Students must start practicing the questions from RBSE 12th Drawing Model Papers Set 1 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Drawing Model Paper Set 1 with Answers in Hindi
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 24
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – अ
प्रश्न 1.
दिये गये बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखें- (\(\frac {1}{2}\))
(i) गीत गोविन्द के रचयिता कौन थे?
(अ) जयदेव
(ब) केशवदास
(स) बिहारी
(द) चारणभाट
उत्तर:
(अ) जयदेव
(ii) शिकार के चित्र सर्वाधिक किस चित्रशैली में बने? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) बूंदी चित्रशैली
(ब) कोटा चित्रशैली
(स) मेवाड़ चित्रशैली
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) कोटा चित्रशैली
(iii) हम्जा नामक पांडुलिपि का चित्रांकन किसने आरम्भ करवाया? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) हुमायूँ ने
(ब) अकबर ने
(स) शाहजहाँ ने
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) हुमायूँ ने
(iv) ‘समृद्धि के सिंहासन’ नामक चित्र में कितने चरण हैं? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) 7
(ब) 6
(स) 16
(द) 15
उत्तर:
(अ) 7
(v) निम्न में से पहाड़ी कला का केन्द्र है- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) कांगड़ा
(ब) बसोली
(स) गुलेर
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
(vi) वर्ली चित्र परम्परा का सम्बन्ध किस स्थान से है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) टाणे से
(ब) जयपुर से
(स) मिथिला से
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) टाणे से
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) मुगल चित्रकला में हिन्दू-मुस्लिम और ………….. … का समावेश है। (\(\frac {1}{2}\))
(ii) सिंहासन पर बैठे राजा …………………………… शैली का चित्र है। (\(\frac {1}{2}\))
(iii) भारतीय और यूरोपीय कला तत्वों के सम्मिश्रण से जिस शैली का उदय हुआ उसे ………………. नाम से जाना जाता है। (\(\frac {1}{2}\))
(iv) वर्तमान समय में ………………………… का व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए कपड़े, कागज और बर्तनों पर भी चित्रण किया जा रहा है। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
(i) यूरोपीय संस्कृति,
(ii) अहमदनगर,
(iii) कंपनी शैली.
(iv) मिथिला कला।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए-
(i) 1605 ई. में निर्मित रागमाला किसके द्वारा बनायी गयी? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
निसारदीन द्वारा।
(ii) बीजापुर शैली के किसी एक चित्र का नाम लिखिए। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
राग हिंडोला की रागनी पाठमशिका।
(iii) ‘मिट्टी जोतने वाला’ चित्र किस चित्रकार का है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
नंदलाल बसु का।
(iv) मिथिला कला को अन्य और किस नाम से जाना जाता है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मधुबनी कला।
(v) किस समुदाय के लोगों द्वारा झोंपड़ियों की दीवारों पर पूजा-पाठ से सम्बन्धित ज्यामितीय रेखांकन बनाए जाते हैं? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मध्यप्रदेश के गौड समुदाय के लोगों द्वारा।
(vi) फड़ चित्र किस जाति द्वारा बनाये जाते हैं? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
जोशी जाति द्वारा।
खण्ड – ब
निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 4.
हुमायूँ का चित्रकला के विकास में क्या योगदान रहा ? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
हुमायूँ एक कला प्रेमी शासक था। उसने चित्रकला, सुलेख और पुस्तकों के संरक्षक हेतु शाही संग्रहालय बनवाए। उन्होंने निगारणक (पेंटिंग वर्कशॉप) की स्थापना की, जो उनके पुस्तकालय का हिस्सा था। हुमायूँ के समय हम्जानामा का चित्रण और योजना शुरू की गयी।
प्रश्न 5.
‘तैमूर घराने के एक राजकुमार’ चित्र के बारे में बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
मुगलकाल के आरम्भिक चित्रों में से एक चित्र तैमूर घराने के एक राजकुमार (15451550) का है जो सफाविद् चित्रकार अब्दुसम्मद शिराजी के द्वारा सूती वस्त्र पर अपारदर्शी जल रंगों से तैयार किया गया। इस चित्र का आकार, जटिल संरचना और ऐतिहासिक चित्रों का चित्रांकन आश्चर्य चकित करने वाला है।
प्रश्न 6.
योगिनी चित्रण की विशेषता बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
योगिनी शारीरिक व भावात्मक रूप से अनुशासित जीवन जीने वाली, योग में विश्वास करने वाली, बौद्धिक अन्वेषण करने वाली, सांसारिक बंधनों से मुक्त चित्रित की गई है।
प्रश्न 7.
‘समग्र घोड़ा’ नामक चित्र का वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
समग्र घोड़ा नामक चित्र में घोड़े का चित्रण करते समय कलाकार ने घोड़े में अनेक आकृतियों को चित्रित किया, साथ ही, पृष्ठभूमि में भी अनेक असाधारण आकृतियाँ जैसे-उड़ते हुए सारस, शेर, चीनी बादलों का चित्रण, बड़े पत्ते वाले पौधे आदि दर्शाए गए हैं, जो कलाकार की कल्पनाशीलता व स्वप्नलीनता को प्रदर्शित करता है। कुछ आकृतियों को आकाश में उड़ते हुए दिखाया है, जिनकी आँखें चित्र में चित्रित की गई चट्टान को देखती हुई प्रतीत होती हैं। चित्र में घोड़े को सरपट दौड़ते हुए दिखाया है।
प्रश्न 8.
दक्कनी कला शैली का विकास बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
दक्कनी कला शैली के विकास का समय लगभग 16वीं शताब्दी के अंत से, 1880 ई. तक माना जा सकता है। इन कला को आगे बढ़ाने में मुगल शासकों, हैदराबाद के निजाम शासकों और असफिया राजवंशों का दरबारी संरक्षण प्राप्त हुआ। इस चित्र शैली पर फारसी, तुर्की, मुगल, सफाविद् तथा मुगल कला का समावेश भी माना जाता है।
प्रश्न 9.
अहमदनगर शैली में पुरुषों का चित्रण किस प्रकार किया गया है? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
अहमदनगर शैली में पुरुष की पोषाक भी निर्णायक रूप से उत्तर भारतीय है। नुकीली पूँछ वाले जामा को अक्सर अकबर के प्रारम्भिक लघु चित्रों में देखा जाता था। यह सम्भवत: दिल्ली व अहमदाबाद के बीच के क्षेत्र में उत्पन्न हुआ था।
छोटी पगड़ी अकबरकालीन प्रारम्भिक लघुचित्रों के समान मिलती है।
प्रश्न 10.
पहाड़ी शैली के चित्रों के हाशियों तथा मुगल शैली के चित्रों के हाशियों में क्या अन्तर था? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
चित्रकार अपने चित्रों के चारों तरफ हाशिया बनाकर चित्र की सीमा तय करते थे। जिससे चित्र की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ जाती थी। पहाड़ी शैली के चित्र के चारों तरफ लाल व पीले रंग के हाशिये बनाए जाते थे। यह हाशिये पतली पट्टीनुमा सपाट होते थे। जबकि मुगल शैली के चित्रों में हाशिए अपेक्षाकृत अधिक चौड़े बनाए जाते थे। ये हाशिये अलंकरणयुक्त होते थे।
प्रश्न 11.
बसौली शैली की विशेषताएँ लिखिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
बसौली शैली की विशेषताएँ-
- इस शैली के चित्रों में प्राथमिक रंगों का प्रमुखता के साथ प्रयोग किया गया है।
- पृष्ठभूमि और क्षितिज को चित्रित करने में पीले रंग का अधिक प्रयोग हुआ है।
- आभूषणों के मोतियों को प्रदर्शित करने के लिए सफेद रंग का प्रयोग हुआ है।
- आभूषणों को चित्रित करने और पन्ना के प्रभाव को दर्शाने के लिए भंग कीट के पंखों के छोटे चमकीले हरे कणों का उपयोग किया गया है।
प्रश्न 12.
भारत की प्रमुख चित्रण परम्पराएँ कौनसी हैं? बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
भारत में चित्रांकन की बहुत-सी लोकप्रिय परम्पराओं के बीच बिहार के मिथिला चित्र या मधुबनी चित्र, महाराष्ट्र के वारली चित्र, उत्तरी गुजरात और पश्चिमी मध्य प्रदेश के पिथौरा चित्र, राजस्थान के पाबूजी की फड़ तथा नाथद्वारा के पिछवाई चित्र, मध्य प्रदेश के गोंड और सावरा चित्र तथा उड़ीसा और बंगाल के पट चित्र आदि प्रमुख उदाहरण हैं।
प्रश्न 13.
टेराकोटा मूर्ति शिल्प परम्परा के बारे में लिखिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
टेराकोटा मूर्ति शिल्प परम्परा- टेराकोटा की मूर्तियाँ बनाने का प्रचलन भारत के समस्त क्षेत्रों में पाया जाता है। ये मूर्तियाँ मिट्टी से निर्मित होती हैं। प्रायः कुम्हारों द्वारा पारम्परिक त्योहारों पर पूजा-पाठ में काम आने वाली मूर्तियाँ टेराकोटा की बनायी जाती हैं। ये मूर्तियाँ मुख्य रूप से मणिपुर, असम, कच्छ, तमिलनाडु, गंगा का मैदान, मध्य भारत आदि क्षेत्रों में बनायी जाती हैं।
खण्ड – स
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 14.
रागमाला क्या है? राजस्थानी चित्र शैली से रागमाला चित्रों के उदाहरण दीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
किशनगढ़ चित्र शैली के विकास व विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
रागमाला- रागमाला संगीत का एक प्राचीन रूप है। इसमें बंदिश या गाने का शब्द धीरे-धीरे कई रागों में होता है। बंदिश या गीत में आगे बढ़ते हुए राग का नाम लेते जाते हैं तथा राग बदलते जाते हैं।
रागमाला में कई बार तो राग बदलने के साथ-साथ स्वर भी बदल जाता है। इसमें राग का बदलाव ऐसे स्थान पर किया जाता है कि सुनने वालों को गीत सुनकर बहुत आनन्द आता है।
राजस्थान चित्र शैली से रागमाला चित्र- रागमाला चित्रकलाएँ, राग एवं रागिनियों की सचित्र व्याख्याएँ हैं। दैवीय एवं मानवीय स्वरूप में रागों को देखा गया है जो कि कवियों, संगीतकारों द्वारा आध्यात्मिक एवं रोमानी स्वरूप के सन्दर्भ में देखी गई हैं। प्रत्येक राग मन के भाव, दिन के समय एवं मौसम से जुड़ी हुई है। रागमाला के चित्रों को एलबम के 36 से 42 पन्नों में व्यवस्थित किया गया है जो परिवारों के स्वरूप के अनुसार संगठित है। हर परिवार का मुखिया एक पुरुष राग होता है, जिसकी छः महिला साथियाँ होती हैं, जिन्हें रागिनियाँ कहा जाता है। भैरव, मालकोस, हिंडोल, दीपक, मेघ तथा श्री छः मुख्य राग हैं।
रागमाला चित्र शैली से रागमाला चित्रों के प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं-
- मालवा शैली में 1680 ईसा की माधोदास का रागमाला चित्रकला सम्मिलित है। मेवाड़ शैली का उद्भव विशेष रूप से निसारदीन नामक कलाकार द्वारा 1605 में चावण्ड में चित्रित रागमाला चित्रों के संग्रह के साथ सम्बन्धित हैं। साहिबदीन ने 1628 में रागमाला को चित्रित किया।
- बूंदी रागमाला सन् 1591, जिसे बूंदी चित्र शैली के प्रारम्भिक चरण को सौंपा गया था, हाड़ा राजपूत शासक भोजसिंह (1585-1607) के शासनकाल में चुनार में चित्रित किया गया हैं। बूंदी रागमाला 1591 के फारसी प्रभाव को दर्शाती है।
- जोधपुर शैली में कलाकार वीरजी द्वारा 1623 ई. में पाली में रागमाला का चित्रण किया गया था।
प्रश्न 15.
अकबरकालीन चित्रित ग्रन्थ ‘हम्जानामा’ का वर्णन करो? (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
हुमायूँकालीन चित्रकला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
अकबर कालीन-चित्रित ग्रन्थ ‘हम्जानामा’-
‘हम्जानामा का रचनाकाल सन् 1567-1582 ई. है। हम्जानामा का चित्रण और योजना मुगल बादशाह हुमायूँ के समय से ही प्रारम्भ की गई । हम्जानामा में 14 खण्ड हैं, जिसमें 1400 चित्र हैं, जिन्हें पूरा करने में लगभग 15 साल का समय लगा। हम्जानामा का चित्रण दो फारसी चित्रकार मीर सैयद अली और अब्दुसम्मद शिराजी की देखरेख में पूरा हुआ। हम्जानामा के चित्र कपड़े पर बनाये गए। इसके पीछे कागज लगाए गए, जिस पर घटनाओं का विवरण लिखा जाता था। इसके लिए गुआश या GOUACHE तकनीक (पानी आधारित अपारदर्शी रंग) का प्रयोग किया गया । हम्जानामा में पैगंबर मोहम्मद के चाचा हमजा की साहसिक घटनाओं का चित्रण है। अकबर हम्जानामा की कहानियाँ सुना करता था।
हम्जानामा की कहानियों को एक पेशेवर कथावाचक जोर-जोर से पढ़कर सुनाया करता था। साथ ही कहानियों को और अधिक समझने के लिए उन्हें चित्रित किया गया था। सम्राट अकबर ने हम्जानामा के चित्रण और पठन में विशेष रुचि ली। मुगल काल में चित्रण सामूहिक रूप से किया जाता था, जो कई कला परंपराओं से प्रेरित था। इसमें तात्कालिक प्राकृतिक परिवेश व संसाधन, वनस्पतियों और जीवों की छवियों को चित्रित किया गया। हम्जानामा के चित्र आज दुनियाभर के संग्रहालयों और निजी संग्रह में संग्रहित हैं।
प्रश्न 16.
पहाड़ी चित्र शैली की प्रमुख विशेषताओं का परिचय दीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
कांगड़ा शैली के विकास एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
पहाड़ी शैली की चित्रकला भारत में हिमालय की तराई के स्वतंत्र राज्यों में विकसित पुस्तकीय चित्रण शैली है। पहाड़ी चित्रकला शैली दो सुस्पष्ट भिन्न शैलियों, साहसिक और गहन बसौली शैली तथा नाजुक भावपूर्ण काँगड़ा शैली से निर्मित है। पहाड़ी चित्रकला अवधारणा तथा भावनाओं की दृष्टि से ‘राजधानी चित्रकला’ से नजदीकी संबंध रखती है। इसके प्राचीनतम ज्ञात चित्र ‘बसौली उपशैली’ में हैं जो 18वीं शताब्दी के मध्य तक कई केन्द्रों पर जारी थी।
पहाड़ी चित्र शैली की प्रमुख विशेषताएँ-
- पहाड़ी चित्र शैली के चित्रों का संयोजन कोमलता, सरसता, सुंदरता व भावनात्मकता से मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
- शारीरिक गठनशीलता, आकृतियों की लावण्यमय गोलाई और चमकदार रंग पहाड़ी चित्र शैली को उत्कृष्ट स्तर तक ले जाते हैं।
- इस शैली के चित्रों में चमकदार तथा विरोधी रंग विन्यास विशेष आग्रह के साथ प्रयुक्त किये गये हैं। स्वर्ण तथा रजत रंगों का भी प्रयोग अलंकरण चित्रण में किया गया है।
- इस शैली के चित्रों में प्राकृतिक वातावरण को अति सुंदर ढंग से चित्रित किया गया है।
- पहाड़ी चित्रों में स्त्रियों को सूथन, चोली, पारदर्शी चुनरी ओढ़े हुए चित्रित किया गया है तथा पुरुषों को मुगलिया प्रभाव वाला घेरादार पाजामा, पीछे झुकी हुई पगड़ी पहने हुए दिखाया गया है।
- पहाड़ी शैली में स्त्री, पुरुषों को दोनों को ही आभूषण पहने हुए चित्रित किया गया है।
- पहाड़ी चित्रों में भवनों को बहुत ही भव्य तथा कलापूर्ण तरीके से चित्रित किया गया है।
- चित्रों के चारों तरफ हाशिए लाल व पीले रंग से, सादा पट्टी के रूप में तथा अलंकरण रूप में भी बनाये गये हैं।
- इस शैली में शास्त्रीय तथा सांस्कृतिक काव्यों, ग्रन्थों आदि पर आधारित चित्रों की रचना की गई। साथ ही व्यक्तिगत चित्रांकन भी इस शैली की विशेषताओं में शामिल है।
खण्ड – द
निबन्धात्मक प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 17.
राजस्थानी चित्रकला की निम्न शैलियों का वर्णन कीजिए- (2)
1. मेवाड़ चित्र शैली
2. बूंदी चित्र शैली
3. कोटा चित्र शैली
4. बीकानेर चित्र शैली
अथवा
राजस्थानी शैली के निम्नलिखित चित्रों पर प्रकाश डालिए- (2)
1. राजा अनिरुद्ध सिंह हाडा
2. चौगान खिलाड़ी
उत्तर:
राजस्थानी चित्रकला की विभिन्न शैलियाँ- राजस्थानी चित्रकला की विभिन्न शैलियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) मेवाड़ चित्र शैली-मेवाड़ शैली में चित्रकला पाठ्य प्रस्तुतियों से धीरे-धीरे हटकर दरबारी हो गयी। इस चित्र शैली में वृहदाकार और भड़कीले रंगों वाले दरबारी दृश्यों, शिकार अभियानों, उत्सवों, जनाना कार्यकलापों, खेलों आदि को भी विषयों के रूप में व्यापक स्तर पर पसंद किया गया।
मेवाड़ शैली में पुरुषों की आकृतियाँ लम्बी, मुखाकृति गोल व अण्डाकार है। चिबुक तथा गर्दन का भाग अत्यधिक भारी व पुष्ट बनाया गया है। चेहरे पर बड़े-बड़े नेत्र व मूंछे भी बड़ी बनायी गयी हैं। स्त्रियों की मछली के आकार की आँखें बनाई गई हैं। शरीर का कद छोटा है। केशों को, कपोलों पर झूलते हुए दर्शाया गया है। महिला चित्रों में लैंहगा, पारदर्शी लँगड़ी कमर तक, चोली लटकी बनाई गई है। लोक कला से सम्बन्धित रंगों की रंगत मेवाड़ कला की परम्परा रही है। यहाँ के रंगों में विविधता दर्शनीय है। पृष्ठभूमि सामान्यत: बेल-बूटों से व वास्तु शिल्प से पूर्णतः युक्त है। प्रकृति के सन्तुलित चित्रण के साथ-साथ हाथी, शेर, हिरण, घोड़ों आदि पशुओं व पक्षियों में चकोर, हंस, मयूर, बगुला, सारस आदि का चित्रण अधिकता के साथ हुआ है।
(2) बूंदी चित्रशैली-बूंदी चित्र शैली अपने बेदाग रंग भावना और श्रेष्ठ औपचारिक रचना हेतु जानी जाती है। बूंदी शैली के कलाकारों ने अपने ही बनाये मापदण्डों का प्रयोग करते हुए नारी सौन्दर्य का चित्रण किया, जिसमें छोटे गोलाकार चेहरे, उन्नत ललाट, उन्नत नासिका तथा भरे हुए कपोल आदि हैं। पोशाक के चित्रण में पायजामा तथा पारदर्शी जामा दर्शाया गया है।
(3) कोटा चित्र शैली-कोटा के चित्र चारित्रिक रूप में स्वाभाविक, व्यवहार में हाथ के लिखावट का कौशल एवं छायादार प्रभाव पर बल देते हैं। इस शैली के चित्रकार जानवरों एवं संघर्ष को व्यक्त करने में कुशल थे। बल्लभ सम्प्रदाय का केन्द्र होने के कारण स्त्री-पुरुष के शारीरिक मापदण्ड, पुजारियों व गोस्वामियों की तरह पुष्ट व प्रभावशाली बना है। शरीर गठीला व भारी, दीप्तियुक्त चेहरा, मोटे नेत्र, तीखी नाक, पगड़ी, अंगरखा और नारी की सुन्दर वेषभूषा राजस्थानी झलक लिए कोटा शैली की अपनी विशेषता रही है। कोटा शैली में चित्रित आखेट व शिकार के दृश्य बेहद रोचक बने हैं।
(4) बीकानेर चित्र शैली-बीकानेर चित्र शैली की कल्पना, लयबद्ध, सूक्ष्म रेखांकन, मंद व सौम्य रंग योजना आदि विशिष्ट पहचान है। पुरुषों का माथा चौड़ा, लम्बी जुल्फें,दाड़ी-मूंछे दर्शायी गयी हैं। यह चित्र वीरता का भाव लिए हुए है। ऊंची शिखर के आकार की पगड़ी व जामा, पटका आदि पहने हुए चित्रित किया है। स्त्री आकृतियाँ इकहरी, तीखे नयन, कलाइयों पतली, वक्ष कम उभरा हुआ चित्रित किया गया है। स्त्री-पुरुष पहनावे में मुगल व राजपूती सम्मिश्रण है।
प्रश्न 18.
चित्रकला के सन्दर्भ में कम्पनी शैली का वर्णन कीजिए। (2)
अथवा
भारतीय चित्रकला में अवनीन्द्रनाथ टैगोर के योगदान का वर्णन कीजिए। (2)
उत्तर:
कम्पनी शैली-
(1) कम्पनी शैली का प्रारम्भ एवं प्रसार-18वीं शताब्दी के लगभग औपनिवेशिक शासन के साथ-साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली को लागू किया। तत्कालीन चित्रकला के क्षेत्र में भी काफी कार्य हुआ। शिक्षण संस्थाओं में यूरोपीय कला पद्धति में शिक्षा दी जाने लगी। इसके साथ ही फोटोग्राफी की नवीन तकनीक ने भी कला को प्रभावित किया। यूरोपीय शैली में मॉडल बैठाकर अभ्यास कार्य कराया जाने लगा। क्रमशः मद्रास, कलकत्ता, बम्बई, लाहौर आदि स्थानों पर कला विद्यालयों की स्थापना की गई।
यूरोपीय शैली में हजारों की संख्या में ड्राइंग, जल रंग, तैल चित्र और प्रिण्ट बनाए गए। मुर्शिदाबाद, पटना, कलकत्ता, अवध और मद्रास आदि स्थानों पर चित्रकारी होती रही। इसके अलावा अन्यत्र भी चित्र बनाए जा रहे थे।
(2) चित्र निर्माण के लिए भारतीय जनजीवन कम्पनी शैली के चित्रकारों ने भारतीय लोगों के जीवन के विभिन्न विषयों का अपने चित्र बनाने में उपयोग किया। चित्रकारों ने विभिन्न स्थानों का भ्रमण करते हुए जंगल, नदी, समुद्र आदि का दृश्यांकन किया।
(3) विभिन्न प्रदेश के लोक जीवन का चित्रण- औपनिवेशिक काल में भारत आने वाले अंग्रेजों का भारत के रंगों से भरी जीवन शैली, वेश-भूषा, आभूषण, त्योहार, पर्व आदि के प्रति जिज्ञासा के साथ ही विशेष आकर्षण था। भारत के विशाल भू-भाग के विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले लोगों की जिन्दगी की विविधता ने कम्पनी चित्रकारों को प्रभावित किया।
(4) पुरातत्व विरासतों की चित्रकारी- कम्पनी चित्रकारों ने भारत के पुरातात्विक स्थानों का भ्रमण किया और ऐतिहासिक महत्व के चित्र बनाए। ऐतिहासिक स्थलों में अजन्ता, एलोरा, एलिफेन्टा, कन्हेरी की गफाएँ, लाल किला, ताजमहल आदि के चित्र महत्वपूर्ण हैं।
(5) वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं का चित्रण- कम्पनी शैली के चित्रकारों ने हजारों की संख्या में पेड़-पौधों, लता और फल-फूलों आदि का चित्रण किया। भारत के रंगीन पक्षी, कीट-पतंगे तथा विचित्र जानवरों के चित्र भी कम्पनी चित्रकारों ने जल रंग, एन्ग्रेविंग तथा लियोग्राफ के प्रयोग द्वारा बनाए।
(6) व्यक्ति चित्रों और विभिन्न व्यवसायों के चित्र- कम्पनी शैली में बहुत बड़ी संख्या में राजा, नबाव, कम्पनी के शासक, अधिकारी एवं अन्य महत्वपूर्ण लोगों के चित्र बनाए गए। साथ ही कम्पनी शैली के चित्रकारों ने विभिन्न भारतीय व्यवसायों के चित्र भी बनाए। जैसे-किसान, लोहार, बुनकर, सुनार, नौकर, रसोइया, मिठाई वाला, फेरी वाला, दरबान, मदारी आदि।
(7) वेशभूषा और आभूषणों के चित्र- भारत के विभिन्न प्रान्तों के निवासियों की विविधता से भरी जीवन शैली और विभिन्न रंगों की पोशाकों एवं आभूषणों से सुसज्जित स्त्री-पुरुषों, बच्चों और बूओं आदि को यूरोपियन चित्रकारों ने चित्रांकित किया।
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