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RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

June 21, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

RBSE Class 12 Political Science Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 2 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन, कब, क्या, कैसे प्राप्त करता है’-पुस्तक के लेखक हैं
(अ) कैटलिन
(ब) लासवेल
(स) मैकाइवर
(द) लास्की।

प्रश्न 2.
शक्ति दूसरे के आचरण को अपने लक्ष्य के अनुसार प्रभावित करने की क्षमता है-यह कथन किसका है?
(अ) आर्गेन्सकी
(ब) लासवेल
(स) बायर्सटेड
(द) थॉमस हॉब्स।

प्रश्न 3.
‘सत्ता आदेश पालन करने का अधिकार और आदेश पालन करवाने की शक्ति है-यह कथन किसका है?
(अ)प्लेटो
(ब) मोस्का
(स) हेनरी फेयोल
(द) मैकाले।

प्रश्न 4.
इनमें से कौन-सा सत्ता का रूप नहीं है?
(अ) परम्परागत सत्ता
(ब) करिश्माई सत्ता
(स) कानूनी तर्कसंगत सत्ता
(द) सैनिक सत्ता

प्रश्न 5.
लैटिन भाषा के शब्द ‘लेजिटीमश’ का अर्थ है(
अ) लॉफुल
(ब) हार्मफुल
(स) अथॉरिटी
(द) पावरफुल

उत्तरमाला:
1. (ब) 2. (अ) 3. (स) 4. (द) 5. (अ)

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

RBSE Class 12 Political Science Chapter 2 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
टॉमस हॉब्स की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम बताइए।
उत्तर:
टॉमस हॉब्स की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम लेवियाथन’ है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान को शक्ति का विज्ञान कौन-सा विद्वान मानता है?
उत्तर:
कैटलिन ने राजनीति विज्ञान को शक्ति का विज्ञान माना है।

प्रश्न 3.
शक्ति के कोई दो रूप लिखिये।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान में शक्ति का विस्तृत प्रयोग होता है। शक्ति के दो रूप निम्नलिखित हैं

  1. राजनीतिक शक्ति,
  2. आर्थिक शक्ति।

प्रश्न 4.
सत्ता की स्वीकृति या पालन के दो लोकप्रिय आधार बताइए।
उत्तर:
सत्ता की स्वीकृति या पालन के दो लोकप्रिय आधार निम्नलिखित हैं

  1. विश्वास
  2. एकरूपता।

प्रश्न 5.
वैधता प्राप्ति के दो साधन कौन से हो सकते हैं?
उत्तर:
वैधता प्राप्ति के प्रमुख दो साधन हो सकते हैं

  1. मतदान
  2. जनमत।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैचारिक शक्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैचारिक शक्ति से आशय – वैचारिक शक्ति से आशय विचारों के उस समूह से है जिसके आधार पर वैचारिक दृष्टिकोण का विकास होता है। यह लोगों के सोचने, समझने के ढंग को प्रभावित करती है। यह विचारधारा किसी शासन व्यवस्था को लोगों की दृष्टि में उचित ठहराती है, इसलिए उसे वैधता प्रदान करती है। अलग – अलग देशों में अलग-अलग सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विचारधाराएँ हैं। इन्हें उचित ठहराने के लिए उदारवाद, साम्यवाद, समाजवाद, एकात्म मानववाद आदि अनेक विचारधाराओं का सहारा लिया जाता है।

प्रश्न 2.
शक्ति के सन्दर्भ में ‘नारीवादी सिद्धान्त’ क्या है?
उत्तर:
शक्ति के सन्दर्भ में नारीवादी सिद्धांत-शक्ति संरचना के सम्बन्ध में एक प्रमुख सिद्धान्त ‘नारीवादी सिद्धान्त’ है। इस सिद्धान्त की मान्यता है कि समाज में शक्ति के विभाजन को आधार लैंगिक है। समाज में सम्पूर्ण शक्ति पुरुषों के पास है पुरुष महिलाओं के ऊपर इसका प्रयोग करते हैं। अत: इस आधार पर यूरोप में नारी मुक्ति के आन्दोलन प्रारम्भ हुए जो पुरुष प्रभुत्व का अन्त करना चाहते हैं। यूरोप में एक लम्बे संघर्ष के पश्चात महिलाओं को बराबरी एवं मताधिकार का दर्जा प्राप्त हुआ, किन्तु भारतीय परम्परा पश्चिम से भिन्न है। भारत में महिलाओं को प्रारम्भ से ही उच्च स्थान प्राप्त हो रहा है। यहाँ महिलाओं को स्वाधीनता के साथ मताधिकार और निर्वाचित होने का अधिकार प्राप्त रहा है।

प्रश्न 3.
लोकहितकारी सत्ता को समझाइए।
उत्तर:
लोकहितकारी सत्ता-लोकहितकारी सत्ता लोकहित सत्ता पालने का एक महत्वपूर्ण आधार है। लोकहितकारी सत्ता से अभिप्राय सत्ता के उस रूप से है जिसमें सत्ता का पालन इसलिए किया जाता है कि उसके पालन में लोकहित छिपा है। हम राज्य के अधिकांश कानूनों का पालन केवल दण्डशक्ति के दबाव में नहीं अपितु इसलिए करते हैं कि वे लोकहित (आम जनता के हित) को बढ़ावा देते हैं। जैसे-कर जमा करना, यातायात नियमों का पालन आदि।

प्रश्न 4.
मैक्स वेबर ने सत्ता के कितने रूप बताये हैं? लिखिए।
उत्तर:
मैक्स वेबर के अनुसार सत्ता के रूप-प्रसिद्ध समाज वैज्ञानिक मैक्स वेबर ने सत्ता के निम्न तीन रूपों का उल्लेख किया है

  1. परम्परागत सत्ता – परम्परागत सत्ता से अभिप्राय यह है कि सत्ता व्यक्ति या वंश परम्परा के अनुसार प्रयोग में आती है। इस सत्ता में तर्क एवं बुद्धिसंगतता का अभाव रहता है। जैसे-घर में वृद्धजनों की सत्ता।
  2. करिश्माई सत्ता – इस प्रकार की सत्ता व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों और चमत्कार पर आधारित होती है। इसमें जनता सम्बद्ध व्यक्ति के आदेश पर बड़े से बड़ा त्याग करने को तैयार रहती है। इसका आधार जन भावनाएँ होती हैं, जैसे – महात्मा गाँधी, पं. जवाहर लाल नेहरू, अटल बिहारी वाजपेई, नरेन्द्र मोदी आदि करिश्माई सत्ता के उदाहरण हैं।
  3. कानूनी, तर्कसंगत सत्ता – इस प्रकार की सत्ता का आधार पद होता है। उस पद में कानूनन जो सत्ता निहित होती है, उस पद को प्राप्त करने वाला उस सत्ता का प्रयोग करता है। जैसे – प्रधानमंत्री की सत्ता, कलेक्टर की सत्ता, शिक्षक की सत्ता आदि। इस प्रकार की सत्ता का प्रयोग करने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व यदि चमत्कारी है तो वह असीमित सत्ता का प्रयोग कर सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

RBSE Class 12 Political Science Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शक्ति की अवधारणा पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
शक्ति की अवधारणा:
शक्ति राजनीति का केन्द्र बिन्दु है। अतः राजनीति विज्ञान में शक्ति की अवधारणा का विशेष महत्व है। राज्य के नियमों, निर्णयों, अधिकारों तथा कर्तव्यों के पालन के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। प्राचीनकाल में सैनिक शक्ति का विशेष महत्व होता था किन्तु वर्तमान में राजनीतिक शक्ति को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राचीन भारतीय विचारकों ने शक्ति के विविध पक्षों का उल्लेख किया था। प्राचीन भारतीय विचारकों मनु और कौटिल्य ने दण्ड के रूप में शक्ति की अवधारणा को स्वीकारा है।

यूरोपीय चिन्तन के अन्तर्गत यूनानी दार्शनिक प्लेटो व अरस्तू ने अपने ग्रन्थों में शक्ति के महत्व को स्वीकारा है। मैकियावली, हॉब्स, कैटलिन, नीत्से, चार्ल्स मेरियम, हैराल्ड लॉसवेल, मार्गेन्थाऊ, मैकाइवर, आर्गेन्सकी, रसेल व बेकर आदि विद्वानों ने भी शक्ति को मौलिक सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया है। मैकियावली को प्रथम शक्तिवादी विचारक माना जाता है।

आधुनिक राजनीति विज्ञान में चार्ल्स मेरियम ने शक्ति के विविध पक्षों की व्याख्या की है। कैटलिन ने राजनीति विज्ञान को शक्ति का विज्ञान कहा है। इन्होंने लिखा है “राजनीति प्रतियोगिता का ऐसा क्षेत्र है। जिसमें शक्ति प्राप्ति के लिए व्यक्तियों के मध्य निरन्तर संघर्ष चलता रहता है।” लासवेल ने राजनीति विज्ञान में शक्ति को एक अपरिहार्य तत्व माना है। इन्होंने बताया कि एक प्रक्रिया के रूप में समाज में शक्ति की क्रियाशीलता राजनीति विज्ञान की विषय वस्तु है।।

मैकाइवर ने अपनी पुस्तक ‘दि वेब ऑफ गवर्नमेण्ट’ में शक्ति की परिभाषा करते हुए लिखा है, ‘शक्ति किसी भी सम्बन्ध के अन्तर्गत ऐसी क्षमता है जिसमें दूसरों से कोई काम लिया जाता है या आज्ञापालन कराया जाता है।’ आर्गेन्सकी के अनुसार, “शक्ति दूसरे के आचरण को अपने लक्ष्यों के अनुसार प्रभावित करने की क्षमता है।

” राबर्ट बायर्सटेड के अनुसार, “शक्ति बल प्रयोग की योग्यता है न कि उसका वास्तविक प्रयोग।” एडवर्ड शिल्स के अनुसार, “शक्ति अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता है।” कार्ल जे. फ्रेडरिक के अनुसार, “शक्ति एक प्रकार का मानवीय सम्बन्ध है।” स्पष्ट है कि शक्ति राजनीति विज्ञान की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है।

वस्तुतः जिसके पास शक्ति है, वह दूसरे के कार्यों, व्यवहारों व विचारों को अपने अनुकूल बना सकता है। आधुनिक विचारकों ने शक्ति का अभिप्राय कुछ करने की शक्ति से लिया है अर्थात् जब कोई व्यक्ति अपने लिए अथवा समाज के लिए कुछ करता है तो वह शक्ति का प्रयोग करता है।

प्रश्न 2.
सत्ता क्या है? इसके विविध रूप बताते हुए स्पष्ट कीजिए कि हम इसका पालन क्यों करते हैं?
उत्तर:
सत्ता से आशय – आधुनिक राजनीतिक अवधारणा में सत्ता का विशेष महत्व है। सत्ता किसी व्यक्ति, संस्था, नियम या आदेश का ऐसा गुण है जिसके कारण उसे सही मानकर स्वेच्छा से उसके निर्देशों का पालन किया जाता है। वस्तुतः जब शक्ति के साथ वैधता जुड़ जाती है, तब वह सत्ता कहलाती है अर्थात् वैध शक्ति ही सत्ता है। सत्ता को अंग्रेजी में ‘Authority’ कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द आक्टोरिटस (Auctoritas) से हुई है।

जिसका शाब्दिक अर्थ है-बढ़ाना विभिन्न विद्वानों ने सत्ता को निम्नानुसार परिभाषित किया है वायर्सटेड के अनुसार-“सत्ता शक्ति के प्रयोग का संस्थात्मक अधिकार है।” हेनरी फेयोल के अनुसार -“ सत्ता आदेश देने का अधिकार और आदेश पालन करवाने की शक्ति है।” पीटरसन के अनुसार, “आदेश देने व उसके पालन की आज्ञा देने के अधिकार को सत्ता कहते हैं।” सत्ता के विविध रूप-समाज वैज्ञानिक मैक्स वेबर ने सत्ता के निम्न तीन रूपों का उल्लेख किया है

  1. परम्परागत सत्ता-यह सत्ता किसी व्यक्ति या वंश द्वारा परम्परानुसार प्रयोग की जाती है; जैसे-घर के वरिष्ठतम व्यक्ति की सत्ता।
  2. करिश्माई सत्ता-यह सत्ता व्यक्ति को उसके करिश्माई व्यक्तित्व से प्राप्त होती है। इस सत्ता में भावना प्रधान होती है। जैसे-इन्दिरा गाँधी, महात्मा गाँधी, अटल बिहारी वाजपेयी, नरेन्द्र मोदी आदि की सत्ता।
  3. कानूनी या तर्कसंगत सत्ता-इस सत्ता का आधार पद होता है। उस पद में कानून की जो सत्ता निहित होती है, उसको धारण करने वाला व्यक्ति उसका उपयोग करता है। जैसे – प्रधानमन्त्री या कलेक्टर की सत्ता। सत्ता का पालन हम क्यों करते हैं?
    वस्तुतः सत्ता का पालन करने के निम्न आधार होते हैं

    • विश्वास – सत्ताधारी के प्रति विश्वास सत्ता पालन का प्रमुख आधार है। यह विश्वास जितना गहरा होगा, सत्ताधारी के आदेश का उतनी ही सरलता से पालन होगा। इसके लिए उसे शक्ति के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होगी।
    • एकरूपता – वैचारिक या आदर्शों की एकरूपता व्यक्ति को स्वत: आज्ञापालन के लिए प्रेरित करती है।
    • लोकहित – राज्य के वे कानून लोगों द्वारा स्वेच्छा से माने जाते हैं जिनमें जनकल्याण छिपा होता है; जैसे-यातायात नियमों का पालन।
    • दबाव – जब व्यक्ति सत्ता का पालन सामान्य स्थिति में नहीं करता तो दबाव ही एक ऐसा माध्यम बचता है जो आदेशों का पालन करवाता है।

प्रश्न 3.
शक्ति, सत्ता और वैधता में अन्तर्सम्बन्धों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
शक्ति, सत्ता और वैधता में अन्र्तसम्बन्ध: शक्ति, सत्ता और वैधता राजनीति विज्ञान की महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं। ये एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध हैं। शक्ति के साथ जब वैधता जुड़ जाती है तब वह सत्ता कहलाती है। वस्तुतः वैध शक्ति ही सत्ता होती है। इन तीनों के अन्तर्सम्बन्ध को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है

(i) राजव्यवस्था की रचना में भूमिका:
शक्ति का तत्व राजव्यवस्था को भौतिक आधार प्रदान करता है, सत्ता उसे वैधानिक आधार प्रदान करती है और वैधता उसे नैतिक आधार प्रदान करती है। इनकी अलग-अलग भूमिकाएँ हैं किन्तु ये तीनों मिलकर ही किसी राजव्यवस्था को पूर्णता प्रदान करती हैं।

(ii) राजव्यवस्था के संचालन में भूमिका:
राजव्यव्स्था के संचालन में सत्ता एक कर्ता की भूमिका निभाती है। वह राजव्यवस्था को वैधानिक व्यक्तित्व प्रदान करती है। शक्ति और वैधता क्रमशः साधन व साध्य की भूमिका निभाते हैं।

एक वैधानिक शक्ति के रूप में सत्ता कुछ निश्चित मूल्यों की प्राप्ति के लिए शक्ति को एक माध्यम के रूप में प्रयुक्त करती है। राज्यव्यवस्था के ये मूल्य वैधता द्वारा तय किए जाते हैं। इस प्रकार राजव्यवस्था में वैधता अर्थात औचित्यपूर्णता की भूमिका साध्य की होती है।

(iii) मानव स्वभाव की दृष्टि से:
शक्ति, सत्ता और वैधता का सम्बन्ध मानव की विभिन्न प्रवृतियों से है। मानव स्वभाव में शक्ति के प्रति एक विशेष आकर्षण एवं लालसा रहती है। जो व्यक्तियों और संस्थाओं के मध्य शक्ति संघर्ष को जन्म देती है। इस शक्ति संघर्ष को सीमित और नियमित करने का कार्य मनुष्य की सामाजिकता की प्रवृत्ति करती है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

इस प्रवृति का विकसित रूप ही सत्ता है। यह सत्ता समाज में व्यवस्था के लिए शक्ति को साधन बना लेती है और उस पर वैधानिक नियंत्रण रखती है किन्तु मानव की एक अन्य प्रवृत्ति केवल व्यवस्था से संतुष्ट नहीं होती, वह व्यवस्था को न्यायपूर्ण और विवेकपूर्ण भी देखना चाहती है। मनुष्य की यह प्रवृत्ति ही वैधता के रूप में प्रकट होती । इस प्रकार शक्ति और वैधता में सीधा सम्बन्ध नहीं होता। इनको परस्पर जोड़ने का कार्य सत्ता करती है।

वैधता ही शक्ति और सत्ता को न्यायसंगत बनाती है जब सत्ता और वैधता में घनिष्ठता होती है तो सत्ता द्वारा शक्ति का कम प्रयोग किया जाता है। जब सत्ता और वैधता में उचित सामंजस्य नहीं होता तब सत्ता द्वारा शक्ति का अधिक उपयोग करने की आवश्यकता होती है। वैधता के अभाव में शक्ति और सत्ता दोनों ही अनैतिक होती हैं।

वैधता वास्तव में शक्ति और सत्ता के बीच की कड़ी है। कोई भी शासक शक्ति के आधार पर व्यक्ति को बाह्य रूप से नियन्त्रित कर सकता है। लेकिन वैधता के आधार पर वह लोगों के हृदय पर शासन नहीं कर सकता है। स्पष्ट है कि शक्ति, सत्ता और वैधता अन्तर्सम्बन्धित हैं।शक्ति के बिना समाज में शान्ति, व्यवस्था, न्याय और खुशहाली नहीं लाई जा सकती। किन्तु शक्ति की भूमिका वहाँ ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध होती है

जहाँ शक्ति बल प्रयोग ने करके वैधता के साथ जुड़कर सत्ता का रूप धारण कर लेती है। समाज में व्यवस्था बनाये रखने के लिए वैधता और शक्ति एक – दूसरे के पूरक के रूप में भूमिका अदा करती हैं। वास्तविकता यह है कि जब शासक की शक्ति, सत्ता का रूप लेती है, तब वह उसका अधिकार बन जाती है। चूंकि सत्ता में वैधता जुड़ी है, अतएव नागरिकों के लिए आज्ञा पालन उनका कर्तव्य बन जाता है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 2 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Political Science Chapter 2 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यूरोपीय चिन्तन में प्रथम शक्तिवादी विचारक माना जाता है
(अ) कैटलिन
(ब) हॉब्स
(स) मैकियावली
(द) मार्गेन्थाऊ।

प्रश्न 2.
‘दि वेब ऑफ गवर्नमेण्ट’ नामक पुस्तक के लेखक हैं
(अ) मैकाइवर
(ब) आर्गेन्सकी
(स) कैप्लान
(द) लासवेल।

प्रश्न 3.
निम्न में से जो राजनीतिक शक्ति का अनौपचारिक अंग है, वह है
(अ) व्यवस्थापिका
(ब) कार्यपालिका
(स) न्यायपालिका
(द) राजनीतिक दल।

प्रश्न 4.
शक्ति के वर्ग – प्रभुत्व सिद्धान्त को सम्बन्ध है
(अ) समाजवाद से
(ब) मार्क्सवाद से
(स) उदारवाद से
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

प्रश्न 5.
सत्ता शक्ति के प्रयोग का संस्थात्मक अधिकार है – यह कथन किसका है?
(अ) हेनरी फेयोल का
(ब) वायर्सटेड का
(स) कार्ल मार्क्स का
(द) टॉमस हॉब्स का।

प्रश्न 6.
सत्ता पालन का बाध्यकारी आधार है
(अ) विश्वास
(ब) एकरूपता
(स) लोकहित
(द) दबाव।

प्रश्न 7.
परिवार में वृद्धजनों को प्राप्त सत्ता किस प्रकार की सत्ता है?
(अ) परम्परागत सत्ता
(ब) करिश्माई सत्ता
(स) कानूनी सत्ता
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 8.
“इच्छा, न कि बल राज्य का आधार होता हैं”- यह कथन किसका है?
(अ) मैक्स वेबर का
(ब) टी.एच.ग्रीन का
(स) हॉब्स का
(द) लॉक का।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

प्रश्न 9.
शक्ति या बल प्रयोग पर आधारित शासन तंत्र है
(अ) अधिनायक तंत्र
(ब) लोकतंत्र
(स) कुलीन तंत्र
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 10.
लोकतंत्र को प्रधान लक्षण है
(अ) सत्ता
(ब) वैधता
(स) शक्ति
(द) इनमें से कोई नहीं

उत्तर:
1. (स), 2. (अ), 3. (द), 4. (ब), 5. (ब), 6. (द), 7. (अ), 8. (ब), 9. (अ), 10. (ब)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 2 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन भारतीय चिंतन में शक्ति के विविध तत्वों पर किन-किन विद्वानों ने प्रकाश डाला?
उत्तर:
मनु, कौटिल्य व शुक्र ने।

प्रश्न 2.
यूरोपीय चिंतन में प्रथम शक्तिवादी विचारक किसे माना जाता है?
उत्तर:
मैकियावली को।

प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड के किस विद्वान ने 1651 ई. में राज्य और राजनीति के क्षेत्र में शक्ति के महत्व को रेखांकित किया?
उत्तर:
टामस हॉब्स ने।

प्रश्न 4.
आधुनिक राजनीति विज्ञान की एक प्रमुख विशेषता बताइए।
उत्तर:
शक्ति पर विशेष बल देना।

प्रश्न 5.
आधुनिक राजनीति विज्ञान के प्रणेता कौन थे?
उत्तर:
चार्ल्स मेरियम।

प्रश्न 6.
शक्ति की अवधारणा पर अपने विचार रखने वाले किन्हीं चार विचारकों के नाम बताइये।
उत्तर:
शक्ति की अवधारणा पर अपने विचार रखने वाले चिन्तकों में कैटलिन, लासवेल, कैप्लान तथा मार्गेन्थाऊ के नाम महत्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 7.
“राजनीति विज्ञान शक्ति का विज्ञान है।” यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
कैटलिन का।

प्रश्न 8.
मेकाइवर के अनुसार शक्ति को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मेकाइवर के अनुसार, “शक्ति किसी भी सम्बन्ध के अन्तर्गत ऐसी क्षमता है, जिसमें दूसरों से कोई काम लिया जाता है या आज्ञा पालन कराया जाता है।”

प्रश्न 9.
“शक्ति दूसरे के आचरण को अपने लक्ष्यों के अनुसार प्रभावित करने की क्षमता है।” यहकिसका कथन है?
उत्तर:
आर्गेन्सकी का।

प्रश्न 10.
राबर्ट वायर्सटेड ने शक्ति की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
राबर्ट वायर्सटेड के अनुसार, “शक्ति बल प्रयोग की योग्यता है, न कि उसका वास्तविक प्रयोग।”

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

प्रश्न 11.
समकालीन राजनीतिक चिन्तन में शक्ति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समकालीन राजनीतिक चिन्तन में शक्ति का अभिप्राय है – कुछ करने की शक्ति अर्थात् जब कोई व्यक्ति स्वयं अपने लिए अथवा समाज के लिए कोई कार्य करता है, तब वह इसी अर्थ में शक्ति का प्रयोग करता है।

प्रश्न 12.
शक्ति की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. शक्ति दमनात्मक होती है।
  2. शक्ति का प्रयोग किसी के खिलाफ उसकी इच्छा के विरुद्ध भी किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
शक्ति और बल में कोई दो अंतर बताइए?
उत्तर:

  1. शक्ति प्रछन्न बल है जबकि बल प्रकट शक्ति है।
  2. शक्ति अप्रकट तत्व है जबकि बल प्रकट तत्व है।

प्रश्न 14.
शक्ति और प्रभाव में कोई दो अंतर बताइए।
उत्तर:

  1. शक्ति दमनात्मक होती है जबकि प्रभाव मनोवैज्ञानिक होता है।
  2. शक्ति अप्रजातांत्रिक तत्व है जबकि प्रभाव पूर्णतया प्रजातांत्रिक है।

प्रश्न 15.
शक्ति के विविध रूपों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शक्ति के तीन रूप हैं

  1. राजनीतिक शक्ति
  2. आर्थिक शक्ति तथा
  3. विचारधारात्मक शक्ति

प्रश्न 16.
राजनीतिक शक्ति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
राजनीतिक शक्ति से तात्पर्य है – समाज के मूल्यवान संसाधनों; जैसे- पद, प्रतिष्ठा, कर, पुरस्कार व दण्ड आदि का समाज के विभिन्न समूहों में आवंटन करना।

प्रश्न 17.
सामान्यतया राजनीतिक शक्ति का प्रयोग सरकार के कौन – कौन से अंग करते हैं?
उत्तर:
व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका।।

प्रश्न 18.
शक्ति के अनौपचारिक अंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
दबाव समूह, राजनीतिक दल एवं प्रभावशाली व्यक्ति।

प्रश्न 19.
आर्थिक शक्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
आर्थिक शक्ति को अर्थ है – उत्पादन के साधनों एवं धन सम्पदा पर स्वामित्व।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

प्रश्न 20.
शक्ति – संरचना के प्रमुख सिद्धान्त कौन – कौन से हैं?
उत्तर:

  1. वर्ग – प्रभुत्व को सिद्धान्त
  2. विशिष्ट वर्गीय सिद्धान्त
  3. नारीवादी सिद्धान्त
  4. बहुलवादी सिद्धान्त।

प्रश्न 21.
मार्क्सवाद की अवधारणा का मूल क्या है?
उत्तर:
मार्क्सवाद के अनुसार व्यक्ति को प्रत्येक कार्य आर्थिक स्वार्थ से प्रेरित होकर किया जाता है। इस आधार पर मार्क्सवाद की मान्यता है कि माँ अपने बच्चे का पालन – पोषण अथवा सन्तान अपने माता-पिता की सेवा केवल आर्थिक हितों के लिए ही करते हैं।

प्रश्न 22.
बहुलवादी सिद्धान्त की अवधारणा क्या है?
उत्तर:
बहुलवादी सिद्धान्त के अनुसार समाज की सम्पूर्ण शक्ति किसी एक वर्ग के हाथ में न होकर अनेक समूहों में बँटी हुई होती है।

प्रश्न 23.
शक्ति की भारतीय अवधारणा क्या है?
उत्तर:
शक्ति की भारतीय अवधारणा उत्तरदायित्व पर आधारित है जिसके अनुसार शक्तिशाली होने का अर्थ है – सार्वजनिक हित के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करना। इसमें शक्तिहीन को शक्ति सम्पन्न बनाकर समतावादी समाज की स्थापना पर बल दिया जाता है।

प्रश्न 24.
हेनरी फियोल के अनुसार सत्ता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
हेनरी फियोल के अनुसार, “सत्ता आदेश देने का अधिकार और आदेश का पालन करवाने की शक्ति है।”

प्रश्न 25.
सत्ता पालन के प्रमुख आधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सत्ता पालन के प्रमुख आधार हैं-विश्वास, एकरूपता, लोकहित तथा दबाव।

प्रश्न 26.
सत्ता के प्रमुख रूपों का उल्लेख कीजिए। अथवा मैक्स वेबर ने सत्ता के कौन – कौन से रूप माने हैं?
उत्तर:
मैक्सवेबर ने सत्ता के तीन रूप माने हैं –

  1. परम्परागत सत्ता
  2. करिश्माई सत्ता
  3. कानूनी, तर्कसंगत सत्ता।

प्रश्न 27.
शिक्षक की सत्ता किस प्रकार की सत्ता का एक उदाहरण है?
उत्तर:
कानूनी तर्कसंगत सत्ता का उदाहरण

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

प्रश्न 28.
प्लेटो तथा अरस्तू ने वैधता को किस प्रकार सिद्ध करने का प्रयास किया है?
उत्तर:
प्लेटो ने अपने न्याय सिद्धान्त द्वारा तथा अरस्तू ने संवैधानिक शासन द्वारा वैधता को सिद्ध करने का प्रयास किया है।

प्रश्न 29.
वैधता प्राप्त करने के प्रमुख साधन कौन – कौन से हैं?
उत्तर:
वैधता प्राप्त करने के प्रमुख साधन हैं – मतदान, जनमत, संचार के साधन, राष्ट्रवाद आदि।

प्रश्न 30.
किस शासन व्यवस्था में वैधता का महत्व सर्वाधिक है?
उत्तर:
लोकतंत्र में

प्रश्न 31.
अधिनायकतन्त्र किस प्रकार की शासन व्यवस्था है?
उत्तर:
अधिनायक तन्त्र दमनात्मक शासन व्यवस्था है जो शक्ति या बल प्रयोग पर आधारित होती है।

प्रश्न 32.
वैधता को प्रभावित करने वाले किन्हीं दो कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वैधता को प्रभावित करने वाले प्रमुख दो कारक निम्नलिखित हैं

  1. नवीन समूहों को राजनीति में प्रवेश
  2. राजनीतिक व्यवस्थाओं से अत्यधिक आकांक्षाएँ।

प्रश्न 33.
विपरीत परिस्थितियों में राजनीतिक व्यवस्थाएँ किस प्रकार वैधता के संकट का सामना करती हैं?
उत्तर:
विपरीत परिस्थितियों में राजनीतिक व्यवस्थाएँ निम्न तरीकों द्वारा वैधता के संकट का सामना करती हैं

  1. नवीन व्यवस्था के अनुरूप ढलकर।
  2. परम्पराओं की रक्षा करके
  3. व्यक्तिगत गुणों के आधार पर।

प्रश्न 34.
शक्ति कब अधिक प्रभावशाली बनती है?
उत्तर:
शक्ति तब अधिक प्रभावशाली होती है जब वह केवल बल प्रयोग का साधन नहीं अपितु वैधता के साथ जुड़कर सत्ता का रूप धारण कर लेती है।

प्रश्न 35.
लोकतान्त्रिक व्यवस्था में वैधता का आधारभूत प्रमाण क्या है?
उत्तर:
लोकतान्त्रिक व्यवस्था में वैधता का आधारभूत प्रमाण जनता की सहभागिता को माना जाता है।

प्रश्न 36.
सत्ता की प्रमुख सीमाएँ क्या हैं?
उत्तर:
सत्ता की कुछ सीमाएँ हैं जिससे उसका मनमाना प्रयोग न हो सके। सत्ता को देश के संवैधानिक कानूनों, वहाँ की संस्कृति, मूल्यों, परम्पराओं व नैतिक अवधारणाओं के सापेक्ष रहकर ही काम करना होता है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

RBSE Class 12 Political Science Chapter  2 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पाश्चात्य विचारधारा में शक्ति की अवधारणा को क्रमिक विकास कैसे हुआ?
उत्तर:
शक्ति राजनीति विज्ञान का केन्द्र बिन्दु है। अतः राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत शक्ति की अवधारणा का अत्यधिक महत्व है। पाश्चात्य विचारकों में मैकियावली को प्रथम शक्तिवादी विचारक माना जाता है। इसके पश्चात् टॉमस हॉब्स ने अपने ग्रन्थ ‘लेवियाथन’ में राज्य और राजनीति के क्षेत्र में शक्ति को महत्त्व दिया।

आधुनिक राजनीति विज्ञान के प्रमुख प्रणेता चार्ल्स मेरियम ने शक्ति के विविध पक्षों की व्याख्या की इसके पश्चात् शक्ति की अवधारणा को स्पष्ट करने में कैटलिन, लासवेल, कैप्लान, मार्गेन्थाऊ आदि विद्धानों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैटलिन ने राजनीति विज्ञान को शक्ति के विज्ञान के रूप में परिभाषित करते हुए कहा कि राजनीति प्रतियोगिता का एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें शक्ति प्राप्ति के लिए व्यक्तियों के बीच निरन्तर संघर्ष चलता रहता है।

प्रश्न 2.
शक्ति की अवधारणा के विषय में लासवेल की मान्यता क्या है?
उत्तर:
लासवेल ने अपनी पुस्तक कौन, कब, क्या, कैसे प्राप्त करता है (who gets, what, when, how) एवं कैटलान के साथ लिखित पुस्तक ‘पावर एण्ड सोसायटी’ में शक्ति सिद्धांत का विस्तृत वर्णन किया है। इन्होंने प्रतिपादित किया कि शक्ति की अवधारणा राजनीति विज्ञान का सबसे मौलिक सिद्धांत है और यह राजनीतिक प्रक्रियाओं के निर्माण एवं शक्तियों के प्रयोग व वितरण में विशिष्ट तत्व के रूप में कार्य करता है। लासवेल के अनुसार एक प्रक्रिया अथवा गतिविधि के रूप में शक्ति कैसे क्रियाशील रहती है, यही राजनीति विज्ञान की विषयवस्तु है।

प्रश्न 3.
शक्ति और बल में उदाहरण सहित अन्तर बताइये।
उत्तर:
शक्ति और बल में निम्नलिखित अन्तर हैं

  1. शक्ति प्रछन्न बल है जबकि बल प्रकट शक्ति है।
  2. शक्ति अप्रकट तत्व है जबकि बल प्रकट तत्व है।
  3. शक्ति एक मनोवैज्ञानिक क्षमता है जबकि बल एक भौतिक क्षमता है।

उदाहरणार्थ – पुलिस के पास अपराधी को दण्डित करने की शक्ति रहती है किन्तु जब वह उसे वास्तव में दण्ड देती है जो कि आर्थिक या शारीरिक कुछ भी हो सकता है, वह बल का प्रयोग करती है। दूसरे उदाहरण के रूप में देखें तो एक शिक्षक के पास विद्यार्थी को कक्षा से बाहर निकालने की शक्ति निहित रहती। है तथा जब वह वास्तव में ऐसा करता है तब उसकी शक्ति बल में परिवर्तित हो जाती है।

प्रश्न 4.
शक्ति और प्रभाव में क्या समानताएँ व असमानताएँ हैं?
उत्तर:
शक्ति और प्रभाव में निम्न समानताएँ व असमानताएँ हैंसमानताएँ-

  1. दोनों एक-दूसरे को सबलता प्रदान करते हैं अर्थात् दोनों एक – दूसरे के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  2. शक्ति और प्रभाव दोनों औचित्यपूर्ण हो जाने के पश्चात् ही प्रभावशाली होते हैं।
  3. प्रभाव शक्ति उत्पन्न करता है और शक्ति प्रभाव को बढ़ाती है। असमानताएँ (अन्तर)
    • शक्ति दमनात्मक होती है। उसके पीछे कठोर भौतिक बल होता है जबकि प्रभाव मनोवैज्ञानिक होता है।
    •  शक्ति का प्रयोग किसी के खिलाफ उसकी इच्छा के विरुद्ध भी हो सकता है जबकि प्रभाव सम्बन्धात्मक होता है। और इसकी सफलता प्रभावित व्यक्ति की सहमति पर निर्भर करती है।
    • शक्ति अप्रजातान्त्रिक तत्व है जबकि प्रभाव पूर्णतः प्रजातान्त्रिक तत्व है।
    • शक्ति को स्थिरता के लिए प्रभाव की आवश्यकता होती है जबकि प्रभाव को अपने अस्तित्व के लिए शक्ति के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 5.
राजनीतिक शक्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
राजनीतिक शक्ति – राजनीतिक शक्ति से आशय है समाज के मूल्यवान संसाधनों; जैसे – पद, प्रतिष्ठा, कर, पुरस्कार, दण्ड आदि का समाज के विभिन्न समूहों में वितरण  सामान्यतया राजनीतिक शक्ति का प्रयोग औपचारिक व अनौपचारिक रूप से होता है। जब राजनीतिक शक्ति का प्रयोग सरकार के विभिन्न अंग; यथा – व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका करते हैं तो उसे हम शक्ति के औपचारिक अंग कहते हैं। वहीं जब विभिन्न दबाव समूह, राजनीतिक दल तथा प्रभावशाली व्यक्ति सरकार की सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं तो उन्हें हम शक्ति के अनौपचारिक अंग के नाम से जानते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

प्रश्न 6.
आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति के परिप्रेक्ष्य में उदारवाद और मार्क्सवाद में क्या अन्तर है?
उत्तर:
आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति के परिप्रेक्ष्य में उदारवाद एवं मार्क्सवाद में निम्नलिखित अन्तर है

  1. उदारवाद के अनुसार राजनीतिक शक्ति को निर्धारित करने वाले समाज में अनेक तत्व होते हैं जिनमें आपस में अन्तर्निभरता रहती है। अकेला आर्थिक तत्व ही राजनीतिक शक्ति को निर्धारित नहीं करता।
  2. मार्क्सवाद का मानना है कि समस्त प्रकार की शक्ति आर्थिक शक्ति की नींव पर खड़ी है एवं आर्थिक शक्ति ही समाज में राजनीतिक शक्ति को निर्धारित करती है।

प्रश्न 7.
सामाजिक परिस्थिति के साथ वैचारिक परिवर्तन आवश्यक है – स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न देशों की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियाँ अलग – अलग होती हैं। इन परिस्थितियों में अलग-अलग प्रकार की विचारधाराएँ – उदारवाद, साम्यवाद एवं एकात्म मानववाद आदि प्रचलित हो जाती हैं किन्तु जब परिस्थितियों में परिवर्तन होता है, तो ये विचार पुराने पड़ जाते हैं। उनके अनुसार विचारों में भी परिवर्तन होना चाहिए किन्तु कुछ लोग अपने स्वार्थवश उन विचारों को बनाये रखना चाहते हैं जिसके लिए वे हिंसा का सहारा लेते हैं।

उदाहरणार्थ – मार्क्सवाद, साम्यवाद के नाम पर पूर्व सोवियत संघ व कम्बोडिया में हजारों हत्याएँ हुईं। माओवादीनक्सलवादी हिंसक कार्यवाही में संलग्न हैं। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में भी यह विसंगति देखने को मिलती है। भारत के केरल राज्य में मार्क्सवादी कार्यकर्ता अपने वैचारिक विरोधियों के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यवाही में सलंग्न हैं। वास्तव में सामाजिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन के साथ ही वैचारिक परिवर्तन भी आवश्यक है।

प्रश्न 8.
शक्ति के वर्ग – प्रभुत्व सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वर्गप्रभुत्व सिद्धान्त मूलत: माक्र्सवाद की देन है। इसके अनुसार आर्थिक आधार पर सग्गज दो वर्गों में बँटा है-

  1. बुर्जुआ वर्ग जो आर्थिक रूप से मजबूत होता है। तथा
  2. सर्वहारा वर्ग जो आर्थिक रूप से कमजोर होता है।
    इन दोनों वर्गों में निरन्तर संघर्ष चलता रहता है। इस सिद्धान्त के अनुसार, “अब तक का इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास रहा है।” मार्क्सवादी विचारधारा के अनुसार व्यक्ति का प्रत्येक कार्य आर्थिक स्वार्थ से जुड़ा होता है। चाहे वह माता द्वारा बच्चे का पालन-पोषण हो अथवा सन्तान द्वारा माता-पिता की सेवा।।

प्रश्न 9.
शक्ति के विशिष्ट वर्गीय सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शक्ति का विशिष्ट वर्गीय सिद्धान्त भी शक्ति के आधार पर समाज को दो वर्गों में बाँटता है-

  1.  विशिष्ट वर्ग जो शक्तिशाली होता है। तथा
  2. सामान्य वर्ग जिसके ऊपर शक्ति प्रयुक्त होती है। समाज को यह वर्ग विभाजन केवल आर्थिक आधार पर नहीं अपितु कुशलता, संगठन क्षमता, बुद्धिमत्ता, प्रबन्धन क्षमता, नेतृत्व क्षमता आदि के आधार पर भी होता है। इन विशेषताओं के आधार पर प्रत्येक प्रकार की शासन व्यवस्था में एक छोटा वर्ग होता है जो शक्तिशाली होता है और सामान्य जनों पर अपनी शक्ति का प्रयोग करता है। उदाहरण के रूप में देश के राजनेता, प्रशासक, उद्योगपति, प्रोफेसर, वकील, डॉक्टर आदि मिलकर एक वर्ग का निर्माण करते हैं जो सदैव शक्तिशाली बने रहते हैं चाहे औपचारिक रूप में किसी भी राजनीतिक दल की देश में सरकार क्यों न हो।

प्रश्न 10.
शक्ति के बहुलवादी सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शक्ति का बहुलवादी सिद्धांत एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह सिद्धान्त मानता है कि समाज की सम्पूर्ण शक्ति एक वर्ग विशेष के हाथ में न होकर अनेक समूहों में बँटी होती है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इन समूहों के मध्य सौदेबाजी चलती रहती है। इस प्रकार शक्ति के आधार पर समाज में शोषणकारी व्यवस्था नहीं होती। यही अवधारणा शक्ति के सम्बन्ध में भारतीय विचारकों की है। इनकी मान्यता है कि शक्तिशाली होने का अर्थ है-सार्वजनिक हित के लिए शक्ति का प्रयोग। इस प्रकार कमजोर वर्ग को शक्ति सम्पन्न बनाकर उन्हें समान स्तर पर लाना ही शक्ति है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

प्रश्न 11.
सत्ता का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसे परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
सत्ता का अर्थ और परिभाषाएँ-प्राचीनकाल से ही राजनीति विज्ञान में सत्ता की अवधारणा का विशेष महत्व रहा है। प्रायः समस्त राजनीतिक विचारकों ने सत्ता की अवधारणा का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष उल्लेख किया है। सत्ता के अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द ‘Authority’ की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द आक्टोरिटस (Auctoritas) से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है-बढ़ाना। सत्ता किसी व्यक्ति, संस्था, नियम या आदेश का ऐसा गुण है, जिसके कारण उसे सही मानकर स्वेच्छा से उसके निर्देशों का पालन किया जाता है।

शक्ति के साथ जब वैधता जुड़ती है तो वह सत्ता कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो वैध शक्ति ही सत्ता है। हेनरी फियोल के अनुसार -“सत्ता आदेश देने का अधिकार और आदेश का पालन करवाने की शक्ति है।” वायर्सटेड के अनुसार, “सत्ता शक्ति के प्रयोग का संस्थात्मक अधिकार है।” पीटरसन के अनुसार -“आदेश देने व उसके पालन की आज्ञा देने के अधिकार को सत्ता कहते हैं।”

प्रश्न 12.
सत्ता पालन के किन्हीं दो आधारों पर संक्षिप्त टिपपणी लिखिए।
उत्तर:
सत्ता पालन के दो प्रमुख आधार – सत्ता पालन के दो प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं
(i) विश्वास – सत्ता पालन का प्रमुख आधार विश्वास है। अधीनस्थ सत्ताधारी के प्रति विश्वास के कारण उसके आदेशों का पालन करते हैं। सत्ताधारी के प्रति अधीनस्थों का विश्वास जितना गहरा होता है। सत्ताधारी के आदेशों का पालन उतना ही सरल और शीघ्र होता है और उसके लिए उसे शक्ति के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होगी।

(ii) एकरूपता – सत्ता पालन का एक आधार सत्ताधारी और अधीनस्थों के मध्य वैचारिक एकरूपता का होना है। सामान्यतया व्यक्ति उन लोगों के परामर्श, सुझाव एवं आदेशों को अधिक महत्व देते हैं जो उनके साथ विचारों और आदेशों की एकरूपता रखते हैं। एकरूपता के महत्व को स्वीकार करते हुए ही राज्यव्यवस्थाएँ उदारवाद, साम्यवाद, समाजवाद या फाँसीवाद आदि में से अपने अनुकूल किसी विचारधारा का प्रतिपादन करती हैं तथा राजनीतिक नेतृत्व अपने अधीनस्थों और सामान्य नागरिकों को अपने अनुकूल ढालने का प्रयास करता है।

प्रश्न 13.
परम्परागत सत्ता और करिश्माई सत्ता में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परम्परागत सत्ता और करिश्माई सत्ता में अंतर – परम्परागत सत्ता और करिश्माई सत्ता में निम्नलिखित अंतर हैं-
परम्परागत सत्ता – इस प्रकार की सत्ता का आधार परम्पराएँ एवं इतिहास होता है। इसमें यह माना जाता है कि जो व्यक्ति या वंश परम्परा के अनुसार सत्ता का प्रयोग कर रहा है। सत्ता उसी के पास बनी रहनी चाहिए। इस प्रकार की सत्ता में तर्क व बुद्धिसंगतता का अभाव देखने को मिलता है। इस प्रकार की सत्ता का उदाहरण है – घर में वृद्धजनों की सत्ता।

करिश्माई सत्ता – इस प्रकार की सत्ता किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों व चमत्कार पर आधारित होती है। इसमें जनता उस व्यक्ति के निर्देश पर बड़े से बड़ा त्याग करने को तैयार रहती है। इसमें सत्ता का आधार भावनाएँ होती हैं। इस प्रकार की सत्ता का उदाहरण हैं-इन्दिरा गाँधी की सत्ता, अटलबिहारी वाजपेयी की सत्ता एवं नरेन्द्र मोदी की सत्ता आदि।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

प्रश्न 14.
वैधता अथवा औचित्यपूर्णता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
वैधता (औचित्यपूर्णता) का अर्थ एवं परिभाषाएँ – वैधता के अंग्रेजी पर्याय ‘Legitimacy’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द Legitimus’ से हुई है। मध्यकाल में इसे आँग्ल भाषा में ‘Lawful अर्थात् वैधानिक कहा गया है। अंग्रेजी भाषा ने Legitimacy शब्द का सामान्य अर्थ है कानून की दृष्टि से औचित्यपूर्ण होना। राजनीति विज्ञान की एक अवधारणा के रूप में औचित्यपूर्णता (वैधता) का सम्बन्ध कानून मात्र से नहीं होता बल्कि शासन और शक्ति के ऐसे मूल्यों एवं विश्वास से भी है जो शासन को न्यायसंगत बनाते हैं।

विभिन्न विद्वानों ने वैधता (औचित्यपूर्णता) को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है कार्ल जो फ्रेडरिक के अनुसार, “वैधता कानूनों और शासकों के न्यायसंगत होने का ऐसा प्रतीक है जो उनकी सत्ता में वृद्धि करता है। एस. एम. लिप्सैट के अनुसार -“औचित्यपूर्णता का अभिप्राय व्यवस्था की उस योग्यता और क्षमता से है जिसके द्वारा यह विश्वास उत्पन्न या स्थिर रखा जाता है

कि वर्तमान राजनीतिक संस्थाएँ समाज हेतु सर्वाधिक समुचित हैं।” वैधता की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि वैधता (औचित्यपूर्णता) का अर्थ उस सहमति से है जो लोगों द्वारा राजनीतिक व्यवस्था को दी जाती है। यदि किसी राजनीतिक व्यवस्था को लोगों को ऐसी स्वीकृति प्राप्त नहीं होती तब यह व्यवस्था अधिक समय तक अस्तित्व में नहीं रह सकती है।

प्रश्न 15.
वैधता का महत्व बताइए। अथवा औचित्यपूर्णता के महत्व को किस प्रकार समझा जा सकता है?
उत्तर:
वैधता / औचित्यपूर्णता का महत्व – वैधता / औचित्यपूर्णता के महत्व को निम्नानुसार समझा जा सकता है

  1. यह राजव्यवस्था का एक ऐसा गुण एवं आधार है जो उसे शासक और शासितों की दृष्टि में नैतिक एवं विवेक सम्मत बनाता है।
  2. यह शासकों को आत्म विश्वास प्रदान करता है और वे शासितों की आज्ञाकारिता के प्रति आश्वस्त रहते हैं।
  3. वैधता सम्पूर्ण राजव्यवस्था को स्थायित्व देती है परिणामस्वरूप उसके संचालन में न्यूनतम शक्ति की आवश्यकता होती है।
  4. वैधता का गुण शासितों में इस विश्वास को पैदा करता है कि शासक वर्ग की नीतियाँ एवं कार्य शासितों के पूर्णतः हित में हैं।
  5. वैधता / औचित्यपूर्णता शासक वर्ग की नीति एवं कार्यों को न्यायसंगत सिद्ध करती है और शासितों के समस्त कार्यों में सहमति, सहयोग व अनुशासन को जागृत करती है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter  2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शक्ति से क्या अभिप्राय है? शक्ति और सत्ता में अंतर कीजिए।
उत्तर:
शक्ति से अभिप्राय: शक्ति राजनीति विज्ञान का केन्द्र बिन्दु है। अत: राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत शक्ति की। अवधारणा का अत्याधिक महत्व है। यूनानी दार्शनिक प्लेटो और अरस्तू ने अपने ग्रन्थों में शक्ति के महत्व को स्वीकारा है। मैकियावली, हॉब्स, नीरसे, कैटलिन, चार्ल्स मेरियम, हैराल्ड लॉसवेल, मार्गेन्थाऊ, बोसांके, मैकाइवर, राबर्ट वायर्सर्ड, केप्लान, रसेल आदि विद्वानों ने भी शक्ति को मौलिक सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया है। कैटलिन के अनुसार, “राजनीति विज्ञान शक्ति का विज्ञान है।” आग्रेन्सकी के अनुसार, “शक्ति दूसरे के आचरण को अपने लक्ष्यों के अनुसार प्रभावित करने की क्षमता है।”

राबर्ट बायर्सटेड के अनुसार, “शक्ति बल प्रयोग की योग्यता है न कि उसका वास्तविक प्रयोग।” लासवेल के अनुसार, “एक प्रक्रिया के रूप में समाज में शक्ति की क्रियाशीलता राजनीति विज्ञान की विषयवस्तु है।” मैकाइवर के अनुसार, “शक्ति किसी भी सम्बन्ध के अन्तर्गत ऐसी क्षमता है जिसमें दूसरों से कोई काम लिया जाता है। या आज्ञापालन कराया जाता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वस्तुत: जिनके पास शक्ति है, वह दूसरों के कार्य, व्यवहारों एवं विचारों को अपने अनुकूल बना सकता है। आधुनिक विचारकों के शक्ति का अभिप्राय कुछ करने की शक्ति से लिया है अर्थात् जब कोई व्यक्ति अपने लिए अथवा समाज के लिए कुछ करता है तो वह शक्ति का प्रयोग करता है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

शक्ति और सत्ता में अंतर-प्रायः शक्ति और सत्ता को समानार्थक मान लिया जाता है किन्तु ये दोनों भिन्न – भिन्न अवधारणाएँ हैं। शक्ति में बाध्यता का भाव निहित रहता है। सत्ता को वैधानिक तौर पर शक्ति के प्रयोग का अधिकार होता है। किन्तु स्वयं सत्ता शक्ति से भिन्न होती है। सत्ता ही शक्ति को वैधता प्रदान करती है। शक्ति और सत्ता में निम्नलिखित अंतर हैं

(i) शक्ति में बल निहित रहता है। अतः यह बाध्यकारी भी हो सकती है जबकि सत्ता जनसहमति पर आधारित होती है तथा इसमें प्रभाव निहित रहता है। यह राज्य में वैधानिक तत्व के रूप में दिखाई पड़ती है।

(ii) शक्ति अनियमित और अनिश्चित होती है और वह अपनी प्रकृति से वैधानिक भी नहीं होती जबकि सत्ता का स्वरूप संस्थागत होता है। अतः यह मूर्त और वैधानिक होती है।
किसी भी राजव्यवस्था में सत्ता ही कर्ता की भूमिका निभाती है और यह शक्ति को एक साधन के रूप में प्रयुक्त करती है। सत्ता द्वारा साधन के रूप में प्रयुक्त होने पर ही शक्ति को वैधानिक रूप प्राप्त होता है।

(iii) सत्ता का निवास किसी पद या संस्था में होता है। अतः यह निश्चित एवं मूर्त भी होती है। अपनी प्रकृति से वैधानिक होने के कारण किसी उच्च सत्ता, पद या संस्था द्वारा किसी निम्न सत्ता, पद या संस्था को अपनी सत्ता का हस्तान्तरण किया जा सकता है जबकि शक्ति में इन गुणों का अभाव होने के कारण शक्ति का हस्तान्तरण नहीं किया जा सकता।

(iv) मनुष्य में दो विरोधी प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं। शक्ति की कामना एवं सहयोग की इच्छा। मनुष्य की शक्ति की प्रवृत्ति राजव्यवस्था में शक्ति के रूप में तथा सहयोग की प्रवृत्ति राजव्यवस्था में सत्ता के रूप में दिखाई देती है।

प्रश्न 2.
शक्ति का बल और प्रभाव से भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शक्ति का बल और प्रभाव से भेद: शक्ति को बल और प्रभाव से भेद (अंतर) निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
शक्ति और बल में भेद – शक्ति और बल राजनीति विज्ञान की दो भिन्न अवधारणाएँ हैं। शक्ति ओर बल में निम्नलिखित भेद हैं

  1. शक्ति सदैव अदृश्य और मूर्त होती है जबकि बल सदैव दृश्य और मूर्त होता है।
  2. शक्ति एक मनौवैज्ञानिक क्षमता है जबकि बल एक भौतिक क्षमता है।
  3. शक्ति की तुलना में बले अधिक बाह्यकारी और दमनात्मक होता है। बल प्रतिद्वन्द्वी पक्षों पर प्रतिबन्धों की व्यवस्था करता है।
  4. बल की तुलना में शक्ति एक विस्तृत अवधारणा है। कुछ विद्वानों के अनुसार शक्ति में प्रभाव और बल दोनों ही पाए जाते हैं किन्तु अप्रकट शक्ति में बल की तुलना में प्रभाव अधिक होता है और प्रकट शक्ति में प्रभाव की तुलना में बल अधिक होता है।

शक्ति अपना लक्ष्य तय करती है और इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु शक्ति द्वारा बल का प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार शक्ति के लिए बल एक साधन या उपकरण है। शक्ति और प्रभाव में भेद-शक्ति और प्रभाव में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रभाव शक्ति उत्पन्न करता है और शक्ति प्रभाव को। शक्ति सम्बन्धों की कोई भी स्थिति प्रभाव के बिना नहीं होती। इन घनिष्ठताओं के बावजूद शक्ति और प्रभाव में निम्नलिखित भेद हैं

(i) शक्ति एक भौतिक तत्व है और यह बाध्यकारी होती है जबकि प्रभाव एक नैतिक तत्व है इसमें बाध्यता नहीं होती है।

(ii) प्रभाव की उपेक्षा शक्ति एक भौतिक बल है। अतः उसका प्रयोग और परिणाम स्पष्टतः दिखाई देते हैं किन्तु प्रभाव एक अमूर्त और नैतिक तत्व है। अपने क्रियात्मक रूप में प्रभाव एक मानसिक प्रक्रिया है जिसका प्रयोग और परिणाम स्पष्टतः दिखाई नहीं देता

(iii) शक्ति को क्षेत्र सीमित होता है जबकि प्रभाव का क्षेत्र असीमित होता है। शक्ति एक भौतिक तत्व होने के कारण उसका प्रयोग एक निश्चित क्षेत्र में ही किया जा सकता है। प्रभाव एक मानसिक क्रिया होने के कारण विचार के रूप में प्रकट होता है। अत: प्रभाव का क्षेत्र असीमित हो सकता है।

(iv) प्रभाव की तुलना में शक्ति एक बाध्यकारी तत्व है। जिन व्यक्तियों पर शक्ति का प्रयोग किया जाता है। वे बाध्य होकर उसका अनुपालन करते हैं तथा उनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं होता। प्रभाव एक मानसिक क्रिया होने के कारण इसकी अनुपालना के लिए व्यक्ति विवश नहीं होता। अतः उसके पास अन्य विकल्प भी होते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

(v) जिन व्यक्तियों पर शक्ति का प्रयोग किया जाता है, शक्तिधारक को उनकी सहमति की आवश्यकता नहीं होती, वहीं प्रभावशाली व्यक्ति अपने प्रभाव का प्रयोग प्रभावित व्यक्तियों की सहमति से ही करता है। इस प्रकार शक्ति अलोकतांत्रिक व प्रभाव लोकतांत्रिक माना जाता है।

(vi) शक्ति बाध्यकारी होने के कारण प्रतिरोध व कटुता को जन्म देती है जबकि प्रभाव व्यक्तियों के मध्य एक मानसिक सामंजस्य पैदा करता है जो सहयोग को जन्म देता है।

प्रश्न 3.
शक्ति संरचना के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शक्ति संरचना के सिद्धान्त-परम्परागत रूप से शक्ति को ऐसी क्षमता के रूप में देखा जाता है जिसके आधार पर एक पक्ष दूसरे पक्ष पर नियन्त्रण स्थापित करता है। समाज में ऐसे अनेक समूह हैं जो अपनी शक्ति द्वारा दूसरों पर नियन्त्रण रखते हैं। इस सम्बन्ध में निम्न चार सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण हैं
(1) वर्ग – प्रभुत्व का सिद्धान्त – यह सिद्धान्त मार्क्सवाद की देन है। इस सिद्धान्त की मान्यता है कि आर्थिक आधार पर समाज में दो विरोधी वर्ग मिलते हैं-

  1. आर्थिक रूप से प्रभावशाली-बुर्जुआ वर्ग तथा
  2. आर्थिक रूप से कमजोर
    सर्वहारा वर्ग। इन दोनों विरोधी वर्गों में प्रारम्भिक काल से ही संघर्ष होता आया है। इस सिद्धान्त की मान्यता है कि समाज का प्रत्येक कार्य आर्थिक स्वार्थ से जुड़ा है। यहाँ तक कि माता – पिता अपनी सन्तान का पालन-पोषण व सन्तानें अपने माता-पिता की सेवा आर्थिक स्वार्थ के लिए ही करती हैं।

(2) विशिष्ट वर्गीय सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार भी समाज शक्ति के आधार पर दो विशिष्ट वर्गों

  1. शक्तिशाली वर्ग तथा
  2. सामान्य वर्ग, में बँटा हुआ है। शक्तिशाली वर्ग अपनी शक्ति का प्रयोग सामान्य वर्ग पर करता है। यह वर्ग आर्थिक आधार के अलावा कुशलता, संगठन क्षमता, बुद्धिमत्ता, प्रबन्धन क्षमता, नेतृत्व क्षमता आदि आधारों पर भी विभाजित होता है। इन योग्यताओं के आधार पर प्रत्येक शासन व्यवस्था में एक ऐसा छोटा वर्ग उभरता है जो सामान्य जनों पर अपनी शक्ति का प्रयोग करता है। राजनेता, प्रशासक, उद्योगपति, वकील, प्रोफेसर, डाक्टर आदि इस श्रेणी में आते हैं।

(3) नारीवादी सिद्धान्त – नारीवादी सिद्धान्त की मान्यता है कि समाज में शक्ति का विभाजन लिंग के आधार पर होता है। समाज की सम्पूर्ण शक्ति पुरुष वर्ग के पास है। ये महिलाओं पर अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं। इसी आधार पर यूरोप में नारी मुक्ति आन्दोलन प्रारम्भ हुआ था।

यद्यपि भारतीय परम्परा में इसके विपरीत स्थिति है। यहाँ प्राचीन समय से ही महिलाओं को समाज में उच्च स्थान प्राप्त रहा है। भारतीय परम्परा नारी मुक्ति की अपेक्षा नारी स्वाधीनता की माँग का समर्थन करती है।

(4) बहुलवादी सिद्धान्त – बहुलवादी सिद्धान्त उक्त तीनों शक्ति सिद्धान्तों से भिन्न है। बहुलवादी सिद्धान्त की मान्यता है कि समाज की शक्ति किसी वर्ग विशेष में न होकर अनेक समूहों में बँटी होती है। उदार लोकतान्त्रिक व्यवस्था में शान्ति के लिए सौदेबाजी चलती रहती है जिसके कारण शक्ति के आधार पर शोषण व्यवस्था नहीं होती है।

शक्ति की भारतीय अवधारणा उत्तरदायित्व की भावना पर आधारित है जिसका उपयोग सार्वजनिक हित के लिए किये जाने का प्रावधान है। इसके साथ ही यह प्रयास भी किया जाता है कि शक्तिहीन व्यक्ति शक्ति सम्पन्न होकर समाज की मुख्य धारा से जुड़े जाए।

प्रश्न 4.
सत्ता पालन के आधारों का वर्णन कीजिए। अथवा व्यक्ति सत्ता का पालन क्यों करते हैं? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
सत्ता पालन के आधार-व्यक्ति निम्नलिखित कारणों से सत्ता का पालन करते हैं
(i) विश्वास – सत्ता पालन का प्रमुख आधार विश्वास है। अधीनस्थ सत्ताधारी के प्रति विश्वास के कारण उसके आदेशों का पालन करते हैं। सत्ताधारी के प्रति अधीनस्थों का विश्वास जितना गहरा होता है सत्ताधारी के आदेशों का पालन उतना ही सरल और शीघ्र होता है।

लेकिन विश्वास के अभाव में सत्ताधारी के लिए अपने आदेशों का पालन करवाना कठिन हो जाता है ऐसी स्थिति में उसे अपने आदेशों का पालन करवाने के लिए शक्ति का सहारा लेना पड़ता है।

(ii) एकरूपता – सत्तापालन का एक आधार सत्ताधारी और अधीनस्थों के मध्य वैचारिक एकरूपता का होना है। स्वाभाविक रूप में व्यक्ति उन लोगों के परामर्श, सुझाव और आदेशों को अधिक महत्व देते हैं जो उनके साथ विचारों और
आदेशों की एकरूपता रखते हैं। एकरूपता के महत्व को स्वीकार करते हुए ही राज्यव्यवस्थाएँ उदारवाद, समाजवाद आदि विचारधाओं में से अपने अनुकूल किसी विचारधारा का प्रतिपादन करती है।

(iii) लोकहित – लोकहित अर्थात् लोककल्याण सत्तापालन का एक महत्वपूर्ण आधार है। हम राज्य के अधिकांश कानूनों का पालन केवल दण्ड की शक्ति के दबाव में नहीं करते बल्कि इसलिए करते हैं कि वे लोकहित को बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के रूप में यातायात के नियमों का पालन करना और कर जमा करना आदि।

(iv) दवाब – अनेक बार सत्ता का पालन करवाने के लिए दबाव और बाध्यकारी शक्ति का सहारा लिया जाता है। प्रत्येक राजव्यवस्था के संगठन एवं संस्था में कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन पर विश्वास या एकरूपता का कम प्रभाव पड़ता है। ऐसे लोग दमन और दबाव की भाषा ही समझते हैं। ऐसी स्थिति में सत्ताधारी को अनेक बार दमन व दबाव की नीति अपनानी पड़ती है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 शक्ति, सत्ता और वैधता

सत्ताधारी का यह प्रयास होना चाहिए कि सत्ता पालन के लिए दबाव की शक्ति का प्रयोग करने की आवश्यकता ही नहीं पड़े। इसके लिए आवश्यक है कि सत्ताधारी के आदेशों को औचित्य स्वतः स्पष्ट हो। इस प्रकार सत्ता पालन के उपर्युक्त समस्त आधार मिश्रित रूप से ही कार्य करते हैं। व्यवस्था की श्रेष्ठता की दृष्टि से यह आवश्यक है कि ‘विश्वास’ सत्तापालन का प्रमुख आधार हो तथा दबाव गौण तत्व बना रहे।

प्रश्न 5.
राजनीतिक व्यवस्था की वैधता को बनाए रखने के लिए कौन – कौन से प्रयल करने होते हैं? विस्तार से बताइए। अथवा औचित्यपूर्णता की प्राप्ति एवं इसको बनाए रखने के लिए किसी राजव्यवस्था द्वारा कौन – कौन से उपाय अपनाये जाते हैं? अथवा औचित्यपूर्णता (वैधता) के अर्जन एवं स्थिर रखने के साधन बताइए।
उत्तर:
वैधता / औचित्यपूर्णता की प्राप्ति एवं इसको बनाए रखने के लिए किसी राजव्यवस्था को निम्नलिखित प्रयास / उपाय करने पड़ते हैं
(i) नवीन परिस्थितियों से सामंजस्य-जब राजनीतिक व्यवस्था राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में बदली हुई परिस्थितियों के अनुरूप अपने आपको ढालने में सफल रहती है तो उसके लिए वैधता की स्थिति बनी रहती है। यदि राजनीतिक व्यवस्था बदलती हुई परिस्थितियों में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाती है तो उस व्यवस्था की वैधता के सम्मुख संकट उत्पन्न हो जाता है।

उदाहरण के रूप में प्राचीनकाल में राजतंत्रीय व्यवस्था थी। कालान्तर में लोकतंत्रीय तत्वों को उदय हुआ। जिन राजनीतिक व्यवस्थाओं ने अपने आपको लोकतंत्रीय तत्वों के अनुरूप ढाल लिया उनकी वैधता बनी रही लेकिन जो ऐसा नहीं कर सकी, वहाँ क्रांति की स्थिति उत्पन्न हो गयी। साम्यवादी व्यवस्था अपने आपको समयानुकूल नहीं बदल सकी परिणामस्वरूप आज इसकी कोई वैधता नहीं है।

(ii) परम्पराओं का आदर – प्रत्येक देश और समाज में कुछ प्रचलित परम्पराएँ वहाँ के जीवन का अनिवार्य अंग बन जाती हैं। राजनीतिक व्यवस्था और उससे जुड़ी हुई संस्थाओं के लिए अपनी वैधता को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि वे इन परम्पराओं का आदर करें और अपनी भूमिका को स्थापित परम्पराओं के अनुरूप ढालने का प्रयास करें।

(iii) नवीन समूहों का राजनीति में प्रवेश-नवीन समूहों का राजनीति में प्रवेश भी वैधता/औचित्यपूर्णता को पूर्णता से प्रभावित करते हैं। यदि इनके प्रवेश को पुराना वर्ग स्वीकार कर लेता है तो वैधता को बढ़ावा मिलता है। यदि यह वर्ग बाधा उत्पन्न करता है तो वैधता में बाधा पहुँचती है।

(iv) राजनीतिक व्यवस्थाओं से अत्यधिक आकाक्षाएँ-अनेक बार राजनीतिक व्यवस्थाओं से अत्यधिक आकाक्षाएँ भी वैधता को प्रभावित करती हैं। जब राजनीतिक व्यवस्थाएँ जनसामान्य की इन आशाओं को पूर्ण नहीं कर पातीं तब लोग उनके विरुद्ध क्रान्ति और तख्तापलट कर देते हैं। उदाहरण के रूप में अफ्रीका व एशिया के अनेक देशों में ऐसे तख्तापलट होते रहे हैं।

(v) व्यक्तिगत गुण-राजनीतिक व्यवस्था की वैधता को बनाए रखने में नेतृत्व की भी भूमिका होती है। यदि राजनीतिक व्यवस्था का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति या वर्ग में व्यक्तिगत गुण चमत्कारिक है तो सामान्य जनता नेतृत्व और व्यवस्था के प्रति आस्था रखती है और व्यवस्था के आदेशों का पालन करती है। फलस्वरूप व्यवस्था की वैधता में वृद्धि होती है।

(vi) सहमति के आधार पर निर्णय-वैधता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक व्यवस्था के सभी नागरिक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित हों निर्णय प्रक्रिया में सम्पूर्ण समाज को सहभागी बनाने का प्रमुख माध्यम नियतकालीन चुनाव और वयस्क मताधिकार है।।

(viii) राजनीतिक संस्थाओं को सशस्त्र सेवाओं से अलग रखना-एक लोकतांत्रिक ढाँचे को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि नागरिक सत्ता या जनता की प्रतिनिधि सत्ता की सर्वोच्चता हो और सैनिक सत्ता नागरिक सत्ता के नियंत्रण में रहे। यदि सशस्त्र सेनाओं को राजनीतिक संस्थाओं से अलग न रखा जाए तो कभी भी सैनिक शासन स्थापित होने का संकट बना रहेगा।

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