These comprehensive RBSE Class 10 Science Notes Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 10 Science Chapter 16 Notes प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
→ हमारे संसाधनों; जैसे-वन, वन्य जीवन, कोयला एवं पेट्रोलियम का उपयोग संपोषित रूप से करने की आवश्यकता है।
→ गंगा सफाई योजना करीब 1985 में इसलिए प्रारम्भ की गई क्योंकि गंगा के जल की गुणवत्ता बहुत कम हो गई थी। कोलिफार्म जीवाणु का एक वर्ग है जो मानव की आंत्र में पाया जाता है। जल में इसकी उपस्थिति, इस रोगजन्य सूक्ष्म जीवाणु द्वारा जल संदूषित होना दर्शाता है।
→ गंगा का प्रदूषण-इसका मुख्य कारण इसके किनारे स्थित नगरों द्वारा उत्सर्जित कचरा एवं मल का इसमें प्रवाहित किया जाना है। इसके अतिरिक्त मानव के अन्य क्रियाकलाप, जैसे-नहाना, कपड़े धोना, मृत व्यक्तियों की राख एवं शवों को बहाना तथा उद्योगों द्वारा उत्पादित रासायनिक उत्सर्जन ने गंगा का प्रदूषण बढ़ा दिया।
→ सार्व सूचक (Universal indicator) की सहायता से घर में आपूर्त पानी का pH ज्ञात कर सकते हैं। इससे जल की गुणवत्ता का पता लगता है।
→ पाँच ‘R’ का सिद्धान्त
- Refuse (इनकार) इसका अर्थ है कि जिन वस्तुओं की हमें आवश्यकता नहीं है, उन्हें लेने से इनकार करना।
- Reduce (कम उपयोग)-इसका अर्थ है कि हमें कम से कम वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए।
- Reuse (पुन: उपयोग)-इसमें हम किसी वस्तु का बार-बार उपयोग करते हैं।
- Repurpose (पनः प्रयोजन)-जब कोई वस्तु जिस उपयोग के लिए बनी है जब उसको उपयोग में नहीं लिया जा रहा है तो उसे किसी अन्य उपयोगी कार्य के लिए प्रयोग करना।
- Recycle (पुनः चक्रण)-प्लास्टिक, कागज, काँच, धातु की वस्तुएँ तथा ऐसे ही पदार्थों का पुनः चक्रण करके उपयोगी वस्तुएँ बनाना।
→ सारी वस्तुएँ जिनका हम उपयोग करते हैं, जैसे-भोजन, कपड़े, पुस्तकें, खिलौने, फर्नीचर, औजार तथा वाहन आदि सभी हमें पृथ्वी पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त होती हैं। हमें केवल एक ही वस्तु पृथ्वी के बाहर से प्राप्त होती है, वह है ऊर्जा जो सूर्य से प्राप्त होती है।
→ संसाधनों का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग किया जाना चाहिए क्योंकि यह संसाधन असीमित नहीं है। स्वास्थ्य-सेवाओं में सुधार के कारण हमारी जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण सभी संसाधनों की मांग भी कई गुना तेजी से बढ़ गई है।
→ प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते समय दीर्घकालिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखना होगा कि ये अगली कई पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सकें तथा इनका वितरण सभी वर्गों में समान रूप से हो।
→ वन ‘जैव विविधता’ के विशिष्ट (Hotspots) स्थल हैं। जैव विविधता का एक आधार उस क्षेत्र में पाई जाने वाली विभिन्न स्पीशीज की संख्या है। परन्तु जीवों के विभिन्न स्वरूप (जीवाणु, कवक, फर्न, पुष्पी पादप, सूत्रकृमि, कीट, पक्षी, सरीसृप आदि) भी महत्त्वपूर्ण हैं।
→ स्टेकहोल्डर (दावेदार)-वन संसाधनों के विभिन्न दावेदार स्टेकहोल्डर कहलाते हैं, जो निम्नलिखित हैं
- वन के अन्दर एवं इसके निकट रहने वाले लोग अपनी अनेक आवश्यकताओं के लिए वन पर निर्भर रहते हैं।
- सरकार का वन विभाग, जिसके पास वनों का स्वामित्व है तथा वे वनों से प्राप्त संसाधनों का नियंत्रण करते हैं।
- उद्योगपति जो तेंदु पत्ती का उपयोग बीड़ी बनाने से लेकर कागज मिल तक विभिन्न वन उत्पादों का उपयोग करते हैं, परन्तु वे वनों के किसी भी एक क्षेत्र पर निर्भर नहीं करते।
- वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी जो प्रकृति का संरक्षण इसकी आद्य अवस्था में करना चाहते हैं। वन-संपदा का प्रबंधन सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
→ राजस्थान के विश्नोई समुदाय के लिए वन एवं वन्य प्राणी संरक्षण उनके धार्मिक अनुष्ठान का भाग बन गया है। भारत सरकार ने पिछले दिनों जीव संरक्षण हेतु अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार की व्यवस्था की है।
→ अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार अमृता देवी विश्नोई की स्मृति में दिया जाता है जिन्होंने 1731 में राजस्थान के जोधपुर के पास खेजराली,गाँव में खेजरी वृक्षों को बचाने हेतु 363 लोगों के साथ अपने आपको बलिदान कर दिया था।
→ चिपको आन्दोलन-यह आन्दोलन हिमालय की ऊँची पर्वत श्रृंखला में गढ़वाल के रेनी नामक गाँव में एक घटना से 1970 के प्रारम्भिक दशक में हुआ था। यह विवाद लकड़ी के ठेकेदार एवं स्थानीय लोगों के बीच प्रारम्भ हुआ। वहाँ की महिलाओं ने बिना किसी डर के पेड़ों को अपनी बाँहों में भरकर (चिपक कर) ठेकेदार के आदमियों को वृक्ष काटने से रोका। अंततः ठेकेदार को अपना काम बंद करना पड़ा।
→ स्थानीय समुदाय की सहमति एवं सक्रिय भागीदारी से 1983 तक अराबाड़ी का सालवन समृद्ध हो गया तथा पहले बेकार कहे जाने वाले वन का मूल्य 12.5 करोड़ आँका गया।
→ जल संसाधनों के संग्रहण हेतु बाँध बनाने में सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरणीय समस्याएँ आती हैं | बड़े बाँधों का विकल्प उपलब्ध है। यह स्थान/क्षेत्र विशिष्ट है तथा इनका विकास किया जा सकता है जिससे स्थानीय लोगों को उनके क्षेत्र के संसाधनों का नियंत्रण सौंपा जा सके।
→ जल-संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर दिया जाता है जिससे कि ‘जैव-मात्रा उत्पादन में वृद्धि हो सके। इसका प्रमुख उद्देश्य भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास, द्वितीयक संसाधन पौधों एवं जंतुओं का उत्पादन इस प्रकार करना जिससे पारिस्थितिक असंतुलन पैदा न हो।
→ जल संग्रहण (Water harvesting)-यह भारत में बहुत पुरानी संकल्पना है। राजस्थान में खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी, महाराष्ट्र में बंधारस एवं ताल, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में बंधिस, बिहार में अहार तथा पाइन, हिमाचल प्रदेश में कुल्ह, जम्मू के काँदी क्षेत्र में तालाब तथा तमिलनाडु में एरिस, केरल में सुरंगम, कर्नाटक में कट्टा आदि प्राचीन जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ आज भी उपयोग में हैं।
→ भौम जल के लाभ –
- यह वाष्प बनकर उड़ता नहीं है परन्तु यह आस-पास में फैल जाता है।
- बड़े क्षेत्र में वनस्पति को नमी प्रदान करता है।
- इससे मच्छरों के जनन की समस्या भी नहीं होती।
- भौम जल मानव एवं जन्तुओं के अपशिष्ट से झीलों, तालाबों में ठहरे पानी के विपरीत संदूषित होने से अपेक्षाकृत सुरक्षित रहता है।
→ जीवाश्म ईंधन, अर्थात् कोयला एवं पेट्रोलियम, अन्ततः समाप्त हो जायेंगे। इनकी मात्रा सीमित है और इनके दहन से पर्यावरण प्रदूषित होता है, अतः हमें इन संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता है।
→ ऊर्जा की खपत निम्न विकल्पों से कम की जा सकती है –
- स्वयं के वाहन (मोटर साइकिल, स्कूटर) आदि के स्थान पर बस में यात्रा करना एवं पैदल/साइकिल से चलना।
- बल्ब के स्थान पर फ्लोरोसेंट ट्यूब का प्रयोग करना।
- लिफ्ट के स्थान पर सीढ़ियों का उपयोग करना।
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