• Skip to main content
  • Skip to secondary menu
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • RBSE Model Papers
    • RBSE Class 12th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 10th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 8th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 5th Board Model Papers 2022
  • RBSE Books
  • RBSE Solutions for Class 10
    • RBSE Solutions for Class 10 Maths
    • RBSE Solutions for Class 10 Science
    • RBSE Solutions for Class 10 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 10 English First Flight & Footprints without Feet
    • RBSE Solutions for Class 10 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 10 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 10 Physical Education
  • RBSE Solutions for Class 9
    • RBSE Solutions for Class 9 Maths
    • RBSE Solutions for Class 9 Science
    • RBSE Solutions for Class 9 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 9 English
    • RBSE Solutions for Class 9 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 9 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 9 Physical Education
    • RBSE Solutions for Class 9 Information Technology
  • RBSE Solutions for Class 8
    • RBSE Solutions for Class 8 Maths
    • RBSE Solutions for Class 8 Science
    • RBSE Solutions for Class 8 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 8 English
    • RBSE Solutions for Class 8 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit
    • RBSE Solutions

RBSE Solutions

Rajasthan Board Textbook Solutions for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12

  • RBSE Solutions for Class 7
    • RBSE Solutions for Class 7 Maths
    • RBSE Solutions for Class 7 Science
    • RBSE Solutions for Class 7 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 7 English
    • RBSE Solutions for Class 7 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 6
    • RBSE Solutions for Class 6 Maths
    • RBSE Solutions for Class 6 Science
    • RBSE Solutions for Class 6 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 6 English
    • RBSE Solutions for Class 6 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 5
    • RBSE Solutions for Class 5 Maths
    • RBSE Solutions for Class 5 Environmental Studies
    • RBSE Solutions for Class 5 English
    • RBSE Solutions for Class 5 Hindi
  • RBSE Solutions Class 12
    • RBSE Solutions for Class 12 Maths
    • RBSE Solutions for Class 12 Physics
    • RBSE Solutions for Class 12 Chemistry
    • RBSE Solutions for Class 12 Biology
    • RBSE Solutions for Class 12 English
    • RBSE Solutions for Class 12 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit
  • RBSE Class 11

RBSE Solutions for Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग

May 3, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग is part of RBSE Solutions for Class 12 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग.

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
एशियाई अधिकारियों का सबसे बड़ा थाना था –
(क) जूलू में
(ख) चीन में
(ग) जोहानिस्बर्ग में
(घ) नेटाल में

प्रश्न 2.
शान्ति निकेतन में गाँधी जी पहली बार किनसे मिले?
(क) केशवराय देशपाण्डे से
(ख) जगदानन्द बाबू से
(ग) मगनलाल गाँधी से
(घ) काका कालेलकर से

उत्तर:
1. (ग)
2. (घ)

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘आहार नीति’ पुस्तक में किनके विचारों का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
‘आहार नीति’ नामक पुस्तक में अलग-अलग युगों के ज्ञानियों, अवतारों और पैगम्बरों के आहार और उनके आहार विषयक विचारों का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 2.
गाँधी जी के अनुसार आत्मज्ञान प्राप्ति के बारे में लोगों ने क्या भ्रम फैला रखा है?
उत्तर:
गाँधी जी के अनुसार आत्मज्ञान प्राप्ति के बारे में यह भ्रम फैला हुआ है कि आत्मज्ञान चौथे आश्रम में प्राप्त होता है।

प्रश्न 3.
‘हिन्द स्वराज्य’ पर गाँधी जी के विचारों का मजाक उड़ाते हुए गोखले ने क्या कहा?
उत्तर:
गाँधी जी के ‘हिन्द स्वराज्य’ का मजाक उड़ाते हुए गोखले ने कहा था कि आप एक वर्ष हिन्दुस्तान में रहकर देखेंगे, तो आपके विचार अपने आप ठिकाने आ जाएँगे।

प्रश्न 4.
शान्तिनिकेतन में बरतन माँजने वाली टुकड़ी थकान उतारने के लिए क्या करती थी?
उत्तर:
शान्तिनिकेतन में बरतन माँजने वाली टुकड़ी की थकान उतारने के लिए कुछ विद्यार्थी वहाँ सितार बजाते थे।

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बेल साहब ने गाँधी के जीवन-प्रवाह को किस तरह प्रभावित किया?
उत्तर:
गाँधी जी सभ्य कहलाने का प्रयत्न कर रहे थे और उन्होंने अपने जीवन में बहुत परिवर्तन करने का प्रयास भी किया। लेकिन बेल साहब ने उनके जीवन-प्रवाह को बदल दिया। उन्होंने सोचा कि मुझे इंग्लैण्ड में नहीं रहना है। इसलिए लच्छेदार भाषण बन्द कर दिया । नाचना सीखना छोड़ दिया क्योंकि इससे सभ्य नहीं बना जा सकता। वायोलिन सीखना भी बन्द कर दिया और उसे बेचने के लिए कहा। वायोलिन अपने देश में भी सीखा जा सकता था। वायोलिन शिक्षिका ने भी उनकी बात का समर्थन किया। बेल साहब ने गाँधीजी को सभ्य बनने की सनक को समाप्त करके उनके जीवन-प्रवाह को ही बदल दिया।

प्रश्न 2.
दण्ड देने के औचित्य में गाँधी जी को क्या शंका थी?
उत्तर:
गाँधी जी मारपीट कर पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे। दण्ड के औचित्य के सम्बन्ध में उन्हें शंका थी क्योंकि उसमें क्रोध भरा था और दण्ड देने की भावना थी । यदि उसमें केवल गाँधी जी के दुःख का ही प्रदर्शन होता, तो वे उस दण्ड को उचित समझते । पर उसमें भावना मिश्रित थी। इसके बाद उन्होंने विद्यार्थियों को दण्ड नहीं दिया और सुधारने की अच्छी रीति सीख ली क्योंकि उन्हें दण्ड द्वारा किसी को सुधारने में शंका थी।

प्रश्न 3.
गोखले ने गाँधी जी को क्या प्रतिज्ञा करवाई?
उत्तर:
वर्दवान और ऐण्डुज ने गाँधी जी से पूछा कि यदि सत्याग्रह करने का अवसर आएगा तो आप कब आयेंगे। इस पर गाँधी जी ने उत्तर दिया कि अभी एक वर्ष तक मुझे कुछ नहीं करना है क्योंकि गोखले ने मुझसे प्रतिज्ञा करवायी है कि उन्हें एक वर्ष तक देश में भ्रमण करना है, किसी सार्वजनिक प्रश्न पर अपना विचार न तो बनाना है, न प्रकट करना है और मैं इस प्रतिज्ञा का अक्षरशः पालन करूंगा। बाद में यदि किसी प्रश्न का उत्तर देने की जरूरत होगी तो कुछ कहूँगा। पाँच वर्ष तक सत्याग्रह करने का अवसर आयेगा मैं (गाँधी) नहीं समझता । गाँधी ने प्रतिज्ञा का पूर्ण पालन किया।

प्रश्न 4.
‘फीनिक्स का रसोईघर स्वावलम्बी बन गया था’-कैसे?
उत्तर:
फीनिक्स का रसोईघर स्वावलम्बी बन गया। सब अपना काम अपने आप करने लगे। गाँधी ने प्रस्ताव रखा कि विद्यार्थी स्वयं भोजन बनाएँ, इससे भोजन सादा और शुद्ध बनेगा। शिक्षक समाज का प्रभुत्व स्थापित होगा। कुछ को यह प्रयोग अच्छा लगा। विद्यार्थियों को यह बात अच्छी लगी। पियर्सन को यह प्रस्ताव बहुत अच्छा लगा। एक मण्डली साग काटने वाली बनी, दूसरी अनाज साफ करने वाली बनी। रसोईघर के आस-पास शास्त्रीय ढंग से सफाई रखने के काम में नगेनबाबू आदि जुट गये। पियर्सन ने बरतन साफ करने का काम लिया। बड़े-बड़े बरतन माँजने का काम उन्हीं का था। विद्यार्थियों ने प्रत्येक कार्य को उत्साह से अपना लिया। इस प्रकार फीनिक्स का रसोईघर स्वावलम्बी बन गया।

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधी जी ने सभ्य बनने के लिए जो प्रयोग किए, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
गाँधी जी अपने मित्र से असभ्य नहीं कहलाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सभ्यता सीखने के लिए अपनी सामर्थ्य से परे का छिछला रास्ता अपनाया। बम्बई के सिले कपड़े अंग्रेज समाज में शोभायमान नहीं लगेंगे इसलिए उन्होंने आर्मी और नेवी स्टोर से कपड़े सिलवाए और बड़ी राशि व्यय की। फिर बॉण्ड स्ट्रीट से कपड़े सिलवाये। दोनों जेबों में लटकाने वाली सोने की चेन मॅहगाई। बँधी-बँधाई टाई पहनना असभ्यता की निशानी थी। अत: टाई बाँधना सीखा और बहुत समय आईने के सामने व्यतीत किया। आईने के सामने खड़े होकर बालों में पट्टी डालकर सीधी माँग निकालने में रोज दस मिनट का समय व्यय किया। बालों को ठीक रखने के लिए ब्रश के साथ रोज लड़ाई लड़ी। माँग को सहेजने के लिए बार-बार सिर पर हाथ फेरते जिससे बाल व्यवस्थित रह सके।

पोशाक से ही सभ्य नहीं बना जा सकता था, कुछ और भी करना था। नाचना सभ्यता की निशानी है। अत: नाचना सीखा। फ्रेंच भाषा सीखी क्योंकि वह सारे यूरोप की राष्ट्रभाषा थी । यूरोप में घूमने के लिए फ्रेंच जानना आवश्यक था। छेदार भाषण कला भी आनी चाहिए। नाचना सीखने के लिए तीन पौण्ड जमा किए। पियानो बजता पर कुछ समझ में नहीं आता था। इस तरह सभ्य बनने का लोभ बढ़ता गया। वायोलिन बजाना सीखने का प्रयास भी किया। तीन पौण्ड में वायोलिन खरीदा। भाषण कला सीखने के लिए शिक्षक का सहारा लिया। इस प्रकार सभ्य बनने का भरसक प्रयत्न किया। किन्तु बेल साहब को घण्टी ने सारे अरमान ठण्डे कर दिये और विद्या धन बढ़ाने की ओर झुकाव हो गया। मित्र पर चाहे कुछ प्रभाव पड़ा हो पर गाँधीजी को सन्तुष्टि अवश्य हुई और झूठी सभ्यता की टीम-टाम से मुक्ति मिल गई।

प्रश्न 2.
संकलित आत्मकथांश के आधार पर गाँधी जी के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
आत्मकथा के पाँच अंश यहाँ संकलित हैं। इनके आधार पर गाँधी जी के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

सभ्य जीवन – गाँधी जी का विश्वास था कि विद्यार्थी को सादा और सभ्य जीवन व्यतीत करना चाहिए। गाँधी जी ने मित्र के सम्मुख सभ्य बनने का प्रयास किया। अपनी पोशाक बदली। इंग्लैण्ड में कीमती पोशाक सिलवाई। नाचना सीखा, भाषण कला सीखी, टाई बाँधना सीखा, बाल सँवारे, वायलिन सीखने का प्रयास किया। किन्तु अन्त में बेल साहब ने आँखें खोल दीं। विद्यार्थी को विद्या-धन अर्जित करने के लिए सादा जीवन व्यतीत करना चाहिए। सभ्यता की ऊपरी टीम-टाम से दूर रहना चाहिए।

अन्नाहार की भावना – गाँधी जी अन्नाहार में विश्वास करते थे। अन्नाहार विषयक कई पुस्तकें थीं, वे उन्होंने पढ़ीं। एलिन्सन । के अनुसार बीमारों को अन्नाहार की सलाह देते थे। बाद में धार्मिक दृष्टि सर्वोपरि बनी।

अन्याय से संघर्ष – गाँधीजी में एक दृढ़ता थी। वे जिस बात का निश्चय कर लेते उसे पूरा करने का प्रयत्न करते। उसके लिए संघर्ष करते। दक्षिण अफ्रीका में काले-गोरे का भेद था। गोरों के प्रति पक्षपात था। दो गोरे अधिकारियों की भ्रष्टता के प्रति उन्होंने प्रमाण एकत्रित कर लिये थे और उन्हें वे दण्ड दिलाना चाहते थे। पुलिस कमिश्नर भी उनके साथ था, किन्तु जूरी ने उन्हें बरी कर दिया। गाँधी को इससे बड़ा दुःख हुआ। यद्यपि उने अधिकारियों का विरोध होने पर उन्हें बरखास्त कर दिया गया। गाँधी के इस प्रयत्न के कारण उनका सम्मान बढ़ गया।

सद्भावना – गोरे अधिकारी अधम थे और सरकार ने उन्हें नौकरी से हटा दिया था परन्तु गाँधी के हृदय में उनके प्रति दुर्भावना नहीं थी। उनकी कंगाली को देखकर उन्हें दुःख हुआ और वे उनकी सहायता करने की सोचने लगे और उन्होंने उनकी मदद भी की। वह उन्हें जोहानिस्बर्ग की म्युनिसिपॉलिटी में नौकरी दिलाना भी चाहते थे। उन्होंने नौकरी दिलाने में मदद भी की और उन्हें नौकरी मिल भी गई। स्पष्ट है गाँधी का हृदय साफ था और वे सभी के प्रति सद्भावना रखते थे। वे व्यवस्था और पद्धति के विरुद्ध तो संघर्ष करना चाहते थे पर व्यवस्थापक के प्रति संघर्ष के विरुद्ध थे, क्योंकि सभी एक ही कैंची से रचे गये हैं।

आत्म-निर्माण की भावना – वे शरीर और मन को शिक्षित करने की अपेक्षा आत्म-निर्माण पर अधिक जोर देते थे। वे विद्यार्थियों को अपने धर्म के मूल तत्त्वों को जानने की प्रेरणा देते थे। उनका मानना था कि विद्यार्थियों को अपने धर्म-ग्रन्थों का ज्ञान होना चाहिए, तभी उनकी आत्मा का निर्माण होगा। गाँधी आत्मा के विकास का अर्थ चरित्र का निर्माण करना मानते थे, ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करना मानते थे। वे इस भ्रम को दूर करना चाहते थे कि आत्मज्ञान चौथेपन में प्राप्त होता है। वे भजन गाकर, नीति की बातें सुनाकर आत्मज्ञान प्रदान करना चाहते थे। वे यह भी मानते थे कि पुस्तकों से आत्मज्ञान नहीं दिया जा सकता। एक अध्यापक कहीं से भी। विद्यार्थी में आत्म-निर्माण कर सकता है। पर उसे अपना आचरण शुद्ध रखना होगा। वे विद्यार्थी को पीटने के पक्षधर भी नहीं थे।

स्वावलंबन की भावना – गाँधीजी की सबसे बड़ी भावना थी कि वे व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने शान्ति निकेतन में विद्यार्थियों और अध्यापकों को स्वावलम्बी बना दिया। रसोई का काम विद्यार्थियों और अध्यापकों ने सँभाल लिया। कोई साग काटता, कोई बरतन साफ करतो, कोई सफाई करता । प्रत्येक मण्डली अपना-अपना काम स्वेच्छा से करती थी। पियर्सन ने बरतन साफ करने का काम ले लिया। इस प्रकार सभी में स्वावलम्बन की भावना जागृत हो गई।

स्वदेशी की भावना – गाँधीजी मानते थे कि चरखे से हिन्दुस्तान की कंगाली दूर हो सकती है। करघे से कपड़ा बुना जा सकता था पर कोई करघा चलाना नहीं जानता था। सबने निश्चय किया कि अपने बुने कपड़े ही पहनेंगे। देशी मिल में बने हुए सूत के कपड़े पहनेंगे। अपने आप कपड़ा नहीं बुन सकते थे इसलिए कुछ बुनकर, जो देशी सूत से कपड़ा बुन सकते थे उनकी सहायता लेनी पड़ी इस प्रकार देशी सूत से बुनवाकर बना हुआ कपड़ा सभी ने पहना।

प्रश्न 3.
‘खादी का जन्म’ पाठांश का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
गाँधी यह मानते थे कि चरखे से ही हिन्दुस्तान की कंगाली मिट सकती है। भुखमरी मिटने पर ही स्वराजे मिल सकता है। 1915 में गाँधी दक्षिण अफ्रीका से लौटे पर उन्होंने चरखा नहीं देखा था। आश्रम के खुलने पर करघा शुरू हुआ। गाँधी और आश्रम के आदमी पढ़े-लिखे और व्यापारी थे तथा करघा चलाना नहीं जानते थे। करघा मिलने पर भी सिखाने वाला कोई नहीं था। काठियावाड़ और पालनपुर से करघे के साथ सिखाने वाला भी मिला। मगनलाल गाँधी के हाथ में कारीगरी थी इसलिए उन्होंने करघा चलाना सीख लिया और आश्रम में नये-नये बुनने वाले तैयार हुए।

आश्रम के लोगों को अपने तैयार किये हुए कपड़े पहनने थे। यह निश्चय किया गया कि हाथकरघे से बना देशी मिल के सूत का कपड़ी पहना जाए। हिन्दुस्तान के कारीगरों की गरीबी और कर्जदारी का पता लगा। सभी अपना कपड़ा स्वयं बुन सकें ऐसी स्थिति नहीं थी। अत: बाहर के बुनकरों से कपड़ा बुनवाना पड़ता था। यहाँ की मिलें महीन सूत नहीं कात सकती थीं। देशी मिल सूत का बुना कपड़ा शीघ्र मिलता भी नहीं था। इस कारण विलायती सूत का कपड़ा ही तैयार होता था। कुछ समय बाद बुनकर मिलें जिन्होंने देशी सूत से कपड़ा तैयार करने की मेहरबानी की परन्तु उन्हें यह विश्वास दिलाना पड़ा कि उनका कपड़ा खरीद लिया जाएगा। मिलों के सम्पर्क में आने पर उनकी व्यवस्था बिगड़ी और बुनकरों की लाचारी का भी पता चला। मिलें खुद का कपड़ा तैयार करतीं। हाथकरघे की सहायता अनिच्छा से लेतीं । पराधीनता से मुक्ति के लिए हाथ से कातना अनिवार्य हो गया।

करघा और उसके चलाने वालों का अभाव था। कालिदास वकील एक महिला को लाए भी पर उसको हुनर हाथ नहीं लगा। गाँधी जी मित्र के साथ भौंच शिक्षा परिषद् में गये। वहाँ एक साहसी विधवा बहन गंगाबाई मिलीं। गाँधी जी ने उससे अपनी व्यथा कही। गंगाबाई ने गाँधी जी की समस्या को समझा और उनकी चिन्ता दूर की।

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. किसकी पुस्तक पढ़कर गाँधीजी के मन में आहार विषयक पुस्तकें पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ी?

(क) हावर्ड विलियम्स
(ख) ऐना किंग्सफर्ड
(ग) सॉल्ट
(घ) डॉ. एलिन्सन।

2. गाँधीजी अन्नाहार विषयक पुस्तकें पढ़ते थे, इससे मित्र को क्या डर था?

(क) वे भ्रमित चित्त बने रहेंगे
(ख) वे सभ्य नहीं कहलायेंगे
(ग) वे समाज में हिल-मिल नहीं सकेंगे
(घ) वे बेवकूफ कहलायेंगे।

3. ‘ऐसे गृह में यह जंगलीपन नहीं चल सकता।’ इस कथन में मित्र का गाँधी के प्रति भाव था,

(क) उपेक्षा का
(ख) तिरस्कार का
(ग) क्रोध का
(घ) झुंझलाहट का।

4. दक्षिण अफ्रीका में गोरे अपराधियों को दण्ड दिलाना कठिन था। क्यों?

(क) उनका प्रभुत्व था।
(ख) वे भ्रष्ट्र थे।
(ग) वे अत्याचारी थे।
(घ) गोरे-काले का भेद था।

5. ‘बलवान से भिड़न्त’ पाठ में भ्रष्ट अधिकारियों को ज्यादा जासूस नहीं मिलते थे –

(क) अत्याचार के कारण।
(ख) पैसा न मिलने के कारण
(ग) प्रमाणहीनता के कारण
(घ) लोगों की कमी के कारण।

6. व्यवस्थापक का अनादर या तिरस्कार करने से उन शक्तियों का अनादर होता है। कौन-सी शक्तियों का?

(क) निहित अनन्त शक्तियाँ
(ख) ब्रह्मा की शक्ति
(ग) आत्मा की शक्तियाँ
(घ) सत्य की शक्ति।

7. गाँधीजी को किसे शिक्षित करने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ा?

(क) शरीर को
(ख) मन को
(ग) आत्मा को
(घ) बुद्धि को।

8. आत्मा को शिक्षा दी जा सकती है –

(क) पुस्तकों से
(ख) भाषणों से
(ग) प्रवचनों से
(घ) शिक्षक के आचरण से।

9. कालेलकर को ‘काका’ नाम मिला था –

(क) विद्यालय की परम्परा के कारण
(ख) वयोवृद्ध होने के कारणं
(ग) सम्मान के कारण
(घ) पारिवारिक भावना के कारण।

10. गाँधीजी शान्ति निकेतन में विद्यार्थी और शिक्षकों में शीघ्र घुल-मिल गये

(क) स्वभाव के कारण
(ख) परिश्रम के कारण
(ग) सत्य के कारण
(घ) सत्याग्रह के कारण।

11. पियर्सन ने किस कार्य का उत्तरदायित्व सम्भाला?

(क) सफाई का
(ख) रसोई का
(ग) प्रबन्धन का
(घ) शिक्षा का।

12. “मुझे एक वर्ष तक देश में भ्रमण करना है।” गाँधी ने ऐसा क्यों कहा?

(क) काका कालेलकर का आदेश था
(ख) रवीन्द्रनाथ का आदेश था
(ग) गोखले का आदेश था।
(घ) इनमें से कोई नहीं।

13. करघा मिलने के बाद गाँधीजी के सामने क्या समस्या उत्पन्न हुई?

(क) कातना कौन सिखाए।
(ख) कपड़ा कौन बनाए।
(ग) बुनना कौन सिखाए।
(घ) बारीक सूत कैसे कते।

14. “बुनकर सारा अच्छा कपड़ा विलायती सूत का ही बुनते थे क्योंकि –

(क) देशी मिलों का सूत महीन नहीं था
(ख) देशी मिलों का सूत अच्छा नहीं था
(ग) देशी मिलों का सूत मोटा था
(घ) देशी सूत को महत्त्व नहीं देते थे।

उत्तर:

  1. (ग)
  2. (क)
  3. (ग)
  4. (घ)
  5. (क)
  6. (क)
  7. (ग)
  8. (घ)
  9. (घ)
  10. (क)
  11. (क)
  12. (ग)
  13. (ग)
  14. (क)

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
खादी का जन्म’ शीर्षक पाठांश से क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:
परावलम्बी नहीं स्वावलम्बी बनो । स्वदेशी मिलों के बने कपड़े पहनो । चरखे और करघे से कते सूत और बुने कपड़ों का ही प्रयोग करो।

प्रश्न 2.
गाँधीजी के अनुसार हिन्दुस्तान की कंगाली कैसे मिट सकती थी?
उत्तर:
गाँधीजी के अनुसार चरखे के द्वारा ही हिन्दुस्तान की कंगाली मिट सकती थी।

प्रश्न 3.
मगनलाल गाँधी ने करघा जल्दी क्यों सीख लिया और उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
मगनलाल गाँधी के हाथ में कारीगरी थी। वे शुरू किये हुए काम को जल्दी छोड़ते न थे। इस कारण वे करघा चलाना जल्दी सीख गये और उनके द्वारा नये-नये बुनने वाले तैयार होने लगे।

प्रश्न 4.
‘गंगनाथ विद्यालय’ की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
इस विद्यालय की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह थी कि विद्यालय में पारिवारिक भावना थी । इस कारण यहाँ अध्यापकों के अपनत्वपूर्ण के नाम रखे जाते थे। कालेलकर को यहीं ‘काका’ नाम दिया गया था।

प्रश्न 5.
शान्ति निकेतन में मगनलाल गाँधी का उत्तरदायित्व क्या था?
उत्तर:
शान्ति निकेतन में मगनलाल गाँधी, गाँधीजी के मण्डल को सँभाले हुए थे। वे फीनिक्स आश्रम के सब नियमों का पालन करते-कराते थे और अपने प्रेम, ज्ञान तथा उद्योग के कारण अपनी सुगन्ध फैला रखी थी।

प्रश्न 6.
गाँधीजी ने शान्ति निकेतन के शिक्षकों के सामने क्या बात रखी? उससे क्या लाभ होने की संभावना थी?
उत्तर:
गाँधीजी ने सबके सामने यह बात रखी कि वैतनिक रसोइयों के बदले शिक्षक और विद्यार्थी अपनी रसोई स्वयं बनायें। इससे स्वावलम्बन और पाक कला का ज्ञान होगा।

प्रश्न 7.
कवि श्री ने गाँधी के सुझाव के सम्बन्ध में क्या कहा?
उत्तर:
यदि शिक्षक अनुकूल हों तो उन्हें यह प्रयोग अवश्य पसन्द होगा। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि इसमें स्वराज्य की चाबी मौजूद है।

प्रश्न 8.
‘हिन्द स्वराज्य’ में गाँधीजी ने जो विचार व्यक्त किये थे, उसका गोखले ने क्या कहकर मजाक उड़ाया?
उत्तर:
गोखले ने गाँधी के विचारों का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि आप एक वर्ष हिन्दुस्तान में रहकर देखें, आपके विचार अपने-आप ठिकाने आ जाएँगे।

प्रश्न 9.
गाँधीजी के अनुसार आत्मा के विकास का क्या अर्थ है?
उत्तर:
आत्मा के विकास का अर्थ है-चरित्र का निर्माण करना, ईश्वर को ज्ञान पाना, आत्मज्ञान प्राप्त करना। इसके बिना दूसरा ज्ञान व्यर्थ है।

प्रश्न 10.
गाँधीजी के अनुसार लोगों में कौन-सा भ्रम व्याप्त है?
उत्तर:
आत्मज्ञान चौथेपन में प्राप्त होता है। यह भ्रम लोगों में व्याप्त है। ऐसे लोग आत्मज्ञान प्राप्त नहीं करते बल्कि पृथ्वी पर भार बनकर जीते हैं।

प्रश्न 11.
जोहानिस्बर्ग थाने की क्या शिकायत गाँधीजी के पास आती थी?
उत्तर:
थाने से भ्रष्टाचार की शिकायतें आ रही थीं। हकदार दाखिल नहीं हो सकते और बिना हक वाले सौ-सौ पॉण्ड देकर चले आ रहे हैं।

प्रश्न 12.
दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी को कब निराश होना पड़ा और उन पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अपराधी अधिकारियों के विरुद्ध प्रमाण होने पर भी जूरी ने उन्हें छोड़ दिया। इससे गाँधी जी को घोर निराशा हुई। वकालत से उन्हें अरुचि हो गयी। बुद्धि से अपराध छिपाया जाता है, इसलिए बुद्धि ही अप्रिय लगने लगी।

प्रश्न 13.
डॉ. एलिन्सन किस बात पर अधिक जोर देते थे?
उत्तर:
डॉ. एलिन्सन स्वयं अन्नाहारी थे और वे अन्नाहार पर अधिक जोर देते थे। वे बीमार को केवल अन्नाहार की ही सलाह देते थे। वे दवा के बदले आहार के हेर-फेर से ही रोगी को निरोग करने की पद्धति का समर्थन करते थे।

प्रश्न 14.
गाँधीजी के मित्र को किस बात की चिन्ता थी?
उत्तर:
मित्र का विचार था कि गाँधी यदि माँस नहीं खायेंगे तो कमजोर हो जाएँगे। समाज में बेवकूफ बने रहेंगे और अंग्रेजों के समाज में घुल-मिल नहीं सकेंगे। प्रयोगों में जीवन व्यर्थ चला जाएगा। मित्र को यही चिन्ता थी।

प्रश्न 15.
मित्र को गाँधीजी पर क्रोध कब और क्यों आया?
उत्तर:
विक्टोरिया होटल में गाँधीजी पर क्रोध आया क्योंकि उन्होंने परोसने वाले से यह पूछ लिया कि सूप में मांस तो नहीं है। मित्र ने क्रोध में कहा कि ऐसे गृह में यह जंगलीपन नहीं चल सकता।

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधीजी के जीवन में आहार-विषयक प्रयोगों ने महत्त्वपूर्ण स्थान क्यों प्राप्त कर लिया?
उत्तर:
गाँधीजी ने सॉल्ट की पुस्तक पढ़ी जिससे उन्हें आहार सम्बन्धी अन्य पुस्तकों को पढ़ने की प्रेरणा मिली। हावर्ड विलियम की पुस्तक ‘आहार नीति’ में ज्ञानियों, अवतारों और पैगम्बरों के आहार और आहार विषयक विचार पढ़ने को मिले। डॉक्टर मिसेज ऐना किंग्सफर्ड की ‘उत्तम आहार की नीति’ पुस्तक ने भी प्रभावित किया। डॉक्टर एलिन्सन के आरोग्य विषयक लेखों ने गाँधीजी सबसे अधिक प्रभावित किया। वे अन्नाहारी थे और बीमारों को अन्नाहार की ही सलाह देते थे। आहार के हेर-फेर से रोगी को निरोग करने की पद्धति का समर्थन करते थे। इन सब पुस्तकों के अध्ययन के कारण गाँधी जी के जीवन में आहार विषयक प्रयोगों का महत्त्व बढ़ा और अन्नाहार पर उनकी श्रद्धा प्रतिदिन बढ़ने लगी।

प्रश्न 2.
“मैं जंगली नहीं रहूँगा, सभ्य के लक्षण ग्रहण करूंगा।” गाँधीजी ने सभ्य बनने के लिए क्या किया?
उत्तर:
मित्रे गाँधीजी को जंगली न समझे इसके लिए गाँधी ने अपने जीवन में परिवर्तन करने का निश्चय किया। उन्होंने सबसे पहले अपनी पोशाक बदली। आर्मी और नेवी स्टोर में कपड़े सिलवाये। इतना ही नहीं बॉण्ड स्ट्रीट में पोशाक सिलवाई। चिमनी टोपी सिर पर पहनी। दोनों जेबों में लटकने वाली सोने की बढ़िया चैन मँगवाई। बँधी-बँधाई टाई पहनना शिष्टाचार के विरुद्ध था। इस कारण टाई बाँधना सीखा। बालों को ठीक रखने का प्रयत्न किया। बालों में पट्टी डालकर सीधी माँग निकालने में समय बर्बाद किया। बालों को मुड़ा रखने के लिए ब्रश का प्रयोग किया। माँग को सँवारने के लिए हर समय सिर पर हाथ फेरते रहते । सभ्य बनने के लिए केवल पोशाक ही पर्याप्त नहीं थी। अत: नाचना सीखा। फ्रेंच भाषा सीखी। भाषण कला सीखी। वायलिन सीखने का विचार भी बनाया। इस तरह गाँधीजी ने मित्र के सामने जंगली न रहकर सभ्य बनने का प्रयास किया।

प्रश्न 3.
‘सभ्य पोशाक में’ शीर्षक पाठांश से विद्यार्थियों को क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर:
यह अंश विद्यार्थियों को छद्म आकर्षण से परे रहकर जीवन जीने की शिक्षा देता है। विद्यार्थी का धर्म विद्या ग्रहण करना है। अत: उसे सादा जीवन ही व्यतीत करना चाहिए। विदेशी सभ्यता की चकाचौंध में अपने को नहीं खोना चाहिए। अच्छी पोशाक, नृत्य, संगीत, भाषण कला आदि बातें तो विद्या ग्रहण करने के बाद भी सीखी जा सकती हैं। गाँधी ने भी सभ्य बनने का प्रयास किया। तन ढकने के लिए पोशाक बदली, अन्य कलाएँ सीखीं। किन्तु बाद में बेल साहब की घण्टी ने उनके जीवन को ही बदल दिया और उन्होंने सभ्य बनने का वह छद्म आकर्षण छोड़ दिया। इसी प्रकार विद्यार्थियों को भी भौतिक आकर्षणों के प्रति नहीं झुकना चाहिए। वे सबै अस्थायी और अनाकर्षक हैं। पढ़ना, ज्ञान प्राप्त करना ही विद्यार्थी का लक्ष्य होना चाहिए।

प्रश्न 4.
“मुझे लगा कि उसमें दया और न्याय की वृत्ति है।” गाँधीजी का यह कथन किसके लिए है और क्यों?
उत्तर:
गाँधीजी का यह कथन पुलिस कमिश्नर के प्रति है। भ्रष्ट अधिकारियों की शिकायत लेकर गाँधीजी उसके पास गए थे और सोचते थे कि वह गोरों का पक्ष लेगा। लेकिन उसने गाँधीजी की बात को ध्यान से सुना। उसने स्वयं गवाहों के बयान लिये। वह जानता था कि दक्षिण अफ्रीका में गोरे पंचों द्वारा गोरे अपराधियों को दण्ड दिलाना कठिन था। फिर भी उसने प्रयत्न करने का विश्वास दिलाया। अपराधियों को पकड़वाने का विश्वास दिलाया। भागे हुए अपराधी का वारंट निकलवाकर पकड़वाया। उसने गाँधी का साथ दिया। जब जूरी ने उन्हें बरी कर दिया तो गाँधी को तो दुख हुआ ही उसे भी दुख हुआ। इस कारण गाँधीजी को लगा कि पुलिस कमिश्नर में दया और न्याय की वृत्ति है।

प्रश्न 5.
गाँधीजी व्यवस्थापक के विरुद्ध झगड़ा करने को तैयार क्यों नहीं थे?
उत्तर:
गाँधीजी व्यवस्था और पद्धति के विरुद्ध लड़ने के पक्षधर थे पर व्यवस्थापक के विरुद्ध लड़ाई करने को तैयार नहीं थे। व्यवस्थापक से झगड़ा करने को वे अपने विरुद्ध झगड़ने के समान मानते थे। वे मानते थे कि हम सब एक ही कूची से रचे गये हैं। एक ही ब्रह्मा की सन्तान हैं। व्यवस्थापक में अनन्त शक्तियाँ विद्यमान हैं। व्यवस्था का अनादर या तिरस्कार होने से उन शक्तियों का अनादर होता है। ऐसा होने से व्यवस्थापक को और संसार को हानि पहुँचती है। इस कारण वे व्यवस्थापक के विरुद्ध झगड़ा करने को तैयार नहीं थे।

प्रश्न 6.
गाँधीजी जी कठोर भी थे तो सहृदय भी। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? पाठांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँधीजी कठोर थे। वे जिसके पीछे पड़ जाते उसे नीचा दिखाकर रहते। अपराधी अधिकारियों के पीछे पड़ गए। उनके विरुद्ध बहुत सारे प्रमाण एकत्रित किए। पुलिस कमिश्नर से मिले और प्रमाण दिये। एक अपराधी के भाग जाने पर कमिश्नर से कहकर उसे पकड़वाया। इतनी कठोरता के बाद भी वे सहानुभूति रखते थे। उन अधिकारियों के अधम होने पर भी उनके विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं थी। उन अधिकारियों की कंगाली की हालत में गाँधीजी ने उनकी मदद भी की और जोहानिस्बर्ग की म्यूनिसिपॉलिटी में नौकरी दिलाने का प्रयास भी किया। उनके प्रयत्न से उन्हें नौकरी भी मिल गई। गाँधीजी की इस विशेषता से सभी परिचित थे। अत: स्पष्ट है कि गाँधीजी का हृदय कठोर होने के साथ-साथ कोमल भी था।

प्रश्न 7.
आत्मा की शिक्षा के लिए गाँधीजी को क्या करना पड़ा? इस विषय में उनकी क्या धारणा थी?
उत्तर:
आत्मा को शिक्षित करने के लिए गाँधी को बहुत परिश्रम करना पड़ा। शरीर और मन को शिक्षित करना इतना कठिन नहीं है। आत्मा के विकास के लिए उन्होंने धर्म ग्रन्थों पर कम ध्यान दिया। वे चाहते थे कि विद्यार्थी अपने-अपने धर्मों के मूल तत्त्वों को समझें। उन्हें अपने धर्म ग्रन्थों का साधारण ज्ञान हो इसके लिए गाँधी ने प्रयत्न किया। वे इसे बुद्धि की शिक्षा का अंग मानते थे। आत्मा की शिक्षा एक भिन्न विभाग है। आत्मा के विकास का सम्बन्ध वे चरित्र निर्माण से जोड़ते थे।

प्रश्न 8.
आत्मिक शिक्षा के सम्बन्ध में गाँधीजी के क्या विचार थे?
उत्तर:
आत्मिक शिक्षा के लिए गाँधीजी ने बालकों से भजन गवाए, उन्हें नीति की पुस्तकें पढ़कर सुनाईं। पर इससे वे सन्तुष्ट नहीं हुए और विद्यार्थियों के सम्पर्क में आने पर यह अनुभव हुआ कि यह ज्ञान पुस्तकों से नहीं दिया जा सकता। आत्मा की शिक्षा आत्मिक कसरत द्वारा ही दी जा सकती है। आत्मा की कसरत शिक्षक के आचरण द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। शिक्षक को हमेशा सावधान रहना चाहिए। शिक्षक का प्रभाव शिक्षार्थी पर अनिवार्य रूप से पड़ता है।

प्रश्न 9.
आश्रम के विद्यार्थी के साथ गाँधीजी ने क्या व्यवहार किया? इस व्यवहार का उस पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
आश्रम में एक छात्र बहुत ऊधम मचाता थी। किसी से नहीं दबता था। दूसरों से लड़ता-झगड़ता था। एक दिन उसने बहुत ऊधम मचाया। समझाने पर भी नहीं समझा और गाँधी को धोखा दिया। इस पर गाँधीजी ने उसे रूल उठाकर मारा। मारते समय गाँधीजी काँपे, विद्यार्थी रोया, उसे चोट लगी । गाँधीजी का दिल भी दुखी हुआ। गाँधी को उसे मारने का पछतावा अन्त तक रहा। गाँधीजी को लगा कि उसे मारकर उन्होंने अपनी आत्मा का नहीं अपनी पशुता का ही दर्शन कराया है।

प्रश्न 10.
‘गंगनाथ विद्यालय’ कौन चला रहा था? उसकी क्या विशेषता थी और बन्द होने पर क्या हुआ?
उत्तर:
‘गंगनाथ विद्यालय’ को ‘केशवराय देशपाण्डे’ बड़ौदा में चला रहे थे। विद्यालय में पारिवारिक भावना अधिक थी। इस विद्यालय में सब अध्यापकों के नाम रखे गये थे। कालेलकर ‘काका’, हरिहर शर्मा ‘अण्णा’ कहलाए। दूसरों को भी नाम दिये गये। देशपाण्डे ‘साहब’ के नाम से पुकारे जाने लगे। सभी साथी गाँधी के मित्र बन गये। विद्यालय बन्द होने पर यह कुटुम्ब बिखर गया। पर सभी ने आध्यात्मिक सम्बन्ध नहीं छोड़ा। काका साहब विभिन्न अनुभव प्राप्त करने में लग गए। वे शान्ति निकेतन में रहने लगे। चिन्तामणि शास्त्री भी यहीं रहने लगे।

प्रश्न 11.
शान्ति निकेतन में गाँधीजी ने स्वपरिश्रम के सम्बन्ध में क्या चर्चा की और उसका क्या लाभ बताया?
उत्तर:
गाँधीजी ने विद्यार्थियों और शिक्षकों से स्वपरिश्रम के सम्बन्ध में चर्चा की कि वैतनिक रसोईयों को हटा दिया जाय। शिक्षक और विद्यार्थी अपनी रसोई स्वयं बना लें तो अच्छा होगा। ऐसा करने से आरोग्य और नीति की दृष्टि से रसोई पर शिक्षक समाज का प्रभुत्व स्थापित होगा और विद्यार्थी स्वावलम्बन तथा स्वयं पाक का पदार्थ-पाठ सीखेंगे। कुछ को यह प्रयोग अच्छा लगा। नई बात थी इसलिए विद्यार्थियों को भी अच्छी लगी और प्रयोग आरम्भ हुआ। सबने काम बाँट लिया। कविश्री ने भी इस पर अपनी सहमति प्रदान कर दी।

प्रश्न 12.
फीनिक्स रसोईघर स्वावलम्बी किस प्रकार बन गया? रसोई कैसी बनने लगी?
उत्तर:
फीनिक्स रसोई घर का काम सभी ने आपस में बाँट लिया। एक मण्डली साग काटने वालों की बनी। दूसरी अनाज साफ करने वाली थी। नगेनबाबू रसोई के आस-पास शास्त्रीय ढंग से सफाई का काम करने लगे। पियर्सन ने बर्तन साफ करने का काम सँभाला। बड़े-बड़े बर्तन माँजना उन्हीं का काम था। थकान दूर करने के लिए एक मण्डली सितार बजाती। इस प्रकार रसोईघर स्वावलम्बी बन गया। रसोई भी सादी बनती । मसालों का त्याग किया गया। अतएव भात, दाल, साग तथा गेहूँ के पदार्थ भाप द्वारा पका लिए जाते । बंगाली खुराक में सुधार करने के विचार से उस प्रकार का एक रसोईघर शुरू किया गया।

प्रश्न 13.
आश्रम खुलने पर गाँधीजी को किस मुश्किल का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
आश्रम खुलने पर करघा शुरू किया गया। करघा शुरू करने में भी मुश्किल का सामना करना पड़ा। आश्रम के सभी व्यक्ति केरघे से अनजान थे। कोई करघा चला नहीं सकता था। सभी कलम चलाने वाले और व्यापारी थे, पर कोई कारीगर नहीं था जो करघा चला सके। करघा प्राप्त करने के बाद बुनना सिखाने वाले की आवश्यकता थी। कोई सिखाने वाला नहीं मिल रहा था। काठियावाड़ और पालनपुर से करघा मिला और सिखाने वाला भी आया पर उसने अपना हुनर नहीं दिया। यही मुश्किल गाँधीजी के सामने थी। मगनलाल गाँधी ने अवश्य करघा चलाने की कला सीख ली क्योंकि वे स्वयं कारीगर थे।

प्रश्न 14.
आश्रमवासियों ने क्या निश्चय किया और उसमें क्या कठिनाई आई?
उत्तर:
आश्रमवासियों ने निश्चय किया कि हम अपने तैयार किये हुए कपड़े ही पहनेंगे। इसलिए उन्होंने मिल के कपड़े पहनना बन्द कर दिया और हाथ-करघे पर देशी मिल के सूत का बुना हुआ कपड़ा पहनने का निश्चय किया। आश्रमवासियों को देशी बुनकरों की कठिनाई का ज्ञान था। सभी स्वयं अपना कपड़ा तुरन्त बुन सकें, जो सम्भव नहीं था। यह कठिनाई भी सामने थी। इसलिए बाहर के बुनकरों से आवश्यकता का कपड़ा बुनवाना पड़ता था। देशी मिलें बारीक सूत कात नहीं सकती थीं। देशी मिलों के सूत का कपड़ा शीघ्र मिलता नहीं था। देशी सूत का कपड़ा बुनने वाले बहुत दिनों बाद मिले। पर उन्हें यह गारण्टी देनी पड़ी कि देशी सूत का बना हुआ सारा कपड़ा खरीद लिया जायेगा। देशी मिल के सूत का कपड़ा पहनने का निश्चय करने पर भी कठिनाई का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 15.
गंगाबाई से परिचय कैसे हुआ? उसकी क्या विशेषता थी?
उत्तर:
गाँधी जी के गुजराती मित्र उन्हें भड़ौच शिक्षा परिषद् में ले गये। वहाँ उनकी मुलाकात साहसी विधवा गंगाबाई से हुई। वह अधिक पढ़ी-लिखी नहीं थीं। पर उसमें हिम्मत और समझदारी शिक्षित महिलाओं से अधिक थी। गंगाबाई ने अपने जीवन में अस्पृश्यता की जड़ काट डाली। वह दलितों से मिलतीं और उनकी सेवा करतीं। उनके पास पैसा था पर उनकी आवश्यकताएँ बहुत कम थीं। गंगाबाई का शरीर कसा हुआ था और वे निर्भीकता से सब जगह जा सकती थीं। वे घोड़े की सवारी को भी तैयार रहतीं। उन्होंने गाँधी जी की चिन्ता दूर कर दी।

RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सभ्य पोशाक में’ पाठांश का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
अन्नाहार के प्रति गाँधी जी की विशेष रुचि थी और उसके प्रति उनकी श्रद्धा बढ़ती जा रही थी। इस सम्बन्ध में उन्होंने सॉल्ट, हार्वर्ड विलियम्स, डॉक्टर मिसेज ऐना किंग्सफर्ड एवं डॉक्टर एलिन्सन की पुस्तकों के अतिरिक्त आहार विषयक अन्य पुस्तकें भी पढ़ीं। डॉ. एलिन्सन से वे अधिक प्रभावित हुए क्योंकि वे स्वयं अन्नाहारी थे और बीमारों को अन्नाहार की ही सलाह देते थे। इस कारण उनके जीवन में आहार विषयक प्रयोगों का महत्त्व बढ़ गया।

गाँधीजी के एक मित्र उनके प्रति अधिक चिन्तित थे। वे चाहते थे कि गाँधी जी मांस खायें अन्यथा वे कमजोर हो जायेंगे, बेवकूफ कहलायेंगे और अंग्रेजों के समाज में घुल-मिल नहीं सकेंगे। एक दिन उनके मित्र उन्हें विक्टोरिया होटल में ले गये। उनके सामने जब सूप की प्लेट आई तो उन्होंने परोसने वाले से पूछ लिया कि इसमें मांस तो नहीं है। इस पर मित्र बहुत नाराज हुआ और गाँधी को होटल से बाहर आना पड़ा। उस रात गाँधी जी भूखे ही रहे, पर इस घटना का उनको मित्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

गाँधीजी ने सभ्य बनने का छिछला रास्ता अपनाया। उन्होंने सबसे पहले अपनी पोशाक बदली। आर्मी और नेवी स्टोर तथा बॉण्ड स्ट्रीट में कपड़े सिलवाये। दोनों जेबों में लटकने वाली सोने की बढ़िया चेन मॅगाई। चिकनी टोपी सिर पर पहनी। टाई बाँधना सीखा। बालों में पट्टी डालकर सीधी माँग निकालने में समय व्यय किया। बालों को बार-बार सँवारते और सिर पर हाथ फेरते।

इसके अतिरिक्त नृत्यकला सीखी, पियानो सीखा, भाषण कला सीखी, वायलिन सीखने का प्रयास भी किया। अन्त में बेल साहब की ‘स्टैण्डर्ड एलोक्यूशनिस्ट’ पुस्तक खरीदी। बेल साहब ने ऐसी घण्टी बजाई कि सभ्य बनने का विचार ही बदल गया। सारी कलाओं से मुक्ति पाई क्योंकि उन्हें इंग्लैण्ड में ही नहीं रहना था। उन्होंने सोचा मैं विद्यार्थी हूँ और मुझे विद्या धन बढ़ाना चाहिए। उन्होंने सदाचार से सभ्य बनने का निश्चय किया।

प्रश्न 2.
शान्ति निकेतन अंश में गाँधीजी ने भारतीय जीवन-मूल्यों से ओत-प्रोत संस्कार, सहयोग व समरसती से साक्षात्कार कराया है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय जीवन मूल्य पाश्चात्य जीवन मूल्यों से भिन्न हैं। यहाँ सदाचार, सहयोग, स्वावलम्बन, समरसता जैसे संस्कारों की प्रधानता है। शान्ति निकेतन में गाँधी जी ने इन संस्कारों को जागृत करने का प्रयत्न किया। केशवराय देशपाण्डे के ‘गंगनाथ विद्यालय का वातावरण सामान्य विद्यालयों से भिन्न था। उनके विद्यालय में पारिवारिक भावना अधिक थी। प्रत्येक अध्यापक को आदरसूचक नाम दिया जाता था। कालेलकर को ‘काका’ का नाम इसी विद्यालय में मिला था । स्वयं देशपाण्डे को ‘साहब’ कहकर पुकारा जाता था। ऐसी समरसता अन्य विद्यालयों में देखने को नहीं मिलती थी।

सहयोग और समरसता का उदाहरण शान्ति निकेतन में भी देखने को मिला। शान्ति निकेतन में गाँधी जी ने देखा कि वहाँ वैतनिक रसोइयों द्वारा भोजने बनाया जाता था। उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। वहाँ उन्होंने स्वपरिश्रम की चर्चा की। उन्होंने यह प्रस्ताव रखा कि वैतनिक रसोइयों की अपेक्षा शिक्षक और विद्यार्थी अपनी रसोई स्वयं बनायें तो अच्छा रहेगा। आरोग्य और नीति की दृष्टि से रसोईघर पर शिक्षक समाज का प्रभुत्व रहेगा और विद्यार्थी स्वावलम्बन तथा स्वयं पाक का पदार्थ पाठ सीखेंगे। गाँधी जी का यह प्रस्ताव स्वीकार हो गया और रसोई से सम्बन्धित कार्यों का अलग-अलग कार्य-विभाजन हो गया। पियर्सन ने इस प्रयोग को सफल बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किया। एक मण्डली साग काटने का काम करने लगी। दूसरी मण्डली ने अनाज साफ करने का उत्तरदायित्व सँभाला। रसोईघर के आस-पास सफाई का कार्य नगेनबाबू आदि ने किया। पियर्सन हँसते-हँसते रसोई के काम में लगे रहते। बड़े-बड़े बरतन माँजना उन्हीं का काम था। कुछ विद्यार्थी सितार बजाकर मनोरंजन करते। फीनिक्स रसोईघर स्वावलम्बी बन गया। रसोई सादी और अच्छी बनने लगी। इस प्रकार शान्ति निकेतन में सहयोग और समरसता का वातावरण उत्पन्न हो गया जो भारतीय जीवन मूल्यों की बहुत बड़ी विशेषता है।

प्रश्न 3.
अन्याय से डटकर मुकाबला करने की हिम्मत जुटानी चाहिए।’बलवान से भिड़न्त’ पाठांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस अंश में गाँधीजी की हिम्मत एवं अन्याय के विरुद्ध लड़ने की भावना के दर्शन होते हैं। जोहानिस्बर्ग के थाने में न्यायोचित कार्य नहीं होता था। हकदार दाखिल नहीं हो पाते थे और बिना हकवाले सौ-सौ पॉण्ड देकर चले आते । गाँधी के पास इसकी शिकायत आती। गाँधी को बुरी लगता था। उन्होंने सोचा यदि इनकी सहायता नहीं की तो उनका ट्रान्सवाल में रहना व्यर्थ है।

गाँधीजी ने भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध लड़ाई मोल ली, उनके विरुद्ध प्रमाण एकत्रित किये। न्याय के लिए पुलिस कमिश्नर से मिले। उसने भी गाँधी का सहयोग किया। उसने यह भी कहा कि गोरे पंचों द्वारा गोरे अपराधियों को दण्ड दिलाना कठिन है। पर उसने सहयोग का विश्वास दिलाया। गाँधीजी ने निश्चय कर लिया कि वे उन्हें पकड़वाकर ही दम लेंगे। चाहे उन्हें इसके लिए कितना ही परिश्रम क्यों न करना पड़े। उन्होंने दो अधिकारियों के वारण्ट निकलवाए। गाँधीजी पुलिस कमिश्नर से मिलते, वे अधिकारी इसकी जासूसी कराते। पर गाँधीजी ने इसकी परवाह नहीं की। एक अधिकारी भाग भी गया। पर पुलिस कमिश्नर ने उसे पकड़वा लिया। जूरी ने दोनों अधिकारियों को बरी कर दिया। गाँधी जी को बड़ा दुख हुआ। लेकिन गाँधीजी ने तो डटकर अन्याय का मुकाबला किया ही था। इस पाठांश से शिक्षा मिलती है कि अन्याय का हिम्मत से मुकाबला करना ही चाहिए। जिस प्रकार गाँधीजी ने किया था।

प्रश्न 4.
‘आत्मिक शिक्षा’ अंश में व्यक्त गाँधीजी के विचारों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
गाँधीजी को शरीर और मन को शिक्षित करने की अपेक्षा आत्मा को शिक्षित करने में अधिक परिश्रम करना पड़ा। वे चाहते थे कि विद्यार्थी अपने धर्म के मूल तत्व को जानें । इस ज्ञान को प्रदान करने के लिए उन्होंने यथाशक्ति प्रयत्न किया। वे आत्मिक शिक्षा को बुद्धिं की शिक्षा का अंग मानते थे। वे आत्मा के विकास का अर्थ चरित्र के निर्माण को मानते थे। ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करना, आत्मज्ञान करना मानते थे। इस ज्ञान के बिना सारे ज्ञान व्यर्थ हैं।

गाँधीजी आत्मज्ञान को चौथे आश्रम की बात नहीं मानते थे। वे इस बात में विश्वास करते थे कि जो आत्मज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते, वे पृथ्वी पर भार ही हैं। आत्मिक शिक्षा देने के लिए वे विद्यार्थियों से भजन गवाते, नीति की पुस्तकें पढ़कर सुनाते। बाद में उन्हें अनुभव हुआ कि यह ज्ञान पुस्तकों से नहीं दिया जा सकता। आत्मा की शिक्षा आत्मिक कसरत द्वारा दी जा सकती है और वह शिक्षक के आचरण द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। शिक्षक को सावधान रहना चाहिए। वे चाहते थे कि उनके शिष्य शिक्षक बनें। गाँधीजी ने अनुभव किया कि उन्हें विद्यार्थियों के सामने अच्छा बनकर रहना चाहिए।

गाँधीजी विद्यार्थियों को मारपीट कर पढ़ाने के विरोधी थे। पर उन्हें एक विद्यार्थी को पीटना पड़ा। आश्रम में एक विद्यार्थी बहुत ऊधमी था। वह समझाने पर भी नहीं माना। तब गाँधीजी को क्रोध आ गया और उन्होंने उसे रूल से पीटा। मारते समय वे काँपे, इसे विद्यार्थी ने देख लिया। गाँधीजी को उसे पीटने का पछतावा रहा। इसे उन्होंने अपनी पशुता का दर्शन कराना ही माना। इसे दंड के औचित्य में उन्हें सन्देह था। उस दंड में दुख का ही प्रदर्शन नहीं था उसमें भावना का मिश्रण भी था। विद्यार्थी को पीटने की घटना गाँधीजी नहीं भूले और उन्होंने सोचा कि विद्यार्थी के प्रति शिक्षक को क्या धर्म है। वे आत्मा के गुण को समझने लगे। यह अंश हमें संयम और आत्म-निर्माण के लिए प्रेरित करता है।

प्रश्न 5.
‘सत्य के प्रयोग’ शीर्षक पाठ में संकलित अंशों में जिन सत्यों के प्रयोग का वर्णन किया गया है, उन्हें स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त पाठ के विभिन्न अंशों में गाँधीजी ने सत्य के अलग-अलग प्रयोग किये हैं। ‘सभ्य पोशाक में’ अंश में गाँधीजी ने यह सत्य जाना कि अन्नाहार जीवन में बहुत उपयोगी है। इससे विभिन्न बीमारियों का इलाज हो जाता है, वे स्वयं अन्नाहारी थे और डॉ.एलिन्सन ने उनके विचार की पुष्टि कर दी। दूसरा सत्य यह जाना कि सभ्य बनने के लिए व्यर्थ समय व्यतीत नहीं करना चाहिए। विद्यार्थी का काम विद्या-धन ग्रहण करना है। गाँधी ने दोनों सत्यों का अपने जीवन में प्रयोग किया और सफलता प्राप्त की।

‘बलवान से भिड़न्त’ अंश में गाँधीजी ने अन्याय से डटकर मुकाबला करने की हिम्मत बाँधने का प्रयोग किया। भ्रष्ट अधिकारियों के प्रति प्रमाण एकत्रित किये। पुलिस कमिश्नर का सहयोग प्राप्त किया। किन्तु गोरों का पक्षपात करने वाली जूरी ने उन्हें अपराध मुक्त कर दिया। गाँधी ने यह सत्य जाना कि पक्षपात के सामने सत्य प्रमाणों को कोई महत्व नहीं है। उन्होंने अपराधियों के प्रति सहानुभूति दिखाई और यह जाना कि भले-बुरे काम करने वालों के प्रति सदा आदर और दया रखनी चाहिए। उन्होंने एक प्रयोग यह भी किया कि व्यवस्था और पद्धति से नहीं झगड़ना चाहिए। व्यवस्थापक के विरुद्ध झगड़नी अनुचित है क्योंकि उसमें अनन्त शक्तियाँ निहित हैं।

‘आत्मिक शिक्षा’ में इस सत्य को जानने का प्रयत्न किया कि आत्मा की शिक्षा कैसे दी जाए। विद्यार्थी को अपने धर्म के मूल तत्वों का ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने यह जाना कि आत्मा के विकास का अर्थ है-चरित्र का निर्माण करना। उन्होंने यह सत्य प्रकट किया कि आत्मज्ञान चौथे आश्रम की बात नहीं है। आत्मिक शिक्षा पुस्तकों से नहीं दी जा सकती। वह अध्यापक के आचरण पर निर्भर करती है। उन्होंने एक सत्य और जाना कि मारपीट से विद्यार्थी को नहीं पढ़ाया जा सकता। एक ऊधमी विद्यार्थी को रूल से पीटकर उन्हें दुख हुआ। वे काँपने लगे। इसका उन्हें पश्चात्ताप भी रही । उनका यह प्रयोग यथार्थ है।

शांति निकेतन में गाँधीजी ने जीवनमूल्यों से ओत-प्रोत संस्कार, सहयोग एवं समरसती के सत्य को उद्घाटित किया है। उन्होंने यह सत्य जाना कि यदि विद्यालय में पारिवारिक सम्बन्ध है तो विद्यालय अधिक उन्नति करेगी। गंगानाथ विद्यालय से उन्होंने इस सत्य को जाना। शान्ति निकेतन में एक प्रयोग और किया, वह यह कि वैतनिक रसोइयों के स्थान पर विद्यार्थी और शिक्षक स्वयं पाक का कार्य करें तो अध्यापकों को प्रभुत्व स्थापित होगा। गाँधीजी का यह प्रयोग पूर्ण सफल रहा और सभी ने बड़ी रुचि से अपना-अपना कार्य किया। इससे छात्रों में स्वावलम्बन की भावना जागी। सहयोग और समरसता के भाव जगे।

‘खादी का जन्म’ अंश में स्वावलम्बन एवं स्वदेशी की भावना पर जोर दिया गया है। यदि चरखा और करघे का प्रयोग किया। जाए तो देश की कंगाली दूर हो सकती है और पराधीनता समाप्त हो सकती है। देशी मिल के सूत का कपड़ा पहनने का निश्चय किया गया। यद्यपि इसके लिए दूसरों का सहयोग लेना पड़ा। मगनलाल गाँधी ने करघा चलाने की कला सीखी, नये-नये बुनने वाले भी तैयार किये गए। सभी ने हाथ से सूत कातने का निश्चय किया, क्योंकि इसके बिना पराधीनता दूर नहीं हो सकती थी।

प्रश्न 6.
‘गाँधीजी की आत्मकथा हमें सात्विक एवं सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है।’ सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
‘सभ्य पोशाक में’ अंश में गाँधी जी ने अन्नाहार पर जोर दिया है और उसे सात्विक जीवन के लिए अनिवार्य बताया है। विद्यार्थियों को अध्ययन काल में विद्या-धन अर्जित करना चाहिए और बाहरी टीमटाम पर ध्यान नहीं देना चाहिए। पोशाक, नृत्य कला, भाषण कला आदि पर ध्यान देने की अपेक्षा सात्विक जीवन जीना चाहिए।

‘आत्मिक शिक्षा’ अंश में चरित्र निर्माण पर जोर दिया गया है। आत्मा को शिक्षित करना चाहिए। अपने-अपने धर्म के मूल तत्वों को जानना आवश्यक है। इससे जीवन सार्थक बनता है। आत्मा के विकास से ईश्वर का ज्ञान और आत्म-ज्ञान प्राप्त होगा। इससे जीवन सार्थक बनेगा। गाँधी ने आत्मा की कसरत पर अधिक बल दिया। इसी से जीवन सार्थक बन सकता है।

शान्ति निकेतन में गाँधी जी ने सात्विक जीवन की शिक्षा दी। वैतनिक रसोइयों की अपेक्षा शिक्षक और विद्यार्थी स्वयं भोजन बनाने का काम करें। आरोग्य और नीति की दृष्टि से यह कार्य श्रेष्ठ रहेगा। सभी ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। इसका परिणाम यह हुआ कि रसोई बहुत सादी बनने लगी। मसालों का त्याग किया गया। भात, दाल, साग तथा गेहूँ के पदार्थ भाप द्वारा पकाये जाने लगे। सारा जीवन सात्विक और सादगीपूर्ण हो गया। इसके साथ सभी में स्वावलम्बन की भावना जागृत हो गई।

‘खादी का जन्म’ अंश में सात्विक और सार्थक जीवन का उदाहरण मिलता है। गाँधीजी के मन में चरखे और करघे के प्रयोग की प्रबल इच्छा हुई। यद्यपि करघा सिखाने वाले का अभाव था। आश्रम के सभी लोगों ने अपने कपड़े तैयार करके पहनने का निश्चय किया। यह निश्चय किया कि हाथ-करघे पर देशी मिल के सूत का बुना हुआ कपड़ा ही पहनेंगे। हिन्दुस्तानी बुनकरों की स्थिति अच्छी नहीं थी। देशी मिलों के सूत का हाथ से बुना कपड़ा मिलता नहीं था, वह सूत भी मोटा होता था। इस अंश से स्वावलम्बन और स्वदेशी की भावना का पता लगता है। गाँधीजी हाथ के कते सूत के कपड़े पहनने के पक्षधर थे। यह उनकी सात्विकता और सादगी का परिचायक है। सभी अंशों में जीवन की सात्विकता और सार्थकता का भाव मिलता है। जीवन की सार्थकता स्वावलम्बन में है जो कई अंशों में मिलती है।

सत्य के प्रयोग (आत्मकथा) लेखक परिचय

मोहनदास करमचन्द गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात (काठियावाड़) के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ। गाँधी जी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख नेता थे। उन्होंने सत्याग्रह (सविनय अवज्ञा) के माध्यम से ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों के विरुद्ध भारतीयों को स्वतंत्रता दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके सत्याग्रह की नींव अहिंसा के सिद्धान्त पर आधारित थी। आज पूरा संसार उन्हें महात्मा गाँधी के नाम से जानता है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से 6 जुलाई, 1944 को रंगून में रेडियो से गाँधी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आजाद हिन्द फौज के लिए उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगी थीं। देश में प्रतिवर्ष उनका जन्मदिन ‘गाँधी जयन्ती’ और विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा’ दिवस के रूप में मनाया जाता है। सत्य और अहिंसा उनके सच्चे हथियार थे। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने बहुत संघर्ष किया। काले-गोरे के भेद के कारण उन्हें रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से उतार दिया गया। उन्हें अधिकार की भूख नहीं थी। इसी कारण देश के स्वतन्त्र होने पर कोई पद और अधिकार नहीं लिया। जब सारा देश स्वतन्त्रता का आनन्द ले रहा था तब वे दूर घूम रहे थे। इनका निधन 30 जनवरी, 1948 को हुआ।

सत्य के प्रयोग (आत्मकथा) पाठ-सारांश

सभ्य पोशाक में-अन्नाहार पर गाँधी का पूरा विश्वास था। इस विषय में उन्होंने सॉल्ट, हावर्ड विलियम्स, डॉक्टर मिसेज ऐना किंग्सफर्ड और डॉ. एलिन्सन की पुस्तकें पढ़ीं। इसके अतिरिक्त भी अन्नाहार से सम्बन्धित कई पुस्तकें पढ़ डालीं। इन पुस्तकों के पढ़ने से आहार विषयक प्रयोग का महत्त्व बढ़ गया। प्रारम्भ में इस विषय में आरोग्य की दृष्टि मुख्य थी, बाद में धार्मिक दृष्टि सर्वोपरि हो गई।

गाँधी के मित्र को चिन्ता थी कि वे माँस नहीं खायेंगे तो कमजोर हो जायेंगे, बेवकूफ कहलायेंगे और अंग्रेज समाज में मिल नहीं सकेंगे। वे उन्हें विक्टोरिया होटल ले गए जिसका उन्हें कड़वा अनुभव हुआ। सूप में माँस है या नहीं। यह सुनकर मित्र को बुरा लगा। गाँधी वहाँ से आ गए। उन्हें रात भूखे ही काटनी पड़ी। पर इस घटना से मित्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

गाँधी ने सभ्य बनने का प्रयास किया। ‘आर्मी और नेवी’ स्टोर में कपड़े सिलवाए, चिमनी टोपी पहनी, बॉण्ड स्ट्रीट में भी कपड़े सिलवाए। सोने की चैन मँगाई। टाई बाँधना सीखा। बालों को सँवारा। नाचना सीखा, फ्रेंच भाषा सीखी। पियानो बजाना सीखा, वायोलिन सीखने का प्रयास भी किया पर सफलता नहीं मिली। भाषण देने की कला भी सीखी। अन्त में बेल साहब ने घण्टी बजाई। गाँधी को अनुभव हुआ कि उन्हें इंग्लैण्ड में नहीं रहना है। भाषण कला सीखकर क्या करेंगे। वायोलिन भारत में भी सीखा जा सकता है। विद्या-धन बढ़ाना चाहिए। उन्होंने सोचा सदाचार से सभ्य बनना उचित है। सभ्य बनने की सनक छोड़ दी।

बलवान से भिड़न्त-एशियाई अधिकारियों का बड़ा थाना जोहानिस्बर्ग में था। इस थाने में हिन्दुस्तानी और चीनी आदि का भक्षण होता था, रक्षण नहीं। इस थाने में बिना रिश्वत के काम नहीं होता है ऐसी शिकायत गाँधी के पास रोज आती। लोगों को गाँधी से आशा थी इस सड़ांध को दूर करने की। गाँधी भी सोचते थे यदि मैंने यह सुधार नहीं किया तो ट्रान्सवाल में रहना व्यर्थ है। वे प्रमाण के साथ पुलिस कमिश्नर से मिले, जिसने बड़े धैर्य से उनकी बात सुनी। स्वयं गवाहों के बयान भी लिये। पर वह यह जानता था कि दक्षिण अफ्रीका में गोरे पंच गोरे लोगों का ही समर्थन करेंगे। अतः अपराधियों को दण्ड दिलाना कठिन है। फिर भी उसने विश्वास दिलाया कि मैं अपराधियों को दण्ड दिलाने का प्रयास करूंगा।

अन्य अधिकारियों के भ्रष्ट होने के प्रमाण गाँधी के पास नहीं थे। केवल दो अधिकारियों के प्रमाण ही उनके पास थे। प्रमाण के होते हुए भी जूरी ने उन्हें माफ कर दिया। गाँधी को इससे बड़ी निराशा हुई। पर सरकार ने दोनों अधिकारियों को बरखास्त कर दिया। जिससे हिन्दुस्तानियों को थोड़ी राहत मिली। इससे गाँधी की प्रतिष्ठा बढ़ी। उन अधिकारियों के प्रति गाँधी के हृदय में कटुता नहीं थी बल्कि सहानुभूति का भाव था। उनमें से एक की उन्होंने नौकरी भी लगवा दी थी। गाँधी के सम्पर्क में जो आये वे उनके स्वभाव के कारण उनसे निर्भय हो गये। अपने इस व्यवहार को गाँधी ने सत्याग्रह की जड़ और अहिंसा का विशेष अंग माना। अच्छे काम का आदर और बुरे का तिरस्कार होना चाहिए। भले-बुरे काम वालों के प्रति आदर और दया का भाव रखना चाहिए। व्यवस्था या पद्धति के प्रति झगड़ा तो उचित है, पर व्यवस्थापक से झगड़ा करना उचित नहीं है।

आत्मिक शिक्षा-गाँधी को विद्यार्थी के शरीर और मन को शिक्षित करने की अपेक्षा आत्मा को शिक्षित करने में प्रयत्न करना पड़ा। वे मानते थे कि विद्यार्थी को अपने धर्म के मूल तत्त्व जानने चाहिए। अपने धर्मग्रन्थों का ज्ञान होना चाहिए। वे इसे बुद्धि की शिक्षा का अंग मानते थे। आत्मा का विकास करने का अर्थ है-चरित्र का निर्माण करना, ईश्वर का ज्ञान तथा आत्मज्ञान प्राप्त करना। इसके बिना दूसरा ज्ञान व्यर्थ है। पर इसके लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है।

लोग आत्मज्ञान को चौथे आश्रम की चीज मानते हैं जिसे गाँधी स्वीकार नहीं करते। आत्मज्ञान किस प्रकार दिया जाय? इसके लिए वे बालकों को भजन सुनाते तथा नीति की पुस्तकें पढ़कर सुनाते। पर गाँधी ने अनुभव किया कि यह आत्मज्ञान पुस्तकों द्वारा सम्भव नहीं है। यह आत्मिक कसरत से ही सम्भव है। जो शिक्षक के आचरण द्वारा ही सम्भव है। दूर बैठा शिक्षक भी अपने आचरण से छात्रों की आत्मा को हिला सकता है। टॉल्स्टॉय आश्रम के एक ऊधमी छात्र को दण्डा मारा जिससे गाँधी को बड़ा दुःख हुआ। लड़का रोया और क्षमा माँगी। वे विद्यार्थी को पीटने के पक्ष में नहीं थे। आत्मिक ज्ञान देने के प्रयत्न में वे स्वयं आत्मा के गुण को अधिक समझने लगे।

शान्ति निकेतन-शान्ति निकेतन में गाँधी को अध्यापकों और छात्रों से बहुत प्रेम मिला। स्वागत की विधि सरल एवं सादगीपूर्ण थी। यहीं वे काका साहब कालेलकर से पहली बार मिले। केशवराय देशपाण्डे बड़ौदा में गंगनाथ विद्यालय चला रहे थे। वे विद्यालय में पारिवारिक भावना के पक्षधर थे। इसी भावना से यहाँ अध्यापकों के नाम रखे गए। वहीं कालेलकर को ‘काका’ का नाम दिया गया। अन्य अध्यापकों को भी नाम दिये गये। काका कालेलकर के अन्य साथियों से भी उनका परिचय हो गया था। देशपाण्डे को साहब कहा जाता था। जब यह विद्यालय बन्द हुआ तो सारा कुटुम्ब बिखर गया। काका साहब और चिन्तामणि शास्त्री शान्ति निकेतन में रहने लगे।

शान्ति निकेतन में मगनलाल गाँधी एक मण्डल चला रहे थे। गाँधी का उस मण्डल से सम्बन्ध हो गया। यहाँ उनका अनेक विद्वानों से सम्पर्क हुआ। मगनलाल गाँधी ने अपने प्रेम, ज्ञान और उद्योग की सुगन्ध फैला रखी थी। गाँधी यहाँ विद्यार्थियों और शिक्षकों से घुल-मिल गये थे, वे वहाँ स्वपरिश्रम के सम्बन्ध में चर्चा करते। उन्होंने वहाँ स्वयं रसोई बनाने का प्रस्ताव रखा जिससे आरोग्य और रसोई पर शिक्षक समाज का प्रभुत्व हो जाएगा तथा विद्यार्थी स्वावलम्बी तथा स्वयंपाक का पाठ सीख सकेंगे। प्रयोग पसन्द आया और कविश्री ने भी समर्थन किया लेकिन यह बात कही कि शिक्षक स्वीकार कर लें तभी सम्भव है। पियर्सन ने पूरा सहयोग दिया। अलग-अलग मण्डलियों को काम बाँट दिया गया।

इस सुझाव पर चर्चाएँ हुईं। पर पियर्सन नहीं थके। पियर्सन बड़े-बड़े बरतन माँजते। कुछ विद्यार्थी सितार बजाते। सारा शान्ति निकेतन मधुमक्खियों के छत्ते की तरह गूंजने लगा। रसोईघर स्वावलम्बी बन गया। रसोई सादी बनती। पर यह प्रयोग अधिक दिन नहीं चला। परन्तु इससे अनुभव बहुत हुए। गोखले के निधन के कारण गाँधी शान्ति निकेतन में अधिक नहीं रह सके। गाँधी ने एक वर्ष तक भ्रमण किया और सत्याग्रह नहीं किया। क्योंकि गोखले ने एक वर्ष तक भ्रमण करने की प्रतिज्ञा करा ली थी।

खादी का जन्म-गाँधी ने 1908 तक करघा और चरखा नहीं देखा था। पर वे यह मानते थे कि चरखे से ही हिन्दुस्तान की कंगाली मिट सकती है। तभी स्वराज्य मिलेगा। दक्षिण अफ्रीका से आने के बाद आश्रम खुलने पर करघा शुरू हुआ। यद्यपि बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। क्योंकि करघे के बारे में सभी अनजान थे। आश्रम के लोग व्यापारी या कलम चलाने वाले थे पर कारीगर कोई नहीं था। काठियावाड़ और पालनपुर से करघा और उसको सिखाने वाला मिला। मगनलाल गाँधी ने यह कला सीख ली और नये बुनने वाले तैयार हुए।

आश्रमवासियों ने हाथकरघे से देशी मिल के सूत का बना कपड़ा पहनने का निश्चय कर लिया। ऐसा करने से बहुत कुछ सीखा। इस हेतु बाहरी बुनकरों की भी सहायता लेनी पड़ी। मिल के सूत का हाथ से बुना कपड़ा जल्दी नहीं मिलता था। हमारी मिलें महीन सूत नहीं कात सकती थीं। बहुत कठिनाई से बुनकर मिले जो देशी सूत का हाथ का कपड़ा बुनने को तैयार हुए। इस प्रकार तैयार किया हुआ कपड़ा पहना। मिलें स्वयं कातकर स्वयं ही बुना कपड़ा तैयार करती, हाथकरघे को कम महत्त्व देतीं। इसलिए सबने हाथ से कातने का निश्चय किया। तभी पराधीनता दूर हो सकती थी। पर कहीं करघा नहीं मिला और न चरखा चलाने वाला मिला। कालिदास वकील एक

औरत को लाए पर उसका हुनर हाथ नहीं लगा। भड़ौच शिक्षा परिषद् में गाँधी की मुलाकात गंगाबाई से हुई। वह बड़ी हिम्मत वाली और समझदार थी। उन्होंने गाँधी की चरखे की खोज में भटकने की प्रतिज्ञा पूरी की और उनका बोझ हल्का किया।

शब्दार्थ (पृष्ठ-12-13)-श्रद्धा = बड़ों के प्रति आदर का भाव, आहार = भोजन, खाने की वस्तु, जिज्ञासा = जानने की इच्छा, सर्वोपरि = सबसे ऊपर या बढ़कर, पद्धति = तरीका, ढंग, भ्रमित = शंकित, भ्रम में पड़ा हुआ, संकोच = हल्की या थोड़ी लज्जा का भाव, अन्नाहार = अन्न का भोजन या वस्तु, आरोग्य = स्वास्थ्य, न्योता = बुलाया।

(पृष्ठ-14)-जंगली = असभ्य, सभ्यता = सभ्य होने का भाव, विलायती = इंग्लैण्ड का, हस्तगत = सीखी, पकड़ी, आईना = दर्पण, व्यवस्थित = व्यवस्था का भाव, नियमित, अगम्य = न जानने योग्य, कटुता = कडुवापन, लक्षण = रंग-ढंग, सामर्थ्य = शक्ति, ताकत, छिछला = हल्का, उथला। उद्गार = अपने मन की बात कहना।।

(पृष्ठ-15)- सनक = पागलों की सी धुन, भक्षण = अहित, हकदार = अधिकार रखने वाले, अधिकारी, दाखिल = प्रवेश, कान में घंटी बजाई = ज्ञान कराया, लच्छेदार = चिकनी-चुपड़ी मजेदार बात, पेशे = व्यवसाय, धन्धा, इजाजत = स्वीकृति, धीरज = धैर्य। निगरानी = देखरेख, निरीक्षण, अत्याचार = अन्याय।

(पृष्ठ-16)-बरखास्त = नौकरी से हटाना, विरुद्ध = खिलाफ, प्रतिदिन = हररोज, प्रत्येक दिन, खबरें = सूचना, समाचार, अरुचि = घृणा, नफरत, प्रतिष्ठा = सम्मान, रिश्वत = घूस, प्रामाणिक = प्रमाण युक्त, मानने योग्य, अधम = नीच, पापी, दोषी, मौका = अवसर, मंजूर = स्वीकार, यथाशक्ति = शक्ति या सामर्थ्य के अनुसार।

(पृष्ठ-17)- मुलतवी = स्थगित, सार्वत्रिक = सब स्थानों पर होने वाला, शोध = खोज, प्रतिक्षण = हर क्षण, हर समय, अत्यन्त = अपार, निहित = स्थापित, विद्यमान, तिरस्कार = अपमान, अनादर, भर्त्सना, आत्मज्ञान = आत्मा का ज्ञान, आत्मिक = आत्मा की, आचरण = व्यवहार, हाजिर = उपस्थित, ऊधम = शरारत, मुकाबला = सामना, औचित्य = उपयुक्तता, सच्चाई, संयम = इन्द्रियों को वश में करना, रोक, बदौलत = कारण, रूल = डण्डा, अनुभव = ज्ञान, तजुरबा, पछतावा = पश्चात्ताप।

(पृष्ठ-18)-विवश = मजबूर, धर्म = कर्त्तव्य, प्रेम बरसाया = प्रेम दिखाया, आध्यात्मिक = आत्मा सम्बन्धी, आरोग्य = निरोग, पारिवारिक = परिवार जैसी, यथायोग्य = जैसा उचित हो, मुनासिब, सिलसिले = क्रम, हिस्सा = भाग, सूक्ष्मता = गम्भीरता।

(पृष्ठ-19)- स्वपरिश्रम = अपनी मेहनत, वैतनिक = वेतन पाने वाले, स्वावलम्बन = अपने ऊपर निर्भर रहना, अपने पैरों पर खड़े होना, अवसान = मृत्यु, संवेदना = सहानुभूति।

(पृष्ठ-20)- सार्वजनिक = सब लोगों से सम्बन्ध रखने वाला, सम्मिलित = शामिल, आखिर = अन्त में, अक्षरशः = एक-एक अक्षर, पूरी तरह, कंगालियत = गरीबी, हुनर = कला।

(पृष्ठ-21)-अपेक्षाकृत = तुलना में, अनजान = अपरिचित, आवश्यकता = जरूरत, बुनकर हाथ लगे = बुनकर मिले, मेहरबानी = कृपा, स्वेच्छा = अपनी इच्छा, पराधीनता = गुलामी।

We hope the RBSE Solutions for Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग will help you. If you have any query regarding Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi पीयूष प्रवाह Chapter 2 सत्य के प्रयोग, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Share this:

  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window)
  • Click to share on Twitter (Opens in new window)
  • Click to share on Facebook (Opens in new window)

Related

Filed Under: Class 12

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Recent Posts

  • RBSE Solutions for Class 7 Our Rajasthan in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 6 Our Rajasthan in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 7 Maths Chapter 15 Comparison of Quantities In Text Exercise
  • RBSE Solutions for Class 6 Maths Chapter 6 Decimal Numbers Additional Questions
  • RBSE Solutions for Class 11 Psychology in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 11 Geography in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Hindi
  • RBSE Solutions for Class 3 English Let’s Learn English
  • RBSE Solutions for Class 3 EVS पर्यावरण अध्ययन अपना परिवेश in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Maths in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 in Hindi Medium & English Medium

Footer

RBSE Solutions for Class 12
RBSE Solutions for Class 11
RBSE Solutions for Class 10
RBSE Solutions for Class 9
RBSE Solutions for Class 8
RBSE Solutions for Class 7
RBSE Solutions for Class 6
RBSE Solutions for Class 5
RBSE Solutions for Class 12 Maths
RBSE Solutions for Class 11 Maths
RBSE Solutions for Class 10 Maths
RBSE Solutions for Class 9 Maths
RBSE Solutions for Class 8 Maths
RBSE Solutions for Class 7 Maths
RBSE Solutions for Class 6 Maths
RBSE Solutions for Class 5 Maths
RBSE Class 11 Political Science Notes
RBSE Class 11 Geography Notes
RBSE Class 11 History Notes

Copyright © 2023 RBSE Solutions