Students must start practicing the questions from RBSE 12th Political Science Model Papers Set 2 with Answers in Hindi Medium provided here.
RBSE Class 12 Political Science Model Paper Set 2 with Answers in Hindi
समय : 2:45 घण्टे
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर:पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
खण्ड – (अ)
वस्तुनिष्ठ प्रश्नप्रश्न
1. निम्नलिखित प्रश्नों में उत्तर: का सही विकल्प चयन कर उत्तर: पुस्तिका में लिखें.
(i) प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कहाँ हुआ था? [1]
(अ) काठमांडु में
(ब) रियो में
(स) बेलग्रेड में
(द) डरबन में
उत्तर:
(स) बेलग्रेड में
(ii) नई आर्थिक नीति किसने शुरू की थी? [1]
(अ) लेनिन ने
(ब) स्टालिन ने
(स) केरेन्सकी ने
(द) खुश्चेव ने
उत्तर:
(अ) लेनिन ने
(iii) सार्क की स्थापना वर्ष है? [1]
(अ) 1985
(ब) 1999
(स) 2006
(द) 2011
उत्तर:
(अ) 1985
(iv) भारत-नेपाल के मध्य संशोधित दोहरा करारोपण परिवार समझौता कब हुआ था? [1]
(अ) 2011 में
(ब) 2012 में
(स) 2010 में
(द) 2016 में
उत्तर:
(अ) 2011 में
(v) क्योटो प्रोटोकॉल सम्मेलन किस देश में हुआ था? [1]
(अ) जापान
(ब) चीन
(स) भारत
(द) पाकिस्तान
उत्तर:
(अ) जापान
(vi) राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना हुयी थी? [1]
(अ) सन् 1952 में
(ब) सन् 1953 में
(स) सन् 1955 में
(द) सन् .1956 में।
उत्तर:
(अ) सन् 1952 में
(vii) नीति आयोग का अध्यक्ष कौन होता है? [1]
(अ) वित्तमंत्री
(ब) कषि मंत्री
(स) प्रधानमंत्री
(द) राष्ट्रपति
उत्तर:
(स) प्रधानमंत्री
(viii) किस राज्य में ताड़ी विरोधी आन्दोलन चला था? [1]
(अ) राजस्थान
(ब) महाराष्ट्र
(स) उत्तर:प्रदेश
(द) आन्ध्रप्रदेश
उत्तर:
(द) आन्ध्रप्रदेश
(ix) कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना किसने की थी? [1]
(अ) सी. राजगोपालाचारी
(ब) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(स) आचार्य नरेन्द्र देव
(द) मीनू मसानी
उत्तर:
(स) आचार्य नरेन्द्र देव
(x) विश्व व्यापार संगठन निम्न में से किस संगठन का उत्तर धिकारी है? [1]
(अ) जनरल एग्रीमेन्ट आन ट्रेड एण्ड टैरिफ
(ब) जनरल एग्रीमेन्ट ऑन ट्रेड
(स) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(द) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम
उत्तर:
(अ) जनरल एग्रीमेन्ट आन ट्रेड एण्ड टैरिफ
(xi) मेघालय का निर्माण कब हुआ? [1]
(अ) 1962
(ब) 1968
(स) 1972
(द) 1974
उत्तर:
(स) 1972
(xii) मंडल आयोग का अध्यक्ष कौन था? [1]
(अ) बी. एन. मंडल
(ब) बी. पी. मंडल
(स) डी.एल. मंडल
(द) आर.एन. मंडल
उत्तर:
(ब) बी. पी. मंडल
प्रश्न 2.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) संयुक्त राष्ट्र संघ को ……. ……………… के नाम से भी जाना जाता है। [1]
उत्तर:
यू.एन.
(ii) भारत ने 2002 में ……………………… प्रोटोकोल पर हस्ताक्षर किए। [1]
उत्तर:
क्योटो
(iii) दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से ही ……………………… की शरुआत हुयी। [1]
उत्तर:
शीतयुद्ध
(iv) ………………….. अमेरिका में स्वतंत्रता की लड़ाई हुयी थी। [1]
उत्तर:
1787
(v) चिपको आंदोलन में ………………….. ने सक्रिय भागीदारी की। [1]
उत्तर:
महिलाओं
(vi) …………. मोर्चा की सरकार ने …………. आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला किया। [1]
उत्तर:
राष्ट्रीय, मंडल।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3.
निम्न प्रश्नों के उत्तर: एक शब्द अथवा एक पंक्ति में दीजिए
(i) क्युबा मिसाइल संकट के समय सोक्तिय संघ के नेता कौन थे? [1]
उत्तर:
निकिता खुश्चेव।
(ii) बर्लिन की दीवार किस बात का प्रतीक थी? [1]
उत्तर:
पूंजीवादी व साम्यवादी दुनिया के . विभाजन का प्रतीक थी।
(iii) सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है …………. से आजादी। [1]
उत्तर:
खतरे।
(iv) भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेंट भाषण किसके द्वारा दिया गया? [1]
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा।
(v) वामपंथी विचारधारा से आप क्या समझते हैं? [1]
उत्तर:
यह विचारधारा निर्धन एवं पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करती है एवं इनको लाभ पहुंचाने वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करती है।
(vi) चिपको आन्दोलन क्यों चलाया गया था? [1]
उत्तर:
यह पेड़ या वनों की कटाई को रोकने के लिए चलाया गया आंदोलन था।
(vii) खतरनाक दशक किसे कहा गया है? [1]
उत्तर:
1960 के दशक को।
(viii) जर्मनी का एकीकरण कब हुआ था? [1]
उत्तर:
सन् 1990 में।
(ix) सोवियत खेमे के देशों का नाम लिखिए। [1]
उत्तर: .
सोवियत संघ, पौलेण्ड, हंगरी, रोमानिया, पूर्वी जर्मनी।
(x) चिपको आंदोलन का सर्वाधिक अनुठा पहलू क्या था? [1]
उत्तर:
आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी।
(xi) क्योटो प्रोटोकाल कहाँ सम्पन्न हुआ? [1]
उत्तर:
जापान में।
(xii) द्वितीय पंचवर्षीय योजना में किसके नेतृत्व में योजना बनाई गयी? [1]
उत्तर:
पी. सी. महालनोबिस।
खण्ड – (ब)
लघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर: शब्द सीमा लगभग 50 शब्द)
प्रश्न 4.
शीतयुद्ध से क्या अभिप्राय है? [2]
उत्तर:
शीतयुद्ध से हमारा अभिप्राय उस अवस्था से है जब दो से अधिक देशों के मध्य तनावपूर्ण वातावरण तो हो, लेकिन वास्तव में कोई युद्ध न हो। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ (वर्तमान रूस) के बीच युद्ध तो नहीं हुआ, लेकिन युद्ध जैसी स्थिति बनी रही। यह स्थिति शीतयुद्ध के नाम से जानी जाती है। इन दोनों के मध्य लम्बे समय तक तनातनी का माहौल बना रहा तथा ऐसा लगता था मानो युद्ध होगा किन्तु ऐसा हुआ नहीं।
प्रश्न 5.
सन् 1989 में बर्लिन की दीवार के ढहने को द्वि-ध्रुवीयता का अन्त क्यों कहा जाता है ? [2]
उत्तर:
द्वि-ध्रुवीयता के दौर में जर्मनी दो भागों में विभाजित हो गया था। जहाँ पूर्वी जर्मनी साम्यवादी सोवियत संघ के प्रभाव में तथा पश्चिमी जर्मनी संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभाव में था। सन् 1989 में बर्लिन की दीवार के ढहने के पश्चात् ही सम्पूर्ण विश्व में से सोवियत संघ का प्रभाव भी समाप्त हो गया तथा अब तक दो ध्रुवों में विभाजित विश्व एकध्रुवीय हो गया। इसी कारण बर्लिन की दीवार का ढहना दो ध्रुवीयता के अन्त के रूप में जाना जाता है।
प्रश्न 6.
साफ्टा क्या है ? संक्षेप में बताइए। [2]
उत्तर:
साफ्टा का पूरा नाम है-दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (South Asia Free Trade Agreement)। दक्षेस के सदस्य देशों ने फरवरी 2004 में साफ्टा समझौते पर हस्ताक्षर किये। यह समझौता 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी हो गया है। इस समझौते के तहत दक्षेस देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाले सीमा शुल्क को कम करने का लक्ष्य था। इस समझौते से दक्षिण एशिया के देशों को व्यापारिक लाभ प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 7.
कांग्रेस प्रणाली से क्या तात्पर्य है? [2]
उत्तर:
प्रारम्भिक सालों में कांग्रेस एक गठबंधननुमा पार्टी थी। इसमें विभिन्न हित, सामाजिक समूह वर्ग एक साथ रहते थे। इसी परिघटना को कांग्रेस प्रणाली कहा गया। यह क्रिया लम्बे समय तक जारी रही, जिसके कारण कांग्रेस का लम्बे समय तक प्रभुत्व भी बना रहा।
प्रश्न 8.
भारत में दलीय व्यवस्था की कोई दो विशेषताएं लिखिए। [2]
उत्तर:
भारत में दलीय व्यवस्था की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं \
(i) भारत में बहुदलीय व्यवस्था है तथा राजनैतिक दल विभिन्न हित समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
(ii) भारत में राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दल भी पाये जाते
प्रश्न 9.
निर्जन वन से क्या आशय है? [2]
उत्तर:
निर्जन वन से आशय इस प्रकार के वनों से है जिसमें मनुष्य एवं जानवर नहीं पाये जाते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध के कई देशों में निर्जन वन पाये जाते हैं। इस गोलार्द्ध के देशों में वन को निर्जन प्रान्त के रूप में देखा जाता है जहाँ पर लोग नहीं रहते हैं। इस प्रकार का दृष्टिकोण मनुष्य को प्रकृति के एक अंग के रूप में स्वीकार नहीं करता है।
प्रश्न 10.
शीतयुद्ध के काल में किन दो विचारधाराओं में तनाव चल रहा था और क्यों? [2]
उत्तर:
शीतयुद्ध के काल में उदारवादी लोकतन्त्र व पूँजीवादी विचारधारा और समाजवादी व साम्यवादी विचारधारा के मध्य तनाव चल रहा था। यह तनाव इस बात को लेकर था कि पूरे विश्व में राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे बेहतर सिद्धान्त कौन सा है। इसी कारण सम्पूर्ण विश्व विभिन्न धाराओं में बँट गया था। इसी आधार पर इनके कार्य भी सम्पन्न किये जा रहे थे।
प्रश्न 11.
सोवियत संघ के पतन के कोई दो परिणाम बताइए। [2]
उत्तर:
(i) सोवियत संघ के पतन के कारण अमेरिकी गुट व सोवियत गुट के मध्य चला आ रहा शीतयुद्ध समाप्त हो गया।
(ii) शीतयुद्ध के समाप्त होने से परमाणु हथियारों की होड़ भी समाप्त हो गयी तथा एक नई शांति की संभावना का जन्म हुआ।
प्रश्न 12.
क्योटो प्रोटोकॉल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2]
उत्तर:
सन् 1997 में जापान के क्योटो शहर में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसे क्योटो प्रोटोकॉल कहा जाता है। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता है। इसके अन्तर्गत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। विकासशील देशों में ग्रीन हाउस गैसों का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम होने के कारण चीन, भारत एवं अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से अलग रखा गया है।
प्रश्न 13.
शक्ति संतुलन बनाये रखने के दो उपाय बताइये। [2]
उत्तर:
(i) गठबन्धन बनाना-शक्ति सन्तुलन बनाये रखने का प्रमुख तरीका गठबन्धन बनाना है। कोई देश अन्य देश या देशों से गठबन्धन करके अपनी शक्ति को बढ़ा लेता है। फलस्वरूप क्षेत्र विशेष में शक्ति सन्तुलन बना रहता है।
(ii) शस्त्रीकरण व निःशस्त्रीकरण-शक्ति सन्तुलन शस्त्रीकरण द्वारा भी बनाये रखा जा सकता है। एक राष्ट्र शक्ति सन्तुलन बनाये रखने के लिए दूसरे राष्ट्रों से सैनिक शस्त्र प्राप्त कर सकता है। वर्तमान समय में शस्त्रीकरण की दौड़ सम्पूर्ण विश्व पर महाविनाश का खतरा मँडरा रहा है। फलस्वरूप आज शस्त्रीकरण को छोड़कर निःशस्त्रीकरण पर
बल दिया जाने लगा है।
प्रश्न 14.
एकल प्रभुत्व वाली दल प्रणाली की हानियाँ बताइये। [2]
उत्तर:
एकल प्रभुत्व वाली दल प्रणाली की हानियाँ निम्नलिखित हैं
(i) एक दलीय व्यवस्था लोकतंत्र की सफलता और विकास हेतु उचित नहीं है।
(ii) प्रभुत्वशाली दल शासन का संचालन तानाशाहीपूर्ण तरीके से करने लगते हैं जिससे शक्ति का दुरुपयोग होता है।
(iii) इस व्यवस्था में विरोधी दल कमजोर होते हैं, अतः सरकार की आलोचना प्रभावशाली ढंग से नहीं हो पाती।
(iv) इस व्यवस्था के तानाशाही व्यवस्था में बदलने का भय होने के कारण जनता के अधिकार व स्वतंत्रताओं पर अंकुश की संभावना रहती है।
प्रश्न 15.
“योजना’ से आप क्या अझते हैं? [2]
उत्तर:
योजना से अभिप्राय किसी निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयत्नों से है। योजना के अन्तर्गत देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए लक्ष्य रखे जाते हैं जिनकी प्राप्ति के लिए देश में व देश के बाहर से सभी साधन जुटाये जाते हैं। उद्देश्यों की प्राप्ति तथा साधनों को जुटाने के लिए सम्बन्धित देश की आर्थिक-सामाजिक स्थिति को देखते हुए विकास की व्यूह रचना निर्धारित की जाती है। योजना के माध्यम में पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 16.
1967 के चौथे आम चुनाव में कांग्रेस दल की मुख्य चुनौतियाँ बताइए। [2]
उत्तर:
मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित थीं
(i) दो प्रधानमंत्रियों का देहान्त तथा इंदिरा गाँधी का राजनीति के दृष्टिकोण से कम अनुभवी होना।
(ii) इस समय देश आर्थिक संकट में था। मानसून की असफला से खेती में गिरावट, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई।
(iii) साम्यवादी और समाजवादी पार्टी ने व्यापक समानता के लिए संघर्ष छेड़ दिया।
खण्ड – (स)
दीर्घ उत्तर:दीय प्रश्न (उत्तर: शब्द सीमा लगभग 100 शब्द)
प्रश्न 17.
पाकिस्तान में लोकतंत्रीकरण की कठिनाइयों का वर्णन कीजिए। [3]
अथवा
नेपाल में लोग अपने देश में लोकतंत्र को ब्रह्मल करने में कैसे सफल हुए? [3]
उत्तर:
अतीत में नेपाल एक हिन्दू राज्य था। आधुनिक काल में यहाँ कई वर्षों तक संवैधानिक राजतन्त्र रहा। इस दौर में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और आम जनता खुले और उत्तरदायी शासन की आवाज उठाते रहे। लेकिन राजा ने सेना की सहायता से शासन पर पूरा नियन्त्रण कर लिया और नेपाल में लोकतन्त्र की राह अवरुद्ध हो गयी, लेकिन एक मजबूत लोकतन्त्र समर्थक आन्दोलन से विवश होकर सन् 1990 में राजा ने नये लोकतान्त्रिक संविधान की माँग मान ली, परन्तु नेपाल में लोकतान्त्रिक सरकारों का कार्यकाल बहुत छोटा और समस्याओं से भरा रहा। सन् 1990 के दशक में नेपाल के माओवादी, नेपाल के अनेक हिस्सों में अपना प्रभाव कायम करने में कामयाब हुए। माओवादी, राजा और सत्ताधारी अभिजन के बीच रिशमोणीय संघर्ष हुआ। ‘सन् 2002 में राजा ने संसद को भंग कर दिया और सरकार को गिरा दिया। इस प्रकार नेपाल में जो भी थोड़ा-बहुत लोकतन्त्र था, उसे राजा ने खत्म कर दिया। अप्रैल 2006 में यहाँ देशव्यापी ोकतन्त्र समर्थक प्रदर्शन हुआ और राजा ज्ञानेन्द्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल किया। इस तरह नेपाल के लोग अपने देश में लोकतन्त्र को बहाल करने में सफल हुए। सन् 2008 में नेपाल राजतन्त्र को खत्म कर लोकतान्त्रिक गणराज्य बना तथा सन् 2015 में उसने नया संविधान अपनाया।
प्रश्न 18.
वैश्विक राजनीति में किन्हीं तीन चिन्ताजनक पर्यावरणीय मुद्दों का वर्णन कीजिए। [3]
अथवा
पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देश सुलह और सहकार की नीति अपनाएँ। पर्यावरण के सवाल पर उत्तर:ी और दक्षिणी देशों के बीच जारी वार्ताओं की रोशनी में इस कथन की पुष्टि करें। [3]
उत्तर:
वैश्विक राजनीति में पर्यावरणीय महत्त्व के तीन मुद्दे निम्नवत् हैं
(1) विश्व में अब कृषि भूमि का विस्तार करना असम्भव है। वर्तमान में उपलब्ध भूमि के एक बड़े भाग की उर्वरता लगातार कम होती चली जा रही है। जहाँ चारागाहों के चारे समाप्त होने के कगार पर हैं वहीं मछली भण्डार भी निरन्तर कम होता जा रहा है। इसी तरह जलाशयों का जल-स्तर तेजी से घटा है और जल प्रदूषण बढ़ गया है। खाद्य उत्पादों में भी लगातार कमी होती चली जा रही है।
(2)सन् 2016 में जारी संयुक्त राष्ट्र की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों की 66.3 करोड़ जनता को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं होता तथा यहाँ की दो अरब चालीस करोड़ की आबादी साफ-सफाई की सुविधा से वंचित है। उक्त कारण से लगभग तीस लाख से अधिक बच्चे प्रतिवर्ष असमय काल के गाल में समा जाते हैं।
(3) पृथ्वी के ऊपरी वायुमण्डल में ओजोन की मात्रा लगातार घट ही है जिसके फलस्वरूप पारिस्थितिकी तन्त्र तथा मानवीय स्वास्थ्य पर गम्भीर संकट आ गया है।
प्रश्न 19.
जन आन्दोलन का क्या अर्थ है? दल समर्थित (दलीय) और स्वतंत्र (निर्दलीय) आन्दोलनों का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। [3]
अथवा
जन आंदोलनों के किन्हीं तीन लाभों तथा तीन मनियों का वर्णन कीजिए। [3]
उत्तर:
जन आन्दोलन-प्रजातांत्रिक मर्यादाओं तथा संवैधानिक नियमों के आधार पर तथा सामाजिक शिष्टाचार से संबंधित नियमों के पालन सहित सरकारी नीतियों, कानून व प्रशासन सहित किसी मसले पर व्यक्तियों के समूह अथवा समूहों के द्वारा असहमति प्रकट किया जाना जन-आन्दोलन कहलाता है। इन आन्दोलनों के अन्तर्गत प्रदर्शन, नारेबाजी, जुलूस जैसे क्रियाकलाप सम्मिलित हैं। इस प्रकार के जन आन्दोलनों में दल समर्थित (दलीय) और स्वतंत्र (निर्दलीय) आन्दोलनों का स्वरूप इस प्रकार है
(i) दल आधारित (दलीय) आन्दोलनजब किसी राजनैतिक दल अथवा राजनैतिक दलों से समर्थन प्राप्त समूहों द्वारा आन्दोलन संचालित किए जाते हैं तो इन्हें दलीय आन्दोलन कहा जाता है, जैसे-जाति विरोधी आन्दोलन, छुआछूत विरोधी आन्दोलन आदि। किसान सभा आन्दोलन एक दलीय आन्दोलन था। दलीय आन्दोलन संगठित प्रकृति के आन्दोलन होते हैं।
(ii) स्वतंत्र (निर्दलीय) आन्दोलन: सरकार की नियोजित व्यवस्था के असफल होने व लोकतांत्रिक संस्था में अविश्वास की स्थिति उत्पन्न होने व चुनाव आधारित राजनीति बन जाने के कारण ये आन्दोलन अस्तित्व में आते हैं। ये आन्दोलन असंगठित लोगों के समूह द्वारा संचालित निर्दलीय आन्दोलन होते हैं, जैसे-चिपको आन्दोलन, दलित पैंथर्स आन्दोलन आदि। इस श्रेणी में बहुत से कर्मचारी यूनियनों, व्यावसायिक संघों आदि द्वारा संचालित आन्दोलन शामिल हैं।
प्रश्न 20.
नेहरू जी के बाद राजनीतिज्ञों को भारत में राजनैतिक उत्तरधिकार की चुनौती क्यों समझ में आने लगी? [3]
अथवा
सन् 1990 के दशक में कांग्रेस के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिये। [3]
उत्तर:
भारत में राजनैतिक उत्तराधिकार की चुनौती-
(i) मई 1964 में नेहरूजी की मृत्यु हो गयी। वह पिछले एक साल से भी अधिक समय से बीमार चल रहे थे। इससे नेहरूजी के राजनैतिक उत्तराधिकारी को लेकर बड़े अंदेशे लगाए गए कि नेहरूजी के बाद में कौन? परन्तु, भारत जैसे नव-स्वतंत्र देश में इस माहौल में एक और गंभीर प्रश्न उठ खड़ा हुआ था कि नेहरूजी के बाद आखिर इस देश में क्या होगा ?
(ii) भारत से बाहर के कई लोगों को संदेह “था कि यहाँ नेहरूजी के बाद लोकतंत्र कायम भी रह पाएगा या नहीं। दूसरा प्रश्न इसी शक के दायरे में उठा था। आशंका यह थी कि बाकी बहुत से नव-स्वतंत्र देशों की तरह भारत भी राजनीतिक उत्तराधिकार का सवाल लोकतांत्रिक ढंग से हल नहीं कर पाएगा।
(iii) राजनैतिक उत्तराधिकार के चयन में असफल होने की दशा में डर था कि सेना राजनीतिक भूमिका में उतर जाएगी। इसके अतिरिक्त, इस बात को लेकर भी संदेह था कि देश के सामने बहुत-सी कठिनाइयाँ खड़ी हैं तथा नया नेतृत्व उनका समाधान खोज पाएगा या नहीं। सन् 1960 के दशक को ‘खतरनाक दशक’ कहा जाता था। क्योंकि गरीबी, सांप्रदायिकता तथा क्षेत्रीय विभाजन आदि के सवाल अभी भी अनसुलझे थे। संभव था कि इन कठिनाइयों के कारण देश में लोकतंत्र की परियोजना असफल हो जाती या स्वयं देश ही बिखर जाता।
खण्ड – (द)
निबन्धात्मक प्रश्न (उत्तर शब्द सीमा लगभग 250 शब्द)
प्रश्न 21.
संयुक्त राष्ट्र का विकास क्रम, स्थापना व उद्देश्यों का विस्तार से वर्णन कीजिए। [4]
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अंगों का उल्लेख करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय योगदान को विस्तारपूर्वक समझाइए। [4]
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का विकास क्रम एवं स्थापना
1. राष्ट्र संघ की असफलता-प्रथम विश्व युद्ध ने सम्पूर्ण विश्व को इस बात के लिए सचेत किया कि अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों के समाधान के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के निर्माण का प्रयास आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशंस) का जन्म हुआ, लेकिन प्रारम्भिक सफलताओं के बावजूद यह संगठन द्वितीय विश्वयुद्ध को रोकने में सफल नहीं हो पाया।
2. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के प्रयास
(i) अटलांटिक चार्टर (अगस्त 1941)द्वितीय विश्वयुद्ध काल के दौरान वैश्विक शान्ति की स्थापना हेतु एक नयी विश्व संस्था की स्थापना की दिशा में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट एवं ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री चर्चिल ने विश्वशान्ति के गधारभूत सिद्धान्तों की व्यवस्था की। इस पर दोनों देशों के नेताओं ने अगस्त 1941 में हस्ताक्षर किये जिसे अटलांटिक चार्टर के नाम से जाना जाता
(ii) संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र (जनवरी 1942)-धुरी शक्तियों के विरुद्ध लड़ रहे 26 मित्र राष्ट्र अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट एवं ब्रितानी प्रधानमन्त्री चर्चिल द्वारा हस्ताक्षरित किए गए। ये नेता अटलांटिक चार्टर के समर्थन में जनवरी 1942 में वाशिंगटन (संयुक्त राज्य-अमेरिका) में मिले और दिसम्बर, 1943 में संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा पर हस्ताक्षर किये।
(iii) याल्टा सम्मेलन (फरवरी 1945)विश्व के तीन बड़े नेताओं-अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट, ब्रितानी प्रधानमन्त्री चर्चिल एवं सोवियत राष्ट्रपति स्टालिन ने फरवरी 1945 में याल्टा सम्मेलन में भाग लिया। इस सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन, प्रकृति व उसकी सदस्यता पर चर्चा की गयी। इस सम्मेलन में ही प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र संघ के बारे में विचार करने के लिए एक सम्मेलन करने का निर्णय लिया गया।
(iv) सेन फ्रांसिस्को सम्मेलन (अप्रैल-मई 1945)-अप्रैल-मई 1945 के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को में संयुक्त राष्ट्र संघ का अन्तर्राष्ट्रीय संगठन बनाने के मुद्दे पर केन्द्रित सम्मेलन हुआ। यह सम्मेलन दो महीने तक चला। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ का चार्टर तैयार किया गया।
(v) संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर पर हस्ताक्षर (जून 1945)-सेन फ्रांसिस्को सम्मेलन के दौरान तैयार किए गए संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर 26 जून, 1945 को 50 देशों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए। पोलैण्ड ने इस चार्टर पर 15 अक्टूबर, 1945 को हस्ताक्षर किए। इस तरह संयुक्त राष्ट्र संघ के 51 मूल संस्थापक सदस्य हैं।
3. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना: 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गयी। तभी से प्रतिवर्ष 24 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के पश्चात् राष्ट्र संघ के अस्तित्व को समाप्त कर दिया गया। भारत 30 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ में सम्मिलित हो गया। 2011 में इसकी सदस्य संख्या 193 थी। इसका अन्तिम सदस्य-दक्षिणी सूडान है जो 2011 में सदस्य बना था।
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य: संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(i) अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को रोकना एवं शान्ति स्थापित करना।
(ii) राष्ट्रों के मध्य सहयोग स्थापित करना।
(iii) समस्त विश्व में सामाजिक-आर्थिक विकास की सम्भावनाओं को बढ़ाने के लिए विभिन्न देशों को एक साथ लाना।
(iv) किसी कारणवश विभिन्न देशों के मध्य युद्ध छिड़ने की स्थिति में शत्रुता के दायरे को सीमित करना।
प्रश्न 22.
स्वतंत्र भारत के समक्ष कौन-कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ थीं? वर्णन कीजिए। [4]
अथवा
देशी रियासतों के एकीकरण में सरकार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका का वर्णन कीजिए। [4]
उत्तर:
स्वतंत्र भारत का जन्म अत्यन्त कठिन र परिस्थितियों में हुआ। प्रमुख रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के सामने तीन तरह की चुनौतियाँ थीं। इनका उल्लेख निम्नानुसार है
(i) देश की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखने की चुनौती-आजादी के तुरन्त बाद देश की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखने की चुनौती सबसे प्रमुख थी। एकता के सूत्र में बंधे एक ऐसे भारत को गढ़ने की चुनौती थी जिसमें भारतीय समाज की समस्त विविधताओं के लिए जगह हो। भारत अपने आकार व विविधता के कारण एक उपमहाद्वीप है। यहाँ विभिन्न धर्म जातियों, वर्गों, भाषाओं, बोलियों, संस्कृति को मानने वाले लोग निवास करते हैं। अतः यही माना जा रहा था कि इतनी विभिन्नताओं से भरा कोई देश अधिक दिनों तक एकता कायम नहीं रख सकता। वैसे भी देश को आजादी विभाजन की शर्त पर ही मिल सकी। ऐसे में राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बँधे राष्ट्र की स्थापना व निर्माण करना एक गम्भीर चुनौतीपूर्ण कार्य था। ऐसे में हर क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय पहचान के साथ ही देश की एकता व अखण्डता को भी कायम रखना था।
उस वक्त आमतौर पर यही माना जाता था कि इतनी विभिन्नताओं वाला देश लम्बे समय तक एकता के सूत्र में बँधा नहीं रह पाएगा। देश के विभाजन के साथ लोगों के मन में समाई यह आशंका एक तरह से सत्य सिद्ध हुई। देश के भविष्य के सम्बन्ध में अनेक गम्भीर प्रश्न सामने खड़े थे, जैसे-क्या भारत एकता के सूत्र में बँधा रह सकेगा? क्या भारत केवल राष्ट्रीय एकता पर ही सर्वाधिक ध्यान देगा या अन्य उद्देश्यों को भी पूर्ण करेगा? इस प्रकार स्वतंत्रता के बाद तात्कालिक प्रश्न देश की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम रखने की चुनौती का था।
(ii) लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम करना-दूसरी चुनौती लोकतांत्रिक व्यवस्था को सफलतापूर्वक लागू रखने की थी। भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्व मूलक लोकतंत्र को अपनाया। भारतीय संविधान भारत की आन्तरिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों की वैधानिक अभिव्यक्ति है। संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गयी है तथा प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार भी दिया गया है। इन विशेषताओं स आधार पर यह बात सुनिश्चित हो गई कि लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था के बीच राजनीतिक मुकाबले होंगे। लोकतंत्र को कायम करने के लिए लोकतांत्रिक संविधान आवश्यक होता है परन्तु यह भी काफी नहीं होता। देश के सामने यह चुनौती भी थी कि संविधान पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवहार व व्यवस्थाएँ भी चलन में आएँ ताकि लोकतंत्र कायम रह सके।
(iii) आर्थिक विकास हेतु नीति निर्धारित करना : स्वतंत्रता के तुरन्त बाद तीसरी प्रमुख चुनौती थी-आर्थिक विकास हेतु नीतियों का निर्धारण करना। इन नीतियों के आधार पर सम्पूर्ण समाज का विकास होना था, किन्हीं विशेष वर्गों का नहीं। संविधान में भी इस बात का स्पष्ट तौर पर उल्लेख था कि समाज में सभी वर्गों के साथ समानता का व्यवहार किया जाए तथा सामाजिक रूप से वंचित व पिछड़े वर्गों तथा धार्मिक-सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को विशेष सुरक्षा प्रदान की जाए। संविधान में ‘नीति-निदेशक सिद्धान्तों’ का भी प्रावधान किया गया है जिनका प्रमुख उद्देश्य लोक-कल्याण व सामाजिक विकास था।
सरकार को नीति निर्धारित करते समय इन सिद्धान्तों को अवश्य अपनाना चाहिए। अतः देश के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक विकास करने हेतु कारगर नीतियों के निर्धारण की थी। इस चुनौती का भी सफलतापूर्वक सामना हमारे नीति-निर्माताओं ने किया। भारतीय संविधान के द्वारा भारत में एक लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना किए जाने की व्यवस्था की गयी। इसी व्यवस्था के अन्तर्गत भारतीयों को अवसर की समानता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गयी। सरकार से यह भी अपेक्षा की गयी कि वह अपंगों, वृद्धों व बीमार व्यक्तियों की उचित सहायता करे।
प्रश्न 23.
इंदिरा बनाम सिंडिकेट के मुद्दे का वर्णन कीजिए। इस मुद्दे ने इंदिरा गाँधी के समक्ष किस प्रकार की चुनौतियाँ प्रस्तुत की? [4]
अथवा
भारत में कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के उदय व पतन के लिए उत्तर:दायी मुख्य कारकों का परीक्षण कीजिए। [4]
उत्तर:
भारत में कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के उदय के लिए उत्तरदायी कारक-भारत में कांग्रेस पार्टी के उदय के लिए उत्तरदायी कारक निम्नांकित थे
(i). कांग्रेस का गठन सन् 1885 ई. में हुआ था। इस समय यह केवल नवशिक्षित, ‘कामकाजी तथा व्यापारिक वर्गों का एक हित-समूह थी परन्तु बीसवीं शताब्दी में इसने एक व्यापक जन-आंदोलन का रूप ले लिया। इस कारण से कांग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप ले लिया तथा राजनीतिक व्यवस्था में इसका प्रभुत्व स्थापित हुआ। स्वतंत्रता के समय तक कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन का आकार ग्रहण कर चुकी थी।
(ii) कांग्रेस ने अपने अंदर क्रांतिकारी व शांतिवादी, कंजरवेटिव तथा रेडिकल, गरमपंथी व नरमपंथी, दक्षिणपंथी, क्रान्तिकारी वामपंथी तथा हर धारा के मध्यमार्गियों को शामिल किया। कांग्रेस एक मंच के समान थी, जिस पर अनेक हित, समूह तथा राजनीतिक दल तक आ जुटते थे तथा राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे।
(iii) कांग्रेस के गठबंधनी स्वरूप ने उसे एक असाधारण ताकत दी। पहली बात तो यही कि जो भी आए, गठबंधन उसे अपने में शामिल कर लेता है। इस कारण गठबंधन को अतिवादी रुख अपनाने से बचना होता है तथा प्रत्येक मामले पर संतुलन रख कर चलना पड़ता है। सुलह-समझौता तथा सर्व समावेशी होना गठबंधनी स्वरूप की विशेषता होती है।
(iv) भारत में अधिक विपक्षी पार्टियों नहीं थीं। कई पार्टियों सन् 1952 के आम चुनावों से कहीं. पहले बन चुकी थीं। इनमें से कुछ ने ‘साठ व सत्तर’ के दशक में देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1950 के दशक में इन सभी विपक्षी दलों को लोकसभा अथवा विधानसभा में नाममात्र का प्रतिनिधित्व मिल पाया।।
(v) भारत की चुनाव प्रणाली में ‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत’ के तरीके को अपनाया गया। ऐसे में यदि कोई पार्टी अन्य की अपेक्षा थोड़े ज्यादा वोट प्राप्त करती है तो दूसरी पार्टियों को प्राप्त वोटों के अनुपात की तुलना में उसे कहीं अधिक सीटें हासिल होती हैं। यही बात कांग्रेस पार्टी के पक्ष में रही।
(vi) यदि सभी गैर-कांग्रेसी उम्मीदवारों के वोट जोड़ दिए जाएँ तो वह कांग्रेस पार्टी को हासिल कुल वोट से कहीं अधिक होंगे। परन्तु गैर-कांग्रेसी वोट विभिन्न प्रतिस्पर्धी पार्टियों तथा उम्मीदवारों में बँट गए। इस प्रकार कांग्रेस बाकी पार्टियों की तुलना में आगे रही तथा उसने ज्यादा सीटें जीती।
कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व में कमी आने के लिए उत्तरदायी कारक:
(i) कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व में कमी आने के लिए उत्तरदायी कारक इस प्रकार हैं कांग्रेस प्रणाली को सन् 1960 के दशक में पहली बार विपक्ष से चुनौती मिली। कांग्रेस पार्टी को अपना राजनीतिक प्रभुत्व बनाए रखने में कुछ कारणों से कठिनाई आने लगी। पहले की अपेक्षा अब विपक्ष कम विभाजित था। कांग्रेस पार्टी अपनी अन्दरूनी चुनौतियों को झेल नहीं पा रही थी।
(ii) मई 1964 में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद राजनैतिक उत्तराधिकार की चुनौती उत्पन्न हुई जिसे लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही हल कर लिया गया। शास्त्री जी के निधन के बाद फिर से राजनैतिक उत्तराधिकार का मामला उठा।
(iii) सन् 1967 से देश में राजनीतिक दलबदल व आया-राम, गया-राम की राजनीति प्रारंभ हुई जिसके कारण से भारतीय लोकतंत्र को अस्थायी रूप से गहरा धक्का पहुँचा। कांग्रेस में सिंडिकेट व इंडिकेट या पुरानी कांग्रेस व नयी कांग्रेस के नाम से विभाजन हो गया।
(iv) सन् 1969 में देश के राष्ट्रपति पद के – चुनाव में कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को वी. वी. गिरी ने इंदिरा गाँधी के खुले समर्थन के कारण पराजित किया।
(v) सन् 1970 के बाद हुए चुनावों में इंदिरा कांग्रेस या 7 कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुयी तथा उसे ही वास्तवक कांग्रेस कहा गया। संविधान में संशोधन करके देशी राजाओं के प्रिवीपर्स को समाप्त कर दिया गया। इन सभी कारणों के परिणामस्वरूप कांग्रेस के प्रभुत्व में धीरे-धीरे कमी आती गयी।
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