तरमाला:
(द) उदयपुर

प्रश्न 13.
अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग महासभा की स्थापना कब हुई?
(अ) 1950
(ब) 1951
(स) 1947
(द) 1948
उत्तरमाला:
(अ) 1950

प्रश्न 14.
मंडल आयोग ने पिछड़े वर्गों के लिए प्रतिशत स्थान आरक्षित करने का सुझाव दिया था।
(अ) 33%
(ब) 25 %
(स) 27%
(द) 30%
उत्तरमाला:
(स) 27%

प्रश्न 15.
राजा राममोहन राय ने किस प्रथा का विरोध किया था?
(अ) विधवा विवाह
(ब) सती प्रथा
(स) जाति – प्रथा
(द) सभी का
उत्तरमाला:
(ब) सती प्रथा

प्रश्न 16.
“सुल्तानाज ड्रीम” नामक पुस्तक किसने लिखी?
(अ) बेगम रोकेया
(ब) ताराबाई शिंदे
(स) जोकोविच
(द) मूरे
उत्तरमाला:
(अ) बेगम रोकेया

प्रश्न 17.
संविधान का अनुच्छेद 14 किससे संबंधित है?
(अ) समानता
(ब) भेदभाव
(स) असमानता
(द) रंग – भेद
उत्तरमाला:
(अ) समानता

प्रश्न 18.
सच्चर समिति के अध्यक्ष कौन थे?
(अ) गजेन्द्र सच्चर
(ब) राजेन्द्र सच्चर
(स) राकेश
(द) महेन्द्र सच्चर
उत्तरमाला:
(ब) राजेन्द्र सच्चर

प्रश्न 19.
15 सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा कब हुई थी?
(अ) जून 2006
(ब) जुलाई 2007
(स) जून 2004
(द) जून 2005
उत्तरमाला:
(अ) जून 2006

प्रश्न 20.
राजस्थान में अनुसूचित जातियों की संख्या कितनी है?
(अ) 59
(ब) 60
(स) 61
(द) 65
उत्तरमाला:
(अ) 59

प्रश्न 21.
मृच्छकटिकम् किसकी रचना है?
(अ) कौटिल्य
(ब) शूद्रक
(स) कबीर
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) शूद्रक

प्रश्न 22.
जनजातीय जनसंख्या की दृष्टि से राजस्थान का देश में कौन – सा स्थान है?
(अ) पाँचवाँ
(ब) तीसरा
(स) चौथा
(द) दूसरा
उत्तरमाला:
(अ) पाँचवाँ

प्रश्न 23.
‘अन्य पिछड़े वर्गों’ शब्द का प्रयोग संविधान के किस भाग में हुआ है?
(अ) भाग 14
(ब) भाग 15
(स) भाग 16
(द) भाग 17
उत्तरमाला:
(स) भाग 16

प्रश्न 24.
आंद्रे बिताई किस वर्ग को पिछड़े वर्गों का सार मानते थे?
(अ) श्रमिक वर्ग
(ब) पूँजीपति वर्ग
(स) कृषक वर्ग
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) कृषक वर्ग

प्रश्न 25.
मंडल आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट कब सौंपी?
(अ) 3 अप्रैल, 1982
(ब) 4 अप्रैल, 1982
(स) 5 अप्रैल, 1982
(द) 6 अप्रैल 1982
उत्तरमाला:
(अ) 3 अप्रैल, 1982

RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 अति लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समानता किसे कहते हैं?
उत्तर:
सामाजिक समानता एक ऐसी स्थिति है जहाँ व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के अपने जीवन के विकास लिए समान अवसर प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 2.
सामाजिक असमानता किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब दो इकाइयाँ किसी भी आधार पर समान न हों तो ऐसी स्थिति को असमानता कहा जाता है।

प्रश्न 3.
सामाजिक अपवर्जन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जहाँ कोई समूह समाज की मुख्य धारा से अलग हो, तो ऐसी स्थिति या दशा को सामाजिक अपवर्जन कहते हैं।

प्रश्न 4.
‘जाति’ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
जाति की उत्पत्ति पुर्तगाली भाषा के ‘कोस्टा’ से हुई है जिसका अर्थ है मत, विभेद या जन्म।

प्रश्न 5.
‘History of Caste in India’ किसकी पुस्तक है?
उत्तर:
यह पुस्तक प्रसिद्ध समाज शास्त्री केतकर के द्वारा लिखी गई है।

प्रश्न 6.
नर्मदेश्वर प्रसाद की पुस्तक का नाम बताइए।
उत्तर:
‘The Myth of the Caste System’ नामक पुस्तक नर्मदेश्वर प्रसाद द्वारा रचित है।

प्रश्न 7.
भारत की कुल आबादी में अनुसूचित जातियों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
16.6 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जातियों की है जो भारत में निवास करती है।

प्रश्न 8.
‘National Park’ के प्रतिपादक कौन हैं?
उत्तर:
वेरियर एल्विन ‘National Park’ की नीति के प्रतिपादक हैं।

प्रश्न 9.
जवाहर लाल नेहरू ने किस नीति का क्रियान्वयन किया है?
उत्तर:
जवाहर लाल नेहरू ने ‘एकीकरण की नीति’ का क्रियान्वयन किया है।

प्रश्न 10.
राजस्थान में जनजातियों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
92,38,534 जनसंख्या जनजातियों की है, जो राजस्थान में पायी जाती है।

प्रश्न 11.
राजस्थान में कौन – सी जनजाति सर्वाधिक पायी जाती है?
उत्तर:
मीणा जनजाति राजस्थान में सर्वाधिक पायी जाती है।

प्रश्न 12.
पिछड़े वर्ग का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पिछड़ा वर्ग शब्द समाज के कमजोर वर्गों विशेषकर अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़े वर्गों के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 13.
किस वर्ष पिछड़े वर्ग शब्द का प्रयोग किया गया था?
उत्तर:
सन् 1917 – 18 में पिछड़े वर्ग शब्द का प्रयोग किया गया था।

प्रश्न 14.
किन राज्यों की सरकारों ने अपनी सूची में गैर – ब्राह्मण उच्च जातियों को सम्मिलित नहीं किया था?
उत्तर:
महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु ने अपनी सूची में गैर – ब्राह्मण उच्च जातियों को शामिल नहीं किया था।

प्रश्न 15.
राजस्थान सरकार ने पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था कब लागू की थी?
उत्तर:
राजस्थान सरकार ने पिछड़े वर्गों के लिए 1994 में 21 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी।

प्रश्न 16.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की संख्या कितनी थी?
उत्तर:
2011 की जनगणनानुसार भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की संख्या लगभग 17.22 करोड़ थी।

प्रश्न 17.
सच्चर समिति को कौन – सा कार्य सौंपा गया था?
उत्तर:
सच्चर समिति को मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के आर्थिक एवं शैक्षिक स्तर के अध्ययन का प्रमुख कार्य सौंपा गया था।

प्रश्न 18.
सच्चर समिति ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट कब दी थी?
उत्तर:
सच्चर समिति ने 8 जून, 2006 को भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

प्रश्न 19.
भारत में विकलांगजनों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
भारत में विकलांगजनों की संख्या 2.68 करोड़ है।

प्रश्न 20.
अन्तर्राष्ट्रीय निःशक्तजन दिवस कब मनाया जाता है?
उत्तर:
3 दिसंबर को अन्तर्राष्ट्रीय नि:शक्तजन दिवस मनाया जाता है।

प्रश्न 21.
भारत में जागरूकता विकास व प्रचार योजना की शुरुआत कब हुई थी?
उत्तर:
भारत में जागरूकता विकास व प्रचार योजना की शुरुआत सितंबर 2014 में हुई थी।

प्रश्न 22.
विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए आंदोलन किसने चलाया?
उत्तर:
समाज सुधारक रानाडे ने विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए आंदोलन चलाया।

प्रश्न 23.
लैंगिक अत्याचारों के विरुद्ध किसने आवाज उठाई थी?
उत्तर:
ज्योतिबा फुले ने लैंगिक अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई थी।

प्रश्न 24.
‘स्त्री पुरुष तुलना’ पुस्तक किस वर्ष प्रकाशित हुई थी?
उत्तर:
1882 में ‘स्त्री पुरुष तुलना’ पुस्तक प्रकाशित हुई थी।

प्रश्न 25.
देश की पहली हाईकोर्ट महिला चीफ जिस्टस कौन थीं?
उत्तर:
देश की पहली हाईकोर्ट महिला चीफ जिस्टस लीला सेठ थीं।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समानता की धारणा का समाज में उद्देश्य है?
उत्तर:
सामाजिक समानता एक ऐसी भावना या स्थिति है जो समाज में हर व्यक्ति को अपने जीवन में विकास के लिए समान अवसर उपलब्ध कराती है। समानता की धारणा के उद्देश्य –

  • समाज में लोगों को अवसर उपलब्ध कराना।
  • समाज में व्याप्त भेदभाव को दूर करना।
  • सभी को विकास व अपने कल्याण के लिए प्रोत्साहित करना।
  • अपने कार्यों व अधिकारों के प्रति सजग बनाना।

प्रश्न 2.
सामाजिक असमानता के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक असमानता भिन्नता की वह स्थिति हैं जिसके अंतर्गत दो या अधिक इकाइयों के मध्य तुलना की जाती है। जहाँ पर इकाइयाँ कुछ आधारों पर समान न हों, वहाँ असमानता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
सामाजिक असमानता के प्रमुख आधार:

  • व्यवसाय: समाज में सभी व्यक्तियों का व्यवसाय समान नहीं होता, जिसके आधार पर उनमें असमानता पायी जाती है।
  • भाषा: भाषा के आधार पर हमारे समाज में काफी विषमता देखने को मिलती है जो असमानता को बढ़ावा देती है। 3. जाति: जाति के आधार पर संपूर्ण समाज असमान रूप से विकसित है।

इन आधारों के अलावा संस्कृति, शिक्षा, परिवार की स्थिति व प्रस्थिति आदि ऐसे अनेक आधार हैं जिनके आधार पर असमानता को दर्शाया जा सकता है।

प्रश्न 3.
सामाजिक असमानता के दोष बताइए।
उत्तर:
सामाजिक असमानता के दोषों को निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं।

  • सामाजिक असमानता की भावना ने लोगों के मध्य दूरी उत्पन्न की है।
  • इससे समाज में भेदभाव की नीति को बढ़ावा मिला है।
  • इससे समाज में अनेक समस्याओं को बल मिला है।
  • सामाजिक असमानता की भावना लोगों में हीनता की प्रवृत्ति को उत्पन्न करती है।

प्रश्न 4.
जाति की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जाति शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली भाषा के शब्द ‘Casta’ से हुई है, जिसका अर्थ मत, विभेद व जन्म से लगाया जाता है। जाति शब्द का संबंध व्यक्ति के गुणों व स्वभाव से रहा है।
जाति शब्द की उत्पत्ति का पता व समाजशास्त्र में प्रथम बार उपयोग ग्रेसिया – डी – आरेटा ने 1665 में किया था। इसके पश्चात् अब्बे द्रुबाय ने इसका प्रयोग ‘प्रजाति’ के संदर्भ में किया था।
जाति भारतीय सामाजिक संरचना का एक प्रमुख आधार रही है जो प्राचीन काल से चली आ रही है। जाति के आधार पर ही समाज चार भागों में विभाजित है – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र।
आज वर्तमान में अनेक जातियाँ व उनकी उपजातियाँ पायी जाती हैं। जिन्हें सरकार के माध्यम से व प्रजातांत्रिक प्रणाली से अनेक सुविधाओं व आरक्षण की प्राप्ति हुई है जिससे उनकी स्थिति में पूर्व की अपेक्षा काफी सुधार हुआ है।

प्रश्न 5.
अनुसूचित जातियों की सामाजिक निर्योग्यताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्राचीन काल में समाज में अनुसूचित जातियों को अनेक सामाजिक निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ता था, जिसे निम्न बिंदुओं के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. खान – पान पर प्रतिबंध: इन जातियों के सदस्यों पर अनेक प्रकार से उनके खान – पान पर प्रतिबंध लगाया जाता था। उनके हाथों से पानी ग्रहण करना घोर पाप माना जाता था।
  2. धार्मिक क्रियाओं पर प्रतिबंध: इन जातियों के सदस्यों को धार्मिक क्रियाओं के संपादन पर भी रोक लगाई गयी थी। उन्हें मंदिरों में जाने, पूजा – अर्चना करने आदि में भाग लेने पर सख्त कड़ाई का पालन किया जाता था।
  3. छुआछूत या भेदभाव की नीति: इन जातियों के सदस्यों को देखना भी घोर अनर्थ समझा जाता था। समाज में इन्हें घृणित कार्यों जैसे सफाई व चमड़े का कार्य करने को विवश किया जाता था। इन कार्यों के परिणामस्वरूप लोगों ने इनके प्रति भेदभाव की नीति को अपना लिया जिसके फलस्वरूप समाज में अस्पृश्यता की भावना को बल मिला।

प्रश्न 6.
राजस्थान की जनजातियों की भौगोलिक बसावट की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान की जनजातियों की भौगोलिक बसावट की स्थिति को निम्न तथ्यों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –

  • जनजातियों के निवास के क्षेत्र से अन्य क्षेत्रों का संपर्क यातायात एवं आवागमन के साधनों से परंपरागत रूप से वंचित रहे हैं।
  • जनजातीय क्षेत्र नगरीकरण के प्रभाव से अंशत: ही प्रभावित हुए हैं।
  • जनजातीय क्षेत्र के सदस्यों को सरकार के द्वारा चलायी जाने वाली योजनाओं का लाभ मिलने का भी अभाव पाया जाता है।
  • जनजातीय क्षेत्र तकनीकी विकास से आज भी कोसों दूर हैं।

प्रश्न 7.
समाज में पिछड़ा वर्ग किसे माना जाता है?
उत्तर:
पिछड़ा वर्ग समाज का वह भाग है, जो सामाजिक शैक्षणिक व आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। भारतीय इतिहास में भी पिछड़ा वर्ग उसे ही माना गया है जो सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हैं।
समाज में रहने वाला यह वर्ग मुख्यतः कृषि द्वारा अपना जीवन – यापन करता है। इनमें मध्यम श्रेणी की वह समस्त जातियां आती हैं जो ब्राह्मणों से निम्न तथा अछूतों से उच्च समझी जाती हैं।
समाज में इस वर्ग की बहुलता पायी जाती है। इस वर्ग का पिछड़ापन व्यक्ति का नहीं अपितु समूह का एक लक्षण माना जाता है। संविधान में भी धारा 15(4) व 16 के अंतर्गत राज्य सरकारें भी आयोग का गठन कर रिपोर्टों के आधार पर सरकारी सेवाओं एवं शैक्षिक संस्थाओं में आरक्षण का प्रावधान कर सकती हैं। प्रत्येक राज्य में इनकी स्थिति में अंतर या भिन्नता देखने को मिलती है।

प्रश्न 8.
पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण के संदर्भ में विभिन्न राज्यों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण के संदर्भ में विभिन्न राज्यों में पाए जाने वाले तथ्यों को हम निम्न बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं –

  • मंडल आयोग ने भारत सरकार को पिछड़े वर्गों के आरक्षण के लिए 27 प्रतिशत स्थान को आरक्षित करने का अवसर प्रदान किया था।
  • 16 नवंबर, 1992 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में पिछड़ी जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण को सही करार दिया।
  • केन्द्र सरकार ने 8 सितंबर, 1993 से पिछड़ी जातियों की आरक्षण व्यवस्था को लागू कर दिया।
  • उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने राज्य में रह रहे पिछड़ी जातियों के लिए दिसंबर 1993 से 27 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया।
  • मध्य प्रदेश सरकार ने पिछड़े वर्गों के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण को लागू किया है।
  • राजस्थान सरकार ने इसमें 52 पिछड़ी जातियों को शामिल किया व 1994 में पिछड़े वर्ग के लिए 21 प्रतिशत आरक्षण को लागू किया।

विभिन्न राज्यों में पिछड़े वर्गों की आरक्षण की स्थिति अलग – अलग है। कर्नाटक में 40%, आंध्र प्रदेश में 25%, केरल में 25%, बिहार में 26%, महाराष्ट्र में 14 आदि राज्यों में आरक्षण की व्यवस्था भिन्न ही है।

प्रश्न 9.
समाज में महिलाओं को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा है?
उत्तर:
समाज में महिलाओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। जो निम्न प्रकार से हैं –

  1. सती – प्रथा: प्राचीन समाज में महिलाओं को पति की मृत्यु होने पर उसकी चिता पर जलकर अपने जीवन का अंत कर देना होता था। समाज सुधारकों में राजा राममोहन राय ने सती – प्रथा का विरोध किया था।
  2. विधवा: विवाह पर रोक – समाज में विधवा विवाहों पर रोक लगायी गयी, उन्हें दोबारा विवाह करने का हक नहीं था। महाराष्ट्र में रानाडे ने विधवा पुनर्विवाह के लिए आंदोलन चलाया।
  3. लैंगिक अत्याचार: समाज में लिंग के आधार पर पुरुष व स्त्री में भेद किया जाता था। उन्हें कई प्रकार से शोषण का शिकार होना पड़ता था। इसी संदर्भ में ज्योतिबा फुले ने इसमें विरुद्ध आवाज़ उठाई व आंदोलन चलाया।

प्रश्न 10.
समाज में महिलाओं के साथ किन आधारों पर भेदभाव किया जाता था।
उत्तर:
समाज में महिलाओं के साथ अनेक आधारों पर भेदभाव किया जाता था –

  1. लिंग के आधार पर:
    समाज में महिलाओं को लिंग के आधार पर पुरुषों से कम आँका जाता था। वर्तमान भारतीय समाज हमारा एक पुरुष प्रधान समाज है जहाँ केवल पुरुषों के वर्चस्व को महत्त्व दिया जाता है। क्योंकि पुरुषों का जीवन सार्वजनिक होता है जबकि महिलाओं का निजी।
  2. काम के आधार पर भेदभाव:
    बचपन से महिलाओं की परवरिश यह बताकर की जाती है कि उन्हें अपने जीवन में घरेलू कार्यों को ही प्राथमिकता देनी है, पति को ही परमेश्वर मानना है तथा घर की चारदीवारी के भीतर ही अपना जीवन यापन करना है। इन आधारों पर महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है।

प्रश्न 11.
भारत सरकार ने महिलाओं के कल्याण के लिए किन नीतियों का क्रियान्वयन किया है?
उत्तर:
भारत सरकार ने महिलाओं के कल्याण के लिए अनेक नीतियों का क्रियान्वयन किया, जो निम्नलिखित हैं –

  • 1971 में महिलाओं की स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक समिति का गठन किया गया।
  • समाज में महिला समानता की अवधारणा की उत्पत्ति हुई, जिससे महिलाओं की शक्ति, क्षमता व योग्यता में वृद्धि हुई।
  • महिलाओं के जीवन-स्तर में सुधार हुआ।
  • राजनीतिक दलों में महिलाओं के लिए कोटा निर्धारित किया गया।
  • संविधान में 1993 में 73वें व 74वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था की गई।

प्रश्न 12.
महिलाओं के विकास के लिए दसवीं पंचवर्षीय योजना में कौन – कौन कदम उठाए गए?
उत्तर:
महिलाओं के विकास के लिए भारत में दसवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 2002 से 31 मार्च, 2007 में अनेक कदम उठाए गए, जिसे निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  • महिलाओं के सर्वांगीण विकास के लिए सकारात्मक रूप से आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों का निर्माण करना।
  • महिलाओं के विकास के लिए उन्हें सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त करना।
  • समाज में उनके विरुद्ध होने वाले हर प्रकार के भेदभाव को समाप्त करना।
  • महिलाओं को न्याय देने के लिए लैंगिक न्याय प्रदान करना।

प्रश्न 13.
अल्पसंख्यकों के हितों को बढ़ावा देने के लिए संविधान में किन प्रावधानों का निर्माण किया गया है?
उत्तर:
संविधान के भाग 111 व अनुच्छेद 29-30 में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा हेतु अनेक प्रावधानों को निर्मित किया है, जो निम्न प्रकार से हैं –

  • संविधान में अल्पसंख्यकों को किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
  • उन्हें अपनी भाषा, संस्कृति व लिपि को बनाए रखने का अधिकार प्राप्त है।
  • उन्हें अपनी इच्छानुसार शिक्षण संस्थाओं को स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है।
  • राज्य किसी भी शिक्षण संस्थाओं को सहायता देने के लिए मना नहीं करेगा।

प्रश्न 14.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, 1997 पर टिप्पणी कीजिाए।
उत्तर:
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, 1997 में अल्पसंख्यकों के लिए अनेक उपबंध निर्मित किए गए हैं –

  • अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा के उपायों का मूल्यांकन करना।
  • सरकार के अन्य विभागों को अल्पसंख्यकों की समस्याओं से संबंधित सुझाव देना।
  • अल्पसंख्यकों की सुरक्षा व दिए गए अधिकारों से वंचित करने संबंधी शिकायतों पर विचार करना।
  • समय – समय पर सरकार को अल्पसंख्यकों की समस्या से संबंधित जानकारी प्रदान करना।

प्रश्न 15.
अल्पसंख्यकों की शिक्षा नीति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में अल्पसंख्यक समुदाय के पिछड़े अल्पसंख्यकों में समानता और सामाजिक न्याय के लिए शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है तथा साथ ही इसमें 1992 के अंतर्गत कुछ नवीन योजनाएँ भी जोड़ दी गई हैं –

  • शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए अल्पसंख्यक समुदायों के लिए विशेष क्षेत्रीय कार्यक्रमों को निर्धारित किया गया है।
  • मदरसों में शिक्षा के आधुनिकीकरण में वित्तीय सहायता संबंधी योजना को प्रारंभ किया गया है।
  • इनको शिक्षा की समुचित व्यवस्था मुहैया कराने हेतु शैक्षिक संस्था आयोग का गठन 2004 में किया गया।
  • अल्पसंख्यक छात्रों को प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी हेतु निःशुल्क कोचिंग की व्यवस्था करना।

प्रश्न 16.
निःशक्तजनों के लिए संविधान में क्या प्रावधान किये गए हैं?
उत्तर:
नि:शक्तजनों के लिए संविधान में अनेक प्रावधानों को निर्मित किया गया है, जो निम्न प्रकार से हैं –

  1. संविधान के अनुच्छेद 41 में यह सदस्य बेकारी, शिक्षा व बुढ़ापे जैसी स्थिति में राज्य से लोक सहायता प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है।
  2. इनके सर्वांगीण विकास हेतु इनकी सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक स्थिति को सशक्त बनाने के लिए अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया है।
  3. अनुच्छेद 243 – छ की अनुसूची 11वीं व 243 – ब की 12वीं अनुसूची में इनके सामाजिक विकास हेतु पंचायतों व नगर पालिकाओं में व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय न्यास पर समुचित टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय न्यास बहु विकलांगताओं से ग्रसित व्यक्तियों के कल्याण के लिए 1999 में संसद में एक अधिनियम द्वारा गठित एक संवैधानिक निकाय है। राष्ट्रीय न्यास के उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  • विकलांगों को अपने स्वयं के परिवार में रहने हेतु सहायता प्रदान करना।
  • विकलांगों को अपने जीवन – यापन करने में समर्थ व सशक्त बनाना।
  • विकलांगों के माता – पिता की मृत्यु होने पर उनका संरक्षण एवं देखभाल के उपाय करना।

प्रश्न 18.
विकलांगजनों के पुनर्वास संबंधी उपायों को विवेचित कीजिए।
उत्तर:
विकलांगजनों के पुनर्वास संबंधी उपायों को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –

  • विकलांगजनों को स्व – रोजगार के लिए प्रेरित करना।
  • निजी क्षेत्रों में इनके लिए रोजगार की व्यवस्था करना।
  • इन लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।
  • विकलांगजनों के विकास के लिए आर्थिक पुनर्वास नीति पर बल देना।
  • इनके समुचित पुनर्वासों की व्यवस्था करना।

प्रश्न 19.
विकलांग छात्रों के लिए निर्धारित की गई छात्रवृत्ति योजना के प्रमुख उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकलांग छात्रों के लिए मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति एवं मैट्रिक उपरांत छात्रवृत्ति देने का प्रावधान किया गया है, जिसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  • छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता विकलांग जनों को मुहैया कराता है।
  • वित्तीय सहायता में पुस्तक, अनुदान व रीडर भत्ता आदि शामिल है।
  • दो छात्रवृत्ति योजनाओं के अंतर्गत लाभार्थियों का चयन राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्रों की मेरिट के आधार पर किया जाता है।

प्रश्न 20.
विकलांगजन सशक्तिकरण विभाग के प्रमुख उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकलांगजन सशक्तिकरण विभाग का मुख्य उद्देश्य एक ऐसी समाजवेशी समाज बनाना है, जिसमें विकलांगजनों की उन्नति और विकास के समान अवसर प्रदान किये जाते हैं, जिसमें वे सुरक्षित, उपयोगी व सम्मानजनक रूप से अपना जीवन व्यतीत कर सकें। इस विभाग के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं –

  • शारीरिक पुनर्वास व चिकित्सा परामर्श प्रदान करना।
  • पुर्नवास कर्मियों को तैयार करना।
  • उनके सेवा प्रदायगी में सुधार करना।
  • उन्हें समाज में सजग व जागरूक बनाना।
  • उनके लिए सशक्तिकरण का समर्थन करना।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 3 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अनुसूचित जतियों की आर्थिक समस्याएँ या निर्योग्यताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-19वीं सदी के अंत तक अनुसूचित जातियों की अनेक निर्योग्यताएँ रही हैं। निर्योग्यताओं का तात्पर्य है – किसी वर्ग अथवा समूह को कुछ अधिकारों या सुविधाओं को प्राप्त करने के अयोग्य मान लेना। भारत में अस्पृश्य या अनुसूचित जातियों की अनेक समस्याएँ रही हैं। इन समस्याओं के कारण इन्हें जीवन में आगे बढ़ने व अपने व्यक्तित्व के विकास का अवसर नहीं दिया गया। अनुसूचित जातियों की प्रमुख आर्थिक समस्याएँ निम्नांकित हैं –
आर्थिक समस्याएँ:

आर्थिक समस्याओं के कारण अनुसूचित जातियों की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि इन्हें विवश होकर, सवर्णों के झूठे भोजन, फटे – पुराने वस्त्रों एवं त्याज्य वस्तुओं से ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी पड़ी। अनुसूचित जातियों के लोगों को मल – मूत्र उठाने, सफाई करने, मरे हुए पशुओं को उठाने और उनके चमड़े से वस्तुएँ बनाने का कार्य ही सौंपा गया। इन्हें खेती करने, व्यापार चलाने या शिक्षा प्राप्त कर नौकरी करने का अधिकार नहीं दिया गया।

इन्हें भूमि – अधिकार तथा धन – संग्रह की आज्ञा नहीं दी गयी। इन लोगों को दासों के रूप में अपने स्वामियों की सेवा करनी पड़ती थी। अनुसूचित जातियों का आर्थिक दृष्टि से काफी शोषण हुआ है। उन्हें घृणित से घृणित पेशों को अपनाने के लि बाध्य किया गया व बदले में इतना भी नहीं दिया गया कि वे भर – पेट भोजन भी कर सकें। हिंदुओं ने धर्म के नाम पर अपने इस व्यवहार को उचित माना तथा अनुसूचित जातियों को इस व्यवस्था से संतुष्ट रहने के लिए बाध्य किया।

इन लोगों को शासन के काम में किसी भी प्रकार का कोई हस्तक्षेप करने, कोई सुझाव देने, सार्वजनिक सेवाओं के लिए नौकरी प्राप्त करने या राजनीतिक सुरक्षा प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं दिया गया। उपर्युक्त समस्याएँ मध्यकालीन सामाजिक व्यवस्था से विशेष रूप से संबंधित हैं। वर्तमान में अस्पृश्यों एवं अनुसूचित जातियों की समस्याएँ प्रमुखतः सामाजिक व आर्थिक हैं न कि धार्मिक व राजनीतिक। इन लोगों की निर्योग्यताएँ नगरों में समाप्त होती जा रही है परंतु गांवों में आज भी दिखलायी पड़ती हैं।

आजादी के बाद अनुसूचित जातियों के लोगों की समस्याएँ दूर हुई हैं। किंतु साथ ही किये गये कल्याण – कार्यों के परिणामस्वरूप अनेक नवीन समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं।

प्रश्न 2.
अनुसूचित जातियों के संबंध में संवैधानिक व्यवस्थाओं का सविस्तार उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संविधान में अनुसूचित जातियों के लिए विशेष संरक्षण की व्यवस्था की गयी है, जो इस प्रकार है –
(1) संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 17 के अनुसार अस्पृश्यता का अंत कर उसका किसी भी रूप में प्रचलन निषिद्ध कर दिया गया है।
  • अनुच्छेद 19 के आधार पर अस्पृश्यों की व्यावसायिक निर्योग्यता को समाप्त किया जा चुका है।
  • अनुच्छेद 25 में हिंदुओं के सार्वजनिक धार्मिक स्थानों के द्वार सभी जातियों के लिए खोल देने की व्यवस्था की गयी है।
  • अनुच्छेद 146 एवं 338 के अनुसार अनुसूचित जातियों के कल्याण एवं हितों की रक्षा के लिए राज्य में सलाहकार परिषदों एवं पृथक् – पृथक् विभाग की स्थापना का प्रावधान किया गया है।

(2) कल्याण एवं सलाहकार संगठन:

  • केन्द्र एवं राज्यों में अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं पिछड़े वर्गों के कल्याण हेतु अलग – अलग विभागों की व्यवस्था की गयी है।
  • कई राज्यों में अनुसूचित जातियों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए पृथक् मंत्रालय भी स्थापित किये गए हैं।
  • इसके साथ ही विशेष अधिकारी, जिसे अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के कमिश्नर के नाम से पुकारते हैं की व्यवस्था भी की गयी है।

(3) आर्थिक उन्नति हेतु प्रयास:

  • जनवरी 1976 में सरकार द्वारा पारित बंधक श्रमिक उन्मूलन कानून का विशेष लाभ अनुसूचित जाति के लोगों को ही मिला है।
  • सन् 1978 में सरकार द्वारा इस उद्देश्य से एक उच्चाधिकार समिति का गठन किया गया है जिससे कि अस्पृश्य जातियों की आर्थिक स्थिति एवं नौकरी संबंधी सुविधाओं की सही जानकारी मिल सके।
  • सरकारी नौकरी प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करने की दृष्टि से अनुसूचित जातियों के सदस्यों की आयु सीमा तथा योग्यता मानदंड में भी विशेष छूट की व्यवस्था की गयी है।

अतः सरकार द्वारा चलाए जाने वाली अनेक योजनाओं से इनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।

प्रश्न 3.
महिलाओं के उत्थान के लिए किए गये प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में महिलाओं की असमानता को समाप्त करने के लिए एवं महिलाओं की समानता के लिए समय – समय पर अनेक आंदोलन चलाये गए हैं। राजा राममोहन राय, रानाडे व ज्योतिबा फुले जैसे अनेक समाज सुधारकों ने महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् महिलाओं के लिए किए जने वाले प्रयास निम्नलिखित हैं –
1. समानता का अधिकार:
समानता का अधिकार संविधान में मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है। भारतीय संविधान सभी देशवासियों को समानता का अधिकार प्रदान करता है। इस प्रकार महिलाओं को भी पुरुषों की भाँति समान समझते हुए, समानता का अधिकार दिया गया है।

2. केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड की स्थापना:
भारत संचार ने 1953 में महिला कल्याण और वंचित समूहों के विकास के लिए भारत में केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड की स्थापना की है। यह बोर्ड महिला संगठनों के विकास को बढ़ावा देता है, जिससे महिला कार्यकर्ताओं में वृद्धि हो सके।
इससे समाज में महिलाओं की सामाजिक प्रस्थिति में बदलाव होगा व साथ ही उनकी भूमिका भी सशक्त होगी।

3. महिला कल्याण नीतियाँ:

  • आर्थिक स्वतन्त्रता संबंधी नीति: महिलाओं को अपना रोजगार लगाने व व्यापार करने के लिए छूट प्रदान की गयी है, जिससे वे आर्थिक रूप से समाज में सशक्त हो सकें।
  • शैक्षिक विकास नीति: महिलाओं की प्रस्थिति में सुधार करने के लिए उन्हें उच्च शिक्षा में छूट दी गयी व वित्तीय सहायता भी उपलब्ध करायी गयी।
  • स्वास्थ्य सुधार संबंधी नीति: महिलाओं के स्वास्थ्य की देख – रेख के लिए अनेक परामर्श केन्द्र बनाये गए हैं, जहाँ वे अपनी स्वास्थ्य संबंधी जाँच निःशुल्क करा सकती हैं।
  • संपत्ति अधिनियम नीति का क्रियान्वयन: महिलाओं को उत्तराधिकार अधिनियम में पिता की संपत्ति में बराबरी का हिस्सा प्रदान किया जाता है।
  • विवाह विच्छेद व पुनर्विवाह नीति: हिंदू कानून महिलाओं को संबंध – विच्छेद करना तथा पुनर्विवाह का अधिकार प्रदान करता है।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की संवैधानिक अवधारणा – भारत सरकार द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए, इन समुदायों को सशक्त करने, उनकी संस्कृति, भाषा व धार्मिक स्वरूप को बनाये रखने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग 1992 में अधिनियमित किया गया। अधिनियम 1992 के अंतर्गत अल्पसंख्यक वर्ग उस समुदाय को माना गया, जिसको केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया, क्योंकि देश में सामाजिक एवं आर्थिक विकास में अल्पसंख्यक समुदाय की एक अहम् भूमिका रही है।

सरकार ने इन समुदायों के आर्थिक, सामाजिक उत्थान के लिए समय-समय पर अनेक योजनाएँ एवं कार्यक्रम संचालित किये हैं। केन्द्र सरकार द्वारा अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1982 को सफल बनाने के लिए मई 1993 में एक अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया है। अल्पसंख्यक आयोग की भूमिका या महत्त्व –

  1. अल्पसंख्यक आयोग द्वारा संघ और राज्यों के अधीन अल्पसंख्यकों की उन्नति के लिए किये गये कार्यों का मूल्यांकन करना।
  2. अल्पसंख्यक समुदायों के सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक विकास के विभिन्न मुद्दों पर अध्ययन करना व उनका विश्लेषण करना।
  3. अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित कोई भी दिशा निर्देश, जो केन्द्र सरकार द्वारा दिये गए हों, उन पर कार्यवाही को सुनिश्चित करना।
  4. अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित किसी भी समस्या पर समय – समय पर अपना प्रतिवेदन तैयार करना व उसे केन्द्र सरकार के सामने प्रस्तुत करना।
  5. अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के उपायों का मूल्यांकन करना।
  6. सरकार के अन्य विभागों को अल्पसंख्यकों से संबंधित सुझाव देना।
  7. अल्पसंख्यक समुदाय को अधिकार एवं सुरक्षा उपायों से वंचित करने पर मिलने वाली शिकायतों पर गंभीरतापूर्वक विचार करना।
  8. आयोग को दिये गए कार्यों व विषयों पर विचार करना।
  9. अल्पसंख्यकों के लिए बनाये गए रोजगार कार्यक्रमों की समीक्षा करना।
  10. अल्पसंख्यकों की हितों की रक्षा के लिए राज्य सरकारों को अपने सुझाव देना।

प्रश्न 5.
सच्चर समिति की प्रमुख सिफारिशों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सच्चर समिति का गठन:
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश राजेन्द्र सच्चर की अध्यक्षता में सात सदस्यीय समिति का गठन 9 मार्च, 2005 को किया गया था। इस समिति को भारत के अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदायों के आर्थिक एवं शैक्षिक स्तर के अध्ययन का प्रमुख कार्य सौंपा गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों की आर्थिक स्थिति एवं शैक्षिक स्थिति का सही आकलन करना था। इस समिति ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों की आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति की रिपोर्ट 8 जून, 2006 को भारत सरकार को सौंपी थी। इस समिति ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए निम्नलिखित मुख्य सिफारिशें की हैं –
1. रोजगार के अवसरों का सृजन की सिफारिश – मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए आवश्यक उपाय किए जाएँ।

2. प्रतिनिधित्व के लिए समान अवसर की सिफारिश – छूटे हुए अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के हितों पर विचार करके उनके प्रतिनिधित्व के लिए एक समान अवसर आयोग का गठन किया जाये।

3. राष्ट्रीय डाटा बैंक का सृजन करने की सिफारिश – विभिन्न सामाजिक – धार्मिक वर्गों के लिए एक राष्ट्रीय डाटा बैंक का सृजन किया जाये।

4. विद्यालयों से जोड़ने की सिफारिश – सभी मदरसों को सीनियर सैकण्डरी विद्यालयों से जोड़ा जाए। इनके द्वारा निर्गमित उपाधियों की रक्षा एवं अन्य परीक्षाओं की अर्हता हेतु मान्यता किये जाने के लिए सिफारिशें करना।

5. धार्मिक भावना को बढ़ावा देने की सिफारिश – धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए पाठ्य – पुस्तकों के उचित सामाजिक मूल्यों को सुनिश्चित किया जाये।

6. अन्य सिफारिशें:

  • अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा संबंधी योजनाएँ लागू करने की सिफारिश की थी।
  • माध्यमिक स्तर तक गुणवत्ता युक्त शिक्षा की पहुँच के लिए राष्ट्रीय/माध्यमिक शिक्षा अभियान को पूरे देश में लागू करना।

प्रश्न 6.
अल्पसंख्यकों की समस्याओं के समाधान हेतु सरकार द्वारा किये जाने वाले प्रयासों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों की समस्याओं के समाधान हेतु सरकार ने अनेक प्रयास किये हैं। भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए अनेक प्रावधान किये गए हैं, जो इस प्रकार से हैं –
1. संविधान के अनुच्छेद 14, 15 व 16 में कानून के समक्ष समानता और विधि के समान संरक्षण का आश्वासन दिया गया है। किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति आदि के आधार पर भेद – भाव नहीं किया जाएगा।

2. अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म को स्वीकार करने व प्रचार करने की छूट दी गई है।

3. अनुच्छेद 26 धार्मिक मामलों का प्रबंध करने, अनुच्छेद 27 धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु कर वसूल करने तथा अनुच्छेद 28 में सरकारी शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक उपासना में भाग न लेने की छूट दी गई है।

4. अनुच्छेद 29 में नागरिकों को अपनी विशेष भाषा, लिपि एवं संस्कृति को बनाये रखने, सरकारी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश पर धर्म, मूलवंश व जाति के आधार पर भेदभाव न बरतने का प्रावधान किया गया है।

5. अनुच्छेद 30 धर्म व भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने एवं उनका प्रशासन करने का अधिकार देता है।

6. सन् 1978 में ‘अल्पसंख्यक आयोग’ की स्थापना की जिसका एक अध्यक्ष एवं सदस्य अल्पसंख्यक समुदायों में से होते हैं। यह कमीशन अन्य कार्यों के अतिरिक्त संविधान में किये गए संरक्षण प्रावधानों का मूल्यांकन करने, केन्द्र एवं राज्य सरकारों की नीतियों को लागू करने, सर्वेक्षण तथा अल्पसंख्यकों के कल्याण हेतु समय – समय पर रिपोर्ट देने का कार्य करता है।

7. सन् 1983 में केन्द्रीय सरकार ने पृथक से एक ‘अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ’ की स्थापना की जो प्रधानमन्त्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का एक भाग है।

8. भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए पृथक् से एक कमीशन है जो संविधान में भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए दिये गये प्रावधानों के बारे में जाँच पड़ताल करता है, उनसे संबंधित शिकायतों को सुनता है व उन्हें दूर करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 7.
पिछड़े वर्गों की समस्याएँ एवं संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पिछड़े वर्गों की समस्याएँ भी अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों से बहुत कुछ मिलती – जुलती हैं। यद्यापि अनुसूचित जातियों की भाँति उनसे अस्पृश्यता नहीं बरती जाती और उन्हें धार्मिक स्थानों, सार्वजनिक कुओं, उद्यानों, तालाबों एवं स्थानों के उपयोग की मनाही नहीं है, फिर भी अनेक सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक समस्याएँ उनके समान ही हैं। जाति संस्तरण में पिछड़े वर्गों का स्थान भी निम्न स्तर पर ही है। इन वर्गों में शिक्षा का अभाव है, अतः राजकीय सेवा में और विशेष रूप से उच्च पदों पर इस वर्ग के लोगों की संख्या बहुत कम है।
अधिकांशतः पिछड़े वर्गों के लोग परंपरागत व्यवसायों में लगे हुए हैं, अत: आधुनिक व्यवसायों, उद्योगों एवं व्यापार में इनका प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है। गरीबी की मात्रा भी इन लोगों में अधिक है। इन्हें शासन करने का अधिकार भी नहीं था, अतः ये राजनीतिक सहभागिता से भी वंचित रहे हैं। इनकी समस्याओं के समाधान हेतु संविधान में जो प्रावधान किए गए हैं, वे इस प्रकार हैं –

  1. अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत राज्यों को पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान आरक्षित करने की शक्ति प्राप्त है।
  2. अनुच्छेद 15(4) के अंतर्गत राज्य को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किए जाने की शक्ति प्रदान की गई है।
  3. अनुच्छेद 340(1) के अंतर्गत राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह सामाजिक व शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों की दशाओं एवं उनकी कठिनाइयों को ज्ञात करने के लिए एक आयोग की नियुक्ति करेगा जो उन कठिनाइयों को दूर करने हेतु उपायों के बारे में या उनके लिए दिए जाने वाले अनुदान या अनुदान की शर्तों आदि के बारे में केन्द्र या राज्य सरकारों को अपनी सिफारिश भेजेगा। आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को देगा और राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में इसे रखेगा।

प्रश्न 8.
समाज में होने वाले सामाजिक आंदोलनों की विशेषता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
समाज में होने वाले सामाजिक आंदोलन की विशेषता निम्न प्रकार से है –
1. सामूहिक प्रयत्न: किसी भी आंदोलन को सामाजिक आंदोलन उसी समय कहा जाएगा जब उसमें समाज के अनेक व्यक्ति सम्मिलित हों। एक, दो या कुछ व्यक्तियों द्वारा समाज में सुधार लाने के प्रयासों को सामाजिक आंदोलन नहीं कहा जा सकता।

2. संकट अथवा समस्या: जब समाज में कोई ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसे लोग और अधिक सहन नहीं कर सकते तो उसे हटा देने तथा उसके स्थान पर नयी व्यवस्था लाने के लिए सामाजिक आंदोलन किया जाता है।

3. अनौपचारिक संगठन: प्रत्येक सामाजिक आंदोलन का एक अनौपचारिक संगठन होता है। इस संगठन के द्वारा ही आंदोलन के लक्ष्यों को प्राप्त करने की योजना बनायी जाती है, साधन जुटाए जाते हैं, धन एकत्रित किया जाता है तथा लोगों को समय – समय पर दिशा – निर्देश दिए जाते हैं। इस प्रकार से अनौपचारिक संगठन सामाजिक आंदोलन की एक मुख्य विशेषता है।

4. विकास: कोई भी सामाजिक आंदोलन एक निर्मित वस्तु नहीं होता वरन् उसका धीरे – धीरे विकास होता है। उदाहरण के लिए, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन एक दिन या एक घटना की ही देन नहीं वरन् उसका एक लंबा इतिहास है और समय – समय पर उसमें अनेक प्रकार के कारकों ने योग दिया है।

5. नियोजित प्रयत्न: सामाजिक आंदोलन के लिए निश्चित योजना बनायी जाती है और विभिन्न चरणों में उसे पूरा करने का सामूहिक प्रयास किया जाता है।

6. अन्य विशेषताएँ:

  • सामाजिक आंदोलन में परिवर्तन की एक दिशा तय होती है।
  • सामाजिक आंदोलन के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं, जिन्हें पाने के लिए ही आंदोलन किया जाता है।
  • प्रत्येक सामाजिक आंदोलन का कोई न कोई नेता अवश्य होता है, उसके अभाव में आंदोलन चल नहीं सकता। वही आंदोलन की योजना बनाता है। उसे क्रियान्वित करता है व उसका मार्ग प्रशस्त करता है।
  • वैचारिंकी ही सामाजिक आंदोलन के लक्ष्य एवं साधन निर्धारित करती है और उसके औचित्य को सिद्ध करती है। वैचारिकी ही आंदोलन को प्रेरित करती है, लोगों में आशा का संचार करती है।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 2 जनसांख्यिकीय संरचना एवं भारतीय समाज, ग्रामीण-नगरीय संलग्नता और विभाजन

August 19, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 जनसांख्यिकीय संरचना एवं भारतीय समाज, ग्रामीण-नगरीय संलग्नता और विभाजन

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या के गुणोत्तर का सिद्धान्त निम्न में से किसने दिया है?
(अ) माल्थस
(ब) डार्विन
(स) लामार्क
(द) स्पेन्सर
उत्तरमाला:
(अ) माल्थस

प्रश्न 2.
जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में कौन – सा स्थान है?
(अ) प्रथम
(ब) द्वितीय
(स) तृतीय
(द) चतुर्थ
उत्तरमाला:
(ब) द्वितीय

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट 2015 के अनुसार 2022 में भारत का जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में स्थान होगा –
(अ) तृतीय
(ब) द्वितीय
(स) प्रथम
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) प्रथम

प्रश्न 4.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में कितनी जनगणनाएँ 2011 तक हो चुकी हैं?
(अ) पाँच
(ब) छः
(स) चार
(द) सात
उत्तरमाला:
(द) सात

प्रश्न 5.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर है –
(अ) 15.64
(ब) 17.64
(स) 16.64
(द) 14.64
उत्तरमाला:
(स) 16.64

प्रश्न 6.
2011 में भारत की कुल जनसंख्या में 15 – 59 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों का अनुपात है –
(अ) 6%
(ब) 63%
(स) 64%
(द) 7%
उत्तरमाला:
(ब) 63%

प्रश्न 7.
राजस्थान में जन घनत्व (2011) कितना है?
(अ) 11 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.
(ब) 21 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.
(स) 31 व्यक्ति/किमी.2
(द) 41 व्यक्ति/किमी.
उत्तरमाला:
(ब) 21 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.

प्रश्न 8.
भारत में सबसे कम जन घनत्व किस राज्य में है?
(अ) राजस्थान
(ब) बिहार
(स) पश्चिम बंगाल
(द) अरुणाचल प्रदेश
उत्तरमाला:
(द) अरुणाचल प्रदेश

प्रश्न 9.
भारत के पास विश्व की कितनी फीसद भूमि है?
(अ) 2.4%
(ब) 3.4%
(स) 4.4%
(द) 4.6%
उत्तरमाला:
(अ) 2.4%

प्रश्न 10.
भारत में विश्व की जनसंख्या का कितना प्रतिशत निवास करता है?
(अ) 17%
(ब) 18%
(स) 19%
(द) 20%
उत्तरमाला:
(ब) 18%

प्रश्न 11.
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार भारत में स्त्री साक्षरता दर कितनी है?
(अ) 65.16
(ब) 65.26
(स) 65.36
(द) 65.46
उत्तरमाला:
(द) 65.46

प्रश्न 12.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लिंगानुपात कितना है?
(अ) 934
(ब) 927
(स) 940
(द) 933
उत्तरमाला:
(स) 940

प्रश्न 13.
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत कितना है?
(अ) 68.84
(ब) 67.84
(स) 69.84
(द) 72.2
उत्तरमाला:
(अ) 68.84

प्रश्न 14.
ग्राम पंचायत स्थानीय स्वशासन की इकाई है –
(अ) कस्बे की
(ब) शहर की
(स) नगर की
(द) गाँव की
उत्तरमाला:
(द) गाँव की

प्रश्न 15.
श्रम विभाजन एवं श्रम विशेषीकरण की बहुतायत देखने को मिलती है –
(अ) गाँवों में
(ब) नगरों में
(स) दोनों में
(द) दोनों में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) नगरों में

प्रश्न 16.
द्वैतीयीक सम्बन्ध निम्न में से कहाँ अधिक पाए जाते हैं?
(अ) नगरों में
(ब) गाँवों में
(स) दोनों में
(द) दोनों में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) नगरों में

प्रश्न 17.
“समाज का प्रत्येक व्यक्ति सिपाही होता है।” यह कथन लागू होता है –
(अ) ग्रामीण समाज पर
(ब) नगरीय समाज पर
(स) भारतीय समाज पर
(द) सभी पर
उत्तरमाला:
(अ) ग्रामीण समाज पर

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय उप महाद्वीप जनसंख्या के किस चरण से गुजर रहा है?
उत्तर:
भारतीय उप – महाद्वीप जनसंख्या के द्वितीय चरण जनसंख्या – विस्फोट से गुजर रहा है। जहाँ जनसंख्या में अत्यधिक तीव्र गति से वृद्धि होती है।

प्रश्न 2.
शिशु एवं मातृ मृत्यु – दर का ऊँचा होना किसका सूचक है?
उत्तर:
समाज में शिशु एवं मातृ मृत्यु – दर का ऊँचा होना पिछड़ेपन व गरीबी का सूचक है।

प्रश्न 3.
जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान किसका है?
उत्तर:
चीन का जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान है।

प्रश्न 4.
2011 की जनगणनानुसार भारत में जनघनत्व कितना है?
उत्तर:
2011 की जनगणनानुसार भारत में जनघनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।

प्रश्न 5.
आजादी के पश्चात् जनसंख्या में सर्वाधिक वृद्धि दर किस दशक में रही है?
उत्तर:
आजादी के पश्चात् जनसंख्या में सर्वाधिक वृद्धि दर 1961 – 71 के दशक में 24.8 प्रतिशत रही है।

प्रश्न 6.
2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में भारत की जनसंख्या का कितना प्रतिशत लोग निवास करते हैं?
उत्तर:
2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में भारत की कुल जनसंख्या का 5.66 प्रतिशत लोग निवास करते हैं।

प्रश्न 7.
2011 में भारत में मृत्यु – दर कितनी रही है?
उत्तर:
2011 में भारत में मृत्यु – दर 7.1 प्रति हजार रही है।

प्रश्न 8.
शिक्षित होने की प्राथमिक एवं अपरिहार्य शर्त क्या है?
उत्तर:
शिक्षित होने की प्राथमिक एवं अपरिहार्य शर्त व्यक्ति का साक्षर होना है।

प्रश्न 9.
2011 की जनगणना के अनुसार शहरी क्षेत्र में बाल लिंगानुपात कितना है?
उत्तर:
2011 की जनगणना के अनुसार शहरी क्षेत्र में बाल लिंगानुपात 914 है।

प्रश्न 10.
नातेदारी के सम्बन्धों में सृदृढ़ता किस क्षेत्र में पाई जाती है?
उत्तर:
नातेदारी के सम्बन्धों में सुदृढ़ता ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाती है।

प्रश्न 11.
जन्म के स्थान पर व्यक्तिगत योग्यता को महत्त्व किस क्षेत्र में मिलता है?
उत्तर:
जन्म के स्थान पर व्यक्तिगत योग्यता को महत्त्व शहरी क्षेत्र को मिलता है।

प्रश्न 12.
जजमानी प्रथा किस क्षेत्र की पहचान है?
उत्तर:
जजमानी प्रथा ग्रामीण क्षेत्र की पहचान है जो गाँवों में ही पाई जाती थी।

प्रश्न 13.
परम्परागत भारतीय सामाजिक व्यवस्था में वस्तु विनिमय प्रचलित कहाँ रहा है?
उत्तर:
परम्परागत भारतीय सामाजिक व्यवस्था में वस्तु विनिमय ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित रहा है।

प्रश्न 14.
नगरीय समाज की विशेषता सामूहिकता है अथवा व्यक्तिवादिता?
उत्तर:
नगरीय समाज की विशेषता मुख्य रूप से व्यक्तिवादिता है जो नगरों में रहने वाले सदस्यों में पाई जाती है।

प्रश्न 15.
विभिन्नता पर आधारित समाज कौन – सा है?
उत्तर:
विभिन्नता पर आधारित समाज नगरीय समाज है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
माल्थस के गुणोत्तर वृद्धि के सिद्धान्त पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
माल्थस के गुणोत्तर वृद्धि के सिद्धान्त को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. माल्थस ने अपनी पुस्तक “An Essay on the Principle of Population” में जनसंख्या वृद्धि सम्बन्धी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है।
  2. माल्थस के अनुसार जनसंख्या गुणोत्तर क्रम के (2, 4, 8, 16…) के रूप में वृद्धि होती है और कृषि उत्पादन में खाद्य सामग्री गणितीय क्रम (1, 3, 5…) में वृद्धि होती है।
  3. माल्थस के अनुसार जनसंख्या वृद्धि गरीबी का मूल कारण है।

प्रश्न 2.
जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनसांख्यिकीय संक्रमण के सिद्धान्त को तीन चरणों के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –
(1) प्रथम चरण:

  • इसमें देश में जनसंख्या वृद्धि कम होती है।
  • समाज अल्प विकसित अवस्था में होता है।
  • इसमें समाज में जन्म – दर व मृत्यु – दर दोनों ही अधिक होती है।

(2) द्वितीय चरण:

  • इस चरण में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होती है।
  • इसमें तकनीति विकास व चिकित्सीय सुविधाओं के फलस्वरूप मृत्यु – दर कम हो जाती है व जन्म – दर ऊँची बनी रहती है।

(3) तृतीय चरण:

  • इसमें देश विकसित अवस्था में होता है।
  • इसमें जन्म – दर व मृत्यु – दर दोनों ही कम पाई जाती हैं।

प्रश्न 3.
भारत में मृत्यु – दर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मृत्यु – दर से तात्पर्य उस स्थिति से है, जब किसी क्षेत्र में एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या पर मरने वालों के बच्चों की संख्या से है।
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 2 जनसांख्यिकीय संरचना एवं भारतीय समाज, ग्रामीण-नगरीय संलग्नता और विभाजन 1
मृत्यु – दर में कमी के कारण:

  • स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार।
  • रोगों पर नियंत्रण।
  • जीवन – स्तर में सुधार।
  • अकाल एवं महामारी पर नियंत्रण।

प्रश्न 4.
वर्तमान में भारत में साक्षरता की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब व्यक्ति किसी भाषा को समझ, लिखना व पढ़ सकता हो, तो वह व्यक्ति साक्षर कहलाता है।
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 2 जनसांख्यिकीय संरचना एवं भारतीय समाज, ग्रामीण-नगरीय संलग्नता और विभाजन 2
भारत में साक्षरता की स्थिति:

  • भारत में आजादी के बाद साक्षरता में वृद्धि हुई है।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है।
  • महिलाओं की साक्षरता (64.46%) पुरुषों की (82.14) तुलना में कम है।
  • अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों में साक्षरता की दर काफी कम पाई जाती है।

प्रश्न 5.
बाल – लिंगानुपात क्या है? वर्तमान स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए भावी तस्वीर बताइए।
उसर:
बाल – लिंगानुपात से अभिप्राय है – एक हजार बालकों पर जन्म लेने वाली बालिकाओं की संख्या से है। बाल – लिंगानुपात की वर्तमान स्थिति:

  • वर्तमान में बालिकाओं की संख्या निरंतर घट रही है।
  • 2001 में बाल लिंगानुपात 927 था, जो 2011 की जनगणना के अनुसार 914 ही रह गई है।
  • पंजाब, हरियाणा व राजस्थान आदि में लड़कियों की संख्या में काफी कमी आ रही है।
  • कमी का कारण कन्या भ्रूण हत्या है।
  • पुत्रों की इच्छा व दहेज के परिणामस्वरूप भी इसमें कमी आई है।

प्रश्न 6.
भारत में वर्तमान समय में ग्रामीण तथा नगरीय जनसंख्या की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में वर्तमान समय में ग्रामीण तथा नगरीय जनसंख्या को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं –

  • नगरीकरण की प्रक्रिया के प्रभाव से ग्रामीण तथा नगरीय जनसंख्या में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है।
  • रोजगार के अवसरों की प्रधानता ने लोगों का आकर्षण गाँवों से नगरों की ओर किया है।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या घटकर 68.84 प्रतिशत रह गई है।
  • नगरों में जनसंख्या का प्रतिशत अब 31.16 हो गया है।
  • ग्रामीण कृषि आधारित जीवन शैली में कमी आई है।

प्रश्न 7.
भारत में गाँव तथा नगरीय समाज में विवाह, परिवार एवं नातेदारी के सन्दर्भ में विभिन्नता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) परिवार के सन्दर्भ में:

  • गाँवों में संयुक्त परिवारों की प्रधानता होती है, जबकि नगरों में एकाकी परिवारों की।
  • गाँवों में परिवारों के सदस्य में सामूहिकता की भावना पाई जाती है, जबकि नगरों में व्यक्तिवादिता की भावना पाई जाती है।

(2) विवाह के सन्दर्भ में:

  • गाँव में विवाह को एक अनिवार्य संस्था माना जाता है, जबकि नगरों में इसे एक समझौता माना जाने लगा है।
  • गाँवों में तलाक को बुरा माना जाता है, जबकि नगरों में तलाक की प्रवृत्ति में काफी वृद्धि हुई है।
  • गाँव में कम आयु में विवाह होते हैं, जबकि नगरों में देर से विवाह करने का चलन पाया जाता है।

(3) नातेदारी के सन्दर्भ में:

  • गाँवों में नातेदारी सम्बन्धों की प्रधानता होती है, जबकि नगरों में नातेदारी सम्बन्ध अब कमजोर पड़ने लगे हैं।
  • गाँवों में ‘हम’ की भावना का समावेश होता है, जबकि नगरों में ‘में’ की भावना पाई जाती है।

प्रश्न 8.
नगरीय सामाजिक संरचना में जाति की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नगरीय सामाजिक संरचना में जाति की भूमिका को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं –

  • नगरों में जाति का महत्त्व दिन – प्रतिदिन कम होता जा रहा है।
  • नगरों में जाति में पाई जाने वाली प्रदत्त प्रस्थिति के स्थान पर अर्जित प्रस्थिति का महत्त्व बढ़ा है।
  • नगरों में जातिगत निर्योग्यताओं पर अब जोर नहीं दिया जाता है।
  • नगरों में व्यक्ति को उसके जन्म से नहीं, बल्कि उसके कर्मों से पहचाना जाता है।
  • नगरों में जाति की भाँति बंद व्यवस्था का नहीं, बल्कि मुक्त व्यवस्था को महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 9.
ग्रामीण आर्थिक संरचना पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण आर्थिक संरचना की विशेषताएँ:

  • कृषि तथा पशुपालन ग्रामीण आर्थिक संरचना का एक प्रमुख आधार है।
  • गाँवों में जजमानी प्रथा भी पाई जाती है। जिससे निम्न जाति के सदस्य सेवा के बदले में वस्तु या नकद राशि प्राप्त करती है।
  • गाँव में प्रत्येक जाति का एक परम्परागत व्यवसाय होता है, व उसी के आधार पर उनके व्यवसाय का निर्धारण होता है जैसे – लुहार, सुनार, धोबी तथा तेली आदि।
  • गाँव की आर्थिक प्रणाली में अब बदलाव होने लगे हैं।

प्रश्न 10.
भारत में धर्म की स्थिति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में धर्म की स्थिति:

  • गाँव में धर्म का विशेष महत्त्व है, जबकि नगरों में अब धर्म को लोग तार्किकता के आधार पर स्वीकारने लगे हैं।
  • गाँव में अंधविश्वास व रूढ़िवादी विचारों की प्रधानता होती है, जबकि नगरों में बुद्धिवादी विचारों की प्रधानता होती है।
  • गाँव में धर्म का पालन व्यक्ति भावनात्मक आधार पर करते हैं जबकि नगरों में धर्मनिरपेक्षता के महत्त्व में वृद्धि हुई है।
  • गाँव में धर्म ने व्यक्तियों को भाग्यवादी बना दिया है, जबकि नगरों में लोग धर्म के स्थान पर कर्म को महत्त्व देते हैं।

प्रश्न 11.
ग्रामीण तथा नगरीय समाज के सन्दर्भ में परिवर्तन, प्रतिमान तथा मूल्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • गाँवों में अनौपचारिक नियंत्रण के साधनों की प्रधानता होती है, जबकि नगरों में औपचारिक साधनों की।
  • गाँवों में किसी भी सदस्य के द्वारा किए गए अपकृत्य के आधार पर उसे गाँव से बहिष्कृत कर दिया जाता है, जबकि नगरों में उसे न्यायालयों के माध्यम से कठोर दंड दिया जाता है।
  • गाँवों में परिवर्तन अब दृष्टिगोचर होने लगा है, जबकि नगरों में परिवर्तनों की गति अति तीव्र है।
  • गाँव के सदस्य प्रतिमानों व मूल्यों का पालन एक कर्त्तव्य के रूप में करते हैं, जबकि नगरों में व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी भी कार्य के संपादन को महत्त्व देते हैं।

प्रश्न 12.
गाँव में मनोरंजन के साधनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
गाँव में मनोरंजन के साधनों की भूमिका:

  • गाँवों में मनोरंजन के परम्परागत साधनों की ही अधिक प्रधानता होती है।
  •  गाँवों में प्रचलित कहानियाँ, लोक – गीत व उत्सव आदि मनोरंजन के मुख्य साधन हैं।
  • गाँवों में तीज – त्यौहारों पर मेले का आयोजन किया जाता है।
  • तकनीकी प्रगति एवं क्रान्ति के कारण अब गाँवों में टी. वी., मोबाइल व रेडियो के साधन भी पाए जाते हैं।

प्रश्न 13.
नगरीय लोगों की फैशन सम्बन्धित अभिरुचियों पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
नगरीय लोगों की फैशन सम्बन्धित अभिरुचियाँ:

  • नगरीय लोगों पर पश्चिमी सभ्यता का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है।
  • नगरीय लोगों के रहन-सहन व जीवन – शैली में काफी बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं।
  • नगरों में महिलाओं व पुरुषों के पहनावे में काफी अन्तर पाया जाता है।
  • नगरों में महिलाओं व पुरुषों में बालों की कटिंग, जींस आदि में तीव्र आधुनिक बदलाव देखने को मिलते हैं।

प्रश्न 14.
गाँव तथा शहरों में पारस्परिक अतनिर्भरता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँव तथ नगरों में पारस्परिक अतर्निर्भरता:

  • गाँव व नगरों की अवधारणा अलग जरूर है, किन्तु वे एक – दूसरे के पूरक भी हैं।
  • प्राचीन काल से ही वस्तुओं व सेवाओं का आदान – प्रदान गाँव से नगरों की ओर होता रहा है।
  • गाँव में भी अब नगरों की भाँति लोग रहन – सहन को अपनाने लगे हैं।
  • कच्चा माल, अनाज, फल – सब्जियाँ आदि के लिए नगर आज भी गाँवों पर निर्भर हैं, जबकि चिकित्सा, उच्च शिक्षा व आजीविका के लिए गाँव नगरों पर निर्भर हैं।

प्रश्न 15.
भारत में जनसंख्या की आयु – संरचना तथा जीवन – प्रत्याशा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
(1) भारत में जनसंख्या की आयु – संरचना:

  • 15 वर्ष से 60 वर्ष आयु वर्ग के लोगों का कुल हिस्सा 1971 में 53 प्रतिशत था, जो कि 2011 में बढ़कर 63 प्रतिशत हो गया है।
  • भारत में 1971 में 15 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों का प्रतिशत 42 था, जो कि 2011 की जनगणना के अनुसार घटकर 29 प्रतिशत पर ही रह गई है।

(2) जीवन – प्रत्याशा:

  • भारत में जीवन प्रत्याशा अन्य देशों की तुलना में कम है।
  • भारत में 2001 में जीवन प्रत्याशा 66.1 वर्ष थी, जो अब 2011 में 69.6 वर्ष है।
  • अब कुछ कारणों से जीवन – प्रत्याशा में वृद्धि हुई है, जैसे – पोषण स्तर में सुधार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता व स्वच्छता आदि।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनांकिकी से सम्बन्धित अवधारणाओं को समझाइए।
उत्तर:
जनांकिकी से सम्बन्धित अवधारणाएँ निम्न प्रकार से हैं –
1. लिंगानुपात: प्रति हजार पुरुषों पर पाई जाने वाली स्त्रियों की संख्या को लिंगानुपात कहते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 2 जनसांख्यिकीय संरचना एवं भारतीय समाज, ग्रामीण-नगरीय संलग्नता और विभाजन 3
भारत में लिंगानुपात 943 है। केरल में सबसे अधिक लिंगानुपात है 1,084 तथा राजस्थान में सबसे कम।

2. जन्म – दर: प्रति हजार पर प्रति वर्ष जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या को जन्म – दर कहते हैं। भारत में जन्म – दर 21.8 है।
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 2 जनसांख्यिकीय संरचना एवं भारतीय समाज, ग्रामीण-नगरीय संलग्नता और विभाजन 4

3. मृत्यु – दर: प्रति हजार बच्चों पर मरने वाले बच्चों की संख्या को मृत्यु – दर कहते हैं। भारत में मृत्यु – दर 7.1 है।
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 2 जनसांख्यिकीय संरचना एवं भारतीय समाज, ग्रामीण-नगरीय संलग्नता और विभाजन 5

4. जीवन – प्रत्याशा: एक व्यक्ति औसत कितने वर्ष तक जीवित रहता है, अर्थात् व्यक्ति की औसत आयु को जीवन – प्रत्याशा कहते हैं। भारत में जीवन – प्रत्याशा 69.6 वर्ष है, जो कि 2020 तक 72 वर्ष होने की संभावना है।

5. पराश्रितता या आश्रितता अनुपात: भारत में 15 वर्ष से कम तथा 64 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों की संख्या को कार्यशील जनसंख्या से भाग देने पर प्राप्त संख्या पराश्रितता जनसंख्या कहलाती है। भारत में 15 वर्ष से कम एवं 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति पराश्रितता जनसंख्या के अंतर्गत आते हैं। भारत में कुल 37 प्रतिशत लोग इसके (आश्रितता) श्रेणी में आते हैं।

6. मातृ मृत्यु – दर: जीवित प्रसूति के प्रति 1000 मामलों में बच्चे को जन्म देते समय मृत्यु को प्राप्त या मरने वाली स्त्रियों की संख्या को मातृ मृत्यु – दर कहते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में जनसंख्या की रचना पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा अधिक जनसंख्या वाला देश है। चीन जनसंख्या विश्व में सबसे अधिक है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान के अनुसार 2022 तक भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश हो जाएगा। भारत में प्रथम जनगणना 1872 में हुई थी। प्रति दस वर्ष में देश की जनगणना होती है। भारत की जनसंख्या की रचना को जानने के लिए जनसंख्या वृद्धि दर, जनघनत्व व साक्षरता आदि अवधारणाओं को जानना आवश्यक है।
1. जनसंख्या का आकार और जनसंख्या वृद्धि:
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ है। आजादी के समय भारत में जनसंख्या वृद्धि अधिक नहीं थी, इस समय देश में जनसंख्या वृद्धि 21.8 है। इसका मुख्य कारण मृत्यु – दर में कमी आना है। उत्तर – प्रदेश सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है, जिसकी जनसंख्या 19.98 करोड़ है। उत्तर – प्रदेश, बिहार, प. बंगाल, महाराष्ट्र तथा राजस्थान राज्य में देश की कुल जनसंख्या का 47.58 प्रतिशत निवास करते हैं।

2. प्रजनन दर – भारत में एक महिला की औसत प्रजनन दर अपने जीवन काल में 1971 में 5.2 थी, जो 2011 में घटकर 2.4 रह गई है। यह अभी भी विकसित राष्ट्रों की प्रजनन दर से अधिक है।

3. जन – घनत्व – एक वर्ग किमी. में निवास करने वाले लोगों की संख्या जन-घनत्व कहलाती है। भारत का जन – घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है। भारत में सर्वाधिक जन – घनत्व बिहार राज्य में 1,102 तथा सबसे कम अरुणाचल प्रदेश में 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है। राजस्थान में जन – घनत्व 201 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है।

4. साक्षरता – भारत में साक्षरता तेजी से बढ़ी है। 1951 में भारत में साक्षरता दर 18.3 थी, जो 1971 में बढ़कर 34.5 हो गई। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है, जिसमें 82.14 प्रतिशत पुरुष साक्षर हैं, जबकि 64.46 प्रतिशत महिलाएँ भी साक्षर हैं। भारत में केरल उच्च साक्षरता वाला राज्य है, जिसमें साक्षरता 91.91 है, जबकि सबसे कम साक्षरता वाला राज्य बिहार है, जहाँ साक्षरता 63.8 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति एवं जनजातियों में भी साक्षरता दर नीची है।
अतः उपरोक्त तथ्यों से यह विदित होता है कि भारत में जनसंख्या की संरचना में अनेक विभिन्नताएँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 3.
ग्रामीण – नगरीय विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण एवं नगरीय विभाजन को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. परिवार:
गाँवों में संयुक्त परिवार पाए जाते हैं, जहाँ सब लोग साथ में रहते हैं, जबकि नगरों में एकाकी परिवार पाए जाते हैं, जहाँ पति – पत्नी व उनके अविवाहित बच्चे साथ में रहते हैं।

2. स्थानीय स्वशासन:
गाँव में पंचायती राज व्यवस्था स्वशासन की इकाई के रूप में कार्य करती है, जबकि नगरों में नगर पालिका व निगम स्वशासन का कार्य करते हैं।

3. धर्म:
गाँव में धर्म का विशेष महत्त्व होता है, जबकि नगरों में धर्म के स्थान पर अब तर्कवाद व बुद्धिवाद की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी हुई, जिससे धर्मनिरपेक्षता का विकास हुआ है।

4. आर्थिक संस्थाएँ:
गाँव में सदस्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि व पशुपालन होता है तथा जजमानी प्रथा भी पाई जाती है। जबकि नगरों में विभिन्न प्रकार के व्यवसाय पाए जाते हैं। नगरों में मुद्रा प्रणाली प्रचलित है।

5. भावना के आधार पर:
गाँवों में सदस्यों के मध्य ‘हम’ की भावना पाई जाती है। जो उन्हें आपस में बांध कर रखती है, जबकि नगरों में ‘में’ की भावना पाई जाती है।

6. नियंत्रण के साधनों के आधार पर:
गाँवों में अनौपचारिक नियंत्रण के साधनों पर लोगों के व्यवहार पर नियंत्रण रखा जाता है, जबकि नगरों में औपचारिक नियंत्रण के साधनों का प्रयोग किया जाता है।

7. सामूहिकता व व्यक्तिवादिता:
गाँवों में सामुदायिक भावना पाई जाती है तथा नगरों में व्यक्तिवादी भावना की प्रधानता होती है।

8. सहयोग व प्रतिस्पर्धा:
गाँव के सदस्यों में सहयोग की भावना का समावेश होता है, जबकि नगरों में प्रतिस्पर्धा व होड़ की भावना की प्रधानता होती है।

9. तकनीकी विकास:
गाँव तकनीकी के क्षेत्र में काफी पिछड़े होते हैं, जबकि नगरों में तकनीकी शिक्षा तथा प्रशिक्षण की सुविधा पाई जाती है।

10. विचारधारा:
गाँव के सदस्यों में परम्परागत विचारधारा पाई जाती है, जबकि नगरों में आधुनिक विचारधारा की प्रवृत्ति पाई जाती है।

11. समरूपता एवं विभिन्नता:
गाँव में व्यवसायों, पहनावा, खान – पान, रहन – सहन, धर्म व जाति आदि में समरूपता पाई जाती है, जबकि नगरों में व्यवसायों, रिवाजों व खान-पान के तरीकों में विषमताएँ पाई जाती है।

प्रश्न 4.
समकालीन भारत में ग्रामीण – नगरीय संलग्नता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समकालीन भारत में ग्रामीण – नगरीय संलग्नता को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –
1. पारस्परिक आत्मनिर्भरता:
गाँव शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, सड़क, संचार, उद्योग व यातायात आदि के लिए नगरों पर निर्भर हैं, जबकि नगर कच्चा माल, फल, सब्जियाँ, अनाज व सेवा कार्य हेतु श्रमिकों के लिए गाँवों पर निर्भर हैं।

2. मिश्रित जीवन:
गाँव व नगर एक – दूसरे के पूरक हैं। दोनों में ही मिली – जुली संस्कृति का अस्तित्त्व पाया जाता है। दोनों में ही मिश्रित जीवन पाया है।

3. गतिशीलता:
दोनों ही क्षेत्रों में गतिशीलता पाई जाती है। गाँवों में लोग अब परम्परागत व्यवसायों को छोड़कर नगरों की ओर अपनी आजीविका कमाने के लिए जाने लगे हैं। नगरीकरण के प्रभाव से लोगों ने गाँव से नगरों की ओर पलायन किया है।

4. जीवन – शैली:
अब गाँवों में भी नगरों की भाँति जीवन – शैली को अपनाया जाता है, जैसे खान – पान में, वेशभूषा में, तौर – तरीकों में आदि में। वही नगरों के लोग गाँवों के सादा जीवन की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

5. जनशक्ति का प्रभाव:
भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। लोकतंत्र में अपने अधिकार की प्राप्ति हेतु अब गाँवों के सदस्य भी नगरों में निवास करने वाले लोगों की भाँति सजग व जागरूक हुए हैं।

6. सांस्कृतिक प्रसार:
गाँव व नगरों में संस्कृति आज भी पाई जाती है। गाँव के लोग कस्बों एवं नगरों में देवी – देवताओं तथा धार्मिक स्थलों पर आते – जाते हैं व अपनी आजीविका कमाने के लिए नगरों की ओर पलायन करते हैं। कभी – कभी नगरों के लोग भी गाँव के प्रसिद्ध स्थलों की ओर आते हैं।

7. व्यावसायिक निर्भरता:
आज गाँव एवं शहर एक – दूसरे के निकट आ रहे हैं। आज यातायात व जनसंचार के साधनों ने ग्रामीण तथा नगरीय संलग्नता को और भी अधिक बढ़ा दिया है।
अत: उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि आज नगरों में ग्रामीण समाज की व ग्रामीण समाजों में नगरों की अनेक विशेषताएँ देखने को मिलती हैं।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जनांकिकी’ का सम्बन्ध किससे है?
(अ) जनसंख्या से
(ब) सामाजिक व्यवस्था से
(स) विकास से
(द) किसी से भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) जनसंख्या से

प्रश्न 2.
भारत में सर्वप्रथम जनगणना किस वर्ष हुई थी?
(अ) 1782
(ब) 1872
(स) 1950
(द) 1972
उत्तरमाला:
(ब) 1872

प्रश्न 3.
किस वर्ष जनगणना अधिनियम बनाया गया था?
(अ) 1748
(ब) 1848
(स) 1948
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) 1948

प्रश्न 4.
‘An Essay on the Principle of Population’ पुस्तक के रचयिता कौन हैं?
(अ) कर्वे
(ब) डेविस
(स) पेज
(द) माल्थस
उत्तरमाला:
(द) माल्थस

प्रश्न 5.
सर्वप्रथम जनगणना किस काल में हुई थी?
(अ) वैदिक काल
(ब) सामंतवादी काल
(स) औपनिवेशिक काल
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) औपनिवेशिक काल

प्रश्न 6.
भौगोलिक क्षेत्र की दृष्टि से भारत किस स्थान पर है?
(अ) तीसरा
(ब) सातवाँ
(स) आठवाँ
(द) दसवाँ
उत्तरमाला:
(ब) सातवाँ

प्रश्न 7.
2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में भारत की कुल जनसंख्या के कितने प्रतिशत लोग निवास करते हैं?
(अ) 5 प्रतिशत
(ब) 5.66 प्रतिशत
(स) 6 प्रतिशत
(द) 6.8 प्रतिशत
उत्तरमाला:
(द) 6.8 प्रतिशत

प्रश्न 8.
भारत की कुल जनसंख्या का 16.5 प्रतिशत लोग किस राज्य में निवास करते हैं?
(अ) राजस्थान
(ब) मध्य प्रदेश
(स) उत्तर प्रदेश
(द) हरियाणा
उत्तरमाला:
(स) उत्तर प्रदेश

प्रश्न 9.
भारत में 2011 की जनगणनानुसार मृत्यु – दर कितनी है?
(अ) 7.5 प्रति हजार
(ब) 7.1 प्रति हजार
(स) 8 प्रति हजार
(द) 9 प्रति हजार
उत्तरमाला:
(ब) 7.1 प्रति हजार

प्रश्न 10.
भारत का जनसंख्या घनत्व है –
(अ) 182 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.
(ब) 282 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.
(स) 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.
(द) 482 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.
उत्तरमाला:
(स) 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.

प्रश्न 11.
भारत में सबसे कम साक्षरता दर वाला राज्य कौन – सा है?
(अ) राजस्थान
(ब) उत्तर प्रदेश
(स) बिहार
(द) पंजाब
उत्तरमाला:
(अ) राजस्थान

प्रश्न 12.
भारत में 2011 में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत है?
(अ) 31.16%
(ब) 30%
(स) 28%
(द) 35%
उत्तरमाला:
(अ) 31.16%

प्रश्न 13.
भारत में बाल लिंगानुपात कितना है?
(अ) 930
(ब) 920
(स) 914
(द) 921
उत्तरमाला:
(स) 914

प्रश्न 14.
जजमानी प्रथा कहाँ पाई जाती है?
(अ) नगरों में
(ब) गाँवों में
(स) कस्बों में
(द) सभी में
उत्तरमाला:
(ब) गाँवों में

प्रश्न 15.
व्यक्तिवादिता कहाँ की विशेषता है?
(अ) नगरों
(ब) गाँव
(स) दोनों में
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) नगरों

प्रश्न 16.
2011 में भारत की कुल जनसंख्या में 15 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों का अनुपात है –
(अ) 42%
(ब) 40%
(स) 29%
(द) 35%
उत्तरमाला:
(स) 29%

प्रश्न 17.
वर्ग का निर्धारण किससे होता है?
(अ) जाति से
(ब) जन्म से
(स) कर्म से
(द) किसी से भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) कर्म से

प्रश्न 18.
गाँव में सबसे छोटी सामाजिक इकाई कौन – सी है?
(अ) परिवार
(ब) जाति
(स) समुदाय
(द) समूह
उत्तरमाला:
(अ) परिवार

प्रश्न 19.
ग्रामीण समुदाय किस पर आधारित होता है?
(अ) सहयोग
(ब) प्रतिस्पर्धा
(स) संघर्ष
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) सहयोग

प्रश्न 20.
सर्वाधिक साक्षरता किस राज्य में पाई जाती है?
(अ) बिहार
(ब) पंजाब
(स) उत्तर प्रदेश
(द) केरल
उत्तरमाला:
(द) केरल

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
डेविस ने जनसंख्या के निर्धारण के कितने आधार बताए हैं?
उत्तर:
डेविस ने जनसंख्या के निर्धारण के दो आधार बताए हैं –

  • सामाजिक व्यवस्था।
  • सामाजिक संगठन।

प्रश्न 2.
आजादी के बाद कितनी बार जनगणना हुई है?
उत्तर:
आजादी के बाद अब तक (2011) 7 बार जनगणना हो चुकी है।

प्रश्न 3.
भारत में जनगणना किस अधिनियम के आधार पर की जाती है?
उत्तर:
भारत में जनगणना अधिनियम 1948 के आधार पर जनगणना की जाती है।

प्रश्न 4.
गुणोत्तर वृद्धि के सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया है?
उत्तर:
‘माल्थस’ ने गुणोत्तर वृद्धि के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है।

प्रश्न 5.
‘माल्थस’ के द्वारा रचित पुस्तक का क्या नाम है?
उत्तर:
‘माल्थस’ की पुस्तक का नाम ‘An Essay on the Principle of Population’ (1798) है।

प्रश्न 6.
उदारवादी विचारकों के अनुसार गरीबी व भुखमरी का क्या कारण है?
उत्तर:
संसाधनों का समाज में असमान वितरण ही गरीबी व भुखमरी का एकमात्र कारण है।

प्रश्न 7.
विकसित देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
अमेरिका, रूस व ब्रिटेन आदि विकसित देश हैं।

प्रश्न 8.
भारत की कुल जनसंख्या का कितना प्रतिशत भाग उत्तर – प्रदेश में निवास करता है?
उत्तर:
भारत की कुल जनसंख्या का 16.5% भाग उत्तर प्रदेश में निवास करता है।

प्रश्न 9.
भारत की आधी जनसंख्या किन पाँच राज्यों में निवास करती है?
उत्तर:
भारत की आधी जनसंख्या उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में निवास करती है।

प्रश्न 10.
कार्यशील जनसंख्या किसे कहते हैं?
उत्तर:
15 वर्ष से 64 वर्ष के आयु वर्ग में आने वाले सदस्यों की संख्या को कार्यशील जनसंख्या कहा जाता है।

प्रश्न 11.
भारत में उच्च साक्षरता दर वाला राज्य कौन – सा है?
उत्तर:
केरल (91.91) उच्च साक्षरता दर वाला राज्य है।

प्रश्न 12.
भारत का जनघनत्व कितना है?
उत्तर:
भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है।

प्रश्न 13.
भारत में 1872 के पश्चात् जनगणना किस वर्ष में हुई थी?
उत्तर:
1872 के पश्चात् भारत में 1881 में जनगणना हुई थी। यह प्रत्येक 10 वर्ष के बाद की जाती है।

प्रश्न 14.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या कितनी है?
उत्तर:
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121 करोड़ है।

प्रश्न 15.
2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान की जनसंख्या कितनी है?
उत्तर:
2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान की जनसंख्या 6.86 करोड़ है।

प्रश्न 16.
‘Vital Statistics’ या जन्म – मरण आंकड़े किसे कहते हैं?
उत्तर:
जन्म – मृत्यु, स्वास्थ्य तथा औसत आयु से सम्बन्धी आंकड़ों को जन्म – मरण आंकड़े कहते हैं।

प्रश्न 17.
विकसित देशों की तुलना में भारत में जन्म – दर कैसी है?
उत्तर:
विकसित देशों की तुलना में भारत में जन्म – दर ऊँची है।

प्रश्न 18.
नगरीय समुदायों में किस प्रस्थिति को महत्त्व दिया जाता है?
उत्तर:
नगरीय समुदायों में अर्जित प्रस्थिति को महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 19.
गाँव में व्यक्ति की पहचान किन आधारों पर होती है?
उत्तर:
गाँव में व्यक्ति की पहचान उसके परिवार एवं नातेदारी सम्बन्धों के आधार पर होती है।

प्रश्न 20.
गाँवों में किन सम्बन्धों की प्रधानता होती है?
उत्तर:
गाँवों में प्राथमिक सम्बन्धों की प्रधानता होती है?

प्रश्न 21.
कौन – सी निम्न जातियाँ उच्च जातियों को सेवाएँ प्रदान करती थीं?
उत्तर:
कुम्हार, धोबी, सुनार, तेली व नाई आदि निम्न जातियाँ सेवाएँ प्रदान करती थी।

प्रश्न 22.
जन – सम्पर्क के प्रमुख साधन कौन – कौन से हैं?
उत्तर:
रेडियो, टी. वी, मोबाइल, इंटरनेट तथा समाचार – पत्र आदि जन – संपर्क के मुख्य कारक हैं।

प्रश्न 23.
नगरों में किस प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं?
उत्तर:
नगरों में द्वितीयक सम्बन्धों की प्रधानता होती है।

प्रश्न 24.
सबसे कम जनसंख्या घनत्व किस राज्य का है?
उत्तर:
अरुणाचल प्रदेश (17) में सबसे कम जनसंख्या घनत्व पाया जाता है।

प्रश्न 25.
महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों से कितनी फीसदी कम है?
उत्तर:
महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों से 17 फीसदी कम है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनांकिकी से क्या आशय है?
उत्तर:
‘Demography’ शब्द जिसका हिन्दी अनुवाद जनांकिकी है। इसकी उत्पत्ति ग्रीक भाषा से हुई है। ‘Demography’ ग्रीक भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। प्रथम शब्द है – Demas (डिमास) जिसका अर्थ होता है मनुष्य व दूसरा शब्द है – Grapho (ग्राफो) जिसका अर्थ होता है – लिखना या अंकित करना। इस प्रकार Demography का शब्दिक अर्थ मनुष्य या जनसंख्या के बारे में लिखना या अंकित करना हुआ।
अतः संक्षेप में शाब्दिक अर्थ में डिमोग्राफी को “जनसंख्या की विशेषताओं का अध्ययन व विश्लेषण करने वाले विज्ञान” के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
जनांकिकी की प्रकृति तथा उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
जनांकिकी की प्रकृति-जनांकिकी वह विज्ञान है, जिसके अंतर्गत जनसंख्या के सभी पक्षों का अध्ययन बड़ी बारीकी से किया जाता है जैसे कि यदि जनसंख्या में परिवर्तन हो रहे हैं तो क्यों हो रहे हैं, इनके क्या परिणाम होंगे। साथ ही इनसे प्राप्त परिणामों से भविष्यवाणी भी की जाती है। अत: यह एक समाजशास्त्रीय श्रेणी का विज्ञान है जो कि अवलोकन पर आधारित है।
जनांकिकी के उद्देश्य:

  • जनसंख्या की वर्तमान अवस्था क्या है व भविष्य में क्या होगी, इस तथ्य का पता लगाना।
  • किसी क्षेत्र में विशेष धर्म, जाति आदि के विषय में जानकारी प्राप्त करना।
  • किसी समाज में जनसंख्या की संरचना को जानना आदि।

प्रश्न 3.
जनांकिकी के क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
जनांकिकी के निम्नलिखित क्षेत्र हैं, जिसके अंतर्गत जनसंख्या सम्बन्धी तथ्यों का अध्ययन किया जाता है –

  • भूगोल सम्बन्धी क्षेत्र – इसमें भौगोलिक वातावरण व उसके घटकों का अध्यययन किया जाता है।
  • समाजशास्त्र सम्बन्धी क्षेत्र – इसके अंतर्गत वैवाहिक स्थिति, पारिवारिक संरचना, जाति, धर्म, शिक्षा आदि के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण का अध्ययन किया जाता है।
  • जैवशास्त्र सम्बन्धी क्षेत्र – इसमें लिंगानुपात, आयु, स्वास्थ्य स्तर आदि का अध्ययन किया जाता है।
  • अर्थशास्त्र सम्बन्धी क्षेत्र – इसमें पूँजी, खाद्य सामग्री, जीवन – स्तर व उत्पादकता आदि का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 4.
जनांकिकी का राजनीतिक महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
जनांकिकी का राजनीतिक महत्त्व निम्नलिखित है –

  • जनसंख्या विषयक समंकों के आधार पर संसद तथा विधानसभाओं के क्षेत्र निश्चित किए जाते हैं।
  • अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों से सम्बन्धित नियम जनसंख्या के आधार पर ही तैयार किए जाते हैं।
  • जनसंख्या के आधार पर ही नगरपालिका व नगर – निगम की स्थापना होती है तथा नगरों को श्रेणियों में विभाजित किया जाता है, महँगाई भत्ते के नियम तैयार किए जाते हैं।
  • भाषा सम्बन्धी प्रांतों के विभाजन में भी जनसंख्या के भाषा सम्बन्धी आँकड़ों से बड़ी सहायता मिलती है।

प्रश्न 5.
जनसंख्या घनत्व से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइए।
उत्तर:
जनसंख्या घनत्व:
किसी क्षेत्र विशेष की जनसंख्या एवं उस क्षेत्र विशेष के क्षेत्रफल (Area) का अनुपात जनसंख्या घनत्व कहलाता है जिसका सूत्र निम्नलिखित है –
जनसंख्या घनत्व = \(\frac { P }{ A } \)
जहाँ
P – सम्पूर्ण क्षेत्र की जनसंख्या है।
A – उस क्षेत्र का क्षेत्रफल (वर्ग किमी.) है।
इसी को किसी विशेष क्षेत्र के लिए इस प्रकार लिख सकते हैं –
जनसंख्या घनत्व = \(\frac { { P }_{ i } }{ { A }_{ i } } \)
जहाँ Pi व Ai क्रमशः i वें क्षेत्र की जनसंख्या एवं क्षेत्रफल है।
प्रकार:

  • सरल घनत्व।
  • आर्थिक घनत्व।
  • कृषि घनत्व।
  • पोषण घनत्व।

प्रश्न 6.
प्रजननता का अर्थ बताइए।
उत्तर:
प्रजनन से आशय किसी स्त्री अथवा उसके किसी समूह द्वारा किसी विशेष समग्र में कुल जन्मे सजीव बच्चों की वास्तविक संख्या से होता है। यदि किसी स्त्री ने कभी भी किसी बच्चे को जन्म दिया हो तो उस स्त्री को प्रजननीय (Fertile) कहा जाएगा।

बैंजामिन के अनुसार, “प्रजननता उस दर का माप है जिसके द्वारा कोई जनसंख्या जन्मों द्वारा अपनी वृद्धि करती है, तथा सामान्यतः इसका मूल्यांकन जन्मे बच्चों की संख्या को जनसंख्या के किसी वर्ग से, जैसे विवाहित युगलों की संख्या अथवा संतानोत्पादक आयु वर्ग की स्त्रियों की संख्या अर्थात् संभावित प्रजननता के किसी उपर्युक्त मापदंड से सम्बन्धित किया जाता है।”

प्रश्न 7.
प्रजननता एवं संतानोत्पादकता में अंतर लिखिए।
उत्तर:
प्रजननता एवं संतानोत्पादकता में निम्न प्रकार से अंतर को दर्शाया जा सकता है –
संतानोत्पादकता – इससे आशय महिलाओं की बच्चों को जन्म देने की शक्ति से है। चाहे उसने बच्चों को जन्म दिया हो या न दिया हो। किन्तु प्रजननता से आशय वास्तव में बच्चों को जन्म देने से है अर्थात् समस्त औरतों को दो भागों में बाँटा जा सकता है, वे औरतें जिनमें संतानोत्पादन की शक्ति ही न हो, उन्हें गैर – संतानोत्पादक कहा जाता है।

संतानोत्पादन शक्ति से युक्त महिलाओं में ही उर्वरता या प्रजननता हो सकती है। संतानोत्पादक महिलाओं में से जो औरतें विवाह करती हैं तथा जिनके विवाह के उपरांत बच्चे हो जाते हैं, उन्हीं में प्रजननता (Fertility) होती है।
अतः वे सभी महिलाएँ जिनमें प्रजननता होती है, उनमें संतानोत्पादकता भी होती है। किन्तु सभी संतानोत्पादक औरतों में उर्वरता होना अनिवार्य नहीं है। प्रजननता हेतु उनका विवाहित होना आवश्यक है।

प्रश्न 8.
जन्म – दर व प्रजननता – दर में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जन्म – दर व प्रजननता – दर में अंतर निम्नलिखित है –

जन्म – दर प्रजननता – दर
जन्म – दर प्रति एक हजार व्यक्तियों के आधार पर ज्ञात की जाती है। यह प्रति एक हजार प्रजनन योग्य अवधि वाली स्त्रियों के आधार पर ज्ञात की जाती है।
साधारणतया जन्म – दर उर्वरता दर से अपेक्षाकृत कम होती है। साधारणतया प्रजननता – दर जन्म – दर से अपेक्षाकृत अधिक है।
जन्म – दर कुल बच्चों की संख्या एवं जनसंख्या वृद्धि के अध्ययन के लिए ज्ञात की जाती है। यह स्त्रियों की प्रजननता का अध्ययन करने के लिए ज्ञात की जाती है।

प्रश्न 9.
शिशु – स्त्री अनुपात की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनगणना विषयक आंकड़ों के आधार पर प्रजननता को मापने के लिए प्रचलित विधि शिशु – स्त्री अनुपात है। जिसे किसी जनसंख्या के 5 वर्ष से कम आयु के शिशुओं तथा प्रजनन आयु वर्ग के अंतर्गत कुल स्त्रियों की संख्या (अर्थात् 15 – 49 वर्ष आयु वर्ग की स्त्रियों की संख्या) के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जाता है। मानव के रूप में इसकी गणना प्रति एक हजार जन्म दे सकने वाली आयु वर्ग की स्त्रियों की जनसंख्या के पीछे 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों के रूप में की जाती है।
RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 2 जनसांख्यिकीय संरचना एवं भारतीय समाज, ग्रामीण-नगरीय संलग्नता और विभाजन 6

प्रश्न 10.
भारत में ऊँची जन्म – दर के क्या कारण हैं?
उत्तर:
भारत में ऊँची जन्म – दर के निम्नलिखित कारण है –
1. जलवायु का गर्म होना:
भारत एक गर्म जलवायु वाला देश है परिणामस्वरूप यहाँ गर्म जलवायु के कारण न केवल कम उम्र में ही लड़कियाँ स्त्रीत्व को प्राप्त कर लेती हैं, बल्कि उनकी प्रजनन अवधि भी लम्बी होती है जिसके कारण जन्म – दर यहाँ अन्य शीत जलवायु वाले देशों से अधिक है।

2. विवाह की अनिवार्यता व सर्वव्यापकता:
भारत में विवाह धार्मिक दृष्टि से एक पवित्र तथा सामाजिक दृष्टि से आवश्यक कार्य है। यह एक धार्मिक संस्कार होने के कारण उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती। धार्मिक दृष्टि से हिन्दुओं में संतानोत्पत्ति स्वर्ग की प्राप्ति व पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए अनिवार्य मानी जाती है। इस कारण भारत का प्रत्येक व्यक्ति इन धार्मिक तथा अनेक सामाजिक मान्यताओं के दबाव व प्रभाव से विवाह जैसे कृत्य को आवश्यक ही नहीं अनिवार्य मानता है।

प्रश्न 11.
भारत में जीवन – प्रत्याशा वृद्धि के कारण लिखिए।
उत्तर:
एक व्यक्ति औसत कितने वर्षों तक जीवित रहता है, इसे जीवन – प्रत्याशा कहते हैं। भारत की औसत जीवन – प्रत्याशा 69.6 प्रतिवर्ष है, जिसकी 2021 तक 72 वर्ष होने की संभावना है।
जीवन – प्रत्याशा के वृद्धि के कारण:

  • देश में चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि होने से समाज में सदस्यों की जीवन – प्रत्याशा में वृद्धि हुई है।
  • साफ – सफाई एवं स्वच्छता के प्रति लोगों की मानसिकता में बदलाव आया तथा वे इन सब के प्रति अधिक सजग व जागरूक हुए हैं।
  • शिक्षा के प्रसार से लोगों में बुद्धिवादी विचारधारा का जन्म हुआ है जिससे उनके जीवन जीने के तरीकों में बदलाव दृष्टिगोचर हुआ है। जिस कारण उनकी जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी हुई है।

प्रश्न 12.
जनसंख्या विस्फोट किसे कहते हैं?
उत्तर:
जनसंख्या विस्फोट का तात्पर्य जनसंख्या की अप्रत्याशित वृद्धि से है जिसका दुष्प्रभाव व्यक्ति के सुख, स्वास्थ्य एवं सम्पत्ति पर, राष्ट्र की प्रगति एवं समृद्धि पर तथा अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा एवं शांति पर पड़ता है व जिसके परिणामस्वरूप आज मानव जाति का अस्तित्त्व खतरे में पड़ गया है। भारत में प्रतिवर्ष जनसंख्या वृद्धि बड़ी ही तेजी से बढ़ रही है जिसने हमारे आर्थिक विकास, प्रशासन, सामाजिक कल्याण आदि को काफी प्रभावित किया है।

भारत आज विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर है। बढ़ती जनसंख्या ने हमारे यहाँ बेकारी तथा गरीबी में वृद्धि की है। इसलिए कहा जाता है कि भारत में जनसंख्या विस्फोट हो रहा है और यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो इसके समाज पर काफी नकारात्मक प्रभाव होंगे।

प्रश्न 13.
जलवायु किस प्रकार जनसंख्या घनत्व को निर्धारित करती है?
उत्तर:
जलवायु जनसंख्या के घनत्व को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। उन क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक है, जो मानसूनी तथा समशीतोष्ण जलवायु वाले हैं। जहाँ की जलवायु अत्यंत ही उष्ण है, वहाँ मानव आवास अत्यंत ही कम है, उदाहरण के लिए – अरब, कालाहारी, याकोहामा, थार आदि का प्रदेश। इसके विपरीत जहाँ की जलवायु अत्यन्त ही ठण्डी है, वहाँ की जनसंख्या की मात्रा अत्यन्त ही न्यून है।

जैसे – ग्रीनलैंड, नार्वे, टुण्ड्रा तथा अलास्का आदि प्रदेश। भारत में केरल, बंगाल तथा बिहार आदि की जलवायु उत्तम है, यही कारण है कि वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक है। असम तथा अरुणाचल प्रदेश की जनवायु अच्छी नहीं है यही कारण है कि वहाँ जनसंख्या का घनत्व न्यून है।

प्रश्न 14.
भारत में तथा नगरों के लोगों के जीवन – शैली में पाए जाने वाले अंतरों का स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • गाँव में लोगों की जीवन – शैली परम्परागत होती है, जबकि नगरों में जीवन – शैली गतिशील होती है।
  • गाँव में लोगों की जीवन – शैली सरल व सादगीपूर्ण होती है, जबकि नगरों में जटिल व विषमतापूर्वक होती है।
  • गाँवों में सदस्यों के कार्यों में सरल श्रम – विशेषीकरण पाया जाता है, जबकि नगरों में जटिल श्रम – विशेषीकरण पाया जाता है।

प्रश्न 15.
जनसम्पर्क एवं जनसंचार के साधन किस प्रकार ग्रामीण – नगरीय संलग्नता को बढ़ाते हैं?
उत्तर:
जनसम्पर्क एवं जनसंचार के साधन निम्न आधारों पर ग्रामीण व नगरीय संलग्नता को बढ़ाते हैं जो इस प्रकार से है –

  • इन साधनों से गाँव के लोगों को नगरीय जीवन के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
  • पक्की सड़कों के निर्माण से गाँव व नगरों की दूरी कम हुई है।
  • नगरों से गाँव तक सरकारी योजनाओं के पहुंचने में कारगर रही है।
  • गाँव भी अब उपभोक्ता बाजारों से जुड़ते जा रहे हैं।

प्रश्न 16.
जनगणना का समाजशास्त्रियों के लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर:
समाजशास्त्रियों के लिए जनगणना का महत्त्व – जनगणना से प्राप्त समंकों द्वारा समाजशास्त्रियों को देश की विभिन्न सामाजिक सूचनाओं की जानकारी प्राप्त हो जाती है। जनसंचार समंकों से देश में जन्म – दर, मृत्यु – दर, स्त्री – पुरुष अनुपात, ग्रामीण – नगरीय जनसंख्या अनुपात तथा जनसंख्या की संरचना आदि की जानकारी भी प्राप्त हो जाती है।

समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे बाल – विवाह, सती प्रथा, दहेज – प्रथा आदि की जानकारी भी प्राप्त होती है। जनगणना के अंतर्गत रोजगार तथा श्रमिक की आयु आदि के विषय में भी सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं जिससे देश में बाल – श्रम की स्थिति की जानकारी भी प्राप्त हो जाती है। इन समंकों के आधार पर रोजगार की स्थिति, परिवार नियोजन, देशांतरण आदि की समस्याओं का अध्ययन भी किया जाता है।

प्रश्न 17.
मृत्यु – दर की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मृत्यु – दर की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  • मृत्यु – दर जीवन की ऐसी प्रमुख घटना है जो जनसंख्या के आकार, गठन एवं वितरण में कमी लाती है।
  • मृत्यु – दर का सम्बन्ध व्यक्ति विशेष से न होकर व्यक्तियों के समूह से होता है।
  • ऊँची मृत्यु – दर अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्था का संकेतक है।
  • सामान्यतया, मृत्यु – दर और मृत्यु का प्रयोग समानार्थक रूप में किया जाता है।
  • मृत्यु एक अनैच्छिक घटना है। इस पर मनुष्य का नियंत्रण नहीं रहता है।

प्रश्न 18.
व्यावसायिक निर्भरता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यातायात के साधन एवं जनसंचार के द्रुतगामी साधनों ने ग्रामीण एवं नगरीय एकता को तेजी से बढ़ाया है। अब लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करने, व्यापार या व्यवसाय करने, कृषि में उत्पादित वस्तुओं के बेचने तथा वस्तुएँ प्राप्त करने एवं अन्य सेवाओं के लिए कस्बों तथा नगरों पर निर्भर रहना पड़ता है। नगरों के कारखानों में उत्पादित माल की ब्रिकी के लिए उपर्युक्त बाजार के रूप में गाँव से अपना सम्पर्क बढ़ाते हैं, जिससे उनके उद्योगों से निर्मित माल गाँव तक आसानी से पहुँचकर बिक सके। उद्योगों में श्रमिकों के रूप में कार्य करके उद्योगों की माँग पूरा करते हैं। साथ ही अपनी आजीविका अर्जित कर अपने स्तर में सुधार लाते हैं और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

प्रश्न 19.
भारत में बाल – लिंगानुपात कम होने के क्या कारण हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में बाल – लिंगानुपात कम होने के निम्नलिखित कारण हैं –

  • कन्याओं के साथ भेद – भाव पूर्व व्यवहार का किया जाना।
  • भ्रूण लिंग की जाँच द्वारा कन्या भ्रूण हत्या का होना।
  • पुत्र प्राप्ति की इच्छा का होना।
  • देश के कानून का कठोर न होना।
  • शिक्षित लोगों के द्वारा चिकित्सकीय सुविधा का अधिक दुरुपयोग किया जाना आदि कारण भारत में बाल – लिंगानुपात के कम होने के लिए जिम्मेदार हैं।

प्रश्न 20.
व्यक्ति का साक्षर होना क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति का साक्षर होना निम्न कारणों से आवश्यक है –

  • भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए व्यक्तियों का साक्षर होना आवश्यक है।
  • शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति को अनेक रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं।
  • शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के जीवन की दशाओं में बदलाव आता है।
  • शिक्षा के द्वारा ही व्यक्तियों को अपने अधिकारों व कर्त्तव्यों की जानकारी उपलब्ध होती है।
  • शिक्षा के द्वारा व्यक्ति की सोचने – समझने की शक्ति का विकास होता है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में जनांकिकी के अध्ययन का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
जनांकिकी के अध्ययन के महत्त्व को निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है जो इस प्रकार से है –
1. जनांकिकी मानव ज्ञान की वह शाखा है, जो जनसंख्या का क्रमबद्ध और व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करती है।

2. आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या और सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम का केन्द्र – बिन्दु जनसंख्या है। इस दृष्टि से भी जनांकिकी का अध्ययन महत्त्वपूर्ण है।

3. रोजगार मानव समाज की मूलभूत आवश्यकता है। जनांकिकी के अंतर्गत रोजगार का भी अध्ययन किया जाता है। इस दृष्टि से भी जनांकिकी का अध्ययन महत्त्वपूर्ण है।

4. जनांकिकी के अंतर्गत हम जनसंख्या वृद्धि की दर का अध्ययन करते हैं। जनसंख्या में वृद्धि की यह दर किसी भी विकास कार्यक्रम का आधार होती है।

5. किसी क्षेत्र विशेष की जनसंख्या के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने में यह सहायक सिद्ध होती है।

6. जनांकिकी का अध्ययन इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य व रहन – सहन के स्तर का अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन किसी भी समाज के संतुलित विकास का महत्त्वपूर्ण अंग है।

7. जनसंख्या की खाद्य सामग्री एक – दूसरे से अंत: सम्बन्धित है। हमारी कोई खाद्य नीति तब तक सफल नहीं हो सकती है, तब तक कि हम जनसंख्या के बारे में वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त न कर लें। जनांकिकी का अध्ययन इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसके अंतर्गत जनसंख्या और खाद्य सामग्री का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।

8. जनांकिकी का अध्ययन जनसंख्या के झुकाव तथा उसके परिणामस्वरूप सामाजिक संगठन की विशेषताओं का अध्ययन करने की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। भारत जैसे देश में जनांकिकी के अध्ययन की बहुत अधिक आवश्यकता है। देश में जनसंख्या ही शक्ति का आधार है, इसलिए यह देश की समस्याओं को प्रमाणित करती है। यही कारण है कि आज के युग में जनांकिकी या जनसंख्याशास्त्र के अध्ययन के महत्त्व में निरंतर वृद्धि होती जा रही है।

प्रश्न 2.
जनांकिकी और समाजशास्त्र का सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनांकिकी और समाज आपस में घनिष्ठ रूप से अंत:सम्बन्धित हैं। जनांकिकी तथा समाजशास्त्र में पाए जाने वाले सम्बन्धों को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं, जो इस प्रकार से है –
1. जनांकिकी जनसंख्या का अध्ययन है और समाज विज्ञान समाज का अध्ययन है, समाज और जनसंख्या एक दूसरे से अंतः सम्बन्धित हैं। जनसंख्या का वास्तविक अध्ययन तब तक पूरा नहीं हो सकता है, जब तक कि समाज का पूर्ण ज्ञान न हो।

2. जनांकिकी में जनसंख्या की प्रकृति और स्वरूप का अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या की इस प्रकृति और स्वरूप का अध्ययन करने के लिए समाज की प्रकृति और स्वरूप का ज्ञान अनिवार्य है, क्योंकि ज्ञान की यह शाखा सामाजिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में ही जनसंख्या का अध्ययन करती है।

3. मैकाइवर ने समाज को सम्बन्धों का जाल माना है। सामाजिक सम्बन्धों के निर्माण के लिए व्यक्ति का होना अनिवार्य है। जनांकिकी इन्हीं व्यक्तियों का अध्ययन करती है।

4. जनांकिकी में मृत्यु – दर का भी अध्ययन किया जाता है, मृत्यु – दर के अनेक कारण हो सकते हैं। इन सभी कारकों का समाज की परिस्थितियों से सीधा सम्बन्ध होता है।

5. जनांकिकी में जनस्वास्थ्य का अध्ययन किया जाता है। जनस्वास्थ्य का यह अध्ययन विज्ञान से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। इसका कारण यह है कि जनस्वास्थ्य की योजना बनाते समय समाज की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाता है।

6. जनांकिकी में जनगणना का अध्ययन किया जाता है। जनगणना में जनसंख्या की प्रकृति और उसके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। एक देश की जनसंख्या का विश्लेषण दूसरे देश से भिन्न होता है। इस भिन्नता का कारण यह है कि प्रत्येक देश की सामाजिक परिस्थितियों में अंतर होता है, जिसके आधार पर जनसंख्या का विश्लेषण किया जाता है। सामाजिक परिस्थितियों का अध्ययन समाज विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है। इस दृष्टि से भी समाज विज्ञान और जनांकिकी परस्पर अन्तः सम्बन्धित है।

7. जनांकिकी में जनसंख्या नीति का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत जनसंख्या के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचारों का अध्ययन किया जाता है। एक देश के विद्वानों के विचार दूसरे देश के विद्वानों के विचारों से अलग होते हैं। ये विद्वान जनसंख्या नीति का प्रतिपादन करते हैं। इस नीति का प्रतिपादन करते समय देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाता है। स्पष्टत: जनांकिकी और समाज विज्ञान अन्त:सम्बन्धित हैं।

8. जनांकिकी में जनसंख्या का अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या व्यक्तियों का समूह ही होता है। जनसंख्या पर सामाजिक व्यवस्था, समाजीकरण, शिक्षा तथा सामाजिक एकता का भी प्रभाव होता है व समाजशास्त्रीय घटना जनसंख्या के अस्तित्व के लिए आवश्यक होती है। इस प्रकार जनांकिकी विषय – सामग्री और समाजशास्त्री विषय – सामग्री परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। अतः दोनों विान न केवल परस्पर संबंधित वरन् एक दूसरे के अध्ययन में सहयोगी भी हैं।

9. जनांकिकी में जन्म – दर, मृत्यु – दर, विकास आदि का अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या के इन कारकों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध समाज की परिस्थितियों से है। इस प्रकार जनांकिकी और समाज विज्ञान परस्पर अन्तःसम्बन्धित हैं।

10. जनांकिकी में खाद्य सामग्री व परिवार नियोजन आदि ऐसे विषय हैं, जो समाज की परिस्थितियों पर आधारित होती है। इस प्रकार से ये सभी तत्त्व ऐसे हैं, जिनका समान रूप में जनांकिकी और समाज विज्ञान में अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 3.
प्रजननता को प्रभावित करने वाले सामाजिक तत्त्वों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विकसित एवं विकासशील देशों में प्रजननता दरों में अंतर पाया जाता है। किसी एक देश के विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा धार्मिक आदि समुदायों में देश की औसत जन्म – दर से कम अथवा अधिक होने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। प्रजननता को प्रभावित करने वाले अनेक सामाजिक तत्त्व हैं, जो निम्नलिखित हैं –
1. जैविकीय तत्त्व:
इन तत्त्वों में स्वास्थ्य सम्बन्धी परिस्थितियाँ, विभिन्न रोग, गुप्त रोग अथवा बांझपन आदि का समावेश होता है। ये विभिन्न तत्त्व स्वास्थ्य विषयक हैं तथा देश में उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं पर आधारित रहते हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं में विस्तार संतानोत्पादन शक्ति में वृद्धि करता है तथा मृत्यु-दर में कमी आ जाती है। विगत वर्षों में विश्व जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि का एक प्रमुख कारण स्वास्थ्य सुविधाओं में विस्तार का होना है।

2. परोक्ष सामाजिक तत्त्व:
ऐसे तत्त्व सामाजिक रीति-रिवाजों के मार्ग से प्रजननता को प्रभावित करते हैं। सामान्यतः इन्हें सामाजिक तत्त्व कहा जाता है। ये विभिन्न तत्त्व प्रजननता को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। इसमें प्रमुख तत्त्व हैं –

  • विवाह की आयु।
  • तलाक एवं अलगाव।
  • बहुपत्नी प्रथा।
  • पति – पत्नी के बीच सामाजिक अथवा धार्मिक कारणों से अलगाव।
  • प्रसव के उपरान्त अलगाव की समयावधि।
  • विवाहोपरान्त अस्थायी आत्मसंयम आदि।

3. प्रत्यक्ष सामाजिक तत्त्व – प्रत्यक्ष सामाजिक तत्त्वों के अंतर्गत उन तत्त्वों का समावेश किया जाता है, जो जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित करते हैं। इन तत्त्वों के अंतर्गत जनसंख्या नियंत्रण के विभिन्न उपायों का सामवेश किया जाता है। ये तत्त्व प्रजननता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। ये तत्त्व अनेक हैं; जैसे –

  • महिलाओं का सामाजिक स्तर।
  • परिवार का आकार एवं संरचना।
  • सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्य।
  • रोजगार एवं व्यवसाय।
  • सामाजिक गतिशीलता।
  • नगरीकरण।
  • शिक्षा एवं आय।

4. अन्य सामाजिक तत्त्व:
1. सामाजिक:
आर्थिक स्तर – लोगों का सामाजिक – आर्थिक स्तर भी प्रजननता को प्रभावित करता है। सामान्य तौर पर यह देखा जाता है कि उच्च सामाजिक स्तर के लोगों की अपेक्षा निम्न सामाजिक स्तर के लोगों में प्रजननता दर अधिक पाई जाती है। निम्न आर्थिक स्तर के लोग बच्चों को स्वयं पर भार नहीं मानते हैं, क्योंकि एक ओर तो उनके लालन – पालन पर कोई विशेष व्यय नहीं होता है तथा दूसरी ओर वे कम आयु में ही परिवार की आय में वृद्धि करना प्रारम्भ कर देते हैं।

2. बच्चों के प्रति दृष्टिकोण:
परिवार में बच्चों की संख्या का निर्धारण एक व्यक्तिगत विषय है। इस सम्बन्ध में निर्णय लेते समय एक परिवार अपनी प्रतिष्ठा, सामाजिक स्तर तथा आर्थिक साधनों का अत्यधिक ध्यान रखता है। निम्न आर्थिक स्तर के लोगों में प्रजननता अधिक पाई जाती है, क्योंकि उनके लिए संतानें मौद्रिक आय में वृद्धि का प्रमुख साधन होती हैं। दूसरी ओर उच्च आर्थिक स्थिति के लोगों में प्रजननता कम होती है क्योंकि बच्चों के लालन – पालन, शिक्षा आदि पर अधिक व्यय करना पड़ता है तथा बच्चे ऊँची आयु में ही आर्थिक गतिविधियाँ प्रारम्भ करते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में जन्म – दर के उच्च होने के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में जन्म – दर के उच्च होने के कारणों का वर्णन निम्न प्रकार से है –
1. कम आयु में विवाह करने की प्रथा:
धार्मिक मान्यताओं के प्रभाव के कारण भारत में बाल – विवाह की प्रथा सभी जगह पाई जाती है। धर्मशास्त्रों में यह कहा गया है कि यदि माता – पिता कन्या का विवाह उसके रज:स्राव के पूर्व नहीं कर देते तो वह घोर पाप के भागी होते हैं। आज भी बाल – विवाह सम्पूर्ण भारत में एक लोकप्रिय प्रथा के रूप में प्रचलित है जिसका स्वाभाविक परिणाम उच्च जन्म – दर है।

2. सामाजिक एवं धार्मिक अंधविश्वासों का होना:
विवाह की अनिवार्यता, संतान को ईश्वरीय देन के रूप में स्वीकार करने की प्रवृत्ति तथा जन्म नियंत्रण के कृत्रिम साधनों को धर्म विरोधी मानने सम्बन्धी रूढ़ियों व अंधविश्वासों आदि सामाजिक व धार्मिक कारणों से भारत में जन्म – दर ऊँची है।

3. परिवार कल्याण के प्रति उदासीनता:
अनेक धार्मिक व सामाजिक मान्यताओं व विश्वासों के कारण भारतीय जनता अभी भी परिवार कल्याण के प्रति उदासीन दिखाई देती है। इन परिस्थितियों में जन्म – दर ऊँची होना बहुत ही सामान्य व स्वाभाविक है।

4. लोगों का निम्न जीवन स्तर:
संतान उत्पादन की प्रबलता भारतीयों में अधिक पाई जाती है। फलतः जन्म – दर उच्च होती है। इस निम्न जीवन स्तर की आर्थिक परिस्थिति में संतान अतिरिक्त आय का एक साधन होती हैं। इस प्रकार निम्न जीवन स्तर को भारत की उच्च जन्म – दर के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

5. अशिक्षा:
अशिक्षा, अज्ञानता तथा अदूरदर्शिता के कारण जनता अधिक संतानों के सामाजिक व आर्थिक परिणामों को समझ ही नहीं पाती, जिसके कारण समाज में जन्म – दर उच्च रहती है।

6. अविवेकपूर्ण मातृत्त्व:
देश में अशिक्षित महिलाओं का प्रतिशत बहुत अधिक है। वे अशिक्षित माताएँ मातृत्त्व की भूमिका को समझ ही नहीं सकती हैं। अधिक बच्चों को जन्म देने से स्वयं माता व बच्चों के ऊपर इसका क्या दुष्प्रभाव होगा वे इस तथ्य से वाकिफ ही नहीं होती हैं। फलतः देश में जन्म – दर ऊँची है।

7. संतति निग्रह का अभाव:
भारत में अशिक्षा, निर्धनता व अज्ञानता के कारण इन उपायों का प्रयोग अभी भी आवश्यकता से बहुत कम मात्रा में होता है। परिणामस्वरूप संयम तथा इन साधनों के प्रयोग के अभाव में जन्म – दर अधिक है।

प्रश्न 5.
भारत में जनसंख्या – वृद्धि के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं –
1. जन्म – दर की अधिकता तथा मृत्यु – दर में कमी:
भारत में जन्म – दर अपेक्षाकृत बहुत अधिक है। इसका मुख्य कारण अशिक्षा, रूढ़िवादिता व अंधविश्वास है। मृत्यु – दर में कमी का कारण बीमारियों की रोकथाम व स्वास्थ्य स्तर का उच्च होना है।

2. बाल – विवाह:
भारत में बाल – विवाह का प्रचलन है जिसके अंतर्गत कम आयु में ही बच्चों का विवाह करा दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप संतानोत्पत्ति में निरंतर वृद्धि होती है।

3. पुत्र का अधिक महत्त्व:
वंश को चलाने के लिए तथा पिंडदान के लिए पुत्रों की आवश्यकता होती है। पुत्र की लालसा में व्यक्ति अधिक संतानोत्पत्ति करते हैं जिससे जनसंख्या में वृद्धि होती है।

4. संयुक्त परिवार प्रणाली:
यह परिवार सामूहिकता पर आधारित होते हैं। अत: उनका प्रभाव व्यक्ति विशेष पर न पड़कर परिवार पर पड़ता है। इस कारण भी दम्पत्ति यह सोचकर अधिक संतान उत्पन्न करती है कि उसका प्रभाव अकेले उस पर नहीं पड़ेगा।

5. भाग्यवादिता:
भारत के लोग भाग्यवादी होते हैं। वह यह सोचते हैं कि संतान ईश्वर की देन है और वह अपना भाग्य अपने साथ लाते हैं। इस प्रकार की भाग्यवादी विचारधारा से अधिक संतान उत्पन्न होती है। .

6. शिक्षा का अभाव:
शिक्षा के अभाव में लोग जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों से अनभिज्ञ रहते हैं तथा निरंतर गति से बच्चों को जन्म देते रहते हैं।

7. निर्धनता:
इसके कारण लोग अधिक संतानोत्पत्ति करते हैं। उनका मानना है कि जितनी संतान अधिक होगी, उतनी ही आर्थिक सुविधा उन्हें उपलब्ध होगी। यही कारण है कि भारत में बाल – श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है।

8. अन्य कारण:

  • परिवार कल्याण के साधनों के प्रति अनभिज्ञता।
  • शरणार्थियों का आगमन।
  • औसत आयु में वृद्धि।
  • प्रवासी भारतीयों का वापस होना। ये समस्त कारण समाज में जनसंख्या वृद्धि के लिए उत्तरदायी हैं।

प्रश्न 6.
जनसंख्या वृद्धि के सामाजिक प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या वृद्धि के सामाजिक प्रभाव निम्नलिखित हैं –
1. स्वास्थ्य स्तर का गिरना:
जनसंख्या की वृद्धि से खाद्य तथा पौष्टिक पदार्थों की कमी होना स्वाभाविक है। इनके अभाव में लोग शीघ्र ही अनेक बीमारियों व दुर्बलता के शिकार हो जाते हैं।

2. बेरोजगारी में वृद्धि:
जनसंख्या की वृद्धि के परिणामस्वरूप बेकारी का बढ़ना स्वाभाविक है। आज भारत में एक ओर भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होने के कारण हजारों ग्रामीणवासी रोजगार के लिए नगरों में जाते हैं दूसरी ओर नगरों में स्वयं बहुत से पढ़े एवं गैर – पढ़े बेकारी से पीड़ित हैं।

3. व्यक्तिगत विघटन:
जनसंख्या की वृद्धि से देश में अनेक कारक जैसे – भुखमरी, बेकारी तथा मानसिक संघर्ष इत्यादि उत्पन्न हो जाते हैं, जिनके कारण समाज में अपराध, बाल – अपराध, पागलपन तथा आत्महत्या इत्यादि विघटन के विभिन्न रूपों की उत्पत्ति होती है।

4. पारिवारिक विघटन:
घर के सदस्य सीमित साधनों के कारण आपस में लड़ने – झगड़ने लगते हैं। इतना ही नहीं कभी – कभी विवाह – विच्छेद तथा पृथक्करण की स्थिति आ जाती है।

5. सामुदायिक विघटन:
जनसंख्या के वृद्धि से विभिन्न रूप जैसे – निर्धनता, बेरोजगारी, अराजकता तथा विभेदीकरण इत्यादि विकसित हो जाते हैं जिससे सामुदायिक विघटन को बढ़ावा मिलता है।

6. शिक्षित बेरोजगारी:
जनसंख्या वृद्धि का सबसे बड़ा दुष्परिणाम शिक्षित बेरोजगारी के रूप में देखने को मिलता है। यह बेरोजगारी की स्थिति न केवल छात्रों के लिए दुखदायी व अभिशाप सिद्ध होती है बल्कि यह स्थिति परिवार, समाज तथा देश के लिए भी हानिकारक साबित होती है।

7.जीवन स्तर का गिरना:
निर्धनता के कारण देश का तीव्र गति से प्रौद्योगिक तथा आर्थिक विकास नहीं हो पाता है। इसके अतिरिक्त जनसंख्या के आधिक्य से रोटी, कपड़ा और मकान तथा अन्य सामग्रियों का सदैव अभाव बना रहता है। फलस्वरूप लोगों के रहन – सहन का स्तर निरंतर गिरता जाता है।

8. शिक्षा के स्तर में हास:
शिक्षण संस्थाओं में छात्रों की संख्या में वृद्धि के कारण शिक्षा का परिमाणात्मक विकास तो अवश्य हुआ, किन्तु गुणात्मक विकास न हो सका।

प्रश्न 7.
मृत्यु समंकों के प्रभावों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मृत्यु सम्बन्धी घटनाओं का अध्ययन एवं प्रमापन न केवल जनांकिकीय विश्लेषण के लिए आवश्यक है, बल्कि अच्छे स्वास्थ्य के स्तर को प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य एवं चिकित्सीय दृष्टि से भी आवश्यक होता है। इसके प्रभावों को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –
1. परिवार का आकार:
मृत्यु की बारंबारता परिवार के आकार को निश्चित करती है। जिस समाज में मृत्यु – दर उच्च होती है, वहाँ प्रायः संयुक्त परिवार व्यवस्था पनपती है किन्तु जहाँ मृत्यु – दर नीची होती है, वहाँ एकाकी परिवार व्यवस्था होती है।

2. आत्मविश्वास को ठेस पहुँचना:
मृत्यु की घटनाएँ मनुष्य के आत्मविश्वास को ठेस पहुँचाती हैं। निरंतर होने वाली पारिवारिक मृत्यु से मनुष्य हतोत्साहित एवं उदासीन बन सकता है। कभी – कभी वह ईश्वर को कोसने लगता है और नास्तिक बन जाते हैं।

3. भविष्य के प्रति मानसिकता:
जिस समाज में मृत्यु – दर ऊँची होती है वहाँ व्यक्ति भविष्य के प्रति उदासीन रहता है। बच्चों की शिक्षा पर भी व्यय करने में संकोच करता है।

4. स्वास्थ्य सेवाएँ:
मृत्यु सम्बन्धी समंकों में किसी समाज की स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धि पर प्रकाश डाला जा सकता है। ये मृत्यु के कारणों का भी पंजीकरण करते हैं।

5. शिशुओं के प्रति उदासीनता:
यदि मृत्यु – दर ऊँची होती है, तो माता – पिता अपने बच्चे को अधिक प्यार नहीं करते हैं, उसके प्रति वे अधिक महत्त्वाकांक्षी और आशावादी नहीं होते हैं। फलत: बच्चों का पालन – पोषण अच्छी तरह से नहीं हो पाती है।

6. जीवन – प्रत्याशा:
मृत्यु सम्बन्धी घटनाएँ जीवन प्रत्याशा को भी प्रभावित करती हैं। यह मृत्यु – दर की भूतकालीन प्रवृत्तियों को दर्शाती है। वर्तमान एवं भूतकालीन मृत्यु सम्बन्धी सूचनाओं के आधार पर भविष्य की मृत्यु – दर का अनुमान लगाया जा सकता है, जिससे भविष्य की जनसंख्या का प्रक्षेपण किया जा सकता है।

7. मानसिक संतुलन का विकृत हो जाना:
बाहरी दिखावे की प्रवृत्ति ने व्यक्ति की मानसिकता को पूरी तरह से झुंझला दिया है, जिसके परिणामस्वरूप असंतुलन की बीमारी में वृद्धि होने लगी है।

8. विवाह का स्वरूप:
ऊँची मृत्यु – दर वाले समाज में प्राय: माता – पिता के द्वारा निश्चित की गई शादियाँ की जाती हैं। यही कारण है कि अर्द्ध – विकसित देशों में जहाँ मृत्यु – दर अधिक होती है, तय विवाहों की परम्परा है।

प्रश्न 8.
मृत्यु क्रम को नियंत्रित करने वाले घटकों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वर्तमान में अधिकांश देशों में मृत्यु – दर घट रही है। पिछली शताब्दी में बढ़ती हुई मृत्यु – दर को नियंत्रित करके उसे बहुत कम कर देना एक अविश्वसनीय उपलब्धि रही है।
जनांकिकीय अध्ययनों के आधार पर मृत्यु क्रम में गिरावट आने के निम्नलिखित कारण हैं –
(1) सामाजिक सुधारों का गहन प्रभाव:

  • 19वीं सदी के मध्य में शहरों के पर्यावरण में काफी सुधार किया गया।
  • कार्य की दशाओं में काफी क्रांतिकारी परिवर्तन किए गए, जिसका अच्छा प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ा।
  • देशों में कारखानों के नियम निश्चित किए गए, जिनके द्वारा बच्चों एवं औरतों के काम करने के अधिकतम घंटों को निर्धारित किया गया।
  • कार्य करने की कम – से – कम उम्र में वृद्धि की गई तथा काम करने के भौतिक वातावरण में सुधार किए गए।

(2) आर्थिक विकास एवं आय में वृद्धि हो जाना:

  • आय बढ़ने के कारण लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ।
  • आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ।
  • आर्थिक विकास के होने से महामारियों पर भी नियंत्रण कर लिया गया, जिसके कारण मृत्यु – दर में अत्यधिक कमी आई।

(3) जनस्वास्थ्य कार्यक्रमों का तीव्र विकास:

  • इन कार्यक्रमों से संक्रामक रोगों से होने वाले मृत्यु को नियंत्रित किया गया है।
  • इन कार्यक्रमों से लोगों के स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ है।

(4) स्वयं की एवं वातावरण की स्वच्छता:

  • 19वीं सदी के अंत तक पानी में वाटर – फिल्टर का प्रयोग प्रारम्भ हो गया था।
  • पानी से उत्पन्न बीमारियों जैसे पीलिया, हैजा, प्लेग तथा पेचिश से होन वाली मौतों पर नियंत्रण किया गया।
  • स्वयं की स्वच्छता के लिए भी लोगों ने अनेक वस्तुओं का प्रयोग किया।

प्रश्न 9.
जनसंख्या घनत्व को निर्धारित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या घनत्व को निर्धारित करने वाले कारकों को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –
1. जनवायु:
जहाँ की जलवायु अधिकतम उष्ण है; वहाँ मानव आवास अत्यंत ही कम है, जबकि उन क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक है, जो मानसूनी तथा समशीतोष्ण जलवायु वाले हैं। भारत में केरल, बंगाल व बिहार में जलवायु अच्छी है, इस कारण वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक है, जबकि असम व अरुणाचल प्रदेश की जलवायु अच्छी नहीं है। इस कारण वहाँ जनसंख्या का घनत्व न्यून है।

2. यातायात के साधन:
जहाँ यातायात के साधनों का आभाव होता है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व कम होता है, जबकि जिन क्षेत्रों में इन साधनों की उपलब्धता होती है वहाँ जनसंख्या का घनत्व भी अधिक पाया जाता है।

3. राजनीतिक कारण:
उन नगरों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है, जो राज्य सरकारों की राजधानी होते हैं। दिल्ली की जनसंख्या में इस गति से वृद्धि का कारण दिल्ली का भारत की राजधानी होना है।

4. ऐतिहासिक कारण:
ऐतिहासिक कारण भी जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करते हैं। भारत में आगरा, बनारस, अजमेर आदि में ऐतिहासिकता के कारण ही जनसंख्या का घनत्व अधिक पाया जाता है।

5. सुरक्षा – सुविधाएँ:
प्रत्येक व्यक्ति अपनी सम्पत्ति व जीवन की सुरक्षा चाहता है। उन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है, जहाँ व्यक्ति को अपने जान – माल का भय न हो। इसके विपरीत जहाँ सुरक्षा न हो वहाँ घनत्व कम पाया जाता है।

6. धार्मिक कारण:
भारत एक धर्मप्रधान देश है। भारत के धार्मिक स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक पाया जाता है, जबकि साधारण शहरों व स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व कम पाया जाता है।

7. आवास – प्रवास:
किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने में आवास-प्रवास की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। 1947 के बाद भारत में काफी आवास – प्रवास हुआ है, इसके कारण भी जनसंख्या के घनत्व में अन्तर आया है।

8. शैक्षणिक कारण:
जहाँ शिक्षा की सुविधाएँ नहीं होती हैं वहाँ जनसंख्या का घनत्व कम होता है, जबकि शिक्षा की सुविधाएँ अधिक होती हैं, वहाँ जनसंख्या काफी अधिक पाई जाती है।

प्रश्न 10.
ग्राम – नगरीय नैरन्तर्य (सातत्य/संलग्नता) की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए इसकी स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आज ग्राम एवं नगर आदर्श रूप में विद्यमान नहीं हैं वरन् गाँव नगरों की विशेषताओं को ग्रहण करते जा रहे हैं तथा नगर भी ग्रामीण जीवन की अनेक बातों को नवीन रूप में स्वीकार कर रहे हैं। इन दोनों में परस्पर यह आदान-प्रदान की प्रक्रिया ही ग्राम – नगर नैरन्तर्य (Rural urban continuum) के नाम से जानी जाती है।
निम्नलिखित आधारों पर हम ग्रामीण-नगरीय संलग्नता को स्पष्ट कर सकते हैं –
1. गतिशीलता:
नगरीय प्रभावों के कारण गाँवों में भी गतिशीलता बढ़ रही है। अब ग्रामीण लोग अपने पुराने व्यवसायों को त्यागकर शहरों में रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं।

2. परिवार की प्रवृत्ति पर प्रभाव:
गाँव की संयुक्त परिवार प्रणाली भी अब विघटित होने लगी है, उसके स्थान पर एकाकी परिवारों का चलन बढ़ रहा है।

3. मानवशक्ति का प्रभाव:
प्रजातंत्र में दबाव समूह बनाने के लिए प्रदर्शन व आंदोलन आदि करने पड़ते हैं, इसके लिए जनशक्ति गाँवों से उपलब्ध होती है।

4. मिश्रित जीवन:
ग्रामीण जीवन पर नगरीय प्रभाव तथा नगरीय जीवन पर ग्रामीण प्रभाव स्पष्ट देखे जा सकते हैं, अब गाँवों में भी नगरों की तरह मिली – जुली संस्कृति व जीवन – शैली दृष्टिगोचर होती है।

5. तकनीक का प्रसार:
नगरों के सम्पर्क के कारण गाँवों में तकनीक का प्रसार हो रहा है। जैसे मोबाइल, वाहन व अन्य उपकरणों का प्रयोग गाँवों में दृष्टिगोचर होने लगे हैं।

6. फैशन की प्रवृत्ति:
नगरों के भाँति गाँवों में भी अब सदस्यों में फैशन की प्रवृत्ति पाई जाती है। वे भी नगरों की भाँति वेशभूषा व रहन – सहन को अब अपनाने लगे हैं।

7. सांस्कृतिक प्रसार:
दोनों ही स्थानों पर सांस्कृतिक प्रसार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। नगरों के सदस्य भी गाँवों की संस्कृति, उनके रिवाज व स्थलों पर जाकर उनका अनुसरण किया करते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 1 भारतीय समाज के संरचनात्मक, सांस्कृतिक पहलू एवं विविधता की चुनौतियाँ, धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं राजनैतिक विभिन्नता में एकता

August 17, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 भारतीय समाज के संरचनात्मक, सांस्कृतिक पहलू एवं विविधता की चुनौतियाँ, धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं राजनैतिक विभिन्नता में एकता

RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
“मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।” कहा है –
(अ) अरस्तू
(ब) मैकाइवर
(स) प्लेटो
(द) दुबे
उत्तरमाला:
(अ) अरस्तू

प्रश्न 2.
‘भारतीय समाज’ उदाहरण है –
(अ) एक समाज का
(ब) समाज का
(स) समुदाय का
(द) संस्था का
उत्तरमाला:
(अ) एक समाज का

प्रश्न 3.
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार भारत में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत है –
(अ) 31.16
(ब) 47.66
(स) 68.84
(द) 68.48
उत्तरमाला:
(स) 68.84

प्रश्न 4.
गाँव को ‘जीवन विधि’ के रूप में किसने परिभाषित किया है?
(अ) टी. एन. मदान
(ब) डी. एन. मजूमदार
(स) एस. सी. दुबे
(द) एम. एन. श्रीनिवास
उत्तरमाला:
(ब) डी. एन. मजूमदार

प्रश्न 5.
‘कास्ट, क्लास एण्ड ऑक्यूपेशन’ पुस्तक किसने लिखी है?
(अ) मैकिम मैरियट
(ब) मिल्टन सिंगर
(स) बी. आर. चौहान
(द) जी. एस. घुर्ये
उत्तरमाला:
(द) बी. आर. चौहान

प्रश्न 6.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार आदिकालीन भारत में अनुसूचित जातियों को क्या कहा जाता था?
(अ) भग्न पुरुष
(ब) बाह्म जाति
(स) ये दोनों
(द) इसमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) ये दोनों

प्रश्न 7.
1931 की जनगणना में अनुसूचित जातियों को क्या कहा गया?
(अ) दलित वर्ग
(ब) बाहरी जाति
(स) अनुसूचित जाति
(द) कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) बाहरी जाति

प्रश्न 8.
अनुसूचित जाति से सम्बन्धित कौन – सा अनुच्छेद भारतीय संविधान में है?
(अ) 339
(ब) 341
(स) 34
(द) 342
उत्तरमाला:
(स) 34

प्रश्न 9.
अनुसूचित जनजाति से सम्बन्धित कौन – सा अनुच्छेद भारतीय संविधान में है?
(अ) 338
(ब) 342
(स) 344
(द) 372
उत्तरमाला:
(ब) 342

प्रश्न 10.
भारतीय समाज में एक मानव के लिए ‘ऋण’ निर्धारित हैं –
(अ) 4
(ब) 7
(स) 5
(द) 9
उत्तरमाला:
(स) 5

प्रश्न 11.
मुस्लिम विवाह में सही विवाह किसको माना गया है?
(अ) निकाह
(ब) मुताह
(स) फासिद
(द) बातिल
उत्तरमाला:
(अ) निकाह

प्रश्न 12.
भारतीय परम्परा में गुण कितने प्रकार के माने गए हैं?
(अ) एक
(ब) पाँच
(स) सात
(द) तीन
उत्तरमाला:
(द) तीन

प्रश्न 13.
भारतीय सनातन परम्परा में जीवन का अन्तिम तथा सर्वोच्च लक्ष्य क्या माना गया है?
(अ) धर्म
(ब) काम
(स) मोक्ष
(द) अर्थ
उत्तरमाला:
(स) मोक्ष

प्रश्न 14.
“धर्म का सम्बन्ध किसी विशेष ईश्वरीय मत से नहीं है अपितु यह आचरण की संहिता है, जो मनुष्य के क्रियाकलापों पर नियंत्रण करती है।” कहा है –
(अ) पाण्डुरंग वामन काणे
(ब) श्रीनिवास
(स) योगेन्द्र सिंह
(द) मजूमदार
उत्तरमाला:
(अ) पाण्डुरंग वामन काणे

प्रश्न 15.
संविधान की आठवीं सूची में कितनी भाषाएँ सम्मिलित हैं?
(अ) 18
(ब) 20
(स) 22
(द) 23
उत्तरमाला:
(स) 22

प्रश्न 16.
2011 की जनगणनानुसार भारत में जन घनत्व है –
(अ) 282
(ब) 382
(स) 482
(द) 182
उत्तरमाला:
(ब) 382

प्रश्न 17.
2011 की जनगणनानुसार भारत में लिंगानुपात कितना है?
(अ) 943
(ब) 942
(स) 939
(द) 843
उत्तरमाला:
(अ) 943

प्रश्न 18.
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता का राष्ट्रीय औसत क्या है?
(अ) 73.4%
(ब) 72.4%
(स) 71.4%
(द) 74.4%
उत्तरमाला:
(द) 74.4%

RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार कुल जनसंख्या में नगरीय आबादी का प्रतिशत कितना है?
उत्तर:
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार कुल जनसंख्या में नगरीय आबादी का प्रतिशत 31.2 है।

प्रश्न 2.
भारत में (2011) कुल नगरीय क्षेत्रों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
भारत में 2011 में कुल नगरीय क्षेत्रों की संख्या 9,481 है।

प्रश्न 3.
जाति अन्तर्विवाह “जाति प्रणाली का सारतत्त्व” है। किसने कहा है?
उत्तर:
उक्त कथन वेस्टरमार्क के द्वारा कहा गया है?

प्रश्न 4.
महात्मा गांधी ने ‘अनुसूचित जाति’ को किस नाम से पुकारा है?
उत्तर:
महात्मा गांधी ने ‘अनुसूचित जाति’ को ‘हरिजन’ के नाम से संबोधित किया है।

प्रश्न 5.
मंडल आयोग का गठन कब किया गया था?
उत्तर:
मंडल आयोग का गठन सन् 1977 में किया गया था।

प्रश्न 6.
सम्बन्धों के आधार पर परिवार कितने प्रकार के पाए जाते हैं?
उत्तर:
समाज में सम्बन्धों के आधार पर परिवार के दो प्रकार पाए जाते हैं –

  1. जन्म सम्बन्धी परिवार।
  2. विवाह सम्बन्धी परिवार।

प्रश्न 7.
सनातन धर्म में विवाह को कितने जन्मों का साथ माना गया है?
उत्तर:
सनातन धर्म में विवाह को सात जन्मों का एक जन्म – जन्मांतर का साथ माना गया है।

प्रश्न 8.
‘मुताह विवाह’ किस धर्म का उदाहरण है?
उत्तर:
‘मुताह विवाह’ मुस्लिम धर्म का उदाहरण है।

प्रश्न 9.
विवाह एक ‘स्थायी समझौता’ है, किस धर्म की मान्यता है?
उत्तर:
ईसाई विवाह में विवाह को स्त्री – पुरुष के मध्य एक ‘स्थायी समझौता’ की मान्यता है।

प्रश्न 10.
‘Modernization of Indian Traditions’ पुस्तक के लेखक का नाम बताइए।
उत्तर:
डॉ. योगेन्द्र सिंह इस पुस्तक के लेखक हैं।

प्रश्न 11.
परम्पराओं का सर्वाधिक प्रमाणिक स्रोत कौन – सी परम्पराएँ हैं?
उत्तर:
परम्पराओं का सर्वाधिक प्रमाणित स्रोत शास्त्रीय परम्पराएँ हैं; जैसे – वेद, उपनिषद्, अर्थशास्त्र तथा रामायण आदि।

प्रश्न 12.
“भारत की लोक परम्परा में निहित चिंतन तथा दर्शन को समझने की सर्वाधिक आवश्यकता है।” किसने कहा है?
उत्तर:
डॉ. इंद्रदेव ने उक्त कथन को प्रस्तुत किया है, उनका मानना था, कि भारत की लोक परम्परा में निहित चिंतन तथा दर्शन को समझने की सर्वाधिक आवश्यकता है।

प्रश्न 13.
‘मोक्ष’ को बौद्ध क्या कहते हैं?
उत्तर:
‘मोक्ष’ को बौद्ध ‘निर्वाण’ कहते हैं। बौद्ध दर्शन में मोक्ष को जीवन – मुक्ति और विदेह – मुक्ति के रूप में माना गया है।

प्रश्न 14.
देश की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या किस क्षेत्र में निवास करती है?
उत्तर:
गंगा – सिंधु के मैदान में देश की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।

प्रश्न 15.
‘थार का मरुस्थल’ किस राज्य में स्थित है?
उत्तर:
‘थार का मरुस्थल’ राजस्थान में स्थित है।

प्रश्न 16.
राजस्थान में 2011 की जनगणनानुसार लिंगानुपात कितना है?
उत्तर:
राजस्थान में 2011 की जनगणनानुसार लिंगानुपात 928 है। ग्रामीण क्षेत्रों में लिंगानुपात 933 तथा शहरी या नगरीय क्षेत्र में 914 लिंगानुपात है।

प्रश्न 17.
‘घूमर’ किस राज्य का नृत्य है?
उत्तर:
‘घूमर’ राजस्थान का प्रसिद्ध लोकनृत्य है।

प्रश्न 18.
‘द्वारिका’ भारत में किस दिशा में स्थित है?
उत्तर:
‘द्वारिका’ भारत में, पश्चिम दिशा में स्थित है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संरचना को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
संरचना शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग समाजशास्त्र में हरबर्ट स्पेंसर ने किया था। संरचना शब्द की उत्पत्ति सम् + रच् + मुच् से हुई है। रच् धातु से अभिप्राय प्रतियत्न अर्थात् गुणाधानपूर्वक प्रयत्न करने से है। जब समाज की संपूर्ण इकाई क्रमबद्ध रूप से मिलकर एक निश्चित व्यवस्था का निर्माण करती है तब उसे सामाजिक संरचना कहा जाता है।
विशेषताएँ”

  1. इकाइयों की क्रमबद्ध व्यवस्था – सामाजिक संरचना समाज की इकाइयों की एक क्रमबद्ध व्यवस्था है। जिससे समाज के स्वरूप का ज्ञान होता है।
  2. उपसंरचनाओं द्वारा निर्मित – समाज की संरचना अनेक उपसंरचनाओं के द्वारा निर्मित होती है।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक संरचना समाज की सम्पूर्ण संरचना को प्रदर्शित करता है। इससे समाज की आंतरिक तथा बाहरी स्वरूप का ज्ञान होता है। टी. वी. बोटोमोर के अनुसार – समाज की प्रधान संस्थाओं व समूहों के जटिल सम्पूर्ण को सामाजिक संरचना माना है।
सामाजिक संरचना के लक्षण:

  1. सामाजिक संरचना स्थानीय विशेषताओं से प्रभावित होती है।
  2. यह अपेक्षाकृत एक स्थायी अवधारणा है।
  3. यह अमूर्त होती है।
  4. संरचनाओं में अनेक सामाजिक प्रक्रियाएँ भी पाई जाती हैं।

प्रश्न 3.
गाँव की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
गाँव की विशेषताओं को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. गाँव के सदस्य प्राथमिक कार्यों पर निर्भर होते हैं।
  2. गाँव के सदस्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि होता है।
  3. गाँव के सदस्यों के मध्य प्राथमिक सम्बन्धों की प्रधानता होती है।
  4. गाँव में जजमानी प्रथा भी पाई जाती है।
  5. गाँव के सदस्यों में हम की भावना पाई जाती है।
  6. गाँव में जातीय संस्तरण की व्यवस्था भी पाई जाती है।

प्रश्न 4.
कस्बे को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार कस्बे की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार से है –

  1. नगरपालिका, नगर निगम, छावनी – बोर्ड या अधिसूचित नगर क्षेत्र समिति आदि सहित सभी सांविधिक स्थान।
  2. एक ऐसा क्षेत्र जो एक साथ तीन शर्तों को पूरा करता हो –
    (अ) कम – से – कम 50% जनसंख्या कार्यरत हो।
    (ब) कम – से – कम 75% कार्यरत पुरुष गैर – कृषि कार्यकलापों में लगे हों।
    (स) जनसंख्या का घनत्त्व कम से कम 40 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो।

प्रश्न 5.
गोविन्द सदाशिव घुरिये के अनुसार जाति की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
डॉ. गोविन्द सदाशिव घुरिये ने समाज में जाति की छः विशेषताओं का उल्लेख किया है –

  1. समाज का खंडों में विभाजित होना।
  2. समाज में जाति पर आधारित एक संस्तरण का पाया जाना।
  3. भोजन तथा सामाजिक सहवास पर प्रतिबन्धों का होना।
  4. विभिन्न जातियों की सामाजिक एवं धार्मिक निर्योग्यताएँ तथा विशेषाधिकार का होना।
  5. पेशों के चयन पर रोक।
  6. विवाह सम्बन्धी प्रतिबन्धों का पाया जाना।

प्रश्न 6.
‘अन्य पिछड़े वर्ग’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संविधान के भाग 16 में ‘अन्य पिछड़े वर्ग’ शब्द का प्रयोग किया गया है। समाज में अनुसूचित जाति तथा जनजातियों के अतिरिक्त कुछ ऐसी जातियाँ हैं जिनकी सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति सम्पन्न वर्गों की तुलना में समाज में कमजोर तथा निम्न है, उन्हें समाज में ‘पिछड़ा वर्ग’ के नाम से संबोधित किया जाता है। सन् 1977 में मंडल आयोग का गठन किया गया, जिसके अंतर्गत 3 अप्रैल, 1982 को रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि भारत में 3,743 जातियाँ पिछड़ी जाति के अंतर्गत आती हैं, जो कि सामाजिक तथा आर्थिक रूप से कमजोर हैं। देश में इनकी आबादी 52 प्रतिशत है। राजस्थान में अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 21 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था भी की गई है।

प्रश्न 7.
कर्म कितने प्रकार के होते हैं? लिखिए।
उत्तर:
भागवत गीता में यह स्पष्ट किया गया है कि जीवन में व्यक्ति तीन प्रकार की क्रियाओं का संपादन करता है –

  1. मन से (मनसा)।
  2. वाणी से (वाचा)।
  3. शरीर से (कर्मणा)।

इसी के आधार पर समाज में तीन प्रकार के कर्म पाए जाते हैं –

  1. संचित कर्म – वह कर्म जो व्यक्ति द्वारा पिछले जन्म में किया गया हो।
  2. प्रारब्ध कर्म – पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का फल जो वर्तमान में मनुष्य भुगत रहा है, प्रारब्ध कर्म कहलाता है।
  3. क्रियामान कर्म – वर्तमान समय में जो कर्म व्यक्ति कर रहा है, उसे उसका क्रियामान कर्म माना जाता है।

प्रश्न 8.
पुरुषार्थ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘पुरुषैरीते पुरुषार्थ’ अर्थात् अपने अभीष्ट को प्राप्त करने के लिए उद्यम करना पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ का अभिप्राय उद्यम अथवा प्रयत्न करने से है। पुरुषार्थ जीवन का लक्ष्य है। जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करना है। इसकी प्राप्ति के लिए धर्म, अर्थ व काम पुरुषार्थ, माध्यम है। गीता, उपनिषदों तथा स्मृतियों में भारतीय समज में व्यक्ति के चार मूलभूत कर्त्तव्यों (दायित्त्वों) का उल्लेख मिलता है जो निम्न प्रकार से हैं –

  1. धर्म – धर्म, आचरण पर जोर देता है। धर्म आचरण संहिता के रूप में व्यक्ति को सन्मार्ग पर आगे बढ़ाता है।
  2. अर्थ – इसके अंतर्गत वे साधन, सम्पत्ति अथवा धन हैं जिनके माध्यम से हम अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम हो पाते हैं।
  3. काम – इसका अभिप्राय सभी प्रकार की इच्छाओं अथवा कामनाओं से है। इसके द्वारा समाज में निरंतरता को बनाए रखना आसान होता है।
  4. मोक्ष – मोक्ष का तात्पर्य है – हृदय की अज्ञानता का नाश है। इससे व्यक्ति जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।

प्रश्न 9.
संस्कार कितने माने गए हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
संस्कार से अभिप्राय शुद्धता अथवा पवित्रता से है। संस्कार व्यक्ति के शारीरिक, सामाजिक, बौद्धिक और धार्मिक परिस्कार के निमित्त की जाने वाली प्रक्रिया है। समाज में अधिकांश विद्वानों ने 16 संस्कार को माना है जिसमें से कुछ संस्कारों का वर्णन इस प्रकार है –

  1. जातकर्म – पुत्र उत्पन्न होते ही तुरन्त पश्चात् पिता द्वारा शहद एवं दही शिशु की जीभ पर लगाया जाता है।
  2. नामकरण – जन्म के दसवें अथवा बारहवें दिन नामकरण किया जाता है।
  3. अन्नप्राशन – जन्म के छठे मास में बालक को ठोस आहार दिया जाता है।
  4. विद्यारभ – देवताओं की स्तुति के साथ अक्षर ज्ञान प्रारम्भ करवाना।

प्रश्न 10.
मुस्लिम विवाह के प्रकार बताइए।
उत्तर:
मुस्लिम विवाह के मुख्यतः चार प्रकार है, जो निम्न प्रकार से हैं –

  1. निकाय या वैध विवाह – इस विवाह की प्रकृति स्थायी होती है। यह विवाह पूर्ण रूप से रीति – रिवाजों के अनुसार होता है।
  2. मुताह विवाह – यह अस्थायी विवाह का एक प्रकार है। यह विवाह केवल शिया मुसलमानों में ही पाया जाता है। यह निश्चित अवधि के लिए होता है।
  3. फासिद या अनियमित विवाह – इस विवाह में कुछ समस्याएँ पाई जाती हैं। जिन्हें दूर करने पर विवाह पुनः नियमित हो जाता है।
  4. बातिल विवाह – यह विवाह निषिद्ध कोटि के पुरुष – स्त्री में होता है। ऐसे विवाह कुछ निषेध के कारण मान्य नहीं होते हैं।

प्रश्न 11.
भौगोलिक दृष्टि से भारत के कितने भाग हैं? लिखिए।
उत्तर:
भौगोलिक दृष्टि से भारत के पाँच प्राकृतिक भाग हैं –

  1. उत्तर का पर्वतीय प्रदेश – यह उत्तर में कश्मीर से लेकर पूर्व में असम तक फैला है। यह 2,414 कि. मी. लम्बा है। इसमें अनेक दर्रे एवं घाटियाँ हैं। गंगा, यमुना, बह्मपुत्र एवं सिंधु नदियाँ यहाँ से निकलती हैं।
  2. गंगा – सिंधु का मैदान – यह हिमालय के दक्षिण में स्थित है। यहाँ भारत की लगभग 40% जनसंख्या निवास करती है। हरिद्वार, प्रयाग और वाराणसी पवित्र स्थल स्थित हैं।
  3. दक्षिण का पठार – इसकी आकृति त्रिभुजाकार है। यहाँ बहुमूल्य खनिज पाए जाते हैं। यहाँ द्रविड़ संस्कृति पाई जाती है।
  4. समुद्र तटीय मैदान – दक्षिण के पठारी भाग के पूर्व एवं पश्चिम में समुद्र तटीय मैदान स्थित है। पूर्व एवं पश्चिमी तट पर अनेक बंदरगाह हैं। जैसे – मुम्बई, सूरत तथा कोचीन आदि।
  5. थार का मरुस्थल – राजस्थान का शुष्क व रेतीला भाग थार का मरुस्थल कहलाता है। यहाँ वर्षा कम होती है। वर्ष भर तापमान ऊँचे रहते हैं। यहाँ गर्मी में भीषण गर्मी पड़ती है तथा धूल भरी आंधियाँ चलती हैं।

प्रश्न 12.
भारत में जनांकिकीय विविधता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या की दृष्टि से बहुत विविधता पाई जाती है। भारत, चीन के बाद विश्व का दूसरा अधिक जनसंख्या वला देश बन गया है। भारतीय जनांकिकीय विधिता को अनेक बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. भारत की जनसंख्या का घनत्त्व 382 व्यक्ति/किमी है।
  2. भारत में लिंगानुपात 2011 की जनगणना के अनुसार 943 है।
  3. भारत में 1000 पुरुषों पर 933 महिलाएँ हैं।
  4. भारत में जीवन – प्रत्याशा 71.4 वर्ष है।
  5. भारत में 68.8 प्रतिशत व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र तथा 31.2 प्रतिशत व्यक्ति शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं।

प्रश्न 13.
धार्मिक विभिन्नता में एकता को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, सभी धर्मों को यहाँ फलने – फूलने, प्रचार – प्रसार और आगे बढ़ने की छूट दी गई है। भारत का प्राचीन धर्म सनातन धर्म है। बाहरी आक्रमणकारियों के आने के कारण यहाँ की धार्मिक संरचना में बड़ा बदलाव आया है। भारत में दीपावली होली, ईद आदि त्यौहार देश के सभी लोग मिल – जुलकर मनाते हैं। भारत के कोने – कोने में हिन्दुओं के तीर्थस्थल हैं। देश में सभी धार्मिक सहिष्णुता एवं समन्वय पाया जाता है। सभी धर्म अध्यात्म ईश्वर, अहिंसा, नैतिकता, दया, ईमानदारी आदि में विश्वास करते हैं। देश के सभी लोगों की पहचान एक भारतीय के रूप में की जाती है।

प्रश्न 14.
नगर किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय नगर, गाँवों से अलग जीवन जीने का एक विशिष्ट ढंग और विशिष्ट संकृति का सूचक है। यहाँ (नगरों) जनसंख्या एवं जनघनत्त्व अधिक पाया जाता है। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार नगरीय क्षेत्र के अंतर्गत कस्बे, जनगणना कस्बे तथा बाल विकास को सम्मिलित किया जाता है। नगर बड़े होते हैं। नगर गाँव से अलग जीवन जीने का अलग तरीका तथा बिशिष्ट संस्कृति का सूचक है। यहाँ बेकारी, अपराध, गंदी बस्तियाँ तथा प्रदूषण जैसी समस्याएँ पाई जाती हैं। भारत में कुल नगरों की संख्या 7, 936 है।

प्रश्न 15.
जनजाति को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
एक जनजाति एक ऐसा क्षेत्रीय मानव – समूह है जिसकी एक सामान्य संस्कृति, भाषा, राजनीति संगठन एवं व्यवसाय होता है तथा जो सामान्यतः अन्तर्विवाह के नियमों का पालन करता है।
विशेषताएँ:

  1. जनजाति एक निश्चित भू – भाग में निवास करती है।
  2. इसकी सदस्य संख्या अन्य क्षेत्रीय समुदायों से अधिक होती है।
  3. प्रत्येक जनजाति का एक निश्चित नाम होता है।
  4. एक जनजाति का अपना निजी राजनीतिक संगठन होता है।
  5. एक जनजाति खान – पान, विवाह, परिवार तथा धर्म आदि से सम्बन्धित समान निषेधों का पालन करती है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय समाज के संरचनात्मक पहलुओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक संरचना किसी समूह के आंतरिक संगठन के स्थायी प्रतिमान अर्थात् समूह के सदस्यों के बीच पाए जाने वाले सामाजिक सम्बन्धों का सम्पूर्ण ताना-बाना होता है। इन सम्बन्धों में सामाजिक क्रिया, भूमिकाएँ, प्रस्थितियाँ, संचार – व्यवस्था, श्रम – विभाजन तथा आदर्शात्मक व्यवस्था को सम्मिलित किया जाता है। सामाजिक संरचना को ‘स्वरूप’ के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है। ‘संरचना’ किसी व्यवस्था के स्थिर पक्ष को प्रतिबिंबित करती है। भारतीय समाज के संरचनात्मक पहलुओं को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है
(1) गाँव:

  1. भारतीय गाँव, भारतीय समाज की संरचना का आधारभूत अंग है।
  2. भारत कृषि प्रधान गाँवों का देश है, यहाँ गाँवों की कुल संख्या 6,40,867 (भारत की जनगणना 2011) है।
  3. ग्रामीण समुदाय वह क्षेत्र है, जहाँ कृषि की प्रधानता होती है।
  4. यहाँ प्राथमिक सम्बन्धों की बहुलता पाई जाती है।
  5. स्तरीकरण में प्रत्येक जाति अपने स्तर को दूसरी जाति की तुलना में स्वीकार करती है।

(2) कस्बा:

  1. जनसंख्या आकार, घनत्व आदि के आधार पर नगरीय बस्तियों को कई भागों में विभाजित किया गया है, उनमें एक कस्बा है।
  2. कस्बा भी एक नगरीय क्षेत्र ही है।
  3. कस्बा नगर की तुलना में छोटा होता है।
  4. कस्बा के लिए जनसंख्या का घनत्व कम – से – कम 40 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी होना चाहिए।

(3) नगर:

  1. भारतीय नगर, गाँवों से अलग जीवन जीने का एक विशिष्ट संस्कृति का सूचक है।
  2. नगरों में जनसंख्या का घनत्व अधिक पाया जाता है।
  3. भारत में 7,936 नगर हैं।
  4. नगरों में 31.16% जनसंख्या निवास करती है।
  5. नगरों में औपचारिकाताओं का पालन अधिक किया जाता है।
  6. नगरों में द्वितीयक सम्बन्धों की प्रधानता होती है।
  7. नगरों में श्रम – विभाजन तथा विशेषीकरण पाया जाता है।
  8. नगरों में लोगों को रोजगार के नए अवसर प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय समाज में सांस्कृतिक पहलू कौन – कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज के सांस्कृतिक पहलुओं पर अनेक बिन्दुओं के माध्यम से प्रकाश डाला जा सकता है –
(1) धर्म:
भारत में अनेक धर्मों, भाषाओं व मतों को मानने लोग रहते हैं। हिन्दू धर्म को मानने वाले सदस्यों की संख्या यहाँ सर्वाधिक, जबकि मुस्लिम, ईसाई, जैन, बौद्ध व सिक्ख धर्म को मानने वाले सदस्यों की संख्या कम है, इस कारण इन्हें अल्पसंख्यक भी कहते हैं।

(2) विवाह:

  1. विवाह भारतीय समाज में परिवार की प्रमुख आधारशिला है।
  2. विवाह के माध्यम से ही व्यक्ति चार पुरुषार्थों – धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति करता है।
  3. हिन्दू धर्म में विवाह को एक धार्मिक कृत्य या संस्कार माना गया है।
  4. विवाह के माध्यम से ही व्यक्ति पाँच ऋणों को पूरा कर सकता है।

(3) नातेदारी:
सामाजिक रूप से मान्यता प्राप्त ऐसे सम्बन्ध जो रक्त, विवाह एवं दत्तकता पर आधारित होते हैं, उसे नातेदारी कहते हैं। नातेदारी व्यवस्था ही समाज में विवाह एवं परिवार के स्वरूप वंश, उत्तराधिकार एवं पदाधिकार का निर्धारण, आर्थिक हितों की सुरक्षा, सामाजिक दायित्वों का निर्वहन सम्बन्धी व्यवस्था का निर्धारण एवं सृजन करती है। श्रीमती इरावती कर्वे, ए. सी. नय्यर, मदान, गफ, लूई ड्यूमा तथा मैकोफन आदि ने भारत में नातेदारी व्यवस्था का विस्तारपूर्णक अध्ययन किया है।

(4) परम्पराएँ:
परम्परा का सम्बन्ध प्राचीनता से है। यह भूतकाल व वर्तमान के मध्य एक कड़ी का कार्य करती है। डॉ. योगेन्द्र सिंह ने परम्परा की चार विशेषताएँ बताई हैं –

  1. सामूहिक सम्पूर्णता
  2. संस्तरण
  3. परलोकवादी
  4. निरंतरता

(5) कर्म तथा पुनर्जन्म:
कर्म तथा पुनर्जन्म का सिद्धान्त भारतीय समाज में व्यक्ति को नई दिशा प्रदान करता है, उसे समाज द्वारा निर्धारित दायित्व के निर्वाह के लिए प्रेरित करता है। भारतीय समाज को सामाजिक संगठन की निरंतरता, स्थिरता तथा नियंत्रण की समस्या से मुक्त रखने में कर्म एवं पुर्नजन्म की अवधारणा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है।

(6) पुरुषार्थ:
पुरुषार्थ जीवन का लक्ष्य है। इसका अभिप्राय उद्यम अथवा प्रयत्न करने से है, अर्थात् अपने अभीष्ट को प्राप्त करने के लिए उद्यम करना पुरुषार्थ है चार पुरुषार्थ का पालन करके – धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष, इससे व्यक्ति जीवन के उच्चत्तम लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है।

(7) संस्कार:
संस्कार व्यक्ति के शारीरिक, सामाजिक, बौद्धिक और धार्मिक परिस्कार के निमित्त की जाने वाली क्रिया है। भारतीय समाज में मानव जीवन का पूर्ण नियोजन है। सामाजिक जीवन पूर्णतः संतुलित, संयमित तथा व्यस्थित हो इसलिए मनुष्य के जीवन को अवस्थानुसार नियोजित किया गया है।

प्रश्न 3.
भारतीय समाज के समक्ष विविधताओं की चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत विविधताओं का देश है। भारतीय समाज में अनेक जातियाँ, उपजातियाँ, धर्म व प्रान्त के लोग एक साथ मिलजुल कर रहते हैं, किन्तु इन सब के बावजूद भारतीय समाज के समक्ष अनेक विविधताओं की चुनौतियाँ हैं, जिन्हें हम अनेक तथ्यों के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –
(1) भौगोलिक विधिता – भारत को भौगोलिक दृष्टि से पाँच भागों में विभाजित किया गया है –

  1. उत्तर का पर्वतीय प्रदेश।
  2. गंगा – सिंधु का मैदान।
  3. दक्षिण का पठार।
  4. समुद्र तटीय मैदान।
  5. थार का मरुस्थल।

इस प्रकार से यह पाँच भाग भौगोलिक विविधता को भारतीय समाज में स्पष्ट करते हैं।

(2) प्रजातीय विविधता – बी. एस. गुहा ने भारत में छः प्रजातियों का वर्णन किया है। ये प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. नीग्रिटो।
  2. मंगोलायड।
  3. प्रोटो ऑस्टेलायड।
  4. भूमध्यसागरीय।
  5. इंडो आर्य।

(3) धार्मिक विविधता – भारत में अनेक धर्म को मानने वाले सदस्य निवास करते हैं। विभिन्न धर्मों के होने के बावजूद, वे सभी एक ही सूत्र में बंधे हुए हैं। इसी से भारतीय समाज में राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार होता है।

(4) भाषा सम्बन्धी विविधता – भारत एक बहुभाषी देश है। यहाँ 1652 भाषा व बोलियाँ बोली जाती हैं। भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है। भारत में सभी भाषाओं को तीन भाषाई परिवार में विभाजित किया गया है –

  1. इंडो आर्यन भाषा परिवार – हिन्दी, उर्दू, बांग्ला, उड़िया, बोडो व डोगरी आदि।
  2. द्रविड़ भाषा परिवार – तेलुगू, कन्नड, मलयालम व तमिल आदि।
  3. आस्ट्रिक भाषा परिवार – संथाली, मुंडारी, खासी, भूमिज व कोरवा आदि।

(5) जलवायु सम्बन्धी विविधता – भारत में जलवायु सम्बन्धी विविधता भी काफी अधिक पाई जाती है। इस विविधता के कारण व्यक्तियों के रंग, रूप व आकार में भी अंतर देखने को मिलता है तथा फसलों व वनस्पतियों में भी अंतर पाया जाता है। लोगों के रहन – सहन, खान – पान व वेशभूषा पर भी जलवायु का प्रभाव देखने को मिलता है।

(6) जनांकिकीय विविधता – जनसंख्या घनत्त्व, लिंगानुपात, जन्म व मृत्यु – दर आदि के आधार पर राज्यों में अंतर देखने को मिलता है। ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में भी इन आधारों पर विविधता को देखा जा सकता है।

(7) सांस्कृतिक विविधता – खान – पान, रहन – सहन, वेश – भूषा एवं त्यौहार आदि आधारों पर भारतीय समाज में सांस्कृतिक विविधता स्पष्ट होती है। समाज में, परिवार, धर्म, विवाह, उपवास व सहयोग आदि में विविधता होने के बावजूद सभी सदस्य एकता के सूत्र में बंधे हुए हैं।

(8) जातीय एवं जनजातीय विविधता – भारत में जातीय आधार पर एक संस्तरण पाया जाता है। यहाँ अनेक जातियाँ व जनजातियाँ निवास करती हैं। प्रत्येक जाति व जनजाति के अपने रिवाज, रहन – सहन के तरीके व अनेक विधियाँ होती हैं। जिनका सम्पादन वे समाज में रहते हुए करते हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय समाज में विभिन्नता में एकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज में अनेक विविधता के होते हुए भी समस्त सदस्य एकता के सूत्र में बंधे हुए हैं। भारत क्योंकि एक बहुलवादी समाज है, जहाँ अनेक जाति, धर्म, प्रांत, क्षेत्र व रिवाजों को मानने वाले लोग रहते हैं, इतनी विभिन्नता के बावजूद सदस्यों में एकरूपता की छवि देखने को मिलती है। भारतीय समाज में विभिन्नता को हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –
1. धार्मिक विभिन्नता में एकता – भारत अनेक धर्मों की जन्मस्थली रहा है। यहाँ अनेक प्रकार के सदस्य रहते हैं जो अनेक धर्मों का पालन करते हैं। अनेक धर्मों के सदस्यों के होने के कारण भी यहाँ धार्मिक विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है किन्तु इतनी धार्मिक विभिन्नता के बावजूद भी यहाँ हर व्यक्ति दूसरे धर्म का आदर करता है। भारतीय समाज में ऐसे अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं जहाँ धार्मिक एकता देखने को मिलती हैं; जैसे – हिन्दू व्यक्तियों को दरगाह पर चादर चढ़ाना, ईद मनाना, सिक्खों द्वारा लंगर आदि इस बात का प्रमाण है कि सदस्य भले ही धर्मों से अलग हों, किन्तु मन से वे सब एक ही हैं।

2. सांस्कृतिक विभिन्नता में एकता – भारत में अलग – अलग भू – भागों में रहने वाले लोगों में विवाह, रीति – रिवाज, खान – पान, बोली – भाषा आदि में बहुत ही विभिन्नता पाई जाती है। इन सब के उपरान्त भी समाज में एकता दृष्टिगोचर होती है। यहाँ विवाह, परिवार व जीवन – शैली में समानता दिखाई देती है। इस प्रकार से भारतीय संस्कृति सभी देशवासियों को एकता के सूत्र में बांधती है।

3. भौगोलिक विभिन्नता में एकता – सदस्यों में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भौगोलिक विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है। इतनी भौगोलिक विभिन्नता के बावजूद भी सदस्यों के विचारों, रिवाजों व खान – पान में एकता की भावना देखी जा सकती है। सभी भारतीय एक – दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं।

4. राजनैतिक विभिन्नता में एकता – स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में लोकतंत्र की स्थापना हुई है। भारतीय एकता को एक सूत्र में पिरोने के लिए सदस्यों के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा एक कानून तथा पंचवर्षीय योजनाएँ लागू की गई है। इसी के कारण समतामूलक समाज की स्थापना की गई है। भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी, राष्ट्रीय गीत, राष्ट्रीय पर्व, राष्ट्रीय पशु एवं राष्ट्रगान आदि समस्त में एकता का भाव दिखाई देता है।
अतः उपरोक्त क्षेत्रों विविधता होने के कारण भी सभी पहलुओं में एकता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज के अध्ययन करने वाले विषय को क्या कहते हैं?
(अ) समाजशास्त्र
(ब) मानवशास्त्र
(स) मनोविज्ञान
(द) धर्मशास्त्र
उत्तरमाला:
(अ) समाजशास्त्र

प्रश्न 2.
समाज को ‘सामाजिक सम्बन्धों का जाल’ किस विद्वान ने माना है?
(अ) अरस्तु
(ब) कोटिल्य
(स) स्पेन्सर
(द) मैकाइवर एवं पेज
उत्तरमाला:
(द) मैकाइवर एवं पेज

प्रश्न 3.
‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है’ यह कथन किसका है?
(अ) कौटिल्य
(ब) अरस्तु
(स) गिन्सबर्ग
(द) मैकाइवर
उत्तरमाला:
(ब) अरस्तु

प्रश्न 4.
“The Scope and Method of Sociology” के लेखक कौन है?
(अ) श्रीनिवास
(ब) अरस्तु
(स) पेज
(द) गिन्सबर्ग
उत्तरमाला:
(द) गिन्सबर्ग

प्रश्न 5.
‘अर्थशास्त्र’ के रचयिता कौन है –
(अ) कौटिल्य
(ब) सोरोकिन
(स) मजूमदार
(द) कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) कौटिल्य

प्रश्न 6.
‘मृच्छकटिकम्’ किसकी रचना है?
(अ) अरस्तु
(ब) कौटिल्य
(स) शूदक्र
(द) कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) शूदक्र

प्रश्न 7.
ग्रामीण क्षेत्रों में कितनी प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है?
(अ) 68.84%
(ब) 78%
(स) 58%
(द) 79%
उत्तरमाला:
(अ) 68.84%

प्रश्न 8.
गाँव की मुख्य विशेषता कौन – सी है?
(अ) प्राथमिक सम्बन्ध
(ब) श्रम – विभाजन
(स) औपचारिकता
(द) व्यक्तिवादिता
उत्तरमाला:
(अ) प्राथमिक सम्बन्ध

प्रश्न 9.
जजमानी प्रथा कहाँ पाई जाती थी?
(अ) नगरों
(ब) कस्बों
(स) गाँवों
(द) किसी में नहीं
उत्तरमाला:
(स) गाँवों

प्रश्न 10.
घुरिये ने जाति की कितनी विशेषताओं का उल्लेख किया है?
(अ) दो
(ब) पाँच
(स) छः
(द) दस
उत्तरमाला:
(स) छः

प्रश्न 11.
‘जाति एक बंद वर्ग है’ यह कथन किसका है?
(अ) पेज
(ब) मजूमदार
(स) केतकर
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) मजूमदार

प्रश्न 12.
भारत में नगरों की संख्या कितनी है?
(अ) 8,000
(ब) 7,936
(स) 5,636
(द) 9,306
उत्तरमाला:
(ब) 7,936

प्रश्न 13.
संविधान में अनुसूचित जनजातियों की संख्या कितनी है?
(अ) 433
(ब) 744
(स) 655
(द) 933
उत्तरमाला:
(ब) 744

प्रश्न 14.
जनजातियों की कुल आबादी का कितना प्रतिशत निगम करता है?
(अ) 5.61
(ब) 8.61
(स) 9.23
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) 8.61

प्रश्न 15.
‘अनुसूचित जाति’ का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया था?
(अ) साइमन कमीशन
(ब) मंडल आयोग
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) साइमन कमीशन

प्रश्न 16.
1931 में अनुसूचित जातियों को क्या कहा गया था?
(अ) दलित
(ब) पिछड़े
(स) बाहरी जाति
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) बाहरी जाति

प्रश्न 17.
धर्म सर्वाधिक किसके पक्ष में है?
(अ) अंधविश्वास
(ब) आचरण
(स) रूढ़ि
(द) परम्परा
उत्तरमाला:
(ब) आचरण

प्रश्न 18.
निर्धनता को एक पापपूर्ण स्थिति किसने माना है?
(अ) कौटिल्य
(ब) पतंजलि
(स) मैकाइवर
(द) गोखले
उत्तरमाला:
(अ) कौटिल्य

प्रश्न 19.
मोक्ष को बौद्ध दर्शन में क्या कहा जाता है?
(अ) कैवल्य
(ब) निर्वाण
(स) कर्म
(द) धर्म
उत्तरमाला:
(ब) निर्वाण

प्रश्न 20.
राजस्थान में अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण कितना निर्धारित किया गया है?
(अ) 20%
(ब) 21%
(स) 22%
(द) 25%
उत्तरमाला:
(ब) 21%

प्रश्न 21.
2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान का जनघनत्त्व कितना है?
(अ) 201 व्यक्ति/किमी
(ब) 300 व्यक्ति/किमी
(स) 325 व्यक्ति/किमी
(द) 375 व्यक्ति/किमी
उत्तरमाला:
(अ) 201 व्यक्ति/किमी

प्रश्न 22.
राजस्थान का प्रसिद्ध नृत्य कौन – सा है?
(अ) भागड़ा
(ब) ओडिसी
(स) घूमर
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) घूमर

प्रश्न 23.
महिला साक्षरता में निम्न स्थान पर कौन – सा राज्य है?
(अ) उत्तर प्रदेश
(ब) मध्य प्रदेश
(स) हिमाचल प्रदेश
(द) राजस्थान
उत्तरमाला:
(द) राजस्थान

प्रश्न 24.
एकता की अवधारणा किस धर्म में निहित है?
(अ) हिन्दू
(ब) मुस्लिम
(स) ईसाई
(द) पारसी
उत्तरमाला:
(अ) हिन्दू

प्रश्न 25.
आदि शंकराचार्य ने कितने मठों की स्थापना की है?
(अ) छः
(ब) चार
(स) आठ
(द) दो
उत्तरमाला:
(ब) चार

RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक सम्बन्ध कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
दो प्रकार के सामाजिक सम्बन्ध पाए जाते हैं –

  1. सामाजिक सम्बन्ध।
  2. भौतिक सम्बन्ध।

प्रश्न 2.
सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना में मुख्य तत्त्व क्या है?
उत्तर:
‘पारस्परिक आनुभाविकता’ सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना में एक मुख्य तत्त्व है।

प्रश्न 3.
‘The Theory of Social Structure’ के लेखक कौन है?
उत्तर:
एस. एफ. नैडल इस पुस्तक के लेखक हैं, जिसमें उन्होंने सामाजिक अवधारणा पर प्रकाश डाला है।

प्रश्न 4.
बोटोमोर ने अपनी किस पुस्तक में समाज की अवधारणा को स्पष्ट किया है?
उत्तर:
बोटोमोर ने ‘समाजशास्त्र: समस्याओं एवं साहित्य की संदर्भिका’ में समाज की अवधारणा को स्पष्ट किया है।

प्रश्न 5.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में गाँवों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
2011 के जनगणना के अनुसार गाँवों की संख्या 6,40,867 निश्चित की गई है।

प्रश्न 6.
2011 की जनगणना के अनुसार नगरीय क्षेत्रों में कितनी प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है?
उत्तर:
31.16 प्रतिशत जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार नगरीय क्षेत्रों में निवास करती है।

प्रश्न 7.
ब्रिटिश लोग अनुसूचित जातियों को किस नाम से संबोधित करते थे?
उत्तर:
दलित वर्ग (Depressed Class) के नाम से ब्रिटिश लोग इन जातियों को संबोधित करते थे।

प्रश्न 8.
‘भग्न पुरुष’ या ‘बाह्म जाति’ किसे माना जाता है?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार आदिकालीन भारत में इन्हें ‘भग्न पुरुष (broke man)’ या ‘बाह्य जाति (out caste)’ माना जाता था।

प्रश्न 9.
भारत सरकार को मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट कब प्रस्तुत की थी?
उत्तर:
3 अप्रैल, 1982 को मंडल आयोग ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

प्रश्न 10.
“भारत में बंधुत्व संगठन” पुस्तक के लेखक कौन है?
उत्तर:
श्रीमती इरावती कर्वे ने यह पुस्तक भारतीय नातेदारी व्यवस्था के संदर्भ में लिखी थी।

प्रश्न 11.
भारत में इस्लाम का आगमन कब हुआ?
उत्तर:
सातवीं शताब्दी में इस्लाम का आगमन भारत में हुआ था।

प्रश्न 12.
भारत में जनसंख्या का घनत्व कितना है?
उत्तर:
382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर भारत में जनसंख्या के घनत्व को दर्शाता है।

प्रश्न 13.
सबसे कम घनत्व वाला राज्य कौन – सा है?
उत्तर:
अरुणाचल प्रदेश (17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.) सबसे कम घनत्व वाला राज्य है।

प्रश्न 14.
किस विवाह को आदर्श विवाह माना गया है?
उत्तर:
‘एक – विवाह’ को हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार एक आदर्श विवाह माना गया है।

प्रश्न 15.
‘कुमारसंभव’ किसकी रचना है?
उत्तर:
‘कालिदास’ ने इस पुस्तक की रचना की है।

प्रश्न 16.
रामेश्वरम् कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
रामेश्वरम् दक्षिण भारत का एक पवित्र स्थल है।

प्रश्न 17.
मुस्लिम विवाहों में किस विवाह को सही विवाह माना जाता है?
उत्तर:
‘निकाह’ को मुस्लिमों में एक सही विवाह माना जाता है।

प्रश्न 18.
‘Indian Thought Through the Essays’ किसकी पुस्तक है?
उत्तर:
बी. जी. गोखले इस पुस्तक के रचियता हैं।

प्रश्न 19.
नामकरण संस्कार कब किया जाता है?
उत्तर:
बालक का नामकरण संस्कार जन्म के दसवें अथवा बारहवें दिन किया जाता है।

प्रश्न 20.
‘गरबा’ किस राज्य का नृत्य है?
उत्तर:
‘गरबा’ गुजरात का एक प्रसिद्ध लोकनृत्य है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र में ‘समाज’ शब्द का प्रयोग विशिष्ट अर्थ में किया गया है। यहाँ व्यक्ति – व्यक्ति के मध्य पाए जाने वाले सामाजिक सम्बन्धों के आधार पर निर्मित व्यवस्था को समाज कहा गया है। व्यक्ति अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों के साथ अंर्तक्रिया करते हैं व सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं। यह सब कुछ निश्चित नियमों के आधार पर ही होता है। मैकाइवर एवं पेज ने समाज को सामाजिक सम्बन्धों के जाल. या ताने – बाने के रूप में परिभाषित किया है तथा इन्होंने समाज को परिवर्तनशील जटिल व्यवस्था माना है। जहाँ सामाजिक सम्बन्धों की प्रधानता होती है तथा साथ ही पारस्परिक जागरूकता भी पाई जाती है।

प्रश्न 2.
एक – समाज का अर्थ बताइए।
उत्तर:
‘एक समाज’ की अवधारणा समाज से भिन्न है, जिसे निम्न अंतरों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. समाज सामाजिक सम्बन्धों की एक जटिल व्यवस्था है, जबकि एक समाज व्यक्तियों का समूह है।
  2. समाज में व्यक्ति का उत्तरदायित्त्व असीमित होता है, जबकि एक – समाज में सीमित। ‘एक – समाज’ शब्द का प्रयोग समान जीवन – विधि या संस्कृति के लिए किया जाता है। जो लोग व्यक्तियों के एक समूह के रूप में ‘एक – समाज’ के अंतर्गत आते हैं, वे सामान्यतः एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं और उनकी अपनी एक विशिष्ट संस्कृति होती है। जो अन्य ‘एक – समाज’ के अंतर्गत आने वाले लोगों की संस्कृति से भिन्न होती है।

प्रश्न 3.
सम्बन्धों के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
समाज में सम्बन्धों के दो प्रकार प्रचलित हैं –

  1. सामाजिक सम्बन्ध।
  2. भौतिक सम्बन्ध।

1. सामाजिक सम्बन्ध:
ये वे सम्बन्ध होते हैं जिनकी प्रधानता समाज में काफी होती है। इनके आधारों पर ही समाज में समस्त क्रियाओं का सम्पादन होता है। इन सम्बन्धों में ‘पारस्परिक जागरूकता’ पाई जाती है जिसके आधार व्यक्ति एक – दूसरे से सामाजिक रूप से व्यवहार करते हैं।
2. भौतिक सम्बन्ध:
इन सम्बन्धों में मानसिक दशा का अभाव पाया जाता है तथा पारस्परिक जागरूकता भी नहीं पाई जाती है। यह सम्बन्ध वस्तुओं के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्धों को दर्शाता है। जैसे – पेन, किताब, टेबिल आदि।

प्रश्न 4.
गाँव किसे कहते हैं?
उत्तर:
ग्राम या ग्रामीण समुदाय वह क्षेत्र है जहाँ कृषि की प्रधानता, प्रकृति से निकटता, प्राथमिक सम्बन्धों की बहुलता, जनसंख्या की कमी, सामाजिक एकरूपता, गतिशीलता का अभाव, दृष्टिकोणों एवं व्यवहारों में सामान्य सहमति आदि विशेषताएँ पाई जाती हैं। एक ग्रामीण क्षेत्र वह है जहाँ लोग किसी प्राथमिक उद्योग में लगे हों, अर्थात् प्रकृति के सहयोग से वस्तुओं का प्रथम बार उत्पादन करते हैं। ग्रामों में सामाजिक नियंत्रण के साधन अनौपचारिक होते हैं। धर्म, प्रथाएँ व रिवाज उनके जीवन को नियंत्रित करती हैं।

प्रश्न 5.
सम्बन्धों के आधार पर भारतीय समाज में कितने प्रकार के परिवार पाए जाते हैं?
उत्तर:
सम्बन्धों के आधार पर परिवारों को दो भागों में विभाजित किया जाता है –

  1. विवाह सम्बन्धी परिवार – इसे प्रजननता या दाम्पत्य मूलक परिवार भी कहा जाता है, इस प्रकार के परिवारों की स्थापना विवाह के पश्चात् होती है। इसमें पति – पत्नी व उनके अविवाहित बच्चे निवास करते हैं।
  2. जन्म सम्बन्धी परिवार – इसे रक्त मूलक परिवार भी कहा जाता है। ये वे परिवार होते हैं जिसमें रक्त सम्बन्धी होते हैं तथा जो जन्म से ही इन परिवारों के सदस्य होते हैं। जैसे – भाई – बहन, चाचा व ताऊ आदि।

प्रश्न 6.
नगरों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
नगरों की विशेषताओं को निम्न बिनदुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. नगरों में द्वितीयक सम्बन्धों की प्रधानता होती है।
  2. नगरों में औपचारिकता अधिक पाई जाती है।
  3. नगरों में व्यवसायों की प्रधानता होती है।
  4. नगरों में श्रम – विभाजन एवं विशेषीकरण पाया जाता है।
  5. नगरों में एकाकी परिवारों की अधिकता होती है।

प्रश्न 7.
धर्म की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धर्म से अभिप्राय व्यक्ति के पवित्र या शुद्ध आचरण से है।
विशेषताएँ:

  1. धर्म व्यक्ति को अच्छे कर्मों को करने के लिए प्रेरित करता है।
  2. धर्म व्यक्ति में नैतिक गुणों का विकास करता है।
  3. धर्म व्यक्ति को भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता है।
  4. धर्म के द्वारा ही व्यक्ति में त्याग की भावना का उदय होता है।
  5. धर्म व्यक्ति को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करता है।

प्रश्न 8.
‘उपनयन’ संस्कार के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘उप’ का अभिप्राय है ‘समीप’ एवं ‘नयन’ का अभिप्राय है ले जाना’। इसमें बालक को शिक्षा के लिए गुरु के समीप ले जाया जाता है। इसे ‘यज्ञोपवीत’ भी कहा जाता है। इसमें बालक को आठवें से बारहवें वर्ष तक गुरु के पास विद्या प्राप्ति हेतु भेजा जाता था। इसमें गुरु अपने शिष्य को समीप बैठकर उसे गायत्री मंत्र की दीक्षा देता तथा कहता कि ‘तुम ब्रह्मचारी हो, काम करो, दिन में शयन मत करो, आचार्य के नियंत्रण में वेदों का अध्ययन करो।’ इस संस्कार के अंतर्गत ब्राह्मणों में जनेऊ के समय इस संस्कार का सम्पादन किया है। ब्राह्मणों में इस संस्कार का विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 9.
मोक्ष प्राप्ति के लिए कितने मार्गों की विवेचना की गई है?
उत्तर:
मोक्ष प्राप्ति के साधन के रूप में प्रमुख रूप से तीन मार्गों का विवेचन किया गया है –

  1. कर्म मार्ग – गीता में श्रीकृष्ण ने यह स्पष्ट किया है कि कर्म ही व्यक्ति के जीवन का मूल आधार है। जो व्यक्ति बिना फल के इच्छा के कर्म करता है, उसे ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  2. ज्ञान मार्ग – जब व्यक्ति सभी के प्रति सम्भाव की भावना रखे, सभी का आदर करे। तत्पश्चात् ऐसे व्यक्ति को सुख – दु:ख, लाभ – हानि आदि का प्रभाव नहीं पड़ता है।
  3. भक्ति मार्ग – स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित करना ही भक्ति मार्ग का आधार है। जब व्यक्ति स्वधर्म का पालन करके ईश्वर की शरण में चला जाता है, तब वह मोक्ष का अधिकारी भी बन जाता है।

प्रश्न 10.
परम्परा की निरन्तरता के तीन स्वरूप कौन – से हैं?
उत्तर:
परम्पराओं की निरन्तरता के तीन स्वरूप निम्न प्रकार से हैं –

  1. प्राचीन परम्पराएँ – सिंधु घाटी की सभ्यता, मिन की सभ्यता, इराक – ईरान की सभ्यता। इन सभ्यताओं के अवशेषों से तत्कालीन सामाजिक स्थितियों का अनुमान लगा सकते हैं।
  2. शास्त्रीय परम्पराएँ – यह परम्पराओं का सर्वाधिक प्रमाणिक स्रोत है। प्राचीन सहित्य जैसे – वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, जातक साहित्य आदि की साहित्य रचना से हमें सामाजिक संरचना तथा निरंतरता की जानकारी प्राप्त होती है।
  3. लोक परम्परा – ये शास्त्रीय परम्पराओं की भाँति लिखित न होकर मौखिक होती है। लोक परम्परा का उद्गम स्रोत वाहक स्थानीय गाँव, कबीले के लोग होते हैं जो पीढ़ी – दर – पीढ़ी एक सीमित क्षेत्र में मौखिक रूप से हस्तांतरित होती रहती है।

प्रश्न 11.
दक्षिण के पठार की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
दक्षिण के पठार की विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. दक्षिण का पठार तीन ओर से घिरा हुआ एक प्रायद्वीप है।
  2. इसे गंगा – सिंधु के मैदान से विन्ध्य एवं सतपुड़ा की पर्वत श्रेणियाँ अलग करती हैं।
  3. यह त्रिभुजाकार क्षेत्र घने जंगल एवं बहुमूल्य खनिजों से परिपूर्ण है।
  4. यहाँ द्रविड़ संस्कृति पाई जाती है।
  5. विश्व की प्राचीनतम जनजातियाँ जैसे ईरुला, कदार व चेंचू निवास करती हैं।

प्रश्न 12.
भारत की समस्त भाषाओं को कितने भाषायी परिवारों में विभाजित किया गया है?
उत्तर:
भारत की सभी भाषाओं को प्रमुखतः तीन भाषायी परिवारों में विभक्त किया गया है –

  1. इंडो आर्यन भाषा परिवार – इसमें हिन्दी, उर्दू, बांग्ला, उड़िया, मराठी, राजस्थानी व बिहारी आदि भाषाओं को शामिल किया गया है।
  2. द्रविड़ भाषा परिवार – इसके अंतर्गत तमिल, तेलुगू, गोण्डी व मलयालम आदि को शामिल किया गया है।
  3. आस्ट्रिक भाषा परिवार – इसके अंतर्गत संथाली, खासी, हो, भूमिज व कोरवा आदि भाषाएँ आती हैं।

प्रश्न 13.
गंगा – सिंधु के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गंगा – सिंधु मैदान की विशेषताएँ:

  1. हिमालय से लेकर दक्षिणी पठार के बीच का मैदानी भाग उत्तर का बड़ा मैदान कहलाता है।
  2. यह गंगा, सिंधु, बह्मपुत्र तथा सतलुज नदियों के कारण अत्यधिक उपजाऊ है।
  3. देश की लगभग 4 प्रतिशत जनसंख्या इस क्षेत्र में निवास करती है।
  4. यहाँ उच्च जनघनत्व है।
  5. हरिद्वार, प्रयाग व वाराणसी जैसे पवित्र स्थल इसमें स्थित है।
  6. कृषि प्रधान क्षेत्र भारत की संस्कृति एवं सभ्यता का उद्गम स्थल रहा है।

प्रश्न 14.
गाँव एवं नगर में पाए जाने वाले अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

गाँव नगर
गाँव में प्राथमिक सम्बन्ध पाए जाते हैं। नगरों में द्वितीयक सम्बन्ध पाए जाते हैं।
गाँव में अनौपचारिक साधन होते हैं। नगरों में औपचारिक साधन पाए जाते हैं।
गाँव के सदस्यों में हम की भावना पाई जाती है। नगरों में अहंवादी भावना पाई जाती है।
यहाँ सामुदायिक भावना की प्रधानता होती है। यहाँ व्यक्तिवादी भावना की प्रधानता होती है।

प्रश्न 15.
समुद्र तटीय मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
समुद्र तटीय मैदान की विशेषताएँ:

  1. दक्षिण के पठारी प्रदेश में पूर्व एवं पश्चिम का क्षेत्र, समुद्र के किनारे का भू – भाग समुद्र तटीय मैदान कहलाता है।
  2. पश्चिम के तट को कोंकण एवं मालाबार कहते हैं।
  3. पूर्वी तट को तमिलनाडु तथा आंध्र – उड़ीसा तट कहते हैं।
  4. दक्षिण के पठार का ढाल पूर्व की ओर होने से दक्षिण की नदियाँ पूर्वी समुद्र तट से होकर समुद्र में गिरती हैं।
  5. रामेश्वरम् यहाँ का पवित्र स्थल है।

प्रश्न 16.
भारतीय संस्कृति में यज्ञ की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतीय संस्कृति में यज्ञ का महत्त्व:

  1. भारतीय संस्कृति में यज्ञ को एक आधारभूत स्तम्भ माना जाता है।
  2. पाँच प्रकार के यज्ञ होते हैं – ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ, भूत तथा अतिथि यज्ञ।
  3. यज्ञों के संपादन से व्यक्ति का जीवन पावन तथा सृदृढ़ होता है।
  4. यज्ञों के प्रतिपादन से व्यक्ति में नैतिक गुणों का समावेश होता है।
  5. यज्ञों के होने से वातावरण व आस – पास की वायु भी शुद्ध होती है।

प्रश्न 17.
हिन्दू शब्द की उत्पत्ति किस प्रकार हुई? विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हिन्दू शब्द की उत्पत्ति से सम्बन्धित अनेक प्रकार के तथ्य हैं, जो इस प्रकार से हैं –

  1. हिन्दू शब्द सिंधु से बना है।
  2. भारतीय सभ्यता को सिंधु सभ्यता माना जाता है इस कारण देश का नाम हिन्दुस्तान पड़ा व यहाँ रहने वालों को हिन्दू कहा गया।
  3. हिन्दू एक धर्म न होकर एक संस्कृति है, जीवन – शैली व विचार है, जिसका प्रतिनिधित्त्व सभी नागरिक करते हैं।
  4. हिन्दू धर्म को एक सनातन धर्म की संज्ञा भी दी जाती है।

प्रश्न 18.
नातेदारी की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नातेदारी को संगोत्रता भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत उन व्यक्तियों को सम्मिलित करते हैं जिनसे हमारा सम्बन्ध वंशावली के आधार पर होता है और वंशावली सम्बन्ध परिवार से पैदा होते हैं एवं परिवार पर ही निर्भर हैं। ऐसे सम्बन्धों को समाज की स्वीकृति आवश्यक है। कभी – कभी प्राणीशास्त्रीय रूप से सम्बन्ध न होने पर भी यदि उन सम्बन्धों को समाज ने स्वीकार कर लिया है तो वे भी नातेदार माने जाते हैं।

उदाहरण:
गोद लिया हुआ पुत्र गोद लेने वाले व्यक्ति का असली पुत्र नहीं है परन्तु उनके सम्बन्धों को समाज ने स्वीकार कर लिया है अतः वे एक – दूसरे के नातेदार माने जाते हैं।

प्रश्न 19.
सामाजिक जनांकिकी पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक जनांकिकी की अवधारणा को हम निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. जनसंख्या का अस्तित्व केवल जन्म – दर व मृत्यु – दर पर ही आधारित नहीं है वरन् उसके लिए समाजीकरण शिक्षा, व्यवसाय तथा सामाजिक एकता की भी आवश्यकता होती है।
  2. राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से तथा देश में वैज्ञानिक उन्नति व न्यायोचित वितरण से मृत्यु-दर कम होती है।
  3. जनसंख्या से सम्बन्धित अन्य पक्ष जैसे जनसंख्या का वितरण, स्त्री पुरुष अनुपात, विवाह की आयु, आयु संरचना तथा गतिशीलता आदि भी सामाजिक सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित होते हैं।

प्रश्न 20.
जनजातीय समाज की विशेषताएँ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जनजातीय समाज की विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. जनजातीय समाज एक निश्चित स्थान या भू – भाग पर निवास करता है।
  2. जनजातीय समाज की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति होती है।
  3. जनजातियों की संख्या जाति की अपेक्षा कम होती है।
  4. जनजातियों की अपनी एक विशिष्ट जीवन – शैली व भाषा होती है।
  5. जनजातीय समाजों में टैटू का चलन भी पाया जाता है जिसे निषेध भी कहते हैं।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज की प्रमुख विशेषताओं का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समाज की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार से है –
1. पारस्परिक जागरूकता – इसके अभाव में न तो सामाजिक सम्बन्ध बन सकते हैं और न ही समाज। जब तक लोग एक – दूसरे की उपस्थिति से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिचित नहीं होंगे, तब तक उनमें जागरूकता नहीं पाई जा सकती है तथा अंर्तक्रिया भी नहीं हो सकती। अतः स्पष्ट है कि पारस्परिक जागरूकता के अभाव में समाज का विकास होना सम्भव नहीं है।

2. समाज अमूर्त है – समाज व्यक्तियों का समूह न होकर उनसे मध्य पाए जाने वाले सम्बन्धों की एक व्यवस्था है। सामाजिक सम्बन्ध अमूर्त होते हैं जिन्हें न तो छुआ जा सकता है और न ही देखा जा सकता है। समाज सामाजिक सम्बन्धों की एक अमूर्त व जटिल व्यवस्था है।

3. समाज में समानता एवं असमानता – समाज में समानता एवं असमानता दोनों ही देखने को मिलती हैं। ये दोनों ही समाज के लिए आवश्यक तत्त्व हैं। दोनों का अपना – अपना महत्त्व है और ये एक – दूसरे के पूरक हैं।

4. समाज सदैव परिवर्तनशील एवं जटिल व्यवस्था है – समाज की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी परिवर्तनशील प्रकृति है। सामाजिक परिवर्तन एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। परिवर्तन से ही समाज के स्वरूप में बदलाव आता है।

5. समाज अन्योन्याश्रितता पर आधारित – यह मानव जीवन का एक अहम् आधार है। मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अन्य व्यक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता है। जिससे उसकी सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।

6. समाज मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है – समाज मनुष्यों तक ही सीमित नहीं अपितु यह पशुओं में भी पाए जाते हैं। मैकाइवर एवं पेज के अनुसार, जहाँ भी जीवन है वही समाज है, इसका तात्पर्य यही है कि सभी जीवधारियों के अपने – अपने समाज होते हैं जहाँ उनमें में भी पारस्परिक सहयोग के तत्त्व पाए जाते हैं। इस प्रकार से स्पष्ट है कि समाज में इन विशेषताओं से ही समाज का विकास होता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक सम्बन्धों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सामाजिक सम्बन्धों की विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार से है –
1. अमूर्त – सामाजिक सम्बन्ध अमूर्त होते हैं। उनका कोई भौतिक आकार नहीं होता है। चूँकि सम्बन्ध मानसिक तथ्य हैं, अतः उन्हें महसूस किया जाता है, वस्तुओं की भाँति उन्हें नापा – तौला नहीं जा सकता।

2. जटिल प्रकृति – सामाजिक सम्बन्धों की प्रकृति बड़ी ही जटिल होती है। यही कारण है कि कई बार इनके विषय में भविष्यवाणी करना बड़ा कठिन हो जाता है। सामाजिक सम्बन्धों की संख्या भी असंख्य है। इन असंख्य सम्बन्धों के ताने – बाने से ही समाज का निर्माण होता है।

3. अर्थपूर्ण – सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। ये व्यक्ति एवं समूह के लिए अर्थपूर्ण होते हैं। समाज में व्यक्ति जब भी अपनी गतिविधियों का सम्पादन करता है तो वह अर्थपूर्ण तरीकों से ही संभव है। इस प्रकार से समाज में विभिन्न व्यक्तियों के मध्य क्रियाओं का संचालन उनके द्वारा किए जाने वाले अर्थपूर्ण तरीकों के माध्यम से ही किया जाता है।

4. अनिश्चित स्वरूप – सामाजिक सम्बन्धों का कोई निश्चित स्वरूप या आकार नहीं होता है। विभिन्न व्यक्तियों के उद्देश्यों, कार्यों, पद एवं भूमिकाओं के अनुसार सामाजिक सम्बन्ध भी अनेक प्रकार के होते हैं। ये आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, मित्रतापूर्ण एवं विरोधात्मक आदि अनेक प्रकार के हो सकते हैं।

5. स्थायी एवं अस्थायी प्रकृति – सामाजिक सम्बन्ध स्थायी एवं अस्थायी प्रकृति के होते हैं। अस्थायी सम्बन्ध थोड़े समय के लिए होते हैं तथा उद्देश्यों की प्राप्ति के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं।
उदाहरण: परिवार के सदस्य परिवारों में स्थायी व अस्थायी दोनों ही प्रकार से हो सकते हैं।

6. सहयोगी एवं असहयोगी प्रकृति – सामाजिक सम्बन्धों की प्रकृति सहयोगी एवं असहयोगी दोनों ही रूप में पाई जाती है। सामाजिक सम्बन्धों की प्रकृति क्योंकि परिवर्तनशील होती है, इस कारण इसमें ये दोनों ही तत्त्व पाए जाते हैं। सामाजिक सम्बन्ध दो व्यक्तियों या समूहों के मध्य सहयोग के आधार पर भी निर्मित हो सकते हैं तथा इनमें विरोध एवं संघर्ष के कारण भी सम्बन्ध प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष भी हो सकते हैं।

प्रश्न 3.
ग्रामीण समुदाय की अनूठी विशेषताओं का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण समुदाय की विशेषताएँ निम्न प्रकार से है –
1. जीवन – यापन प्रकृति पर निर्भर – गाँव के लोगों का जीवन कृषि, पशुपालन, शिकार, मछली मारने आदि की क्रियाओं पर निर्भर है।

2. कम जनसंख्या – गाँव में प्रति वर्ग मील जनसंख्या का अनुपात शहरों की अपेक्षा बहुत कम होता है।

3. प्राथमिक सम्बन्धों की प्रधानता – गाँव का आकार छोटा होने से प्रत्येक व्यक्ति एक – दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानता है, उनमें निकट, प्रत्यक्ष और घनिष्ठ सम्बन्ध होते हैं।

4. जाति – प्रथा – जाति – प्रथा भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषता है। जाति के आधार पर गाँवों में सामाजिक संस्तरण पाया जाता है।

5. कृषि मुख्य व्यवसाय – भारतीय ग्रामों में निवास करने वाली सदस्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। भारत एक कृषिप्रधान तथा गाँवों का देश है। जहाँ 70% से 75% तक लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कृषि द्वारा ही अपना जीवन – यापन करते हैं।

6. ग्राम पंचायत – प्रत्येक गाँव में एक गाँव पंचायत होती है। ग्राम पंचायत प्राचीन काल से भारत में विद्यमान रही है। ग्राम पंचायत का मुख्य कार्य गाँव की भूमि का परिवारों में वितरण, सफाई, विकास कार्य एवं ग्रामीण विवादों को निपटाना है।

7. भाग्यवादी – भारतीय गाँवों के निवासियों में शिक्षा का अभाव पाया जाता है। अतः वे अंधविश्वासी हो जाते हैं वे कर्म के स्थान पर भाग्य पर ही निर्भर हो जाते हैं, इस कारण उनकी मानसिकता रूढ़िवादी विचारधाराओं में जकड़ी हुई होती है।

8. सामाजिक समरूपता – भारतीय गांवों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक समरूपता देखने को मिलती है। सभी सदस्यों का एक जैसी भाषा, त्यौहार – उत्सव, प्रथाओं और जीवन – विधि का प्रयोग करते हैं।

9. आत्म – निर्भरता – भारतीय गांवों को एक आत्म – निर्भर इकाई के रूप में परिभाषित किया गया है। यह आत्म – निर्भरता केवल आर्थिक क्षेत्र में भी नहीं वरन् सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक दृष्टि से भी है।

10. जनमत का महत्त्व – ग्रामवासी जनमत का सम्मान करते हैं तथा वे जनमत के निर्णय के समक्ष झुकते हैं, मानते हैं एवं पंच लोग जो कुछ कहते हैं उसे वे शिरोधार्य करते हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय समाज में प्रजातीय एवं मानसिक विविधता में पाए जाने वाली एकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. प्रजातीय विविधता में एकता:
प्रजातीय दृष्टि से भारत को विभिन्न प्रजातियों का अजायबघर अथवा द्रवण-पात्र (Melting pot) कहा गया है। यहाँ विश्व की प्रमुख तीन प्रजातियों – श्वेत, पीत एवं काली तथा उनकी उपशाखाओं के लोग निवास करते हैं। उत्तरी भारत में आर्य प्रजाति का और दक्षिण भारत में द्रविड़ प्रजाति का बाहुल्य है। प्रजातीय भिन्नता होने पर भी अमेरिका एवं अफ्रीका की भाँति यहाँ प्रजातीय संघर्ष एवं टकराव नहीं हुए हैं वरन् उनमें पारस्परिक सद्भाव और सहयोग ही रहा है। भारत में विभिन्न प्रजातियों का मिश्रण भी हुआ है।

2. मानसिक विविधता में एकता:
भारत देश विभिन्न धर्मों, जातियों व भाषाओं का देश है। इस देश में विभिन्न संस्कृतियों का आश्चर्यजनक संगम हुआ है। प्रत्येक संस्कृति, भाषा व धर्म की अपनी विशेषताएँ होती हैं जो व्यक्ति को मानसिक रूप से प्रभावित करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के विचारों पर उसके धर्म व संस्कृति की अमिट छाप देखी जा सकती है।

अतः इस विभिन्न संस्कृतियों व धर्मों वाले देश में मानसिक विविधता का पाया जाना स्वाभाविक है। परन्तु इस विविधता में भी हमें एकता के दर्शन होते हैं। मानसिक एकता में एक राष्ट्रीय मन के निर्माण की स्थिति पाई जाती है और क्षेत्रीय हितों की अपेक्षा राष्ट्रीय हितों को महत्त्व दिया जाता है। इस प्रकार की एकता हमें भारत – चीन तथा भारत – पाकिस्तान युद्ध के समय देखने को मिली जब सारा राष्ट्र छोटे – छोटे मतभेदों को भुलाकर एक विराट पुरुष के रूप में उठ खड़ा हुआ। इन विविधताओं एवं एकता के अतिरिक्त समान आर्थिक हित, सामान्य आधिपत्य और कष्ट तथा राजनीतिक चेतना आदि ने भी भारतीय समाज में विविधता में एकता पैदा की है।

डॉ. राधाकृष्णन ने कहा है, “इसकी (भारत की) संस्कृति में एकता के चिन्ह पाए जाते हैं, यद्यपि परीक्षण करने पर वे विभिन्न प्रकार के रंगों में बंटे दिखते हैं। उनकी भिन्नतापूर्ण रूप से समाप्त नहीं हो सकी है। यद्यपि सभ्यता के उदय से लेकर अब तक नेताओं के मस्तिष्क में एकता के विचार घूमते रहे हैं।”

प्रश्न 5.
पुरुषार्थ के समाजशास्त्रीय महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज में व्यक्ति के सम्पूर्ण दायित्वों को पुरुषार्थ के सिद्धान्त के माध्यम से व्यक्त किया गया है। समाज में पुरुषार्थ को मनोवैज्ञानिक आधार इसलिए माना गया है कि व्यक्ति धर्म, अर्थ और काम की पूर्ति द्वारा मानसिक संतोष प्राप्त करता है तथा जीवन के उच्चत्तम आदर्श – मोक्ष की प्राप्ति की ओर आगे बढ़ता है। पुरुषार्थ को नैतिक आधार मानने का कारण यह कि वह व्यक्ति को मानवीय गुणों के विकास और धर्मानुकूल आचरण की प्रेरणा देता है, कर्तव्यों के पालन हेतु प्रोत्साहित करता है। पुरुषार्थ का सिद्धान्त मानव की पशु – प्रवृत्तियों का समाजीकरण करता है, उसकी आसुरी वृत्तियों को नियंत्रित करता है। यह सिद्धान्त सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच, इहलोक तथा परलोक के बीच अर्थात् स्वार्थ और परमार्थ के बीच एक सुन्दर समन्वय स्थापित करता है।
1. धर्म – इसका एक पुरुषार्थ के रूप में इसी दृष्टि से महत्त्व है कि यह काम तथा अर्थ को नियंत्रित करता है।

2. अर्थ – यह व्यक्ति व समाज दोनों की सुख-समृद्धि की दृष्टि से आवश्यक है। यह पुरुषार्थ व्यक्ति को प्रयत्न करने के लिए प्रेरित करता है। व्यक्ति अर्थ के उपार्जन द्वारा ही स्वधर्म का पालन करता है, विभिन्न ऋणों से मुक्त होता है।

3. काम – यह यौन – इच्छाओं की संतुष्टि तथा मानसिक तनावों को कम और स्नेह सम्बन्धों को दृढ़ करता है। इससे समाज की निरंतरता बनी रहती है।

4. मोक्ष – यह जीवन का अंतिम लक्ष्य माना गया है। जब व्यक्ति को जीवन में दुःख, चिंता व तनाव का सामना करना पड़ता है। इनसे विचलित हुए बिना कर्त्तव्य – पथ पर बढ़ते रहने की प्रेरणा मोक्ष – पुरुषार्थ द्वारा ही प्राप्त होता है। ‘मनु’ ने लिखा है कि मानवता का कल्याण तीनों अर्थात् धर्म, अर्थ व काम के संतुलित समन्वय में है। इस प्रकार से पुरुषार्थ बताते हैं कि व्यक्ति व समूह के बीच सम्बन्ध कैसे होने चाहिए। पुरुषार्थ व्यक्ति व समूह को नियंत्रित करते हैं तथा साथ ही उनके अंतर – सम्बन्धों को भी प्रेरित करते हैं। पुरुषार्थ सिद्धान्तों के अंतर्गत व्यक्ति व समाज के दायित्त्वों का इस प्रकार से निर्धारण किया गया है कि दोनों एक – दूसरे के विकास में सहायक हो सकें।

प्रश्न 6.
आधुनिक भारत में राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक भारत में राष्ट्रीय सकता को बढ़ावा देने वाले कारकों की व्याख्या हम निम्न बिन्दुओं के आधार पर कर सकते हैं –
1. आवागमन और संचार के साधन – आवागमन तथा संचार के साधनों के परिणामस्वरूप लोगों को अनेक क्षेत्रों की सूचनाएँ प्राप्त होने लगीं, साथ ही लोग गोष्ठियों में जाने लगे, इससे उनमें नई जागरूकता का संचार हुआ।

2. प्रेस – राष्ट्रीयता के विकास में प्रेस का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अनेक राजनैतिक नेताओं तथा समाज सुधारकों ने अनेक पत्र तथा पत्रिकाएँ निकालकर राष्ट्रीय चेतना का विकास किया।

3. राष्ट्रवादी मनोवृत्ति – अंग्रेजों की देश भक्ति अनुशासन तथा राष्ट्रवादी मनोवृत्ति ने भारत के पढ़े – लिखे विशिष्ट वर्गों को प्रभावित किया। नवीन व्यवस्था को लागू करके अनेक विचारकों ने भारत की आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक व्यवस्थाओं में भारी परिवर्तन कर दिया है। इस राष्ट्रवादी मनोवृत्ति से समाज में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए।

4. सामान्य न्याय व्यवस्था – सम्पूर्ण देश के नागरिकों के लिए एक सामान्य न्याय व्यवस्था का निर्माण किया गया। जिस प्रकार सारे देश में तहसीलों, जिलों व प्रांतों की रचना हुई, उसी प्रकार विभिन्न स्तरों पर न्यायालयों की स्थापना हुई। संक्षेप में अंग्रेजी शासन में इस प्रकार के परिवर्तन हुए जिनसे देश के असंख्य नागरिक एक सामान्य व्यवस्था के अधीन हो गए, जिससे उनके अंदर राष्ट्रीय आधार पर एकरूपता का निर्माण हुआ।

5. सुधार आंदोलन – राष्ट्रीयता के विकास में विभिन्न प्रकार के सुधार आंदोलन भी बहुत सहायक सिद्ध हुए। अस्पृश्यता विरोधी आंदोलन सम्पूर्ण देश में फैलाया गया। आर्य समाज एवं ब्रह्म समाज ने धार्मिक तथा सामाजिक रीतियों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया।

6. लोकतंत्र की स्थापना – आजादी के बाद भारत एक राष्ट्र के रूप में प्रकट हुआ। सम्पूर्ण देश में संविधान लागू किया गया। एक केन्द्रीय शासन के अंतर्गत विभिन्न राज्यों तथा छोटे क्षेत्रों का गठन हुआ। इसके अलावा आर्थिक व सामाजिक प्रगति के लिए प्रत्येक वर्ग के लिए समान नियमों और सामान्य सुविधाओं की व्यवस्था की गई। इस प्रकार सारे देश के लोगों में पारस्परिक एकात्मकता की अनुभूति हुई।

प्रश्न 7.
भारतीय समाज में राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करने वाले उपायों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारत में राष्ट्रीय एकता के लिए प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं –
1. राष्ट्र के समस्त क्षेत्रों के विकास के लिए निष्पक्ष प्रयास किए जाने चाहिए।

2. देश में प्रचलित समस्त भाषाओं के विकास की व्यवस्था समान रूप से की जानी चाहिए तथा राष्ट्रीय भाषा हिन्दी का प्रचार व प्रसार अनिवार्य रूप से किन्तु सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।

3. राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने वाले साहित्य का प्रसार किया जाना चाहिए। शिक्षा संस्थाओं में राष्ट्रीय एकता का निर्माण करने वाले भाषणों और वाक् प्रतियोगिताओं की तथा समूह चर्चाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए।

4. अल्पसंख्यक तथा पिछड़े समुदायों के लोगों के मन में सुरक्षा तथा समानता की भावना का विकास उत्पन्न करना राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है।

5. मुस्लिम लॉ, हिन्दू लॉ व अन्य कानूनों को समाप्त करके एक राष्ट्रीय कानून को लागू किया जाना चाहिए।

6. अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए तथा ऐसे व्यक्तियों को समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।

7. राष्ट्रीय एकता के विकास के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का क्षेत्रीय आदान – प्रदान भी उपयोगी हो सकता है। फिल्म, रेडियो, टी. वी. व पत्रिकाएँ इस सम्बन्ध में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

8. ऐसे संगठनों और संस्थाओं पर कठोर नियंत्रण होना चाहिए जो धर्म, संप्रदाय, जाति तथा क्षेत्र के नाम पर पारस्परिक विद्वेष फैलाते हैं।

9. शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार व वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करने से सामान्य जनता व भावी पीढ़ी में भेदभाव तथा अंधविश्वासों पर आधारित सामाजिक दूरी समाप्त हो सकती है।

10. विभिन्न धर्मों की समन्वय समितियाँ स्थापित की जानी चाहिए और उनके द्वारा एक सामान्य धार्मिक आचरण की पद्धति का विकास किया जाना चाहिए, जो प्रत्येक धर्म का अनुयायी आसानी से अपना सके। इससे समाज में धार्मिक सद्भाव में वृद्धि हो सकती है।

प्रश्न 8.
अनुसूचित जातियों की निर्योग्यताओं या समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
निर्योग्यताओं का अर्थ है-अनेक अधिकारों या सुविधाओं की प्राप्ति के अयोग्य घोषित करना। मुख्य रूप में अनुसूचित जातियों की निर्योग्यताओं व समस्याओं को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है –
(1) धार्मिक समस्याएँ:

  1. मन्दिर प्रवेश तथा पवित्र स्थानों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाया था।
  2. अपवित्र मानने के कारण उन पर धार्मिक संस्कारों के सम्पादन पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।
  3. उन्हें अनेक धार्मिक सुविधाओं से वंचित रखा गया था।

(2) सामाजिक समस्याएँ:

  1. हरिजनों को सवर्ण हिन्दुओं के साथ सामाजिक सम्पर्क रखने से वंचित रखा गया था।
  2. शिक्षा व मनोरंजन के साधनों से दूर रखा गया था।
  3. सार्वजनिक स्थानों एवं वस्तुओं के उपयोग पर प्रतिबंध।

(3) आर्थिक समस्याएँ:

  1. व्यवसायों के चयन पर प्रतिबन्ध।
  2. सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकारों से वंचित।
  3. उनका आर्थिक शोषण भी काफी हुआ, उन्हें समाज में घृणित से घृणित पेशों को अपनाने के लिए विवश होना पड़ा।

(4) अन्य समस्याएँ:

  1. इससे समाज में हीन भावना को प्रोत्साहन मिला।
  2. राष्ट्र – विरोधी भावना का विकास हुआ।
  3. अनुसूचित जातियों में वर्गभेद पनपा क्योंकि अनुसूचित जातियों के जिन परिवारों के सदस्यों ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर उच्च पदं प्राप्त किए हैं। उन्हें अपनी जाति के अन्य लोगों से पृथक एवं उच्च समझने लगे हैं।
  4. इससे समाज में सवर्णों व अनुसूचित जातियों में संघर्ष एवं तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है। जो राष्ट्र एवं समाज की एकता एवं प्रगति के लिए एक गम्भीर समस्या है।

प्रश्न 9.
भारतीय समाज में जनजातीय कल्याण को प्रोत्साहन देने वाले व्यावहारिक सुझावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जनजातीय समस्याओं के सामाधान और जनजातीय कल्याण की दृष्टि से रचनात्मक परिवर्तन लाने में सहायक व्यावहारिक नीति में निम्नलिखित बातें सम्मिलित होनी चाहिए –
1. जनजातीय समस्याओं को पृथक् – पृथक् श्रेणियों में बाँटकर उन्हें सुलझाने के लिए उचित योजना आवश्यक है अर्थात् विशिष्ट प्रकार की समस्याओं को सुलझाने के लिए जो विशिष्ट कार्यक्रम बनाए जाएँ उनमें परस्पर ताल-मेल हो।

2. जनजातीय कल्याण कार्यों के लिए और व्यवहारिक नीति यह होनी चाहिए कि जनजातियों को उनकी सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों को एकदम समाप्त करके क्रांतिकारी परिवर्तन करने का प्रयत्न कदापि न किया जाए।

3. आर्थिक समस्याओं को दूर करने के लिए कल्याण कार्य की व्यवहारिक नीति यह होनी चाहिए कि सहकारिता और पंचायत को अधिक से अधिक विकसित किया जाए ताकि उनकी केवल उन्नति उन्हीं के द्वारा सम्भव हो।

4. सामाजिक सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाने के लिए जनजातीय जीवन की परम्परागत संस्थाओं को दोषमुक्त करने की आवश्यकता है। शिक्षा का प्रचार होना चाहिए किन्तु उनमें जनजातीय मनोवृत्तियों की पाचन – शक्ति का ध्यान रखना आवश्यक है।

5. जो भी योजना जनजातीय कल्याण के लिए बनाई जाए, उसमें स्थानीय तथा आवश्यक परिस्थितियों का ध्यान रखना आवश्यक है। एक ही प्रकार की योजना को समस्त जनजातीय क्षेत्रों में लागू करने की भूल लाभ के स्थान पर हानि पहुँचा सकती है।

6. जनजातीय कल्याण योजना में जनजातीय आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने का प्रयत्न सबसे पहले किया जाना चाहिए। आर्थिक निर्बलता उनकी प्रमुख समस्या है।
अत: उपरोक्त सुझावों के आधार पर जनजातीय सदस्यों की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।

प्रश्न 10.
जनजातियों की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अनुसूचित जनजातियों की कुछ प्रमुख समस्याएँ निम्नांकित हैं –
(1) आर्थिक समस्याएँ:

  1. जनजातीय जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग कृषि कार्यों में लगा हुआ है। कृषि कार्यों में लगी जनजातियों में से कुछ स्थानांतरित खेती करती है। इस कृषि से भूमि का कटाव बढ़ जाता है, जंगलों में उपज भी कम हो जाती है, परिणामस्वरूप जनजातीय लोगों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  2. भूमि सम्बन्धी नवीन व्यवस्था के कारण भूमि पर से जनजातियों का स्वतंत्र अधिकार समाप्त हो गया।
  3. जनजातीय लोगों को आर्थिक मजदूरी के कारण कृषि-क्षेत्र में, चाय – बागानों में एवं औद्योगिक संस्थानों में श्रमिकों के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ा।

(2) सास्कृतिक समस्याएँ:

  1. कई जनजातियों के लोगों ने धर्म परिवर्तन कर लिया। इससे जनजातीय एकता को ठेस पहुँची, परिणामस्वरूप उनमें आपस में भेद – भाव बढ़े हैं।
  2. बाह्य संस्कृतियों के सम्पर्क के कारण कई जनजातियों में ‘दो भाषावाद’ की समस्या उत्पन्न हुई है। एक ही जनजाति के लोग अपनी भाषा के अलावा किसी अन्य समूह की भाषा भी बोलने लगते हैं।

(3) स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ:

  1. जनजातीय लोगों को निर्धनता, परिस्थिति सम्बन्धी कारणों तथा अजनजातीय संस्कृतियों के सम्पर्क में आने के फलस्वरूप अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का उन्हें सामना करना पड़ रहा है।

(4) शिक्षा सम्बन्धी समस्याएँ:

  1. जनजातियों में शिक्षा का अभाव है और वे अज्ञानता के अंधकार में जीवन बिता रही हैं। अशिक्षा के कारण वे अनेक अंधविश्वासों, कुरीतियों एवं रिवाजों से घिरे हुए हैं।
  2. आदिवासी लोग आधुनिक शिक्षा के प्रति उदासीन हैं क्योंकि यह शिक्षा उनके लिए अनुत्पादक है एवं आज की शिक्षा जीवन – निर्वाह का निश्चित साधन प्रदान नहीं करती। अतः शिक्षित व्यक्तियों को बेकारी का सामना करना पड़ता है।

अत: उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि जनजातीय सदस्यों को समाज में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology

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