Rajasthan Board RBSE Class 12 Psychology Chapter 6 अभिवृत्ति तथा सामाजिक संज्ञान
RBSE Class 12 Psychology Chapter 6 अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 12 Psychology Chapter 6 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पूर्वाग्रह एक प्रकार की –
(अ) अभिवृत्ति है
(ब) भाव है
(स) विचार है
(द) व्यवहार है
उत्तर:
(अ) अभिवृत्ति है
प्रश्न 2.
वह व्यक्ति जो छवि निर्माण की प्रक्रिया में छवि बनाता है, वह कहलाता है –
(अ) लक्ष्य
(ब) प्रत्यक्षणकर्ता
(स) छवि निर्माता
(द) समाज मनोवैज्ञानिक
उत्तर:
(ब) प्रत्यक्षणकर्ता
प्रश्न 3.
मनोवृत्ति के घटक होते हैं –
(अ) 5
(ब) 2
(स) 1
(द) 3
उत्तर:
(द) 3
प्रश्न 4.
संज्ञानात्मक विसन्नादिता का सिद्धान्त सम्बन्धित है –
(अ) रूढ़िवादिता से
(ब) अभिवृत्ति से
(स) अभिवृत्ति परिवर्तन से
(द) प्रसामाजिक व्यवहार से
उत्तर:
(स) अभिवृत्ति परिवर्तन से
प्रश्न 5.
लक्ष्य के व्यवहार के लिए कारण देना किस मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया का मुख्य तत्व है?
(अ) रूढ़िवादिता
(ब) गुणारोपण
(स) पूर्वाग्रह
(द) छवि निर्माण
उत्तर:
(ब) गुणारोपण
प्रश्न 6.
पूर्वाग्रह की व्यवहारात्मक अभिव्यक्ति कहलाती है –
(अ) अभिवृत्ति
(ब) असमायोजन
(स) सामाजिक दूरी
(द) विभेद
उत्तर:
(द) विभेद
प्रश्न 7.
अभिवृत्ति परिवर्तन के लिए आवश्यक है –
(अ) संचार
(ब) मैत्री
(स) वार्तालाप
(द) अनुनयात्मक संचार
उत्तर:
(द) अनुनयात्मक संचार
RBSE Class 12 Psychology Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पूर्वाग्रह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पूर्वाग्रह एक तरह की मनोवृत्ति है जो तथ्यों पर आधारित नहीं होती है। पूर्वाग्रह का स्वरूप स्वीकारात्मक हो अथवा नकारात्मक, इसमें मनोवृत्ति के तीनों संघटक अर्थात् संज्ञानात्मक, भावात्मक एवं व्यवहारात्मक संघटक पाये जाते हैं।
पूर्वाग्रह समाज के लिए घातक होते हैं तथा इन्हें नियंत्रित करने के लिए भी समाज मनोवैज्ञानिकों ने अनेक उपाय खोजे हैं। उचित समाजीकरण तथा पूर्वाग्रह के लक्ष्य के साथ अन्तःक्रिया कुछ प्रमुख विधियाँ हैं जिनके द्वारा पूर्वाग्रह को नियन्त्रित किया जा सकता है।
पूर्वाग्रह को अंग्रेजी में ‘prejudice’ कहते हैं, जो लैटिन भाषा के ‘prejudicium’ से उद्गमित हुआ है। ‘pre’ का अर्थ है ‘पहले’ (Prior) और ‘Judicium’ का अर्थ है निर्णय (Judgement)। इस प्रकार पूर्वाग्रह का शाब्दिक अर्थ हुआ-‘पूर्व-निर्णय’ (Pre-judgement)। अत: बिना किसी बात का परीक्षण किये हुए ही किसी वस्तु या व्यक्ति के सम्बन्ध में अपनी धारणा कायम कर लेते हैं।
प्रश्न 2.
गुणारोपण क्या है ?
उत्तर:
गुणारोपण (Attribution) सामाजिक संज्ञान की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। जिस प्रकार सामाजिक संज्ञान में उन शारीरिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जिनके द्वारा हम अपने, अन्य व्यक्तियों और सामाजिक दशाओं से बनी हमारी सामाजिक दुनिया का अर्थ समझ पाते हैं, इनसे सम्बन्धित विभिन्न सूचनाओं की व्याख्या, विश्लेषण, स्मरण तथा उपयोग कर पाते हैं।
उसी प्रकार गुणारोपण भी सामाजिक निर्णय लेने की एक ऐसी ही युक्तिपरक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपने अथवा दूसरों के द्वारा किए गए व्यवहारों व कार्यों की उत्पत्ति के स्रोत (कारणों) को जानने का प्रयास करता है तथा इस क्रम में अपनी तरफ से कोई कारण व्यवहार विशेष के प्रति आरोपित कर देता है। अत: इस प्रकार गुणारोपण एक जटिल संज्ञानात्मक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्तियों द्वारा प्रदर्शित व्यवहारों व कार्यों के कारणों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
प्रश्न 3.
अभिवृत्ति में कौन-से घटक विद्यमान होते हैं?
उत्तर:
अभिवृत्ति के तीन महत्वपूर्ण घटक हैं जो निम्नलिखित हैं –
1. संज्ञानात्मक अवयव:
ये उद्दीपक के प्रति व्यक्ति के विचार एवं विश्वासों को अभिव्यक्त करता है। जैसे-कोई लड़की खाना बनाने को लेकर सोचती है यह एक कला है तथा यह हर लड़की को सीखना चाहिए। यह विचार भोजन बनाने को सीखने के प्रति संज्ञान को दर्शाते हैं।
2. भावात्मक अवयव:
यह व्यक्ति के उद्दीपक के प्रति भाव या अनुभव, उनकी दिशा एवं तीव्रता को व्यक्त करता है। खाना बनाने की कला को सीखने की अनुभूति का होना भाव को प्रकट करता है।
3. व्यवहारात्मक अवयव:
ये उद्दीपक के प्रति व्यक्ति का व्यवहार या व्यवहार प्रवृत्ति को व्यक्त करता है। अर्थात् यह स्पष्ट है कि व्यक्ति वस्तु के प्रति जैसा संज्ञान रखता है, उसी के अनुरूप भाव भी होते हैं एवं अपने संज्ञानों एवं भावों के अनुरूप व्यवहार प्रदर्शित करता है। ये तीनों घटक एक-दूसरे से सम्बद्ध होते हैं एवं इनमें संगति पायी जाती है।
प्रश्न 4.
प्रसामाजिक व्यवहार को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
प्रसामाजिक व्यवहार को सबसे उत्तम प्रकार का व्यवहार माना जाता है। व्यक्ति के जिस व्यवहार से दूसरों को लाभ पहुँचता हो और जिसको समाज में वांछनीय एवं उपयोगी माना जाता हो, उसे प्रसामाजिक व्यवहार कहा जाता है। व्यक्ति के वे ही व्यवहार प्रसामाजिक व्यवहार माने जाते हैं जिनको व्यक्ति अपने हित को दृष्टि में न रखते हुए सामाजिक परिप्रेक्ष्य में करता है।
उदाहरण के लिए-गरीब असहाय लोगों की सहायता करना, समाज सेवी संस्था की स्थापना करना तथा रक्तदान आदि को प्रसामाजिक व्यवहार की श्रेणियों में रखा जाता है।
प्रश्न 5.
रूढ़िवादिता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
पूर्वाग्रह के संज्ञानात्मक संघटक की अभिव्यक्ति रूढ़िवृत्तियों के रूप में होती है, जो एक तरह का अति-सामान्यीकरण है। सेकर्ड तथा बैकमैन के अनुसार-रूढ़ियुक्ति प्रतीकीकरण का एक अतिरंजित रूप है जिसकी तीन विशेषताएँ होती हैं –
- लोग व्यक्तियों के एक वर्ग को निश्चित विशेषताओं के आधार पर पहचानते हैं।
- व्यक्तियों के उस वर्ग के प्रति निश्चित विशेषताओं को आरोपित करने में लोग सहमत होते हैं।
- लोग उस वर्ग के किसी भी व्यक्ति पर उन विशेषताओं को आरोपित कर देते हैं।
प्रश्न 6.
सामाजिक संज्ञान क्या है?
उत्तर:
सामाजिक वातावरण, विशेषकर दूसरे व्यक्तियों से प्राप्त सूचना का हम कैसे विश्लेषण एवं उपयोग करते हैं, उस पर किस प्रकार सोच-विचार करते हैं, उसे कैसे याद रखते हैं तथा उसका प्रतिनिधित्व स्मृति में कैसे करते हैं इन सभी विषयों का अध्ययन सामाजिक संज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है।
समाज मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन प्रदर्शित करते हैं कि व्यक्ति नयी सूचना के प्रक्रमण, संगठन तथा भण्डारन के लिए पूर्ववर्ती संज्ञानात्मक संरचनाओं का सहारा लेते हैं।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 6 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अभिवृत्ति निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
अभिवृत्ति निर्माण की प्रक्रिया में समाजीकरण की एक अहम् भूमिका होती है। अभिवृत्तियों का अधिगम या सीखना अनेक प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है जो इस प्रकार है –
A. साहचर्य:
- साहचर्य समाज के व्यक्तियों एवं वस्तुओं के प्रति व्यक्ति में अभिवृत्तियों को विकसित करता है।
- इसके द्वारा अनेक बार किसी एक व्यक्ति या वस्तु के सकारात्मक या नकारात्मक गुणों की वजह से उसके साथ युग्मित होने वाले अन्य व्यक्ति अथवा वस्तु के प्रति भी व्यक्ति की अभिवृत्ति सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो जाती है।
B. पुरस्कार एवं दण्ड:
- यदि किसी अभिवृत्ति को प्रदर्शित करने के लिए व्यक्ति को पुरस्कृत किया जाए, तो उसके द्वारा उस अभिवृत्ति को भविष्य में भी प्रदर्शित करने की सम्भावना बढ़ जाएगी।
- यदि व्यक्ति के साथ कोई अनुचित कार्य को किया जाए तो उसे दण्ड दिया जाता है।
C. प्रतिरूपण:
- व्यक्ति अपने सामाजिक परिवेश में स्थित अन्य व्यक्तियों के व्यवहारों का अवलोकन करके तथा अनुकरण द्वारा उन व्यवहारों को सीखता है।
- किसी अन्य को किसी अभिवृत्ति को प्रकट करने पर पुरस्कार या दण्ड को देखकर ही व्यक्ति स्वयं अपनी अभिवृत्तियों को विकसित कर लेता है।
D. अनुनयात्मक संचार:
- इसके अनुसार अनुनयात्मक संचार अभिवृत्ति परिवर्तन में भी तभी सफल होता है जब इससे व्यक्ति में दो स्पष्ट प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न होती हैं।
- इसके माध्यम से नई सूचना जब व्यक्ति के मन में अपनी अभिवृत्ति के लिए प्रश्न उठाकर सोचने के लिए विवश कर देती है, तब अभिवृत्ति में बदलाव होता है।
- अभिवृत्ति परिवर्तन के लिए सूचना स्रोत तभी प्रभावशाली होता है जब उनमें विश्वसनीयता का गुण हो। विश्वसनीयता का तात्पर्य है कि सूचना स्रोत के सम्बन्ध में भरोसा हो कि अनुनय करने वाले को सम्बन्धित विषय का उच्चस्तरीय ज्ञान है तथा वह भरोसेमंद है।
प्रश्न 2.
छवि निर्माण की प्रक्रिया को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
छवि निर्माण का अर्थ एवं स्वरूप-छवि निर्माण को व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण भी कहा जाता है। इससे तात्पर्य उस सामाजिक स्वरूप और सामाजिक प्रक्रिया से है जिसमें एक व्यक्ति अपने आस-पास के दूसरे व्यक्तियों के बारे में अपनी वैयक्तिक राय, विचार, छवि या धारणा बनाता है या निर्णय करता है। व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण या छवि निर्माण प्रत्यक्षणकर्ता की संवेदनात्मक अनुभूतियों पर निर्भर होने के साथ-साथ अन्य व्यक्तियों से प्राप्त सूचनाओं पर भी निर्भर करता है।
सामान्यतः छवि निर्माण में तीन परिस्थितियों पर निर्भर करता है –
- प्रत्यक्षणकर्ता को दूसरे व्यक्तियों के सम्बन्ध में निर्णय करते समय प्राप्त सूचनाओं की मात्रा क्या है?
- प्रत्यक्षणकर्ता और दूसरे व्यक्तियों के मध्य किस प्रकार की अंत:क्रियाएँ हैं?
- प्रत्यक्षणकर्ता और दूसरे व्यक्तियों के मध्य सम्बन्धों की स्थापना किस मात्रा में हुई है?
छवि निर्माण की विशेषताएँ:
- छवि निर्माण में जीवित व्यक्ति एक-दूसरे का प्रत्यक्षीकरण करते हैं।
- मुख्यतः मनोवैज्ञानिक वातावरण से निर्धारित होने के कारण व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण में जटिलता का गुण पाया जाता है। इसी तरह मनोवैज्ञानिक वातावरण में परिवर्तन के कारण व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण भी निरन्तर परिवर्तनशील रहता है।
- इसमें प्रत्यक्षकर्ता की मनोवृत्तियाँ, मानसिक वृत्तियों, मूलतंत्रों, पूर्वाग्रहों व विश्वासों आदि को ज्ञात करने का एक अति महत्वपूर्ण साधन है। व्यक्ति दूसरों का प्रत्यक्षण करते समय, छवि बनाते समय अथवा निर्णय करते समय मूलतः इन्हीं व्यक्तिगत कारकों का सहारा लेता है।
- प्रकार्यात्मक कारकों की अधिक सक्रियता के कारण व्यक्ति प्रत्यक्षण में अस्पष्टता का गुण पाया जाता है।
- छवि निर्माण में चयन, संगठन तथा अनुमान से सम्बन्धित महत्वपूर्ण पक्ष भी सम्मिलित होते हैं। अत: छवि निर्माण की अनेक विशेषताएँ हैं और यह सामान्य प्रत्यक्षण से काफी भिन्न होता है।
प्रश्न 3.
अभिवृत्ति परिवर्तन पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
अभिवृत्ति परिवर्तन की अवधारणा को अनुनयात्मक संचार के माध्यम से समझा जा सकता है, अत: अभिवृत्ति परिवर्तन व अनुनयात्मक संचार का विवरण इस प्रकार है –
1. अभिवृत्ति परिवर्तन:
अभिवृत्ति परिवर्तन का विषय समाज मनोवैज्ञानिकों के मध्य एक प्रमुख विषय रहा है। समस्त अध्ययनों के सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि व्यक्ति की अभिवृत्ति में परिवर्तन करने के लिए अनुनयात्मक संचार उपयोगी है। व्यक्ति के समक्ष वाचिक स्तर पर उसकी अभिवृत्ति के विपरीत ऐसी दलीलें प्रस्तुत की जानी चाहिए कि वह दलीतों से सूचना ग्रहण कर अपनी अभिवृत्ति में स्वयं परिवर्तन करे।
दूसरा तरीका है कि व्यक्ति के सामने अनुक्रिया या व्यवहार करने की ऐसी स्थिति उत्पन्न की जाए जिसमें उसे बाध्य होकर अपनी अभिवृत्ति के विपरीत आचरण करना पड़े एवं आचरण को तर्कसंगत सिद्ध करने के लिए उसे अपनी अभिवृत्ति में परिवर्तन करना पड़े। इस प्रकार व्यक्ति में संज्ञान एवं क्रिया के स्तरों पर विसंगति की ऐसी स्थिति बनायी जाए कि उसे बाध्य होकर अपनी अभिवृत्ति में परिवर्तन करना पड़े।
2. अनुनयात्मक संचार:
अनुनय सिद्धान्त की मान्यता है कि अनुनयात्मक संचार अभिवृत्ति परिवर्तन में तभी सफल होता है जब इससे व्यक्ति में दो स्पष्ट प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न होती हैं। पहली प्रतिक्रिया व्यक्ति के मत को संशयात्मक बना देती है और दूसरी प्रतिक्रिया उस प्रश्न का उत्तर प्रस्तुत करती है। इस प्रकार नई सूचना जब व्यक्ति के मन में अपनी अभिवृत्ति के लिए प्रश्न उठा कर सोचने के लिए विवश कर देती है, तब अभिवृत्ति परिवर्तन होता है। अनुनयात्मक संचार के चार प्रमुख पक्ष होते हैं –
- सूचना स्रोत या संचार स्रोत अभिवृत्ति परिवर्तन के लिए तभी प्रभावशाली होता है जब उसमें विश्वसनीयता का गुण पाया जाता हो।
- संदेश भी अनुनयात्मक संचार का एक अहम् पक्ष है जिसमें संचारकर्ता को संदेश के माध्यम से सूचना प्रदान की जाती है।
- लक्षित व्यक्ति अनुनयात्मक संचार में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
- संचार का माध्यम संचारकर्ता के कहने या बात करने की शैली भी अभिवृत्ति परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है।
प्रश्न 4.
प्रसामाजिक व्यवहार क्यों महत्वपूर्ण है ?
उत्तर:
प्रतिसामाजिक व्यवहार से आशय दूसरों की सहायता करने या दूसरों के प्रति सहयोगी व्यवहार प्रदर्शित करने से है। प्रायः अधिकांश व्यक्ति अपने हित के साथ-साथ अन्य व्यक्तियों के हित के लिए भी कुछ कार्य करने की इच्छा रखते हैं और इसके लिए प्रयास भी करते हैं। ऐसे प्रयासों को ही प्रतिसामाजिक व्यवहार कहा जाता है। प्रतिसामाजिक व्यवहार वास्तव में एक विस्तृत श्रेणी है, जिनमें उन सभी क्रियाकलापों व व्यवहारों को सम्मिलित किया जाता है, जिनका उद्देश्य बिना किसी स्वार्थ या लाभ के व्यक्ति, समाज या मानवता की भलाई करना होता है।
प्रसामाजिक व्यवहार निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है –
1. सहायता के लिए:
प्रसामाजिक व्यवहार का मुख्य कार्य समाज में सभी असहाय व्यक्तियों या समूहों को सहायता प्रदान करना है। जिससे उनका कल्याण हो सके तथा उनके जीवन यापन करने में उन्हें सहायता मिल सके। जैसे-बाढ़ या भूकम्प पीड़ितों की सहायता करना, बीमार व्यक्ति की मदद करना तथा अनेक सहायता शिविर का आयोजन करना।
2. मानकों के अनुरूप होना:
प्रसामाजिक व्यवहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये समाज के आदर्श नियमों या मानकों के अनुरूप होते हैं। इस कार्य से व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति उच्च होती है।
3. समाज-सम्मत कार्यों को प्रोत्साहन देना:
प्रसामाजिक व्यवहारों को समाज में इस कारण भी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि ये समाज में विरोधी कार्यों को बल प्रदान न करके समाज सम्मत कार्यों को प्रोत्साहन देते हैं। जिसमें व्यक्ति, समाज व राष्ट्र का भी सम्पूर्ण रूप से विकास हो सके।
4. स्वेच्छानुसार व्यवहार:
प्रसामाजिक व्यवहार को महत्वपूर्ण इसलिए भी माना जाता है क्योंकि व्यक्ति इसे समाज में किसी भय, स्वार्थ या आवेश से वशीभूत होकर नहीं करते हैं। बल्कि प्रसामाजिक व्यवहार का प्रदर्शन व्यक्ति बिना किसी दबाव के स्वेच्छानुसार करता है।
5. नैतिक कर्त्तव्य:
प्रसामाजिक व्यवहार को महत्वपूर्ण मानने का एक कारण यह भी है कि व्यक्ति लोगों की सहायता करने को अपना परम नैतिक कर्त्तव्य मानता है इसलिए वह लोगों की सहायता करता है।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 6 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Psychology Chapter 6 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जन्म के समय बच्चा होता है –
(अ) सामाजिक
(ब) असामाजिक
(स) नि: सामाजिक
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) नि: सामाजिक
प्रश्न 2.
समाजीकरण ………. की प्रक्रिया है –
(अ) सामाजिक अधिगम
(ब) वाचिक अधिगम
(स) गत्यात्मक अधिगम
(द) प्रक्रियात्मक अधिगम
उत्तर:
(अ) सामाजिक अधिगम
प्रश्न 3.
किस प्रक्रम में व्यक्ति जैविक प्राणी से सामाजिक प्राणी में विकसित हो जाता है –
(अ) अनुरूपता
(ब) समाजीकरण
(स) आदर्श नियम
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) समाजीकरण
प्रश्न 4.
प्राथमिक समाजीकरण कहाँ होता है?
(अ) बाहरी समूह में
(ब) व्यावसायिक संघ में
(स) राजनीति में
(द) परिवार में
उत्तर:
(द) परिवार में
प्रश्न 5.
‘समाजीकरण की प्राथमिक पाठशाला’ किसे कहा जाता है?
(अ) परिवार
(ब) पड़ोस
(स) समूह
(द) समुदाय
उत्तर:
(अ) परिवार
प्रश्न 6.
अभिवृत्ति कैसी होती है?
(अ) प्रदत्त
(ब) अर्जित
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) अर्जित
प्रश्न 7.
अनुनयात्मक संचार के कितने पक्ष होते हैं?
(अ) आठ
(ब) छः
(स) चार
(द) दो
उत्तर:
(स) चार
प्रश्न 8.
लोगों के व्यवहार के कारणों को समझना एवं इन कारणों के सम्बन्ध में निर्णय लेना कहलाता है –
(अ) गुणारोपण
(ब) प्रत्यक्षीकरण
(स) विश्लेषण
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) गुणारोपण
प्रश्न 9.
गुणारोपण कैसी प्रक्रिया है?
(अ) एकात्मक
(ब) द्विविमात्मक
(स) त्रिमुखी
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) द्विविमात्मक
प्रश्न 10.
निम्न में से पूर्वाग्रह क्या है?
(अ) मनोवृत्ति
(ब) चिन्तन प्रवृत्ति
(स) संवेग
(द) अभिप्रेरणा
उत्तर:
(अ) मनोवृत्ति
प्रश्न 11.
वह व्यवहार जो विभेदन पर आधारित हो, कहलाता है –
(अ) पूर्वाग्रह
(ब) समाजीकरण
(स) प्रेरक व्यवहार
(द) सरलीकरण
उत्तर:
(अ) पूर्वाग्रह
प्रश्न 12.
पूर्वाग्रह को दूर करने का कौन-सा उपाय नहीं है?
(अ) शिक्षा
(ब) प्रचार
(स) भोजन
(द) कानून
उत्तर:
(स) भोजन
प्रश्न 13.
पूर्वाग्रह मूलतः किस मूल प्रवृत्ति पर आधारित है?
(अ) जीवन मूल प्रवृत्ति
(ब) प्रेम मूल प्रवृत्ति
(स) सुरक्षा मूल प्रवृत्ति
(द) घृणा मूल प्रवृत्ति
उत्तर:
(द) घृणा मूल प्रवृत्ति
प्रश्न 14.
निम्न में से कौन रूढ़ियुक्ति की विशेषता नहीं है?
(अ) यह एक मानसिक प्रतिमा है
(ब) यह अति सामान्यीकरण पर आधारित है
(स) परिवर्तन की विरोधी है
(द) यह सत्यता पर आधारित है
उत्तर:
(द) यह सत्यता पर आधारित है
प्रश्न 15.
निम्नलिखित में से कौन पूर्वाग्रह निर्माण का प्रमुख कारण है?
(अ) सामाजिक दूरियाँ
(ब) श्रेष्ठता की भावनाएँ
(स) सांस्कृतिक भिन्नताएँ
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
प्रश्न 16.
प्रतिसामाजिक या प्रसामाजिक व्यवहार का अर्थ है –
(अ) समाजोपयोगी व्यवहार करना
(ब) समाज-विरोधी व्यवहार करना
(स) कर्त्तव्य पूर्ति करना
(द) नैतिक व्यवहार करना
उत्तर:
(अ) समाजोपयोगी व्यवहार करना
प्रश्न 17.
प्रतिसामाजिक या प्रसामाजिक व्यवहार की कितनी श्रेणियाँ हैं?
(अ) चार
(ब) तीन
(स) दो
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) दो
प्रश्न 18.
प्रसामाजिक व्यवहार के दो प्रकार कौन से हैं?
(अ) सहायतापरक व्यवहार
(ब) परोपकारी व्यवहार
(स) दोनों ही
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) दोनों ही
प्रश्न 19.
कौन-सा उदाहरण प्रसामाजिक व्यवहार का नहीं है?
(अ) बाढ़ पीड़ितों की मदद करना
(ब) गरीबों की मदद करना
(स) दुर्घटना में घायल व्यक्ति की मदद करना
(द) चोरी में चोर की सहायता करना
उत्तर:
(द) चोरी में चोर की सहायता करना
प्रश्न 20.
सहायतापरक व्यवहार का अर्थ है –
(अ) स्वयं को खतरे में डाले बिना ही दूसरों की मदद करना
(ब) स्वयं को खतरे में डालकर दूसरों की मदद करना
(स) मानकों की अपेक्षा करके दूसरों की मदद करना
(द) स्व हित के लिए दूसरों की मदद करना
उत्तर:
(अ) स्वयं को खतरे में डाले बिना ही दूसरों की मदद करना
RBSE Class 12 Psychology Chapter 6 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समाजीकरण की प्रक्रिया का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजीकरण मूलतः सामाजिक अधिगम की प्रक्रिया है, जिसमें विभिन्न साधनों और अभिकर्ताओं के माध्यम से बालक को सामजिक-सांस्कृतिक जीवन शैली को अधिगमित कराया जाता है। समाजीकरण प्रक्रम के कारण ही बालक अपने जैविक व्यक्तित्व में समूह या समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक तत्वों को सम्मिलित कर पाने में सक्षम होता है।
संक्षेप में व्यक्ति को जैविक प्राणी से सामाजिक प्राणी में विकसित करने की प्रक्रिया ही समाजीकरण है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति अन्य दूसरे व्यक्तियों से अंत:क्रियात्मक सम्बन्ध बनाता है, जिसका उत्पाद सामाजिक-सांस्कृतिक तथ्यों, मूल्यों, अपेक्षाओं तथा क्रियाओं आदि के बारे में प्राप्त ज्ञान तथा उनके प्रति अनुकूलन व अनुरूपता प्रदर्शित करने के रूप में सामने आता है।
प्रश्न 2.
समाजीकरण की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजीकरण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
- समाजीकरण एक प्रकार की अधिगम प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति विविध सामाजिक क्रियाकलापों व कार्यों में योग्यता प्राप्त करता है।
- समाजीकरण एक अंत:क्रियात्मक प्रक्रिया है।
- यह एक सतत् प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के जन्म से प्रारम्भ होकर मृत्युपर्यन्त तक चलती रहती है।
- इस प्रक्रिया में समाज के सांस्कृतिक मानकों और संस्कृति के अन्य तत्वों को ग्रहण करने तथा सांस्कृतिक संरचण की प्रक्रिया शामिल होती है।
- समाजीकरण व्यक्ति के विकास या परिवर्तन की प्रक्रिया है।
- समाजीकरण एक अनुकूलन की प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति समाज या सामाजिक समूह के व्यवहार-मूल्यों, प्रतिमानों तथा विश्वासों को स्वीकारता है तथा उनके साथ अनुकूलन स्थापित करना सीखता है।
प्रश्न 3.
छवि निर्माण की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
छवि निर्माण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
- छवि निर्माण में जीवित व्यक्ति एक-दूसरे का प्रत्यक्षीकरण करते हैं।
- छवि निर्माण को व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण तथा निर्णय प्रक्रिया के नाम से भी जाना जाता है।
- इसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के प्रति कोई छवि निर्मित करता है या निर्णय देता है। इसलिए इसे निर्णय प्रक्रिया भी कहा जाता है।
- प्रकार्यात्मक कारकों की अधिक सक्रियता के कारण छवि निर्माण में अस्पष्टता का गुण पाया जाता है।
- मनोवैज्ञानिक वातावरण से निर्धारित होने के कारण व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण में जटिलता का गुण पाया जाता है।
- छवि निर्माण की प्रक्रिया निरन्तर परिवर्तनशील भी रहती है।
प्रश्न 4.
गुणारोपण की प्रकृति या स्वरूप का विवेचन करें।
उत्तर:
गुणारोपण की प्रकृति या स्वरूप को अनेक बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं –
- गुणारोपण एक जटिल संज्ञानात्मक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्तियों द्वारा प्रदर्शित व्यवहारों व कार्यों के कारणों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
- गुणारोपण का सम्बन्ध व्यवहार के ‘क्यों’ पक्ष से होता है।
- गुणारोपण एक द्विविमात्मक प्रक्रिया (Two Dimensional Process) है। इसमें व्यक्ति सिर्फ दूसरों के व्यवहारों का ही नहीं वरन् अपने व्यवहारों के कारणों को भी समझने तथा उससे संगत निर्णय देने का प्रयास करता है।
- गुणारोपण का सम्बन्ध सांकेतिक निर्णय से होता है। इसमें व्यक्ति सिर्फ व्यवहार के कारण को समझने का प्रयास ही नहीं करता है बल्कि उसी के सन्दर्भ में अपनी तरफ से कोई निर्णय देने का भी प्रयास करता है।
प्रश्न 5.
छवि-निर्माण में अशाब्दिक संकेतों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
छवि निर्माण में अशाब्दिक संकेतों का महत्व अनेक कारणों से अधिक बतलाया गया है, ये प्रमुख हैं –
1. आमने-सामने की अंत: क्रिया में जहाँ केवल शाब्दिक व्यवहार ही संचार का माध्यम होता है, व्यक्ति अपनी सच्ची भावनाओं को व्यक्त न करके छिपा लेता है फिर भी व्यक्ति अपने अशाब्दिक व्यवहारों के माध्यम से काफी हद तक इन भावनाओं को प्रकट कर देता है जिसमें छवि निर्माण में आसानी रहती है।
2. जब लक्ष्य व्यक्ति के बारे में प्रत्यक्षणकर्ता अधिक सूचनाएँ प्राप्त नहीं कर पाता है। तब उस परिस्थिति में अशाब्दिक संकेत छवि-निर्माण का आधार बनते हैं। अशाब्दिक संकेतों का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि इन संकेतों के आधार पर प्रत्यक्षणकर्ता कुछ उन चरों की पहचान सरलता से कर लेता है जो आमने-सामने की स्थिति में जटिलता से छिपे हुए थे।
प्रश्न 6.
पूर्वाग्रह की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पूर्वाग्रह की विशेषताएँ:
- पूर्वाग्रह में अति सामान्यीकरण का गुण पाया जाता है।
- पूर्वाग्रह में कठोरता अधिक तथा लचीलापन कम पाया जाता है।
- पूर्वाग्रह व्यक्ति के प्रत्यक्षीकरण, चिन्तन, स्मृति व भाव आदि को सार्थक ढंग से प्रभावित करता है।
- पूर्वाग्रह में परिवर्तन की संभावना न्यूनतम होती है।
- पूर्वाग्रह एक तरह का पूर्व-निर्णय है। यह एक ऐसी विश्वास या मत है, जो तथ्यों पर आधारित नहीं होता है।
- पूर्वाग्रह में संवेगात्मक रंग पाया जाता है। इसमें पक्षपात, संवेगात्मक दृढ़ता तथा असंगति की विशेषता परिलक्षित होती है।
प्रश्न 7.
रूढ़ियुक्तियों की प्रकृति को समझाइए।
उत्तर:
रूढ़ियुक्तियों की प्रकृति:
- रूढ़िवादिता एक मानसिक चित्र या प्रतिमा है।
- रूढ़िवादिता एक सम्मत धारणा या विश्वास है।
- रूढ़िवादिता अपेक्षाकृत स्थिर होती है।
- ये सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों होती है।
- ये सामाजिक पारस्परिक क्रिया में सहायक होती है।
- ये प्रकट तथा अप्रकट दोनों होती है।
- ये अति सामान्यीकरण पर आधारित होती है।
प्रश्न 8.
पूर्वाग्रह तथा रूढ़िवादी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्वाग्रह | रूढ़ियुक्ति/रूढ़िवादी |
1. पूर्वाग्रह एक मनोवृत्ति है। | 1. रूढ़ियुक्ति एक धारणा या प्रतिमा है। |
2. पूर्वाग्रह अनुकूल अथवा प्रतिकूल होते हैं। | 2. रूढ़ियुक्ति में यह विशेषता नहीं पायी जाती है। |
3. पूर्वाग्रह में रूढ़ियुक्तियों की अपेक्षा स्थिरता कम होती है। | 3. रूढ़ियुक्तियों में तुलनात्मक रूप से अधिक स्थिरता पायी जाती है। |
4. पूर्वाग्रह विरोधी अभिवृत्ति या विरोधी भाव है। | 4. रूढ़ियुक्ति पूर्व कल्पित मतों का संकेत देती है। |
5. ये सामाजिक एकता व संगठन को बनाये रखने में बाधक होते हैं। | 5. ये सामाजिक एकता व संगठन को बनाये रखने में सहायक होते हैं। |
प्रश्न 9.
प्रसामाजिक व्यवहार की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रसामाजिक व्यवहार की प्रकृति के सम्बन्ध में निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं –
- यह व्यवहार व्यक्ति बिना किसी दबाव के स्वेच्छानुसार करता है।
- इस व्यवहार का उद्देश्य दूसरों की सहायता कर उनकी भलाई करना होता है।
- इस व्यवहार को करने वाला व्यक्ति बिना किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के करता है।
- यह व्यवहार समाज के नियमों व मानकों के अनुरूप होता है।
- इस तरह का व्यवहार करने से व्यक्ति को किसी प्रकार के खतरे या हानि की सम्भावना नहीं होती है।
- ऐसा व्यवहार करने वाले व्यक्ति ऐसा व्यवहार करना अपना नैतिक कर्त्तव्य समझते हैं व ऐसा करके उन्हें आत्म-संतुष्टि की अनुभूति होती है।
प्रश्न 10.
अनुकरण व प्रतिरूपण की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर:
A. अनुकरण:
- यह समाजीकरण प्रक्रम की प्रमुख तकनीक है।
- दूसरों के व्यवहारों को जान-बूझकर या अचेत्य रूप से नकल करना ही अनुकरण कहलाता है।
- अनुकरण के द्वारा व्यक्ति सहयोग, परोपकार व व्यवहार आचरण आदि को सीखता है।
B. प्रतिरूपण:
- यह वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने लिए एक या इससे अधिक आदर्श मॉडल निर्धारित कर उनके व्यवहार प्रतिरूपों का निरीक्षण कर उस मॉडल की नकल करता है।
- बच्चे प्रायः अपने माता-पिता को ही आदर्श मानकर उनकी व्यवहारगत शैलियों का प्रेक्षण कर उनके समानुरूपी व्यवहार अर्थात् मॉडलिंग या प्रतिरूपण करते हैं।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 6 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समाजीकरण की प्रमुख प्रविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनोवैज्ञानिकों ने ऐसी अनेक प्रविधियों की पहचान की है, जिनसे समाजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित व संपन्न होती है –
1. सुझाव:
सुझाव भी समाजीकरण की एक प्रमुख तकनीक है पालन-पोषण के क्रम में प्रायः बालकों को अपने माता-पिता, भाई-बहनों, मित्रों व शिक्षकों आदि से समय-समय पर सुझाव मिला करते हैं। इन सुझावों से न केवल व्यक्तित्व विकास में वृद्धि होती है, अपितु उनके समाजीकरण में भी काफी सहायता मिलती है।
2. सहानुभूति:
ये भी समाजीकरण प्रक्रम का एक अहम् रचना तंत्र माना जाता है। इसका कारण यह है कि सहानुभूति से व्यक्ति में अनेक संवेगों व भावनाओं का विकास होता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अनेक मनोचित व्यवहारों को सीखता है। प्रायः शोधों में यह पाया गया है कि जिन व्यक्तियों में बाल्यवास्था में ही सहानुभूति की भावना विद्यमान रहती है, ऐसे व्यक्तियों का समाजीकरण उत्तम ढंग से होता है।
3. सहयोग:
समाजीकरण की प्रक्रिया पारस्परिक सहयोग की भावना पर भी निर्भर करती है। वस्तुत: सामाजिक सम्बन्धों की नींव ही सहयोग की भावना पर पड़ती है क्योंकि सहयोग की भावना के कारण ही एक-दूसरे के साथ विचारों एवं वस्तुओं के आदान-प्रदान की प्रक्रिया विकसित होती है।
4. प्रतियोगिता:
समाजीकरण की प्रक्रिया में प्रतियोगिता का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। प्रतियोगी व्यवहारों के क्रम में व्यक्ति स्वत: अनेक सामाजिक व्यवहारों को भी अधिगमित कर लेता है जिसके कारण उसके समाजीकरण प्रक्रम में तीव्रता व विविधता आती है।
5. पालन-पोषण की प्रणाली:
समाजीकरण की प्रक्रिया में पालन-पोषण की प्रणाली सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना-तंत्र या प्रविधि है क्योंकि पालन-पोषण की व्यवस्थागत प्रणालियाँ ही बच्चों के सहज सामाजिक विकास की दिशा को तय करती हैं व उन्हें आगे बढ़ाने के उत्तरदायित्वों का निर्वाह भी करती हैं।
अतः इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति का समाजीकरण अनेक प्रविधियों के माध्यम से संपन्न होता है।
प्रश्न 2.
छवि निर्माण (व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण) तथा वस्तु प्रत्यक्षीकरण (वस्तु-निर्माण) में अन्तर बताइए।
उत्तर:
व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण का तात्पर्य उस संज्ञानात्मक प्रक्रिया से है, जिसके द्वारा दूसरे व्यक्तियों का प्रत्यक्षीकरण किया जाता है। कोई भी व्यक्ति दूसरे अन्य व्यक्तियों की प्रत्यक्ष परक अनुभूतियों को प्रत्यक्षत: नहीं देख सकता है। व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण के ढंग आयु वृद्धि के साथ-साथ सरल से जटिल की ओर अग्रसर हो जाते हैं।
इसके विपरीत वस्तु प्रत्यक्षीकरण (Thing or object Perception) का तात्पर्य निर्जीव वस्तुओं के प्रत्यक्षीकरण से है। मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण तथा वस्तु प्रत्यक्षीकरण के बीच निम्नलिखित अन्तरों का उल्लेख किया है –
1. अमूर्त विशेषताओं के प्रत्यक्षण के आधार पर:
व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण में व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की अमूर्त विशेषताओं; जैसे-शीलगुण, प्रेरणा, मनोवृत्ति व बुद्धि आदि का प्रत्यक्षण करता है। इसके विपरीत वस्तु प्रत्यक्षीकरण में व्यक्ति किसी मूर्त वस्तु या उद्दीपक का प्रत्यक्षीकरण करता है।
2. व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण में अस्पष्टता अधिक होती है, जबकि वस्तु प्रत्यक्षीकरण में स्पष्टता अधिक होती है।
3. व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण में पक्षपातों के घटित होने की सम्भावना अधिक रहती है, जबकि वस्तु प्रत्यक्षीकरण प्रायः त्रुटियों व पक्षपातों से मुक्त रहता है।
4. व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण में प्रकार्यात्मक कारक अधिक सक्रिय होते हैं, जबकि वस्तु प्रत्यक्षीकरण में संरचनात्मक कारक अधिक सक्रिय होते हैं।
5. व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण में प्रत्यक्षणकर्ता.के व्यवहार के द्वारा कभी-कभी प्रत्यक्षीकृत व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। इसके विपरीत वस्तु प्रत्यक्षीकरण में यह सम्भव नहीं है।
6. व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण अपेक्षाकृत अधिक जटिल होता है, इसके विपरीत वस्तु-प्रत्यक्षीकरण अपेक्षाकृत सरल होता है। स्पष्ट है कि व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण तथा वस्तु प्रत्यक्षीकरण के बीच कई मौलिक अन्तर विद्यमान हैं।
प्रश्न 3.
पूर्वाग्रह के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पूर्वाग्रह के स्वरूप को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. पूर्वाग्रह अर्जित होता है:
पूर्वाग्रह जन्मजात नहीं होते हैं, बल्कि यह एक अर्जित प्रवृत्ति है, जिसका शनैः-शनैः विकास होता है। शारीरिक व मानसिक विकास के साथ-साथ उसके अधिगम प्रक्रम में भी तीव्रता आती है। व्यक्ति समाजीकरण के साधनों जैसे-परिवार, पड़ोस व संस्कृति आदि को सीखता जाता है व इन्हीं साधनों के माध्यम से उसमें वर्ग या समुदाय तथा उसके सदस्यों के प्रति विशेष पूर्वाग्रहों को भी अधिगमित कर लेता है।
2. पूर्वाग्रह सकारात्मक या नकारात्मक होता है:
ये दोनों ही है। मुस्लिम राष्ट्र-विरोधी होते हैं, हिन्दू काफिर होते हैं, नीग्रो मंद-बुद्धि होते हैं, आदि नकारात्मक पूर्वाग्रह है। इसके विपरीत जापानी मेहनती होते हैं, स्त्रियाँ धार्मिक होती हैं, नेपाली नौकर विश्वासी होते हैं आदि सकारात्मक पूर्वाग्रह है।
3. पूर्वाग्रह एक अंतर्समूह घटना है:
पूर्वाग्रह का वास्तविक सम्बन्ध समूह, वर्ग तथा समुदाय से है। वस्तुत: एक पूर्वाग्रहित व्यक्ति की मनोवृत्ति किसी व्यक्ति की ओर संचालित नहीं होती है, बल्कि समूह की ओर संचालित होती है, इस क्रम में यह व्यक्तिगत भिन्नता की अनदेखी कर देता है।
4. पूर्वाग्रह का वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं होता है:
ये वास्तविकता से सम्बन्धित नहीं होते हैं क्योंकि ये तथ्यों पर आधारित नहीं होते हैं।
5. अन्य आधार:
- पूर्वाग्रह स्थिर तथा दृढ़ होते हैं।
- पूर्वाग्रह अपरिपक्व और पक्षपातपूर्ण होता है।
- पूर्वाग्रह का प्रकार्यात्मक महत्व होता है।
- पूर्वाग्रह प्राय: बुरे अभिमुखीकरण पर आधारित होता है।
- पूर्वाग्रह चेतन तथा अचेतन होते हैं।
- पूर्व-धारणा या पूर्वाग्रह दोषपूर्ण व दृढ़ सामान्यीकरण पर आधारित होते हैं।
प्रश्न 4.
समाज में रूढ़िवादी विचारधारा के विकास के कारण या उसके स्रोतों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रूढ़िवादी विचारधारा के विकास के कारण या स्रोतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारणों या स्रोतों का वर्णन निम्नलिखित है –
1. प्रतिष्ठा सुझाव:
रूढ़िवादी विचारों के विकास पर प्रतिष्ठा सुझावों का भी काफी प्रभाव पड़ता है। जन समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति किन्हीं रूढ़िवादी विचारों पर विश्वास करते हैं तथा इनका पालन करते हैं, तो समाज के अन्य दूसरे व्यक्ति भी इन विचारों को सीख जाते हैं या अपना लेते हैं। ,
2. परम्परा एवं लोकरीतियाँ:
समाजीकरण प्रक्रम को अन्तर्गत बालक को यह सिखाया जाता है कि वह अपने समूह में सदस्य के रूप में अपने समूह की परम्पराओं तथा लोकरीतियों का पालन व संरक्षण करे। इस दायित्व को निभाने के क्रम में समूह के सदस्यों को समूह में प्रचलित रूढ़ियुक्तियों को स्वीकार करना पड़ता है तथा सुरक्षित रखना होता है। इस प्रकार वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी संपोषित होती रहती हैं।
3. अज्ञानता:
जब व्यक्ति को पर्याप्त तथा निश्चित ज्ञान नहीं होता है तो वह व्यक्तियों की पूर्व धारणाओं पर विश्वास कर लेता है। धीरे-धीरे यह विश्वास उसके मस्तिष्क में एक चित्र-सा बन जाता है। इस चित्र का प्रतिबिम्ब उसकी चिन्तन तथा तर्क प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है और अपने मन में रूढ़िवादिता विचार बना लेता है जो वास्तव में तर्क तथा चिन्तन प्रक्रिया पर आधारित नहीं होता है।
4. जनसमूह माध्यम:
रूढ़ियुक्तियों के निर्माण और विकास तथा संपोषण पर जनसमूह के बीच सम्पर्क स्थापित करने वाले नाधनों का प्रभाव पड़ता है; जैसे-पुस्तकों, रेडियो, टी. वी. तथा सिनेमा आदि के प्रति विभिन्न समूह व समुदायों के प्रति विभिन्न रुढ़ियुक्तियों को सीख लेता है।
5. कटु अनुभव:
व्यक्ति की बहुत-सी रूढ़ियुक्तियाँ उसके अपने कटु और आघातजन्य अनुभवों के कारण भी उत्पन्न और बलित हो जाती है। इस प्रकार स्पष्ट हुआ कि रूढ़ियुक्तियों के उद्भव, विकास तथा संपोषण में भिन्न-भिन्न कारण या स्रोत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
प्रश्न 5.
अभिवृत्तियों की प्रकृति/विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अभिवृत्तियों की प्रकृति या विशेषताओं का उल्लेख निम्न प्रकार से है –
1. किसी भी विशेष वस्तु, व्यक्ति, समूह, संस्था, मूल्य अथवा मान्यता के प्रति बनी हुई अभिव्यक्ति इन सभी के प्रति व्यक्ति का कैसा सम्बन्ध है, यह स्पष्ट करती है।
2. कोई भी अभिवृत्ति जन्मजात नहीं होती है, वातावरण में उपलब्ध अनुभवों के द्वारा अर्जित की जाती है। इस आधार पर अभिवृत्तियों को मूल अभिप्रेरणाओं से अलग किया जा सकता है। जैसे ‘मुख’ जन्मजात प्रवृत्ति है इसे सीखा नहीं जाता है, जबकि किसी भी विशेष प्रकार के भोजन के प्रति हमारा आकर्षण एक अर्जित प्रवृत्ति के नाते अभिवृत्ति का स्वरूप ले लेता है।
3. किसी वस्तु या प्रक्रिया के प्रति की स्वाभाविक तत्परता जिसे अभिवृत्ति के नाम से जाना जाता है, उसका स्वरूप बहुत कुछ स्थायी होता है। मूल अभिप्रेरणाओं के स्वरूप में इतना स्थायित्व नहीं होता है।
4. अभिवृत्तियों का क्षेत्र एवं स्वरूप बहुत विस्तृत है। अभिवृत्तियाँ व्यक्ति को किसी विशिष्ट उद्दीपन के प्रति विशेष प्रतिक्रिया व्यक्त करने को तत्पर करती हैं। जितने प्रकार के विभिन्न उद्दीपन होंगे, उतनी ही विभिन्न अभिवृत्तियाँ होंगी ताकि उपयुक्त प्रतिक्रियाएँ व्यक्त हो सके। अभिवृत्तियों में परिस्थितिजन्य संशोधन या परिवर्तन भी होता है। इस कारण से भी इनके स्वरूप में बहुत कुछ लचीलापन है। इसलिए अभिवृत्तियाँ उतनी ही असीमित हैं जितनी कि सम्बन्धित उद्दीपन और परिस्थितियाँ।
5. अभिवृत्तियों में दिशा और परिणाम दोनों ही पाए जाते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु या विचार के प्रति आकर्षित होकर उसे पाना चाहता है तो उसकी अभिवृत्ति की दिशा सकारात्मक मानी जाती है और अगर वह उससे विकसित होकर दूर भागना चाहे तो अभिवृत्ति की दिशा नकारात्मक कहलाती है।
दिशा के साथ-साथ अभिवृत्ति में भावनाओं की तीव्रता भी जुड़ी रहती है जिससे बोध होता है कि प्रवृत्ति कितनी अधिक मात्रा में सकारात्मक है या नकारात्मक।
प्रश्न 6.
व्यक्ति या बालक की अभिवृत्तियों में किस प्रकार से बदलाव लाया जा सकता है?
उत्तर:
अभिवृत्तियों में अनेक तत्वों व कारकों पर विचार करके निम्न प्रकार से बदलाव लाया जा सकता है –
1. अभिवृत्तियों के विकास का बालक/व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक व नैतिक विकास से निकट का सम्बन्ध है। अत: यह प्रयत्न किया जाना चाहिए कि बालक/व्यक्ति का उचित ढंग से सर्वांगीण विकास हो सके।
2. अभिवृत्तियों का व्यक्ति की आत्मप्रतिष्ठा और अहं से भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। कोई भी व्यक्ति ऐसी अभिवृत्ति ग्रहण नहीं करना चाहेगा जिससे उसकी प्रतिष्ठा या सम्मान पर आंच आये। अत: इनकी अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाते हुए इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए।
3. सामाजिक वातावरण में ही अभिवृत्तियाँ पनपती व पलती हैं। अत: इस वातावरण से सम्बन्धित सभी शक्तियों को इस प्रकार नियन्त्रित किया जाना चाहिए कि इनमें उचित व वांछनीय अभिवृत्तियाँ विकसित हो सकें।
4. अभिवृत्तियाँ घर तथा परिवार से ही अंकुरित होती हैं। अत: माँ-बाप द्वारा एवं परिवार के सदस्यों द्वारा उचित मार्गदर्शन कर ऐसे प्रयत्न किये जाने चाहिए कि जिससे बालकों में वांछनीय अभिवृत्तियाँ जन्म लें। परिवार का वातावरण भी ऐसा बने तथा वहाँ सभी बड़े लोग इस प्रकार अपने आप में सुधार करें कि इसका प्रभाव छोटे सदस्यों पर पड़े और उनकी अभिवृत्तियों में अनुकूल परिवर्तन आ जाये।
5. यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि सकारात्मक अभिवृत्तियों का विकास, नकारात्मक की अपेक्षा अधिक सरल होता है। उदाहरण के लिए ईमानदारी या प्रजातंत्र के प्रति अनुकूल अभिवृत्ति को विकसित करना बेईमानी या तानाशाही के प्रति प्रतिकूल अभिवृत्ति के विकास की अपेक्षा अधिक आसान है।
अत: इस प्रकार उचित अभिवृत्तियों का निर्माण अवांछनीय अभिवृत्तियों का संशोधन और परिमार्जन सम्बन्धी कार्य अपने आप में काफी बड़ा है।