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RBSE Solutions for Class 12 Business Studies

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

July 10, 2019 by Prasanna Leave a Comment

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 1

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जोखिमों से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी अनिष्ट, क्षति, विनाश, हानि या दुर्घटना अथवा संभावना या अनिश्चितता को ही जोखिम कहते हैं।

प्रश्न 2.
बीमा क्या है?
उत्तर:
बीमा से आशय किसी व्यक्ति को भावी जोखिमों एवं अनिश्चितताओं से सुरक्षा प्रदान करता है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 3.
बीमा सहकारी व्यवस्था है, कैसे?
उत्तर:
बीमा जन्म ही सहकारिता के सिद्धान्त के आधार पर हुआ है। सहकारिता के अन्तर्गत सामूहिक हित के लिए लोग स्वैच्छिक आधार पर संगठित होते हैं और एक सबके लिए तथा सब एक के लिए सिद्धान्त का पालन करते हैं। बीमा प्रत्येक व्यक्ति एक सामान्य कोष में एक निश्चित राशि एक निश्चित समय अन्तराल से जमा करवाता है। किसी भी सदस्य को हानि होने पर उस कोष में से क्षतिपूर्ति की जाती है।

प्रश्न 4.
सामाजिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामाजिक सुरक्षा से तात्पर्य समाज के लोगों को किसी दुर्घटना, बीमारी, वृद्धावस्था, मृत्यु आदि के समय प्रदान की जाने वाली सुरक्षा से है।

प्रश्न 5.
एजेण्ट एवं नौकर में क्या अन्तर है?
उत्तर:
भारतीय उच्च न्यायालय के अनुसार एजेण्ट व नौकर में निम्न अन्तर हैं –

  1. एजेण्ट का पारिश्रमिक, कमीशन या फीस कहलाती है जबकि नौकर का पारिश्रमिक वेतन कहलाता है।
  2. एजेण्ट कभी भी नौकर नहीं बन सकता जबकि नौकर कई बार एजेण्ट भी हो सकता है।
  3. एजेण्ट नियोक्ता की ओर से तीसरे पक्षकार के साथ अनुबन्ध स्थापित कर सकता है नौकर ऐसा नहीं कर सकता।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 6.
बीमा एजेण्ट कौन बन सकता है?
उत्तर:
बीमा एजेण्ट निम्न योग्यताधारी व्यक्ति बन सकता है –

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. आवेदक की आयु कम से कम 18 वर्ष यानि वयस्क हो।
  3. वह स्वस्थ मस्तिष्क का हो।
  4. वह किसी सक्षम न्यायालय द्वारा गबन, धोखाधड़ी, जालसाजी, अपराध के लिए उकसाने या किसी ऐसे दण्डनीय अपराध के लिए दोष नहीं पाया गया हो किन्तु किसी अपराधी को ऐसे किसी अपराध की सजा पूरी किये 5 वर्ष बीत गए हों तो वह इस श्रेणी में नहीं आता है।

प्रश्न 7.
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना क्या है?
उत्तर:
18 वर्ष से 70 वर्ष की आयु का व्यक्ति यह बीमा करवा सकता है। मात्र Rs.12 वार्षिक प्रीमियम के रूप में। भुगतान सीधे उस व्यक्ति के वैध खाते से हो जाता है। यह एक वर्षीय बीमा है – यह बीमा मानवीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2015 में प्रारम्भ किया। इसमें बीमित की मृत्यु हो जाने पर 2 लाख और शारीरिक क्षति हाथ / पैर के काम न करने पर या असमर्थ होने पर 1 लाख Rs. बीमित के खाते में सीधे भुगतान किया जाता है।

प्रश्न 8.
सामाजिक बीमा क्या है?
उत्तर:
समाज के निम्न एवं बेसहारा वर्ग को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सामाजिक बीमा योजनाओं का प्रारम्भ किया गया। इस बीमा के अन्तर्गत बेरोजगारी, बीमारी, आकस्मिक दुर्घटनाओं, वृद्धावस्था, प्रसूति, मृत्यु आदि अनेक जोखिमों का बीमा किया जाता है।

प्रश्न 9.
‘योग क्षेमम्’ का उल्लेख किस ग्रंथ में किया गया है?
उत्तर:
‘योग क्षेमम्’ का उल्लेख ऋगवेद में बीमा के लिए किया गया है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 10.
बीमा का आधारभूत उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
बीमा का आधारभूत उद्देश्य बीमित की संभावना एवं अनिश्चितता की जोखिम से सुरक्षा प्रदान करना है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बीमा की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
बीमा से आशय किसी व्यक्ति को भावी जोखिमों एवं अनिश्चितताओं से सुरक्षा प्रदान करना है। बीमे के अर्थ को सामाजिक, व्यावसायिक तथा अनुबन्धात्मक दृष्टिकोण से पारिभाषित किया जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से ”बीमा वह योजनाएँ हैं जिसके अन्तर्गत एक बड़ी संख्या में लोग मिलकर किन्हीं एकाकी व्यक्तियों की जोखिमों को अपने कन्धों पर ले लेते हैं।”

व्यावसायिक दृष्टि से “बीमा एक प्रणाली है जिसमें वित्तीय जोखिमों को एक पेशेवर जोखिम उठाने वाली बीमा कम्पनी को हस्तांतरित कर दिया जाता है।” इसके बदले में बीमित प्रीमियम को भुगतान करता है।

अनुबन्धात्मक दृष्टि से, “बीमा बीमित एवं बीमाकर्ता के बीच एक अनुबन्ध है जिसे बीमाकर्ता एक निश्चित प्रतिफल (प्रीमियम) के बदले बीमित को बीमापत्र में उल्लिखित घटनाओं से होने वाली हानि पर एक निश्चित धनराशि देने का वचन देता है।”

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
इन्श्योरेन्स एवं एश्योरेन्स में अन्तर बताइये।
उत्तर:
एश्योरेन्स एवं इन्श्योरेन्स में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 1

प्रश्न 3.
बीमा तथा जुए में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
बीमा तथा जुए में निम्नलिखित अन्तर हैं –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 2

प्रश्न 4.
बीमा जोखिमों को रोकने का विधि नहीं बल्कि जोखिम बाँटने की विधि है? समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
बीमा के अन्तर्गत समान प्रकार की जोखिमों से घिरे हुए व्यक्ति प्रीमियम के रूप में एक कोष में अंशदान करते हैं और उनमें से किसी भी सदस्य की हानि होने पर उस कोष से क्षति पूर्ति कर दी जाती है। इस प्रकार बीमा में एक व्यक्ति की हानि को अनेक व्यक्तियों में बाँटकर बहन कर लिया जाता है लेकिन हानि को रोका नहीं जा सकता है। अतः हम कह सकते हैं कि बीमा जोखिमों को रोकने की विधि नहीं बल्कि जोखिम बाँटने की विधि है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
बीमा के प्राथमिक उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बीमा के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं –
प्राथमिक उद्देश्य:
प्राथमिक कार्यों में उन समस्त कार्यों को सम्मिलित किया जा सकता है जिनके लिए बीमा का विकास हुआ है। ये प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –
1. जोखिमों के विरुद्ध निश्चितता प्रदान करना – बीमा का प्राथमिक कार्य जोखिमों तथा हानियों की अनिश्चितता को कम करना है। मेगी ने भी लिखा है कि “बीमा का कार्य निश्चितता प्रदान करना है।” व्यवसाय तो जोखिमों का ही खेल है। व्यवसाय की इन सभी जोखिमों में से कुछ जोखिमों को बीमा द्वारा बीमाकर्ता को हस्तान्तरित किया जा सकता है। इस प्रकार बीमा करवाकर किसी व्यक्ति अथवा संस्था की जोखिम को (प्रीमियम का राशि, तक) निश्चित किया जा सकता है। बीमा जोखिमों की अनिश्चितता को कम कर सकता है किन्तु जोखिमों को समाप्त नहीं कर सकता।

2. सुरक्षा प्रदान करना – प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि वह विभिन्न जोखिमों से, हानियों से तथा भविष्य की अनिश्चितताओं से सुरक्षित हो तथा जहाँ तक हो सके वह इनसे मुक्त हो। बीमा का प्राथमिक कार्य व्यक्तियों को हानियों के सम्भावित संयोगों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करना है। प्रो. हॉपकिन्स ने लिखा है कि “बीमा आर्थिक हानि के विरुद्ध सुरक्षा है।” प्रत्येक व्यक्ति अपना बीमा करवाकर सुरक्षित हो सकता है। इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति सम्पत्ति तथा मकान, फर्नीचर, मूल्यवान वस्तुओं, अग्नि, चोरी आदि का बीमा करवाकर सुरक्षित हो सकता है।

3. जोखिम का विभाजन करना – प्रो. थॉमस ने ठीक ही लिखा है कि “बीमा जोखिम को बाँटने या विभाजित करने का तरीका है।” बीमा के अन्तर्गत समान प्रकार की जोखिमों से घिरे हुए व्यक्ति एक कोष में अंशदान करते हैं और उनमें से किसी भी सदस्य की हानि होने पर उस कोष से क्षतिपूर्ति कर दी जाती है।

4. जोखिमों का मूल्यांकन करना – बीमा बीमित की जोखिम का मूल्यांकन एवं निर्धारण भी करता है। कई घटकों पर विचार करते हुए बीमाकर्ता हानि की संभाविता को आंकता है तथा उसके अनुरूप बीमित के अंशदान को निर्धारित करता है। जोखिम की मात्रा के अनुसार ही अंशदान की राशि तय की जाती है।

5. अनुसन्धान करना – बीमा को एक प्राथमिक कार्य बीमा के क्षेत्र में अनुसन्धान करना भी है। बीमाकर्ताओं को अपनी सफलता को बनाये रखने के लिए निरन्तर अनुसन्धान करते रहना चाहिए। उन्हें अपनी विद्यमान बीमा योजनाओं की उपयोगिताओं का अध्ययन करना चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 6.
फसल बीमा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कृषि की जोखिमों के कारण कुछ वर्षों से यह बीमा काफी प्रचलित है इसमें जलवायु सम्बन्धी कारणों यथा – सूखा, बाढ़, आंधी – तूफान, पौधों की बीमारी से क्षति, महामारी या प्रकोप से होने वाली क्षति को बीमित द्वारा बीमाकर्ता के माध्यम से क्षतिपूर्ति प्राप्त की जा सकती है। बीमित एक किसान होना है किसान अपनी फसल की सुरक्षा की गारन्टी कुछ प्रीमियम देकर बीमाकर्ता द्वारा बीमा पत्र में उल्लिखित शर्तों के अनुसार बीमा करवा लेता है। यदि फसल को उपरोक्त कारणों से कोई क्षति पहुँचती है तो उसकी भरपाई बीमाकर्ता द्वारा की जाती है।

प्रश्न 7.
बीमा मानसिक शान्ति प्रदान करता है। टीका कीजिए।
उत्तर:
बीमा चिन्ता मुक्त करता है क्योंकि बीमा व्यवसायी को भविष्य में होने वाली अनिश्चितताओं, जोखिमों एवं हानियों से सुरक्षा का वचन देता है अत: चिन्तामुक्त व्यक्ति को स्वाभाविक है मानसिक शान्ति प्राप्त होगी – बीमा से जोखिमों की पूर्ति के साथ – साथ धीरे – धीरे बचत भी प्राप्त होती है।

प्रो. एन्जेल ने ठीक ही लिखा है कि, “बचत के साधन के रूप में जीवन बीमा का जबरदस्त मनोवैज्ञानिक लाभ है। क्योंकि बीमा अर्द्ध – अनिवार्य प्रकृति का है।” जीवन बीमा द्वारा बचत करने के कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं –

  1. बीमा द्वारा बचत में क्रमबद्धता व निरन्तरता बनी रहती है।
  2. बीमो प्रीमियम के रूप में जमा करवाये गये धन को आसानी से निकलवाया नहीं जा सकता है।
  3. बैंक में धन जमा करवाने से केवल मूलधन एवं ब्याज मिलता है किन्तु बीमा की दशा में जोखिमों का बीमा तो होता ही है साथ ही जमा प्रीमियम की राशि भी मिल जाती है।
  4. बीमा करवाने की दशा में बीमा प्रीमियम का भुगतान अनिवार्य रूप से करना ही पड़ता है। फलत: बीमा में बचत भी अनिवार्य रूप से होती है।

इस प्रकार बैंक जमा या अंशों या ऋणपत्रों द्वारा बचत की अपेक्षा जीवन बीमापत्रों के माध्यम से बचत अत्यधिक निश्चितता से की जा सकती है। इतना ही नहीं, अब तो जीवन बीमा पत्रों की योजनाएँ इस प्रकार बनाई जाने लगी हैं जिनसे लोगों में सुरक्षा की प्रवृत्ति के साथ – साथ बचत की भी प्रवृत्ति बढ़ रही है। इस बचत व जोखिम की निश्चितता से बीमा द्वारा मानसिक शान्ति प्रदान की जाती है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 8.
जीवन बीमा के साथ – साथ निवेश भी है। समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि निवेश, बीमा का प्रमुख कार्य नहीं है फिर भी बीमे से विनियोग का लाभ मिलने लगा है। जीवन बीमा में सुरक्षा के साथ – साथ निवेश तत्व भी पाया जाता है। बीमित बीमा कराकर छोटी – छोटी प्रीमियम बीमाकर्ता को जमा कराता रहता है, यदि बीमित की मृत्यु हो जाती है तो बीमा राशि उसके उत्तराधिकारी को भुगतान कर दी जाती है। यदि बीमित बीमा अवधि तक जीवित रहता है तो बीमाधन मय बोनस के बीमित को भुगतान कर दिया जाता है जो छोटी – छोटी प्रीमियम बीमित द्वारा प्रतिवर्ष चुकायी गयी थी वह एक बड़ी राशि के रूप में बीमित को मय बोनस (जीवित रहने पर) वापिस बीमा अवधि समाप्त होने पर प्राप्त हो जाती है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बीमा की परिभाषा दीजिये तथा इसकी विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बीमा का अर्थ:
सामान्य अर्थ में बीमा जोखिमों एवं अनिश्चितताओं के दुष्परिणामों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था है। यह विभिन्न संकटों, आपत्तियों एवं विपदाओं के विरुद्ध मानव जीवन एवं उसकी सम्पत्ति को उपलब्ध करायी जाने वाली आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा है। अन्य शब्दों में, बीमा एक साधन है जिसके द्वारा कुछ की हानियों को बहुतों में बाँटा जा सकता है। कालविन कूलिज ने कहा है ”बीमा वह आधुनिक साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अनिश्चित को निश्चित तथा असमान को समान बना सकता है।

यह वह साधन है जिसके द्वारा सफलता को लगभग निश्चित किया जा सकता है। इसके माध्यम से ताकतवर कमजोर की सहायता के किये अंशदान देता है तथा कमजोर ताकतवर से सहायता प्राप्त करता है किन्तु किसी की कृपा से नहीं अपितु अधिकार द्वारा जो उसने र करके खरीदा है।” सर टामस ने भी सही लिखा है कि “बीमा ही एक साधन है जिसके द्वारा कुछ की हानियों को बाँटा जाता है।” वस्तुत: बीमा भावी जोखिमों तथा अनिश्चितताओं के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने का एक सफल साधन है। समाजशास्त्रियों ने बीमा को जोखिम से सुरक्षा का उपाय” बतलाया है।

बीमा की परिभाषाएँ:
बीमा की कुछ परिभाषायें निम्नलिखित हैं –
1. सामान्य परिभाषाएँ:
(1) सर विलियम वेवरिज के अनुसार – “सामूहिक रूप से जोखिम उठाना ही बीमा है।” इसके अनुसार किसी एक की जोखिम को जिसे वह अकेला वहन नहीं कर सकता मिलजुल कर उठाना ही बीमा है।

(2) जान मैगी के अनुसार – “बीमा वह योजना है जिसके अन्तर्गत एक बड़ी संख्या में लोग मिलकर किन्हीं एकाकी व्यक्तियों की जोखिमों को अपने – कन्धों पर ले लेते हैं।”

(3) थामस के अनुसार – “बीमा एक प्रावधान है जो एक विवेकशील व्यक्ति आकस्मिक अथवा अवश्यम्भावी घटनाओं, हानियों या दुर्भाग्य के विरुद्ध करता है। यह जोखिमों को बाँटने या फैलाने का तरीका है।”
इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि बीमा जोखिमों को फैलाने का सामाजिक व सहकारी तरीका है जिसमें समान जोखिमों से घिरे व्यक्ति अपनी जोखिमों को दूसरे व्यक्ति या किसी संस्था (बीमाकर्ता) को हस्तान्तरित कर देते हैं अथवा सब मिलजुल कर सामूहिक रूप से बाँट लेते हैं।

2. कार्यात्मक एवं व्यावसायिक परिभाषाएँ:
कुछ विद्वानों ने बीमा की कार्यात्मक परिभाषाएँ देते हुये बीमा की प्रक्रिया को स्पष्ट किया है कि किस प्रकार बीमा द्वारा हानि से सुरक्षा अथवा हानि की क्षति की पूर्ति की जाती है। इन परिभाषाओं के अनुसार, बीमा बीमित को हानि से सुरक्षित करने तथा क्षतिपूर्ति करने की प्रक्रिया है –
(1) ब्रिटानिका विश्व कोष के अनुसार – “बीमा एक सामाजिक तरीका है जिसके द्वारा व्यक्तियों का एक बड़ा समूह समान अंशदान की व्यवस्था द्वारा समूह के सभी सदस्यों की कुछ सामान्य मापन योग्य आर्थिक हानि को दूर या कम करता है।”

(2) रीगल तथा मिलर के अनुसार – “बीमा वह सामाजिक उपाय या योजना है जिसके द्वारा एकाकी व्यक्तियों की अनिश्चित जोखिमों को समूह के साथ जोड़ा जा सकता है तथा उने जोखिमों को अधिक निश्चित किया जा सकता है। सभी व्यक्तियों द्वारा समय – समय पर दिये गये अल्प अंशदान से निर्मित कोष में से हानि की पूर्ति की जा सकती है।”

(3) फेडरेशन आफ इन्स्योरेन्स इन्स्टीट्यूट के अनुसार – “बीमा वह विधि है जिसमें एक समान प्रकार की जोखिम से घिरे व्यक्ति एक सामान्य कोष में से अंशदान करते हैं जिनमें से कुछ दुभाग्यशाली व्यक्तियों की दुर्घटनाओं में हुई हानियों को पूरा किया जाता है।”
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि बीमा एक सामाजिक उपाय है जिसके अन्तर्गत बड़ी संख्या में लोग एक संगठन के अन्तर्गत कुछ जोखिमों से सुरक्षा पाने के लिये अंशदान प्रीमियम देकर कोष का निर्माण करते हैं तथा उस कोष में से सदस्यों की जोखिमों से होने वाली मापने योग्य आर्थिक हानियों की क्षतिपूर्ति की जाती है।

3. अनुबन्धात्मक वैधानिक परिभाषाएँ:
ये परिभाषाएँ बीमा के वैधानिक स्वरूप को स्पष्ट करती हैं –
(1) न्यायमूर्ति टिण्डाल के अनुसार – “बीमा एक अनुबन्ध है जिसके अन्तर्गत बीमित बीमाकर्ता को एक निश्चित धनराशि एक निश्चित घटना के घटित होने की जोखिम उठाने के प्रतिफल में देता है।”

(2) रीगल तथा मिलर के अनुसार -“वैधानिक दृष्टि से यह एक अनुबन्ध है जिसके अन्तर्गत बीमादाता बीमित को समझौते के तहत होने वाली वित्तीय हानि को पूरा करने का ठहराव करता है और इसके लिये प्रतिफल (प्रीमियम) चुकाने को सहमत होता है।”

(3) ई. डब्ल्यू. पेटरसन के अनुसार – “बीमा एक अनुबन्ध है जिसके अन्तर्गत एक पक्षकार प्रतिफले के बदले किसी दूसरे पक्षकार की जोखिम को लेता है तथा किसी विशिष्ट घटना के घटित होने पर उसे या उसके नामांकित व्यक्ति को एक निश्चित या निश्चित की जाने वाली धनराशि के भुगतान का वचन देता है।”
निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि बीमा एक सहकारी व्यवस्था है जिसमें समान जोखिमों से ग्रस्त व्यक्ति बीमाकर्ता को अंशदान देकर एक कोष का निर्माण करते हैं। बीमा ठहराव में उल्लिखित घटना के घटित होने पर अथवा घटना से क्षति होने पर बीमाकर्ता इस कोष से बीमित को एक निश्चित धनराशि चुका देता है। इस प्रकार बीमा जोखिम के विरुद्ध वित्तीय क्षतिपूर्ति का एक सहकारी उपाय व एक अनुबन्धात्मक सम्बन्ध है।

बीमा का विशेषताएँ:
बीमा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. बीमा एक अनुबन्ध है – बीमा एक विशेष प्रकार का वैध अनुबन्ध है। इस अनुबन्ध में बीमाकर्ता बीमित को एक निश्चित प्रीमियम (प्रतिफल) के बदले में किसी निश्चित घटना के घटित होने पर होने वाली हानि की पूर्ति करने का वचन देता है।

2. बीमा अनुबन्ध कुछ सिद्धान्तों पर आधारित है – बीमा की विशेषता यह भी है कि बीमा का अनुबन्ध कई सिद्धान्तों पर आधारित है। परम सद्भावना का सिद्धान्त, बीमा हित का सिद्धान्त, आदि इन अनुबन्धों के आधार कहे जा सकते हैं।

3. जोखिम का मूल्यांकन – बीमा की एक आधारभूत विशेषता यह है कि बीमा करने से पहले ही जोखिम का मूल्यांकन किया जाता है। जोखिम की राशि तथा सम्भावना दोनों को पहले निर्धारित किया जाता है। तत्पश्चात् इन दोनों के आधार पर बीमा की प्रीमियम का निर्धारण किया जाता है। जितनी अधिक जोखिम होती है उतनी ही अधिक प्रीमियम होती है।

4. घटना के घटित होने पर भुगतान – बीमा में बीमा राशि का भुगतान एक निश्चित घटना के घटित होने पर किया जाता है। जीवन बीमा में प्रायः घटना का घटित होना निश्चित होता है। इसमें या तो बीमित की मृत्यु हो जाती है अथवा बीमा अवधि समाप्त हो जाती है। ऐसी दशा में भुगतान निश्चित रूप से करना ही पड़ता है। किन्तु अग्नि, समुद्र तथा अन्य व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा में घटना का घटित होना अनिवार्य नहीं होता। अत: घटना घटित होने पर क्षतिपूर्ति कर दी जाती है।

5. भुगतान की राशि – जीवन बीमा एवं अन्य बीमों में भुगतान का आधार भिन्न – भिन्न है। जीवन बीमा में बीमित को बीमा – पत्र की सम्पूर्ण राशि का भुगतान कर दिया जाता है जबकि अन्य प्रकार के बीमों में क्षतिपूर्ति की जाती है। अतएव, जीवन बीमा को छोड़कर अन्य सभी बीमों को क्षतिपूर्ति बीमा कहा जाता है। यदि बीमित को बीमित कारणों से क्षति होती है तो निर्धारित राशि का भुगतान होता है और यदि नहीं होती है तो भुगतान नहीं होता है।

6. जोखिम से सुरक्षा – बीमा आर्थिक सुरक्षा का कवच है। यह जीवन का माल या सम्पत्ति के सम्बन्ध में व्याप्त जोखिमों को समाप्त नहीं करता बल्कि जोखिमों से सुरक्षित करने का तरीका है।

7. जोखिमों का विभाजन – बीमा किसी व्यक्ति, परिवार या संस्था को किसी निश्चित घटना के घटित होने पर होने वाली आर्थिक हानि को सभी बीमित व्यक्तियों में विभाजित करने की युक्ति है।

8. कानून द्वारा नियमन – वर्तमान में प्रत्येक देश में बीमा कार्य का देश की सरकार के द्वारा नियंत्रण किया जाता है। प्रत्येक देश की सरकार बीमा व्यवस्था के संचालन हेतु कानून बनाती है। हमारे देश में जीवन बीमा अधिनियम, समुद्री बीमा अधिनियम, साधारण बीमा अधिनियम तथा बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) आदि के द्वारा बीमा का नियमन एवं नियंत्रण किया जाता है।

9. लोकनीति या लोकहित के विरुद्ध नहीं – बीमा उन कार्यों के लिये नहीं करवाया जा सकता जो लोकहित के विरुद्ध हैं। उदाहरण के लिये, चोर डकैत या जेबकतरे आदि लूट के माल का बीमा नहीं करवा सकते क्योंकि ये कार्य लोक हित के विरुद्ध है।

10. विस्तृत क्षेत्र – बीमा का क्षेत्र बहुत व्यापक है इसमें जीवन, अग्नि, समुद्री बीमा के अलावा अनेक आधुनिक या गैर पारम्परिक बीमा भी सम्मिलित हैं। इन गैर पारस्परिक बीमा में हम कृषि, पशुधन, झोंपड़ी, चिकित्सा, वाहन विश्वसनीयता, साख, सम्पत्ति आदि बीमाओं को सम्मिलित कर सकते हैं।

11. बीमा जुआ नहीं – बीमा जुआ नहीं है। जुए में एक पक्षकार को हानि होती है तथा दूसरे को लाभ होता है, जबकि बीमा में ऐसा नहीं होता है। इसके साथ ही बीमा एक वैध अनुबन्ध होता है जबकि जुआ वैध अनुबन्ध नहीं होता है। बीमा रक्षा एवं क्षतिपूर्ति का एक वैधानिक अनुबन्ध है जिसमें वैधानिकता के समस्त तत्त्व विद्यमान होते हैं।

12. बीमा दान नहीं है – बीमा कोई दान अथवा भेट भी नहीं है क्योंकि दान बिना किसी वास्तविक प्रतिफल के ही दिया जाता है, जबकि बीमा में वैध एवं वास्तविक प्रतिफल होता है। बीमाकर्ता निश्चित प्रतिफल के बदले ही सुरक्षा का वचन देता है तथा क्षति होने या घटना घटित होने पर ही बीमा – धन का भुगतान करता है।

13. सामाजिक उपाय – बीमा, समाज में, समाज के लोगों द्वारा, समाज के हित के लिए किया जाता है। जहाँ समाज नहीं है, वहाँ बीमा नहीं होता है। यह समाज की अनेक समस्याओं के निवारण का सहज उपाय है। वस्तुतः बीमा एक सामाजिक उपाय है।

14. कानून द्वारा नियमन – प्रत्येक देश में बीमा व्यवसाय का कानून द्वारा नियमन होता है। हमारे देश में बीमा, समुद्री बीमा अधिनियम, जीवन बीमा नियम अधिनियम, साधारण बीमा (राष्ट्रीयकरण) अधिनियमं तथा बीमा नियमन प्राधिकरण आदि के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
बीमा के क्षेत्र की विस्तृत विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में बीमा का प्रारम्भ 13 वीं शताब्दी में हुआ ऐसा माना जाता है। इसकी उत्पत्ति सामुद्रिक बीमे से हुई ऐसा वर्णन मिलता है। धीरे – धीरे अग्नि बीमा, जीवन बीमा, चोरी का बीमा और अन्य गैर परम्परागत आधुनिक बीमों का प्रचलन हुआ। वर्तमान में जोखिम की विविधताओं के कारण बीमाकर्ताओं द्वारा अलग – अलग प्रकार के बीमे किये जाते हैं। वर्तमान युग में बीमे का क्षेत्र बहुत व्यापक है।
बीमा का वर्गीकरण निम्न आधारों पर किया जा सकता है –

  1. बीमा की प्रकृति के आधार पर
  2. व्यावसायिक आधार पर
  3. जोखिम के आधार पर वर्गीकरण।

बीमा को प्रकृति के आधार पर निम्न प्रकार बाँटा जाता है –

  1. जीवन बीमा
  2. अग्नि बीमा
  3. सामुद्रिक बीमा
  4. सामाजिक बीमा
  5. अन्य बीमा।

1. जीवन बीमा – इसके अन्तर्गत जीवन का बीमा किया जाता है। इसमें ‘मानव जीवन’ बीमा की विषय वस्तु होती है। इस प्रकार के बीमा में बीमाकर्ता एक निश्चित प्रतिफल (प्रीमियम) के बदले बीमित को उसकी मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी को अथवा बीमा अवधि पूर्ण होने पर स्वयं बीमित को एक निश्चित धनराशि चुकाने का बचन देता है। बीमित को एक निश्चित अवधि तक प्रीमियम चुकानी पड़ती है। यदि बीमा अवधि पूर्व ही बीमित का देहान्त हो जाता है तो बीमा राशि बीमाकर्ता द्वारा बीमित के उत्तराधिकारी को भुगतान की जावेगी, यदि बीमित बीमा अवधि तक जीवित रहता है तो बीमा धन की राशि मय बोनस बीमित को चुकायी जायेगी। जीवन बीमा बीमित को एवं मृत्यु पर उसके परिवार के अन्य सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करता है। “जीवन बीमा में सुरक्षा के साथ – साथ विनियोग तत्व भी होता है। जीवन बीमा व्यवसाय देश में भारतीय जीवन बीमा निगम” व अन्य कुछ निजी कम्पिनियाँ, जैसे – कोटक महेन्द्रा, बजाज आलियांज, आई सी आई पूडेन्शियल द्वारा भी किया जाता है।

2. अग्नि बीमा – वह बीमा जिसमें बीमा कर्ता, बीमित को आग लगने से सम्पत्ति को होने वाली हानि की क्षति की पूर्ति का वचन देना है अग्नि बीमा कहलाता है। यह क्षतिपूर्ति का बीमा है जिसमें वास्तविक हानि की क्षतिपूर्ति की जाती है। वह बीमा सामान्यतः एक वर्ष के लिए किया जाता है इस बीमे में आग से होने वाले नुकसान के अतिरिक्त कुछ निश्चित परिणामजन्य हानियों की क्षतिपूर्ति के लिए भी किया जाता है, जैसे – बीमा दंगों, बलवों, उपद्रवों, गैस विस्फोट, भूकम्प, आँधी तूफान, बाढ़, बिजली गिरना, वायुयान क्षति, जलप्लावन आदि जाखिमों से सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए भी कराया जा सकता है। वर्तमान युग में इस बीमे को महत्व बहुत अधिक है। बड़े – बड़े कारखाने, गोदाम, दुकान, आवासीय बस्तियों में होने के कारण आग का खतरा बना रहता है। अत्यधिक विद्युत उपयोग होने से विद्युत सर्किट बाधा होने के कारण भी अग्नि से हानि की जोखिमें बनी रहती हैं।

3. सामुद्रिक बीमा – समुद्री रास्ते से विदेशों तक व्यापार किया जाता है। इसमें समुद्रिक जोखिमें, जहाज व माल के सम्बन्ध में होने वाली क्षतियों का बीमा कराया जाता है। समुद्री तूफान, जहाज के दूसरे जहाज से या चट्टान से टकरा जाने से होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति के लिए यह बीमा कराया जाता है।
समुद्री बीमा भी दो प्रकार का होता है –

  • महासागर सामुद्रिक बीमा
  • अन्तर्राष्ट्रीय अथवा देशीय सामुद्रिक बीमा।

4. सामाजिक बीमा – सरकार ने गरीब, असहाय, बेसहारा वर्ग को आर्थिक सहायता व सुरक्षा प्रदान करने के लिए सामाजिक बीमा योजनाओं का विकास किया है। इस बीमा के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के बीमे जैसे – बेरोजगारी, बीमारी, आकस्मिक दुर्घटनाओं, वृद्धावस्था, प्रसूति मृत्यु आदि जोखिमों का बीमा किया जाता है।
राष्ट्रीय श्रम आयोग ने सामाजिक बीमा को परिभाषित करते हुए लिखा है कि ”सामाजिक बीमा वह योजना है जो अल्प आय वर्ग के लोगों को अधिकारपूर्वक वह राशि जमा के रूप में प्रदान करती है जो बीमित सेवायोजना तथा सरकार के अंशदान से एकत्रित होती है।”

सामाजिक बीमा मुख्यत:
निम्न प्रकार का होता है –
(अ) बीमारी बीमा – इस बीमा में बीमित के बीमार पड़ जाने पर दवाइयों, चिकित्सा सुविधा तथा बीमारी की अवधि में वेतन की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की जाती है। सामान्य बीमा निगम द्वारा इस हेतु मेडीक्लेम विभिन्न योजनाएँ चलायी गयी हैं।

(ब) मृत्यु बीमा – यदि बीमित की कार्य के दौरान मौत हो जाए तो उसके आश्रितों को पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से एक धनराशि प्रदान की जाती है। नियोक्ता अपने कर्मचारियों का मृत्यु बीमा करवा कर अपने दायित्व की हस्तान्तरण बीमाकर्ता को कर देता है।

(स) असमर्थता बीमा – कारखाने, फैक्ट्री में कार्य करने में दुर्घटना से किसी कर्मचारी के पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से अपंग हो जाने पर क्षतिपूर्ति का प्रावधान है। यद्यपि श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम के अनुसार, यह दायित्व सेवायोजकों का होता है परन्तु नियोक्ता इस प्रकार का बीमा करवा कर दायित्व का हस्तान्तरण बीमा कम्पनी को कर सकता है।

(द) बेरोजगारी बीमा – जब कुछ विशिष्ट कारणों से बीमित बेरोजगार हो जाते हैं तो उनको पुनः रोजगार दिलाने तब की अवधि के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है।

(य) वृद्धावस्था बीमा – इस बीमा द्वारा वृद्धावस्था में सहायता पहुँचायी जाती है। इस प्रकार के बीमों में बीमाकर्ता द्वारा बीमित को या उसके अश्रित को एक निश्चित आयु के बाद नियमित वित्तीय सहायता पहुँचायी जाती है।
सरकार द्वारा गरीबों, असहायों, कुलियों, कामगारों, श्रमिकों, हस्तशिल्पियों, कारीगरों एवं समाज के कमजोर वर्ग के लिए विभिन्न प्रकार की बीमा योजनाएँ नाममात्र के प्रीमियम पर चलायी जा रही हैं। इन्हें जनकल्याणकारी योजनाओं का नाम दिया जाता है। कुछ योजनाएँ तो सरकार की ऐसी हैं जिनमें कोई प्रीमियम नहीं देना पड़ता और दुर्घटना होने पर लाभ की व्यवस्था की जाती है।

5. अन्य बीमे – वर्तमान युग में तकनीकी विकास, औद्यौगिकीकरण एवं शहरीकरण व अन्य कारणों से जोखिमों के क्षेत्र में बहुत वृद्धि हुई है। हमारे जीवन में जोखिमों के विस्तार के कारण बीमाकर्ता द्वारा वर्तमान में आवश्यकता आधारित विभिन्न बीमा योजनाओं का चयन शुरू हुआ है जो निम्न प्रकार है –
(अ) वाहन बीमा – सड़क यातायात में अनेक प्रकार के संचालित वाहन, बस, कार, जीप, मोटर – साइकिल (दुपहिया/चौपहिया वाहनों का बीमा कराना अनिवार्य है, ऐसे बीमाओं में दुर्घटना से वाहन एवं तृतीय पक्षकार को होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति बीमाकर्ता द्वारा की जाती है। वाहन बीमा एक वर्ष के लिए मान्य होता है। इस वाहन बीमा में तीन जोखिमों का उत्तरदायित्व बीमाकर्ता द्वारा वाहन किया जाता है। जिसमें वाहन की क्षति, वाहन स्वामी की क्षति एवं वाहन से तीसरे पक्षकार को पहुँची क्षति शामिल है।

(ब) व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा – इस बीमे की दशा में दुर्घटना, जैसे – मृत्यु, स्थायी या आंशिक रूप से असमर्थ होने की स्थिति में बीमित को होने वाली सम्भावित हानि की पूर्ति का उत्तरदायित्व बीमाकर्ता द्वारा ग्रहण किया जाता है। दुर्घटना में मृत्यु होने पर, पूर्ण अयोग्यता होने पर बीमा की सम्पूर्ण राशि की क्षतिपूर्ति की जाती है जबकि आंशिक अयोग्यता की दशा में बीमापत्रों की शर्तों के अनुसार एक निश्चित अनुपात में क्षतिपूर्ति की जाती है। साधारण बीमा निगम की चार सहायक कम्पनियाँ व्यक्तिगत दुर्घटना बीमापेत्र का निर्गमन करती हैं। यह वायुयात्रा एवं रोडवेज यात्रा के अन्तर्गत भी प्रचलित है।

(स) चोरी – डकैती बीमा – इस प्रकार के बीमों में बीमाकर्ता बीमित को चोरी, सेंधमारी, उठाईगीरी आदि से होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति का वचन देता है। बीमित अपने मकान, दुकान, माल – गोदाम, यात्रा के दौरान ले जाये जा रहे समान, लाये एवं ले जाये जाने वाले धन आदि का बीमा करवाता है। यह सिनेमागृहों, पेट्रोल पम्पों, आवासीय होटलों, बैंक, वित्तीय संस्थाओं आदि के लिए उपयोगी होता है।

(द) पशुधन बीमा – इस प्रकार के बीमा में यदि पशुओं में महामारी या बीमारी के कारण या अन्य किसी कारण से पशुओं की हानि होती है तो बीमाकर्ता बीमित को क्षतिपूर्ति कर देता है। इसमें गाय, बैल, भैंस, गधे, घोड़े, ऊँट, भेड़, बकरी आदि का बीमा सम्मिलित है।

(य) फसल बीमा – कृषि की जोखिमों के कारण कुछ वर्षों से यह बीमा काफी प्रचलित है। उसमें जलवायु सम्बन्धी कारणों, यथा – सूखा, बाढ़, आंधी, तूफान, पौधों की बीमारी से महामारी के प्रकोप से होने वाली क्षति की बीमित को क्षतिपूर्ति की जाती है।

(र) अपराध बीमा – इसमें डकैती, लूटपाट, उपद्रवों, आतंकी कार्यवाहियों आदि से सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है। बैंक, वित्तीय संस्थाएँ, यातायात संस्था, होटल, पेट्रोल पम्प तथा अन्य व्यावसायिक संस्थान इस बीमे के द्वारा सुरक्षित हो सकते हैं।

(ल) अन्य बीमे – उपरोक्त के अतिरिक्त आजकल कई अन्य बीमे भी प्रचलित हैं। उन सबका उल्लेख करना पूर्णत: सम्भव नहीं उनमें से कुछ हैं – साईकिल बीमा, बैलगाड़ी बीमा, कुक्कुट बीमा, वायुयात्रा, वन बीमा, सुन्दरता का बीमा, उद्यमी का बीमा, होटल के ग्राहकों का बीमा, सामान का बीमा आदि।

(व) प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना – 18 से 70 वर्ष की आयु तक का व्यक्ति यह बीमा करवा सकता है। मात्र 12 की राशि प्रीमियम के रूप में भुगतान सीधे उसे व्यक्ति के बैंक खाते से हो जाता है। यह एक वर्षीय बीमा है। यह माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2015 में प्रारम्भ किया गया है। जहाँ बीमित की मृत्यु पर 2 लाख Rs और शारीरिक क्षति अथवा हाथ या पैर के काम करने में असमर्थ होने पर 1 लाख Rs. का भुगतान बीमित को किया जाता है। इसके लिए बीमित का बैंक खाता होना अनिवार्य है।

(श) प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना – यह बीमा भी वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी द्वारा प्रारम्भ किया गया है। 5 वर्ष से 18 तक की आयु के सभी व्यक्तियों के लिए है। इसमें बीमित को 2 लाख Rs. तक की सुरक्षा प्रदान की जाती है। प्रीमियम का भुगतान सीधे बैंक खाते से किया जाता है। यह बीमा भी एक वर्ष के लिए होता है इसकी प्रीमियम राशि 380 Rs. प्रतिवर्ष है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? सामाजिक सुरक्षा में बीमा की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक सुरक्षा अर्थ एवं परिभाषा:
सामाजिक सुरक्षा का अर्थ विभिन्न देशों में भिन्न – भिन्न प्रकार से लगाया जाता है वास्तव में प्रत्येक देश की परिस्थितियों एवं वहाँ की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अनुरूप ही उस देश में इस शब्द का अर्थ लगाया जाता है। किन्तु सामान्यतया सामाजिक सुरक्षा शब्द से तात्पर्य समाज के लोगों को किसी दुर्घटना, बीमारी, वृद्धावस्था, मृत्यु आदि के समय प्रदत्त की जाने वाली सुरक्षा से है। दुर्घटना घटने, बीमारी हो जाने, वृद्धावस्था में कार्य क्षमता न रहने अथवा परिवार चलाने वाले व्यक्ति की मृत्यु होने पर आश्रितों के लिए आर्थिक कठिनाइयों का पहाड़ खड़ा हो जाता है। सामाजिक सुरक्षा इसी प्रकार की अंसुरक्षाओं के विरुद्ध सुरक्षा है।

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार – “सामाजिक सुरक्षा वह सुरक्षा है जो समाज द्वारा उपयुक्त संस्थाओं के माध्यम से अपने सदस्यों के जीवन में आ सकने वाली कुछ जोखिमों के विरुद्ध प्रदान की जाती है।”
सर विलियम वेवरिज के अनुसार – “सामाजिक सुरक्षा पाँच दानवों, अभाव, बीमारी, अज्ञानता, गन्दगी एवं बेकारी पर आक्रमण है।”

उपरोक्त से स्पष्ट है कि सामाजिक सुरक्षा वह सुरक्षा है जो समाज द्वारा किसी उपर्युक्त संगठन के माध्यम से समाज के उन लोगों को जोखिमों या आकस्मिक दुर्घटनाओं के विरुद्ध प्रदान की जाती है जो स्वयं अपनी क्षमता एवं दूरदर्शिता से या अपने साथियों के सहयोग से उन सभी जोखिमों को नहीं उठा सकते हैं। ये जोखिमें या दुर्घटनाएँ अनेक प्रकार की हो सकती हैं, जैसे – बीमारी, बेकारी, वृद्धावस्था, औद्योगिक दुर्घटना आदि।

सामाजिक सुरक्षा में बीमा की भूमिका:
सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने में बीमा अपनी पहली भूमिका निभाता है जो निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है –
1. आकस्मिक मृत्यु पर आश्रितों से सुरक्षा – यदि बीमित की अचानक मृत्यु हो जाती है तो बीमाकर्ता द्वारा उसके आश्रितों को सुरक्षा प्रदान की जाती है आजीवन बन्दोबस्ती एवं अवधि बीमापत्रों तथा अन्य प्रकार के मिश्रित बीमापत्रों की दशा में बीमित की मृत्यु पर उसके आश्रितों (नामांकित) को धनराशि या वार्षिक पेंशन मिलती है जिससे उसके परिवार का संचालन हो सकता है।

2. बेरोजगारी में सुरक्षा – कुछ विकसित देशों में बेरोजगारी बीमा की सुविधा है। जब किसी बीमित व्यक्ति/कर्मचारी के रोजगार से बाहर कर दिया जाता है (छटनी, जबरन छुट्टी) तो उसे एक निर्धारित अवधि के लिए निर्धारित राशि की क्षतिपूर्ति की जाती है।

3. वृद्धावस्था के दौरान धन या आय की व्यवस्था – विभिन्न प्रकार की बीमा कम्पनियों ने इस प्रकार की बीमा योजना (पालिसी) का निर्माण किया है कि बीमित को वृद्धावस्था के दौरान बीमा की सम्पूर्ण राशि या वार्षिकी मिलती रहे। बीमित उसे स्वयं निवेश करता है एवं उस निवेश से जो आय प्राप्त होती है उससे अपना जीवन यापन करता है। बीमापत्र में ही समय – समय पर वार्षिकी की राशि मिल जाती है इससे वृद्धावस्था में आवश्यक सुरक्षा मिल जाती है। हमारे देश में विभिन्न बीमा संस्थाओं द्वारा आजीवन बीमापत्र बन्दोबस्ती बीमापत्र, पेंशन बीमापत्र, यूनिट लिंक प्लान आदि उपलब्ध कराये गये हैं। बीमित स्वयं अपनी आवश्यकता एवं अपनी सुविधा के अनुसार योजना का चयन कर बीमा करवाकर वृद्धावस्था में आय की व्यवस्था कर सकता है।

4. अपंग/निशक्तजनों/आश्रितों की सुरक्षा – बीमा संस्थाएँ कुछ विशेष बीमापत्र उन अभिभावकों के जीवन पर जारी करती हैं जिनका कोई आश्रित अपंग हो। इस बीमपत्रों के अधीन आश्रित को नामांकित किया जाता है जबकि बीमा अभिभावक का किया जाता है फलतः अभिभावक की मृत्यु की दशा में अपंग आश्रित को बीमा राशि एवं अन्य परिपक्व राशि प्राप्त हो जाती है। जीवन बीमा निगम ने ‘जीवन आधार’ ‘जीवन विश्वास’ दो ऐसे बीमापत्र जारी किए हैं।

5. बीमारियों का दशा में आर्थिक संकट में सहायता – बीमित व्यक्ति के गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जाने पर बीमा, बीमित को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाता है। आजकल ऐसे बीमापत्र भी प्रचलित हैं जिसमें अतिरिक्त प्रीमियम अदायगी पर गंभीर बीमारी की शर्त को जोड़ दिया जाता है। इसके उपरान्त यदि बीमित को कोई गंभीर बीमारी हो जाती है तो पूर्व निर्धारित राशि का भुगतान कर दिया जाता है। जीवन बीमा निगम के अन्तर्गत भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा ‘अनुराग जीवन’ ‘जीवन भारती’ ‘जीवन आनन्द’ ‘जीवन मित्र’ दोहरा बीमापत्र आदि ऐसी पालिसियाँ हैं जिनमें गंभीर बीमारी की शर्त जोड़ने का प्रावधान किया हुआ है। फलतः बीमित द्वारा शर्त के अधीन गंभीर बीमारी की दशा में सुरक्षा प्राप्त हो सकती है।

6. दुर्घटना की दशा में सुरक्षा – जीवन बीमापत्रों में प्रायः दुर्घटना बीमा की शर्त होती है इसके अधीन अतिरिक्त प्रीमियम देकर अपना दुर्घटना बीमा करवाया जा सकता है। कई बीमा संस्थाएँ केवल दुर्घटना बीमा भी करती हैं। दोनों ही दशाओं में यदि बीमित की मृत्यु हो जाती है तो बीमित के आश्रित (नॉमिनी) को पूर्व निर्धारित राशि का भुगतान कर दिया जाता है यदि दुर्घटना में आंशिक या पूर्ण रूप से अपंग हो जाता है तो उसे स्वयं को एक निर्धारित राशि का भुगतान एकमुश्त या वार्षिकी के रूप में किया जाता है।

7. पेशेवर व्यक्तियों की सुरक्षा पेशेवर व्यक्तियों, जैसे – डाक्टर, वकील आदि से जाने अनजाने में हुई गलतियों से उत्पन्न दायित्व के लिए वे अपना बीमा करवा कर पूरी तरह सुरक्षित हो जाते हैं तथा उनके जीवन में कोई संकट या व्यवधान उत्पन्न नहीं होता है क्योंकि भुगतान पेशेवर व्यक्ति द्वारा नहीं बल्कि कम्पनी द्वारा किया जाता है।

8. सार्वजनिक दायित्व बीमा के अधीन सुरक्षा – कई व्यावसायिक संस्थाएँ खतरनाक निर्माण प्रक्रिया का संचालन कर निर्माण या उत्पादन का कार्य करते हैं। इन प्रक्रियाओं में कई खतरनाक पदार्थ द्रव्य, गैस आदि को भी लाया और लेजाया जाता है तथा निर्माण प्रक्रिया के दौरान उपयोग किया जाता है। इनसे जनसामान्य को शारीरिक क्षति, पर्यावरण प्रदूषण एवं अन्य प्रकार की हानि पहुँच सकती है तथा जन सामान्य इनसे प्रभावित होकर काल के ग्रास में पहुँच जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में व्यवसायी का संस्थान उत्तरदायी ठहराया जाता है। इनसे बचने के लिए व्यावसायिक संस्थाएँ सार्वजनिक दायित्व बीमा करवाकर अपने संस्थान के उत्तरदायित्व से बच सकते हैं।
इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि सामाजिक सुरक्षा में बीमा महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यदि बीमा नहीं हो तो सामाजिक सुरक्षा को खतरा पैदा हो जाएगा एवं स्थिति बदह्मल हो जाएगी।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 4.
बीमा एजेण्ट की परिभाषा दीजिए। एजेण्ट के कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बीमा एजेन्ट की परिभाषा:
बीमा एजेण्ट्स विनियम, 2000 के अनुसार – ”बीमा एजेण्ट, वह बीमा एजेण्ट है जिसे बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 42 के अन्तर्गत लाइसेन्स प्रदान किया गया है तथा जो कमीशन या अन्य पारिश्रमिक के प्रतिफल में बीमा के लिए प्रेरित करने अथवा बीमा व्यवस्था प्राप्त करने के लिए कार्य करता है, जिसमें बीमापत्रों को चालू रखने, नवीनीकरण करने सम्बन्धी व्यवसाय करना भी सम्मिलित है।”

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि बीमा एजेण्ट एक ऐसा एजेण्ट है जो किसी बीमाकर्ता के लिए लोगों को बीमा कराने के लिए प्रेरित करता है, बीमा व्यवसाय प्राप्त करता है या बीमापत्रों को चालू रखने अथवा उनका नवीनीकरण कराने के लिए प्रेरित करता है तथा इसके लिए उसे कमीशन या अन्य आधार पर पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। यह उल्लेखनीय है कि बीमा व्यवसाय के लिए प्रेरित करने या बीमा व्यवसाय प्राप्त करने में चालू बीमापत्रों को जारी रखने या उनका नवीनीकरण करने सम्बन्धी व्यवसाय करना सम्मिलित है।

बीमा एजेण्ट के कार्य:
एक बीमा एजेण्ट के प्रमुख कार्य निम्न होते हैं –
1. नया व्यवसाय प्राप्त करना – प्रत्येक एजेण्ट का कर्तव्य है कि उसे सदैव नया व्यवसाय प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। उसे एजेण्ट के नियमों के अन्तर्गत निर्धारित न्यूनतम राशि का व्यवसाय तो प्राप्त करना ही चाहिए किन्तु उसे इस न्यूनतम सीमा से भी अधिक व्यवसाय प्राप्त करने का निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए।

2. विद्यमान व्यवसाय को सुरक्षित रखना – बीमा एजेण्ट को नये व्यवसाय को प्राप्त करने पर ध्यान देने के साथ ही उसे विद्यमान व्यवसाय या पहले जारी किए गए बीमापत्रों को चालू रखने का भी प्रयास करना चाहिए। कई बीमित बीमापत्रों पर प्रीमियम जमा करवाना बन्द कर देते हैं। यदि परिणामस्वरूप बीमापत्र कालातीत हो जाते हैं तो एजेण्ट को इस बात का ध्यान रखना चाहिए तथा अपने पुराने बीमितों के बीमापत्रों को चालू रखवाने का पूरा प्रयास करना चाहिए।

3. प्रस्तावकों को उपयुक्त बीमा चुनने में सहायता करना – एजेण्ट का यह प्रमुख कर्त्तव्य है कि प्रत्येक प्रस्तावक को उपर्युक्त प्रकार के बीमा पत्र चुनाव में सहायता इस हेतु एजेण्ट को प्रस्तावक को आवश्यकतानुसार तथा प्रीमियम भुगतान की क्षमता को भी ध्यान में रखना चाहिए।

4. प्रस्तावक के सम्बन्ध में सभी बातों की जानकारी करना – बीमा एजेण्ट को जब बीमा प्रस्ताव प्राप्त होता है तो उसे प्रस्ताव के सम्बन्ध में सभी उचित स्रोतों से जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। उसे उसके चरित्र, आदतों, बीमारी, परिवार के इतिहास, कार्य की दशाओं आदि के सम्बन्ध में जानकारी करनी चाहिए। इसी से प्रस्तावित जीवन की जोखिम की श्रेणी का अनुमान लगा सकता है।

5. जोखिमों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाली बातों की निगम को सूचना देना – बीमा एजेण्ट का कर्तव्य है। कि उसे उन सभी बातों की सूचना निगम को देनी चाहिए जिनका बीमा की जोखिम पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है उसे उन परिस्थितियों को भी स्पष्ट कर देना चाहिए जो जोखिम को बढ़ा सकती हैं।

6. बीमित की आयु स्वीकृत करवाना – एजेण्ट का एक कर्तव्य यह भी है कि उसे बीमित की आयु प्रस्ताव करते समय ही स्वीकृत करवा लेनी चाहिए। ऐसा करने के दावों के निपटारे के समय कोई कठिनाई उत्पन्न नहीं होती है।

7. बीमापत्रों के कालातीत होने या उनको चुकता करवाने पर रोक लगाना – कई लोग थोड़ा सा भी आर्थिक संकट आ जाता है तो सबसे पहले बीमा की प्रीमियम का भुगतान बन्द कर देते हैं। जब बीमा पत्र पर कुछ वर्षों का प्रीमियम बकाया हो जाता है तो वे उस बीमा पत्र को चुकता करवा लेते हैं। परिणामस्वरूप विद्यमान व्यवसाय कम हो जाता है। बीमा एजेण्टों को अपने बीमितों को बीमापत्रों के न चुकता करवाने के दोष बताने चाहिए व उन्हें ऐसा न करने की सलाह देनी चाहिए।

8. प्रीमियम के यथासमय भुगतान के लिए प्रेरित करना – बीमा एजेण्ट का एक कर्त्तव्य यह भी है कि अपने बीमितों को प्रीमियम का यथासमय भुगतान करने के लिए प्रेरित करे। उसे बीमितों को यथासमय प्रीमियम का भुगतान करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उन्हें बीमितों को यथासमय प्रीमियम का भुगतान न करने के प्रभावों से अवगत कराना चाहिए। उसे रियायती अवधि तक प्रीमियम जमा करवाने का महत्व समझाना चाहिए।

9. अन्य एजेण्टों के प्रस्तावों में हस्तक्षेप न करना – एक बीमा एजेण्ट का किसी दूसरे बीमा एजेण्ट के द्वारा लाये गए बीमा प्रस्तावों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उसे दूसरे के प्रस्तावक को फुसलाकर अपने पास नहीं बुलाना चाहिए।

10. बीमापत्रों के नामांकन अथवा हस्तांकन में परामर्श एवं सहायता देना – सभी एजेण्टों को बीमापत्रों के हस्तांकन अथवा नामांकन के सम्बन्ध में सलाह देनी चाहिए। जहाँ आवश्यकता हो वहाँ उनकी सहायता भी करनी चाहिए। बीमापत्रों का नामांकन एवं हस्तांकन न होने पर बीमापत्रों के दावे के समय बड़ी कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। अतः इस सम्बन्ध में उपयुक्त सलाह देनी चाहिए।

11. अन्य महत्वपूर्ण कार्य –

  • अपने बीमाकर्ता को उत्पादों के बारे में जानकारी देना।
  • संभावित बीमितों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किसी विशिष्ट बीमा योजना की सिफारिश करना।
  • कुशलता एवं परिश्रम के साथ कार्य करना।
  • बीमा एजेण्ट के रूप में अपना परिचय देकर और मांगे जाने पर अपना लाइसेंस दिखाना।
  • संभावित बीमित की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किसी विशिष्ट बीमा योजना परं प्रस्तावित बीमापत्रों की कमीशन दर के सम्बन्ध में बताना।
  • विक्रय के लिए प्रस्तावित बीमा उत्पाद बीमाकर्ता द्वारा वसूल की जाने वाली प्रीमियम की गणना करना।
  • बीमा प्रस्ताव कार्य में चाही गयी सूचनाओं के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण देना उनके महत्व को समझाना।
  • बीमाकर्ता द्वारा बीमा प्रस्ताव स्वीकार करने पर बीमित को तत्काल सूचना देना।
  • बीमा प्राधिकरण द्वारा अधिसूचित बातों की पालना करना।
  • बीमापत्र को बीमित के पास अधिक से अधिक 45 दिनों में पहुँचाना।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
बीमा की सामाजिक – आर्थिक उपयोगिता को समझाइए।
उत्तर:
बीमा की उपयोगिता:
सर मिर्जा स्माइल ने ठीक ही लिखा है कि “बीमा के अन्तर्गत दया के समान गुण होते हैं। बीमाकर्ता एवं बीमित दोनों सौभाग्य के अधिकारी होते है। बीमा जन्म से मृत्युपर्यन्त आपकी रक्षा करता है।” एस. ब्रियन का भी कहना है कि “बीमा, आधुनिक युग द्वारा मानवता को प्रदत्त सबसे बड़ा वरदान है।” वस्तुत: बीमा का महत्व या उपयोगिता एक व्यक्ति या परिवार तक ही सीमित नहीं है अपितु इसकी उपयोगिता सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रत्येक क्षेत्र है प्रो. रोयस ने बीमा की उपयोगिता या महत्व को समझाते हुए लिखा है कि, “आधुनिक युग में बीमा का उपयोग एवं उपयोगिता अधिकाधिक बढ़ रही है।

यह केवल किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के उद्देश्यों की पूर्ति ही नहीं करता है बल्कि यह हमारी आधुनिक सामाजिक व्यवस्था में अधिकाधिक समाता जा रहा है तथा उसके परिवर्तन में योगदान दे रहा है। यह केवल शुद्ध एवं व्यावहारिक विज्ञानों का ही नहीं बल्कि निजी तथा सार्वजनिक हितों तथा व्यक्तिगत विवेक का भी मिश्रण है। यह सामान्य कल्याण, मितव्ययिता एवं दान आदि का पर्याप्त ध्यान रखता है।” इस प्रकार स्पष्ट है कि बीमा समाज के सभी वर्गों एवं सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए उपयोगी है। प्रो. डिन्सडेल ने बीमा की, उपयोगिता को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि आधुनिक विश्व में कोई भी व्यक्ति बीमा के बिना नहीं रह सकता है। आज तो यह एक जीवन – रेखा के समान हो गया है।

संक्षेप में, हम बीमा की उपयोगिता को निम्न भागों में वर्गीकृत कर समझा सकते हैं –
आर्थिक अथवा व्यावसायिक उपयोगिता:
आर्थिक अथवा व्यावसायिक दृष्टि से बीमा की उपयोगिता निम्न प्रकार से है –
1. जोखिमों से सुरक्षा – व्यवसाय में जोखिमें विद्यमान रहती हैं। प्रतिदिन करोड़ों रुपयों का माल जहाजों, रेलों या ट्रकों के माध्यम से भेजा जाता है। गोदामों में माल जमा रहता है। कारखानों में महंगी मशीनों की स्थापना की जाती है। इन सबके नष्ट होने की जोखिम सदैव विद्यमान रहती है। बीमा ऐसे समय में व्यवसायियों के लिए बहुत अधिक लाभदायी होता है। वे अपनी सम्पत्तियों तथा लाभ का बीमा करवाकर सुरक्षित हो जाते हैं।

2. साख का आधार – व्यवसायियों के लिए बीमा का एक महत्वपूर्ण लाभ यह भी है कि यह साख भी सुलभ करवा सकता है। बीमाकृत सम्पत्तियों पर बैंक तथा वित्तीय संस्थाएँ आसानी से ऋण प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त बैंक किसी भी संस्था को ऋण देते समय संस्था के संचालकों को महत्वपूर्ण रूप से ध्यान में रखता है। उन संचालकों की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा तथा प्रबन्धकीय क्षमता बैंकों के ऋण देने अथवा नहीं देने के निर्णय को प्रभावित करती है। ऐसी स्थिति में बैंक ऋण देने से पहले ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों का बीमा भी करवाने की पेशकश करते हैं। इसके अतिरिक्त बैंक यह भी देखते हैं कि भवन, सम्पत्तियों, मशीनों, श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत आने वाले कर्मचारियों, चोरी – डकैती, कर्मचारियों की विश्वासनीयता का बीमा भी करवा रखा है अथवा नहीं। इस सबका बीमा होने पर बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाएँ आसानी से ऋण दे देती हैं।

3. महत्वपूर्ण व्यक्तियों की क्षतिपूर्ति की हानि से सुरक्षा रिचार्ड टी. एली ने अत्यन्त ही सूझ – बूझ से लिखा है कि “किसी व्यवसायी की मृत्यु भयंकर अग्निकाण्ड से भी अधिक दिल दहलाने वाली बात है। ऐसे में बीमा प्रीमियम का भुगतान करके उस व्यवसाय की उस समय की वित्तीय कठिनाइयों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।” वास्तव में प्रत्येक संस्था के लिए कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों का जीवन अमूल्य होता है। उन कुछ व्यक्तियों की ख्याति, क्षमता, प्रबन्ध – चातुर्य के कारण ही संस्था की सफलता निर्भर है। अत: संस्था को आर्थिक खतरे से बचाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों का बीमा करवा लिया जाता है। इससे ऐसे व्यक्तियों की मृत्यु होने पर संस्था को क्षतिपूर्ति प्राप्त हो जाती है।

4. कार्यक्षमता में वृद्धि – बीमा अनेक जोखिमों से सुरक्षित करता है। इससे व्यवसायी अपना कार्य अधिक निश्चितता से करता है। परिणामस्वरूप व्यवसायी की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। रीगल, मिलर तथा विलियम्स ने इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “जोखिम की अनिश्चितता की समाप्ति का स्वभाविक परिणाम यह होता है कि व्यावसायिक कुशलता में वृद्धि होती है।” .

5. सुरक्षा विधियों को प्रोत्साहन – बीमा कम्पनियाँ अपने बीमितों को सुरक्षा की विधियों के उपयोग की सलाह देती है। इतना ही नहीं इन सुरक्षा विधियों को अपनाने वाले बीमितों का रियायती दर पर बीमा भी करती हैं। जिन बीमितों की हानि बहुत कम होती है उनके किये बीमा दरों में भी क्रमशः आगामी वर्षों में रियायतें दी जाती हैं। इससे व्यावसायिक संस्थाएँ और अधिक सुरक्षा विधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित होती हैं।

6. लागतों में कमी – एक विद्वान ने ठीक ही लिखा है कि ”बीमा एक निर्माता को कम कीमत पर माल बेचने में सहायता कर सकता है क्योंकि वह उत्पादन की रोखिमों की थोड़ी सी प्रीमियम से सुरक्षा कर लेता है।” वस्तुस्थिति यह है कि बीमा के अभाव में समस्त जोखिमें व्यवसायी को ही उठानी पड़ती हैं जिससे वह अधिक कीमतें वसूल करके ही पूरी कर सकता है।

7. व्यावसायिक एवं औद्योगिक कार्यों के लिए पूँजी उपलब्ध कराना – बीमा संस्थाओं के पास जनता की छोटी – छोटी रकमें जिन्हें वह प्रीमियम के रूप में प्राप्त करता है। एकत्र होकर शीघ्र ही विशाल पूँजी का रूप ले लेती हैं। फिर जनता की इन छोटी – छोटी बचतों को औद्योगिक विकास, व्यावसायिक उन्नति तथा राष्ट्र निर्माण के कार्यों में प्रयुक्त किया जाता है। इस दिशा में भारतीय जीवन बीमा निगम महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

8. बड़े व्यवसायों का विकास – आज व्यावसायिक संस्थाओं का जो विशाल आकार हम देख रहे हैं उसके निर्माण में बीमा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। संभवत: बीमा सुविधाओं के अभाव में व्यवसाय इस विशाल स्थिति तक नहीं पहुँच पाते पर्याप्त वित्तीय साधन उत्पन्न कराने और विभिन्न जोखिमों के विरुद्ध आवश्यक सुरक्षा प्रदान करके बीमा ने बड़े व्यवसायों के विकास में योगदान दिया है।

9. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास में सहायक – सामुद्रिक तथा वायु यातायात दोनों ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के महत्वपूर्ण साधन हैं किन्तु दोनों ही भारी जाखिमों से भरे हुए हैं। कोई नहीं कह सकता है कि कब माल से भरा कौन सा पानी का जहाज डूब जाये अथवा माल से भरा वायुयान पृथ्वी अथवा समुद्र में गिरकर नष्ट हो जाये और उनका स्वामी बर्बाद हो जाए किन्तु बीमा की सुविधा होने से सामुद्रिक जहाज, वायुयान अथवा उनमें लदे सामान का आसानी से बीमा करवाया जा सकता है। यह बीमा की देन है कि आज व्यवसायी वर्ग बिना किसी भय के स्वतन्त्रतापूर्वक विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का भारी मात्रा में आयात – निर्यात कर रहा है। इस प्रकार बीमा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

10. अनुसंधानों को प्रोत्साहन – बीमा व्यावसायिक जगत में अनेक औद्योगिक अनुसंधानों एवं नवकरणों को प्रोत्साहित करता है। इन अनुसंधानों एवं नवकरणों के साथ जुड़ी युद्ध जोखिमों का बीमा करवाकर व्यवसायी निडर होकर अनुसंधान एवं नवकरण कर रहा है।

11. लघु उद्योगों को सहायता – लघु व्यवसायी यदि अपने व्यवसाय की जोखिमों को उठाता है तो उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा, किन्तु बीमा लघु व्यवसायी को समान रूप से जोखिम उठाने में सहायता करता है।

12. प्रतिभूतियों में निवेश बीमा कम्पनियाँ न केवल प्रतिभूतियों का अभिगोपन करती हैं अपितु वे प्रत्यक्ष रूप से विभिन्न औद्योगिक एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों द्वारा निर्गमित प्रतिभूतियों में भी अपनी पूँजी कोषों/वित्तीय कोषों का विनियोजन कर उन्हें पूँजीगत स्रोत उपलब्ध कराती हैं।

सामाजिक उपयोगिता:
बीमा की निभा सामाजिक उपयोगिताएँ हैं –
1. पारिवारिक जीवन में स्थायित्व – बीमा के द्वारा समाज के लोगों के जीवन में स्थायित्वता लायी जा सकती है। कई बार परिवार के भरण – पोषण करने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाने से सारा पारिवारिक जीवन अस्त – व्यस्त हो जाता है। समाज में अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जबकि अच्छा जीवन – यापन करने वाले परिवार में अचानक कमाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर पीछे परिवार का पालन पोषण करना कठिन हो जाता है। किन्तु जीवन बीमा के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार को स्थायित्व प्रदान कर सकता हैं, क्योंकि बीमा मृत्यु उपरान्त आर्थिक क्षतिपूर्ति करता है।

2. जोखिमों का सामूहिक विभाजन – बीमा के द्वारा एक व्यक्ति की जोखिमों को अनेकों में बाँटा जाता है। समूह के सभी व्यक्तियों द्वारा जाखिमों को वहन किया जाता है। इसलिए एण्डोल ने लिखा है – दुर्घटनाओं की लागत को व्यक्तियों के एक बहुत बड़े समूह में विभाजित करके ऐसे दुभग्यि की लागत को आसानी से बर्दाश्त किया जा सकता है।

3. सामाजिक बुराइयों की रोकथाम – आर्थिक बुराइयों एवं गरीबी के कारण ही समाज में लोगों को चोरी करने, भीख मांगने और वेश्यावृत्ति जैसी सामाजिक बुराइयों को प्रोत्साहन मिलता है लेकिन बीमा के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको और अपने आश्रितों को आर्थिक रूप से सक्षम कर सकता है। फलतः समाज स्वस्थ, समृद्ध और बुराइयों से मुक्त रहता है।

4. सभ्यता का प्रतीक – बीमा सामाजिक सभ्यता के विकसित होने का प्रतीक है जिन देशों में बीमा का विकास नहीं हुआ है उन्हें पिछड़ा ही माना जाता है।

5. जीवन स्तर में सुधार – बीमा लोगों को बचत करने तथा जोखिमों को हस्तान्तरित करने का अवसर प्रदान करता है इससे बीमितों की आर्थिक स्थिति सन्तुलित रहती है। फलतः बीमित अपने जीवनस्तर को समान बनाये रखने और निरन्तर ऊँचा उठाये रखने में सफल हो जाते हैं।

6. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता – बीमा जनता को स्वास्थ्य के प्रति सतर्क बनाता है। पूरे विश्व में अनेक बीमा कम्पनियाँ स्वास्थ्य सुधार आन्दोलन चला रही हैं। बीमा कम्पनियाँ अच्छे स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए भारी मात्रा में शिक्षाप्रद सामग्री का भी वितरण कर रही हैं। बीमा कराते समय स्वास्थ्य जाँच भी लाभप्रद सिद्ध होती है क्योंकि इससे बीमित यदि किसी बीमारी से ग्रसित है तो उसे इसकी जानकारी हो जाती है।

7. शिक्षा को प्रोत्साहन – आज अनेक बीमाकर्ता शिक्षा के प्रोत्साहन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दे रहे हैं। अपने बच्चों की शिक्षा की बीमापत्र क्रय करके माता – पिता अपने बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था कर सकते हैं साथ ही कई बीमा कम्पनियाँ पढ़ने के इच्छुक आर्थिक दृष्टि से गरीब विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति भी प्रदान करती हैं। वे शिक्षा ऋण के द्वारा भी शिक्षा को प्रोत्साहित करते हैं।

8. समाज में रोजगार के अवसरों का विकास – बीमा कम्पनियाँ समाज में रोजगार के अवसरों में वृद्धि करती हैं। बीमा कम्पनियों में हजारों व्यक्ति एजेण्ट, विकास अधिकारियों, लिपिकों, शाखा प्रबन्धकों एवं अन्य ऊँचे पदों पर कार्यरत हैं। सामान्य बीमा निगम एवं उसकी सहायता कम्पनियों में लगभग 85000 तथा जीवन बीमा निगम में लगभग डेढ़ लाख कर्मचारी कार्यरत हैं। निजी बीमा कम्पनियों में भी रोजगार के अनेक अवसर विद्यमान रहते हैं।

9. सामाजिक उत्तरदायित्वों की पूर्ति में सहायक – समाज में प्रत्येक व्यक्ति का अन्य व्यक्तियों के प्रति विभिन्न भूमिकाओं में उत्तरदायित्व रहता है। उदाहरणार्थ, पति का पत्नी या बच्चों के प्रति, उत्पादक या निर्माता का अपने ग्राहकों के प्रति, बीमा समाज के व्यक्तियों की अपने आर्थिक दायित्वों को निभाने में सहायता प्रदान करता है।

10. सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का क्रियान्वयन – बीमा एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा समाज के गरीब एवं पिछड़े लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा की योजनाएँ क्रियान्वित की जा सकती हैं। हमारे देश में सरकार ने बीमा कम्पनियों, यथा – जीवन बीमा निगम के माध्यम से कई पिछड़े वर्गों के लिए “सामाजिक सहायता की समूह बीमा योजनाएँ” तथा जनता व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजनाएँ लागू की हैं।”

11. आर्थिक आत्मनिर्भरता की प्राप्ति में सहायक – बीमा समाज को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देता है। बीमितों की छोटी – छोटी बचतों के एकत्र होने तथा बड़ी – बड़ी जोखिमों में बंट जाने से समाज में सभी व्यक्ति आत्मनिर्भरता प्राप्त कर लेते हैं।

12. सामाजिक परिवर्तन का साधन – बीमा सामाजिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण साधन है। मेहर तथा केमेक के अनुसार “बीमा सामाजिक परिवर्तन की प्रभावशाली शक्ति हो सकती है।” वस्तुतः यह समाज के विचारों, जीवनस्तर, जीवन की किस्म सभी में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने में सक्षम है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सर विलियम बेवरिज के शब्दों में बीमा की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
“सामूहिक रूप से जोखिमें उठाना ही बीमा है।”

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
बीमा की कार्यात्मक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
“बीमा वह विधि है जिसमें एक समान प्रकार की जोखिम से घिरे व्यक्ति एक सामान्य कोष में अंशदान करते हैं जिसमें से कुछ दुर्भाग्यशाली व्यक्तियों की दुर्घटनाओं में हुई हानियों को पूरा किया जाता है।”

प्रश्न 3.
बीमा की कोई दो प्रमुख विशेषताएँ लिख़िए।
उत्तर:

  1. बीमा एक सहकारी व्यवस्था है।
  2. बीमा जोखिम को बाँटने की विधि है।

प्रश्न 4.
बीमापत्र क्या है?
उत्तर:
बीमापत्र एक लिखित प्रलेख होता है जिसमें बीमा अनुबन्ध की सभी शर्तों का उल्लेख किया जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
इन्श्योरेन्स तथा एश्योरेन्स में अन्तर बताइए।
उत्तर:
इन्श्योरेन्स शब्द से जोखिम की सम्भावना तो प्रकट होती है किन्तु निश्चितता नहीं, जबकि एश्योरेन्स शब्द जोखिम की निश्चितता को प्रकट करता है।

प्रश्न 6.
बीमा तथा जुए में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बीमा किसी विद्यमान जोखिम से सुरक्षा प्राप्त करने के लिए करवाया जाता है, जबकि जुए में दो या दो से अधिक व्यक्ति मनोरंजन का लाभ लेने के लिए जान – बूझकर कुछ जोखिम उत्पन्न कर लेते हैं।

प्रश्न 7.
बीमा के प्रमुख प्राथमिक कार्य बतलाइए।
उत्तर:

  1. आर्थिक हानि के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करना
  2. जोखिम का विभाजन या फैलाव करना।

प्रश्न 8.
भारत में जीवन बीमा व्यवसाय के संचालन के लिए किस संस्था की स्थापना की गयी है?
उत्तर:
भारत में जीवन बीमा व्यवसाय के संचालन के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना की गयी है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 9.
सामाजिक बीमा क्या है?
उत्तर:
सामाजिक बीमां वह योजना है जो अल्प आय वर्ग के लोगों को अधिकारपूर्वक वह राशि लाभ के रूप में प्रदान करती है जो बीमित, सेवायोजनाओं तथा सरकार के अंशदान से एकत्रित होती है।

प्रश्न 10.
बेरोजगारी बीमा क्या है?
उत्तर:
जब कुछ विशिष्ट कारणों से बीमित बेरोजगार हो जाता है तो उसे पुन: रोजगार मिलने तक की अवधि के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है।

प्रश्न 11.
फसल बीमा में बीमाकर्ता बीमित की फसल को किन करणों से होने वाली क्षतिपूर्ति करने का वचन देती है?
उत्तर:

  1. जलवायु सम्बन्धी कारण
  2. महामारी प्रकोप से
  3. पौधों की बीमारी से तथा
  4. दंगों एवं हड़तालों से।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 12.
व्यक्तिगत बीमा किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी भी व्यक्ति के जीवन में सम्बन्धित जोखिम के बीमे को व्यक्तिगत बीमा कहते हैं।

प्रश्न 13.
सम्पत्ति बीमा किसे कहते हैं?
उत्तर:
स्थायी या अस्थायी, सजीव या निर्जीव, सभी प्रकार की सम्पत्तियों का बीमा ‘सम्पत्ति बीमा’ कहलाता है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बीमा मानवनिर्मित जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आज बीमा उद्योग व्यावसायिक संस्थाओं को मानव – निर्मित जोखिमों से सुरक्षा प्रदान कर रहा है। साधारण बीमा निगम एवं उसकी सहायक कम्पनियों ने अनेक बीमापत्र शुरू किए हैं जिनके अन्तर्गत हड़ताल, दंगे, दुर्भावना, क्षति, चोरी, डकैती आदि की जोखिमों से सुरक्षा प्रदान की जाती है। वाणिज्यिक एवं औद्योगिक संगठनों को इन जोखिमों में बीमे से बड़ी राहत मिल रही है।

इसी प्रकार रास्ते में लायी एवं ले जाने वाली धनराशि का बीमा भी करवाया जा सकता है। इससे रास्ते में डकैती, चोरी आदि के भय से व्यवसायी मुक्त हुए हैं। इसी प्रकार बीमा के प्रारम्भ हो जाने से व्यवसायी को अपने कर्मचारियों के नैतिक मूल्यों के ह्रास से उत्पन्न होने वाली हानियों से सुरक्षा का अवसर मिल गया है। इस प्रकार मानव – निर्मित हानियों से सुरक्षा में साधारण बीमा निगम व उसकी सहायता कम्पनियों ने अत्यधिक योगदान दिया है।

प्रश्न 2.
बीमा ने किस प्रकार पूँजी की आवश्यकता में योगदान दिया है?
उत्तर:
बीमा उद्योग ने देश में पूँजी की उपलब्धता में भारी योगदान दिया है। जीवन बीमा निगम, सामान्य बीमा निगम ने देश एवं विदेश के करोड़ों बीमितों से प्रीमियम के रूप में करोड़ों रुपया प्राप्त किया है। उसने देश के प्रत्येक क्षेत्र में पूँजी उपलब्ध करायी है। 31 मार्च, 2002 तक बीमा उद्योंग ने देश की अर्थव्यवस्था को लगभग 1,50,000 करोड़ है की पूँजी प्रदान कर रखी थी। इसमें से निजी, संयुक्त तथा सहकारी क्षेत्रों के उद्योगों को 20 हजार करोड़ के से भी अधिक की पूँजी उपलब्ध करा रखी थी, शेष पूँजी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा संस्थाओं को दी हुई थी। इससे सार्वजनिक क्षेत्र की कई परियोजनाओं को पूरा करने में सहायता मिली है। साथ ही निजी, संयुक्त एवं सहकारी क्षेत्र की अनेक कम्पनियों को भी वित्त प्राप्त करने में योगदान मिला है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 3.
बीमा ने आधारभूत सुविधाओं के विकास में योगदान दिया है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बीमा ने आधारभूत सुविधाओं के विकास में योगदान दिया है जिससे देश में इन सुविधाओं के विकास में अत्यधि कि सहायता मिली है। औद्योगिक बस्तियों, परिवहन, विद्युत, भण्डारण, कृषि, उत्पादन आदि का उद्योग तथा वाणिज्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है। जीवन बीमा निगम, साधारण बीमा निगम तथा इसकी सहायक कम्पनियों ने उपयोगी
आधारभूत सुविधाओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अकेले भारतीय जीवन बीमा निगम ने 31 मार्च, 1999 तक विद्युत संस्थाओं को 6,112 करोड़ र आवासीय योजनाओं के लिए 8,916 करोड़ Rs. जल आपूर्ति योजनाओं के लिए 1,736 करोड़ रुपये, सड़क परिवहन निगमों के लिए 343 करोड़ Rs. तथा औद्योगिक सम्पदाओं के लिए 5 करोड़ रुपये का योगदान दिया था।
इस प्रकार स्पष्ट है कि बीमा संस्थाओं ने उद्योग एवं वाणिज्य विकास के लिए आवश्यक आधारभूत साधनों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 13 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“बीमा के बिना व्यवसाय का संचालन करना असम्भव है।” समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
लार्ड हार्डविक ने ठीक ही लिखा है कि “बीमा के बिना व्यवसाय का संचालन करना असम्भव है।” इसी प्रकार के विचार व्यक्त करते हुए पीटर एफ. डुकर ने लिखा है कि यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं है कि बीमा के बिना औद्योगिक अर्थव्यवस्था कोई भी कार्य नहीं कर नहीं कर सकती है।” विख्यात अर्थशास्त्री प्रो. सेलिगमेन ने भी लिखा है कि बीमा विस्तृत व्यापार में शान्ति एवं खुशी प्रदान करते हैं। केवल ये ही राष्ट्र के लिए लाभदायी वाणिज्य की किसी भी शाखा में साहस करने को औचित्यपूर्ण बना देते हैं तथा आसान शर्तों पर धन प्राप्त करने एवं बाजारों में सस्ता माल उपलब्ध कराने में योगदान देते हैं।”

यथार्थ में आज सभी प्रकार के व्यवसायों के सफल संचालन में बीमा अपरिहार्य है। बीमा व्यवसायी को जोखिम से सुरक्षा प्रदान करता है, यह व्यवसाय की साख का आधार है, व्यावसायिक संस्थाओं में महत्वपूर्ण व्यक्तियों को हानि से सुरक्षा प्रदान करता है, व्यवसायियों की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है, लागतों में कमी लाता है, अनुसंधान एवं नवकरणों को प्रोत्साहन देता है तथा औद्योगीकरण के लिए आधारभूत संचालन के विकास में सहायता प्रदान करता है। बीमा ने अनेक बड़े व्यवसायों के विकास के मार्ग को प्रशस्त किया है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि आधुनिक युग में बीमा के बिना व्यवसाय का संचालन करना असम्भव है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
एक बीमा एजेण्ट के निषिद्ध कर्तव्य क्या हैं? लिखिए।
उत्तर:
एक बीमा एजेण्ट निम्न कार्य नहीं कर सकता –

  1. बीमाकर्ता द्वारा निगम के लिए किसी भी प्रकार की धनराशि वसूल करना।
  2. बीमा के लिए कमीशन या छूट प्रदान करना।
  3. बीमाकर्ता की ओर से किसी जोखिम को स्वीकार करना।
  4. निगम अथवा बीमाकर्ता की आज्ञा के बिना किसी प्रकार का विज्ञापन या पत्र – पत्रिकां न तो छपवा सकता है और ने ही बाँट सकता है।
  5. किसी दूसरे बीमा एजेण्ट के कार्यों में हस्तक्षेप करना या उसके प्रस्तावकों को बहलाना, फुसलाना आदि।
  6. बीमाकर्ता प्राप्त वैध लाइसेन्स की अवधि समाप्त होने के बाद कार्य नहीं कर सकता।
  7. किसी अन्य बीमाकर्ता के क्षेत्र में जाकर कार्यवाही करना।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 13 बीमा: परिचय एवं महत्त्व

प्रश्न 3.
दोहरा बीमा तथा पुनर्बीमा में प्रमुख अन्तर बताइए।
उत्तर:
दोहस बीमा तथा पुनर्बीमा में प्रमुख अन्तर:
1. आधी – दोहरा बीमा एक बीमित व्यक्ति कई बीमापत्र क्रय करके करवाता है, जबकि पुनर्बीमा में बीमाकर्ता अन्य बीमाकर्ता से अंथने व्यवसाय का बीमा करवाता है।

2. पक्षकारों में सम्बन्ध – दोहरा बीमा में प्रत्येक बीमाकर्ता से बीमित का सम्बन्ध होता है, जबकि पुनर्बीमा में केवल बीमाकर्ता से ही सम्बन्ध होता है।

3. दावा – दोहरा बीमा में बीमित व्यक्ति प्रत्येक बीमाकर्ता से अपनी क्षतिपूर्ति की माँग कर सकता है किन्तु वह अपनी वास्तविक क्षति से अधिक की माँग नहीं कर सकता है जबकि पुनर्बीमा में बीमित व्यक्ति केवल एक ही व्यक्ति अर्थात् बीमाकर्ता से ही क्षतिपूर्ति की माँग कर सकता है, पुनर्बीमा कर्ता से नहीं।

4. जानकारी – दोहरा बीमा की बीमित को पूर्ण जानकारी होती है, जबकि पुनर्बीमा की बीमित को जानकारी होना आवश्यक नहीं है।

5. उद्देश्य – बीमित अपने आपको अधिक सुरक्षित करने के उद्देश्य से दोहरा बीमा करवाता है, जबकि बीमाकर्ता अपने आपको सुरक्षित करने के लिए पुनर्बीमा करवाता है।

6. नामांकन – जीवन बीमा की दशा में दोहरा बीमा के सभी बीमापत्रों का नामांकन किया जा सकता है, जबकि पुनर्बीमा की दशा में बीमापत्रों का नामांकन बीमाकर्ता नहीं कर सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

July 9, 2019 by Prasanna Leave a Comment

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 1

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
माल एवं सेवा कर भारत में कब से लागू होगा। इसे देश में लागू करने की प्रक्रिया क्या होगी।
उत्तर:
माल एवं सेवा कर भारत में 1 जुलाई 2017 – 18 से लागू होगी। देश की 15 विधान सभाएँ अब तक जी एस टी सम्बन्धित संशोधन विधेयक को पारित कर चुकी हैं। अब राष्ट्रपति के मंजूरी मिलने के बाद संविधान संशोधन हो जायेगा। इसके बाद जी एस टी अधिनियम तथा आई जी एस टी अधिनियम को लोक सभा, राज्य सभा द्वारा पारित किया जायेगा। तथा सभी विधान सभाओं द्वारा भी इसे पारित किया जायेगा। कानून बनने के बाद सम्बन्धित नियम बनाते हुये इसे देशभर में लागू किया जायेगा।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

प्रश्न 2.
माल एवं सेवाकंर का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
उत्तर:
माल एवं सेवाकर (जी एस टी) एक अप्रत्यक्ष कर है जो माल के उत्पादक एवं विक्रेता पर एक समान रूप से लगाया जायेगा यह कर माल एवं सेवा दोनों पर लगेगा। वर्तमान कर प्रणाली में इस प्रकार के तीन कर है – उत्पाद शुल्क, सेवाकर, राज्य वैट इन तीनों के स्थान पर यह अकेला कर है। तीन करों के स्थान पर एक कर होने से सरलता बढ़ेगी। जी एस टी में स्टेट जी एस टी एवं सेण्ट्रल जी एस टी दो तरह के कर वसूल करने होंगे जो व्यापारी अभी – एक वैट वसूल कर रहे हैं उन्हें जी एस टी के तहत दो प्रकार के कर वसूल करके जमा करने होंगे तथा दो – दो आगम कर जमा प्राप्त करनी होंगी पूरे विश्व में जहाँ भी जी एस टी लागू है वहाँ केवल एक जी एस टी ही लागू होता है लेकिन भारत में इसे परिवर्तित कर दोहरा जी एस टी लागू किया गया है।

प्रश्न 3.
माल एवं सेवाकर अधिनियम में मूल्य वर्धन पर किस प्रकार कर लगेगा। उदाहरण से समझाइये।
उत्तर:
जीएसटी एक तरह का मूल्य संबर्धित कर ही है जो एक बहुस्तरीय कर है यह किसी वस्तु या सेवा के विक्रय के प्रत्येक स्तर पर वर्धित मूल्य पर लगाया जाता है। वर्धित मूल्य से आशय किसी व्यापारी द्वारा माल या सेवा के मूल्य में जोड़े गये मूल्य से है।

उदाहरण – जैसे महेश किंसी माल या सेवा को Rs.8,000 में खरीदकर हमेन्त को को Rs.14,000 में बेचता है तो उसके द्वारा Rs.6,000. अपनी लागत एवं लाभ के जोड़े गये हैं यही उस वस्तु का वर्धित मूल्य होगा तथा इसी वर्धित मूल्य पर कर चुकाना होगा। जी एस टी केन्द्र की दर 12 प्रतिशत व राज्य जी एस टी की दर 6 प्रतिशत है तो जी एस टी की गणना निम्न प्रकार होगी –
(1) महेश द्वारा जो माल या सेवा खरीदी जायेगी उस पर जी एस टी आगम कर जमा बिल में निम्न प्रकार होगी –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 1
(2) महेश द्वारा विक्रय पर जी एस टी निर्गम कर बिल में निम्न प्रकार होगी –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 2
(3) महेश द्वारा देय जी एस टी की गणना निम्न प्रकार होगी –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 3

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

प्रश्न 4.
जी एस टी की कोई चार विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
“आम आदमी के टैक्स का भार”
कम करेगा जी एस टी का विचार”
जी एस टी की चार विशेषताएँ निम्न हैं –

  1. यह बिक्री के स्थान के आधार पर लगने वाला कर है।
  2. यह बिक्री के प्रत्येक स्तर पर लगाया जाने वाला कर है।
  3. भिन्न – भिन्न प्रकार के टैक्सों की समाप्ति के बाद केवल एक ही कर जी एस टी लगाया जायेगा।
  4. जी एस जी दो स्तरों पर (दोहरी व्यवस्था) वसूल किया जावेगा (CGST एवं SGST)

प्रश्न 5.
जी एस टी में किन – किन वर्तमान करों को शामिल किया जायेगा?
उत्तर:
निम्न कर जी एस टी में शामिल किये जायेंगे अर्थात निम्न कर समाप्त होकर एक जी एस टी कर ही रहेगा।
केन्द्रीय कर –

  • केन्द्रीय उत्पाद शुल्क।
  • अतिरिक्त उत्पाद शुल्क।
  • उत्पाद शुल्क जो मेडिसिन एवं टायलेटरीज प्रिपेरेशन कानून के तहत वसूल की जाती है।
  • अतिरिक्त बीमा शुल्क
  • सेवा कर
  • सरचार्ज एवं सैस राज्य कर।
  • स्टेट वैट विक्रय कर
  • केन्द्रीय विक्रय कर
  • क्रय कर
  • मनोरंजन कर
  • विलासिता कर
  • एन्ट्री कर
  • लाटरी, शर्त, एवं जुएँ पर लगने वाला कर
  • सरचार्ज एवं सैस।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

प्रश्न 6.
जी एस टी आई एन क्या है? समझाइये।
उत्तर:
GSTIN = Goods and Service Tax Identifcation Number.
प्रत्येक करदाता को GSTIN आबंटित होगा जो 15 अंकों का होगा जिनका ब्रेकअप अग्र प्रकार है –

  1. प्रथम दो अंक राज्य के होंगे जिसका कर दाता प्रतिनिधित्व करता है।
  2. अगले 10 अंक कर दाता के पैन नम्बर के होंगे।
  3. तेरहवां अंक पंजीकरण अन्तर्राज्यीय का है।
  4. चौदहवां अंक = by Defaut.
  5. अन्तिम अंक चैक कार्ड का होगा।

प्रश्न 7.
पंजीकरण हेतु आवेदन के साथ लगने वाले किन्हीं चार दस्तावेजों के नाम बताइये।
उत्तर:
पंजीकरण हेतु आवेदन के साथ लगने वाले निम्न चार दस्तावेजों के नाम हैं –

  1. फर्म के मुख्य स्थान के सबूत के रूप में यदि स्वयं का स्थान है तो मालिकाना हक से सम्बन्धित कागज व किराये के मामले में किरायानामा, यदि बिना किराये की जगह मिली है तो उससे सम्बन्धित सबूत।
  2. बैंक स्टेटमेन्ट की प्रति।
  3. अधिकृत प्रतिनिधि के सम्बन्ध में अधिकार पत्र।
  4. एकल व्यापारी, साझेदार, कर्ता, मैनेजिंग डायरेक्टर मैनेजिंग ट्रस्टी का फोटो।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
माल एवं सेवाकर का संक्षिप्त परिचय दीजिये। इसकी विशेषताओं को भी समझाइये।
उत्तर:
“एक देश एक टैक्स, एक बाजार”
“Our aim in economical and educational Impowerment of the poor, GST can help as to achieve this aim” – “Narendra Modi”
GST = Goods and Service Tax

जिसे राजकीय तौर पर The Constitution GST Bill 2014 कहा जाता है। यह एक अप्रत्यक्ष कर है जो व्यापक पैमाने पर पूरे देश के निर्माता, व्यापारी वस्तुओं और सेवाओं के उपभोक्ताओं पर लगेगा। यह टैक्स अन्य सभी Taxes को हटा देगा जो कि केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा लगाये जाते हैं। GST बिल लोकसभा में 6 मई, 2015 को तथा राज्य सभा में 3 अगस्त, 2016 को पास हुआ। केन्द्र सरकार जी एस टी बिल को 1 जुलाई 2017 – 18 से लागू करना चाहती है परन्तु इसे लागू करने से पहले संविधान में संशोधन होगा जिसके लिये 50% विधान मण्डलों की स्वीकृति आवश्यक है। केन्द्र सरकार GST के लिये दर का निर्धारण नहीं कर सकती।

GST बिल से पिछड़े राज्यों का विकास संभव है’ भारत में कई सामानों की कीमत विभिन्न राज्यों में अलग – अलग होती है परन्तु जी एस बिल लागू होने के बाद ऐसा नहीं होगा प्रत्येक उत्पाद पर लगने वाले Tax में केन्द्र और राज्य को बराबर – बराबर मिलेगा। स्पष्ट है कि राष्ट्र में वस्तु की कीमत एक जैसी करने के लिये जी एस टी आवश्यक है।

निष्कर्ष के रूप में जी एस टी भारत की अर्थव्यवस्था, व्यापार व विभिन्न व्यक्तियों पर काफी हद तक सकारात्मक प्रभाव होगा यह आम आदमी के लिये काफी फायदे भी देगा क्योंकि आम आदमी को सस्ती वस्तु को प्राप्त करने के लिये दूसरे राज्यों में जाने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि पूरे देश में वस्तु की कीमत समान होगी – इसीलिये यह बात GST से चरितार्थ होती है –
“एक देश, एक टैक्स, एक बाजार”, यह केन्द्र सरकार का एक सराहनीय कदम है।

जी एस टी की विशेषताएँ – जी एस टी की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –
(1) यह बिक्री के स्थान के आधार पर लगने वाला कर है अर्थात एक राज्य के अन्दर या एक राज्य से दूसरे राज्य में बिक्री कर कने पर यदि एक राज्य के अन्दर बिक्री की जाती है तो GST लगेगा जिस पर केन्द्र और राज्य दोनों की हिस्सेदारी होगी। यदि एक राज्य से दूसरे राज्य में बिक्री होती है तो, IGST लगेगा।

(2) यह बिक्री के प्रत्येक स्तर पर लगेगा GST के अन्तर्गत माल जितनी बार बेचा जायेगा जी एस टी उतनी ही बार निर्धारित दर वे स्थान के आधार पर वसूल किया जायेगा परन्तु पूर्व में चुकाये गये क्रय के आधार पर जी एस टी का समायोजन किया जायेगा।

(3) सभी कर योग्य माल एवं सेवाएँ जो किसी प्रतिफल के लिये होती हैं उन पर यह लागू होगा। निम्न पर जी एस टी नहीं लगेगा

  • कर मुक्त माल एवं सेवायें सी जी एस टी एवं एस जी एस टी के लिये एक समान सूची जारी होगी।
  • माल एवं सेवायें जो जी एस टी की परिधि के बाहर होंगी।
  • एक निर्धारित सीमा से कम लेनदेन ।

(4) दोहरा जी एस टी देश में लागू किया जावेगा – दोहरे जी एस टी का अर्थ है केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा वसूल किया जाने वाला जी एस टी, सेन्ट्रल जी एस टी केन्द्र द्वारा वसूल किया जायेगा (CGST), राज्य सी एस टी राज्य सरकारों द्वारा वसूला जायेगा (SGST).

(5) राज्य के भीतर होने वाली बिक्री या राज्य में प्रदान की जाने वाली सेवा पर SGST और CGST दोनों वसूल किये जायेंगे।

(6) अन्तर्राज्यीय बिक्री के मामले में IGST वसूल किया जायेगा जो कि केन्द्र सरकार द्वारा वसूला जायेगा।

(7) आई जी एस टी राज्य के बाहर से माल आयात करने पर लगेगा तथा माल या सेवाओं के अन्तर्राज्यीय स्टाक हस्तान्तरण पर भी वसूल किया जायेगा।

(8) देश के बाहर होने वाले निर्यात शून्य दर से कर योग्य होंगे। ऐसा होने से माल की खरीद पर इनपुट कर जमा का पुनर्भुगतान प्रतिदाय प्राप्त करने का अधिकार होगा।

(9) पूर्व में जो राज्य माल का निर्माता था उसे 10 प्रतिशत अतिरिक्त जी एस टी वसूल करने का अधिकार था परन्तु अब इसे वसूल नहीं करने का निर्णय किया गया है।

(10) निम्न को छोड़कर सभी माल एवं सेवाएँ जी एस टी के दायरे में आने की संभावना है।

  • शराब – इस पर राजकीय उत्पाद शुल्क एवं वैट देय होगा।
  • बिजली – इस पर बिजली शुल्क देय होगा।
  • रियल एस्टेट इस पर प्रोपर्टी कर एवं स्टाम्प डयूटी देय होगा।
  • पैट्रोलियम उत्पाद।
  • तम्बाकू उत्पाद, सेन्ट्रल उत्पाद शुल्क विभाग के अधीन होंगे।

(11) निम्नलिखित कर जी एस टी में शामिल किये जायेंगे अर्थात जी एस टी वसूल करने के बाद में Tax समाप्त हो जायेगा एवं वसूल नहीं होंगे
केन्द्रीय कर –

  • केन्द्रीय उत्पाद शुल्क
  • अतिरिक्त उत्पाद शुल्क
  • उत्पाद शुल्क जो मेडीसिन एवं टायलेटरीज प्रिप्रेरेशन कानून के तहत वसूल सीमा शुल्क।
  • अतिरिक्त सीमा शुल्क
  • सेवा कर
  • सरचार्ज एवं सैस राज्य कर
  • स्टेट वैट विक्रय कर
  • केन्द्रीय विक्रय कर
  • क्रय कर
  • मनोरंजन कर
  • विलासिता कर
  • एन्ट्री कर
  • लाटरी, शर्त एवं जुए पर लगने वाला कर सरचार्ज एवं सैस।

(12) जी एस टी की चार दरें निर्धारित होंगी –

  • आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की दर
  • सामान्य वस्तुओं एवं सेवाओं की प्रभापित दर
  • कीमती धातुओं की विशेष दर
  • शून्य दर।

(13) न्यूनतम कर योग्य राशि सी जी एस टी तथा एस जी एस टी दोनों पर लागू होगी, इसे 20 लाख रखा गया है अर्थात 20 लाख तक की बिक्री करने वाले व्यवहारी जी एस टी के दायरे में नहीं आयेंगे।

(14) कम्पोजीशन स्कीम उन व्यवहारियों के लिए होगी जिनकी एक सीमा तक कर योग्य विक्रय है. इसे 50 लाख रखे जाने का विचार है यानि ऐसे व्यवहारी एक मुश्त राशि जमा करा सकते हैं।

(15) वस्तुओं के वर्गीकरण के लिए एस एस एवं कोड इस्तेमाल किया जायेगा।

(16) सेवाओं के लिये वर्तमान कोडिंग सिस्टम उपयोग में लिया जायेगा।

(17) पूरे देश में उत्पाद या वस्तु की कीमत एक समान होगी।

(18) गरीब वर्ग, आम आदमी को फायदा होगा

(19) टैक्स प्रणाली में सुधार होगा।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

प्रश्न 2.
माल एवं सेवा कर के अधीन पंजीकरण प्रक्रिया को समझाइये।
उत्तर:
पंजीकरण:
जी.एस.टी की वसूली केन्द्र एवं राज्य दोनों सरकारों द्वारा की जायेगी लेकिन व्यवहारी को केवल एक ही ऑन लाइन पंजीकरण लेना होगा तथा एक ही रिटर्न भरनी होगी। जी एस टी का कम्प्यूटर सिस्टम केन्द्र एवं राज्य से सम्बन्धित जानकारी उनके बीच में बांट देगी। कोई भी व्यक्ति जो वर्तमान में वैट के तहत अपने राज्य में पंजीकृत है उसे स्वत: ही जी एस टी पंजीकरण नम्बर जारी कर दिया जायेगा लेकिन पंजीकरण जारी करने से पहले उससे कुछ अतिरिक्त जानकारी मांगी जायेगी तथा वह जानकारी प्रस्तुत करने के पश्चात ही उसे जी एस टी पंजीकरण नम्बर जारी किया जायेगा।
जी एस टी पंजीकरण पैन कार्ड नम्बर पर आधारित होगा। जी एस टी पंजीकरण नम्बर 15 अंकों का होगा। पंजीकरण नम्बर इस प्रकार होगा –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 4
वर्तमान पंजीकृत व्यवहारियों की स्थिति जो व्यवहारी वर्तमान वैट या उत्पाद या सर्विस कर कानून में पंजीकृत हैं, उनकी समस्त जानकारी जीएसटी कॉमन पोर्टल पर उपलब्ध हो जायेगी तथा उनका जी एस टी आई एन जनरेट हो जायेगा। अभी कुछ करदाता राज्य या केन्द्रीय कर के तहत पंजीकृत हैं या कुछ करदाता दोनों में ही पंजीकृत हैं जी एस टी कानून में व्यवहारी को राज्य जीएसटी के तहत ही पंजीकृत किया जायेगा। एक राज्य में एक व्यवहारी चाहे तो एक रजिस्ट्रेशन कराये या अपने अलग अलग व्यवसायों के लिए अलग अलग पंजीकरण कराये इस बात की उसे छूट मिलेगी। पंजीकरण डेटा को राष्ट्रीय प्रतिभूति डिपॉजिटरी लिमिटेड एवं जी एस टी एन दोनों उपयोग करेंगे।

जिन व्यवहारियों का डेटा पूरा उपलब्ध नहीं होगा उन्हें अखबार में विज्ञापन देकर सूचित किया जायेगा तथा निश्चित अवधि में उन्हें अपना डेटी विभाग की वेबसाइट पर पूरा करना होगा। इसके बाद पूरा डेटा राज्यों को भेजा जायेगा जो उस डेटा की जांच करेंगे। यदि कोई व्यवहारी निर्धारित अविध में डेटा अपडेशन नहीं करेगा तो उसका पंजीकरण स्थगित कर दिया जायेगा और स्थगन जारी रहेगा।

नये व्यवहारियों का पंजीकरण – ऐसे व्यवहारी जो जी एस टी में पहली बार नया पंजीकरण कराना चाहते हैं उन्हें जी एस टी पोर्टल पर जाकर अपना पंजीकरण करवाना होगा। यदि कोई व्यक्ति एक ही राज्य में एक से ज्यादा पंजीकरण कराना चाहता है या अलग अलग राज्यों में पंजीकरण कराना चाहता है तो वह ऐसा कर सकता है। आवेदन के साथ लगने वाले दस्तावेज प्रत्येक व्यवहारी को ऑन लाइन आवेदन के साथ निम्न दस्तावेज की स्कैन प्रतिलिपि लगानी होगी –
(1) साझेदारी फर्म यदि है तो साझेदारी संलेख, सोसाइटी ट्रस्ट के मामले में पंजीकरण प्रमाण पत्र, कम्पनी के मामले में एमसीए 21 से आन लाइन जाँच की जायेगी कोई दस्तावेज लगाने की आवश्यकता नहीं है।

(2) कार्य के मुख्य स्थान के सबूत के रूप में यदि स्वयं का स्थान है तो मालिकाना हक से संबधित कागज या किराये के मामले में किरायानामा, यदि बिना किराये की जगह मिली है तो उससे सम्बन्धित सबूत लगाने होंगे।

(3) बैंक स्टेटमेन्ट की प्रति।

(4) अधिकृत प्रतिनिधि के सम्बन्ध में अधिकार पत्र।

(5) एकल व्यापारी, साझेदार, कर्ता, मैनेजिंग डायरेक्टर, मैनेजिंग ट्रस्टी की फोटो. आदि दस्तावेज संलग्न करने होंगे।

जी एस टी इन तमाम सूचनाओं को केन्द्र राज्य अधिकारिणी विभाग को भेजेगा जो सम्बन्धित न्यायिक अधिकारी का देंगे, तीन दिन में रिपोर्ट प्रेषित की जायेगी यदि दी गयी जानकारी सही पायी जाती है तो पोर्टल पंजीकरण प्रमाण पत्र जारी कर देगा यदि जानकारी में कोई अन्तर या कमी पायी जाती है तो या तो अधिकारी सीधे ही आवेदक को जानकारी दे देंगे या कीमत पोर्टल के जरिये इसकी सूचना आहार्थी तक पहुँचा दी जायेगी।

यदि केन्द्र का कोई अधिकारी कोई कमी निकालता है तो इसकी जानकारी राज्य विभाग को भी दी जायेगी यदि राज्य का कोई अधिकारी, कोई कमी निकालता है तो केन्द्र जी एस टी को सूचना दी जायेगी। उपरोक्त से स्पष्ट है कि राज्य एवं केन्द्र दोनों ही जी एस टी विभाग पंजीकरण आवेदन की जाँच करेंगे। इस प्रकार प्रक्रिया पूर्ण करने पर जी एस टी में पंजीकरण होगा।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

प्रश्न 3.
दोहरा जी एस टी क्या है? यह किस प्रकार भारत में लागू किया जायेगा? विस्तृत रूप से समझाइये।
उत्तर:
दोहरा जी एस टी:
विश्व के अन्य सभी देशों में जहाँ जी एस टी वसूल किया जाता है वहाँ एक ही तरह की कार्य प्रणाली है अर्थात वहाँ, की केन्द्र सरकार ही इस कर को वसूल करती है परन्तु विश्व में भारत एक ऐसा देश है जहाँ केन्द्र सरकार ही नहीं बल्कि राज्य सरकार भी जी एस टी वसूल करनी है।

दोहरा जी एस टी का अर्थ है – केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा वसूल किया जाने वाला जी एस टी माना कि कुल जी एस टी अर्थात केन्द्र द्वारा वसूला जाने वाला व राज्य द्वारा वसूला जाने वाला कुल योग अन्य देशों के कुल जी एस टी जो कि वहाँ या उस देश की केन्द्र सरकार द्वारा वसूला जाता है के लगभग बराबर होता है।

परन्तु भारत में जी एस टी निम्न प्रकार वसूला जाता है और कहा जाता है –

  1. सी जी एस टी – जो सी जी एस टी केन्द्र सरकार द्वारा वसूल किया जाये इसे कहते हैं।
  2. एस जी एस टी – जो एस जी एस टी राज्य सरकार द्वारा वसूल किया जाये उसे के नाम से जाना जाता है।

यह जी एस टी केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा वर्तमान में वसूल किये जा रहे समस्त करों को समाप्त कर नये कर (GST) के रूप में एक ही कर वसूल किया जायेगा तभी तो यह कहा जा रहा है –
“एक देश, एक कर, एक बाजार”
निम्न से और समझा जा सकता है।

CGST: Stand for Central GST

  • This is applicable to Supplies within the state.
  • A tax collected will be shared to centre.

SGST: Stand for State GST

  • This is applicable to supplies within the state.
  • A tax collected will be shared by the state.

IGST: Stand for Integrated GST

  • This is Applicable on Interstate and Import transaction
  • Tax collected will be shared by centre and state.

भारत में किस प्रकार लागू होगा जीएसटी में इनपुट कर जमा-जीएसटी में तीन प्रकार के कर लगाये जाने हैं। अन्तर्राज्यीय बिक्री पर आई जी एस टी देय होगा। राज्य के भीतर माल बेचने पर एस जी एस टी एवं सी जी.एस.टी दोनों कर देय होंगे। तीनों ही कर की राशि के अलग अलग खाते रखने होंगे तथा उन्हें निम्न प्रकार समायोजित किया जायेगा| आई जी एस टी की जमा – यदि कोई व्यापारी अन्तर्राज्यीय खरीद करता है जो उस पर आई जी एस टी का भुगतान किया गया हो तो उसका इनपुट कर जमा सबसे पहले देय आई जी एस टी के निर्गम कर से प्राप्त होगा।

इसके बाद सी जी एस टी के आउटपुट कर से तथा शेष बचे इनपुट को एस जी एस टी के आउटपुट कर से समायोजित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये; जय एण्ड कम्पनी ने Rs.6,00,000 का माल दिल्ली से खरीदा जिस पर उसने 18 प्रतिशत की दर से Rs.1,08,000 आई जी एस टी का भुगतान किया। उसका माह के दौरान आई जी एस टी का आउटपुट कर Rs.55,000 बनता है सी जी एस टी का Rs.29,000 तथा एस जी एस टी का Rs.26,000 बनता है तो व्यापारी उपरोक्त आउटपुट कर में से इनपुट कर जमा निम्न प्रकार प्राप्त करेगा –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 5
इस प्रकार समस्त समायोजन के पश्चात व्यापारी को एस एस जी एस टी 2,000 (26,000 – 24,000) जमा कराना होगा।

सी जीएसटी की जमा – यदि व्यापारी राज्य के भीतर माल की खरीद करता है तो उस पर उसने सी जी एस टी एवं एस जी एस टी दोनों कर चुकाये हैं। इस सी जी एस टी का इनपुट कर जमा सर्वप्रथम व्यापारी को सी जी एस टी के आउटपुट कर से प्राप्त होगा। सी जी एस टी के इनपुट जमा का लाभ एस जी एस टी के आउटपुट कर में से प्राप्त नहीं होगा।

एस जीएसटी की जमा – राज्य के भीतर माल खरीदने पर जो एस जी एस टी का भुगतान किया गया है उसका इनपुट कर जमा सर्वप्रथम एस जी एस टी के आउटपुट कर से प्राप्त होगा तथा शेष आई जी एस टी के आउटपुट केर से समायोजित किया जा सकता है। एस जी एस टी के इनपुट जमा का लाभ सी जी एस टी के आउटपुट कर से तथा सी जी एस टी के इनपुट का लाभ एस जी एस टी के आउटपुट कर से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

प्रश्न 4.
जी एस टी के अधीन व्यापारी को कौन-कौन सी विवरणियाँ जमा करवानी पड़ती हैं। समझाइये।
उत्तर:
कर विवरणियाँ:
जी एस टी लागू होने के बादं व्यापारियों को मासिक रिटर्न भरना पड़ सकता है। अभी वैट एवं उत्पाद शुल्क में छोटे व्यापारियों को तिमाही रिटर्न भरनी पड़ती है तथा सर्विस कर में छमाही रिटर्न भरे जाने का प्रावधान है। प्रत्येक व्यवहारी को निम्न तीन रिटर्न विवरणी भरकर प्रस्तुत करनी होगी –
(1) बिक्री का विवरण (धारा 25) –
माह के दौरान माल की बिक्री या प्रदान की गई सेवा की जानकारी इस रिटर्न में प्रस्तुत करनी होगी। यह जानकारी माह की समाप्ति से 10 दिन के भीतर प्रस्तुत करनी होगी। इस रिटर्न में शून्य दर पर की गई बिक्री, अन्तर्राज्यीय बिक्री, क्रय वापसी, देश के बाहर निर्यात्, डेबिट नोट, क्रेडिट नोट, आदि सभी को शामिल करना होगा। इस जानकारी को क्रेता द्वारा धारा 26 में पेश की गई रिटर्न से मिलाया किया जायेगी तथा यदि कोई मिस मैच आता है तो उसे ठीक करने का मौका व्यवहारी का दिया जायेगा।

(2) खरीद का विवरण (धारा 26) – माह के दौरान खरीदे गये माल एवं प्रात की गई सेवाओं की जानकारी माह की समाप्ति से 15 दिन के भीतर देनी होगी। इसमें अन्तर्राज्यीय खरीद की जानकारी भी देनी होगी। ऐसी संस्थाए जिन पर रिवर्स चार्ज के तहत सेवा प्राप्तकर्ता को सेवाकर जमा कराना है उन सेवाओं की जानकारी अलग से देनी होगी। आपूर्ति के सम्बन्ध में कोई डेबिट नोट या क्रेडिट नोटं प्राप्त हुए हैं तो उनकी जानकारी भी देनी होगी। इस जानकारी को विक्रेता व्यवहारी द्वारा धारा 25 में प्रस्तुत बिक्री के विवरण से मिलान किया जायेगा तथा यदि कोई
अन्तर आता है तो उसे ठीक करने का मौका व्यवहारी को दिया जायेगा।

(3) मासिक विवरणी (धारा 27) – बिक्री एवं खरीद का विवरण क्रमशः 10 एवं 15 तारीख को प्रस्तुत करने के पश्चात व्यवहारी को 20 तारीख तक अपनी मासिक विवरणी ऑन लाइन प्रस्तुत करनी होगी। मासिक विवरणी में खरीद एवं बिक्री की जानकारी के अतिरिक्त इनपुट कर जमा, चुकाये गये कर की जानकारी एवं अन्य जानकारियाँ प्रस्तुत करनी होंगी। कम्पोजीशन स्कीम के तहत आने वाले व्यवहारी बिक्री विवरण, खरीद विवरण एवं विवरण को तिमाही आधार पर प्रस्तुत करेंगे।

विवरण प्रस्तुत करने से पूर्व देय कर जमा कराना आवश्यक है अन्यथा प्रस्तुत की गई विवरणी को अयोग्य करार दे दिया जायेगा। यदि किसी माह में कोई खरीद बिक्री नहीं है तब भी शून्य की विवरणी प्रस्तुत करना आवश्यक है। कर कटौती करने वाले व्यवहारियों को भी मासिक विवरणी भरनी होगी।

विवरणी समय पर न भरने पर लेट फीस –
यदि कोई व्यक्हारी अपनी विवरणी समय पर प्रस्तुत नहीं कर पाता है तो उस पर लेट फीस लगाये जाने का प्रावधान धारा 33 में किया गया है। धारा 25, 26 में बताये गये बिक्री एवं खरीद विवरण को समय पर प्रस्तुत न करने पर 100 प्रतिदिन अधिकतम 5000 की पेनल्टी लगाई जा सकती है। धारा 30 में प्रस्तुत की जाने वाले वार्षिक विवरणी को देरी से प्रस्तुत करने में देरी होने पर 100 प्रतिदिन की शास्ति (पेनल्टी) लगाई जा सकती है जो विक्रय राशि के 0.25 प्रतिशत तक अधिकतम हो सकती है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 व्यावहारिक प्रश्न

प्रश्न 1.
यदि राजस्थान के एक निर्माता ने Rs.15,00,000 का कच्चा माल जयपुर के एक व्यापारी से खरीदा जिसने सी जी एस टी 12 प्रतिशत तथा राज्य जी एस टी 6 प्रतिशत लगाकर कच्चे माल का विक्रय किया। निर्माता ने इस कच्चे माल से वस्तु क की Rs.56,000 इकाइयाँ निर्मित र्की तथा Rs. 8,60,000 का अतिरक्त व्यय किया। उसने लाभ सहित सभी इकाइयों को Rs.25,00,000 में एक पंजीकृत व्यापारी को बेच दी तथा इस पर सी जी एस टी 12 प्रतिशत तथा राज्य जी एस टी 6 प्रतिशत वसूल की। देय कर की गणना कीजिये।
उत्तर:
(A) निर्माता द्वारा माल। सेवा खरीद पर जी एस टी आगम कर जमा बिल में निम्न प्रकार दर्शाया जायेगा –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 6
(B) निर्माता द्वारा जो माल/सेवा बेची गयी पर जी एस टी निर्गम बिल में निम्न प्रकार दर्शाया जायेगा –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 15

(C) निर्माता द्वारा देय जी एस टी की गणना निम्न प्रकार होगी –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 7

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

प्रश्न 2.
राजस्थान के एक व्यापारी ने Rs.6,00,000 का माल जयपुर के एक व्यापारी से खरीदा जिस पर सी जी एस टी 12 प्रतिशत तथा एस जी एस टी 6 प्रतिशत लगाया गया है। व्यापारी ने इस माल का 3/4 भाग Rs.8,00,000 में एक पंजीकृत व्यापारी को राजस्थान में बेच दिया इस पर सी जी एस टी 12 प्रतिशत तथा एस जी एस टी 6 प्रतिशत वसूल की। शेष माल Rs.1,00,000 में मध्य प्रदेश के एक व्यापारी को बेच दिया इस पर आई जी एस टी 14 प्रतिशत वसूल की। देय कर की गणना कीजिये।
उत्तर:
(1) व्यापारी द्वारा माल खरीद पर जी एस टी आगम कर जमा बिल में निम्न प्रकार होगी –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 8
(2) व्यापारी द्वारा विक्रय पर जी एस टी निर्गम कर बिल में निम्न प्रकार होगी –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 9
(3) व्यापारी द्वारा देय जी एस टी को गणना –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 10

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन – कौन से माल एवं सेवायें हैं जिनके जी एस टी के दायरे में नहीं आने की संभावना है।
उतर:
1. निम्नलिखित माल एवं सेवायें जिनके जी एस टी के दायरे में नहीं आने की संभावना हैं –

  • शराब – इस पर राजकीय उत्पाद एवं वैट देय होगा।
  • बिजली – इस पर बिजली शुल्क देय होगा।
  • रियल एस्टेट इस पर प्रोपर्टी कर एवं स्टाम्प डयूटी देय होगा।
  • पैट्रोलियम उत्पाद।
  • तम्बाकू उत्पाद सेन्ट्रल उत्पाद शुल्क विभाग के अधीन होंगे।

उपरोक्त माल एवं सेवा में जी एस टी के दायरे से बाहर रखी गयी हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

प्रश्न 2.
जी एस टी के लाभ बताइये।
उत्तर:
जी एस टी के निम्नलिखित लाभ हो सकते है –

  • भिन्न – भिन्न प्रकार के करों की समाप्ति, सभी करों को मिलाकर एक ही कर।
  • निर्माता को अब एक ही टैक्स भरना होगा जिससे वस्तुओं के दामों में गिरावट आयेगी
  • पूरे देश में एक – सा टैक्स होने के कारण देशी विदेशी दोनों प्रकार के व्यापारियों को लाभ होगा।
  • भारत के सभी राज्यों के मध्य व्यवसाय करना और सरल हो जायेगा
  • जी एस टी बिल के लागू होने से जीडीपी (GDP) में 1 से 2% की वृद्धि हो सकेगी।

(6) सभी राज्यों में दाम एक समान होंगे।

अन्त में जीएसटी के लाभों को इस प्रकार भी वर्णित किया जा सकता है –
“GST से टैक्स प्रणाली में सुधार है।
GST से भारत का उद्धार है”
“आम आदमी के टैक्स का भार
कम करेगा जीएसटी का विचार”
“एक देश, एक टैक्स, एक बाजार”

प्रश्न 3.
व्यवहारी का पंजीकरण कौन सी सरकार के हाथ में होता है पंजीकरण का एक नमूना बनाकर बताइये कि इन अंकों की पहचान क्या है?
उत्तर:
व्यवहारी का जीएसटी पंजीकरण राज्य सरकार के हाथ में होता है। राज्य जीएसटी विभाग व्यवहारी का पंजीकरण का कार्य करता है। पंजीकरण का एक नमूना निम्न प्रकार है –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 11
इस प्रकार पंजीकरण में कुल 15 अंक होते हैं जिसमें 1, 2 स्टेट कोड, 3 से 12 पैन कार्ड नं., 13 Entity code राज्य के बाहर/भीतर Blank 14 एवं check code 15
इस प्रकार इनपकी पहचान की जाती है। इस प्रकार पंजीकरण में कुल 15 अंक होते हैं जिनमें 1, 2, स्टेट कोड 3 से 12 पैन कार्ड न., 13 Entity Code राज्य के बाहर/भीतर Blank 14 एवं Check code 15 इस प्रकार इनकी पहचान की जाती है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 15 माल एवं सेवा कर

प्रश्न 4.
मध्य प्रदेश के एक व्यापारी ने Rs.12,00,000 का माल ग्वालियर (मध्य प्रदेश के दूसरे व्यापारी से खरीदा जिसपर 12 प्रतिशत सी जी एस टी एवं 6 प्रतिशत एस जी एस टी चुकाया। व्यापारी ने इस माल का 1/3 हिस्सा गुजरात के एक व्यापारी को Rs.6,00,000 में देय दिया जिस पर 15% की दर से आई जी एस टी चुकाया। शेष माल ग्वालियर (म. प्र.) के ही व्यापारी को Rs.12,00,000 में बेच दिया जिस पर 12 प्रतिशत सी जी एस टी व 6 प्रतिशत एस जी एस टी चुकाया। देय कर की गणना कीजिये।
(1) व्यापारी द्वारा माल खरीद पर जी एस टी आगम कर जमा बिल में निम्न प्रकार दिखाया जायेगा –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 12
(2) व्यापारी द्वारा विक्रय पर जीएसटी निर्गम कर बिल में निम्न प्रकार दिखाया जायेगा –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 13
(3) व्यापारी द्वारा देय कर की गणना –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 15 14

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RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 14 प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व

July 9, 2019 by Prasanna Leave a Comment

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 14 1

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Chapter 14 प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 14 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 14 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक उत्तरदायित्व किसे कहते हैं?
उत्तर:
समाज व्यवसाय जगत से जो अपेक्षाएँ रखता है प्रबन्ध उन समाज की अपेक्षाओं को अपने कौशल द्वारा पूरा करता है इसे ही सामाजिक उत्तरदायित्व कहते हैं। क्योंकि समाज, व्यवसाय की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है – तो लाजिमी है कि समाज भी व्यवसाय जगत से कुछ अपेक्षा रखता है। यही प्रबन्ध का समाज के प्रति उत्तरदायित्व है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 14 प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व

प्रश्न 2.
प्रबन्ध के सामाजिक उत्तरदायित्व की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
एण्डूज के अनुसार – ”प्रबन्ध के सामाजिक उत्तरदायित्व से तात्पर्य समाज के कल्याण के प्रति बुद्धिमता पूर्ण एवं वास्तविक लगाव से है जो किसी संस्थान को चरम विनाशकारी कार्यों को करने से रोकता है तथा मानव कल्याण की अभिवृद्धि में योगदान देने वाली दिशा की ओर प्रवृत्त करता है”।

प्रश्न 3.
सामाजिक चेतना से क्या आशय है?
उत्तर:
सामाजिक चेतना का अर्थ:
समाज के चौकन्ना, सावचेत, जागरूक अभिप्रेरित रहने से है अर्थात समाज को यह आभास होना चाहिये कि उद्योगों एवं बड़े – बड़े व्यवसायों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति समाज के द्वारा की जा रही है अतः व्यवसाय व प्रबन्ध भी समाज का ध्यान रखें। समाज कल्याण से आशय समाजोपयोगी योजनाएँ, बेरोजगारी दूर करने में सहायक, गरीबी को दूर करने के प्रयास, गुणवत्ता व प्रमापित वस्तुओं की उपलब्धता, सही मूल्य, नापतोल, जमाखोरी नहीं आदि के प्रति समाज के जागरूक रहने से है। समाज से ही व्यवसाय पैदा होता है, बढ़ता है, फलता फूलता है, यह समाज का ध्यान रखें ऐसी सोच यदि समाज की होगी तो यह सामाजिक चेतना कही जायेगी।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 14 प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व

प्रश्न 4.
निगम से क्या आशय है?
उत्तर:
निगम एक व्यवस्था/प्रक्रिया है जिसके द्वारा कम्पनी को निर्देशित एवं नियंत्रित किया जाता है।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 14 1

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 14 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रबन्ध की सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
प्रबन्ध समाज का आर्थिक एवं सामाजिक उत्प्रेरक है” अत: प्रबन्ध को समाज में सामाजिक एवं आर्थिक मूल्यों का विकास करने, ग्राहकों के हितों की रक्षा करने, समाज के विभिन्न वर्ग पुरुष महिला, युवा बच्चे, ग्रामीण – शहरी, कामकाजी महिला, पेशेवर गरीब बेरोजगार आदि वर्गों की आकाक्षाओं को पूरा करने एवं भावी चुनौतियों की तैयारी के लिये योजनाएँ, कार्यक्रम रणनीति, प्रशिक्षण, जागरूकता एवं अभियान चलाकर स्वैच्छिक रूप से जिम्मेदारी को वहन करना प्रबन्ध की सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा मानी जाती है।

प्रश्न 2.
प्रबन्थ की सामाजिक उत्तरदायित्व की नवीन अवधारणा की विवेचना कीजिए।
उतर:
कुछ वर्षों पूर्व तक प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व केवल कल्याणकारी कार्य करने तक ही सीमित था परन्तु बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा पूरी तरह बदल गयी है जिसे नवीन अवधारणा के नाम से पुकारा जा रहा है। प्रबन्ध का वास्तविक स्वरूप सामाजिक एवं मानवीय है क्योंकि वह समाज के संसाधनों का प्रन्यासी है। अर्थात् ऐसे भी कहा जा सकता है कि प्रबन्ध की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति समाज के द्वारा की जाती है।
Land – Labour – Capital
अतः प्रबन्ध को सामाजिक आकांक्षाओं के अनुरूप व्यवहार करना होगा। हाल के कुछ वर्षों में समाज ने प्रबन्ध से कुछ नई अपेक्षाएँ की हैं, जैसे – “सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन में नेतृत्व प्रदान करने की।”

आज प्रबन्ध के सामने सबसे बड़ी चुनौती निरन्तर बदल रही सामाजिक अपेक्षाओं का मूल्यांकन करके उचित सामाजिक व्यवहार बदलने की है। इस प्रकार नवीन अवधारणा के अन्तर्गत स्पष्ट है कि सामाजिक विचारधारा एक विस्तृत विचारधारा है जो प्रबन्धकों को सामाजिक हितों के मूल्यों को ध्यान में रखकर निर्णय लेने के लिये बाध्य करती है। यह समाज की मान्यताओं, जीवन स्तर, स्थिरता, एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना व्यवसायों को संचालित करने पर बल देती है। यह प्रबन्धकों को समाज के हितों में नीतियों व कार्यक्रमों का निर्माण करने, सामाजिक समस्याओं को हल करने तथा उन्हें समाज की श्रेष्ठ रचना के लिये प्रोत्साहित करती है ताकि समाज के कल्याण में बढ़ोत्तरी हो सके।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 14 प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व

प्रश्न 3.
व्यवसाय के स्वयं के प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध को समाज के सभी वर्गों के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह करना होता है। व्यवसाय के स्वयं के प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व निम्न प्रकार हैं –

  1. सामाजिक हितों को ध्यान में रखकर निर्णय लेना
  2. प्रबन्ध के पेशे के प्रति प्रतिष्ठा बनाये रखना
  3. पेशेवर संगठनों की सदस्यता ग्रहण करना
  4. पेशेवर शिष्टाचार का पालन करना
  5. प्रबन्ध आचार संहिता का पालन करना
  6. प्रबन्धकीय ज्ञान एवं शोध के प्रति विकास में योगदान करना
  7. प्रबन्ध के द्वारा समस्त मजदूर, कार्मिकों के साथ मानवीय व्यवहार करना
  8. पूर्ण निष्ठा एवं मेहनत के साथ कार्य करना।

प्रश्न 4.
व्यवसाय का ग्राहकों के प्रति दायित्वों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
“ग्राहक बाजार का राजा होता है” ग्राहक की संतुष्टि ही व्यवसाय की सफलता का आधार है। सरकार भी उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण विभिन्न कानूनों द्वारा करती है। ग्राहक की उपेक्षा व्यवसाय के लिये घातक सिद्ध होती है।
ऐसी स्थिति में ग्राहकों के प्रति कुछ विशेष दायित्व बनते हैं जिन्हें व्यवसाय प्रबन्ध को पूरा करना चाहिये जो निम्न प्रकार हैं –

  1. ग्राहकों की रुचियों व आवश्यकताओं का अध्ययन करना
  2. उचित मूल्य पर वस्तु एवं सेवाएँ उपलब्ध करवाना
  3. प्रमाणित किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध करवाना
  4. अनुचित प्रवृतियाँ – कम नापतोल, झूठ, दिखावटी, जमाखोरी, मिलावट आदि को त्यागना
  5. झूठे, अनैतिक विज्ञापन व भ्रामक प्रचार न करना
  6. विक्रय के समय दिये गये आश्वासनों एवं वायदों को पूरा करना
  7. विक्रय उपरान्त सेवायें प्रदान करना
  8. उपभोक्ताओं की शिकायतों को दूर करना
  9. आचार संहिताओं का पालन करना
  10. बाजार उपभोक्ता एवं वस्तुओं की उपयोगिता के बारे में शोध करना
  11. वस्तुओं की उपयोग विधियों आदि के बारे में ग्राहकों को जानकारी देना
  12. उपयोगी जीवनकाल व जीवन स्तर में वृद्धि करने वाली वस्तुओं का निर्माण करना
  13. कृत्रिम कमी उत्पन्न नहीं करना व पूर्ति को नियमित बनाए रखना
  14. उचित समये व उचित मूल्य पर उपभोक्ता को वस्तुएँ उपलब्ध करवाना
  15. ग्राहकों से मधुर एवं स्थायी संबंध स्थापित करना।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 14 प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व

प्रश्न 5.
व्यवसाय की सरकार के प्रति दायित्वों की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक प्रबन्ध एक निगमीय नागरिक है अतः प्रबन्ध के सरकार के प्रति की कुछ उत्तरदायित्व हैं जो निम्न प्रकार हैं –

  1. सभी सरकारी नियम व कानूनों की पालना करना
  2. सरकार की नीतियों के अनुरूप व्यवसाय का संचालन
  3. व्यावसायिक उत्पादक क्षमता व लाइसेंस क्षमता का पूर्ण उपयोग करना
  4. राष्ट्रीय हित में देश के आर्थिक संसाधनों का विदोहन करना
  5. सरकारी क्षेत्र व प्रक्रिया को भ्रष्ट न करना
  6. करों का सही समय पर भुगतान करना तथा व्यवसाय का सही विवरण देना
  7. राष्ट्रीय कार्यक्रम, अल्प बचत, परिवार कल्याण, आदि सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन में सहयोग देना,
  8. अन्य दूसरों को भी नियम विरुद्ध कार्य करने से रोकने में सरकारी की मदद करना।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 14 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रबन्ध के सामाजिक उत्तरदायित्व से आप क्या समझते हैं? इसकी अवधारणाओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक उत्तरदायित्व:
समाज, व्यवसाय जगत से जो अपेक्षाएँ रखता है। प्रबन्ध उस समाज की अपेक्षाओं को अपने कौशल द्वारा पूरा करता है इसे ही सामाजिक उत्तरदायित्व कहते हैं। क्योंकि समाज, व्यवसाय की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तो आवश्यक है कि समाज भी व्यवसाय से कुछ अपेक्षा रखता है। इन अपेक्षाओं को पूरी करने में खरा उतरना ही सामाजिक उत्तरदायित्व है।

सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा:
प्रबन्ध की सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा को लेकर विभिन्न प्रबन्धक, चिन्तक, एवं लेखकों के अभिमत अलग – अलग हैं। कुछ चिन्तक वस्तु एवं सेवाओं के कुशल उत्पादन, विपणन को आधार मानकर अधिकतम लाभार्जन क्षमता को ही प्रबन्ध का दायित्व मानते हैं तो कुछ विद्वान प्रबन्ध द्वारा आर्थिक निर्णय लेते समय समाजहित एवं उनकी अपेक्षाओं को ध्यान रखने (जैसे टाटा द्वारा नैनोकार की कीमत निर्धारण) को सामाजिक उत्तरदायित्व मानते हैं।

इसी तरह प्रगतिशील एवं चिन्तनशील विद्वान समाज के लोकोपयोगी एवं कल्याणकारी कार्यों की ओर प्रयास किये जाने वाले कार्यक्रम, जैसे – गरीबी उन्मूलन, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, स्वच्छता, प्रदूषण निवारण, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा मूल्य प्राप्ति, रोजगार, संस्कारित शिक्षा, संस्कृति की रक्षा एवं बढ़ावा आदि को सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन मानते हैं।

“प्रबन्ध, समाज का आर्थिक एवं उत्प्रेरक एजेन्ट है” अतः प्रबन्ध को समाज में सामाजिक एवं आर्थिक मूल्यों का विकास करने, ग्राहकों के हितों की रक्षा करने, समाज के विभिन्न वर्ग पुरुष – महिला, गरीब, युवा बच्चे, ग्रामीण शहरी, कामकाजी महिला, पेशेवर, बेरोजगार आदि वर्गों की आकांक्षाओं को पूरा करने एवं भावी चुनौतियों की तैयारी के लिये योजनाएँ, कार्यक्रम, रणनीति, प्रशिक्षण, जागरूकता, अभियान चलाकर, स्वैच्छिक रूप से सामाजिक जिम्मेदारी का वहन करना चाहिये।

आर. जोसेफ मेनसेन ने प्रबन्धन के सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना के विकास में निम्न चार स्तरों का उल्लेख किया है। प्रथम स्तर – इस स्तर पर प्रबन्ध उपक्रम के सन्दर्भ में व्यावसायिक कानूनों का पालन करके सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करता है। यह सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का न्यूनतम स्तर है।

द्वितीय स्तर – प्रथम स्तर से ऊपर उठकर प्रबन्ध जन आकांक्षाओं, अपेक्षाओं का अनुमान करता है एवं उनके अनुकूल दृष्टिकोण व कदम उठाता है।

तृतीय स्तर – इस स्तर पर प्रबन्ध पहले से ही जनमत व जन आकांक्षाओं का अनुमान करता है एवं उसी के अनुरूप दृष्टिकोण व कदम उठाता है।

चतुर्थ स्तर – यह सामाजिक भावना का उच्चतम स्तर है। इसमें प्रबन्ध आदर्श समाज के निर्माण को दृष्टिगत रखते हुये स्वेच्छा से नई जन आकांक्षाओं को जन्म देता है।

राबर्ट हे तथा इडग्रे ने प्रबन्ध के सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा के निम्न प्रारूपों का उल्लेख किया है –
1. अधिकतम लाभ प्रबन्ध – अधिकतम लाभ प्रबन्ध की अवधारणा एडम स्मिथ की प्रसिद्ध कृति “वेल्थ ऑफ नेशन्स” पर आधारित है। इस पुस्तक में स्मिथ ने यह विचार व्यक्त किया है कि उद्यमी समाज की इच्छानुसार उत्पादन तभी करता है जब ऐसा करने से उसे लाभ होता हो। इस प्रकार जब समाज उद्यमियों को अधिकतम लाभ अर्जित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान कर देता है तो उनकी स्वार्थ भावना ही उत्पादन बढ़ाने का आधार बन जाती है। इससे समाज को अधिकाधिक वस्तुओं की उपलब्धि हो जाती है। इस प्रकार के प्रबन्ध में यह अवधारणा होती है कि मेरे लिए जो अच्छा है वह मेरे देश के लिए अच्छा है।”

2. न्यासिता प्रबन्ध – न्यासिता प्रबन्ध की अवधारणा तीसा की मन्दी से प्रेरित है। इसमें यह स्वीकार किया गया है। कि प्रबन्ध का उत्तरदायित्व केवल लाभ अधिकतम करने तक सीमित नहीं है, बल्कि कर्मचारियों, अंशधारियों, पूर्तिकर्ताओं, ग्राहकों और जन सामान्य के प्रति इसका दायित्व है। इस मत के अनुसार, प्रबन्धकों को ट्रस्टी के रूप में संगठन के परस्पर विरोधी दावेदारों के हितों की रक्षा करनी चाहिए। इस प्रकार यह मान्यता स्वीकार की गई है कि जो एक उपक्रम के लिए अच्छा है, वह सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए अच्छा है।”

3. जीवन की गुणवत्ता प्रबन्ध – प्रबन्ध का यह विचार सामाजिक उत्तरदायित्व के नवीनतम दर्शन को प्रकट करता है जो लाभ अधिकतम करने वाले प्रबन्ध तथा न्यासिता प्रबन्ध दोनों से भिन्न है। यह अवधारणा इस दर्शन को स्वीकार करती ‘ है कि “जो समाज के लिये अच्छा है वह कम्पनी के लिये अच्छा है।” इस प्रकार लाभार्जन को स्वीकार करते हुये जीवन गुणवत्ता प्रबन्ध में विश्वास रखने वाले प्रबन्ध समाज के लिये हानिप्रद माल का उत्पादन और विक्रय नहीं करेगा।

इस अवधारणा में प्रबन्ध समाज की समस्याओं को संयुक्त रूप से हल करते हुये सरकार को एक साझेदार के रूप में देखता है। इस अवधारणा को स्वीकार करने वाला प्रबन्ध समाज के जीवन स्तर में वृद्धि करने, व्यक्तियों की जीवन गुणवत्ता में सुधार, तथा हर प्रकार से समाज के उत्थान में योगदान देने के लिये तैयार रहता है। यह जन स्वीकृति के आधार पर कार्य करता है तथा समाज अपने कार्यों का मूल्यांकन चाहता है। यदि समाज उसमें कोई सुधार चाहता है तो समाज की आकांक्षाओं के अनुरूप उसमें सुधार करने का प्रयास करता है।

सामाजिक उत्तरदायित्व की नवीन अवधारणा:
कुछ वर्षों पूर्व तक प्रबन्ध का सामाजिक दायित्व केवल कल्याणकारी कार्य करने तक ही सीमित था। किन्तु बीस शताब्दी के उत्तरार्द्ध से सामाजिक दायित्व की अवधारणा पूर्णत: बदल गई है। प्रबन्ध का वास्तविक स्वरूप सामाजिक एवं मानवीय है, क्योंकि वह समाज के संसाधनों का प्रन्यासी है। अतः प्रबन्ध को सामाजिक आकांक्षाओं के अनुकूल व्यवहार करना होता है।

आर. ऑकरमैन का कथन है। कि “हाल के वर्षों में समाज ने प्रबन्ध से कुछ नयी अपेक्षाएँ की हैं इनमें प्रमुख हैं – सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन में नेतृत्व प्रदान करने की।’ एडवर्ड कोल के अनुसार, “आज प्रबन्ध के सामने सबसे बड़ी चुनौती निरन्तर बदल रही सामाजिक अपेक्षाओं का मूल्यांकन करके उचित सामाजिक व्यवहार करने की है।” स्पष्ट है कि सामाजिक दायित्व की विचारधारा एक विस्तृत विचारधारा है जो प्रबन्धकों को सामाजिक हितों के मूल्यों को ध्यान रखकर निर्णय लेने के लिए प्रेरित करती है।

यह समाज की मान्यताओं, जीवन किस्म, स्थिरता, एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना व्यवसाय का संचालन करने पर बल देती है। यह प्रबन्धकों को समाज के हित में नीतियों व कार्यक्रमों का निर्माण करने, सामाजिक समस्याओं को हल करने तथा उन्हें समाज की श्रेष्ठ रचना के लिए प्रोत्साहित करती है ताकि समाज कल्याण में अभिवृद्धि.की जा सके। संक्षेप में, प्रबन्ध की सामाजिक प्रतिबद्धता अथवा सामाजिक दायित्व के निम्न तीन स्तर हैं –
1. निम्न स्तर – सामाजिक बाध्यता अथवा कर्तव्य – इस स्तर पर प्रबन्धक प्रचलित कानूनों तथा अर्थिक प्रणाली के अनुरूप ही समाज के प्रति अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का पालन करते हैं। इसमें प्रबन्धक वैधानिक नियमों की बाध्यता, वैधानिक आवश्यकताओं अथवा अपने स्वयं के हित के कारण ही सामाजिक दायित्वों को निभाते हैं।

2. मध्ये स्तर – इस स्तर पर प्रबन्ध सामाजिक परम्पराओं – मूल्यों, आकांक्षाओं के कारण अपने दायित्वों का निर्वाह करते हैं। वे स्वैच्छिक रूप से अपने फायदे पर विचार न करके तथा कानूनी आवश्यकताओं से कुछ अधिक ही सामाजिक कल्याण के कार्य करते हैं। वे न्यासिता की भावना तथा अच्छे निगमीय नागरिक की आकांक्षा से कार्य करते हैं। किन्तु इस स्तर पर जनसमस्याओं पर विचार नहीं करते हैं। (कौशल विकास कार्यक्रम)

3. उच्चतम स्तर पर सामाजिक संवेदनशील–इस स्तर पर प्रबन्धक समाज की समस्याओं, कठिनाइयों वे महत्वपूर्ण मसलों के प्रति प्रतिसंवेदी तथा जागरूक होते हैं। उनका व्यवहार समाज के हित में कार्य करने तथा समाज को समस्या मुक्त समाज बनाने का होता है। वे समाज की समस्याओं का पूर्वानुमान करके उनके घटित होने के पूर्व ही उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं। वे दूर दृष्टि रखकर समाज की भावी समस्याओं को हल करने के उपाय ढूँढ़ते हैं।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 14 2

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 14 प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व

प्रश्न 2.
व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्वों की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व का विस्तृत क्षेत्र है उसे दायित्व निर्वहन में अपनी महती भूमिका निभानी होती है – प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व किन – किन के प्रति क्या – क्या होता है इसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 14 3
उपरोक्त चार्ट से स्पष्ट हो रहा है कि प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। इन सभी वर्गों समूहों के सामाजिक उत्तरदायित्व का प्रबन्ध को ध्यान रखना पड़ता है।
किसके प्रति प्रबन्ध का क्या सामाजिक उत्तरदायित्व है इसे निम्न प्रकार बिन्दुवार समझा जा सकता है –
1. स्वयं के प्रति दायित्व – प्रबन्धकों के अपने स्वयं के प्रति तथा अपने पेशे के प्रति प्रमुख निम्न दायित्व होते हैं –

  1. सामाजिक हितों को ध्यान में रखकर निर्णय लेना
  2. प्रबन्ध की पेशे के प्रति प्रतिष्ठा बनाये रखना
  3. पेशेवर संगठनों की सदस्यता ग्रहण करना
  4. पेशेवर शिष्टाचार का पालन करना
  5. प्रबन्ध आचार संहिता का पालन करना
  6. प्रबन्धकीय ज्ञान एवं शोध के प्रति विकास में योगदान करना
  7. अपने कार्मिकों के साथ घनिष्ठता एवं स्थायी सबंध बनाना।

2. अपनी संस्था के प्रति दायित्व – एक प्रबन्ध के अपनी संस्था के प्रति निम्न दायित्व होते हैं –

  1. संस्था के व्यवसाय का सफल संचालन करना
  2. संस्था के उत्पादों की मांग उत्पन्न करना
  3. संस्था को प्रतिस्पर्धी बनाये रखना
  4. व्यवसाय में नवाचारों को प्रोत्साहन देना
  5. संस्था का विकास एवं विस्तार करना
  6. शोध कार्य को बढ़ावा देना
  7. संस्था की लाभार्जन क्षमता में वृद्धि करना
  8. संस्था की छवि व प्रतिष्ठा को बनाये रखना।

3. स्वामियों के प्रति दायित्व – प्रबन्ध एवं स्वामित्व के पृथक – पृथक हो जाने के कारण प्रबन्धकों के स्वामियों के प्रति दायित्व उत्पन्न हो जाते हैं जो निम्न प्रकार हैं –

  1. विनियोजित पूँजी को सुरक्षा प्रदान करना
  2. निश्चित उद्देश्यों के लिए ही पूँजी का उपयोग करना
  3. अंशधारियों को उचित लाभांश का भुगतान करना
  4. अंशपूँजी में अभिवृद्धि के प्रयास करना
  5. विभिन्न प्रकार के अंशधारियों के साथ समता एवं न्याय का व्यवहार करना
  6. व्यवसाय की प्रगति की यथार्थ सूचना देना
  7. कपटपूर्ण व्यवहार न करना, गुप्त लाभ न कमाना।
  8. अंशों के हस्तान्तरण में बाधा उत्पन्न नहीं करना।

4. ऋणदाताओं के प्रति दायित्व – व्यवसाय की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति में ऋणदाताओं का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है। ऋणदाताओं के प्रति भी प्रबन्ध के निम्न दायित्व बनते हैं –

  1. ऋणराशि का सदुपयोग करना
  2. ऋण प्राप्ति एवं ब्याज की उचित शर्ते रखना
  3. मूल पूँजी व ब्याज का समय पर भुगतान करना
  4. बन्धक रखी गयी सम्पत्ति की पूर्ण सुरक्षा करना
  5. ऋणदाताओं को इच्छित सूचनाएँ उपलब्ध करवाना
  6. ऋणदाताओं के साथ मधुर व्यवहार रखना।

5. कर्मचारियों के प्रति दायित्व – कर्मचारी संस्था की महत्वपूर्ण निधि होते हैं, ये यांत्रिक मानव नहीं वरन संवेदनशील भावनाओं वाले प्राणी होते हैं। चार्ल्स मायर्स के अनुसार ”जो उद्यम मानवीय तत्वों की आवश्यकताओं एवं भावनाओं की उपेक्षा करते हैं वे यंत्र समूह के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं।” एक प्रबन्ध के अपने कर्मचारियों के प्रति निम्न दायित्व होते हैं –

  1. उचित वेतन का भुगतान करना
  2. प्रेरणात्मक मजदूरी योजनाओं को लागू करना
  3. कर्मचारियों को कार्य के प्रति सुरक्षा (गारन्टी) प्रदान करना
  4. स्वस्थ कार्य करने की स्थितियाँ परिस्थितियाँ उपलब्ध कराना
  5. श्रम कल्याण के कार्य करना
  6. सामाजिक सुरक्षा, पेंशन, ग्रेच्युटी, बीमा, भविष्य निधि आदि की व्यवस्था करना
  7. कर्मचारियों को उनकी रुचि एवं योग्यता के अनुरूप कार्य सौंपना
  8. कर्मचारियों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराना
  9. पदोन्नति के अवसर उपलब्ध कराना
  10. कर्मचारियों को प्रबन्ध में भागीदारी उपलब्ध कराना
  11. बोनस एवं लाभों में हिस्सा देना
  12. क्षमता एवं व्यक्तित्व विकास के नये – नये अवसर प्रदान करना,
  13. अन्य प्रेरणादायी/उत्साही सुविधाएँ प्रदान करना।

6. ग्राहकों के प्रति दायित्व – ग्राहक बाजार का ‘राजा’ होता है। ग्राहक की संतुष्टि ही व्यवसाय की सफलता की आधार है। सरकार भी उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिये विभिन्न प्रकार के कानून बनाती है एवं उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करती है। ग्राहक की उपेक्षा व्यवसाय के लिये नुकसानदेह है। ऐसी स्थिति में ग्राहकों के प्रति प्रबन्ध के निम्न उत्तरदायित्व बन जाते हैं –

  1. ग्राहकों की रुचियों व आवश्यकताओं का अध्ययन करना
  2. उचित मूल्य पर वस्तुएँ एवं सेवाएँ उपलब्ध करवाना
  3. प्रमाणित किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध कराना
  4. अनुचित प्रवृत्तियाँ कम नापतोल, झूठ, दिखावा, जमाखोरी मिलावट आदि को त्यागना
  5. झूठे अनैतिक विज्ञापन व भ्रामक प्रचार न करना
  6. विक्रय के समय दिये गये आश्वासनों व वायदों को पूरा करना
  7. विक्रय उपरान्त सेवाएँ प्रदान करना
  8. उपभोक्ताओं की शिकायतों को दूर करना
  9. आचार संहिताओं का पालन करना
  10. बाजार उपभोक्ता एवं वस्तुओं की उपयोगिता के बारे में शोध करना
  11. वस्तु के उपयोग विधियों आदि के बारे में ग्राहकों को जानकारी देना
  12. उपयोगी जीवन काल व जीवन स्तर में वृद्धि करने वाली वस्तुओं का निर्माण करना
  13. कृत्रिम कमी उत्पन्न नहीं करना व पूर्ति को नियमित बनाए रखना
  14. उचित समय व उचित दर पर उत्पाद उपलब्ध करवाना
  15. ग्राहकों से स्थायी सम्बन्ध बनाये रखना।

7. आपूर्तिकर्ताओं के प्रति दायित्व प्रबन्ध के आपूर्तिकताओं के प्रति निम्न दायित्व होते हैं –

  1. आपूर्तिकर्ताओं को उनके माल का उचित मूल्य प्रदान करना
  2. क्रय की उचित शर्ते रखना
  3. लेन – देनों की यथासमय भुगतान करना
  4. नवीन प्रकार के कच्चे माल को प्रस्तुत करने का अवसर देना
  5. बाजार संबंधी आवश्यक सूचनाएँ आपूर्तिकर्ताओं को उपलब्ध कराना।

8. अन्य व्यवसायियों के प्रति दायित्व – प्रबन्ध के अन्य व्यवसायियों के प्रति भी दायित्व होते हैं जो निम्न प्रकार हैं –

  1. स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनाए रखना
  2. दूसरे व्यवसायी की निन्दी या आलोचना नहीं करना
  3. आपूर्ति पर एकाधिकार न जमाना
  4. दूसरे व्यवसायियों के ब्राण्ड, ट्रेडमार्क आदि का उपयोग नहीं करना
  5. केवल सामाजिक हितों में अभिवृद्धि एवं व्यावसायिक कुशलता के लिये संयोजन को प्रोत्साहित करना।

9. व्यावसायिक संघ तथा पेशेवर संस्थाओं के प्रति दायित्व –

  1. चैम्बर ऑफ कॉमर्स या अन्य व्यावसायिक संघों की सदस्यता ग्रहण करना
  2. इन संस्थाओं की प्रकाशित सामग्री का उपयोग करना
  3. इन संस्थाओं/संघों की आचार संहिता का पालन करना
  4. इनकी परियोज़नाओं में मौद्रिक सहयोग देना
  5. इनकी बैठकों में सहभागिता निभाते हुए विचार – विमर्श करना।

10. स्थानीय जन समुदाय के प्रति दायित्व इस वर्ग के प्रति प्रबन्ध के निम्न दायित्व होते हैं –

  1. प्राकृतिक सम्पदा की सुरक्षा करना
  2. वायु, जल, ध्वनि प्रदूषण को रोकना
  3. स्थानीय जन समुदाय के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना
  4. जन कल्याणकारी संस्था, अस्पताल, स्कूल, धर्मशाला आदि की स्थापना करना वे उनको सहयोग करना
  5. महिलाओं कमजोर वर्ग, विकलांगों को सहायता प्रदान करना
  6. स्थानीय समुदाय की परम्पराओं, नियमों का पालन करना
  7. स्थानीय जनसमुदाय की विभिन्न स्तरों पर मदद करना
  8. स्थानीय जन समुदाय से विशेष प्रकार का लगाव रखना।

11. सरकार के प्रति दायित्व – प्रत्येक प्रबन्ध एक निगमीय नागरिक है अतः प्रबंन्ध के सरकार के प्रति निम्न उत्तरदायित्व सृजित होते हैं –

  1. सभी सरकारी नियम व कानूनों की पालना करना
  2. सरकार की नीतियों के अनुरूप व्यवसाय की संचालन करना
  3. व्यावसायिक उत्पादन क्षमता व लाइसेंस क्षमता का पूर्ण उपयोग करना
  4. राष्ट्रीय हित में देश के आर्थिक संसाधनों का विदोहन करना
  5. सरकारी क्षेत्र व प्रक्रिया को भ्रष्ट नहीं करना
  6. करों का सही समय पर भुगतान करना तथा सरकार को सही विवरण प्रस्तुत करना
  7. राष्ट्रीय कार्यक्रम अल्पबचत, परिवार नियोजन आदि व सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन में सहयोग करना।

12. विश्व के प्रति दायित्व – आज व्यवसाय का स्वरूप राष्ट्रीय न रहकर अन्तर्राष्ट्रीय हो गया है अतः प्रबन्धकों का दायित्व सम्पूर्ण विश्व के प्रति भी उत्पन्न हो गया है जो निम्न प्रकार है –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय की अभिवृद्धि में सहयोग करना
  2. अन्य राष्ट्रों की व्यावसायिक नीति तथा घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना
  3. अन्तर्राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी व तकनीकी को अपनाना
  4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यावसायिक नैतिकता व संहिताओं का पालन करना
  5. अन्य देशों के सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों का आदर करना
  6. पिछड़े राष्ट्रों में उद्योगों की स्थापना करना
  7. विकासशील व पिछड़े राष्ट्रों को तकनीकी व प्रबन्धकीय सुविधा उपलब्ध करवाना
  8. न्यायोचित व्यवहार, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा व सौहार्दपूर्ण संबंधों पर ध्यान देना।

इस प्रकार प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व विभिन्न वर्गों के प्रति व्यापक है।

प्रश्न 3.
कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्वों के लिये किये गये प्रावधानों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व के लिये बनाये गये प्रावधान निम्न प्रकार हैं –
(1) लागू होना – निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व संबंधी प्रावधान प्रत्येक ऐसी कम्पनी पर लागू होते हैं जिस कम्पनी की शुद्ध सम्पत्ति किसी वित्तीय वर्ष में Rs.500 करोड़ या अधिक या बिक्री Rs.1000 करोड़ या अधिक या शुद्ध लाभ Rs.5 करोड़ या इससे अधिक हो। उस कम्पनी को अपने संचालकों की एक निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व समिति का गठन करना होगा इस कमेटी में कम से कम 3 संचालक होंगे। इनमें से कम से कम एक स्वतंत्र संचालक होना चाहिए। {धारा 135 (1)}

(2) संचालकों की रिपोर्ट में प्रेषित/ व्यक्त करना – कम्पनी बनायी गयी निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व समिति के गठन की जानकारी कम्पनी के संचालक मण्डल की रिपोर्ट में सम्मिलित करनी होगी। {धारा 135 (2)}

(3) समिति के कार्य – निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व समिति निम्न कार्य करेगी –

  1. एक निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति का निर्धारण करेगी जो इस अधिनियम के अनुसूची 7 में बताये गये क्रियाकलापों में से कम्पनी द्वारा किये गये क्रियाकलापों के संबंध में संचालक मण्डल की सिफारिश करेगी।
  2. इन क्रियाकलापों पर व्यय की राशि निर्धारित करेगी।
  3. कम्पनी द्वारा निर्धारित निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति की मानीटरिंग करेगी। {धारा 135 (3)}

(4) संचालक मण्डल द्वारा कार्यवाही – संचालक मण्डल निम्न कार्यवाही करेगा –

  1. संचालक मण्डल समिति द्वारा की गयी सिफारिश पर विचार करेगी तथा कम्पनी की निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति का अनुमोदन करेगा तथा अपनी रिपोर्ट में निर्धारित तरीके से इस नीति को प्रकट करेगा। इसे कम्पनी के वेबसाइट पर भी डाला जायेगा।
  2. संचालक मण्डले यह भी सुनिश्चित करेगा कि कम्पनी की निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति में क्रियाकलाप कम्पनी द्वारा किये जायें। {धारा 135 (4)}

(5) खर्च करना – कम्पनी को अपने प्रत्येक वित्तीय वर्ष के ठीक पहले के तीन वर्षों के औसत शुद्ध लाभों का कम से कम 2 प्रतिशत निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व पर खर्च करना होगा। संचालक मण्डल यह सुनिश्चित करेगा कि यह राशि निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति के अनुसरण में खर्च की जाये। {धारा 135 (5)}

(6) स्थानीय क्षेत्र को प्राथमिकता – कम्पनी निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति के अन्तर्गत निष्पादित किये जाने वाले क्रियाकलापों में उस स्थानीय क्षेत्र को प्राथमिकता देनी होगी जिस क्षेत्र में कम्पनी कार्यरत है {धारा 135 (5)}

(7) असफलता का उल्लेख – यदि कोई कम्पनी निर्धारित राशि को निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति के क्रियाकलापों में खर्च करने में असफल रहती है तो उसे अपनी संचालक मण्डल की रिपोर्ट में इसके कारणों का उल्लेख करना होगी। {धारा 135 (5)}

(8) शुद्ध लाभ की गणना – निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व की गतिविधियों पर व्यय की जाने वाली राशि के लिये शुद्ध लाभ की गणना कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा शुद्धलाभ प्रावधानों के अनुसार की जायेगी। {धारा 135 (5)}

(9) अन्य प्रावधान – धारा 135 के अन्तर्गत निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व की नीति को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए (निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व) नियम 2014 बनाये गये जो 1 अप्रैल, 2014 से लागू हैं। नियमों के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं –

  1. निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व सम्बन्धी प्रावधान प्रत्येक कम्पनी, उसकी सहायक या सूत्रधारी कम्पनी तथा ऐसी प्रत्येक विदेशी कम्पनी पर भी लागू होते हैं जिसकी शाखा यो परियोजना कार्यालय भारत में स्थित है।
  2. एक कम्पनी सी एस आर गतिविधियों या कार्यकलापों के निष्पादन में अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर भी कार्य कर सकती है लेकिन इसका उसे अपनी सी एस आर कमेटी से अनुमोदन कराना होगा।
  3. निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति के अन्तर्गत केवल भारत में किये जाने वाले क्रियाकलापों के व्यय को ही सम्मिलित किया जायेगा।
  4. ऐसे क्रियाकलाप जो कम्पनी के केवल कर्मचारियों एवं उनके परिवार के लाभ के लिये किये जाते है। उन्हें सी एस आर गतिविधियों में सम्मिलित नहीं किया जायेगी।
  5. गैर सूचीबद्ध कम्पनी या निजी कम्पनी को सी एस आर समिति में स्वतंत्र संचालक की नियुक्ति की आवश्यकता नहीं होगी।
  6. यदि किसी निजी कम्पनी में केवल 02 ही संचालक हैं तो वे ही सी एस आर कमेटी के सदस्य माने जायेंगे।
  7. सी एस आर कमेटी निगमीय सामाजिक उत्तर दायित्व नीति के क्रियाकलापों के निष्पादन के संबंध में पारदर्शी निगरानी व्यवस्था कायम करेगी।
  8. कम्पनी के संचालक मण्डल को संम्बन्धित वित्तीय वर्ष के बाद अपनी सी एस आर गतिविधियों के संबंध में एक वार्षिक प्रतिवेदन देना होगा।
  9. सी एस आर गतिविधियों के व्यय के बाद कोई राशि बचती है तो उसे कम्पनी के व्यावसायिक लाभ का भाग नहीं माना जायेगा।
  10. कम्पनी को अपनी सी एस आर नीति इसके अन्तर्गत किये गये क्रियाकलापों का विवरण तरीके से अपनी वेबसाइट पर प्रकट करना होगा।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 14 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व के लिये बनाये गये प्रावधान कौन सी कम्पनियों या व्यवसायों पर किस धारा के तहत लागू होते हैं?
उत्तर:
निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व संबंधी प्रावधान प्रत्येक ऐसी कम्पनी पर लागू होते हैं जिस कम्पनी की शुद्ध सम्पत्ति किसी वितीय वर्ष में Rs.500 करोड़ या उससे अधिक या बिक्री Rs.1000 करोड़ या उससे अधिक या शुद्ध लाभ Rs.5 करोड़ या इससे अधिक हो। उस कम्पनी को अपने संचालकों की एक निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व समिति का गठन करना होगा। इस कमेटी में कम से 03 संचालक होंगे इनमें से कम से कम एक स्वतंत्र संचालक होना चाहिये। उपरोक्त प्रावधान कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 की उपधारा (1) के अनुसार तय किये गये हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 14 प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व

प्रश्न 2.
कम्पनी को निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति के क्रियाकलापों में किस लाभ का कितना प्रतिशत न्यूनतम खर्च करना अनिवार्य है। ऐसे लाभों की गणना कैसे की जाती है एवं प्रावधान की धारा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी को अपने प्रत्येक वित्तीय वर्ष के ठीक पहले के तीन वर्षों के औसत शुद्ध लाभों का कम से कम 02 प्रतिशत निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व गतिविधियों या क्रियाकलापों पर खर्च करना अनिवार्य है। यह प्रावधान कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्वों के लिये धारा 135 की उपधारा 5 के तहत किया गया है।

प्रश्न 3.
कम्पनी अधिनियम, 2013 में निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्वों के लिये अधिनियम की धारा 135(3) में क्या कहा गया है?
उत्तर:
धारा 135(3) के अन्तर्गत निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व समिति के कार्यों का उल्लेख किया गया है जो निम्न प्रकार हैं –

  1. समिति एक निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति का निर्धारण करेगी जो इस अधिनियम के अनुसूची 7 में बताये गये क्रियाकलापों में से कम्पनी द्वारा किये गये क्रियाकलापों के संबंध में संचालक मण्डल की सिफारिश करेगी।
  2. इन क्रियाकलापों पर व्यय की राशि निर्धारित करेगी।
  3. कम्पनी द्वारा निर्धारित निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व नीति की मानीटरिंग करेगी।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 14 प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व

प्रश्न 4.
प्रबन्ध को ऋणदाताओं के प्रति उत्तरदायित्व को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
ऋणदाताओं के प्रति दायित्व – व्यवसाय में वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति में ऋणदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है अतः प्रबन्धक को उनके प्रति भी निम्न दायित्वों को पूरा करना चाहिये

  1. ऋणराशि का सदुपयोग करना
  2. ऋण प्राप्ति एवं ब्याज की उचित शर्त रखना
  3. मूल पूँजी का ब्याज समय पर भुगतान करना
  4. बन्धक रखी गयी सम्पत्ति की पूर्ण सुरक्षा करना
  5. ऋणदाताओं को इच्छित सूचनाएँ उपलब्ध कराना
  6. ऋणदाताओं के प्रति मधुर सम्बन्ध बनाये रखना।

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RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

July 9, 2019 by Prasanna Leave a Comment

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 1

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम क्या है?
उत्तर:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम में जनसमूह से सम्भावित उद्यमियों की खोज करना तथा उन्हें तकनीकी एवं प्रबन्धकीय प्रशिक्षण देकर उन्हें अपना उपक्रम स्थापित व संचालित करने में सहयोग देना है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम के कोई दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:

  1. व्यवसाय संचालन व विपणन सम्बधी प्रशिक्षण प्रदान करना।
  2. लघु एवं कुटीर उद्योगों को विकसित करना।

प्रश्न 3.
लघु उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
सामान्यतया इस श्रेणी में वे उद्योग आते हैं जिनमें प्लाण्ट तथा मशीनरी में एक करोड़ र है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 4.
औद्योगिक वातावरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
औद्योगिक वातावरण से तात्पर्य नये-नये उद्योग धन्धों की स्थापना करना, विद्यमान उपवक्रमों का विस्तार एवं नवीनीकरण करना है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के उद्देश्य निम्न हैं –

  1. प्रथम पीढ़ी के व्यवसायियों का निर्माण करना।
  2. उद्यमीय प्रेरणा वाले व्यक्तियों की पहचान कर उनमें उद्यमीय गुणों का विकास करना।
  3. सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों की जानकारी देना हैं।
  4. उद्यमियों को परियोजना निर्माण में आक्श्यक सहायता प्रदान करना।
  5. उद्यमिता अपनाने वाले उद्यमियों को उद्यमिता के लाभ दोषों से अवगत कराना।
  6. देश के सभी भागों में उद्यमिता का विकास करना।
  7. व्यवसाय संचालन व विपणन सम्बन्धी प्रशिक्षण प्रदान करना।
  8. लघु एवं कुटीर उद्योग-धन्धों को विकसित करना।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम की भूमिका बताइए।
उत्तर:
उद्यमिता विकास का कार्यक्रम की देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसके द्वारा देश का तीव्र आर्थिक एवं सन्तुलित विकास तथा औद्योगिक वातावरण का निर्माण होता है। उद्यमियों को कानूनी प्रावधान व नीतियों की जानकारी एवं उद्यमियों की शंकाओं एवं समस्याओं का समाधान किया जाता है। आर्थर कोल ने इसकी सामाजिक उपादेयता को स्वीकार करते हुए लिखा है कि “उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के अध्ययन से आर्थिक एवं सामाजिक क्रिया में सहायता मिलती है।”

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का अर्थ बताइए तथा इसके उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का अर्थ:
सामान्य शब्दों में, उद्यमिता विकास कार्यक्रम से तात्पर्य किसी ऐसे कार्यक्रम से है जिसका उद्देश्य जनसमूह में से सम्भावित उद्यमियों की खोज करना, उनमें उद्यमिता की भावना का विकास करना तथा तकनीकी एवं प्रबन्धकीय प्रशिक्षण देकर उन्हें अपना उपक्रम स्थापित व संचालित करने में सहयोग देना है। इन कार्यक्रमों द्वारा उद्यमियों के विकास हेतु योजना बनाकर प्रयास किये जाते हैं तथा उनके समुचित तथा समस्त विकास की कोशिश की जाती है। इस प्रकार उद्यमिता विकास कार्यक्रम का अर्थ ऐसे प्रयासों से है जिसके द्वारा –

  1. उद्यमी को शिक्षण प्रशिक्षण प्रदान कर उसकी बौद्धिक, तकनीकी एवं वैचारिक क्षमताओं को परिमार्जित किया जाता है।
  2. उद्यमीय कार्यों के द्वारा उन्हें अपना उपक्रम स्थापित करने में सहयोग प्रदान किया जाता है।
  3. उद्यमी की अग्रान्तरिक शक्तियों का विकास कर तथा उद्यमिता की प्रेरणा जाग्रत कर साहसिकता का मार्ग अपनाने के लिये प्रेरित किया जाता है।
  4. दैनिक क्रियाओं में उद्यमीय व्यवहार उत्पन्न करना तथा उसमें सुधार पर बल दिया जाता है।

उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के उद्देश्य:
उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत जनसमूह में से सम्भावित उद्यमियों की खोज कर, उनमें उद्यमिता का विकास, तकनीकी एवं प्रबंधकीय प्रशिक्षण देकर उन्हें अपनी उपक्रम स्थापित व संचालित करने में सहयोग प्रदान किया जाता है। साथ – ही लघु एवं कुटीर उद्योगों को विकसित करने एवं उद्यमियों की शंकाओं व समस्याओं का निदान व उपचार किया जाता है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
(1) प्रथम पीढ़ी के व्यवसायियों का निर्माण करना – सामान्यत: यह माना जाता था कि उद्यमी पैदा होते हैं विकासित नहीं किये जा सकते हैं लेकिन उद्यमिता विकास कार्यक्रमों द्वारा इस विचारधारा को परिवर्तित कर दिया है। जिन घरों में कभी व्यवसायों की कोई बात नहीं होती थी, वहाँ व्यवसायियों का निर्माण हो रहा है और यही उद्यमिता विकास कार्यकृम का प्रथम उद्देश्य है।

(2) उद्यमीय गुणों का विकास – एक उद्यमी की सफलता उसके गुणों पर निर्भर करती है एवं इन गुणों का विकास उद्यमिता कार्यक्रम से सम्भव हो सकता है। उद्यमिता विकास कार्यक्रम से उद्यमीय प्रेरणा वाले व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें शिक्षण एवं प्रशिक्षण देकर उनमें उद्यमिता के आवश्यक गुणों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है।

(3) सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों की जानकारी प्रदान करना – उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के लिए सरकार द्वारा चलायी जाने वाली विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों की जानकारी उद्यमियों को प्रदान की जाती है तथा इन योजनाओं का उपयोग कैसे किया जाये, इसकी विस्तृत सूचना कहाँ से व कैसे प्राप्त की जाये, कौन सा विभाग कौन की जानकारी प्रदान करेगा आदि उपयोगी जानकारी प्रदान करना भी उद्यमिता विकास कार्यक्रम का उद्देश्य है।

(4) परियोजना निर्माण में उद्यमियों की सहायता – उद्यमिता विकास कार्यक्रम उद्यमियों को परियोजना निर्माण में सहायता प्रदान करता है। यह उद्यमियों को परियोजना निर्माण हेतु आवश्यक आधारभूत तथ्य, समंक, वित्तीय एवं सरकारी ज्ञान आदि प्रदान करके परियोजना निर्माण को सुगम बनाता है।

(5) उद्यमिता के लाभ-दोषों से अवगत कराना – किसी उपक्रम की स्थापना एवं संचालन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने के लिये उद्यमिता विकास कार्यक्रम द्वारा उद्यमियों को लाभ-दोषों से अवगत कराया जाता है जिससे सम्भावित चुनौतियों को कम किया जा सकता है।

(6) व्यवसाय संचालन व विपणन सम्बन्धी प्रशिक्षण प्रदान करना – व्यवसाय के सफल संचालन एवं उचित विपणन हेतु उद्यमिता विकास कार्यक्रम द्वारा उद्यमियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। उद्यमियों द्वारा व्यवसाय कैसे किया जाता है, विभिन्न पक्षकारों के साथ मधुर सम्बन्ध कैसे बनाये जायें, बाजारों का विश्लेषण कैसे किया जाय, माल के विपणन के लिये विक्रय, विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन की विधि क्या हो के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान की जाती है।

(7) लघु एवं कुटीर उद्योगों को विकसित करना – उद्यमिता विकास कार्यक्रमों का उद्देश्य स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन कर लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना करने की प्रेरणा देना है। लघु एवं कुटीर उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं एवं इनके विकास हेतु स्थानीय समुदाय को शिक्षण-प्रशिक्षण देकर एवं तकनीकी ज्ञान प्रदान करके इन उद्योगों को विकसित करने के प्रयास किये जाते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
देश के विकास में उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
देश के विकास में उद्यमिता विकास कार्यक्रमों का महत्व:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम की देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसके द्वारा देश का तीव्र आर्थिक एवं सन्तुलित विकास तथा औद्योगिक वातावरण का निर्माण होता है। देश के विकास में उद्यमिता विकास कार्यक्रम के महत्व को अग्र बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
(1) देश का तीव्र आर्थिक एवं संतुलित विकास – उद्यमिता विकास कार्यक्रम देश के तीव्र आर्थिक एवं संतुलित विकास के लिये महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ है क्योंकि इन कार्यक्रमों से प्रेरित होकर उद्यमी अविकसित क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना करने हेतु तत्पर हो जाते हैं जिससे देश का सन्तुलित आर्थिक विकास होता है। प्रो. नर्कसे ने लिखा है कि, “उद्यमी संतुलित आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।”

(2) संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग – देश के विकास के लिये उपलब्ध विभिन्न संसाधनों को अनुकूलतम उपयोग जरूरी होता है। उद्यमिता विकास कार्यक्रय में उद्यमियों को संसाधनों के श्रेष्ठतम उपयोग की विधि व तकनीकी का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे वे उत्पादन के विभिन्न संसाधनों को संयोजित कर बेहतर उपयोग करने का प्रयास करते हैं। यही नहीं, उद्यमी प्रत्येक संसाधन को मूल्य देकर प्राप्त करता है अतः वह सदैव इनके अधिकतम सदुपयोग के प्रति जागरूक बना रहता है।

(3) पूंजी निर्माण में सहायक – किसी देश की आर्थिक विकास पूंजी पर निर्भर करता है और इस पूंजी का निर्माण बचतों के माध्यम से होता है। उद्यमी इन बचतों को उद्योगों में अंश, ऋण पत्र आदि के रूप में उपयोग कर प्रत्यक्ष रूप से पूंजी निर्माण को बढ़ावा देते हैं ये इन बचतों को उत्पादक कार्यों में उपयोग करके पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि करते हैं।

(4) औद्योगिक वातावरण का निर्माण – उद्यमिता विकास कार्यक्रम द्वारा देश में औद्योगिक वातावरण का निर्माण होता है। जिसके द्वारा उद्यमी नये नये उद्योग-धन्धों की स्थापना करते हैं, नवीन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं, नये बाजारों की खोज एवं उन्हें विकसित करते हैं, विद्यमान उपक्रमों का विस्तार एवं नवीनीकरण करते हैं जिससे देश की औद्योगिक क्रियाओं में बढ़ोत्तरी होती है एवं औद्योगिक वातावरण का निर्माण होता है।

(5) लघु व कुटीर उद्योगों का विकास – देश के विकास में लघु व कुटीर उद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उद्यमिता विकास कार्यक्रमों द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना करने में सहायता प्रदान करना तथा उन्हें तकनीक, बाजार एवं कम लागत पर अधिक उत्पादन के बारे में प्रशिक्षित किया जाता

(6) रोजगार के अवसरों में वृद्धि – उद्यमिता विकास कार्यक्रम से देश में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। देश में नवीन उद्योगों की स्थापना, संचालित उपक्रमों के विकास व विस्तार, नवीन व आधुनिक तकनीकी के प्रयोग आदि के परिणामस्वरूप रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध होते हैं। इसके द्वारा कृषि, सेवा, व्यापार आदि क्षेत्रों में भी रोजगार में वृद्धि होती है। रिब्सन के शब्दों में “उद्यमी देश में रोजगार के अवसरों का सृजन करता है।”

(7) उद्यमियों को कानूनी प्रावधान व नीतियों की जानकारी – उद्यमी विकास कार्यक्रम उद्यमियों को आधारभूत कानूनी प्रावधान एवं प्रमुख सरकारी नीतियों से अवगत कराता है जिससे उपक्रम की स्थापना एवं उसका संचालन सुगम हो जाता है। इसी प्रकार केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा जो विभिन्न नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं उनके बारे उद्यमियों को जानकारी प्रदान की जाती हैं जिससे इनका क्रियान्वयन एवं समन्वय आसानी से हो जाता है जो देश के विकास में सार्थक है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का अर्थ ऐसे प्रयासों से है जिसके द्वारा –
(अ) उद्यमी को शिक्षण प्रशिक्षण प्रदान कर उनकी बौद्धिक, तकनीकी एवं वैचारिक क्षमताओं को परिमार्जित किया जाता है।

उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के उद्देश्य:
उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत जनसमूहं में से सम्भावित उद्यमियों की खोज कर, उनमें उद्यमिता का विकास, तकनीकी एवं प्रबंधकीय प्रशिक्षण देकर उन्हें अपना उपक्रम स्थापित व संचालित करने में सहयोग प्रदान किया जाता है। साथ . ही लघु एवं कुटीर उद्योगों को विकसित करने एवं उद्यमियों की शंकाओं व समस्याओं का निदान व उपचार किया जाता है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
(1) प्रथम पीढ़ी के व्यवसायियों का निर्माण करना – सामान्यत: यह माना जाता था कि उद्यमी पैदा होते हैं विकासित नहीं किये जा सकते हैं लेकिन उद्यमिता विकास कार्यक्रमों द्वारा इस विचारधारा को परिवर्तित कर दिया है। जिन घरों में कभी व्यवसायों की कोई बात नहीं होती थी, वहाँ व्यवसायियों का निर्माण हो रहा है और यही उद्यमिता विकास कार्यकृम का प्रथम उद्देश्य है।

(2) उद्यमीय गुणों का विकास – एक उद्यमी की सफलता उसके गुणों पर निर्भर करती है एवं इन गुणों का विकास उद्यमिता कार्यक्रम से सम्भव हो सकता है। उद्यमिता विकास कार्यक्रम से उद्यमीय प्रेरणा वाले व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें शिक्षण एवं प्रशिक्षण देकर उनमें उद्यमिता के आवश्यक गुणों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है।

(3) सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों की जानकारी प्रदान करना -उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के लिए सरकार द्वारा चलायी जाने वाली विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों की जानकारी उद्यमियों को प्रदान की जाती है तथा इन योजनाओं का उपयोग कैसे किया जाये, इसकी विस्तृत सूचना कहाँ से व कैसे प्राप्त की जाय, कौन सा विभाग कौन की जानकारी प्रदान करेगा आदि उपयोगी जानकारी प्रदान करना भी उद्यमिता विकास कार्यक्रम का उद्देश्य है।

(4) परियोजना निर्माण में उद्यमियों की सहायता – उद्यमिता विकास कार्यक्रम उद्यमियों को परियोजना निर्माण में सहायता प्रदान करता है। यह उद्यमियों को परियोजना निर्माण हेतु आवश्यक आधारभूत तथ्य, समंक, वित्तीय एवं सरकारी ज्ञान आदि प्रदान करके परियोजना निर्माण को सुगम बनाता है।

(5) उद्यमिता के लाभ-दोषों से अवगत कराना – किसी उपक्रम की स्थापना एवं संचालन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने के लिये उद्यमिता विकास कार्यक्रम द्वारा उद्यमियों को लाभ-दोषों से अवगत कराया जाता है जिससे सम्भावित चुनौतियों को कम किया जा सकता है।

(6) व्यवसाय संचालन व विपणन सम्बन्धी प्रशिक्षण प्रदान करना – व्यवसाय के सफल संचालन एवं उचित विपणन हेतु उद्यमिता विकास कार्यक्रम द्वारा उद्यमियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। उद्यमियों द्वारा व्यवसाय कैसे किया जाता है, विभिन्न पक्षकारों के साथ मधुर सम्बन्ध कैसे बनाये जायें, बाजारों का विश्लेषण कैसे किया जाय, माल के विपणन के लिये विक्रय, विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन की विधि क्या हो के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान की जाती है।

(7) लघु एवं कुटीर उद्योगों को विकसित करना – उद्यमिता विकास कार्यक्रमों का उद्देश्य स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन कर लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना करने की प्रेरणा देना है। लघु एवं कुटीर उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं एवं इनके विकास हेतु स्थानीय समुदाय को शिक्षण-प्रशिक्षण देकर एवं तकनीकी ज्ञान प्रदान करके इन उद्योगों को विकसित करने के प्रयास किये जाते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
देश के विकास में उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
देश के विकास में उद्यमिता विकास कार्यक्रमों का महत्व:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम की देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसके द्वारा देश का तीव्र आर्थिक एवं सन्तुलित विकास तथा औद्योगिक वातावरण का निर्माण होता है। देश के विकास में उद्यमिता विकास कार्यक्रम के महत्व को अग्र बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
(1) देश का तीव्र आर्थिक एवं संतुलित विकास – उद्यमिता विकास कार्यक्रम देश के तीव्र आर्थिक एवं संतुलित विकास के लिये महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ है क्योंकि इन कार्यक्रमों से प्रेरित होकर उद्यमी अविकसित क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना करने हेतु तत्पर हो जाते हैं जिससे देश का सन्तुलित आर्थिक विकास होता है। प्रो. नर्कसे ने लिखा है कि “उद्यमी संतुलित आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।’

(2) संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग – देश के विकास के लिये उपलब्ध विभिन्न संसाधनों को अनुकूलतम उपयोग जरूरी होता है। उद्यमिता विकास कार्यक्रय में उद्यमियों को संसाधनों के श्रेष्ठतम उपयोग की विधि व तकनीकी का प्रशिक्षण दिया जाता है. जिससे वे उत्पादन के विभिन्न संसाधनों को संयोजित कर बेहतर उपयोग करने का प्रयास करते हैं। यही नहीं, उद्यमी प्रत्येक संसाधन को मूल्य देकर प्राप्त करता है अतः वह सदैव इनके अधिकतम सदुपयोग के प्रति जागरूक बना रहता है।

(3) पूंजी निर्माण में सहायक – किसी देश का आर्थिक विकास पूंजी पर निर्भर करता है और इस पूंजी का निर्माण बचतों के माध्यम से होता है। उद्यमी इन बचतों को उद्योगों में अंश, ऋण पत्र आदि के रूप में उपयोग कर प्रत्यक्ष रूप से पूंजी निर्माण को बढ़ावा देते हैं ये इन बचतों को उत्पादक कार्यों में उपयोग करके पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि करते हैं।

(4) औद्योगिक वातावरण का निर्माण – उद्यमिता विकास कार्यक्रम द्वारा देश में औद्योगिक वातावरण का निर्माण होता है। जिसके द्वारा उद्यमी नये नये उद्योग-धन्धों की स्थापना करते हैं, नवीन वस्तुओं एवं सेवाओं को उत्पादन करते हैं, नये बाजारों की खोज एवं उन्हें विकसित करते हैं, विद्यमान उपक्रमों का विस्तार एवं नवीनीकरण करते हैं जिससे देश की औद्योगिक क्रियाओं में बढ़ोत्तरी होती है एवं औद्योगिक वातावरण का निर्माण होता है।

(5) लघु व कुटीर उद्योगों का विकास – देश के विकास में लघु व कुटीर उद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उद्यमिता विकास कार्यक्रमों द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना करने में सहायता प्रदान करना तथा उन्हें तकनीक, बाजार एवं कम लागत पर अधिक उत्पादन के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है।
(6) रोजगार के अवसरों में वृद्धि – उद्यमिता विकास कार्यक्रम से देश में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। देश में नवीन उद्योगों की स्थापना, संचालित उपक्रमों के विकास व विस्तार, नवीन व आधुनिक तकनीकी के प्रयोग आदि के परिणामस्वरूप रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध होते हैं। इसके द्वारा कृषि, सेवा, व्यापार आदि क्षेत्रों में भी रोजगार में वृद्धि होती है। रिब्सन के शब्दों में “उद्यमी देश में रोजगार के अवसरों का सृजन करता है।”

(7) उद्यमियों को कानूनी प्रावधान वे नीतियों की जानकारी – उद्यमी विकास कार्यक्रम उद्यमियों को आधारभूत कानूनी प्रावधान एवं प्रमुख सरकारी नीतियों से अवगत कराता है जिससे उपक्रम की स्थापना एवं उसका संचालन सुगम हो जाता है। इसी प्रकार केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा जो विभिन्न नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं उनके बारे उद्यमियों को जानकारी प्रदान की जाती हैं जिससे इनका क्रियान्वयन एवं समन्वय आसानी से हो जाता है जो देश के विकास में सार्थक है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का अर्थ ऐसे प्रयासों से है जिसके द्वारा –
(अ) उद्यमी को शिक्षण प्रशिक्षण प्रदान कर उनकी बौद्धिक, तकनीकी एवं वैचारिक क्षमताओं को परिमार्जित किया जाता है।
(ब) उद्यमीय कार्यों के द्वारा उन्हें अपना उपक्रम स्थापित करने में सहयोग प्रदान किया जाता है।
(स) उद्यमी की आन्तरिक शक्तियों का विकास कर तथा उद्यमिता की प्रेरणा जाग्रत कर साहसिकता का मार्ग अपनाने के लिये प्रेरित किया जाता है।
(द) उपरोक्त सभी।
उतरमाला:
(द)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का उद्देश्य है –
(अ) उद्यमीय गुणों का विकास करना।
(ब) सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों की जानकारी प्रदान करना।
(स) परियोजना निर्माण में उद्यमियों की सहायता करना
(द) उपरोक्त सभी।
उतरमाला:
(द)

प्रश्न 3.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का प्रथम उद्देश्य है –
(अ) उद्यमिता के लाभ – दोषों से अवगत कराना
(ब) प्रथम पीढ़ी के व्यवसायियों का निर्माण करना
(स) परियोजना निर्माण में उद्यमियों की सहायता करना
(द) व्यवसाय संचालन व विपणन सम्बन्धी प्रशिक्षण प्रदान करना।
उतरमाला:
(ब)

प्रश्न 4.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का उद्देश्य नहीं है –
(अ) लघु एवं कुटीर उद्योगों पर प्रतिबन्ध लगाना।
(ब) उद्यमियों की शंकाओं व समस्याओं का निदान व उपचार करना
(स) देश के सभी भागों में उद्यमिता को विकसित करना
(द) उपरोक्त में कोई नहीं।
उतरमाला:
(अ)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
“उद्यमिता विकास कार्यक्रम आर्थिक विकास का अनिवार्य अंग है।” यह कथन है –
(अ) आर्थर कोल का
(ब) रिब्सन का
(स) येल बोजन का
(द) डोनाल्ड.बी.ट्रो की।
उतरमाला:
(स)

प्रश्न 6.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का महत्व है –
(अ) देश का तीव्र आर्थिक एवं सन्तुलित विकास करना।
(ब) संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना।
(स) उद्यमियों को कानूनी प्रावधान व नीतियों की जानकारी देना।
(द) उपरोक्त सभी।
उतरमाला:
(द)

प्रश्न 7.
“उद्यमी सन्तुलित आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।” वह कथन है –
(अ) प्रो. नर्कसे का
(ब) डोनाल्ड. बी. ट्रो का
(स) आर्थर कोल का
(द) इनमें से कोई नहीं।
उतरमाला:
(अ)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 8.
जापान व चीन जैसे देशों का विश्व अर्थव्यवस्था में सिरमौर स्थान होने का कारण है –
(अ) उद्यमी।
(ख) प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता
(स) बेरोजगारी
(द) उपरोक्त सभी।
उतरमाला:
(अ)

प्रश्न 9.
“उद्यमिता सामाजिक परिवर्तन एवं उद्यमीय संस्कृति की स्थापना का महत्वपूर्ण माध्यम है।” यह कथन है –
(अ) प्रो. नर्कसे का
(ब) डोनाल्ड बी. ट्रो का
(स) आर्थर कोल का
(द) येल बोजन का।
उतरमाला:
(ब)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 10.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का महत्व नहीं है –
(अ) लघु व कुटीर उद्योग – धन्धों का विकास करना
(ब) पूंजी निर्माण में सहायता करना।
(स) रोजगार के अवसरों में कमी करना
(द) देश का तीव्र आर्थिक एवं सन्तुलित विकास करना।
उतरमाला:
(स)

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का प्रथम उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
प्रथम पीढ़ी के व्यवसायियों का निर्माण करना।

प्रश्न 2.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम उद्यमियों को परियोजना निर्माण में किस प्रकार सहायता प्रदान करता है?
उत्तर:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम उद्यमियों को परियोजना निर्माण हेतु आवश्यक आधारभूत तथ्य, समंक, वित्तीय एवं सरकारी ज्ञान आदि प्रदान करके परियोजना निर्माण को सुगम बनाता है।

प्रश्न 3.
कुटीर उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे उद्योग जो कम पूंजी, सरल औजारों, निजी संसाधनों, देशी तकनीकी तथा पारिवारिक सदस्यों की सहायता से सरल वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, उन्हें कुटीर उद्योग कहते हैं।

प्रश्न 4.
देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास में उद्यमिता विकास कार्यक्रम की क्या भूमिका होती है?
उत्तर:
देश में रोजगार के साधनों का सृजन, सन्तुलित औद्योगिक विकास, युवा वर्ग को उद्यमी बनाने में उद्यमिता विकास कार्यक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
आर्थर कोल ने उद्यमिता विकास कार्यक्रम की सामाजिक उपादेयता को स्वीकार करते हुए क्या लिखा है?
उत्तर:
“उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के अध्ययन से आर्थिक एवं सामाजिक क्रिया में सहायता मिलती है।”

प्रश्न 6.
“उद्यमी सन्तुलित आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
प्रो. नर्कसे का।

घ्रश्न 7.
”उद्यमी देश में रोजगार के अवसरों का सृजन करता है।” यह कथन है?
उत्तर:
रिब्सन का।

प्रश्न 8.
“उद्यमिता सामाजिक परिवर्तन एवं उद्यमीय संस्कृति की स्थापना का महत्वपूर्ण माध्यम है।” यह महत्वपूर्ण कथन किसने दिया है?
उत्तर:
डोनाल्ड बी. ट्रो ने।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – I)

प्रश्न 1.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का उद्देश्य उद्यमियों को लाभ – दोषों से अवगत कराना है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम उद्यमिता अपनाने वाले उद्यमियों को उद्यमिता के लाभ – दोषों से अवगत कराता है। जिससे किसी उपक्रम की स्थापना एवं संचालन में आने वाली कठिनाइयों का मुकाबला किया जा सके। उद्यमिता से क्या – क्या लाभ हैं तथा इसमें कौन – कौन सी सम्भावित चुनौतियाँ होती हैं इनका ज्ञान उद्यमी को कराया जाता है।

प्रश्न 2.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम से नवाचारों एवं उत्पादन विविधीकरण को प्रोत्साहन किस प्रकार मिलता है?
उत्तर:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम से नई वस्तुओं का उत्पादन, उत्पादन की नवीन तकनीकी, नये यन्त्र व मशीनों का प्रयोग सम्भव होता है। उद्यमिता विकास कार्यक्रम से बाजार अनुसन्धान के माध्यम से नये बाजारों का पता लगाया जाता है। तथा शोध व अनुसन्धान को बढ़ावा दिया जाता है।

प्रश्न 3.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम को सन्तुलित विकास का आधार स्तम्भ क्यों माना है?
उत्तर:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम सन्तुलित विकास का आधार स्तम्भ हैं क्योंकि इन कार्यक्रमों से प्रेरित होकर उद्यमी अविकसित क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना करने हेतु तत्पर हो जाते हैं जिससे देश का सन्तुलित आर्थिक विकास होता है। प्रो. नर्कसे ने भी लिखा है कि “उद्यमी सन्तुलित आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।”

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 4.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम द्वारा संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग किस प्रकार सम्भव है?
उत्तर:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम से उद्यमियों को संसाधनों की श्रेष्ठतम उपयोग विधि व तकनीकी का प्रशिक्षण दिया जाता है जिससे वे उत्पादन के विभिन्न संसाधनों को संयोजित कर बेहतर उपयोग करने का प्रयास करते हैं। यही नहीं, उद्यमी प्रत्येक संसाधन को मूल्य देकर प्राप्त करता है अत: वह सदैव इनके अधिकतम सदुपयोग के प्रति जागरूक बना रहता है।

प्रश्न 5.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम सरकारी नीतियों व योजनाओं के क्रियान्वयन में क्या भूमिका निभाता है?
उत्तर:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम सरकारी नीतियों व योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सरकार की कुछ ऐसी नीतियाँ व योजनायें होती हैं जिनका क्रियान्वयन उद्यमिता पर काफी निर्भर होता है, जैसे – नौकरियों में कमी लाना, स्वरोजगार को प्रोत्सहित करना, घाटे वाले सार्वजनिक राजकीय उपक्रमों का विक्रय करना आदि। ऐसी योजनाओं की सफलता उद्यमिता विकास पर ही निर्भर होती है।

प्रश्न 6.
लघु व कुटीर उद्योगों के विकास में उद्यमिता विक़ास कार्यक्रम का क्या योगदान है?
उत्तर:
लघु व कुटीर उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उद्यमिता विकास कार्यक्रम स्थानीय जन समुदाय को स्थानीय क्षेत्र में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन कर उन्हें लघु व कुटीर उद्योगों की स्थापना करने में सहायता प्रदान करता है। इस कार्यक्रम से उन्हें तकनीक, बाजार एवं कम लागत पर अधिक उत्पादन के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है।

प्रश्न 7.
रोजगार के अवसरों की वृद्धि में उद्यमिता विकास की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
उद्यमिता के विकास से देश में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसरों का सृजन होता है। देश में नवीन उद्योगों की स्थापना, संचालित उपक्रमों के विकास व विस्तार, नवीन व आधुनिक तकनीकी के प्रयोग आदि के परिणामस्वरूप, रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध होते हैं। इससे कृषि, सेवा, व्यापार आदि क्षेत्रों में भी रोजगार में वृद्धि होती रहती है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 8.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम से जनसामान्य के जीवन स्तर में सुधार किस प्रकार होता है?
उत्तर:
उद्यमिता के कारण समाज में रोजगार के साधनों का सृजन होता है एवं बाजार में उपभोक्ताओं को अनेक कम्पनियों के उत्पाद उपलब्ध हो पाते हैं। प्रतिस्पर्धा के कारण उद्यमी न्यूनतम मूल्य पर श्रेष्ठ उत्पाद समाज को उपलब्ध करवाने का प्रयास करते हैं। रोजगार, पूंजी निर्माण, उत्पादों की न्यूनतम मूल्य पर उपलब्धता, उपभोक्ता की रुचि व फैशन के अनुसार उत्पाद की उपलब्धता आदि में जनसामान्य के जीवन स्तर से सुधार होता है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – II)

प्रश्न 1.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम क्या है? समझाइये।
उत्तर:
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का अर्थ:
सामान्य शब्दों में, उद्यमिता विकास कार्यक्रम से तात्पर्य किसी ऐसे कार्यक्रम से है जिसका उद्देश्य जनसमूह में से सम्भावित उद्यमियों की खोज करना, उनमें उद्यमिता की भावना का विकास करना तथा तकनीकी एवं प्रबन्धकीय प्रशिक्षण देकर उन्हें अपनी उपक्रम स्थापित वे संचालित करने में सहयोग देना है। इन कार्यक्रमों के द्वारा उद्यमियों के विकास हेतु योजना वह प्रयास किये जाते हैं तथा उनके समुचित तथा समग्र विकास की कोशिश की जाती है।

इस प्रकार उद्यमिता विकास कार्यक्रय का अर्थ ऐसे प्रयासों से है जिसके द्वारा –

  1. उद्यमी को शिक्षण – प्रशिक्षण प्रदान कर उसकी बौद्धिक, तकनीकी एवं वैचारिक क्षमताओं को परिमार्जित किया जाता है।
  2. उद्यमीय कार्यों के द्वारा उन्हें अपना उपक्रम स्थापित करने में सहयोग प्रदान किया जाता है।
  3. उद्यमी की आन्तरिक शक्तियों का विकास कर तथा उद्यमिता की प्रेरणा जाग्रत कर साहासिकता का मार्ग अपनाने के लिये प्रेरित किया जाता है।
  4. दैनिक क्रियाओं में उद्यमीय व्यवहार उत्पन्न करना तथा उसमें सुधार पर बल दिया जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 12 उद्यमिता विकास कार्यक्रम-अर्थ, उद्देश्य एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
“उद्यमिता विकास कार्यक्रम सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है” समझाइये।
उत्तर:
समाज विभिन्न व्यक्तियों का समूह है जिसमें व्यक्तियों की विचारधारायें एवं मान्यतायें अलग – अलग पायी जाती हैं। उद्यमी के कारण आत्मनिर्भर समाज की स्थापना सम्भव हो पाती है। समाज, उद्योग प्रधान समाज बनता है जिससे अन्धविश्वासों एवं रूढ़िवादिता में कमी आती है जातिगत रूढ़ियाँ समाप्त होती हैं एवं सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलता है। डोनाल्ड.बी.टो ने भी कहा है कि “उद्यमिता सामाजिक परिवर्तन एवं उद्यमीय संस्कृति की स्थापना का महत्वपूर्ण माध्यम है।” संक्षेप में, चिन्तन-मनन आदि में उद्यमिता के कारण सकारात्मक बदलाव होता है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता एवं प्रबन्ध के बीच अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्यमिता एवं प्रबन्ध के बीच अन्तर को निम्न आधारों पर सारणी के द्वारा समझाया जा सकता है –
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 12 1

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

July 9, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता का अर्थ बताइए।
उत्तर:
उद्यमिता अपना स्वयं का व्यवसाय स्थापित करने की प्रक्रिया है, जिसमें जोखिम का तत्व समाहित होता है।

प्रश्न 2.
उद्यामिता का कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
प्रो. मुसेलमान तथा जेक्सन के अनुसार – “किसी व्यवसाय को प्रारम्भ करने तथा उसे सफल बनाने के लिए उसमें समय, धन तथा प्रयासों का निवेश करना एवं जोखिम उठाना ही उद्यमिता है।”

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 3.
साहसी किसे कहते हैं ?
उत्तर:
व्यवसाय में जोखिम उठाने वाले व्यक्ति को साहसी कहते हैं।

प्रश्न 4.
जोखिम का अर्थ बताइए।
उत्तर:
व्यवसाय में आने वाली व्यावसायिक अनिश्चिताओं के कारण हानि की सम्भावनाओं को जोखिम कहते हैं।

प्रश्न 5.
नवाचार किसे कहते हैं?
उत्तर:
साधारण शब्दों में ‘नवाचार’ का अर्थ उत्पादन के नये डिजायन, नयी उत्पादन विधि यो एक नई विपणन तकनीक से लिया जाता है। संक्षेप में, नवाचार से तात्पर्य विद्यमान व्यवस्था में नवीनता लाना है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
उद्यमिता:
उद्यमिता एक क्रमबद्ध:
उद्देश्यपूर्ण तथा रचनात्मक क्रिया है ताकि आवश्यकताओं को स्पष्ट किया जा सके तथा स्रोतों के गतिशील बनाने तथा उत्पादन को ग्राहकों को बेचने के लिये संगठित करने, निवेशकों को आय दिलाने तथा स्वयं व्यवसाय को व्यापारिक जोखिमों तथा सम्बन्धित अनिश्चितताओं के अनुसार लाभ प्राप्त करने में सहायक होती है। अन्य शब्दों में, उद्यमिता अपना स्वयं का व्यवसाय स्थापित करने की एक प्रक्रिया है। जिसमें जोखिम का तत्व विद्यमान होता है।

प्रो. उदय पारीक एवं मनोहर नादकर्णी के अनुसार – “उद्यमिता से आशय समाज के नये उपक्रम स्थापित करने की सामान्य प्रवृत्ति से है।”

पीटर किलबाई के अनुसार – “उद्यमिता विभिन्न क्रियाओं का सम्मिश्रण है, जिसमें बाजार अवसरों का ज्ञान प्राप्त करना, उत्पादन के साधनों का समायोजन एवं प्रबन्ध करना, उत्पादन, तकनीक एवं वस्तुओं को अपनाना सम्मिलित है।”

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 2.
उद्यमिता की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
उद्यमिता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं –

  1. उद्यमिता में नवीन तकनीक, नवीन उत्पाद या अन्य किसी प्रकार के नवाचार का समावेश होता है।
  2. उद्यमिता में उद्यमी द्वारा वस्तु या सेवा के स्थान, रंग रूप आदि उपयोगिताओं का सृजन करके उसको समाज के लिए अधिक उपयोगी बनाया जाता है।
  3. उद्यामिता जोखिम उठाने की क्षमता का प्रयोग है।
  4. उद्यमिता अवसर खोजने की एक प्रक्रिया है।
  5. उद्यमिता उच्च उपलब्धि की आकांक्षा का परिणाम होती है।
  6. उद्यमिता व्यवसाय शास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, कानून, सांख्यिकी, प्रबन्ध शास्त्र आदि के सिद्धान्तों पर आधारित होती है।
  7. उद्यमिता एक पेशेवर एवं अर्जित योग्यता है।
  8. उद्यमिता त्वरित गति से हो रहे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, तकनीकी, सरकारी नीतियों व नियम आदि में हो रहे बदलाव का परिणाम है।
  9. उद्यमिता, उद्यमी के द्वारा किया गया व्यय होता है न कि उसके व्यक्तित्व का लक्षण।
  10. यह ज्ञान पर आधारित होती है एवं व्यक्तित्व निर्माण की क्रिया को सम्पादित करती है।

प्रश्न 3.
एक सफल उद्यमी के किन्हीं पाँच गुणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(1) प्रभावशाली व्यक्तित्व – एक सफल उद्यमी के लिये प्रभावशाली व्यक्तित्व होना अत्यन्त आवश्यक है। प्रभावशाली व्यक्तित्व के अन्तर्गत सुन्दर आकृति, हँसमुख स्वभाव, अच्छा स्वास्थ्य, व्यवसाय में रुचि, आत्म निश्चय आदि गुणों का समावेश होता है। इन गुणों से वह अपने कर्मचारियों में विश्वास उत्पन्न कर सकता है और बाहरी व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है।

(2) परिश्रमी – “एक उद्यमी को सफल होने के लिए उसका परिश्रमी होना अति आवश्यक है कहा भी गया है कि परिश्रम सफलता की कुंजी है।” “जितना परिश्रम करोगे फलस्वरूप उतनी ही सफलता प्राप्त होगी। तथा व्यवसाय प्रतिष्ठित होगा।” यदि किसी व्यवसायं का मालिक स्वयं आलसी होगा तो उसके नियन्त्रण में कार्यरत कर्मचारी भी कामचोर होंगे। अतः वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक युग में अपने आपको बाजार में बनाये रखने हेतु कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।

(3) सहयोगी – उद्यमी को व्यवसाय के स्वामियों, कर्मचारियों ऋणदाताओं, पूर्तिकर्ताओं, ग्राहकों एवं यहाँ तक कि अपने प्रतिस्पद्धियों के साथ भी सहयोग एवं सामंजस्यपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए। उद्यमी में समझौता करने की एवं अपनी भूलों तथा गलतियों को स्वीकार करने की योग्यता होनी चाहिए।

(4) निष्ठावान – एक सफल उद्यमी को न केवल सामान्य अपितु विशेष एवं संकटकालीन परिस्थितियों में भी अपने सहयोगियों, ग्राहकों, पूर्तिकर्ताओं, सरकार आदि के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए। उद्यमी को कालाबाजारी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव, मुनाफाखोरी, चोरबाजारी जैसे हथकंडे अपनाकर विभिन्न वर्गों के प्रति अपनी निष्ठा भंग नहीं करनी चाहिए।

(5) मानवीयता – कर्मचारियों के साथ मधुर सम्बन्धों के साथ निर्माण से श्रम आवर्तन कम होता है जिससे अनुभवी व योग्य कर्मचारियों का ठहराव एवं उद्यमी के प्रति मान, सम्मान व अपनत्व की भावना में वृद्धि होती है। एक उद्यमी को उपक्रम में कार्यरत विभिन्न कर्मचारियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण रखना चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 4.
उद्यमी के शारीरिक व मानसिक गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्यमी के शारीरिक व मानसिक गुण निम्नलिखित हैं –
(1) उत्तम स्वास्थ्य एवं कार्य करने की शक्ति – स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है, स्वस्थ मस्तिष्क से व्यावसायिक क्रिया बिना तनाव, थकावट, झुंझलाहट के आसानी से सम्पन्न हो जाती है अतः उद्यमी का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए। यही नहीं उद्यमी की कार्य शक्ति भी अच्छी होनी चाहिए। उसमें लम्बे समय तक कार्य करने की शक्ति होने पर ही वह पूर्ण मनोयोग एवं उत्साह से अपना कार्य सम्पन्न कर पायेगा।

(2) कल्पनाशील – “उद्यम की स्थापना से लेकर उसके संचालन तक उद्यमी को विभिन्न नवाचार करने होते हैं जो कि कल्पनाशील होने पर ही सम्भव हो पाते हैं। अत: उद्यमी में कल्पना शक्ति का होना नितान्त अनिवार्य है। आर्थर आल्पस के शब्दों में केवल उसी व्यक्ति की महत्वाकाक्षायें पूरी होती हैं जो कर्मवीर होता है। केवल कल्पना करने वाले व्यक्ति की महत्वाकांक्षायें कभी भी पूरी नहीं होती हैं।”

(3) दूरदर्शिता – एक दूरदर्शी उद्यमी उपक्रम को उन्नति के चरम शिखर पर ले जा सकता है। ग्राहकों की भावी रुचि, सरकारी नीति, प्रतिस्पर्धा, बाजार सम्भावना आदि का ठीक से पूर्वानुमान करके एक उद्यमी अपने उपक्रम का विकास एवं विस्तार कर सकता है। अत: उद्यमी को दूरदर्शी होना चाहिए।

(4) निर्णयन क्षमता – एक उद्यमी को किसी समस्या के समाधान के लिए वर्तमान व भावी परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए निर्णय लेने होते हैं एवं सही समय पर लिया गया सही निर्णय ही उद्यमी के लिए सफलता का द्वार खोलता है। अतः एक सफल उद्यमी में निर्णयन क्षमता होनी चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 5.
उद्यमी के सामाज्ञिक गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एक उद्यमी में निम्न सामाजिक गुणों को होना चाहिए –
(1) उद्यमी की सफलता में उसकी मिलनसारिता का बहुत बड़ा योगदान होता है। उद्यमी को सबके साथ स्नेहपूर्ण वार्तालाप करनी चाहिए।

(2) उद्यमी को सभी वर्गी का सहयोगी होना चाहिए। उसे व्यवसाय के स्वामियों, कर्मचारियों, ऋणदाताओं, पूर्तिकर्ताओं, ग्राहकों एवं प्रतिस्पर्धियों के साथ सहयोग एवं सामंजस्यपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए।

(3) एक उद्यमी को उपक्रम में कार्यरत विभिन्न कर्मचारियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण रखना चाहिए। उसे अपने कर्मचारियों एवं अधीनस्थों के साथ स्नेह, अपनत्व, प्यार व सुहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करना चाहिए।

(4) एक उद्यमी में आदर भाव का गुण होना चाहिए। उसे अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति छोटे – बड़े, गरीब – अमीर, शिक्षित – अशिक्षित आदि सभी को सम्मान देना चाहिए।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उद्यमिता का अर्थ:
सामान्य अर्थ में उद्यमिता का तात्पर्य जोखिम वहन करने एवं अनिश्चिताओं का सामना करने की योजना एवं साहस से है। आधुनिक समय में उद्यमिता के क्षेत्र में विस्तार हुआ है फलतः नवीन उपक्रमों की स्थापना, उनका निर्देशन एवं नियन्त्रण, उपक्रम में परिवर्तन एवं सृजनशीलता, सुधारात्मक कार्यवाही की जोखिम उठाने की क्षमता को उद्यमिता कहा जाता है। जो व्यक्ति ये योग्यता रखते हैं उन्हें उद्यमी अथवा साहसी के नाम से जाना जाता है।

पीटर किलबाई के अनुसार – “उद्यमिता विभिन्न क्रियाओं का सम्मिश्रण है, जिसमें बाजार अवसरों का ज्ञान प्राप्त करना, उत्पादन के साधनों का समायोजन एवं प्रबन्ध करना, उत्पादन, तकनीक एवं वस्तुओं को अपनाना सम्मिलित है।”

फ्रेंकलिन लिण्डसे के अनुसार – “उद्यमिता समाज की भावी आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना तथा उन्हें संसाधनों के नये सृजनात्मक एवं कल्पनाशील संयोजकों के द्वारा सफलतापूर्वक पूरा करना है।”

उद्यमिता की विशेषतायें:
उद्यमिता की विशेषतायें निम्नवत् हैं –
(1) नवाचार – नवाचार से तात्पर्य विद्यमान व्यवस्था में नवीनता लाना है। इसमें नवीन तकनीक, नवीन उत्पाद या अन्य किसी प्रकार के नवाचार का समावेश होता है। उद्यमी अपने व्यवसाय में जब किसी नवाचार को अपनाता है तब ही उसे उद्यमी की श्रेणी में रखा जाना न्यायोचित होता है। पीटर एफ. डुकर ने लिखा है कि, “नवाचार उद्यमिता का विशिष्ट उपकरण है।”

(2) सृजनात्मक क्रिया – उद्यमिता एक सृजनात्मक प्रक्रिया है जिसमें उद्यमी द्वारा वस्तु या सेवा के स्थान, रंग रूप आदि उपयोगिताओं का सृजन करके उसको समाज के लिये अधिक उपयोगी बनाया जाता है। हिजरिच एवं पीटर्स के अनुसार, “उद्यमिता उपयोगिता सृजित करने की प्रक्रिया है।” उद्यमिता द्वारा अनुपयोगी वस्तुओं को उपयोगी सृजित करने की प्रक्रिया है।” उद्यमिता द्वारा अनुपयोगी वस्तुओं को उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित करके सृजनात्मक कार्य किया जाता है। पीटर एफ. डुकर ने भी स्पष्ट किया है कि, “उद्यमिता मिट्टी के ढेर को भी सोने में बदल सकती है।”

(3) जोखिम वहन करना – उद्यमिता जोखिम उठाने की समता का पर्याय है। इसमें एक उद्यमी नवीन उपक्रम की स्थापना एवं संचालन, बाजार में नवीन उत्पादन का प्रस्तुतिकरण, बाज़ार की अनिश्चिताओं के मध्य मूल्य निर्धारण करने के लिये उसमें अपना धन, समय व मेहनत का निवेश कर जोखिम उठाता है।

(4) अंवसर खोजने की प्रक्रिया – उद्यमिता अवसर तलाशने की प्रक्रिया है जिसमें एक उद्यमी व्यक्तियों की समस्याओं, उनकी आवश्यकताओं व आकांक्षाओं, सामाजिक व तकनीकी परिवर्तनों, प्रतिस्पर्धा आदि में भी उद्यमिता के अवसर खोजता है एवं उन्हें क्रियान्वित करता है। जैसे एक औद्योगिक क्षेत्र में खाने हेतु छोटा होटल या रेस्टोरेन्ट नहीं है तो व्यक्तियों की इस समस्या में उद्यमी टिफिन सेन्टर खोलकर नये अवसर खोज लेता है।

(5) उपक्रम की स्थापना व संचालन – उद्यमिता व्यक्तियों को इस बात की प्रेरणा देती है कि वे नवीन व्यवसायों की स्थापना करें एवं उसका सफलतापूर्वक संचालन करें। उद्यमिता द्वारा ही समाज के नवीन उपक्रमों की स्थापना सम्भव हो पाती है। इसके अभाव में नवीन औद्योगिक इकाइयों का निर्माण असम्भव है।

(6) उच्च उपलब्धि की आकांक्षा का परिणाम – उद्यमिता उच्च उपलब्धि की आकांक्षा का परिणाम होती है। उद्यमी अपनी उच्च उपलब्धि की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत एवं संघर्ष को सदैव तत्पर रहता है। वह अपने लक्ष्य को किसी भी तरह प्राप्त करना चाहती है। गैलरमैन ने लिखा है कि “उद्यमी उच्च उपलब्धियों के लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं, तथा इन्हें प्राप्त किये बिना सन्तुष्ट नहीं होते हैं।”

(7) पेशेवर क्रिया – उद्यमिता एक पेशेवर एवं अर्जित योग्यता है। यदि कोई व्यक्ति इस योग्यता को प्राप्त करना चाहता है तो विभिन्न शिक्षण – प्रशिक्षण संस्थानों में शिक्षण प्रशिक्षण प्राप्त कर इस योग्यता को प्राप्त कर सकता है। वर्तमान में विभिन्न सहकारी संगठनों द्वारा उद्यमिता प्रकृति को विकसित करने हेतु विभिन्न कार्यक्रमों तथा योजनाओं का संचालन किया जा रहा है।

(8) उद्यमिता एक व्यवहार – उद्यमिता उद्यमी द्वारा किया जाने वाला व्यवहार है न कि उसके व्यक्तित्व का लक्षण जो उद्यमी अपने व्यवहार से जितनी अधिक जोखिम वहन करेगा, नवीन कार्य करेगा, नवाचार करेगा, वह उतना ही प्रखर व बड़ा उद्यमी बनता जाता है। पीटर एफ. डुकर ने लिखा है कि, “उद्यमिता न विज्ञान है और न कला। यह तो व्यवहार है।”

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 2.
उद्यमिता के महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्यमिता का महत्व:
किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था चाहे वह विकसित हो या विकासशील हो, उस राष्ट्र की विचारधारा चाहे पूँजीवादी हो या समाजवादी हो, उस राष्ट्र का नेतृत्व चाहे प्रजातान्त्रिक या राजशाही या अधिनायकवादी हो सभी स्थितियों में उद्यमिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह किसी देश की आर्थिक एवं औद्योगिक प्रगति का आधार स्तम्भ है तथा सम्पूर्ण अर्थव्यस्था को विकासात्मक दिशा प्रदान करती है। इसके महत्व के बारे में डोलिंगंर ने लिखा है, “आधुनिक बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में नये व्यवसायों का सृजन करना ही तकनीकी एवं आर्थिक विकास की कुंजी है। उद्यमिता के माध्यम से लोग बेहतर, दीर्घायु एवं अधिक समृद्ध जीवन जीते रहेंगे।” उद्यमिता के महत्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
(1) देश को आर्थिक विकास – उद्यमिता किसी देश के आर्थिक विकास की आधारशिला है। कृषि, विनिर्माण एवं सेवाओं से सम्बन्धित उत्पादन करके उद्यमी आय पैदा करते हैं। यह आय लगान, मजदूरी, वेतन, ब्याज में बँट जाती है तथा जो शेष बचता है वह लाभ कहलाता है। इससे पूँजी निर्माण होता है तथा आर्थिक विकास को बेल मिलता है।

(2) नवीन उत्पाद व तकनीकी विकास में सहायक – उद्यमिता के द्वारा नवीन उत्पाद व तकनीकी विकास में सहायता मिलती है। मानव जीवन में काम आने वाली विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन उद्यमिता के द्वारा ही सम्भव होता है तथा विद्यमान उत्पादन विधियों में सुधार एवं परिवर्तन करके नवीन तकनीकों को विकसित किया जाता है।

(3) रोजगार के अवसरों का सृजन – उद्यमिता, उद्यमी को स्व रोजगार प्राप्त करती है तथा कितने ही व्यक्तियों को रोजगार देकर रोजगार के नये अवसरों का निर्माण करती है। ऐसे लोग जिनके पास कोई रोजगार नहीं है या अकुशल हैं वे कोई भी छोटा या बड़ा उद्यम स्थापित करके स्वयं रोजगार पा सकेंगे तथा दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध करा सकेंगे। रिब्सान के शब्दों ने, “विकासशील देशों में उद्यमी रोजगार के अवसर पैदा करने वाला होता है।”

(4) मानवीय क्षमता के पूर्ण उपयोग का अवसर – उद्यमिता में उद्यमी को अपनी क्षमताओं को पूर्ण विकसित करने में सहायता मिलती है। वह अपने व्यवसाय के विकास एवं विस्तार हेतु अपनी पूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं दौहिक क्षमता से कार्य करता है। जिससे न्यूनतम लागत पर श्रेष्ठ एवं सस्ती वस्तुयें उत्पादित करने में सहायता मिलती है।

(5) पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन – एक उद्यमी जब अपनी बचतों का प्रयोग अपने उद्यम में निवेश के लिए करता है तो वह अपने आस-पास के मित्रों, रिश्तेदारों तथा घनिष्ठ व्यक्तियों को बचत करने के लिये उत्साहित करता है ताकि उनकी बचतों को व्यवसाय में निवेश कर सके। उद्यमियों द्वारा सर्वसाधारण को भी उद्यमों में पूँजी निवेश के लिये आमन्त्रित किया जाता है।

रेजर नस्कर्ट के अनुसार – “विकासशील देशों में केवल उद्यमिता ही पूँजी के अभेद्य दुर्ग को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है और पूँजी निर्माण में आर्थिक शक्तियों को गति प्रदान कर सकती है।

(6) सन्तुलित आर्थिक विकास – देश के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विषमतायें पायी जाती हैं जिसका कारण है, उद्योगों का विकास न होना। उद्यमिता के द्वारा देश के विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना की जा सकती है जो क्षेत्र कम विकसित है वहाँ उद्यमियों को विशेष रियायत व छूट प्रदान करके सन्तुलित आर्थिक विकास किया जा सकता है। प्रो. नर्कसे ने लिखा है कि, उद्यमी सन्तुलित आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

(7) शोध एवं अन्वेषण को बढ़ावा – उद्यमिता नवीनता पर बल देती है। यह नवीनता उत्पाद, तकनीकी या बाजार से सम्बन्धित हो सकती है। उद्यमी से कुछ नया करने की चाहत होना या परिवर्तन को अवसर के रूप में देखना, परिवर्तन से अपने विचारों का परीक्षण करना उनके लिये नया बाजार तैयार करते हैं।

(8) सामाजिक परिवर्तन में सहायक – उद्यमिता रोजगार का महत्वपूर्ण साधन है। जिसके द्वारा देश के विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्तियों को रोजगार के अवसरों की प्राप्ति होती है जिसके फलस्वरूप उनके जीवन स्तर में वृद्धि होती है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन आसानी से सम्भव हो जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 3.
एक सफल उद्यमी के गुणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
एक सफल उद्यमी के गुणों के सम्बन्ध में विद्वान एक मत नहीं हैं। अनेक प्रबन्धशास्त्रियों एवं अर्थशास्त्रियों ने उद्यमी के गुणों का वर्णन किया है जो शारीरिक एवं मानसिक, सामाजिक एवं नैतिक तथा व्यावसायिक गुणों से सम्बन्धित है। जिनका विवरण निम्नवत् है –
(1) प्रभावशाली व्यक्तित्व – एक सफल उद्यमी के लिए प्रभावशाली व्यक्तित्व होना अत्यन्त आवश्यक है। प्रभावशाली व्यक्तित्व के अन्तर्गत सुन्दर प्राकृति, हँसमुख स्वभाव, अच्छा स्वास्थ्य, व्यवसाय में रुचि, आत्म निश्चय आदि गुणों का समावेश होता है। इन गुणों से वह अपने कर्मचारियों में विश्वास उत्पन्न कर सकता है और बाहरी व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है।

(2) परिश्रमी – एक उद्यमी को सफल होने के लिए उसका परिश्रमी होना अति आवश्यक है। कहा भी गया है कि परिश्रम सफलता की कुंजी है। जितना परिश्रम करोगे फलस्वरूप उतनी ही सफलता प्राप्त होगी तथा व्यवसाय प्रतिष्ठित होगा। यदि किसी व्यवसाय का मालिक स्वयं आलसी होगा तो उसके नियन्त्रण में कार्यरत कर्मचारी भी कामचोर होंगे, अतः वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक युग में अपने आपको बाजार में बनाये रखने हेतु कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।

(3) सहयोगी – उद्यमी को व्यवसाय के स्वामियों, कर्मचारियों, ऋणदाताओं, पूर्तिकर्ताओं, ग्राहकों एवं यहाँ तक कि अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ भी सहयोग एवं सामंजस्यपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए। उद्यमी में समझौता करने की एवं अपनी भूलों तथा गलतियों को स्वीकार करने की योग्यता होनी चाहिए।

(4) निष्ठावान – एक सफल उद्यमी को न केवल सामान्य अपितु विशेष एवं संकटकालीन परिस्थितियों में भी अपने सहयोगियों, ग्राहकों, पूर्तिकर्ताओं, सरकार आदि के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए। उद्यमी को कालाबाजारी, वस्तुओं का कृत्रिम अभाव, मुनाफाखोरी, चोर बाजारी जैसे हथकंडे अपनाकर विभिन्न वर्गों के प्रति अपनी निष्ठा भंग नहीं करनी चाहिए।

(5) मानवीयता – कर्मचारियों के साथ मधुर सम्बन्धों के निर्माण से श्रम आवर्तन कम होता है जिससे अनुभवी व योग्य कर्मचारियों का ठहराव एवं उद्यमी के प्रति मान, सम्मान व अपनत्व की भावना में वृद्धि होती है। एक उद्यमी को उपक्रम में कार्यरत विभिन्न कर्मचारियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण रखना चाहिए।

(6) उत्तम स्वास्थ्य एवं कार्य करने की शक्ति – स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क विकास करता है, स्वस्थ मस्तिष्क से व्यावसायिक क्रियायें बिना तनाव, थकावट, झुंझलाहट के आसानी से सम्पन्न हो जाती हैं। अत: उद्यमी का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए। यही नहीं उद्यमी की कार्य शक्ति भी अच्छी होनी चाहिए। उसमें लम्बे समय तक कार्य करने की शक्ति होने पर ही वह पूर्ण मनोयोग एवं उत्साह से अपना कार्य सम्पन्न कर पायेगा।

(7) कल्पनाशील – “उद्यम की स्थापना से लेकर उसके संचालन तक उद्यमी को विभिन्न नवाचार करने होते हैं जोकि कल्पनाशील होने पर ही सम्भव हो पाते हैं। अतः उद्यमी में कल्पना शक्ति का होना नितान्त अनिवार्य है। आर्थर आल्पस के शब्दों में, केवल उसी व्यक्ति की महत्वाकाक्षायें पूरी होती हैं जो कर्मवीर होता है। केवल कल्पना करने वाले व्यक्ति की महत्वाकांक्षायें कभी भी पूरी नहीं होर्ती।”

(8) दूरदर्शिता – एक दूरदर्शी उद्यमी उपक्रम को उन्नति के चरम शिखर पर ले जा सकता है। ग्राहकों की भावी रुचि, सरकारी नीति, प्रतिस्पर्धा, बाजार सम्भावना आदि को ठीक से पूर्वानुमान करके एक उद्यमी अपने उपक्रम का विकास एवं विस्तार कर सकता है। अतः उद्यमी को दूरदर्शी होना चाहिए।

(9) निर्णयन क्षमता – एक उद्यमी को किसी समस्या के समाधान के लिए वर्तमान व भावी परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए निर्णय लेने होते हैं एवं सही समय पर लिया गया सही निर्णय ही उद्यमी के लिये सफलता का द्वार खोलता है। अतः एक सफल उद्यमी में निर्णयन क्षमता होनी चाहिए।

(10) व्यावसायिक योग्यता – स्पर्धा के आधुनिक युग में केवल पैतृक गुणों या अनुभव से ही काम नहीं चलता है इसके लिए सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक है। हेनरी पी. डटन के अनुसार, “वह व्यक्ति जिसने एक बार भी व्यवसाय के कार्यों का ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, जिसने संगठन, आर्थिक प्रबन्ध, लेखा – विधि, सहयोगियों के साथ कार्य करने एवं उनका नेतृत्व करने तथा क्रय-विक्रय के आधारभूत सिद्धान्तों को समझ लिया हो, वह बहुत शीघ्र ही व्यवसाय में कुशलता एवं सफलता प्राप्त कर लेता है।”

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यम होता है एक –
(अ) बाजार
(ब) मेला
(स) व्यवसाय
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरमाला:
(स)

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प्रश्न 2.
उद्यमी होता है –
(अ) व्यवसायी
(ब) व्यवसाय स्थापित करने वाला
(स) (अ) और (ब) दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरमाला:
(ब)

प्रश्न 3.
उद्यमिता को कहा जाता है –
(अ) प्रयत्न करना।
(ब) उधार देना
(स) व्यावसायिक क्रिया करना
(द) ये सभी।
उत्तरमाला:
(स)

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प्रश्न 4.
उद्यमिता जोखिम कहते हैं –
(अ) निश्चितता को।
(ब) व्यावसायिक अनिश्चितता को
(स) निरन्तरता को
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरमाला:
(ब)

प्रश्न 5.
“उद्यमिता एक नव प्रवर्तनकारी कार्य है। यह स्वामित्व की अपेक्षा नेतृत्व कार्य है।” यह कथन है –
(अ) जोसेफ ए. शुम्पीटर का
(ब) पीटर किलबाई का
(स) हाबर्ड जॉनसन का
(द) फ्रेंकलिन लिण्डसे का।
उत्तरमाला:
(अ)

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प्रश्न 6.
उद्यमिता है –
(अ) सृजनात्मक क्रिया
(ब) अवसर खोजने की प्रक्रिया
(स) पेशेवर क्रिया।
(द) उपरोक्त क्रिया।
उत्तरमाला:
(द)

प्रश्न 7.
“उद्यमिता ने विज्ञान है और न कला यह तो व्यवहार है, ये कथन है –
(अ) मार्शल का
(ब) पीटर एफ. डुकर.का.
(स) गैलरमैन को
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरमाला:
(ब)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 8.
उद्यमिता का महत्व है –
(अ) देश के आर्थिक विकास का आधार।
(ब) नवीन उपक्रमों की स्थापना में सहायक
(स) रोजगार के अवसरों का सृजन।
(द) उपरोक्त संभी।
उत्तरमाला:
(द)

प्रश्न 9.
उद्यमी सन्तुलित आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।” यह कथन है –
(अ) प्रो. नर्कसे को
(ब) रेजर नस्कर्ट का
(स) पीटर एफ. डुकर का
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरमाला:
(अ)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 10.
मेक्क्लीलैंड के अनुसार सफल उद्यमी में गुण पाया जाता है –
(अ) असाधारण सृजनशीलता
(ब) जोखिम वहन करने की क्षमता
(स) सफलता प्राप्त करने की उच्च आकांक्षा
(द) उपरोक्त सभी
उत्तरमाला:
(द)

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
देश के आर्थिक विकास में उद्यमी की क्या भूमिका है?
उत्तर:
उद्यमी द्वारा देश के संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जाता है एवं नव सृजन का कार्य सम्पन्न किया जाता है।

प्रश्न 2.
सामान्यतः आज का युवा वर्ग किन उद्यमियों को अपना आदर्श मानते हैं?
उत्तर:
आज के युवा बिल गेट्स, मुकेश अम्बानी, मार्क जुकरवर्ग, नारायणमूर्ति, मंगलम आदि जैसे उद्यमियों को अपना आदर्श मानते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 3.
अमरीका की ओपिनियन रिसर्च काउन्सिल के द्वारा किये गये सर्वेक्षण में 18 से 24 वर्ष के मध्य आयु के युवा वर्ग में कितने प्रतिशत युवाओं ने अपना व्यवसाय करने की इच्छा प्रकट की।
उत्तर:
58 प्रतिशत युवाओं ने।

प्रश्न 4.
“78 प्रतिशत प्रभावशाली अमरीकियों का विश्वास है कि क्यमिता ही इस शताब्दी का रुख निर्धारित करेगी।” इस तथ्य की पुष्टि किस संस्था द्वारा की गयी?
उत्तर:
अर्नस्ट एवं यंग नामक संस्था के सर्वेक्षण।

प्रश्न 5.
व्यवसाय एवं उपक्रम की स्थापना से सम्बन्धित उद्यमिता की व ई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
प्रो. मुसेलमान तथा जेक्सन के अनुसार – “किसी व्यवसाय को प्रारम्भ करने तथा उसे सफल बनाने के लिये उसमें समय, धन तथा प्रयासों का निवेश करना एवं जोखिम उठाना ही उद्यमिता है।”

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 6.
“उद्यमिता तीन मूलभूत तत्वों आविष्कार, नवाचार एवं अंगीकरण का मिश्रण है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
हावर्ड जॉनसन का।

प्रश्न 7.
नवाचार सम्बन्धी उद्यमिता की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
प्रो. राव एवं मेहता के अनुसार – “उद्यमिता को वातावरण के सृजनात्मक एवं नवाचारी प्रत्युतर के रूप में वर्णित किया जा सकता है।”

प्रश्न 8.
उद्यमिता की कोई दो विशेषतायें बताइए।
उत्तर:

  1. उद्यमिता एक सृजनात्मक क्रिया है।
  2. उद्यमिता अवसर खोजने की प्रक्रिया है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 9.
“नवाचार उद्यमिता का विशिष्ट उपकरण है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
पीटर एफ. डुकर का।

प्रश्न 10.
“उद्यमी उच्च उपलब्धियों के लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं, तथा इन्हें प्राप्त किये बिना सन्तुष्ट नहीं होते यह कथन किसका है?”
उत्तर:
गैलरमैन का।

प्रश्न 11.
उद्यमिता के कोई दो महत्व बताइए।
उत्तर:

  1. नवीन उपक्रमों की स्थापना में सहायक।
  2. विद्यमान उपक्रमों के विकास एवं विस्तार में योगदान।

प्रश्न 12.
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे. बी. से के अनुसार एक सफल उद्यमी में कौन – कौन से गुण होने चाहिए?
उत्तर:

  1. निर्णयन क्षमता
  2. दृढ़निश्चयी
  3. व्यावसायिक ज्ञान
  4. पर्यवेक्षण एवं प्रशासकीय क्षमता।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 13.
जेम्स बर्ना ने अपने निष्कर्षों द्वारा उद्यमी में किन – किन गुणों को आवश्यक माना
उत्तर:

  1. संगठनात्मक एवं प्रशासकीय योग्यता।
  2. तकनीकी एवं व्यावसायिक ज्ञान।
  3. अवसरों के प्रति सजगता।
  4. परिवर्तनों को स्वीकार करने में रुचि।
  5. जोखिम उठाने की मनोवैज्ञानिक क्षमता।

प्रश्न 14.
एक उद्यमी के कोई दो शारीरिक एवं मानसिक गुण बताइए।
उत्तर:

  1. परिश्रमी
  2. दूरदर्शिता

प्रश्न 15.
उद्यमी के कोई दो सामाजिक एवं नैतिक गुण बताइए।
उत्तर:

  1. नम्रता
  2. चरित्रवान।

प्रश्न 16.
“चरित्रवान व्यक्ति अपनी आँखों के द्वारा, अपने हाव-भाव द्वारा अपनी वाणी द्वारा, अपने कथन व तथ्यों द्वारा, अपने लोगों में अपना मन डाल देता है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
प्रो. हाबिन्स का।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 17.
एक सफल उद्यमी के कोई दो व्यावसायिक गुण बताइए।
उत्तर:

  1. व्यावसायिक योग्यता
  2. निर्णायक शक्ति।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – I)

प्रश्न 1.
निर्णय लेने से सम्बन्धित उद्यमिता की परिभाषा बताइए।
उत्तर:
एच, एन. पाठक के अनुसार – “उद्यमिता उन व्यापक क्षेत्रों को सम्मिलित करती है, जिनके सम्बन्ध में अनेक निर्णय लेने होते हैं। इन निर्णयों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है –

  1. अवसर का ज्ञान करना
  2. औद्योगिक इकाई का संगठन करना,
  3. “औद्योगिक इकाई को लाभदायक, गतिशील एवं विकासशील संस्था के रूप में संचालित करना।”

प्रश्न 2.
रोबिन्स तथा कौलटर द्वारा उद्यमिता को किस प्रकार परिभाषित किया गया है?
उत्तर:
“उद्यमिता वह प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह अपने नियन्त्रण के अधीन संसाधनों की परवाह किये बिना, उपयोगिता का सृजन करने एवं नवाचार द्वारा विकास के अवसरों को खोजने में समय व धन का जोखिम उठाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 3.
उद्यमिता को रचनात्मक क्रिया क्यों माना गया है ?
उत्तर:
उद्यमिता को रचनात्मक या उद्देश्यपूर्ण क्रिया जाता है क्योंकि उद्यमी द्वारा आवश्यकताओं को पहचान कर उनकी प्राप्ति के गतिशील स्रोतों का प्रयोग करके, उपभोक्ताओं को उनकी आवश्यकतानुसार, उचित मूल्य पर वस्तुएँ उपलब्ध कराने, शेयर धारकों को आय दिलाने तथा उद्यमी को व्यावसायिक जोखिमों तथा अनिश्चितताओं के अनुसार लाभ प्राप्त कराने में सहायक होती है। अतः उपरोक्त के अनुसार कहा जा सकता है कि उद्यमिता रचनात्मक क्रिया है।

प्रश्न 4.
“उद्यमी सामान्य जोखिम उठाते हैं।” कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक उद्यमी अपने उद्यम के हित में उत्पादन के लिए कच्चे माल की पूर्ति को सुनिश्चित करता है ताकि उसका उत्पादन बाधित न हो। इसी प्रकार उद्यमी भूमिधारक को उसका किराया, पूँजीपति को पूँजी के बदले ब्याज तथा श्रमिक को कार्य के बदले पारिश्रमिक देता है। लेकिन उद्यमी को अपने प्रतिफल के (लाभ को) मिलाने का कोई निश्चय नहीं होता। प्रत्येक उद्यमी द्वारा अपनी क्षमतानुसार यह प्रयास किया जाता है कि व्यवसाय को हानि न हो, बल्कि उद्यम लाभ अर्जित करे। अत: यह कहना सही प्रतीत होता है कि उद्यमी सामान्य जोखिम ही उठाते हैं।

प्रश्न 5.
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मार्शल ने उद्यमिता के महत्व को किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मार्शल ने उद्यमिता के महत्व को रेखांकित करते हुए लिखा है कि, “उद्यमी व्यवसाय का कप्तान होता है वह केवल जोखिम एवं अनिश्चितता का वाहक ही नहीं होता है अपितु एक प्रबन्धक, भविष्यदृष्टा, नवीन उत्पाद विधियों का आविष्कारक और देश के आर्थिक ढाँचे का निर्माता भी होता है।”

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 6.
उद्यामिता के कोई पाँच महत्व बताइए?
उत्तर:

  1. उद्यमिता देश के आर्थिक विकास का आधार है।
  2. विद्यमान उपक्रमों के विकास एवं विस्तार में योगदान।
  3. नवीन उत्पाद व तकनीक विकास में सहायक।
  4. रोजगार के अवसरों का सृजन।
  5. पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन।

प्रश्न 7.
उद्यमिता देश के सन्तुलित आर्थिक विकास में सहयोगी है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्यमिता के विकास से देश के प्रत्येक कोने में उद्योगों की स्थापना की जा सकती है। जो क्षेत्र कम विकसित होते हैं वहाँ उद्यमियों को विभिन्न प्रकार की रियायतें व छूटें प्रदान करके अल्पविकसित क्षेत्रों का विकास करके सन्तुलित आर्थिक विकास किया जा सकता है। प्रो. नर्कसे ने स्पष्ट लिखा है, “उद्यमी सन्तुलित आर्थिक विकास की मार्ग प्रशस्त करते हैं।”

प्रश्न 8.
उद्यमिता सामाजिक परिवर्तन में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
उद्यमिता रोजगार प्रदान करके व्यक्तियों की आय में वृद्धि करती है परिणामत: उनके जीवन स्तर में वृद्धि होती है जिससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन आसानी से सम्भव हो जाता है तथा समाज में शिक्षा एवं जागृति की अलख जगाकर वैज्ञानिक अनुसन्धान व शोध के परिणाम प्रस्तुत करके अन्धविश्वास, रूढ़िवादिता व कुप्रथाओं को समाप्त किया जा सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 9.
“व्यवसाय चातुर्य का खेल है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं खेल सकता है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक उद्यमी को यदि सफलता के सोपानों पर पहुँचना है तो उसमें विभिन्न प्रकार के चातुर्य एवं कौशल का होना आवश्यक है। उद्यमी में एक सामान्य व्यक्ति के गुणों के साथ – साथ व्यावसायिक योग्यता, निर्णयन क्षमता, सृजनशीलता, प्रबन्धकीय एवं प्रशासनिक क्षमता जैसे गुणों का समावेश होना आवश्यक है। अन्यथा की स्थिति में वह असफल हो जायेगा।

प्रश्न 10.
एक उद्यमी की सफलता के लिये उसमें व्यावसायिक गुणों का होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
एक उद्यमी की सफलता के लिये उसमें व्यावसायिक गुणों का होना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि व्यावसायिक गुण उद्यमी की सफलता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। हेनरी पी. डटन ने लिखा है कि, “वह व्यक्ति जिसने एक बार भी व्यवसाय के कार्यों का ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, जिसने संगठन, आर्थिक प्रबन्ध, लेखा – विधि सहयोगियों के साथ कार्य करने एवं उनका नेतृत्व करने तथा क्रय विक्रय के आधारभूत सिद्धान्तों को समझ लिया हो, वह बहुत शीघ्र ही व्यवसाय में कुशलता एवं सफलता प्राप्त कर लेता है।”

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – II)

प्रश्न 1.
किसी भी देश के आर्थिक विकास में उद्यमी को क्या योगदान रहता है?
उत्तर:
किसी भी देश के आर्थिक विकास में उद्यमी का महत्वपूर्ण योगदान होता है। उद्यमी द्वारा व्यवसायं का चुनाव करना, जोखिम उठाना, देश में उपलब्ध संसाधनों का कुशलता से प्रयोग करना, उत्पादन के पैमाने का निर्धारण करना, उत्पादन के साधनों को एकत्रित करना, वितरण व्यवस्था करना एवं नवसृजन का महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है। वर्तमान समय में उद्यमी युवाओं के प्रेरणा के स्रोत के रूप में उभर कर आ रहे हैं। आज के युवा बिल गेट्स, मुकेश अम्बानी, मार्क जुकरबर्ग, नारायणमूर्ति, जैसे उद्यमियों को अपना आदर्श मानते हैं एवं यही कारण है कि अमरीका की ऑपिनियन रिसर्च काउन्सिल के द्वारा किये गये सर्वेक्षण में 18 से 24 वर्ष की मध्य आयु के युवा वर्ग में से 58 प्रतिशत ने अपना व्यवसाय प्रारम्भ करने की इच्छा प्रकट की। अतः किसी देश में जितने अधिक कुशल व योग्य उद्यमी होते हैं, उस देश का उतना ही अधिक आर्थिक विकास होता है।

प्रश्न 2.
भारत में उद्यमिता विकास पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में उद्यमिता का विकास बहुत ही तीव्र गति से हो रहा है। विश्व में हमारा देश उद्यमिता विकास सूचकांक में दूसरे संकेत हैं कि भारतीय युवा वर्ग अब स्वयं का व्यवसाय स्थापित करने में रुचि ले रहा है। भारत में उद्यमियों के विकास हेतु पर्याप्त आधारभूत सुविधायें उपलब्ध हैं, सरकारी नीति र नियन्त्रणों में उद्यमिता विकास हेतु छूटें एवं रियायतें प्रदान की जा रही हैं। नये उपक्रमों हेतु ‘कर रहित’ योजनायें बनाई जा रही हैं, शिक्षण-प्रशिक्षण की सुविधाओं का विकास किया जा रहा है, तीव्र गति से तकनीकी परिवर्तनों को लागू किया जा रहा है, जिससे भारत में उद्यमिता का विकास तीव्र गति से हो रहा है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 3.
किसी उद्यमी की अपने उद्यम में भूमिका एवं कार्यों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
किसी उद्यमी की अपने उद्यम में भूमिका एवं कार्य निम्नलिखित होते हैं –
(1) विनियम सम्बन्धों का विकास –

  1. बाजार में अवसरों की पहचान करना।
  2. दुर्लभ संसाधनों पर अधिकार करना।
  3. आगत का क्रय करना।
  4. उत्पादों को विपणन प्रतियोगिता हेतु तैयार रहना।

(2) राजनीतिक प्रशासन –

  1. राज्य की अफसरशाही को साधना (स्वीकृति, छूट व टैक्स)।
  2. फर्म के अन्दर मानवीय सम्बन्धों का प्रबन्धन।
  3. ग्राहक एवं आपूर्तिकर्ता के मध्य सम्बन्धों का प्रबन्धन।

(3) प्रबन्ध नियन्त्रण –

  1. वित्त प्रबन्धक।
  2. उत्पाद प्रबन्धन।

(4) तकनीकी –

  1. कारखाने का अधिग्रहण करना और उसके समुच्चयन की निगरानी करना।
  2. उत्पादन प्रक्रिया में आगत को न्यूनतम रखना (औद्योगिक यान्त्रिकी)।
  3. उत्पादन प्रक्रिया एवं उत्पादन की गुणवत्ता के स्तर में सुधार करना।
  4. नवीन उत्पाद तकनीकी को अपनाना।
  5. नवीन उत्पादों को बाजार में लाना।

प्रश्न 4.
स्पष्ट कीजिए कि उद्यमिता में जोखिम को तत्व निहित होता है?
उत्तर:
एक उद्यमी उद्यम स्थापित करते समय उद्यम के हित में निश्चित आपूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार की संविदायें (समझौते) करता है। साथ ही भविष्य में यदि कोई हानि हो तो उसके जोखिम को उठाने का वायदा भी करता है। वह उत्पादित वस्तु या सेवा के विक्रय से प्राप्त राशि में से भूमिधारी को लगान, पूँजीपति को ब्याज, श्रमिकों को वेतन तथा मजदूरी प्रदान करने का आश्वासन देता है। लेकिन उद्यमी को लाभ प्राप्त होने का आश्वासन नहीं होता है क्योंकि अन्य सभी तत्वों के योगदाने का प्रतिफल चुका देने के बाद यदि कुछ बचता है तो वह उसका लाभ होता है अन्यथा उसे हानि उठानी पड़ती है। अतः स्पष्ट है कि उद्यमिता में जोखिम का तत्व निहित होता है।

प्रश्न 5.
उद्यमिता की आवश्यकता क्यों होती है? समझाइए।
उत्तर:
उद्यमिता की आवश्यकता:
उद्यमिता की आवश्यकता प्रत्येक देश की होती है क्योंकि सभी देश आर्थिक विकास करना चाहते हैं। विकसित देश अपने विकास की गति को बनाये रखने के लिए उद्यमिता को आवश्यक समझते हैं जबकि विकासशील देश उद्यमिता की आवश्यकता अपना आर्थिक विकास करने के लिए महसूस करते हैं। उद्यमिता के कारण ही नये – नये उद्योगों की स्थापना होती है तथा नये – नये उत्पाद समाज को मिलते हैं जिसमें समाज पहले की अपेक्षा अधिक आरामदायक जीवन व्यतीत कर सकता है। क्योंकि उद्यमिता अन्वेषण, प्रयोग एवं साहस की भावना को पुष्ट कर पूँजी निर्माण करती है तथा रोजगार के अवसर पैदा करती है। जिससे देश एवं समाज का आर्थिक विकास होता है तथा उच्च मनोबल के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। अत: उद्यमिता प्रत्येक देश एवं समाज के लिए आवश्यक होती है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 11 उद्यमिता: परिचय, प्रकृति, महत्त्व एवं बाधायें

प्रश्न 6.
उद्यमी के व्यावसायिक गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एक उद्यमी में निम्न व्यावसायिक गुण होने चाहिए –
(1) नेतृत्व – उद्यमी व्यवसाय का सेनापति होता है। वह नीतियों का निर्धारण करता है और आवश्यक दिशा – निर्देश देता है। इसमें निर्णय लेने और अपने अधीनस्थ व्यक्तियों को उत्तम कार्य के लिये प्रोत्साहित और अभिप्रेरित करने की योग्यता होनी चाहिए।

(2) व्यावसायिक योग्यता – उद्यमी को व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं की व्यावसायिक योग्यता होनी चाहिए, तभी वह जोखिम पर नियन्त्रण रख सकता है। उसे उद्यम की नई – नई उत्पादन विधियों और प्रबन्ध का ज्ञान होना चाहिए।

(3) तकनीकी ज्ञान – एक सफल उद्यमी में उत्पादन की नयी – नयी उत्पादन विधियों का ज्ञान होना चाहिए। उसे उत्पादन कार्य में होने वाले सुधारों तथा आविष्कारों की जानकारी भी होनी चाहिए।

(4) समन्वय शक्ति – एक सफल उद्यमी में समन्वय शक्ति का गुण होना चाहिए। समन्वय वह प्रक्रिया होती है जिसमें उद्यमी अपने अधीनस्थों के सामूहिक प्रयासों से एक सुव्यवस्थित स्वरूप का विकास करता है और उद्यम के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु क्रियाओं में एकरूपता लाता है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 11 विस्तृत उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्यमिता एवं आर्थिक विकास के बीच सम्बन्ध की प्रकृति का आकलन कीजिए।
उत्तर:
उद्यमिता एवं आर्थिक विकास:
उद्यमी उत्पादक तन्त्र की व्यवस्था करते हैं। इसके माध्यम से विज्ञान एवं तकनीकी के विकास का वाणिज्यिक उपयोग में उनकी भूमिका अन्य संसाधनों को उत्पादक एवं उपयोगी बनाती है। इसके परिणामस्वरूप आर्थिक विकास होता है। उद्यमिता एवं आर्थिक विकास के सम्बन्ध को निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है –
(1) सकल घरेलू उत्पाद में योगदान – सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि आर्थिक विकास का सर्वमान्य मानक है। कृषि, विनिर्माण एवं सेवाओं से सम्बन्धित उत्पादन करके उद्यमी आय पैदा करते हैं। यह आय लागत, मजदूरी, वेतन, ब्याज में बँट जाती है तथा जो शेष बचता है वह लाभ कहलाता है। इसमें पूँजी निर्माण होता है तथा आर्थिक विकास को बल मिलता है।

(2) पूँजी का निर्माण – एक उद्यमी जब अपनी बचतों का प्रयोग अपने उद्यम में निवेश के लिए करता है तो वह अपने आस-पास के मित्रों, रिश्तेदारों तथा घनिष्ठ व्यक्तियों को बचत करने के लिए उत्साहित करता है ताकि उनकी बचतों को व्यवसाय में निवेश कर सके। उद्यमियों द्वारा सर्वसाधारण को भी उद्यमों में पूँजी निवेश के लिए आमन्त्रित किया जाता है।

(3) रोजगार का सृजन – उद्यमिता उद्यमी को स्व – रोजगार प्रदान करती है तथा कितने ही व्यक्तियों को रोजगार देकर रोजगार के नये अवसरों का निर्माण करती है। ऐसे लोग जिनके पास कोई रोजगार नहीं है या अकुशल हैं वे कोई भी छोटा या बड़ा उद्यम स्थापित करके स्वयं रोजगार पा सकेंगे तथा दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध करा सकेंगे।

(4) व्यावसायिक अवसरों का सृजन – एक उद्यम न केवल रोजगार के अवसरों का सृजन करता है अपितु वह उस व्यवस्था से जुड़े हुए लोगों के लिए भी अवसरों का सृजन करता है। उदाहरण के लिए, एक फ्रिज उत्पादक कम्पनी की स्थापना से विज्ञापन जगत को मिलने वाले विज्ञापनों से रोजगार की वृद्धि।

(5) आर्थिक कुशलताओं में सुधार – प्रत्येक उद्यमी द्वारा उद्यम के सुचारु संचालन के लिए उद्यम में प्रबन्ध कुशलता एवं श्रम तथा पूँजी की मितव्ययता पर जोर दिया जाता है। वह संसाधनों के इष्टतम प्रयोग पर भी बल देता है जिससे उसके अपव्यय तथा अप्रयोज्य उपयोग को कम किया जा सके। इसलिए उद्यमी उन क्रियाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं। जिनसे उद्यम की आर्थिक क्रियाओं में सुधार आता है।

(6) आर्थिक क्रियाकलापों में वृद्धि – आधुनिक व्यावसायिक युग में उदारीकरण की नीति को अपनाने से रोजगार और व्यवसाय के अवसरों की वृद्धि हो रही है। ये उद्यमिता का परिणाम है। व्यवसाय द्वारा माँग तथा पूर्ति के तत्वों में सन्तुलन लाने का प्रयास किया जाता है। जैसे किसी माल की माँग ज्यादा और पूर्ति कम है तो उत्पादक अपने उत्पाद को कमी वाले क्षेत्रों में भेजकर माँग और पूर्ति में सन्तुलन लाने का प्रयास करते हैं।

(7) स्थानीय समुदायों के जीवन – स्तर में सुधार – स्थानीय समुदायों के जीवन – स्तर में वृद्धि हेतु सरकार अल्पविकसित क्षेत्रों में लघु उद्योगों की स्थापना पर जोर दे रही है। इन लघु उद्यमों द्वारा उस क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जायेंगे। लघु उद्योग स्थानीय संसाधनों को खोजकर उनका मितव्ययी प्रयोग करते हैं। इन लघु उद्योगों की अल्प विकसित प्रदेशों में स्थापना से वहाँ के जन – जीवन का विकास करना आसान हो जाता है तथा स्थानीय समुदाय के जीवन – स्तर में वृद्धि होती है।

(8) अन्वेषण, परीक्षण तथा साहस की भावना में वृद्धि – उद्यमी में कुछ नया करने की चाहत होना या परिवर्तन को अवसर के रूप में देखना, परिवर्तन से अपने विचारों का परीक्षण करना उसके लिए नया बाजार तैयार करते हैं। यह उद्यमी के लिए एक तरह का जोखिम होता है। परिवर्तन से अपने विचार के अन्तर्गत वह कोई नयी वस्तु बाजार में लाना चाहता है तो यह जरूरी नहीं कि वह वस्तु उपभोक्ता द्वारा पसन्द ही की जाय, उसे नापसन्द भी किया जा सकता है। अतः कहा जा सकता है कि उद्यमिता साहस भावना का दूसरा नाम है।

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