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RBSE Class 12 Hindi Sahitya Model Paper Set 5 with Answers
समय :2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न – पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर – पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए (6 x 1 = 6)
सत्य और अहिंसा, केवल इसी देश के लिए नहीं, मानव मात्र के जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक हो गए हैं। हम इस देश में लोकतन्त्र की स्थापना कर चुके हैं, जिसका अर्थ है व्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता जिसमें वह अपना पूरा विकास कर सके और साथ ही सामूहिक और सामाजिक एकता भी। व्यक्ति और समाज के बीच में विरोध का आभास होता है। व्यक्ति अपनी उन्नति और विकास चाहता है और यदि एक की उन्नति और विकास दूसरे की उन्नति और विकास में बाधक हो, तो संघर्ष पैदा होता है और यह संघर्ष तभी दूर हो सकता है जब उसके विकास पथ अहिंसा के हों। हमारी संस्कृति का मूलाधार इसी अहिंसा-तत्व पर स्थापित रहा है। जहाँ-जहाँ हमारे नैतिक सिद्धान्तों का वर्णन आया है, अहिंसा को ही उसमें मुख्य स्थान दिया गया है। अहिंसा का दूसरा रूप त्याग है और हिंसा का दूसरा रूप या दूसरा नाम स्वार्थ है, जो प्रायः भोग के रूप में हमारे सामने आता है। हमारी सारी नैतिक चेतना इसी तत्व से ओत-प्रोत है। इसीलिए हमने भिन्न-भिन्न विचारधाराओं को स्वच्छन्दतापूर्वक पनपने और भिन्न-भिन्न भाषाओं को विकसित और प्रस्फुटित होने दिया।
(i) लोकतन्त्र का क्या अर्थ है ? (1)
(अ) सामूहिक और सामाजिक एकता
(ब) व्यक्तियों की विचारक एकता
(स) व्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता और विकास
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
(स) व्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता और विकास
(ii) मानव के जीवन के लिए क्या आवश्यक है ? (1)
(अ) साहस व धैर्य
(ब) ईश्वर में विश्वास और संघर्ष
(स) दृढ़ इच्छा-शक्ति
(द) सत्य और अहिंसा।
उत्तर :
(स) दृढ़ इच्छा-शक्ति
(iii) अहिंसा का दूसरा स्वरूप क्या है ? (1)
(अ) उन्नति
(ब) त्याग
(स) हिंसा
(द) संघर्ष।
उत्तर :
(ब) त्याग
(iv) निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम शब्द छोटिए (1)
(अ) पूरा
(ब) प्रस्फुटित
(स) पैदा
(द) सामने।
उत्तर :
(ब) प्रस्फुटित
(v) निम्नलिखित शीर्षकों में से दिए गए गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक छोटिए (1)
(अ) हमारी संस्कृति का मूलाधार-अहिंसा
(ब) परोपकार
(स) एकता की भावना
(द) सत्य का महत्त्व।
उत्तर :
(अ) हमारी संस्कृति का मूलाधार-अहिंसा
(vi) भारतीय संस्कृति का मूल आधार है (1)
(अ) नैतिकता
(ब) इच्छाशक्ति
(स) सत्यता
(द) अहिंसा
उत्तर :
(द) अहिंसा
निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए (6 x 1 = 6)
आज की दुनियाँ विचित्र नवीन, प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
हैं बंधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप, हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान, लाँघ सकता नर सरित्, गिरि, सिन्धु एक समान।।
शीश पर आदेश कर अवधार्य प्रकृति के सब तत्व करते हैं मनुज के कार्य,
मानते हैं हुक्म मानव का महा वरुणेश, और करता शब्दगुण अम्बर वहन सन्देश।
व्यः नर की मुष्टि में विकराल, हैं सिमटते जा रहे दिक्काल। यह प्रगति निस्सीम !
नर का यह अपूर्व विकास। चरण तल भूगोल! मुट्ठी में निखिल आकाश।
किन्तु हैं बढ़ता गया मस्तिष्क ही नि:शेष, छूट कर पीछे गया है रह हृदय का देश;
जर मनाता नित्य नूतन बुद्धि का त्यौहार, प्राण में करते दुःखी हो देवता चीत्कार।
(i) आज का संसार नवीन और विचित्र दिखाई देने का कारण है- (1)
(अ) मनुष्य ने प्रगति की है
(ब) पहले की तुलना में संसार बड़ा हो गया है
(स) प्रकृति पर मनुष्य ने विजय प्राप्त कर ली है
(द) विज्ञान के क्षेत्र में विकास किया है।
उत्तर :
(स) प्रकृति पर मनुष्य ने विजय प्राप्त कर ली है
(ii) “छूटकर पीछे गया है रह हृदय का देश” पंक्ति का भावार्थ है (1)
(अ) हृदय का देश पीछे छूट गया है
(ब) बुद्धि के क्षेत्र में निस्सीम प्रगति की है
(स) मनुष्य की प्रगति निस्सार है
(द) बौद्धिक दौड़ में हृदय या मन का संसार पीछे छूट गया है।
उत्तर :
(द) बौद्धिक दौड़ में हृदय या मन का संसार पीछे छूट गया है।
(ii) ‘बुद्धि का त्यौहार’ का क्या तात्पर्य है (1)
(अ) हर त्यौहार बुद्धिपूर्वक मनाता है
(ब) त्यौहार के दिन नूतन बुद्धि होती है
(स) मनुष्य अपनी बुद्धि बल पर प्रसन्न होता है
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर :
(स) मनुष्य अपनी बुद्धि बल पर प्रसन्न होता है
(iv) ‘सिन्धु’ का पर्यायवाची शब्द है (1)
(अ) सागर
(ब) सर
(स) तड़ाग
(द) जलद।
उत्तर :
(अ) सागर
(v) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए (1)
(अ) प्रकृति पर विजय
(ब) विज्ञान और मनुष्य
(स) मानव का हुक्म
(द) बुद्धि का त्यौहार।
उत्तर :
(स) मानव का हुक्म
(vi) आकाश-समुद्र और पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर ली है – (1)
(अ) प्रकृति ने
(ब) ईश्वर ने
(स) इन्द्र ने
(द) मनुष्य ने।
उत्तर :
(द) मनुष्य ने।
प्रश्न 2.
दिए गए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए
(i) माधुर्य, ओज तथा प्रसाद गुणों का संबंध मनुष्य की …………………………………………….. से है। (1)
उत्तर :
चित्तवृत्तियों
(ii) शब्दों का क्रम लोक तथा शास्त्र के अनुकूल न होने पर …………………………………………….. दोष होता है। (1)
उत्तर :
दुष्क्रमत्व
(iii) जिन छंदों में मात्राओं की गणना की जाती है उनको …………………………………………….. छंद कहते हैं। (1)
उत्तर :
मात्रिक
(iv) जिन छंदों में वर्गों की संख्या तथा क्रम निश्चित होता है, उन्हें …………………………………………….. छंद कहते हैं। (1)
उत्तर :
वर्णिक
(v) जब कविता में उपमेय का उपमान से उत्कर्ष दिखाया जाता है, तो वहाँ …………………………………………….. अलंकार होता है। (1)
उत्तर :
प्रतीप
(vi) कारण के अभाव में कार्य का होना प्रकट किया जाता है, तो वहाँ …………………………………………….. अलंकार होता है। (1)
उत्तर :
विभावना
प्रश्न 3.
निम्नलिखित अति लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द-सीमा 20 शब्द है। (12 x 1 = 12)
(i) विभावना अलंकार का एक उदाहरण लिखिए। (1)
उत्तर :
विभावना अलंकार का उदाहरण नाचि अचानक ही उठे बिनु पावस बन मोर। जानति हों नन्दित करी यह दिशि नंदकिशोर॥
(ii) अर्थालंकार की प्रमुख विशेषता क्या है? (1)
उत्तर :
जहाँ काव्य चमत्कार प्रयुक्त शब्द में न होकर उसके अर्थ में होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है।
(ii) बीट रिपोर्टिंग से आप क्या समझते हो? (1)
उत्तर :
बीट की रिपोर्टिंग के लिए संवाददाता को उस क्षेत्र के विषय में जानकारी और रुचि का होना आवश्यक है।
(iv) किसी विषय के विशेषज्ञों से समाचार क्यों लिखवाए जाते हैं ? (1)
उत्तर :
जब किसी खास समाचार को लिखने वाले पेशेवर पत्रकार नहीं मिलते तब किसी विषय विशेषज्ञ से लेख लिखवाए जाने की व्यवस्था की जाती है।
(v) विशेषीकृत रिपोर्टिंग क्या है? संक्षेप में लिखिए। (1)
उत्तर :
विशेषीकृत रिपोर्टिंग के अंतर्गत सामान्य समाचारों की अपेक्षा विशेष क्षेत्र या विशेष विषय से जुड़ी घटनाओं और समस्याओं का बहुत ही बारीकी से विश्लेषण करके प्रस्तुत करता है।
(vi) घड़ी के दृष्टांत से लेखक ने किस पर व्यंग्य किया है? (1)
उत्तर :
घड़ी के दृष्टांत से लेखक ने धर्म उपदेशकों पर व्यंग्य किया है।
(vii) माँ ने बड़ी बहुरिया के लिए क्या-क्या भेजा था? (1)
उत्तर:
माँ ने बड़ी बहुरिया के लिए थोड़ा चूड़ा और बासमती का धान भेजा था।
(vii) राम-वियोग में कौशल्या किसे छाती से लगाती है? (1)
उत्तर :
राम – वियोग में कौशल्या राम की जूतियों को छाती से लगाती है।
(ix) ‘एक कम’ कविता के आधार पर आजादी मिलने के बाद ईमानदार लोग कैसे हो गए? (1)
उत्तर :
‘एक कम’ कविता के आधार पर आजादी मिलने के बाद ईमानदार लोग गरीब तथा लाचार हो गए।
(x) कविता में लय व ताल का क्या योगदान है? (1)
उत्तर :
लय व ताल व लय के माध्यम से कविता में गेयता आती है, जिससे संगीतबद्ध कविता स्मरणीय होने के साथ आनन्द भी प्रदान करती है।
(xi) सफल नाटक की भाषा शैली कैसी होनी चाहिए? (1)
उत्तर :
नाटक की भाषा सहज, सरल तथा प्रसंगानुकूल होनी चाहिए।
(xii) कहानी-लेखन के विभिन्न विषय लिखिए। (1)
उत्तर :
प्रायः कहानी किसी घटना, युद्ध, प्रतिशोध के किस्से अथवा पौराणिक, ऐतिहासिक व वास्तविक घटनाएँ भी हो सकती हैं।
खण्ड – (ब)
निर्देश-प्रश्न सं 04 से 15 तक प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द सीमा 40 शब्द है।
प्रश्न 4.
फ्रीलांसर किसे कहते हैं ? (2)
उत्तर :
फ्रीलांसर पत्रकार किसी खास अखबार का वेतनभोगी कर्मचारी नहीं होता। वह किसी अखबार से जुड़ा न रहकर स्वतंत्र रूप से अनेक समाचार – पत्रों के लिए लिखता है तथा अपनी तयशुदा दरों से भुगतान लेता है। फ्रीलान्सर पत्रकार से भी सरकार के सूचना विभाग, प्रेस परिषद या एडीटर्स द्वारा प्रदत्त परिचय – पत्र रखने की अपेक्षा की जाती है ताकि वह यत्र – तत्र – सर्वत्र निर्बाध रूप से जाकर वांछित सूचना व तथ्य समाचार हेतु संकलित कर सके।
प्रश्न 5.
पत्रकारीय लेखन में किस बात का सबसे अधिक ध्यान रखना चाहिए ? (2)
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन आम जनता के लिए होता है। इसमें इस बात का सबसे अधिक ध्यान रखना चाहिए कि कही गई बात स्पष्ट और साफ हो। इसके लिए सहज, सरल, आम बोलचाल की भाषा और सीधे – सादे छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। भाषा को प्रभावी बनाने के लिए अनावश्यक विशेषणों जार्गन्स अर्थात् अप्रचलित या कम प्रचलित शब्दावली और क्लीशे (पिष्टोक्ति या दोहराव) से बचना चाहिए।
प्रश्न 6.
“पारो बुआ, पारो बुआ इनका नाम हैउसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया।” कथन के आधार पर कहानी के संकेतपूर्ण आशय पर टिप्पणी लिखिए। (2)
उत्तर:
‘पारो बुआ, इनका नाम है’। संभव ने हँसते हुए अधूरा वाक्य पूरा किया – ‘संभव देवदास’। संभव ने आज ही तो मंसादेवी के दर्शन करके मनोकामना के पूर्ण होने की आशा में लाल – पीले धागे की गाँठ लगाई थी और उसकी मनोकामना पूरी हो गई लड़की से उसकी भेंट भी हो गई, परिचय भी हो गया। उसे उस गाँठ का मधुर स्मरण हो आया। उसके मन में लड़की के प्रति प्रेम भाव जाग्रत हो चुका था।
प्रश्न 7.
भरत के आत्म-परिताप में तुलसीदास ने उसके चरित्र की किन विशेषताओं को प्रकट किया है? अपने शब्दों में लिखिए। (2)
उत्तर :
भरत का आत्म परिताप इस बात का द्योतक है कि वे साधु स्वभाव के हैं और राम के प्रति अगाध स्नेह रखते हैं। उनकी माता कैकेयी ने जो कुछ किया उसमें उनकी कोई सहभागिता नहीं है और राम को वनगमन में जो भी कष्ट उठाने पड़ रहे हैं उसके लिए वे स्वयं को दोषी मान रहे हैं।
प्रश्न 8.
सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ अथवा तुलसीदास में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय दीजिए। (2)
उत्तर :
साहित्यिक परिचय – भाव पक्ष – अज्ञेय की प्रतिभा बहुमुखी थी। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, यात्रावृत्त, निबन्ध, आलोचना आदि विधाओं पर लेखनी चलाई। प्रकृति प्रेम और मानव मन के अन्तर्द्वन्द्व उनके प्रिय विषय हैं। उनकी कविता में व्यक्ति – स्वातंत्र्य का आग्रह है।
कला पक्ष – अज्ञेय ने हिन्दी काव्य की भाषा का विकास किया तथा उसको नवीन स्वरूप प्रदान किया। वे शब्दों को नया अर्थ देने में कुशल हैं। उनकी भाषा तत्सम शब्दावली युक्त है तथा उसमें प्रचलित विदेशी और देशज शब्दों को भी स्थान प्राप्त है। उपन्यास तथा कहानियों की भाषा, विषय तथा पात्रानुकूल है। अज्ञेय ने अपने काव्य में मुक्त छन्द का प्रयोग किया है।
कृतियाँ –
- उपन्यास – शेखर एक जीवनी (2 भाग), अपने – अपने अजनबी, नदी के द्वीप।
- यात्रावृत्त – अरे यायावर रहेगा याद, एक बूंद सहसा उछली।
- निबन्ध – त्रिशंकु, आत्मने पद।
- कहानी संग्रह – विपथगा, परम्परा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल, ये तेरे प्रतिरूप।
- काव्य – कृतियाँ – चिन्ता, भग्नदूत, हरी घास पर क्षणभर, इन्द्रधनु रौंदे हुए, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार।
प्रश्न 9.
‘प्रेमधन की छाया स्मृति’ निबंध से शुक्ल के भाषा-परिवेश और प्रारंभिक रुझानों पर प्रकाश डालिए। (2)
उत्तर :
ज्यों – ज्यों लेखक सयाना होता गया हिन्दी साहित्य की ओर उसका झुकाव बढ़ता गया। उसके पिताजी साहित्य प्रेमी थे, भारत जीवन प्रेस की किताबें उनके यहाँ प्रायः आती रहती थीं, साथ ही मिर्जापुर में केदारनाथ पाठक ने एक पुस्तकालय खोला था जहाँ से किताबें लाकर रामचंद्र शुक्ल पढ़ा करते थे।
यही नहीं अपने समवयस्क मित्रों – काशीप्रसाद जायसवाल, भगवानदास जी हालना, पं बदरीनाथ गौड़ और पं उमाशंकर द्विवेदी के साथ वे हिन्दी के नए – पुराने लेखकों की चर्चा करते रहते थे परिणामतः हिन्दी साहित्य की ओर उनका झुकाव बढ़ता गया।
प्रश्न 10.
‘पंचवटी वर्णन’ में कवि ने पंचवटी की किन विशेषताओं का वर्णन किया है? (2)
उत्तर :
पंचवटी गुणों में धूर्जटी (अर्थात् भगवान शिव) के समान है। यहाँ रहने वाले लोगों के दुःख नष्ट हो जाते हैं और छल – प्रपंच भी नष्ट हो जाते हैं। यहाँ जो व्यक्ति निवास करते हैं वे मृत्यु की इच्छा नहीं करते क्योंकि यहाँ सब प्रकार के सुख ही सुख हैं। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य विलक्षण है जिसका अवलोकन करने हेतु बड़े – बड़े ऋषि – मुनि भी आते हैं और उनकी समाधि भंग हो जाती है।
यहाँ रहने वाले व्यक्ति को अनायास ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है क्योंकि उसे तपस्वियों, साधुओं का सत्संग प्राप्त होता है। यही नहीं यहाँ उसे मुक्ति भी अनायास ही मिल जाती है।
प्रश्न 11.
असगर वजाहत अथवा रामचन्द्र शुक्ल में से किसी एक साहित्यकार का साहित्यिक परिचय दीजिए। (2)
उत्तर :
साहित्यिक परिचय – असगर वजाहत ने अपनी भाषा में तद्भव शब्दों के साथ – साथ उर्दू शब्दों और मुहावरों का प्रयोग किया है। इससे उनकी भाषा में सहजता और सादगी आ गई है। उनकी भाषा सशक्त, भावानुकूल तथा गम्भीरता लिये हुये प्रतीकात्मक है। लेखक ने वर्णनात्मक, विवरणात्मक शैलियों के साथ व्यंग्यात्मक शैली को भी अपनाया है। उनके व्यंग्य पैने तथा प्रभावशाली होते हैं।
- कहानी संग्रह दिल्ली पहुँचना है, स्विमिंग पूल, सब कहाँ कुछ, आधी बानी, मैं हिन्दू हूँ।
- उपन्यास – रात में जागने वाले, पहर दोपहर तथा सात आसमान, कैसी आगि लगाई।
- नाटक – फिरंगी लौट आये, इन्ना की आवाज, वीरगति, समिधा, जिस लाहौर नई देख्या।
- नुक्कड़ नाटक – सबसे सस्ता गोश्त। इसके साथ ही उन्होंने ‘गजल की कहानी’ वृत्तचित्र का निर्देशन किया है। उन्होंने ‘बूंद – बूंद’ धारावाहिक की पटकथा भी लिखी है।
प्रश्न 12.
सूरदास की झोंपड़ी में आग लगाने से भैरों के मन की कौन-सी आग ठंडी हो गई थी ? (2)
उत्तर:
भैरों ईष्यालु और शंकालु स्वभाव का मनुष्य था। भैरों सूरदास के चरित्र पर लांछन लगाता था और उससे बदला लेना चाहता था। वह उसे रोता हुआ देखना चाहता था। उसने सूरदास के रुपये चुराए और झोपड़ी में आग लगा दी। उसने जगधर से स्पष्ट कहा – कुछ भी हो, दिल की आग तो ठंडी हो गई। यह सुभागी को बहका कर ले जाने का जुर्माना है। झोंपड़ी में आग लगा देने से सूरदास से बदला लेने की उसकी आग ठंडी हो गई थी।
प्रश्न 13.
हिमांग पहाड़ पर बैलों को देखकर शेखर ने क्या पूछा? भूप दादा ने उसको क्या बताया ? (2)
उत्तर :
हिमांग पहाड़ पर बैलों को देखकर शेखर ने पूछा – भूप भैया, ये बैल यहाँ कैसे आए? भूप सिंह ने उत्तर दिया – “कैसे आए? आप ई बताओ जी। सुना, बड़ा मैंड (माइंड) रखते हैं आई एएस वाले।” शेखर कुछ इस कदर पराभूत था कि भकुआ गया। भूप ने बताया कि वह बैलों को अपने कंधों पर ढोकर लाए थे। वह अपनी दो – दो पत्नियों को कंधे पर ला सकते थे, रूप और शेखर को ला सकते थे तो बैलों को क्यों नहीं? पहले वह एक – एक कर दो छोटे बछड़ों को ऊपर लाए फिर उन्हें पालकर बड़ा किया और वे बैल बन गए।
प्रश्न 14.
मालवा के जल और अन्न से समृद्ध प्रदेश में सूखा पड़ने का उत्तरदायित्व किसका है ? (2)
उत्तर :
लेखक मानता है कि मालवा में पानी की कमी नहीं है। पुराने लोग तालाबों, बावड़ियों में पानी एकत्र करते थे। इससे गर्मी में पानी की जरूरत पूरी होती थी। आज पश्चिमी शिक्षा पद्धति से पढ़े हुए योजनाकारों तथा इंजीनियरों ने इस बात का ध्यान नहीं रखा है। वे तालाब की सफाई करके उनमें वर्षा का पानी इकट्ठा करने के स्थान पर कीचड़ – गाद भरने देते हैं। दूसरी ओर बिजली से चलने वाले पम्पों की सहायता से जमीन के अन्दर के पानी का अनावश्यक दोहन करके उसको हानि पहुँचाते हैं। लेखक की दृष्टि में यह दोषपूर्ण चिंतन ही मालवा में सूखा होने का कारण है।
प्रश्न 15.
‘निदावस्था में भी उपचेतना जागती रहती है’ ‘सूरदास की झोंपड़ी’ पार है वाधार पर इ स कीजिए। (2)
उत्तर :
मनुष्य का चेतन मस्तिष्क तो निद्रावस्था में सो जाता है, परन्तु उसका अवचेतन मस्तिष्क नहीं सोता, वह निरन्तर क्रियाशील रहता है। कोई विपत्ति आने पर यही अवचेतन मस्तिष्क उसको जगा देता है और सावधान कर देता है। सूरदास की झोंपड़ी में आग लगी तब रात के दो बजे थे। झोंपड़ी से ज्वाला उठी तब लोग जाग गए और थोड़ी देर में ही वहाँ सैकड़ों आदमी इकट्ठे हो गए। जिस समय आदमी गहरी नींद में होता है, उस समय इतने लोगों का जागकर घटनास्थल पर पहुँचना इस मनोवैज्ञानिक सत्य को प्रमाणित करता है।
खण्ड – (स)
प्रश्न 16.
‘दूसरा देवदास’ कहानी की मूल संवेदना पर प्रकाश लिए। (उत्तर-सीमा 60 शब्द) (3)
अथवा
औद्योगीकरण ने प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के आपसी संबंधों को कैसे प्रभावित किया है? ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर :
‘दूसरा देवदास’ कहानी में लेखिका ‘ममता कालिया’ ने हर की पौड़ी हरिद्वार की पृष्ठभूमि में युवा मन की भावुकता; संवेदना तथा वैचारिक चेतना को अभिव्यक्त किया है। इस कहानी का नायक संभव दिल्ली का रहो वाला एम ए पास युवक है। माता – पिता ने उसे नानी के घर हरिद्वार भेजा है जिससे वर वहाँ जाकर गंगा के दर्शन कर ले और बेखटके परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ले।
इसी उद्दे से वह हर की पौड़ी पर स्नान करने आता जहाँ पुजारी से चन्दन लगवाते समय उसकी भेंट पारो नामक लड़की से होती है। पुजारी भ्रम से उन दोनों को पति – पत्नी समझकर आशीर्वाद देता है। लड़की छिटककर उस दूर खड़ी हो जाती है। दूसरे दिन वह घाट पर गया जहाँ उसकी भेंट पारो के भतीजे मन्नू से होती है। लौटते समय उसे वह लड़की दूस केबिलकार में अपने भतीजे मन्नू के साथ दिखाई देती है। मन्नू उनका परिचय कराता है –
ये हैं मेरी पारो बुआ और ये मेरे दो ‘संभव देवदास’ कहकर संभव वाल। पूरा करता है। वास्तव में वह पारो से प्रेर करने लगा है। यह पता चलने पर कि इस लड़की का नाम पारो है वह अपना नाम बताता है – संभव देवदास। कहानी में लेखिका व प्रेम के सच्चे स्वरूप को रेखांकित किया है।
प्रश्न 17.
‘अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरुज्ञान-गटी’ इस पंक्ति के काव्य सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए। (उत्तर-सीमा 60 शब्द) (3)
अथवा
‘तोहर बिरह दिन छन-छन तनु छिन-चौदसि चाँद समान’ के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
काव्य – सौन्दर्य (भाव – पक्ष) – यहाँ पंचवटी के प्राकृतिक सौन्दर्य की प्रशंसा तो है ही साथ ही यह भी व्यंजित है कि यहाँ ऋषि – मुरि साधु – संन्यासी निवास करते हैं अतः पंचवः। में जो भी रहता है उसे इन सबका सत्संग सुलभ होता है। इनके द्वारा जो ज्ञान चर्चा यहाँ होती है उसका लाभ अनायास सबको मिलता है इसलिए पाप नष्ट हो जाते हैं और हृदय में ज्ञान प्रकट हो जाता है।
कला – पक्ष – कवि ने यहाँ शिल्प चमत्कार दिखाया है। अघओघ की बेरी में रूपक कटी बिकटी में सभंगपद यमक, बिकट निकटी प्रकटी में पदमैत्री, ज्ञान गटी में रूपक अलंकार का सौन्दर्य है। केशवदास की भाषा ब्रजभाषा है तथा यहाँ सवैया छन्द का प्रयोग किया गया है। कवि ने शब्द चमत्कार दिखाने का प्रयास इस पंक्ति में किया है। ‘टी’ के – प्रयोग से ध्वन्यात्मक सौन्दर्य प्रकट किया गया है।
प्रश्न 18.
यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी, किसके बारे में कहा गया है? क्यों? सूरदास के सन्दर्भ में आशय स्पष्ट कीजिए। (उत्तर-सीमा 80 शब्द) (4)
अथवा
शैला और भूप ने मिलकर पहाड़ पर नई जिंदगी की कहानी किस प्रकार लिखी? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (उत्तर-सीमा 80 शब्द) (4)
उत्तर :
सूरदास बैठा रहा। लोग चले गए थे और धीरे – धीरे झोंपड़ी की आग ठंडी हो गई थी। तब वह उठा और अनुमान से द्वार की ओर से झोंपड़ी में घुसा। उसने उसी दिशा में राख को टटोलना शुरू किया, जहाँ छप्पर में पोटली रखी थी। निराशा, उतावलेपन और अधीरता से उसने सारी राख छान डाली परन्तु पोटली नहीं मिली।
उसने एक – एक कर रुपये जोड़े थे। उसने सोचा था कि उन रुपयों से वह गया जाकर अपने पितरों का पिंडदान करेगा। रोटी अपने हाथों से बनाते पूरा जीवन बीत गया। अब वह अपने पौत्र मिठुआ की शादी करेगा और चैन की रोटी खायेगा। झोंपड़ी जलने से उसके सारे अरमान ही जल गए थे। यह फूस की राख उसकी इन्हीं अभिलाषाओं की राख थी।
खण्ड – (द)
प्रश्न 19.
निम्नलिखित पठित काव्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (1 + 5 = 6)
बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृद्ध कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई।
‘भावी भूत बर्तमान जगत बखानत है ‘केसोदास’ क्यों हू न बखानी काहू पै गई।
पति बनें चारमुख, पूत बर्ने पाँचमुख, नाती बनें षटमुख, तदपि नई नई।।
अथवा
सखि हे, कि पुछसि अनुभव मोए।
सेह पिरिति अनुराग बखानिअ तिल तिल नूतन होए।।
जनम अबधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।।
सेहो मधुर बोल सवनहि सूनल सुति पथ परस न गेल।।
कत मधु-जामिनि रभस गमाओलि न बूझल कइसन केलि।।
लाख लाख जुग हिअ हिअ राखल तइओ हिअ जरनि न गेल।।
कत बिदगध जन रस अनुमोदए अनुभव काहु न पेख।।
विद्यापति कह प्रान जुड़ाइते लाखे न मीलल एक।।
उत्तर:
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ आचार्य कवि केशवदास द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचन्द्र चन्द्रिका’ से ली गई हैं। इस छन्द को हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अन्तरा भाग – 2’ में ‘रामचन्द्र चन्द्रिका’ शीर्षक के अन्तर्गत संकलित किया गया है।
प्रसंग – ‘रामचन्द्र चन्द्रिका’ का प्रारम्भ करते समय कवि ने मंगलाचरण के रूप में माता सरस्वती की महिमा और उदारता का बखान किया है। कवि का मानना है कि माँ सरस्वती की महिमा और उदारता का वर्णन ऋषि, मुनि देवता तक नहीं कर सके तो भला मैं कैसे उस उदारता का पूर्ण बखान कर पाऊँगा।
व्याख्या – कवि केशवदास सरस्वती की वन्दना करते हुए कहते हैं कि संसार में इतनी प्रखर बुद्धि भला किसकी है जो जगत की पूज्य वाग्देवी सरस्वती की उदारता का वर्णन कर सके। सभी बड़े – बड़े देवता तथा तपोवृद्ध ऋषि भी उनके गुणों की प्रशंसा करते – करते थक गये, पर कोई भी उनके गुणों का पूर्णतः वर्णन न कर सका। यद्यपि उनकी महिमा का वर्णन भूतकाल के लोगों ने अपनी सामर्थ्य भर किया है, वर्तमान के लोग अपनी पूर्ण बुद्धि से कर रहे हैं और भविष्य काल के मनुष्य भी उनकी प्रशंसा करते रहेंगे, परन्तु फिर भी उनके गुणों का पूर्णतः वर्णन न हो सकेगा।
केशवदास जी कहते हैं कि संसार के कवियों की तो सामर्थ्य ही क्या है जो उनकी प्रशंसा कर सकें, उनके गुणों के पूर्ण जानकार उनके निकट सम्बन्धी भी उनकी प्रशंसा करने में असमर्थ रहे हैं। उनके पति ब्रह्मा अपने चारमुखों से, पुत्र महादेव जी अपने पाँचमुखों से तथा पौत्र (शिव के पुत्र) षडानन अपने षट मुखों से उनके गुणों की प्रशंसा करते रहे हैं, फिर भी कुछ न कुछ नई विशेषता उनसे कहने को छूट ही गयी है।
प्रश्न 20.
निम्नलिखित पठित गद्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (1 + 4 = 5)
भीड़ लड़के ने दिल्ली में भी देखी थी, बल्कि रोज देखता था। दफ्तर जाती भीड़, खरीद-फरोख्त करती भीड़, तमाशा देखती भीड़, सड़क क्रॉस करती भीड़। लेकिन इस भीड़ का अंदाज निराला था। इस भीड़ में एकसूत्रता थी। न यहाँ जाति का महत्त्व था, न भाषा का, महत्त्व उद्देश्य का था और वह सबका समान था, जीवन के प्रति कल्याण की कामना। इस भीड़ में दौड़ नहीं थी, अतिक्रमण नहीं था और भी अनोखी बात यह थी कि कोई भी स्नानार्थी किसी सैलानी आनन्द में डुबकी नहीं लगा रहा था बल्कि स्नान से ज्यादा समय ध्यान ले रहा था।
अथवा
यूरोप में पर्यावरण का प्रश्न मनुष्य और भूगोल के बीच संतुलन बनाए रखने का है भारत में यही प्रश्न मनुष्य और उसकी संस्कृति के बीच पारम्परिक संबंध बनाए रखने का हो जाता है। स्वातंत्र्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी यह रही है कि शासक वर्ग ने औद्योगीकरण का मार्ग चुना, ट्रेजेडी यह रही है कि पश्चिम की देखादेखी और नकल में योजनाएं बनाते समय-प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच का नाजुक संतुलन किस तरह नष्ट होने से बचाया जा सकता है इस ओर हमारे पश्चिम शिक्षित सत्ताधारियों का ध्यान कभी नहीं गया।
उत्तर :
संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ दूसरा देवदास’ नामक कहानी से ली गई हैं। इसकी लेखिका कहानीकार ममता कालिया हैं। यह कहानी हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अन्तरा भाग – 2’ में संकलित है।
प्रसंग – संभव दिल्ली का निवासी था और अपनी नानी के घर हरिद्वार आया था। बैसाखी के स्नान हेतु हर की पौड़ी पर जो भीड़ संभव ने देखी वह अभूतपूर्व थी और दिल्ली में रोज दिखने वाली भीड़ से अलग थी। आध्यात्मिक लक्ष्य लेकर तीर्थ स्थलों पर एकत्र होने वाली भीड़ के चरित्र का लेखक ने इस अवतरण में चित्रण किया है।
व्याख्या संभव ने भीड़ तो दिल्ली में भी देखी थी बल्कि रोज ही भीड़ – भाड़ से भरी दिल्ली वह देखता था। दफ्तर जाती भीड़, सामान खरीदती – बेचती भीड़, तमाशा देखती भीड़, सड़क पार करती भीड़ लेकिन उस भीड़ में और हर की पौड़ी हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए बैसाखी के मेले में एकत्र भीड़ में बहुत अन्तर था। इस भीड़ का अंदाज निराला था और इसमें समाए हर व्यक्ति के उद्देश्य में समानता थी। मेले में एकत्र भीड़ विभिन्न वर्गों की थी।
उनमें भाषा, धर्म, जाति का अन्तर था पर वे अन्तर यहाँ गौण हो गए थे, उद्देश्य की एकरूपता स्नान करके पुण्य लाभ कमाना – प्रमुख हो गई थी। सबके हृदय में जीवन की कल्याण कामना प्रमुख थी। दिल्ली की भीड़ दौड़ती – सी लगती, एक – दूसरे को पीछे धकिया कर स्वयं आगे निकलने की चाह वहाँ भीड़ के हर व्यक्ति के मन में रहती थी पर यहाँ एकत्र भीड़ में यह प्रवृत्ति रंचमात्र भी नहीं थी। सब लोग स्नान – ध्यान में व्यस्त थे। स्नान से भी ज्यादा वक्त ध्यान में लगाकर भीड़ के लोग अपने जीवन में कल्याण की कामना कर रहे थे।
प्रश्न 21.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर 400 शब्दों में सारगर्भित निबंध लिखिए। (6)
(अ) जीवन का सच्चा सुखः स्वाधीनता
(ब) मेरी प्रिय पुस्तक
(स) स्वच्छ भारतः स्वस्थ भारत
(द) भारतीय सेना
(य) दूरदर्शन का दुष्प्रभाव
उत्तर :
(अ) जीवन का सच्चा सुखः
स्वाधीनता
प्रस्तावना – ‘सर्वं परवशं दुःखं, सर्वमात्मवशं सुख’ परवशता में सब कुछ दुःख है और स्वाधीनता में सब कुछ सुख है। यह कथन हम प्रकृति के सारे प्राणी – जगत् के जीवन में प्रत्यक्ष देख सकते हैं। स्वतंत्रता हर प्राणी का जन्मसिद्ध अधिकार है।
पराधीनता का अभिशाप – संयोग से भारत एक ऐसी भूमि रहा है जहाँ के बारे में विदेशों में धारणा थी कि भारत सोने की चिड़िया है। बौद्ध काल में हमारे देश को लोग पानी के जहाजों, ऊँटों अथवा बैलों पर माल लेकर विदेशों में जाते थे। उस समय हमारे देश का व्यापार अरब देशों, मिस्र, बेबीलोन, मेसोपोटामिया, यूनान तथा अन्य देशों से था।
भारत की समृद्धि को देखकर यूनान के यात्री मेगस्थनीज, अरब के यात्री अबूबकर, चीन के यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग ने भारत की यात्राएँ की थीं। इस समृद्धि को लूटने के लिए यूनान के सिकन्दर, मध्य एशिया के कुषाण, हूण और शक अरब देशों के महमूद बिन कासिम से लेकर मुगलों तक के लगातार भारत पर आक्रमण होते रहे। भारत को लगभग एक हजार वर्षों तक विदेशी पराधीनता में रहना पड़ा किन्तु भारत की जीवनी – शक्ति का क्षय कभी नहीं हु आ –
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा।
जीवन सुख – स्वाधीनता जीवन का सच्चा सुख है। स्वाधीनता जीव – मात्र को प्रिय है। मनुष्य तो क्या कोई भी जीव – जन्तु, पशु – पक्षी पराधीन रहना नहीं चाहता। पशु वन में रहकर ही प्रसन्न रहते हैं। मनुष्य को भी स्वधीनता प्रिय है। पराये बंधन में रहकर मिलने वाले सुख उसे अच्छे नहीं लगते। चिड़िया पिंजड़े में रहने पर मिलने वाले दाना – पानी और सुरक्षा को पसंद नहीं करती और मौका पाते ही उड़ जाती है-
फिर भी चिड़िया, मुक्ति का गाना गायेगी मारे जाने की आशंका होने पर भी पिजड़े से जितना अंग निकाल सकेगी, निकालेगी और पिंजड़ा खुलते ही उड़ जायेगी। स्वतन्त्रता जीव मात्र का अधिकार-
दार्शनिक दृष्टि से मनुष्य ही नहीं संसार के सभी प्राणियों को स्वतन्त्रतापूर्वक रहने का अधिकार है। इसके लिए अनेक आयोग बने हुए हैं। मनुष्यों के लिए विश्वस्तर पर मानवाधिकार आयोग है जो धरती के हर देश में संयुक्त राष्ट्रसंघ की देख – रेख में मानवों के अधिकार की रक्षा करने का कार्य करता है। इसी प्रकार वन्यजीवों की रक्षा हेतु भी आयोग बने हुए हैं।
कोई भी व्यक्ति आज पशु – पक्षियों को भी परतन्त्र नहीं बना सकता। सर्कस में कार्य करने वाले पशुओं को लेकर आयोग सदैव सक्रिय रहता है। शेर, रीछ, वानर आदि के खेल दिखाने पर पाबन्दी है। इस प्रकार संसार का हर प्राणी स्वाधीन रहने का अधिकारी है।
उपसंहार – लोकमान्य तिलक ने कहा था”स्वतन्त्रता मेरा जन्म – सिद्ध अधिकार है।” इस अधिकार के अन्तर्गत मानव मात्र ही नहीं वरन् पशु – पक्षी भी आते हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सारे विश्व को एक गाँव में परिवर्तित कर दिया है। सारा संसार आज स्वतन्त्रता का सुख भोग रहा है।
छोटे से छोटा देश भी बिना सेना और हथियारों के स्वतन्त्रता का अधिकारी है। मानव संसार का बुद्धिमान प्राणी है, उसने सारे संसार के सभी जीवों को स्वतंत्रता का सुख भोगने का अधिकारी बना दिया है।
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