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RBSE Solutions for Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था

May 3, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था is part of RBSE Solutions for Class 12 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था.

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
उसने कहा था-कहानी का नायक है-
(क) वजीरासिंह
(ख) लहनासिंह
(ग) हजारासिंह
(घ) बोधासिंह।
उत्तर:
(ख)

प्रश्न 2.
‘तेरी कुड़माई हो गई?’ कथन में निहित भाव है –
(क) अवसाद
(ख) असफलता
(ग) निश्छल प्रेम
(घ) वेदना।
उत्तर:
(ग)

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पलटने का विदूषक किसे माना जाता था?
उत्तर:
विदूषक का शाब्दिक अर्थ है ‘मसखरा’ अर्थात् पलटन में जो सबको हँसाए, सबका मनोरंजन करे तथा सिपाहियों की उदासीनता और थकान दूर करे। कहानी में वजीरासिंह विदूषक है। उसने अपने आपको ‘पाधा’ कहकर सबको प्रसन्न कर दिया।

प्रश्न 2.
“कयामत आई है और लपटन साहब की वर्दी पहनकर आई है।” यह कथन किसने, किससे और क्यों कहा?
उत्तर:
यह कथने लहनासिंह ने वजीरासिंह से कहा। जर्मन ने सूबेदार को धोखा देकर दूर भेज दिया। ताकि वह खन्दक पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर ले। लहनासिंह वजीरासिंह को वास्तविकता से अवगत करना चाहता था और सूबेदार को वापिस बुलाना चाहता था।

प्रश्न 3.
सूबेदारनी के चरित्र की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(क) सरल और सहज स्वभाव।
(ख) मातृत्व का भाव और सच्ची पत्नी

प्रश्न 4.
‘उसने कहा था’ कहानी की पृष्ठभूमि में किस युद्ध का वातावरण चित्रित है?
उत्तर:
‘उसने कहा था’ कहानी, प्रथम विश्वयुद्ध जो 1914 ई. से 1918 ई. में इंग्लैण्ड और जर्मनी के बीच हुआ था, की पृष्ठभूमि पर आधारित है। युद्धकालीन चित्रण सजीव है। युद्ध क्षेत्र में सैनिकों को क्या कष्ट सहन करना पड़ता है, उसका यथार्थ वर्णन है।

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उसने कहा था’ कहानी के शीर्षक पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
शीर्षक कहानी का मूलाधार है। शीर्षक छोटा हो, जिज्ञासात्मक हो, कथानक को अपने में समेटे हुए हो। वही शीर्षक अच्छा माना जाता है। प्रस्तुत कहानी का शीर्षक केवल तीन शब्दों का है पर सबसे बड़ी बात यह है कि यह जिज्ञासात्मक है। अन्त तक पाठक की यह जिज्ञासा रहती है किसने और क्या कहा था। पाठक उस रहस्य को जानने के लिए उत्सुक रहता है। कहानी हाथ से छूटती नहीं है। इससे अच्छा शीर्षक और नहीं हो सकता था। लेखक ने बहुत सोच-समझकर कहानी का यह शीर्षक रखा है।

प्रश्न 2.
‘बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही’-कथन की युक्तियुक्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति में लेखक की लोकानुभूति छिपी है। घोड़े को घुमाना और संध्या को धूल में लिटाना बहुत आवश्यक है। अगर घोड़े को घुमायें नहीं तो वह अड़ियल हो जाता है और फिर आसानी से ताँगे में चलता नहीं है। यदि उसे संध्या में धूल में लिटाएँ नहीं तो उसकी दिनभर की थकान दूर नहँ होती । इसलिए उसे फिरोना आवश्यक है। इसी प्रकार सिपाही में लड़ने के समय जोश आता है। यदि उसे युद्ध के मैदान में लड़ने का अवसर न मिले तो वह सुस्त और आलसी हो जाता है, उसका जोश समाप्त हो जाता है। लड़ने की बात सुनकर उसका खून उबलने लगता है। इसलिए सिपाही का लड़ना आवश्यक है।

प्रश्न 3.
सूबेदारनी ने स्वप्न में लहनासिंह से क्या कहा? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
सूबेदारनी ने स्वप्न में कहा था कि मैंने तुझे पहचान लिया है। एक दिन तैने घोड़े के बिगड़ने पर मेरी रक्षा की थी। मेरा एक ही बेटा है आज वह और पति दोनों लाम पर जा रहे हैं। मेरा दुर्भाग्य है अगर औरतों की पलटन होती तो मैं भी इनके साथ चली जाती। जैसे तैने मेरी रक्षा की थी, उसी प्रकार इनकी भी रक्षा करना। मैं तुझसे इनकी रक्षा की भीख माँगती हूँ। सरकार ने पति को वीरता का खिताब दिया, जमीन दी। आज नमक हलाली का अवसर आया है। इनकी रक्षा करना।

प्रश्न 4.
उसने कहा था’ कहानी की मूल संवेदना क्या है?
उत्तर:
कहानी बड़ी मार्मिक है। कहानी की मूल संवेदना निश्छल प्रेम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा है। लहनासिंह बचपन में अंकुरित प्रेम के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग करता है और जो वचन दिया था उसके लिए त्याग करता है। दूसरी ओर वह एक सिपाही है जिसका लक्ष्य देश की रक्षा करना है। वह अपने कर्तव्य का निर्वाह करता है। जर्मन अधिकारी को मौत के घाट उतार देता है। शरीर में लगे घावों की चिन्ता छोड़कर शत्रुओं का सामना करता है। वह प्रेम और देश दोनों के लिए त्याग करता है और अपने कर्तव्य का निर्वाह करता है। इस प्रकार लहनासिंह का प्रेम, त्याग और कर्तव्यपरायणता ही कहानी की मूल संवेदना है।

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यदि आप लहनासिंह के स्थान पर होते तो युद्धभूमि में क्या करते? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक नागरिक के लिए देश और उसकी सुरक्षा अत्यंत आवश्यक होती है। व्यक्तिगत स्वार्थ को छोड़कर देश के लिए जीवन जीना सच्चे नागरिक का कर्तव्य है। लहनासिंह ने भी एक सच्चे सिपाही का उत्तरदायित्व निभाया। ठण्ड में खन्दक में खड़े रहकर भी कष्ट सहता रहा, पीछे नहीं हटा। यदि हम लहनासिंह के स्थान पर होते तो हम भी एक सच्चे सिपाही का कर्तव्य निर्वाह करते। सचेत रहते और शत्रु की प्रत्येक गतिविधि पर ध्यान देते। अपनी चिन्ता न करके शत्रु का सामना करते। साथियों के साथ प्रेम से मिलकर रहते, एक-दूसरे को उत्साहित करते । मन में निराशा और दु:ख का भाव नहीं लाते । सहन शक्ति पैदा करते। ऋतु परिवर्तन एवं उसके प्रभाव से प्रभावित नहीं होते। शत्रु को मुँहतोड़ जबाव देना हमारा लक्ष्य होता । हर पल सावधान रहते। न जाने शत्रु कब धावा बोल दे, इसके लिए सदैव तैयार रहते। देश के लिए मर मिटना हमारा लक्ष्य होता। लहनासिंह की तरह तुरन्त निर्णय लेते।

प्रश्न 2. उसने कहा था’ कहानी के नायक लहनासिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
लहनासिंह कहानी का नायक है। उसके चरित्र की कतिपय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

प्रत्युत्पन्नमति मान – खन्दक में जर्मन अधिकारी को पहचान लेने के बाद लहनासिंह ने निर्णय लेने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वजीरासिंह को जगाकर सूबेदार को लौटा लाने के लिए तुरन्त भेज दिया। तनिक-सी देरी सारी खन्दक को उड़ा देती और सबके प्राण ले लेती। उसने मूर्छित जर्मन अफसर की जेबों की तलाशी लेकर सारे कागज भी निकाल लिए।

कर्तव्यनिष्ठ – लहनासिंह की कर्तव्यनिष्ठा की प्रशंसा की जानी चाहिए। खन्दक में खड़े होकर जहाँ एक ओर वह एक सिपाही के कर्तव्य का निर्वहन कर रहा था वहीं दूसरी ओर बीमार साथी के प्रति भी अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहा था। दो-दो घाव लगने के बाद भी वह अपने कर्तव्य को नहीं भूला । प्रेम के क्षेत्र में भी उसने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। सूबेदारनी को उसने जो वचन दिया था उसे भी उसने पूरी तरह निभाया।

निश्छल-प्रेमी – वह प्रेम के सच्चे अर्थ को समझता था। बचपन में आठ वर्ष की लड़की से दो-तीन बार मिलने पर उसके हृदय में जो प्रेम प्रस्फुटित हुआ था, वह सच्चा प्रेम था। तभी तो सम्भावना के विरुद्ध उत्तर सुनकर उस पर जो प्रभाव पड़ा वह उसके सच्चे प्रेम का उदाहरण है। उसने बचपन के प्रेम को अन्तिम समय तक निभाया। यह सूबेदारनी से किये हुए प्रेम का ही परिणाम था कि उसने बोधासिंह का ध्यान रखा ।।

त्यागी – लहनासिंह के त्याग़ का बहुत अच्छा उदाहरण है-बोधासिंह की रक्षा । खन्दक में ठण्ड होने पर अपना कम्बल, ओवरकोट और जरसी तक बोधासिंह को दे दिया। स्वयं एक कुरते में ही खड़ा रहा। दूसरी ओर उसने अपने प्रेम के लिए अपना जीवन दाँव पर लगा दिया। सूबेदारनी ने जो चाहा था लहनासिंह ने वही किया।

साहसी – वह बहुत साहसी था। जर्मन अफसर ने धोखे से सूबेदार को खन्दक से दूर भेज दिया। खन्दक में केवल आठ-दसे सिपाही रह गये। जर्मन सिपाहियों के आक्रमण करने पर उसने अपना साहस नहीं खोया । यद्यपि उसे दो घाव लग गये थे फिर भी वह खड़ा होकर एक-एक जर्मन को मार रहा था। वह सत्तर जर्मन सिपाहियों का साहस के साथ सामना करता रहा। उसके साहस का एक उदाहरण बचपन में भी मिलता है जब एक लड़की को घोड़े की टाँगों के बीच से निकालकर दूर खड़ा कर दिया था और स्वयं उसमें फँस गया था।

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. ‘उसने कहा था’ कहानी के शीर्षक की सर्वाधिक बड़ी विशेषता है –

(क) शीर्षक छोटा है।
(ख) जिज्ञासात्मक है।
(ग) रहस्यात्मक है।
(घ) घटनाधारित है।

2. ‘उसने कहा था’ कहानी है –

(क) घटना प्रधान
(ख) वातावरण प्रधान
(ग) चरित्र प्रधान
(घ) मनोविज्ञान प्रधान।

3. ‘उसने कहा था’ कहानी की भाषागत विशेषता है-

(क) आँचलिक शब्दों का प्रयोग
(ख) तत्सम शब्दों का प्रयोग
(ग) तद्भव शब्दों का प्रयोग
(घ) उर्दू शब्दों का प्रयोग।

4. ‘बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही।’ यह कथन है –

(क) लहनासिंह का
(ख) हजारासिंह का
(ग) बोधासिंह का
(घ) वजीरासिंह का।

5. “लाडी होरा को भी यहीं बुला लोगे? या वही दूध पिलाने वाली फिरंगी मेम”-लहनासिंह के उपर्युक्त कथन में निहित है –

(क) व्यंग्य
(ख) झिड़कना
(ग) कटुता
(घ) उपहास।

6. लहनासिंह, बोधासिंह का बहुत अधिक ध्यान रखता था –

(क) साथी होने के कारण
(ख) सेवा भाव होने के कारण
(ग) सूबेदारनी को वचन देने के कारण
(घ) कर्तव्य पालन के कारण।

7. लहनासिंह हँसकर बोला-“क्यों लपटन साहब? मिजाज कैसा है?” लहनासिंह के हँसने में निहित भाव था –

(क) व्यंग्य
(ख) मजाक
(ग) क्रोध
(घ) चिढ़ाना

उत्तर:

  1. (ख)
  2. (ग)
  3. (क)
  4. (क)
  5. (घ)
  6. (ग)
  7. (क)

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अमृतसर के गाड़ी वालों की जबान और बम्बूकार्ट वालों की बोली में क्या अन्तर है?
उत्तर:
अमृतसर के गाड़ी वालों की जबान कड़वी थी जिसे सुनकर सभी को बुरा लगता था। बम्बूकार्ट वालों की जबान में मिठास थी जिसे सुनकर किसी को बुरा नहीं लगता था। वे ‘जी’ और ‘साहब’ शब्दों का प्रयोग करके ही लोगों को रास्ते से हटाते थे।

प्रश्न 2.
‘लड़के ने हँसी में चिढ़ाने के लिए पूछा-लड़के ने लड़की से क्या पूछा?
उत्तर:
लड़के ने पूछा ‘तेरी कुड़माई हो गई’? लड़की ने कहा ‘हाँ हो गई’। लड़के को यह सुनकर निराशा हुई

प्रश्न 3.
हजारासिंह रिलीफ की प्रतीक्षा क्यों कर रहा था? उसके शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
रिलीफ के आने पर खन्दक से छुट्टी मिलेगी। हड्डियों को पाने वाली ठण्ड से बचेंगे। अपने हाथों झटका करेंगे और पेट . भर खाकर सो रहेंगे। फिरंगी मेम की मखमली घास का आनन्द लेंगे और उसके द्वारा दिये गये दूध और फल का आनन्द लेंगे।

प्रश्न 4.
वजीरासिंह की बात सुनकर सब खिलखिलाकर क्यों हँस पड़े?
उत्तर:
वजीरासिंह पलटन का विदूषक था। खाई से पानी बाहर फेंकते हुए उसने कहा ‘मैं पाधा बन गया हूँ। करो जर्मनी के बादशाह का तर्पण।’ उसकी इस मजाकिया बात को सुनकर सब खिलखिलाकर हँस पड़े और उदासी के बादल छंट गये।

प्रश्न 5.
अच्छा मेरी जरसी पहन लो।’ लहनासिंह ने बोधासिंह को अपनी जरसी क्यों दी और क्या कहकर सन्तुष्ट किया?
उत्तर:
बोधासिंह को कैंपकपी सी छूट रही थी । दाँत बज रहे थे। इसीलिए लहनासिंह ने उपर्युक्त कथन कहते हुए बोधासिंह को अपनी जरसी दी और यह कहकर संतुष्ट किया कि “मेरे पास सिगड़ी है और मुझे गर्मी लगती है। पसीना आ रहा है। मेरे पास दूसरी जरसी है जो विलायत से मेम ने बुनकर भेजी है।”

प्रश्न 6.
लहनासिंह खन्दक में क्यों रुक गया?
उत्तर:
लहनासिंह बोधासिंह की देखभाल के लिए खंदक में रुक गया।

प्रश्न 7.
“आँख मारते-मारते लहनासिंह सब समझ गया।” लहनासिंह क्या समझ गया?
उत्तर:
आगन्तुक जर्मन लपटन ने जब उसे सिगरेट पीने को दी तो लहनासिंह समझ गया कि यह भारतीय लपटन नहीं है। भारतीय वर्दी में जर्मन लपटन है। हमारे लपटन साहब मारे गये हैं या कैद हो गये हैं। हमारे साथ धोखा हुआ है। यह धोखेबाज है और इसने हमें धोखा दिया है।

प्रश्न 8.
आगन्तुक लपटन को देखकर लहनासिंह का माथा क्यों ठनका?
उत्तर:
एक तो उसने सिगरेट देने की बात कही जबकि सिख सिगरेट नहीं पीते दूसरे उसने सिगड़ी के प्रकाश में उसका मुँह देख लिया, बाल देख लिए। पट्टेदार बालों के स्थान पर कैदियों के से बाल थे। यह सब देखकर उसका माथा ठनका।

प्रश्न 9.
लहनासिंह दियासलाई का बहाना बनाकर अन्दर क्यों गया?
उत्तर:
वह समझ गया कि हम पर आफत आ गई है। हम पर आक्रमण होगा। वह वजीरासिंह को जगाकर सूबेदार को वापिस बुलाना चाहता था अन्यथा सूबेदार भटकता रहेगा और खन्दक पर आक्रमण हो जाएगा। उसने वजीरासिंह को सारी कहानी सुनाकर शीघ्र ही जाने को तैयार किया और स्वयं लपटन की हरकतों पर ध्यान देने लगा।

प्रश्न 10.
‘उसने कहा था’ कहानी किस कारण इतनी लोकप्रिय हो गई है?
उत्तर:
गुलेरी जी’ की यह कहानी बड़ी चर्चित और लोकप्रिय है। इसमें मनोवैज्ञानिकता का पुट है। कहानी अमृतसर के चहल-पहल भरे बाजार से आरम्भ होती है। यह निश्छल प्रेम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा के कठोर धरातल को पार करती हुई मृत्यु शैय्या पर जाकर विश्राम लेती है। इसमे दु:ख-सुख दोनों का समन्वय है। इसलिए कहानी अधिक लोकप्रिय हो गई है।

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था लघत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बोली का मरहम लगायें।” लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अमृतसर के बम्बूकार्ट वाले भीड़ भरे बाजार में सब्र के साथ मीठी कर्ण प्रिय भाषा में सामने वालों को हटाते हुए निकलते हैं। वे लोगों को हटाते हुए हमेशा ‘जी’ और ‘साहब’ शब्दों का प्रयोग करते हैं। उनकी जीभ महीन मार करती हुई मीठी छुरी की तरह चलती है। जब बार-बार हटाने पर भी लोग नहीं हटते तो उनकी बोली सुनने को मिलती है-हट जा जीणे जोगिए, हट जा करमाँवालिए, हट जा पुत्ताँ प्यारिए। बच जा लम्बी उमाँ वालिए । अमृतसर के गाड़ी वालों की जबान कड़वी थी जिसे सुनकर सभी को बुरा लगता था। पर इनकी वाणी में वह कटुता नहीं थी। केवल स्त्रियों के लिए ही नहीं, पुरुषों के लिए भी यही मिठास भरी थी।

प्रश्न 2.
लड़का-लड़की का मिलन किस प्रकार हुआ? उनके बीच क्या बातें हुई?
उत्तर:
बम्बूकार्ट वालों के बीच में से निकलकर लड़का-लड़की चौक की एक दुकान पर मिले। लड़को मामा के केश धोने के लिए दही लेने आया था और लड़की बड़ियाँ लेने आई थी। दुकानदार एक ग्राहक से उलझ रहा था इसलिए दोनों को बात करने का अवसर मिल गया। दोनों ने एक-दूसरे का स्थान भी जान लिया। ग्राहक से छुटकारा पाकर उसने दोनों को सौदा दिया। रास्ते में लड़के ने सहज रूप में पूछ लिया ‘तेरी कुड़माई हो गई?’ लड़की शरमाकर ‘धत्’ कहकर चली गई। सब्जीवाले, दूधवाले के यहाँ दोनों का अकस्मात् फिर मिलन हुआ। लड़के ने फिर वही प्रश्न किया। एक दिन लड़की ने उसे निराश कर दिया और कह दिया ‘ हो गई।’

प्रश्न 3.
सम्भावना के विरुद्ध उत्तर सुनकर लड़के ने क्या क्रियाएँ कीं?
उत्तर:
लड़के को यह आशा नहीं थी कि लड़की की इतनी जल्दी कुड़माई हो जाएगी। उसके हृदय में लड़की के प्रति एक अव्यक्त प्रेम उत्पन्न हो गया था जिसमें निश्छलता थी। सम्भावना के विरुद्ध उत्तर सुनकर उसे निराशा हुई जिसका प्रभाव उसके हृदय पर पड़ गया। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब हमारी इच्छा के विरुद्ध कुछ बात हो जाती है तो क्रोध आ जाता है और तब हम अस्वाभाविक क्रियाएँ करने लगते हैं। लड़के पर भी ऐसा ही प्रभाव पड़ा। उसने रास्ते में उपद्रव किया। उसने रास्ते में एक लड़के को धकेल दिया, छाबड़ी वाले की दिनभर की कमाई खोई, कुत्ते को पत्थर मारा, गोभीवाले के ठेले में दूध उड़ेल दिया, किसी से अन्धे की उपाधि पाई। यह सब क्रियाएँ सम्भावना के विरुद्ध उत्तर सुनकर की।

प्रश्न 4.
‘राम-राम यह भी कोई लड़ाई है।” लहनासिंह के शब्दों में उसकी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर:
चार दिन से दिन-रात खेन्देके में बैठे हड्डियाँ अकड़ गईं। यहाँ लुधियाना से अधिक जाड़ा है। ऊपर से वर्षा और जमीन दिखाई नहीं देती। पिंडलियों तक कीचड़ में धंसे हैं। घण्टे दो घण्टे में धमाका होता है जिससे खन्दक हिल जाती है, धरती उछल जाती है। गोलों से कैसे बचें ? हर समय जलजला आता रहता है। खन्दक से बाहर साफा या कुहनी निकली कि गोली पड़ी। न मालूम जर्मन मिट्टी में लेटे हैं या पत्तों में छिपे हैं। सामने आकर नहीं लड़ते। यदि संगीन चढ़ाकर मार्च करने का हुक्म मिल जाय तो सात-सात जर्मनों को एक साथ मार दें। यह तो कायरों की लड़ाई है। सामने आकर लड़े तो लड़ाई का आनन्द है। यह कैसी लड़ाई है।

प्रश्न 5.
‘लहनामिंह की स्थिति परकटे पक्षी की तरह है जो उड़ना चाहता है पर विवश है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परकटा पक्षी डैनों के अभाव में उड़ने में असमर्थ होता है। यही स्थिति लहनासिंह की है। वह जर्मनों पर धावा करना चाहता है किन्तु बड़े अफसर का आदेश नहीं था। खन्दक में पड़े-पड़े हइडियाँ अकड़ गई हैं। वह कहता है कि मार्च का हुक्म मिल जाता तो अकेला ही सात जर्मनों को मार दें। जर्मनी के सिपाही कायर हैं, संगीन देखते ही मुँह फाड़ देते हैं। वैसे छिपकर वार करते हैं। एक बार धावा किया था तो चार मील तक जर्मनों को खदेड़ दिया था। किन्तु अब क्या करे। अफसर आक्रमण करने का आदेश ही नहीं देते। सिपाही होने के कारण लड़ने का जोश आता है। पर आदेश के अभाव में सारे अरमान ठण्डे पड़ जाते हैं। वास्तव में उसकी स्थिति परकटे पक्षी की ही थी।

प्रश्न 6.
“जैसे मैं जानता न होऊँ।” सूबेदार हजारासिंह लहनासिंह के बारे में क्या जानता था?
उत्तर:
हजारासिंह जानता है कि लहनासिंह बोधासिंह का पूरा ध्यान रखता है। रात-रात भर जागकर उसकी जगह पहरा देता है। अपना कम्बल उसे ओढ़ा देता है और स्वयं सिगड़ी के सहारे ठण्डी रात बिता देता है। अपने सूखी लकड़ी के तख्तों पर उसे सुला देता है। वह खन्दक में कीचड़ में पड़ा रहता है। बोधासिंह के कराहने पर उसका हाल पूछता है, पानी पिलाता है। ठण्ड लगने पर अपना ओवरकोट और जरसी उसे पहना देता है। हजारासिंह लहनासिंह के इस त्याग और सेवा को अच्छी तरह जानता था।

प्रश्न 7.
आगन्तुक जर्मन लपटन ने हजारासिंह से क्या मिथ्या भाषण किया? और क्यों?
उत्तर:
जर्मन लपटन जो भारतीय लपटन की वर्दी पहनकर आया था। उसने हजारासिंह से कहा कि इसी समय धावा करना होगा। मील भर दूरी पर पूर्व में जर्मन खाई है जहाँ पचास से अधिक जर्मन सिपाही नहीं हैं। पेड़ों के नीचे रास्ता है। रास्ता घुमावदार है। मैं पन्द्रह जवान खड़े कर आया हूँ। यहाँ दस आदमी छोड़कर तुम चले जाओ और खन्दक जीत लो। अगले आदेश तक वहीं रहना। वह चाहता था कि यहाँ खन्दक में थोड़े सिपाही रह जायेंगे और मेरे आदमी आक्रमण कर देंगे तथा खन्दक पर विजय प्राप्त कर लेंगे। सूबेदार हजारासिंह वहीं भटकता रहेगा।

प्रश्न 8.
“उसे सन्देह नहीं रहा था।” लहनासिंह को किस बात का सन्देह नहीं रहा और सन्देह कैसे दूर किया?
उत्तर:
लहनासिंह को निश्चय हो गया लपटन साहब भारतीय अफसर नहीं है। उसने सिगड़ी के उजाले में आगन्तुक का मुंह और बाल देख लिये थे, जो कैदियों की तरह कटे थे। उसने लपटन साहब से कई प्रश्न भी किये । हम हिन्दुस्तान कब लौटेंगे, यहाँ शिकार के मजे नहीं हैं। आप खोते पर सवार हो गए थे। आपका खानसामा मन्दिर में जल चढ़ाने गया था। बहुत बड़ी नील गाय देखी। आपके कन्धे में गोली लगी। इन सारे प्रश्नों के उत्तर सुनकर उसका सन्देह दूर हो गया और यह निश्चय हो गया कि यह जर्मन है। सबसे पहले सिगरेट देने पर ही उसे सन्देह हो गया था।

प्रश्न 9.
संदेह होने पर लहनासिंह ने वजीरासिंह से क्या कहा?
उत्तर:
लहनासिंह ने वजीरासिंह से कहा कि, यह भारतीय लपटन साहब नहीं है बल्कि उनकी वर्दी पहनकर कोई जर्मन आया है। हम पर कयामत आ गई है। पूबेदारे बिना इसका मुँह देखे चला गया है। हमारे साथ धोखा हुआ है। अब हम पर आक्रमण होगा और हम मारे जाएँगे। सूबेदार हजारासिंह कीचड़ में चक्कर काटते फिरेंगे और यहाँ खाई पर आक्रमण होगा। इसलिए देर मत करो और पलटन के पैरों के निशान देखकर दौड़े चले जाओ और सूबेदार को फौरन लौटा लाओ। अभी वे दूर नहीं गए होंगे। मेरी बात मानकर तुरन्त चले जाओ अन्यथा सभी मारे जायेंगे।

प्रश्न 10.
लहनासिंह ने लौटकर क्या देखा और क्या किया?
उत्तर:
अन्दर से लौटकर लहनासिंह खाई के मुहाने पर दीवार से चिपककर खड़ा हो गया। उसने देखा कि लपटन साहब ने जेब से बेल के बराबर के तीन गोले निकाले। तीनों को खन्दक में जगह-जगह रखा और तीनों को एक तार से बाँध दिया। तार के आगे सूत की गुत्थी थी जिसे सिगड़ी के पास रख दिया था और उस गुत्थी को दियासलाई से जलाने का प्रयास किया कि लहनासिंह ने दोनों हाथों से उठाकर उल्टी बन्दूक को साहब की कुहनी पर दे मारा जिससे दियासलाई गिर गई और एक कुन्दा साहब की गर्दन पर मारा। जिससे साहब बेहोश हो गए। उनकी जेब से तीन-चार लिफाफे और एक डायरी निकालकर अपने पास रख ली।

प्रश्न 11.
लपटन के होश में आने पर लहनासिंह ने व्यंग्य में क्या कहा? और अंततोगत्वा उसके साथ क्या किया?
उत्तर:
लपटन जब होश में आया तो लहनासिंह व्यंग्यपूर्वक हँसा और पूछा मिजाज कैसा है? आज मुझे आप से ज्ञात हुआ कि सिख सिगरेट पीते हैं। यह जाना कि जगाधरी जिले में नीलगाय होती हैं जिनके दो फुट चार इंच के सींग होते हैं। यह सीखा कि मुसलमान मन्दिरों में जल चढ़ाते हैं। लपटन साहब खोते पर चढ़ते हैं। ऐसी उर्दू कहाँ से सीख आए। हमारे लपटन साहब तो ‘डेम’ के बिना बोलते ही नहीं। इतने में लपटन ने जेब में पिस्तौल निकालकर गोली चलाई लेकिन लहनासिंह ने उसे मौत के घाट उतार दिया।

प्रश्न 12.
लहना को चकमा देना आसान नहीं। इसे अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लहना ने अफसर से कहा मुझे चकमा देने के लिए चार आँखें चाहिए। सूबेदार तो लपटन के धोखे में आ गए लेकिन उसने लपटन के व्यवहार, उसकी भाषा एवं वेश से पहचान लिया। लपटन की शक्ल देखी, उसके बाल देखे लिए एवं पुरानी घटनाओं को याद दिलाकर जान लिया कि यह धोखेबाज है। उसने अपने गाँव के तुरकी मौलवी को भी पहचान लिया था जो गाँव में ताबीज बाँटता था तथा बच्चों को दवाई देता था। बड़ के नीचे बैठकर हुक्का पीता था। जर्मन लपटन ने उसे धोखा देने का प्रयास तो किया मगर सफल नहीं हो सका।

प्रश्न 13.
लहनासिंह एक सच्चा सिपाही था। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
एक सच्चे सिपाही की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह साहस नहीं छोड़ता। तुरन्त निर्णय लेता है और कर्त्तव्य से पीछे नहीं हटता। ये तीनों बातें लहनासिंह में थीं। वह साहसी थी । उसको दो घाव लग चुके थे पर उसने हिम्मत नहीं हारी। पट्टियाँ कसकर लहू को रोक दिया और सत्तर जर्मन सिपाहियों का सामना करती रहा। खड़े-खड़े गोलियाँ चला रहा था और जर्मनों को मृत्यु शैय्या पर सुला रहा था। उसने जर्मन अफसर को पहचान कर तुरन्त निर्णय कर लिया कि उसे क्या करना है। वजीरासिंह को तुरन्त सूबेदार को लौटाने के लिए भेज दिया और जर्मन अफसर की गतिविधियों पर पूरा ध्यान रखा। उसने दो कर्तव्य निभाये। एक, बोधासिंह के प्रति क्योंकि वह वचनबद्ध था। दूसरी, अपनी ड्यूटी के प्रति भी कर्तव्य का निर्वाह किया। खन्दक में खड़े होकर उसने खाई को भी देखा और बोधा को भी देखा। हजारासिंह उसे खन्दक की रक्षा के लिए छोड़ गया था जिसका उसने पूरी तरह से पालन किया। स्पष्ट है वह साहसी, बुद्धिमान और कर्तव्यनिष्ठ था।

प्रश्न 14.
“मुझसे जो उसने कहा था वह मैंने कर दिया।” किसने किससे क्या कहा था? लहनासिंह ने अपना कर्त्तव्य कैसे निभाया?
उत्तर:
सूबेदारनी ने लहनासिंह से सूबेदार के घर पर कहा था, मैंने तुझे आते ही पहचान लिया। मेरे भाग्य फूट गए। सरकार ने पति को बहादुरी का खिताब दिया, आज नमकहलाली का अवसर आया है। एक बेटा है, एक वर्ष पहले फौज में भर्ती हुआ था। आज पति और पुत्र दोनों लाम पर जाते हैं। अगर औरतों की पलटन होती तो मैं भी चली जाती। एक दिन ताँगे वाले के घोड़े के बीच में से मुझे बचाया था। आज इन दोनों की रक्षा करना। यह भीख माँगती हूँ। यह बात सूबेदरानी ने लहनासिंह से कही थी। लहनासिंह ने जान की बाजी लगाकर सूबेदारनी के पुत्र बोधासिंह की रक्षा की और वजीरासिंह से यह कहा कि मुझसे उसने जो कहा था वह मैंने कर दिया।

प्रश्न 15.
“मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है। कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हजारासिंह और अन्य लोगों के चले जाने के बाद घायल लहनासिंह वजीरासिंह की गोद में सिर रखकर लेट गया। उसे अपने जीवन की घटनाएँ याद आने लर्गी। उसे बचपन की बात याद आने लगी। वह बारह वर्ष का था और लड़की आठ वर्ष की थी। दोनों कई बार अचानक मिल जाते थे। वह कुड़माई के बारे में पूछता परन्तु आशों के विरुद्ध उत्तर सुनकर उसे निराशा हुई। कई वर्षों के बाद सूबेदार के घर उससे फिर मिलना हुआ। वह सूबेदार की पत्नी थी। उसने बचपन की घटना की याद दिलाई। पति और पुत्र दोनों लाम पर जाते हैं। उनकी रक्षा की भीख माँगी। फिर अपने आँगन में लगाए हुए आम के पेड़ की याद आई। चाचा-भतीजे बैठकर आम खायेंगे। इस प्रकार अनेक बातें उसे याद आ रही थीं। अन्तिम समय में पुरानी बातें याद आती ही हैं, यह स्वाभाविक ही है।

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 1 उसने कहा था निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उसने कहा था’ कहानी की कथानक निश्छल प्रेम, त्याग और कर्त्तव्यनिष्ठा को केन्द्र में रखकर बुना गया है और मृत्यु शैय्या पर उसका अन्त होता है-इस कथन की युक्तियुक्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
कहानी का आरम्भ निश्छल प्रेम से होता है। भीड़ भरे बाजार में बारह वर्ष का लड़का और आठ वर्ष की लड़की एक दुकान पर मिलते हैं। दुकानदार व्यस्त है इसलिए दोनों को बात करने का अवसर मिल जाता है। रास्ते में लड़के ने सहज रूप में कुड़माई के बारे में पूछ लिया। एक दिन लड़की ने सम्भावना के विरुद्ध उत्तर देकर लड़के के प्रेम को झटका दे दिया। जिसका लड़के पर गहरा प्रभाव पड़ा। कहानी बड़े सहज रूप से आरम्भ होती है। लड़के-लड़की के मिलन में कोई बनावट नहीं है। इसमें मनोवैज्ञानिकता है। हमउम्र और विपरीत लिंग में ऐसे प्रश्न स्वाभाविक हैं।

कहानी का दूसरा मुख्य बिन्दु त्याग है। कहानी के नायक लहनासिंह के त्याग को कई उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है। लहनासिंह ने सूबेदार के पुत्र बोधासिंह के लिए बहुत त्याग किया। बोधासिंह अस्वस्थ है। साथी होने के कारण उसका ध्यान रखना उसका कर्तव्य है। वह सूबेदार का पुत्र है और सूबेदारनी ने उसकी रक्षा की जिम्मेदारी लहनासिंह को दी है। लहनासिंह ने बोधासिंह को सूखे डिब्बों पर सुलाया, अपना कम्बल दिया, ओवरकोट उढ़ाया, जरसी पहनाई और आप एक कुर्ते में ही ठण्ड में खड़ा रहा। यह त्याग कम नहीं है। वह बोधासिंह की रक्षा के लिए खन्दक में ही रुका रहा। घावों को सहते हुए भी उसने बोधा और हजारा को ही भेज दिया परन्तु स्वयं नहीं गया। इससे बढ़कर त्याग का उदाहरण और क्या होगा।

कर्तव्य के क्षेत्र में उसने दो कर्तव्यों का निर्वाह किया। एक प्रेम के क्षेत्र में और दूसरा सैन्य क्षेत्र में । बोधासिंह और हजारासिंह को सुरक्षित वापिस भेज दिया और अपने प्राणों की बाजी लगा दी, यह प्रेम के लिए कर्तव्य का निर्वाह ही तो है। सिपाही के रूप में भी उसने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। जर्मन लपटन से बदला लेना और उसे मौत के घाट उतारना, घायल होकर भी जर्मन सेना का सामना करना लेकिन पीछे न हटना उसकी कर्तव्यनिष्ठा का प्रमाण है।

कहानी का अन्त दुखान्त है। इतना त्याग करने के बाद भी उसे क्या मिला? दो सहानुभूति के शब्द भी किसी ने नहीं कहे। एक सूचना मात्र प्रकाशित होकर रह गई। कहानी का कथानक लहनासिंह के इन तीनों गुणों के कारण मार्मिक बन गया है।

प्रश्न 2.
कहानी की मूलभूत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कहानी की मूलभूत विशेषताएँ चार होती हैं –

(1) कथानक – कहानी में सबसे अधिक प्रधानता कथानक की होती है। जिस कहानी का कथानक आकर्षक नहीं है उस कहानी में पाठक का मन लगेगा नहीं। उसने कहा था’ कहानी की विशेषता उसका कथानक है। कहानी आरम्भ से ही पाठक को पकड़ लेती है। इसका कथानक बड़ा मार्मिक है। इसी कारण यह हिन्दी साहित्य की बेजोड़ कहानी है। कहानी को कथानक निश्छल प्रेम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा पर आधारित है जो मृत्यु शैय्या पर जाकर समाप्त होता है। कहानी का आरम्भ निश्छल प्रेम से होता है, मध्य भाग में कर्तव्यनिष्ठा और सेवाभाव है। अन्त में पुनः त्याग और प्रेम है। कथानक इतना आकर्षक है कि पाठक पहली पंक्ति से ही कहानी का अन्त जानने के लिए उत्सुक हो जाता है। बचपन के प्रेम के बाद कहानी का कथानक अचानक पच्चीस वर्ष बाद पहुँच जाता है। जहाँ प्रथम विश्वयुद्ध की विभीषिका का वर्णन है। अन्त में नायक लहनासिंह का स्वप्न हृदय को छू जाता है और पाठक भावुक हो उठता है। कथानक सीधा-सपाट होते हुए भी बहुत आकर्षक है।

(2) शीर्षक – कभी-कभी शीर्षक इतना आकर्षक होता है कि पाठक उसे पढ़ते ही कहानी से अत्यधिक जुड़ जाता है। इस कहानी का भी शीर्षक बहुत आकर्षक है। तीन शब्दों का छोटा शीर्षक है किन्तु जिज्ञासात्मक है। शीर्षक को पढ़कर यह जिज्ञासी होती है कि किसने, किससे क्या कहा था? सम्पूर्ण कथावस्तु पढ़ने के पश्चात् ही शीर्षक पूर्णत: स्पष्ट होता है कि इससे अच्छा शीर्षक इस कहानी का नहीं हो सकता था।

(3) भाषा-शैली – कहानी की भाषा सरल है। आँचलिक शब्दों का; जैसे-बाछा, सालू, बर्रा, ओबरी आदि का प्रयोग अधिक है। कहीं-कहीं उर्दू और तत्सम शब्दों के प्रयोग भी मिल जाते हैं; जैसे-कयामत, क्षयी आदि। भाषा में मुहावरों का सहज रूप में प्रयोग हुआ है। कान पक गए, जीभ चलाना, कान के पर्दे फाड़ना, पलक न कॅपी आदि मुहावरे भाषा में इस तरह आ गए हैं जैसे मोतियों की माला में मणियाँ पिरो दी गई हों। शैली में कथोपकथन की प्रधानता है। कहानी का आरम्भ ही लड़के-लड़की के कथोपकथन से होता है। मध्य में जर्मन लपटन, सूबेदारे हजारासिंह और लहनासिंह के कथोपकथन हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे छोटे और आकर्षक हैं।

(4) वातावरण का चित्रण – वातावरण कहानी का वह तत्त्व है जो कहानी को आकर्षक बनाता है। अमृतसर के भीड़ भरे बाजार के वातावरण से कहानी आरम्भ होती है। बम्बूकार्ट वाले किस प्रकार भीड़ में से निकलते हैं। इसका अच्छा वर्णन है। प्रथम विश्वयुद्ध का समय है। युद्ध के मैदान का यथार्थ वर्णन है। उसमें चित्रात्मकता है। वर्णन को पढ़कर आँखों के सामने युद्ध के मैदान का दृश्य उभर जाता है।

प्रश्न 3.
उसने कहा था’ कहानी की भाषा-शैली की दृष्टि से समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
भाषा भावों की संवाहक होती है। भाव और कथानक कितना भी अच्छा हो किन्तु भाषा शिथिल हो तो कहानी का कैथानक उभर नहीं पाता । इस कहानी की भाषा सीधी और सरल, किन्तु हृदयस्पर्शी है। भाषा पात्रानुकूल है। जैसा पात्र वैसी ही भाषा । बम्बृकार्ट वालों की भाषा कैसी होती है, उनकी जीभ कैसी चलती है? इसे कहानी के प्रारम्भ में ही देख सकते हैं। उनकी भाषा मरहम लगाती है। जिसमें तीक्ष्णता नहीं कोमलता है। हट जा जीणे जोगिए, करमाँ वालिए आदि। भाषा पात्रानुकूल और समय के अनुसार हैं। वाक्य रचना भी छोटी है। इसी प्रकार लड़के-लड़की की भाषा भी पात्रानुकूल है। लड़के का पूछना ‘तेरी कुड़माई हो गई?’ और लड़की को सहज रूप में ‘धत्’ कहकर भाग जाना में स्वाभाविकता है। ‘धत्’ शब्द उसकी लज्जा व्यक्त करता है। कथोपकथन बड़े छोटे हैं और परिस्थितिजन्य हैं।

कहानी के मध्य की भाषा बिलकुल पात्रानुकूल है। सिपाही शुद्ध शब्द का प्रयोग नहीं कर पाते। इस कारण लेफ्टीनेन्ट को लपटन कहते हैं। उर्दू के शब्दों का प्रयोग करते हैं; जैसे-हुक्म। कभी-कभी अंग्रेजी के शब्द जैसे ‘रिलीफ’ भी बोल देते हैं। हँसी-मजाक में आँचलिक शब्दों का प्रयोग भी कर देते हैं; जैसे–माँदे, पाधा आदि। भाषा में मुहावरों के प्रयोग से बड़ी सरसता आ गई है। मुहावरों का प्रयोग सहज ही हुआ है उन्हें जबरन लाया नहीं गया है। मुहावरे भी पात्रानुकूल और समय के अनुसार हैं। दाँत बज रहे हैं, खेत रहे, पलक न कँपी, आँख मारते-मारते जैसे मुहावरे सहज ही आ गए हैं। इनसे भाषा में सौन्दर्य आ गया है।

कथोपकथनात्मक शैली है। कथोपकथन छोटे हैं और पात्रों के अनुकूल हैं। हमउम्र के बच्चे किस प्रकार की बातें करते हैं। यह लड़के और लड़की की बात से स्पष्ट होता है। ‘तेरी कुड़माई हो गई?’ और ‘धत्’ शब्दों में बड़ी मिठास है। कहीं-कहीं कथोपकथन में। व्यंग्य का पुट भी है। लहनासिंह हजारासिंह से कहता है-“लाड़ी होरां वो भी यहाँ बुला लोगे? या वह दूध पिलाने वाली मेम….।” कैसा व्यंग्य है किन्तु हास्ययुक्त है। कहानी के अन्त में प्रत्येक कथन दर्द से भरा है। वहाँ भी छोटे ही कथोपकथन हैं। इस प्रकार भाषा शैलो की दृष्टि से भी कहानी श्रेष्ठ है।

प्रश्न 4.
उसने कहा था। कहानी में वातावरण का सुन्दर संयोजन हुआ है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वातावरण चित्रण कहानी का एक महत्वपूर्ण तत्त्व है। वातावरण के चित्रण से कहानी रोचक बनती है। कहानी का आरम्भ अमृतसर के बाजार से होता है। जहाँ लोगों की भीड़ है उसमें से बम्बूकार्ट वालों का निकलना आसान नहीं। किन्तु वे सब्र के साथ ‘जी’ और ‘साहब’ शब्द का प्रयोग करके लोगों को हटाते हुए आगे निकल जाते हैं। बिल्कुल स्वाभाविक वर्णन है युद्ध के मैदान के वातावरण का तो यथार्थ वर्णन है। ठण्ड अधिक है। खन्दक में पिंडलियों तक कीचड़ में धंसे हुए हैं। ठण्ड के मारे हड्डियाँ ठिठुर गई हैं। दाँत किट-किटा रहे हैं। जर्मनी वाले गोले बरसाते हैं जिससे धरती हिल जाती है। बाहर निकल नहीं सकते। सीधे गोली पड़ती है। मनोरंजन का कोई साधन नहीं है। युद्ध के मैदान में किस प्रकार धोखा दिया जाता है। सिपाही कितनी तीव्र बुद्धि से काम करते हैं। आक्रमण कैसे होता है? शत्रु पर कैसे विजय पाई जाती है। इसका सजीव वर्णन हुआ है।

कहानी के अन्त का वातावरण बड़ा मार्मिक है। घायल लहनासिंह वजीरासिंह की गोद में सिर रखकर लेटा है, स्वप्न चल रहा है। उसके मुँह से निकला एक-एक शब्द वातावरण को गम्भीर बना रहा है। बचपन की स्मृति आती है। सूबेदारनी ने रोते हुए क्या भिक्षा माँगी यह स्मृति में आ रहा है। वजीरासिंह यह सब देखकर रो रहा है। यहाँ पर पाठक भी अपने आप को सँभाल नहीं पाता है। अस्तु वातावरण चित्रण की दृष्टि से भी कहानी श्रेष्ठ है।

उसने कहा था (कहानी) लेखक परिचय

पण्डित चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ (1883 ई.-1922 ई.) हिन्दी कहानी के उल्लेखनीय हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म जयपुर में हुआ था। वे बचपन से ही साहित्यिक प्रतिभासम्पन्न थे। उनकी प्रतिभा का क्षेत्र खगोल, विज्ञान, ज्योतिष, धर्म, भाषा-विज्ञान, इतिहास तक विस्तृत था। ‘उसने कहा था’ हिन्दी की प्रसिद्ध कहानी है, जिसका प्रकाशन 1915 ई. में हुआ था। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘सुखमय जीवन’ और ‘बुद्धू का काँटा आदि कहानियाँ भी लिखीं। ‘कछुआ धर्म’, ‘मारेसि मोहि कुठांव’ आदि उनकी निबन्ध कला के प्रतिमान हैं। उन्होंने मासिक पत्र ‘समालोचक’ का सम्पादन किया एवं वे नागरी प्रचारिणी सभा काशी के सम्पादक मण्डल में भी रहे। 39 वर्ष की अल्पायु में उनका निधन हो गया।

उसने कहा था (कहानी)  पाठ-सारांश

प्रस्तुत कहानी प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है। यह हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में गिनी जाती हैं। इसे हिन्दी कहानी का माइल स्टोन ‘ (मील का पत्थर) भी कहा जाता है। अमृतसर के बाजार में बम्बूकार्ट वालों की मिठास भरी आवाज सुनाई पड़ती है। वे सड़क पर चलने वालों को ‘जी’ और ‘साहब’ शब्दों से सम्बोधित करके सामने से हटाते हैं। ऐसे भीड़ भरे बाजार में बम्बूकार्ट वालों के बीच में से निकलकर एक लड़का और एक लड़की एक दुकान पर मिलते हैं। दोनों अपरिचित हैं। दुकानदार अन्य ग्राहकों को सौदा देने में व्यस्त है। इसलिए दोनों को पारस्परिक वार्तालाप करने,का अवसर मिल जाता है। लड़का दही लेने और लड़की बड़ियाँ लेने आई है। दोनों एक-दूसरे के रहने का पता भी पूछ लेते हैं। दुकानदार से सामान लेकर दोनों थोड़ी दूर तक साथ-साथ चले। लड़के के मन में प्रेम का बीजांकुर फूटा और उसने लड़की से पूछ ही लिया। क्यों ‘तेरी कुड़माई हो गई?’ लड़की धत्’ कहकर दौड़ गई। एक महीने तक वे अकस्मात किसी न किसी दुकान पर मिल जाते और लड़का अपना पुराना प्रश्न ही दोहराता। एक दिन लड़की ने ‘हो गई’ कहकर लड़के को निराश कर दिया। मनोविज्ञान के अनुसार अपनी इच्छा के अनुसार कार्य न होने पर झुंझलाहट आती है। लड़के को दुःख हुआ और घर जाते समय उसने अस्वाभाविक हरकतें की।

युद्ध-क्षेत्र है। खन्दक में भारतीय सैनिक ठहरे हैं। हड्डियों को कैंपाने वाला जाड़ा है। जर्मनी की ओर से गोले बरसाए जा रहे हैं। जिससे खाई दहल जाती है। बाहर निकलने पर गोली लगने का डर है। खन्दक में चार दिन हो गए। अभी तीन दिन और रुकना है फिर रिलीफ आ जाएगी। लहनासिंह तथा अन्य सिपाही लड़ना चाहते हैं। एक दिन धावा बोला और जर्मन सेना को पीछे ढकेल दिया परन्तु जनरल ने पीछे हटने का हुक्म दिया। सूबेदार हजारासिंह फिरंगी मेम द्वारा दिए गए फल और दूध का आनन्द लेना चाहता है। सूबेदार खन्दक में से पानी निकालने का आदेश देता है। विदूषक वजीरासिंह सबको हँसाता है। सूबेदार जर्मनी में ही जमीन लेकर रहना चाहता है। लहनासिंह मेम का नाम लेकर मजाक करता है। हजारासिंह लहनासिंह से अपने पुत्र बोधासिंह के स्वास्थ्य के बारे में पूछता है।

दो पहर रात बीत गई है। घना अँधेरा है। लहनासिंह खन्दक और अस्वस्थ बोधासिंह को देख रहा है। बोधासिंह को ठण्ड लगी है इसलिए लहनासिंह ने अपने कम्बल और कोट उसे ओढ़ा दिये हैं। अपनी जरसी भी उसे दे दी है। इसी दौरान सूबेदार हजारासिंह को किसी ने पुकारा। हजारासिंह ने उसे लपटन (पलटन) साहब समझ कर सलाम किया। आगन्तुक ने कहा पास ही जर्मन खाई है। वहाँ थोड़े से सैनिक हैं। मैं थोड़ी दूर पर अपने पन्द्रह आदमी खड़े कर आया हूँ। तुम खन्दक को जीतकर वहीं रहना। सूबेदार दस सिपाहियों को छोड़कर चला गया। लहनासिंह आगन्तुक से बात करके यह जान गया कि वह भारतीय अधिकारी नहीं है। उसके वेश में कोई जर्मन है। उसने तुरन्त कुछ निश्चय किया। आगन्तुक ने जो सिगरेट दी थी, उसे जलाने के लिए दियासलाई लेने का बहाना करके वह अन्दर गया और अँधेरे में वजीरासिंह से टकरा गया।

लहनासिंह ने वजीरासिंह को सारी कथा सुना दी और कहा कि लपटन साहब के रूप में कयामत आई है। हमारे लपटन साहब मारे गए या कैद हो गए हैं। तू फौज के पैरों का निशान देखकर सूबेदार को सारा समाचार दे दे और लौट आने की कह दे अन्यथा वे भटकते ही रहेंगे। मैं लपटन (पलटन) साहब को देख लूँगा। लहनासिंह ने खन्दक की दीवार से चिपककर देखा कि जर्मन अधिकारी ने तीन गोले खन्दक में रखे और उन्हें एक तार से जोड़कर एक गुत्थी को तार के सिरे से जोड़कर सिगड़ी के पास रख दिया और दियासलाई से गुत्थी में आग लगाना चाहता है। लहनासिंह ने बन्दूक की बट उसकी कुहनी पर मार दी जिससे दियासलाई नीचे गिर गई। फिर उसने बंदूक के कुंदे से साहब की गर्दन पर वार किया, जिससे साहब धराशायी हो गए। लहनासिंह ने उनकी जेब से लिफाफे और डायरी निकाल ली। पतलून की जेब उसने नहीं देखी।

साहब को होश आया तो लहनासिंह व्यंग्य से कहा कि उसने आज बहुत बातें सीखीं जिनमें यह सीखा कि सिक्ख सिगरेट पीते हैं, नील गाय के सींग दो फुट चार इंच के होते हैं, मुसलमान खानसामा मन्दिरों में जल चढ़ाते हैं। बातचीत चल ही रही थी कि साहब ने पतलून की जेब में हाथ डाला और पिस्तौल निकालकर गोली चलाई जो लहनासिंह की जाँघ पर लगी। लहनासिंह ने भी गोली चलाकर साहब को मौत के घाट उतार दिया। इसी दौरान जर्मन सैनिकों ने आक्रमण किया। लहनासिंह और उसके साथियों ने मुकाबला किया। पीछे से हजारासिंह सैनिकों के साथ आ गया। जर्मन दो पाटों के बीच में फंस गए और मारे गए या घायल होकर कराहते रहे। थोड़ी देर में डॉक्टर और गाड़ियाँ आ गईं। सूबेदार लहनासिंह को छोड़कर नहीं जाना चाहता था किन्तु लहनासिंह ने बोधासिंह और सूबेदारनी की सौगन्ध दिलाकर भेज दिया और कहा कि सूबेदारनी से कह देना कि उसने मुझसे जो कहा था वह कर दिया। बाद में वह लेट गया। उसने वजीरा से पानी माँगा और कमरबन्द खोलने को कहा।

लहनासिंह लेट गया। उसे पुरानी बातें याद आने लगीं। किस प्रकार लड़की से मिला उसे कुड़माई की बात याद आई। लहनासिंह भूल गया क्योंकि उस घटना को सत्ताईस साल हो गए थे। एक बार लहनासिंह और सूबेदार घर आये थे। रेजिमेंट से लाम पर जाने की चिट्ठी मिली। सूबेदार ने भी साथ चलने की चिट्ठी भेजी। लहनासिंह स्वप्न देख रहा है। सूबेदारनी ने अन्दर बुलाया, पुरानी घटना याद कराई। बचपन में अपनी रक्षा की बात कही। आज एक बेटा और पति लाम पर जाते हैं। इनकी भी रक्षा करना। यह भीख उसने माँगी थी। एक दिन खबर आई लहनासिंह मर गया।

शब्दार्थ –

(पृष्ठ-2)-बाछा = बादशाह। चितौनी = चेतावनी। समष्टि = समाज। सुथने = एक प्रकार की स्त्रियों के, पहनने का पायजामा। कुड़माई = सगाई। इक्के = ताँगे जैसी चीज जिसे घोड़ा खींचता है। बम्बूकार्ट = एक प्रकार की गाड़ी। तरस खाते = दया करते। क्षोभ = क्षुब्ध होने का भाव, व्याकुलता। जीणे जोगिए = जीने योग्य। करमाँवालिए = भाग्यशाली। सालू = ओढ़नी।।

(पृष्ठ-3)- खन्दक = बड़ा गड्ढा, खाई। जलजला = भूकम्प। मुल्क = देश। पाजी = दुष्ट। धावा = आक्रमण। उदमी = शरारती। कोले = कोयले। विदूषक = मसखरा। पाधा = पुरोहित। तर्पण = एक कर्मकाण्ड जिसमें पितरों को जल दिया जाता है। घुम! = दो बीघे के बराबर की जमीन की एक माप। बूटे = पौधे। लाड़ी = बहू, पत्नी। फरंगी = अंग्रेज। शरम = लज्जा।

(पृष्ठ-4)- सिगड़ी = अँगीठी। माँदे = बीमार। मुरब्बे = स्वर्ग। बरकोट = ओवरकोट। हुज्जत = विवाद। खोते = गधा। खानसामा = नौकर। विलायत = इंग्लैण्ड, विदेश। मेम = अंग्रेज महिला। जबरदस्ती = जिद करके। सूबेदार = सेना में एक पद। लपटन = लेफ्टिनेण्ट। जियादह = अधिक।

(पृष्ठ-5)- बेशक = निःसन्देह, बिना किसी शक के। हुज्जत = विवाद। कयामत = प्रलय, आफत। पुठे = कंधे। अफसर = अधिकारी। आँख लगने दी होती = सोने दिया होता। पलटन = सेना। पत्ता तक न खड़के = तनिक भी आवाज न हो। हुक्म = आज्ञा, आदेश। मुहाने = मुँह, मोड़। गुत्थी = गाँठ। घुसेड़, = घुसाना।

(पृष्ठ-6)-मूर्छा = बेहोशी। मंजा = खटिया। हड़का = पागल। आहा मीनगोट = ओह! माई गॉड। जेब के हवाले = जेब में रखे। साफ = शुद्ध, स्पष्ट। लफ्ज = शब्द। चकमा = धोखा।

(पृष्ठ-7)- मुल्ला = मुसलमान। दाड़ी-मूंड दी = दाड़ी काट दी। तक-तक कर = देख-देखकर, चुन-चुनकर। मुर्दा= मृतक। क्षयी = नष्ट होने वाला। बर्रा = बड़बड़ाना। आग बरसाते = गोली चलाते। संगीन = एक बरछी जो बन्दूक के सिरे पर लगी रहती है। फतह = विजय। सार्थक = उचित, सही। सराह = प्रशंसा,

(पृष्ठ-8)- मत्था टेकना = प्रणाम, चरणस्पर्श। लाम पर जाना = लड़ाई पर जाना।

(पृष्ठ-9)- नमक हलाली = स्वामिभक्ति। तीमियों = औरतों। कमरबन्द = कमर का बँधा कपड़ा। तर हो रहा है = भीग रहा है। स्मृति = याद। धुन्ध = अँधेरा, धुआँ, हवा में मिली धूल या भाप के कारण छाया अँधेरा। बिलकुल = पूरी तरह। सालू = ओढ़नी। असीस = आशीर्वाद। ओबरी = अन्दर का घर। पट्ट = जाँघ।

मुहावरे-

कान पक गए/जाना-कोई बात बार-बार सुनते-सुनते ऊब जाना।
जीभ चलती ही नहीं-बहुत उग्र या कटु बात न कहना।
कान के पर्दे फाड़ना-बहुत ऊँची आवाज में चीखना।
पलक नॉपी-नींद नहीं आई
दाँत बज रहे हैं-शीत से दाँत का कटकटाना/ठण्ड लगना।
खेत रहे-युद्ध में मारे गये।

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