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RBSE Class 12 History Notes Chapter 4 मुगल आक्रमण: प्रकार और प्रभाव

August 5, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 History Notes Chapter 4 मुगल आक्रमण: प्रकार और प्रभाव

अरब आक्रमण:

  • विश्व के किसी भी देश ने अरब तथा तुर्कों के आक्रमण का इतना लम्बा, दृढ़ और सफल मुकाबला नहीं किया जितना मध्य युग के हिन्दुस्तान ने।
  • अरबों ने सबसे पहले सीरिया पर आक्रमण किया, एक वर्ष में (635-36 ई.) ही राजधानी दमिश्क ने आत्मसमर्पण कर दिया।
  • 637 ई. में केसेडिया के प्रसिद्ध युद्ध में विजय प्राप्त करने के पाँच वर्ष के अन्दर ही अरबों का भारत के सम्पूर्ण साम्राज्य पर अधिकार हो गया।

भारत पर अरबों के आक्रमण के कारण:

  • अन्य देशों की तरह भारत में भी इस्लाम के प्रसार के उद्देश्य ने अरबों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही साम्राज्य विस्तार की भावना तथा भारत की समृद्धि को भी देखकर वे भारत की ओर बढ़े। 632 ई. में हजरत मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद भारत पर अरबी आक्रमणों का सिलसिला प्रारम्भ हो गया।
  • उम्मैंया वंश के शासन काल के दौरान अब्दुल्ला के नेतृत्व में अरबी सेना ने सिन्ध के उस पार किरमार, सीस्तान व मकराने पर अधिकार कर लिया।

दाहिर सेन :

  • दाहिर सेन सिन्ध का ब्राह्मण राजा था। इसके राज्य की सीमाएँ उत्तर में कश्मीर तथा पूर्व दिशा में प्रतिहारों के कन्नौज तक फैली हुई थीं।
  • अरबी जहाज लूट लिए जाने की घटना को आधार बनाकर अरबों ने दाहिर सेन पर आक्रमण कर दिया। दाहिर ने अरबों का वीरतापूर्वक मुकाबला किया। 20 जून, 712 ई. को दाहिर वीरगति को प्राप्त हुआ।

मुहम्मद बिन कासिम का अन्त:

  • इतिहासकार गौरीशंकर हीरानन्द ओझा के अनुसार मुहम्मद बिन कासिम का अन्त बैल की खाल में जिन्दा ही | सिलने के कारण हुआ। खलीफा के आदेश से ऐसा किया गया।
  • खलीफा के उपर्युक्त आदेश का कारण उसका दाहिर की राजकुमारियों पर आसक्त होना एवं राजकुमारियों द्वारा दाहिर पर उनके कौमार्य को भंग करने का तथाकथित आरोप था।

भारत से सम्पर्क का अरबों पर प्रभाव:

  • भारतीय दर्शन, विज्ञान, गणित, चिकित्सा एवं ज्योतिष ने अरबों को अत्यधिक प्रभावित किया। उन्होंने कई भारतीय संस्कृत ग्रन्थों का अरबी भाषा में अनुवाद कराया।
  • अनुनादित ग्रन्थों में ब्रह्म गुप्त का ‘ब्रह्म सिद्धान्त’ व ‘खण्ड खाड्यक’ अधिक प्रसिद्ध है।
  • अरबवासियों ने अंक, दशमलव पद्धति, खगोलशास्त्र व चिकित्सा के कई मौलिक सिद्धान्त भारतीयों से सीखा।
  • अरबों द्वारा भारतीय ज्ञान पश्चिमी देशों तक पहुँचने में सफल रहा।

अरबों की सफलता के कारण:

  • भारत (सिन्ध) पर अरबों की सफलता के बहुत से कारण थे; जैसे-दाहिर के शासन से सामान्य वर्ग का असन्तुष्ट होना, शासकों में तालमेल, सौहार्द और सहयोग की भावना का अभाव होना आदि।
  • मुहम्मद बिन कासिम की योग्यता, साहस एवं नेतृत्व शक्ति के साथ अरबों के मजहबी प्रचार के जोश, धन प्राप्ति की प्रबल इच्छा और खलीफा से मिलने वाले सैनिक सहयोग ने भी उनकी सफलता में योगदान दिया।

नागभट्ट:

  • नागभट्ट प्रथम (730-756 ई.) जालौर, अवन्ति तथा कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है।
  • ग्वालियर प्रशस्ति में नागभट्ट प्रथम को म्लेच्छों अर्थात् विदेशी आक्रमणकारियों का दमनकारक एवं दीन-दुखियों का उद्धारक होने के कारण ‘नारायण’ उपाधि से नवाजा गया है।
  • अपनी विजयों के कारण नागभट्ट द्वितीय उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बन गया। ऐसी दशा में उसने परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की।

बप्पा रावल:

  • यह मेवाड़ में गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। बप्पा ने मुस्लिम सेना से चित्तौड़ की रक्षा की। बप्पा ने चित्तौड़ पर अधिकार कर तीन उपाधियाँ धारण कैं-‘हिन्दू सूर्य’, ‘राजगुरु’ और ‘चक्कवै’।
  • पचास वर्ष की आयु में खुरासान विजय के उपरान्त बप्पा रावल की मृत्यु हो गई। उसका समाधि स्थल ‘बप्पा रावल’ के नाम से प्रसिद्ध है। उसने सोने के सिक्के का प्रचलन किया जिस पर कामधेनु, बछड़ा, शिवलिंग, नन्दी, दण्डवत करता हुआ पुरुष, नदी, मछली, त्रिशूल आदि का अंकन है।
  • इतिहासकार सी. वी. वैद्य ने उसकी तुलना ‘चार्ल्स मार्टेल’ (मुगल सेनाओं को सर्वप्रथम मात देने वाला फ्रांसीसी सेनापति) से की है।

तुर्क आक्रमण:

  • भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्क आक्रमणकारी गजनी का शासक सुबुक्तगीन था।
  • महमूद गजनवी ने भारत पर कुल 17 बार आक्रमण किया। उसका सोलहवाँ आक्रमण अत्यन्त भयंकर था।
  • सोमनाथ पर विजय के बाद महमूद ने स्वयं सोमनाथ की मूर्ति को तोड़ा और उसके टुकड़ों को गजनी मक्का व मदीना भिजवाकर वहाँ की प्रमुख मस्जिदों की सीढ़ियों के नीचे डलवा दिया।
  • 1173 ई. में गौर के शासक गियासुद्दीन ने गजनी पर अधिकार कर लिया और अपने छोवे, भाई शिहाबुद्दीनको गजनी का शासक नियुक्त किया।
  • कालान्तर में शिहाबुद्दीन इतिहास में मुइजुद्दीन मुहम्मद गौरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

पृथ्वीराज चौहान (1177-1192 ई.):

  • मुहम्मद गौरी पर भारत पर आक्रमणों के समय दिल्ली तथा अजमेर पर पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) का शासन था जो इतिहास में ‘राय पिथौरा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
  • पृथ्वीराज की माँ कर्पूरदेवी कुशल राजनीतिज्ञा थीं। इस कारण उसने प्रधानमन्त्री कदम्बवास और सेनापति भुवनमल्ल की सहायता से राज्य का शासन अधिगृहीत कर लिया।

पृथ्वीराज चौहान की विजयें:

  • अपने कुछ सैनिकों की हत्या का बदला लेने के लिए पृथ्वीराज ने 1182 ई. में महोबा राज्य पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में चंदेल शासक परमर्दी देव के दो सेनापति आल्हा और ऊदल खेत रहे।
  • पृथ्वीराज द्वारा जयचन्द्र की पुत्री संयोगिता का बलपूर्वक अपहरण कर विवाह किया जाना दोनों शासकों के बीच संघर्ष का चरमोत्कर्ष था।

संयोगिता की कहानी:

  • चन्दबरदाई की रचना ‘पृथ्वीराज रासो’ के अनुसार जयचन्द्र और पृथ्वीराज चौहान के बीच संघर्ष का कारण पृथ्वीराज चौहान द्वारा जयचन्द्र की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर उसके साथ विवाह करना था।
  • डॉ. आर. एस. त्रिपाठी, गौरीशंकर हीराचन्द तथा विश्वेश्वर नाथ रेऊ जैसे इतिहासकारों ने संयोगिता प्रकरण की ऐतिहासिकता का मात्र प्रेमाख्यान कहकर अस्वीकार कर दिया है।
  • इतिहासकार डॉ. ‘दशरथ शर्मा ने ‘दि अर्ली चौहान डाइनेस्टीज’ में संयोगिता प्रकरण को ऐतिहासिक तथ्य माना है।

पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच संघर्ष:

  • पृथ्वीराज रासो में 21 एवं हम्मीर महाकाव्य में सात बार गौरी पर पृथ्वीराज के विजयों का उल्लेख किया गया है।
  • एक गुप्त योजना के तहत गौरी ने रात्रि में यकायक राजपूत सेना पर आक्रमण किया। राजपूत सेना इस आक्रमण हेतु तैयार नहीं थी। अत: वह हार गई। पृथ्वीराज चौहान को सिरसा के पास सरस्वती नामक स्थान पर बन्दी बना लिया गया।

पृथ्वीराज चौहान की पराजय के कारण:

  • विजेता होने के बावजूद पृथ्वीराज चौहान में दूरदर्शिता एवं कूटनीति का अभाव था।
  • संयोगिता के साथ विवाह करने के बाद पृथ्वीराज ने राजकार्यों की उपेक्षा कर अपना जीवन विलासिता में बिताना प्रारम्भ कर दिया था।

पृथ्वीराज चौहान का मूल्यांकन:

  • पृथ्वीराज वीर एवं साहसी शासक था। अपने शासनकाल के प्रारम्भ से ही वह युद्ध करता रहा जो उसके अच्छे सैनिक और सेनाध्यक्ष होने की बात को प्रमाणित करता है।
  • चन्देरबरदाई पृथ्वीराज का राजकवि था, जिसके द्वारा रचित ग्रन्थ ‘पृथ्वीराज रासो’ हिन्दी साहित्य का पहला महाकाव्य माना जाता है।

पड्मिनी की कहानी:

  • मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत में रानी पद्मिनी की ऐतिहासिक कहानी का उल्लेख है।
  • अकबरनामा (अबुल फजल), गुलशन-ए-इब्राहिमी (फरिश्ता), जफरुलवली (हाजी उद्दवीर) एनल्स एण्ड एन्टि क्वीटिज ऑफ राजस्थान (कर्नल टॉड) आदि रचनाओं में उपर्युक्त कहानी का थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ उल्लेख किया गया है।
  • बूंदी के प्रसिद्ध कवि सूर्यमल्ल मिसग एवं कुछ आधुनिक इतिहासकारों ने पमिनी की कहानी की ऐतिहासिकता को स्वीकार नहीं किया है।

महाराणा कुम्भा (1433-1468 ई.):

  • महाराणा कुम्भा 1433 ई. में मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा। इसने मेवाड़ के गौरव को पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया।

कुम्भा की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ:

  • शासक बनने के समय कुम्भा के सम्मुख अनेक कठिनाइयाँ थीं। उसके विरुद्ध अनेक षड्यन्त्र किए जा रहे थे। विरोधी गुट मेवाड़ पर अधिकार करने हेतु प्रयासरत था।
  • यद्यपि कुम्भा ने अपने विरोधियों का दमन कर दिया किन्तु कुछ विरोधी भागकरे मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी के शरण में पहुँचने में सफल हो गए। इनमें एक्का एवं महपा पवार प्रमुख थे।

मेवाड़-मालवा सम्बन्ध:

  • मेवाड़ और मालवा दोनों एक-दूसरे के पड़ोसी राज्य थे और यहाँ के शासक अपने-अपने राज्यों की सीमाओं का विस्तार करना चाहते थे।
  • मालवा के सुल्तान द्वारा कुम्भा के विरोधियों को शरण देना उसको महँगा पड़ा। अन्य उपायों के असफल हो जाने के बाद कुम्भा ने मालवा पर आक्रमण करने का फैसला किया।
  • कुम्भा द्वारा मालवा पर किए गए आक्रमण में महमूद खिलजी पराजित हुआ। कुम्भा ने उसे बन्दी बना लिया किन्तु छः महीने बाद उसे रिहा कर दिया।

मेवाड़-गुजरात सम्बन्ध:

  • कुम्भा के समय गुजरात की अव्यवस्था खत्म हो चुकी थी और वहाँ के शासक अपने प्रभाव क्षेत्र के विस्तार के लिए लालायित थे।
  • 1456 ई. में फिरोज खाँ की मृत्यु होने के पश्चात् उसका पुत्र शम्सखाँ नागौर का नया स्वामी बना किन्तु फिरोज के छोटे भाई मुजाहिदखाँ ने शम्सखाँ को पराजित कर नागौर पर अपना अधिकार कर लिया।
  • मेवाड़-गुजरात सम्बन्ध के परिप्रेक्ष्य में कीर्ति स्तम्भ और रसिकप्रिया के अनुसार कुम्भा ने दोनों सुल्तानों को पराजित कर दिया। मुगल शासकों पर विजय के कारण कुम्भा ‘हिन्दू सुरंत्राण’ (हिन्दू बादशाह) के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

महाराणा कुम्भा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ:

  • कुम्भी एक वीर योद्धा ही नहीं अपितु कलाप्रेमी और विद्यानुरागी शासक भी था। इस कारण उसे युद्ध में स्थिर बुद्धि’ कहा गया है। एकलिंग माहात्म्य के अनुसार वह वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद्, व्याकरण, राजनीति और साहित्य में बड़ा निपुण था।
  • कुम्भा को ‘राणो रासो’ (विद्वानों का संरक्षक) कहा गया है। उसके दरबार में एकलिंग महात्म्य का लेखक कान्ह व्यास तथा प्रसिद्ध वास्तुशास्त्री मण्डन रहते थे। मण्डन ने देवमूर्ति प्रकरण (रूपातार), प्रासादमण्डन, राजवल्लभ (भूपतिवल्लभ), रूपमण्डन, वास्तुमण्डन, वास्तुशास्त्र और वास्तुकार नामक वास्तु ग्रन्थ लिखे।
  • कुम्भा द्वारा निर्मित कुम्भलगढ़ दुर्ग का परकोटा 36 किमी. लम्बा है जो चीन की दीवार के बाद विश्व की सबसे लम्बी दीवार मानी जाती है। रणकपुर (पाली) का प्रसिद्ध जैन मन्दिर महाराणा कुम्भा की समय में ही धारणक शाह द्वारा बनवाया गया था।
  • कुम्भलगढ़ अभिलेख में महाराणा कुम्भा को धर्म एवं पवित्रता का अवतार तथा दानी राजा भोज व कर्ण से बढ़कर बताया गया है।

विजयगढ़ स्तम्भ:

  • चित्तौड़ दुर्ग के भीतर स्थिर नौ मंजिले और 122 फीट ऊँचे विजय स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय की स्मृति में करवाया।
  • अनेक हिन्दू देवी-देवताओं की कलात्मक प्रतिमायें उत्कीर्ण होने के कारण विजय स्तम्भ को ‘पौराणिक हिन्दू मूर्तिकला का अनमोल खजाना’ (भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष) कहा जाता है।
  • भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान विजय स्तम्भ ने क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य किया।

मुगल आक्रमण:

  • भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना 1526 ई. में बाबर ने की। उसका जन्म 1483 ई. में फरगना नामक स्थान पर हुआ था। पिता उमर शेख मिर्जा की ओर से वह तैमूर का पाँचवाँ वंशज और माता कुतलुगनिगार खानम की ओर से चंगेजखाँ को चौदहवाँ वंशज था।
  • बाबर के आक्रमण के समय भारत का सबसे शक्तिशाली शासक मेवाड़ का महाराणा सांगा था, जो इतिहास में महाराणा संग्रामसिंह प्रथम के नाम से प्रसिद्ध है।

महाराणा सांगा:

  • महाराणा रायमल की मृत्यु के बाद 1509 ई. में 27 वर्ष की आयु में महाराणा सांगा मेवाड़ का शासक बना। मेवाड़ के महाराणाओं में वह सबसे अधिक प्रतापी योद्धा था।
  • राणा सांगा के शासन काल की घटनाओं में सर्वप्रथम मेवाड़ का गुजरात से संघर्ष था। इसके साथ ही दिल्ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी तथा उसके उत्तराधिकारी इब्राहीम लोदी से संघर्ष हुआ
  • 1517 ई. के संघर्ष में सांगा की विजय हुई। दो बार के संघर्ष में राणा सांगा की ही विजय हुई। मालवा के मेदिनीराय से उसके साथ सम्बन्ध सहयोगीपूर्ण थे।
  • मृत्यु सामय तक सांगा शरीर पर तलवारों व भालों के कम-से-कम 80 निशान लगे हुए थे जो उसे ‘एक सैनिक का भग्नावशेष’ सिद्ध कर रहे थे।
  • बाबर ने उसकी प्रशंसा में लिखा है कि “राणा सांगा अपनी बहादुरी और तलवार के बल पर बहुत बड़ा हो गया था। मालवा, दिल्ली और गुजरात का कोई अकेला सुल्तान उसे हराने में असमर्थ था। उसके राज्य की वार्षिक आय दस करोड़ थी। उसकी सेना में एक लाख सैनिक थे। उसके साथ 7 राजा, 9 राव और 104 छोटे सरदार रहा करते थे।”

बाबर और सांगा:

  • संघर्ष के कारण-
    • सांगा पर वचन भंग का आरोप,
    • महत्वाकांक्षाओं का टकराव,
    • राजपूत-अफगान मैत्री,
    • सांगा द्वारा सल्तनत के क्षेत्रों पर अधिकार करना।
  • सांगा और बाबर के मध्य खानवा का प्रसिद्ध युद्ध हुआ जिसमें राजपूत सैनिक बड़ी वीरता से लड़े फिर भी वे पराजित हुए।
  • परम्परागत युद्ध प्रणाली, हाथियों पर सवार होकर युद्ध करना, राजपूत सेना में एकता का अभाव तथा अपनी गतिशीलता के कारण राजपूत पराजित हुए।
  • युद्ध के परिणामस्वरूप राजपूतों की सर्वोच्चता का अन्त हो गया। राजपूत संगठन इस पराजय के साथ समाप्त हो गया।
  • भारतवर्ष में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।
  • बाबर स्थिर रूप से भारत का बादशाह बन गया।

रावचन्द्रसेन:

  • राव चन्द्रसेन अकबरकालीन राजस्थान का प्रथम स्वतन्त्र प्रकृति का शासक था। उसने जोधपुर राज्य को छोड़कर रात-दिन पहाड़ों में घूमना और
  • मुगल सेना से लड़ते रहना अंगीकार कर लिया किन्तु अधीनता स्वीकार नहीं की।
  • संघर्ष की जो शुरुआत चन्द्रसेन ने की थी उसी पर आगे चलकर महाराणा प्रताप ने बड़ा नाम कमाया।
  • इसी कारण चन्द्रसेन को ‘प्रताप का अग्रगामी’ तथा ‘मारवाड़े का प्रताप’ भी कहा जाता है।
  • इतिहास में समुचित महत्व न मिलने के कारण चन्द्रसेन को ‘मारवाड़ का भूला-बिसरा नायक’ कहा जाता है।

महाराणा प्रताप:

  • शासक बनने पर प्रताप ने आमेर, बीकानेर व जैसलमेर जैसी रियासतों की तरह अकबर की अधीनता स्वीकार न | कर मातृभूमि की स्वाधीनता को महत्व दिया और अपने वंश की प्रतिष्ठा के अनुकूल संघर्ष का मार्ग चुना।।
  • महाराणा प्रताप के समय हल्दी घाटी का प्रसिद्ध युद्ध (1576 ई.) अकबर के साथ हुआ।
  • अन्तिम समय तक युद्ध में न तो अकबर को विजय श्री मिली और न प्रताप ने ही मुगल अधीनता स्वीकार की। मेवाड़ अविजित रहा।
  • राणा प्रताप वीर, साहसी, पराक्रमी होने के साथ-साथ वे विद्वानों के संरक्षक भी थे। वे स्वतन्त्रता प्रेमी, शीलवान, स्त्री का सम्मान करने वाले तथा निहत्थों पर वार न करना उनके स्वभाव में था।
  • प्रताप ने ऐसा सुदृढ़ शासन स्थापित कर लिया था कि महिलाओं और बच्चों तक को किसी से भय नहीं रहा। आन्तरिक सुरक्षा भी लोगों को इतनी प्राप्त हो गई थी कि बिना अपराध के किसी को कोई दण्ड नहीं दिया जाता था।
  • 1588 ई. के अन्त तक प्रताप ने चित्तौड़, माण्डलगढ़ और अजमेर से उनको जोड़ने वाले अंतर्वर्ती क्षेत्रों के अतिरिक्त प्रायः सम्पूर्ण मेवाड़ पर अधिकार कर लिया। मुगल आक्रमण बंद होने के कारण प्रताप ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष चावंड में शांतिपूर्वक राज्य करते हुए बिताए।
  • प्रताप के संरक्षण में चावण्ड में रहते हुए चक्रपाणि मिश्र ने तीन संस्कृत ग्रन्थ-राज्याभिषेक पद्धति, मुहुर्तमाला एवं विश्ववल्लभ लिखे। ये ग्रन्थ क्रमश: गद्दीनशीनी की शास्त्रीय पद्धति, ज्योतिषशास्त्र और उद्यान विज्ञान के विषयों | से सम्बन्धित है।

वीर दुर्गादास राठौर:

  • मारवाड़ के इतिहास में वीर दुर्गादास का स्थान सर्वोपरि है। उनके प्रयासों से जोधपुर पर शाही नियन्त्रण स्थापित हुआ।
  • उन्होंने अपने जीवन काल के अन्त तक मारवाड़ की सुरक्षा की। अजीत सिंह की सुरक्षा का भरसक प्रयत्न किया। | राठौर-सिसौदिया गठबन्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • वे एक कुशल कूटनीतिज्ञ थे। उन्होंने न केवल अजीत सिंह की सुरक्षा की अपितु जोधपुर के सिंहासन पर आसीन किया। इसके लिए उन्होंने न केवल मेवाड़ के महाराणा राजसिंह के साथ मिलकर ‘राठौड़-सिसौदिया गठबन्धन’ किया अपितु शाहजादा अकबर को बादशाह के विरुद्ध विद्रोह के लिए प्रेरित भी किया।
  • अकबर के पुत्र बुलन्द अख्तर और पुत्री सफीयतुन्निसा को अपने पास रखकर दुर्गादास ने न केवल मित्रता निभाई। बल्कि अपने धर्म-दर्शन ‘सर्वपंथ समादर’ का भी परिचय दिया।
  • दुर्गादास ने अपने वीरोचित्त गुणों द्वारा औरंगजेब जैसे पाषाण हृदय व्यक्ति का दिल जीत लिया और मनसब प्राप्त किया। कर्नल जेम्स टॉड ने उसे राठौड़ों को यूलीसैस’ कहा है।

शिवाजी (1627-1680 ई.):

  • शिवाजी, मराठा सरदार शाहजी भोंसले व जीजाबाई की संतान थे। उनका जन्म 20 अप्रैल, 1627 को पूना (महाराष्ट्र) के समीप शिवनेर के पहाड़ी किले में हुआ था।
  • शिवाजी ने बाल्यावस्था में ही रामायण, महाभारत और दूसरे हिन्दू-शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया। 12 वर्ष की आयु में उन्हें अपने पिता की जागीर पूना प्राप्त हो गई।
  • शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति ने औरंगजेब को भी चिंतित कर दिया। उसने शिवाजी के दमन के लिए अपने मामा शाइस्ताखाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्ताखाँ ने शीघ्र ही पूना पर अधिकार कर लिया और वहीं से शिवाजी के विरुद्ध कार्यवाही का संचालन करने लगा।
  • शिवाजी को जून 1665 ई. को जयसिंह के साथ पुरन्दर की संधि करनी पड़ी। इस संधि के अनुसार अपने 23 दुर्ग मुगलों के हवाले कर दिये और आवश्यकता पड़ने पर बीजापुर के विरुद्ध मुगलों की सहायता करने का आश्वासन दिया।
  • कालान्तर में विभिन्न विपरीत परिस्थितियों के बावजूद शिवाजी एक प्रखर शासक बनकर उभरे।
  • उन्होंने बनारस के गंगाभट्ट नामक ब्राह्मण को बुलाकर जून 1674 ई. को राजधानी रायगढ़ में अपना राज्याभिषेक करवाया और ‘छत्रपति’, हिन्दू धर्मोद्धारक’, ‘गौ ब्राह्मण प्रतिपालक’ आदि उपाधियाँ धारण की।
  • शिवाजी के अंतिम दिन चिन्ता में बीते। एक तरफ तो वे अपने पुत्र शम्भाजी के मुगलों की शरण में जाने से दु:खी थे, दूसरी तरफ उनकी पत्नी सोयराबाई अपने पुत्र राजाराम को उत्तराधिकारी बनाने के लिए षड्यंत्र रच रही थी। | इन परिस्थितियों में अप्रैल 1680 ई. में शिवाजी की मृत्यु हो गई।
  • शिवाजी ने देश के लोगों में नव-जीवन का संचार करने तथा स्वतन्त्र हिन्दू राज्य की स्थापना के उद्देश्य से आजीवन संघर्ष किया।

पेशवा (1713-1740 ई.):

  • शिवाजी के कमजोर उत्तराधिकारियों के समय मराठा साम्राज्य की बागडोर उनके पेशवा (प्रधानमंत्री) के हाथों में आ गई।
  • सैय्यद बन्धु-अब्दुल्लाखाँ और हुसैनअली दिल्ली के शासक निर्माता थे। सैय्यद बन्धुओं ने बहादुरशाह प्रथम को हटाकर फर्रुखशियर को मुगल सिंहासन पर बैठाया था किन्तु वह शीघ्र ही इन दोनों भाइयों के खिलाफ षड्यंत्र करने लगा।
  • दक्खन में चौथ और सरदेशमुखी की वसूली के अधिकार प्राप्त करना बालाजी विश्वनाथ की बहुत बड़ी सफलता थी। उसे मराठा साम्राज्य का ‘द्वितीय संस्थापक’ (संस्थापक-शिवाजी) कहा जाता है।
  • पेशवा बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद उसके बड़े पुत्र बाजीराव (1720-40 ई.) को पेशवा पद पर नियुक्त किया गया। इस समय उसकी आयु मात्र 20 वर्ष थी।
  • 1740 ई. में बाजीराव ने निजाम-उल-मुल्क के द्वितीय पुत्र नासिरजंग को परास्त कर मुंगी शिवगांव की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया। इसके अनुसार नासिरजंग ने हांडिया और खरगांव के जिले मराठों को सौंप । दिए।
  • 8 मई, 1740 ई. को नर्मदा नदी के किनारे रावर नामक स्थान पर अचानक बाजीराव की मृत्यु हो गई।

अध्याय में दी गईं महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ:

632 ई. — मुहम्मद साहब की मृत्यु।
711 ई. — सिन्ध के समुद्री डाकुओं द्वारा अरबी जहाजों को लूटना।
712 ई. — अरब आक्रमणकारी मीर कासिम का आक्रमण।
730-36 ई. — नागभट्ट प्रथम का राज्यकाल।।
795 ई. — नागभट्ट द्वितीय प्रतिहार सिंहासन पर बैठा।
833 ई. — नागभट्ट द्वितीय द्वारा गंगा में डूबकरे आत्महत्या।।
1178 ई. — पृथ्वीराज चौहान ने शासन की बागडोर संभाली।
1191 ई. — तराइन का प्रथम युद्ध।
1192 ई. — तराइने का द्वितीय युद्ध।।
1296 ई. — जलालुद्दीन की हत्या तथा अंलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना।
1299 ई. — अलाउद्दीन खिलजी का गुजरात पर आक्रमण।।
1301 ई. — अलाउद्दीन खिलजी का रणथम्भौर पर अधिकार ।
1302 ई. — रावल रत्नसिंह मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा।
1303 ई. — अलाऊद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़ का घेरा तथा चित्तौड़ पर अधिकार।
1433 ई. — महाराणा कुम्भा मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा।
1443 ई. — महमूद खिलजी का कुम्भलगढ़ पर आक्रमण।
1456 ई. — चम्पानेर की सन्धि।
1526 ई. — मुगल साम्राज्य की स्थापना, पानीपत का प्रथम युद्ध।
1527 ई. — खानवा का युद्ध तथा राणा सांगा की पराजय।।
1562 ई. — राव चन्द्रसेन जोधपुर की गद्दी पर बैठा।
1563 ई. — राव चन्द्रसेन और उदयसिंह की सेनाओं के मध्य संघर्ष।
1570 ई. — अकबर नागौर पहुँचा।
1571 ई. — चन्द्रसेन द्वारा भाद्राजूण का परित्याग।
1572 ई. — गुजरात में विद्रोह, गोगुंदा में महाराणा प्रताप का राजतिलक।
1573 ई. — अकबर द्वारा चन्द्रसेन को अपने अधीन करने के प्रयत्न।
1575 ई. — चन्द्रसेन को अपनी तरफ मिलाने का अकबर का प्रयत्न ।
1576 ई. — हल्दीघाटी का युद्ध।
1638 ई. — दुर्गादास का जन्म।
1674 ई. — शिवाजी का राज्याभिषेक।
1678 ई. — जमरुद में जसवन्त सिंह की मृत्यु।
1680 ई. — महाराणा राजसिंह की मृत्यु ।।
1681 ई. — अकबर ने नाडोल में स्वयं को बादशाह घोषित किया।
1707 ई. 1 — औरंगजेब की मृत्यु।
1713 ई. — बालाजी विश्वनाथ पेशवा बना।
1720 ई. — बाजीराव की पेशवा पद पर नियुक्ति ।
1724 ई. — बाजीराव की मालवा विजय।।
1728 ई. — पालखेड़ का युद्ध।
1740 ई.. — बाजीराव की मृत्यु।

महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दावली, स्थल एवं व्यक्ति:

  • मुहम्मद साहब — इस्लाम धर्म के प्रवर्तक। इनकी मृत्यु के बाद भारत पर अरबी आक्रमणों का सिलसिला प्रारम्भ हुआ।
  • दाहिर — देवल का शासक। यह एक ब्राह्मण राजा था। इसके राज्य की सीमाएँ उत्तर में कश्मीर और पूर्व में प्रतिहारों के कन्नौज तक फैली हुई थीं।
  • सिंध — प्राचीन भारत का भूभाग/राज्य जिसने पचहत्तर वर्षों तक बाह्य आक्रमणकारियों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया। |
  • खलीफा — इस्लामी जगत् का ऐसा प्रतिष्ठित व्यक्ति जो धार्मिक प्रमुख होने के साथ-साथ साम्राज्य का राजनैतिक अधिकारी भी होता था।
  • मुहम्मद बिन कासिम — अक्रामक अरब आक्रमणकारी जिसे खलीफा ने जीवित ही बैल की खाल में सिलवा दिया था। इसका कारण दाहिर की राजकुमारियों द्वारा उस पर उनका कौमार्य भंग करने का तथाकथित आरोप था।
  • नागभट्ट प्रथम — इसको जालौर, अवन्ति और कन्नौज में गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है। ग्वालियर प्रशस्ति में इसको म्लेच्छों (विदेशी आक्रमणकारी) का दमनकारक और दोनों का उद्धारक होने के कारण ‘नारायण’ उपाधि से विभूषित किया गया।
  • नागभट्ट द्वितीय — अपनी विजयों के कारण यह उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बन गया। इसके कारण इसने परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की।
  • बप्पा रावल — इसको गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इतिहासकार सी. वी. वैद्य ने इसकी तुलना चार्ल्स मार्टेल से की है जो मुगल सेनाओं को सर्वप्रथम हराने वाला फ्रांसीसी सेनापति था।
  • बापा रावल — बप्पा रावल की समाधि ‘बापा रावल’ के नाम से प्रसिद्ध है।
  • सुबुक्तगीत — भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्क आक्रमणकारी। यह गजनी का शासक था।
  • महमूद गजनवी — तुर्क आक्रमणकारी। इसने भारत पर कुल 17 बार आक्रमण किए जिनमें 1025 ई. में सोमनाथ मंदिर पर किया गया उसका सोलहवाँ आक्रमण सर्वाधिक वीभत्स था। |
  • कर्पूरदेवी — पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) की माँ एवं कुशल राजनीतिज्ञा अपने प्रधानमन्त्री एवं सेनापति के माध्यम से सम्बद्ध राज्य का दायित्व सँभाला।।
  • आल्हा व ऊदल — चन्देल शासक परमर्दीदेव के सेनापति। ये दोनों 1182 ई; में महोबा युद्ध के दौरान पृथ्वीराज चौहान द्वारा मारे गए।
  • पृथ्वीराज रासो — पृथ्वीराज के राजकवि चन्दरवरदाई द्वारा कृत महाकाव्य। इसमें पृथ्वीराज का यशोगान सन्निहित है। इसे हिन्दी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है। |
  • संयोगिता — गहड़वाल राज्य के शासक जयचन्द्र की पुत्री। ऐसा माना जाता है कि यह पृथ्वीराज चौहान से प्रेम करती थी, और इसी के कारण जयचन्द्र एवं पृथ्वीराज के बीच शत्रुता बढ़ी। |
  • शब्दभेदी बाण — पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज ने इसी बाण से मुहम्मद गौरी की हत्या की थी। ऐसी मान्यता है कि यह बाण शब्द उच्चारित करने वाले व्यक्ति का सटीक अनुमान लगाकर उसका प्राणान्त कर देता है। |
  • दलपंगुल — अनेक युद्धों में सफल होने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने दलपुंगल अर्थात् विश्व विजेता की उपाधि धारण की।
  • मिफ्ता — उल-फुतूह-अमीर खुसरो द्वारा रचित ग्रन्थ। इसमें उसने हम्मीर चौहान एवं जलालुद्दीन के बीच युद्धों एवं युद्ध की रणनीतियों का खुलासा किया है। |
  • हम्मीर महाकाव्य — नयनचन्द्र सूरी कृत रचना। इस कृति के अनुसार रणथम्थौर पर आक्रमण का कारण हम्मीर चौहान द्वारा अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेनापति मीर मुहम्मद शाह को शरण देना था।
  • नव-मुसलमान — नव-मुसलमानों के तहत वे मुसलमान आते थे जिन्होंने जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के समय इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था। इनमें प्रमुखतया मंगौल सम्मिलित थे। ।
  • भैरव यन्त्र, ठिकुलिया तथा मर्कटी यन्त्र— ये यन्त्र रणथम्भौर के दुर्ग के रक्षार्थ लगाए गए थे। इनसे पत्थरों की बौछार होती थी। जिसकी अत्यन्त गम्भीर चोट विरोधी पक्ष को लगती थी।
  • जौहर — तत्कालीन राजपूताने में ऐसी व्यवस्था अथवा प्रथा जिसमें की पराजय/हत्या के बाद रानी चिता में जलकर या जल में डूबकर आत्महत्या कर लेती थी। सामान्य सैनिकों की पत्नियाँ भी ऐसा ही करती थीं।
  • शरणागत की रक्षा — इसका आशय है-शरण में आए लोगों की रक्षा करना। हम्मीर देव चौहान इस हेतु इतिहास प्रसिद्ध है।
  • सिकन्दर सानी — अलाउद्दीन खिलजी ने यह उपाधि धारण की। इसका अर्थ द्वितीय सिकन्दर है अर्थात् अलाउद्दीन सिकन्दर महान की तरह बनना चाहता था।
  • पद्मावत — मलिक मुहम्मद जायसी कृत रचना। इसमें रानी पद्मिनी का उल्लेख है। ‘पद्मावत’ के अनुसार रत्न सिंह पर अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण रानी पदमिनी को प्राप्त करने के लिए ही था।
  • खिज़ाबाद — रावल रत्नसिंह को पराजित करने के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया और अपने बेटे खिज्र खाँ को वहाँ का प्रशासन सौंपकर दिल्ली चला गया।
  • हिन्दू सुरत्राण — मुगल शासकों पर विजय प्राप्त करने के कारण महाराणा कुम्भा को ‘हिन्दू सुरत्राण’ (हिन्दू बादशाह) कहा गया।
  • युद्ध में स्थिर बुद्धि — कुम्भा वीर योद्धा होने के साथ-साथ कला प्रेमी व विद्यानुरागी भी था। इसीलिए उसे ‘युद्ध में स्थिर बुद्धि’ कहा गया।
  • राणौ रासो — विद्वानों का संरक्षक होने के कारण महाराणा कुम्भा को यह उपाधि प्रदान की गई। |
  • वीर विनोद — कविराज श्यामल दास की कृति। इसके अनुसार मेवाड़ के कुल 84 दुर्गों में से अकेले महाराणा कुम्भा ने 32 दुर्गों का निर्माण करवाया।
  • मुगल साम्राज्य की नींव — पानीपत के प्रथम युद्ध (1526 ई.) में इब्राहिम लोदी को पराजित कर बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव
  • तुजुक-ए-बाबरी — तुर्की भाषा में लिखित बाबर की आत्मकथा।
  • हिन्दूपत-महाराणा सांगा की एक उपाधि, जिसका अर्थ हिन्दू प्रमुख’ था।
  • शुक्र तालाब — 1570 ई. में अपनी अजमेर यात्रा के दौरान अकबर मारवाड़ क्षेत्र में दुष्काल की खबरें सुनकर नागौर पहुँचा। अपने सैनिकों को
  • दुष्काल से बचाने हेतु उसने एक तालाब खुदवाया जो ‘शुक्र तालाब’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
  • प्रताप का अग्रगामी/मारवाड़ का प्रताप — आत्म सम्मानी, स्वातन्त्र्यत्रियता एवं देशभक्ति आदि गुणों के कारण चन्द्रसेन को प्रताप का अग्रगामी/मारवाड़ का प्रताप कहा जाता है।
  • मारवाड़ का भूला — बिसरा नायक-अपेक्षा से कम महत्व मिलने के कारण चन्द्रसेन को मारवाड़ का भूला-बिसरा नायक कहा जाता है।
  • आभूषणरहित विधवा स्त्री — चित्तौड़ की दीन, दया एवं विध्वंस की स्थिति को देखकर कवियों ने उसे यह उपमा दी थी।
  • पंचधातु — इसका आशय पाँच धातुओं से है। इसके अन्तर्गत सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल एवं काँसा धातुओं को सम्मिलित किया जाता है।
  • रामप्रसाद — यह महाराणा प्रताप का सर्वप्रसिद्ध हाथी था। अकबर ने युद्ध में इसे प्राप्त करने के बाद इसका नाम ‘पीर प्रसाद’ रख दिया।
  • चंदावल — सेना में सबसे पीछे की पंक्ति चंदावल कही जाती थी। 42. चेतक-राणा प्रताप के प्रसिद्ध घोड़े का नाम। 43. राठौड़ों का यूलीसैस-इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने वीर दुर्गादास राठौड़ के लिए इस कथन को प्रयुक्त किया।
  • छत्रपति/हिन्दू धर्मोद्धारक/गौ ब्राह्मण प्रतिपालक — ये शिवाजी की उपाधियाँ हैं जिन्हें उन्होंने जून 1674 में धारण की।
  • शिवाजी उत्सव — मराठा जननायक शिवाजी की स्मृति में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा 1895 ई. में शुरू किया गया उत्सव। |
  • बालाजी विश्वनाथ — इसे मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक कहा जाता है।

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