Students must start practicing the questions from RBSE 12th Drawing Model Papers Set 5 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Drawing Model Paper Set 5 with Answers in Hindi
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 24
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।.
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – अ
प्रश्न 1.
दिये गये बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कर उत्तर पुस्तिका में लिखें-
(i) बिहारी सतसई के लेखक हैं- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) बिहारी
(ब) नागरीदास
(स) केशवदास
(द) जयदेव
उत्तर:
(अ) बिहारी
(ii) जयदेव किस शासक के यहाँ दरबारी कवि थे? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) महेन्द्र वर्मन
(ब) सवाई जयसिंह
(स) लक्ष्मन सेन
(द) महाराणा प्रताप
उत्तर:
(स) लक्ष्मन सेन
(iii) ‘मेडोना एंड चाइल्ड’ नामक चित्र का निर्माण किस चित्रकार द्वारा किया गया? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) वसावन
(ब) अब्दुसम्मद
(स) मिस्किन
(द) आकारिका
उत्तर:
(अ) वसावन
(iv) अहमदनगर शैली में चित्रित 12 चित्रों का मुख्य विषय क्या है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) शिकार दृश्य
(ब) दरबार दृश्य
(स) युद्ध दृश्य
(द) उपर्युक्त सभी भी
उत्तर:
(स) युद्ध दृश्य
(v) राजा संसार चंद किस शैली से सम्बन्धित हैं- (\(\frac {1}{2}\))
(अ) काँगड़ा
(ब) गुलेर
(स) बसौली
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) काँगड़ा
(vi) पट्ट चित्रण में ताड़ के पत्ते पर जो पांडुलिपि बनाई जाती है, उसे क्या कहते है? (\(\frac {1}{2}\))
(अ) फड़
(ब) पड़
(स) खर
(द) पिथौरा
उत्तर:
(अ) फड़
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) ‘पक्षी स्टैंड पर बाज’ नामक चित्र …………………………… के द्वारा बनाया गया। (\(\frac {1}{2}\))
(ii) पोलो खेलते चाँद बीबी ……………………….. शैली का चित्र है। (\(\frac {1}{2}\))
(iii) मिट्टी जोतने वाला चित्र काँग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के समय चित्रकार ……….. ने बनाया। (\(\frac {1}{2}\))
(iv) बस्तर के धातु शिल्पियों को …………. कहा जाता है। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
(i) उस्ताद मसूर,
(ii) बीजापुर,
(iii) नंदलाल बसु,
(iv) घड़वा।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए-
(i) मेवाड़ में निर्मित रामायण के बालकांड का चित्रकार कौन है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मनोहर।
(ii) गोलकुंडा शैली के किसी एक चित्र का नाम लिखिए। (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
कुतुबशाह के सामने नृत्य।
(iii) अमृता शेर गिल के चित्रों पर किन शैलियों का प्रभाव देखा जा सकता है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
भारतीय और पाश्चात्य शैलियों का प्रभाव।
(iv) गौंड व सावरा कला का सम्बन्ध किस राज्य से है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
मध्य प्रदेश से।
(v) पिथौरा कला का सम्बन्ध गुजरात के किस क्षेत्र से है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
पंचमहल क्षेत्र से।
(vi) पटूवा क्या है? (\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
पश्चिमी बंगाल में पट्ट चित्रण करने वाले कलाकार को पटूवा कहा जाता है।
खण्ड – ब
निम्नलिखित लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 40 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 4.
औरंगजेब के काल में कला क्यों पिछड़ गयी? (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
औरंगजेब का कला के प्रति अधिक रुझान नहीं था। उनका ध्यान मुगल साम्राज्य के विस्तार व एकीकरण पर अधिक रहा। औरंगजेब ने मुगल संग्रहालय के उत्पादन को ऊँचा करने का पर्याप्त प्रयास नहीं किया था। चित्रशाला में चित्रण का कार्य मंद हो गया। इनके काल में चित्रकला को प्रबल संरक्षण न मिलने के कारण उसका ह्रास होता गया, जिसके कारण कुशल कलाकारों ने मुगल संग्रहालय छोड़ दिये। इस तरह औरंगजेब का काल कला के दृष्टिकोण से पिछड़ गया।
प्रश्न 5.
जेब्रा क्या है? बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
जेब्रा एक मुगलकालीन चित्र है। इस चित्र में चित्रित जेब्रा इथोपिया का है जो तुर्कों द्वारा लाया गया था। इस जेब्रे को मीर जाफर द्वारा जहाँगीर को भेंट किया गया था। इसका चित्रण उस्ताद मंसूर द्वारा किया गया था। इस जानवर को जहाँगीर के समक्ष नवरोज के अवसर पर पेश किया गया था। जहाँगीर ने इसे ध्यान से देखा था क्योंकि कुछ लोगों ने सोचा था कि यह एक घोड़ा है जिस पर किसी ने पट्टियाँ बना दी हैं।
प्रश्न 6.
अहमदनगर चित्रकला शैली का इतिहास बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
दक्षिणी चित्र शैली का प्रारंभिक उदाहरण अहमदनगर से प्राप्त हुए हैं, जिसमें हुसैन निजाम शाह प्रथम के समय (1553 ई.-1565 ई.) चित्रित कविताओं के एक खंड (तारीफ-ए-हुसैन शाही) में देखने को मिलता है, इसमें 12 लघु चित्र हैं, जो युद्ध दृश्य पर आधारित हैं। अहमदनगर शैली में ही 1567 ई. में गुलिस्ता पांडुलिपि का चित्रण हुआ, जिसे बुखारा कलाकारों ने चित्रित किया।
प्रश्न 7.
अहमदनगर शैली के विकास में बुखारा कलाकारों का योगदान बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
अहमदनगर शैली में 1567 ई. में गुलिस्ता पांडुलिपि का चित्रण हुआ, जिसे बुखारा कलाकारों ने चित्रित किया। बुखारा कलाकारों ने दक्षिणी शैली में कार्य किया, जिसकी जानकारी बांकीपुर पटना संग्रहालय से प्राप्त एक पांडुलिपि से मिलती है। इस पांडुलिपि पर युसूफ नामक मुंशी के हस्ताक्षर हैं जो इब्राहिम आदिल (1569 ई.) के समय की है। इस पांडुलिपि में 7 लघु चित्र हैं जो, बुखारा शैली में चित्रित हैं।
प्रश्न 8.
समृद्धि का सिंहासन नामक चित्र किस चित्र शैली का है? इसका वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
समृद्धि का सिंहासन नामक चित्र बीजापुर चित्रशैली का है। इस चित्र का निर्माण 1570 ई. में किया गया। इसमें सिंहासन के 7 चरण प्रतीकात्मक रूप से चित्रित किए गए जिसमें, हाथियों, बाघों, मोर, ताड़ के वृक्ष आदिम जनजाति, लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे और चित्र के सबसे ऊपरी हिस्से पर सिंहासन पर आरूढ़ राजा का अंकन किया गया है, जो गुजराती व दक्षिणी भारतीय मंदिरों की याद दिलाता है।
प्रश्न 9.
गोलकुंडा शैली के शुरुआती चित्रों के बारे में बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
गोलकुंडा की शुरुआती चित्रकला जिसमें बड़े आकार के चित्र बनाए गए जो लगभग 8 फुट से भी ऊँचे थे जो संभवत: दीवार पर लगाने हेतु बनाए गए थे। गोलकुंडा शैली के चित्रों में चित्रित सोने से सुसज्जित सुंदर आभूषण हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं और चित्रों के विषय को असाधारण बना देते हैं। गोलकुंडा चित्र शैली के शुरुआती प्रमाण ‘दीवाने-एहासिफ’ के 5 लघु चित्र हैं, इसकी निर्माण तिथि 1463 ई. है। इन चित्रों में एक शाही सभा का अंकन है।
प्रश्न 10.
काँगड़ा चित्र शैली की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
काँगड़ा चित्र शैली की विशेषताएँ-
- यह अब तक की भारतीय शैलियों में सबसे काव्यात्मक और गीतात्मक चित्र शैली है।
- इस शैली के चित्रों में रंगों की चमक, रेखाओं की कोमलता, सूक्ष्म अलंकारों का प्रयोग अधिक हुआ है।
- इस शैली के चित्रों में महिलाओं के चेहरे के अंकन में कलाकारों द्वारा माथे के साथ सीधी नाक का चित्रण हुआ है।
- भागवत पुराण, गीत गोविन्द, नल दमयन्ती, बिहारी सतसई, रागमाला व बारहमासा इस शैली के प्रमुख विषय रहे हैं।
प्रश्न 11.
रास पंचाध्यायी पर आधारित चित्रकारी का वर्णन कीजिए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
‘रास पंचाध्यायी’ भागवत पुराण के पाँच अध्यायों का एक समूह है। यहाँ ‘रास’ की दार्शनिक अवधारणा को प्रस्तुत किया गया है। इसमें कृष्ण के प्रति गोपियों के अगाध प्रेम की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। जब कृष्ण गोपियों के मध्य से अचानक अदृश्य हो जाते हैं तो गोपियों की विरह की पीड़ा वास्तविक रूप से दिखाई देती है। अलगाव तथा उदासी की अवस्था में गोपियाँ हिरन, वृक्ष, लताओं को संबोधित करते हुए कृष्ण के ठिकाने के बारे में पूछ रही हैं। उनके इन दयनीय प्रश्नों के उत्तर किसी के पास नहीं हैं। इसी स्थिति का मार्मिक चित्रण काँगड़ा शैली के अन्तर्गत किया गया है।
प्रश्न 12.
गौंड चित्रण परम्परा के बारे में बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
मध्य प्रदेश के गौंड समुदाय के लोगों द्वारा झोंपड़ियों पर पूजा-पाठ से सम्बन्धित ज्यामितीय रेखांकन बनाए जाते हैं जिसमें मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों का अंकन है। मांडला व आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले गौंड समुदाय द्वारा बनाए गए जानवरों, मनुष्यों और पेड़-पौधों के चित्रों को इस चित्रण परम्पराओं के अन्तर्गत रंगीन चित्रों में परिवर्तित किया जाता है।
प्रश्न 13.
‘भोमिया’ कौन होते हैं? बताइए। (\(\frac {3}{4}\))
उत्तर:
फड़ चित्र परम्परा में देवी-देवताओं के चित्रों के बीच में उन वीर पुरुषों को भी चित्रित किया जाता है जिन्होंने डाकुओं से अपने पशुओं की सुरक्षा करते हुए अपने जीवन का बलिदान कर दिया था। इन वीर पुरुषों में गोगाजी, तेजाजी, देवनारायण, रामदेवजी और पाबूजी आदि थे। फड़ चित्रों में इनकी आकृतियों को ‘भोमिया’ नाम से जाना जाता है।
खण्ड – स
निम्नलिखित दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 14.
‘झूले पर कृष्ण और उदास मनोदशा में राधा’ नामक चित्र के बारे में लिखिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
मेवाड़ चित्र शैली के विकास व विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
झूले पर कृष्ण और उदास मनोदशा में राधा:-
यह चित्र रसिकप्रिया पर आधारित है। जिसका चित्रण 1674 से 1698 ई. तक बीकानेर दरबार में कार्यरत चित्रकार नूरुद्दीन ने किया। इस चित्र में वास्तुकला का प्रयोग न्यूनतम, स्पष्ट व सरल रूप से किया है। चित्र को दो भागों में विभाजित करने के लिए एक लहरदार टीले का प्रयोग चित्रकार द्वारा बड़ी चतुराई से किया गया है। चित्र के ऊपरी भाग में एक गोपी के घर पर झूले पर विराजमान कृष्ण गोपी की संगति में प्रसन्न दिख रहे हैं। उनके इस व्यवहार से दुखी राधा अन्य स्थान पर चली जाती है। जहाँ वह अपने आप को एक वृक्ष के नीचे खड़ा पाती है। कृष्ण को राधा के दुख का ज्ञान होने पर वह राधा के पीछे जाते हैं। किन्तु राधा को मना नहीं पाते हैं। राधा की एक सखी दूत की भूमिका में कृष्ण के पास राधा का संदेश लेकर आती है। वह कृष्ण को राधा के दुख और संताप के बारे में बताती है। यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में संग्रहित है।
प्रश्न 15.
‘जहाँगीर का सपना’ का विस्तार से वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
मुगलकालीन चित्रकला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
जहांगीर का सपना:-
चित्र ‘जहांगीर का सपना’ (1618-1622) चित्रकार अबुल हसन द्वारा बनाया गया। अबुल हसन को ‘नादिर उल जमां’ (वंडर ऑफ द एज) की उपाधि से सम्मानित किया गया था। एक बार जहाँगीर ने सपना देखा जिसमें फारसी सफाविद बादशाह शाह अब्बास जो कंधार का शासक और जहांगीर का प्रतिद्वंद्वी था, उसने सपने में जहांगीर के राज्य का भ्रमण किया। इस सपनों को अच्छा शगुन मानकर जहांगीर ने दरबारी चित्रकार अबुल हसन को इसे चित्रित करने को कहा। चित्र में जहांगीर द्वारा शाह अब्बास को गले लगाते दिखाया गया है। यहाँ शाह अब्बास को कमजोर और जहांगीर के अधीन चित्रित किया है। सम्राट को विश्व विजेता के रूप में एक ग्लोब पर खड़े बनाया गया है। चित्र में प्रतीकात्मक रूप में दो जानवर एक शक्तिशाली शेर जिस पर जहांगीर खड़े हैं, दूसरा भेड़ का है जिस पर शाह अब्बास खड़ा चित्रित किया गया है। यहाँ एक शानदार सुनहरा प्रभामंडल है जो सूर्य और चंद्रमा के होने का आभास देता है। प्रभामंडल के ऊपर की ओर पंखों से युक्त फरिश्तों को बनाया गया है, जो मुगल चित्रों में यूरोपीय प्रभाव को दर्शाता है।
प्रश्न 16.
काँगड़ा शैली की विशेषताएँ एवं इस शैली के प्रमुख विषय बताइए। (1\(\frac {1}{2}\))
अथवा
बसौली शैली के वर्ण-विन्यास का वर्णन कीजिए। (1\(\frac {1}{2}\))
उत्तर:
काँगड़ा शैली की विशेषताएँ- काँगड़ा शैली अब तक की भारतीय शैलियों की सबसे काव्यात्मक और गीतात्मक शैली है जो सौन्दर्य और कोमलता के साथ प्रस्तुत की जाती है। रेखा की कोमलता, रंगों की चमक, सूक्ष्मता से सजावटी विवरण, महिला के चेहरे का चित्रण इत्यादि काँगड़ा शैली की मुख्य विशेषता है। इस शैली में महिला के चेहरे का चित्रण माथे के साथ सीधी नाक के साथ किया जाता है जो 1790 के आस-पास प्रचलन में आया। महिला के चेहरे का इस प्रकार का चित्रण काँगड़ा शैली की मुख्य विशेषता है।
काँगड़ा-शैली के विषय (थीम)- काँगड़ा चित्र-शैली में चित्रित किये चित्रों में सबसे लोकप्रिय विषय (थीम) भागवत पुराण, गीत गोविंद, नल दमयंती, बिहारी सतसई, रागमाला और बारहमासा थे। अन्य अनेक चित्रों में संसारचंद और उनके दरबार का सचित्र रिकार्ड सम्मिलित है। उसे (संसारचंद को) नदी के किनारे बैठे हुए, संगीत सुनते हुए, नृत्य देखते हुए, उत्सवों की अध्यक्षता करते हुए, तम्बू गाड़ने और धनुर्विद्या का अभ्यास करते हुए तथा सैनिकों की ड्रीलिंग करते हुए दिखाया गया है।
खण्ड – द
निबन्धात्मक प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 17.
बीकानेर शैली के उद्भव, विकास और उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2)
अथवा
राजस्थानी शैली के निम्नलिखित चित्रों पर प्रकाश डालिए- (2)
1. महाराजा रामसिंह प्रथम मुकंदगढ़ में शेर का शिकार करते हुए
2. चौगान खिलाड़ी
उत्तर:
बीकानेर शैली का उद्भव और विकास-
बीकानेर चित्रशैली का उद्भव एवं विकास का समस्त श्रेय बीकानेर के उस्तादों को दिया गया है। बीकानेर महाराजा रायसिंह (15711592 ई.) मुगल दरबारी दो चित्रकार उस्ताद अली रजा एवं उस्ताद हामिद रूकनुद्दीन से इतने प्रभावित हुए कि वे उन्हें अपने साथ बीकानेर ले आये। इन दो उस्तादों की कार्यकुशलता के कारण बीकानेर शैली जन्मी और प्रसिद्ध हुई। प्रारम्भिक चित्र ‘भागवत पुराण’ के माने जाते हैं जो कि बीकानेर शैली के हैं। यह चित्र महाराजा रायसिंह के शासनकाल (1571-1592 ई.) में चित्रित किये गये हैं। महाराजा रायसिंह स्वयं भी कलाप्रिय शासक था और उन्होंने 1604 ई. से 1611 ई. के मध्य अनेक सुन्दर चित्रों व कलाकृतियों का संग्रह किया। रागमाला चित्रावली इस दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। बीकानेर शैली का प्रवर्तक महाराजा अनूपसिंह (1665-1698 ई.) को माना गया है, महाराजा अनूपसिंह एक कलाप्रिय एवं कला का सम्मान करने वाले शासक थे। उन्होंने दिल्ली एवं लाहौर के कलाकारों का सम्मान भी किया था। ये चित्रकार मुगल शैली के कुशल चित्रकार थे लेकिन बीकानेर आकर उन्होंने अनूपसिंह की रुचि के अनुसार हिन्दू कला संस्कृति को ध्यान में रखकर अनेक कथाओं, हिन्दी, राजस्थानी काव्यों के अनेकों चित्र बनाये।
यह समस्त चित्र राजपूती सभ्यता संस्कृति से मिश्रित होकर बीकानेर शैली के अनुपम व सर्वोत्त्कृष्ट चित्र कहलाये। अनूपसिंह के समय बीकानेर शैली में कई कला केन्द्र बने हुए थे, जिन्हें मंडी कहा जाता था। उनका दरबारी चित्रकार रूकनुद्दीन ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका पूरा जीवन संस्कृति के लिए समर्पित हो गया। रूकनुद्दीन द्वारा बनाये गये ‘रसिकप्रिया’ व बारहमासा उत्कृष्ट चित्रण के कारण विख्यात हुए। उनके बेटे साहिबदीन द्वारा चित्रित ‘भागवत पुराण’ एवं पोते कायम’ द्वारा 18वीं शताब्दी में बीकानेर शैली के अनेकों चित्र बनाये गये।
बीकानेर शैली को ऊँचाइयों तक पहुँचाने में महाराजा अनूप सिंह के राज्य काल में ‘मथेरणा’ परिवार के मुन्नालाल, मुकन्द, चन्दूलाल और ‘उस्ताज’ परिवारों के कलाकारों ने विशेष योगदान दिया। उन्हीं के प्रयासों से बीकानेर शैली विख्यात हुई। अनेकों सचित्र ग्रन्थ, लघु चित्र आज भी राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली, बड़ौदा संग्रहालय और महाराजा बीकानेर करणी सिंह के व्यक्तिगत संग्रह में संरक्षित हैं। बीकानेर के महल, लालगढ़ पैलेस, अनेक छतरियाँ बीकानेर शैली की विशिष्ट पहचान हैं।
बीकानेर चित्रशैली की प्रमुख विशेषताएँ- बीकानेर चित्रशैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
- बीकानेर चित्रशैली की कल्पना, लयबद्ध, सूक्ष्म रेखांकन मंद व सौम्य रंग योजना आदि विशिष्ट पहचान है।
- बीकानेर शैली में पुरुषों का माथा चौड़ा, लम्बी जुल्फें, दाढ़ी-मूंछे दर्शायी गई हैं। यह चित्र वीरता का भाव लिये हैं। ऊँची शिखर के आकार की पगड़ी व जामा, पटका आदि पहने हुए चित्रित किया है।
- बीकानेर चित्रशैली में नारी आकृतियों को इकहरी, तन्वंगी, खंजन पक्षी से तीखे नेत्र, पतली कलाइयाँ, लम्बी नाक, गोल ललाट युक्त चित्रित किया गया है।
- बीकानेर शैली के चित्रों में लाल, नीले-हरे रंग के रंगों का प्रयोग किया गया है, साथ ही पृष्ठभूमि या आधार रंग के रूप में भूरे गेरूई-फिरोजी या पीले-हरे रंग का उपयोग किया गया है।
- इस शैली के चित्रों में मेघ-मण्डल-पहाड़ों और फूल-पत्तियों का आलेखन उत्कृष्ट ढंग से किया गया है।
- इस शैली के चित्रों में शेर, हाथी, ऊँट, घोडे. हिरण, भेड़, बकरी, तोता, मोर, कुजे आदि का चित्रण किया गया है। ऊँट व घोड़ों को प्रमुखता से दर्शाया गया है।
प्रश्न 18.
‘भारतीय स्वदेशी कला के इतिहास में ई. वी. हैवेल को एक सम्मानीय स्थान दिया जाता है।’ इस कथन पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (2)
अथवा
भारतीय कला में अब्दुल रहमान चुगताई के योगदान का वर्णन कीजिए। (2)
उत्तर:
भारतीय स्वदेशी कला के इतिहास में ई. बी. हैवेल का स्थान-
प्रारम्भिक भारतीय जीवन- ई. वी. हैवेल को सन् 1884 ई. में मद्रास कला महाविद्यालय का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया। इसके बाद सन् 1896 ई. में वे कलकत्ता कला महाविद्यालय के प्रधानाचार्य बनाए गए। वे एक यूरोपीय मूल के होते हुए भी भारतीय कला परम्परा के प्रबल समर्थक थे। उन्हीं के सहयोग से भारत में एक नवीन कला आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। हैवेल ने बंगाल स्कूल के विद्यार्थियों को केवल विदेशी शैली में कला सीखने-सिखाने को गलत बताया अपितु भारतीय जीवन और आदर्श से परिपूर्ण अजन्ता शैली, राजपूत शैली तथा मुगल शैली को आधार मानकर कलाभिव्यक्ति करने की सलाह दी।
भारतीय कला-परम्परा की श्रेष्ठता का प्रदर्शन- ई. बी. हैवेल ने भारतीय कला परम्परा की श्रेष्ठता का हृदय से समर्थन किया। उनके अनुसार भारतीय कला आत्मा के अत्यधिक निकट है और इससे स्थूल जगत् की अपेक्षा शाश्वत सत्यता का प्रदर्शन होता है जबकि पश्चिमी कला इसके विपरीत भौतिकता के अधिक निकट है, इसमें आध्यात्मिकता का अभाव है। हैवेल ने भारतीय कला के अनेक पक्षों को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करके भारतीय कला के गौरव को बढ़ाया।
भारतीय कला के सन्दर्भ में वक्तव्य- ई. बी. हैवेल ने भारतीय स्थापत्य कला, मूर्तिकला एवं चित्रकला के तकनीकी पक्षों, प्रतीकों, निर्माण प्रक्रिया एवं रचना पद्धति पर विस्तार से अपने विचारों को व्यक्त किया।
भारतीय कला की समीक्षा- ई. बी. हैवेल ने भारतीय लघुचित्रों, प्राचीन मूर्ति शिल्पों तथा अन्य अनेक कलाकृतियों की समालोचना करते हुए अपनी मौलिक कल्पना एवं विवेचना शक्ति का प्रयोग किया और उसे नये रूपों, नयी भाषा से ओत-प्रोत किया। उन्होंने कला समीक्षा को भी नये आयाम प्रदान किए जिससे वे दर्शकों एवं पाठकों के सम्मुख उसका महत्व दर्शा सके।
लघुचित्र बनाने की विधि की व्याख्या- ई. बी. हैवेल ने अपनी पुस्तक में मुगल शैली के सन्दर्भ में लघुचित्र बनाने की विधि एवं उपयोग में किए गए कागजों आदि की विस्तृत व्याख्या की। यह वर्तमान में कला शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं विद्वानों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
पश्चिमी कला के प्रभाव को त्यागने का आह्वान- ई. बी. हैवेल स्वयं के अंग्रेज होने के बावजूद भारतीय छात्रों को पश्चिमी (यूरोपीय) कला के प्रभाव को त्यागने की प्रेरणा देते रहे। उन्होंने कहा कि “अपने अतीत को देखो और चित्र बनाओ।”
इस प्रकार ई. बी. हैवेल भारतीय छात्रों को उनके स्वयं की संस्कृति के गुणों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया।
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