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RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 17 भारत के संविधान की विशेषताएँ

August 7, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 17 भारत के संविधान की विशेषताएँ

  • किसी भी देश का संविधान व राजनीतिक व्यवस्था वहाँ की आस्थाओं, विश्वासों, शाश्वत मूल्यों और सिंद्धातों पर आधारित होती है।
  • भारत के संविधान निर्माताओं ने देश के ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही संविधान का निर्माण किया है।
  • भारत के संविधान निर्माताओं का लक्ष्य एक लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था, इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में संविधान के आदर्शों को स्पष्ट किया है।
  • भारत के संविधान निर्माताओं ने संविधान में विश्व के अन्य संविधानों के श्रेष्ठ गुणों को शामिल किया है तथा साथ ही उन्होंने भारतीय परिस्थितियों की आवश्यकतानुसार उसमें वांछित परिवर्तन किये जाने का विकल्प रखा है। भारत के संविधान को जीवंत संविधान का दर्जा दिया गया है।
  • भारत का संविधान ऐसा लिखित कानूनी दस्तावेज है, जिसे लिखने में सर्वाधिक समय 2 वर्ष 11 माह तथा 18 दिन लगे।
  • संविधान के मूल वैचारिक आधार की अभिव्यक्ति को अत्यंत संक्षिप्त रूप में प्रस्तावना’ शीर्षक में व्यक्त किया गया है।
  • भारत के संविधान में उन आदर्शों को सम्मिलित किया गया है जो संविधान की लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता, सभी लोगों की स्वतंत्रता, समानता व न्याय को सुनिश्चित करते हैं।

भारतीय संविधान की विशेषताएँ:

  • भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ हैं-
    • सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न संविधान,
    • प्रस्तावना,
    • विश्व का | सबसे विशाल संविधान,
    • लिखित व निर्मित संविधान,
    • संसदीय शासन व्यवस्था,
    • मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य,
    • राज्य के नीति निर्देशक तत्वे,
    • वयस्क मताधिकार,
    • पंथ निरपेक्ष राज्य,
    • समाजवादी राज्य,
    • विलक्षण दस्तावेज,
    • स्वतंत्र न्यायपालिका,
    • एकात्मक व संघात्मक तत्वों का अद्भुत संयोग,
    • कठोरता व लचीलेपन का मिश्रण,
    • न्यायिक पुनरावलोकन व संसदीय सम्प्रभुता का समन्वय,
    • विश्वशांति का समर्थक, .
    • आपातकालीन उपबन्ध,
    • एकल नागरिकता,
    • लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना का आदर्श,
    • अल्पसंख्यक एवं पिछड़े वर्गों के कल्याण की विशेष व्यवस्था।
  • भारत का संविधान प्रभुसत्ता पर आधारित संविधान है अर्थात यहू भारतीय जनता द्वारा निर्मित है।
  • भारत के संविधान द्वारा अंतिम शक्ति भारतीय जनता को प्रदान की गई है।
  • डॉ. के. एम. मुंशी ने प्रस्तावना को संविधान की राजनीतिक कुंडली कहा है। इसे संविधान की आत्मा भी कहा जाता है। भारतीय संविधान व्यापक व विस्तृत संविधान है। इसमें 395 अनुच्छेद, 22 भाग, 12 अनुसूचियाँ एवं 05 परिशिष्ट शामिल हैं।
  • भारतीय संविधान में अब तक 101 संशोधन हो चुके हैं तथा संशोधन की यह प्रक्रिया अनवरत जारी है।
  • भारतीय संविधान संघात्मक है। इसमें संघ व राज्यों के बीच संबंधों का व्यापक वर्णन किया गया है।
  • भारत में संसदीय व्यवस्था को केन्द्र के साथ राज्यों में भी अपनाया गया है जहाँ राज्यपाल सांविधानिक प्रमुख होता है।
  • भारतीय संविधान में नागरिकों के मूल अधिकारों का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है।
  • संविधान निर्माताओं ने देश के नागरिकों को 7 मौलिक अधिकार दिये थे,परन्तु 44 वें संशोधन के बाद संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों से हटा दिया गया है। अतः वर्तमान में 6 मौलिक अधिकार रह गए हैं।
  • अनुच्छेद 21 के बाद एक नया अनुच्छेद 21(ए) जोड़ा गया है,जिसके अनुसार 6 से 14 वर्ष की उम्र के सभी बच्चों को अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था राज्य का दायित्व है।
  • आयरलैड के संविधान से प्रेरित होकर भारतीय संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक तत्वों को सम्मिलित किया गया है।
  • प्रस्तावना में समाजवादी राज्य’ शब्द भारतीय राज व्यवस्था को एक नई दिशा दिये जाने की भावना को दृष्टिगत रखकर जोड़ा गया है।
  • देश के संविधान में 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने वाले प्रत्येक नागरिक को मताधिकार प्रदान किया गया है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार धर्म के क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
  • हमारा संविधान एक विलक्षण दस्तावेज है। दक्षिण अफ्रीका ने एक प्रतिमान के रूप में हमारे देश के संविधान को ‘स्वीकार किया है।
  • भारत एक संघात्मक राज्य है। संविधान में संघ शब्द के स्थान पर ‘union of states’ शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • भारत के राज्य अपना पृथक संविधान नहीं रख सकते। केवल एक ही संविधान केन्द्र व राज्य दोनों पर लागू होता है।
  • भारत के राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है तथा उन्हें संसद में महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है।
  • कार्यपालिका के आदेश तथा व्यवस्थापिका के कानून यदि संवैधानिक व्यवस्थाओं का उल्लंघन करते हैं तो न्यायपालिका को उन्हें अवैध घोषित करने का अधिकार है।
  • नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 32 के अंतर्गत पुनरावलोकन द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण, अधिकार पृच्छा जैसे लेखों को जारी किया जा सकता है।
  • भारतीय संविधान कठोरता व लचीलेपन का मिश्रण है।
  • संविधान में कठोरता का समावेश संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से व लचीलेपन को ब्रिटेन के संविधान से ग्रहण किया गया है।
  • संवैधानिक संशोधन के लिए भारतीय संविधान में संशोधन विधि की व्यवस्था अनुच्छेद 368 में की गई है।
  • संविधान के कुछ विषयों में संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों के पूर्ण बहुमत व उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
  • भारतीय संविधान में न्यायिक पुनरावलोकन के सिंद्धात व संसदीय संप्रभुत्ता के मध्य मार्ग को अपनाया गया है।
  • हमारे संविधान में संसद को सर्वोच्च माना गया है, साथ ही उसको नियंत्रित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को । संविधान की व्याख्या करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय कार्यपालिका के उन आदेशों तथा संसद द्वारा निर्मित विधि को अवैध घोषित कर सकता है जो संविधान की भावना के अनुरूप न हों।
  • वसुधैव कुटुम्बकम” के सिद्धांत को अपनाते हुए भारतीय संविधान में विश्व शांति का समर्थन किया गया है।
  • नीति-निर्देशक तत्वों में अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा तथा राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण वे सम्मानजनक संबंधों की स्थापना करे।
  • भारत सरकार ने विश्व शांति के समर्थन के लिए पंचशील एवं गुटनिपेक्षता की नीति को अपनाया है।
  • संविधान के भाग 18 में आपातकालीन उपबंधों का उल्लेख किया गया है।
  • अनुच्छेद 352 के अनुसार बाहरी आक्रमण, सशस्त्र विद्रोह एवं युद्ध की स्थिति में एवं अनुच्छेद 356 के अनुसार राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता की स्थिति में तथा अनुच्छेद 360 के अनुसार वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर संपूर्ण देश या देश के किसी भाग में आपातकाल लागू किया जा सकता है। इसमें शासन राष्ट्रपति के अधीन संचालित होता है।
  • संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान में संघ राज्य की स्थापना करते हुए एकल नागरिकता के आदर्श को ही अपनाया गया है।
  • भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के धार्मिक, भाषायी और सांस्कृतिक हितों की रक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की गई है।
  • संविधान के अनुच्छेद 330 व 332 के तहत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों को लोकसभा व विधान सभाओं में आरक्षण प्रदान किया गया है।
  • अनुच्छेद 335 में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए सरकारी सेवाओं में आरक्षण के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

प्रस्तावना:

  • संविधान के गौरवपूर्ण मूल्यों को संविधान की प्रस्तावना में रखा गया है। प्रस्तावना को उद्देशिका भी कहते हैं।
  • 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा में संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित एवं आत्मार्पित किया गया।
  • संविधान में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 की धारा-2 के द्वारा प्रस्तावना में सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य के साथ-साथ राष्ट्र की एकता और अखण्डता जैसे शब्द जोड़े गए।

प्रस्तावना की विस्तृत विवेचना:

  • भारतीय संविधान का स्त्रोत भारत की जनता है अर्थात् जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों की सभा द्वारा संविधान का निर्माण किया गया है।
  • भारत पूर्ण रूप से प्रभुत्व सम्पन्न राज्य है।
  • भारत में समाज के कमजोर व पिछड़े वर्गों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने व आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया है।
  • भारत में राज्याध्यक्ष वंशानुगत न होकर निर्वाचित प्रतिनिधि होता है।
  • भारतीय संविधान में नागरिकों हेतु सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय की व्यवस्था की गई है। हमारे संविधान में बंधुत्व का आदर्श दो आधारों
  • पर टिका हुआ है-
    • राष्ट्र की एकता,
    • व्यक्ति की गरिमा।।
  • प्रस्तावना में संविधान के मूलभूत आदर्शों को दर्शाया गया है।

महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ:

  • 26 नवम्बर 1949 भारतीय संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को इस दिन अंगीकृत, अधिनियमित एवं आत्मार्पित किया गया।
  • सन् 1960 ई. संविधान के अनुच्छेद 330 व 332 के तहत अनुसूचित जातियों व जनजातियों को लोकसभा व विधानसभाओं में आरक्षण प्रदान किया गया है। प्रारम्भ में यह व्यवस्था 25 जनवरी 1960 तक के लिए की गई थी किन्तु संविधान में संशोधन कर इसकी समय सीमा को बढ़ा दिया गया है
  • सन् 1976 ई. 42वे संविधान संशोधन 1976 के द्वारा नागरिकों के 10 मूल कर्तव्य निर्धारित किये गये 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा भारत को समाजवादी गणराज्य घोषित किया गया है। 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 की धारा 2 के तहत प्रस्तावना में गणराज्य के स्थान पर समाजवादी, लोकतंत्रात्मक व पंथनिरपेक्ष को स्थापित किया गया।
  • सन् 1993 ई. अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए केन्द्र सरकार की सेवाओं में सिंतबर 1993 से 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया।
  • सन् 2009 ई. शिक्षा के अधिकार में 86 वाँ संवैधानिक संशोधन (दिसबर 2002) जो कि जुलाई 2009 में संसद में पारित किया गया ।
  • सन् 2010 ई. 1 अप्रैल 2010 में शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में संविधान में शामिल कर लिया गया। 95 में संवैधानिक संशोधन 2010 के आधार पर लोकसभा व विधानसभाओं में अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था को 25 जनवरी 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
  • सन् 2016 ई. संविधान का 101 वाँ संशोधन वस्तु व सेवाकर से संबंधित है जिसे राष्ट्रपति ने सिंतबर 2016 में हस्ताक्षरित किया है।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 17 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • संविधान — किसी देश के शासन को चलाने वाले नियमों व सिद्धान्तों के समूह को संविधान कहते हैं।
  • जीवंत संविधान — वह संविधान जो एक जीवित प्राणी की तरह समय-समय पर उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों के अनुरूप कार्य करता है, जीवंत संविधान कहलाता है।
  • अंगीकृत — अंगीकृत का अभिप्राय है-अपनाना अर्थात् राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के नेताओं ने संविधान को अपनाया ताकि देश में श्रेष्ठ शासन व्यवस्था संचालित हो सके।
  • प्रस्तावना — प्रस्तावना एक वैधानिक प्रलेख में प्राक्कथन के रूप में होती है। विधि के अनुसार प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है और न ही हम इसे किसी न्यायालय द्वारा कार्यान्वित करने योग्य बना सकते हैं। प्रस्तावना के द्वारा संविधान के मूल उद्देश्यों व लक्ष्यों को स्पष्ट किया गया है। |
  • संसदीय शासन व्यवस्था — शासन की वह प्रणाली जिसमें कार्यपालिका अपने कार्यों एवं कार्यकाल के लिए व्यवस्थापिका अर्थात् संसद के प्रति उत्तरदायी होती है, संसदीय शासन व्यवस्था कहलाती है।
  • मौलिक अधिकार — ऐसे अधिकार जो व्यक्ति के लिए मौलिक तथा अनिवार्य होने के कारण संविधान द्वारा प्रदान किए जाते हैं तथा जिन अधिकारों में राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, मौलिक अधिकार कहलाते हैं।
  • नीति निर्देशक तत्व — भारतीय संविधान में लोक व्यवहार के निर्वाह के लिए कुछ मत निर्धारित किए गए हैं, जिनका पालन करना सरकार के लिए अनिवार्य है। भारतीय संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख है।।
  • समाजवादी राज्य — उत्पादन व वितरण के प्रमुख साधनों पर समाज अथवा राज्य का सामूहिक स्वामित्व एवं नियंत्रण रखने वाले राज्य। इसका उद्देश्य अधिकतम सामाजिक कल्याण करना होता है।
  • वयस्क मताधिकार — 18 वर्ष और इससे ऊपर के समस्त नागरिकों को मत देने का अधिकार जिसमें धर्म, नस्ल, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव न हो।
  • पंथ निरपेक्ष — इसका आशय यह है कि भारत धर्म के क्षेत्र में न तो धर्म विरोधी है न ही धर्म का प्रचारक बल्कि वह तटस्थ है। इसलिए सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है। |
  • कठोर संविधान — ऐसा संविधान जिसमें अनावश्यक परिवर्तनों के प्रति कठोर रवैया अपनाया जाए अर्थात् जिस संविधान का संशोधन करना बहुत जटिल होता है, ऐसे संविधान को कठोर संविधान कहा जाता है।
  • लचीला संविधान — ऐसा संविधान जिसके परिवर्तन में खुली दृष्टि हो अर्थात् ऐसा संविधान जिसमें एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत आवश्यकतानुसार संशोधन किया जा सके।
  • न्यायिक पुनरावलोकन — सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी भी कानून की संवैधानिकता की जाँच करने सम्बन्धी शक्ति ।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण — बंदी बनाए गए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने सम्बन्धी आदेश।
  • अधिकार पृच्छा — न्यायालय द्वारा ऐसे व्यक्ति को कार्य करने से रोकने का आदेश जो ऐसे पद पर नियुक्त हो गया हो जिस पर उसका कानूनी हक न हो।
  • वसुधैव कुटुम्बकम — इसका आशय है कि विभिन्न धर्मों एवं सामाजिक व्यवस्थाओं वाले देशों के साथ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व बनाए रखना।
  • पंचशील — यह बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिपादित पाँच व्रतों का पारिभाषिक शब्द है। इसका आशय हैं-आचरण के पाँच सिद्धांत।।
  • गुटनिरपेक्षता — इसका आशय है सैन्य गुटों से पृथक रहना।
  • लोक कल्याणकारी राज्य — ऐसा राज्य जो समाज के कमजोर वर्गों के हितों तथा उनकी सेवा का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेता है।
  • अधिनियम — किसी विधान के अन्तर्गत बनाया गया नियम अथवा कानून।
  • संविधान संशोधन — संविधान संशोधन से आशय है-इसका पुनर्निर्माण अथवा पुनः रचना करना। देश की बदलती हुई परिस्थितियों में तथा जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु संविधान में कुछ परिवर्तन की जरूरत होती है जिसे संविधान संशोधन की संज्ञा दी जाती है।
  • धर्म निरपेक्षता — इसका अर्थ यह है कि भारत धर्म क्षेत्र में न धर्म विरोधी है और न ही किसी भी धर्म का प्रचारक।’ धर्मनिरपेक्ष’ एक तटस्थ अवधारणा है जिसके अतंर्गत सभी धर्मों को अपनाया गया है व उनके साथ समान व्यवहार किया जाता है।
  • लोकतंत्रात्मक — इसका आशय यह है कि भारत में राजसत्ता का प्रयोग जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि करते हैं। और वे जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
  • गणराज्य — इसका अर्थ है कि भारत में राज्याध्यक्ष या सर्वोच्च व्यक्ति वंशानुगत न होकर निर्वाचित प्रतिनिधि होता है। 25. संविधान सभा-जनता के प्रतिनिधियों की वह सभा जो संविधान का निर्माण करती है, संविधान सभा कहलाती है।
  • संघात्मक शासन — जिस शासन प्रणाली में राज्य की समस्त शक्तियों का विभाजन स्वयं सरकार और उसकी इकाइयों के मध्य होता है, उसे संघात्मक शासन कहते हैं।
  • सम्प्रभुता — यह किसी स्वतंत्र राज्य का एकं अत्यन्त अनिवार्य तत्व होता है। इसका अर्थ होता है-बिना किसी आंतरिक और बाहरी दबाव, प्रभाव अथवा हस्तक्षेप के राज्य की निर्णय लेने की क्षमता ।।
  • सामाजिक न्याय — सामाजिक न्याय का अर्थ है कि सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समानता प्राप्त हो। जाति, धर्म,वर्ग नस्ल या लिंग आदि किसी भी आधार पर नागरिकों में भेदभाव न हो। इसके साथ ही समस्त नागरिकों को विकास के समान अवसर प्राप्त हों।
  • आर्थिक न्याय — अनुच्छेद 39 के अंतर्गत आर्थिक न्याय को सम्मिलित किया गया है इसमें राज्यों को अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करने के लिए कहा गया है कि समान रूप से सभी नागरिकों को आजीविका के साधन प्राप्त करने का अधिकार हो, समुदाय की भौतिक संपत्ति का स्वामित्व व वितरण इस प्रकार हो जिसमें अधिकाधिक सामूहिक हित संभव हो सकें। पुरुषों व स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले। उत्पादन व वितरण के साधनों का अहितकर केन्द्रीयकरण न हो।
  • उद्देशिका — मूल भारतीय संविधान की प्रस्तावना को उद्देशिका कहते हैं।
  • राजनीतिक न्याय— राजनीतिक न्याय का अर्थ है कि बिना भेदभाव के सभी को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के अधिकारों में बराबरी का हिस्सा मिले। भारतीय संविधान वयस्क मताधिकार की स्थापना व सांविधानिक उपचारों द्वारा राजनीतिक न्याय के आदर्श को मूर्त रूप प्रदान करता है।
  • डॉ. भीमराव अम्बेडकर — संविधान निर्माण की प्रारूप समिति के अध्यक्ष । इन्होंने माना कि भारतीय संविधान शांति व युद्धकाल में देश की एकता बनाए रखने की सामर्थ्य रखता है।
  • हरिविष्णु कामथ — संविधान सभा के सदस्य। इन्होंने भारतीय संविधान को विश्व का सबसे विशाल संविधान माना।
  • डॉ. के. एम. मुंशी — प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ 1950-51 में केन्द्र सरकार में स्वाथ्य मंत्री तथा 1952-57 तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे। इन्होंने प्रस्तावना को संविधान की राजनीतिक कुंडली माना।
  • वेंकटरमन — भारत के पूर्व राष्ट्रपति। इनका पूरा नाम रामास्वामी वेंकटरमन था।
  • आपातकाल — सम्पूर्ण देश या क्षेत्र विशेष में उत्पन्न राजनीतिक आर्थिक एवं युद्धजनित संकट की स्थिति।

RBSE Class 12 Political Science Notes

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