Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 22 न्यायपालिका-सर्वोच्च न्यायालय का गठन, कार्य एवं न्यायिक पुनरावलोकन
सर्वोच्च न्यायालय:
- भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व के सबसे शक्तिशाली न्यायालयों में से एक है।
- समाज में समस्त नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायपालिका बहुत ही महत्वपूर्ण है।
- कानून के शासन’ का भाव यह है कि धनी और गरीब, स्त्री व पुरुष आदि सभी पर एक समान कानून लागू हों।
- न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका यह है कि वह कानून के शासन की रक्षा तथा कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करे।।
- न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करती है, विवादों को कानून के अनुसार हल करती है और यह सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र का स्थान किसी एक व्यक्ति या समूह की तानाशाही न ग्रहण कर ले।
- न्यायपालिका किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त होनी चाहिए।
- न्यायाधीशों की नियुक्तियों के मामले में विधायिका को सम्मिलित नहीं किया गया है।
- न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए किसी व्यक्ति को वकालत का अनुभव या कानून का विशेषज्ञ होना चाहिए।
- न्यायाधीशों का कार्यकाल निश्चित होता है। वे सेवानिवृत्त होने तक पद पर बने रहते हैं। केवल अपवाद स्वरूप विशेष परिस्थितियों में ही न्यायाधीशों को उनके पद से हटाया जा सकता है। .न्यायाधीशों के कार्यकाल को कम नहीं किया जा सकता है। कार्यकाल की सुरक्षा के कारण न्यायाधीश बिना भय या भेदभाव के अपना काम कर पाते हैं।
- न्यायपालिका विधायिका या कार्यपालिका पर वित्तीय रूप से निर्भर नहीं होती है। संविधान के अनुसार न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते के लिए विधायिका की स्वीकृति नहीं ली जाएगी।
- कोई न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया जाता है तो न्यायपालिका को उसे दंडित करने का अधिकार है।
- संसद न्यायाधीशों के आचरण पर केवल तभी चर्चा कर सकती है जब वह उनके विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव पर विचार कर रही हों। इससे न्यायपालिका आलोचना के भय से मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से निर्णय करती है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति:
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से करता है।
- न्यायाधीशों की नियुक्तियों के संबंध में वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद् के पास होती है।
- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अन्य चार वरिष्ठतम् न्यायाधीशों की सलाह से कुछ नाम प्रस्तावित करेगा और इसी में से राष्ट्रपति नियुक्तियाँ करेगा। इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्तियों की सिफारिश के संबंध में सामूहिकता का सिद्धांत” स्थापित किया।
न्यायाधीशों को पद से हटाना:
- संविधान में न्यायाधीशों को हटाने के लिए बहुत जटिल प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
- न्यायाधीशों को कदाचार साबित होने अथवा अयोग्यता की दशा में ही पद से हटाया जा सकता है।
- न्यायाधीशों के विरुद्ध आरोपों पर संसद के एक विशेष बहुमत की स्वीकृति आवश्यक होती है।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका है, वहीं उनको हटाने की शक्ति विधायिका के पास है।
न्यायपालिका की संरचना:
- भारत में न्यायपालिका की संरचना पिरामिड की तरह है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय, फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला और अधीनस्थ न्यायालय हैं। नीचे के न्यायालय अपने ऊपर के न्यायालयों की देखरेख में काम करते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार:
- मौलिक क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि कुछ मुकदमों की सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय कर सकता है। ऐसे मुकदमों में पहले निचली अदालतों में सुनवाई आवश्यक नहीं होती है।
- संघीय संबंधों से जुड़े मुकदमें सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जाते हैं।
- मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर कोई भी व्यक्ति न्याय पाने के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय अपना विशेष आदेश रिट (लेख) के रूप में दे सकता है। उच्च न्यायालय भी रिट जारी कर सकते हैं।
- जिस व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है उसके पास विकल्प है कि वह चाहे तो उच्च न्यायालय या सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है। इन रिटों के माध्यम से न्यायालय कार्यपालिका को कुछ करने या न करने का आदेशं दे सकता है।
- कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है।
- अगर फौजदारी के मामले में निचली अदालत किसी को फाँसी की सजा दे दे, तो उसकी अपील सर्वोच्च या उच्च न्यायालय में की जा सकती है।
- अपीलीय क्षेत्राधिकार का अर्थ यह है कि सर्वोच्च न्यायालय सम्पूर्ण मुकदमे पर पुनर्विचार करेगा और उसके कानूनी मुद्दों की पुनः जाँच करेगा।
- यदि न्यायालय को लगता है कि कानून या संविधान का यह अर्थ नहीं है जो निचली अदालतों ने समझा तो सर्वोच्च न्यायालय उनके निर्णय को बदल सकता है तथा इसके साथ उन प्रावधानों की नई व्यवस्था भी दे सकता है।
- उच्च न्यायालयों को भी अपने नीचे की अदालतों के निर्णय के विरुद्ध अपीलीय क्षेत्राधिकार है।
- भारत का राष्ट्रपति लोकहित या संविधान की व्याख्या से संबंधित किसी विषय को सर्वोच्च न्यायालय के पास परामर्श के लिए भेज सकता है।
- भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन जनहित याचिकाएँ रही हैं।
- लोकतांत्रिक शासन का आधार यह है कि सरकार का प्रत्येक अंग एक-दूसरे की शक्तियों और क्षेत्राधिकार का सम्मान करे।
न्यायपालिका और अधिकार:
- न्यायपालिका को व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करने का दायित्व सौंपा गया है।
- अनुच्छेद 13 में सर्वोच्च न्यायालय किसी कानून को गैर-संवैधानिक घोषित कर उसे लागू होने से रोक सकता है।
- अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय को मूल अधिकारों की रक्षा हेतु बंदी प्रत्यक्षीकरण व परमादेश जैसी रिट (लेख) जारी करने की शक्ति प्राप्त है।
- अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालयों को रिट (लेख) जारी करने की शक्ति प्राप्त है।
न्यायपालिका और संसद:
- संसद कानून बनाने और संविधान का संशोधन करने में सर्वोच्च है। कार्यपालिका उन्हें लागू करने तथा न्यायपालिका विवादों को सुलझाने और यह सुनिश्चित करने में सर्वोच्च है कि क्या बनाए गए कानून संविधान के अनुकूल हैं।
- अनेक निर्णयों के माध्यमों से न्यायपालिका ने संविधान की नई व्याख्याएँ दी हैं और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की है।
निष्कर्ष:
- लोकतंत्र विधायिका व न्यायपालिका के बीच एक अत्यन्त संवेदनशील संतुलन पर आधारित है।
अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं संबंधित घटनाएँ:
1950 ई. — इस वर्ष से ही भारत में न्यायपालिका ने संविधान की व्याख्या एवं सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
1979 ई. — बदलाव की शुरूआत करते हुए 1979 ई. में न्यायालय ने एक ऐसे मुकदमें की सुनवाई करने का निर्णय लिया जिसे पीड़ित लोगों ने नहींबल्कि उनकी ओर से दूसरों ने दाखिल किया था, ऐसे ही अनेक मुकदमों को ‘जनहित याचिकाओं’ का नाम दिया गया।
2014 ई. — 13 अगस्त एवं 14 अगस्त को क्रमशः लोकसभा एवं राज्यसभा में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक, 2014 एवं सम्बद्ध संविधानसंशोधन विधेयक, 2014 पारित हुए।
2015 ई. — केन्द्र सरकार ने 13 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली में बदलाव लाने केलिए राष्ट्रीय नियुक्ति आयोग अधिनियम 2014 एवं 99 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 को अधिसूचित किया।
RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 22 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
- न्यायपालिका — कानून के अनुसार न्याय प्रदान करने वाली संस्था को न्यायपालिका कहते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय — भारत में कानून के अनुसार न्याय प्रदान करने वाली देश की सर्वोच्च संस्था/भारतीय न्याय व्यवस्था की शीर्षस्थ संस्था।
- अधिकार — जीवन की वे आवश्यक शर्ते जिसके बिना कोई भी व्यक्ति पूर्ण, प्रसन्न एवं उद्देश्यपूर्ण जीवन नहीं जी पाता, अधिकार कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में अधिकार मूल रूप से हमारे हक के ऐसे दावे हैं जिनका औचित्य सिद्ध होता है। इन्हें समस्त समाज वैध दावे के रूप में स्वीकार करता है।
- कानून का शासन — कानून के शासन का भाव यह है कि धनी और निर्धन, स्त्री और पुरुष, अगड़े और पिछड़े सभी लोगों पर एक समान रूप से कानून लागू है। न्याय का आधार कानून होना चाहिए तथा कानून के समक्ष सभी एक समान होने चाहिए अर्थात् किसी को भी कोई छूट या विशेषाधिकार न दिया जाए।
- लोकतंत्र — लोकतंत्र शासन को वह रूप है, जिसमें शासन की सत्ता स्वयं जनता के पास रहती है और जिसका प्रयोग जनता प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से करती है। इसे प्रजातन्त्र भी कहते हैं।
- विधायिका — कानून का निर्माण करने वाली संस्था। इसके सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं। यह जनता के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है। हमारी राष्ट्रीय विधायिका को संसद कहते हैं।
- कार्यपालिका – कार्यपालिका सरकार का वह अंग है जो व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों को लागू करती है।
- संसद — भारत में केन्द्रीय व्यवस्थापिका (राष्ट्रीय विधायिका) को संसद कहा जाता है। इसके दो सदन हैं-(i) लोकसभा, (ii) राज्यसभा।।
- न्यायालय की अवमानना — न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय की अवहेलना करना/न मानना/ इस हेतु न्यायालय सम्बन्धित व्यक्ति को दण्डित कर सकता है।
- न्यायाधीश — कानून के अनुसार न्याय प्रदान करने वाला व्यक्ति ।
- कॉलेजियम व्यवस्था — सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की एक प्रक्रिया। इसके तहत राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सलाह से न्यायाधीशों की नियुक्ति करता
- स्वतंत्र न्यायपालिका — एक ऐसी न्यायिक व्यवस्था जिसमें न्यायपालिका पर विधायिका और कार्यपालिका का नियंत्रण न हो तथा ये उसके कार्य में बाधा उत्पन्न न कर सकें।
- विपक्ष का नेता — लोकसभा/राज्यसभा में सत्ताधारी दल से कम संख्या बल वाले दल/दलों का नेता जिसे अध्यक्ष/सभापति ने विरोधी दल के नेता के रूप में मान्यता प्रदान कर दी है। | 14. पिरामिड — मिश्र की सभ्यता में शवों को सुरक्षित रखने के लिए इस प्रकार के भवन बनाए जाते थे जो आधार पर बहुत चौड़े एवं शीर्ष पर सँकरे होते थे। उन्हें पिरामिड के नाम से जाना जाता था। हमारे देश की न्यायपालिका संरचना पिरामिड की तरह है। जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय फिर उच्चन्यायालय तथा सबसे नीचे बड़ी संख्या में जिला व : अधीनस्थ न्यायालय हैं।
- जिला न्यायालय — जिला स्तर पर कार्यरत वह न्यायालय जो जिले में दायर मुकदमों की सुनवाई करता है। यह जिले का सबसे बड़ा न्यायालय होता है।..
- अधीनस्थ न्यायालय — ये जिला स्तर पर निचले स्तर के कार्यरत न्यायालय होते हैं। ये फौजदारी और दीवानी किस्म के मुकदमों पर विचार करते हैं।
- फौजदारी मुकदमें — लड़ाई-झगड़े, डकैती, मारपीट, हत्या, दहेज आदि अपराधों से सम्बन्धित मुकदमें फौजदारी मुकदमें कहलाते हैं।
- दीवानी मुकदमें — सम्पत्ति, धन, विवाह, समझौते या किसी सेवा सम्बन्धी झगड़ों के मामले दीवानी मुकदमें कहलाते हैं। यदि किसी दीवानी मामले में लोक महत्व का कोई ऐसा प्रमुख कानूनी बिन्दु है जिसकी व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वांछित है, तो उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
- मौलिक क्षेत्राधिकार — मौलिक क्षेत्राधिकार से आशय यह है कि कुछ मुकदमों की सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय कर सकता है। ऐसे मुकदमों में पहले निचली अदालत में सुनवाई जरूरी नहीं है।
- रिट — मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सर्वोच्च या उच्च न्यायालय कार्यपालिका को कुछ करने या न करने का जो आदेश देता है उसे रिट यो लेख कहते हैं।
- न्यायिक सक्रियता — जब न्यायपालिका व्यवस्थापिका या कार्यपालिका द्वारा किए जा रहे संवैधानिक कृत्यों के विरुद्ध दिशा निर्देश जारी करती है तो ऐसी कार्यवाही को न्यायिक सक्रियता कहा जाता है।
- जनहित याचिका — पीड़ित व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति द्वारा जन सामान्य के हित को ध्यान में रखकर दायर की गयी याचिका।।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण — गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश।
- परमादेश — सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा कानूनी और संवैधानिक दायित्वों का पालन न करने पर कर्त्तव्य निर्वहन हेतु न्यायालय द्वारा जारी किया जाने वाला आदेश।
- मौलिक अधिकार — ऐसे अधिकार जो व्यक्ति के लिए मौलिक एवं अनिवार्य होने के कारण संविधान द्वारा प्रदान किए जाते हैं तथा जिन अधिकारों में राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, मौलिक अधिकार कहलाते हैं।
- न्यायिक पुनरावलोकन — यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा न्यायपालिका यह परखती है कि व्यवस्थापिका द्वारा बनाया गया कानून अथवा कार्यपालिका का कोई कार्य संविधान के अनुसार है या नहीं। यदि सर्वोच्च न्यायालय को लगे कि संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन हो रहा है तो वह कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकता है।
- केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सी. बी. आई.) — भारत सरकार की यह संस्था भ्रष्ट राजनेताओं एवं अधिकारियों के साथ-साथ अन्य आपराधिक मामलों की जाँच करती है।
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