These comprehensive RBSE Class 9 Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 9 Science Chapter 14 Notes प्राकृतिक सम्पदा
→ पृथ्वी पर उपस्थित संपदा-पृथ्वी पर उपस्थित मुख्य संपदा स्थल, जल एवं वायु है। जैवमंडल स्थल मंडल, वायु मंडल तथा जल मंडल से मिलकर बना है। यहाँ तीनों मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं। इसी आधार पर इसे जैवमंडल कहा गया है। सजीव जीवमंडल के जैविक घटक हैं तथा वायु, जल, मृदा इसके अजैविक घटक हैं।
→ जीवन की श्वास : वायु-वायु में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड व जलवाष्प पाई जाती है। शुक्र तथा मंगल ग्रहों के वायुमंडल में 95 से 97% कार्बन डाइऑक्साइड पाई जाती है। हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 1% का एक छोटा-सा भाग है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड दो विधियों से ‘स्थिर’ होती है – (i) हरे पेड़-पौधे सूर्य की किरणों की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड को ग्लूकोस में बदल देते हैं । (ii) बहुत से समुद्री जन्तु समुद्री जल में घुले कार्बोनेट से अपने कवच बनाते हैं।
→ वायुमण्डल – वायुमण्डल पृथ्वी का औसत तापमान स्थिर रखता है। वायुमण्डल में जलवाष्प बनती है।। यह जलवाष्प जल के गर्म होने का परिणाम है । स्थलीय भाग या जलीय भाग से होने वाले विकिरण के परावर्तन तथा पुनर्विकिरण के कारण वायुमण्डल गर्म होता है। इससे वायुमण्डल में संवहन धाराएँ उत्पन्न होती हैं। पवन गति का निर्माण इन्हीं संवहन धाराओं से होता है।
→ वर्षा – पृथ्वी पर जल वर्षा के माध्यम से आता है। वर्षा होने की प्रक्रिया में दिन में जब जलीय भाग गर्म हो जाते हैं तब जल वाष्प बनकर वायुमण्डल में जाता है। यहाँ यह जलवाष्प ठण्डी होकर जल बूंदों के रूप में संघनित हो जाती है आयु में उपस्थित धूल के कणों पर जमा होती रहती हैं। बाहरी हो जाती हैं, तब ये बूंदें वर्षा के रूप में नीचे की ओर गिरती हैं।
→ वायु प्रदूषण-वायु के संगठन में अवांछित गैसों की मात्रा के मिलने के कारण परिवर्तन आ जाता है, इसे वायु प्रदूषण कहते हैं । जीवाश्म ईंधन-कोयला और पेट्रोलियम पदार्थ जलकर वायुमण्डल में नाइट्रोजन व सल्फर के ऑक्साइड मिलाते हैं जो हमारी श्वसन क्रिया को प्रभावित करते हैं तथा अम्लीय वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं। साथ ही हाइड्रोकार्बन बनाते हैं जो वायुमण्डल में निलंबित कणों के रूप में उपस्थित रहते हैं। प्रदूषित वायु से कैंसर, हृदय रोग या एलर्जी जैसी बीमारियाँ होने की संभावनाएँ अधिक हो जाती हैं।
→ जल : एक अद्भुत द्रव-पृथ्वी तल पर यह सबसे बड़े (75 प्रतिशत) भाग में उपस्थित है। यह अधिकतर समुद्र व महासागरों में है किन्तु यह खारा है । शुद्ध जल बर्फ के रूप में दोनों ध्रुवों पर और बर्फ से ढके पहाड़ों पर पाया जाता है। जल हमारे लिए अतिआवश्यक है, क्योंकि हमारे शरीर में कोशिकीय प्रक्रियाएँ जलीय माध्यम में होती हैं तथा हमारे शरीर में पदार्थों का संवहन भी घुली हुई अवस्था में होता है। अतः शरीर में जल संतुलन आवश्यक है। जल की उपलब्धता प्रत्येक स्पीशीज के वर्ग, जो कि एक विशेष क्षेत्र में जीवित रहने में सक्षम हैं, की संख्या को ही निर्धारित नहीं करती अपितु यह वहाँ के जीवन में विविधता को भी निर्धारित करती है।
→ जल प्रदूषण-जल उन कीटनाशक और उर्वरकों को घोल लेता है, जिनका उपयोग हम खेतों में करते हैं। अतः इनका कुछ प्रतिशत भाग जल में चला जाता है। शहर या नगर के नाले का जल और उद्योगों का कचरा भी नदियों में चला जाता है। कुछ निष्पादित गर्म जल भी जलाशय में चला जाता है। ये सभी कारक जल में रहने वाले जीवों को प्रभावित करते हैं। इससे विभिन्न जीवों का सन्तुलन बिगड़ जाता है।
→ मृदा में खनिज की प्रचुरता-पृथ्वी की सबसे बाहरी सतह पर पाए जाने वाले खनिज, जीवों को विभिन्न प्रकार से पोषण के लिए तत्व प्रदान करते हैं। यह सतह मृदा कहलाती है। यह मृदा चट्टानों के क्षरण से बनती है। क्षरण की क्रिया में तापक्रम व जल बहाव सहयोग करते हैं। वायु के प्रवाह से भी पत्थर आपस में टकराकर मृदा बनाते हैं। कुछ जीव जैसे-लाइकेन आदि का भी मृदा निर्माण में योगदान होता है। मृदा में विभिन्न आकार के छोटे-छोटे टुकड़े मिले होते हैं, साथ ही इसमें सड़े-गले जीवों के टुकड़े भी मिल जाते हैं, जिसे ह्यूमस कहते हैं।
मृदा के गुण का निर्धारण उसमें स्थित ह्यूमस की मात्रा और पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों के आधार पर होता है। आधुनिक खेती में पीड़कनाशी और उर्वरकों का बड़ी मात्रा में प्रयोग किया जाता है, इससे मृदा में उपस्थित सूक्ष्मजीव मृत हो जाते हैं। इससे मृदा संरचना पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यदि संपूषणीय खेती नहीं की जाए तो उपजाऊ मृदा बंजर भूमि में परिवर्तित हो सकती है। इस प्रकार उपयोगी घटकों का मृदा और दसरे हानिकारक पदार्थों का मृदा में मिलना, जो मृदा की उर्वरता को प्रभावित करते हैं और उसमें स्थित जैविक विविधता को नष्ट कर देते हैं, भूमि प्रदूषण कहलाता है।
मृदा अपरदन को रोकने में पौधों की जड़ों का बड़ा योगदान है।
→ जैव रासायनिक चक्र-जीवमण्डल के जैविक और अजैविक घटकों के मध्य सामंजस्य बनाये रखने में विभिन्न जैव रासायनिक चक्रों का योगदान है।
(i) जलीय चक्र-वर्षा की प्रक्रिया से जल वायुमण्डल में जाकर पुनः जलस्रोतों में आ जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ जल मृदा में तथा कुछ भूजल स्रोतों में चला जाता है। इससे जैवमण्डल को यह लाभ होता है कि खनिज लवण इस जल में घुलकर नदी तथा समुद्रों में चले जाते हैं, जिनका उपयोग जलीय जीव करते हैं।
(ii) नाइट्रोजन चक्र-नाइट्रोजन तत्व का नाइट्रोजन के यौगिक में बदलना नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कहलाता है । ग्रन्थिलदार जड़ोंयुक्त पादप, कुछ जीवाणु व नील हरित शैवाल यह कार्य करते हैं। जीव नाइट्रोजन का उपयोग करते हैं। भूमि में उपस्थित विनाइट्रीकारक जीवाणु नाइट्रोजन यौगिकों को नाइट्रोजन के रूप में बदलते हैं जिससे नाइट्रोजन पुनः वायुमण्डल में पहुँच जाती है।
(iii) कार्बन चक्र-हरे पौधे वायुमण्डल से CO2 लेकर प्रकाश-संश्लेषण द्वारा संयुक्त कार्बनिक यौगिक बनाते हैं तथा यह कार्बनिक यौगिक जीवों में भोजन के रूप में चला जाता है। साथ ही पौधों का कुछ भाग कोयले के रूप में भण्डारित होता है, जो दहन के बाद CO2 देता है। यह CO, वायुमण्डल में चली जाती है। जीव भी श्वसन क्रिया के माध्यम से ऊर्जा प्राप्त कर CO2 देते हैं। इस प्रकार यह CO2 पुनः वायुमण्डल में चली जाती है। कार्बन चक्र द्वारा वायुमण्डल में CO2 की मात्रा का स्तर स्थिर बना रहता है।
ग्रीन हाउस प्रभाव-वायुमण्डल में उपस्थित CO2 गैस ऊष्मा को वायुमण्डल में जाने से रोकती है। इसका उपयोग ठण्डे मौसम में उष्णकटिबंधीय पौधों को गर्म रखने के लिए किया गया है। यह आवरण ग्रीन हाउस कहलाता है। कुछ अन्य गैसें भी ऊष्मा को पृथ्वी के वायुमण्डल से बाहर जाने से रोकती हैं। इन गैसों की वृद्धि से संसार का औसत तापमान बढ़ रहा है। यह प्रभाव ग्रीन हाउस प्रभाव कहलाता है।
(iv) ऑक्सीजन चक्र-0 की मात्रा वायुमण्डल में 21% होती है। यह श्वसन हेतु आवश्यक है। इससे दहन तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड भी बनते हैं। ऑक्सीजन प्रकृति में केवल प्रकाश-संश्लेषण के माध्यम से ही पहँचती है। प्रकृति में O2 तथा CO2 का अनुपात इसी आधार पर स्थिर रहता है।
→ ओजोन परत-वायुमण्डल के ऊपरी भाग में ऑक्सीजन के तीन परमाणु वाले अणु पाए जाते हैं, इसे O3 (ओजोन) कहते हैं। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक विकिरणों का अवशोषण करती है तथा हमें उसके दुष्प्रभावों से बचाती है। इसका क्षय हो रहा है जिसका मुख्य कारण फ्लोरोकार्बन (CFC) है।
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