Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 8 भारत के महान वैज्ञानिक-सर जगदीश चन्द्र बोस (आत्मकथा)
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
योगी कथामृत किस महापुरुष से सम्बन्धित है?
(क) युक्तेश्वर जी से
(ख) महावतार बाबाजी से
(ग) योगानंद जी से
(घ) स्वामी प्रणवानंद जी से।
उत्तर:
(ग) योगानंद जी से
प्रश्न 2.
जगदीश चन्द्र बोस वैज्ञानिक थे –
(क) परमाणु विज्ञान के
(ख) जीवविज्ञान के
(ग) भूगर्भ शास्त्र के
(घ) वनस्पति शास्त्र के
उत्तर:
(घ) वनस्पति शास्त्र के
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राध्यापक महोदय के अनुसार मार्कोनी से पहले वायरलेस का आविष्कार किसने किया था?
उत्तर:
प्राध्यापक महोदय के अनुसार मार्कोनी से पहले वायरलेस का आविष्कार सर जगदीशचन्द्र बोस ने किया था।
प्रश्न 2.
वनस्पति जगत के जीवन की अविभाज्य एकता तथा गति दर्शाने वाले यंत्र का नाम लिखिए?
उत्तर:
वनस्पति जगत के जीवन की अविभाज्य एकता तथा गति दर्शाने वाले यंत्र का नाम क्रेस्कोग्राफ है।
प्रश्न 3.
जगदीश चन्द्र बोस के अंतरंग कवि मित्र का नाम लिखिए।
उत्तर:
जगदीश चन्द्र बोस के अंतरंग कवि मित्र का नाम ठाकुर रविन्द्रनाथ टैगोर था।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बोस के क्रेस्कोग्राफ की क्या विशेषता है? लिखिए।
उत्तर:
सर बोस द्वारा आविष्कृत क्रेस्कोग्राफ पौधों में होने वाली सूक्ष्म से सूक्ष्म जैव-क्रियाएँ स्पष्ट दिखाई देती थीं। इसकी परिवर्धन शक्ति एक करोड़ गुना है। इसके आविष्कार के माध्यम से बड़े-से बड़े पेड़ को आसानी से स्थानांतरित किया जा सका। इसी के माध्यम से यह सिद्ध हुआ कि पौधों में भी संवेदनशील स्नायुतंत्र होता है।
प्रश्न 2.
पौधे से फूल तोड़ने पर संत की क्या प्रतिक्रिया रही, जिसे योगानन्द जी ने जगदीश चन्द्र बोस के सामने व्यक्त किया?
उत्तर:
संत की भावना थी कि पौधे से फूल तोड़ने पर फूले वे पौधे दोनों के आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है वह कहते थे कि गुलाब के पौधे से मैं उसका सौन्दर्याभिमान कैसे छीन लें। अपनी उद्दण्डता से उसे विवस्त्र करके उसके आत्म-सम्मान को धक्का कैसे पहुँचाऊँ?” उनके इन सहानुभूतिपूर्ण शब्दों को आपके आविष्कारों ने अक्षरशः यथार्थ सिद्ध कर दिया।
प्रश्न 3.
ऋषि तुल्य वैज्ञानिक बोस के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सर बोस एक गम्भीर, समुद्र के समान शांत और एकान्त प्रेमी व्यक्ति थे। उनकी आयु पचास से साठ वर्ष के बीच थी। उनके बाल घने थे। माथा चौड़ा था और उनकी आँखें सपनों से भरी हुई थीं। उनको शरीर सुगठित था। उनकी विशुद्ध भाषा उनके वैज्ञानिक स्वभाव को प्रकट करती थी। वह एक संघर्षशील और कर्मठ वैज्ञानिक थे। रॉयल सोसाइटी द्वारा जैवविज्ञान के क्षेत्र में आविष्कार करने से रोके जाने पर भी वह इस क्षेत्र में कार्यरत रहे और अनेक आविष्कार किए। वह दृढ़ व्यक्तित्व वाले ऋषि तुल्य वैज्ञानिक थे।
प्रश्न 4.
बोस इंस्टीट्यूट की कलात्मकता तथा आध्यात्मिकता को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बोस इंस्टीट्यूट कला का बेजोड़ नमूना है, जिसे देखकर कोई भी व्यक्ति इसे विज्ञान संस्था के स्थान पर एक मंदिर ही बंताएगा। इस संस्था का प्रवेश द्वार दूर स्थित किसी मंदिर का अवशेष है। इसमें कमलों से परिपूर्ण तालाब है, जिसके पीछे मशाल लिए खड़ी स्त्री की मूर्ति महिलाओं को इस क्षेत्र में आगे आने और भारत के गौरव को बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है। संस्था के बगीचे में मूर्तिरहित एक मंदिर है, जो सर्वव्याप्त अगोचर ब्रह्म को समर्पित है। यह स्थान ईश्वर निराकारता का प्रतीक है।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 8 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बोस को किन पंक्तियों से सम्बोधित किया था?
उत्तर:
कवि गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर सर जगदीश चन्द्र बोस के परम मित्र थे। उन्होंने सर बोस को निम्नलिखित पंक्तियों के माध्यम से संबोधित किया था –
‘हे तपस्वि डाको तूमि साममंत्रेजलदगर्जने,
“उत्तिष्ठत ! निबोधत !” डाको शास्त्र अभिमानीजने
पाण्डित्येर पण्डतर्क हते। सुबृहत विश्वतले
डाको मूढ़ दाम्भि केरे। डाक दाओ तब शिष्य दले
एकत्रे दाँड़ाक तारा तब होम- हुताग्नि घिरिया।
बार-बार ए भारत आपनाते असूक फिरिया
निष्ठाय, श्रद्धाय, ध्याने–बसूक से अप्रमत्तचित्ते
लोभहीन, द्वन्द्वहीन, शुद्ध, शान्त गुरूर वेदिते।
अर्थात् – हे तपस्वि! साममंत्रों की बादलों के समान गर्जना के साथ पुकारो – “उठो! जागो!” (तुम) शास्त्र के ज्ञान से अभिमानी हुए शास्त्रियों और कुतर्क करने वाले पण्डितों को पुकारो (उनका आह्वान करो) और उन्हें बेकारे के तर्को को छोड़ने के लिए प्रेरित करो। उन मूर्ख और अभिमानी (घमंडी) व्यक्तियों को इस (ज्ञान के) विशाल संसार में आने (और सम्मिलित होने) की प्रेरणा दो। (साथ ही) अपने शिष्यों का भी आह्वान करो कि वे सभी भी कर्तव्यरूपी यज्ञवेदी के चारों ओर एकत्र हों और अपने कर्तव्यों को भली-भाँति पालन करने के लिए वचनबद्ध हों, जिससे हमारा प्राचीन देश भारत अपने सच्चे स्वरूप को पुनः प्राप्त कर सके। कर्तव्यनिष्ठा, श्रद्धा और ध्यान से प्रमादरहित होकर लोभहीन, द्वन्द्वहीन, शुद्ध और शांत बनकर एक बार फिर से विश्वगुरु के पद पर स्थापित हो।
प्रश्न 2.
प्रयोगशाला उद्घाटन-अवसर पर बोस द्वारा व्यक्त विज्ञान विषयक उदात्त विचारों को लिखिए।
उत्तर:
प्रयोगशाला के उद्घाटन के अवसर पर सर बोस ने कहा कि विज्ञान किसी एक देश की धरोहर नहीं, अपितु समस्त संसार का है। इसका कार्य और अनुसंधान क्षेत्र बहुत विस्तृत है। वह स्वयं भी कब इसके भौतिक क्षेत्र से निकलकर जैव क्षेत्र में पहुँच गए, उन्हें पता भी नहीं चला। उन्होंने इससे जुड़े अनेक आविष्कार किए और उनसे प्राप्त परिणामों को रॉयल सोसाइटी के समक्ष रखा। उन्होंने बोस को अपने विषय के सीमा क्षेत्र में रहते हुए आविष्कार करने की सलाह दी। इस प्रकार अनेक गलतफहमियों का शिकार होने के बाद उनकी समझ में आया कि एक वैज्ञानिक का जीवन भी अनंत संघर्षों से भरा होता है।
कुछ समय बाद उनके आविष्कारों और विज्ञान के इस क्षेत्र में भारत के योगदान को मान्यता प्राप्त हुई। विज्ञान के इस क्षेत्र में हुए आविष्कारों के कारण भौतिक विज्ञान, प्रकृति विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान एवं कृषि के साथ-साथ मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी अनुसन्धान करने के अनेक और विस्तृत क्षेत्र खुले। ऐसी उलझनें और रहस्य जिनके विषय में माना जाता था कि उन्हें कभी सुलझाया नहीं जा सकेगा, वे भी अब विज्ञान के प्रयोगात्मक अन्वेषण के कार्यक्षेत्र में आ गईं। किसी भी वैज्ञानिक और आविष्कार का मन ही उसकी वास्तविक प्रयोगशाला होता है, जहाँ वह गूढ़ रहस्यों के पीछे सच के नियमों को खोज निकालते हैं।
प्रश्न 3.
प्रयोगशाला में फर्न के पौधे पर बोस द्वारा किये गए प्रयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सर बोस ने एक फर्न का पौधा लिया और उस पर क्रेस्कोग्राफ लगाया। क्रेस्कोग्राफ लगाने पर फर्न के पौधे की बढ़ती हुई छाया वहाँ लगे एक पर्दे पर स्पष्ट दिखाई देने लगी। इस यंत्र के माध्यम से पौधे में होने वाली वृद्धि स्पष्ट पता चल रही थी। तभी बोस ने उस फर्न के पौधे को एक नुकीली छड़ से छुआ। छड़ का स्पर्श होते ही पर्दे पर चल रही फर्न के पौधे में होने वाली वृद्धि और हलचल एकदम रुक गई। उन्होंने जैसे ही वह छड़ वापस हटाई, वैसे ही उसमें वही लयबद्ध थिरकन अर्थात् गति पुन: होने लगी।
जिससे स्पष्ट हुआ कि जरा-सी भी बाधा होने पर पौधों में विकास रुक जाता है। पौधे पर क्लोरोफॉर्म डाली, जिसके प्रभाव ने उसके विकास को पूरी तरह से रोक दिया, किन्तु जैसे ही बोस ने उस पर क्लोरोफॉर्म का प्रभाव नष्ट करने वाली औषधि डाली, विकास की प्रक्रिया पुनः आरंभ हो गई। अंत में उन्होंने उस फर्न के पौधे को जड़ से एक ब्लेड की सहायता से काट दिया। ऐसा करने पर पर्दे पर चले रहे चित्र में बहुत तेज दर्द से होने वाली छटपटाहट दिखाई दी और अंत में वह छटपटाहट मौत की निश्चल शांति में बदल गई। इस प्रकार यह यंत्र दर्शाता है कि पौधे में भी संवेदनशील स्नायुतंत्र होते हैं। वे भी मनुष्य की भाँति सुख-दुःख, दर्द और अन्य उत्तेजनाओं को महसूस कर सकते हैं।
प्रश्न 4.
टिन धातु के टुकड़े पर बोस द्वारा किये गए प्रयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सर बोस ने एक टिन के टुकड़े पर एक अन्य यंत्र लगाया, जिसके लगाते ही टिन के टुकड़े में होने वाली हलचल और प्रतिक्रियाएँ स्याही के निशान के माध्यम से चिहिनत होने लगीं। सर बोस ने जैसे ही उस टिन के टुकड़े पर क्लोरोफार्म लगाया, टिन में होने वाला कंपन-लेखन रुक गया। जैसे-जैसे उस पर से क्लोरोफॉर्म का प्रभाव खत्म हुआ, उसमें पुन: कंपन होने लगा। इसके बाद बोस ने उस पर एक जहरीला पदार्थ लगाया। विषैले पदार्थ के लगते ही उसमें तीव्र छुटपटाहट हुई और संकेत अंकित करने वाली सुई ने अद्भुत रूप से रेखाचित्र पर टिन की मृत्यु की सूचना अंकित कर दी। सर बोस ने स्पष्ट किया कि सभी मशीनें निरंतर कार्यरत होने पर थकान अनुभव करती हैं, किन्तु विश्राम मिलने के बाद उनमें पुनः कार्यशक्ति वापस आ जाती है। साथ ही विद्युत का प्रवाह अथवा अति भारी दबाव धातुओं पर विपरीत प्रभाव डालते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी धड़कन सदैव के लिए रुक भी सकती है।
प्रश्न 5.
पठित पाठ के आधार पर जगदीश चन्द्र बोस के व्यक्तित्व की विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
सर बोस एक महान भारतीय वैज्ञानिक थे। उन्होंने अपने आविष्कारों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि प्रकृति निर्जीव नहीं, अपितु सजीव है। पेड़-पौधे भी मनुष्य के समान संवेदनशील होते हैं और सब कुछ महसूस कर सकते हैं। सर बोस का व्यक्तित्व एक ऋषि के समान धीर और गंभीर था। उनमें अपार धीरज और स्वदेश के प्रति अत्यन्त प्रेम था। सर बोस ने अपना कार्यक्षेत्र भौतिक विज्ञान से आरम्भ किया था, किन्तु वे प्रकृति विज्ञान की ओर मुड़ गए। प्रकृति ने उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने अनेक ऐसे आविष्कार किए जिन्होंने न केवल पेड़-पौधों अपितु धातुओं में भी जीवन को प्रमाणित किया।
आरंभ में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा किन्तु इस महान वैज्ञानिक ने कभी उन बाधाओं से हार नहीं मानी। वह धीरज के साथ निरन्तर संघर्ष करते रहे और अंततः उनके आविष्कारों को मान्यता प्राप्त हुई। यह मान्यता केवल उनके आविष्कारों को ही नहीं अपितु विज्ञान के क्षेत्र में भारत के योगदान को भी मिली। सर बोस फ्चास-साठ वर्ष के एक सुगठित शरीर वाले व्यक्ति थे। उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली था। उनका माथा चौड़ा, बाल लम्बे, सपनों से भरी आँखें थीं। उनका स्पष्ट और शुद्ध उच्चारण उनके वैज्ञानिक स्वभाव का परिचायक था।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 8 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हिमालय की सुन्दरता और महानता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिमालय को देवताओं की आत्मा की संज्ञा दी गई है। इसे देवात्मा, गिरिराज, पर्वतराज आदि नामों से पुकारा जाता है। यह प्राकृतिक सुषमा और वैभव से परिपूर्ण है, जो देवताओं के मन को भी लुभा लेता है। अत: इसकी सुन्दरता से प्रभावित होकर देवता भी इसकी वादियों में घूमते हैं। यहाँ ऋषि-मुनि, तपस्वी, सामान्यजन, यहाँ तक कि चक्रवर्ती सम्राट भी मोक्ष की कामना से अपना सब कुछ त्याग कर आए थे। इतना महान और भव्य है यह हिमालय।
प्रश्न 2.
सर बोस से संबंधित टिप्पणी को सुनकर लेखक की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
लेखक ने जैसे ही रास्ते में खड़े होकर बात करते प्राध्यापकों के दल के द्वारा यह टिप्पणी किए जाने पर कि “जगदीश चन्द्र बोस ने वायरलेस का आविष्कार मार्कोनी से पहले ही कर लिया था।” वह स्वयं को रोक नहीं पाया । जगदीश चन्द्र बोस के विषय में और अधिक ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासावश वह उस दल के पास पहुँच गया और प्राध्यापक महोदय से इस विषय में विस्तार से बताने की प्रार्थना की।
प्रश्न 3.
प्राध्यापक महोदय ने लेखक की जिज्ञासा को किस प्रकार शांत किया?
उत्तर:
प्राध्यापक महोदय ने अपने कथन को स्पष्टीकरण देते हुए लेखक को बताया कि सबसे पहले बोस ने ही वायरलेस और विद्युत तरंगों की वक्रता दर्शाने वाला एक यंत्र बनाया था। लेकिन बोस ने कभी भी अपने आविष्कारों से धन कमाने का प्रयास नहीं किया। इसके बाद ही उन्होंने अपना ध्यान अजैव से हटाकर जैव जगत की ओर मोड़ दिया। वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में किए गए उनके आविष्कार इस आविष्कार से अधिक श्रेष्ठ हैं।
प्रश्न 4.
बोस ने लेखक को बोस क्रेस्कोग्राफ के विषय में क्या जानकारी प्रदान की?
उत्तर:
बोस ने लेखक को बताया कि बोस क्रेस्कोग्राफ की परिवर्धन शक्ति अर्थात् सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु को बड़ा करके दिखाने की शक्ति एक करोड़ गुणा है। माइक्रोस्कोप तो केवल कुछ सहस्र (हजार) गुना ही बड़ा करके दिखा पाता है। इसके बावजूद उसने जीवविज्ञान को तीव्रगति प्रदान करके जीव विज्ञान में प्राण फेंक दिये। क्रेस्कोग्राफ अनगिनत मार्ग खोलता है।
प्रश्न 5.
प्रयोगमूलक पद्धति क्या है? बोस ने इसे किसके साथ जोड़ा और उसका क्या परिणाम रहा?
उत्तर:
प्रयोगमूलक पद्धति पश्चिमी देशों की वह पद्धति है जिसमें प्रयोगों के आधार पर किसी भी सिद्धान्त की सूक्ष्म से सूक्ष्म जाँच की जाती है। बोस ने इस प्रयोगमूलक पूर्वजों से मिली अपनी आत्मपरीक्षण की शक्ति के साथ जोड़ दिया। इन दोनों के योग के आधार पर ही बोस प्रकृति के गुप्त रहस्यों को खोज पाए और प्रकृति का जड़ से चेतन में एकाकार किया।
प्रश्न 6.
अपने आविष्कार के माध्यम से बोस ने क्या सिद्ध किया?
उत्तर:
अपने आविष्कार ‘क्रेस्कोग्राफ’ के माध्यम से सर बोस ने यह सिद्ध किया कि पेड़-पौधों में भी संवेदनशील स्नायुतंत्र होता है। उनका जीवन भी विभिन्न भावनाओं से परिपूर्ण होता है। वे भी प्रेम घृणा, आनन्द, भय, सुख, दु:ख, चोट, दर्द, मूच्र्छा जैसी अन्य उत्तेजनाओं के प्रति संवेदनशील होते हैं। अन्य प्राणियों के समान ही प्रतिक्रियाएँ, भावानुभूति पेड़-पौधों में भी समान होती हैं।
प्रश्न 7.
सर बोस के वैज्ञानिक अनुसंधान केन्द्र का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
सर बोस का यह विज्ञान पीठ कलात्मकता और आध्यत्मिकता का संगम है। इसका प्रवेश द्वार किसी प्राचीन मंदिर के अवशेष के समान है। कमलों से भरे तालाब के पीछे खड़ी मशालधारी स्त्री की मूर्ति नारी को प्रकाश-देने वाली प्रतीत होती है। यह प्रकाश-दात्री के रूप में भारत के आदर का सूचक है। पीठ के उद्यान में एक छोटा-सा मंदिर है, जिसमें मूर्ति नहीं है। यह मूर्तिविहीन मंदिर ईश्वर की निराकारता को प्रकट करता है।
प्रश्न 8.
बोस ने किस बात से प्रभावित होकर अपने प्रयोगों से प्राप्त परिणामों को रॉयल सोसाइटी के समक्ष रखा?
उत्तर:
बोस ने जब अपने आविष्कारों का प्रयोग पौधों और धातुओं पर किया तो उनके समक्ष अनेक आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए। उन्हें प्रतीत हुआ जैसे धातु, वनस्पति और प्राणी सभी को एक समान प्रतिक्रिया ने एक ही नियम से बाँधा हुआ है। ये सभी एक ही समान थकान और खिन्नता के लक्षण प्रकट करते हैं। साथ ही इनमें पुनः तरो-ताजा और प्रसन्नता के साथ खिलने की संभावनाएँ भी विद्यमान रहती हैं। सबसे ऊपर मृत्यु के बाद निश्चलता भी सभी सभी में समान थी। इस विशाल सामान्यत्व से प्रेरित होकर बोस ने अपने प्रयोगों से प्राप्त परिणामों को रॉयल सोसाइटी के समक्ष रखा।
प्रश्न 9.
बोस के इस प्रकार अपने प्रयोगों से प्राप्त परिणामों को रॉयल सोसायटी के समक्ष रखने पर उसके सदस्यों की क्या प्रतिक्रिया रही? इससे बोस को क्या आभास हुआ?
उत्तर:
बोस ने जब अपने प्रयोगों से प्राप्त परिणामों को बहुत उत्साह के साथ रॉयल सोसायटी के समक्ष रखा तो वहाँ उपस्थित विज्ञानियों ने उन्हें अपने आविष्कारों को भौतिक विज्ञान के क्षेत्र तक ही सीमित रखने की सलाह दी। उन्हें बोस की सफलता पर विश्वास तो था किन्तु बोस के द्वारा इस प्रकार उनके कार्यक्षेत्र में आकर आविष्कार करना, उन्हें उनकी दखलंदाजी लगी। इस बात से बोस को आभास हुआ कि जैसे उन्होंने इस प्रकार कार्यक्षेत्र में आकर व्यवस्था के शिष्टाचार का उल्लंघन किया हो।
प्रश्न 10.
उन विज्ञानियों के ऐसे व्यवहार व उनकी गलतफहमियों के कारण बोस को क्या बात समझ में आ गई थी?
उत्तर:
इस प्रकार, गलतफहमियों का शिकार बनते रहने से बोस समझ चुके थे कि विज्ञान के उपासक का जीवन अनिवार्य रूप से अनेक संघर्षों से भरा होता है। उसे अपना जीवन लाभ और हानि, सफलता और विफलता को समान मानते हुए विज्ञान के प्रति अर्पण करना पड़ता है। तब कहीं जाकर वह इस योग्य बनता है कि उसे सभी की पूर्ण सहमति और मान्यता प्राप्त हो।
प्रश्न 11.
बोस के अनुसार कैसा व्यक्ति त्याग नहीं कर सकता है? और त्याग करने में कौन समर्थ है?
उत्तर:
बोस के अनुसार संघर्ष को स्वीकार करने वाले व्यक्ति दुर्बल होते हैं। वह कभी भी कुछ प्राप्त नहीं कर पाते हैं, यही कारण है कि कुछ भी प्राप्त न कर पाने के कारण उनके पास त्यागने के लिए भी कुछ नहीं होता है। इसके विपरीत जो संघर्षों का सामना करता है। धीरज के साथ संघर्षों पर विजय प्राप्त करता है। केवल वही संसार में त्याग करने योग्य एवं संसार को अपनी विजय के अनुभवों को बाँटने योग्य होता है।
प्रश्न 12.
बोस के आविष्कारों एवं प्रयोगों का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
बोस के आविष्कारों एवं प्रयोगों के परिणामस्वरूप वनस्पति जीवन के अनसुलझे रहस्यों के भेद खुल जाने से अनेक अप्रत्याशित तथ्य सामने आए। इनसे पदार्थ विज्ञान, प्रकृति विज्ञान, चिकित्सा एवं कृषि के साथ-साथ मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी अनुसंधान के विस्तृत क्षेत्र खुल गए। ऐसी उलझनें जिनके विषय में यह कहा जाता था कि उनका समाधान कभी नहीं हो सकता, वे भी बोस के कारण प्रयोगात्मक अन्वेषण के कार्यक्षेत्र में आ गईं।
प्रश्न 13.
प्रयोगशाला में लगे उपकरण किसकी और कैसी गाथा सुनाते हैं? बोस के अनुसार वैज्ञानिक की वास्तविक प्रयोगशाला क्या है?
उत्तर:
प्रयोगशाला में लगे उपकरण जगदीश चन्द्र बोस के, दृश्यमान आभास के पीछे सत्य को खोजने के लिए आवश्यक लम्बे और बिना रुके किए जाने वाले प्रयास की व उनके द्वारा अपने सीमित सामर्थ्य की सीमाओं को लाँघने के लिए आवश्यक निरन्तर कठोर परिश्रम, लगन और उद्योगशीलता की गाथा सुनाते हैं।
प्रश्न 14.
बोस ने अपने भाषण में किसे भारतीय संस्कृति का सार कहा है?
उत्तर:
इस विज्ञान पीठ में दिए जाने वाले लेक्चर केवल किसी दूसरे से प्राप्त ज्ञान की पुनरावृत्ति मात्र नहीं होंगे। उनमें इन कक्षों में पहली बार सिद्ध किये गए नए आविष्कारों का भी ज्ञान प्रदान किया जाएगा। साथ ही इस संस्था के कार्य-विवरण के नियमित प्रकाशनों द्वारा भारत का योगदान समस्त विश्व तक पहुँचेगा। वे सार्वजनिक सम्पति बन जायेंगे। इसके लिए कभी भी किसी से ‘पेटेंट’ नहीं लिया जायेगा। यही भारतीय संस्कृति का सार है कि हमें ज्ञान का प्रयोग केवल अपने लाभ के लिए नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 15.
सर बोस की इस विज्ञान पीठ को लेकर क्या इच्छा थी? प्राचीन समय में भारत का शिक्षा के क्षेत्र में क्या योगदान था?
उत्तर:
सर बोस की इच्छा थी कि इस संस्था की सुविधाएँ जहाँ तक संभव हो सकें सभी देशों के अनुसंधानकर्ताओं के लिए उपलब्ध हों। जो इन परम्पराओं को आगे चलाने का प्रयास कर रहे हैं। पच्चीस शताब्दियों पूर्व भी भारत नालंदा और तक्षशिक्षा के अपने प्राचीन विश्वविद्यालयों में विश्व के सभी हिस्सों से आते छात्रों को ज्ञानप्राप्ति की सुविधा उपलब्ध कराता था।
प्रश्न 16.
सर बोस के किन शब्दों को सुनकर योगानंद जी की आँखें भर गईं?
उत्तर:
अपने भाषण के अंत में बोस ने कहा, “विज्ञान न तो पूर्व का है न पश्चिम की, बल्कि अपनी सार्वलौकिकता के कारण वह सब देशों का है, परन्तु फिर भी भारत इसमें महान योगदान देने के लिए विशेष रूप से योग्य हैं। भारतीयों की ज्वलंत कल्पनाशक्ति तो ऊपर-ऊपर परस्पर विरोधी लगने वाले तथ्यों की गुत्थी से भी नया सूत्र निकाल सकती है, परन्तु एकाग्रता की आदत ने इसे रोक रखा है। संयम मन को अनंत धीरज के साथ सत्य की खोज में लगाये रखने की शक्ति प्रदान करता है।” बोस के इन शब्दों को सुनकर योगानंद जी को आँखें भर आईं।
प्रश्न 17.
क्रेस्कोग्राफ का वर्तमान में क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
क्रेस्कोग्राफ के माध्यम से पौधों पर किये जाने वाला क्लोरोफॉर्म को प्रयोग बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ। पहले जब बड़े-बड़े पेड़ों को स्थानांतरित किया जाता था तो वे स्थानांतरित किए जाने के कुछ ही दिन बाद मर जाते थे। किन्तु इस जीवनरक्षक युक्तिकौशल अर्थात् पेड़ों को क्लोरोफॉर्म डालने के बाद नए स्थान की मिट्टी में अपनी जड़े जमा लेते हैं और मरते नहीं हैं।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 8 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पाठ के लेखक परमहंस योगानंद जी का जीवन-परिचय लिखिए।
उत्तर:
परमहंस योगानंद का जन्म हिमालय से सटे गोरखपुर नगर के एक बंगाली परिवार में हुआ था। इनके पिता भगवती चरण घोष थे। माता-पिता के आध्यात्मिक वृत्ति के होने के कारण बालक मुकुन्द (घर का नाम) का झुकाव भी अध्यात्मवृत्ति की ओर हो गया। इस अध्यात्मवृत्ति के शमन हेतु मुकुन्द उस समय के प्रख्यात संतों और संन्यासियों से मिलते रहे, इसी क्रम में उनकी मुलाकात युक्तेश्वर गिरि जी महाराज से हुई। इनके कठोर अनुशासन, संयम और स्नेह की छाया ने मुकुन्द को योगानन्द का दिव्य रूप प्रदान किया। योगानन्द ने अध्यात्म के साथ प्रारंभिक तथा उच्च शिक्षा भी प्राप्त की और सन् 1914 में अपने गुरु की इच्छा से संन्यास ग्रहण किया।
सन् 1920 में योगानन्द अमेरिका के बोस्टन में आयोजित धर्म की अन्तर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लेने गए और वहीं रहने लगे। आत्मानुभूति मुख्यालय के साथ फैलोशिप करके इन्होंने अध्यात्म को जनोन्मुखी बनाया। इन्होंने कई ग्रंथों की रचना की जिनमें योगी कथामृत विश्व की बहुचर्चित तथा सर्वश्रेष्ठ आत्मकथाओं में से एक रही। 7 मार्च, 1952 को इस महान संत का देहावसान हो गया।
प्रश्न 2.
सर जगदीश चन्द्र बोस का जीवन परिचय दीजिए।
उत्तर:
सर जगदीश चन्द्र बोस भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे, जिन्हें भौतिक, जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान तथा पुरातन का गहरा ज्ञान था। वे पहले विज्ञानी थे, जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया। जगदीश चन्द्र बोस का जन्म 30 नबंवर 1858 को भारत के बंगाल में हुआ था। इनके पिता भगवान चन्द्र बसु ब्रह्म समाज के नेता और फरीदपुर वर्धमान एवं अन्य जगहों पर उप-मजिस्ट्रेट या सह्ययक कमिश्नर थे। ग्यारह वर्ष की आयु तक इन्होंने गाँव के ही एक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की थी।
बोस ने सेन्ट जैवियर महाविद्यालय, कलकत्ता से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। ये फिर लंदन विश्वविद्यालय में चिकित्सा की शिक्षा लेने गए। किन्तु स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण इन्हें पड़ाई छोड़कर वापस आना पड़ा। भारत आकर इन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिक के प्राध्यापक का पद सँभाला। इन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण आविष्कार किए। जैसे बेतार से संदेश भेजने की प्रणाली, रेडियो संदेशों को पकड़ने के लिए अर्थचालकों का प्रयोग भी इन्होंने किया। बाद में यह वनस्पति विज्ञान की ओर मुड़ गए। वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में इनके आविष्कारों क्रेस्कोग्राफ और अन्य उपकरणों ने क्रान्ति उत्पन्न कर दी। इन महान भारतीय वैज्ञानिक का देहावसान 23 नवंबर 1937 में हुआ।
प्रश्न 3.
बोस इंस्टीट्यूट के अवसर पर जगदीशचन्द्र बोस द्वारा दिए गए भाषण को लिखिए।
उत्तर:
सर बोस ने अपने इंस्टीट्यूट के अवसर पर भाषण देते हुए कहा कि वह अपनी संस्था को केवल एक प्रयोगशाला के रूप में नहीं एक मंदिर के रूप में समर्पित कर रहे हैं। उन्होंने अपने भौतिक विज्ञान के क्षेत्र से वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र की ओर मुड़ जाने के अनुभवों को साझा किया कि वह स्वयं नहीं जानते कि वह कब इस ओर मुड़ आए। उन्होंने बताया कि उन्होंने प्रकृति के अनेक अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठाया। साथ ही उनके द्वारा किए गए संघर्षों एवं मार्ग में आने वाली बाधाओं से जूझने के विषय में बताया किस प्रकार उन्हें वनस्पति विज्ञान से जुड़े आविष्कारों से हटकर प्रयोग करने को कहा गया।
उन्होंने विज्ञान विषयक अनेक तथ्यों को उजागर किया और विज्ञान की सार्वलौकिकता को सिद्ध किया। साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में दिए गए भारत के योगदानों का वर्णन भी किया। उन्होंने सफलता का मूल मन्त्र कठोर और सतत् परिश्रम और लगन को बताया। उन्होंने बताया कि यहाँ दिए जाने वाले लेक्चर केवल परज्ञान पर आधारित न होकर अपितु संस्था के कक्षों में किए जाने वाले प्रयोगों पर आधारित होंगे। अपनी संस्था को वह एक ऐसी संस्था में बदलना चाहते थे जहाँ सभी देशों के विद्यार्थी ज्ञान ग्रहण करें। अंत में उन्होंने भारतीयों की कार्यशक्ति एवं कल्पनाशीलता का भी परिचय दिया।
प्रश्न 4.
जगदीश चन्द्र बोस के ‘रेजोनेन्ट कार्डियोग्राफ’ के विषय में बताते हुए उसकी कार्यप्रणाली के विषय में बताइए। बोस ने इसकी उपयोगिता के विषय में क्या कहा है?
उत्तर:
जगदीश चन्द्र बोस का कार्डियोग्राफ ऐसी अचूक सटीकता के साथ तैयार किया गया है कि उससे एक सेंकड का शतांश तक रेखाचित्र में अंकित हो जाता है। इसके माध्यम से बोस ने ऐसी-ऐसी उपयुक्त औषधियों की एक विशाल औषध-तालिका तैयार की। यह कार्डियोग्राफ पेड़-पौधे, प्राणी एवं मानव-शरीर की संरचना के सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्पन्दन को भी अंकित कर लेता है। इस यंत्र के आविष्कार से चिकित्सीय अनुसंधान (प्रयोगों) के लिए अब प्राणियों के अंग काटकर प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि केवल कार्डियोग्राफ के प्रयोग से पेड़-पौधों के अंगच्छेदन ( अर्थात् अंग काटने) से काम चल जाएगा।
कार्डियोग्राफ के माध्यम से किसी औषध के पाधं और प्राणा पर एक साथ किये गए प्रयोग के परिणामों के अंकन से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि उन दोनों पर औषधि के प्रभाव में आश्चर्यजनक समानता है। इस बात को और अधिक स्पष्ट करने के लिए बोस ने कहा था “मनुष्य में जो कुछ भी है उस सबका पूर्वाभास पेड़-पौधों में विद्यमान है। वनस्पति जगत् पर प्रयोग प्राणियों और मानवों की यातना को कम करने में योगदान देंगे।
प्रश्न 5.
कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में हुई शोधकार्य की वार्ता ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में किस रूप में प्रकाशित हुई?
उत्तर:
कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में 1938 ई. में किए गए शोधकार्य की वार्ता ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में निम्नलिखित रूप से प्रकाशित हुई थी। पिछली कुछ वर्षों में यह निश्चित हो चुका है कि जब मस्तिष्क और शरीर के अन्य हिस्सों के बीच तंत्रिकाएँ संदेश वहन करती हैं, तब छोटी-छोटी विद्युत तरंगों का निर्माण होता है। इन तरंगों को सूक्ष्मग्राही विद्युतधारामापी यंत्रों की सहायता से मापा गया और परिवर्धनकारी यंत्रों के माध्यम से इन्हें लाख-लाख गुना बढ़ाया गया। किन्तु इनकी तरंगों की अत्यंत तीव्रता के कारण अब तक इनके अध्ययन का सही तरीका नहीं खोजा जा सका था। . डी. के. एस. कोल और डॉ. एच. जे. कर्टिस ने यह जानकारी दी कि इस बात की खोजा जा चुका है।
निटेला नामक एक पौधा जो मछली पात्र में डाला जाता है। इसके तंतु उत्तेजित होकर वे विद्युत तरंगों को निर्माण करते हैं जो केवल गति को छोड़कर अन्य सब दृष्टियों से प्राणी और मानव के तंत्रों-तंतुओं के निर्माण में होने वाली विद्युत तरंगों के समान ही होते हैं। , इस तथ्य के आधार पर ही कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने कार्डियोग्राफ को पौधों की तंत्रिकाओं में प्रवाहित होने वाली विद्युत तरंगों के प्रवाह के मन्दगति चलचित्र लेने के लिए तुरंत उपयोग में लाया।
प्रश्न 6.
भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में जे. सी. बोस के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी के अंतिम दिनों में जे. सी. बोस के कार्यों ने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन कराया। जनवरी 1898 में यह सिद्ध हुआ कि मार्कोनी का बेतार अभिग्राही यानी वायरलेस रिसिवर जगदीश चन्द्र बोस द्वारा आविष्कारित था। अपने 36 वें जन्मदिन के अवसर पर उन्होंने एक प्रयोग द्वारा यह प्रदर्शन किया कि लघु विद्युत चुम्बकीय तरंगों के द्वारा संकेत प्राप्त हो सकते हैं। उन्होंने इसका पहला प्रदर्शन प्रेसिडेंसी कॉलेज में किया था, फिर कलकत्ता के टाउन हॉल में। अपने प्रयोग द्वारा जे. सी. बोस ने बताया कि विद्युत चुम्बकीय तरंगें किसी
सुदूर स्थल तक केवल अंतरिक्ष के सहारे पहुँच सकती हैं तथा यह तरंगें किसी क्रिया को किसी अन्य स्थान पर नियंत्रण भी कर सकती हैं। असल में यह एक रिमोट कंट्रोल सिस्टम है। आचार्य जे. सी बोस वो प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ऐसे यन्त्र का निर्माण किया जो सूक्ष्म तरंगें पैदा कर सकता था साथ ही यह इतना ओटा था कि उसे डिब्बे में रखकर कहीं भी ले जाया जा सकता था। जे. सी. बोस के कार्यों का उपयोग आने वाले समय में भी किया गया। आज का रेडियो, टेलीविजन, रडार, भूतलीय संचार रिमोट सेटिंग, माइक्रोवेव ओवन और इन्टरनेट आचार्य जगदीश चन्द्र बोस के कृतज्ञ हैं।
प्रश्न 7.
जीव विज्ञान के क्षेत्र में जगदीश चन्द्र बोस का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी का अन्त होते-होते जगदीश चन्द्र बोस की शोध रुचि विद्युत चुम्बकीय तरंगों से हटकर जीवन के भौतिक पहुलओं की ओर होने लगी। 1901 ई. बोस ने पादपीय कोशिकाओं पर विद्युत संकेतों के प्रभाव का अध्ययन किया। अपने इस प्रयोग के लिए उन्होंने छुईमुई और डेस्मॉडियम गाइरेंस यानी शालपर्णी का प्रयोग किया। उन्हें विश्वास था कि पौधों में भी मनुष्य के समान संवेदनशील स्नायुतंत्र होते हैं। पौधों में होने वाली विकास दर को नापने के लिए उन्होंने क्रेस्कोग्राफ नामक एक यंत्र बनाया, जो पौधों के विकास की गति, परिवर्धन को बढ़ाकर स्पष्ट दिखाता है। अपने इस यंत्र के माध्यम से उन्होंने सिद्ध किया कि पौधे हमारे समान महसूस कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने रेडियोनेन्स कार्डियोग्राफ का भी निर्माण किया।
पाठ-सारांश :
प्रस्तुत पाठ“ भारत के महान वैज्ञानिक-सर जगदीश चन्द्र बोस” परमहंस योगानंद की आत्मकथा ‘योगी कथामृत’ से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने सर बोस के आविष्कारों के विषय में सुनकर जिज्ञासावश उनका साक्षात्कार लिया। इस साक्षात्कार से उन्हें सर बोस के महान आविष्कारों व उनके दृढ़ व्यक्तित्व को जानने का अवसर दिया।
रास्ते में प्राध्यापकों द्वारा सर बोस के आविष्कारों के विषय में टिप्पणी करते हुए सुनकर श्री योगानंद जी स्वयं को रोक नहीं पाए। वह सर बोस के आविष्कारों के विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए प्राध्यापकों के समूह के पास पहुँच गए। प्राध्यापकों ने उन्हें बताया कि सर बोस ने कभी भी अपने आविष्कारों से आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कोशिश नहीं की। अगले दिन ही श्री योगानंद जी सर बोस जो उनके पड़ोस में ही रहते थे, उनसे मिलने पहुँच गए। सर बोस ने बहुत शिष्टता के साथ उनका स्वागत किया। सर बोस पचास-साठ वर्ष के सुगठित शरीर के व्यक्ति थे। उनका एकदम शुद्ध उच्चारण उनके वैज्ञानिक स्वभाव को स्पष्ट करता था।
सर बोस ने उन्हें बताया कि वह कुछ समय पहले ही पश्चिमी देशों में हुई वैज्ञानिक सोसाइटियों की सभाओं में भाग लेकर वापस लौटे हैं। इन सभाओं के सदस्यों ने उनके आविष्कारों में बहुत रुचि दिखाई। सर बोस के क्रेस्कोग्राफ की परिवर्धन क्षमता माइक्रोस्कोप की अपेक्षा करोड़ गुना है। इसने जीव विज्ञान के क्षेत्र में अनगिनत मार्ग खोले हैं। उन्होंने आगे बताया कि उनकी शिक्षा कैम्ब्रिज में हुई। उनकी प्रयोगों को सूक्ष्म से सूक्ष्म आधार पर सिद्ध करने की प्रयोगमूलक पद्धति उनके पूर्वजों से प्राप्त आत्मपरीक्षण की क्षमता से जुड़कर और भी अधिक प्रभावी हो गई। इन दोनों के योग ने ही उन्हें प्रकृति के अदृश्य रहस्यों को खोजने में समर्थ बनाया।
सर बोस ने लेखक से कहा कि अगर किसी को इस बात पर सन्देह है कि पौधे भी महसूस कर सकते हैं, उनमें संवेदनशील स्नायुतंत्र होता है। वे भी प्रेम, घृणा, आनंद जैसी भावनाओं और उत्तेजनाओं को महसूस कर सकते हैं, तो वे आकर इसका प्रमाण उनकी प्रयोगशाला में देख लें । सर बोस की बातों से प्रभावित होकर श्री योगानंद जी ने उन्हें एक सन्त के विषय में बताया जो फूल तोड़ने को उन्हें कष्ट देना समझते थे और उनके आविष्कार से पहले तक वह पेड़-पौधों के विषय में इन सब बातों को मात्र कवि की कल्पना समझते थे। सर बोस ने तब योगानन्द जी से कहा कि कवि सत्य से परिचित होता है, जबकि वैज्ञानिक अपने अजीबो-गरीब प्रयोगों के आधार पर सत्य तक पहुँचता है। सर बोस ने लेखक को अपनी प्रयोगशाला में आने और उनके आविष्कारों को देखने का आमंत्रण दिया। योगानंद जी ने उनके इस आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया। सर बोस ने प्रेसिडेन्सी कॉलेज छोड़ने के बाद कोलकाता में एक अनुसंधान केन्द्र खोला। श्री योगानंद जी भी इसके उद्घाटन समारोह में गए। वह इस अनुसंधान केन्द्र की कलात्मकता को देखकर बहुत प्रभावित हुए।
अनुसंधान केन्द्र के उद्घाटन के अवसर पर उन्होंने अपने आविष्कारों से लोगों को परिचित कराया। उन्होंने बताया कि अपने अनुसंधान के माध्यम से ही वह प्रकृति के अनुसुलझे रहस्यों को सुलझा पाए। इसी अनुसंधान ने उन्हें बताया कि निर्जीव- सा लगने वाला यह प्रकृति जगत निष्क्रिय नहीं अपितु अपनी असंख्य शक्तियों के साथ सक्रिय है। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने अपने इस आविष्कार से प्राप्त परिणामों को रॉयल सोसाइटी के समक्ष रखा तो उन्होंने उन्हें भौतिक विज्ञान के क्षेत्र तक ही सीमित रहकर आविष्कार करने को कहा। इस प्रकार अनेक संघर्षों से जूझते हुए वह समझ गए कि एक वैज्ञानिक का जीवन संघर्षों से भरा होता है। बहुत समय बाद उनके
आविष्कारों को मान्यता मिली। उनके इस आविष्कारों से वनस्पति विज्ञान के अनेक अन्य अनुसुलझे रहस्यों के सुलझ जाने से भौतिक विज्ञान, जैव विज्ञान, चिकित्सा एवं कृषि के साथ-साथ मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी अनुसंधान के अनेक और विस्तृत क्षेत्र खुल गए। उनके द्वारा आविष्कृत उपकरण प्रयोगशाला में पीछे लगे हुए थे, जो उनके कठोर परिश्रम और लगन का परिणाम थे। उन्होंने विद्यार्थी वर्ग को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस अनुसंधान में दिए जाने वाले लेक्चर प्राप्त ज्ञान की पुनरावृत्ति न होगी।
इस संस्था का कार्य-विवरण प्रकाशित किया जाएगा। सर बोस ने कहा कि उनकी इच्छा है कि उनके अनुसंधान केन्द्र की सुविधाओं का लाभ सभी देशों व अनुसंधानकर्ताओं को मिले। विज्ञान किसी एक देश की विरासत नहीं अपितु सभी का है। सर बोस के इन महान विचारों को सुनकर श्री योगानंद भावविभोर हो गए। कुछ समय बाद वह (योगानंद जी) पुन: उनके अनुसन्धान केन्द्र में गए। तब सर बोस ने उन्हें अपने आविष्कार क्रेस्कोग्राफ व अन्य यंत्र के माध्यम से पौधों और टिन के टुकड़े में होने वाले परिवर्तन दिखाए। इन सभी प्रयोगों को देखकर श्री योगानंद आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने बोस के आविष्कारों की बहुत सराहना और प्रशंसा करते हुए उनसे विदा ली।
बढ़ते समय के साथ उनकी प्रतिभा में कोई कमी नहीं आई। सर बोस ने ‘रेजोनेन्ट कार्डियोग्राम’ का आविष्कार किया। आविष्कार के प्रयोग से अब प्राणियों के अंग काटने के स्थान पर पेड़-पौधों के अंग काटने से काम चल जाएगा। सर बोस ने स्पष्ट किया, “मनुष्य में जो कुछ भी है उस सबका पूर्वाभास पेड़-पौधों में विद्यमान है। वनस्पति जगत् पर प्रयोग प्राणियों और मानवों की यातना को कम करने में योगदान देंगे।” 1938 ई. में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में किए गये शोधकार्य की वार्ता ‘द न्यूयार्क टाइम्स’ में प्रकाशित हुई, जिसमें सर बोस के इस आविष्कार के आधार पर की गई जाँचों के सत्यापन के बाद उसे तुरंत उपयोग में लाया गया। कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर ने सर बोस की प्रशंसा करते हुए कविता लिखी उन्होंने सर बोस के गुणों और प्रतिभाओं का बहुत सुन्दर वर्णन किया। वास्तव में सर बोस लोभ, द्वन्द्व से दूर शुद्ध और शांत-गंभीर स्वभाव की महान प्रतिभा थे।
कठिन शब्दार्थ :
(पा.पु.पृ. 60) अध्यात्मभाव = ईश्वरीय भावना । प्रेरित होकर = प्रेरणा लेकर। साक्षात्कार = इण्टरव्यू । घनिष्ठता = समीपता, अपनापन । संवेदना = स्पर्श के प्रति सक्रिय। समष्टि = मिला-जुला । उदात्त = उच्च, श्रेष्ठ। एकात्मक भाव = एकता का भाव। जड़ = बेजान, निर्जीव । चेतन = सजीव, जानदार । विश्व = संसार । प्रस्तर = पत्थर। तुल्य = समान। कथांश = कथा का अंश ।
(पा.पु.पृ. 61) उत्तेजक = उत्तेजना, जिज्ञासा को बढ़ाने वाली । दल = समूह। अभिमान = घमंड। खेद = दु:ख। गूढ़ =गहन। आर्थिक लाभ = धन लाभ । चेष्टा = प्रयास । ऋषितुल्य = ऋषि के समान। ज्ञानवेत्ता = ज्ञानी, विद्वान । प्रशान्त = समुद्र के समान शांत । केश = बाल । विस्तीर्ण = चौड़ा। ललाट = माथा । स्वप्निल = सपनों से पूर्ण । विशुद्ध = एकदम शुद्ध। अविभाज्य = जिसे बाँटा न जा सके। परिवर्धन = बहुत बड़ा । पौर्वात्य = पूर्वजों की। युति = योग। क्षमता = शक्ति, सामर्थ्य। अबोल = मौन, चुप।
(पा. पु.पृ. 62) मूच्र्छा = बेहोशी। सृष्टि = संसार । व्याप्त = फैला हुआ। उद्दण्डता = मूर्खता, शरारत । विवस्त्र = निर्वस्त्र, बिना कपड़ों के अंतरंग = परिचित । असंदिग्ध = संदेहरहित । परिसर = आँगन । मुग्ध = मोहित । सुदूर = बहुत दूर । नि:सृत = निकलना, प्रवाहित होना। खचाखच = पूरी तरह से । अदृश्य = जो दिखाई न दे। पदार्थ विज्ञान = भौतिक विज्ञान । निष्क्रिय = क्रियारहित । पुलकित = खिलना। खिन्नता = दु:ख । प्रतीत होना = दिखाई देना। हर्षोत्फुल = प्रसन्नता से खिला हुआ। विराट = विशाल। विस्मय विभोर = आश्चर्यचकित । अतिक्रमण = जबरदस्ती घुसना या कब्जा करना। अपरिचित = अनजान।
(पा.पु.पृ. 63) उल्लंघन = अवज्ञा, सीमातिक्रमण । पूर्वागृह = पूर्व धारणा। नित्य = लगातार । प्रतिष्ठापित = संस्थापित ।। गलतफहमी = वैमनस्य । उपासक = पूजा करने वाले। अनिवार्य = आवश्यक । कालान्तर = प्राचीन काल में । निष्कर्ष = नतीजे । तृप्त = इच्छापूर्ण होना। अखण्ड = बिना टूटा हुआ । कायाकल्प = नवीकरण, पूर्ण परिवर्तन । तात्कालिक = इसी समय। मोहक = अच्छा लगने वाला। अभीष्ट = इच्छित । अकर्मण्य = बिना कर्म के। दुर्बल = कमजोर । समृद्ध = ऐश्वर्यशाली। जड़ = निर्जीव। अप्रत्याशित = असंभव।
(पा. पु.पृ. 64) अनुसन्धानकर्ता = खोज करने वाले । सार्वलौकिकता = सर्वव्यावहारिकता। ज्वलंत = उत्तेजित। अनंत = गहन। आँखें छलछला उठना = आँखें भर आना । काल = समय। अचंभित = आश्चर्यचकित । स्मरण = याद । परिवर्धित = बड़ा। दृष्टि = नजर। छाया = परछाई । सूक्ष्मातिसूक्ष्म = बहुत छोटा (जो आँखों से दिखाई न दे)। स्पष्ट = साफ। मंत्रमुग्ध = आश्चर्यचकित। हठात् = बलपूर्वक जबरदस्ती । बाह्य= बाहरी । तन्मयता = रुचि। तीक्ष्ण = नुकीला । अंशतः = पूरी तरह। तीव्र = तेज । स्तब्धता = चेतनाहीनता, निश्चलता।
(पा. पु. पृ. 65) जीवनरक्षक = प्राण बचाने वाला । युक्तिकौशल = उपाय, तरीका, विधि। अत्यंत = बहुत अधिक। सूक्ष्मग्राहीयंत्र = अत्यंत महीन जो खुली आँखों से दिखाई न दे उसे दिखा सकने में समर्थ यंत्र । ऊर्ध्वगति = ऊपर की ओर बढ़ना। क्रमिक = क्रम में लगे हुए। वृत्त = घेरा, गोला। बहुविध = अनेक प्रकार के । विषैला = जहरीला । सदृश = समान। क्षति = हानि, नुकसान। अथक = ने थकने वाली। मुखर = स्पष्ट। त्वरित = तीव्र, तेज । विस्मयकारी = आश्चर्यजनक। उर्वरता = उपजाऊ शक्ति। नि:शेष = रिक्त, खाली।
(पा.पु.पृ. 66) जटिल = कठिन। विस्तृत = विशाल, बड़े। भेषज = औषध, चिकित्सा। अचूक = बिना गलती के। सटीक = निश्चित, उचित। शतांश = सौवाँ भाग । अंकित होना = छपना। स्पन्दन = काँपना। अंगच्छेदन = शरीर के अंगों को काटना। पूर्वाभास = पहले से ही महसूस होना। कतिपय = कुछ। पुष्टि करना = मान्यता देना। वहन करना = ले जाना। भिन्नता = अंतर । मन्द = धीमे । स्थूल = भौतिक। गूढ़लिपि = रहस्यमय भाषा। अंतरंग = अभिन्न परम।
(पा. पु.पृ. 67) तूमि = तुम। जलद = बादल। उत्तिष्ठत = उठो। निबोधते = जागो। अभिमानीजने = अहंकारी लोग। कुतर्क = गलततर्क। सुविस्तृत = अत्यंत विशाल। आह्वान करना = बुलाना। पुनः = दुबारा। मूढ़ = मूर्ख। दम्भी = अहंकारी। लोभहीन = लालचरहित । द्वन्द्वहीन = लड़ाई से रहित। आहत = दु:खी। आसन = पद। अधितिष्ठित = स्थापित।
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