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RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 7 राजस्थान के गौरव

February 22, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 7 राजस्थान के गौरव are part of RBSE Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 7 राजस्थान के गौरव.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 9
Subject Social Science
Chapter Chapter 7
Chapter Name राजस्थान के गौरव
Number of Questions Solved 69
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 7 राजस्थान के गौरव

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
बापा रावल कहाँ के शासक थे?
(अ) चित्तौड़गढ़
(ब) उदयपुर
(स) मारवाड़
(द) अजमेर
उत्तर:
(अ) चित्तौड़गढ़

प्रश्न 2.
तराइन का द्वितीय युद्ध कब हुआ?
(अ) 1186
(ब) 1191
(स) 1192
(द) 1194.
उत्तर:
(स) 1192

प्रश्न 3.
महाराणा सांगा व बाबर के मध्य युद्ध किस स्थान पर लड़ा गया?
(अ) पानीपत
(ब) खातोली
(स) खानवा
(द) तराइन
उत्तर:
(स) खानवा

प्रश्न 4.
गोविंद गुरु ने कौन-सी संस्था स्थापित की?
(अ) प्रजामण्डल
(ब) सम्प सभा
(स) लोक परिषद्
(द) भगत पंथ
उत्तर:
(ब) सम्प सभा

प्रश्न 5.
पाबूजी की घोड़ी का नाम क्या था?
(अ) केसर कालवी
(ब) काली घोड़ी
(स) नीली घोड़ी
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) केसर कालवी

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वीर दुर्गादास ने अपना अंतिम समय कहाँ व्यतीत किया?
उत्तर:
उदयपुर में

प्रश्न 2.
महाराणा साँगा का राज्याभिषेक कब हुआ?
उत्तर:
1509 ई. में

प्रश्न 3.
रामदेव के दो प्रमुखों के नाम बताओ।
उत्तर:

  1. माला
  2. तंदूरा

प्रश्न 4.
अमृता देवी कहाँ की रहने वाली थी?
उत्तर:
जोधपुर जिले के खेजड़ली गाँव की।

प्रश्न 5.
लोकदेवता रामदेवजी का जन्म स्थान बताइए।
उत्तर:
लोकदेवता रामदेवजी का जन्म पोकरण के एक गाँव में हुआ था।

प्रश्न 6.
आचार्य भिक्षु ने कौन-सा पंथ चलाया?
उत्तर:
तेरापंथ सम्प्रदाय।

प्रश्न 7.
मानगढ़ धाम किस जिले में स्थित है?
उत्तर:
बाँसवाड़ा जिले में।

प्रश्न 8.
महाराजा सूरजमल कहाँ के शासक थे?
उत्तर:
भरतपुर रियासत के।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कालीबाई के बलिदान के बारे में आप क्या जानते
उत्तर:
कालीबाई एक 13 वर्षीय भील बालिका थी, जो डूंगरपुर जिले के रास्तापाल में डूंगरपुर सेवक संघ द्वारा संचालित विद्यालय में पढ़ती थी। डूंगरपुर का शासक अंग्रेजों के दबाव में इस संघ के विद्यालयों को बंद कराना चाहता था। उसने रास्तापाल के विद्यालय में राज्य पुलिस भेजी, तो अध्यापक नानाभाई खांट ने विद्यालय बंद करने से मना कर दिया। पुलिस की मारपीट में नानाभाई खांट की मृत्यु हो गयी।

नानाभाई की मृत्यु के पश्चात् दूसरे अध्यापक सेंगाभाई भील ने अध्यापन जारी रखा, तो पुलिस ने उसे पकड़कर अपने ट्रक के पीछे बाँधकर घसीटना प्रारम्भ कर दिया। बालिका कालीबाई से यह देखा न गया उसने ट्रक से रस्सी काटकर अपने अध्यापक को पुलिस के चंगुल से मुक्त कराया, जिससे पुलिस क्रोधित व उत्तेजित हो गई। जैसे ही कालीबाई अपने अध्यापक सेंगाभाई को उठाने के लिए झुकी। पुलिस ने बालिका कालीबाई की पीठ में गोली मार दी, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 2.
लोकदेवता पाबूजी का महत्व बताएँ।
उत्तर:
लोकदेवता पाबूजी राठौड़ जोधपुर की फलौदी तहसील में कोल्हूगढ़ के निवासी थे। ये मारवाड़ के राठौड़ वंश से सम्बन्धित थे। इनकी देवल चारण नामक एक धर्म बहन थी। जब जायल के जिंदराव खची ने देवल चारण की गायों को घेर लिया, तो पाबूजी ने अपने विवाह के फेरों को बीच में ही छोड़कर केसर कालवी घोड़ी पर बैठकर जिंदरावे का पीछा किया। गायों को छुड़ाने के लिए किए गए संघर्ष में पाबूजी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। अतः इन्हें गौ-रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। नारी सम्मान, शरणागते वत्सलता एवं वीरत्व इनके विशिष्ट गुण थे। इन्होंने थोरी नामक अछूत जाति को सम्मान दिया। इनकी यश गाथा ‘पाबूजी की फड़’ में संगृहीत है।

प्रश्न 3.
देवनारायण की फड़ क्या है?
उत्तर:
देवनारायणजी की गिनती राजस्थान के प्रमुख लोक देवताओं में की जाती है। ये नागवंशीय गुर्जर थे। इनका जन्म 911 ई. में मालासेरी में हुआ था। इन्होंने गायों की रक्षा का संदेश दिया। इन्होंने जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया। इनकी पूजा भोपाओं द्वारा की जाती है। ये भोपा विभिन्न स्थानों पर गुर्जर समुदाय के मध्य फड़ के माध्यम से देवनारायणजी की गाथा गाकर सुनाते हैं। फड़, लपेटे हुए कपड़े पर देवनारायणजी की चित्रित कथा है, जिसमें 335 गीत हैं जिनका लगभग 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है। इसमें लगभग 15,000 पंक्तियाँ हैं। ये गीत परम्परागत भोपाओं को कण्ठस्थ याद रहते हैं। देवनारायणजी की फड़ राजस्थान की सबसे बड़ी एवं सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ है।

प्रश्न 4.
मीराँबाई के प्रारम्भिक जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मीराँबाई को जन्म 1498 ई. में मेड़ता (नागौर) के राठौड़ वंश के राव दूदा के पुत्र रतन सिंह के घर पर ग्राम कुड़की में हुआ था। इनके बचपन का नाम पैमल था। ये बचपन से ही कृष्ण भक्त थीं। 1519 ई. में इनका विवाह मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ। मीराँबाई के विवाह के 7 वर्ष पश्चात् ही इनके पति भोजराज का देहांत हो जाने से मीराँबाई का मन सांसारिकता से पूरी तरह उचट गया। इन्होंने पति एवं पिता का घर छोड़ा एवं कृष्ण भक्ति हेतु वृंदावन चली गयी। इन्होंने अपना अंतिम समय द्वारिका के रणछोड़ जी के मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने भजन कीर्तन करते हुए व्यतीत किया।

प्रश्न 5.
पन्नाधाय के बलिदान को समझाइए।
उत्तर:
पन्नाधाय बलिदान और स्वामिभक्ति के लिए न केवल मेवाड़ में बल्कि सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध हैं। 1536 ई. में मेवाड़ के शासक विक्रमादित्य की दासी पुत्र बनवीर ने हत्या कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया। वह विक्रमादित्य के छोटे भाई राजकुमार उदयसिंह की भी हत्या करके निश्चिन्त होकर राज्य करना चाहता था। पन्नाधाये उदयसिंह की धात्री माँ थी। जब बनवीर महल में उदयसिंह को मारने के लिए आ रहा था तभी पन्नाधाय ने वहाँ से उदयसिंह को हटाकर अपने पुत्र चंदन को राजसी वस्त्र पहनाकर उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया।

बनवीर ने चंदन को उदयसिंह समझकर मार डाला। पन्नाधाय उदयसिंह को लेकर देवलिया के जागीरदार रामसिंह के पास पहुँची और वहाँ से सुरक्षित स्थान कुम्भलगढ़ ले गयी। 1537 ई. में उदयसिंह का कुम्भलगढ़ में राज्याभिषेक किया गया। इस प्रकार, मेवाड़ की स्वामिभक्त पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर मेवाड़ के भावी उत्तराधिकारी उदयसिंह को दासी पुत्र बनवीर से बचाया। स्वामिभक्ति के लिए अपने पुत्र के बलिदान का यह एक अनुपम उदाहरण है।

प्रश्न 6.
गोगाजी की पूजा क्यों की जाती है?
उत्तर:
चौहान वंशीय गोगाजी का जन्म चूरू जिले के ददेरवा नामक स्थान पर जेहवर सिंह व बाइल के घर हुआ था। इन्होंने गौ रक्षा एवं मुस्लिम आक्रांताओं से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इसलिए इन्हें लोक देवता के रूप में पूजा जाने लगा। इन्हें ‘जाहरपीर’ के नाम से भी पूजा जाता है। इन्हें साँपों का देवता भी माना जाता है। भाद्रपद के कृष्णपक्ष की नवमी गोगा नवमी के रूप में मनायी जाती है। और वीर पुरुष के रूप में इनकी पूजा होती है। इनका सर्प मूर्ति स्थल प्रायः गाँवों में खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है।

प्रश्न 7.
जसनाथजी के सामाजिक सुधार को बताइए।
उत्तर:
जसनाथजी राजस्थान के एक प्रमुख समाज सुधारक थे। इनका जन्म वि.सं. 1539 को कतरियासर (बीकानेर) में हुआ था। इन्होंने 12 वर्ष की आयु में ही संन्यास ग्रहण कर गोरख मालिया में कठोर तपस्या की। इन्होंने समाज में प्रचलित रूढ़ियों एवं धार्मिक पाखण्डों का विरोध किया। निर्गुण व निराकार भक्ति पर बल दिया। जातिवाद का खण्डन कर संयम व सदाचार पर विशेष बल दिया। इन्होंने ईश्वर की प्राप्ति के लिए गुरु का होना आवश्यक बताया तथा प्रेम, भक्ति व समन्वय की भावना से समाज को आगे बढ़ाने का संदेश दिया। इनके द्वारा स्थापित सम्प्रदाय को जसनाथी सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 8.
विश्नोई का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
विश्नोई का शाब्दिक अर्थ – विश्नोई का शाब्दिक अर्थ 20 + 9 अंकों से है। संत जाम्भेश्वर (जाम्भोजी) ने 1485 ई. में कार्तिक कृष्ण अष्टमी को बीकानेर के सम्भराथल में विश्नोई पंथ की स्थापना की। जाम्भोजी ने अपने अनुयायियों को 29 सिद्धांतों पर आचरण करने का उपदेश दिया। ये 20 + 9 सिद्धांत ही विश्नोई पंथ के नियम माने जाते हैं। यह विश्नोई नाम (बीस-नौ) अंकों में (20 – 9) के आधार पर ही दिया गया है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सन्त दादू को समाज सुधारक के रूप में योगदान बताइए।
उत्तर:
दादूदयाल (सन्त दादू) मध्यकालीन भक्ति आन्दोलन के प्रमुख संत थे। इनका जन्म अहमदाबाद (गुजरात) में फाल्गुन शुक्ला अष्टमी वि. सं. 1601 को हुआ था। इनका प्रारम्भिक नाम महाबलि था। अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात् इन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया। आमेर शासक भगवानदास के माध्यम से मुगल बादशाह अकबर से इनकी मुलाकात आगरा के पास फतेहपुर सीकरी में हुई थी। इसके पश्चात् ये भक्ति का प्रचार-प्रसार करने लगे। राजस्थान में ये जयपुर के पास नारायणा में रहने लगे। 1603 ई.

में नारायणा में ही इनकी मृत्यु हो गयी। इनके 52 शिष्य थे, जिन्होंने अपने गुरु की शिक्षाएँ जन-जन तक फैलाईं। इनकी शिक्षाएँ ‘दादूवाणी’ नामक ग्रन्थ में संगृहीत हैं। सन्त दादू एक महान समाज-सुधारक थे। इन्होंने तत्कालीन समाज में फैले हुए विभिन्न प्रकार के आडम्बरों, पाखण्ड एवं सामाजिक भेदभाव का पुरजोर विरोध किया। इन्होंने जीवन में सादगी, सफलता एवं निश्छलता पर विशेष बल दिया। इन्होंने माना कि ब्रह्म से ओंकार की उत्पत्ति और ओंकार से पाँच तत्वों का जन्म हुआ है।

धन-दौलत (माया) ही आत्मा और परमात्मा के मध्य भेद उत्पन्न करती है। एक सच्चे भक्त के लिए ईश्वर प्राप्ति हेतु गुरु आवश्यक है। अच्छी संगति, ईश्वर का स्मरण, अहंकार का त्याग, संयम और निर्भीक उपासना ही ईश्वर प्राप्ति के अच्छे साधन हैं। इन्होंने अपने उपदेश सरल हिन्दी मिश्रित सधुक्कड़ी भाषा में दिए थे। इन्हें राजस्थान का कबीर भी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियाँ बताइए।
उत्तर:
पृथ्वीराज चौहान का प्रारम्भिक जीवन

अजमेर के चौहान वंश का अन्तिम प्रतापी शासक पृथ्वीराज चौहान था। इनका जन्म संवत् 1223 में गुजरात की तत्कालीन राजधानी अन्हिलपाटन में हुआ था। इन्होंने 1177 ई. के लगभग अपने पिता सोमेश्वर देव की मृत्यु के पश्चात् मात्र 11 वर्ष की आयु में अजमेर का सिंहासन प्राप्त किया। इनकी माता कर्पूरी देवी ने बड़ी कुशलता से प्रारम्भ में इनके राज्य को सँभाला। इन्होंने उच्च पदों पर अनेक योग्य और विश्वस्त अधिकारियों को नियुक्त किया। तत्पश्चात् अपनी विजय नीति को क्रियान्वित करने का बीड़ा उठाया।

पृथ्वीराज चौहान की विजय नीति के तीन पहलू थे-प्रथम-जिसमें उसे अपने स्वजनों के विरोध से मुक्ति प्राप्त करना था। द्वितीय-साम्राज्य विस्तार या दिग्विजय की भावना थी, जिसमें उसे प्राचीन हिंदू शासकों की भाँति पड़ौसी राज्य पर अधिकार करना था। तृतीय-विदेशी शत्रुओं को पराजित करना था।

पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियाँ

1. नागार्जुन तथा भण्डानकों का दमन – पृथ्वीराज चौहान जब चौहान राज्य का शासक बना तभी उसके चचेरे भाई नागार्जुन ने विद्रोह कर गुड़गाँव पर अपना अधिकार कर लिया। पृथ्वीराज ने एक सेना की टुकड़ी भेजकर नागार्जुन को परास्त कर दिया तथा विद्रोह का सफलतापूर्वक दमन किया। 1182 ई. में पृथ्वीराज ने भरतपुर-मथुरा क्षेत्र में भण्डानकों के विद्रोहों का अंत किया।

2. महोबा के चंदेलों पर विजय – दिग्विजय नीति के अन्तर्गत पृथ्वीराज चौहान ने 1182 ई. में ही महोबा के चंदेल शासक परमाल देव को हराकर उसे संधि करने के लिए विवश किया तथा उसके कई गाँव अपने अधिकार में ले लिए।

3. चालुक्यों पर विजय – 1184 ई. के लगभग गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय के प्रधानमंत्री जगदेव प्रतिहार एवं पृथ्वीराज की सेना के मध्य नागौर का युद्ध हुआ, जिसके बाद दोनों में संधि हो गई एवं चौहानों की चालुक्यों से लम्बी शत्रुता का अंत हुआ।

4. तुर्की आक्रमणों का प्रतिरोध – पृथ्वीराज चौहान के समय में भारत के उत्तर-पश्चिम में गौर प्रदेश पर शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी का शासन था। 1191 ई. में मोहम्मद गौरी ने बड़ी सेना के साथ पृथ्वीराज पर आक्रमण किया। वर्तमान करनाल (हरियाणा) के पास तराइन के मैदान में दोनों की सेनाओं के मध्य घमासान युद्ध हुआ, जिसमें मोहम्मद गौरी की भारी पराजय हुई, परन्तु 1192 ई. में वह पुनः तराइन के मैदान में आ धमका और इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान पराजित हुआ। इस प्रकार अजमेर और दिल्ली पर तुर्को अर्थात् मोहम्मद गौरी का अधिकार हो गया।

5. साहित्यिक व सांस्कृतिक उपलब्धियाँ – पृथ्वीराज चौहान वीर, साहसी एवं विलक्षण प्रतिभा का धनी था। इन्हें विद्या और साहित्य के प्रति विशेष लगाव था। इनका शासनकाल साहित्यिक व सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए भारतीय इतिहास में गौरवशाली रहा है। जयानक, विद्यापति, बागीश्वर, जनार्दन, चंदबरदाई आदि प्रसिद्ध विद्वान इनके दरबार में आश्रय पाते थे। जयानक ने ‘पृथ्वीराज विजय’ नामक प्रसिद्ध कृति की रचना की। चंदबरदाई ने ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक ग्रन्थ लिखा।

प्रश्न 3.
बाबर व राणा सांगा के मध्य संघर्ष के कारण व परिणाम बताइए।
उत्तर:
बाबर व राणा सांगा के मध्य संघर्ष के कारण
बाबर व राणा सांगा के मध्य संघर्ष के कारण निम्नलिखित थे-

1. सांगा पर संधि भंग करने का आरोप – बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में लिखा है कि “काबुल में राणा सांगा ने दूत भेजकर हमें दिल्ली पर आक्रमण करने को कहा और उसने कहा था कि वह उसी समय आगरा पर आक्रमण करेगा, लेकिन वह अब तक नहीं आया।” अतः राणा ने संधि भंग की है। इस प्रकार बाबर ने उस पर संधि भंग करने का आरोप लगाकर युद्ध का बहाना ढूँढ़ा।

2. महत्वाकांक्षाओं में टकराव – मेवाड़ का राणा सांगा प्रभाव वृद्धि की आकांक्षा से अभिभूत था। वह हिन्दूपति कहलाता था। उसने एक साथ तीन-तीन शत्रुओं को युद्ध भूमि में हरा दिया। दूसरी ओर बाबर भी सम्पूर्ण भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता था। अत: दोनों के बीच युद्ध होना अनिवार्य था।

3. राजपूत – अफगान मैत्री-बाबर से पानीपत के मैदान में अफगान पराजित हो गये थे, लेकिन कुछ अपनी सुरक्षा के लिए राणा के पास शरण प्राप्ति हेतु पहुँच गये थे। इनमें इब्राहीम लोदी का छोटा भाई और हसन खाँ मेवाती प्रमुख थे। ये अफगान सरदार, राणा सांगा से मिलकर बाबर को भारत से बाहर निकालने की योजना बना रहे थे। बाबर के लिए यह एक गम्भीर चुनौती थी।

4. राणा का सल्तनत के क्षेत्रों पर प्रभाव – राणा सांगा ने पानीपत के युद्ध के समय दिल्ली सल्तनत के कई प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था, जो मुगल बादशाह बाबर को स्पष्ट रूप से चुनौती थी।

5. बयाना दुर्ग का महत्व – बयाना का दुर्ग राजस्थान के प्रवेशद्वार पर स्थित है। राणा सांगा इस पर अधिकार करना चाहता था। मुगल बादशाह बाबर भी अपने राज्य की सुरक्षा के लिए इस पर अधिकार करना चाहता था। संघर्ष का परिणाम-बाबर ने बयाना दुर्ग पर अधिकार कर लिया। 16 फरवरी, 1527 ई. को राणा सांगा ने बाबर की सेना को हराकर बयाना दुर्ग पर कब्जा कर लिया। बाबर ने अपनी हार का बदला लेने के लिए सांगा पर पुनः आक्रमण हेतु कूच किया। 17 मार्च, 1527 ई. के खानवा के मैदान में दोनों सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ।

इस युद्ध में महाराणा सांगा के झंडे के नीचे प्रायः समस्त राजपूताने के राजा थे। इस युद्ध में राणा सांगा की पराजय हुई। राणा सांगा को घायलावस्था में विश्वस्त सेनाधिकारियों के साथ बसवा (दौसा) ले जाया गया। यहीं 30 जनवरी 1528 को इनकी मृत्यु हो गयी।खानवा युद्ध के पश्चात् भारतवर्ष में मुगलों का राज्य स्थाई हो गया और बाबर स्थिर रूप से भारतवर्ष का बादशाह बना। इससे राजसत्ता राजपूतों के हाथ से निकलकर मुगलों के हाथ में आ गयी जो लगभग 200 वर्ष से अधिक समय तक उनके पास बनी रही।

इस पराजय से राजपूतों का वह प्रताप, जो महाराणा कुम्भा के समय में बढ़ा था वह एकदम कम हो गया, जिससे भारत की राजनैतिक स्थिति में राजपूतों का वह उच्च स्थान न रहा। मेवाड़ की प्रतिष्ठा और शक्ति के कारण राजपूतों का जो संगठन था वह टूट गया।

प्रश्न 4.
राजस्थान के प्रमुख लोकदेवताओं पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता
राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता निम्नलिखित हैं

1. रामदेवजी – राजस्थान के पाँच प्रमुख लोकदेवताओं में रामदेवजी का प्रमुख स्थान है। इनका जन्म 15वीं शताब्दी में अजमल जी एवं मैणा देवी के घर पोकरण के एक गाँव में हुआ था। ये सिद्ध संत, शूरवीर, कर्त्तव्यपरायण, जन सामान्य के रक्षक एवं गौ रक्षक के रूप में प्रसिद्ध हुए। रामदेव जी ने सामाजिक समरसता, हिन्दू-मुस्लिम एकता, जीवमात्र के लिए दया, परोपकार, गुरु महिमा और मानव गौरव को प्राथमिकता दी। मुसलमान इन्हें ‘रामसा पीर’ के रूप में पूजते हैं। इन्होंने 1415 ई. में रामदेवरा (रुणेचा) में समाधि ली जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीय से दशमी तक विशाल मेला लगता है।

2. तेजाजी – लोक देवता तेजाजी खरनालिये (नागौर) के नागवंशीय जाट थे। इनका जन्म माघ शुक्ला चतुर्दशी वि. सं. 1130 को नागौर जिले के खरनालिये गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम ताहड़जी, माता का नाम रामकुंवरी व पत्नी का नाम पैमल था। ये लांछा गुजरी की गायों को चोरों से छुड़ाने के दौरान घायल हो गये तथा सर्पदंश से इनकी मृत्यु हो गयी। सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति इनके थान पर आकर इलाज कराते हैं। परबतसर (नागौर) में भाद्रपद शुक्ला दशमी को तेजाजी का विशाल मेला लगता है जहाँ भारी मात्रा में पशुओं की खरीद-फरोख्त होती है। इन्हें साँपों का देवता, काला और बाला का देवता तथा कृषि कार्यों का उपकारक देवता माना जाता है।

3. गोगाजी – चौहान वंशीय गोगाजी का जन्म चूरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर जेहवर सिंह व बाइल के घर हुआ। इन्होंने दिल्ली के बादशाह फिरोजशाह से युद्ध किया। गोगाजी ने गौ रक्षा एवं मुस्लिम आक्रांताओं से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इसलिए इन्हें लोक देवता के रूप में पूजा जाने लगा। इन्हें साँपों का देवता भी माना जाता है। गोगाजी के थान को गोगामेडी कहा जाता है। गोगामेडी में प्रतिवर्ष भाद्रपद नवमी को विशाल मेला लगता है।

4. पाबूजी – राठौड़ राजवंश के पाबूजी राठौड़ का जन्म 13वीं शताब्दी में फलौदी (जोधपुर) के निकट कोल्हूगढ़ में हुआ था। इनके पिता का नाम धाँधल व माता का नाम कमलादे था। इनकी देवल चारण नामक एक धर्म बहन थी। एक कथा के अनुसार अपनी बहन की गायों को उसके दुश्मन जिंदराव से छुड़ाने के दौरान इन्होंने अपने प्राणोत्सर्ग कर दिए। अतः इन्हें गौ रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। नारी सम्मान, शरणागत वत्सलता एवं वीरत्व इनके विशिष्ट गुण थे। इनकी यशगाथा ‘पाबूजी की फड़’ में संकलित हैं।

5. देवनारायणजी – देवनारायणजी बगडावत वंश के नागवंशीय गुर्जर थे। इनका मूल स्थान वर्तमान में अजमेर के समीप नाग पहाड़ था। इनका जन्म 911 ई. में भीलवाड़ा के बगडावत परिवार में हुआ। इनका बचपन का नाम उदयसिंह था। इनका विवाह राजा जयसिंह की पुत्री पीपलदे के साथ हुआ। इन्होंने गायों की रक्षार्थ भिणाय के शासक से भयंकर युद्ध किया। ये मुख्यतः गुर्जर जाति के लोक देवता माने जाते हैं। गुर्जर लोग इन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं। इन्होंने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा का संदेश दिया।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
तराइन का प्रथम युद्ध कब हुआ
(अ) 1192
(ब) 1191
(स) 1980
(द) 1186.
उत्तर:
(ब) 1191

प्रश्न 2.
निम्न में से किस राजपूत शासक ने दिग्विजय नीति का अनुसरण किया
(अ) राणा सांगा
(ब) पृथ्वीराज चौहान
(स) बप्पा रावल
(द) सवाई राम सिंह
उत्तर:
(ब) पृथ्वीराज चौहान

प्रश्न 3.
महाराणा सांगा कहाँ के शासक थे ?
(अ) मेवाड़ के
(ब) जयपुर के
(स) दिल्ली के
(द) माण्डू के
उत्तर:
(अ) मेवाड़ के

प्रश्न 4.
पन्नाधाय मेवाड़ के किस राजकुमार की धात्री माँ थी ?
(अ) उदय सिंह की
(ब) संग्राम सिंह की
(स) प्रताप की
(द) उपर्युक्त सभी की।
उत्तर:
(अ) उदय सिंह की

प्रश्न 5.
निम्न में से किस शासक से दुर्गादास का सम्बन्ध रहा ?
(अ) राम सिंह
(ब) अजीत सिंह
(स) मान सिंह
(द) सूरजमल।
उत्तर:
(ब) अजीत सिंह

प्रश्न 6.
“खेजड़ी वृक्ष की रक्षा के लिए सामूहिक रूप से अपने प्राणों की बलि देना विश्व की अनूठी घटना है।” यह घटना किस स्थान से सम्बन्धित है ?
(अ) खेजड़ली से
(ब) उदयपुर से
(स) खरनाल से
(द) मानगढ़ पहाड़ी से।
उत्तर:
(अ) खेजड़ली से

प्रश्न 7.
गोविंद गुरु ने कौन-से पंथ की स्थापना की?
(अ) भगत पंथ
(ब) बिश्नोई पंथ
(स) दादू पंथ
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) भगत पंथ

प्रश्न 8.
रामस्नेही सम्प्रदाय के संस्थापक थे
(अ) दादूदयाल
(ब) जसनाथ जी
(स) रामचरण जी
(द) आचार्य भिक्षु
उत्तर:
(स) रामचरण जी

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बप्पा रावल को किसने वरदान दिया था?
उत्तर:
हारीत राशि ने।

प्रश्न 2.
पृथ्वीराज चौहान एवं मोहम्मद गौरी के मध्य कौन-से दो प्रसिद्ध युद्ध हुए थे?
उत्तर:

  1. तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ई.
  2. तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 ई.

प्रश्न 3.
तराइन के द्वितीय युद्ध में किसकी विजय हुई?
उत्तर:
मोहम्मद गौरी की

प्रश्न 4.
पृथ्वीराज चौहान के किन्हीं दो दरबारी साहित्यकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. चन्दबरदाई
  2. जयानक

प्रश्न 5.
खानवा का युद्ध कब व किसके मध्य हुआ था?
उत्तर:
1527 ई. में बाबर व राणा सांगा के मध्य।

प्रश्न 6.
अंतिम हिंदू सम्राट कौन था जिसके नेतृत्व में सभी राजपूत शासक विदेशी आक्रान्ताओं से मुकाबला करने के लिए एकत्रित हुए थे?
उत्तर:
महाराणा सांगा।

प्रश्न 7.
मीराँबाई का जन्म स्थान बताइए।
उत्तर:
मेड़ता (नागौर) का कुड़की ग्राम।

प्रश्न 8.
स्वामिभक्ति और त्याग की प्रतिमूर्ति किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पन्नाधाय को।

प्रश्न 9.
अपनी प्रतिभा के बल पर किसने स्वामिभक्ति की मिसाल स्थापित की थी?
उत्तर:
दुर्गादास राठौड़ ने।

प्रश्न 10.
किस शासक के नेतृत्व में मारवाड़ के राठौड़ों ने अपूर्व शक्ति अर्जित की थी?
उत्तर:
राव मालदेव के नेतृत्व में।

प्रश्न 11.
किस युद्ध की समाप्ति पर शेरशाह को यह कहने को मजबूर होना पड़ा कि-“एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता?”
उत्तर:
सुमेल युद्ध की समाप्ति पर।

प्रश्न 12.
मालदेव के सेनापतियों का नाम बताइए।
उत्तर:
जैता व कुंपा।

प्रश्न 13.
वृक्षों की रक्षार्थ किसने अपने प्राणों की आहुति दी थी?
उत्तर:
अमृता देवी ने।

प्रश्न 14.
अमृता देवी ने किस वृक्ष को काटने का विरोध किया था?
उत्तर:
खेजड़ी वृक्ष को।

प्रश्न 15.
‘जाट जाति का प्लेटो’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
महाराज सूरजमल को।

प्रश्न 16.
गोविंद गुरु का जन्म कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
20 दिसम्बर, 1858 ई. को डूंगरपुर के बसियां ग्राम में।

प्रश्न 17.
राजस्थान के लोक देवताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. तेजाजी
  2. गोगाजी
  3. पाबू जी
  4. रामदेवजी
  5. देवनारायणजी।

प्रश्न 18.
लोक देवता तेजाजी का जन्म स्थान बताइए।
उत्तर:
खरनालिये (नागौर)।

प्रश्न 19.
सामाजिक समरसता का संदेश किस लोक देवता ने दिया था?
उत्तर:
रामदेवजी ने।

प्रश्न 20.
‘रामदेव बाबा री आण’ क्या है?
उत्तर:
बाबा रामदेव के मंदिरों में उनके नाम की शपथ ली। जाती है, जिसे ‘रामदेव बाबा री आण’ कहा जाता है।

प्रश्न 21.
रामदेवजी का मेला कब व कहाँ लगता है?
उत्तर:
रामदेवजी का मेला रामदेवरा (रुणेचा) में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीय से दशमी तक विशाल मेला लगता है।

प्रश्न 22.
राजस्थान का गुर्जर समाज विष्णु का अवतार किस लोक देवता को मानता है?
उत्तर:
देवनारायणजी को।

प्रश्न 23.
राजस्थान की फड़ों में सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ कौन-सी है?
अथवा
राजस्थान की सबसे बड़ी फड़ कौन-से लोक देवता की है?
उत्तर:
देवनारायणजी की फड़।

प्रश्न 24.
संत पीपाजी का जन्म कब व कहाँ हुआ था?
उत्तर:
संत पीपाजी का जन्म गागरोन दुर्ग में वि. सं. 1417 चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था।

प्रश्न 25.
विश्नोई सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
जाम्भोजी।

प्रश्न 26.
जसनाथजी का जन्म कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
वि. सं. 1539 में कतरियासर (बीकानेर) में

प्रश्न 27.
जसनाथी सम्प्रदाय की स्थापना किसने की?
उत्तर:
जसनाथ ने।

प्रश्न 28.
राजस्थान का कबीर किसे कहा जाता है?
उत्तर:
संत दादूदयाल को

प्रश्न 29.
आचार्य भिक्षु का सम्बन्ध किस धर्म से था?
उत्तर:
जैन धर्म से।

प्रश्न 30.
तेरापंथ सम्प्रदाय की स्थापना किसने की?
उत्तर:
आचार्य भिक्षु ने।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गिरि-सुमेल के युद्ध के बारे में आप क्या जानते हैं? बताइए।
उत्तर:
1543 ई. में दिल्ली के अफगान शासक शेरशाह सूरी ने राव मालदेव पर चढ़ाई कर दी। जैतारण के निकट गिरि-सुमेल नामक स्थान पर 1544 ई. में दोनों की सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें शेरशाह सूरी की बड़ी मुश्किल से जीत हुई। उसे यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि-“एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता ।” इस युद्ध में मालदेव के सेनापति जैता व कूपा मारे गये। इसके बाद शेरशाह ने जोधपुर के दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया।

प्रश्न 2.
अमृता देवी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अमृता देवी विश्नोई, जोधपुर के खेजड़ली गाँव की निवासी थीं। उसके गाँव में जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के आदेश से खेजड़ी के वृक्ष काटे जा रहे थे, जिसका अमृता देवी विश्नोई ने विरोध किया। उसके साथ उसकी तीन पुत्रियाँ भी थीं। वह खेजड़ी वृक्ष से लिपट गर्थी महाराजा के सैनिकों ने विरोध करने पर अमृता देवी और उसकी पुत्रियों के सिर धड़ से अलग कर दिए। उस दिन मंगलवार था, जो कि ‘काला मंगलवार’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 3.
जाम्भोजी के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जाम्भोजी ने अपने अनुयायियों को 29 सिद्धान्तों पर आचरण करने का उपदेश दिया। जाम्भोजी शान्तिप्रिय, सहृदयी, साग्राही, उदार चिंतक, मानव धर्म के पोषक, पर्यावरण के संरक्षक एवं हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे। इनके सिद्धान्त जनसाधारण के दैनिक जीवन से जुड़े थे। 1485 ई. में जब मरुभूमि में अकाल पड़ा तो इन्होंने अकाल पीड़ितों की उदारतापूर्वक सहायता की थी। जाम्भोजी ने वृक्षों, गायों एवं अन्य पशुओं की रक्षा का कार्य किया। इन्होंने बताया है कि ईश्वर प्राप्ति के लिए संन्यास की आवश्यकता नहीं है। इन्हीं के विचारों का अनुसरण करते हुए खेजड़ली में वृक्षों की रक्षार्थ अमृता देवी के नेतृत्व में लगभग 363 लोगों ने अपनी जान दी थी।

प्रश्न 4.
गोविन्द गुरु द्वारा आदिवासी भील समाज के कल्याण एवं जन-जागृति के लिए किए गए कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गोविन्द गुरु ने ‘सम्प सभा’ की स्थापना की तथा आदिवासी भील समाज में सुधार, जन जागृति का कार्य किया। बड़ी संख्या में भील ‘सम्प सभा के सदस्य बन गए और उन्होंने शराब, माँस आदि का सेवन करना छोड़ दिया। गोविन्द गुरु ने सामन्तों द्वारा ली जाने वाली बेगार के विरुद्ध भीलों को संगठित किया। उन्होंने आदिवासियों के मध्य एक व्यापक स्वाधीनता आन्दोलन चलाया जिससे अंग्रेजी सरकार, देशी राजा, विदेशी पादरी आदि भयभीत हो गये। 17 नवम्बर, 1913 ई. को मानगढ़ की पहाड़ी पर आयोजित आदिवासियों की सभी पर अंग्रेजी सेना ने गोलियाँ चलाईं जिसमें 1500 भील मारे गये। गोविन्द गुरु 10 वर्ष जेल में रहे। उन्होंने भीलों में एकता तथा आत्मविश्वास जगाया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लोक देवता गोगाजी का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोक देवता गोगाजी का आरम्भिक जीवन गोगाजी राजस्थान के पाँच प्रमुख लोक देवताओं में से एक हैं। गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में चूरू जिले में ददेरवा नामक गांव में जेंहवर सिंह के यहाँ हुआ। इनकी माता का नाम बाइल था। जेहवर सिंह को वीरगति प्राप्त हो जाने के पश्चात् ये ददेरवा के शासक बने। इनका विवाह केमलदे के साथ हुआ था। दिल्ली के बादशाह से युद्ध-गोगाजी ने दिल्ली के बादशाह फिरोजशाह से युद्ध किया था।

उस युद्ध में गोगाजी के दो मौसेरे भाई अरजन और सरजन भी बादशाह की ओर से लड़ते हुए मारे गये। अपने घर पर गोगाजी ने यह बात अपनी माँ को बताई तो वह बहुत नाराज हो गयी और गोगा को घर से चले जाने तथा मुँह न दिखाने को कहा। गोगाजी को यह बहुत बुरा लगा और उन्होंने जीवित समाधि ले ली। गोगाजी के मेले-गोगाजी की स्मृति में ददेरवा, राजगढ़, चूरू, रतनगढ़ आदि क्षेत्रों में मेले लगते हैं। भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की नवमी पर यह मेले लगते हैं। यह दिन उत्सव के रूप में मनाया जाता है तथा गोगाजी की पूजा की जाती है। इस दिन गोगाजी की अश्वारोही भाला लिए योद्धा के प्रतीक के रूप में या सर्प के प्रतीक के रूप में पूजा की जाती है।

इनकी मूर्ति पत्थरों पर सर्प के रूप में उत्कीर्ण कर गाँवों में खेजड़ी के वृक्ष के नीचे स्थापित कर गोगाजी के थान बनाए जाते हैं। गोगाजी के थान को गोगामेडी कहते हैं जो इन्द्रमानगढ़ किले में स्थित है। साँपों के देवता के रूप में-गोगाजी साँपों के देवता माने जाते हैं। लोगों का विश्वास है कि गोगाजी को मानने वालों को साँप नहीं काटता है। ग्रामीण क्षेत्रों में मान्यता-ग्रामीण क्षेत्रों में गोगाजी की बहुत मान्यता है। किसान हल चलाने के पूर्व गोगा राखी बाँधते हैं।

इनकी यह मान्यता है कि गोगाजी सर्यों से उनकी रक्षा करते हैं। गोगाजी के भक्त हाथों में ऊँचे निशान (झण्डे) लिए ढ़ोल-नगाड़े, झांझर आदि बजाते हुए नृत्य करते हैं, रात्रि जागरण भी किया जाता है। खीर, पूआ, लापसी आदि का भोग लगाया जाता है तथा नारियल चढ़ाया जाता है। गोगाजी की मान्यता राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात, हरियाणा, |पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में भी है।

प्रश्न 2.
राजस्थान के प्रमुख लोक देवताओं के नामों का उल्लेख करते हुए बाबा रामदेवजी का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
लोक देवता रामदेवजी के कार्यों एवं उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान के प्रमुख लोक देवता राजस्थान में अनेक लोक देवता हुए हैं। इनमें वीर तेजाजी, देवनारायणजी, पाबूजी, गोगाजी, रामदेवजी, हरभूजी, मेहाजी मल्लीनाथजी आदि प्रसिद्ध लोक देवता हैं। बाबा रामदेव जी को प्रारम्भिक जीवन-बाबा रामदेव जी का जन्म वि. सं. की 15वीं शताब्दी में पोकरण के एक गाँव में हुआ था। ये तंवर राजपूत थे। इनके पिता का नाम अजमल तंवर एवं माता का नाम मैणादेवी था। इनका विवाह नेतलदेवी नामक कन्या से हुआ था। रामदेवजी मल्लीनाथ के समकालीन थे। मल्लीनाथ जी ने प्रसन्न होकर इन्हें पोकरण का क्षेत्र प्रदान किया।

रामदेवजी ने पोकरण के पास रामदेवरा नामक गाँव (रुणेचा) बसाया। 1458 ई. में भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन रामदेव जी ने समाधि ले ली थी। रामदेव जी के कार्य एवं उपलब्धियाँ-राजस्थान के प्रमुख पाँच लोक देवताओं एवं पीरों में रामदेव का प्रमुख स्थान है। ये एक वीर योद्धा, सिद्ध पुरुष, कर्तव्यपरायण, जन-सामान्य के रक्षक व गौ रक्षक के रूप में प्रसिद्ध हुए। रामदेवजी ने सामाजिक समरसता, हिन्दू-मुस्लिम एकता, जीव मात्र के प्रति दया, परोपकार, गुरु महिमा, पुरुषार्थ और मानव गौरव को प्रमुखता दी। उन्होंने जाति प्रथा, ऊँच-नीच के भेद-भाव एवं छुआछूत का विरोध किया।

उन्होंने निम्न वर्ग के लोगों को गले लगाया। ये अछूत कहे जाने वाले लोगों के साथ बैठकर भोजन करते थे। उन्होंने डालीबाई का बहिन के रूप में पालन-पोषण किया। उन्होंने धार्मिक आडम्बरों का विरोध किया। राजस्थान के अतिरिक्त मध्यप्रदेश व गुजरात में भी इनकी पूजा की जाती है। रामदेवजी को थान-रामदेवजी को पूजा स्थान रामदेवजी का थान कहलाता है।

गाँवों में रामदेवजी का थान बनाया जाता है। खेजड़ी वृक्ष के नीचे चबूतरा बनाकर रामदेवजी के पदचिन्ह (पगलिये) स्थापित किये जाते हैं। सफेद वस्त्र पर लाल रंग के पगलिये बनाकर ध्वजा फहराई जाती है। इनके मन्दिरों को देवल या देवरा के नाम से जाना जाता है। बाबा रामदेव के नाम की शपथ भी ली जाती है जिसे ‘रामदेव बाबा री आण’ कहा जाता है।

रात्रि में जम्मा जागरण किया जाता है एवं लोक गीत, काव्य कथा से इनकी स्तुति की जाती है। इनके समाधि स्थान रामदेवरा (रूणेचा) में प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीय से दशमी तक विशाल मेला लगता है। इसमें हिन्दू तथा मुसलमान बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। मुसलमान भी उन्हें ‘रामसा पीर’ के रूप में पूजते हैं।

प्रश्न 3.
एक समाज सुधारक के रूप में संत जाम्भोजी का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जाम्भोजी का आरम्भिक जीवन विश्नोई सम्प्रदाय के संस्थापक जाम्भोजी का जन्म 1451 ई. में नागौर जिले के पीपासर नामक गाँव में हुआ था। वे पंवार राजपूत थे। उनके पिता का नाम लोहटजी एवं माता का नाम हांसा देवी था। ये अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। बाल्यावस्था से वे गायें चराने का कार्य करते रहे। ध्यान-मनन आदि में तल्लीन होने के कारण उन्होंने माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् घर छोड़ दिया और बीकानेर के सम्भराथल नामक स्थान पर चले गये और वहीं सत्संग एवं हरि चर्चा में अपना समय व्यतीत करने लगे।

विश्नोई पंथ की स्थापना-वि. सं. 1542 में जाम्भोजी ने कार्तिक कृष्ण अष्टमी को सम्भराथल नामक स्थान पर प्रथम पीठ स्थापित करके विश्नोई पंथ की स्थापना की। जाम्भोजी ने अपने अनुयायियों को 29 सिद्धान्तों पर आचरण करने का उपदेश दिया। ये 20 +9 सिद्धान्त ही विश्नोई पंथ के नियम माने जाते हैं। देह त्याग-जाम्भोजी ने वि. सं. 1593 को मानव देह का त्याग कर दिया।

उन्हें मुकाम नामक गाँव में समाधिस्थ किया गया। इस पावन स्मारक पर प्रतिवर्ष फाल्गुन की अमावस्या व आषाढ़ की अमावस्या को मेला लगता है। जाम्भोजी के कार्य-जाम्भोजी के सिद्धान्त जन-साधारण के दैनिक जीवन से जुड़े थे। वे समन्वयवादी, उदार चिन्तक, मानव धर्म के पोषक, पर्यावरण के संरक्षक एवं हिन्दू व मुसलमानों में एकता व सामंजस्य के समर्थक थे। 1485 ई. में जब मरुभूमि में अकाल पड़ा तो जाम्भोजी ने अकाल पीड़ितों की उदारतापूर्वक सहायता की थी।

जाम्भोजी ने वृक्षों, गायों व अन्य पशुओं की रक्षा का कार्य किया। जाम्भोजी ने चारित्रिक पवित्रता और मूलभूत मानवीय गुणों पर बल दिया। इनके वचनों का सामूहिक नाम संबदेवाणी है। जाम्भोजी की राजस्थान के बाहर पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में भी प्रबल मान्यता है। जाम्भोजी के अनुयायी विश्नोई कहलाते हैं। इनमें हिरण आदि वन्य प्राणियों के प्रति, खेजड़ी एवं अन्य हरे वृक्षों की कटाई पूर्णतः वर्जित है। इन्हीं के विचारों का अनुसरण करते हुए 1730 ई. में वृक्षों की रक्षा के लिए अमृता देवी सहित लगभग 363 स्त्रियों, पुरुषों व बच्चों का आत्म बलिदान (सिर कटा देना) विश्व स्तर पर पर्यावरण संरक्षण का अद्वितीय उदाहरण है। इस प्रकार जाम्भोजी राजस्थान के न केवल प्रमुख विचारक सन्त थे, वरन् महान् सामाजिक तथा धार्मिक सुधारक भी थे।

प्रश्न 4.
आचार्य भिक्षु का समाज सुधारक के रूप में योगदान बताइए।
उत्तर:
आचार्य भिक्षु का समाज सुधारक के रूप में योगदान आचार्य भिक्षु का आरम्भिक जीवन-आचार्य भिक्षु जैन परम्परा के एक महान संत थे। इनका जन्म मारवाड़ के कंटालिया ग्राम में आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी वि. सं. 1783 (2 जुलाई, 1726 ई.) को हुआ था। लगभग 25 वर्ष की आयु में वे जैन आचार्य रघुनाथ जी के सम्प्रदाय में मुनि हो गए। ये लगभग 8 वर्ष तक अपने गुरु के सानिध्य में रहे। आचार्य भिक्षु की शिक्षाएँ-महावीर स्वामी की भाँति आचार्य भिक्षु ने जैन धर्म की सैद्धान्तिक बातों को जनसाधारण तक पहुँचाने के लिए जनभाषा का उपयोग किया। आचार्य भिक्षु ने राजस्थानी भाषा में प्रचलित साहित्य का लेखन किया।

आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ सम्प्रदाय की स्थापना की। उन्होंने आचार्य के रूप में केलवा, राजनगर, पाली, नाथद्वारा, पीपाड़, आमेट, कटांलिया, बरलू, पुर, सोजत, बनेड़ा, सवाई माधोपुर आदि स्थानों पर चातुर्मास के मध्य अपने उपदेशों से जनमानस को प्रभावित करते हुए अपने मत का प्रचार-प्रसार किया। इन्होंने विरोधियों की परवाह न करते हुए उनके विरोध को भी सदैव अपने पक्ष में सकारात्मक रूप में लिया। आचार्य भिक्षु आचार-विचार की शुद्धता के प्रबल पक्षधर थे।

इन्होंने धार्मिक सहिष्णुता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव पर बल दिया। इन्होंने अपने धर्म संघ के साधुओं को एक ही आचार्य की मर्यादा व अनुशासन पर चलने पर बल दिया। इन्होंने एक आचार्य, एक शिक्षा एवं एक विचार के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इन्होंने कहा कि धर्म की बात एक साधारण व्यक्ति की समझ में आनी चाहिए ताकि वह उनका पालन करते हुए मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ सके। 2 सितम्बर, 1803 ई. को आचार्य भिक्षु का पाली जिले के सिरियारी में देहांत हो गया।

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