Students must start practicing the questions from RBSE 12th Hindi Model Papers Set 2 with Answers provided here.
RBSE Class 12 Hindi Sahitya Model Paper Set 2 with Answers
समय :2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न – पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर – पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पस्तिका में कोष्ठक में लिखिए (6 x 1 = 6)
दुःख के वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थानं आनन्द-वर्ग में उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति से विशेष रूप में दुखी और कभी-कभी उस स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान् भी होते हैं। उत्साह में हम आने वाली कठिन स्थिति के भीतर साहस के अवसर के निश्चय द्वारा प्रस्तुत कर्म-सुख की उमंग से अवश्य प्रयत्नवान होते हैं। उत्पाह में कष्ट या हानि सहन करने की दृढ़ता के साथ-साथ कर्म में प्रवृत्त होने के आनन्द का योग रहता है। साहसपूर्ण आनन्द की उमंग का नाम उत्साह है। कर्म-सौंदर्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते हैं। जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कण्ठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य-मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्ध-वीर, दान-वीर, दया-वीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्ध-वीरता है, जिसमें आधात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीनकाल से होता चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं। साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। उसके साथ आनन्दपूर्ण प्रयत्न या उसको उत्कण्ठा का योग चाहिए। सारांश यह है कि आनन्दपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कण्ठा में ही उत्साह का दर्शन होता है, केवल कष्ट सहने में या निश्चेष्ट साहस में नहीं। धृति और साहस दोनों का उत्साह के बीच संचरण होता है।
(i) हम स्वयं को कठिन परिस्थितियों से दूर रखने के लिए प्रयत्नशील होते हैं, जब हम –
(अ) दुखी होते हैं
(ब) आनन्दित होते हैं
(स) उत्साह पूर्ण होते हैं
(द) भयभीत होते हैं।
उत्तर :
(द) भयभीत होते हैं।
(ii) साहसपूर्ण आनन्द की उमंग का नाम है –
(अ) धैर्य
(ब) उत्कण्ठा
(स) उत्साह
(द) प्रफुल्लता।
उत्तर :
(ब) उत्कण्ठा
(iii) साहित्य मीमांसकों ने उत्साह के कई भेद किए हैं, सबसे मुख्य और प्राचीन भेद हैं –
(अ) दान-वीर
(ब) युद्ध-वीर
(स) दया-वीर
(द) धर्म-वीर।
उत्तर :
(ब) युद्ध-वीर
(iv) ‘साहित्य-मीमांसकों’ में प्रयुक्त समास है-
(अ) बहुब्रीहि
(ब) कर्मधारय
(स) सम्बन्ध तत्पुरुष
(द) द्वन्द्व।
उत्तर :
(स) सम्बन्ध तत्पुरुष
निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए – (6 x 1 = 6)
तू देखेगी जलद-तन को जा वहीं तदगता हो, होंगे लोने नयन उनके, ज्योति – उत्कीर्णकारी।
मुद्रा होगी वर-वदन की मूर्ति सी सौम्यता की, सीधे-साधे वचन उनके सिक्त होंगे सुधा से।।
नीले फूले कमल दल-सी गात की श्यामता है, पीला प्यारा वरुन कटि में पैन्हते हैं फबीला।
छूटी काली अलक मुख की कान्ति को हैं बढ़ाती, सद्वस्त्रों में नवल तन की फूटती-सी प्रभा है।।
साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौन्दर्यशाला सत्पुष्पों-मी सुरभि उसकी प्राण-संपोषिका है।
दोनों कंधे वृषभ-वरसे हैं बड़े ही सजीले, लम्बी बाहें कलभ-कर-सी शक्ति की पेटिका हैं।।
राजाओं-सा शिर पर लसा दिव्य आपीड़ होगा, शोभा होगी उभय श्रुति में स्वर्ण के कुण्डल की।
नाना रत्नाकलित भुज में मंजु, केयूर होंगे, मोती माला लसित उनका कम्बु-मा कण्ठ होगा।।
(i) कवि के अनुसार श्रीकृष्ण का वर्ण है-
(अ) श्यामल
(ब) काला
(स) नीला
(द) नीले कमल की पंखुड़ियों के समान श्याम।
उत्तर :
(द) नीले कमल की पंखुड़ियों के समान श्याम।
(ii) “कलभ-कर-सी शक्ति की पेटिका है पंक्ति में निहितार्थ है-
(अ) कलभ कर शक्ति का भण्डार है
(ब) कृष्ण के हाथ सूंड के समान लम्बे हैं
(स) कृष्ण की भुजाएँ हाथी की सैंड के समान लम्बी और शक्तिसम्पन्न हैं
(द) कृष्ण के हाथ सैंड के समान काले हैं।
उत्तर :
(स) कृष्ण की भुजाएँ हाथी की सैंड के समान लम्बी और शक्तिसम्पन्न हैं
(ii) राधा ने श्रीकृष्ण के बारे में बताया है
(अ) वह पीतांबर पहनते हैं
(ब) वह वंशी धारण करते हैं
(स) मुकुट, मोतियों की माला, बाजूबन्द व कुण्डल धारण करते हैं
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
(स) मुकुट, मोतियों की माला, बाजूबन्द व कुण्डल धारण करते हैं
(iv) “नीले फूले कमल दल-सी गात की श्यामता हैं” पंक्ति में अलंकार है
(अ) यमक
(ब) पुनरुक्ति प्रकाश
(स) श्लेष
(द) उपमा।
उत्तर :
(द) उपमा।
(v) पद्यांश का उचित शीर्षक है’ :
(अ) श्रीकृष्ण की अभिराम छवि
(ब) कृष्ण का रूप सौन्दर्य
(स) राधा का सन्देश
(द) जलद-तन श्रीकृष्ण।
उत्तर :
(स) राधा का सन्देश
(vi) श्रीकृष्ण के मुख की कांति को बढ़ाती है-
(अ) श्रृंगार
(ब) मुरली
(स) कुंडल
(द) काली अलक।
उत्तर :
(द) काली अलक।
प्रश्न 2.
दिए गए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए – (6 x 1 = 6)
(i) माधुर्य गुण में ……………………………………… वर्ण का अभाव रहता है।
उत्तर :
ट
(ii) काव्य की रसानुभूति में बाधक तत्वों को ……………………………………… कहा जाता है।
उत्तर :
काव्य दोष
(ii) कवित्त छन्द के प्रत्येक चरण का अन्तिम वर्ण ……………………………………… होता है।
उत्तर :
गुरु
(iv) ‘कमलिनी कुल बल्लभ की प्रभा’ ……………………………………… छन्द का चरण है।
उत्तर :
द्रुत विलम्बित
(v) जहाँ चमत्कार शब्द तथा अर्थ दोनों में स्थित रहता है, वहाँ ……………………………………… माना जाता है।
उत्तर :
उभयालंकार
(vi) जो अलंकृत करता है उसको ……………………………………… कहते हैं।
उत्तर :
अलंकार
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अति लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द-सीमा 20 शब्द है। (12 x 1 = 12)
(i) दृष्टान्त अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर :
फूलहिं फरहिं न बैंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद। मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं विरंचि सम।
(ii) विशेषोक्ति अलंकार की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
जहाँ कारण होने पर भी कार्य का न होना प्रदर्शित किया जाता है, वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है।
(iii) इन डैप्थ रिपोर्ट में क्या होता है?
उत्तर :
किसी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध तथ्य को, उनसे संबंधित आँकड़ों, घटनाओं आदि की गहराई से जाँच-पड़ताल के बाद सामने लाने का काम ‘इन डैप्थ रिपोर्ट’ करती है।
(iv) विशेष रिपोर्ट कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
विशेष रिपोर्ट अनेक प्रकार की होती हैं। जैसे-खोजी रिपोर्ट, इनडेप्थ रिपोर्ट, विश्लेषणात्मक रिपोर्ट और विवरणात्मक रिपोर्ट।
(v) फीचर किसे कहते हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है, जो सामाजिक विषयों से लेकर गंभीर विषयों और मुद्दों पर भी लिखा जा सकता है।
(vi) ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ के लेखक कौन हैं?
उत्तर :
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ के लेखक निर्मल वर्मा हैं।
(vii) हाथी ने किसान के साथ साझे में किसकी खेती की?
उत्तर :
हाथी ने किसान के साथ साझे में ईख की खेती की।
(vi) देवसेना किससे प्रेम करती थी?
उत्तर :
देवसेना स्कन्दगुप्त से प्रेम करती थी।
(ix) ‘सरोज स्मृति’ कैसा गीत है?
उत्तर :
‘सरोज स्मृति’ शोक गीत है।
(x) कविता में अपने भावों और विचारों को किस माध्यम में प्रकट किया जाता है?
उत्तर :
कविता में अपने भावों और विचारों को छंद, लय, ताल, स्वर में बाँधकर तथा प्रतीकों और बिंबों के माध्यम से प्रकट किया जाता है।
(xi) नाटक की भाषा कैसी होनी चाहिए?
उत्तर :
नाटक की भाषा सहज, सरल तथा प्रसंगानुकूल होनी चाहिए।
(xi) कहानी का इतिहास कितना पुराना है?
उत्तर :
कहानी का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना मानव का इतिहास, क्योंकि कहानी मानव स्वभाव या प्रकृति का हिस्सा है।
खण्ड – (ब)
निर्देश-प्रश्न सं 04 से 15 तक प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द सीमा 40 शब्द है।
प्रश्न 4.
समाचार पत्रों के लेखक या पत्रकार को किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :
पत्रकार को सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि विशाल जन समुदाय के लिए लिख रहा है जिसमें विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जैसे विद्वान भी हैं और कम पढ़े-लिखे लोग भी हैं। अतः उसकी भाषा-शैली, कठिन से कठिन विषय की प्रस्तुति ऐसी सरल, सहज और रोचक होनी चाहिए कि सब उसे आसानी से समझ लें।
प्रश्न 5.
अखबारों के लिए लेखन किस प्रकार का होता है?
उत्तर :
अखबारों के लिए लेखन सरल भी है और कठिन भी। यदि अखबार में लिखने वाला पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूपों और उनकी लेखन क्रिया की बारीकियों का जानकार है तो अखबारों के लिए लिखना सरल है परंतु यदि वह पत्रकारीय लेखन की प्रक्रिया और उसके तौर-तरीके से परिचित नहीं तो आसान दिखाई देने वाला लेखन अत्यंत कठिन प्रतीत होगा।
प्रश्न 6.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने पिताजी के बारे में क्या बताया है?
उत्तर :
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने पिताजी के बारे में बताते हुए लिखा है कि वे फारसी के अच्छे ज्ञाता और पुरानी हिन्दी कविता के प्रेमी थे। फारसी कवियों की उक्तियों का हिन्दी कवियों की उक्तियों से मिलान करने में उन्हें आनंद आता था। घर के लोगों को एकत्र कर वे उन्हें रामचरितमानस और रामचंद्रिका पढ़कर सुनाते थे और कभी-कभी भारतेंदु के नाटक भी सुनाया करते जो उन्हें विशेष प्रिय थे।
प्रश्न 7.
‘एक कम’ कविता में कवि ने लोगों के आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होने के लिए किन तरीकों की ओर संकेत किया है? कवि ने स्वयं को हर होड़ से अलग क्यों कर लिया है?
उत्तर :
कवि ने आजादी के बाद भारत के अनेक लोगों को आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होते देखा है। छलकपट, धोखाधड़ी, विश्वासघात, भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता एवं अन्याय के बल पर लोगों ने अपनी स्थिति को सुधारा है। अनैतिक तरीकों से लोग धनवान बने हैं और दूसरों को धक्का देकर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति को ही उन्होंने अपनी उन्नति का साधन बनाया है।
प्रश्न 8.
केदारनाथ सिंह अथवा सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय में किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर :
साहित्यिक परिचय – भाव – पक्ष – केदारनाथ सिंह मूलतः मानवीय संवेदना के कवि हैं। आपकी कविताओं में शोर – शराबा न होकर, विद्रोह का शांतं और संयत स्वर सशक्त रूप से उभरा है। संवेदना और विचार – बोध उनकी कविताओं में साथ – साथ चलते हैं। अत: उनकी कविताओं में मनुष्य जीवन का निकटता से चित्रण हुआ है। उनमें रोजमर्रा की जिन्दगी के अनुभव स्पष्ट दिखाई देते हैं।
कला – पक्ष – केदारनाथ सिंह की कविताओं में बिम्ब विधान पर बहुत बल दिया गया है। उनकी भाषा नम्य और पारदर्शी है तथा उसमें नयी ऋजुता और बेलौसपन पाया जाता है। उनके बिम्बों का स्वरूप परिचित तथा नया और बदलता रहने वाला है। उनके शिल्प में बातचीत की सहजता है और अपनापन अनायास दिखाई देता है।
प्रमुख कृतियाँ – (क) काव्य संग्रह –
- अभी बिलकुल अभी,
- जमीन पक रही है,
- यहाँ से देखो,
- अकाल में सारस,
- बाघ।
(ख) आलोचना और निबन्ध-
- मेरे समय के लोग,
- कल्पना और छायावाद,
- हिन्दी कविता में बिम्ब विधान।
(ग) कहानी संग्रह – कब्रिस्तान में पंचायत।
प्रश्न 9.
श्रीनिवास जी कौन थे और उनके पास पुरातात्विक महत्त्व की क्या सामग्री थी? व्यास जी ने उनसे क्या खरीदा?
उत्तर :
श्रीनिवास जी मद्रास हाईकोर्ट के वकील थे और पुरातात्विक वस्तुओं के प्रेमी और संग्रहकर्ता भी थे। उनके पास सिक्कों और कांस्य एवं पीतल की मूर्तियों का अच्छा संग्रह था। उनके यहाँ चार – पाँच बड़े – बड़े नटराज भी थे पर उनकी कीमत पच्चीस हजार रुपए थी। व्यास जी ने चार – पाँच सौ रुपए की पीतल और कांस्य की मूर्तियाँ प्रयाग संग्रहालय के लिए ली।
प्रश्न 10.
‘सेह पिरिति अनुराग बखानिअतिल-तिल नूतन होए’ से लेखक विद्यापति का क्या आशय है?
उत्तर :
वही प्रेम और अनुराग बखानने योग्य है जिसमें क्षण – क्षण पर नवीनता का अनुभव हो अर्थात् प्रेम की एक विशेषता है – नित नवीनता। जिस प्रीति में कभी पुरानापन न आए, जो सदैव नयी – नयी सी लगे वही प्रीति बखानने योग्य है। नायिका और नायक जिस प्रीति में सदैव नव्यता की अनुभूति करें वही प्रीति बखानने योग्य होती है।
प्रश्न 11.
ब्रजमोहन व्यास अथवा पंडित चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ में से किसी एक साहित्यकार का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर :
साहित्यिक परिचय – भाषा – व्यास जी संस्कृत साहित्य के अध्येता थे। आपकी भाषा परिष्कृत प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली हिन्दी है। आपकी भाषा में तत्सम शब्दों के साथ अरबी, फारसी शब्द, लोक प्रचलित शब्द, अंग्रेजी के शब्द आदि भी मिलते हैं। संस्कृत भाषा के यथास्थान दिये गये उद्धरण भाषा को सशक्त बनाने वाले हैं।
यत्र – तत्र मुहावरों का प्रयोग भी आपने किया है। शैली – व्यास जी ने वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। इसके साथ – साथ विवरणात्मक शैली को भी अपनाया है। जीवनी तथा आत्मकथा के लिए ये शैलियाँ उपयुक्त भी हैं।
कृतियाँ – व्यास जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
- जानकी हरण (कुमारदास कृत) का अनुवाद।
- पं. बालकृष्ण भट्ट (जीवनी)।
- पं. मदन मोहन मालवीय (जीवनी)।
- मेरा कच्चा चिट्ठा (आत्मकथा)।
प्रश्न 12.
जगधर के मन में किस तरह का ईा-भाव जगा और क्यों?
उत्तर :
जगधर सोच रहा था – भैरों को एकाएक इतने रुपये मिल गए। यह अब मौज उड़ाएगा। तकदीर इस तरह खुलती है। अब भैरों दो – तीन दुकानों का ठेका और ले लेगा। वह आराम से जिन्दगी बिताएगा। उसे भी ऐसा कुछ माल हाथ लग जाता तो उसकी जिन्दगी भी सफल हो जाती। इस प्रकार अचानक भैरों के पास पाँच सौ से अधिक रुपये देखकर जगधर के मन में उसके प्रति प्रबल ईर्ष्या का भाव जाग उठा।
प्रश्न 13.
‘एकाएक जैसे सफेद हो गया रंगीन स्क्रीन’ प्रस्तुत कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रूपसिंह माही पहुँचा तो सबसे पहले उसकी मुलाकात तिरलोकसिंह से हुई। तिरलोक ने उससे हिमांग पहाड़ के ऊपर चढ़ जाने को कहा और बताया कि घर ऊपर चला गया है। उसे अपने माता – पिता के बारे में पता चला कि बहुत पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। अपने माता – पिता के देहावसान की बात सुनकर अपने गाँव आने तथा परिवार के लोगों से मिलने की रूप की सारी खुशी गायब हो गई। एकाएक जैसे सफेद हो गया रंगीन स्क्रीन।
प्रश्न 14.
इन्दौर में गाड़ी से उतरते ही लेखक क्या चाहता था? उसकी इच्छा पूर्ति में क्या बाधा थी?
उत्तर :
इंदौर में लेखक गाड़ी से उतरा तो वह चाहता था कि सभी नदी – नालों और ताल – तलैयों को देखे। वह पहाड़ पर भी चढ़ना चाहता था। परन्तु उसको याद आया कि उसकी उम्र सत्तर वर्ष हो चुकी है। इस अवस्था में शरीर में वैसा फुर्तीलापन और लचीलापन नहीं रहा जो पहले था। मन से वह अपने को किशोर र भले ही समझता हो परन्तु शरीर तो वृद्ध हो चुका था। उसमें पर्वतों पर चढ़ने और नदी – नालों को लाँघने की शक्ति नहीं बची थी।
प्रश्न 15.
भिखारियों के लिए धन-संचय पाप-संचय से कम अपमान की बात नहीं है।” ‘सूरदास की झोंपड़ी’ पाठ से उद्धृत इस कथन की आधुनिक परिप्रेक्ष्य में विवेचना कीजिए।
उत्तर :
सूरदास जानता था कि उसने यह धन भीख . माँगकर जोड़ा था। एक अंधे भिखारी के लिए निर्धनता इतनी लज्जा की बात नहीं थी, जितना धन का संग्रह करना। रुपयों को अपना स्वीकार करने से होने वाले अपमान से बचने के लिए वह जगधर से अपनी आर्थिक हानि की बात को छिपा रहा था। वर्तमान में भी समाज की यही मान्यता है। यदि कोई भिखारी अधिक धन संचय कर ले तो उसे हेय दृष्टि से देखा जाता है।
प्रश्न 16.
पाठ के आधार पर हर की पौड़ी पर होन वाली गंगा जी की आरती का भावपूर्ण वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (उत्तर-सीमा 60 शब्द) 3
अथवा
औद्योगीकरण ने पर्यावरण को कैसे प्रभावित किया है? ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर :
हर की पौड़ी पर गंगा जी के अनेक मन्दिर है। हर मन्दिर पर लिखा है – गंगा जी का प्राचीन मन्दिर। शाम का समय है। पंडितपुजारी गंगा जी की आरती की तैयारी करने में व्यस्त हैं। पीतल की नीलांजलि (आरती) में हजारों बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी गई हैं। गंगा सभा के स्वयंसेवक खाकी वरदी में मुस्तैदी से घूम रहे हैं और वे सबको शान्त होकर सीढ़ियों पर बैठने के लिए कह रहे हैं।
कुछ भक्तों ने स्पेशल आरती बोल रखी है अर्थात् एक सौ एक या एक सौ इक्यावन रुपए वाली आरती। अचानक हजारों दीप जल उठते हैं। पंडितगण अपने आसन से उठ खड़े होते हैं। हाथ में अंगोछा लपेटे पचमंजिली नीलांजलि पकड़ते हैं और आरती शुरू हो जाती है। पहले पुजारियों के भर्राए कंठ से समवेत स्वर उठता है – जय गंगे माता, जो कोई तुझको ध्याता, सारे सुख पाता, जय गंगे माता। फिर भक्तों का समवेत स्वर गूंजता है।
प्रश्न 17.
निम्न पंक्तियों के भावपक्ष एवं कलापक्ष पर अपने विचार प्रकट कीजिए- (उत्तर-सीमा 60 शब्द) 3
श्रृंगार, रहा जो निराकार,
रस कविता में उच्छ्वसित-धार
गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग
भरता प्राणों में राग-रंग,
रति-रूप प्राप्त कर रहा वहीं,
आकाश बदल कर बना मही।
अथवा
बनारस में बसंत का आगमन कैसे होता है तथा उसका प्रभाव इस शहर पर क्या होता है?
उत्तर :
(क) भावपक्ष – निराला जी कहते हैं कि मैंने तुम्हारे शृंगार में उस श्रृंगार को देखा जो मेरे काव्य के रस में छिपा रहता है और सहस्र रसधारा के रूप में प्रवाहित होता रहता है। मेरी कविता में जो भावधारा प्रवाहित हो रही थी और जिसे मैंने अपनी स्वर्गीया पत्नी के साथ गाया था वह आज भी दाम्पत्य सुख के रूप में समस्त विश्व में व्याप्त हो रही है। लगता है वह रंग – रूप आकाश से उतर आया है और तेरे शृंगारिक रूप में साकार हो उठा है।
(ख) कलापक्ष – उपर्युक्त पंक्तियाँ निराला की कल्पना का सुन्दर उदाहरण हैं। सरोज के सौन्दर्य का साकार चित्रण किया गया है। सामासिक शब्दावली का प्रयोग है। तत्सम शब्दों का प्रयोग है। राग – रंग, रति – रूप में अनुप्रास अलंकार है। भाषा में प्रसाद गुण है। मुक्त छन्द और वर्णनात्मक शैली है।
प्रश्न 18.
‘आरोहण’ कहानी को पढ़कर आपके मन में पहाड़ों पर स्त्री की स्थिति की क़्या छवि बनती है? उस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए। (उत्तर-सीमा 80 शब्द) 4
‘अपना मालवा- खाऊ-उजाडू सभ्यता में’ पाठ लेखक की पर्यावरण संबंधी चिन्ता का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है। पठित पाठ के आधार पर लिखिए। (उत्तर-सीमा 80 शब्द) 4
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी में दो ही नारी पात्र हैं। एक है शैला जो पहले भूप सिंह की प्रेमिका तथा बाद में पत्नी बनती है। दूसरी महिला पात्र भूपसिंह की दूसरी पत्नी है। पहली पत्नी के बच्चा होने वाला था इसलिए भूपसिंह दूसरी औरत को नीचे से ऊपर पहाड़ पर ले आया था। शैला भेड़ चराती थी। वह भूपसिंह के लिए स्वेटर बुनती थी। वह उनके लिए फल, फूल और ईंधन लाती थी। जंगल में भूपसिंह उनसे मिलने आते थे। जब वह नहीं आते थे तब शैला दु:खी होती थी।
उसके प्रति एकतरफा प्रेम करने वाला रूप भी उसको खुश नहीं कर पाता था। इस कहानी को पढ़ने पर प्रतीत होता है कि पहाड़ की स्त्री अत्यन्त दयनीय स्थिति में है। उसको अपना पूरा जीवन पराश्रित होकर बिताना पड़ता है। वह भेड़ – बकरी चराती है, जंगल से घास और ईंधन लाती है, खेती करती है तथा घर की देखभाल और परिवार का पोषण करती है।
उसे कठोर परिश्रम करने पर भी अपना जीवन पुरुष पर आश्रित होकर और अपमान सहकर गुजारना पड़ता है। वैसे पहाड़ की स्त्री गोरी, सुन्दर, पुष्ट और स्नेहमयी होती है। वह मधुर कंठ से गीत गाती है। वह सच्चे मन से प्रेम करती है तथा किसी को धोखा नहीं देती है।
प्रश्न 19.
निम्नलिखित पठित काव्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए –
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर
लौटा लो यह अपनी थाती
प्रलय चल रहा अपने पथ पर
मेरी करुणा हा-हा खाती
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर,
विश्व! न सँभलेगी यह मुझसे
उससे हारी-होड़ लगाई।
इससे मन की लाज गँवाई।
अथवा
मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल,
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
हो इसी कर्म पर वज्रपात
यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल!
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
कर, करता मैं तेरा तर्पण!
उत्तर :
सन्दर्भ प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘देवसेना का गीत’ शीर्षक कविता से ली गई हैं जो जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक ‘स्कन्दगुप्त’ से उद्धृत हैं। इस गीत को हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अन्तरा भाग – 2’ में संकलित किया गया है।
प्रसंग देवसेना निराश है। प्रेम के क्षेत्र में हारी हुई प्रेमिका है। अपनी जीवनभर की पूँजी को गँवाने के पश्चात् वह पश्चात्ताप करती है। अतृप्त प्रेम के कारण उसे अपना जीवन सूना प्रतीत होता है। वह इन्हीं भावों को इस अंश में व्यक्त करती है।
व्याख्या देवसेना जीवन – पर्यन्त संघर्ष करने के कारण निराश हो गई है। इसलिए वह कहती है कि मेरे जीवन में प्रलय का साम्राज्य हो गया है अर्थात् मेरा जीवन तूफानों से घिरने के कारण हताश हो गया है। मेरे जीवन की सुन्दर आकांक्षाएँ समाप्त हो गई हैं। मैं अपने दुर्बल पैरों पर खड़ी होकर प्रलय (जीवन की झंझा) से व्यर्थ ही होड़ कर रही हूँ क्योंकि उसमें मेरी हार होना ही सुनिश्चित है।
अन्त में निराश होकर वह विश्व से कहती है कि इस धरोहर (प्रेम) को लौटा लो। मुझमें इस थाती को सँभाल कर रखने की ताकत नहीं है। स्कन्दगुप्त के प्रेम में डूबकर मैंने अपनी लाज भी गँवा दी है। अब मुझसे यह वेदना सहन नहीं होती।
प्रश्न 20.
निम्नलिखित पठित गद्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए- (1 + 4 = 5)
चौधरी साहब एक खासे हिन्दुस्तानी रईस थे। वसंत पंचमी, होली इत्यादि अवसरों पर उनके यहाँ खूब नाचरंग और उत्सव हुआ करते थे। उनकी हर एक अदा से रियासत और तबीयतदारी टपकती थी। कंधों तक बाल लटक रहे हैं।। आप इधर से उधर टहल रहे हैं। एक छोटा-सा लड़का पान की तश्तरी लिए पीछे-पीछे लगा हुआ है। बात की काँट-छाँट का क्या कहना है ! जो बातें उनके मुँह से निकलती थीं, उनमें एक विलक्षण वक्रता रहती थी। उनकी बातचीत का ढंग उनके लेखों के ढंग से एकदम निराला होता था। नौकरों तक के साथ उनका संवाद सुनने लायक होता था।
अथवा
हरगोबिन होश में आया। बड़ी बहुरिया का पैर पकड़ लिया, “बड़ी बहुरिया! मुझे माफ करो। मैं तुम्हारा संवाद नहीं कह सका। तुम गाँव छोड़कर मत जाओ। तुमको कोई कष्ट नहीं होने दूंगा। मैं तुम्हारा बेटा! बड़ी बहुरिया, तुम मेरी माँ, सारे गाँव की माँ हो! मैं अब निठल्ला बैठा नहीं रहूँगा। तुम्हारा सब काम करूँगा। बोलो, बड़ी माँ, तुमतुम गाँव छोड़कर चली तो नहीं जाओगी? बोलो ! बड़ी बहुरिया गरम दूध में एक मुट्ठी बासमती चूड़ा डालकर मसकने लगी। संवाद भेजने के बाद से ही वह अपनी गलती पर पछता रही थी।
उत्तर :
संदर्भ प्रस्तुत गद्यावतरण आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखे गए संस्मरणात्मक निबंध ‘प्रेमघन की छाया – स्मृति’ से लिया गया है। इसे हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अंतरा भाग – 2’ में संकलित किया गया है।
प्रसंग – चौधरी बदरीनारायण ‘प्रेमघन’ जी संपन्न परिवार से थे। उनके रहन – सहन तथा बोलचाल से उनकी रईसी का पता चलता था।
व्याख्या – उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ जी एक अच्छे – खासे हिन्दुस्तानी रईस थे अतः उनमें वे सब विशेषताएँ होनी स्वाभाविक थीं जो तत्कालीन रईसों (धनी – मानी व्यक्तियों) में पाई जाती थीं। वसंत पंचमी और होली के अवसर पर उनके यहाँ नाच – रंग की महफिलें सजती और पर्याप्त खर्च करके मनोरंजन किया जाता था। उनकी हर भावभंगिमा से उनकी रईसी आदतें व्यक्त होती थीं।
वे तबियत से खर्च करते और लोगों के साथ महफिलों का लुत्फ (आनंद) उठाते थे। उनकी सज – धज भी आकर्षक होती थी। बड़े – बड़े बाल जो कंधों पर लटकते रहते उन्हें अलग पहचान देते थे। जब कभी वे बरामदे में इधर से उधर चहलकदमी कर रहे होते तो एक लड़का पान की तश्तरी लिए उनके पीछे – पीछे चलता। कब बाबू साहब को पान की तलब लगे और वह तश्तरी उनके सामने पेश करे।
बातचीत करने में वे बड़े विदग्ध (चतुर) थे और ऐसी बातें करते कि लोग मुग्ध हो जाते। उनकी वचन वक्रता विलक्षण थी। उनकी बातचीत का ढंग उनके लेखों के ढंग से नितांत भिन्न था। नौकरों से भी वे जो बातें करते वे सुनने लायक होती थीं। अगर किसी नौकर से कोई गिलास गिरा तो उनके मुंह से निकलता “कारे बचा त नाहीं” अर्थात् क्यों रे फूटने से बचा तो नहीं।
प्रश्न 21.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर 400 शब्दों में सारगर्मित निबंध लिखिए।
(अ) पुरुषार्थ और भाग्य
(ब) साहित्य समाज का दर्पण है
(स) नदी जल स्वच्छता अभियान
(द) राष्ट्रीय एकता और अखण्डता
(य) राजस्थान : भाषा और साहित्य
उत्तर :
(य) राजस्थान : भाषा और साहित्य प्रस्तावना – कभी मारवाड़, मेरवाड़ा, मरुस्थान आदि नामों से पुकारे जाने वाले प्रदेशों को ही आज राजस्थान कहा जाता है। इतिहासकार टॉमस ने इसको राजपूताना तथा कर्नल टाड ने इसे राजस्थान कहा है। पूर्वकाल में इस प्रदेश में प्रचलित साहित्यिक भाषा को ‘डिंगल’ कहा जाता है। डिंगल में ही समस्त रासो ग्रन्थों तथा वीरगीत काव्यों की रचना हुई है। आज राजस्थान में व्यापक रूप में प्रयुक्त होने वाली भाषा को राजस्थानी नाम से जाना जाता है।
राजस्थानी भाषा तथा उसकी विभाषाएँ – कुछ भाषा वैज्ञानिक मानते हैं कि आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के प्रचलन में आने से पूर्व ही राजस्थानी भाषा का विकास हो चुका था। आठवीं सदी के ग्रन्थ ‘कुवतापमाला’ में राजस्थानी के लिए ‘मरु’ भाषा का प्रयोग हुआ है। आगे चलकर राजस्थान की भाषा के मरुभाषा, मरुबानी आदि नाम भी प्राप्त होते हैं।
राजस्थानी की विभाषाओं अर्थात् बोलियों का विकास भी हिन्दी की अन्य बोलियों से पूर्व हो चुका था। मारवाड़ी, बीकानेरी, मालवी, उदयपुरी, मेवाती आदि बोलियों का उल्लेख विभिन्न ग्रन्थों में हुआ है। आज भी प्रायः ये सभी बोलियाँ राजस्थान में प्रचलित हैं। राजस्थानी के वर्तमान साहित्य पर भी इनकी छाप परिलक्षित होती है।
राजस्थानी भाषी क्षेत्र – राजस्थानी भाषा का मुख्य क्षेत्र राजस्थान की पूर्ववर्ती सभी रियासतों के भू-भाग में व्याप्त है। जयपुर, जैसलमेर, बीकानेर, भरतपुर, अलवर, उदयपुर, जोधपुर, अजमेर आदि के साथ-साथ राजस्थान से सटे अन्य प्रदेशों के भी कुछ स्थानों में राजस्थानी का प्रयोग होता है। पंजाब के कुछ स्थानों, हरियाणा के कुछ जिलों तथा मध्य प्रदेश में भी कुछ स्थानों में राजस्थानी बोली जाती है। इसके प्रभाव क्षेत्र में सिन्ध, कश्मीर, उत्तराखण्ड तथा महाराष्ट्र के भी कुछ भू-भाग आते हैं।
राजस्थानी भाषा की विभिन्न बोलियाँ – राजस्थानी भाषा की चार प्रमुख बोलियाँ मानी गई हैं-मारवाड़ी, जयपुरी, मालवी और मेवाती। ग्रियर्सन ने राजस्थानी भाषा की पाँच बोलियाँ मानी हैं-
- मारवाड़ी,
- जयपुरी,
- मालवी,
- मेवाती,
- भीली।
राजस्थानी भाषा का साहित्य-राजस्थानी भाषा का साहित्यिक रूप ‘डिंगल’ नाम से जाना जाता है। डिंगल में रासो काव्य तथा वीरगीतों के अतिरिक्त पर्याप्त आंचलिक साहित्य की रचना हुई है। चन्दवरदाई, नरपति नाल्ह, पृथ्वीराज, बाँकीदास, नाथूदान, करणीदास, सूर्यमल्ल इत्यादि राजस्थानी के प्रसिद्ध प्राचीन कवि हैं। ‘पृथ्वीराज रासो’, ‘खुमान रासो’, ‘वीसलदेव रासो’, ‘परमाल रासो’ (आल्हा-खण्ड) इत्यादि प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं।
आधुनिक राजस्थानी साहित्य पर खड़ी बोली का व्यापक प्रभाव है। नवीन राजस्थानी कविगण भाषा, छन्द, अलंकार आदि क्षेत्रों में नये प्रयोग कर रहे हैं। उनकी भाषा के स्वरूप भी आधुनिक खड़ी बोली हिन्दी कविता के बहुत निकट है। उनका वर्ण्य-विषय भी वर्तमान समाज के कृषक-मजदूर तथा आम पीड़ित जनों की समस्यायें हैं। डॉ. तारा प्रकाश जोशी की निम्नलिखित पंक्तियाँ दर्शनीय हैं-
पूरब से पश्चिम तक फैली,
कानूनों की काली स्याही।
यहाँ वही अपराधी केवल,
जिसका कोई नहीं गवाही।
नन्दचतुर्वेदी, मरुधर मृदुल, डॉ. सावित्री डागा, ‘डॉ. प्रभा वाजपेयी, मीठेश निर्मोही, अम्बिका दत्त, प्रीता भार्गव इत्यादि अपनी रचनाओं से राजस्थानी साहित्य का भण्डार भर रहे हैं। उपसंहार-राजस्थान वीरभूमि है। शौर्य, बलिदान और त्याग के उदाहरण राजस्थानी भाषा के साहित्य में भरे पड़े हैं। रणभूमि में वीरों की हुंकार और उनकी तलवारों की झंकार सदा गूंजती रही है।
वीर, श्रृंगार और शांत रस राजस्थानी साहित्य में प्रधान रहे हैं। आज का राजस्थानी साहित्य नवीन परिवर्तनों तथा युगबोध से प्रभावित है। आज के साहित्य में भारतीय समाज में होने वाले परिवर्तनों की स्पष्ट छाप है। विकास के पथ पर निरन्तर बढ़ते राजस्थान की छवि उसके साहित्य में भी दिखाई दे रही है।
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