Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधन
RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 बहुंचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय ओजोन दिवस मनाया जाता है|
(अ) 16 सितम्बर
(ब) 16 अक्टूबर
(स) 16 नवम्बर
(द) 16 दिसम्बर
प्रश्न 2.
विश्व जल दिवस मनाया जाता है
(अ) 12 मार्च
(ब) 22 मार्च
(स) 12 अप्रैल
(द) 22 अप्रैल
प्रश्न 3.
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संघ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP-21 किस स्थान पर आयोजित किया
गया?
(अ) क्योटो (जापान)
(ब) लीमा (पेरू)
(स) पेरिस (फ्रांस)
(द) रियोडिजेनरियो (ब्राजील)
प्रश्न 4.
निम्न में से धात्विक खनिज है
(अ) जिप्सम
(ब) ग्रेनाइट
(स) रॉक फॉस्फेट
(द) जस्ता
उत्तर:
1. (अ) 2. (ब) 3. (स) 4. (द)
RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 अति लघूउत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बिश्नोई समाज के पर्यावरण संरक्षण हेतु बलिदान की घटना किस गाँव में व कब हुई?
उत्तर:
बिश्नोई समाज के पर्यावरण संरक्षण हेतु बलिदान की घटना 21 सितम्बर 1730 को राजस्थान के खेजड़ली गाँव में हुई।
प्रश्न 2.
बिश्नोई समाज की किस महिला ने सबसे पहले वृक्ष रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दे दी?
उत्तर:
बिश्नोई समाज की अमृता देवी ने सबसे पहले वृक्ष रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दे दी।
प्रश्न 3.
सी.एफ.सी. गैस का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
क्लोरो – फ्लोरोकार्बन।
प्रश्न 4.
पृथ्वी दिवस कब मनाया जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल को मनाया जाता है।
प्रश्न 5.
विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है?
उत्तर:
विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को मनाया जाता है।
प्रश्न 6.
आणविक ऊर्जा में काम आने वाले मुख्य रासायनिक तत्व का नाम लिखिए।
उत्तर:
आणविक ऊर्जा में काम आने वाला मुख्य रासायनिक तत्व यूरेनियम है।
प्रश्न 7.
राजस्थान में पन बिजली उत्पन्न करने वाले किन्हीं दो स्थानों के नाम लिखें।
उत्तर:
चम्बल व इन्दिरा गाँधी नहर।
प्रश्न 8.
यू. एन. एफ. सी. सी. सी. का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क ऑन क्लाइमेट चेन्ज (United Nations Framework Convention on Climate Change)
RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण को किस तरह महत्व प्रदान किया गया?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति में प्रकृति को माँ कहकर सम्बोधित किया गया है। ऋग्वेद में मनुष्य व उसके पर्यावरण को महत्व दिया गया है। इस प्राचीनतम वेद में पृथ्वी, जल व वायु की देव स्वरूप स्तुति की गई है। पृथ्वी से अभिप्राय पहाड़, पेड़ – पौधों, महासागर, झील, नदियाँ, जलवायु आदि से है। भारत में ऋषियों व मुनियों ने वृक्षों व वनों का महत्व बताते हुए इसके संरक्षण पर बल दिया।
कुछ पौधों का औषधि रूप में व धार्मिक दृष्टि से महत्व है जैसे कि पीपल, तुलसी, पलाश, दूर्वा, बिल्व आदि। इसी प्रकार विभिन्न नदियों व प्रकृति के देवताओं का वर्णन भी प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध है। जैन धर्म में अहिंसा को परम धर्म मानते हुए जीव संरक्षण की बात कही गई है।
प्रश्न 2.
“सिर साटे रूख रहे तो भी सस्तो जाण” इससे सम्बन्धित घटना का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अमृतादेवी, जोधपुर के खेजड़ली गाँव की निवासी र्थी । उसके गाँव में जोधपुर के महाराजा अभयसिंह के आदेश से खेजड़ी के वृक्ष काटे जा रहे थे, जिसका अमृतादेवी ने विरोध किया। उनके साथ उनकी तीन पुत्रियाँ भी र्थी। वह खेजड़ी। वृक्षों में लिपट गयीं। यह घटना 21 सितम्बर 1730 की है।
अमृतादेवी के नेतृत्व में बिश्नोई सम्प्रदाय के 363 लोगों ने राजस्थान के खेजड़ली गाँव में खेजड़ी के वृक्षों की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति यह कहते हुए दी थी कि सिर साटे रूख रहे तो भी सस्तो जाण’ इसका अर्थ है कि हमारे सिर के बदले अगर वृक्ष जीवित रहता है तो हम इसके लिए तैयार हैं। यह घटना मंगलवार की है जो कि काला मंगलवार के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 3.
वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
वायुमण्डल में विषाक्त गैसों की उपस्थिति से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। विषाक्त गैसों में सल्फर एक्सीलेण्ट राजनीति विज्ञान कक्षा -12187 डाई – आक्साइड, कार्बन मोनो – ऑक्साइड, नाइट्रोजन के विभिन्न आक्साइड क्लोरो – फ्लोरोकार्बन, फार्मेल्डिहाइड मुख्य हैं। इनसे स्माग का प्रकोप होता है। इससे अनेक लोगों की मृत्यु हो जाती है।
कार्बन मोनो – ऑक्साइड रक्त के हीमोग्लोबिन से मिलकर विषैला पदार्थ कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन बनाता है तथा अनेक रोग उत्पन्न करता है। क्लोरीन आँख, नाक व गले में सूजन उत्पन्न करती है। लेड (सीसा) के कण कैन्सर का कारण बनते हैं। रेडियोधर्मी कणों से भी कैन्सर का खतरा उत्पन्न होता है। धूल के कणों व मैंगनीज के कणों से साँस की बीमारी उत्पन्न होती है।
प्रश्न 4.
वायु प्रदूषण रोकने के चार उपाय बताइए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण रोकने के प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं
- अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाए क्योंकि वृक्ष वायुमण्डलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर प्राणदायिनी ऑक्सीजन गैस प्रदान करते हैं।
- प्रत्येक उद्योग में वायु शुद्धीकरण यन्त्र लगाये जायें।
- उद्योगों में चिमनियों की ऊँचाई पर्याप्त होनी चाहिए।
- जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कम करके सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि वैकल्पिक साधनों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- घरों में धुआँ रहित ईंधनों को बढ़ावा देना चाहिए। 6. पेट्रोल से चलने वाली कारों से कैटेलिटिक कनवर्टर लगाने से वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 5.
जल प्रदूषण के कोई चार प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
जल प्रदूषण के चार प्रभाव निम्नलिखित हैं-
- जल प्रदूषण से अतिसार, पेचिश, हैजा व टायफाइड जैसी बीमारियाँ होती हैं।
- जल में घातक रसायनों के मिलने से उत्पन्न होने वाले जहरीले प्रभाव के कारण जल में रहने वाले जीव-जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है।
- प्रदूषित जल से खेतों में सिंचाई करने पर प्रदूषित तत्व पौधों में प्रवेश कर जाते हैं। इन उत्पादों का प्रयोग करने व खाने से भयंकर बीमारियाँ हो जाती हैं।
- औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न रासायनिक पदार्थ प्रायः क्लोरीन, अमोनिया, हाइड्रोजन, सल्फाइड, जस्ता, सीसा, निकिल व पारा आदि विषैले पदार्थों से युक्त होते हैं। इस जल को पीने से तथा इस जल में पलने वाली मछलियों को खाने से भयंकर बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 6.
पॉलीथीन प्रदूषण प्रकृति के लिए किस प्रकार हानिप्रद है?
उत्तर:
पॉलीथीन के प्रयोग से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं
- इसको तैयार करने में मुख्यत: जाइलीन, एथीलीन ऑक्साइड एवं बेंजीन का प्रयोग होता है। ये सभी टॉक्सिक रसायन हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिये घातक हैं।
- प्लास्टिक लम्बे समय तक विच्छेदित नहीं होती। भूमि के जिस स्थान पर प्लास्टिक पड़ी रहती है वहाँ उर्वरा शक्ति समाप्त कर देती है। ऐसे स्थानों पर पौधे नहीं उग पाते हैं।
- प्लास्टिक के थैले में फेंकी हुई खाद्य सामग्री को खाकर गाय, बन्दर व अन्य जीव तड़प कर मर जाते हैं।
- पॉलीथीन को जलाने पर जहरीली गैस निकलती है जो कि वायुमण्डल के लिए हानिकारक है।
प्रश्न 7.
ग्लोबल वार्मिंग रोकने के उपाय सुझाइए।
उत्तर:
ग्लोवल वार्मिंग रोकने के उपाय – ग्लोबन वार्मिंग रोकने के लिये निम्नलिखित कदम उठाये जाने चाहिए
- अधिकाधिक वृक्षारोपण करके अपने आस – पास का वातावरण हरा – भरा रखें।
- कार्बनिक ईंधन के प्रयोग में कमी लाई जाए।
- कार्बनमुक्त ऊर्जा संसाधन जैसे कि सूर्य, वायु, नाभिकीय ऊर्जा संसाधनों के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाए।
- वन क्षेत्रों की कटाई रोकने के समुचित उपाय किये जाएँ।
प्रश्न 8.
विश्व के किन्हीं तीन मरुस्थलों के नाम लिखें।
उत्तर:
कम वर्षा होने पर, तापक्रम उच्च होने पर तथा मृदा के उपजाऊ न रहने पर कई बार सामान्य भूमि मरुस्थल में बदल जाती है।
उदाहरणार्थ
- राजस्थान का थार मरुस्थल।
- सहारा मरुस्थल।
- कालाहारी मरुस्थल
संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण कार्यक्रम के अन्तर्गत तैयार रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी का लगभग 35 प्रतिशत भाग मरुस्थल के रूप में है।
प्रश्न 9.
बायो गैस पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बायो गैस: पशुओं के गोबर व अन्य कूड़े – करकटे को सड़ाकर उत्पन्न की गई गैस को गोबर गैस या बायो गैस कहा जाता है । इसमें 50-60 प्रतिशत मीथेन गैस पाई जाती है। यह ऊर्जा का एक गैर – पराम्परागत साधन है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ पशुपालन अधिक किया जाता है वहाँ बायो गैस संयन्त्र निर्मित कर बायो गैस उत्पन्न की जा सकती है।
यह बायो गैस एक ज्वलनशील गैसीय मिश्रण है जिसमें मुख्यतः मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो – ऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन गैसे होती हैं।
जिनकी तापीय क्षमता मिट्टी के तेल, उपलों व तारकोल की अपेक्षा अधिक होती है। इस ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा, ताप ऊर्जा एवं खाना बनाने के लिए गैस में परिवर्तित किया जा सकता है। बायो गैस को पाइप लाइन द्वारा एल.पी.जी. चूल्हों तक पहुँचायी जाती है। गैस बनाने के बाद शेष बचे पदार्थ को खेत में खाद के रूप में डाला जाता है।
प्रश्न 10.
पेरिस समझौते पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
पेरिस समझौती: 30 नवम्बर से 12 दिसम्बर 2015 तक फ्रांस की राजधानी पेरिस में संयुक्त राष्ट्र संघ का जलवायु परिवर्तन सम्मेलन आयोजित किया गया। यह संयुक्त राष्ट्र संघ यू.एन.एफ.सी.सी.सी. का 21 वाँ वार्षिक सम्मेलन था। इसे कोप-21 (cop-21) के नाम से भी जाना जाता है। इस सम्मेलन में भारत सहित 175 देशों के प्रतिनिधियों ने समझौते पर हस्ताक्षर किये। यह किसी एक दिन में विश्व के इतनी बड़ी संख्या में देशों की ओर से किसी समझौते पर हस्ताक्षर का रिकार्ड है।
हस्ताक्षर के बाद सभी देशों को अपने देश की संसद से इस समझौते का अनुमोदन करना आवश्यक था। भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि यह एक समझौता नहीं, सात अरब लोगों के जीवन में एक नया अध्याय है। समझौते के तहत सदस्यों ने 21 वीं सदी में विश्व तापमान में वृद्धि दो डिग्री से कम स्तर तक सीमित करने का लक्ष्य रखा है।
प्रश्न 11.
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 में सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु कौन-से संवैधानिक प्रावधान किये गये हैं ?
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986-23 मई 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं
- प्रदूषण के निर्धारित मानदण्डों का प्रथम बार उल्लंघन करने वाले को 5 वर्ष की कैद व एक लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।
- मानदण्डों का निरन्तर उल्लंघन करने पर दैनिक पाँच हजार रुपये जुर्माना व 7 वर्ष की कैद का प्रावधान है।
- नियमों के उल्लंघन पर कोई भी व्यक्ति दो माह का नोटिस देकर जनहित में मुकदमा दायर कर सकता है।
- केन्द्र सरकार को यह अधिकार है कि अधिनियम का पालन न करने वाले उद्योगों को बन्द कराने एवं बिजली व पानी की सेवायें रोकने के निर्देश दे सकती है।
प्रश्न 12.
उपभोक्तावादी संस्कृति किस प्रकार पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रही है? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्तावादी संस्कृति पर्यावरण को नुकसान (हानियाँ):
उपभोक्तावादी संस्कृति का सीधा संबंध अपव्ययपूर्ण उपभोग से है। इससे होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं
- उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण घरों व वाहनों में एअर कंडीशनरों का प्रयोग अत्यधिक बढ़ गया है। परिणामस्वरूप ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है।
- निरन्तर अनावश्यक खरीददारी से उपभोक्ता के धन का अपव्यय होता है जिससे दिवालियापन की स्थिति आ जाती है।
- उत्पादों की पैकिंग सामग्री व डिस्पोजेबल उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा मिलने से अपशिष्ट पदार्थों का निस्तारण विश्व के समक्ष एक चुनौती बन गया है।
- उत्पादों को तैयार करने में प्राकृतिक संसाधनों का अधिकाधिक दोहन किया जा रहा है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पर्यावरण संरक्षण में भारतीय संस्कृति किस प्रकार सहायक है? विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारतीय ग्रन्थों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भारतीय संस्कृति में प्रारम्भ से ही पर्यावरण संरक्षण को महत्व दिया जाता रहा है। यह माना जाता रहा है कि मनुष्य के अस्तित्व के लिए प्राकृतिक परिवेश अनिवार्य है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को माँ कहा गया है। पृथ्वी माता के रूप में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के जीवों का पालन – पोषण करती है।
अतः इसका संरक्षण करना नैतिक कर्तव्य है। भारतीय समाज आदिकाल से ही पर्यावरण संरक्षक की भूमिका निभाता रहा है। वेदों, पुराणों, उपनिषदों तथा अन्य धार्मिक ग्रन्थों में पेड़-पौधों व अन्य जन्तुओं के सामाजिक महत्व को बताते हुए उनको पारिस्थितिकी से जोड़ा गया है। ऋग्वेद में पृथ्वी, जल व वायु की देव रूप में स्तुति की गई है। हमारे ऋषियों व मुनियों ने वृक्षों व वनों के महत्व को स्पष्ट करते हुए इनके संरक्षण की बात कही है।
वृक्ष तथा वन्य जीव मानव जीवन के लिये कितने उपयोगी हैं इस ज्ञान को ऋग्वेद में ज्ञानियों ने हमारे समक्ष रखा। उदाहरणार्थ उन्होंने स्पष्ट किया कि किन पौधों का औषधि की दृष्टि से महत्व है। इसी प्रकार कुछ पौधों को धार्मिक आस्थाओं के साथ जोड़कर उनके संरक्षण का प्रयास किया गया। भारतीय परम्परा में धार्मिक कृत्यों में वृक्ष-पूजा का विशेष महत्व है। पीपल को अटल सुहाग से सम्बद्ध मानकर उसकी पूजा का प्रचलन रहा है।
भोजन में तुलसी का भोग पवित्र माना गया है। यह कई रोगों की रामबाण औषधि भी है। बिल्व वृक्ष को भगवान शंकर से जोड़ा गया है । ढाक, पलाश, दूर्वा एवं कुश जैसी वनस्पतियों को नवग्रह पूजा आदि धार्मिक कार्यों से जोड़ा गया है। पौधों के साथ-साथ नदी व भूमि के संरक्षण को भी महत्व दिया गया। वैदिक युग में नदियों का देवत्व स्वरूप प्रस्तुत किया गया।
भारतीय संस्कृति का ही प्रभाव है कि वर्तमान में गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिये पृथक् मंत्रालय का गठन किया गया है। यजुर्वेद में देवताओं के समान इन्द्र, सूर्य, नदी, पर्वत, आकाश, ऊषा, जल के देवता वरुण का आदर करने की बात कही गई है।
प्रश्न 2.
पर्यावरण प्रदूषण से क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ-पर्यावरण के मुख्य अवयवों में बाह्य दूषित पदार्थों का अधिक मात्रा में मिश्रित हो जाना पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है। यह सभी जीवों व पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है। पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार-पर्यावरण प्रदूषण निम्नलिखित प्रकार का होता है
(1) वायु प्रदूषण: शहरों के असीमित विस्तार, औद्योगिकीकरण, परिवहन साधनों में वृद्धि, विलासिता के साधनों में वृद्धि आदि के कारण वायुमण्डल में हानिकारक गैसें मिश्रित होती जा रही हैं जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। इन हानिकारक गैसों में प्रमुख हैं – सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो – ऑक्साइड, नाइट्रोजन के विभिन्न ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन एवं फॉर्मेल्डिहाइड।
इसके अतिरिक्त वाहनों से निकला सीसा, अधजले हाइड्रोकार्बन्स व विषैला धुआँ भी वातावरण को दूषित कर रहे है। वायु प्रदूषण का हमारे जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। प्रदूषक गैसों से विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त ओजोन परत का क्षरण हो रहा है जो घातक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक पहुँचने से रोकती है। ग्रीन हाऊस गैसों का प्रभाव बढ़ने से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या जटिल होती जा रही है।
(2) जल प्रदूषण: जल में ठोस कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ, रेडियोएक्टिव तत्व, उद्योगों का कचरा व सीवेज से निकला पानी मिलने से जल प्रदूषित हो जाता है। उद्योगों से निकलने वाला कचरा मर्करी, लेड व कैडमियम आदि धातुओं को भी अपने साथ ले आता है। इसी प्रकार सीवेज के जल में यूरिया व यूरिक एसिड मिले रहते हैं। इसके अतिरिक्त उर्वरक
व कीटनाशी रसायन भी जल को प्रदूषित करते हैं। दूषित जल से अतिसार, पेचिश, हैजा व टायफाइड आदि बीमारियाँ फैलती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ भयानक बीमारियाँ जैसे कि कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव आदि भी उत्पन्न हो जाते हैं।
(3) मृदा प्रदूषण-वर्षा से भूमि की संरचना बिगड़ना, उर्वरकों को अधिक प्रयोग, कीटनाशकों का प्रयोग एवं रसायनिक उर्वरकों आदि से मृदा प्रदूषित हो जाती है। इससे भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती है। भूमि की उर्वरता नष्ट होने से मृदा का क्षरण बढ़ जाता है। मृदा का क्षरण रोकने के लिए वृक्षारोपण किया जाना आवश्यक है।
(4) रेडियोएक्टिव प्रदूषण-नाभिकीय बम व नाभिकीय परीक्षण रेडियोधर्मी प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं। रेडियोएक्टिव तत्व वातावरण में प्रवेश कर वायु, जल व मृदा को हानि पहुँचाते हैं। ये तत्व मानव व अन्य जीवों की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं। पॉलीथिन के प्रयोग से प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है जो कि स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त घातक है। पॉलीथीन या प्लास्टिक भूमि, जल व वायु तीनों के लिए अभिशाप है। पृथ्वी पर इसे गलने में 400 वर्ष से अधिक समय लगता है। इसे जलाने से निकली गैस अत्यन्त हानिकारक होती है।
प्रश्न 3.
ग्लोबल वार्मिंग से क्या अभिप्राय है? इसके कारणों की व्याख्या करते हुए पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ: औद्योगीकरण की बढ़ती प्रक्रिया के कारण वायुमण्डल में कार्बनडाइ – ऑक्साइड गैस (CO2) की मात्रा बढ़ती है, जिससे हरित गृह प्रभाव का जन्म होता है। पृथ्वी पर पायी जाने वाली कार्बनडाइ – ऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ने से धरती की सतह से परावर्तित किरणों द्वारा उत्सर्जित होने वाली तापीय ऊर्जा को वायुमण्डल से बाहर जाने से रोकती है। इस पर तापीय ऊर्जा के वायुमण्डल में सान्द्रण से धरती के औसत तापमान में वृद्धि होती है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग या भू – तापन अथवा विश्व व्यापी तापन कहते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण: ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारण हैं
- मनुष्यजनित गतिविधियों से वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
- वाहनों व उद्योगों आदि से निकलने वाले अन्धाधुंध गैसीय उत्सर्जन से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है।
- वनों का तीव्र गति से होने वाला कटाव भी इसका प्रमुख कारण है।
- रेफ्रिजरेटर, अग्निशमन यन्त्रों में प्रयुक्त क्लोरो: फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) ग्लोबल वार्मिंग ( वैश्विक तापमान) का सर्वप्रमुख कारण है। सी.एफ.सी. पृथ्वी के ऊपर बने प्राकृतिक आवरण ओजोन परत को नष्ट करने का काम करती है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र हो चुका है, जिससे पराबैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी पर पहुँच रही हैं। यही कारण है कि पृथ्वी का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है। इस तापमान वृद्धि के परिणामस्वरूप ध्रुवों पर सदियों से जमी बर्फ भी पिघल रही है जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ने की आशंका है। इससे समुद्र के किनारे के शहर समुद्र में डूब सकते हैं।
- विद्युत उत्पादन हेतु जीवाश्म ईंधन का अधिक प्रयोग भी वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ा रहा है। जिससे तापमान बढ़ रहा है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव:
1. वातावरण का बढ़ता तापमान एक चुनौती है। पिछले दस वर्षों में पृथ्वी का तापमान 0.3 से 0.06 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है।
2. पृथ्वी का तापमान बढ़ने से ग्लेशियर का जल पिघल कर समुद्र में जा रही है जिससे समुद्र सतह में बढ़ोत्तरी हो गई है। परिणामस्वरूप प्राकृतिक तटों का कटाव होने की आशंका है जिससे तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग बेघर हो जाएँगे। विश्व के 18 द्वीप जलमग्न हो चुके हैं तथा 2020 तक 14 अन्य द्वीपों के समाप्त होने का खतरा है।
3. तापमान वृद्धि से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है संक्रामक रोग अधिक फैलने लगे हैं तथा आशंका जताई जा रही है कि भविष्य में पीने के लिये स्वच्छ जल, खाने के लिये ताजा भोजन एवं साँस लेने के लिए शुद्ध वायु का संकट उत्पन्न हो सकता है।
4. माना जा रहा है कि तापमान वृद्धि के कारण पशु-पक्षी पहाड़ी क्षेत्रों की ओर प्रस्थान करेंगे तथा कुछ वनस्पतियाँ व पशु – पक्षी अपना अस्तित्व खो देंगे।
5. गर्मी में अधिक गर्मी तथा सर्दी में अधिक सर्दी पड़ने से घरों में एयर कंडीशनरों का प्रयोग बढ़ गया है। परिणामस्वरूप वातावरण में सी.एफ.सी. की मात्रा बढ़ने से ओजोन परत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
प्रश्न 4.
प्राकृतिक संसाधन किसे कहते हैं? जल संसाधन, खनिज संसाधन व मृदा संसाधनों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधन: प्रकृति से प्राप्त होने वाले पदार्थ जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मानव जीवन हेतु आवश्यक हैं तथा जिनके अभाव में विकास की कल्पना नहीं की जा सकती, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं।
जल संसाधन: मानव द्वारा जल का उपयोग विभिन्न कार्यों में किया जाता है जैसे कि दैनिक कार्य, उद्योग संबंधी कार्य, विद्युत उत्पादन, मछली पालन व सिंचाई कार्य आदि में पृथ्वी के संपूर्ण जल का 97 प्रतिशत जल महासागरों में है जो लवणयुक्त होने के कारण उपयोगी नहीं है। अत: मानव उपयोग में आने वाले जल की मात्रा बहुत कम है। जल की अधिकता व न्यूनता दोनों ही क्रमशः बाढ़ व अकाल के रूप में घातक है। सन् 2013 में उत्तराखण्ड में आई बाढ़ से जन-धन की अत्यधिक हानि हुई।
खनिज संसाधन: भूमि में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले संसाधनों को खनिज संसाधन कहते हैं। इन्हें पृथ्वी से प्राप्त कर भौतिक व रासायनिक विधियों से शुद्ध कर लिया जाता है। खनिज सम्पदा किसी भी देश की आर्थिक समृद्धि का आधार है । विश्व का 40 प्रतिशत व्यापार खनिजों से सम्बन्धित है। खनिज दो प्रकार के होते हैं-
- धात्विक खनिज एवं
- अधात्विक खनिज।
धात्विक खनिजों को खानों से प्राप्त करने के बाद रासायनिक क्रियाओं द्वारा परिष्कृत करके शुद्ध किया जाता है; उदाहरणार्थ – लोहा, ताँबा, सीसा, जस्ता, सोना चाँदी आदि इसके अतिरिक्त अधात्विक खनिजों को खानों से प्राप्त करने के बाद उन्हें परिष्कृत नहीं किया जाता वरन् सीधे उपयोग में लाया जाता है। उदाहरणार्थ – एस्बेस्टस, पन्ना, चूना पत्थर, नमक, ग्रेनाइट, संगमरमर आदि। खनन कार्य का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
मृदा संसाधन: मृदा भी एक अमूल्य संपदा है। मृदा का निर्माण चट्टानों के अपक्षय तथा पेड़ – पौधों व कार्बनिक पदार्थों के विच्छेदन से हुआ है। इस संसाधन के अभाव में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। भूस्खलन, मृदा अपरदन व मरुस्थलीकरण से बहुत हानि हो रही है। अतः इन्हें रोकने के प्रयत्न किये जाने चाहिए। भूस्खलन में पर्वतीय ढाल से चट्टान खिसकने पर जन-धन की अत्यधिक हानि होती है। मृदा अपरदन एवं मरुस्थलीय,से कृषि उत्पादन में भारी कमी आई है।
प्रश्न 5.
भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण हेतु किये गये प्रावधानों का विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण हेतु निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं
- राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 48 में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण का सुधार व संरक्षण करेगा तथा वन्य जीवन को भी सुरक्षा प्रदान करेगा।
- संविधान के भाग 4 क के अनुच्छेद 51 में मूल कर्तव्यों के अन्तर्गत पर्यावरण के संरक्षण व संवर्द्धन की बात कही गई
- अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को उन गतिविधियों से बचाया जाये जो उनके जीवन, स्वास्थ्य व शरीर को हानि पहुँचाती हों।
- अनुच्छेद 252 व 253 पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कानून बनाने का अधिकार देते हैं।
पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए संसद द्वारा निम्नलिखित अधिनियम पारित किये गये हैं|
(1) पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986:
इस अधिनियम को 23 मई 1986 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली। इसके अन्तर्गत प्रदूषण के निर्धारित मानदण्डों का प्रथम बार उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के लिये 5 वर्ष की कैद एवं एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है। निरन्तर उल्लंघन करने पर 5 हजार रुपये जुर्माना व 7 वर्ष की कैद का प्रावधान है।
पर्यावरण से सम्बन्धित नियमों के उल्लंघन पर कोई भी व्यक्ति दो माह का नोटिस देकर जनहित में मुकदमा कर सकता है। इस धिनियम के तहत केन्द्र सरकार को यह अधिकार है कि वह अधिनियम की पालना न करने वाले उद्योगों को बंद करवाने, जल, बिजली व पानी की सेवाएँ रोकने का निर्देश दे सकती है।
(2) वायु प्रदूषण (निवारण व नियन्त्रण) अधिनियम 1981:
इस अधिनियम के अनुसार राज्य सरकार अपने विवेक से किसी भी क्षेत्र को वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र घोषित कर सकती है। सभी औद्योगिक इकाइयों को राज्य बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होगा। अधिनियम का पालन न करने पर उद्योग बन्द किये जा सकते हैं।
(3) जल प्रदूषण (निवारण व नियन्त्रण) अधिनियम,1974:
इस अधिनियम के प्रावधान जल को प्रदूषण से मुक्त रखने से सम्बन्धित हैं। इस अधिनियम के तहत प्रदूषण करने वाले लोगों पर जुर्माना व कठोर दण्ड का प्रावधान रखा गया है।
(4) वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972:
यह अधिनियम 9 सितम्बर 1972 को पारित किया गया जिसके द्वारा वन्य जीव संरक्षण को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में स्थान दिया गया। इसमें वन्य जीव संरक्षण से संबंधित प्रावधान किये गये हैं। राष्ट्रीय पशु बाघ व राष्ट्रीय पक्षी मोर का शिकार करने पर 10 वर्ष कारावास का प्रावधान किया गया है।
प्रश्न 6.
जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक चिन्तन पर लेख लिखिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन: किसी स्थान की औसत मौसमी दशाओं को जलवायु कहते हैं। जब इन मौसमी दशाओं (प्रकाश, ताप, दाब, वर्षा एवं आर्द्रता) में परिवर्तन हो जाता है तो इसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने से सन्तुलित जलवायु में कई परिवर्तन हो जाते हैं, जिससे कई दुष्परिणाम परिलक्षित होते हैं।
तीव्र औद्योगीकरण, वनों का ह्रास तथा बढ़ती वाहनों की संख्या के कारण पृथ्वी का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है, जिससे जलवायु परिवर्तित हो रही है। ध्रुवीय बर्फ पिघलने लगी है। जलवायु परिवर्तन से सभी पर्यावरणीय घटकों के साथ समुद्र, बर्फ, झील, नदियाँ आदि प्रभावित होते हैं। इन पर्यावरणीय घटकों के परिवर्तन से पृथ्वी के जीव-जन्तु तथा वनस्पति भी प्रभावित होते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक चिन्तन:
जलवायु परिवर्तन हमारे जीवन के अस्तित्व एवं विकास से जुड़ी एक गंभीर वैश्विक समस्या है। इससे मानव जीवन पर संकट बढ़ने के साथ – साथ प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप भी बढ़ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से प्रकृतिजन्य संकट उत्पन्न हो रहे हैं। विश्व के द्वीपों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है।
ओजोन परत में छिद्र एक महान चुनौती है। इस दिशा में विश्व का ध्यान आकर्षित करने के लिये पहली बार विश्व स्तर पर 5 से 16 जून 1972 के मध्य स्टॉकहोम (स्वीडन) में मानवीय पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन हुआ जिसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर विस्तृत विचार – विमर्श हुआ। सम्मेलन की दसवीं वर्षगाँठ मनाने के लिये 10 से 18 मई 1982 को नैरोबी (केन्या) में राष्ट्रों को सम्मेलन हुआ जिसमें पर्यावरण से जुड़ी विभिन्न कार्य योजनाओं का एक घोषणा पत्र स्वीकृत किया गया।
इस सम्मेलन की बीसवीं वर्षगाँठ पर 3 से 14 जून 1992 को रियो डि जनेरियो ( ब्राजील) में संयुक्त राष्ट्र का पृथ्वी शिखर सम्मेलन हुआ जिसमें जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से निपटने हेतु यू.एन.एफ.सी.सी.सी. संधि की गई। इसके तहत जलवायु परिवर्तन पर पहला संयुक्त सम्मेलन 1995 में बर्लिन (जर्मनी) में हुआ। तब से अब तक निरन्तर वार्षिक सम्मेलन हो रहे हैं। 1 से 14 दिसम्बर 2014 को इसका बीसवाँ सम्मेलन पेरू की राजधानी लीमा में आयोजित किया गया जिसमें विश्व के 194 देशों के प्रतिनिधियों तथा अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
भारत का प्रतिनिधित्व पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने किया। सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कटौती का संकल्प थी। संयुक्त राष्ट्र संघ जलवायु परिवर्तन का 21 वाँ सम्मेलन पेरिस में 30 नवम्बर से 12 दिसम्बर 2015 में आयोजित किया गया। इसमें 175 देशों के प्रतिनिधियों ने समझौते पर हस्ताक्षर किये। यह किसी एक दिन में विश्व के इतनी बड़ी संख्या में देशों की ओर से किसी समझौते पर हस्ताक्षर का रिकॉर्ड है।
प्रश्न 7.
उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण व इससे पर्यावरण व मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की विस्तृत विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्तावादी संस्कृति एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया है जिसका सीधा अर्थ यह है कि समाज के अन्दर व्याप्त प्रत्येक तत्व उपभोग करने योग्य है। उसे केवल सही तरीके से आवश्यक वस्तु के रूप में बाजार में स्थापित करना होता है। वर्तमान में उद्योगपति अपने निजी लाभ के लिए जो वस्तुएँ बाजार में बेचते हैं, उसके प्रति ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए उनके अन्त:करण में कृत्रिम इच्छाएँ जागृत करते हैं। ग्राहक को लगता है कि उन चीजों के बिना उसका काम नहीं चल सकता।
यहीं से अपव्ययपूर्ण उपभोग की शुरुआत होती है और इसी को उपभोक्तावादी संस्कृति कहा जाता है। इस सोच को विकसित करने में विज्ञापनों की अहम् भूमिका होती है। विकसित देशों में विश्व की एक चौथाई जनसंख्या निवास करती है। किन्तु विश्व के कुल संसाधनों का तीन चौथाई उपभोग इन्हीं के द्वारा किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि संयुक्त राज्य
अमेरिका की बात करें तो वहाँ विश्व की लगभग 5 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। लेकिन यहाँ विश्व के कुल पैट्रोलियम उत्पादों का उपयोग 20 प्रतिशत है। जो बढ़ती हुई उपभोक्तावादी प्रकृति का एक प्रमुख उदाहरण है। इसी प्रकार विकसित देशों में इस संस्कृति के प्रभाव के चलते घरों व वाहनों में एयर कंडीशनरों का प्रयोग बढ़ रहा है। पश्चिमी संस्कृति की चकाचौंध का प्रभाव भारत जैसे विकासशील देशों पर भी पड़ा है। पिछले कुछ दशकों से आपूर्ति का अर्थशास्त्र’ की अवधारणा खूब चल रही है कि माल बनाते रहो तो ग्राहक मिल ही जायेंगे।
निरन्तर अनावश्यक खरीददारी से आर्थिक दिवालियापन की स्थिति उत्पन्न होती है। इन उत्पादों का जीवन काल भी कम होता है जिससे शीघ्र नया सामान खरीदने की आवश्यकता होती है। उत्पादों की पैकिंग व डिस्पोजेबल उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा मिलने से अपशिष्ट पदार्थों का निस्तारण विश्व के समक्ष एक चुनौती बन गया है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक संसाधनों का अधिकाधिक दोहन भविष्य के लिए चिन्ता उत्पन्न करता है।
प्रश्न 8.
उपभोक्तावादी संस्कृति किस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुँचा रही है? विस्तृत विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक समय में उपभोक्तावादी संस्कृति के तहत उत्पादों को तैयार करने में प्राकृतिक संसाधनों खनिज, वन, पानी, ऊर्जा स्रोतों का भरपूर दोहन किया जा रहा है। यह प्रणाली प्रकृति के मूल्यवान व स्वास्थ्यप्रद स्रोतों को नष्ट करके वातावरण को प्रदूषित कर रही है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनों का सृजन नहीं किया जा सकता, न ही उन्हें बढ़ाया जा सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों की खपत यदि वर्तमान दर से की जाती रही तो भू – गर्भ में उपलब्ध ताँबा 277 साल में, कोबाल्ट व प्लेटिनम 400 साल में, पेट्रोल 49 साल में, पेट्रोलियम गैस 60 साल में, कोयला कुछ सालों में पृथ्वी से गायब हो जायेंगे। आज विश्व में एक साल में जितना ऊर्जा स्रोतों पेट्रोल, कोयला व प्राकृतिक गैस का प्रयोग हो रहा है उसे तैयार करने में प्रकृति को दस लाख साल लगे हैं।
अतः स्पष्ट है कि उपभोक्तावादी संस्कृति में ऐशोआराम के इतने साधन जुटाने के बावजूद मनुष्य सही अर्थों में सुखी व संतुष्ट नहीं है। निरन्तर नई आवश्यकताओं की पूर्ति की इच्छा रखने के कारण मनुष्य मानसिक तनाव का शिकार हो रहा है। पृथ्वी किसी की निजी संपत्ति नहीं है। अतः वर्तमान प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रखना हमारा नैतिक कर्तव्य है। हमें अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखते हुए संयमित जीवन – यापन करना चाहिए।
प्रश्न 9.
ऊर्जा के पारम्परिक व गैर पारम्परिक स्रोतों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(क) ऊर्जा के पारम्परिक स्रोत – इसके अन्तर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है
- खनिज कोयला: खनिज कोयला चार प्रकार के होते हैं- एन्थ्रेसाइट, बिट्युमिनस, लिग्नाइट व पीट। इनमें एन्थ्रेसाइट सर्वोत्तम किस्म का है खनिज कोयला करोड़ों वर्षों से भूमि में दबे जीवों व वृक्षों के अवशेष हैं। कोयला जलने से वायु प्रदूषण होता है।
- पेट्रोलियम: ये हाइड्रोकार्बन यौगिकों के मिश्रण हैं। इसके शुद्धीकरण से हाईस्पीड पेट्रोल, डीजल व कैरोसीन प्राप्त होता है। विश्व का 50 प्रतिशत तेल उत्पादन खाड़ी देशों में किया जाता है। खाड़ी देशों में सम्मिलित हैं – सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात व कतर। इनमें भी दो देश सऊदी अरब व ईरान विश्व का 40 प्रतिशत पेट्रोलियम उत्पादन करते हैं।
- प्राकृतिक गैस: ये हाइड्रोकार्बन युक्त संसाधन हैं। इनमें मीथेन व ज्वलनशील गैसों की अधिकता है। इसका प्रयोग घरेलू कार्यों, उद्योगों एवं विद्युत परियोजनाओं में किया जाता है।
- पनबिजली: पानी की तेज धारा से विद्युत टरबाइन चलाकर विद्युत उत्पन्न की जाती है। पनबिजली से पर्यावरण को कोई क्षति नहीं पहुँचती है। राजस्थान में चम्बल, इन्दिरा गाँधी नहर व माही नदी पर पनबिजली परियोजनाएँ स्थापित की गई
- आणविक विद्युत: यह विद्युत ‘यूरेनियम’ से प्राप्त की जाती है। एक किलोग्राम यूरेनियम से उतनी ऊर्जा बनती है। जितनी 25 लाख किलो खनिज कोयले से बनती है।
(ख) ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोत: परम्परागत स्रोतों का निरन्तर दोहन होने के कारण गैर – परम्परागत स्रोतों की प्राप्ति हेतु शोध किये जा रहे हैं। इस श्रेणी के प्रमुख स्रोत हैं
- सौर ऊर्जा: सूर्य से प्राप्त विकिरण या ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते हैं। सूर्य में ऊर्जा का असीमित भण्डार है। ऊर्जा की पूर्ति को इससे सस्ता व प्रदूषण रहित साधन और कोई नहीं है।
- पवन ऊर्जा: यह भी प्रकृति से प्राप्त प्रदूषण रहित स्रोत है। पश्चिमी राजस्थान में वायु की गति 20-40 किमी / घण्टा रहती है। इससे प्रतिवर्ष 25000 किलोवाट विद्युत का उत्पादन किया जा सकता है।
- भूतापीय ऊर्जा: भू – गर्भ में कई स्थानों पर 3-15 किमी गहराई पर काफी उष्ण चट्टानें पाई जाती हैं जहाँ गर्म जल के सोते पाये जाते हैं। इस भूगर्भीय उष्णता का उपयोग टरबाइन घुमाकर विद्युत उत्पादन में किया जा सकता है।
- बायो गैस: पशुओं के गोबर व कूड़ा करकट को सड़ाकर गोबर गैस बनाई जाती है। इसमें 50-60 प्रतिशत मीथेन गैस पाई जाती है। इस गैस का उपयोग खाना बनाने में किया जाता है।
प्रश्न 10.
पर्यावरण संरक्षण पर भारतीय न्यायपालिका द्वारा दिये गये महत्वपूर्ण निर्णयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- सिनेमा हॉलों, वीडियो पार्लर आदि में कम से कम दो पर्यावरण संबंधी फिल्म/संदेश अवश्य ही प्रत्येक शो में निशुल्क दिखाये जाएँ। लाइसेंस जारी करते समय यह पूर्व शर्त होनी चाहिए।
- सिनेमा हॉलों द्वारा लघु अवधि की पर्यावरण व प्रदूषण संबंधी सूचनाप्रद फिल्म दिखाना। 3. पर्यावरण व प्रदूषण संबंधी रुचिकर कार्यक्रम का प्रसारण प्रतिदिन 5 से 7 मिनट की अवधि के लिए अवश्य हो।
- छात्रों में सामान्य जागृति लाने के लिए शिक्षण संस्थाओं में यह एक अनिवार्य विषय हो।
- सन् 1996 में उच्चतम न्यायालय ने संघीय सरकार तथा स्थानीय प्राधिकरणों को दिल्ली के ऐतिहासिक नगर को प्रतिदिन साफ करने, सघन वानिकी अभियान को चलाने तथा आरक्षित वने कानून लागू करने के आदेश दिए।
- उच्चतम न्यायालय ने जनसमस्या तथा आगरा-ताजमहल की विश्व धरोहर को बचाने के लिये 292 कोयला आधारित उद्योगों को बंद करने का या अन्यत्र ले जाने का या गैस ईंधन बनाने के उद्देश्य से आदेश पारित किये।
- उच्चतम न्यायालय ने वाहनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए विभिन्न निर्देश जारी किये।
- उच्चतम न्यायालय के आदेश का ही परिणाम है कि सन् 2000 से चार महानगरों-दिल्ली, मुंबई, कोलकाता व चेन्नई में सीसारहित पेट्रोल का प्रयोग किया जा रहा है।
- उच्चतम न्यायालय के आदेश का ही परिणाम है कि दिल्ली में अप्रैल 2001 से टैक्सियों, ऑटो रिक्शा व बसों में सी. एन.जी. का प्रयोग किया जा रहा है।
- वाहन प्रदूषण नियन्त्रण व धूम्रपान निषेध पर भी विशेष बल दिया जा रहा है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 बहुंचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विश्व पर्यावरण दिवस किस दिन मनाया जाता है?
(अ) 3 जून
(ब) 4 जून
(स) 5 जून
(द) 6 जून
प्रश्न 2.
निम्न में से किस दिन पृथ्वी दिवस मनाया जाता है?
(अ) 21 अप्रैल
(ब) 22 अप्रैल
(स) 23 अप्रैल
(द) 24 अप्रैल
प्रश्न 3.
बिश्नोई समाज के द्वारा प्राणों की आहुति देने की घटना का संबंध भारत के किस राज्य से है?
(अ) उत्तर प्रदेश
(ब) मध्य प्रदेश
(स) हरियाणा
(द) राजस्थान
प्रश्न 4.
निम्न में से कौन – सी ग्रीन हाउस गैस नहीं है?
(अ) क्लोरो – फ्लोरो कार्बन
(ब) कार्बन डाइ – ऑक्साइड
(स) कार्बन मोनो – ऑक्साइड
(द) मीथेन
प्रश्न 5.
उत्तराखंड में किस वर्ष भीषण बाढ़ आई?
(अ) 2011
(ब) 2012
(स) 2013
(द) 2014
प्रश्न 6.
प्रदूषण मुक्त ऊर्जा स्रोत है?
(अ) सौर ऊर्जा
(ब) पवन ऊर्जा
(स) जल विद्युत
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 7.
ओजोन परत को सर्वाधिक नुकसान पहुँचाने वाली गैस है
(अ) क्लोरो – फ्लोरो कार्बन
(ब) क्लोरीन
(स) नाइट्रिक आक्साइड
(द) कार्बन डाइआक्साइड
प्रश्न 8.
निम्न में से कौन – सा प्रदूषण रक्त के हीमोग्लोबिन से मिलकर विषैला पदार्थ कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन बनाता है?
(१) रेडियोधर्मी कण
(ब) मैंगनीज कण
(स) कार्बन मोनोआक्साइड
(द) क्लोरीन
प्रश्न 9.
ग्रीन हाउस गैसों के कारण वातावरण का तापमान ……..रहा है।
(अ) घट
(ब) बढ़
(स) कोई परिवर्तन नहीं
(द) समान
प्रश्न 10.
राजस्थान के किस शहर में आणविक ईंधन द्वारा चालित विद्युत गृह की स्थापना की गई है?
(अ) रावतभाटा
(ब) अजमेर
(स) किशनगढ़
(द) माउण्ट आबू
प्रश्न 11.
निम्न में से ऊर्जा का परम्परागत स्रोत है
(अ) पैट्रोलियम
(ब) प्राकृतिक गैस
(स) खनिज कोयला
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 12.
निम्न में से ऊर्जा का गैर – परम्परागत स्रोत है
(अ) सौर ऊर्जा
(ब) पैट्रोलियम
(स) खनिज कोयला
(द) जल विद्युत
प्रश्न 13.
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संघ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कोप – 20 किस स्थान पर आयोजित किया गया?
(अ) पैरिस (फ्रांस)
(ब) लीमा (पेरू)
(स) लंदन (इंग्लैण्ड)
(द) क्योटो (जापान)
प्रश्न 14.
वन महोत्सव मनाया जाता है
(अ) 12 मार्च
(ब) 28 जुलाई
(स) 22 मार्च
(द) 5 जून
प्रश्न 15.
हमारा राष्ट्रीय पशु है
(अ) चिकारा
(ब) हिरन
(स) हाथी
(द) बाघ
उत्तर:
1. (स) 2. (ब) 3. (द) 4. (स) 5. (स) 6. (द) 7. (अ) 8. (स)
9. (ब) 10. (अ) 11. (द) 12. (अ) 13. (ब) 14. (ब) 15. (द)
RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 अति लघूउत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘माता भूमिः पुत्रो’ अहम् पृथिव्या का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इसका अर्थ है कि धरती माता है तथा हम सब इसके पुत्र हैं।
प्रश्न 2.
भारतीय संस्कृति में प्रकृति व पृथ्वी को माता क्यों कहा गया है?
उत्तर:
इसका कारण यह है कि पृथ्वी माता के रूप में संपूर्ण ब्रह्माण्ड के जीवों का पालन पोषण करती है।
प्रश्न 3.
भारतीय संस्कृति के कौन से चार वेद हैं?
उत्तर:
- ऋग्वेद
- यजुर्वेद
- सामवेद व
- अथर्ववेद
प्रश्न 4.
यह कथन किसका है -”साम्राज्य की स्थिरता पर्यावरण की स्वच्छता पर निर्भर करती है।”
उत्तर:
यह कथन महान अर्थशास्त्री व राजनीतिज्ञ चाणक्य का है।
प्रश्न 5.
बिश्नोई समाज के कितने लोगों ने पर्यावरण संरक्षण हेतु अपने प्राणों की आहुति दी?
उत्तर:
21 सितम्बर 1730 को बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने अमृता देवी के नेतृत्व में पर्यावरण संरक्षण हेतु अपने प्राणों की आहुति दी।
प्रश्न 6.
जनसंख्या वृद्धि के कोई दो प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
- जनसंख्या वृद्धि से कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल कम हो रहा है साथ ही मृदा की उर्वरा शक्ति कम हो रही है।
- खाद्यान्न का अभाव हो रहा है।
प्रश्न 7.
ओजोन परत क्या है?
उत्तर:
समताप मंडल में 11 से 36 किमी. ऊँचाई स्थित ओजोन का घना आवरण ओजोन परत कहलाता है।
प्रश्न 8.
ओजोन परत का क्या उपयोग है?
उत्तर:
ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी किरणों को धरती पर आने से रोकती है।
प्रश्न 9.
किस धर्म में अहिंसा को परमधर्म मानते हुए जीव संरक्षण को आवश्यक बताया गया है?
उत्तर:
जैन धर्म में।
प्रश्न 10.
राजस्थान के किस सम्प्रदाय के 29 सूत्र प्रकृति संरक्षण हेतु बहुमूल्य नियम हैं?
उत्तर:
बिश्नोई सम्प्रदाय के।
प्रश्न 11.
जल में कैडमियम की मात्रा से क्या हानि होती है?
उत्तर:
जल में कैडमियम होने से हानियाँ है – उच्च रक्तचाप, रक्त कणिकाओं का क्षय, मिचली, दस्त, हृदय रोग ।
प्रश्न 12.
किन्हीं 4 ग्रीन हाउस गैसों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- कार्बन डाइऑक्साइड,
- मीथेन,
- नाइट्रोजन ऑक्साइड,
- क्लोरो – फ्लोरो कार्बन आदि।
प्रश्न 13.
ग्लोबल वार्मिंग के दो कारण बताइए।
उत्तर:
- मानव क्रियाकलापों से ग्रीन हाउस गैसों में बढ़ोत्तरी
- वनों की अंधाधुध कटाई।
प्रश्न 14.
ग्लोबल वार्मिंग के दो प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
- पृथ्वी के तापमान में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
- मनुष्य व अन्य जीवों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
प्रश्न 15.
दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप कौन – सा है?
उत्तर:
माजुली द्वीप।
प्रश्न 16.
भारत में सबसे भीषणतम अकाल किस वर्ष पड़ा था।
उत्तर:
सन् 1956 में।
प्रश्न 17.
पैट्रोलियम पदार्थों के उपयोग से कौन – कौन – सी हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
लेड ऑक्साइड व कार्बन डाइऑक्साइड।
प्रश्न 18.
भूस्खलन क्या है?
उत्तर:
पर्वतीय ढाल पर कोई भी चट्टान गुरुत्व के कारण नीचे की ओर खिसकती है तो उसे भूस्खलन कहते हैं।
प्रश्न 19.
भारत के कौन – से राज्य में थार मरुस्थल स्थित है?
उत्तर:
राजस्थान में।
प्रश्न 20.
केन्द्रीय मरु अनुसंधान संस्थान कहाँ स्थित है?
उत्तर:
जोधपुर में।
प्रश्न 21.
खनिज संसाधन क्या हैं?
उत्तर:
भूमि में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले संसाधनों को खनिज संसाधन कहते हैं।
प्रश्न 22.
खनन कार्यों से पर्यावरण को होने वाले कोई दो नुकसान बताइए।
उत्तर:
(i) खनिज कणों व धूल से वायु प्रदूषण का होना।
(ii) वन्य क्षेत्र में कमी।
प्रश्न 23.
वनों के निरन्तर कम होने के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
- खनन क्रिया द्वारा वनों का काटा जाना।
- औद्योगिक क्षेत्र में वृद्धि।
प्रश्न 24.
सबसे अधिक ऊर्जावान कोयला कौन – सा है?
उत्तर:
एन्थ्रेसाइट कोयला।
प्रश्न 25.
धात्विक व अधात्विक खनिज के दो – दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
धात्विक खनिज – लोहा, एल्युमिनियम। अधात्विक खनिज – जिप्सम, पन्ना।
प्रश्न 26.
परम्परागत व गैर – परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के दो – दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ऊर्जा के परम्परागत स्रोत – खनिज कोयला, पेट्रोलियम।। ऊर्जा के गैर – परम्परागत स्रोत – सौर ऊर्जा, बायो गैस।।
प्रश्न 27.
खनिज कोयले की कौन-कौन सी किस्में हैं तथा इनमें कौन सा सर्वोत्तम है?
उत्तर:
खनिज कोयले की प्रमुख किस्में हैं-बिटुमिनी, लिग्नाइट, पीट व एन्थेसाइट। इनमें सर्वोत्तम किस्म एन्थ्रेसाइट है।
प्रश्न 28.
पेट्रोलियम की प्राप्ति कहाँ से होती है?
उत्तर:
भूमिगत अवसादी शैलों से खनिज तेल की प्राप्ति होती है। ये हाइड्रोकार्बन यौगिकों के मिश्रण होते हैं। खनिज पेट्रोलियम के शुद्धिकरण से हाईस्पीड पेट्रोल, डीजल व कैरोसीन प्राप्त होता है।
प्रश्न 29.
विश्व के किन देशों में पेट्रोलियम का उत्पादन सर्वाधिक है?
उत्तर:
विश्व का 50 प्रतिशत तेल उत्पादन खाड़ी देशों सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात व कतर में होता है। इनमें भी सऊदी अरब व ईरान में विश्व का 40 प्रतिशत पेट्रोलियम उत्पादन होता है।
प्रश्न 30.
यूरेनियम व खनिज कोयले में से किससे अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है?
उत्तर:
एक किलोग्राम यूरेनियम से इतनी ऊर्जा बनती है जितनी कि 25 लाख किलो खनिज कोयला से प्राप्त होती है।
प्रश्न 31.
मृदा अपरदन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मृदा की ऊपरी उपजाऊ सतह जब किन्हीं कारणों से स्थानान्तरित हो जाती है तो इसे मृदा अपरदन कहा जाता है।
प्रश्न 32.
\भारतीय राष्ट्रीय पशु व पक्षी का नाम लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय पशु – बाघ। राष्ट्रीय पक्षी – मोर।
प्रश्न 33.
मानवीय पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र का प्रथम सम्मेलन कहाँ हुआ था?
उत्तर:
5 से 16 जून 1972 के मध्य स्टॉकहोम (स्वीडन) में।
प्रश्न 34.
संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी सम्मेलन कब व कहाँ हुआ था?
उत्तर:
उसे 14 जून 1992 को रियोडिजनेरियो (ब्राजील) में।
प्रश्न 35.
संयुक्त राष्ट्र संघ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2014 में भारत का प्रतिनिधित्व किसने किया था?
उत्तर:
भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 लघूउत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मनुष्य निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर है किन्तु इस विकास के कारण जहाँ लाभ हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर पर्यावरण प्रदूषित होता जा रहा है। वनों की कटाई, औद्योगीकरण व शहरीकरण, तकनीकी विकास, जनसंख्या विस्फोट एवं रेडियोधर्मी प्रदूषण आदि कारण से प्रदूषण निरन्तर बढ़ रहा है। पृथ्वी का तापमान निरन्तर बढ़ते रहने से ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व के सम्मुख एक चुनौती बनी हुई है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि का क्षेत्र सीमित होता जा रहा है। साथ ही मृदा की उर्वरा शक्ति भी घट रही है। पशुओं के लिये चारागाह उत्पादन कम होने से खाद्यान्न की समस्या भी एक चुनौती बन गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट 2016 के अनुसार विकासशील देशों की एक अरब बीस करोड़ जनसंख्या को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है।
प्रश्न 2.
वायु प्रदूषण का ओजोन परत पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? बताइए।
उत्तर;
वायु प्रदूषण का ओजोन परत पर प्रभाव: हमारे वायुमण्डल के भीतर ओजोन समताप मण्डल में 11 से 35 किलोमीटर ऊँचाई तक घने आवरण के रूप में पाई जाती है। ओजोन की यह परत सूर्य से आने वाली घातक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित तथा परावर्तित कर पृथ्वी की रक्षा करती है। इसी आवरण को ओजोन सुरक्षा कवच कहते हैं। यहाँ पर ओजोन का निर्माण ऑक्सीजन पर पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से होता है।
वायु में उपस्थित गैसें; जैसे – कार्बन डाइऑक्साइड मीथेन, नाइट्रस आक्साइड क्लोरोफ्लोरा कार्बन आदि गैसें वायुमण्डल को प्रदूषित करने के साथ – साथ ओजोन परत को भी नुकसान पहुँचा रही है। ओजोन परत की क्षति के भयंकर दुष्परिणाम है। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि क्लोरोफ्लोरो कार्बन का एक अणु स्ट्रेटोस्फेयर में एक लाख ओजोन अणुओं को नष्ट कर सकता है। अण्टार्कटिका तथा दक्षिणी ध्रुव पर पाया जाने वाला ओजोन छिद्र किसी क्षेत्र विशेष को नहीं बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित करता है।
प्रश्न 3.
जल प्रदूषण के कारण व रोकने के उपाय बताइए।.
उत्तर:
जल प्रदूषण के कारण: जल प्रदूषण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
- उद्योगों से निकलने वाला कचरा जो अपने साथ मर्करी, कैडमियम व लैड जैसी धातुओं को बहाकर लाता है।
- सीवेज का जल जिसमें हानिकारक पदार्थ, यूरिया व यूरिक एसिड मिले रहते हैं।
- उर्वरक के रूप में प्रयुक्त नाइट्रेट व फॉस्फेट लवण जो जल को प्रदूषित करते हैं।
- कच्चा पेट्रोल, कुओं से निकालते समय समुद्र में मिलकर जल प्रदूषित करता है।
- कीटनाशी रसायन वर्षा के जल में मिलकर जल प्रदूषित करते हैं।
जल प्रदूषण रोकने के उपाय: जल प्रदूषण रोकने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं
- रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कार्बनिक खादों का प्रयोग किया जाये।
- रासायनिक साबुनों का प्रयोग कम किया जाये।
- उद्योगों के कचरे को नदियों में मिलाने से पूर्व उसमें उपस्थित कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थों को नष्ट कर देना चाहिए।
- रेडियोएक्टिव पदार्थों व अस्पतालों के कूड़े को जमीन में गाड़ना चाहिए।
प्रश्न 4.
मृदा प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव बताइए।
उत्तर;
मृदा प्रदूषण के कारण: प्राकृतिक तथा मानवजनित स्रोतों से मिट्टी की गुणवत्ता में रूस होने को भू – प्रदूषण या मृदा प्रदूषण कहते हैं। मृदा प्रदूषण के निम्नलिखित कारण हैं –
- अम्लीय वर्षा भूमि की उर्वरकता को नष्ट करती है।
- भूमि उपयोग में व्यापक परिवर्तन (जैसे – वन विनाश) से मृदा अपरदन।
- उर्वरकों व कीटनाशी रसायनों का अत्यधिक प्रयोग।
- औद्योगिक व नगरीय अपशिष्टों का ठीक प्रकार से निरस्तारण न होना।
- प्रदूषित जल का सिंचाई के रूप में प्रयोग।
- कतिपय हानिकारक सूक्ष्म जीव।
- वनों में आग लगना।
- जल भराव व लवणीयता।
- सूखा।
मृदा प्रदूषण के प्रभाव-मृदा प्रदूषण के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं –
- मृदा प्रदूषण से भूमि की उत्पादकता घटती है एवं उसमें कोई भी फसल तथा पेड़ – पौधे आदि तैयार नहीं हो पाते हैं। धीरे – धीरे भूमि ऊसर हो जाती है।
- वनस्पति विहीन भूमि मृदा क्षरण को बढ़ावा देती है जिससे जल व वायु द्वारा मृदा क्षरण बढ़ जाता है।
- भूमि पर अपशिष्टों के ढेर पर मक्खी, मच्छर, चूहों आदि बीमारियों के वाहक जीवों की वृद्धि होती है।
- खुले स्थानों पर शौच आदि की प्रवृति से मृदा प्रदूषण के साथ जल प्रदूषण भी होता है। इससे हैजा, पैचिश, पीलिया आदि रोग होने की संभावना रहती है।
प्रश्न 5.
मृदा प्रदूषण को नियन्त्रित करने हेतु उपाय सुझाइए।
अथवा मृदा प्रदूषण को किस प्रकार नियंत्रित किया जा सकता है? बताइए।
उत्तर:
मृदा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय: मृदा प्रदूषण को निम्न प्रकार से नियंत्रित किया जा सकता है
- कृषि कार्य में रासायनिक खादों के स्थान पर गोबर, घास, कूड़े आदि से निर्मित कम्पोस्ट खाद तथा हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए।
- एक खेत में एक ही फसल उगाने के स्थान पर अलग – अलग फसल को उगाने से मृदा प्रदूषण को रोकने में सहायता मिलती है। जैसे – अनाज वाली फसलों के साथ दाल वाली फसलें बोई जानी चाहिए।
- मृदा प्रदूषण को रोकने के लिए वृक्षारोपण भी एक प्रभावी उपाय है।
- मृदा प्रदूषण का प्रमुख कारण ठोस अपशिष्ट है। यदि इनका निस्तारण समुचित ढंग से व उपयुक्त विधि से किया जाये तो मृदा प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
- कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों व उर्वरकों का सीमित प्रयोग किया जाना।
- प्रदूषित जल से सिंचाई नहीं करना।
- जनचेतना व जागरूकता द्वारा मृदा प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 6.
रेडियोएक्टिव प्रदूषण के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
रेडियोएक्टिव प्रदूषण के प्रभाव: रेडियोएक्टिव प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित प्रकार से हैं
- रेडियोएक्टिव पदार्थ वातावरण में इतनी अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं कि इससे पौधों, जानवरों तथा मनुष्यों की कोशिकाएँ भी नष्ट हो जाती हैं।
- रेडियोधर्मी प्रदूषण के आस-पास रहने से कैंसर हो जाता है।
- नाभिकीय विस्फोट से नदियों एवं समुद्र का जल प्रदूषित हो जाता है जिससे समुद्री जीव – जन्तु नष्ट हो जाते हैं।
- विकिरण प्रदूषण से महामारी व कीटाणुओं से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो जाती है।
- विकिरण प्रदूषण से त्वचा पर चकते, जलन, त्वचा कैंसर आदि हो जाते हैं। सिर के बाल गिरने लगते हैं एवं असमय सफेद हो जाते हैं।
- विकिरण प्रदूषण से रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने से एनीमिया रोग हो जाता है।
- विकिरण प्रदूषण से श्वसन तंत्र तथा फेफड़ों की बीमारियाँ हो जाती हैं।
- इससे तंत्रिका तंत्र की संवेदी तंत्रिकाएं उत्तेजित हो जाती हैं। मनुष्य मानिसक संतुलन खो देता है एवं पागलों की भाँति व्यवहार करता है।
प्रश्न 7.
पॉलीथीन या प्लास्टिक का प्रयोग कम करने की दिशा में हम किस प्रकार सहयोग कर सकते हैं?
उत्तर:
पॉलीथीन या प्लास्टिक का प्रयोग कम करने की दिशा में हम निम्नलिखित प्रकार से सहयोग कर सकते हैं
- पॉलीथीन के थैले का प्रयोग न करें, सब्जी लेने या अन्य किसी कार्य के लिये बाजार जाते समय कपड़े का थैला लेकर जाएं।
- प्लास्टिक के कप में चाय बिलकुल न पीएं। यह स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त खतरनाक है। इसके स्थान पर मिट्टी के कुल्हड़ या गिलास आदि का प्रयोग करें।
- पॉलीथीन के थैले में भरकर कूड़ा या खाद्य पदार्थ इधर-उधर न फेंकें।
- विवाह समारोह व अन्य पर्यों पर प्लास्टिक की प्लेट एवं कप के स्थान पर पत्तल दोना एवं मिट्टी के कुल्हड़ का प्रयोग प्रोत्साहित किया जाये।
- जहाँ अत्यन्त आवश्यक न हो, पानी हेतु प्लास्टिक की बोतल का प्रयोग न करें।
प्रश्न 8.
ग्लोबल वार्मिंग (भूमण्डलीय तापन) के कारण बताइए।
उत्तर:
ग्लोबल वार्मिंग (भूमण्डलीय तापन) के कारण: ग्लोबल वार्मिंग (भूमण्डलीय तापन) के कारण निम्नलिखित हैं –
- रेफ्रिजरेटर, अग्निशमन यन्त्रों में प्रयुक्त क्लोरो – फ्लोरो कार्बन ग्लोबल वार्मिंग (भू – मण्डलीय तापन) का एक प्रमुख कारण है।
- वाहनों व उद्योगों आदि से निकलने वाले अन्धाधुंध गैसीय उत्सर्जन से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है।
- वनों का तीव्र गति से होने वाला कटाव भी प्रमुख कारण है।
- विद्युत उत्पादन हेतु जीवाश्म ईंधन को अधिक प्रयोग भी वायुमण्डल में कार्बन डाइ-आक्साइड की मात्रा बढ़ा रहा है जिससे तापमान बढ़ रहा है।
- मनुष्य जनित गतिविधियों से वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
प्रश्न 9.
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव: ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं –
(i) ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु में परिवर्तन होगा। ताप बढ़ने से वायु गर्म हो जाएगी तथा ऋतु चक्र में परिवर्तन हो जायेगा। उच्च ताप के कारण कहीं वर्षा अधिक कहीं वर्षा कम तथा कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ तथा चक्रवात की स्थितियाँ उत्पन्न हो जायेंगी।
(ii) तापमान बढ़ जाने के कारण फसल चक्र प्रभावित होगा, पादप रोग तथा हानिकारक कीटों की संख्या बढ़ जायेगी। जिससे खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो जायेगा
(iii) पृथ्वी का तापमान बढ़ जाने से ध्रुवों की बर्फ (आर्कटिक तथा अन्टार्कटिक ध्रुव) एवं हिमालय जैसे क्षेत्रों के हिमनद या ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगेंगे। जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ जायेगा। जल स्तर बढ़ने से समुद्री तटों पर रहने वाली जनसंख्या पूर्णतया प्रभावित होगी। बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी तथा कई तटीय नगर जलमग्न हो जायेंगे।
(iv) ताप में वृद्धि से सम्पूर्ण पृथ्वी के पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तुओं का जीवन असुरक्षित तथा दुरूह हो जायेगा।
प्रश्न 10.
खनिज संसाधन को वर्गीकृत कीजिए। अथवा खजिनों के प्रकार बताइए।
उत्तर:
खनिज संसाधन का वर्गीकरण: खनिज निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
(i) धात्विक खनिज – वे खनिज जिनमें धातु अंश की प्रधानता पायी जाती है, धात्विक खनिज कहलाते हैं। लौह अयस्क, मैंगनीज, निकिल, ताँबा, जस्ता, सीसा, टंगस्टन व कोबाल्ट आदि धात्विक खनिजों के उदाहरण हैं। खानों से निकाले जाने पर इनमें अनेक अशुद्धियों का मिश्रण रहता है।
अतः इन्हें प्रयोग करने से पूर्व इनका परिष्करण करना आवश्यक होता है। धात्विक खनिज ताप व विद्युत के सुचालक होते हैं। यह खनिज प्रायः आग्नेय शैलों में पाये जाते हैं। इन खनिजों को गलाकर पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है।
(ii) अधात्विक खनिज-वे खनिज जिनमें धातु अंश नहीं पाया पाया जाता है, अधात्विक खनिज कहलाते हैं। इन खनिजों की निम्न श्रेणियाँ हैं
- ऊष्मारोधी खनिज – एस्बेस्टेस, चीनीमृतिका।
- बहुमूल्य पत्थर – पन्ना।
- रासायनिक खनिज – चूना पत्थर, नमक।
- उर्वरक खनिज – जिप्सम, रॉक फास्फेट, पाइराइट।
- अन्य खनिज – संगमरमर, ग्रेनाइट, इमारती पत्थर।
इन खनिजों में अशुद्धियाँ बहुत कम होती हैं। अत: इनके परिष्करण की आवश्यकता नहीं पड़ती है। अधात्विक खनिज ताप तथा विद्युत के कुचालक होते हैं। यह खनिज प्रायः अवसादी शैलों में पाये जाते हैं। इन खनिजों को सिर्फ एक बार ही प्रयोग में लिया जा सकता है।
प्रश्न 11.
खनन का पर्यावरण पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर:
सभी प्रकार के खनिज भूमिगत होते हैं। खनिजों को भूमि से निकालने की क्रिया खनन कहलाती है। खनन के कार्य से पर्यावरण को निम्नलिखित हानियाँ होती हैं-
- खनिज कणों व धूल से वायु प्रदूषण।
- वन्य क्षेत्र में कमी।
- वन्य जीवों को खतरा।
- भूमि का बंजर हो जाना।
- कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास।
- खनन अपशिष्ट के निस्तारण की समस्या।
- भूस्खलन।
- खनन श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव।
प्रश्न 12.
वन संसाधन के संरक्षण हेतु कौन – कौन से उपाय किए जा सकते हैं? बताइए। अथवा वनों को बचाने हेतु कौन – कौन से उपाय किये जा सकते हैं?
उत्तर:
वन संसाधन के संरक्षण हेतु उपाय: वनों को बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं
- लकड़ी के स्थान पर वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत काम लिये जावें।।
- वनों की पोषणीय सीमा तक ही कटाई की जानी चाहिए। वन काटने व वृक्षारोपण की दरों में समान अनुपात होना चाहिए। वृक्षों की कटाई उनके पूर्ण परिपक्व होने पर ही की जानी चाहिए। अविवेकपूर्ण कटाई पर रोक लगाई जानी चाहिए। अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।
- वनों की आग से सुरक्षा की जानी चाहिए। आग से सुरक्षा के लिए निरीक्षण गृह एवं अग्नि रक्षा पथ बनाने चाहिए।
- सामाजिक वानिकी, कृषि वानिकी को प्रोत्साहन दिया जावे।।
- ऐसी नदी घाटी परियोजनाओं एवं बाँध पुल बनाने की अनुमति नहीं दी जाये जिनसे वन क्षेत्र डूब जाते हैं।
- चारागाह क्षेत्र आवश्यक रूप से संरक्षित किये जावे।
- कृषि योग्य भूमि विस्तार के लिए वन क्षेत्र के ह्रास को रोका जावे। इस हेतु कड़े कानून बनाकर उनकी सुरक्षा की जावें।
प्रश्न 13.
ऊर्जा संसाधन क्या है? इनका वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
ऊर्जा संसाधन: वे जैविक व अजैविक पदार्थ जिनके उपयोग से शक्ति प्राप्त होती है, उन्हें ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं। किसी भी देश का आर्थिक विकास वहाँ के ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर करता है। औद्योगिक उत्पादन, परिवहन, कृषि, चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा संसाधनों का वर्गीकरण – स्रोत के आधार पर ऊर्जा संसाधनों को दो भागों में बाँटा जा सकता है
(i) परम्परागत ऊर्जा संसाधन – ऊर्जा प्राप्ति के वे साधन जिनका उपयोग मनुष्य प्राचीनकाल से करता आ रहा है, परम्परागत ऊर्जा साधन कहलाते हैं। कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, जल विद्युत आदि परम्परागत ऊर्जा के साधनों की श्रेणी में आते हैं। इनके अधिकाधिक उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि होती है।
(ii) गैर परम्परागत ऊर्जा संसाधन-ऊर्जा प्राप्ति के वे साधन जिनका उपयोग मनुष्य ने कुछ वर्षों पूर्व ही प्रारम्भ किया है, गैर-परम्परागत ऊर्जा साधन कहलाते हैं। सौर-ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा एवं बायो गैस आदि। ये साधन पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करते हैं।
प्रश्न 14.
भूतापीय ऊर्जा क्या है? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भूतापीय ऊर्जा: पृथ्वी का आन्तरिक भाग अत्यन्त तरल है। अतः पृथ्वी के भीतर से कभी-कभी कई स्थानों पर एक सूखी भाप या गर्म पानी के स्रोत के रूप में ऊर्जा बाहर निकलती रहती है। पृथ्वी के आन्तरिक भागों के ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं। भूतापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में होती है क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी प्रगामी ढंग से तप्त होती जाती है।
वहाँ की भूतापीय प्रवणता अधिक होती है, वहाँ उथली गहराइयों पर भी अधिक तापमान मिलता है। ऐसे क्षेत्रों में भूमिगत जल चट्टानों से ऊष्मा का अवशोषण कर गर्म हो जाता है। यह जल इतना अधिक गर्म हो जाता है कि पृथ्वी की सतह की ओर उठता है तो यह भाप में परिवर्तित हो जाता है।
इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलाने तथा विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ, केदारनाथ के सम्मुख गौमुख, गंगोत्री, यमुनोत्री राजस्थान में गठमोरा, गंगापुर, सवाई माधोपुर के समीप एवं माउण्ट आबू के आस पास प्राकृतिक झरने पाये जाते हैं। इस भूगर्भीय उष्णता का उपयोग टरबाइन घुमाकर विद्युत उत्पादन में किया जा सकता है।
प्रश्न 15.
भूस्खलन क्या है? इसके कारण एवं प्रभाव बताइए।
उत्तर:
भूस्खलन से आशय: पर्वतीय ढाल पर कोई भी चट्टान गुरुत्व के कारण नीचे की ओर खिसकती है तो उसे भूस्खलन कहते हैं।
भूस्खलन के कारेण एवं प्रभाव – पर्वतीय क्षेत्रों में वृक्षों की कमी होने से चट्टानें कमजोर हो जाती हैं। खनने तथा बाँध निर्माण आदि से भूस्खलन होता है। गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण चट्टानें नीचे तो खिसकती ही हैं, परन्तु मानवजनित कारणों से भी भू – स्खलन होता है।
भूस्खलन जब आबादी वाले क्षेत्रों में होता है तो लोग मलबे के ढेर में दब जाते हैं। इससे जन व धन की हानि होती है। आवागमन के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। कई बार भूस्खलनों से नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं एवं वहाँ अस्थाई झीलें बन जाती हैं। यह झील जब कभी टूटती है तो जन-धन की बहुत हानि होती है।
प्रश्न 16.
मृदा अपरदन क्या है? इसे किस प्रकार रोका जा सकता है?
उत्तर:
मृदा अपरदन: मृदा की ऊपरी परत जो सर्वाधिक उपजाऊ होती है, मानवीय कारणों या प्राकृतिक कारणों से यह वायु अथवा जल द्वारा स्थानान्तरित होकर शेष मृदा को अनुपजाऊ बना देती है, इस क्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं, मृदा अपरदन से कृषि उत्पादन में बहुत कमी आती है। मृदा अपरदन को रोकने के उपाय – मृदा अपरदन को निम्नलिखित उपायों द्वारा रोका जा सकता है
(i) वनारोपण – वनस्पतियाँ भूमि को सुरक्षात्मक आवरण प्रदान करती हैं। वानस्पतिक आवरण के कारण पानी सीधा जमीन पर नहीं गिर पाता है। फलत: यह मिट्टी की उर्वरता को बनाये रखने में मदद करती हैं। वनारोपण मृदा अपरदन की। समस्या सुलझाने में बहुत कारगर सिद्ध हो सकता है।
(ii) पेड़ों की रक्षक – मेखला – पेड़ों की रक्षक मेखला भी मृदा अपरदन को कम करने में सहायक होती है।
(ii) रेतीले टीलों का स्थिरीकरण-मरुस्थलीय क्षेत्रों में बालू के टीलों का स्थिरीकरण भी बहुत जरूरी है। यह कार्य काँटेदार पौधों को लगाकर किया जा सकता है।
प्रश्न 17.
मरुस्थलीकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मरुस्थलीयकरण: भौतिक तथा मानवीय कार्यों द्वारा जब उपजाऊ भूमि बंजर एवं रेतीली मिट्टी में बदल जाती है तो इस क्रिया को मरुस्थलीकरण कहते हैं। सामान्य भूमि का मरुस्थल में परिवर्तित हो जाना ही मरुस्थलीकरण है। न्यून वर्षा, उच्च तापक्रम व मृदा के वनस्पतिविहीन होने से यह दशा उत्पन्न हो जाती है। आज विश्व में जहाँ भी मरुस्थल हैं वहाँ भूतकाल में मरुस्थल नहीं होने के प्रमाण मिल रहे हैं, राजस्थान के थार मरुस्थल का उदाहरण हमारे सामने है, खुदाई में सरस्वती नदी के प्रमाण मिले हैं।
पुरानी विकसित सभ्यताओं के अवशेष कालीबंगा व रंगमहल में देखे जा सकते हैं, मरुस्थल बनाने की प्रक्रिया शुष्क, अर्द्धशुष्क, अल्पवर्षा वाले क्षेत्रों में निरन्तर चलती रहती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण कार्यक्रम के अन्तर्गत तैयार प्रतिवेदन के अनुसार पृथ्वी का लगभग 35 प्रतिशत भाग मरुस्थल है जिसमें निरन्तर वृद्धि हो रही है। सहारा, थार, कालाहारी एवं अरब का मरुस्थल विश्व के प्रमुख मरुस्थल हैं।
प्रश्न 18.
भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण के बारे में क्या वर्णित है? बताइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण के बारे में निम्नलिखित वर्णित है-
(i) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को उन गतिविधियों से बचाया जाना चाहिए, जो उसके जीवन, स्वास्थ्य तथा शरीरको हानि पहुँचाती हैं।
(ii) राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अनुच्छेद 48 में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण सुधार तथा संरक्षण की व्यवस्था करेगा एवं वन्य जीवन को सुरक्षा प्रदान करेगा।
(ii) संविधान के भाग 4 क के अनुच्छेद 51 में मूल कर्तव्यों में प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी, अन्य जीव भी हैं इनकी रक्षा करे एवं उनका संवर्धन करें एवं प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें।
(iv) भारतीय संविधान के अनुच्छेदों 252 व 253 को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि यह पर्यावरण को ध्यान में रखकर कानून बनाने के लिये अधिकृत करते हैं।
प्रश्न 19.
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की प्रमुख विशेषताएँ: वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- इस अधिनियम के द्वारा वन्य जीव संरक्षण को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में स्थान दिया गया। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-
- वन्य पशुओं के संरक्षण व प्रबन्धन को सुनिश्चित करना।
- पशु शिकार, उनके चमड़े व चमड़े से बनी वस्तुएँ निषिद्ध करना।
- अवैध आखेट की रोकथाम एवं वन्य जीवों को संरक्षण प्रदान करना।
- उल्लंघन करने पर अपराधियों को 3-5 वर्ष का कारावास व 5 हजार रुपये इसका जुर्माना लगाया जा सकता है।
- इस अधिनियम में राष्ट्रीय पशु बाघ व मोर के शिकार करने पर संबंधित अपराधी को 10 वर्ष तक कारावास का प्रावधान रखा गया है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 13 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जल प्रदूषण का कारण, प्रभाव एवं रोकने के उपाय बताइए।
उत्तर:
जल प्रदूषण: प्राकृतिक जल में किसी अवांछित बाह्य पदार्थ का प्रवेश जिससे जल की गुणवत्ता में कमी आती है, उसे जल प्रदूषण कहते हैं।
जल प्रदूषण के कारण – जल प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
- कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ।
- सीवेज के जल जिसमें कई जीवाणु, हानिकारक पदार्थ जैसे – यूरिया तथा यूरिक एसिड आदि मिले रहते हैं। इनसे जल प्रदूषण होता है।
- नाइट्रेट एवं फॉस्फेट लवण ही साधारणतया खेत में उर्वरक के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। यह लवण वर्षा में मिट्टी के साथ मिलकर जल को प्रदूषित कर देते हैं।
- कच्चा पेट्रोल, कुओं से निकालते समय समुद्र में मिल जाता है जिससे जल प्रदूषित होता है।
- कीटनाशनी रसायनों के फसलों पर छिड़काव से ये रसायन मृदा में मिल जाते हैं। वर्षा के जल में घुलकर जल स्रोतों को प्रदूषित कर देते हैं।
जल प्रदूषण के प्रभाव – जल प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं
- अतिसार, पेचिश, हैजा तथा टॉयफायड जैसी बीमारियाँ दूषित जल के प्रयोग से ही होती हैं।
- जल में घातक रसायनों के मिलने से उत्पन्न होने वाले जहरीले प्रभाव के कारण जल में रहने वाले जीव-जन्तुओं की मृत्यु हो जाती हैं।
- मनुष्य जब दूषित जल के सम्पर्क में आता है तो कई परजीवी शरीर में प्रविष्ट कर नारु जैसा रोग उत्पन्न करते हैं।
- जल में उपस्थित दूषित रासायनिक पदार्थों द्वारा जल में विद्यमान प्रदूषकों से मनुष्य में मिनीमाता जैसी कई बीमारियाँ फैल जाती हैं।
- प्रदूषित जल में विभिन्न प्रदूषक तत्वों के अवसादित होकर जलाशय की तली में बैठने से जड़ वाले पौधे समाप्त हो जाते हैं।
- प्रदूषित जल में काई की अधिकता व ऑक्सीजन की कमी से जलीय जन्तु विशेषकर मछलियाँ श्वसन हेतु ऑक्सीजन न मिलने से मरने लगती हैं।
- घरेलू बहि:स्राव में बहकर आए अपमार्जक पदार्थ सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं।
- समुद्रों में तैलीय प्रदूषण से जलीय जन्तु विशेषकर मछलियाँ व जल पक्षी (बतख, जल मुर्गी) मुख्य रूप से प्रभावित होते हैं।
- जल प्रदूषण से कई जीव – जन्तुओं एवं वनस्पतियों के नष्ट होने से पारिस्थितिक तंत्र असन्तुलित हो जाता है।
- बढ़ते जल प्रदूषण से पेयजल संकट गहराने लगा है, जल को लेकर झगड़े होने लगे हैं।
- जल प्रदूषण का कुप्रभाव संसाधन की उपलब्धता व गुणवत्ता पर भी पड़ता है। उदाहरण के लिए प्रदूषित जल से सिंचाई फसल उत्पादन एवं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
जल प्रदूषण रोकने के उपाय – जल प्रदूषण रोकने के उपाय निम्नलिखित हैं
- रासायनिक साबुनों के बढ़ते प्रयोग को कम किया जाना चाहिए।
- अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को रोका जाना चाहिए एवं उसके स्थान पर कार्बनिक खादों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- रेडियोएक्टिव पदार्थ, अस्पतालों तथा रासायनिक प्रयोगशालाओं के कूड़े को जल में मिलाने के स्थान पर उसे जमीन में गाड़ना चाहिए।
उद्योगों के कचरे को नदियों में मिलाने से पूर्व उसमें उपस्थित कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों को नष्ट कर देना चाहिए। - घरेलू प्रयुक्त जल को सीधे जल स्रोतों में न मिलने दिया जाये।
- सीवरेज व गटर के पानी को सीवरेज उपचार संयंत्रों द्वारा उपचारित करने के बाद ही कृषि व अन्य कार्यों में काम में लेना चाहिए।
- प्रदूषित जल का यांत्रिक विधियों से शुद्धिकरण किया जाना चाहिए।
- सूर्य के प्रकाश, वायु, सूक्ष्म वनस्पति, जलीय जीवों आदि द्वारा जल की स्वतः शुद्धिकरण की प्रक्रिया को बाधित नहीं करना चाहिए।
- जन चेतना व जन सहभागिता द्वारा जल प्रदूषण को रोका जा सकता है। भारत सरकार व राज्यों की सरकारें इस दिशा में कार्य कर रही हैं।
प्रश्न 2.
ग्रीन हाउस प्रभाव पर विस्तृत नोट लिखिए।
उत्तर:
ग्रीन हाउस प्रभाव (हरित गृह प्रभाव)- वैश्विक तापन आज विश्व की जटिल समस्या बन चुका है। इस समस्या को ग्रीन हाउस प्रभाव के आधार पर ही समझा जा सकता है। ग्रीन हाउस उस कमरे को कहते हैं जिसमें पौधे उत्पन्न किये जाते हैं। इस कक्ष की दीवारें ऊष्मारोधी पदार्थों तथा छत ऐसे काँच की दीवारों से बनी होती है जिसमें सूर्य का प्रकाश व ऊर्जा पौध घर में प्रवेश कर जाये किन्तु ऊष्मा बाहर न निकल सके। इससे पौध घर का तापमान शीत ऋतु में भी कम न होने के कारण उसमें अधिक तापमान वाले पौधे आसानी से उगाये जा सकते हैं।
पृथ्वी के वातावरण का तापमान भी इसी प्रकार बढ़ रहा है। सूर्य की किरणें वायुमण्डल से होती हुई धरती की सतह से टकराती हैं तथा परावर्तित होकर लौट जाती हैं। धरती का वायुमण्डले कई गैसों से मिलकर बना है। इनमें से अधिकांश गैसें। धरती के ऊपर एक प्राकृतिक वातावरण बना देती हैं। यह आवरण लौटती हुई किरणों के एक हिस्से को उसी प्रकार रोक लेता है जैसे कि ग्रीन हाउस में काँच की दीवारें।
इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी एक गर्म गैस युक्त कमरे के समान हो जाती है। इस प्रकार की गैसों को ग्रीन हाउस गैस के नाम से जाना जाता है। इनमें प्रमुख हैं – कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, क्लोरो – फ्लोरो कार्बन।
इस प्रकार पृथ्वी के वायुमण्डल में कुछ प्रदूषित गैसों की मात्रा बढ़ जाने से पृथ्वी की ऊष्मा बाहर उत्सर्जित नहीं हो पा रही है। इससे पृथ्वी के तापमान में निरन्तर वृद्धि हो रही है, इस प्रभाव को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं। ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार वायुमण्डल में मानव जनित CO, के आवरण प्रभाव के कारण पृथ्वी की सतह की प्रगामी तापन को ग्रीन हाउस प्रभाव (हरित गृह प्रभाव) कहते हैं।
ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव से पृथ्वी का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है। इसी को ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार हरित गृह प्रभाव के कारण तापमान में वृद्धि होने से सागर तल में सन् 2050 तक एक मीटर की वृद्धि हो जायेगी, जिस कारण मिस्र के भूमध्यसागरीय तटवर्ती क्षेत्र का 15 प्रतिशत कृषि क्षेत्र नष्ट हो जायेगा।
ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न होने के कारण – वायुमण्डल में ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न होने के निम्न प्रमुख कारण हैं
- तीव्र औद्योगीकरण के फलस्वरूप ग्रीन गृह गैसों का वायुमण्डल में पहुँचना।
- वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण फैलता प्रदूषण।
- कोयला, लकड़ी, खनिज तेल आदि का दहन।
- श्वसन के कारण वायु में कार्बन डाइऑक्साइड का पहुँचना।
- ज्वालामुखी उद्गार।
- नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों के उपयोग व नाइट्रोजन युक्त ईंधन के दहन से नाइट्रोजन के ऑक्साइड वायुमण्डल में । पहुँचते हैं, जो ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
(घ) ग्रीन हाउस प्रभाव का नियंत्रण: ग्रीन हाउस प्रभाव को निम्न प्रकार नियंत्रित किया जा सकता है
- वायुमण्डल में मिलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन युक्त यौगिकों की मात्रा कम करके।
- औद्योगिक प्रतिष्ठानों में ऐसे संयंत्र लगाए जाएँ जो कार्बन के यौगिक तथा अन्य गैस कम उत्सर्जित करें एवं उत्सर्जित होने के बाद संयंत्र उसे वायुमण्डल में जाने से पूर्व ही विघटित कर दें।
- जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग कम करके।
- वनों का संरक्षण व विस्तार किया जाये ताकि ग्रीन हाउस प्रभावक गैसों का अधिक से अधिक शोषण हो सके।
- जीवाश्म ईंधनों के स्थान पर सौर ऊर्जा जैसे गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों को काम में लेना चाहिए जिससे ग्रीन हाउस प्रभाव गैसों की मात्रा कम हो सके।
- जैविक खादों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाना चाहिए।
- बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण किया जाये ताकि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कम हो सके।
(ङ) ग्रीन हाउस प्रभाव से हानियाँ: ग्रीन हाउस प्रभाव से जीवन पर निम्न विपरीत प्रभाव उत्पन्न होते हैं
- तापमान में वृद्धि – ग्रीन हाउस प्रभाविक गैसों की मात्रा बढ़ने से पृथ्वी की उल्ना का उत्सर्जन नहीं हो पाता है जिससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है।
- ध्रुवों की बर्फ पिघलना – तापमान में वृद्धि से हिमनद पिघलकर जल स्तर को बढ़ा देंगे, जिससे समुद्र के तटीय भाग जलमग्न हो जायेंगे।
- वर्षा में वृद्धि – ताप में वृद्धि से जलीय भागों को वाष्पीकरण अधिक होगा जिससे वर्षा भी अधिक होगी। साथ ही मौसम संबंधी विसंगतियाँ उत्पन्न होंगी।
- कृषि पर प्रभाव – ग्रीन हाउस प्रभाव से तापमान में वृद्धि होगी जिससे जलवायु परिवर्तन होगा, फसल उत्पादन व जन जीवन प्रभावित होगा।
प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2014 के बारे में आप क्या जानते हैं? बताइए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2014 विश्व स्तर पर निरन्तर हो रहा जलवायु परिवर्तन हमारे लिए एक चिंता का विषय बना हुआ है। यह मानव जीवन एवं उसके अस्तित्व से जुड़ी हुई एक गम्भीर वैश्विक समस्या है।
इस समस्या की ओर ध्यान देने के लिए दक्षिण अमेरिकी देश पेरू की राजधानी लीमा में एक जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी संयुक्त । राष्ट्र संघ जलवायु धार्मिक सम्मेलन कोप-20 का आयोजन 1 से 14 दिसम्बर 2014 के मध्य किया गया। इस सम्मेलन की मुख्य बातें निम्नलिखित थीं
(1) इस सम्मेलन में विश्व के 194 देशों के प्रतिनिधियों सहित विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं, गैर सरकारी संगठनों के 12500 राजनीतिज्ञों, जलवायु कार्यकर्ताओं एवं मीडिया कर्मियों ने भाग लिया तथा जलवायु परिवर्तन की समस्या और उसके समाधान पर गम्भीरतापूर्वक चर्चा की।
(2) पीस के पर्यावरण मंत्री मैनुएल पुलगर विदाल ने इस सम्मेलन की अध्यक्ष की। भारत की ओर से पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस सम्मेलन में भाग लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव बान की मून ने इस सम्मेलन को सम्बोधित किया।
(3) इस सम्मेलन में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कटौती के राष्ट्रीय संकल्पों के लिए आम सहमति वाले प्रारूप को स्वीकृति प्राप्त हुई।
(4) सम्मेलन में भारत के लिए सबसे बड़ी सफलता यह थी कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कटौती के राष्ट्रीय संकल्पों के लिए बने सहमति प्रारूप में भ्रास्त,की सभी बातों को मानते हुए विकासशील देशों की चिन्ताओं का समाधान किया गया है। विकसित देशों को अधिक कठोर वित्तीय मदद की प्रतिबद्धतायें करने व सन् 2020 में हरित जलवायु कोष बढ़ाकर 100 अरब डालर प्रतिवर्ष करने का स्पष्ट अधिकार प्रदान किया गया है।
(5) समझौते के अनुसार सभी संयुक्त राष्ट्र संघ देश अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को पेरिस सम्मेलन में प्रस्तुत करेंगे।
प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र संघ जलवायु परिवर्तन के पेरिस सम्मेलन 2015 पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन हमारे जीवन व अस्तित्व से जुड़ी एक गंभीर वैश्विक समस्या है। इसके कारण विश्व में अनेक विकट समस्याएँ उभरकर सामने आ रही हैं। जैसे कि प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ता प्रकोप, मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव, घातक बीमारियों का प्रकोप, पशु-पक्षियों के अस्तित्व को खतरा, द्वीपों का अस्तित्व संकटग्रस्त आदि।
इन सभी समस्याओं की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित करने के लिए पहली बार वैश्विक स्तर पर 5 से 16 जून 1972 के मध्य स्टॉकहोम (स्वीडन) में मानवीय पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन हुआ। स्टॉकहोम सम्मेलन की बीसवीं वर्षगाँठ पर 1992 में रियोडिजनेरियो (ब्राजील) में संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी सम्मेलन हुआ। इसी सम्मेलन में हस्ताक्षरित यू.एन.सी.सी.सी. संधि के तहत जलवायु परिवर्तन पर पहला संयुक्त सम्मेलन (कोप) 1995 में बर्लिन (जर्मनी) में हुआ।
तब से इसके निरन्तर वार्षिक सम्मेलन हो रहे हैं। इसी क्रम में 21 वां वार्षिक सम्मेलन पेरिस में संपन्न हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ जलवायु परिवर्तन का पेरिस सम्मेलन: यह सम्मेलन 30 नवम्बर से 12 दिसम्बर तक फ्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित किया गया। यह 21 वां वार्षिक सम्मेलन कोप – 21 के नाम से जाना गया। इसकी प्रमुख बातें निम्नलिखित रहीं
- 175 देशों के प्रतिनिधियों ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किये। भारत की ओर से पर्यावरण मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- यह किसी एक दिन में विश्व के इतनी बड़ी संख्या में देशों की ओर से किसी समझौते पर हस्ताक्षर का रिकॉर्ड है। इससे पहले 1982 में 119 देशों ने समुद्री सुरक्षा से जुड़ी संविदा पर हस्ताक्षर किये थे।
- हस्ताक्षर के बाद सभी देशों को अपने देश की संसद से इस समझौते का अनुमोदन कराना था।
- विश्व के कम से कम उन 55 देशों के अनुमोदन के बाद, जो कि 55 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिये उत्तरदायी थे, इसे 30 दिनों के अन्दर लागू किया जाना था।
- सदस्य देशों ने 21 वीं सदी में विश्व के तापमान में वृद्धि को दो डिग्री से कम स्तर तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा है।
- भारत ने जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन में कटौती के साथ 2022 तक 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
भारतीय प्रधानमंत्री के शब्दों में: “पेरिस समझौते में न कोई विजेता है न ही किसी की हार हुई। पर्यावरण को लेकर न्याय की जीत हुई है। हम सब एक हरे भरे भविष्य पर काम कर रहे हैं।” फ्रांस के राष्ट्रपति ने इसे धरती के लिये महान दिन’ कहा।
उन्होंने कहा कि पेरिस ने कई शताब्दियों से अनेक क्रान्तियाँ देखी हैं आज सबसे खूबसूरत व शान्तिपूर्ण क्रान्ति हुई है। भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि यह एक समझौता नहीं, सात अरब लोगों के जीवन में एक नया अध्याय है। भारत ने 2 अक्टूबर 2016 से समझौते की क्रियान्वित हेतु प्रक्रिया आरम्भ कर दी।
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