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RBSE Class 12 Physics Board Model Paper 2022 with Answers in Hindi
पूर्णांक : 56
समय : 2 घण्टे 45 मिनट
सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों के आंतरिक खण्ड हैं उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
प्रश्न 1.
बहुविकल्पीय प्रश्न-निम्न प्रश्नों के उत्तर का सही विकल्प चयन कर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए-
(i) निर्वात की विद्युतशीलता का मात्रक है- [1]
(अ) C2N1m-2
(ब) C2N-1m-2
(स) C-2N-1m-2
(द) C1N-1m-2
उत्तर:
(ब) C2N-1m-2
(ii) परावैद्युत पदार्थ होते हैं- [1]
(अ) चालक
(ब) अचालक
(स) अर्द्धचालक
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) अचालक
(iii) चित्र में प्रदर्शित कार्बन प्रतिरोध का मान ओम में होगा- [1]
(अ) 420 ± 10%
(ब) 240 ± 10%
(स) 420 ± 5%
(द) 240 ± 5%
उत्तर:
(स) 420 ± 5%
(iv) एक विद्युत आवेश q समान वेग v से चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा में गति कर रहा है। आवेश पर कार्यरत चुम्बकीय बल होगा- [1]
(अ) q v B
(ब) शून्य
(स) q v/B
(द) B v/q
उत्तर:
(ब) शून्य
(v) “प्रेरित विद्युत वाहक बल का परिणाम, चुम्बकीय फ्लक्स में समय के साथ होने वाली परिवर्तन दर के बराबर होता है।” यह नियम दिया गया है- [1]
(अ) लेन्ज द्वारा
(ब) एम्पियर द्वारा
(स) फैराडे द्वारा
(द) हेनरी द्वारा
उत्तर:
(स) फैराडे द्वारा
(vi) आइन्सटीन का प्रकाश विद्युत समीकरण है- [1]
(अ) hv = \(\frac { 1 }{ 2 }\) \(m v_{m}^{2}\) – Φo
(ब) hv = \(\frac { 1 }{ 2 }\) \(m v_{m}^{2}\) + Φo
(स) \(\frac { 1 }{ 2 }\) \(m v_{m}^{2}\) – eVo
(द) Φo = hvo
उत्तर:
(ब) hv = \(\frac { 1 }{ 2 }\) \(m v_{m}^{2}\) + Φo
(vii) दो विभिन्न नाभिकों की द्रव्यमान संख्याएँ 3 व 81 हैं तो उनकी त्रिज्याओं का अनुपात है- [1]
(अ) 3 : 81
(ब) 81 : 3
(स) 1 : 3
(द) 3 : 1
उत्तर:
(स) 1 : 3
(viii) निम्न में से ग्राही अशुद्धि है- [1]
(अ) आर्सेनिक
(ब) इंडियम
(स) एन्टीमनी
(द) फॉस्फोरस
उत्तर:
(ब) इंडियम
(ix) निम्न में से सार्वत्रिक गेट है- [1]
(अ) AND
(ब) OR
(स) NOR
(द) NOT
उत्तर:
(स) NOR
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) समान्तर पट्ट संधारित्र की धारिता का मान निर्वात में C है। प्लेटों के मध्य K परावैद्युतांक वाला पदार्थ पूर्णतः भरने पर धारिता का नया मान ………………………. होगा। [1]
(ii) अर्द्धचालक पदार्थ की प्रतिरोधकता, ताप बढ़ाने पर …………………. करता है। [1]
(iii) लेन्ज का नियम ………………………… संरक्षण नियम का पालन करता है। [1]
(iv) वोल्टता नियन्त्रक के रूप में …………………. डायोड का उपयोग होता है। [1]
उत्तर:
(i) KC
(ii) घटती
(iii) ऊर्जा
(iv) जेनर
प्रश्न 3.
निम्न प्रश्नों के उत्तर एक पंक्ति में दीजिए-
(i) विभवमापी की सहायता से दो प्राथमिक सेलों के विद्युत वाहक बलों की तुलना के लिए परिपथ चित्र बनाइये। [1]
उत्तर:
(ii) एक गैल्वेनोमीटर को वोल्टमीटर में कैसे परिवर्तित करेंगे? [1]
उत्तर:
कीलकित कुण्डली धारामापी के साथ श्रेणीक्रम में एक उपयुक्त मान का उच्च प्रतिरोध (RH = \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{I}_{\mathrm{g}}}\) – G) संयोजित कर दिया जाए तो वह उचित परास के वोल्टमीटर में रूपान्तरित हो जाती है।
(iii) निम्न चित्र में दो कंडली AB व CD के बीच एक छड़ चुम्बक NS को तीर की दिशा में चलाने पर किस कुंडली में प्रेरित धारा बायीं ओर से देखने पर वामावर्ती होगी?
उत्तर:
कुण्डली AB का सिरा B, दक्षिणी ध्रुव S बनना चाहिए तथा कुण्डली CD का C सिरा दक्षिणी ध्रुव बनेगा। तब कुण्डली. AB में प्रेरित धारा वामावर्ती होगी।
(iv) कण की तरंग प्रकृति का समर्थन करने वाले प्रयोग का नाम लिखिए। [1]
उत्तर:
डेविसन-जर्मर का प्रयोग
(v) एक प्रोटॉन व एक अल्फा कण की गतिज ऊर्जा समान है। इनमें से किस कण की दे ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य कम होगी? [1]
उत्तर:
दे ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य λ = \(\frac{h}{\sqrt{2 m E}}\)
E समान है तथा mp < mα
अत: α कण की ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य कम होगी।
(vi) नाभिकीय विखण्डन व नाभिकीय संलयन में अन्तर लिखिए। [1]
उत्तर:
किसी नाभिक के दो या दो से अधिक हल्के नाभिकों में टूटने की प्रक्रिया नाभिकीय विखंडन कहलाती है। जबकि इसके विपरीत हल्के नाभिकों के परस्पर संयुक्त होकर एक भारी नाभिक की रचना नाभिकीय संलयन है।
(vii) प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा व द्रव्यमान संख्या में आलेख बनाइए।
उत्तर:
(viii) चित्र P व सारणी Q से संबंधित तार्किक द्वारों के नाम लिखिए। [1]
उत्तर:
चित्र-POR AND गेट दर्शाता है।
सारणी Q NAND गेट की सत्यता सारणी है।
खण्ड – (ब)
प्रश्न 4.
बिन्दु आवेश के कारण आवेश से r दूरी पर विद्युत विभव ज्ञात करने का व्यंजक प्राप्त कीजिए। [1½]
उत्तर:
बिन्दु A पर धन परीक्षण आवेश (+ qo) पर लगने वाला वैद्युत बल
F = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q \cdot q_{0}}{x^{2}}\)
इस बल के विरुद्ध परीक्षण आवेश को dx विस्थापन देने में कृत कार्य
dW = \(\overrightarrow{\mathrm{F}} \cdot d x\) = F.dx.cos 180° = F.dx (- 1)
> dW = – Fdx
अतः + q आवेश को अनन्त से P बिन्दु तक लाने में कृत कार्य
बोर्ड नमूना प्रश्न-पत्र-2022 (हल सहित)
प्रश्न 5.
दिये गये चित्र में A व B के मध्य संयोजित संधारित्रों की तुल्य धारिता ज्ञात कीजिए। [1½]
उत्तर:
μF के दो संधारित्र समांतर क्रम में जुड़े हैं। अतः तुल्य धारिता C’ = 5 + 5 = 10 μF
C’ व 10Ω का संधारित्र श्रेणी क्रम में है। अत: संयोजन की तुल्य धारिता Ceq हो तो
\(\frac{1}{\mathrm{C}_{\text {eq }}}=\frac{1}{10}+\frac{1}{10}=\frac{2}{10}\)
अत: Ceq = 5μF
प्रश्न 6.
सेल की टर्मिनल वोल्टता (V) व विद्युत वाहक बल (E) में दो अन्तर लिखिए। [1½]
उत्तर:
(1) विद्युत परिपथ भंग होने पर टर्मिनल वोल्टता का अस्तित्व समाप्त हो जाता है जबकि विद्युत वाहक बल का अस्तित्व सदैव रहता है।
(2) परिपथ के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच की टर्मिनल वोल्टता उन दोनों बिन्दुओं के बीच लगे प्रतिरोध के मान पर निर्भर करता है। जबकि सेल का विद्युत वाहक बल परिपथ के प्रतिरोध पर निर्भर नहीं करता है।
प्रश्न 7.
मीटर सेतु की संतुलन अवस्था में दिये गये परिपथ चित्र में अज्ञात प्रतिरोध S का मान ज्ञात कीजिए। [1½]
उत्तर:
प्रश्नानुसार, R = 4 Ω, l = 40 सेमी
सूत्र 5 = (\(\frac{100-l}{l}\))R से
S = (\(\frac{100-40}{40}\)) × 4 = \(\frac{60}{40}\) × 4 = 6 Ω
प्रश्न 8.
‘l’ लम्बाई की एक चालक छड़, समरूपचुम्बकीय क्षेत्र ‘B’ में नियत रेखीय चाल ‘v’ से गतिमान है। यह व्यवस्था परस्पर लम्बवत है। गतिक विद्युत वाहक बल का व्यंजक प्राप्त कीजिए। [1½]
उत्तर:
चित्र में (×) चिह्न द्वारा कागज के तल के लम्बवत् नीचे की ओर दिष्ट एक समरूप चुम्बकीय क्षेत्र B प्रदर्शित किया गया है। इस चुम्बकीय क्षेत्र में । लम्बाई का एक चालक PQ (कागज के तल में) क्षेत्र के लम्बवत् v वेग से चलाया जाता है, अतः चालक में मौजूद प्रत्येक आवेश भी चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र के लम्बवत् v वेग से गतिशील होगा।
चालक में किसी आवेश q पर लगने वाला चुम्बकीय बल
Fm = qvB. sin90°,
⇒ Fm = qvB (∵ sin 90° = 1)
फ्लेमिंग के बायें हाथ के नियमानुसार यह बल धनावेश पर चालक के P सिरे की ओर एवं ऋणावेश पर Q सिरे की ओर लगेगा। फलस्वरूप P सिरा धनावेशित एवं Q सिरा ऋणावेशित हो जायेगा। इस प्रेरित आवेश के कारण चालक के सिरों के मध्य एक प्रेरित विभवान्तर e उत्पन्न हो जायेगा। इसको गतिक विद्युत वाहक बल भी कहते हैं। इस विभवान्तर के कारण चालक के अन्दर एक विद्युत् क्षेत्र (E) सिरे P से Q की ओर उत्पन्न हो जायेगा जो चुम्बकीय बल Fm के विपरीत एक वैद्युत बल Fe प्रत्येक आवेश पर लगायेगा।
∴ Fe = qE तथा E = e/l
जब ये दोनों बल Em तथा Fe परिमाण में बराबर हो जाते हैं तो आवेश पर परिणामी बल शून्य हो जाता है और फलस्वरूप आवेश का स्थानान्तरण रुक जाता है तथा चालक के सिरों के मध्य नियत विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है, अत: सन्तुलन की स्थिति में
Fe = Fm
⇒ qE = qvB ⇒ E = vB
⇒ \(\frac{e}{l}\) = vB
⇒ e = vBl
प्रश्न 9.
किसी परिपथ में 0.1 सेकण्ड में धारा 5 ऐम्पियर से शून्य तक गिरती है। यदि औसत प्रेरित विद्युत वाहक बल 100 वोल्ट है तो परिपथ के स्वप्रेरकत्व की गणना कीजिए। [1½]
उत्तर:
प्रश्नानुसार समयान्तराल dt = 0.1 सेकण्ड
धारा परिवर्तन dI = 0 – 5 = – 5 ऐम्पियर
E हम जानते हैं स्वप्रेरकत्व L = – \(\frac{\mathrm{E}}{\mathrm{dI} / \mathrm{dt}}\)
L = – \(\frac{100}{-5 / 0.1}\) = 2 हेनरी
प्रश्न 10.
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन को परिभाषित कीजिए। इस पर आधारित किन्हीं दो घटनाओं के नाम लिखिए। [1½]
उत्तर:
पूर्ण आंतरिक परावर्तन-जब कोई प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो वह अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है। जैसे-जैसे आपतन कोण में वृद्धि होती है अपवर्तन कोण में भी वृद्धि होती जाती है। एक स्थिति में अपवर्तन कोण का मान 90° हो जाता है। यदि आपतन कोण में इससे अधिक वृद्धि होती है तो आपतित किरण पूर्णतः परावर्तित हो जाती है। इसे पूर्ण आन्तरिक रा परावर्तन कहते हैं।
पूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटनाएँ-
(i) रेगिस्तान में मरीचिका स
(ii) हीरे का चमकना
प्रश्न 11.
प्राथमिक व द्वितीयक इन्द्रधनुष में कोई तीन अन्तर लिखिए। [1½]
उत्तर:
प्राथमिक इन्द्रधनुष | द्वितीयक इन्द्रधनुष |
1. ऊपरी किनारे पर लाल रंग होता है। | 1. बाहरी किनारे पर बैंगनी रंग होता है। |
2. आन्तरिक किनारे पर बैंगनी रंग होता है। बैंगनी रंग की किरण सूर्य की किरणों से 41° का कोण बनाती है। | 2. आन्तरिक किनारे पर लाल रंग होता है। लाल रंग की किरण सूर्य की किरणों से 51° का कोण बनाती है। |
3. बाकी सारे रंग लाल और बैंगनी रंगों के बीच होते हैं जो 2° की परास में होते हैं। | 3. बाकी सारे रंग बैंगनी और लाल रंगों के बीच में होते हैं जो 3° की परास में होते हैं। |
प्रश्न 12.
गोलीय दर्पण के लिए फोकस दूरी (f) व वक्रता त्रिज्या (R) में संबंध स्थापित कीजिए। [1½]
उत्तर:
माना गोलीय दर्पण के रूप में अवतल दर्पण लें तो उसके लिए व्यंजक इस प्रकार हैं-चित्रानुसार, OA आपतित किरण एवं AF परावर्तित किरण है। AN मुख्य अक्ष पर अभिलम्ब है। f फोकस दूरी एवं R वक्रता त्रिज्या है। परावर्तन के नियम से,
∠i = ∠r = θ (मान लिया) .
∴ ∠OAF = i + r = θ + θ = 2θ
और ∠OAF = ∠AFP = 2θ
(क्योंकि दोनों एकान्तर कोण हैं)
इसी प्रकार ∠OAC = ∠ACP = θ (∵ एकान्तर कोण)
समकोण ΔANC में,
tan θ = \(\frac{\mathrm{AN}}{\mathrm{CN}}\)
यदि कोण θ अत्यन्त छोटा है, तो
(i) tan θ ≈ θ और (ii) N व P सम्पाती होंगे।
∴ θ = \(\frac{\mathrm{AN}}{\mathrm{CP}}=\frac{\mathrm{AN}}{\mathrm{R}}\) …………… (1)
इसी प्रकार समकोण ΔANF में,
tan 2θ = \(\frac{\mathrm{AN}}{\mathrm{FN}}\)
यदि 2θ छोटा है, तो
(i) tan 2θ ≈ 2θ और (ii) N व P सम्पाती होंगे।
अतः 2θ = \(\frac{\mathrm{AN}}{\mathrm{FP}}=\frac{\mathrm{AN}}{f}\) ……………. (2)
समी. (1) व (2) से,
2θ = \(\frac{2 \mathrm{AN}}{\mathrm{R}}=\frac{\mathrm{AN}}{f}\)
⇒ \(\frac{2}{\mathrm{R}}=\frac{1}{f}\) ⇒ 2f = R
⇒ f = \(\frac{\mathrm{R}}{2}\)
अतः स्पष्ट है कि गोलीय दर्पण की फोकस दूरी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है।
प्रश्न 13.
एक दूरदर्शी के अभिदृश्यक व नेत्रिक की.फोकस दूरियाँ क्रमशः 192 सेमी व 8 सेमी हैं। इसकी आवर्धन ‘क्षमता तथा दोनों लेंसों के बीच दूरी ज्ञात कीजिए। [1½]
उत्तर:
दिया है: अभिदृश्यक की फोकस दूरी f0 = 192 सेमी.
नेत्रिका की फोकस दूरी fe = 8 सेमी .
∴ आवर्धन क्षमता m =- \(\frac{f_{0}}{f_{e}}\) = – \(\frac{192}{8}\) = -24
8 दोनों लेंसों के बीच दूरी l = f0 + fe = 192 + 8 = 200 सेमी
प्रश्न 14.
नाभिकीय रिएक्टर में मंदक, शीतलक व नियंत्रक छड़ का कार्य लिखिए। [1½]
उत्तर:
मंदक-नाभिकीय रिएक्टर में 92U235 के विखंडन के लिए मन्दगामी (1 eV ऊर्जा वाले) न्यूट्रॉनों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार श्रृंखला अभिक्रिया को जारी रखने के लिए न्यूट्रानों की ऊर्जा कम करना आवश्यक होता है। इसके लिए तीव्रगामी न्यूट्रॉनों को मन्दक पदार्थ से गुजारकर उन्हें मन्दगामी न्यूट्रॉनों में बदल लिया जाता है।
शीतलक-विखण्डन के फलस्वरूप अत्यधिक मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है जिसे शीतलक द्वारा दूर किया जाता है।
नियंत्रक छड़ें-नाभिकीय विखंडन की दर को नियंत्रित करने के लिए न्यूट्रॉनों की संख्या को नियंत्रित किया जाता है और कैडमियम न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेता है। अतः विखण्डन की दर को नियंत्रित करने के लिए कैडमियम की छड़ें प्रयोग की जाती हैं।
प्रश्न 15.
एक रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श में सक्रिय नाभिकों की संख्या 6 घण्टे में अपने प्रारम्भिक मान की 6.25% रह जाती है। रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्ध आयु ज्ञात कीजिए। [1½]
उत्तर:
दिया है- t = 6 घंटे
खण्ड – (स)
प्रश्न 16.
बायो-सेवर्ट नियम की सहायता से धारावाही वृत्ताकार पाश (कुण्डली) की अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक प्राप्त कीजिए। आवश्यक चित्र बनाइए। [2 + 1 = 3]
अथवा
एम्पियर के परिपथीय नियम की सहायता से धारावाही टोराइड के कारण उसके अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक प्राप्त कीजिए। आवश्यक चित्र बनाइए। [2 + 1 = 3 ]
उत्तर:
वृत्ताकार धारावाही कुण्डली के अक्ष पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र
माना R त्रिज्या की एक वृत्ताकार कुण्डली में I धारा प्रवाहित हो रही है। कुण्डली में तार के N फेरे हैं। कुण्डली के केन्द्र O से x दूरी पर अक्षीय स्थिति में एक बिन्दु P पर हमें चुम्बकीय क्षेत्र ज्ञात करना है। P पर कुण्डली द्वारा अन्तरित अर्द्ध-शीर्ष कोण θ है। पहले हम एक लूप पर विचार करते हैं। माना लूप के व्यास NM के बिन्दुओं N व M पर समान लम्बाई वा के दो अल्पांश हैं। इन अल्पांशों की बिन्दु P से दूरी यदि । हो तो N पर स्थित अल्पांश के कारण P पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र
dB1 = \(\frac{\mu_{0}}{4 \pi} \frac{\mathrm{I} d l \sin 90^{\circ}}{r^{2}}\)
= \(\frac{\mu_{0}}{4 \pi} \frac{I d l}{r^{2}}\)
इसी प्रकार M पर स्थित समान लम्बाई के अल्पांश के कारण P पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र
dB1 = \(\frac{\mu_{0}}{4 \pi} \frac{\mathrm{I} d l \sin 90^{\circ}}{r^{2}}\)
= \(\frac{\mu_{0}}{4 \pi} \frac{I d l}{r^{2}}\)
चित्र से स्पष्ट है कि केन्द्र O के दोनों ओर सममिति में लिए गए समान लम्बाई (dl) के दो अल्पांशों द्वारा बिन्दु P पर समान परिमाण के चुम्बकीय क्षेत्र dB1 व dB2 उत्पन्न होते हैं। इन दोनों के निरक्षीय घटक dB1 cos θ एवं dB2 cos θ परिमाण में समान एवं दिशा में विपरीत होने के कारण एक-दूसरे को निष्प्रभावित कर देते हैं और अक्षीय घटक
dB1 sin θ एवं dB2 sin θ जुड़कर चुम्बकीय क्षेत्र प्रदान करते हैं। इस प्रकार चुम्बकीय क्षेत्र केवल अक्षीय घटक dB sin θ के कारण ही मिलता है।
∴ बिन्दु P पर पूरे लूप के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र
∵ कुण्डली में N फेरे हैं, अतः कुण्डली की अक्ष पर उसके केन्द्र से x दूरी उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र
B = \(\frac{\mu_{0} N I R^{2}}{2\left(R^{2}+x^{2}\right)^{3 / 2}}\)
अथवा
एक लम्बी परिनालिका को मोड़कर जब वृत्ताकार रूप दे दिया जाता है तो उसे टोरॉइड कहते हैं।
माना टोरॉइड की प्रति एकांक लम्बाई में n फेरे हैं तथा इसमें प्रवाहित धारा I है। धारा बहने के कारण टोरॉइड के फेरों के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। टोरॉइड के भीतर चुम्बकीय बल रेखाएँ संकेन्द्री वृत्तों (concentric circles) के रूप में होती हैं।
(i) टोरॉइड की क्रोड (core) के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र-माना । त्रिज्या का एक वृताकार पथ है जो टोरॉइड के फेरों के बीच के क्षेत्र में
स्थित है। इस वृत्तीय पथ पर ऐंम्पीयर के परिपथीय नियम मे,
\(\oint \overrightarrow{\mathrm{B}} \cdot \overrightarrow{d l}\) = µ0 × (बन्द परिपथ में बहने वाली कुल धारा)
बन्द परिपथ में बहने वाली कुल धारा
= टोरॉइड में फेरों की संख्या × प्रवाहित धारा
= n × 2πr × I
= 2πrnI
∴ हम जानते हैं कि
\(\oint \vec{B} \cdot \vec{d}\) = μ0 × 2πrnI
∵ \(\vec{B}\) व \(\overrightarrow{d l}\) एक ही दिशा में हैं, अतः
\(\oint \mathrm{B} \cdot d l \cdot \cos 0^{\circ}\) = μ0.2πrnI
या \(\mathrm{B} \oint d l\) = μ0.2πrnI
∵ \(\oint d l\) = 2πr
∴ B.2πr = μ0.2πr.nI
या B = μ0nI
यदि टोरॉइड में फेरों की संख्या N हो, तो
n = \(\frac{\mathrm{N}}{2 \pi r}\)
∴ B = μ0\(\frac{\mathrm{NI}}{2 \pi r}\)
प्रश्न 17.
किसी गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन हेतु बिम्ब दूरी (u), प्रतिबिम्ब दूरी (v) माध्यमों के अपवर्तनांकों (n1, n2) और त्रिज्या (R) में संबंध
\(\)
की व्युत्पत्ति कीजिए। आवश्यक किरण चित्र बनाइए। [2 + 1 = 3]
अथवा
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्रतिबिम्ब बनने का किरण चित्र बनाइए। इसकी कोणीय आवर्धन का सूत्र व्युत्पन्न कीजिए जबकि अंतिम प्रतिबिम्ब, स्पष्ट देखने की न्यूनतम दूरी (D) पर बनता है। [3]
उत्तर:
गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन का सूत्र-माना AB एक अवतल गोलीय पृष्ठ है जिसके बायीं ओर विरल माध्यम (1) एवं दायीं ओर सघन माध्यम (2) है। P ध्रुव एवं C वक्रता केन्द्र है। मुख्य अक्ष पर रखी वस्तु o का आभासी प्रतिबिम्ब I बनता है। MP’ मुख्य अक्ष पर अभिलम्ब है।
अब स्नेल के नियम से,
n21 = \(\) n = \(\)
यदि माना
n21 = n तब
n2/n1 = n
i व r छोटे हैं तो sin i ≈ i व sin r ≈ r
∴ n = \(\)
⇒ i = nr …………….. (1)
∵ त्रिभुज में बहिष्कोण सामने के अन्त:कोणों के योग के बराबर होता है।
∴ ΔMOC से,
α + i = γ
⇒ i = (γ – α) …………….. (2)
इसी प्रकार ΔMIC से,
r + β = γ
∴ r = (γ – β) ………….. (3)
समी. (2) व (3) से समी. (1) में मान रखने पर,
(γ – α) = n (γ – β) …………….. (4)
यदि बिन्दु M मुख्य अक्ष से अधिक दूर नहीं है तो P व P’ सम्पाती होंगे और α, β, γ छोटे होंगे।
इस सूत्र को अवतल पृष्ठ का अपवर्तन सूत्र कहते हैं।
अथवा
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्रतिबिम्ब बनने की प्रक्रिया निम्न किरण आरेख में प्रदर्शित की गई है-
AB एक सूक्ष्म वस्तु है जिसका प्रतिबिम्ब अभिदृश्यक द्वारा बड़ा, उल्टा, वास्तविक A’B’ बनता है। यही प्रतिबिम्ब अभिनेत्र लेन्स के लिए वस्तु का कार्य करता है, अतः अभिनेत्र लेन्स को इतमा आगे या पीछे खिसकाते हैं कि यह प्रतिबिम्ब अभिनेत्र लेन्स के फोकस के अन्दर आ जाये। इस स्थिति में A’B’ का सीधा, बड़ा एवं काल्पनिक (virtual and magnified) प्रतिबिम्ब अभिनेत्र लेन्स के इसी ओर A’B’ बन जाता है। यही अन्तिम प्रतिबिम्ब होता है।
कोणीय आवर्धन के सूत्र का निगमन-परिभाषानुसार इस प्रकार है-
यह अभीष्ट व्यंजक है।
प्रश्न 18.
(i) प्रकाश विद्युत प्रभाव को परिभाषित कीजिए।
(ii) एक समान तीव्रता व भिन्न-भिन्न आवृत्तियों के दो आपतित विकिरणों से प्राप्त प्रकाश विद्युत धाराओं का संग्राही पट्टिका विभव के साथ ग्राफ बनाइए।
(iii) एक सीजियम धातु का कार्यफलन 3.31 × 1.6 × 10-19 जूल है। उसकी देहली आवृत्ति का मान ज्ञात कीजिए।
[1 + 1 + 1 = 3]
अथवा
(i) निरोधी विभव को परिभाषित कीजिए।
(ii) एक समान आवृत्ति व भिन्न-भिन्न तीव्रताओं के दो आपतित विकिरणों से प्राप्त प्रकाश विद्युत धाराओं का संग्राही पट्टिका विभव के साथ ग्राफ बनाइए।
(iii) 100 वोल्ट विभवान्तर के त्वरित इलेक्ट्रॉन से सम्बद्ध दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य की गणना कीजिए। [1 + 1 + 1 = 3]
उत्तर:
(i) प्रकाश विद्युत प्रभाव-उचित आवृत्ति (देहली आवृत्ति से अधिक आवृत्ति) का प्रकाश धातु कैथोड पर आपतित होने पर इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन की घटना प्रकाश विद्युत प्रभाव कहलाती है।
(ii)
(iii) कार्यफलन Φo = 3.31 × 1.6 × 10-19 जूल
Φo = hvo ⇒ vo = \(\frac{\phi_{0}}{\mathrm{~h}}\)
vo = \(\frac{3.31 \times 1.6 \times 10^{-19} \mathrm{~J}}{6.63 \times 10^{-34} \mathrm{JS}}\)
vo = 8 × 1014 Hz.
अथवा
(i) निरोधी विभव-वह मन्दक विभव जो अधिकतम गतिज ऊर्जा के इलेक्ट्रॉन को ऐनोड पर पहुँचने से रोक देता है, निरोधी विभव कहलाता है। इसे V0 से व्यक्त करते हैं।
∴ Kmax = \(\frac{1}{2} m v_{\max }^{2}\) = V0.e
या
V0 = \(\frac{m v_{\max }^{2}}{2 e}\)
(ii)
(iii) दिया है,
विभवान्तर V = 100 वोल्ट
दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य λ = ?
द्रव्यमान M = 9.1 × 10-31 किग्रा
आवेग e = 1.6 × 10-19 कूलॉम
प्लांक नियतांक h = 6.625 × 10-34 जूल सेकण्ड
खण्ड – (द)
प्रश्न 19.
विद्युत द्विध्रुव को परिभाषित कीजिए। विद्युत द्विध्रुव के कारण उसके विषुवतीय तल पर स्थित किसी बिन्दु परिणामी विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक प्राप्त कीजिए। आवश्यक चित्र बनाइए। [1 + 2 + 1 = 4]
अथवा विद्युत क्षेत्र की तीव्रता को परिभाषित कीजिए। गॉउस के नियम की सहायता से अनन्त लम्बाई के एकसमान आवेशित सीधे तार के कारण किसी बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक व्युत्पन्न कीजिए। आवश्यक चित्र बनाइए। [4]
उत्तर:
वैद्युत द्विध्रुव-जब परिमाण में समान किन्तु प्रकृति में विपरीत दो आवेश किसी अल्प दूरी पर रखे होते हैं तो वे वैद्युत द्विध्रुव की रचना करते हैं। व्यंजक का निगमन-वैद्युत द्विध्रुव की निरक्षीय स्थिति में दूरी पर स्थित बिन्दु P पर विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है। बिन्दु P से दोनों आवेशों की दूरियाँ समान (\(\sqrt{r^{2}+l^{2}}\)) होंगी। अत: P पर +g आवेश के कारण उत्पन्न विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता का परिमाण
E1 = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q}{\left(r^{2}+l^{2}\right)}\) (AP दिशा में)
और -q आवेश के कारण P पर उत्पन्न विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता का परिमाण
E2 = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q}{\left(r^{2}+l^{2}\right)}\) (PB दिशा में)
इस प्रकार \(\left|\overrightarrow{E_{1}}\right|=\left|\overrightarrow{E_{2}}\right|\)
या E1 = E2
बिन्दु P पर परिणामी विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता
\(\overrightarrow{\mathrm{E}}=\overrightarrow{\mathrm{E}_{1}}+\overrightarrow{\mathrm{E}_{2}}\)
समान्तर चतुर्भुज के नियम से परिणामी विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता का परिमाण
यहाँ 2q R = P (द्विध्रुव आघूर्ण) है। यही अभीष्ट व्यंजक है।
अथवा
वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता-वैद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर एकांक धनावेश पर कार्य करने वाला बल ही उस बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता के बराबर होता है, अतः
\(\overrightarrow{\mathrm{E}}=\frac{\overrightarrow{\mathrm{F}}}{q_{0}}\) NC-1
जहाँ \(\vec{F}\), धन परीक्षण (test) अवेश (+ q0) पर लगने वाला बल है।
अनन्त लम्बाई के एकसमान आवेशित सीधे तार के कारण विद्युत क्षेत्र
माना AB एक अनन्त लम्बाई का सीधा तार है जिसकी एकांक लम्बाई पर आवेश अर्थात् आवेश का रेखीय घनत्व λ है। इस रेखीय आवेश से r दूरी पर स्थित बिन्दु P पर विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करने है।
अब P बिन्दु पर विद्युत् क्षेत्र ज्ञात करने के लिए! लम्बाई एवं r त्रिज्या के एक बेलाकार गाउसीय पृष्ठ की कल्पना करते हैं जिसके बेलनाकार पृष्ठ पर बिन्दु P स्थित है।
चूँकि आवेश का रेखीय घनत्व λ है, अतः गाउसीय पृष्ठ द्वारा परिबद्ध आवेश
q = λ.l
फ्लक्स की परिभाषानुसार,
Φ = \(\oint_{\mathrm{S}} \overrightarrow{\mathrm{E}} \cdot d \overrightarrow{\mathrm{S}}=\oint_{\mathrm{S}} \mathrm{E} d \mathrm{~S} \cos \theta\) …………….. (1)
समीकरण (i) को हल करने के लिए गाउसीय पृष्ठ को निम्न तीन भागों में बाँट सकते हैं-
(i) बेलनाकार पृष्ठ S1 जिस पर विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता हर जगह समान है एवं θ = 0° ∴ cos 0° = 1
(ii) सूक्ष्म पृष्ठ S2 जहाँ वैद्युत क्षेत्र पृष्ठ के अनुदिश है अत: θ = 90° .:. cos 90° = 0
(iii) सूक्ष्म पृष्ठ S3 जहाँ θ = 90° ∴ cos 90° = 0 अतः समी. (1) से,
समीकरण (2) व (3) की तुलना करने पर
E.2πrl = \(\frac{\lambda l}{\varepsilon_{0}}\)
⇒ E = \(\frac{1}{2 \pi \varepsilon_{0}} \times \frac{\lambda}{r}\)
⇒ E = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \cdot \frac{2 \lambda}{r}\)
यही अभीष्ट व्यंजक है।
प्रश्न 20.
दिष्टकरण से क्या तात्पर्य है? परिपथ चित्र बनाकर PN संधि डायोड के पूर्ण तरंग दिष्टकारी परिपथ की कार्यविधि समझाइए। निवेशी व निर्गत वोल्ट के तरंग रूप का निरूपण भी कीजिए। [1 + 1 + 1 + 1 = 4]
अथवा
PN संधि डायोड के पश्च दिशिक बायसिंग से क्या तात्पर्य है? PN संधि डायोड की पश्च दिशिक बायसिंग में अभिलाक्षणिक वक्र प्राप्त करने का परिपथ चित्र बनाकर इसके लिए कार्यविधि समझाइए। पश्च दिशिक बायसिंग में V-I अभिलाक्षणिक वक्र भी बनाइए। [1 + 1 + 1 + 1 = 4]
उत्तर:
दिष्टकराण-प्रत्यावती धारा को दिष्ट धारा में बदलने की क्रिया दिष्टकरण कहलाती है और इसके लिए प्रयुक्त उपकरण दिष्टकारी कहलाता है।
पूर्ण तरंग दिष्टकारी- यह दिष्टकारी प्रत्यावर्ती वोल्टता की पूरी तरंग को वोल्टता में बदलता है। इसमें दो अर्द्ध-चालक डायोड नीचे दिए गए चित्र की भाँति प्रयोग में लाये जाते हैं।
कार्य विधि-निवेशी वोल्टता के प्रथम अर्द्ध-चक्र में जब ट्रान्सफॉर्मर की द्वितीयक AB का A सिरा धनात्मक विभव पर और B सिरा ऋणात्मक विभव पर होता है तो डायोड D1 अग्र अभिनत होता है और D2 उत्क्रम अभिनत होता है अतः D1 से होकर धारा बहती है और D2 बन्द रहता है। प्रत्यावर्ती वोल्टता (निवेशी वोल्टता) के द्वितीय अर्द्ध-चक्र में द्वितीयक AB की ध्रुवता बदलती है अर्थात् A सिरा ऋणात्मक विभव पर और B सिरा धनात्मक विभव पर हो जाता है तो डायोड D1 उत्क्रम अभिनत होकर धारा देना बन्द कर देता है और D2 अग्र अभिनत होकर धारा देने लगता है। यही क्रिया प्रत्येक चक्र में दोहरायी जाती है। धारा चाहे D1 से होकर बहे अथवा D2 से होकर बहे लेकिन लोड प्रतिरोध RL में धारा की दिशा C से D की ओर ही रहती है। इस प्रकार प्रत्यावर्ती वोल्टता की पूरी तरंग दिष्ट वोल्टता में बदल जाती है।
निवेशी तथा निर्गत वोल्टता के तरंग रूप का निरूपण इस प्रकार है-
अथवा
PN संधि डायोड की पश्च दिशिक बायसिंग
जब एक PN संधि के भाग की बैटरी के ऋण टर्मिनल और N-प्रकार के भाग को बैटरी के धन-टर्मिनल से जोड़ देते हैं तब यह सन्धि पश्च दिशिक बायसिंग (उत्क्रम बायस) की हुई कहलाती है। इसका परिपथ आरेख इस प्रकार है-
PN सन्धि डायोड का पश्च अभिनति अभिलाक्षणिक वक्र ना खींचने के लिए नीचे दिखाया गया परिपथ बनाते हैं।
कार्यविधि-
(i) सर्वप्रथम चित्र में दर्शाये अनुसार P-N सन्धि डायोड D के P भाग को बैटरी के ऋण टर्मिनल से तथा डायोड D के N भाग को बैटरी के धन टर्मिनल से जोड़ा जाता है। परिपथ में एक वोल्टमीटर को डायोड के समान्तर क्रम में तथा अत्यल्प धारा मापने के लिए एक माइक्रो अमीटर श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है।
(ii) पश्च अभिनति की स्थिति में आरोपित विभव तथा विभव रोधिका एक ही दिशा में होते हैं। जिससे अवक्षय परत की मोटाई बढ़ जाती है। डायोड के P भाग के होल बैटरी के ऋण टर्मिनल आकर्षित करता है तथा N भाग के इलेक्ट्रॉन बैटरी के धन टर्मिनल की ओर आकर्षित होते हैं। ऐसे में डायोड सन्धि पर होल तथा इलेक्ट्रॉन का आदान-प्रदान नहीं हो पाता तथा संन्धि का प्रतिरोध बढ़ जाता है। इस प्रकार पश्च अभिनति की अवस्था में बहुसंख्यक आवेश वाहकों के कारण धारा प्रवाहित नहीं होती। इस समय डायोड के P भाग में उपस्थित अल्पसंख्यक इलेक्ट्रॉन तथा N भाग में उपस्थित अल्पसंख्यक होल क्रमश: बैटरी के ऋण तथा धन टर्मिनल से प्रतिकर्षित होते हैं और P-N सन्धि पर इनका . आदान-प्रदान होने लगता है। इन अल्पसंख्यक आवेश वाहकों के कारण डायोड से अत्यल्प मान की धारा प्रवाहित होती है।
(iii) पश्च दिशिक वोल्टता तथा पश्च धारा के मानों में के आलेख खींचने पर यह निम्न प्रकार प्राप्त होता है जिसे पश्च थ अभिनति अभिलाक्षणिक वक्र कहते हैं।
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