Rajasthan Board RBSE Class 9 Physical Education Chapter 11 विभिन्न खेल: ऐतिहासिक विकास, मापन एवं नियम
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 11 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 11 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हॉकी खेल में ‘केरीड फाउल’ क्या होता है?
उत्तर:
यदि किसी खिलाड़ी के शरीर से गेंद टकरा जाए तो केरीड फाउल हो जाता है।
प्रश्न 2.
खो-खो खेल में देर से प्रवेश करने को क्या कहते हैं?
उत्तर:
खो-खो खेल में देर से प्रवेश करने को लेट एन्ट्री कहा जाता है।
प्रश्न 3.
200 मीटर ट्रैक की लम्बाई कितनी होती हैं?
उत्तर:
200 मीटर ट्रैक की लम्बाई 94 मीटर होती है।
प्रश्न 4.
ट्रैक में दौड़ पथ की चौड़ाई कितनी रखी जाती है?
उत्तर:
1.22 मी. से 1.25 मीटर तक।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
खो-खो खेल के कौशलों को लिखिये।
उत्तर:
खो-खो खेल के कौशल (Skills)
- सिम्पल खो – इसमें सक्रिय अनुधावक बैठे हुए अनुधावक को साधारण विधि से खो देता है।
- लेट खो – यह खो रनर को चकराकर आउट करने के प्रयास में रनर को देखते हुए पीछे-पीछे खो देता है। जब भी कोई रनर चेन खेलता है तो उस समय सक्रिय चेजर, रनर के मूवमेन्ट को देखते हुए थोड़ी-सी देरी से खो देता है, क्योंकि रनर अपनी गति खो की आवाज सुनकर अपना मूवमेन्ट रखता है तथा उसकी गति को तोड़ने के लिए लेट खो देता है।
- एडवांस खो – जब कोई रनर डबल चेन खेलता है। तो उस समय सक्रिय चेजर, रनर से आगे निकलकर खो देता है।
- पोल खो – यह एक एडवांस मैथड है जिसमें सक्रिय चेजर द्वारा पोल पर उसका प्रयोग होता है। इस विधि को दो तरीकों से प्रयोग में लेते हैं।
- स्टेंडिंग पोल डाइव – जब पोल सक्रिय चेजर के. बाएँ हाथ में हो तो उस समय नं. 8 पर बैठा हुआ अनुधावक अपनी दायीं टाँग Leg Cross Step वर्ग में पहले बाहर निकालेगा, फिर बायीं टाँग पोल के लगभग समीप सेन्टर लाइन से बाहर रखता हुआ पोल के ऊपर से डाइव मारेगा। सक्रिय चेजर का वजन बायीं टाँग पर दूसरी टाँग, पीछे को हवा में और दायीं बाजू कोहनी जोड़ द्वारा पोल को पकड़ता हुआ बायीं बाजू सीधी रनर की ओर बढ़ायेगा। सक्रिय चेजर पोल पर स्थिति और चोट से बचने के लिए पेट का नरम भाग पोल के साथ लगायेगा। पोल डाइव के पश्चात् चेजर पोल लाइन क्रॉस करके वापिस जायेगा।
- रनिंग पोल डाइव – रनिंग पोल डाइव से पहले सभी सिद्धान्त Standing Pole Dive वाले ही होंगे। इसमें पीछे की ओर से भागता हुआ खिलाड़ी बिना किसी रुकावट के स्तम्भ मारता है। इसमें शरीर की स्थिरता और चोट से बचने के लिये अधिक ध्यान देना पड़ता है।
- रिंग गेम – यह रनर द्वारा खेली जाने वाली पद्धति है। इसमें रनर चेजर को छकाते हुए रिंग खेलता है तथा इसमें रनर को थकान कम होती है। यह दो स्थानों पर खेली जाती है। पहली मैदान के मध्य में तथा दूसरी दोनों पोल में से किसी एक पोल पर खेली जाती है।
प्रश्न 2.
वालीबॉल खेल में लिबरों खिलाड़ी की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
वॉलीबॉल खेल में लिबरो खिलाड़ी की विशेषताएँ – लिबरो खिलाड़ी स्कोरशीट में पहले से ही अंकित होता है। वह अलग रंग की पोशाक पहने होगा। यह बारह खिलाड़ियों में एक रक्षात्मक खिलाड़ी होता है, जिसे उसके साथी खिलाड़ी उसको लिबरो कहते हैं। यदि कोई लिबरो खिलाड़ी फिंगर पास आगे वाले क्षेत्र में बनाता है तो उसके साथी खिलाड़ी उसको अटैक नहीं कर सकते हैं। उसका मुख्य कार्य डिफेन्स करना है। अण्डर हैण्ड पास आगे वाले क्षेत्र में बना सकता है।
यदि लिबरो खिलाड़ी घायल हो जाता है, तो उसकी जगह किसी। भी खिलाड़ी को, जो मैदान में नहीं खेल रहा हो, लिबरो बना सकते हैं। लेकिन पहले वाला लिबरो खिलाड़ी ठीक होने के बाद वापस लिबरो के स्थान पर नहीं खेल सकता है। लिबरो खिलाड़ी टीम का कप्तान नहीं बन सकता है। लिबरो खिलाड़ी पीछे वाले क्षेत्र के खिलाड़ियों की जगह ही स्थानान्तरित होगा। यह खिलाड़ी पीछे वाले क्षेत्र में खेलता है। इस खिलाड़ी को आक्रमण करना वर्जित होता है। यह सर्विस और ब्लॉक भी नहीं कर सकता है। इसके स्थानापन्न की कोई सीमा नहीं होती है। लेकिन सर्विस की सीटी बजने से पहले ही साथी खिलाड़ी से बदली कर सकता है।
प्रश्न 3.
हॉकी खेल के मैदान की लम्बाई-चौड़ाई बताइये।
उत्तर:
इस खेल का मैदान समतल भूमि पर 92 मीटर लम्बा तथा 55 मी. चौड़ा होता है। 55 मी. की लाइन के मध्य 1.33 मीटर दायें तथा 1.33 मीटर बायें पर गोल खम्भे लगाए जाते हैं। गोल के क्षेत्र की लम्बाई 3.66 मीटर की होती है तथा खम्भों की ऊँचाई 2.13 मीटर की होती है। गोल के दोनों ही पोलों के ऊपर एक क्रास बराबर के नाप की लगी होती है। तथा गोल के पोल के पीछे की ओर 0.92 मी. पर जमीन के बाहर 4.6 मीटर के ऊँचे पोल लगाकर गोल क्षेत्र को जमीन की सतह पर 0.46 मी. की ऊँचाई के लकड़ी के तख्ते लगा कर कवर करना चाहिए।
प्रश्न 4.
दौड़ में बरती जाने वाली सावधानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दौड़ में बरती जाने वाली सावधानियाँ निम्न हैं –
- धावक को दौड़ में अपनी गति तेज करने के लिए अपने घुटने ऊपर उठाने चाहिए और जमीन पर पंजे शीघ्र लाने चाहिए। अनावश्यक लम्बे डग भरना तथा पैरों को मोड़कर दौड़ना हानिकारक है।
- धावक को बराबर दौड़ना चाहिए। दौड़ते समय लम्बे कदमों का प्रयोग किया जाए।
- लघु दूरी की दौड़ में धावक की समाप्ति रेखा के 10-15 गज दूर रहने पर पूर्ण वेग से दौड़ना चाहिए।
- दौड़ के पीछे मुड़कर अपने प्रतियोगी को देखना बहुत हानिकारक रहता है।
- धावक को प्रारम्भ में अपनी ही निर्धारित लेन में दौड़ना चाहिए। एक चक्कर के उपरान्त धावक कोई भी स्थिति (अन्य लेन) ग्रहण कर सकता है।
- दौड़ने में ऐसी पोशाक धारण करें जिससे अंग संचालन में किसी प्रकार की कठिनाई न हो।
- धावक को नंगे पैर या जूते पहनकर दौड़ना चाहिए।
- दौड़ते समय कदम और बाजू में सामंजस्य होना चाहिए।
प्रश्न 5.
कूद कितने प्रकार की होती है? लिखिये।
उत्तर:
कूद निम्न प्रकार की होती है –
- ऊँची कूद
- लम्बी कूद
- बाँस कूद
प्रश्न 6.
दौड़ प्रारम्भ करने की विधियाँ बताइए।
उत्तर:
दौड़ प्रारम्भ करने की विधियाँ निम्न हैं –
- खड़ा प्रारम्भ – खड़े होकर दौड़ प्रारम्भ करना या दबक। इस विधि में धावक खड़े होकर पिस्तौल के छूटने पर दौड़ना प्रारम्भ कर देता है।
- झुका प्रारम्भ – घुटनों को मोड़कर झुके होकर दौड़ना प्रारम्भ करना। इस विधि में धावक दौड़ प्रारम्भ करने से पूर्व प्रारम्भ रेखा से 13 इंच (33 सेमी.) दूर एक पैर को आगे रखकर दूसरे पैर का घुटना पहले पैर के मध्य से पीछे जमीन पर स्थिर कर लेता है। धावक के दोनों हाथों की अंगुलियाँ और अँगूठे दौड़ प्रारम्भ रेखा से कुछ पीछे दौड़ स्थल पर टिके हुए होते हैं।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वॉलीबॉल खेल के कौशलों का वर्णन करो।
उत्तर:
वॉलीबॉल खेल के कौशल-वॉलीबॉल खेल के मूलभूत कौशल चार प्रकार के होते हैं – (1) सर्विस (2) पासिंग (प्रहार) (3) स्मैश व (4) ब्लॉक।
(1) सर्विस – सर्विस वह क्रिया है जिसमें गेंद खेल में आती है। जब तक सर्विस करने वाली टीम से किसी प्रकार की गलती नहीं होती तब तक वही खिलाड़ी सर्विस करता है तथा टीक को अंक प्राप्त होते रहते हैं। जब सर्विस करने वाली टीम के द्वारा किसी प्रकार की गलती होती है, तो अंक व सर्विस दोनों ही विरोधी टीम को चले जाते हैं। रैफरी की सीटी बजने के 8 सैकण्ड के अन्दर खिलाड़ी द्वारा सर्विस करनी होती है। अगर खिलाड़ी नहीं कर पाता है, तो सर्विस व अंक विरोधी टीम को दे दिया जाता है। सर्विस करने से पहले सर्विस करने वाला खिलाड़ी मैदान के अन्दर नहीं आ सकता। सर्विस को हम कई प्रकार से कर सकते हैं, जैसे – अण्डर हैंड, फ्लोटिंग, साइड आर्म, हाई स्पिन, टेनिस आदि। मुख्यतः दो सर्विस प्रयोग में लेते हैं।
- अण्डर हैंड – इस सर्विस में जिस हाथ से गेंद को मारते हैं, उसके विपरीत हाथ के ऊपर गेंद को रखकर थोड़ी सी उछाल कर हाथ की आधी मुट्ठी बन्द करके पीछे से आगे की
ओर लाते हुए गेंद को मारते हैं, जिससे गेंद नैट के ऊपर से दूसरी टीम के मैदान में पहुँचे। - टेनिस सर्विस – इस सर्विस को अपर हैंड सर्विस भी कहते हैं। इस सर्विस में गेंद को अपने सिर के ऊपर तथा गेंद को मारने वाले हाथ के सामने करीब 1 से 1.5 मीटर की ऊँचाई तक उछालते हैं। मारने वाले हाथ की हथेली वाले हिस्से से, हाथ को पीछे से आगे की ओर लाते हुए ऊपर से नीचे आती हुई गेंद को अधिकतम ऊँचाई पर अधिक ताकत के साथ मारते हैं, जिससे गेंद हवा में नेट के ऊपर से विपक्षी मैदान में पहुँच जाये।
(2) पासिंग (प्रहार) – विपक्षी मैदान से आई गेंद को वापिस विपक्षी मैदान में लौटाने के लिए निम्न तकनीक अपनाई जाती है, जिसके लिए साधारणतया अण्डर हैण्ड पास, अपर हैण्ड फिंगर पास या स्मैश आदि कौशलों का प्रयोग करते हैं। पास दो प्रकार के होते हैं।
(i) अण्डर हैण्ड पास – अण्डर हैण्ड पास खेलते समय खिलाड़ी के दोनों हाथ एक साथ जुड़े होते हैं, दोनों पैर कंधे की चौड़ाई के बराबर आगे-पीछे खुले हुए रहते हैं तथा कमर से
ऊपर वाला हिस्सा सीधा रहता है। घुटनों के जोड़ को थोड़ा मोड़ते हुए दोनों हाथों को जोड़कर, कोहनी से नीचे वाले हिस्से से गेंद को उठाते हैं तथा जिस दिशा में भेजनी हो, थोड़ी सी दिशा देते हुए गेंद के पीछे हाथों को ले जाते हैं। गेंद को नेट के ऊपर से मारने के लिए भी इस पास से बॉल बनाते हैं।
(ii) फिंगर पास (अपर हैण्ड पास) – इस पास का लगभग 50 प्रतिशत प्रयोग अपने मैदान में गेंद को खड़ी करने के लिए किया जाता है, जिससे दूसरा खिलाड़ी हवा में उछालकर नैट के ऊपर से गेंद को मारता है। यह पास अँगुलियों व अँगूठे से खेला जाता है। इस पास में भी पैर आगे-पीछे थोड़े से खुले हुए होते हैं। हाथ सिर के ऊपर, माथे के सामने गेंद के आकार में गोलाई लिए हुए तथा सभी अँगुलियों के बीच में थोड़ी व समान दूरी होती है। अती दुई गेंद को थोड़ा-सा घुटने से झुककर अँगुलियों की सहायता से उठाया जाता है तथा गेंद को जिस दिशा में भेजनी हो उसी दिशा में हाथ, गेंद के पीछे सीधे हो जाते
(3) स्मैश – मैदान में उपस्थित सभी खिलाड़ी उछलकर नेट के ऊपर से गेंद को मार सकते हैं। अग्रिम पंक्ति के तीनों खिलाड़ी मैदान में कहीं से भी गेंद को मार सकते हैं, लेकिन पीछे की पंक्ति के खिलाड़ी आक्रमण रेखा के पीछे से कूदकर ही गेंद को मार सकते हैं। गेंद को मारने के बाद आगे की पंक्ति में गिर सकते हैं। आक्रमण रेखा को काटकर गेंद को मारते हैं तो वह गलती समझी जाती है और अंक विरोधी टीम को चला जाता है। लिबरो खिलाड़ी स्मैश नहीं कर सकता।
(4) ब्लॉक – अग्रिम पंक्ति के खिलाड़ियों द्वारा विरोधी टीम के खिलाड़ी द्वारा मारी गई गेंद को नेट के ऊपर व पास उछालकर हाथों द्वारा रोकने को ब्लॉक कहते हैं, जो केवल अग्रिम पंक्ति के तीनों खिलाड़ी ही कर सकते हैं ! ब्लॉक एक ही समय में एक खिलाड़ी या फिर दोनों व तीनों मिलकर भी कर सकते हैं। एक से अधिक खिलाड़ी एक साथ ब्लॉक करते हैं तो उसे संयुक्त ब्लॉक कहते हैं। ब्लॉकर के हाथ लगने के बाद गेंद को वही खिलाड़ी दुबारा भी उठा सकता है तथा उसी टीम के खिलाड़ी ब्लॉक के बाद गेंद को तीन बार छू सकते हैं। ब्लॉकर नेट के ऊपर से विरोधी टीम की गेंद को नहीं छू सकता। ब्लॉक करते समय नेट भी नहीं छू सकता और सर्विस को ब्लॉक नहीं कर सकता। अगर ब्लॉक करते समय गेंद ब्लॉकर के हाथों में लगकर बाहर चली जाती है, तो गेंद मैदान से बाहर मानी जाती है व विरोधी टीम को अंक मिल जाता है।
प्रश्न 2.
कबड्डी खेल के अधिकारी के संकेत बताते हुए नियमों को लिखो।
उत्तर:
कबड्डी खेल के अधिकारी के संकेत (Official Signal)
- जब मैच शुरू होता है तो एक साथ हाथ ऊपर उठाना तथा सीटी लम्बे तथा छोटे स्वर में बजाते हुए और हाथ को नीचे लाते हुए घड़ी शुरू करना।
- संघर्ष के बिना लॉबी में प्रवेश करने पर नजदीक वाली टाँग उठाना तथा हाथ से लॉबी में प्रवेश की तरफ इशारा करना।
- मैदान की सीमा के बाहर जाने पर दोनों हाथों को ऊपर उठाकर हथेलियाँ मुँह की तरफ करके बाहर की ओर इशारा करना।
- यदि कोई खिलाड़ी सीजर का प्रयोग करता है या खतरनाक तरीके से खेलता है तो अधिकारी दोनों हाथों की अँगुलियों को आपस में मिलाते हुए सीने के सामने की तरफ इशारा करता है।
- साँस तोड़ पर एक हाथ उठाकर हथेली मुँह के सामने करके बतानः।
- चेतावनी पर खिलाड़ी के सामने अंगुली करना तथा कार्ड दिखाना हरा कार्ड चेतावनी, पीला कार्ड मैच से या कुछ समय के लिए एवं लाल कार्ड प्रतियोगिता से बाहर करने के लिए दिखाया जाता है।
- टाइम आउट में एक हाथ को उल्टा करके दूसरे हाथ की अँगुली से टी (T) बनाना।
- हॉफ टाइम पर सीने के सामने दोनों हाथों को क्रॉस करते हुए मिलाना।
- पाइंट आउट की स्थिति में जिस टीम के खिलाड़ी आउट हुए हैं उसी दिशा में उतनी ही अँगुलियाँ हाथ ऊपर करके बताना। जिस टीम को स्कोर मिला है उसकी तरफ हाथ कन्धे की सीधे में करके बताना।
- स्थानापन्न दोनों हाथों को सामने लाकर आपस में घुमाना।
- बोनस पाइंट एक हाथ कंधे के समानान्तर लाकर अँगूठे को ऊपर की तरफ करना।
- तकनीकी पाइंट हाथ कंधे की सीध में लाकर अँगूठे को नीचे की ओर दर्शाना।
- मैच समाप्त होने पर दोनों हाथों के कंधों को ऊपर उठाकर हाथों को नीचे की तरफ करके इशारा करना।
कबड्डी खेल के नियम – निम्न हैं –
- टॉस जीतने वाली टीम यह निर्णय करती है, कि वह पहले रेड डालेगी या अपनी पसन्द के कोर्ट का चयन करेगी। आधे समय के बाद जितने खिलाड़ी जीवित हैं को आगे खेलने का अधिकार दिया जाता है।
- किसी संघर्ष के बिना यदि किसी टीम का खिलाड़ी लॉबी लाइन को छू देता है, तो उसे आउट माना जाता है।
- यदि रेडर व पकड़ने वाला खिलाड़ी संघर्ष के दौरान मैदान से बाहर चला जाता है, तो दोनों को आउट माना जाता है।
- आउट खिलाड़ी को उसी क्रम में पुनः जीवित किया जा सकता है, जिस क्रम में वह आउट हुआ था।
- यदि एक टीम अपनी विरोधी पूरी टीम को आउट कर देती है, तब उसे ‘लोना’ मिलता है। लोना के लिए दो अतिरिक्त अंक मिलते हैं और इसके बाद खेल जारी रहता है।
- यदि एक रेडर विपक्षी पाले में रेड के दौरान साँस तोड़ देता है, तब उसे आउट करार दे दिया जाता .
- एक समय में केवल एक रेडर ही विपक्षी मैदान में जा सकता है।
- यदि रेडर जो विपक्षियों द्वारा पकड़ लिया जाता है। और उनकी पकड़ से बचकर निकल कर अपने मैदान में सुरक्षित लौट आता है, तब उसे अंक दिये जाते हैं।
- दोनों ओर से किसी भी खिलाड़ी के आउट होने पर एक अंक मिलता है, जिस ओर से लोना किया जाता है उसे दो अतिरिक्त अंक दिये जाते हैं।
- रेड खत्म होने के बाद विरोधियों के रेडर को तुरन्त भेजना होता है। जब रेडर विपक्षी मैदान या पाले में प्रवेश करता है तो उसे ‘कबड्डी-कबड्डी’ बोलना शुरू करना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो अम्पायर उसे वापिस बुला लेगा। वह रेड डालने की अपनी बारी आँवा देता है। ऐसी स्थिति में विरोधी टीम को रेड का मौका दिया जाता है। यदि वह नियमों का उल्लंघन करता है, तो विपक्षी को एक अंक दिया जाता है और रेडर सुरक्षित रहता है।
- रेडर को ‘कबड्डी’ शब्द लगातार बोलते रहना होता है। यदि वह कबड्डी शब्द नहीं बोलता है तो उसे अम्पायर द्वारा वापस बुला लिया जायेगा और विरोधियों को रेड का मौका दिया जायेगा। वह आगे खेल जारी नहीं रख सकता।
- यदि कोई खिलाड़ी आउट होकर वापस चला जाये तो पुन: वापिस आकर रेडर को पकड़ लेता है, तो रेडर सुरक्षित माना जायेगा।
- रेडर के रेड देकर वापिस आने के पाँच सैकण्ड के बाद तक यदि विपक्षी टीम रेड नहीं करे तो रेड रद्द कर दी जाती है।
- यदि रेडर टच लाइन क्रॉस किये बगैर अपने पाले में वापिस आ जाता है, तो उसे आउट घोषित किया जाता है।
- यदि प्रतियोगिता नॉक-आउट पद्धति के आधार पर खेली जा रही है, तो दोनों टीमों के अंक समान होने पर पाँच-पाँच मिनट का अतिरिक्त समय दिया जाता है। फिर भी बराबर होने की स्थिति में दोनों टीमों को पाँच-पाँच रेड दी जायेंगी। फिर भी परिणाम न निकलने पर सडन डैथ का नियम लागू होगा।
- किसी कारण मैच रुक जाये, तो 20 मिनट के भीतर पुनः प्रारम्भ करना होता है अन्यथा मैच नये सिरे से पुनः प्रारम्भ होगा।
- खेल के समय में किसी खिलाड़ी को चोट लग जाये, तो कप्तान निर्णायक की आज्ञा से 4 (30-30 सेकण्ड के) टाइम आउट ले सकता है। टाइम आउट की अवधि 2 मिनट से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- रेडर 30-35 सेकण्ड तक रेड दे सकता है। इसके पश्चात् निर्णायक चाहे तो आउट घोषित कर सकता है।
प्रश्न 3.
खो-खो खेल का ऐतिहासिक विकास लिखो।
उत्तर:
खो-खो खेल का ऐतिहासिक विकास-भारत वर्ष में प्राचीनकाल से ही बहुत से खेल प्रचलित हैं, जैसे रस्साकशी, कबड्डी, कुश्ती, खो-खो आदि। खो-खो पूर्ण रूप से भारत का खेल है। यह खेल महाराष्ट्र की देन है। प्रारम्भ में इस खेल के निम्न नियम थे –
- पीछे से खो देना
- खिलाड़ी का मुँह विपरीत दिशा में रहना।
- खो करने के बाद क्रॉस लाइन के बीच में नहीं जा सकता था
- पोस्ट व खिलाड़ी की संख्या और मैदान के बारे में कोई माप नहीं था।
1955 में भारतीय खो-खो संघ का गठन हुआ। 1960 में प्रथम राष्ट्रीय खो-खो पुरुष प्रतियोगिता आयोजित की गई। 1961 में कोल्हापुर में राष्ट्रीय खो-खो खेल प्रतियोगिता में महिलाओं को भी सम्मिलित किया गया। इस खेल के प्रसार के लिए 1982 में दिल्ली में आयोजित नवें एशियाई खेलों के दौरान खो-खो को प्रदर्शन मैच के रूप में प्रदर्शित किया गया। 1985 में राष्ट्रीय खेल भारतीय ओलम्पिक संघ द्वारा दिल्ली में आयोजित किये गये थे, उनमें खो-खो को भी सम्मिलित किया गया। 1987 में सोवियत संघ के लेनिनग्राद शहर में भारतीय महिला खो-खो टीम का प्रदर्शन किया गया। इसके अतिरिक्त बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, सिंगापुर व नेपाल आदि देशों से भारत के मैत्रीपूर्ण मैच खेले गए।
प्रश्न 4.
एथलेटिक्स में दौड़ने की अवस्थाओं व प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर:
एथलेटिक्स में दौड़ने की अवस्थाएँ – दौड़, आरम्भ करने की निम्न विधियाँ हैं –
- खड़े होकर दौड़ आरम्भ करने की विधि
- झुककर या बैठकर दौड़ आरम्भ करने की विधि-स्प्रिन्ट दौड़ में दौड़ का आरम्भ झुककर ही किया जाता है। खड़े होकर इस प्रकार की दौड़ आरम्भ नहीं की जाती है।
झुककर या बैठकर दौड़ आरम्भ करने की विधियाँ –
- बंच आरम्भ
- मध्यम आरम्भ व
- फैला हुआ आरम्भ
इन तीनों दौड़ों को आरम्भ करने की विधियों का उपयोग खिलाड़ी अपनी ऊँचाई व सुविधा के अनुसार करता है। बंच आरम्भ में धावक के पैरों की दूरी कम पाई जाती है (6-11 इंच तक), मध्यम आरम्भ में धावक के पैरों के बीच की दूरी मध्यम होती है (16 से 21 इंच के बीच) तथा फैला हुआ आरम्भ में धावक के पैरों के बीच की दूरी अधिक होती है, जो लगभग 16-20 इंच के मध्य होती है। दौड़ आरम्भ करने से पूर्व सभी धावकों को प्रारम्भिक रेखा के पास अपनी-अपनी रेखा में खड़ा किया जाता है। उनको ऑन युवर मार्क्स कहा जाता है।
ऑन युवर मार्क्स – यह आरम्भिक रेखा पर आने का आदेश स्टार्टर द्वारा दिये जाने पर सभी धावक अपनी-अपनी लाइन पर और अपने-अपने ब्लॉक पर अवस्था ले लेते हैं। यह अवस्था आरम्भिक रेखा से पीछे ली जाती है अर्थात् शरीर का कोई भाग इस रेखा को नहीं छूना चाहिए। यह अवस्था शीघ्रातिशीघ्र ग्रहण कर लेनी चाहिए।
स्टार्ट ब्लॉक पर अवस्था –
- धावक को सर्वप्रथम अपने हाथ की हथेलियाँ आरम्भिक रेखा से आगे भूमि पर रखनी चाहिए। हथेलियाँ भूमि पर चपटी रखी जानी चाहिए ताकि धावक अपनी लेन में घुटनों की अवस्था में आ जाये।
- धावक को सर्वप्रथम अपना पिछला पैर ब्लॉक पर रखना चाहिए। पिछला पैर ब्लॉक पर रखकर उसको बलपूर्वक पीछे की ओर धकेलना चाहिए ताकि यह निश्चित किया जा सके कि यह पीछे नहीं खिसकेगा।
- फिर अगला पैर अगले ब्लॉक पर रखना चाहिये।
- यह निश्चित कर लेना चाहिये कि धावक के दोनों पैरों की अँगुलियाँ ब्लाकों से भली प्रकार लगी होनी चाहिए।
- धावक अपने हाथों को आगे-पीछे ऊपर-नीचे झुलाए।
- धावक को दोनों हाथ आरम्भ रेखा के पास रखने चाहिए। दोनों हाथों के बीच की दूरी कंधों के बीच की दूरी के समान हो तथा हाथ कोहनी से सीधे हों। अँगूठा अन्दर की तरफ तथा उँगलियाँ बाहर की ओर तथा चारों उंगलियाँ एक साथ रखनी चाहिए। अँगूठे की सहायता से पुल की आकृति बनानी चाहिए।
- धावक को बहुत आरामदेय स्थिति लेनी चाहिए।
दौड़ की स्थिति में आने के आदेश पर श्रावक को अपने शरीर के मध्यम भाग को ऊपर उठाना चाहिए। शरीर के भाग को आरम्भ रेखा से आगे ले जाना चाहिए। दोनों हाथ सीधे तथा आगे की ओर झुके होने चाहिए तथा शरीर का भार दोनों हाथों की अँगुलियों पर ले जाना चाहिए। सिर साधारण अवस्था में तथा आँखें 2-3 मीटर आगे गड़ी हों। धावक को इस अवस्था में रहकर दौड़ आरम्भ करने के आदेश की प्रतीक्षा करनी चाहिए। इसके बाद ही दौड़ आरम्भ करने का संकेत मिलता है।
दौड़ आरम्भ करना – धावक को गन की ध्वनि सुनकर शीघ्रातिशीघ्र अपने ब्लॉक को छोड़ देना चाहिए। धावक को ब्लॉक छोड़ते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- धावक को दौड़ आरम्भ करते समय कभी भी कूदना नहीं चाहिए, उससे धावक की गति का ह्रास होता है।
- धावक को अपने शरीर को एकदम सीधा नहीं करना चाहिए।
- हाथों तथा पैरों की गति समन्वित होनी चाहिए।
- कन्धे किसी भी ओर झुके नहीं होने चाहिए।
दौड़ की स्थिति – धावक को अपनी पूर्ण गति के साथ दौड़ना चाहिए। दौड़ते समय धावक का शरीर आगे की तरफ झुका होना चाहिए। पैरों को आगे की तरफ अधिकतम ऊँचाई पर लाना चाहिए, जिससे दूरी अधिक पी जाती है। एथलेटिक्स में दौड़ के प्रकार – गति की विभिन्न दूरियों के अनुसार दौड़ों को तीन भागों में बाँटा गया है
- स्प्रिन्ट व छोटी दूरी की दौड़
- मध्यम दूरी की दौड़
- लम्बी दूरी की दौड़
(1) स्प्रिन्ट व छोटी दूरी की दौड़ –
(100 मीटर, 200 मीटर, 400 मीटर) स्प्रिन्ट का अर्थ है – कम दूरी वाली दौड़ और जो पूरे वेग से दौड़ी जाए। इस दौड़ में धावक द्वारा कम से कम समय में अधिकतम गति प्राप्त कर दौड़ की समाप्ति रेखा तक पूर्ण वेग रखा जाता है। इस दौड़ की प्रारम्भिक गति का काफी महत्त्व रहता है। लेकिन गति को लगातार जारी रखना भी अति महत्त्वपूर्ण है। अतः स्प्रिन्ट दौड़ की मूल तकनीकें निम्न हैं-
- दौड़ आरम्भ करने की विधियाँ
- ब्लॉकर अवस्था
- ब्लॉक को छोड़ना
- गति वृद्धि
- दौड़ने की स्थिति
- दौड़ की समाप्ति
(2) मध्यम दूरी की दौड़ –
- मध्यम दूरी की दौड़े 800, 1500 व 3000 मीटर
- लम्बी दूरी को दोड़े – 5000 व 10000 मीटर।
मध्यम व लम्बी दूरी की दौड़ों में सफलता पाने के लिए धावक को एकसमान गति से दौड़ना चाहिए। इन दौड़ों में धावक को पूर्ण तेज गति से नहीं दौड़ना चाहिए वरना धावक दौड़ के पूर्ण होने से पूर्व थक जायेगा तथा आगे की गति भी कमजोर रहेगी। इससे धावक की ऊर्जा भी अधिक नष्ट होती है। अतः धावक को मध्यम व लम्बी दूरी की दौड़ के लिए एक सतत् आवश्यक गति से दौड़ को पूर्ण करना चाहिए, जिससे उसको सफलता मिल सके तथा साथ में ऊर्जा भी कम नष्ट हो।
प्रश्न 5.
हॉकी खेल में पेनल्टी कॉर्नर को समझाइये।
उत्तर:
हॉकी खेल में पेनल्टी कॉर्नर – रक्षक दल के खिलाड़ी ‘डी’ में कोई फाउल करता है 23 या 25 गज की रेखा के अन्दर से जानबूझकर अपनी गोल लाइन से बाहर भेज देते हैं। “तों पेनल्टी कॉर्नर दिया जाता है।
प्रश्न 6.
हॉकी खेल के इतिहास व खेल कौशल का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हॉकी खेल का इतिहास – हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है। इस खेल को स्त्री व पुरुष दोनों ही खेल सकते हैं। इसमें खिलाड़ी हॉकी स्टिक से गेंद को हिट करते हुए । विरोधी के गोल में डालने का प्रयास करते हैं। इस खेल में जो टीम सबसे अधिक गोल बना लेती है वही विजयी होती है। भारत में इस खेल को राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएँ ‘बेटन कप’ एवं ‘आगा खाँ कप’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। सन् 1928 में भारत ने प्रथम बार हॉकी का स्वर्ण पदक जीता। भारत ने 1984 में टोक्यो ओलम्पिक में तथा 1980 में मास्को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता। आज संसार में कई अन्य देशों में भी हॉकी का अच्छा विकास हुआ है; जैसे पाकिस्तान, जापान, चीन, पश्चिमी जर्मनी, हालैण्ड, आस्ट्रेलिया आदि।
खेल कौशल –
- गोल करना – गेंद को पूरी तरह से गोल लाइन को पार करते हुए दोनों ही खम्भों के बीच में से पार जाना गोल माना जाता है। यह भी जरूरी है कि आक्रमणकारी टीम के खिलाड़ी द्वारा गेंद को गोल के घेरे के अन्दर से हिट किया गया हो। यदि रक्षक की स्टिक लगकर भी गेंद जाती है तो भी गोल हो जाता है।
- फाउल – फाउल तब माना जाता है जबकि –
- किसी भी खिलाड़ी को गेंद खेलते समय स्टिक कन्धे के ऊपर उठाने पर।
- विरोधी के टाँग फँसाने पर।
- उल्टी हॉकी से गेंद को मारने पर।
- हाथ के अलावा शरीर के किसी अन्य हिस्से से। गेंद को रोकने पर।
- विरोधी को हाथ से पकड़ने पर।
- हुड करने पर।
- गेंद मारना – गेंद मारने को हिट करना कहा जाता है। साधारण रूप में गेंद को हिट करने के लिए खिलाड़ी गेंद को बाएँ पैर के सामने रखकर, कमर झुकाकर, गेंद पर दृष्टि स्थिर करके स्टिक को मजबूती से पकड़कर इस प्रकार हिट करता है। कि उसकी स्टिक कन्धे की ऊँचाई से ऊपर उठने पाए। गेंद को आगे, पीछे, दाएँ, बाएँ सभी ओर हिट करना पड़ता है। हवा में उछलती आती गेंद को दबाकर, रोक कर हिट किया जाता है। स्थिर अवस्था में या कभी-कभी गेंद को बिना रोके ही हिट कर दिया जाता है। गेंद को रोक कर स्कूप या ड्रिबल कर सकते हैं।
- फ्लिक – ढीली कलाइयों से स्टिक के नीचे के भाग से गेंद सटाकर कलाई के झटके से गेंद ऊँची उठाकर दूर भेजने को फ्लिक करना कहते हैं।
- स्कूप (Scoop) – कोहनी और कलाई के सहारे स्टिक के नीचे वाले भाग को गेंद के बिल्कुल नीचे रखकर गेंद को ऊपर उछाल दिया जाता है। विरोधी खिलाड़ियों से घिरे रहने पर गेंद को स्कूप करके उनसे बचाकर निकाल दिया जाता है।
- ड्रिब्लिंग – गेंद को स्टिक के नीचे के भाग से चिपकाए कभी दाहिने और कभी बायीं ओर हल्क-हल्के मारते हुए आगे बढ़ने को ‘ड्रिब्लिंग’ कहते हैं। इसमें गेंद खिलाड़ी से एक फुट से अधिक दूर नहीं होनी चाहिए। ड्रिब्लिंग का उपयोग तब किया जाता है जब समीप में कोई विरोधी खिलाड़ी नहीं होता है।
- पुश (Push) – पुश की गई गेंद जमीन से सटकर आती है। चलते-चलते व खड़े-खड़े ड्रिब्लिंग करते हुए कभी भी पुश किया जा सकता है। पुश द्वारा खिलाड़ी आसानी से अपने साथी को गेंद दे सकता है या गोल में डाल सकता है।
- पुश इन – यदि किसी खिलाड़ी के हाथ को छूती हुई गेंद सीमा रेखा से बाहर चली जाए तो विरोधी टीम के खिलाड़ियों को पुश इनका मौका दिया जाता है।
- फ्री हिट – किसी भी टीम के खिलाड़ी द्वारा फाउले करने पर विरोधी टीम को फ्री हिट दिया जाता है। यह हिट उसी स्थान से की जाती है जिस स्थान पर फाउल हुआ है।
- कॉर्नर हिट – यदि गेंद खम्भों की रेखा से रक्षक दल के खिलाड़ी को छूती हुई मैदान से बाहर जाती है तो आक्रामक टीम को ‘कॉर्नर हिट’ दिया जाता है।
- पेनल्टी कॉर्नर – रक्षक दल के खिलाड़ी ‘डी’ में कोई फाउल करता है, 23 या 25 गज की रेखा के अन्दर से जानबूझकर अपनी गोल लाइन से बाहर गेंद भेज देते हैं तो पेनल्टी कार्नर दिया जाता है।
- पेनल्टी स्ट्रोक – गोल घेरे में यदि रक्षक टीम को खिलाड़ी जान-बूझकर फाउल करता है तो फिर पेनेल्टी स्ट्रोक दिया जाता है। इसमें गोल के क्षेत्र में केवल गोलकीपर बचाव के लिए खड़ा रहता है और आक्रामक टीम का एक खिलाड़ी गोल रेखा में 7 मीटर दूर स्थित पेनल्टी बिन्दु से गेंद को हिट करता है।
- केरीड फाउल – यदि किसी खिलाड़ी के शरीर से गेंद टकरा जाए तो केरीड फाउल हो जाता है।
- हॉकी पकड़ना – हॉकी स्टिक को दाहिने हाथ से नीचे से मजबूती से तथा बाएँ हाथ से ऊपर से ढीली पकड़ना चाहिए।
- कलाई का प्रयोग – पुश करते समय ताकत का प्रयोग न करके कलाई को प्रयोग करते हैं।
- गेंद दबाना – तेजी से आती हुई गेंद को हॉकी से पकड़ कर दबा देना चाहिए और ऊँची आती गेंद को ऊपर से दबानी चाहिए।
- टैकलिंग – विरोधी खिलाड़ी से गेंद प्राप्त करने का प्रयास टैकलिंग कहलाता है। टैकलिंग करते समय खिलाड़ी पंजों के बल पर रहकर दोनों हाथों में स्टिक लेकर गेंद छीनने का प्रयत्न करता है।
- चकमा देना – निगाह एवं सिर को एक तरफ करके गेंद को दूसरी तरफ निकालने की क्रिया को ‘डॉज (Dodge) या चकमा देना’ कहते हैं।
प्रश्न 7.
भाला फेंक के अन्तर्गत भाले की पकड़, दौड़ना, त्रिकोण बनाना, फेंकना आदि बिन्दुओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाला फेंकना – भाले को भली प्रकार से पकड़ना चाहिए। इसे कंधे के ऊपर से या श्रोइंग भुजा के ऊपरी भाग से फेंकना चाहिए। एथलीट समानान्तर रेखाओं को पार नहीं कर सकता। एथलीट को उसके कुशलतम प्रदर्शन के आधार पर ही अंक प्रदान किए जाने चाहिए। भाला फेंकने की तकनीक-भाला लकड़ी तथा धातु का बना एक सीधा डंडा होता है जो पुरुषों के लिए 2.60 मीटर (आठ फीट छ: इंच) से 2.70 मीटर (आठ फीट सवा दस इंच) तक की लम्बाई तक का होता है। इसका अगला भाग नुकीला होता है तथा बीच में पकड़ने के लिए हत्थी होती है। पुरुषों के लिए भाले का वजन 800 ग्राम एवं महिलाओं के लिए 600 ग्राम होता है।
- भाले (जैवेलियन) की पकड़ – भाले को आराम से पकड़ने के लिए खुले हाथ के बीच में रखकर पकड़ना चाहिये ताकि भाले के चारों तरफ अँगुलियाँ रखी जा सके और भाले को पकड़ने के लिए अँगूठा और दूसरी अँगुलियाँ ऊपर रहें। पहली अँगुली भाले के ऊपर रहती है और शेष अन्य अँगुलियाँ भाले को पकड़े रहती हैं। भाला हाथ में पकड़कर रखना चाहिये।
- भाले के साथ दौड़ना – भाले को लेकर हवा में तैरते हुए आगे बढ़ना चाहिये, भाले को दाहिने कन्धे से ऊपर ले जाते समय इसका सिरा नीचे की ओर होता है। भाला फेंकने के लिए 36.5 मीटर तक दौड़ना चाहिये।
- सही स्थिति में त्रिकोण बनाने का अभ्यास – भाला लेकर भागते समय चैक मार्क’ पर पड़ना चाहिये तथा दूसरा कदम 30 का कोण बनाते हुए पड़ना चाहिये। पाँचवाँ कदम सबसे बड़ा होता है और यह लगभग सीधा, उस समय पड़ना चहिये जब भाला फेंकने की स्थिति में आ जाये। छठा कदम उल्टा होता है। पाँवों, टाँगों और शरीर की इन क्रियाओं के दौरान सिर और बाजू सहायक के रूप में कार्यरत होते हैं।
- फेंकना – भाला फेंकते समय 45° के कोण पर प्रक्षेपित किया जाए। भाला हमेशा पीछे की ओर रखा जाता है। जब भाला फेंकने के लिए सहायक शरीर के सभी अंगों का बल (दाहिनी ओर थोड़ा तिरछा होकर कमर को टेढ़ा करके घुटने फैलाकर और बायें पैर को पीछे की ओर करके पूरी शक्ति के साथ) उसमें लग जाता है तभी फेंकना चाहिये।
- सामान्य स्थिति में लौटना – भाला हाथ से निकलते ही आगे की ओर न बढ़कर शरीर का संतुलन बनाये रखकर पीछे की ओर से बाहर निकलना आवश्यक होता है। इसे ही सामान्य स्थिति में लौटना कहा जाता है।
- भाला फेंक का मैदान व रनवे – भाला फेंकने के लिए कम से कम 30 मीटर व अधिकतम 36.50 मीटर लम्बा एवं 4 मीटर चौड़ाई दौड़ मार्ग चाहिये। सामने 70 मिमी. की चाप वक्राकार सफेद लोहे की पट्टी होगी जो कि दोनों ओर 1.50 मीटर निकली होगी। इसको सफेद चूने से भी बनाया जा सकता है। यह रेखा 8 मीटर सेन्टर से खींची जा सकती है।
प्रश्न 8.
दौड़की तकनीक (युक्तियाँ) लिखिए। बाधा दौड़ एवं रिले दौड़ का अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
दौड़ की तकनीक (युक्तियाँ)-एक अच्छे खिलाड़ी में दौड़ की निम्नलिखित तकनीक होनी चाहिये|
- छोटी या तेज दौड़ में कोहनियाँ 90 डिग्री का कोण बनाती हुई शरीर के आजुबाजु रखें। सही स्टार्ट लेकर धीरे-धीरे गति बढ़ाएँ। कदम और बाजू का सामंजस्य रखें क्योंकि बाजू की गति के अनुसार दौड़ की गति बढ़ती है।
- मध्यम व लम्बी दूरी की दौड़ के लिए साहस, शक्ति और धैर्य के साथ सामान्य गति बनाए रखें, दौड़ का अन्तिम भाग पूरी शक्ति लगाकर तीव्रता से पूरा करें।
- बाधा (हर्डल) दौड़ के लिए अधिक उछाल न लेकर सामान्य कूद के साथ दौड़ के कदम रखें, दृष्टि सामने की बाधा पर रहे। पूरे समय गति क्रमशः बढ़ती रहे। दौड़ समाप्त होने पर भी कुछ दूरी तक दौड़ते रहें। एक दम रुकें नहीं।
- रिले दौड़ के लिए 20 मीटर क्षेत्र में ही ‘बैटन’ की बदली की जाए। बैटन बदलते समय दृष्टि सामने तथा गति की तीव्रता बनाए रखें। दौड़ के अन्तिम छोर पर पूरी शक्ति और साहस से दौड़कर लक्ष्य को पाने का प्रयास करें। बाधा दौड़ एवं रिले दौड़ में अन्तर – रिले दौड़े इन्हें समूह दौड़े भी कहते हैं। इनमें एक समूह भाग लेता है। समूह के साथ यह दौड़ होती है, जैसे 4 x 100 या 4 x 400 मीटर बाधा दौड़| इस प्रकार की दौड़े बाधाओं (हर्डल) को पार करते हुए की जाती हैं। दौड़ की लम्बाई अधिकतम 400 मीटर हो सकती है।
प्रश्न 9.
फेंक कितने प्रकार की होती है? तश्तरी फेंक की पद्धति एवं ध्यान देने योग्य बातें लिखिए।
उत्तर:
फेंक के प्रकार –
- गोला फेंकना।
- तार गोला फेंकना
- चक्का फेंकना
- डिस्कस सर्कल या तश्तरी फेंक
डिस्कस सर्कल या तश्तरी फेंक – सर्कल को निर्मित करने के लिए लोहा, स्टील या अन्य उपयुक्त धातु को प्रयोग किया जाता है।
तश्तरी फेंक में ध्यान रखने योग्य बातें –
- फेंकने के समय वृत्त की सीमा के बाहर नहीं छूना चाहिए।
- फेंकना निर्धारित सेक्टर में ही होना चाहिए।
- तश्तरी के जमीन पर गिरने के बाद फेंकने के वृत्त के पिछले अर्द्धभाग से बाहर निकलना चाहिए।
डिस्कस (तश्तरी फेंक) की पद्धति – वृत्त में जाकर तश्तरी फेंकने से पूर्व हथेली पर इस प्रकार रखा जाता है कि तश्तरी की किनारी अँगुलियों के सिरों के पास वाले जोड़ में स्थित हो जाए और अँगूठा उसे सहारा देता रहे तथा तश्तरी के किनारे का दूसरा भाग हमारी कलाई को स्पर्श कर ले। इसे तश्तरी की ‘ग्रिप’ कहते हैं। तश्तरी को इस प्रकार भली-भाँति ग्रिप में लेने के उपरान्त जिस ओर तश्तरी फेंकनी है, उधर अपनी पीठ करके हाथ को सीधा रखकर तश्तरी को बायें स्विंग कराते हुए, कोहनी को सीधा किया जाता है और तश्तरी को नीचे की ओर लाया जाता है। इसके साथ ही कमर को झुकाते हुए अपने दाहिनी ओर घुमाते हैं।
इस प्रकार दो-तीन बार हाथ को स्विंग करते हुए पूरी शक्ति के साथ गोले (वृत्त) में चक्कर लगाते हुए। गोले में दर्शायी गई 34,92° अंश के कोण की रेखाओं के मध्य आते हुए वृत्त के भीतर से ही तश्तरी को फेंक दिया जाता है और वृत्त के पिछले आधे भाग से बाहर निकल जाना पड़ता है न कि आगे से। तश्तरी फेंकते समय दृष्टि उसी कोण में रहनी चाहिये जिस कोण में तश्तरी फेंकनी चाहिए।
डिस्कस थ्रो के सामान्य नियम –
- थ्रो तभी मान्य होती है जब चक्को 34.92° अंश कोण वाले अवतरण क्षेत्र की रेखाओं के पूरी तरह अन्दर गिरे।
- प्रतियोगी को दस्ताने आदि के उपयोग करने की अनुमति नहीं होगी। केवल वह पाउडर का उपयोग कर सकता है।
- प्रतियोगी को अपने नीति उपकरण (चक्का) प्रयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
- प्रतियोगी वृत्त में अथवा अपने जूतों पर कोई चीज छिड़क अथवा लगा नहीं सकता।
- प्रतियोगी लोहे के घेरे के आन्तरिक भाग को छू सकता है।
- प्रतियोगी की सभी फेंक मापी जानी चाहिये, वह माप चक्के के गिरने से बने सबसे पास वाले निशान से घेरे के केन्द्र की ओर घेरे के भीतरी किनारे तक होनी चाहिये।
- प्रतियोगी की श्रेष्ठतम फेंक दर्शाने के लिए एक झण्डी अथवा किसी अन्य चिह्न का प्रयोग करना चाहिये। यह चिह्न अवतरण क्षेत्र की रेखाओं से बाहर होना चाहिये।
- अन्य नियम जो गोला फेंकने में लागू होते हैं। चक्का फेंकने में भी लागू होंगे।
प्रश्न 10.
गोला फेंक के उपकरण बताइये। गोला फेंक की प्रमुख क्रियाएँ, नियम एवं फेंकने के कौशलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गोला फेंक इस क्रिया के अन्तर्गत एथलीट को एक गोले में खड़े रहकर शॉट को फेंकना होता है। इस क्रिया को करने के लिये आरम्भ में एथलीट को बिल्कुल सीधा तथा हिले-डुले बगैर खड़े रहना चाहिये परन्तु इस समय भी उसे गोले में ही खड़े रहना चाहिए। एथलीट शॉट को अपने एक हाथ की सहायता से फेंक सकता है। जिस स्थान पर शॉट जाकर सबसे पहले मैदान पर गिरेगा, उसी निशान को एथलीट को अंक प्रदान करने के लिए आधार के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए।
शॉट को निर्मित करने के लिए लोहे या किसी भी सख्त धातु का प्रयोग किया जा सकता है। शॉट का आकार गोल होना चाहिए और इसकी सतह समतल होनी चाहिए। महिलाओं तथा पुरुषों के लिए अलग-अलग भार के शॉट को प्रयोग किया जाता है। पुरुष एथलीटों के लिए 7.260 किग्रा. वाले शॉट को प्रयोग किया जाता है जबकि महिलाओं के लिए 4 किग्रा. भार वाले शॉट को प्रयोग किया जाता है। पुरुषों के लिए प्रयोग किए जाने वाले शॉट को व्यास 110 से 130 मिमी. हो सकता है, जबकि महिला एथलीटों के लिए जो शॉट प्रयोग किया जाता है उसका व्यास 95 से 110 मिमी. होना चाहिए।
शॉट सर्कल – शॉट सर्कल लोहे, स्टील या किसी अन्य ठोस धातु से बना हो सकता है। सर्कल का आन्तरिक क्षेत्र निर्मित करने के लिए कंकरीट या ऐसफैल्ट को प्रयोग करना चाहिए। आन्तरिक क्षेत्र की सतह भली प्रकार से समतल होनी चाहिए। सर्कल के आन्तरिक क्षेत्र का व्यास 2.135 मी. होना चाहिये तथा सर्कल के रिम की मोटाई 6 मिमी. होनी चाहिए। इन्हें अंकित करने के लिए सफेद रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। धातु के रिम के ऊपरी हिस्से पर एक 50 मिमी. चौड़ी रेखा को खींचा जाना चाहिए, जिसका रंग सफेद होना चाहिए। यह सफेद रेखा गोले के किसी भी तरफ कम से कम 0.75 मी. तक बढ़ाई जानी चाहिए। इसे निर्मित करने के लिए लकड़ी या कोई भी उपयुक्त धातु का प्रयोग किया जा सकता है। जिस क्षेत्र से शॉट को फेंकना है, वह गोले के मध्य से 24.92 डिग्री का कोण बनाते हुए खींची जानी चाहिए। गोलों के मध्य से 20 मी. लम्बी रेखा को खींचा जाना चाहिए।
स्टॉप बोर्ड – स्टॉप बोर्ड चापाकार होने चाहिए। यह सफेद रंग की लकड़ी से निर्मित होने चाहिए अथवा किसी अन्य उपयुक्त धातु का भी प्रयोग किया जा सकता है। यह इस प्रकार से निर्मित किए जाने चाहिए कि इसका आन्तरिक किनारा गोले के बाह्य किनारे से मिल पाए। यह सेक्टर रेखाओं के बीच में रखा जाना चाहिए और इस प्रकार से निर्मित किया जाना चाहिए कि यह मैदान से भली प्रकार से जुड़ जाए।
प्रश्न 11.
फेंक के नियम बताइये तथा भाला(जैवेलिन) फेंक के नियम लिखिए।
उत्तर:
भाला फेंकने के सामान्य नियम-निम्न हैं –
- कोई भी फेंक तब तक वैध नहीं मानी जायेगी जब तक ‘जैवेलियन टिप ऑफ दि मेटल’ पहले पृथ्वी पर न पहुँचे।
- यदि जैवेलियन वायु में टूट जाए तो फेंकने वाले को एक अंक दिया जाता है।
- इन ट्रायलों में सबसे ज्यादा दूरी तक फेंकने वाले को विजेता घोषित किया जाता है।
- दो खिलाड़ियों की दूरी बराबर निकलने पर दूसरी श्रेष्ठ दूरी के आधार पर फैसला होता है।
- प्रतियोगी तब तक प्रक्षेपण क्षेत्र को नहीं छोड़ सकता जब तक कि भाला भूमि को न छू ले और तब भी वह खड़े होकर चाप तथा चाप के सिरों से खींची गई तथा रन अप रेखाओं के साथ समकोण बनाने वाली रेखाओं के पीछे से होकर वापस जायेगा।
- फेंक को निम्नलिखित कारणों या स्थितियों में सफल मानकर मापा नहीं जायेगा
- यदि प्रतियोगी चाप या विस्तृत निषेध रेखाओं पर पैर रख देता है अथवा इन रेखाओं के आगे की भूमि पर पैर रख देता है।
- यदि भाले की नोंक जमीन पर नहीं लगती।
- भाला हाथ से छोड़ने से पूर्व प्रतियोगी को अपनी पीठ पूरी तरह फेंकने वाले वृत्त खण्ड की ओर नहीं करनी चाहिये।
- प्रारम्भ करने से अन्त तक भाला फेंकने की दशा में रहेगा। भाले को चक्र काट कर नहीं फेकेंगे, केवल कन्धे से ऊपर से फेंक सकते हैं।
- यदि भाले की नोंक का स्पर्श फेंक प्रदेश में हो तथा उसके बाद भाला फेंक प्रदेश के बाहर गिरे तो फेंक सही मानी जाएगी। परन्तु भाले की नोंक का स्पर्श फेंक प्रदेश के बाहर हो तथा बाकी का भाग प्रदेश में ही क्यों न हो वह फेंक सही नहीं मानी जावेगी।
प्रश्न 12.
तार गोला (हैमर थ्रो) फेंक की विधि लिखिए।
उत्तर:
तार गोला (हैमर थ्रो) फेंकना – हैमर को भी एक सर्कल में खड़े होकर ही फेंका जाता है। इस क्रिया को भी एथलीट स्थिर अवस्था में रहकर ही आरम्भ करता है। आरम्भ में घूमने से पहले एथलीट हैमर के ऊपरी सिरे को मैदान पर सर्कल के अन्दर या बाहर रख सकता है। प्रत्येक एथलीट को उसके कुशलतम प्रदर्शन के आधार पर अंक प्रदान किए जाने चाहिए। हैमर इस प्रकार से निर्मित किया जाना चाहिए कि उसके तीन भागों को सरलता से पहचाना जा सके। यह तीन भाग होते हैं- धातु का सिरा, तार तथा ग्रिप।
हैमर का सिरा – हैमर के सिरे को निर्मित करने के लिए। कठोर लोहा या अन्य उपयुक्त धातु प्रयोग किया जाना चाहिए। इस भाग को किसी कठोर धातु से भरा जाना चाहिए। इसका आकार गोल होना चाहिए। यदि इस भाग में किसी धातु को भरने के लिए प्रयोग किया गया हो तो वह इस प्रकार से भरी जानी चाहिए कि वह प्रयोग करते समय निकल न जाए।
तार – यह हैमर का दूसरा महत्त्वपूर्ण भाग होता है। यह तार स्टील से निर्मित होनी चाहिए और बिल्कुल सीधी तथा टूटी-फूटी नहीं होनी चाहिए। इस तार का व्यास 3 मिमी. होना। चाहिए। इस तार को हैमर के किसी भी सिरे के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
ग्रिप – ग्रिप स्थिर होनी चाहिए और इसके सिरे किसी भी प्रकार के हो सकते हैं। फेंकते समय यह किसी भी प्रकार से खींचने नहीं चाहिए। यह तार के साथ इस प्रकार से जोड़े जाने चाहिए कि लूप में घुस न पाए और इस प्रकार हैमर की लम्बाई को बढ़ा न पाएं। इसे हैमर के सिरे के साथ जोड़ने के लिए घूमने वाले लड़ी का प्रयोग करना चाहिए। तार के साथ जोड़ने के लिए। लूप को प्रयोग किया जाता है। घूमने वाली लड़ी का प्रयोग करना अति आवश्यक नहीं होता। हैमर का भार 7260 किग्रा. से अधिक नहीं होना चाहिए। हैमर के सिरे का व्यास 110 से 130 मिमी. होना चाहिए जबकि इसकी कुल लम्बाई 1175 मिमी. से 1215 मिमी. हो सकती है।
हैमर सर्कल – हैमर सर्कल को निर्मित करने के लिए लोहे, स्टील या किसी अन्य उपयुक्त धातु का प्रयोग किया जाता है। सर्कल को आन्तरिक भाग निर्मित करने के लिए कंकरीट यो ऐसफैल्ट का प्रयोग किया जा सकता है। सर्कल का यह भाग भली प्रकार से समतल होना चाहिए और सर्कल के रिम के ऊपरी दिनारे से 14 से 26 मिमी. तक नीचे होना चाहिए। हैमर सर्कल को व्यास 2.135 मी. होना चाहिये। सर्कल के रिम की मोटाई 6 मिमी. होनी चाहिए और इसे सफेद रंग से रंगना चाहिये। धातु के रिम के ऊपरी सिरे से एक 50 मिमी. चौड़ी रेखा को खींचा जाना चाहिए ज़िसका रंग सफेद होना चाहिए। इस रेखा को सर्कल के किसी भी तरफ 0.75 मी. तक बढ़ाया हुआ होना चाहिए। इसे निर्मित करने के लिए रंगदार लकड़ी का प्रयोग किया जा सकता है।
तार गोला फेंक के सामान्य नियम-निम्न हैं –
- एक बार तार घुमाना शुरू कर दिया जाये तथा उसके बाद उसे फेंका न जाए तो भी एक ट्रायल मान ली जाती है।
- तार गोला घुमाते समय यदि गोला जमीन को स्पर्श कर जाए तो फाउल नहीं मानी जायेगी, परन्तु यदि प्रतियोगी रुक जाए तो उसका एक अवसर (ट्रायल) पूर्ण मान लिया जाता है।
- यदि तार गोला फेंकते समय प्रतियोगी से कोई भूल न हुई हो तथा तार गोला की जंजीर टूट जाए तो खिलाड़ी को वह अवसर फिर से दिया जाता है।
- यदि तार गोला फेंकने के पश्चात् गोला फेंक प्रदेश के अन्दर गिरे और जंजीर बाहर गिरे तो भूल नहीं मानी जाती, परन्तु इसके विपरीत गोला फेंक प्रदेश के बाहर गिरे तथा जंजीर फेंक प्रदेश में गिरे तो भूल मानी जाती है।
- तार गोले का माप सम संख्याओं में लिया जात है।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 11 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 11 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कबड्डी में प्रत्येक टीम में कितने खिलाड़ी होते हैं?
उत्तर:
कबड्डी में एक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं।
प्रश्न 2.
अन्तर्राष्ट्रीय वॉलीबॉल संघ की स्थापना कब
उत्तर:
20 अप्रेल, 1947 को।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
खो-खो खेल के नियम लिखिए।
उत्तर:
खो-खो खेल के नियम –
- अनुधावक के शरीर का कोई भी भाग केन्द्रीय गली से स्पर्श नहीं करेगा न ही सेन्टर लाइन को क्रॉस करेगा।
- अटैकर खो देने के बाद तुरन्त खो पाने वाले चेजर का स्थान ग्रहण करेगा। खो देना और साथ बैठना एक साथ होना चाहिए।
- अनुधावक वही दिशा ग्रहण करेगा जिस ओर उसका मुँह होगा अर्थात् जिस ओर उसने अपने कंधे को मोड़ा था, उसी ओर दिशा ग्रहण करेगा।
- चेजर इस प्रकार वर्ग में बैठेगा कि धावकों के मार्ग में रुकावट न पहुँचाये।
- कोई भी रनर बैठे हुए चेजर को छू नहीं सकता। इस सन्दर्भ में उसे चेतावनी दी जायेगी। इसके बाद भी वह यह गलती करता है, तो उसे आउट करार दिया जाता है।
- यदि रनर के दोनों पैर सीमा रेखा के बाहर हों, तो वह आउट माना जायेगा।
- यदि कोई चेजर क्रॉस लाइन को पार करता है, तो वह पार की गई क्रॉस लाइन पर खो नहीं दे सकता है अर्थात् उसे खो देने के लिए अगली क्रॉस लाइन पर जाना होगा।
- आउट हुआ रनर लॉबी से होता हुआ अपने बैठने के स्थान पर जायेगा ।
- धावक क्रमानुसार स्कोरर के पास नाम व नम्बर दर्ज करवाते हैं। शुरू में रनर मैदान में रहते हैं। इन तीनों के आउट होने पर दूसरे तीन खिलाड़ी खेलने के लिए मैदान में आते हैं।
- चेजर के शरीर का कोई भी भाग सेन्टर लाइन को टच नहीं करेगा और न ही क्रॉस लाइन से बाहर रहेगा। उसे 30 x 30 सेमी. वर्ग में ही बैठना होगा।
प्रश्न 2.
वॉलीबॉल खेल के लिबरो खिलाड़ी की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वॉलीबॉल खेल में लिबरो खिलाड़ी की विशेषताएँ – लिबरो खिलाड़ी स्कोरशीट में पहले से ही अंकित होता है। वह अलग रंग की पोशाक पहने होगा। यह बारह खिलाड़ियों में एक रक्षात्मक खिलाड़ी होता है, जिसे लिबरो कहते हैं। यदि कोई लिबरो खिलाड़ी फिंगर पास आगे वाले क्षेत्र में बनाता है तो उसके साथी खिलाड़ी उसको अटैक नहीं कर सकते हैं। इसका मुख्य कार्य डिफेन्स करना है। अण्डर हैण्ड पास आगे वाले क्षेत्र में बना सकता है।
यदि लिबरो खिलाड़ी घायल हो जाता है, तो उसकी जगह किसी भी खिलाड़ी को जो मैदान में नहीं खेल रहा हो, लिबरो बना सकते हैं। लेकिन पहले वाला लिबरो खिलाड़ी ठीक होने के बाद वापस लिबरो के स्थान पर नहीं खेल सकता है। लिबरो खिलाड़ी टीम का कप्तान नहीं बन सकता है। लिबरो खिलाड़ी पीछे वाले क्षेत्र के खिलाड़ियों की जगह ही स्थानान्तरित होगा। यह खिलाड़ी पीछे वाले क्षेत्र में खेलता है। इस खिलाड़ी को आक्रमण करना वर्जित होता है। यह सर्विस और ब्लॉक भी नहीं कर सकता है। इसके स्थानापन्न की कोई सीमा नहीं होती है। लेकिन सर्विस की सीटी बजने से पहले ही साथी खिलाड़ी से बदली कर सकता है।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
चक्का फेंक की विधि लिखिए।
उत्तर:
चक्का फेंकना – आधुनिक चक्का फेंकने की तकनीक के अन्तर्गत खिलाड़ी विप को अपने शरीर के समीप ही घुमाता है। वह अपनी टाँगों को घुमाता है तथा अपने शरीर के ऊपरी हिस्से से कूल्हों को आगे की तरफ रखता है। जब खिलाड़ी चक्का फेंकने की मुद्रा को प्राप्त कर लेता है तो वह विप को घुमाना बन्द कर देता है। चक्के को निर्मित करने के लिए लकड़ी या कोई भी अन्य उपयुक्त धातु प्रयोग किया जा सकता है। चक्के पर एक धातु से निर्मित रिम होनी चाहिए और गोलाकार होनी चाहिए। इसकी त्रिज्या 6 मिमी. होनी चाहिये। चक्के के मध्य में धातु की सतह होनी चाहिए। इसके लिए धातु की प्लेटों का प्रयोग किया जाता है।
चक्का सभी तरफ से एक – समान होना चाहिए और इसके किनारे नुकीले नहीं होने चाहिए। आरम्भ से सर्कल का रिम गोलाकार से पतली स ३ देखा में परिवर्तित हो जाना चाहिए। चक्के के मध्य भाग से स५. की त्रिज्या कम से कम 25 मिमी. तथा अधिकतम 28.5 मिमी. होनी चाहिए। महिला तथा पुरुष एथलीटों के लिए चक्के का भार भिन्न-भिन्न होता है। पुरुषों के लिए इसका भार 2 किग्रा. तथा महिलाओं के लिए 1 किग्रा. होना चाहिए। इसके रिम की मोटाई 12 मिमी. ही होनी चाहिए। पुरुष एथलीटों के लिए धातु के रिम का बाह्य व्यास 219 से 221 मिमी. होना चाहिए जबकि महिलाओं के लिए यह 180 से 182 मिमी. झेना चाहिए।
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