Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 9 ऋतुराज
RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. कवि ने अंतिम पूँजी किसे बताया था
(क) माँ को
(ख) लड़की को
(ग) स्त्री जीवन को
(घ) आग को
2. दुख बाँचना किसे नहीं आता था
(क) लड़की को
(ख) माँ को
(ग) समाज को
(घ) आभूषणों को
उत्तर:
1. (ख)
2. (क)
RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3. कवि ने स्त्री जीवन का बंधन किसे बताया है?
उत्तर:
कवि ने वस्त्रों और आभूषणों को स्त्री जीवन का बंधन बताया है
प्रश्न 4.
माँ ने लड़की को कैसा न दिखने के लिए कहा है?
उत्तर:
माँ ने लड़की को लड़की जैसी न दिखने के लिए कहा है।
प्रश्न 5.
अपने चेहरे पर मत रीझना’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इस कथन का तात्पर्य है- अपनी सुन्दरता पर मुग्ध न होना।
प्रश्न 6.
माँ को अपनी बेटी अंतिम पूँजी क्यों लग रही थी?
उत्तर:
माँ ने अपनी बेटी को लाड़-प्यार से पाला था। उससे दूर होते समय उसे लग रहा था जैसे उसके जीवन की सारी पूँजी उससे दूर हो रही थी।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 7.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर:
माँ चाहती थी कि उसकी बेटी स्वाभिमान के साथ जीवन बिताए। उसके मन में लड़की होना किसी प्रकार की हीन भावना उत्पन्न न करे। प्राय: लड़कियों को लड़कों की तुलना में दुर्बल और कमतर समझा जाता है। माँ चाहती थी कि उसकी पुत्री कभी अपने को कमजोर न समझे। वह साहस और आत्मविश्वास के साथ जिए।
प्रश्न 8.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर:
माँ ने बेटी को अपने अनुभव से प्रमाणित और व्यावहारिक सीखें दीं। उसने कहा कि वह कभी अपने रूप पर गर्व न करे। ससुराल में रूप से नहीं बल्कि बहू के आचरण और संस्कारों से उसे प्यार और आदर मिलेगा।
माँ ने सीख दी कि कैसा भी संकट हो, वह कभी आत्महत्या करने की बात न सोचे। धैर्य और साहस से परिस्थितियों का सामना करे। माँ ने बेटी को सावधान किया कि मूल्यवान वस्त्रों और गहनों को पाकर वह बहुत अधिक खुश न हो।
ये नारी को बंधन में डालने वाली वस्तुएँ हैं। माँ ने यह सीख भी दी कि वह लड़की होने को अपनी कमजोरी न समझे। स्वाभिमान के साथ जीवन बिताए।
प्रश्न 9.
‘वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं स्त्री जीवन के।’ उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति में कवि ने वस्त्रों और आभूषणों को स्त्री के जीवन को बंधन में डालने वाला बताया है। सुन्दर वस्त्रों और मूल्यवान आभूषणों के मोह-जाल में फंसकर स्त्रियाँ अपने जीवन में अनेक अनुचित बन्धनों को स्वीकार कर लेती हैं। उनका अपना व्यक्तित्व पुरुषों के हाथ गिरवी रख दिया जाता है।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण ‘पति प्रधानों’ और ‘पतिपार्षदों’ के रूप में देखा जा सकता है। वस्त्र और आभूषण स्त्री को भ्रमित करने वाले मोहक शब्द मात्र हैं। इनका स्त्री के जीवन में कोई विशेष महत्व नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 10.
‘कन्यादान’ कविता में, माँ की मूल चिंता क्या है?
उत्तर:
‘कन्यादान’ कविता में माँ की मूल चिन्ता अपनी भोली, सरल स्वभाववाली और लोक व्यवहार से अपरिचित बेटी के भविष्य को सुरक्षित और सुखी बनाना है।
इसलिए वह अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों के आधार पर लड़की को ऊँचे-ऊँचे आदर्शों और उपदेशों के बजाय समय के अनुकूल ठोस और व्यावहारिक शिक्षाएँ देती है।
अपनी सुन्दरता पर मुग्ध न होना, आत्महत्या के विचार से दूर रहना, वस्त्र और आभूषणों के मायाजाल से बचना और लड़की होते हुए भी लड़की जैसी न दिखाई देना; ये सभी शिक्षाएँ माँ की मूल चिन्ता को ही उजागर करती हैं।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय संस्कृति में कन्या को ‘पराया धन’ बताया गया है। माता-पिता तो इस पवित्र धरोहर को सुरक्षित रूप में पति को सौंप देने की भूमिका निभाते रहे हैं परन्तु आज इस महादान की सारी गरिमा और पुण्यभाव समाप्त हो चुका है। इस दान को देने वाला और लेने वाला दोनों ही इसके मूल उद्देश्य से दूर हो चुके हैं।
सच तो यह है कि कन्या के साथ ‘दान’ शब्द को जोड़ना, ‘नारी की स्थिति पर बड़ा व्यंग्य है और उसकी गरिमा को गिराने वाला है। कन्या क्या कोई निर्जीव वस्तु या पशु-पक्षी है जो उसे किसी को दान में दे दिया जाय? मनुष्य के दान की कल्पना भी सभ्य समाज में उचित प्रतीत नहीं होती।आज इस दान के साथ न वह श्रद्धा है न पुण्य प्राप्ति की इच्छा।
‘कन्यादान’ विवाह का एक औपचारिक अनुष्ठान भर रह गया है। दोन वही सफल माना गया है जो सुपात्र को दिया जाय। क्या इस शर्त का पालन हो पा रहा है? जब स्त्री-स्वावलम्बन और सशक्तिकरण की बातें हो रही हों तब कन्या का दान किया जाना एक मजाक से अधिक क्या कहा जा सकता है?अतः अपने मूलभाव और सार्थकता को खो चुके इस शब्द को या तो व्यवहार से बाहर कर देना चाहिए या फिर इसे समयानुकूल नाम दिया जाना चाहिए।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) माँ ने कहा पानी में झाँककर……………..जलने के लिए नहीं।
उत्तर:
उपर्युक्त काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या के लिए व्याख्या भाग में पद्यांश 2 का अवलोकन करें।
(ख) वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह……………पर लड़की जैसी दिखाई मत देना
उत्तर:
उक्त पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या के लिए व्याख्या भाग में पद्यांश 2 का अवलोकन करें।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
1. ‘कितना प्रामाणिक था उसका दुख’ इस पंक्ति में कवि ने माँ के दुख को माना है
(क) दिखावा
(ख) अनुचित
(ग) वास्तविक
(घ) औपचारिक
2. माँ अपनी अंतिम पूँजी समझ रही थी
(क) दान-दहेज को
(ख) अपने पास बचे धन को
(ग) अपने छोटे से घर को
(घ) बेटी को।
3. ‘दुख बाँचना’ से आशय है
(क) दुख़ की चर्चा करना
(ख) दुख को समझ पाना
(ग) दुख को पढ़ना
(घ) दुख सहन कर पाना
4. माँ के अनुसार आग होती है
(क) रोटियाँ सेकने के लिए
(ख) तापने के लिए
(ग) स्वयं को जलने के लिए
(घ) रोशनी के लिए।
5. माँ ने वस्त्र और आभूषणों को बताया है
(क) लड़कियों की शोभा
(ख) बहुत आवश्यक वस्तु
(ग) स्त्री के जीवन के बंधन
(घ) सभी की चाहत
उत्तर:
1. (ग)
2. (घ)
3. (ख)
4. (क)
5. (ग)
RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘प्रामाणिक’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
प्रामाणिक से कवि को आशय है जो दिखावा न हो, वास्तविक हो।
प्रश्न 2.
लड़की को दान में देते समय माँ को कैसा लग रहा था?
उत्तर:
माँ को लग रहा था कि बेटी के रूप में उसके जीवन की एकमात्र पूँजी चली जा रही थी।
प्रश्न 3.
‘कन्यादान’ कविता में कवि ने लड़की को कैसी बताया है?
उत्तर:
कवि ने कहा है कि लड़की अभी सयानी (समझदार) नहीं थी।
प्रश्न 4.
कवि ने लड़की को भोली और सरल क्यों माना है?
उत्तर:
लड़की को भोली और सरल इसलिए माना गया है क्योंकि उसे आगामी जीवन के सुखों का तो कुछ अहसास था पर दुखों का नहीं।
प्रश्न 5.
‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की’ से क्या आशय है?
उत्तर:
इसका आशय यह है कि लड़की को वैवाहिक जीवन के बारे में स्पष्ट ज्ञान नहीं था।
प्रश्न 6.
माँ ने लड़की से अपने चेहरे पर न रीझने को क्यों कहा?
उत्तर:
क्योंकि अपनी सुन्दरता पर मोहित होने वाली लड़की अहंकार का और दूसरों की ईष्र्या का कारण बन जाती है।
प्रश्न 7.
‘आग रोटी सेकने के लिए है जलने के लिए नहीं’ माँ के इस कथन का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कथन का आशय यह है कि बेटी जीवन की चुनौतियों और अन्यायों से घबराकर आग लगाकर आत्महत्या करने के बारे में कभी न सोचे।
प्रश्न 8.
माँ ने वस्त्र और आभूषणों के बारे में बेटी को क्या सीख दी?
उत्तर:
माँ ने बेटी को सावधान किया कि वह सुन्दर वस्त्रों और आभूषणों के मोह में न पड़े।
ये स्त्री को पराधीन बना देने वाले बंधनों के समान होते हैं।
प्रश्न 9.
“लड़की जैसी दिखाई मत देना” माँ के इस कथन का आशय क्या था?
उत्तर:
माँ का आशय था कि उसकी बेटी लड़की होने के कारण अपने मन में किसी प्रकार की हीनता की भावना न आने दे।
स्वाभिमान के साथ जिए।
प्रश्न 10.
‘कन्यादान’ कविता की भाषा-शैली की विशेषताएँ लगभग बीस शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कविता की भाषा में तत्सम, तद्भव तथा विदेशी शब्दों को प्रयोग हुआ है। कवि ने
RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
क्या आप कन्यादान में लड़की को देते समय माँ के दुख को प्रामाणिक मानते हैं? यदि हाँ तो क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मेरे विचार से लड़की का कन्यादान करते समय उसकी माँ का दुख प्रामाणिक अर्थात् वास्तविक था। वह केवल रीति निभाने के लिए दुखी होने का दिखावा नहीं कर रही थी।
लड़की बिछुड़ते समय हर माँ का दिल भर आता है। वर्षों का साथ, लाड़-प्यार और जीवन में सूनापन आने की भावना उसे आसू बहाने को बाध्य कर देती है। उसे लगता है जैसे उसके पास बेटी के रूप में जीवन की पूँजी शेष थी। वह उस से दूर होने जा रही है। .
प्रश्न 2.
‘लड़की अभी सयानी नहीं थी’ कवि के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कथन का आशय यह है कि लड़की आयु में छोटी है। वह भोली और सरल स्वभाव वाली है। उसमें सांसारिक समस्याओं की समझ और चतुराई का विकास नहीं हो पाया था।
इसी कारण उसे विवाहित जीवन के सुख का अस्पष्ट-सा आभास था। वह अभी आगामी जीवन की समस्याओं और कष्टों से अपरिचित थी। कवि ने यह संकेत भी किया। है कि माँ को उसका विवाह छोटी आयु में करना पड़ रहा था।
प्रश्न 3.
‘पाठिका थी धुंधले प्रकाश की’ से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धुंधले प्रकाश में किसी पुस्तक आदि को स्पष्ट रूप से पढ़ और समझ पाना कठिन होता है। इसी प्रकार वह भोली लड़की विवाहित जीवन की मधुर कविता का आनन्द क्या होता है, इसे अस्पष्ट रूप में ही समझ पा रही थी।
उसकी समझ में केवल उतनी ही पंक्तियाँ आ रही थीं, जिनमें तुक और लय का समावेश था। भाव यह है कि वह विवाहित जीवन के सुखमय पक्ष का ही थोड़ा-सा ज्ञान रखती थीं, वह आने वाली कठिनाइयों से अपरिचित थी।
प्रश्न 4.
‘पानी में झाँककर अपने चेहरे पर मत रीझना’ इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपना चेहरा देखने के लिए स्त्रियाँ प्रात:काल दर्पण का प्रयोग करती हैं। किशोरियों और युवतियों को चेहरा देखने का विशेष चाव होता है। यदि मुखमंडल अधिक सुन्दर होता है तो वे बहुधा सौन्दर्य गर्विता हो जाती हैं। इससे उनके प्रशंसकों के साथ ही इष्र्या करने वाले हो जाते हैं। इससे उनके जीवन में अनेक समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। अत: म ने बेटी को इससे बेचने की सीख दी है।
प्रश्न 5.
आग’ के माध्यम से माँ ने बेटी को क्या शिक्षा दी है? ‘कन्यादान’ पाठ के आधार पर लिखिए
उत्तरे:
स्त्रियों को रसोईघर में काम करते हुए नित्य घंटों आग के सम्पर्क में रहना पड़ता है। आग पर ही भोजन पकाया जाता है। यही आग का मूल उपयोग है परन्तु कभी-कभी ससुराल में स्त्रियाँ समस्याओं से घबराकर या अत्याचार से पीड़ित होने पर आग लगाकर प्राण दे देती हैं। माँ ने बेटी को यही समझाने की कोशिश की है कि वह कभी आत्महत्या का विचार मन में न लाए। साहस और सूझ-बूझ से परिस्थितियों का सामना करे।
प्रश्न 6.
वस्त्र और आभूषण किसके समान मन को भ्रमित कर देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वस्त्र और आभूषण मन को भ्रमित कर देने वाले मोहक शब्दों के समान होते हैं। जैसे चतुर और स्वार्थी लोग अपनी मधुरवाणी द्वारा लोगों के मन को भ्रमित कर देते हैं, उसी प्रकार वस्त्र-आभूषणों को पाकर स्त्रियाँ भी भ्रम में पड़कर अनेक बंधनों को स्वीकार कर लिया करती हैं।
इससे उनका व्यक्तित्व और आत्मविश्वास संकट में पड़ जाता है। वस्त्र औरआभूषणों के उपहार देकर पुरुष नारी को अपने अधीन कर लिया करते हैं।
प्रश्न 7.
‘लड़की होना पर लड़की-जैसी दिखाई मत देना।’ क्या आज की परिस्थिति में आपको माँ की यह सीख उचित प्रतीत होती है? अपना मत लिखिए
उत्तर:
लड़की-जैसी’ शब्द द्वारा कवि ने लड़कियों के प्रति चली आ रही परम्परागत सोच पर व्यंग्य किया है। लड़कियों की तुलना में लड़कों को प्राय: वरीयता प्रदान की जाती रही है। उनको कमजोर, पिछड़ी, सहनशील, संकोची और स्वयं को लड़कों की तुलना में हीनता का अनुभव करने वाली माना गया है।
आज समय बदल रहा है। लड़कियाँ जीवन के हर क्षेत्र में लड़कों को कड़ी चुनौती दे रही हैं। हर पेशे में अपनी प्रतिभा का प्रमाण दे रही हैं। अत: अपनी बेटी को दी गई। माँ की यह सीख पूरी तरह समयानुकूल है।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
”लड़की अभी सयानी नहीं थी।” कवि इस कथन को ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सयानी’ शब्द का अर्थ चतुर, समझदार और उम्र में बड़ी होना भी होता है। हमारे यहाँ सही आयु से पहले ही कन्या का विवाह होता आ रहा है। लड़की का मानसिक और शारीरिक विकास होने से पूर्व ही, उसे विवाह के जटिल बंधन में बाँध दिया जाता है। ‘कन्यादान’ कविता की लड़की भी सयानी नहीं थी।
वह अभी इतनी नासमझ और सरल स्वभाव की थी कि उसे वैवाहिक जीवन में प्राप्त होने वाले सुख का एक अस्पष्ट-सा आभास तो था लेकिन विवाह के उपरान्त सामने आने वाली समस्याओं और चुनौतियों के विषय में कुछ ज्ञान नहीं था।
उसके लिए वैवाहिक जीवन ऐसा ही अस्पष्ट था जैसे धुंधले प्रकाश में पढ़ा जाने वाला कोई पाठ हो। उसके मन में विवाहित जीवन की कुछ सुखद कल्पनाएँ मात्र थीं। उसकी वास्तविकता से वह परिचित नहीं थी। इसी कारण कवि उसे सयानी नहीं मानता।
प्रश्न 2.
माँ ने पति के घर जा रही बेटी को क्या-क्या उपयोगी सुझाव दिए ? ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
माँ ने बेटी को कई उपयोगी और व्यावहारिक सुझाव दिए, जिससे उसका वैवाहिक जीवन सुखी बना रहे। उसने बेटी से कहा कि वह ससुराल में अपनी शारीरिक सुन्दरता को अधिक महत्व न दे।
उसकी सुन्दरता दूसरों के लिए ईष्र्या का कारण हो सकती थी। इससे द्वेष को वातावरण बन सकता था। माँ ने बेटी को समझाया कि चाहे जैसी कठिन परिस्थिति क्यों न आए, वह कभी भी आत्महत्या करने की बात न सोचे। सूझ-बूझे और धैर्यपूर्वक समस्या का सामना करे। वह सुन्दर वस्त्रों तथा बहुमूल्य आभृणों के मोह में न पड़े। ये स्त्री को भ्रम में डाल देते हैं। उसके स्वाभिमान को वंचित कर देते हैं। माँ ने वर्तमान परिस्थितियों को
प्रश्न 3.
‘कन्यादान’ शब्द नारी की गरिमा के अनुकूल नहीं है। क्या आप इस शब्द के स्थान पर कुछ और शब्द रखना या इसे हटा देना उचित समझते हैं? सोदाहरण अपना मत प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
आज समाज में महिला सशक्तीकरण और नारियों के अधिकारों की हिमायत की जा रही है। कन्याएँ अपने समकक्ष लड़कों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। ऐसे परिवेश में ‘कन्यादान’ शब्द कन्याओं की हीनता और दुर्बलता का द्योतक है।
कन्यादान हिन्दू विवाह का एक परंपरागत अंग रहा है। कन्या कोई निर्जीव वस्तु नहीं कि उसका अन्नदान, वस्त्रदान, गोदान आदि की भाँति दान कर दिया जाय। दान की गई वस्तु का दान प्राप्तकर्ता स्वामी मान लिया जाता है।
अतः ‘कन्यादान’ शब्द में स्त्री के पद को हीन करने की गंध आती है।मेरा मत है कि इस शब्द को या तो विवाह पद्धति से निकाल दिया जाय या फिर इसके स्थान पर ‘आशीषदान’, ‘मंगल कामना’ या कोई और उपयुक्त शब्द प्रयोग में लाया जाय।
विवाह के लिए पाणिग्रहण’ शब्द भी प्रचलित है। कन्या के माता-पिता अपनी पुत्री का हाथ वर को पकड़ाते हैं अर्थात् दाम्पत्य जीवन में दोनों को एक-दूसरे का पूरक मानते हुए उनके मंगलमय जीवन की कामना व्यक्त करते हैं। कन्यादान को यही स्वरूप है और इसके अनुरूप ही नाम भी दिया जाना चाहिए।
प्रश्न 4.
‘कन्यादान’ कविता से क्या संदेश प्राप्त होता है? अपना मत प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
‘कन्यादान’ कविता भारतीय नारी जीवन पर केन्द्रित है। कवि की भारतीय नारी के प्रति संवेदनशीलता इस कविता में स्पष्ट नजर आती है। कवि परम्पराओं में जकड़ी हुई भारतीय नारियों को जागृत करना चाहता है।
वह चाहता है कि नारियाँ अपने व्यक्तित्व, अपनी क्षमताओं और अपने गुणों के प्रति जागरूक बने। कवि का संदेश है कि नारी को ससुराल में मिलने वाले गहनों और वस्त्रों से अधिक मोह नहीं रखना चाहिए।ये उसे पुरुष की दासता में बाँध देने वाले बंधनों के समान हो सकते हैं।
अपने रूप और सुन्दरता पर मुग्ध होकर रहना, अपने आपको धोखा देने के समान है। स्त्री को अपने स्त्री होने पर गर्व होना चाहिए हर प्रकार की दीनता-हीनता से मुक्त रहना चाहिए साथ ही अपने स्त्रियोचित गुणों को बनाए रखना चाहिए। देखा जाय तो भारतीय नारी के सन्दर्भ में दिये गए ये संदेश सम्पूर्ण विश्व की नारी जाति के लिए हैं। उनके मार्गदर्शक हो सकते हैं।
कवि परिचय
जीवन परिचय-
कवि ऋतुराज का जन्म राजस्थान में भरतपुर जनपद में सन् 1940 में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से अँग्रेजी में एम. ए. की उपाधि ग्रहण की। उन्होंने लगभग चालीस वर्षों तक अँग्रेजी-अध्यापन किया। ऋतुराज के अब तक प्रकाशित काव्य संग्रहों में ‘पुल पर पानी’, ‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘सुरत निरत’ तथा ‘लीला मुखारविन्द’ प्रमुख हैं। अपनी रचनाओं के लिए ऋतुराज परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान, बिहारी पुरस्कार आदि से सम्मानित हो चुके हैं।
साहित्यिक परिचय-ऋतुराज ने हिन्दी की मुख्य परम्परा से हटकर उन लोगों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया है। जो प्रायः उपेक्षित रहे हैं। उनके सुख-दु:ख, चिन्ताओं और चुनौतियों को चर्चा में स्थान दिलाया है। सामाजिक जीवन के व्यावहारिक अनुभवों को कवि ने सच्चाई के साथ शब्दों में उतारा है। आम जीवन में व्याप्त चिन्ताओं, विसंगतियों और सामाजिक जीवन की विडम्बनाओं की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है।
लोक प्रचलित भाषा के द्वारा आम जीवन की समस्याओं को विमर्श के केन्द्र में लाकर कवि ने सामाजिक न्याय की भावना को बल प्रदान किया है।
पाठ परिचय ‘कन्यादान’ विवाह का एक महत्त्वपूर्ण अंग रहा है। कवि ने इस कविता में ‘कन्या के दान’ पर प्रश्न उठाते हुए, एक माँ द्वारा अपनी पुत्री को वैवाहिक जीवन से संबंधित गम्भीर शिक्षाएँ दिलवाई हैं। कविता में माँ बेटी को परम्पराओं और आदर्शो से हटकर, कुछ उपयोगी सीखें दे रही है।
समाज ने स्त्रियों के लिए आचरण के जो पैमाने गढ़े हैं, वे बड़े आदर्शवादी हैं। स्त्रियों से यही आशा की जाती रही है। कि वे अपना जीवन इन्हीं आदर्शों के अनुरूप ढालें। स्त्रियों को कोमल बताया जाना एक प्रकार से उनके व्यक्तित्व का उपहास है। स्त्री पुरुष की तुलना में कमजोर होती है, यही कोमलता का अर्थ है।
कविता में माँ अपनी भोली-भाली कन्या को शिक्षा दे रही है कि वह अपनी सुंदरता पर मुग्ध होने से बचे क्योंकि इससे वह ईर्ष्या का शिकार हो सकती है। चाहे जैसी कठिन परिस्थिति आए वह कभी अपना जीवन समाप्त कर देने की बात न सोचे। सुन्दर और मूल्यवान वस्त्र तथा आभूषण पाकर वह भ्रम में न पड़े। ये स्त्री को पराधीन बनाकर रखने वाले बंधन होते हैं। तू लड़की है यह सच है किन्तु इस कारण तू कमजोर या परावलम्बी है, यह बात सपने में भी मत सोचना।
इस प्रकार कवि ने बेटी की विदाई पर माँ को भावुक होकर आँसू बहाते नहीं दिखाया है बल्कि अपने जीवन के गम्भीर अनुभवों को उसके साथ साझा किया है।
पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ
(1)
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो।
लड़की अभी सयानी नहीं थी।
अभी इतनी भोली सरल थी।
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की।
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।
शब्दार्थ-प्रामाणिक = सच्चा, वास्तविक। दान = कन्यादान, विवाह की एक रीति। पूँजी = संपूर्ण संचित धन। सयानी = समझदार, चतुर। आभास = हल्की समझ, अनुमान। बाँचना = पढ़ना, समझ पाना। पाठिका = पढ़ने वाली। धुंधले = अस्पष्ट, कम चमकदार। लयबद्ध = लय में बँधी, स्पष्ट।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ऋतुराज की कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। इस अंश में कवि ने एक नवविवाहिता लड़की के सरल स्वभाव का और जीवन की कठोर वास्तविकता से परिचित। न होने का वर्णन किया है।
व्याख्या-बेटी का कन्यादान करते समय माँ दुखी थी। उसे लग रहा था मानो वह अपने जीवन में संचित अंतिम पूँजी से भी बिछुड़ रही हो। माँ का यह दुख दिखावा या रीति निभाना मात्र नहीं था। उसका दुख वास्तविक था जिससे हर कन्या की माता को गुजरना पड़ता है। माँ कन्या को कुछ बड़ी उपयोगी और व्यावहारिक शिक्षाएँ देना चाहती थी। लड़की अभी भोली और सरल स्वभाव वाली थी। उसे अभी सांसारिक व्यवहार का, जीवन की कठोर सच्चाइयों का ज्ञान नहीं था। उसके मन में वैवाहिक जीवन के सुखों की एक अस्पष्ट-सी तस्वीर तो थी लेकिन उससे जुड़े दु:खों और समस्याओं से वह अपरिचित थी। कम आयु और भोले स्वभाव के कारण आगामी जीवन उसके लिए धुंधले प्रकाश में पढ़ी जाने वाली कविता के समान था। उसकी तुक और लय में बँधी सुखद पंक्तियों को ही वह पढ़ने और समझने में समर्थ थी। अभी उसे जीवन के कड़वे अनुभवों का ज्ञान न था।
विशेष-
(1) भाषा सरल है। भाषा पर कवि की पकड़ कथन को आकर्षक बना रही है।
(2) ‘अन्तिम पूँजी’, ‘सुख का आभास’, ‘दु:ख बाँचना’, ‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की’ ‘तुक’ और ‘लयबद्ध’ जैसे शब्द प्रसंग की गम्भीरता से परिचित कराते हैं।
(3) लड़की को दान में देना’, ‘अन्तिम पूँजी होना’ जैसे प्रयोग हृदय को छू लेने वाले हैं।
(4) आज की माँ को परम्परागत उपदेशों के बजाय ऐसी ही व्यावहारिक और उपयोगी शिक्षाएँ बेटियों को देनी चाहिए।
2.
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के।
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की-जैसी दिखाई मत देना।
शब्दार्थ-झाँककर = देखकर। चेहरा = मुख। रीझना = मुग्ध होना, अति प्रसन्न होना। जलने के लिए = आग लगाकर आत्महत्या करने के लिए। शाब्दिक भ्रम = भ्रम में डाल देने वाले शब्द। लड़की जैसी = कमजोर या दूसरों पर निर्भर।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ऋतुराज की कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। इस अंश में माँ अपनी विवाहित बेटी को आगामी जीवन के लिए उपयोगी सीख दे रही है।
व्याख्या-विदा होकर ससुराल जाने वाली बेटी को शिक्षा देते हुए माँ कह रही है-बेटी ! ससुराल में अपनी सुन्दरता पर बहुत प्रसन्न होकर न रहना। तुम्हारी यह सुन्दरता किसी को प्रसन्न करेगी तो किसी के लिए ईर्ष्या का कारण भी हो सकती है। सुन्दरता पर इतराने से अनेक समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं। ध्यान रखना स्त्री के लिए आग केवल रोटी सेकने के लिए होती हैं। कभी भी आवेश में आकर या हताश होकर आग लगाकर जल मरने की बात मत सोचना। सूझ-बूझ और साहस से समस्याओं का सामना करते हुए जीना। ससुराल में कीमती वस्त्र और आभूषण पाकर बहुत खुश मत होना। ये गहने-कपड़े केवल भ्रम में डालने वाले शब्दों की तरह हुआ करते हैं। ये स्त्री को बंधन में डाल देने वाली हथकड़ियों और बेड़ियों के समान हैं। इनके मोह में फंसकर अपनी सही सोच से दूर मत हो जाना। यह सही है कि तुम एक लड़की हो किन्तु लड़की होना कोई कमजोरी नहीं बल्कि स्वाभिमान की बात है। कभी अन्याय और अपमान से समझौता मत करना।
विशेष-
(1) माँ द्वारा दी गई सीखें व्यावहारिक और आज के सामाजिक परिवेश में बहुत उपयोगी हैं।
(2) काव्यांश में नारी जीवन के प्रति कवि की सहानुभूति और संवेदना व्यक्त हुई है।
(3) लक्षणो शब्द शक्ति द्वारा कवि ने रचना को प्रभावशाली बनाया है। लड़की होना पर लड़की जैसा दिखाई मत देना’ ऐसा ही प्रयोग है।
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