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RBSE Solutions for Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 6 सुभाषचन्द्र बोस (जीवनी)

July 30, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 6 सुभाषचन्द्र बोस (जीवनी)

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 6 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सुभाष बाबू का जन्म हुआ
(अ) 23 जनवरी 1897
(ब) 30 मार्च 1926
(स) 2 अक्टूबर 1950
(द) 1 मई 1927
उत्तर:
(अ) 23 जनवरी 1897

प्रश्न 2.
सुभाष बाबू की मातृभाषा थी
(अ) हिन्दी
(ब) अंग्रेजी
(स) बंगला
(द) उर्दू
उत्तर:
(स) बंगला

प्रश्न 3.
मातृभूमि की सेवा का मंत्र सुभाष बाबू को किससे मिला?
(अ) गाँधी।
(ब) नेहरू
(स) तिलक
(द) विवेकानन्द
उत्तर:
(द) विवेकानन्द

प्रश्न 4.
सुभाष बाबू आई.सी.एस. में कब चुने गए
(अ) अगस्त 1940
(ब) सितम्बर 1920
(स) मई 1924
(द) मार्च 1945
उत्तर:
(ब) सितम्बर 1920

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 6 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुभाष बाबू के माता-पिता के क्या नाम थे?
उत्तर:
सुभाष बाबू के पिता का नाम श्री जानकी नाथ बोस और माता का नाम श्रीमती प्रभावती था।

प्रश्न 2.
स्कूल के किस प्रधानाध्यापक ने उन्हें बहुत प्रभावित किया?
उत्तर:
राबिन शा कालेजियेट स्कूल के प्रधानाध्यापक बाबू बेनीप्रसाद दास ने उन्हें बहुत प्रभावित किया।

प्रश्न 3.
सुभाष बाबू के अनुसार अंग्रेज कौन-सी भाषा समझते हैं?
उत्तर:
सुभाष बाबू के अनुसार अंग्रेज शक्ति की भाषा समझते हैं।

प्रश्न 4.
सुभाषबाबू के त्यागपत्र का स्वागत किसने किया?
उत्तर:
सुभाष बाबू के त्यागपत्र का स्वागत महान नेता श्री देशबंधु चितरंजन दास ने किया।

प्रश्न 5.
सैनिकों के लिए सुभाष बाबू ने कौन-से तीन आदर्श बताये?
उत्तर:
सैनिकों के लिए सुभाष बाबू ने निम्न तीन आदर्श बताये-

  1. निष्ठा
  2. कर्त्तव्य
  3. बलिदान 

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
सुभाष बाबू ने अपने परिवार का जिक्र करते हुए क्या बताया?
उत्तर:
सुभाष बाबू ने बताया कि उनको परिवार अधिक धनवान नहीं था, किन्तु अच्छा खाता-पीता मध्यम श्रेणी का परिवार था। उनके घर में फिजूलखर्ची नहीं थी। उनका परिवार एक बड़ा परिवार था। उनके अनुसार बड़े परिवार में जन्म लेने वाले बच्चों को माता-पिता का उचित ध्यान, प्यार और निर्देश नहीं मिलने के कारण उनका उचित विकास नहीं हो पाता है। उनके परिवार में आश्रितों की संख्या भी बहुत थी। वह अपने नौकरों का भी सम्मान करते थे।

प्रश्न 2.
एंग्लो-इंडियन स्कूल का भारतीय बच्चों के प्रति क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
एंग्लो-इंडियन स्कूल में भारतीय बच्चों एवं एंग्लो इंडियन बच्चों के बीच भेदभाव किया जाता था। इस स्कूल में भारतीय बच्चों को छात्रवृत्ति (वजीफा) के लिए प्रार्थना पत्र देने का अधिकार नहीं था। चाहे भारतीय बच्चे अपनी कक्षा में सर्वप्रथम ही क्यों न आते हों। इतना ही नहीं केवल एंग्लो इंडियन बच्चे ही स्वयंसेवक में भर्ती किए जाते थे, भारतीय बच्चे नहीं इस प्रकार के व्यवहार के कारण एंग्लो-इंडियन बच्चों और भारतीय बच्चों में झगड़े होते थे।

प्रश्न 3.
“मेरे मन में दो प्रकार के संशय थे” सुभाष बाबू के मन में कौन से दो संशय थे?
उत्तर:
सुभाष बाबू के मन में निम्न दो संशय थे –

  1. सांसारिक जीवन के प्रति उनके मन में आकर्षण आता था लेकिन उनकी आत्मा इसके विरुद्ध विद्रोह करती थी।
  2. उनके मन में भोग की चेतना पैदा होने लगी थी जो कि स्वाभाविक थी लेकिन उनकी आत्मा इसे अनैतिक मानती थी।

प्रश्न 4.
कटक में आये संन्यासी ने कौन-सी तीन बातें बताईं?
उत्तर:
कटक में आये संन्यासी ने निम्नलिखित तीन बातें बताई

  1. निरामिष भोजन (अर्थात् शाकाहारी भोजन)
  2. नियमित मंत्रपाठ
  3. नियमित माता-पिता के चरण स्पर्श

प्रश्न 5.
प्रेसीडेंसी कॉलेज से सुभाष बाबू को क्यों निकाला गया?
उत्तर:
प्रेसीडेंसी कॉलेज के एक अंग्रेज अध्यापक श्री ओ ने दो बार भारतीय छात्रों को पीटा जिससे क्रोधित होकर भारतीय छात्रों ने सीढ़ियों के सामने उन्हें पीट दिया। यह सब घटनाक्रम सुभाष बाबू के सामने हुआ और उन्होंने रोकने का प्रयास भी नहीं किया, इसलिए कॉलेज की कमेटी ने सुभाष बाबू सहित अन्य विद्यार्थियों के विरुद्ध प्रतिवेदन किया। उन्हें विश्वविद्यालय की परीक्षा में नहीं बैठने दिया, साथ ही उन्हें कॉलेज से भी निकाल दिया था।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 6 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्री अरविन्द के जिस भाषण ने सुभाष बाबू को प्रभावित किया, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
अपने एक भाषण में श्री अरविन्द ने भारतीय युवाओं को संबोधित करते हुए उनसे भारत की उन्नति और विकास के लिए हरसंभव प्रयास करने की प्रार्थना की। युवाओं से बड़ी बनने को कहा, किन्तु बड़ा बनने से उनका तात्पर्य धनी और आर्थिक स्तर से ऊँचा उठना और बड़ा बनना नहीं था। वह चाहते थे कि भारतीय युवा अपने विचारों और कर्मों से बड़ा बनें । उनके विचार और सतकर्म ही भारत को वह शक्ति प्रदान कर सकते हैं, जिससे वह संसार के अन्य राष्ट्रों में अपना सिर ऊँचा उठा सकता है। अत: प्रत्येक क्षेत्र में उपलब्धियों के ऐसे स्तंभ गाढ़ दो जो भारत को संबल प्रदान कर सकें। ऐसे भारतीय जो गरीब और अकेले हैं। वे स्वयं को असहाय और अकेला समझने के स्थान पर स्वयं को भारत माता का सेवक समझे 
और उसके निवासियों को अपना परिवार मानें।

वे अपनी गरीबी और अकेलेपन को अन्य असहाय और अकेले लोगों की सेवा में लगा दें। जिससे उनका अकेलापन तो दूर होगा ही साथ ही उन्हें लोगों का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा। यह वह समय है जब लोग काम करके भारत को समृद्धशाली बनाएँ और उसे उसका सम्मान और स्थान वापस दिलाएँ। इस काम के लिए हो सकता है, अनेक कष्ट झेलने पड़े। किन्तु इन दु:ख और तकलीफों को झेलकर हम भारत को सुखी बना सकते हैं। उसे तरक्की और विकास के पथ पर अग्रसित करते हुए स्वतंत्र बना सकते हैं। श्री अरविन्द की इन्हीं सब बातों ने सुभाष बाबू को प्रभावित किया।

प्रश्न 2.
गुण्डे हैदर का हृदय परिवर्तन कैसे हुआ?
उत्तर:
प्रेसीडेंसी कॉलेज से निकाले जाने के बाद सुभाष कटक लौट आए। उस समय कटक में हैजा फैला हुआ था, अत: सुभाष ने अपने साथियों के साथ मिलकर हैजाग्रस्त निर्धनों की बस्ती की सफाई और रोगियों की सेवा-सुश्रूषा करना आरंभ कर दिया। उनके इस कार्य को उस बस्ती के गरीब लोगों ने गलत अर्थ निकाला। उन्हें लगा कि सुभाष और अन्य बच्चे उनकी गरीबी का मजाक उड़ा रहे हैं। अत: उन्होंने उस नगर के जाने-माने गुण्डे हैदर के साथ मिलकर सुभाष और अन्य सेवादार बच्चों का विरोध किया और उनके कार्यों में बाधाएँ उत्पन्न कीं। लेकिन सुभाष नहीं रुके। वह अपना सेवा कार्य करते रहे। . इस रोग ने उस गुण्डे हैदर के घर को भी अपनी चपेट में ले लिया। वह अपने परिवारीजनों की चिकित्सा के लिए नगर के प्रत्येक डॉक्टर और वैद्य के पास गया, किन्तु कोई भी उसके साथ उसके घर नहीं आया। चारों ओर से निराश होकर जब वह अपने घर वापस आया तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।

जिन सेवादार बच्चों का वह विरोध किया करता था, वही उसके घर की सफाई करने में लगे हुए हैं। उनमें से एक बालक उसके परिवार के रोगी सदस्य को औषधि दे रहा था। दूसरा उसकी सेवा कर रहा था और तीसरा अपनी मीठी-मीठी बातों से उसका मन बहला रहा था। यह सब देखकर हैदर का मन द्रवित हो उठा और वह एक कोने में बैठकर अपना सिर पकड़करे रोने लगा। उसे रोता देखकर सुभाष ने उसके सिर पर अपना हाथ फेरते हुए, उससे कहा था कि उसका घर.गन्दा था, इसलिए रोग ने उसके परिवारीजनों को घेर लिया। लेकिन अब उसका घर साफ हो गया है। इसको सुनकर हैदर ने सुभाष के पैर पकड़कर कहा कि उन्होंने उसके घर और मन दोनों की ही गन्दगी साफ कर दी। इससे हैदर का हृदय परिवर्तन हुआ।

प्रश्न 3.
युवकों और विद्यार्थियों के लिए सुभाष बाबू ने क्या संदेश दिया?
उत्तर:
सुभाष बाबू ने युवकों और विद्यार्थियों को जाग्रत करते हुए उन्हें राजनीति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा, ”प्रत्येक छात्र के लिए एक शक्तिशाली और स्वस्थ शरीर, सुदृढ़ चरित्र और आवश्यक सूचनाओं एवं स्वस्थ गतिशील विचारों 
से परिपूर्ण मस्तिष्क अपेक्षित है। यदि अधिकारियों द्वारा किए गये प्रबन्ध, स्वास्थ्य, चरित्र और बुद्धि के सही प्रस्फुटन में सहायक नहीं होते, तो आपको वे सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए जो इस प्रस्फुटन को सुनिश्चित कर सकें और यदि अधिकारी इस दिशा में आपके प्रयत्नों का स्वागत करें तो और भी अच्छी बात है, किन्तु यदि वे इस ओर ध्यान नहीं देते तो उन्हें छोड़ और अपने रास्ते जाओ। आपका जीवन आपका अपना है और इसके विकास का उत्तरदायित्व दूसरों से ज्यादा आपके ऊपर है।”

अर्थात् प्रत्येक छात्र के लिए ऐसे मस्तिष्क, शरीर और चरित्र की आवश्यकता है जो उसे न केवल शारीरिक अपितु मानसिक और चारित्रक दृष्टि से ऊपर उठा सके। यदि विद्यालय के अधिकारियों के द्वारा किए प्रबन्ध उनका (छात्रों का) उचित विकास न कर सके, तो उन्हें स्वयं उन मार्गों और उपायों को खोजना चाहिए, जिसके उनकी बुद्धि का पूर्ण विकास संभव हो। अगर विद्यालय के अधिकारीगण इस कार्य में सहयोग न भी करें तब भी उन्हें अपने प्रयास जारी रखने चाहिए। क्योंकि यह जीवन उनका है और इसके विकास का उत्तरदायित्व दूसरों से ज्यादा उनके स्वयं का है। अत: उठो और इसके विकास के लिए प्रयत्न करो। उन्होंने विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि विद्यार्थियों में से राजनैतिक, विचारक और राजनीतिज्ञ उत्पन्न होते हैं। अत: विद्यार्थियों को राजनीति में अवश्य भाग लेना चाहिए।

प्रश्न 4.
आजाद हिन्द फौज के गठन व कार्यों के बारे में लिखिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सन् 1942 में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त कराने के लिए ‘आजाद हिन्द फौज’ या ‘इंडियन नेशनल आर्मी’ नामक सशस्त्र सेना का संगठन किया गया। इसकी संरचना जनरल प्रतापसिंह ने नेताजी के टोक्यो आने से पहले ही, जापान की सहायता से की। इस सेना के प्रधान श्री रास बिहारी बोस थे। जिन्हें जापान ने युद्ध में बन्दी बना लिया था। बाद में इसमें वर्षा और मलाया के भारतीय स्वयंसेवकों को भर्ती कर लिया गया। जून 1943 में जब सुभाष चन्द्र बोस ने जापान से रेडियो के द्वारा भारतीयों को संबोधित करते हुए, अंग्रेजों से संघर्ष करने का सन्देश दिया। सुभाष की इस बात से प्रसन्न होकर रासबिहारी बोस ने 4 जुलाई 1943 को आजाद हिन्द फौज की बागडोर सुभाष को सौंप दी।

इस सेना ने जुलाई 1943 में जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश सेना से मोर्चा लिया। 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हॉल के सामने आजाद हिन्द सेना की विशाल परेड हुई जहाँ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता की घोषणा की। 21 अक्टूबर 1943 में इस सेना ने सुभाष बाबू के नेतृत्व में भारत की अस्थाई सरकार बनाई। जापान ने इस सेना की अस्थाई सरकार को दो द्वीप सौंप दिए। 24 अक्टूबर 1943 को इस आजाद हिन्द सेना ने नेताजी के नेतृत्व में इंग्लैण्ड और अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 7 जनवरी 1944 को आजाद हिन्द सरकार का कार्यालय सिंगापुर से रंगून पहुँच गया। 4 फरवरी 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दुबारा आक्रमण किया और कोहिमा, पलेल आदि कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया। 21 मार्च 1944 को आजाद हिंद फौज ‘चलो दिल्ली के नारे के साथ आजाद हिंद फौज का हिन्दुस्तान की धरती पर आगमन हुआ।

प्रश्न 5.
सुभाष बाबू का भारतीय स्वाधीनता संग्राम आंदोलन में योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुभाष बाबू कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास के कार्यों से प्रेरित होकर राजनीति और भारतीय स्वाधीनता संग्राम के आन्दोलन से जुड़े। 20 जुलाई 1921 को सुभाष बाबू की गाँधी जी से पहली बार मुलाकात हुई। गाँधी जी की सलाह पर उन्होंने दासबाबू के साथ असहयोग आंदोलन का बंगला में नेतृत्व किया। 1922 में दास बाबू ने कांग्रेस के अन्तर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। उन्होंने सुभाष बाबू को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। सुभाष ने अपने कार्यकाल में कलकत्ता का ढाँचा ही बदल दिया और देश पर प्राण न्यौछावर करने वालों के परिवारीजनों को महापालिका में नौकरी दी।

जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर सुभाष ने युवकों की इण्डिपिण्डेंस लीग शुरू की। 1928 में साइमन कमीशन का खुलकर विरोध किया। 1928 में कांग्रेस अधिवेशन में आपने खाकी गणवेश धारण करके मोतीलाल नेहरू को सलामी दी। 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष ने एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें जेल भेज दिया गया।

अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल ग्यारह बार कारावास हुआ। सन् 1933 से लेकर 1936 तक आप यूरोप में रहे। यहाँ उन्होंने अपनी सेहत में सुधार के साथ-साथ अपना स्वाधीनता संग्राम का प्रयास भी जारी रखा। वह इटली के नेता मुसोलिनी और आयरलैण्ड के नेता बाड़ी वलेरा से मिले। 1938 में आप 51वें काँग्रेस के वार्षिकोत्सव पर काँग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सुभाष के क्रान्तिकारी रुख को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने उन्हें जेल से तो रिहा कर दिया किन्तु उन्हें उनके ही घर में नजरबंद कर दिया। लेकिन सुभाष किसी प्रकार यहाँ से निकलकर टोक्यो पहुँचे और आजाद हिन्द सेना का निर्माण करके अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। इस प्रकार अपने सम्पूर्ण जीवन काल में सुभाष एक सक्रिय क्रान्तिकारी नेता रहे और अपनी गतिविधियों से अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 6 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपनी मातृभाषा का अभ्यास न होने के कारण सुभाष बाबू को क्या अपमान झेलना पड़ा?
उत्तर:
सुभाष बाबू ने जब राबिन शा कालेजियट स्कूल में अपनी पढ़ाई शुरू की। उन्हें अपनी मातृभाषा बंगला बिल्कुल भी नहीं आती थी। स्कूल में सबसे पहले उनके अध्यापक ने उन्हें बंगला भाषा में गाय या घोड़े पर निबन्ध लिखने को कहा। अपनी मातृभाषा का अभ्यास न होने के कारण उनके निबन्ध की भाषा बहुत अधिक गलत थी। अध्यापक ने उनके निबन्ध का मजाक उड़ाते हुए पूरी कक्षा में सुनाया। इससे सुभाष को कक्षा में बहुत नीचा देखना पड़ा।

प्रश्न 2.
स्वामी विवेकानन्द के साहित्य का सुभाष बाबू के मन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द के साहित्य को पढ़ने से पहले सुभाषबाबू के मन में दो नैतिक असमंजस थे। पहला उनके मन में सांसारिक जीवन के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो रहा था लेकिन उनकी आत्मा इसके विरुद्ध विरोध करती थी। दूसरा, उनके मन में भोग की चेतना पैदा होने लगी जो कि प्राकृतिक थी। लेकिन उनकी आत्मा उसे अनैतिक मानती थी। सुभाष बाबू के इन असमंजसों को दूर करने और उनके मन को सही दिशा का काम स्वामी विवेकानन्द के साहित्य ने किया। साथ ही सुभाष बाबू को मातृभूमि की सेवा का मंत्र भी दिया।

प्रश्न 3.
सुभाष बाबू ने बढ़ते आध्यात्मिक विचारों को देखकर उनके माता-पिता की क्या प्रतिक्रिया हुई? सुभाष ने उस स्थिति में क्या किया?
उत्तर:
सुभाष बाबू पर स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस का बहुत गहरा प्रभाव हुआ। इसके परिणामस्वरूप वह अध्यात्म की ओर मुड़ने लगे। जब उनके माता-पिता ने उन्हें आध्यात्मिक विचारों की ओर बढ़ते और अध्ययन को छोड़कर अपने साथियों के साथ आध्यात्मिक चिंतन करते देखा तो उन्होंने सुभाष को बहुत डाँटा । लेकिन विवेकानंद के विचारों से प्रभावित सुभाष ने अपने माता-पिता, सामाजिक और पारिवारिक जीवन के प्रति विद्रोह कर दिया।

प्रश्न 4.
सुभाष और उनके मित्र क्या करते रहते थे? एकांत ध्यान से सुभाष को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
सुभाष और उनके मित्र स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामकृष्ण परमहंस का साहित्य पढ़ते रहते। साथ ही वे सब ब्रह्मचर्य और योग की भी पुस्तकें पढ़ते। आध्यात्मिक चिंतन और ध्यान किया करते थे। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने एकांत में ध्यान करने की सलाह दी थी, अत: सुभाष अंधेरे कमरे में अकेले में ध्यान करने का अभ्यास किया करते थे। इस योग और एकांत ध्यान के कारण सुभाष ने बचपन में भूत-प्रेतों की कहानियों से पैदा हुए डर पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 5.
सुभाष बाबू के जातिगत व्यवहार न करने पर आधारित किसी एक घटना का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सुभाष बाबू के मन किसी भी जाति के प्रति द्वेष-भाव नहीं था। वह किसी के साथ भी जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करते और न ही किसी को स्वयं से नीचा समझते थे। इस बात का पता इस घटना से हो जाता है कि सुभाष बाबू के मोहल्ले और घर में छोटी जाति के लोग और मुसलमान रहते थे। एक बार एक छोटी जाति के व्यक्ति ने उनके घरवालों को अपने यहाँ खाने पर आमंत्रित किया। परिवार के सब लोगों ने वहाँ न जाना तय किया, किन्तु सुभाष बाबू अपने माता-पिता की आज्ञा तोड़कर उनके घर गए और खाना भी खाया।

प्रश्न 6.
प्रेसीडेंसी कॉलेज में अध्ययन करते समय सुभाष पर किसका प्रभाव पड़ा? उनके व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रेसीडेंसी कॉलेज में अध्ययन करते समय सुभाष पर श्री अरविन्द घोष के विचारों का प्रभाव पड़ा। अरविन्द घोष भारतीय स्वतत्रता संग्राम के व भारतीय जन-जीवन के महान नेता थे। वे कुशल राजनेता के साथ-साथ रहस्यवादी परमयोगी भी थे। वह सदैव युवाओं और विद्यार्थियों को भारत की उन्नति और विकास के लिए प्रेरित करते थे। वह युवाओं को भारत माता की सेवा में समर्पित होने के लिए कहते जिससे भारत समृद्धशाली हो सके।

प्रश्न 7.
प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ते समय कौन-सी बातें कहानियों के रूप में सुभाष को सुनाई देने लगीं? इन कहानियों के कारण सुभाष के मन में कौन-सी बात प्रभाव डाल रही थी?
उत्तर:
प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ते समय सुभाष को आए दिन अंग्रेजों के अत्याचार और भेदभाव की बातें छोटी-छोटी कहानियों के रूप में सुनाई देने लगीं। वह अक्सर ही सुना करते थे कि अब अंग्रेजों ने किस भारतीय का अपमान किया और अब किस-किस भारतीय को अंग्रेजों ने रेल के डिब्बे से उतार दिया। सुभाष ने कभी इन कहानियों पर अविश्वास नहीं किया क्योंकि उनके चाचा को भी अंग्रेजों ने एक बार रेल से उतार दिया था। इन सब कहानियों के कारण सुभाष के मन में यह बात बैठ गई कि अंग्रेज केवल शक्ति की भाषा समझते हैं।

प्रश्न 8.
कटक में किस रोग का प्रकोप फैला हुआ था? हैजा की इस स्थिति में सुभाष और उनकी मित्र मंडली क्यों काम किया करती थी?
उत्तर:
कटक में हैजा रोग का प्रकोप फैला हुआ था। हैजा की इस स्थिति में सुभाष और उनकी मित्र मंडली निर्धन लोगों की बस्ती में जाकर उनके घरों की सफाई किया करती थी। रोगियों का उपचार करती थी, उन्हें औषधि दिया करती थी। इतना ही नहीं वह सब रोग से व्याकुल और दु:खी लोगों और उनके परिवार के लोगों को ढाढस बँधाते और रोग से बचने के उपाय व साफ-सफाई के महत्त्व को समझाते थे।

प्रश्न 9.
उस घटना का संक्षेप में वर्णन कीजिए, जिसने हैदर जैसे गुण्डे का भी हृदय परिवर्तित कर दिया।
उत्तर:
हैदर नगर का जाना-माना गुण्डा था। वह आए दिन सुभाष और उनकी मित्र मंडली के सेवाकार्य में बाधा डालता रहता था। एक दिन हैजे ने उसके परिवार को भी अपनी चपेट में ले लिया, इससे मुक्ति के लिए वह नगर के प्रत्येक डॉक्टर और वैद्य के पास गया, किन्तु कोई भी उसके साथ नहीं आया। जब वह निराश होकर लौटा तो चकित रह गयी। सेवादार बच्चे उसके घर की सफाई कर रहे थे। 
और रोगी को औषधि पिलाकर उसका मन बहला रहे थे। यह वही बच्चे थे जिनके काम में वह अड़चनें खड़ी करता था। उनके इस सेवाकार्य को देखकर उसका हृदय परिवर्तित हो गया।

प्रश्न 10.
सुभाष बाबू को साधु जीवन से घृणा क्यों हो गई?
उत्तर:
हैजा पीड़ित लोगों की सेवा करने बाद सुभाष बाबू के मन में एक सच्चे महात्मा के सान्निध्य में योगाभ्यास सीखने की इच्छा हुई। अपनी इस इच्छा की पूर्ति के लिए सुभाष बाबू एक सच्चे योगी की तलाश में घर से निकल पड़े। वह अनेक तीर्थस्थानों पर गए, किन्तु उन्हें एक सच्चा योगी नहीं मिला। अपनी इस तलाश में छ: माह भटकते हुए उन्होंने गाँजा, भाँग और दूसरे नशों में डूबकर अपने जीवन की अमूल्य घड़ियाँ व्यर्थ गॅवाते हुए साधुओं को देखा। इन साधुओं और जीवन के प्रति उनके इस भाव को देखकर सुभाष बाबू को साधु जीवन से घृणा हो गई।

प्रश्न 11.
सुभाष बाबू के आई.सी.एस से इस्तीफा देने का कारणों को उल्लेख उन्हीं के शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
सुभाष बाबू ने आई.सी.एस से इस्तीफा देने के कारणों का उल्लेख इस प्रकार किया है, “अब मुझे पक्का विश्वास हो गया है कि अगर मैं नौकरशाही का एक सदस्य न होकर सामान्य व्यक्ति बना रहूँ तो मैं अपने देश की सेवा अधिक अच्छी तरह से कर सकता हूँ। मैं इस बात से इनकार नहीं करता कि सर्विस में रहते हुए भी कोई व्यक्ति कुछ हद तक अच्छे काम कर सकता है लेकिन नौकरशाही की जंजीरों से मुक्त होकर वह जितनी भलाई कर सकता है उतना बन्धनग्रस्त होकर कदापि नहीं कर सकता।”

प्रश्न 12.
सन् 1924 में सुभाष बाबू को किस अध्यादेश के आधार पर गिरफ्तार किया गया? उन्हें कितने समय के लिए किन-किन जेलों में रखा गया?
उत्तर:
25 अक्टूबर, 1924 को ब्रिटिश सरकार ने एक आर्डिनेन्स पेश किया, जिसमें यह प्रावधान था कि सरकार किसी भी व्यक्ति को जब चाहे बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल सकती है। सुभाष बाबू को भी इसी अध्यादेश के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 माह के कारावास का दण्ड मिला। इस अवधि में उन्हें पहले अलीपुर जेल फिर बहरामपुर जेल और अंत में बर्मा की माँडले जेल में रखा गया।

प्रश्न 13.
सुभाष बाबू ने माँडले जेल के वातावरण का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर:
सुभाष बाबू ने मांडले जेल के वातावरण का वर्णन करते हुए कहा है कि वहाँ चारों ओर धूल ही धूल थी। माँडले जेल की वायु भी धूलयुक्त थी, जिसके कारण साँस के साथ धूल अन्दर जाती थी। इतना ही नहीं भोजन भी धूलधूसरित हो जाता था और उन्हें वही भोजन खाना पड़ता था। सब ओर बस धूल ही धूल थी। जब यहाँ धूल भरी आँधियाँ चलती थीं तो दूर-दूर तक पेड़ और पहाड़ियाँ सब ढक जातीं। उस समय धूल के पूर्ण सौन्दर्य के दर्शन होते। सुभाष बाबू ने इस धूल को दूसरा परमेश्वर कहा है।

प्रश्न 15.
सुभाष बाबू के अनुसार लोकमान्य तिलक ने माँडले जेल में रहते हुए किन-किन कष्टों को झेला?
उत्तर:
सुभाष बाबू को माँडले जेल के जिस वार्ड में रखा गया, लोकमान्य तिलक को भी उसी बार्ड में रखा गया था। सुभाष बाबू कहते हैं कि यह अंदाजा लगाना कठिन है कि लोकमान्य तिलक ने अपने कारावास के काल में कैसे-कैसे शारीरिक और मानसिक कष्ट भोगे होंगे। वह यहाँ पर अकेले रहते थे। उनका कोई बुद्धिजीवी साथी भी नहीं था और न ही उन्हें दूसरे कैदियों से मिलने-जुलने की इजाजत थी। उनके इस एकाकी जीवन में पुस्तकें ही उनका एकमात्र सहारा थीं।

प्रश्न 16.
माँडले जेल के वार्डों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
माँडले जेल के वार्ड बाँसों से बने हुए थे। जहाँ ग्रीष्मकाल में गर्मी, सूरज की तेज किरणों से बचने का कोई साधन नहीं था। साथ ही वर्षा ऋतु में बारिश के पानी और शीतकाल में सर्द हवाओं और ठण्ड से बचाव संभव था। वार्ड की बनावट यहाँ रहने वाले कैदियों को यहाँ चलने वाली धूलभरी आँधियों से कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करती थी।

प्रश्न 17.
देशबन्धु चितरंजन दास की मृत्यु के बाद सुभाष बाबू ने श्रीमती बसंती देवी को किस प्रकार पत्र लिखा?
उत्तर:
देशबन्धु की मृत्यु के बाद श्रीमती बसंती देवी को सुभाष ने अपने पत्र में लिखा कि ‘देशबंधु चले गए। सिद्धिदाता के उस वरदपुत्र ने विजय मुकुट पहनकर ही भारत के विशाल कर्मक्षेत्र से दिव्यलोक की यात्रा की। आज उन्होंने महान प्यार के द्वारा ही अमरत्व प्राप्त किया है। आज हमारे चारों ओर बाह्य संसार में अंधकार है और हृदय में शून्यता है। जहाँ तक अंधकार ही अंधकार है, अंधकार की प्राचीर में आलोक किरण के लिए तिलभर भी स्थान नहीं है।’

प्रश्न 18.
अपने ही घर में नजरबंद सुभाष किस प्रकार निकले और किस प्रकार टोक्यो पहुँचे?
उत्तर:
सन् 1940 में सुभाष को जेल से रिहा करने के बाद उन्हें उनके ही घर में नरजबंद कर दिया गया। लेकिन 15 जनवरी, 1941 को सुभाष बाबू शाम के समय मौलवी का वेश धारण करके अपने घर से निकल पड़े। वह अफगानिस्तान के रास्ते मास्को होते हुए बर्लिन पहुँचे। बर्लिन में आपने आजाद हिन्द फौज का निर्माण किया, जिसका पहला केन्द्र ड्रेसडन नगर रहा। 20 जनवरी, 1943 को नेताजी जापान के टोक्यो नगर पहुँचे।

प्रश्न 19.
सुभाष ने अपने भाषणों में भारतीय नारी की सामर्थ्य के विषय में क्या कहा?
उत्तर:
सुभाष ने कहा वह भारतीय नारी के सामर्थ्य से ठीक से परिचित हैं। इसलिए निश्चित रूप से कह सकते हैं कि ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिसे भारतीय नारी नहीं कर सकती और ऐसा कोई बलिदान अथवा कष्ट नहीं हैं। जिसे वह सहन नहीं कर सकती है। भारतीय नारी के इस सामर्थ्य और साहस को देखते हुए वह नारियों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि वह ऐसी वीर भारतीय नारियों की टुकड़ी चाहते हैं जो मृत्यु से जूझने वाली रेजीमेन्ट बनाएँ और झाँसी की रानी के समान तलवार उठाएँ।

प्रश्न 20.
इंग्लैण्ड और अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा के बाद की घटनाओं का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
24 अक्टूबर, 1943 को जब नेताजी ने इंग्लैण्ड और अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की तो लोगों ने हजारों की संख्या में अपने खून से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर करके नेताजी को भेंट किए। 7 जनवरी 1944 को आजाद हिन्द सरकार का कार्यालय सिंगापुर से रंगून पहुँचा। यहाँ नेताजी ने बहादुर शाह जफर की कब्र पर फूल चढ़ाए। 4 फरवरी 1944 को मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए आजाद सेना कूच करके कोहिमा पहुँच गई और जमीन पर लेटकर मातृभूमि को प्रणाम किया।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 6 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता जानकी नाथ बोस कटक के बड़े ही प्रतिष्ठित वकील थे। वैसे वे 24 परगना के कोदलिया ग्राम के रहने वाले थे, परन्तु वकालत करने के लिए कटक नगर में जाकर बस गये थे। सुभाषचन्द्र बोस की माँ श्रीमती प्रभावती एक धार्मिक महिला थीं। वे श्री रामकृष्ण परमहंस की भक्त थीं। अपने भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरतचन्द्र से था।

नेताजी की प्रारंभिक शिक्षा कटक के एंग्लो इंडियन स्कूल में हुई । उसके बाद बंगला की अनिवार्यता होने पर इनका दाखिला राबिन शा कालेजियट स्कूल में कराया गया। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई। इसके बाद इनके पिता ने इन्हें आई.सी.एस. की तैयारी के लिए इंग्लैण्ड भेज दिया। इस परीक्षा में सुभाष बाबू ने चौथा स्थान प्राप्त किया।

1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर आप आई.सी.एस के पद से इस्तीफा देकर वापस लौट आए। भारत आकर आप राष्ट्रीय काँग्रेस से जुड़ गए किन्तु गाँधीजी के अहिंसावादी विचारों से सहमत न होने के कारण उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसी बीच दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया। बोस का मानना था कि अंग्रेजों से दुश्मनों से मिलकर ही उन्हें हराया जा सकता है। बोस की क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें उनके ही घर में नजरबंद कर दिया । जहाँ से वह मौलवी का वेश धारण करके निकल भागे और अफगानिस्तान के रास्ते से मास्को होते हुए बर्लिन पहुँच गए।

सुभाष ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। उनकी अनीता नाम की एक बेटी है जो वर्तमान में अपने परिवार के साथ जर्मनी में रहती है। 1943 में जापान पहुँचकर उन्होंने आजाद हिन्द फौज की कमान सँभाली और अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद 18 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते समय उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसमें उनकी मृत्यु की संभावना जताई गई, किन्तु उनका शव आज तक नहीं मिल पाया है। इस महान नेता ने देश की स्वतंत्रता के लिए के लिए दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ जैसे जोशीले नारे दिए।

प्रश्न 2.
1916 के प्रेसिडेंसी कांड का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बी.ए. आनर्स (दर्शन शास्त्र) करते समय सुभाष चन्द्र बोस के जीवन में एक घटना घटी। इस घटना ने इनकी विचारधारा। को एक नया मोड़ दिया। 
एक दिन लाइब्रेरी के स्व अध्ययन कक्ष में पढ़ते हुए इन्हें बाहर से झगड़े की कुछ अस्पष्ट आवाजें सुनाई दे रही थीं। जब ये बाहर आए तो इन्होंने देखा कि एक अंग्रेज प्रोफेसर श्री ओटेन इन्हीं की कक्षा के कुछ छात्रों को पीट रहे थे। मामले की जाँच करने पर पता चला कि बी.ए.प्रथम वर्ष के कुछ छात्र बाहर खड़े होकर शोर कर रहे थे, जिससे श्री ओटेन को पढ़ाने में दिक्कत आ रही थी। अत: उन्होंने दण्डस्वरूप उन छात्रों को पीट दिया। सुभाष अपनी कक्षा के प्रतिनिधि थे। इन्होंने इस घटना की सूचना प्रधानाध्यापक को दी। अगले दिन इस अपमान के विरोध में छात्रों ने सुभाष के नेतृत्व में सामूहिक हड़ताल कर दी।

कॉलेज के इतिहास में पहली बार इस प्रकार की सामूहिक हड़ताल हुई थी। मामले को दबाने के उद्देश्य से कॉलेज की कमेटी ने शिक्षक व छात्रों के मध्य एक समझौता करवा दिया किन्तु छात्रों का दण्ड माफ नहीं किया। एक महीने बाद श्री ओटेन ने दुबारा सुभाष के और सहपाठी को पीट दिया जिस पर कॉलेज के कुछ छात्रों ने कानून को अपने हाथ में ले लिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि इन छात्रों ने सुभाष के ही सामने श्री ओटेन को सीढ़ियों के पास बुरी तरह से पीटा। इस घटना से नाराज कॉलेज कमेटी ने छात्रों पर झूठा आरोप लगाया कि उन्होंने जानकर श्री ओटेन को सीढ़ियों से गिराया है। उन्होंने इस संदर्भ में सुभाष से भी बिना कोई बात पूछे उन्हें पूरी घटना का जिम्मेदार ठहराते हुए विश्वविद्यालय की परीक्षा से बहिष्कृत कर दिया और कॉलेज से भी निकाल दिया।

प्रश्न 3.
सन् 1921 से 1924 तक सुभाष बाबू के कार्यों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन् 1921 में आई.सी.एस के पद से इस्तीफा देने के बाद सुभाष बाबू जब कलकत्ता आए उस समय बंगाल में असहयोग आन्दोलन चल रहा था। भारत में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हो रहा था। सुभाष ने देशबंधु चितरंजन दास के साथ मिलकर बंगाल में इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। चितरंजन बाबू ने सुभाष के भारत लौटते ही उन्हें नेशनल कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया। अंग्रेजों के विरोध के फलस्वरूप सुभाष बाबू को 1921 में ही 6 माह की सजा मिली। 1922 में बंगाल में भयंकर बाढ़ आयी। इस बाढ़ में हजारों लोग बेघर और घायल हुए। बाढ़ की इस स्थिति में सुभाष बाबू ने बाढ़ पीड़ितों की बहुत सेवा की।

उनकी इस सेवा भावना की भारत सरकार ने बहुत सराहना की। 1923 में कांग्रेस ने कौंसिल के चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस चुनाव में चितरंजन बाबू बहुमत से कलकत्ता महापालिका के मेयर बने। उन्होंने सुभाष को कलकत्ता महापालिका का प्रमुख अधिकारी नियुक्त किया। सुभाष ने महापालिका के कार्य का ढाँचा ही बदल दिया। उन्होंने कलकत्ता की सड़कों के नाम अंग्रेजों के नाम से बदलकर शहीद भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर कर दिए। उनके कार्यकाल में कलकत्ता महानगरपालिका में शहीद भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारीजनों को नौकरियाँ मिलने लगीं । सुभाष बाबू ने कलकत्ता में बहुत सुधार किया। उनके इन कार्यों को देखते हुए 25 अक्टूबर 1924 को अंग्रेज सरकार ने एक आर्डिनन्स पास करने बिना कोई मुकदमा चलाए सुभाष को 6 महीने के लिए जेल में डाल दिया।

प्रश्न 4.
सुभाष बाबू यूरोप क्यों गए? विस्तार से कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1924 में जब सुभाष बाबू को बर्मा की माँडले जेल में रखा गया तो वहाँ के बेहद खराब वातावरण के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। अंग्रेज सरकार ने स्विट्जटलैण्ड जाने की शर्त पर उन्हें छोड़ने की बात कहीं, किन्तु उन्होंने मना कर दिया। उन्हें छुड़ाने के लिए देशभर में हड़ताले हुईं। इसलिए उन्हें रिहा कर दिया गया। सन् 1930 में जुलूस निकाला तो ब्रिटिश सरकार ने भयंकर लाठीचार्ज करवाकर सुभाष को बंदी बनवा लिया। इस लाठीचार्ज में सुभाष बाबू गंभीर रूप से घायल हुए। उन्हें 9 माह का कारावास मिला। जेल में कारावास की अवधि के दौरान उन पर दुबारा लाठीचार्ज किया गया। जिसके कारण वह कई दिनों तक बेहोश पड़े रहे। फलत: 8 मार्च 1933 को उन्हें आस्ट्रिया के वियना नगर में इलाज के लिए भेजा गया। जुलाई के महीने में आप प्राग गए।

इन्हीं दिनों आपको अपने पिता श्री जानकी नाथ की बीमारी का समाचार मिला। सुभाष अपने देश लौट आए। कलकत्ता बंदरगाह पर उतरते ही उनको केवल घर जाने की इजाजत मिली। पिता के स्वर्गवास के बाद 10 जनवरी 1934 को सुभाष बाबू इलाज के लिए पुन: वियना चले गए। अप्रैल 1936 में जब सुभाष बाबू वापस भारत आए तो उन्हें पुन: गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें यर्वदा जेल में रख गया। जहाँ उनका स्वास्थ्य पुनः बिगड़ने लगा। जिसके चलते उन्हें रिहा कर दिया और तभी वह पुनः स्वास्थ्य लाभ के लिए यूरोप चले गए। इस प्रकार बार-बार लाठीचार्ज सहने और जेल जाने के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ता रहा। यही कारण है कि सुभाष बाबू पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए यूरोप गए।

प्रश्न 5.
अपने अलग-अलग भाषणों में सुभाष बाबू ने आजाद हिन्द फौज की विजय की कामना किस प्रकार की है?
उत्तर:
अपने अलग-अलग भाषणों में सुभाष बाबू ने आजाद हिन्द फौज की विजय की कामना निम्न प्रकार की है 
‘एक भारतीय के रूप में मैं सदैव हिन्दुस्तान की आजादी के लिए लड़ता रहा हूँ। मैं उम्मीद करता हूँ कि सारे भारतीयों को चाहे वे कहीं भी हों, भारत की मुक्ति के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करनी चाहिए। प्रत्येक भारतीय को साहस के साथ लड़ना चाहिए कि हमारे पूर्वर्षों की धरती की मुक्ति का दिन निकट है। जिस फौज की साहस, निडरता और अजेयता की परम्परा न हो वह ताकतवर दुश्मन पर हावी नहीं हो सकती। सैनिक होने के नाते आपको निष्ठा, कर्तव्य और बलिदान के तीन आदर्शों को संजोये रखना होगा और उनका पालन करना होगा जो सैनिक देशभक्त होते हैं वे प्राणोत्सर्ग के लिए सदा तत्पर रहते हैं और वे अजेय होते हैं।

अगर आप भी अजेय होना चाहते हैं तो इन तीन आदर्शों को हृदय के अंदर अंकित कर लें। आज आप भारत के राष्ट्रीय गौरव के संरक्षक हैं और भारत की आशाओं और अभिलाषाओं के सजीव रूप हैं। इसलिए आप अपना व्यवहार ऐसा बनाइये कि आपके देशवासी आपको आशीर्वाद दें और भावी पीढ़ियाँ आप पर गर्व करें। हमारे दिमागों पर तनिक-सा भी संदेह नहीं है कि जब हम अपनी सेना के साथ भारतीय सीमाओं को पार करेंगे और अपने राष्ट्रीय ध्वज को भारत की धरती पर फहरायेंगे, देशभर में वास्तविक क्रांति जो अन्ततोगत्वा भारत से ब्रिटिश शासन को बाहर निकाल देगी।”

प्रश्न 6.
सुभाष चन्द्र बोस ने अपने संदेश के माध्यम से किस प्रकार विद्यार्थियों को जागृत करने का प्रयास किया?
उत्तर:
सुभाष चन्द्र बोस ने विद्यार्थियों को अपने विकास के लिए स्वयं आगे बढ़कर प्रयास करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि प्रत्येक छात्र के लिए एक शक्तिशाली और स्वस्थ शरीर, सुदृढ़ और आदर्श चरित्र एवं आवश्यक सूचनाओं एवं स्वस्थ गतिशील विचारों से परिपूर्ण मस्तिष्क अर्थात् ऐसे मस्तिष्क की आवश्यकता है जो निर्णय लेने और सोचने-विचारने की क्षमता से युक्त हो। अपने लिए अच्छी और बुरी भावनाओं की शक्ति से पूर्ण हो, की आवश्यकता है। उनके इस स्वस्थ शरीर, मस्तिष्क एवं चरित्र को विकसित करने का कर्तव्य विद्यालय के अधिकारियों का है। यदि अधिकारियों द्वारा किये गए प्रबन्धों से विद्यार्थियों के स्वास्थ्य, चरित्र और बुद्धि का उचित विकास नहीं हो पा रहा है, तो इस स्थिति में उन्हें अपने प्रयासों और सुविधाओं में बदलाव करना चाहिए।

ऐसी सुविधाएँ विद्यार्थियों को उपलब्ध करानी चाहिए जिससे उनका विकास संभव हो विद्यार्थियों को इस दिशा में स्वयं भी प्रयास करना चाहिए। यदि अधिकारीगण उनके प्रयासों को सराहें और उनका सहयोग करें तो बहुत अच्छी बात है। यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो विद्यार्थियों को उनकी ओर ध्यान नहीं देना चाहिए और बिना रुके अपने प्रयासों को जारी रखना चाहिए, जब तक उनके स्वास्थ्य और मस्तिष्क की पूर्ण व स्वस्थ विकास न हो। जब तक उनका चरित्र इतनी दृढ़ता प्राप्त ने कर ले कि वह कैसी भी परिस्थिति में संयमी रह सके। जीवन आपका अपना है। अत: इसके विकास की जिम्मेदारी दूसरों से अधिक आपकी स्वयं की है। अतः इसके विकास के लिए आपको स्वयं परिश्रम करना पड़ेगा।

पाठ-सारांश :

प्रस्तुत पाठ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जीवनी ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ से संकलित है। इस पाठ में नेताजी द्वारा किए गए कार्यों और उनके जीवन से संबंधित घटनाओं का वर्णन किया है। सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक नगर में हुआ था। इनके पिता श्री जानकी दास बोस कटक के एक जाने-माने वकील थे। सुभाष की माँ श्रीमती प्रभावती एक धार्मिक स्वभाव की महिला र्थी । वह स्वामी रामकृष्ण परमहंस की बहुत बड़ी भक्त थीं। जनवरी 1902 में सुभाष बाबू का दाखिला एंग्लो इंडियन लोगों के स्कूल में कराया गया। इस विद्यालय में एंग्लो इंडियन बच्चों और भारतीय बच्चों के साथ भेद-भाव बरता जाता था। सन् 1908 के बाद जब मैट्रिक, इण्टर और बी.ए. के लिए बांग्ला को अनिवार्य विषय के रूप में लागू किया गया, सुभाष बाबू ने राबिन शो कालेजियट स्कूल में दाखिला लिया। आरंभ में बांग्ला भाषा का ज्ञान न होने के कारण उन्हें विद्यालय में बहुत अपमान सहन करना पड़ा।

लेकिन अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने वार्षिक परीक्षा में बांग्ला भाषा में सर्वश्रेष्ठ अंक प्राप्त किए। घर में अधिक खेलने-कूदने की इजाजत न होने के कारण उन्हें संस्कृत के नीति श्लोक याद करने और बागवानी करने का बहुत शौक था। इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक बाबू बेनीप्रसाद दास ने सुभाष बाबू को बहुत प्रभावित किया। एक दिन सुभाष बाबू को अपने एक रिश्तेदार के यहाँ स्वामी विवेकानंद की पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला। इन पुस्तकों को पढ़कर सुभाष का नैतिक असमंजस समाप्त हो गया और वह मातृभूमि की सेवा के लिए तत्पर हो गए। सुभाष पर स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामकृष्ण परमहंस के साहित्य का इतना अधिक प्रभाव हुआ कि वह आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर होने लगे।

सन् 1913 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। आगे के अध्ययन के लिए उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। इन्हीं दिनों में वह श्री अरविन्द घोष के विचारों से बहुत अधिक प्रभावित हुए। सन् 1914 में वह ग्रीष्मावकाश के समय सम्पूर्ण उत्तर भारत के तीर्थों के दर्शन करने निकल पड़े। उसी समय विश्वयुद्ध छिड़ गया। प्रेसीडेंसी कॉलेज में अध्ययन के दौरान ही उन्हें अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचारों और भेदभाव की खबरें मिलने लगीं । इन खबरों के आधार पर सुभाष यह समझ चुके थे कि अंग्रेज

केवल शक्ति की भाषा समझते हैं। अतः सन् 1914 में उन्होंने संन्यास लेने का विचार त्याग दिया। सन् 1915 में उन्होंने इण्टर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और दर्शनशास्त्र से ऑनर्स का अध्ययन आरंभ कर दिया। इसी बीच सन् 1916 में एक अंग्रेज अध् यापक श्री ओ ने दो बार भारतीय छात्रों को पीट दिया। जिससे नाराज होकर छात्रों ने उनकी पिटाई लगा दी। सुभाष बाबू के सामने यह घटना होने के कारण उन्हें विश्वविद्यालय की परीक्षा में बैठने नहीं दिया गया और कॉलेज से भी निकाल दिया गया। कॉलेज से निकाले जाने पर वह कटक लौट आए। इस समय कटक में हैजा फैला हुआ था। उन्होंने हैजा पीड़ित लोगों की अपने साथियों के साथ मिलकर बहुत सेवा की। उनकी इस सेवा भावना ने नगर के जाने-माने गुण्डे हैदर का भी हृदय परिवर्तित कर दिया।

इसके बाद उन्होंने योगाभ्यास करने के उद्देश्य से घर छोड़ दिया, किंतु कोई सच्चा योगी न मिलने के बाद वह छह माह बाद घर वापस लौट आए। सन् 1917 में उन्होंने पुन: दर्शनशास्त्र में ऑनर्स का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया। सन् 1919 में वह इसमें प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए और पिता के कहने पर आई.सी.एस. की परीक्षा देने के लिए इंग्लैण्ड चले गए। उन्होंने चौथे स्थान पर आई.सी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण की और सितंबर 1920 में वह आई.सी.एस. चुने गए। अप्रैल 1921 में पद रहित देशसेवा करने के उद्देश्य से उन्होंने आई.सी.एस. के पद से इस्तीफा दे दिया और भारत लौट आए। देशबंधु चितरंजन दास ने उनके इस इस्तीफे का समर्थन दिया। सन् 1921 ई. उन्होंने देशबंधु चितरंजन दास के के साथ मिलकर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार आन्दोलन का नेतृत्व किया।

जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 6 महीने की सजा हुई। सजा काटने के बाद 1922 में आई बाढ़ से पीड़ित लोगों की उन्होंने बहुत सेवा की। सन् 1923 में हुए कांग्रेस कांसिल के चुनाव के समय जब देशबंधु चितरंजनदास मेयर बने तो उन्होंने सुभाष बाबू को प्रमुख अधिकारी नियुक्त किया। 25 अक्टूबर 1924 को अंग्रेज सरकार ने बिना मुकदमा चलाए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के अध्यादेश के आधार पर नेताजी को गिरफ्तार कर लिया। 6 माह की इस अवधि में सुभाष बाबू को अलीपुर जेल से बहरामपुर जेल और फिर वहाँ से वर्मा की माँडले जेल भेज दिया गया। लोकमान्य तिलक को भी माँडले जेल में रखा गया था।

माँडले जेल के खराब वातावरण के कारण सुभाष बाबू का स्वास्थ्य बिगड़ गया। सरकार ने स्विट्जरलैण्ड जाने की शर्त पर उन्हें रिहा करने की बात कही, किंतु सुभाष बाबू ने मना कर दिया। इसी बीच देशभर में सुभाष बाबू को रिहा करने के लिए हड़ताल होने लगीं। अत: 16 मई 1927 को ब्रिटिश सरकार को सुभाष बाबू को रिहा करना पड़ा। मई 1928 में सुभाष, गाँधी जी से मिलने गए, किन्तु निराश होकर लौटे। इसके बाद 26 जनवरी, 1930 को सुभाष बाबू कलकत्ता के मेयर चुने गए। इस समय ब्रिटिश सरकार ने जुलूस निकालने पर रोक लगा रखी थी। फिर भी सुभाष बाबू ने जुलूस निकाला और पुलिस द्वारा जुलूस पर लाठीचार्ज करके उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 3 माह के मिले इस कारावास में 3 अप्रैल 1930 को उन पर पुन: लाठीचार्ज किया गया। इसके कारण वह कई दिनों तक बेहोश पड़े रहे। इसके बाद 14 अप्रैल 1931 को हुए गाँधी-इरविन समझौते के तहत उन्हें रिहा कर दिया गया।

1931 में ही जब वह बंबई में कांग्रेस वर्किग कमेटी से लौट रहे थे, उन्हें पुन: गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहते हुए स्वास्थ्य खराब हो जाने पर 8 मार्च, 1933 को उन्हें इलाज के लिए ऑस्ट्रिया के वियना नगर भेजा गया। यहाँ उनकी मुलाकात विठ्ठलभाई पटेल से हुई । इन्हीं दिनों पिता की तबीयत खराब होने का समाचार पाकर यह भारत वापस आ गए और पिता की मृत्यु के पश्चात् पुनः 10 जनवरी, 1934 को इलाज के लिए वियना चले गए। इस बार आपकी मुलाकात इटली के नेता मुसोलिनी से हुई। इसके बाद फरवरी 1936 में में सुभाषाबाबू आयलैण्ड जाकर श्री. डी. बेलरा से मिले। अप्रैल 1936 में जब वह भारत वापस लौटे तो इन्हें पुन: गिरफ्तार कर लिया गया।

लेकिन इनके गिरते स्वास्थ्य और देश में हो रही हड़तालों के चलते इन्हें रिहा कर दिया गया। मार्च 1937 को यह पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए यूरोप चले गए। वहाँ से वापस आने पर कांग्रेस की स्थापना के 51वें वर्ष के अवसर पर इन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। सन् 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए हुए मुकाबले में गाँधी जी ने सुभाष के स्थान पर पट्टाभि सीतारमैया को सहयोग दिया और सुभाष हार गए। 20 जनवरी को सुभाष त्रिपुरा कांग्रेस के राष्ट्रपति के रूप में पुनः चुने गए, किन्तु गाँधीजी से मतभेद पर उन्होंने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद इन्होंने कलकत्ता में ब्लॉक हॉल नामक स्मारक को हटाने के लिए आन्दोलन आरंभ कर दिया, जिसके कारण 2 जुलाई, 1940 को इन्हें जेल में डाल दिया। सुभाष बाबू ने जेल में ही भूख हड़ताल चालू कर दी। उन्हें रिहा करके उनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया। जहाँ से वह 15 जनवरी, 1943 को मौलवी के वेश में चुपके से निकल गए और अफगानिस्तान के रास्ते मास्को होते हुए बर्लिन पहुँच गए। बर्लिन में ही उन्होंने आजाद हिन्द फौज का संगठन किया।

20 जनवरी, 1943 को नेताजी टोक्यो पहुँचे और प्रधानमंत्री टोजो से मिले। नेताजी के टोक्यो पहुँचने से पहले ही जनरल प्रतापसिंह ने आजाद हिंद फौज तैयार कर ली थी, जिसके प्रधान रासबिहारी बोस थे। नेताजी ने अपने समय-समय पर और अलग-अलग भाषणों में आजाद हिन्द फौज की विजय की कामना की और साथ ही राष्ट्रीय एकता, जनसंख्या वृद्धि और भारतीय नारी पर भी अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने भारतीय युवा और विद्यार्थियों को जाग्रत करके राजनीति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान द्वारा भारतीयों को रंगून जेल में कैद कर देने पर नेताजी ने जापान से समझौता किया। समझौते के अनुसार जापान ने जीते हुए दो द्वीप आजाद हिन्द सरकार को सौंप दिए।

5 जुलाई, 1943 को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने सिंगापुर टॉउन हॉल के सामने हुई परेड में भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा की। 24 अक्टूबर, 1943 को उनके द्वारा इंग्लैण्ड और अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। इसके समर्थन में लोगों ने अपने खून से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर करके नेताजी को भेंट किए। 17 जनवरी, 1944 को आजाद हिन्द सरकार का कार्यालय सिंगापुर से रंगून स्थानांतरित हो गया। यहीं उन्होंने बहादुरशाह जफर की कब्र पर फूल भी चढ़ाए। 4 फरवरी, 1944 को अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के उद्देश्य से निकली आजाद हिन्द सेना ने कोहिमा पहुँचकर अपनी मातृभूमि की जमीन पर लेटकर उसे प्रणाम किया।

इधर जापान ने विश्वयुद्ध में अपनी हार स्वीकार कर ली । कहा जाता है कि उसी समय सुभाष बाबू भी रंगून से बैंकांके चले गए। 23 अगस्त, 1945 को जापान ने रेडियो से यह दु:खद समाचार प्रसारित किया कि 18 अगस्त को हुए एक विमान दुर्घटना में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को शरीर आग से झुलस गया। इस समाचार से संपूर्ण भारत में शोक की लहर दौड़ गई। संपूर्ण राष्ट्र अपने इस महान स्वतंत्रता सेनानी के प्रति सदैव कृतज्ञ है।

कठिन शब्दार्थ :

(पा.पु.पृ. 40) स्वाधीनता = स्वतंत्रता । कष्टपूर्ण = दु:खों से भरा हुआ। जीवनपर्यन्त = जीवनभर । प्रतिष्ठित = ख्यात, प्रसिद्ध । धार्मिक = धर्म को मानने वाली । जिक्र = वर्णन। धनवान = अमीर। अभाव = कमी। स्वार्थ = आत्महित । लालच = लोभ । फिजूले = फालूत । खर्ची = खर्च। बाधा = रुकावट। आश्रित = शरणागत (परिवारीजन)। काफी = बहुत। खटकना = बुरा लगना । प्रारम्भिक = शुरुआती। कई = अनेक । निर्देश = दिशा-निर्देश । उम्र = आयु । भर्ती = प्रवेश। प्रसन्न = खुश। बराबर =लगातार ।

(पा.पु.पृ. 41) सहपाठी = साथ पढ़ने वाले । घृणा = नफरत । झगड़ा = लड़ाई । मैट्रिक = हाईस्कूल (दसवीं कक्षा) । अनिवार्य = नियत, अत्यावश्यक, अवश्यंभावी। व्यक्त करना = प्रकट करना। नीचा देखना = अपमानित होना । उत्तीर्ण = पास। इजाजत – आज्ञा । शौक = पसन्दं । छुटपन = बचपन। भावाभिव्यक्ति = अनुभाव, भाव अभिव्यक्ति । स्थानान्तरण = तबादला। हित = भलाई । असमंजस = दुविधा। समाप्त = खत्म। मन:स्थिति = मन की स्थिति । संशय = संदेश। अनैतिक = अनुचित ।

(पा.पु.पृ.42) आकृष्ट = आकर्षित । वासना = कलुषित विचार। लोभ = लालचे। आध्यात्मिक = ईश्वरीय । उपयुक्त = ठीक, उचित । पात्र = योग्य । बजाय = स्थान पर । एकांत = अकेलापन । निरामिष = माँसरहित, शाकाहारी। चरणस्पर्श = पैर छूना । दृष्टि = नजरिया। शामिले = सम्मिलित । निर्वाह करना = पालन करना। डर = भय। विजय = जीत । लगन = आदत, अभ्यास। मदद = सहायता। परहेज = भेदभाव (पाठ के आधार पर)। तय करना = निश्चित करना। अध्ययन = पढ़ाई।

(पा.पु.पृ. 43) प्रभाव = असर । भिन्न = अलग। ताकि = जिससे । समर्पित होना = प्रदत्त होना, उपहत। समृद्धशाली = सौभाग्यशाली । झेलना = सहन करना। ग्रीष्मावकाश = गर्मियों की छुट्टियाँ। प्रचलित होना = संचलित, प्रचलन होना। अविश्वास = यकीन न करना, विश्वास न करना। शक्ति = ताकत। विराग = संन्यास। क्षति = हानि। जुर्माना = दण्ड (आर्थिक) । अनुरूप = अनुसार। प्रिंसिपल = प्रधानाध्यापक। प्रतिवेदन = अनुज्ञापन। जनश्रुति = कहावत। निर्धन = गरीब।

(पा.पु.पृ. 44) रोगी = बीमार। दल = समूह। जुटना = लगा हुआ। औषध = औषधि, दवा। धैर्य = धीरज । रोग = बीमारी । कीर्ति = प्रसिद्धि, यश। योगी = योग में निपुण । सहस्रों = हजारों। अमूल्य = बहुत कीमती । व्यर्थ = बेकार में । घृणा = नफरत । मासे = महीना। दुर्बल = कमजोर। प्रादेशिक = प्रदेश की। शीघ्र = जल्दी । तय करना = निश्चित करना। रवाना होना = निकल जाना (किसी स्थान पर जाने के लिए) ।

(पा.पु.पृ. 45) सर्विस = नौकरी । बन्धनग्रस्त = बंधा हुआ, बंधनों में जकड़ा हुआ। कदापि = बिल्कुल । अलावा = अतिरिक्त । सार्वजनिक = समाजीय । हित = भलाई । परित्याग = पूरी तरह से त्याग देना । हार्दिकता = हृदय से, मन से । जुट जाना = लग जाना । अवगत कराना = परिचित कराना। इस्तीफा = त्याग-पत्र। माह = महीने। बेघरबार = बिना घर के, घर के रहित । सराहना = प्रशंसा करना। पेश करना = प्रस्तुत करना । प्रावधान = नियम। तहत = अनुसार। फाँकना = खाना। सौन्दर्य = सुन्दरता । विदित होना = पता होना, मालूम होना । कारागार = जेल।

(पा.पु.पृ. 46) धारणा = विचार। कदाचित = संभवतः। अवधि = समय, काल। यातना = कष्ट भोगना = झेलनी, सहना। पूर्ण = पूरा। बुद्धिजीवी = विद्वान। सांत्वना देना = पुचकारना। एकांकी = अकेला। काष्ठ= लकड़ी। स्तंभ वलय = बाँस । निर्मित = बना हुआ। ऊष्मा = गुर्मी, धूप। पावसे = वर्षा ऋतु। भव्य = शानदार। स्वर्गवास = मृत्यु। वरद = वरदानी। बाह्य = बाहरी । प्राचीर = दीवार । आलोक = प्रकाश। कारावास = जेल। हाहाकार = आर्तनाद।

(पा.पु.पृ. 47) इजाजत = आज्ञा। भेट = मुलाकात। समर्थन = सहमति। प्रयास करना = कोशिश करना। मुकाबला = प्रतियोगिता। मतभेद होना = विचार न मिलना । मुक्त = आजाद, रिहा। नजरबंद करना = कैद करना। कामना करना = इच्छा करना। उम्मीद = आशा। मुक्ति = आजादी। सर्वस्व = सबकुछ। न्यौछावर करना = बलिदान करना । दृढ़ = मजबूत। निकट = पास। निडर = बिना डर के। अजेय = जिसे जीता न जा सके। परम्परा = रिवाज। ताकतवर = शक्तिशाली। दुश्मन = शत्रु। हावी होना = व्यापक होना।

(पा.पु.पृ. 48) निष्ठा = लगन। बलिदान = त्याग। सँजोना = सँभालना। प्राणोत्सर्ग = प्राणों का त्याग करना। तत्पर = तैयार। अजेय = जिसे जीता न जा सके। संरक्षक = रक्षण करने वाला। अभिलाषा = इच्छा। भावी = आने वाली। तनिक = जरा। संदेह = शक। अन्ततोगत्वा = आखिरकार, अंततः, विवशतः। व्यक्त करना = प्रकट करना। संगठित होना = बँध जाना। यथार्थ = वास्तव में। व्यापक = विशाल । समर्थ = योग्य। सामर्थ्य = समर्थता, योग्यता, क्षमता। जागृत करना = जगाना।

(पा.पु.पृ.49) प्रस्फुटन = विस्तार, विकास। प्रयत्न = प्रयास । पाबंदी = रोक। निरर्थक = बेकार, अर्थरहित। स्वाधीन = स्वतंत्र, अपने अधीन। रक्त = खून। कूच करना = चढ़ाई करना। हथियार डालना = हार मानना। वायुयान = हवाई जहाज। शोक = दुखद।

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