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RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 16 अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था

February 26, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 16 अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था are part of RBSE Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 16 अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 9
Subject Social Science
Chapter Chapter 16
Chapter Name अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था
Number of Questions Solved 84
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 16 अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी गतिविधि आर्थिक क्रिया है?
(अ) विद्यालय की दो कक्षाओं के मध्य खेला गया मैत्री मैच
(ब) माता-पिता द्वारा बच्चों की देखभाल
(स) अध्यापक द्वारा कक्षा में पढ़ाना
(द) विद्यालय में होने वाली प्रार्थना सभा
उत्तर:
(स) अध्यापक द्वारा कक्षा में पढ़ाना

प्रश्न 2.
भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप ह
(अ) पूँजीवादी
(ब) समाजवादी
(स) मिश्रित
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(स) मिश्रित

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सी आर्थिक प्रणाली लोगों को निजी सम्पत्ति का अधिकार देती है-
(अ) पूँजीवादी
(ब) समाजवादी
(स) पूँजीवादी व समाजवादी दोनों
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(अ) पूँजीवादी

प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सा एक मिश्रित अर्थव्यवस्था का गुण नहीं है
(अ) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण
(ब) वर्ग संघर्ष में कमी
(स) उपभोक्ताओं को अधिक सन्तुष्टि
(द) आर्थिक उतार-चढ़ावों पर नियन्त्रण
उत्तर:
(स) उपभोक्ताओं को अधिक सन्तुष्टि

प्रश्न 5.
प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन में मनुष्य को किस रूप में प्रस्तुत किया गया है
(अ) आर्थिक मानव
(ब) उत्पत्ति का साधन
(स) एकात्म मानव
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(स) एकात्म मानव

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक ऐसी प्रणाली अथवा व्यवस्था जिसके द्वारा लोग अपना जीविकोपार्जन करते हैं, अर्थव्यवस्था कहलाती है।

प्रश्न 2.
अर्थशास्त्र का अर्थ बताइए
उत्तर:
व्यक्ति एवं समाज की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करने वाला शास्त्र, अर्थशास्त्र कहलाता है।

प्रश्न 3.
आर्थिक प्रणाली के प्रकारों के नाम बताइए।
उत्तर:
आर्थिक प्रणाली के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं:

  • पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
  • समाजवादी अर्थव्यवस्था
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 4.
उत्पत्ति के साधनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
उत्पत्ति के पाँच साधन हैं-

  1. भूमि
  2. पूँजी
  3. श्रम
  4. प्रबन्ध एवं
  5. साहस

प्रश्न 5.
उत्पादन किसे कहते हैं?
उत्तर:
कच्चे माल का निर्मित माल में रूपान्तरण, जिससे आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके, उत्पादन कहलाता है। अन्य शब्दों में, उपयोगिता का सृजन ही उत्पादन है।

प्रश्न 6.
उपभोग को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि के लिए वस्तुओं व सेवाओं का प्रयोग करना उपभोग कहलाता है।

प्रश्न 7.
उत्पादन व उत्पादक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उदाहरण – किसान द्वारा खेती करना। इस उदाहरण में किसान एक उत्पादक है एवं खेती का कार्य उत्पादन है।

प्रश्न 8.
वितरण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
उत्पादन के विनिमय से प्राप्त आय की उत्पत्ति के विभिन्न साधनों में विभाजन ही वितरण कहलाता है।

प्रश्न 9.
श्रम किसे कहते हैं?
उत्तर:
वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन हेतु मनुष्य द्वारा किया गया शारीरिक व मानसिक प्रयास श्रम कहलाता है।

प्रश्न 10.
समाजवादी अर्थव्यवस्था का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था का आशय एक ऐसी आर्थिक प्रणाली से है, जिसमें उत्पत्ति के सभी साधनों पर सरकार अर्थात् सम्पूर्ण समाज का स्वामित्व होता है।

प्रश्न 11.
प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन के किन्हीं तीन स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • वेद
  • उपनिषद्
  • स्मृतियाँ

प्रश्न 12.
प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन के स्रोत के रूप में चारों वेदों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. ऋग्वेद
  2. यजुर्वेद
  3. सामवेद
  4. अथर्ववेद

प्रश्न 13.
‘चतुर्विध सुख’ क्या है?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय साहित्य में शरीर, मन, बुद्धि एवं आत्मा के सुख को ‘चतुर्विध सुख’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 14.
चार पुरुषार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
चार पुरुषार्थ हैं

  1. धर्म
  2. अर्थ
  3. काम
  4. मोक्ष

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्थिक क्रिया किसे कहते हैं? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक क्रिया से आशय-मनुष्य द्वारा धन कमाने के उद्देश्य से की जाने वाली समस्त क्रियाएँ, आर्थिक क्रिया कहलाती हैं। उदाहरण-किसान द्वारा खेती करना, अध्यापक द्वारा स्कूल में पढ़ाना, श्रमिक द्वारा कारखाने में सेवा देना, कर्मचारी द्वारा कार्यालय में कार्य करना, हलवाई द्वारा मिठाई बनाना आदि सभी कार्य आर्थिक क्रियाएँ हैं।

प्रश्न 2.
सम्पत्ति तथा पूँजी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सभी वस्तुएँ एवं मानवीय योग्यताएँ जो वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में उपयोगी हैं एवं जिनसे मूल्य की प्राप्ति होती है, वे सम्पत्ति हली हैं। जबकि पूँजी मनुष्य की सम्पत्ति का वह भाग है, जो अं अधिक उत्पादन करने के लिए प्रयोग की जाती है। पूँजी को उत्पादन का मानवीय उपकरण भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था की अवधारणा को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक ऐसी व्यवस्था, जिसके अन्तर्गत किसी निश्चित क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों का संचालन होता है, वह अर्थव्यवस्था कहलाती है। उदाहरण-शक्कर का उत्पादन शक्कर मिल द्वारा किया जाता है। शक्कर के उत्पादन के लिए उत्पादक गन्ना किसान से, मशीनें व उपकरण उद्योगों से तथा बिजली ऊर्जा संयन्त्रों से प्राप्त करता है। इस कार्य हेतु गन्ना व शक्कर ढुलाई के लिए परिवहन के साधनों-टूक, जहाज, रेल आदि का भी प्रयोग होता है। इस प्रकार, शक्कर उत्पादन हेतु विभिन्न उत्पादकों के मध्य परस्पर सहयोग व तालमेल का यह ढाँचा ही अर्थव्यवस्था है।

प्रश्न 4.
पूँजीवादी व समाजवादी अर्थव्यवस्था में क्या अन्तर है?
उत्तर:
पूँजीवादी व समाजवादी अर्थव्यवस्था में अन्तर
RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 16 अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था 1

प्रश्न 5. एकात्म मानव की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर:
एकात्म मानव की अवधारणा-पूँजीवादी व्यवस्था मानव को ‘आर्थिक मानव’ के रूप में प्रस्तुत करती है। वहीं समाजवादी व्यवस्था उसे ‘उत्पत्ति का साधन’ मानती है। प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन इन दोनों अवधारणाओं के विपरीत व्यक्ति को ‘एकात्म मानव’ के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसके अनुसार मानव शरीर, मन, बुद्धि व आत्मा का एकीकृत रूप है।

व्यक्तित्व के इन चारों पक्षों के सन्तुलित विकास हेतु ही प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन चार पुरुषार्थों-धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को कर्तव्य के रूप में मनुष्य के समक्ष प्रस्तुत करता है। वस्तुतः भारतीय चिन्तन में मनुष्य की भौतिक प्रगति के साथ-साथ उसकी नैतिक व आध्यात्मिक प्रगति पर श्री दया गया है, जिससे व्यक्ति का सर्वांगीण विकास हो

प्रश्न 6.
आवश्यकताओं के सन्दर्भ में प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण को समझाइए।
उत्तर:
भारतीय चिन्तन में इस बात का उल्लेख मिलता है कि मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं तथा उनकी पूर्ति के साधन सीमित होते हैं। कठोपनिषद् में कहा गया है। कि कोई व्यक्ति कितना भी धन प्राप्त कर ले लेकिन कभी उस धन से तृप्त नहीं हो सकता है, जिस प्रकार भोजन करने से पेट भर जाता है, लेकिन खाने की इच्छा बनी रहती है। उसी प्रकार धन प्राप्त करने की इच्छा कभी पूरी नहीं होती है। प्राचीन भारतीय साहित्य में यह कहा गया है कि मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित ही नहीं होतीं, अपितु एक आवश्यकता के पूरा होने पर दूसरी आवश्यकता को जन्म भी होता रहता है।

प्रश्न 7.
उत्पादन व उपभोग में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपयोगिता का सृजन करना, उत्पादन कहलाता है। तथा आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि हेतु वस्तुओं व सेवाओं का प्रयोग करना उपभोग कहलाता है। अतः स्पष्ट है कि किसी भी उत्पाद को उत्पादन, उपभोग करने के लिए ही होता है अर्थात् यदि उत्पाद की माँग न हो, तो उसका उत्पादन समाप्त हो जायेगा। इसी प्रकार यदि उत्पाद ही न हो, तो व्यक्ति उपभोग किसका करेगा ? अतः यह कहा जा सकता है कि उत्पादन एवं उपभोग दोनों ही एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 8.
मिश्रित अर्थव्यवस्था के गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

  1. इसमें पूँजीवाद तथा समाजवाद दोनों के गुणों का समावेश होता है।
  2. इसमें व्यवस्था व उपभोग की दृष्टि से व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का संरक्षण होता है।
  3. इस प्रणाली से वर्ग संघर्ष की सम्भावनाओं में कमी आती है।
  4. इस प्रणाली से लोगों के बीच आपसी विषमताओं में कमी आती है।
  5. इसमें आर्थिक उतार-चढ़ावों पर नियन्त्रण रहता है।
  6. इससे अल्प विकसित देशों का संतुलित विकास होता है।

प्रश्न 9.
प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन के किन्हीं तीन स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन के तीन स्रोत निम्नलिखित हैं

1. वेद – वेदों की कुल संख्या चार है-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। चारों वेद प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

2. उपनिषद् – उपनिषदों की कुल संख्या 108 से 220 तक मानी जाती है। लेकिन इसमें से 11 उपनिषद् ही प्रमुख माने जाते हैं। जिनमें ईश, केन, कठ, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैतिरीय, प्रश्न, छान्दोग्य, वृहदारण्यक एवं श्वेताश्वर को सम्मिलित किया जाता है।

3. स्मृतियाँ – स्मृतियों की कुल संख्या 100 से अधिक है। जिनमें मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, बृहस्पति स्मृति आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 10.
“प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन परम्परा का अध्ययन आर्थिक प्रणाली का एक नया विकल्प है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के तीव्र विदोहन, वस्तुओं व सेवाओं के असीमित व असंयमित उपभोग, तीव्र औद्योगीकरण से उत्पन्न पर्यावरणीय संकट, बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मानवीय मूल्यों व नैतिकता में आ रही कमी ने विश्व की पूँजीवादी एवं समाजवादी आर्थिक प्रणालियों को विकास के एक वैकल्पिक मार्ग को खोजने हेतु विवश कर दिया है। ऐसी परिस्थितियों में भारतीय आर्थिक चिन्तन व परम्परा का अध्ययन विश्व को आर्थिक प्रणाली का एक नया विकल्प प्रदान कर रहा है।

प्रश्न 11.
समग्र विवेकशीलता की अवधारणा को समंझाइए।
उत्तर:
पूँजीवादी आर्थिक विचारधारा व्यक्ति को अधिक विवेकशील मानते हुए इस बात पर बल देती है कि एक व्यक्ति चाहे वह उत्पादक हो या उपभोक्ता, अपने स्वार्थ के आधार पर अपने आर्थिक निर्णय ले। लेकिन प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन समग्र विवेकशीलता के विचार पर बल देता है। इसके अनुसार हमारी आर्थिक प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए जिसमें आर्थिक निर्णयों में व्यक्तियों की स्वतन्त्रता व स्वहित की प्रेरणा तो हो लेकिन साथ ही उस पर सामाजिक व नैतिक नियंत्रण भी रहे।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्थिक क्रियाओं व गैर-आर्थिक क्रियाओं में अन्तर बताइए।
उत्तर:
आर्थिक क्रियाओं से आशय

मनुष्य की वे क्रियाएँ जिनका मुद्रा में मापन किया जा सकता है तथा जो जीविकोपार्जन के उद्देश्य से की जाती हैं; आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं; जैसे-किसान द्वारी खेती करना, श्रमिक द्वारा कारखाने में कार्य करना, अध्यापक द्वारा कक्षा में पढ़ाना आदि।

गैर – आर्थिक क्रियाओं से आशय

मनुष्य की वे क्रियाएँ जिना मुद्रा में मापन नहीं किया जा सकता है तथा जो स्नेह, प्रेम, सामाजिक एवं धार्मिक कर्तव्य, स्वास्थ्य, देशप्रेम आदि भावनाओं से प्रेरित होकर की जाती हैं; वे गैर – आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं, जैसे-बच्चों द्वारा खेल-खेलना, गृहणी द्वारा स्वयं के परिवार के लिए किया जाने वाला कार्य, मन्दिर में की जाने वाली पूजा, व्यायाम करना आदि।

आर्थिक तथा गैर-आर्थिक क्रियाओं में अन्तर

RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 16 अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था 2

प्रश्न 2.
उत्पत्ति के प्रमुख साधनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उत्पत्ति के प्रमुख साधन

1. भूमि – भूमि प्रकृति का दिया हुआ निःशुल्क उपहार है। अर्थशास्त्र में भूमि का तात्पर्य केवल मिट्टी यो धरातल से ही नहीं होता है बल्कि इसमें जलवायु, वनस्पति, पर्वत, जल, खाने आदि प्राकृतिक संसाधनों को भी शामिल किया जाता है। भूमि उत्पादन का एक स्थिर साधन है क्योंकि इसे स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। उत्पादन प्रक्रिया में भूमि के प्रयोग के बदले भूस्वामी को लगान के रूप में प्रतिफल प्राप्त होता है।

2. श्रम – वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन के लिए मनुष्य द्वारा किया गया शारीरिक व मानसिक प्रयास श्रम कहलाता है। अर्थशास्त्र में केवल उस परिश्रम को ही श्रम माना जाता है जो उत्पादन करने के उद्देश्य से किया जाए तथा उसके बदले में आर्थिक प्रतिफल की अपेक्षा हो अर्थात् इसमें प्रेम, सद्भावना एवं मनोरंजन आदि के उद्देश्य से किये गये किसी भी प्रयास को श्रम नहीं माना जाता है। श्रम उत्पत्ति का एक गतिशील साधन है। उत्पादन प्रक्रिया में श्रम के बदले श्रमिक को प्राप्त होने वाला प्रतिफल मजदूरी कहलाता

3. पूँजी – पूँजी मनुष्य की सम्पत्ति का वह भाग है जो और अधिक उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे उत्पादन का मानवीय उपकरण भी कहा जाता है। अन्य शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि, उद्यमी उत्पादन करने के लिए जो धन, उपकरण, मशीन आदि लगाता है उसे पूँजी कहा जाता

4. साहसी अथवा उद्यमी – उत्पादन प्रक्रिया में भूमि, पूँजी वे श्रम का गतिशीलन करने वाला व्यक्ति, साहसी अथवा उद्यमी कहलाता है। साहसी उत्पत्ति के सभी साधनों का उचित अनुपात निर्धारित करके उत्पादन करता है क्योंकि उद्यमी जोखिमों को सहन करके उत्पादन करता है इसीलिए उसे साहसी कहा जाता है। साहसी को प्रबन्धक या संगठनकर्ता भी कहा जाता है। उत्पादन प्रक्रिया में साहसी को लाभ भी हो सकता है तथा हानि भी हो सकती है। लाभ, साहसी का पुरस्कार कहलाता है। यह उत्पादन का वह भाग होता है जो उत्पत्ति के सभी साधनों को भुगतान करने के पश्चात् शेष बचता है।

प्रश्न 3.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ

1. निजी सम्पत्ति का अधिकार – पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के विभिन्न घटकों; जैसे- भूमि, खानों, मशीनों, आदि पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व होता है। इनके मालिक इन्हें अपनी इच्छानुसार प्रयोग करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं।

2. उपभोक्ताओं के चयन की स्वतन्त्रता – इस प्रणाली में उपभोक्ता अपनी इच्छानुसार व्यय करने के लिए स्वतन्त्र होता है इसीलिए इस प्रणाली में उसे बाजार का राजा’ भी कहा जाता है। उपभोक्ता की पसंद के अनुसार ही उत्पादक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं अर्थात् उपभोक्ता प्रभुसत्ता सम्पन्न होता है।

3. उद्यम की स्वतन्त्रता – सरकार का कोई हस्तक्षेप न होने के कारण पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को “स्वतन्त्र उद्यम वाली अर्थव्यवस्था” भी कहा जाता है अर्थात् इस प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को उत्पादन करने, तकनीक का चयन करने तथा उद्योग स्थापित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।

4. प्रतिस्पर्धा – इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में विक्रेताओं के मध्य अपने उत्पादों को बेचने तथा क्रेताओं के मध्य अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वस्तुएँ खरीदने की प्रतियोगिता चलती रहती है। इस प्रकार की प्रतियोगिता बाजार में कुशलता बढ़ाती है।

5. निजी हित एवं लाभ का उद्देश्य – पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति किसी भी कार्य को करने का निर्णय लाभ को ध्यान में रखकर ही करता है, चाहे वह वस्तुओं के उत्पादन का निर्णय हो या फिर उपभोग का, सभी में निर्णय का आधार लाभ की भावना होती है।

6. वर्ग संघर्ष – पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में समाज दो वर्गों में विभक्त हो जाता है-एक पूँजीपति तथा दूसरा श्रमिक। पूँजीपति साधन सम्पन्न होते हैं तथा वे अपने लाभ को और बढ़ाना चाहते हैं, जबकि श्रमिक वर्ग साधन विहीन होता है। इससे दोनों के मध्य वर्ग संघर्ष को बल मिलता है।

7. आय की असमानता – सम्पत्ति के असमान वितरण के कारण पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में गरीब व अमीर के बीच की खाई बढ़ती जाती है।

प्रश्न 4.
मिश्रित अर्थव्यवस्था के प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था के प्रमुख लक्षण

1. निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र का सह अस्तित्व – मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों का सह अस्तित्व होता है। सामाजिक हित के उद्देश्य से कुछ उद्योगों पर सरकार का एकाधिकार होता है तथा कुछ उद्योग निजी क्षेत्र के अधीन होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ उद्योग ऐसे भी होते हैं जिनकी स्थापना दोनों द्वारा संयुक्त रूप से की जाती है। इसे संयुक्त क्षेत्र कहा जाता है।

2. प्रशासित मूल्य – मिश्रित अर्थव्यवस्था में वस्तु की कीमत निर्धारण की दोहरी प्रणाली होती है। सामान्यतया निजी क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं की कीमत स्वतन्त्र रूप से तय होती है। परन्तु सरकार कुछ आवश्यक वस्तुओं की कीमत तय करने का अधिकार अपने पास रखती है; जैसे- भारत में पेट्रोल, डीजल, एल.पी.जी. आदि की कीमतें सरकार द्वारा तय की जाती हैं।

3. आर्थिक नियोजन – मिश्रित अर्थव्यवस्था एक नियोजित अर्थव्यवस्था होती है जिसमें सरकार पूर्ण नियोजन करके. सामाजिक एवं आर्थिक नीति का निर्माण करती है तथा उसी के अनुरूप विकास एवं सामाजिक कल्याण के समस्त कार्य किए जाते हैं।

4. क्षेत्रीय सन्तुलन – सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर सरकार का नियंत्रण होता है इसलिए सरकार नियोजन प्रक्रिया को इस प्रकार क्रियान्वित करती है जिससे कि सभी क्षेत्रों; जैसे-शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, परिवहन आदि का समान रूप से विकास हो सके।

5. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता – मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र में उत्पादन करने, उपभोग करने, विनिमय तथा वितरण करने की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता होती है। लेकिन यह स्वतन्त्रता सामाजिक हित एवं कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव न डाल सके इसलिए इस पर आंशिक नियंत्रण भी रहता है; जैसे–सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान एवं मद्यपान निषेध होना, बाल विवाह, मृत्यु भोज आदि पर रोक।

प्रश्न 5.
संयमित उपभोग तथा सह-उपभोग की अवधारणा की वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संयमित उपभोग की अवधारणा

अथर्ववेद में यह उल्लेख किया गया है कि मनुष्य को उतना ही धन अर्जित करना चाहिए जिससे वह अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। कौटिल्य के अनुसार, संयमित उपभोग व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए भी ठीक रहता है। प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति को स्वयं द्वारा अर्जित धन का न्यूनतम एवं संयमित उपभोग करना चाहिए। अर्थात् व्यक्ति वस्तुओं व सेवाओं को ईश्वर का प्रसाद मानते हुए इस प्रकार उपभोग करे कि समाज के कल्याण हेतु अपने जीवन को चला सके। वस्तुओं पर वह अपना अधिकार न समझे।

सह-उपभोग की अवधारणा

वैदिक साहित्य के अनुसार, व्यक्ति को समाज के अन्य लोगों में बांटकर वस्तुओं का उपभोग करना चाहिए न कि स्वयं ही सबका उपभोग करे। इससे स्पष्ट है कि उपभोग समानता व कल्याण पर आधारित होना चाहिए। ऋग्वेद में कहा गया है कि भूखे, मित्र, नौकर, अतिथि तथा पशु-पक्षियों को न खिलाकर स्वयं अकेला उपभोग करने वाला व्यक्ति पापी होता है। यह मेरा है, यह तेरा है, ऐसा सोचने वाले व्यक्ति निम्न कोटि के होते हैं। ऊँचे चरित्र के लोग तो सम्पूर्ण विश्व को ही एक कुटुम्ब के समान मानते हैं।

भारतीय संस्कृति में सब के कल्याण तथा सब की सेवा को ही सार्वभौम मानव धर्म माना गया है। वर्तमान सन्दर्भ में जबकि धन तथा सम्पत्ति के असमान विवरण के कारण अमीर तथा गरीब के बीच की दूरी बढ़ रही है। प्राचीन भारतीय आर्थिक चिंतन की संयमित व सह-उपभोग की अवधारणा समाज में न्यायपूर्ण वितरण द्वारा समानता की स्थापना में सहायक हो सकती है तथा सामाजिक कल्याण में भी वृद्धि कर सकती है। अतः यह दोनों ही अवधारणाएँ वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं।

प्रश्न 6.
‘पुरुषार्थ चतुष्टय’ पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
पुरुषार्थ चतुष्टय

प्राचीन भारतीय साहित्य में शरीर, मन, बुद्धि एवं आत्मा के सुख की कल्पना की गई है जिसे ‘चतुर्विध सुख’ कहा जाता है। चतुर्विध सुख की प्राप्ति के लिए प्राचीन संहिता में कर्तव्य के रूप में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष इन चार पुरुषार्थों का उल्लेख किया गया है। जिन्हें ‘पुरुषार्थ चतुष्टय’ कहते हैं। इन चारों पुरुषार्थों का विस्तार से वर्णन निम्न प्रकार है-

1. धर्म – प्राचीन भारतीय साहित्य में धर्म की अवधारणा बहुत व्यापक है। श्रेष्ठ बनने के लिए धर्म धारणीय व आचरणीय है। धर्म का आधार नैतिक नियम व सदाचरण है। अतः धर्म समाज में व्यवस्था बनाये रखने में सहायक होता है।

2. अर्थ – शास्त्रों में मनुष्य की सुख-सुविधा का आधार धर्म को माना गया है एवं धर्म का मूल अर्थ को माना गया है। वेदों में वैभव, मुद्रा तथा सम्पत्ति को धन माना गया है। प्राचीन साहित्य में विद्या, भूमि, सोना, चाँदी, पशु आदि को अर्थ माना गया है।

3. काम – प्राचीन साहित्य के अनुसार काम विश्व को चलाने वाला है अतः वह सबका कर्ता है। व्यक्ति जैसे काम करता है वह वैसा ही बन जाता है। अथर्ववेद में काम को विविध कामनाओं के रूप में विभिन्न कार्यों का कारण व उत्पत्ति स्थान माना गया है।

4. मोक्ष – प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन के अनुसार धन साधन है, साध्य नहीं। अतः अपनी इच्छाओं को नियंत्रित एवं समाप्त करके इच्छाओं से रहित होना ही मोक्ष है। इसे आवागमन के भवचक्र से मुक्ति भी कहा जाता है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
उपयोगिता का सृजन करना कहलाता है|
(अ) विनिमय
(ब) उत्पादन
(स) वितरण
(द) उपभोग
उत्तर:
(ब) उत्पादन

प्रश्न 2.
उत्पादन के विनिमय से प्राप्त आय का उत्पत्ति के विभिन्न साधनों में विभाजन कहलाता है
(अ) उपभोग
(ब) वितरण
(स) उत्पादन
(द) विनिमय
उत्तर:
(ब) वितरण

प्रश्न 3.
साहसी का पुरस्कार है
(अ) लाभ
(ब) ब्याज
(स) मजदूरी
(द) लगान
उत्तर:
(अ) लाभ

प्रश्न 4.
उत्पादन का एक अचल घटक है
(अ) श्रम
(ब) पूँजी
(स) भूमि
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) भूमि

प्रश्न 5.
त्पादन का एक गतिशील साधन है|
(अ) भूमि
(ब) श्रम
(स) उपरोक्त दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) श्रम

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था है
(अ) समाजवादी
(ब) मिश्रित
(स) पूँजीवादी
(द) उपरोक्त के से कोई नहीं
उत्तर:
(स) पूँजीवादी

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानवीय क्रियाओं के दो भाग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  • आर्थिक क्रियाएँ
  • गैर-आर्थिक क्रियाएँ

प्रश्न 2.
आर्थिक क्रिर ओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • किसान द्वारा खेती करना
  • अध्यापक द्वारा स्कूल में पढ़ाना

प्रश्न 3.
गैर-आर्थिक क्रियाओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • पिता द्वारा घर पर अपने पुत्र को पढ़ाना।
  • गृहणी द्वारा घर पर भोजन बनाना।

प्रश्न 4.
प्रमुख आर्थिक क्रियाओं को कितने भागों में बाँटा जो सकता है ?
उत्तर:
चार भागों में-

  1. उत्पादन
  2. उपभोग
  3. विनिमय
  4. वितरण

प्रश्न 5.
विनिमय क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं व उत्पादकों द्वारा बाजार में वस्तुओं व सेवाओं का किया गया क्रय-विक्रय विनिमय कहलाता है।

प्रश्न 6.
विनिमय का कोई एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
बाजार से बिस्कुट खरीदना व प्रतिफल में उसकी कीमत का भुगतान करना।

प्रश्न 7.
भूस्वामी को दिया जाने वाला प्रतिफल क्या कहलाता है?
उत्तर:
लगान।

प्रश्न 8.
सम्पत्ति किसे कहते हैं?
उत्तर:
सभी वस्तुएँ एवं मानवीय योग्यताएँ जो कि वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन में उपयोगी होती हैं एवं जिनसे मूल्य की प्राप्ति होती है, सम्पत्ति कहलाती हैं।

प्रश्न 9.
पूँजी के चार उदाहरण बताइए।
उत्तर:

  1. मशीन
  2. उपकरण
  3. कारखाने
  4. यातायात के साधन

प्रश्न 10.
उद्यमी कौन होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में भूमि, पूँजी व श्रम का गतिशीलन करने वाला उद्यमी अथवा साहसी कहलाता है।

प्रश्न 11.
उद्यमी को साहसी क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
उद्यमी जोखिमों को सहन करके उत्पादन करता है इसलिए उद्यमी को साहसी कहा जाता है।

प्रश्न 12.
पूँजी का प्रतिफल किस रूप में प्राप्त होता है ?
उत्तर:
पूँजी का प्रतिफल ब्याज के रूप में प्राप्त होता है।

प्रश्न 13.
साहसी का पुरस्कार क्या होता है ?
उत्तर:
साहसी को पुरस्कार लाभ होता है।

प्रश्न 14.
ऐसे किन्हीं चार देशों के नाम बताइए जहाँ पूँजीवादी अर्थव्यवस्था संचालित है ?
उत्तर:

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका
  2. जर्मनी
  3. कनाडा
  4. फ्रांस

प्रश्न 15.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • निजी सम्पत्ति का असीमित अधिकार
  • उपभोक्ताओं को उत्पाद के चयन की स्वतन्त्रता

प्रश्न 16.
किस अर्थव्यवस्था में उपभोक्ताओं को बाजार का राजा’ कहा जाता है ?
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में।

प्रश्न 17.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को स्वतन्त्र उद्यम वाली अर्थव्यवस्था’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
क्योंकि पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है इसलिए इसे ‘स्वतंत्र उद्यम वाली अर्थव्यवस्था’ कहा जाता है।

प्रश्न 18.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के दो गुण लिखिए।
उत्तर:

  • उत्पादन क्षमता व कुशलता में वृद्धि होना।
  • उपभोक्ताओं को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होना।

प्रश्न 19.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के दो दोष लिखिए।
उत्तर:

  • आय व सम्पत्ति का असमान वितरण।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ।

प्रश्न 20.
‘समान अर्थव्यवस्था’ अथवा ‘केन्द्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था’ किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था को।

प्रश्न 21.
समाजवादी अर्थव्यवस्था वाले किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • चीन
  • उत्तरी कोरिया।

प्रश्न 22.
समाजवादी अर्थव्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • साधनों का सामूहिक स्वामित्व।
  • उपभोक्ता चयन को अन्त।

प्रश्न 23.
समाजवादी अर्थव्यवस्था के कोई दो गुण बताइए।
उत्तर:

  • धन व आय का समान वितरण
  • अवसरों की समानता।

प्रश्न 24.
समाजवादी अर्थव्यवस्था के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर:

  • नौकरशाही व लालफीताशाही में वृद्धि।
  • व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध होना।

प्रश्न 25.
मिश्रित अर्थव्यवस्था के कोई दो लक्षण बताइए।
उत्तर:

  • निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र का सह अस्तित्व।
  • आर्थिक नियोजन।

प्रश्न 26.
कीमत निर्धारण की दोहरी प्रणाली किस अर्थव्यवस्था में होती है ?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था में।

प्रश्न 27.
मिश्रित अर्थव्यवस्था के कोई दो गुण बताइए।
उत्तर:

  • पूँजीवाद तथा समाजवाद दोनों के गुणों का समावेश होना।
  • वर्ग संघर्ष में कमी।

प्रश्न 28.
मिश्रित अर्थव्यवस्था के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर:

  • आपसी समन्वय का अभाव होना।
  • आर्थिक विकास की गति धीमी होना।

प्रश्न 29.
प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन के प्रमुख स्रोत ग्रंथ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:

  1. वेद
  2. उपनिषद्
  3. स्मृतियाँ
  4. पुराण
  5. महाकाव्य
  6. नीति संहिता
  7. खण्ड काव्य एवं अन्य संस्कृत साहित्य

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विनिमय का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विनिमय का आशय – स्वयं द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं के बदले अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु अन्य व्यक्तियों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ व सेवाएँ प्राप्त करना ही विनिमय कहलाता है। अन्य शब्दों में, उपभोक्ताओं व उत्पादकों के मध्य बाजार में होने वाली वस्तुओं व सेवाओं का क्रय-विक्रय विनिमय कहलाता है; जैसे-उपभोक्ता द्वारा बाजार से बिस्कुट खरीदना व उसकी कीमत का भुगतान करना आदि।

प्रश्न 2.
गैर-आर्थिक क्रियाओं से क्या आशय है ?
उत्तर:
गैर-आर्थिक क्रियाओं से आशय – ऐसी मानवीय क्रियाएँ जिनका मौद्रिक मूल्यांकन सम्भव नहीं होता तथा जो धन कमाने के उद्देश्य से नहीं की जाती हैं, वे गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। ये क्रियाएँ स्नेह, प्रेम, सामाजिक व धार्मिक कर्तव्य, स्वास्थ्य, देश-प्रेम आदि की भावनाओं से प्रेरित होकर सम्पन्न की जाती हैं; जैसे-बच्चों द्वारा खेल खेलना, मन्दिर में पूजा करना, गृहणी द्वारा स्वयं के परिवार के लिए किया जाने वाला कार्य आदि।

प्रश्न 3.
पूँजी क्या है ? स्पष्ट रूप से समझाइए।
उत्तर:
सभी वस्तुएँ एवं मानवीय योग्यताएँ जो वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन में उपयोगी होती हैं तथा जिनसे मूल्य की प्राप्ति होती है वे सम्पत्ति कहलाती हैं। सम्पत्ति का कुछ भाग बिना उपभोग के ही व्यर्थ पड़ा रहता है जबकि कुछ का आगे उत्पादन में प्रयोग होता है। अतः सम्पत्ति का जो भाग आगे उत्पादन में प्रयोग किया जाता है, उसे पूँजी कहते हैं। पूँजी उत्पादन का ही एक घटक होती है जिसे प्राकृतिक संसाधनों के साथ उपयोग करके मनुष्य द्वारा अर्जित किया जाता है। पूँजी को उत्पादन का मानवीय उपकरण भी कहा जाता है। पूँजी का पुरस्कार ब्याज के रूप में प्राप्त होता है।

प्रश्न 4.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से क्या आशय है ?
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से आशय – पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से आशय एक ऐसी आर्थिक प्रणाली से है। जिसमें उत्पत्ति के सभी साधनों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व व नियंत्रण होता है। इस प्रणाली में आर्थिक क्रियाओं का संचालन निजी हित एवं लाभ के उद्देश्य से किया जाता है। सरकार आर्थिक कामकाज के प्रबन्ध में किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं करती है। इसे ‘स्वतन्त्र बाजार अर्थव्यवस्था’, बाजार अर्थव्यवस्था एवं मुक्त अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है। विश्व में इस प्रणाली का उदय सन् 1760 से 1820 ई. के मध्य औद्योगिक क्रान्ति के समय हुआ था।

प्रश्न 5.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं

  1. उत्पादन क्षमता व कुशलता में वृद्धि होना।
  2. उपभोक्ताओं को सन्तुष्टि प्राप्त होना।
  3. साधनों का अनुकूलतम उपयोग होना।
  4. तकनीकी विकास का तीव्र होना।
  5. रहन-सहन का स्तर ऊँचा होना
  6. आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त होना
  7. शोध एवं अनुसंधान का विकास होना।

प्रश्न 6.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के दोष बताइए।
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के दोष निम्नलिखित हैं-

  1. आय व सम्पत्ति के वितरण में असमानता होना।
  2. क्षेत्रीय असमानताएँ उत्पन्न होना
  3. आर्थिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न होना।
  4. एकाधिकारों का सृजन होना
  5. उत्पादन के संसाधनों का दुरुपयोगं होना।
  6. अमर्यादित उपभोग को बढ़ावा मिलना।
  7. नैतिक मूल्यों में गिरावट आना।

प्रश्न 7.
समाजवादी अर्थव्यवस्था के गुण बताइए।
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था के गुण निम्नलिखित हैं-

  1. धन व आय का समान वितरण होना।
  2. अवसरों की समानता प्राप्त होना।
  3. अर्थव्यवस्था का नियोजित विकास होना
  4. वर्ग-संघर्ष का अन्त होना
  5. आर्थिक उतार-चढ़ाव को समाप्त कर स्थिरता आना।
  6. काम का अधिकार प्राप्त होना।
  7. लोगों को न्यूनतम जीवन स्तर का आश्वासन प्राप्त होना

प्रश्न 8.
समाजवादी अर्थव्यवस्था के दोषों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

  1. नौकरशाही वे लालफीताशाही को बढ़ावा मिलना।
  2. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का प्रतिबन्धित होना
  3. उत्पादन में कमी होना।
  4. आर्थिक प्रेरणा का अभाव होना।
  5. उपभोक्ताओं की स्वतन्त्रता में कमी होना।
  6. निजी सम्पत्ति के अधिकारों का हनन होना।

प्रश्न 9.
मिश्रित अर्थव्यवस्था पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था – मिश्रित अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी तथा समाजवादी दोनों ही प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं का समावेश होता है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि, यह प्रणाली पूँजीवाद व समाजवाद दोनों के बीच का मार्ग है। इस व्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों का सह-अस्तित्व होता है। यह प्रणाली निजी उपक्रम तथा निजी लाभों का समर्थन करती है लेकिन साथ ही सम्पूर्ण समाज के हितों की रक्षा करने के लिए सरकार के योगदान को भी महत्वपूर्ण मानती है। इस व्यवस्था में देश के आर्थिक कल्याण एवं विकास के लिए निजी एवं सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्र मिलकर कार्य करते हैं। स्वतन्त्रता के बाद भारत में इसी प्रणाली को अपनाया गया है।

प्रश्न 10.
आर्थिक नियोजन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
आर्थिक रूप से विकास करना प्रत्येक अर्थव्यवस्था का प्रमुख लक्ष्य होता है जिससे कि उसमें रहने वाले सभी लोग सुखी एवं सम्पन्न हो सके। आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु अर्थव्यवस्था को दिशा देने वाले संस्थान ऐसी नीतियाँ बनाते हैं जिनके द्वारा संसाधनों का व्यवस्थित उपयोग हो सके, इसी को आर्थिक नियोजन कहा जाता है। अर्थात् एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें सरकार या अन्य नियोजन संस्थाएँ पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु उपलब्ध संसाधनों को ध्यान में रखकर आर्थिक विकास के लिए भविष्य की नीतियों का निर्धारण करती हैं, उसे आर्थिक नियोजन कहते हैं।

प्रश्न 11.
मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक समस्याओं का समाधान कैसे होता है ?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक एवं निजी उद्यम साथ-साथ कार्य करते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों की आर्थिक समस्याओं का समाधान केन्द्रीय नियोजन द्वारा किया जाता है तथा निजी क्षेत्र की समस्याओं का समाधान कीमत तन्त्र द्वारा किया जाता है। अतः यह कहा जा सकता है कि मिश्रित अर्थव्यवस्था में नियोजन एवं कीमत तंत्र दोनों मिलकर आर्थिक समस्या का समाधान करते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ

1. उत्पादन के साधनों पर सामूहिक स्वामित्व – समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के भौतिक साधनों; जैसे- भूमि, वन, कारखानों, पूँजी, खानों आदि पर सरकार या समाज का स्वामित्वे व नियंत्रण होता है। इसके परिणामस्वरूप लाभ के उद्देश्य तथा निजी हित के उद्देश्य से आर्थिक गतिविधियों का संचालन नहीं होता है।

2. उपभोक्ता चयन का अन्त – इस आर्थिक प्रणाली में वस्तुओं के उपयोग हेतु उपभोक्ता के चयन की प्रभुसत्ता उन्हीं वस्तुओं तक सीमित रहती है जिन्हें सरकार के निर्देशानुसार उत्पादित किया जाता है। इस प्रणाली में उपभोक्ता द्वारा उपभोग की मात्रा पर सरकार का नियंत्रण रहता है।

3. केन्द्रीय नियोजन अथवा आर्थिक नियोजनसमाजवादी अर्थव्यवस्था में सामाजिक – आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति एवं उनके निर्धारण के लिए एक केन्द्रीय सत्ता कार्य करती है। सभी महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णय; जैसे-क्या उत्पादन किया जाए ? कैसे उत्पादन किया जाए? किसके लिए उत्पादन किया जाए ? इसका निर्धारण उसी केन्द्रीय सत्ता द्वारा किया जाता है।

4. सामाजिक लाभ का उद्देश्य – समाजवादी अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय सत्ता द्वारा सभी प्रकार के आर्थिक निर्णय समाज के सामूहिक हित को ध्यान में रखकर तथा उसी के कल्याण के उद्देश्य से लिए जाते हैं। इस प्रणाली में कोई भी निर्णय निजी लाभ के उद्देश्य से नहीं किया जाता है।

5. आर्थिक समानता पर बल – यह आर्थिक प्रणाली समान कार्य के लिए समान मजदूरी के सिद्धान्त पर कार्य करती है। इसलिए इस आर्थिक प्रणाली में वर्ग संघर्ष की समाप्ति हो जाती है। साथ ही इसमें निजी पूँजी स्थापित करने हेतु अवसरों की समानता के अभाव में आय की असमानता भी कम हो जाती है।

प्रश्न 2.
पूँजीवादी, समाजवादी तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूँजीवादी, समाजवादी तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था में अन्तर

अन्तर का आधार पूँजीवादी अर्थव्यवस्था समाजवादी अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था
1. सम्पत्ति पर निजी अधिकार इसमें सम्पत्ति के निजी अधिकार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है। इसमें सम्पत्ति के निजी अधिकार पर प्रतिबन्ध होता है। केन्द्रीय सत्ता सम्पत्ति के अधिकार को नियंत्रित करती है। इसमें कुछ क्षेत्रों में सम्पत्ति के निजी अधिकार पर प्रतिबन्ध होता है तथा कुछ में छूट होती है।
2. उपभोक्ता चयन की स्वतन्त्रता इसमें उपभोक्ता चयन के लिए स्वतन्त्र होता है तथा उसे ‘बाजार का राजा’ कहा जाता है। इसमें उपभोक्ता के चयन का अन्त हो जाता है। इसमें उपभोक्ता को कुछ क्षेत्रों में चयन का अधिकार प्राप्त होता है। तथा कुछ में सरकार को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं।
3. उद्यम की स्वतंत्रता इसमें उद्यम लगाने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। इसमें निजी व्यक्तियों के उद्यम लगाने पर प्रतिबंध होता है। इसमें कछ क्षेत्र सार्वजनिक उपक्रमों के लिए आरक्षित होते हैं तथा कुछ क्षेत्रों में निजी उद्यम लगाने की छूट होती है; जैसे- भारत में पेट्रोलियम, बिजली, रक्षा आदि क्षेत्र आरक्षित है।
4. प्रतिस्पर्धा

इसमें उद्योगों में अपना माल बेचने तथा उपभोक्ताओं में अपनी आवश्यकता की वस्तु खरीदने के लिए प्रतिस्पर्धा होती है। इसमें उद्योगों के मध्य कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती है तथा उपभोग पर भी नियंत्रण होता है। इसमें कुछ वस्तुओं के लिए कोटा प्रणाली लागू होती है तथा कुछ के मध्य प्रतिस्पर्धा होती है।
5. निजी हित एवं लाभ

इसमें सभी निर्णय निजी हित एवं लाभ के उद्देश्य से होते है। इसमें निजी हित एवं लाभ के स्थान पर समाज के सामूहिक हित पर बल दिया जाता है। इसमें कुछ क्षेत्रों में निजी हित एवं लाभ को ध्यान में रखा जाता है तथा कुछ क्षेत्रों में नहीं।
6. वर्ग संघर्ष इसमें पूँजीपति एवं श्रमिकों के दो वर्ग बन जाते हैं जिनमें वर्ग संघर्ष की सम्भावना बनी रहती है। इसमें वर्ग संघर्ष नहीं होता है। इसमें वर्ग संघर्ष की सम्भावना बनी रहती है लेकिन सरकार का नियन्त्रण भी बना रहता है।
7. आय की असमानता इसमें आय की असमानता बनी रहती है तथा इसमें वृद्धि होती है। इसमें आय के वितरण में असमानता पर सरकार का पूर्ण प्रतिबन्ध होता है तथा आय की असमानता को समाप्त कर समानता लायी जाती है। इसमें आय के वितरण पर सरकार का नियन्त्रण रहता है।
8. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता इसमें पूर्ण व्यक्तिगत स्वतन्त्रता होती है। इसमें कुछ पाबन्दियों के साथ व्यक्तिगत स्वतन्त्रता होती है।


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