Rajasthan Board RBSE Class 12 Psychology Chapter 2 स्व एवं व्यक्तित्व
RBSE Class 12 Psychology Chapter 2 अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 12 Psychology Chapter 2 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी व्यक्तित्व के स्व प्रतिवेदन मापक है?
(अ) रोर्शा परीक्षण
(ब) टीएटी
(स) सीएटी
(द) एमएमपीआई
उत्तर:
(द) एमएमपीआई
प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सी तकनीक अचेतन मन में छिपी भावनाओं को जानने में उपयोगी है?
(अ) स्थितिपरक परीक्षण
(ब) साक्षात्कार
(स) 16 पीएफ
(द) वाक्य पूर्ति परीक्षण
उत्तर:
(द) वाक्य पूर्ति परीक्षण
प्रश्न 3.
व्यक्ति का स्वयं के बारे में, उसकी क्षमताओं, योग्यताओं के बारे में लिये गये निर्णय क्या कहलाते हैं?
(अ) स्व सम्मान
(ब) स्व नियन्त्रण
(स) स्व संप्रत्यय
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(स) स्व संप्रत्यय
प्रश्न 4.
रोझ स्याही धब्बा निम्न में से किस श्रेणी में रखा जाता है?
(अ) व्यवहारात्मक विश्लेषण
(ब) प्रक्षेपी तकनीकें
(स) स्व प्रतिवेदन मापक
(द) स्थितिपरक परीक्षण
उत्तर:
(ब) प्रक्षेपी तकनीकें
प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-सी व्यक्तित्व मापन की व्यवहारात्मक विश्लेषण विधि नहीं है?
(अ) साक्षात्कार
(ब) स्थितिपरक परीक्षण
(स) वाक्यपूर्ति परीक्षण
(द) प्रेक्षण
उत्तर:
(स) वाक्यपूर्ति परीक्षण
RBSE Class 12 Psychology Chapter 2 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्व संप्रत्यय किसे कहते हैं?
उत्तर:
हमारे स्वयं के विषय में प्रत्यक्षण, अपनी क्षमताओं, गुणों, विशेषताओं आदि के बारे में जो विचार रखते हैं, उसे स्व संप्रत्यय कहा जाता है। हमारे स्वयं के बारे में विचार, प्रत्यक्षण सकारात्मक भी हो सकता है एवं नकारात्मक भी। स्व संप्रत्यय अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भी हो सकता है। स्व संप्रत्यय का विकास व्यक्ति के अनुभव के साथ ही निर्मित होता जाता है। जब वह समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ अनुक्रिया करता है, तो उसे स्वयं के बारे में भी पता चलता है, जिसके कारण स्व संप्रत्यय विकसित होता है। अत: व्यक्ति स्वयं के बारे में जो विचार रखता है, वे उसके स्व संप्रत्यय का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 2.
स्व सम्मान एवं स्व नियमन में क्या अन्तर है?
उत्तर:
व्यक्ति का स्वयं के विषय में, उसकी क्षमताओं, योग्यताओं के बारे में लिये गये निर्णय को स्व सम्मान कहा जाता है। स्व सम्मान का स्तर उच्च या निम्न हो सकता है। बच्चों में स्व सम्मान चार क्षेत्रों में निर्मित होता है-शैक्षिक, सामाजिक, खेलकूद तथा शारीरिक रूप।
स्व नियमन:
स्व नियमन की अवधारणा स्व पर नियंत्रण की धारणा से सम्बन्धित है। व्यक्ति के जीवन में कई ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं, जब हमें अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखना होता है। व्यक्ति या विद्यार्थी जीवन में कई बार कोई आवश्यकता की पूर्ति में स्वयं पर नियंत्रण द्वारा देरी की जाती है। पश्चिमी सभ्यता का व्यक्ति के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए अपने रहन-सहन आदि आदतों पर नियंत्रण की स्व नियमन का एक विशिष्ट उदाहरण है।
प्रश्न 3.
स्व संप्रत्यय के दो पक्ष कौन-से हैं?
उत्तर:
व्यक्ति स्वयं के बारे में स्वयं की योग्यताओं, क्षमताओं, भावनाओं आदि के बारे में जो विचार रखता है, वे उसके स्व संप्रत्यय का निर्माण करते हैं।
किसी व्यक्ति का स्व संप्रत्यय दो पक्षों से निर्मित होता है –
1. व्यक्तिगत अनन्यता:
व्यक्तिगत अनन्यता से तात्पर्य व्यक्ति के वे गुण शामिल होते हैं जो उसे दूसरों से अलग पहचान दिलाते हैं। इसमें व्यक्ति का नाम, (जैसे मेरा नाम मोहन है), उसकी क्षमताएँ (जैसे मैं साहित्यकार हूँ), उसकी विशेषताएँ (जैसे मैं ईमानदार हूँ) आदि सम्मिलित किये जाते हैं।
2. सामाजिक या सांस्कृतिक अनन्यता:
इसमें व्यक्ति की पहचान कई आधारों पर की जाती है, जैसे वह किन सामाजिक समूहों से जुड़ा होता है, या किस प्रकार की संस्कृति में रहा है।
प्रश्न 4.
व्यक्तित्व को परिभाषित करें।
उत्तर:
व्यक्तित्व का शाब्दिक अर्थ लैटिन शब्द ‘परसोना’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है मुखौटे से है, इसे नाटकों में प्रयोग किया जाता है। व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक गुणों के सुगठित एवं गतिशील संगठन को व्यक्तित्व कहते हैं जिसकी अभिव्यक्ति अन्य व्यक्तियों के प्रति रोजमर्रा के सामाजिक जीवन के आदान-प्रदान के दौरान होती है।
व्यक्तित्व की रचना जैवकीय रूप में हस्तान्तरित मनो-दैहिक कार्य प्रणाली तथा सामाजिक रूप में संचरित सांस्कृतिक प्रतिमानों के आधार पर होती है। हमारे विचारों, मनोभावों तथा आचरण सम्बन्धी कार्यकलापों का मिला-जुला जो प्रभाव दूसरों पर पड़ता है, उसी से व्यक्तित्व का ढाँचा तैयार होता है। व्यक्तित्व’ का प्रयोग व्यक्ति को वस्तु मानकर किया जाता है, जबकि ‘स्व’ की अवधारणा का प्रयोग व्यक्ति को विषयी (Subject) मानकर किया जाता है (क्रिया व आत्म-प्रतिबिम्ब के स्रोत के रूप में)।
प्रश्न 5.
व्यक्तित्व के स्व प्रतिवेदन मापक कौन-से हैं?
उत्तर:
व्यक्तित्व के स्व प्रतिवेदन मापक को तीन परीक्षण माध्यमों से समझाया जा सकता है –
1. MMPI:
इसे मिनेसोटा बहुपक्षीय व्यक्तित्व सूची कहा जाता है। इस परीक्षण का विकास हाथवे एवं मेकिंन्ले द्वारा किया गया है। यह व्यक्तित्व से जुड़े मनोविकारों की पहचान करने में अत्यन्त प्रभावी है।
2. EPQ:
आइजेक व्यक्तित्व प्रश्नावली कहा जाता है। इसमें व्यक्तित्व के दो आयामों अंतर्मुखता-बर्हिमुखता और सांवेगिक स्थिरता-अस्थिरता का मूल्यांकन किया जाता है। इसमें तीसरा आयाम मनस्तापिता को भी जोड़ा गया है।
3. 16 PF:
इसे सोलह व्यक्तित्व कारक प्रश्नावली भी कहा जाता है। यह परीक्षण केटल द्वारा विकसित किया गया। इस परीक्षण का उपयोग उच्च विद्यालय स्तर के विद्यार्थियों एवं वयस्कों के लिए किया जा सकता है। यह परीक्षण व्यावसायिक निर्देशन में उपयोगी है। इनके अलावा भी मनोविज्ञान में व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिये अनेक स्व प्रतिवेदन मापक प्रचलित है।
प्रश्न 6.
प्रक्षेपी परिकल्पना को समझाइए।
उत्तर:
प्रक्षेपी तकनीकें व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त पर आधारित है। सिगमण्ड फ्रायड इस सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं। उनके अनुसार मानव व्यवहार का बड़ा भाग अचेतन मन की अभिप्रेरणाओं द्वारा निर्धारित होता है।
प्रक्षेपी तकनीकें प्रक्षेपी परिकल्पना पर आधारित है। इस परिकल्पना के अनुसार यदि व्यक्ति के सामने अस्पष्ट, असंरचित, अस्पष्ट अर्थ वाले उद्दीपक सामग्री/प्रश्न रखे जाएँ तो इन उद्दीपकों की व्याख्या करने के लिए अचेतन में छिपी इच्छाएँ, भावनाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
जब किसी उद्दीपक का कोई मतलब नहीं निकाल पाता तो वह अपने अचेतन मन की सामग्री को ही उस असंरचित उद्दीपक की व्याख्या करने में उपयोग में लेता हुआ प्रक्षेपित कर देता है।
प्रश्न 7.
टी. ए. टी. में प्रयोज्य से क्या कार्य करता है?
उत्तर:
TAT परीक्षण को कथानक संप्रत्यक्षण परीक्षण कहा जाता है। यह परीक्षण मॉर्गन एवं मूरे द्वारा विकसित किया गया। इसमें काली और सफेद रंगों के चित्र वाले 30 कार्ड और एक खाली कार्ड होता है। एक प्रयोज्य के लिये 20 कार्ड उपयोग में लाये जा सकते हैं। इन कार्ड पर कुछ चित्र छपे होते हैं। इन कार्ड को एक-एक करके प्रयोज्य के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
प्रयोज्य को उसमें छपे चित्र के आधार पर एक कहानी लिखने को कहा जाता है। इसके लिये उसे कुछ प्रश्न भी दिये जाते हैं; जैसे-इस चित्र में क्या हो रहा है, इससे पहले क्या हुआ, इसके बाद क्या होगा, चित्र में प्रस्तुत विभिन्न पात्र क्या सोच रहे हैं, अनुभव कर रहे हैं आदि। इन प्रश्नों के उत्तर के आधार पर प्रयोज्य एक कहानी लिखता है। उत्तर के आधार पर प्रयोज्य के अभिप्रेरणा का मापन किया जा सकता है। प्रयोज्य में उपलब्धि अभिप्रेरणा है या शक्ति की अभिप्रेरणा है आदि।
इसलिए इस परीक्षण का प्रयोग भी प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा ही किया जा सकता है। बच्चों के लिए इस परीक्षण का अनुकूलन भी किया गया है। यह परीक्षण चिल्ड्रन एपरसेप्शन परीक्षण (CAT) कहा जाता है।
प्रश्न 8.
अचेतन मन को परिभाषित करें।
उत्तर:
सिगमंड फ्रायड के अनुसार मानव व्यवहार का एक बहुत बड़ा भाग अचेतन मन की अभिप्रेरणाओं द्वारा निर्धारित होता है। अचेतन मन में व्यक्ति का मन चेतना रहित अवस्था में रहता है अर्थात् उसे ज्ञात नहीं रहता है, अपनी स्थिति का। अचेतन मन में व्यक्ति की दबी हुई इच्छाएँ, अव्यक्त भावनाएँ, अनैतिक इच्छाएँ आदि दबी रहती हैं। अचेतन मन व्यक्तित्व के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हुआ व्यक्ति के क्रियाकलापों को प्रभावित करता है।
इसीलिए मनोवैज्ञानिकों में विशेषकर फ्रायड के अनुसार यदि इस अचेतन मन का मूल्यांकन नहीं किया जाए तो व्यक्तित्व का सही निर्धारण नहीं हो सकता है। अचेतन मन को जानने के लिए आत्मपरक एवं मनोमिति जैसे प्रत्यक्ष विधियाँ पर्याप्त नहीं हैं। अचेतन मन को समझने के लिए मूल्यांकन की अप्रत्यक्ष विधियाँ आवश्यक हैं। प्रक्षेपी तकनीकें इसी श्रेणी में आती हैं।
प्रश्न 9.
वाक्य पूर्ति परीक्षण में एकांशों के उदाहरण लिखें।
उत्तर:
वाक्य पूर्ति परीक्षण में अनेक अपूर्ण वाक्यों को प्रयोज्य के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। प्रयोज्य को इन वाक्यों को पूर्ण करना होता है। उदाहरण के लिए कुछ वाक्य दिये गये हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –
- मेरे पिता ……….।
- मुझे हमेशा चिन्ता …………….।
- मेरे जीवन में ………….।
- मुझे सबसे अधिक भय ………..।
- मुझे सर्वाधिक प्रेम ……….।
- उन्होंने सदैव मेरी ……….।
- उस परिवार में ………।
- मेरे घर के सदस्यों में …….।
अत: उपर्युक्त वर्णित प्रक्षेपी तकनीकों के अलावा भी अन्य प्रक्षेपी तकनीकें उपयोग में ली जाती हैं। इस प्रकार से वाक्य पूर्ति परीक्षण चूँकि एक प्रक्षेपी तकनीक ही है, जिसके द्वारा व्यक्ति की व्यवहार व उसकी मानसिक स्थिति को ज्ञात किया जा सकता है।
प्रश्न 10.
व्यवहारात्मक विश्लेषण में कौन-सी विधियाँ शामिल हैं?
उत्तर:
व्यवहारात्मक विश्लेषण के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व से सम्बन्धित अनेक सूचनाओं की प्राप्ति होती है। व्यवहारात्मक विश्लेषण में साक्षात्कार, प्रेक्षण व स्थितिपरक परीक्षण प्रमुख हैं, जिसे निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –
A. साक्षात्कार:
- इसके अन्तर्गत दो या दो से अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।
- इसमें व्यक्ति के व्यक्तित्व का मूल्यांकन उससे बातचीत करके की जाती है।
- इसके अन्तर्गत कुछ विशिष्ट प्रश्नों के माध्यम से व्यक्ति से जानकारी प्राप्त करके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।
B. प्रेक्षण:
- प्रेक्षण का अर्थ है-देखना या दृष्टिपात करना।
- इसमें व्यक्तित्व के समस्त पक्षों से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त की जाती है।
- इस विधि में किसी प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा व्यक्ति के व्यवहार, उसके हाव-भाव, शारीरिक भाव को देखकर उसके व्यक्तित्व के विषय में मूल्यांकन किया जाता है।
C. स्थितिपरक परीक्षण:
- इसमें व्यक्ति को एक विशेष परिस्थिति में रखकर उसके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
- इसके अन्तर्गत व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों का पता चलता है।
- इसके माध्यम से व्यक्ति के अर्न्तनिहित गुणों के विषय में भी जानकारी प्राप्त होती है।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 2 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्व संप्रत्यय क्या है? इसके सकारात्मक होने के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
‘स्व’ को ‘आत्म’ भी कहा जाता है। जब व्यक्ति स्वयं के विषय में प्रत्यक्षण, अपनी क्षमताओं, गुणों, आदतों व विशेषताओं आदि के सम्बन्ध में जो विचार रखते हैं, उसे ही स्व-संप्रत्यय कहा जाता है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति को अपने सम्पूर्ण पक्षों से सम्बन्धित जानकारी के विषय में ज्ञात होता है और उसी के आधार पर वह समाज में अपने व्यवहार का संचालन भी करता है। समाज में व्यक्तियों का व्यवहार विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग प्रदर्शित होता है। उनके व्यवहार में अंतर दृष्टिगोचर होता है।
स्व संप्रत्यय के सकारात्मक होने से अधिक लाभ है, जिसका विवरण निम्न प्रकार से है –
1. आत्म’ के विषय में जानकारी:
स्व संप्रत्यय के द्वारा ही व्यक्ति को अपने आत्म की जानकारी होती है। उसी के आधार पर वह समाज में व्यवहार करता है।
2. क्रियाओं के संचालन में सहायक:
इसके द्वारा व्यक्ति को समाज में अपने समस्त क्रियाओं के संचालन में व उन्हें संपादित करने में मदद मिलती है।
3. अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को जानने में सहायक:
समाज में प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार अलग-अलग होता है जब व्यक्ति को अपने स्व के विषय में जानकारी प्राप्त हो जाती है तो वह अन्य व्यक्ति के व्यवहारों को समझने में सक्षम हो जाता है।
4. अन्तर्निहित गुणों की जानकारी:
इसका सबसे अधिक सकारात्मक प्रभाव यह है कि इसके द्वारा व्यक्ति स्वयं व अन्य व्यक्तियों के अन्तर्निहित गुणों के विषय में भी अवगत हो जाता है।
5. परिस्थितियों को समझने में सहायक:
स्व संप्रत्यय से व्यक्ति को अपनी व दूसरे व्यक्ति की परिस्थितियों को जानने में मदद मिलती है।
6. विभिन्न पक्षों की जानकारी:
स्व संप्रत्यय के द्वारा ही व्यक्ति को स्वयं की व अन्य व्यक्तियों के विभिन्न पक्षों की जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न 2.
स्व नियमन को उदाहरण द्वारा समझाइए। यह स्व सम्मान से किस प्रकार अलग है?
उत्तर:
स्व नियमन की अवधारणा-स्व नियमन की अवधारणा अपने आत्म पर नियंत्रण की व्यवस्था से सम्बन्धित है। व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन काल में कई बार अनेक ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जहाँ उसे उन परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करते हुए अपने स्व को नियंत्रित करना पड़ता है।
स्व नियमन के उदाहरण निम्नलिखित हैं –
- परिवार में एक पुत्र का अपने दोस्तों के साथ सिनेमा देखने का शौक होने पर भी अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध न जाना, व अपने माता-पिता को सम्मान देते हुए दोस्तों को मना कर देना स्व नियमन का एक उत्तम उदाहरण है।
- उत्तम अंक प्राप्त करने हेतु विद्यार्थी को अपनी नींद को त्यागकर कठिन परिश्रम करना व निद्रा पर नियंत्रण रखना भी स्व नियमन का एक उदाहरण है।
- एक हष्ट-पुष्ट लड़की का सौन्दर्य प्रतियोगिता में सफल होने के लिए अनेक प्रकार के भोजन को जैसे तला हुआ, जंक फूड व कोल्ड ड्रिंग आदि के सेवन को नियंत्रण में रखना, स्व नियमन का ही एक उदाहरण है।
- दोस्तों के साथ बाहर घूमने जाने का शौक होने पर भी परिवार द्वारा निर्धारित समय पर घर पहुँचना भी स्वयं नियमन की धारणा को दर्शाता है।
स्व नियमन का स्व सम्मान से भिन्न होना:
स्व नियमन जहाँ व्यक्ति पर अनेक परिस्थितियों पर नियंत्रण की अवधारणा से सम्बन्धित है। वही स्व-सम्मान की अवधारणा व्यक्ति को हर परिस्थिति में अपने सम्मान को सर्वप्रथम रखते हुए उसे महत्व देने पर अवधारणा पर सम्बन्धित है। बालकों में स्व-सम्मान चार क्षेत्रों में निर्मित होता है। जैसे शैक्षिक स्तर पर यदि विद्यार्थी का सम्मान उच्च है तो उसकी प्रस्थिति समस्त विद्यार्थियों में उच्च होगी। सामाजिक स्तर पर उसके सम्बन्ध अन्य के साथ मधुर रहेंगे। खेलकूद के क्षेत्र में अच्छा होने से उसमें एक उत्तम खिलाड़ी के गुणों का समावेश होगा तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ होने पर या किसी विघटनकारी प्रवृत्तियों को न करने पर भी उसका सम्मान समाज में सर्वश्रेष्ठ ही रहेगा।
प्रश्न 3.
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों को समझाइए।
उत्तर:
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले अनेक कारकों की विवेचना को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
A. जैविक कारक:
- ये वे कारक होते हैं जो व्यक्ति के आनुवंशिकता एवं जैविक प्रक्रियाओं से सम्बन्धित होते हैं।
- किसी व्यक्ति की शारीरिक रचना एवं स्वास्थ्य उसके माता-पिता के स्वास्थ्य से वंशानुगत होता है।
- सामान्यतः लम्बे माता-पिता के बच्चे भी लम्बे होते हैं।
- माता-पिता की त्वचा के रंग का प्रभाव बच्चे की त्वचा के रंग पर भी पड़ता है, अर्थात् व्यक्तित्व के शारीरिक पक्ष के विकास पर जैविक कारकों पर पड़ता है।
- अगर कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से मजबूत होता है, इसका प्रभाव मानसिक शीलगुणों के विकास पर भी पड़ता है।
- शरीर में स्थिति विभिन्न अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ जैसे-पीयूष, पेंक्रियास, एड्रीनल, थॉयराइड आदि किसी व्यक्ति के शारीरिक विकास को नियंत्रित करती है।
- व्यक्ति विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक कमियों से ग्रसित होता है, जिससे उसका व्यक्तित्व प्रभावित होता है।
B. पर्यावरणीय कारक:
- ये ऐसे कारक हैं जिनका सम्बन्ध व्यक्ति के बाह्य वातावरण, उसका समाज तथा संस्कृति से है।
- पर्यावरणीय कारकों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक कारक आदि शामिल किए जाते हैं।
- सामाजिक कारकों में व्यक्ति जिस समाज में रहता है, जिस परिवार में रहता है वहाँ का वातावरण, आर्थिक स्थिति, पालन-पोषण का प्रभाव आदि व्यक्तित्व विकास पर पड़ता है।
- माता-पिता का अत्यधिक कठोर होना या बहुत प्रेम करना तथा बच्चों की हर बात का समर्थन करना भी व्यक्तित्व को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
- परिवार के सदस्यों के मध्य आपसी सम्बन्ध अच्छे होने पर बच्चों में आत्मविश्वास, अन्य लोगों पर विश्वास आदि गुण विकसित होते हैं।
- विद्यालयी परिवेश, मित्र समूह आदि कारकों का प्रभाव भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
- व्यक्ति जिस संस्कृति में पला-बड़ा होता है, वहाँ के तौर-तरीके, रीति-रिवाज तथा धार्मिक गुण आदि व्यक्ति के व्यक्तित्व पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।
अत: दो महत्वपूर्ण कारकों जिनमें जैविक तथा पर्यावरणीय शामिल हैं, उसका व्यक्ति के व्यक्तित्व पर काफी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। ये दोनों ही कारक व्यक्ति के विकास को प्रभावित करते हैं। इसके साथ ही एक व्यक्ति समाज में अपनी सम्पूर्ण क्रियाओं तथा व्यवहार को संचालित करते हुए अपनी एक अहम् भूमिका का निर्वाह भी करता है।
प्रश्न 4.
व्यक्तित्व के मूल्यांकन की प्रक्षेपी तकनीकों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
प्रक्षेपी तकनीक-ये तकनीक अथवा विधियाँ आरोपण अथवा प्रक्षेपण की प्रक्रिया पर आधारित है। प्रक्षेपण का अर्थ किसी क्रिया अथवा वस्तु विशेष में अपने व्यवहार अथवा व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों के अनुसार कोई विशेष बात देखना है। मानव को अपने स्वभावनुसार प्रत्येक वस्तु में अपनी भावनाओं, आकांक्षाओं और व्यक्तिगत सम्बन्धी विशेषताओं का प्रतिबिम्ब दिखायी देता है। प्रक्षेपण का ठीक प्रकार से विश्लेषण किया जाए तो न केवल हमारे आंतरिक व गोपनीय मानस पटल की बहुत-सी बातों का पता चलेगा, बल्कि एक प्रकार से सम्पूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने के लिए पर्याप्त सामग्री प्राप्त होगी।
इस तथ्य को आधार बनाकर ही प्रक्षेपी विधियों में कछ अनिश्चित, अर्थहीन और रचनाहीन उद्दीपक (अस्पष्ट चित्र या फोटोग्राफ, स्याही के धब्बे, अपूर्ण वाक्य इत्यादि) व्यक्ति के सामने रखे जाते हैं और उसे उनके प्रति अनुक्रिया व्यक्त करने के लिए कहा जाता है। इन अनुक्रियाओं के आधार पर ही उसके व्यक्तित्व के स्वरूप का निर्धारण किया जाता है।
रोर्शा का स्याही धब्बा परीक्षण:
यह परीक्षण हरमन रोर्शा नामक स्विस मनोवैज्ञानिक ने इसे प्रचलित किया है।
परीक्षण सामग्री:
इस परीक्षा में 10 cards जिन पर स्याही के धब्बों जैसी आकृतियाँ बनी हुई हैं, होते हैं। इनमें से पाँच पत्रों पर काली आकृतियाँ, दो पत्रों पर काली व लाल तथा तीन पत्रों पर कई रंग की आकृतियाँ हैं। ये आकृतियाँ पूर्ण रूप से सारहीन हैं-अर्थात् ये कोई विशेष अर्थ नहीं रखती है।
परीक्षा लेने का ढंग:
- इन पत्रों को एक विशेष क्रम में एक-एक करके जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना होना होता है, उसके सामने प्रस्तुत किया जाता है। परीक्षणकर्ता उस व्यक्ति से अनेक प्रकार से प्रश्न भी पूछता है।
- व्यक्ति को इन पत्रों को देखने का पर्याप्त समय दिया जाता
- इन धब्बों के प्रति व्यक्ति की क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ रही हैं, उनका लेखा-जोखा रखने के अतिरिक्त परीक्षणकर्ता प्रत्येक उत्तर देने में मिलने वाले समय का हिसाब भी रखता है।
- एक-एक करके जब सभी पत्र व्यक्ति के सामने रख दिये जाते हैं, तब उसके बाद पुनः उसके सामने रख कर पूछा जाता है कि उसने पहली बार जो कुछ देखा वह उस आकृति में कहाँ था।
उत्तरों का अंकन:
अंक लगाने के दृष्टिकोण से व्यक्ति के द्वारा जो भी व्यक्त किया जाता है उसे 4 कॉलम में लिख लिया जाता है।
- स्थिति
- विषय-वस्तु
- मौलिकता
- निर्धारक तत्व
उदाहरण के रूप में-अगर व्यक्ति धब्बे में आग, खून आदि देखता है, तब हम यह कह सकते हैं कि यह रंग है जिसके आधार पर उसने चीजों को धब्बे में देखने का प्रयत्न किया है।
उत्तरों का विश्लेषण करते समय न केवल चिन्हों की अपेक्षा संख्या को ध्यान में रखा जाता है, बल्कि कुछ अन्य बातें; जैसे व्यक्ति ने प्रत्येक चित्र के लिए कितना समय लिया, उसका क्या व्यवहार रहा, उसके चेहरे पर कैसे भाव आए आदि का पूरा ध्यान रखा जाता है।
उचित विश्लेषण और निष्कर्ष निकालने के लिए इस परीक्षण में बहुत अधिक कुशल और प्रशिक्षित परीक्षणकर्ता की आवश्यकता होती है। अतः इस तकनीक का प्रयोग सुयोग्य व्यक्तियों द्वारा ही किया जाना उचित रहता है।
प्रश्न 5.
व्यक्तित्व के मूल्यांकन की स्व प्रतिवेदन मापक को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
व्यक्तित्व मूल्यांकन की इस परीक्षण विधि में व्यक्ति से स्वयं उसके विषय में पूछकर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। इस विधि में अनेक प्रयोज्यों से विभिन्न कथन/प्रश्नों पर अपनी अनुक्रिया होती है। इन अनुक्रियाओं को अंक प्रदान किए जाते हैं तथा प्राप्त अंकों की व्याख्या को परीक्षण के लिए विकसित मानकों के आधार पर उनकी व्याख्या की जाती है। कुछ स्व-प्रतिवेदन मापक के रूप में उपयोग में ली जाने वाले व्यक्तित्व परीक्षण निम्न हैं –
मिनेसोटा बहुपक्षीय व्यक्तित्व सूची:
इस परीक्षण का विकास हाथवे एवं मेकिन्ले द्वारा किया गया है। यह परीक्षण व्यक्तित्व से जुड़े विभिन्न मनोविकारों की पहचान करने में अत्यन्त प्रभावी है। इसका परिशोधित रूप MMPI-2 भी उपलब्ध है। इसमें 567 कथन है। यह परीक्षण 10 उपमापनियों में विभाजित है।
उदाहरण:
परीक्षणकर्ता के द्वारा किये गये प्रश्न | व्यक्ति की अनुक्रिया उत्तर |
1. क्या आपको परिवार के साथ रहना पसंद है? | नहीं। मुझे उचित नहीं लगता परिवार के लोगों के साथ रहना। |
2. क्या आपको माता-पिता से प्रेम मिलता है ? | नहीं। मुझे उनसे कोई प्रेम नहीं मिलता है। |
उपरोक्त प्रश्नों के उत्तरों से यह विदित होता है कि व्यक्ति को पारिवारिक सदस्यों के साथ रहना पसंद नहीं है, क्योंकि उसे उस परिवार में माता-पिता का प्रेम नहीं मिलता है या उसकी उपेक्षा की जाती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति में अलगाव की भावना पायी जाती है और वह समाज में एकाकीपन की समस्या से जूझ रहा है। इस आधार पर उसकी मानसिक स्थिति को ज्ञात किया जा सकता है।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 2 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Psychology Chapter 2 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘स्व’ का उपर्युक्त अर्थ क्या है?
(अ) आत्म
(ब) आत्मा
(स) मुझे
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) आत्म
प्रश्न 2.
व्यक्तिगत भिन्नताओं के होने का कारण क्या है?
(अ) हमारे व्यक्तित्व में दोष होना
(ब) औरों के व्यक्तित्व में दोष होना
(स) हमारे व्यक्तित्व में भिन्नताओं का होना
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) हमारे व्यक्तित्व में भिन्नताओं का होना
प्रश्न 3.
व्यक्ति का स्व संप्रत्यय कितने पक्षों से निर्मित होता है?
(अ) छः
(ब) चार
(स) एक
(द) दो
उत्तर:
(द) दो
प्रश्न 4.
स्व संप्रत्यय का विकास किसके साथ निर्मित होता है?
(अ) व्यक्ति के गुण
(ब) व्यक्ति के अनुभव
(स) व्यक्ति के व्यवहार
(द) व्यक्ति की क्रियाएँ
उत्तर:
(ब) व्यक्ति के अनुभव
प्रश्न 5.
हमारे स्वयं के विचार किस प्रकार के हो सकते हैं?
(अ) सकारात्मक
(ब) नकारात्मक
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) दोनों
प्रश्न 6.
स्व संप्रत्यय प्रत्येक क्षेत्रों में कैसा होता है?
(अ) समान
(ब) असमान
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) असमान
प्रश्न 7.
स्व संप्रत्यय के कितने महत्वपूर्ण पक्ष हैं?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच
उत्तर:
(अ) दो
प्रश्न 8.
स्व सम्मान का स्तर कैसा हो सकता है?
(अ) उच्च
(ब) निम्न
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) दोनों
प्रश्न 9.
स्वयं पर नियंत्रण रखने को क्या कहा जाता है?
(अ) स्व नियमन
(ब) स्व संप्रत्यय
(स) स्व सम्मान
(द) स्व विकास
उत्तर:
(अ) स्व नियमन
प्रश्न 10.
व्यक्तित्व शब्द की उत्पत्ति किस काल से हुई है?
(अ) ग्रीक
(ब) लैटिन
(स) स्पेनिश
(द) पुर्तगाली
उत्तर:
(ब) लैटिन
प्रश्न 11.
व्यक्तित्व का क्या अर्थ है?
(अ) चेहरा
(ब) सुन्दरता
(स) नकाब
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) नकाब
प्रश्न 12.
व्यक्ति के गुण कैसे होते हैं ?
(अ) अस्थायी
(ब) स्थायी
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) स्थायी
प्रश्न 13.
त्रिगुण में किसको सम्मिलित किया जाएगा?
(अ) सत्व
(ब) रज
(स) तम
(द) तीनों को
उत्तर:
(द) तीनों को
प्रश्न 14.
युंग कौन थे?
(अ) साहित्यकार
(ब) लेखक
(स) मनोवैज्ञानिक
(द) कवि
उत्तर:
(स) मनोवैज्ञानिक
प्रश्न 15.
शेल्डन ने व्यक्तित्व के कितने प्रकार बताए हैं?
(अ) तीन
(ब) चार
(स) पाँच
(द) छः
उत्तर:
(अ) तीन
प्रश्न 16.
फ्रीडमैन एवं रोजेनमैन ने व्यक्तित्व के कितने प्रकार बताए हैं?
(अ) Type – A
(ब) Type – B
(स) (अ) और (ब) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) (अ) और (ब) दोनों
प्रश्न 17.
व्यक्तित्व के मूल्यांकन को कितने भागों में बाँटा जाता है?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) छः
(द) आठ
उत्तर:
(अ) दो
प्रश्न 18.
MMPI का विकास किसने किया?
(अ) शेल्डन
(ब) मर्टन
(स) हाथवे तथा मेकिन्ले
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) हाथवे तथा मेकिन्ले
प्रश्न 19.
EPQ का पूर्ण नाम क्या है ?
(अ) Eye – jack Personality Questionnaire
(ब) Eye – jack Person Questionnaire
(स) Eye – jack People Questionnaire
(द) Eye – jack Progress Questionnaire
उत्तर:
(अ) Eye – jack Personality.Questionnaire
प्रश्न 20.
16 PF को किसने विकसित किया?
(अ) युंग
(ब) हाथवे
(स) केटल
(द) मेकिन्ले
उत्तर:
(स) केटल
प्रश्न 21.
प्रक्षेपी तकनीक किस सिद्धान्त पर आधारित है?
(अ) समाजवादी सिद्धान्त
(ब) पूँजीवादी सिद्धान्त
(स) आर्थिक सिद्धान्त
(द) मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त
उत्तर:
(द) मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त
प्रश्न 22.
मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त के प्रतिपादक कौन हैं?
(अ) मूरे
(ब) मॉर्गन
(स) फ्रॉयड
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) फ्रॉयड
प्रश्न 23.
रोझ स्याही धब्बा परीक्षण में कितने कार्ड होते हैं?
(अ) 10
(ब) 12
(स) 16
(द) 18
उत्तर:
(अ) 10
प्रश्न 24.
TAT परीक्षण का पूर्ण नाम क्या है?
(अ) Teacher’s Apperception Test
(ब) Thematic Apperception Test
(स) Truth Apperception Test
(द) कोई भी नहीं।
उत्तर:
(ब) Thematic Apperception Test
प्रश्न 25.
प्रेक्षण का क्या अर्थ है?
(अ) देखना
(ब) जानना
(स) समझना
(द) सभी
उत्तर:
(अ) देखना
प्रश्न 26.
स्थितिपरक परीक्षण में मुख्य तत्व क्या है?
(अ) समाज
(ब) व्यक्ति
(स) परिस्थिति
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) परिस्थिति
RBSE Class 12 Psychology Chapter 2 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्व संप्रत्यय की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
स्व संप्रत्यय की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- ‘स्व’ को ‘आत्म’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।
- व्यक्ति के विचार, भावनाएँ आदि उसके स्व संप्रत्यय का निर्माण करते हैं।
- व्यक्ति का स्व संप्रत्यय दो पक्षों व्यक्तिगत अनन्यता तथा सामाजिक अनन्यता से निर्मित होता है।
- स्व संप्रत्यय का विकास व्यक्ति के अनुभव के साथ ही निर्मित होता जाता है।
- व्यक्ति जब समाज में अन्य लोगों के साथ अनुक्रिया करता है तो उसे स्वयं के विषय में पता चलता है तथा उसी के परिणामस्वरूप उसमें स्व संप्रत्यय का विकास भी होता है।
प्रश्न 2.
स्व सम्मान के गुणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
स्व सम्मान के गुणों की विवेचना को निम्नलिखित आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है –
- व्यक्ति का स्वयं के विषय में, उसकी क्षमताओं, योग्यताओं के विषय में लिए गए निर्णय को स्व सम्मान कहा जाता है।
- स्व सम्मान से व्यक्ति में नवीन चेतना का विकास होता है।
- समाज में प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक स्व सम्मान होता है जिसके आधार पर वह अपनी क्रियाओं का संपादन करता है।
- समाज में व्यक्ति के स्व सम्मान का स्तर उच्च या निम्न हो सकता है।
- समाज में यदि व्यक्ति का स्व सम्मान का स्तर उच्च होता है तो उसके सम्बन्ध समाज में अन्य व्यक्तियों के साथ मधुर होंगे, यदि उसके स्व सम्मान का स्तर निम्न हुआ, तो उसके सम्बन्ध अन्य लोगों के साथ मैत्रीपूर्ण नहीं होंगे।
प्रश्न 3.
व्यक्तित्व की संरचना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
व्यक्तित्व की संरचना को निम्न आधारों पर स्पष्ट कर सकते हैं –
1. व्यक्तियों को निश्चित समूह या वर्गों में रखने वाले सिद्धान्त:
शेल्डन और युंग के विचार इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। उनके अनुसार व्यक्तियों के व्यक्तित्व को कुछ निश्चित प्रकारों या वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है और प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों के आधार पर किसी एक या दूसरे वर्ग (Type) में रखा जा सकता है।
2. विकासवादी दृष्टिकोण को अपनाने वाले सिद्धान्त:
फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक इसी प्रकार के सिद्धान्त हैं। ये सिद्धान्त व्यक्तित्व के विकास को स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं।
3. गुणों की संख्या ज्ञात करके व्यक्तित्व आँकने वाले सिद्धान्त:
इस श्रेणी में विशेष रूप से कैटल के सिद्धान्त की चर्चा की जा सकती है। इस दृष्टिकोण के द्वारा व्यक्तित्व के आंतरिक अवयवों का और सांख्यिकीय विश्लेषण कर एक परिस्थिति में व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले व्यहार के सम्बन्ध में भविष्यवाणी की जा सकती है।
4. विशिष्ट समूहों या वर्गों में रखने तथा गुणों के आधार पर:
इन दोनों दृष्टिकोणों का समन्वय करने वाले सिद्धान्त इस श्रेणी में आते हैं।
प्रश्न 4.
त्रिगुण के आधार पर व्यक्तित्व के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
त्रिगुण सत्व, रज तथा तम के आधार पर व्यक्तित्व के तीन प्रकार बताए गए हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –
1. सात्विक:
ऐसे व्यक्तियों में सत्व गुण की प्रधानता के कारण इनमें स्वच्छता, सत्यवादिता, कर्त्तव्यनिष्ठा, अनुशासन आदि गुण होते हैं।
2. राजसिक:
ऐसे व्यक्तियों में रज गुण की प्रधानता के कारण इनमें तीव्र क्रिया, इन्द्रिय तुष्टि की इच्छा, भौतिकतावादी, दूसरों के प्रति ईर्ष्या आदि की अधिकता होती है।
3. तामसिक:
ऐसे व्यक्तियों में तम गुण की प्रधानता के कारण इनमें क्रोध, घमंड, अवसाद, आलस्य व असहायता की भावना की अधिकता होती है।
प्रश्न 5.
शेल्डन के द्वारा दिये गये व्यक्तित्व के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शेल्डन ने व्यक्तियों को उनकी शारीरिक बनावट के आधार पर विभिन्न प्रकारों के वर्गों में विभाजित किया है तथा उनके विभिन्न गुणों और विशेषताओं को दर्शाया है –
शेल्डन के व्यक्तित्व प्रकार :
व्यक्तित्व के प्रकार | शारीरिक बनावट और ढाँचा | व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताएँ |
1. एंडोमोरफिक (Endomorphic/ गोलाकृतिक) | शक्तिहीन, मोटे तथा कोमल, मृदुल वाले व्यक्ति। | आरामतलब, सामाजिक तथा स्नेहशील होते हैं। |
2. मीसोमोरफिक (Mesomorphic/ आयताकृतिक) | शारीरिक रूप से सन्तुलित, अच्छा स्वास्थ्य व फुर्तीला शरीर। | साहसी, निडर, फुर्तीले, कर्मठ तथा आशावादी। |
3. एक्टोमोरफिक (Ectomorphic/ लम्बाकृतिक) | कमजोर एवं शक्तिहीन, लम्बे दुबले-पतले शरीर तथा अविकसित सीना। | निराशावादी, असामाजिक, एकांतप्रिय व चिड़चिड़ा। |
प्रश्न 6.
युंग के द्वारा दिए गए व्यक्तित्व के वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
युंग का व्यक्तित्व वर्गीकरण-युंग ने सभी व्यक्तियों को उनके सामाजिक कार्यों में भाग लेने अथवा रुचि प्रदर्शित करने के दृष्टिकोण से अंतर्मुखी व बहिर्मुखी दो निश्चित वर्गों में वर्गीकृत करने का प्रयत्न किया है। बाद में इन वर्गों को उन्होंने फिर उपवर्गों में बाँटा है, इस प्रक्रिया में उन्होंने चिन्तन (Thinking), भावना (Feeling), संवेदन (Sensation) और अन्तर्दृष्टि (Intuition) नामक मनोवैज्ञानिक क्रियाओं को अपने अन्तर्मुखी व बहिर्मुखी वर्गों के साथ जोड़ने का प्रयास किया है।
युंग द्वारा दिए गए इस वर्गीकरण की काफी आलोचना की गई। पूर्णतः अन्तर्मुखी या बहिर्मुखी होने के स्थान पर अधिकांश व्यक्तियों में दोनों ही प्रकार के लक्षण पाए जाते हैं। अत: अंतर्मुखी एवं बहिर्मुखी होने के स्थान पर उभयमुखी (Ambinert) प्रकार का व्यक्तित्व अधिक देखने को मिलता है। इस आधार पर यंग द्वारा व्यक्तियों को दो निश्चित उपवर्गों में विभाजित करने का औचित्य ही लगभग समाप्त-सा होता जा रहा है।
प्रश्न 7.
फ्रीडमैन तथा रोजेनमैन के द्वारा दिए गए व्यक्तित्व के वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फ्रीडमैन तथा रोजेनमैन द्वारा प्रतिपादित यह वर्गीकरण व्यक्तियों को उनके व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों के आधार पर दो प्रकारों या समहों A तथा B में व्यक्तित्व कराता है तथा यह बताने का प्रयत्न करता है कि कौन से प्रकार (A type or B type) के व्यक्तियों में हृदय रोग से पीड़ित होने की सम्भावना अधिक रहती है।
Type – A:
इस प्रकार के व्यक्ति संवेगात्मक रूप से अस्थिर, तनावयुक्त, चिन्तित, प्रतिस्पर्धी, मूडी, भावनाओं से वशीभूत, उदासीन, एकान्तप्रिय, शंकालु, ईर्ष्यालु, उग्र स्वभाव, आक्रामक, जल्दबाद, किसी काम से सन्तुष्ट न होना, बहुत अधिक आदर्शवादी, समय के अनुसार अपने आपको बदलने में असमर्थ, समय की पाबंदी तथा नियमों के पालन के प्रति अधिक चिन्तित आदि होते हैं।
Type – B:
इस प्रकार के व्यक्ति संवेगात्मक रूप से स्थिर, तनावयुक्त, चिन्तामुक्त, सामान्य उपलब्धि, विश्वास करने वाला, असंवेदनशील, धीमी गति या संयम से काम करना, शांत स्वभाव, कार्य के परिणामों से सन्तुष्टि अनुभव करने वाला, भाग्यवादी, यथार्थवादी दृष्टिकोण तथा आवश्यकतानुसार अपने विचारों तथा कार्य-प्रणाली में परिवर्तन करने वाला।
प्रश्न 8.
व्यक्तित्व के निर्माण में शारीरिक ढाँचा एवं बनावट पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
शारीरिक ढाँचा एवं बनावट किसी के व्यक्तित्व का आवश्यक अंग होने के अतिरिक्त उसके सम्पूर्ण व्यवहार या व्यक्तित्व के निर्धारण करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
बालक का कद, भार, रंग, रूप, शारीरिक शक्ति और स्वास्थ्य, शारीरिक न्यूनताएँ और असमानताएँ आदि शारीरिक विशेषताएँ व्यक्तित्व के विकास को बहुत अधिक प्रभावित करती है। इस प्रभाव के दो रूप हो सकते हैं
1. बालक शारीरिक विशेषताओं के दृष्टिकोण से जितना अधिक सम्पन्न अथवा अभावग्रस्त होता है, उसका जीवन के प्रति दृष्टिकोण, आपसी व्यवहार करने का ढंग, मूल्य व मान्यताएँ उसी के अनुकूल बन जाती हैं।
2. बालक की अपनी शारीरिक बनावट के प्रति दूसरे व्यक्ति जिस प्रकार की भावनाओं का प्रदर्शन करते हैं और बालक उसके आधार पर अपने बारे में जो भी धारणाएँ बनाता है, उनका प्रभाव उसके व्यक्तित्व के निर्माण में अवश्य पड़ता है। आत्महीनता या आत्मगौरव की प्रवृत्तियाँ तथा विभिन्न कुंठाओं और व्यवहार चेष्टाओं को इसी से जन्म मिलता है।
प्रश्न 9.
व्यक्तित्व के निर्धारक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यक्तित्व के निर्धारकों से अभिप्राय उन सभी बातों या कारकों से होता है जो व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व के निर्माण में प्रभावकारी भूमिका निभाते हैं। इन्हें मुख्य रूप से दो वर्गों-आंतरिक तथा बाह्य कारकों या निर्धारकों में विभाजित किया जा सकता है।
आन्तरिक निर्धारक:
इससे तात्पर्य उन समस्त कारकों से होता है जो व्यक्ति में ही निहित होते हैं – जैसे उसकी शारीरिक संरचना, स्वास्थ्य, स्नायु संस्थान, ग्रन्थियाँ, रुचियाँ, बौद्धिक क्षमता, सामाजिक एवं संवेगात्मक विकास आदि।
बाह्य निर्धारक:
इससे तात्पर्य उन समस्त कारकों से है जो व्यक्ति के बाहर उसके वातावरण में विराजमान रहते हैं; जैसे-माँ के गर्भ में मिलने वाला वातावरण तथा जन्म के बाद मिलने वाला भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षिक वातावरण आदि।
अत: निर्धारक चाहे आंतरिक हो या बाह्य, व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में अपनी अहम् भूमिका का निर्वाह करते हैं।
प्रश्न 10.
बालक के व्यक्तित्व के विकास में विद्यालय के वातावरण का क्या महत्व है ?
उत्तर:
बालक या बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में विद्यालय के वातावरण का विशेष महत्व है। अध्यापक, प्रधानाध्यापक, सहपाठियों के व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण, शिक्षण विधियाँ, पाठ्यक्रम, पाठान्तर क्रियाओं का आयोजन, विद्यालय द्वारा बना कर रखे हुए ऊँचे आदर्श तथा मूल्य और विद्यालय का सामान्य वातावरण आदि सभी तत्व बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करते हैं।
यही कारण है कि जिन विद्यालयों के परिवेश एवं पढ़ाई-लिखाई के स्तर के बारे में काफी प्रसिद्धि होती है उनमें प्रवेश पाने के लिए काफी भीड़ रहती है और उन विद्यालयों से निकले हुए विद्यार्थियों की व्यक्तित्व सम्बन्धी एक विशेष छाप या पहचान होती है। अच्छे, सामान्य तथा निम्न दर्जे के विद्यालयों और उनमें प्राप्त वातावरण सम्बन्धी अनुभवों में से निकले हुए विद्यार्थियों के व्यक्तित्व सम्बन्धी अन्तरों को बड़े ही स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है और यही बात सिद्ध करने में पूरी तरह समर्थ है कि विद्यालय का वातावरण व्यक्तित्व निखारने के रूप में काफी अहं भूमिका निभाता है।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 2 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वंशानुक्रम तथा वातावरण का सापेक्षिक महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए वंशानुक्रम अधिक उत्तरदायी है या वातावरण, यह एक विवादास्पद प्रश्न है इस बारे में मनोवैज्ञानिक और विद्वान स्पष्ट रूप से दो पक्षों में विभाजित है। एक पक्ष वंशानुक्रम को अधिक महत्व देना चाहता है तो दूसरा वातावरण को। कट्टर वंशानुक्रमवादी व्यक्तित्व के विकास के लिए वंशानुक्रम को ही सब प्रकार से उत्तरदायी ठहराते हैं। इनके अनुसार व्यक्तित्व के निर्माण में शिक्षा, प्रशिक्षण और अन्य वातावरण सम्बन्धी शक्तियों के कार्य की तुलना लकड़ी की कुर्सी, मेज इत्यादि फर्नीचर पर पॉलिश या रंग करने के कार्य से की जा सकती है।
जिस तरह कोई भी अच्छी से अच्छी, पॉलिश या पेंट, मेज, कुर्सी या फर्नीचर में लगी हुई आम की लकड़ी को सागवान या शीशम की नहीं बना सकता, वह उसे चमका कर उसकी शोभा या आयु में केवल नाममात्र की वृद्धि कर सकता है, उसी तरह अच्छे से अच्छा वातावरण भी बच्चे की मूल प्रवृत्ति या विकास क्रम को नहीं बदल सकता। वह वही बनता है जो वंशानुक्रम द्वारा तय किया हुआ है।
दूसरी ओर कट्टर वातावरणवादी व्यक्तित्व के विकास में वंशानुक्रम को कोई भी भूमिका नहीं देना चाहते। व्यक्ति को अपने माता-पिता या पूर्वज से कुछ गुण या विशेषताएँ विरासत में मिलती हैं। इस बात को ये केवल कल्पना का महल समझते हैं। इसके अनुसार एक बालक वही बनता है जो उसका वातावरण उसे बनाता है। जो कुछ एक व्यक्ति ने किया है दूसरा भी अगर उसे समुचित वातावरण तथा अवसर प्राप्त हो जाए, वही कर सकता है। इस तरह से कोई भी बालक आगे जाकर गाँधी, लिंकन, शिवाजी या राणा प्रताप बन सकता है। वातावरण की शक्तियों पर अपनी अटूट आस्था व्यक्त करते हुए ‘वाट्यान’ जैसे वातावरणवादी ने तो यहाँ तक कह दिया कि, “आप मुझे कोई बालक दें, मैं उसे वही बना दूँगा जो आप चाहते हैं।”
इस तरह से वातावरण के पक्ष के विद्वान बालक की वृद्धि व विकास के लिए वातावरण को ही प्रमुख मानकर चलना चाहते हैं। अतः अपने-अपने विचारों की पुष्टि के लिए वंशानुक्रमवादी एवं वातावरणवादी दोनों ही मनोवैज्ञानिक प्रयोगों एवं परीक्षणों का आश्रय लेते रहे हैं। इनके परिणामों के आधार पर वे वंशानुक्रम और वातावरण दोनों की सापेक्ष महत्ता पर टिप्पणी भी करते रहे हैं।
प्रश्न 2.
शारीरिक वृद्धि एवं विकास के महत्व एवं उसकी शैक्षिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
किसी भी पहलू से सम्बन्धित वृद्धि व विकास को दूसरे पहलुओं से सम्बन्धित वृद्धि एवं विकास पर्याप्त मात्रा में प्रभावित करते हैं। शारीरिक वृद्धि व विकास के सम्बन्ध में भी यह बात पूरी तरह ठीक है। इस प्रकार से शारीरिक विकास व्यक्तित्व के सभी पक्षों के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अत: इस पर पूरा-पूरा ध्यान दिया जाना आवश्यक है। बच्चों का सर्वांगीण विकास करना शिक्षा का एक अहम् उद्देश्य है। इसलिए अध्यापक को शारीरिक वृद्धि और विकास की प्रक्रिया से अपने आपको परिचित करना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। विशेष तौर पर इस प्रकार का ज्ञान उसे निम्न रूप में सहायक सिद्ध हो सकता है –
- शारीरिक रूप से असामान्य बच्चों से वह परिचित हो सकता है। उनके मनोविज्ञान और समायोजन सम्बन्धी समस्याओं से भी वह अवगत हो सकता है।
- बालकों के समुचित विकास के लिए उनके शारीरिक स्वास्थ्य और विकास का ध्यान रखना भी अध्यापक का परम कर्त्तव्य है। शारीरिक वृद्धि व विकास की प्रक्रिया से परिचित होने से उसे इस कार्य में सहायता मिल सकती है।
- बच्चों की आवश्यकताएँ, रुचियाँ तथा एक तरह से उसका सम्पूर्ण व्यवहार शारीरिक वृद्धि और विकास पर निर्भर करता है।
इस दृष्टिकोण से एक बच्चा वृद्धि और विकास की विभिन्न अवस्थाओं के किसी भी वर्ग विशेष में किस प्रकार का व्यवहार करेगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए बाल्यावस्था में होने वाले शारीरिक विकास से परिचित हो जाने के बाद उनकी शारीरिक, संवेगात्मक और सामाजिक आवश्यकताओं को समझने में बहुत सहायता मिलती है। इस प्रकार के ज्ञान द्वारा अध्यापकों के लिए बालकों को उनके भली-भाँति समायोजित होने, उनकी समस्याओं को सुलझाने और आवश्यकताओं को पूरा करने में आसानी हो सकती है।
अतः इस प्रकार से शारीरिक वृद्धि व विकास की प्रक्रिया का ज्ञान अध्यापक को अपने उद्देश्यों की पूर्ति में बहुत अधिक सहयोग दे सकता है। इस ज्ञान से न केवल वह विद्यार्थी की आवश्यकता को जान सकता है, बल्कि वह उन्हें अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने और शारीरिक योग्यताओं और क्षमताओं को पर्याप्त विकसित करने में भी भरपूर सहयोग दे सकता है।
प्रश्न 3.
व्यक्तित्व की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तित्व की विशेषताएँ:
1. व्यक्तित्व अपूर्व और विशिष्ट होता है समाज में प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व अपने ही ढंग का होता है। कोई भी दो व्यक्ति, चाहे वह समरूप यमज (Identification) ही क्यों न हो, किसी भी समय बिल्कुल एक जैसा व्यवहार नहीं करते हैं।
2. व्यक्तित्व की दूसरी विशेषता उसकी आत्म-चेतना (Self-consciousness) है। जब व्यक्ति में आत्म चेतना जैसी वस्तु घर करने लगती है, तभी से उसके व्यक्तित्व का अस्तित्व प्रकाश में आता है।
3. सीखना (Learning) और अनुभवों का अर्जन, दोनों व्यक्तित्व के विकास में पूरी तरह से सहायक होते हैं। सीखने और अर्जन सम्बन्धी प्रक्रिया के फलस्वरूप व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
4. व्यक्तित्व वंशानुक्रम और वातावरण की संयुक्त उपज है। बच्चे के व्यक्तित्व का समुचित विकास करने में दोनों ही अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं।
5. व्यक्तित्व जड़ नहीं बल्कि गतिशील और निरन्तर परिवर्तित होने वाली वस्तु है। अपने समायोजन के लिए जो कुछ भी जरूरी होता है, व्यक्ति का व्यक्तित्व उसे वह सब कुछ देता है। समायोजन एक सतत् प्रक्रिया है। व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक समायोजन के लिए संघर्षरत रहता है। इस तरह व्यक्तित्व अस्थिर वस्तु न होकर गतिशील व परिवर्तनशील वस्तु बन जाता है।
6. व्यक्ति के व्यक्तित्व में सब कुछ निहित होता है। व्यक्तित्व वह सब कुछ है जो एक व्यक्ति अपने पास रखता है। इसमें व्यवहार के तीनों पक्ष-ज्ञानात्मक, क्रियात्मक व भावात्मक सम्मिलित हैं तथा इसका क्षेत्र केवल चेतन अवस्था में किए गए व्यवहार तक ही नहीं बल्कि अर्द्ध-चेतन (semi – conscious) और अचेतन व्यवहार तक फैला हुआ है।
अतः उपरोक्त विशेषताओं से यह बात स्पष्ट होती है कि व्यक्तित्व व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण आधार है, जिसके अनुसार वह समाज में रहते हुए अपना जीवन-यापन करता है।
प्रश्न 4.
व्यक्तित्व के निर्धारण में मनोवैज्ञानिक कारकों या निर्धारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मानव व्यवहार तथा व्यक्तित्व को प्रभावित करने की दृष्टि से मनोवैज्ञानिक कारक काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मनोवैज्ञानिक कारकों का वर्णन अग्र प्रकार से है –
1. बुद्धि तथा मानसिक विकास:
बालक की बुद्धि और मानसिक विकास का उसके व्यक्तित्व के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। व्यक्ति का सम्पूर्ण समायोजन, सीखने की प्रक्रिया, निर्णय लेने की क्षमता तथा समझदारी आदि सभी कुछ उसके बौद्धिक विकास पर ही निर्भर करता है। एक प्रकार से व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यवहार उसकी बुद्धि से ही नियमित रहता है।
2. रुचियाँ एवं दृष्टिकोण:
हमारा व्यवहार किन्हीं वस्तुओं, विचारों या व्यक्तियों के प्रति जैसा रहता है, यह बहुत कुछ हमारी रुचियों व दृष्टिकोणों पर निर्भर करता है। हम उन्हीं बातों को कहना, सुनना तथा करना चाहते हैं जिनमें हमारी किसी न किसी रूप में रुचि होती है।
3. इच्छा शक्ति:
इच्छा शक्ति को व्यवहार का नियंत्रक और चालक शक्ति कहा जाता है। दृढ़ इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति संवेगात्मक रूप से काफी संतुलित पाए जाते हैं। इसके विपरीत कमजोर इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व भी कमजोर साँचे में ढला रहता है व सर्वथा असमंजस की स्थिति में रहता है। उसे खुद पर विश्वास नहीं होता है। अत: कुछ विशेष सफलता प्राप्त करने की बात उसके जीवन में कम ही होती है। इस प्रकार इच्छा शक्ति की सबलता व निर्बलता व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में काफी अंतर पैदा कर देती है।
4. संवेगात्मक और स्वभावगत विशेषताएँ:
व्यक्ति का स्वभाव तथा संवेगात्मक विशेषताएँ उसके व्यवहार एवं व्यक्तित्व को दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। व्यक्ति में जिस प्रकार के सकारात्मक एवं नकारात्मक संवेगों की अधिकता होगी, संवेगात्मक परिपक्वता का जो स्तर होगा, स्वभावगत जैसी प्रवृत्ति व विशेषताएँ होंगी, आदतों, भावनाओं तथा स्थायी भावों का जिस प्रकार का संगठन होगा, उसका व्यक्तियों, विचारों एवं वस्तुओं के प्रति वैसा ही दृष्टिकोण बनेगा तथा उसका व्यवहार व व्यक्तित्व उसी प्रकार के रंग में रंगा हुआ दिखाई देगा।
इसी प्रकार स्वभावगत विशेषताएँ व्यक्तित्व को साँचों में ढालने की भूमिका निभाती रहती है। अत: उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्तित्व के निर्माण में मनोवैज्ञानिक कारकों की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
प्रश्न 5.
व्यक्तित्व के निर्माण में सामाजिक कारकों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सामाजिक कारकों की भूमिका:
1. माता-पिता:
माता-पिता की शिक्षा, उनके व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण, संवेगात्मक और सामाजिक व्यवहार, उनके आपसी सम्बन्ध तथा चरित्र का बच्चों के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है।
2. माता-पिता का बच्चे के प्रति दृष्टिकोण:
बच्चे के साथ माता-पिता किस प्रकार का व्यवहार करते हैं, वे अधिक लाड़ अथवा उनकी उपेक्षा करते हैं, इन बातों का प्रभाव भी बच्चों के व्यक्तित्व पर पड़ता है।
3. पास-पड़ोस:
पड़ोस में रहने वाले व्यक्तियों के बच्चे जो रहते हैं वे जिन बालकों के साथ खेलते हैं व समय व्यतीत करते हैं उन सभी का व्यवहार बालक के व्यक्तित्व पर दिखायी देता है। यही कारण है कि अच्छे पड़ोस की ओर ध्यान दिया जाना बालकों के व्यक्तित्व के सही विकास के लिए सबसे आवश्यक बात मानी जाती है।
4. पारिवारिक स्थिति व आदर्श:
परिवार की सामाजिक व आर्थिक स्थिति कैसी है, वह किन मूल्यों अथवा विश्वासों में श्रद्धा रखते हैं, किस संस्कृति व धर्म को अपनाते हैं, इन बातों का प्रभाव भी बच्चे के व्यक्तित्व पर पड़ता है।
5. धार्मिक संस्थाएँ:
गुरुद्वारे तथा चर्च आदि धार्मिक स्थान, उनमें चलने वाली धार्मिक तथा सामाजिक गतिविधियाँ आदि बालक से दिल तथा दिमाग पर शुरू से ही बड़े ही शान्त रूप में गम्भीर एवं स्थायी प्रभाव छोड़ने की क्षमता रखते हैं व इस तरह उसके व्यवहार एवं व्यक्तित्व के निर्धारण में अपनी शक्तिशाली भूमिका निभाते हैं।
6. अन्य सामाजिक संस्थाएँ, संगठन एवं साधन:
अनेक प्रकार की सामाजिक संस्थाएँ, क्लब, मनोरंजन तथा सम्प्रेषण के साधन (रेडियो, टेलीविजन, फिल्म आदि) साहित्यिक तथा ललित कलाओं से सम्बन्धित संस्थाएँ, पत्र-पत्रिकाएँ आदि बालक के व्यक्तित्व को ढालने में काफी प्रभावकारी सिद्ध हो सकते हैं।
अत: उपरोक्त कारकों से यह विदित होता है कि बालक अपने चारों ओर फैले सामाजिक वातावरण में जो कुछ भी देखते हैं उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करते हैं और उसी के अनुकूल उनका व्यक्तित्व भी इसी साँचे में ढलता चला जाता है।
प्रश्न 6.
साक्षात्कार विधि किसे कहते हैं ? इसके गुण व दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
साक्षात्कार वह पद्धति है जिसके द्वारा साक्षात्कारकर्ता वार्तालाप के द्वारा सूचनादाता के विचारों और भावनाओं में प्रवेश करके तथ्यों का संकलन करता है। मनोविज्ञान के अन्तर्गत इस विधि का प्रयोग व्यक्ति की मानसिकता की जाँच करने के लिए प्रश्नों के माध्यम से जानने की कोशिश की जाती है।
साक्षात्कार विधि के गुण:
- इस पद्धति का सबसे बड़ा महत्व इसकी मनोवैज्ञानिक उपयोगिता है। व्यक्ति के अपने कुछ विचार, भावनाएँ और धारणाएँ होती हैं। इनका अध्ययन सिर्फ साक्षात्कार पद्धति के आधार पर ही किया जा सकता है।
- अनेक बातें गोपनीय व आंतरिक जीवन से सम्बन्धित होती हैं। साक्षात्कार के द्वारा हम इन बातों को आसानी से जान लेते हैं।
- इस प्रकार का अध्ययन शिक्षित, अशिक्षित, ग्रामीण व नगरीय सभी स्तर के लोगों में किया जा सकता है जो सूचनादाता प्रश्नों को नहीं समझते हैं, परीक्षणकर्ता इन प्रश्नों को समझाकर उत्तर प्राप्त कर लेता है।
- साक्षात्कार विधि एक लचीली प्रणाली है, जिसमें आवश्यकतानुसार विषय-वस्तु एवं साक्षात्कार संचालन में परिवर्तन किया जा सकता है।
साक्षात्कार विधि के दोष:
- इस विधि में तथ्यों के संकलन में अधिक समय लगता है क्योंकि परीक्षणकर्ता को व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करना पड़ता है।
- इस विधि में जो तथ्य प्राप्त होते हैं, वे मौखिक होते हैं और परीक्षणकर्ता की स्मरण शक्ति पर आधारित होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि प्राप्त तथ्यों के सत्यापन की जाँच करने में असुविधा होती है।
- अनेक स्थितियों में सूचनादाता साक्षात्कारकर्ता को गलत सूचनाएँ दे देता है। ऐसी स्थितियों में अनुसंधानकर्ता जो प्रतिवेदन तैयार करता है, वह गलत होता है।
- इस विधि में साक्षात्कारकर्ता को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है; जैसे-सूचनादाता से सम्पर्क की समस्या, सूचनादाता को उत्तर देने के लिए तैयार करने की समस्या, उसके मनोविज्ञान के ज्ञान के अभाव की समस्या। इससे यह विधि अवैज्ञानिक प्रतीत होती है।
प्रश्न 7.
प्रश्नावली का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्नावली का अर्थ-प्रश्नावली प्रश्नों की एक सूची अथवा क्रमबद्ध तालिका है। यह सूचनाओं को एकत्रित करने वाला एक ऐसा उपकरण है जो कि प्रश्नों की सूची या तालिका के रूप में है। इसे सूचनादाता स्वयं करता है चाहे सूचनादाता ने इसे डाक द्वारा प्राप्त किया हो या व्यक्तिगत रूप में।
प्रश्नावली विधि की मौलिक विशेषताएँ:
1. प्रश्नों की सूची:
सही जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रश्नावली प्रश्नों की एक सूची या तालिका है जिन्हें एक प्रपत्र (फार्म) पर छपवाया जाता है।
2. विस्तृत क्षेत्र का अध्ययन:
प्रश्नावली विस्तृत क्षेत्र में बिखरे हुए सूचनादाताओं से सूचना एकत्रित करने की सबसे अधिक उपयोगी प्रविधि है जिसमें समय तथा धन भी कम लगता है।
3. शिक्षित सूचनादाताओं का अध्ययन:
प्रश्नावली में क्योंकि प्रश्नों के उत्तर स्वयं सूचनादाताओं द्वारा भरे जाते हैं, अत: यह केवल शिक्षित सूचनादाताओं के अध्ययन लिए ही प्रयोग में लायी जाती है।
4. आँकड़े संकलन करने की शीघ्रतम पद्धति:
प्रश्नावली आँकड़े एकत्रित करने की शीघ्रतम पद्धति है अर्थात् इसके द्वारा विविध क्षेत्रों में रहने वाले सूचनादाताओं से कम समय में ही वांछित सूचना एकत्रित की जा सकती है।
5. अप्रत्यक्ष पद्धति:
सामान्यतः क्योंकि प्रश्नावली को डाक द्वारा भेजा जाता है, अत: इसमें सूचनादाताओं का परीक्षणकर्ता से किसी प्रकार का प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है। यह आँकड़े संकलन करने की अप्रत्यक्ष पद्धति है।
6. गुप्त एवं आंतरिक जीवन से सम्बन्धित आँकड़ों की प्राप्ति:
प्रश्नावली में क्योंकि परीक्षणकर्ता का सूचनादाता से किसी प्रकार का प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता। अत: वह बिना किसी भय या संकोच के अपने जीवन से सम्बन्धित ऐसी सूचनाएँ भी दे देता है जो कि वह प्रत्यक्ष सम्बन्ध होने पर नहीं दे पाता। प्रश्नावली की यह एक मुख्य विशेषता है।
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