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RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 पद्माकर

July 24, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 पद्माकर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
पद्माकर का जन्म कहाँ हुआ था ?
(क) बाँदा
(ख) जयपुर
(ग) सागर
(घ) उदयपुर।
उत्तर:
(क) बाँदा

प्रश्न 2.
पद्माकर का वास्तविक नाम क्या था ?
(क) नटवर लाल
(ख) प्यारे लाल
(ग) लल्लूलाल
(घ) मोहन लाल।
उत्तर:
(ख) प्यारे लाल

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पद्माकर का जन्म कब हुआ ?
उत्तर:
पद्माकर का जन्म सन् 1753 ई. में हुआ था।

प्रश्न 2.
पद्माकर के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर:
पद्माकर के पिता का नाम मोहन लाल भट्ट थी।

प्रश्न 3.
पद्माकर का देहावसान कहाँ हुआ ?
उत्तर:
पद्माकर का देहावसान कानपुर में हुआ।

प्रश्न 4.
किस राजा ने पद्माकर को एक लाख मुद्राएँ पुरस्कार में दीं?
उत्तर:
रघुनाथ राव ने पद्माकर को एक लाख मुद्राएँ पुरस्कार में दीं।

प्रश्न 5.
गंगा की धारा कहाँ से निकलती है ?
उत्तर:
गंगा की धारा ब्रह्माजी के कमण्डल से निकली है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पद्माकर किन-किन राजाओं के आश्रय में रहे ?
उत्तर:
पद्माकर जिन राजाओं के आश्रय में रहे, उनके नाम निम्नलिखित हैं- बुंदेलखण्ड के कुलपहाड़ के अर्जुन सिंह, बाँदा के नवाब अली बहादुर के सेनापति हिम्मत बहादुर, सागर के रघुनाथ राव, जयपुर के महाराज प्रताप सिंह तथा उनके पुत्र जगत सिंह, उदयपुर के महाराणा भीमसेन, ग्वालियर के दौलतराव सिंधिया इत्यादि।

प्रश्न 2.
पद्माकर की कृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पद्माकर की निम्नलिखित कृतियाँ हैं-जगद्विनोद, हिम्मत बहादुर विरुदावलि, प्रबोध पचासा, पद्माभरण, गंगा लहरी, प्रताप सिंह विरुदावलि, कलि पचीसी, राम रसायन इत्यादि।

प्रश्न 3.
“भूपति भगीरथ के रथ की सुपुण्य पथ” पंक्ति का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
भूपति भगीरथ………….पथ’ पंक्ति का भावार्थ है- गंगा राजा भगीरथ के रथ का पवित्र मार्ग है। राजा भगीरथ का रथ आगे चल रहा है था तथा उसी मार्ग पर गंगा उनका अनुसरण कर रही थी। गंगा का धरती पर आगमन संसार के प्राणियों को पाप मुक्त करने का मार्ग बन गया था।

प्रश्न 4.
पद्माकर के काव्य की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
पद्माकर जी के काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-पद्माकर की भाषा शुद्ध तथा सरस है। कलापक्ष की दृष्टि से उनका साहित्य उत्कृष्ट है। आपके साहित्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, श्लेष, यमक, संदेह आदि अलंकार मिलते हैं। पद्माकर को भक्ति, श्रृंगार तथा वीर-तीनों रसों में सहजता तथा प्रवीणता प्राप्त है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ के आधार पर गंगा की महिमा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गंगा के बारे में प्रसिद्ध है कि वह ब्रह्माजी के कमण्डल से निकली है। वह भगवान विष्णु के चरणों से प्रवाहित होती है। वह शिव की जटाजूटों को सजाने के लिए लगाई गई माला है। वह राजा भगीरथ के रथ वाले मार्ग से आकर लोगों को पवित्र बनाने वाली है। वह पापों को नष्ट करने वाली है। गंगा का आगमन ऋषि जन्हु के योग का परिणाम है। गंगा की लहरें लोगों का कल्याण करने वाली हैं। गंगा कलयुग के लिए प्रबल प्रहार है। वह यमराज के जाल को काटने वाली है। गंगा ने असंख्य पापियों को इस भवसागर से उद्धार किया है। गंगा त्रिलोक को सजाने वाली पुष्पमाल है। वह कामधेनु के थनों से निकली दूध की धार है। वह भूमि पर फहराने वाली पुण्यों की पताका है। गंगा के पवित्र जल को पीना धर्म का मूल है।

प्रश्न 2.
पद्माकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में एक लेख लिखिए।
उत्तर:
पद्माकर एक प्रतिभाशाली कवि थे। ये अत्यन्त स्वच्छ प्रवृत्ति के थे। वह जयुपर में कई वर्षों तक अत्यन्त ठाठ-बाट के साथ रहे। जब वह यात्रा पर जाते थे तो पूरा लाव-लश्कर उनके साथ रहता था। एक बार वह कहीं जा रहे थे। यह देखकर किसी राजा को भ्रम हो गया कि कोई अन्य राजा उसके ऊपर हमला करने आ रहा है। पद्माकर का स्वभाव ही ऐसा था कि उनको अनेक राजाओं के आश्रय में रहना पड़ा। जयपुर निवास के समय इनका किसी सुनार स्त्री से सम्बन्ध हो गया था। उनको कुष्ठ रोग भी हो गया था। जब वह चरखारी नरेश से मिलने गए तो उनके बारे में यह जानकर उन्होंने इनसे मिलना स्वीकार नहीं किया था।

पद्माकर कवि तथा लक्षण ग्रंथकार थे। आप ब्रजभाषा में सुन्दर कविता लिखते थे। आपकी कविता पर प्रसन्न होकर अनेक राजाओं ने आपको धन तथा जागीरें प्रदान की थीं। बताते हैं कि 56 गाँव, इतने ही लाख रुपये तथा इतने ही हाथी पद्माकर को विभिन्न राजाओं से प्राप्त हुए थे। पद्माकर ने सब मिलाकर नौ पुस्तकें लिखी थीं। राम रसायन, हिम्मत बहादुर विरुदावलि, जगद्विनोद, पद्माभरण इत्यादि उनमें से कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं।

प्रश्न 3.
पाठ में आए निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) विधि के कमण्डल की …………… कहर जमजाल को जहर है।
(ख) कूरम पै कोल कोलहू …………….. छटा है गंगधार की।
उत्तर:
उपर्युक्त की सप्रसंग व्याख्या के लिए पूर्व में दिए गए ‘पद्यांशों की संदर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ” देखिए।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पद्माकर’ की भाषा है|
(क) खड़ी बोली
(ख) ब्रज
(ग) अवधी
(घ) भोजपुरी
उत्तर:
(ख) ब्रज

प्रश्न 2.
‘पद्माकर ने जगद्विनोद ग्रंथ की रचना की थी
(क) जयपुर के राजा जगत सिंह के कहने पर।
(ख) उदयपुर के राजा भीमसेन के आदेश पर
(ग) राजा दौलतराव के आदेश पर
(घ) अपनी इच्छा के अनुसार।
उत्तर:
(क) जयपुर के राजा जगत सिंह के कहने पर।

प्रश्न 3.
लक्षण ग्रंथ है
(क) प्रबोध पचीसी
(ख) जगद्विनोद
(ग) पद्माभरण
(घ) गंगा लहरी।
उत्तर:
(ग) पद्माभरण

प्रश्न 4.
‘तत्काल अघहर है’ ये गंगा की किस विशेषता का वर्णन है ?
(क) तत्काल लाभ देना
(ख) स्वच्छ जल
(ग) पवित्रता
(घ) पापों को तुरन्त हरने वाली।
उत्तर:
(घ) पापों को तुरन्त हरने वाली।

प्रश्न 5.
गंगा की धारा को बताया गया है
(क) कामधेनु के थनों से निकलती दूध की धारा के समान
(ख) हिमालय की पिघली बर्फ के समान
(ग) जड़ी-बूटियों की स्वास्थ्यवर्धक दवा के समान
(घ) चन्द्रमा के उज्ज्वल प्रकाश के समान।
उत्तर:
(क) कामधेनु के थनों से निकलती दूध की धारा के समान

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा भगीरथ के नाम पर गंगा को किस नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर:
गंगा को राजा भगीरथ के नाम पर ‘भागीरथी’ नाम से पुकारा जाता है।

प्रश्न 2.
‘जमजाल को जहर है’ कहने से गंगा की क्या विशेषता प्रकट होती है?
उत्तर:
‘जमजाल को जहर है’ कहने से प्रकट होता है कि गंगा में यमराज के पाश को काटने की शक्ति है।

प्रश्न 3.
‘‘जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं’.-पंक्ति में कौन-सा अलंकार है।
उत्तर:
इस पंक्ति में यमक अलंकार है।

प्रश्न 4.
त्यों फन पै फबी है भूमि-इस पंक्ति में कवि ने किस मान्यता की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
“त्यों फन पै फबी है भूमि” में कवि ने पौराणिक मान्यता की ओर संकेत किया है, जिसमें कहा गया है धरती शेषनाग के फन पर टिकी है।

प्रश्न 5.
धन मूल धर्म” कहने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
धन धर्म का मूल है अर्थात् धन के बिना धर्म के कार्य नहीं हो सकते। कहा गया है-धनात् धर्मः।

प्रश्न 6.
गंगाजल पीने से क्या लाभ होता है ?
उत्तर:
गंगाजल पीने से धर्म-लाभ होता है।

प्रश्न 7.
पद्माकर की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
पद्माकर प्रतिभाशाली तथा स्वच्छन्द प्रकृति के थे।

प्रश्न 8.
पद्माकर किस काल के कवि थे ?
उत्तर:
पद्माकर रीतिकाल के कवि थे।

प्रश्न 9.
पद्माकर पर जागीर तथा अपार सम्पत्ति होने का क्या कारण है?
उत्तर:
पद्माकर कुशल कवि थे। राजाओं के दरबारों में रहकर उन्होंने अपार सम्पत्ति अर्जित की थी।।

प्रश्न 10.
पद्माकर जयपुर में किसके राज्याश्रित रहे ?
उत्तर:
पद्माकर जयपुर में नरेश प्रताप सिंह तथा उनके पुत्र जगत सिंह के राज्याश्रित रहे।

प्रश्न 11.
पद्माकर के काव्य में किस रस की प्रधानता है ?
उत्तर:
पद्माकर के काव्य में श्रृंगार रस की प्रधानता है।

प्रश्न 12.
‘प्रबोध पचासा’ की रचना कवि ने कब की थी ?
उत्तर:
कवि के मन में वैराग्य का भाव उत्पन्न होने पर ‘प्रबोध पचासा’ नामक ग्रन्थ की रचना की थी।

प्रश्न 13.
“गंगा लहरी” काव्य में किसका वर्णन किया गया है ?
उत्तर:
‘गंगा लहरी’ नामक काव्य में कवि ने गंगा की स्तुति की है तथा उसकी महिमा का वर्णन किया है।

प्रश्न 14.
‘राजमूल केवल प्रजा को भौन भरिबो-के अनुसार राजा का क्या कर्तव्य बताया गया है ?
उत्तर:
राजा का कर्तव्य प्रजा का पालन करना तथा उसका हित करना बताया गया है।

प्रश्न 15.
गंगा को शिवजी कहाँ धारण करते हैं ?
उत्तर:
शिवजी गंगा को अपनी जटाओं में धारण करते हैं।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पद्माकर’ की ‘गंगा लहरी’ की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
पद्माकर की ‘गंगा लहरी’ ब्रजभाषा में लिखित काव्य है। भाषा अनुप्रासमय तथा चित्रात्मक है। पदावली अत्यन्त मधुर है। यह पद्माकर की अन्तिम अवस्था में रचा गया काव्य है। वैराग्य तथा भक्ति भावना से ओतप्रोत रचना है। कवि ने गंगा की पतितों का उद्धार करने की अनुपम शक्ति का वर्णन किया है तथा गंगा माता की स्तुति की गई है।

प्रश्न 2.
पद्माकर की काव्य-प्रतिभा का परिचय दीजिए।
उत्तर:
रीतिकाल के कवियों में पद्माकर की प्रतिभा अनुपम थी। आपने नौ पुस्तकों की रचना की थी। पद्माकर ब्रजभाषा में रचना करते थे। आपकी भाषा अनुप्रासमय तथा चित्रात्मक है, आपकी पदावली में मधुरता है। आपने कोमलकान्त पदावली का प्रयोग किया है। आपकी रचनाओं में श्रृंगार रस की प्रधानता है। ‘गंगा लहरी’ तथा ‘प्रबोध पचासा’ उनके अन्तिम समय की रचनाएँ हैं। वैराग्य तथा भक्तिभाव की प्रधानता है।

प्रश्न 3.
‘भूमि पर फबी है थिति रजत पहार की’ – में रजत पहार किसको कहा गया है तथा क्यों ?
उत्तर:
‘रजत पहार’ कैलाश पर्वत को कहा गया है। कैलाश पर्वत की हिमाच्छादित चोटी चमकीली तथा सफेद होती है। हिम भी चमकीली तथा सफेद होती है। अत कवि ने उसको रजत पहार कहा है।

प्रश्न 4.
“कैंधों तिहुँ लोक की सिंगार की बिसाल माल, कैंधों जगी जग में जमाति तीरथन की पंक्ति में कौन-सा अलंकार है तथा क्यों ?
उत्तर:
जहाँ सादृश्य के कारण एक वस्तु में अनेक वस्तु होने का संशय हो किन्तु किसी एक का निश्चय न हो, वहाँ संदेह अलंकार होता है। ‘किधों, किंवा, धौं’ क्या आदि संदेह अलंकार के वाचक शब्द होते हैं। इन पंक्तियों में गंगा में श्रृंगार की माला अथवा तीर्थों का समूह होने का संदेह हो रहा है परन्तु निश्चित कुछ भी नहीं है। कैंधों’ संदेह का वाचक शब्द ही है। अत: संदेह अलंकार है।

प्रश्न 5.
“कैंधों दूध धार कामधेनुन के थन की”- में गंगा की धारा को किसके समान बताया गया है तथा इसका कारण क्या है ?
उत्तर:
‘कैंधों दूध धार कामधेनुन के थन की’ में गंगा की धारा को कामधेनु के थन से निकले वाली दूध की धार के समान बताया गया है। गंगा का जल पवित्र तथा श्वेत और स्वच्छ है। गाय को दूध भी सफेद होता है। गंगा की धार तथा दूध की धार दोनों में प्रवाह भी है।

प्रश्न 6.
जीवों का मूल क्या है ? पद्माकर ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर:
जीवों का मूल आनन्द है अर्थात् प्राणियों का उद्देश्य आनन्द प्राप्त करना है। पद्माकर भारतीय संस्कृति से परिचित तथा प्रभावित थे। भारतीय संस्कृति में परमात्मा तथा जीवात्मा एक ही है। परमात्मा आनन्दस्वरूप है। जीवात्मा परमात्मा में मिलना तथा आनन्द पाना चाहती है। इस सत्य को जानने के कारण पद्माकरे ने जीवों का मूल आनन्द को माना है।

प्रश्न 7.
गंगा के उद्गम के सम्बन्ध में पौराणिक विश्वास क्या है ?
उत्तर:
गंगा ब्रह्माजी के कमण्डल से निकली है, यह पौराणिक विश्वास है। यह भी माना जाता है कि गंगा भगवान विष्णु के चरणों से उत्पन्न हुई है। रहीम ने गंगा को ‘अच्युत चरन तरंगिनी’ कहा है। वह शिवजी की जटाओं से निकली है, यह भी पौराणिक मान्यता है।

प्रश्न 8.
“काहू ने न तारे तिन्हें गंगा तुम तारे” पंक्ति के अनुसार गंगा की विशेषता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
“काहू ने न तारे तिन्हें गंगा तुम तारे, पंक्ति में गंगा की पतितोद्धार की शक्ति का वर्णन है। जिन पापियों का उद्धार कोई देवी-देवता नहीं करता उनका उद्धार गंगा माता करती है। गंगा की इस विशेषता के कारण उसको पतित पावनी कहते हैं।”

प्रश्न 9.
शिवजी अपने जटाजूट को सुसज्जित करने के लिए क्या धारण करते हैं?
उत्तर:
शिवजी अपने जटाजूट को सुसज्जित करने के लिए गंगा की धारा को धारण करते हैं, जिस तरह फूलों की माला धारण करने से मनुष्य की शोभा बढ़ती है, उसी प्रकार अपने जटाजूटों की शोभा बढ़ाने के लिए शिवजी गंगा की धारा को अपने बालों में धारण करते हैं।

प्रश्न 10.
पद्माकर किसी एक राजा के आश्रित नहीं रहे। आपको इसका क्या कारण प्रतीत होता है ?
उत्तर:
पद्माकर अपने जीवनकाल में किसी एक राजा के राज्याश्रित कवि नहीं थे। वह अनेक राजाओं के दरबारों में रहे। हमारी दृष्टि में इसका कारण उनका स्वभाव था। वह स्वभाव से स्वाभिमानी थे तथा किसी की अनुचित बात को सहन नहीं करते थे। पद्माकर अत्यन्त प्रतिभावान थे। अत: उनको राज्याश्रय देकर प्रत्येक नरेश गौरव अनुभव करता था।

प्रश्न 11.
“गंगा स्तुति के अनुसार गंगा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
गंगा ब्रह्मा के कमण्डल तथा विष्णु के चरणों से निकली है। वह पापियों का उद्धार करने वाली है। गंगा की धारा शिवजी के जटाजूट को सुशोभित करने वाली है। गंगा राजा भगीरथ के पुण्यों का फल है। गंगा अनेक तीर्थों की एक तीर्थ है। गंगा के जल को पीना धर्म का मूल है। गंगा कलयुग के लिए कठोर प्रहार तथा यमराज के पाश को काटने वाली है।

प्रश्न 12.
“गंगा स्तुति में पद्माकर ने गंगा का धार्मिक तथा आध्यात्मिक महत्व बताया है। आप गंगा का भौतिक महत्व बताइए ?
उत्तर:
‘गंगा स्तुति’ में पद्माकर ने गंगा का धार्मिक महत्व बताया है। उसको सुरसरि कहते हैं। भगीरथ उसको स्वर्ग से धरती पर लाए थे। वह पतित पावनी है। गंगा का भौतक महत्व भी कम नहीं है। वह भूमि की सिंचाई करती है, जिससे बहुत-सा अन्न उत्पन्न होता है। गंगा जल परिवहन का साधन है तथा उसके पानी से विद्युत उत्पादन भी होता है। इस तरह गंगा का भौतिक महत्व भी है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गंगा को सुरसरि कहते हैं। उसके पृथ्वी पर अवतरण के सम्बन्ध में कौन-सी कथा प्रचलित है ?
उत्तर:
गंगा को सुरसरि कहते हैं। उसके सम्बन्ध में यह मान्यता प्रचलित है कि वह स्वर्ग में बहती थी। राजा भगीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। भगीरथ की तपस्या से गंगा प्रसन्न हुई और धरती पर आने को राजी हुई। उसने कहा-मेरा वेग प्रबल है। उससे तुम्हारा पृथ्वी लोक बह जाएगी। भगीरथ ने ब्रह्माजी को समस्या बताई। उन्होंने कहा-गंगा के वेग को कैलाशपति। शिव ही सम्भाल सकते हैं। तुम उनको मनाओ भगीरथ ने शिव की स्तुति की। शिवजी के तैयार होने पर ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल से गंगा की धारा को छोड़ दिया और वह धरती की ओर दौड़ी। शिवजी ने उसको अपने जटाजूट में समाहित कर लिया। तब भगीरथ ने शिवजी को मनाया, शिवजी ने अपनी एक लट खोल दी। उसमें से गंगा की धारा निकली। भगीरथ का रथ आगे चल रहा था और उसके पीछे गंगा की धारा बही आ रही थी। इस प्रकार गंगा धरती पर आई। इस कारण गंगा को भागीरथी भी कहते हैं।

प्रश्न 2.
“अन्न को मूल मेघ-मेघन को मूल एक जज्ञ अनुसरिबो”- पंक्तियों के आधार पर बताइए कि पद्माकर का ज्ञान विस्तृत और व्यापक था ?
उत्तर:
कविवर पद्माकर प्रतिभाशाली थे। उनका अध्ययन विस्तृत था। उन्होंने अनेक ग्रन्थों का अध्ययन-मनन किया था। उनकी रचनाओं को देखने से यह बात पता चलती है कि उनका ज्ञान-क्षेत्र अत्यन्त व्यापक था। गंगा-स्तुति’ के एक पद्य में कवि ने लिखा है – “अन्न को मूल मेघ, मेघन को मूल एक जज्ञ अनुसरिबो”- इस पंक्ति पर श्रीमद् भगवद्गीता का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-“यज्ञात् भवति पर्जन्य” पर्जन्यात् वृष्टि सम्भव। अर्थात् यज्ञ करने से बादल होते हैं, बादलों से वर्षा होती है। वर्षा से अन्न उत्पन्न होता है।

अन्न से प्राणियों का पालन होता है। उनकी एक अन्य उक्ति है- ‘जज्ञन को मूल धन, धन मूल धर्म ………..’ अर्थात् यज्ञ करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। धन धर्म का मूल है। इस कथन में धनात् धर्म: तत: सुखम्’ अर्थात् धन से धर्म का काम किया जाता है तथा इससे मनुष्य को सुख प्राप्त होता है। उपर्युक्त काव्य पंक्तियाँ संस्कृत के श्लोकों की पद्यानुवाद जैसी प्रतीत होती हैं।

प्रश्न 3.
कूरम पै कोल कोलहू पै सेस कुंडली है। कुंडली पै फबी फैल सुफन हजार की। त्यों फन पै फबी है भूमि-पंक्तियों में कौन-सी कथा की ओर संकेत है ? लिखिए।
उत्तर:
“कूरम पै कोल कोलहू पै सेस कुण्डली है। कुण्डली पै फबी फैल सुफन हजार की। त्यों फन पै फबी है भूमि” में कवि पद्माकर कहते हैं कि कछुए की पीठ पर धरती टिकी है। वाराह अवतार के अनुसार धरती को सूअर के मुख पर टिका माना जाता है। एक मान्यता यह भी है कि पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है। कवि पद्माकर ने इन कथाओं को उपर्युक्त पंक्तियों में आधार बनाया है। उन्होंने इन तीनों को पृथ्वी के कच्छप की पीठ, वाराह के मुख तथा शेषनाग के फन पर टिके होने की बात को एक साथ जोड़ दिया है और गंगा की शोभा को इन तीनों की शोभा से ऊपर तथा अधिक मनोहर बताया है।

प्रश्न 4.
‘पद्माकर’ के काव्य के कला पक्ष तथा भाव पक्ष का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
रीतिकाल के कवियों में पद्माकर का महत्वपूर्ण स्थान है। आपकी काव्य उत्कृष्ट कोटि का है। सहृदयता तथा सजीव कल्पना की दृष्टि से उनका काव्य उत्तम है। कवि ने युगीन परिस्थितियों से समझौता न कर अपने काव्य में स्वाभाविकता का ध्यान रखा है। श्रृंगार के साथ कवि ने वीर रस की रचनाएँ भी की हैं। आपने अपने भक्ति-सम्बन्धी काव्य में राम, कृष्ण तथा शिव तीनों को ही स्थान दिया है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के साथ होली खेलना चाहती हैं। एक गोपिका के श्रीकृष्ण के साथ होली खेलने के चित्रण में श्रृंगार रस का भव्य वर्णन मिलता है

फागु को भीर, अबीरन की भई, गोविन्द ले गई भीतर गोरी।
पाई करी मन की पद्माकर ऊपर नाइ अबीर को झोरी
छीन पिताम्बर कम्बर ते सु विदा दई मींड़ि कपोलन रोरी।
नैन नचाइ कही मुसकाय, लला फिर अईयो खेलने होरी।।

पद्माकर के काव्य में भक्ति का चित्रण मिलता है। उनके ‘प्रबोध पचासा’ तथा ‘गंगा लहरी’ में कवि का भक्तिरूप दिखाई देता है। गंगा जल के पान करने को कवि ने धर्म का मूल माना है –

“धर्म मूल गंगा-जल बिन्दु पान करिबौ”

अपने जीवन में इंश्वर-भक्ति पर ध्यान न देने पर कवि ने पश्चाताप व्यक्त किया है –

है क्षिर मंदिर में न रह्यौ, गिरी कंदर में न तप्यौ तप जाई
राज रिझाये न कै कविता, रघुनाथ कथा न यथामति गाई।

राम और कृष्ण के प्रति कवि ने गहरी श्रद्धा व्यक्त की है। पद्माकर ने अपने समकालीन कवियों की भाँति ब्रजभाषा में ही काव्य रचा है। आपकी भाषा पर पाण्डित्य का बोझ नहीं है तथा वह सरस, सरल और मधुर है। आपके काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग मिलता है। आपने अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, रूपक, संदेह, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों को अपने काव्य में स्थान दिया है। आपने मुक्तक काव्य रचा है तथा सवैया, कवित्त आदि छंदों में रचना की है।

कवि – परिचय :

जीवन परिचय – पद्माकर का जन्म सन् 1753 ई. में उत्तरप्रदेश के बाँदा में हुआ था। इनका मूल नाम प्यारे लाल था। इनके पिता का नाम मोहनलाल भट्ट था। ये तेलंग भट्ट थे। पद्माकर सोलह साल की अल्प आयु में ही कविता लिखने लगे थे। आपने सागर नरेश को एक छंद सुनाया था। उस पर प्रसन्न होकर रघुनाथ राव ने इनको एक लाख मुद्राएँ पुरस्कारस्वरूप दी थीं। पद्माकर अनेक राजाओं के राज्याश्रित कवि रहे। बुन्देलखण्ड के कुलपहाड़ के अर्जुन सिंह, बाँदा के नवाब के सेनापति हिम्मत बहादुर, सागर नरेश रघुनाथ राव, जयपुर नरेश प्रताप सिंह तथा उनके पुत्र जगत सिंह, उदयपुर के भीमसेन, ग्वालियर के दौलतराव सिंधिया आदि इनके आश्रयदाता थे। युगीन परिस्थिति से समझौता न करने के कारण ही इनको स्थान-स्थान पर भ्रमण करना पड़ा। जीवन के अन्त में आप कानपुर आ गए थे तथा वहाँ पर ही सन् 1833 ई. को आपका देहावसान हुआ।

साहित्यिक परिचय – पद्माकर को बिहारी के बाद रीतिकाल का उत्कृष्ट कवि माना जाता है। आपने श्रृंगार, भक्ति तथा वीर काव्य की रचना की है। आपने कवित्त, सवैया आदि छन्दों तथा प्रमुख अलंकारों को अपने काव्य में प्रयुक्त किया है। पद्माकर की भाषा शुद्ध तथा परिष्कृत है। उसमें क्लिष्टता का बोझ नहीं है। वह सरल, सरस तथा मधुर है। उनकी उत्तरकालीन रचनाओं पर वैराग्य तथा धार्मिकता की छाप है।
कृतियाँ – पद्माकर ने जिन ग्रंथों की रचना की है, उनमें प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैंहिम्मत बहादुर विरुदावलि, प्रताप सिंह विरुदावलि के अतिरिक्त जगद्विनोद, पद्माभरण (लक्षण ग्रन्थ), प्रबोध पचासा, गंगा लहरी, राम रसायन, कलि पचीसी (धार्मिक रचनाएँ), आली जा प्रकाश इत्यादि।

पाठ-परिचय :

‘गंगा स्तुति’ में पद्माकर ने गंगा की स्तुति की है। कवि ने बताया है कि गंगा ब्रह्माजी के कमण्डल, विष्णु के चरण तथा शिव की जटाओं से निकली है। उसको धरती पर राजा भगीरथ लाए। गंगा पतित पावनी है तथा उसके प्रताप से कलियुग का दुष्प्रभाव नष्ट होता है तथा यमजाल से मुक्ति मिलती है। गंगा ने अनेक पतितों का उद्धार किया है। जितने पतितों का उद्धार गंगा ने किया है, उतने का किसी देवता ने नहीं किया। गंगा की धारा की शोभा अनुपम है। गंगा तीनों लोक की शोभा बढ़ाने वाली माला है। वह कामधेनु के थनों से निकली दूध की धारा के समान पवित्र है। वह ऋषि जन्हु की तपस्या का फल है। शरीर कर्म करने के लिए आवश्यक है। वर्षा के लिए बादलों का होना जरूरी है। बादल यज्ञ के बिना नहीं हो सकते। धन के बिना यज्ञ नहीं हो सकता गंगा के बिना धर्म नहीं हो सकता। गंगाजल का पान करना धर्म का मूल है।

पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।

1. विधि के कमंडल की सिद्धि है प्रसिद्ध यही,
हरि-पद पंकज-प्रताप की लहर है।
कहैं ‘पदमाकर गिरीस-सीस मंडल के,
मंडन की माल ततकाल अघहर है।
भूपति भगीरथ के रथ की सुपुण्य पथ,
जन्हु जप जोग फल फैल की फहर है।
छेम की छहर गंगा रांवरी लहर,
कलिकाल को कहर जमजाल को जहर है।

शब्दार्थ – विधि = ब्रह्मा। गिरीस = शिवजी। मंडन = शोभा। माल = माला। अघहर = पापों का नाश करने वाली। जन्हु= ऋषि। छेम = क्षेम, कल्याण। रावरी = आपकी। कहर = कठोर प्रहार। जमजाल = यमराज का पाश। जहर = विष, काटने वाली।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘गंगा स्तुति’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता कवि पद्माकर हैं। गंगा भारत की प्रसिद्ध नदी है। गंगा को पाप विनाशिनी तथा मुक्तिदायिनी कहा जाता है। कवि ने इस पंक्ति में माता गंगा की स्तुति की है।

व्याख्या – कवि पद्माकर कहते हैं कि यह प्रसिद्ध है कि गंगा ब्रह्मा जी के कमण्डलु से निकलने वाली सिद्धि है। उसमें भगवान विष्णु के चरण-कमलों के प्रताप जैसी लहरें आती हैं। कैलाशपति शिव शंकर को सुशोभित करने वाली माला यह गंगा ही है। गंगा पापों का हरण करने वाली है। राजा भगीरथ के रथ से निर्मित होने वाला पवित्र मार्ग गंगा ही है। यह जन्हु ऋषि की योग-साधना के सुन्दर फल का फैला हुआ विस्तार है। कवि गंगा को सम्बोधित करते हुए कहता है कि हे गंगा, आपकी लहर सबका कल्याण करने वाली है। वह कलियुग के ऊपर प्रबल प्रहार करने वाली है तथा यमराज के पाश को काटने वाली है।

विशेष –

  1. पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा भगीरथ गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाए थे। आगे-आगे उनका रथ था और पीछे-पीछे गंगा प्रवाहित होती थी।
  2. गंगा का उद्गम ब्रह्माजी के कमण्डल तथा भगवान विष्णु के चरणों से माना जाता है।
  3. गंगा को शिवजी अपनी जटाओं में धारण करते हैं।
  4. अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
  5. ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।

2. जमपुर द्वारे लगे तिन में केवारे, कोऊ
हैं न रखवारे ऐसे बन के ऊजारे हैं।
कहै पद्माकर तिहारे प्रन धारे तेउ,
करि अब भारे सुरलोक को सिधारे हैं।।
सुजन सुखारे करे पुन्य उजियारे अति,
पतित-कतारे भवसिंधु ते उतारे हैं।
काहू ने न तारे तिन्हैं गंगा तुम तारे, और
जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।

शब्दार्थ – जमपुर = यमलोक। केवारे = किवाड़। सुखारे = आसान। कतारे = पंक्ति। उतारे = पार करना। तारे = उद्धार। तारे = नक्षत्र।।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘गंगा-स्तुति’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता कवि पद्माकर हैं। कवि गंगा माता की स्तुति कर रहा है तथा कह रहा है कि आप पतित पावनी हैं। आपने संसार में असंख्य जनों का उद्धार किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि माता गंगा पापनाशिनी है। पापियों का उद्धार करने का वह प्रण धारण किए हुए है। आम लोग उसके कारण देवलोक अर्थात् स्वर्ग को प्राप्त करते हैं तथा यमलोक जाते ही नहीं हैं। यमलोक के दरवाजों पर किवाड़ लगे रहते हैं। उस लोक का कोई रखवाला नहीं है तथा वह उजाड़ हो रहा है। श्रेष्ठजनों के लिए तो पुण्य कर्म आसान हैं, किन्तु गंगा की कृपा से पतितजनों की कतारें अर्थात् पतितों की विशाल संख्या का भी इस जगत् से उद्धार हो जाता है। जिन पापियों का उद्धार किसी देवी-देवता ने नहीं किया है उनको गंगा माता तार देती है। आकाश में जितने तारे हैं, गंगा माँ की कृपा से उतने ही असंख्य जनों का उद्धार हुआ है।

विशेष –

  1. सरस, साहित्यिक ब्रजभाषा है।
  2. गंगा की पापियों का उद्धार करने की विशेषता का वर्णन हुआ है।
  3. अनुप्रास तथा यमक अलंकार हैं।
  4. कवित्त छंद है।

3. कूरम पै कोल कोलहू पै सेस कुंडली है,
कुंडली पै फबो फैल सुफन हजार की।
कहै पदमाकर” त्यों फन पै फबी है भूमि,
भूमि पै फबी है थिति रजत पहार की।।
रजत पहार पर संभु सुरनायक हैं,
संभु पर ज्योति जटाजूट है अपार की।
संभु जटा-जूटन पै चंद की छुटी है छटा,
चंद की छटान पै छटा है गंगधार की।

शब्दार्थ – कूरम = कूर्म, कछुआ। कोल = सूअर, वाराह। सेस = शेषनाग। फबी = सुशोभित। फैल = शोभा। थिति = स्थिति। रजत पहार = कैलाश पर्वत। संभु = शिव। जटाजूट = बालों की लटें। छटा = शोभा।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘गंगा-स्तुति’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता कवि पद्माकर हैं। कवि ने गंगा की छवि का वर्णन किया है। कैलाश पर्वत पर सुरनायक शिव का निवास है। उनके जटाजूट में स्थित गंगा अत्यन्त शोभा पा रही है।

व्याख्या – कवि पद्माकर कहते हैं कि कछुए पर वाराह, वाराह पर शेषनाग की कुण्डली तथा शेषनाग की कुण्डली पर उसके हजार फनों की शोभा फैली हुई है। शेषनाग के फन पर यह धरती सुशोभित हो रही है। धरती के ऊपर स्थित कैलाश पर्वत की शोभा व्याप्त है। कैलाश पर्वत पर देवाधिदेव शिवजी सुशोभित हैं। शिवजी के सिर पर उनके बालों की लम्बी लटें शोभा पा रही हैं। शिवजी की जटाओं में चन्द्रमा की छटा फैली हुई है। चन्द्रमा की किरणों पर गंगा की धारा की शोभा छाई हुई है। आशय यह है कि गंगा की शोभा सर्वश्रेष्ठ तथा सर्वाधिक आकर्षक है।

विशेष –

  1. धरती कछुए की पीठ पर टिकी है। इसको वाराह (सूअर) के मुख तथा शेषनाग के फन पर टिका हुआ भी माना जाता है। ऐसी ही पौराणिक मान्यता है।
  2. कवि ने गंगा की शोभा को शोभायमान वस्तुओं में सर्वश्रेष्ठ माना है। गंगा शिव की जटाओं से निकलती है।
  3. शुद्ध साहित्यिक सरस ब्रजभाषा है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।

4. कैंधों तिहुँ लोक की सिंगार की बिसाल माल,
कैंधों जगी जग में जमाति तीरथन की।
कहै ‘पद्माकर” बिराजै सुर-सिंधु-धार,
कैंधों दूध धार कामधेनु के थन की।
भूपति भगीरथ के जस को जलूस कैंधौं,
प्रगटी तपस्या कैध पूरी जन्हु-जनकी।
कैंधों कछु राखे राका-पति सों इलाका भारी,
भूमि की सलाका की पताका पुन्यगन की।।

शब्दार्थ – कैध = अथवा। तिहुँ = तीन । सिंगार = शृंगार। विसाल माल = बड़ी माला। जमाति = समूह। सुर-सिंधु = गंगा। कामधेनु = समुद्र मंथन में प्राप्त गाय। जलूस = शोभा यात्रा। राका-पति = चन्द्रमा। पताका = झण्डा।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘गंगा स्तुति’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता रीतिकालीन कवि पद्माकर हैं। कवि पद्माकर गंगा की स्तुति कर रहे हैं। कवि ने गंगा के श्रृंगार में काम आने वाली पुष्पमाला, कामधेनु के दूध की धार, राजा भगीरथ की शोभा-यात्रा, पुण्य की पताका इत्यादि उपमानों से तुलना की है।

व्याख्या – कवि पद्माकर कहते हैं गंगा तीनों लोकों के श्रृंगार के काम में आने वाली पुष्पमाला है अथवा वह संसार में सुशोभित तीर्थस्थान का समूह है। गंगा की धारा कामधेनु के थनों से निकलने वाली दूध की धार की तरह लगती है अथवा ऐसा लगता है जैसे गंगा राजा भगीरथ के यश की निकलती हुई शोभायात्रा है अथवा ऐसा प्रतीत होता है कि ऋषि जन्हु की तपस्या गंगा का रूप धारण कर धरती पर प्रगट हुई है अथवा वह विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई चन्द्रमा की चाँदनी है। पृथ्वी पर फहराती हुई पुण्य समूहों की ध्वजा है।

विशेष –

  1. कवि ने गंगा की स्तुति करते हुए उसके लिए विभिन्न उपमानों का उल्लेख किया है।
  2. कवि को गंगा का दर्शन विविध रूपों में हो रहा है।
  3. सरस, सजीव ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. अनुप्रास तथा संदेह अलंकार हैं। कवित्त छन्द है।

5. करम को मूल तन, तन मूल जीव जग,
जीवन को मूल अति आनन्द ही धरिबो।।
कहै ‘पदमाकर’ ज्यौं आनन्द को मूल राज,
राजमूल केवल प्रजा को भौन भरिबो।
प्रजामूल अन्न सब, अन्नन को मूल मेघ
मेघन को मूल एक जज्ञ अनुसरिबो।
जज्ञन को मूल धन, धन मूल धर्म अरु,
धर्म मूल गंगा-जल बिन्दु पान करिबो।

शब्दार्थ – करम = कर्म, काम। धरिबो = धारण करना। भौन = भवः घर। भौन भरिबो = सम्पन्नता और सुख देना। मेघ = बादल। जज्ञ = यज्ञ। अनुसरिबो = पालन करना। बिन्दु = बूंद। पान करिबो = पीना।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि पद्माकर रचित ‘गंगा स्तुति’ कविता से उद्धृत है। इस पद्य में कवि ने गंगा का महत्व बताकर उसकी स्तुति की है। उसने कहा है कि गंगा के जल को पीना धर्म का मूल तत्व है।

व्याख्या – कवि पद्माकर कहते हैं कि संसार में कर्म का आधार शरीर है। शरीर का आधार प्राणी है। जीवों का उद्देश्य अनन्द को प्राप्त करना है। राज्य आनन्द का मूल साधन है। राज्य का मूल प्रजा का घर भरना है। आशय यह है कि राजा का कर्तव्य प्रजा को सुख-सम्पन्नता प्रदान करना है। प्रजा का कर्तव्य है अन्न पैदा करना तथा अन्न बादलों के कारण अर्थात् बादलों द्वारा पानी बरसाने से उत्पन्न होता है। बादल के मूल में यज्ञ करना है अर्थात् बादल यज्ञ करने से उत्पन्न होते हैं। यज्ञ करने के लिये धन आवश्यक है। धन से। धर्म होता है। धर्म गंगा के जल को पीने से होता है।

विशेष –

  1. सरस तथा प्रवाहपूर्ण ब्रजभाषा है।
  2. अनुप्रास अलंकार है। कवित्त छन्द है।
  3. गंगा की महत्ता बताई गई है। गंगाजल का पान करना धर्म को मूल है।
  4. अन्न मूल मेघ। मेघन को मूल एक जज्ञ अनुसरिबो पर भगवद्गीता का प्रभाव है। भाव साम्य-यज्ञात् भवति धर्मजन्यः, पर्यजन्यात् वृष्टि संभवः।

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