Rajasthan Board RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 14 कार्यं खलु साधयेयम्
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 14 पाठ्य-पुस्तकस्य अभ्यास प्रश्नोत्तराणि
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 14 वस्तुनिष्ठप्रश्नाः
प्रश्न 1.
कुत्र जिगमिषुः भगवान् भास्करः?
(क) उदयम्
(ख) अस्तम्
(ग) गृहम्
(घ) मन्दिरम्
उत्तराणि:
(ख) अस्तम्
प्रश्न 2.
गौरो युवा केन गच्छति स्म?
(क)विमानेन
(ख) करिणा
(ग) हयने
(घ) यानेन
उत्तराणि:
(ग) हयने
प्रश्न 3.
पत्रमादाय तोरणदुर्गं प्रयाति।
(क) शिववीरः
(ख) गूढ़चरः
(ग) भास्कर
(घ) द्वारपाल:
उत्तराणि:
(ख) गूढ़चरः
प्रश्न 4.
को भवान्? कुतो भवान्? इति पृष्टः
(क) द्वारपालेन
(ख) यामिकेन
(ग) दुर्गाध्यक्षेण
(घ) गुप्तचरेण
उत्तराणि:
(ख) यामिकेन
प्रश्न 5.
शिववीरस्य गूढ़चरः आसीत्
(क) महोत्साहः
(ख) अल्पोत्साह:
(ग) भीतः।
(घ) उत्साहहीनः
उत्तराणि:
(क) महोत्साहः
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
शिववीरस्य गूढचरः कीदृशः आसीत्?
उत्तरम्:
शिववीरस्य गूढ़चर महोत्साहः आसीत्।
प्रश्न 2.
गुप्तचरस्य का प्रतिज्ञा आसीत्
उत्तरम्:
गुप्तचरस्य प्रतिज्ञा आसीत्-“देहं वा पातयेयं कार्यं वा साधयेयं” इति।
प्रश्न 3.
तुरंगः कथं भूमौ पपात्?
उत्तरम्:
तुरंगः कस्यापि तरोः शाखाया अभिहितः भूमौ पपात्।
प्रश्न 4.
दुर्गाधीशः कस्य पन्थानम् अवेक्षते?
उत्तरम्:
दुर्गाधीशः गुप्तचरस्य एव पन्थानं अवेक्षते।
प्रश्न 5.
गुप्तचरः कस्मात् दुर्गात् पत्रमादाय कं दुर्गम् प्रयाति?
उत्तरम्:
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 14 निबन्धात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
गुप्तचरस्य मार्गे आगतानां बाधानां वर्णनं कुरुत।
उत्तरम्:
पत्रम् आदाय प्रस्थिते तोरण दुर्गे गुप्तचरस्य पुरतः अनेका: बाधाः आयान्ति स्म। प्रस्थानकाले अकस्मात् एको महान् झञ्झावातः उत्थितः। मेघमालाभिः स्वाभाविकोऽन्धकारः द्वि-गुणितो अभवत्। तस्य यात्रामागें भूमिः अपि समतला नासीत्। पाषाण खण्डेषु हयस्य खुराः प्रस्खलन्ति स्म।
प्रश्न 2.
गुप्तचरः स्वप्रतिज्ञां पालयितुं कथं सफलोऽभवत्?
उत्तरम्:
गुप्तचरः स्व प्रतिज्ञा पालयितुं सतत उत्साहेन स्वकार्यम् प्रतिपादयति स्म। यात्राकाले स: द्विगुणोत्साहेन हयेन सहनिरन्तरम् अग्रेसरति स्म। यात्रामध्ये सः निराशोभूत्वा न विरमति स्म। गुप्तचरः अश्वम् साधयति स्म। मध्ये-मध्ये सः अश्वस्य स्कन्धौ करतलेन आस्फोटयति सान्त्वयति च स्म। एवम् आशान्वितः सः गुप्तचरः स्वप्रतिज्ञां पालयितुं साफलोऽभवत्।
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 14 व्याकरणात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष-वचनानां निर्देशं कुरुत
1. गच्छति
2. प्रयाति
3. प्रस्खलन्ति
4. विरमति
5. उत्तिष्ठति
6. परिवर्तते
7. निवर्तते
8. भवेत्
9. गणयति
10. गणयेत्।
उत्तरम्:
प्रश्न 2.
अधोलिखित पदेषु शब्द-विभक्ति वचनानां निर्देश कुरुत
1. पंथाः
2. सत्वानां
3. वल्गां
4. स्कन्धौ
5. आपदः
6. शाखया
7. यामिकेन
8. गात्राणि।
उत्तरम्:
प्रश्न 3.
अधोलिखित पदेषु प्रत्ययस्य निर्देशनं कुरुत –
यथा – आदाय आ + दाया + क्त्वा ( ल्यप् )
उत्तरम्:
प्रश्न 4.
अधोलिखितपदानां समास विग्रहं कृत्वा समासस्य नाम निर्देशनं कुरुत –
1. सुघटितदृढ़शरीरः
2. महोत्साहः
3. मेघमालाभिः
4. शिववीरचरः
5. झन्झाविभीषिकाभिः
6. प्रभुकार्यम्
7. घोटक पृष्ठम्
8. द्वाररोधः
उत्तरम्:
प्रश्न 5.
अधोलिखित क्रिया पदेषु काल-(लकार) परिवर्तनं कुरुत –
उत्तरम्:
प्रश्न 6.
अधोलिखित पदेषु वचनपरिवर्तनं कुरुत
उत्तरम्:
यथा –
प्रश्न 7.
अधोलिखितशब्दानां आधारेण वाक्य निर्माणम् कुरुत –
उत्तरम्:
यथा –
प्रश्न 8.
अधोलिखित क्रियापदेषु उपसर्ग पद कुरुत –
उत्तरम्:
प्रश्न 9.
अधोलिखितानाम् आधारेण प्रश्न निर्माणं कुरुत –
- मासोऽयं आषाढ़।
- हयस्य खुरश्चिक्णपाषाणखण्डेषु प्रस्खलन्ति।
- शिववीरचरो निजकार्यात् न निवर्तते।
- असौ घोटकपृष्ठम् आरुरोह।
- अश्व: उच्चैः निश्वसिति।
उत्तरम्:
- कोऽयम् आषाढ़ः?
- कस्य खुराश्चिक्कण पाषाणखण्डेषु प्रस्खलन्ति।
- कः निजकार्यात् न निवर्तते।
- कः घोटकपृष्ठम् आरुरोह।
- कः उच्चैः निश्वसिति।
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 14 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि
अधोलिखितान् प्रश्नान् संस्कृतभाषया पूर्णवाक्येन उत्तरत –
प्रश्न 1.
उपन्यासस्य माध्यमेन कस्य चरित्रं निबद्धम्।
उत्तरम्:
उपन्यासस्य माध्यमेन छत्रपति शिवाजी महाराजस्य चरित्रं निबद्धम्।
प्रश्न 2.
शिवराजविजयस्य भाषा कीदृशी वर्तते?
उत्तरम्:
शिवराजविजयस्य भाषा सरला, सरसा ओजमयी च वर्तते।
प्रश्न 3.
कः अस्तिं जिगीमिषु?
उत्तरम्:
भगवान् भास्करः अस्तं जिगीमिषु।
प्रश्न 4.
अश्वारोहिणः वयः किमासीत?
उत्तरम्:
अश्वारोहिण: वयः षोडशवर्षदेशीयः आसीत्।
प्रश्न 5.
षोडशवर्षदेशीयः युवा केन गच्छति स्म?
उत्तरम्:
षोडशवर्ष देशीयः ‘युवा हयेन गच्छति स्म।
प्रश्न 6.
शिववीरस्य विश्वास पात्रं वीरः गूढ़चरः कीदृशः आसीत्?
उत्तरम्:
शिववीरस्य विश्वासपात्रं वीरगूढ़चरः सुघठित शरीरः महोत्साह च आसीत्।
प्रश्न 7.
गूढचरः कुतः कुत्र गच्छति स्म?
उत्तरम्:
गूढ़चर: सिंहदुर्गात् पत्रमादाय तोरण दुर्ग गच्छति स्म।
प्रश्न 8.
गूढ़चरस्य मार्गे कीदृशः अन्धकारः आसीत्?
उत्तरम्:
गूढ़चरस्य मार्गे एकस्तु सायंकालिकः स्वाभाविकोऽन्धकारः सः च मेघमालाभिः द्विगुणितोऽभवत्।
प्रश्न 9.
शिववीरचरस्य का प्रतिज्ञा आसीत्?
उत्तरम्:
शिववीरचरस्य प्रतिज्ञा आसीत् ‘देहं वा पातयेयं कार्यं वा साधयेयम्।
प्रश्न 10.
तुरगः कथं भूमी पपात?
उत्तरम्:
तुरगः तरो: शाखया अभिहितः भूमौ पपात्।
स्थूलाक्षरपदानि आधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत –
प्रश्न 1.
अवक्षते तवैवपन्थानं दुर्गाधीशः
उत्तरम्:
दुर्गाधीशः किम् अवेक्षते।
प्रश्न 2.
सत्वरं तोरणदुर्गभूवि समाजगामः
उत्तरम्:
सत्वरं कुत्र समाजगाम?
प्रश्न 3.
‘को भवान्? कुतो भवान्?’ इति यामिकेन पृष्टः?
उत्तरम्:
‘को भवान्’? कुतो भवान्’? इति केन पृष्टः?
प्रश्न 4.
घोटकश्च पुनः त्वरितगत्या प्रचलितः।
उत्तरम्:
घोटकश्च पुनं कथं प्रचलितः?
प्रश्न 5.
समुत्प्लुत्य घोटकपृष्ठमारोह।
उत्तरम्:
समुत्प्लुत्य कम् आरुरोह?
पाठ-परिचयः
प्रस्तुत पाठ पं० अम्बिकादत्त व्यास द्वारा रचित ‘शिवराज विजय’ नामक उपन्यास से संकलित है। इस पाठ में शिवाजी महाराज का दूत शिवाजी से सिंह दुर्ग से सन्देश पत्र लेकर अपने प्राणों को हथेली पर रखकर तोरण दुर्ग को जाता है। शरीर या तो नष्ट कर दूंगा या कार्य को सिद्ध करूंगा।” अपनी इस प्रतिज्ञा का पालन करता है।
शब्दार्थ एवं हिन्दी-अनुवाद
1. मासोऽयमाषाढः …………………………….. स्वकार्याद विरमति।।
शब्दार्थाः-मासः = महीना। जिगमिषुः = जाने के इच्छुक षोडशवर्षदेशीयः = सोलह वर्ष का। सुघटितः = गठा हुआ। महोत्साहः = उत्साह से भरा हुआ। गूढचरः = गुप्तचर। आदाय = लेकर, स्वीकार करके। प्रयाति = करोति। उत्थितः = उठा हुआ। झन्झावातः = तूफान। मेघमालाभिः = बादलों की घटाओं के द्वारा अवलोक्यते = दिखाई देता है। चिक्कणपाषाण खण्डेषु = चिकने पत्थर के टुकड़ों पर। प्रस्खलन्ति = फिसल जाते हैं। सादी = अश्वारोही। विरमति = रुकता है, आराम करता है।
हिन्दी-अनुवाद-यह आषाढ़ का महीना है और शाम का समय है, भगवान् सूर्य अस्त होना चाहते हैं। इस समय एक लगभग सोलह वर्ष का गोरे रंग का युवक घोड़े से पर्वत की चोटी पर ऊपर-ऊपर जा रहा था। यह सुघटित मजबूत शरीर वाला महान् उत्साह से युक्त कोई शिवाजी महाराज का विश्वासपात्र गुप्तचर सिंह दुर्ग से उसी का पत्र लेकर तोरण दुर्ग की ओर प्रस्थान करता है। उसी समय अचानक उठा हुआ महान् तूफान एक सायंकालीन स्वाभाविक अन्धकार के रूप में जो बादलों की घनघोर घटाओं से दुगुना हो गया। न कोई सीधा मार्ग, न सपाट भूमि और न कोई रास्ता दिखाई दे रहा था। हर पल घोड़े के खुर चिकने पत्थर की शिलाओं पर फिसल रहे थे लेकिन दृढ़ संकल्प वाला यह घुड़सवार अपने कार्य से नहीं रुकता है।
2. अरण्यानां सत्वानां …………………………….. स्वसङ्कल्पितम्?
शब्दार्थाः-अरण्यानाम् सत्वानाम् = जंगली जीवों के। क्रन्दनस्य = रोने की। भयानकेन स्वनेन = भय से भरी हुई आवाज के द्वारा। कवलीकृतम् = पकड़ा हुआ, खाया हुआ। घोटकः = घोड़ा। उत्प्लुत्य = उछल-उछलकर। सैन्धवस्य= घोड़े के। कन्धरां = गर्दन को। स्कन्धौ = कंधों पर। आस्फोटयन् = सहलाते हुए। विगणयेत् = उपेक्षा करे। आपदः = विघ्नः। सान्त्वयन् = सन्तुष्ट करते हुए। साधयति = सिद्ध करता है। स्यात् = हो।
हिन्दी अनुवाद-और जंगली जानवरों के रोने की भयंकर आवाज से आकाशमण्डल व्याप्त (गुंजायमान) हो जाता है। परन्तु यह वीर अपने कार्य से विरत नहीं होता है। कभी (संयोगवश) कुछ भयभीत हुआ-सा घोड़ा पैरों के सहारे उठकर खड़ा हो जाता है, कभी चलते हुए अचानक मुड़ जाता है और कभी उछलकर चलता है। परन्तु यह वीर लगाम को नियन्त्रित करते हुए, बीच-बीच में घोड़े के दोनों कन्धों और गर्दन पर हाथ से सहलाते हुए और पुचकारकर शान्त करते हुए अपने कार्य से अलग नहीं होता है।
परन्तु इस समय में भी ‘या तो कार्य को सिद्ध करूंगा या शरीर को नष्ट कर दूंगा’ इस प्रकार कृतप्रतिज्ञ वह शिवाजी का सेवक अपने कार्य को नहीं छोड़ता है। जिसका अध्यक्ष स्वयं परिश्रमी (है) (तो) वह स्वयं परिश्रमी कैसे न हो? जिसका प्रभु (स्वामी) खुद साहस से युक्त है (तो) वह कैसे खुद साहस से युक्त न हो? जिसका स्वामी स्वयं आपदाओं की गणना नहीं करता, (तो) वह स्वयं आपदाओं की गणना क्यों करे? और जिसका महाराजा स्वयं संकल्पित कार्य को निश्चयपूर्वक सिद्ध करता है, (तो) कैसे वह अपने संकल्पित (कार्य) को सिद्ध न करे।
3. अस्त्येष महाराजशिववीरस्य …………………………….. दुर्गं प्रविवेश।
शब्दार्थाः-चरः = सेवक। झञ्झाविभीषिकाभिः = तूफान के उत्पात से। स्रोतः = नाला। तुरङ्गः = घोटकः। अभिहितः = टकराया। माभूत् = न हो। आरुरोहः = सवार होकर। द्वाररोधः = दरवाजा बन्द होना। यामिकेन = प्रहरी के द्वारा। स्विन्नानि = पसीने से तर। गात्राणि = शरीर के सभी अङ्ग। आलप्यमानः = बातचीत करते हुए। प्रविवेश = प्रवेश किया। विधीयताम् = करें। नावहसि = प्राप्त नहीं करता है। त्वरितगत्या = तेजी से।।
हिन्दी-अनुवाद-यह वीर शिवाजी महाराज की दया का पात्र सेवक है, तब कैसे तूफान की विभीषिका से भयभीत होकर स्वामी के कार्य की चिन्ता न करे? तब इसके बाद भी यह (सेवक) उसी प्रकार तीव्र गति से घोड़े को चलाता हुआ चलता है। इसके बाद किसी नाले को पार करते हुए इसका घोड़ा किसी पेड़ की शाखा से टकराकर जमीन पर गिर जाता है। उसी ही समय वह पुन: तैयार होकर उछलकर घोड़े की पीठ पर सवार हो जाता है। घोड़ा पुनः तीव्र गति से चलना प्रारम्भ कर देता है और घुड़सवार दुगुने उत्साह से युक्त होकर मेरे पहुँचने से पहले कहीं दरवाजा बन्द न हो जाय।
इस प्रकार (सोचता हुआ) शीघ्र तोरण दुर्ग की धरती पर पहुँच गया। तदनन्तर कौन हैं आप? कहाँ से (आये हैं) आप? प्रहरी के द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर अपना परिचय दिया। द्वारपाल के द्वारा भी-अच्छा हुआ-अच्छा हुआ, महान परिश्रम से आ गये हो। तुम्हारा घोड़ा (भी) लम्बी साँसें ले रहा है, तुम्हारी शरीर पसीने से तर है, तुम्हारे कपड़े भीग गये हैं, धन्य हो (तुम)—फिर भी दुखी नहीं हो, समय से आ गये हो, दुर्ग के स्वामी तुम्हारा ही रास्ता देख रहे थे। शीघ्र ही प्रवेश करो और उनसे साक्षात्कार करो-इस प्रकार आदरपूर्वक वार्तालाप करते हुए दुर्ग में प्रवेश किया।