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RBSE Solutions forClass 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः

May 9, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः is part of RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः.

Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः अभ्यास – प्रश्नाः

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः वस्तुनिष्ठ – प्रश्नाः

1. बाल्यावस्थायां स्वामिकेशवानन्दस्य नामासीत्
(अ) वीरु
(आ) बीरमा
(इ) वीरः
(ई) बिरसा

2. बाल्यकाले स्वामी केशवानन्दः आसीत्
(अ) पशुचारकः
(आ) चाय-विक्रेता
(इ) राज-सेवकः
(ई) रजकः, प्रक्षालकः

3. मातुः निधनसमये ‘बीरमा’ आसीत्
(अ) शिशुः
(आ) किशोरः
(इ) युवा
(ई) प्रौढ़ः

4. संस्कृतमध्येतुं कस्य शिष्यत्वं ‘बीरमा’ अङ्गीकृतवान्
(अ) स्वामिकुशलदासस्य
(आ) स्वामिविरजानन्दस्य
(इ) गुरुनानकदेवस्य
(ई) बन्दाबहादुरस्य

5. ‘केशवानन्द’ इति नामकरणं केन, कुत्र च कृतम्
(अ) सरछोटूरामेण, पञ्जाबे
(अ) एकेन साधुना, कुम्भमेलायाम्
(ई) राज्ञा महेन्द्रप्रतापेन, वृन्दावने
(ई) मातापितृभ्याम्, मगलूणा-ग्रामे

6. यदा स्वामिकेशवानन्दस्य शिक्षारम्भः जातः तदा स आसीत्
(अ) पञ्चवर्षीयः
(आ) दशवर्षीयः
(इ) द्वादशवर्षीयः
(ई) षोडशवर्षीयः

7. स्वामिकेशवानन्दः आसत्
(अ) स्वतन्त्रता सेनानी
(आ) शिक्षाविद्
(इ) समाज-सुधारकः
(ई) एतत्सर्वमपि

8. स्वामिकेशवानन्दः संसदः सदस्यः अवर्तत्
(अ) एकवार, राज्यसभायाः
(आ) एकवारं, लोकसभायाः
(इ) द्विवारं, राज्यसभायाः
(ई) त्रिवारं लोकसभायाः

उत्तराणि:

1. (आ)
2. (अ)
3. (आ)
4. (अ)
5. (आ)
6. (ई)
7. (ई)
8. (इ)

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः लघूत्तरात्मक – प्रश्नाः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानां उत्तराणि लिखन्तु
उत्तरम्:
(क) स्वामिकेशवानन्दस्य जन्म कदा अभवत्?
(स्वामीकेशवानन्द का जन्म कब हुआ?)
उत्तरम्:
स्वामिकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रमसम्वत्सरे (ईस्वी 1883) अभवत्।
(स्वामी केशवानन्द का जन्म पौष के महीने में विक्रम संवत् 1940 (1883 ई.) में हुआ।)।

(ख) स्वामिकेशवानन्दस्य मातापित्रोः नाम किम्?
(स्वामी केशवानन्द के माता-पिता का नाम क्या था?)
उत्तरम्:
स्वामिकेशवानन्दस्य पितुः नाम ठाकुरसी ढाका मातृः नाम च साराँ इत्यासीत्।
(स्वामी केशवानन्द के पिता का नाम ठाकुरसी ढाका और माता का नाम साराँ था)

(ग) स्वामिनः संस्कृताध्ययनं कुत्र अभवत्?
(स्वामीजी का संस्कृत अध्ययन कहाँ हुआ?)
उत्तरम्:
स्वामिनः संस्कृताध्ययनं फाजिल्का नगरे अभवत्।
(स्वामीजी का संस्कृत अध्ययन फाजिल्का नगर में हुआ।)

(घ) केशवानन्देन संस्कृत-पाठशाला कुत्र स्थापिता?
(केशवानन्द जी ने संस्कृत पाठशाला कहाँ स्थापित की?)
उत्तरम्:
केशवानन्देन गुरु कुशलदासस्य आश्रमे संस्कृत पाठशाला स्थापिता।
(केशवानन्दजी ने गुरु कुशलदास के आश्रम में संस्कृत की पाठशाला स्थापित की।)

(ङ) स्वामिनः शिक्षा-प्रसारादिकार्याणि द्रष्टुं ये महापुरुषाः आगताः तेषु केषामपि पञ्चानां नामानि वदन्तु।
(स्वामीजी के शिक्षा-प्रसार आदि कार्यों को देखने के लिए जो महापुरुष आये उनमें से किन्हीं पाँच के नाम बताओ।)
उत्तरम्:
स्वामिन-शिक्षाप्रसारादि कार्याणि द्रष्टुं सरछोटूरामः, के. एम. पणिक्करः, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डनः, दिनोवा भावे, पं. जवाहर लाल नेहरू च आगताः।
(स्वामीजी के शिक्षा-प्रसार आदि कार्यों को देखने के लिए सरछोटूराम, के०एम० पणिक्कर, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन, बिनोवा भावे और पं. जवाहर लाल नेहरू आये।)

प्रश्न 2.
‘क’ खण्ड ‘ख’ खण्डेन सह यथोचितं योजयन्तु – (क खण्ड को ख खण्ड के साथ यथोचित जोड़िए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions forClass 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः image 1

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दानां पर्याय शब्दान् पाठात् चित्वा लिखन्तु
(निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द पाठ से चुनकर लिखिए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions forClass 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः image 2

प्रश्न 4.
अधोलिखित पदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखतः
(निम्नलिखित पदों के विलोमवाची पद पाठ से चुनकर लिखिए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions forClass 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः image 3

प्रश्न 5.
स्थूलाक्षरपदमाधृत्य उदाहरणं च अनुसृत्य प्रश्न-वाक्यं रचयतु
उदाहरण:
स्वामिनः जन्म 1940 तमे वर्षे अभवत्। (स्वामी जी का जन्म 1940वें वर्ष में हुआ।)
उत्तरम्:
स्वामिनः जन्म कदा अभवत्?

(i) मातुः नाम सारा इत्यासीत्। (माता का नाम सारौं था।)
उत्तरम्:
कस्याः नाम साराँ आसीत्? (किसका नाम साराँ था?)

(ii) तस्मिन् दुर्भिक्षे जीवनं दुर्भरमासीत्। (इस अकाल में जीवन दूभर था।)
उत्तरम्:
कस्मिन् दुर्भिक्षे-जीवनं दुर्भरम् आसीत्? (किस अकाल में जीवन दूभर था?)

(iii) केशवानन्दाय दत्तवान्। (केशवानन्द को दे दिया।)
उत्तरम्:
कस्मै दत्तवान्? (किसके लिए दे दिया?)

(iv) केशवानन्दः द्विवारं राज्यसभायाः सदस्यः आसीत्। (केशवानन्द दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे।)
उत्तरम्:
केशवानन्दः कति: वारं राज्यसभायाः सदस्यः आसीत्? (केशवानन्द जी कितनी बार राज्यसभा के सदस्य रहे?)

(v) परोपकाराय सतां विभूतयः। (सज्जनों की सम्पदा परोपकार के लिए होती है।)
उत्तरम्:
कस्मै सतां विभूतयः? (सज्जनों की सम्पदा किसके लिए होती है?)

(vi) कुप्रथानां निवारणे संलग्नः आसीत्। (कुप्रथाओं के निवारण में संलग्न थे।)
उत्तरम्:
कासां निवारणे संलग्नः आसीत्? (किनके निवारण में संलग्न थे?)

प्रश्न 6.
अधोलिखित-पदानि आश्रित्य उदाहरणं च अनुसृत्य संस्कृतेन वाक्य-रचनां कुर्वन्तु-
(निम्नलिखित पदों को आश्रय लेकर और उदाहरण का अनुसरण करके वाक्य-रचना कीजिए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions forClass 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः image 4

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः निबन्धात्मक – प्रश्नाः

प्रश्न 1.
स्वामिकेशवानन्दस्य बाल्यकालः कथं कष्टापन्नः आसीदिति वर्णयन्तु।
(स्वामी केशवानन्द जी का बचपन कैसा कष्ट भरा था? वर्णन करो।)
उत्तरम्:
यदा असौ सप्तवर्षकल्पः तदैव पिता दिवंगतः। माता श्रेष्ठगृहेषु गृहकार्याणि कृत्वा जीवनयापनं करोति स्म परन्तु दुर्भिक्षकाले सापि एकदा तं विहाय दिवङ्गता। षोडशवर्षीयः असौ बालकः एकलः अजायत। आहिण्डतोऽसौ पञ्जाब प्रदेशे फीरोजपुरं प्राप्तः तत्र सः एकस्मिन् आर्य समाजस्य अनाथालये उषित्व रोटिकायाः अक्षरज्ञानस्य च युगपत् दर्शनम् अकरोत्।

(जब वह सात वर्ष का था तब पिता स्वर्गवासी हो गये। माता सेठों के घरों में घर के कामकाज करके जीवनयापन करती थी। परन्तु अकाल काल में वह (माता) भी एक दिन उसे अकेला छोड़कर स्वर्ग सिधार गई। सोलह वर्ष का यह बालक अकेला हो गया था। भटकता हुआ वह पंजाब के फिरोजपुर नगर में पहुँच गया। वहाँ एक आर्यसमाजी अनाथालय में रहने लगा। वहाँ उसने एक साथ रोटी और अक्षर ज्ञान के दर्शन किए।

प्रश्न 2.
स्वामिनः केशवानन्दस्य जीवनं सर्वपन्थ-सद्भावस्य निदर्शनम् आसीदिति। सोदाहरणं प्रतिपादयन्तु।
(स्वामी केशवानन्द का जीवन सर्वपन्थ सद्भाव का निदर्शन था। यह सोदाहरण प्रतिपादित कीजिए।)
उत्तरम्:
स्वामिकेशवानन्दस्य जीवनं सर्वपन्थ सद्भावस्य निदर्शनमस्ति। सः जात्या जाटोऽपि सिक्खगुरोः नानकदेवस्य पुत्रेण श्रीचन्देन प्रवर्तिते उदासी सम्प्रदाये दीक्षा गृहीतवान्। विभाजनकाले हिंसाचारे मुस्लिम बन्धूनामपि चिकित्सा कारिता। सर्वेषां सम्प्रदायानां आचार्याणां सम्मानेऽसौ कार्यक्रमान् आयोजितवान्। गुरुग्रन्थस्य असौ महानपाठी अभवत्।

(स्वामी केशवानन्द जी का जीवन सभी पन्थों के सद्भाव का उदाहरण है। उसने जाति से जाट होते हुए भी सिख गुरु नानकदेव के पुत्र श्रीचन्द द्वारा चलाये गये उदासी पन्थ की दीक्षा ग्रहण की। विभाजन के समय में हिंसाचार में मुसलमान भाइयों का उपचार करवाया। सभी सम्प्रदायों के आचार्यों के सम्मान में उन्होंने कार्यक्रम आयोजित किए। गुरु ग्रन्थ के ये महान् पाठी हो गये।)

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 8 कर्मयोगी स्वामी केशवानन्दः अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि

अधोलिखित प्रश्नान् संस्कृत भाषायां पूर्णवाक्येन उत्तरत – (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृतभाषा में पूर्ण वाक्य में दीजिए-)

प्रश्न 1.
स्वामिकेशवानन्दस्य जन्म कुत्र अभवत्?
(स्वामी केशवानन्द जी का जन्म कहाँ हुआ?)
उत्तरम्:
स्वामिकेशवानन्दस्य जन्म सीकर जनपदे मगलूणा ग्रामेऽभवत्।
(स्वामी केशवानन्द जी का जन्म मगलूणा गाँव में हुआ।)

प्रश्न 2.
स्वामिकेशवानन्दस्य नाम बाल्यकाले किम् आसीत्?
(स्वामी केशवानन्द जी का नाम बचपन में क्या था?)
उत्तरम्:
स्वामिकेशवानन्दस्य नाम बाल्यकाले बीरमा इति आसीत्।
(स्वामी केशवानन्द जी के बचपन का नाम बीरमा था।)

प्रश्न 3.
बीरमा बालकस्य मातुः नाम किमासीत्?
(बालक बीरमा की माँ का क्या नाम था?)
उत्तरम्:
बीरमा बालकस्य मातुः नाम साराँ इत्यासीत्।
(बीरमा की माँ का नाम साराँ था।)

प्रश्न 4.
बाल्यकाले सः कमाश्रित्य जीवनयापनं करोति स्म?
(बाल्यकाल में वह किसके सहारे जीवनयापन करता था?)
उत्तरम्:
बाल्यकाले बीरमा उष्ट्रमाश्रित्य जीवनयापनं करोति स्म।
(बचपन में बीरमा ऊँट के सहारे जीवनयापन करता था।)

प्रश्न 5.
यदा स्वामिनः जनकः दिवङ्गतः तदा स्वामि कियवर्षदेशीयः आसीत्?
(जब स्वामी जी के पिता दिवंगत हुए तब स्वामी जी की क्या उम्र थी?)
उत्तरम्:
पितुः मृत्यकाले स्वामी सप्तवर्षकल्पः असीत्।
(पिता की मृत्यु के समय स्वामी जी की आयु सात वर्ष थी)।

प्रश्न 6.
स्वामिनः माता कि कृत्वां जीवन-यापनं करोति स्म?
(स्वामी जी का माता क्या करके जीवनयापन करती थीं?)
उत्तरम्:
स्वामिनः माता प्रेष्ठिनाम् गृहेषु अन्नपेषणं-पात्रमार्जनमादिभिः कार्यंजीवनयापनं करोति स्म)।
(स्वामीजी माता की सेठों के घरों में अन्न पीसना, बर्तन माँजना करके जीवनयापन करती थीं)।

प्रश्न 7.
मातुः सहयोगाय बीरमा किमकरोत्?
(माँ की सहायता के लिए बीरमा ने क्या किया?)
उत्तरम्:
मातुः सहयोगाय बीरमा गोचारणम् आरब्धवान्।
(माँ की सहायतार्थ बीरमा ने गायें चराना आरम्भ किया)।

प्रश्न 8.
परतन्त्र भारते कृषक-वर्गः कतिधा दासता-पञ्जरे आबद्धः आसीत्?
(परतन्त्र भारत में किसान कितने प्रकार के पिंजड़े में बँधा ?)
उत्तरम्:
परतन्त्रभारते कृषक-वर्गः त्रिविधे-दासता पञ्जरे आबद्धः आसीत्।
(परतन्त्र भारत में किसान वर्ग तीन प्रकार की दासता के पिंजड़े में बँधा था)

प्रश्न 9.
कृषक-वर्गस्य त्रिविध-दासता-पञ्जरः कथमासीत्?
(किसानों क, दासता का तीन प्रकार को पिंजड़ा कैसा था?)
उत्तरम्:
कृषक: श्रमिकवर्गश्च सामन्तानां, राज्ञां वैदेशिकानां दासता-पञ्जरे आबद्धः आसीत्।
(किसान और श्रमिक वर्ग, ठाकुरों, राजाओं और विदेशियों के त्रिविध दासता के पिंजड़े में बँधा हुआ था।)

प्रश्न 10.
मारवाडस्य दुर्भिक्षं किं नाम्ना कुख्यातोऽभवत्?
(मारवाड़ का अकाल किस नाम से बदनाम था?)
उत्तरम्:
मारवाडस्य दुर्भिक्षं छप्पनियाँ अकालस्य नाम्ना कुख्यातोऽभवत्।
(मारवाड़ का अकाल छप्पनियाँ अकाल के नाम से बदनाम हुआ।)

प्रश्न 11.
साराँयाः गण्डस्योपरि किं पिटकः आसीत्?
(साराँ के फोड़े पर क्या फोड़ा था?)
उत्तरम्:
वैधव्येऽपिदुर्भिक्षकालः तस्या गण्डस्योपरि पिटकः आसीत्।
(वैधव्य होते हुए भी अकाल उसके फोड़े पर फोड़ा था।)

प्रश्न 12.
परतन्त्र भारते कृषकृाणां श्रमजीविनाम् च जीवनं किमिव आसीत्?
(परतन्त्र भारत में किसान और मजदूरों का जीवन कैसा था?)
उत्तरम्:
परतन्त्र भारते कृषकाणां श्रमिकानां च जीवनं रौरव नरक प्रायशमासीत्।
(परतन्त्र भारत में किसानों और श्रमिकों का जीवन रौरव-नरक के समान था।)

प्रश्न 13.
दुर्भिक्षकाले कस्य साम्राज्यमासीत्?
(अकाल के समय किसका साम्राज्य था?)
उत्तरम्:
दुर्भिक्षकाले क्षुत्पिपासया: अखण्ड-साम्राज्यमेव आसीत्।
(अकाल के समय मात्र भूख-प्यास का ही अखण्ड साम्राज्य था।)

प्रश्न 14.
दुर्भिक्षकाले कि खादित्वा जनाः प्राणान् रक्षितवन्तः?
(अकाल के समय लोगों ने क्या खाकर प्राणों की रक्षा की?)
उत्तरम्:
दुर्भिक्षकाले शमीवृक्षाणां त्वचं भरुट-संज्ञकं घासं च खादित्वा जनाः प्राणान् रक्षितवन्तः।।
(अकाल के समय खेजड़ी की छाल और भरभेंट (चिरचिटा) घास को खाकर लोगों ने प्राणों की रक्षा की।)

प्रश्न 15.
मातुः मृत्युकाले बीरमा बालकः कियत् वर्षकल्पः आसीत्?
(माँ की मृत्यु पर बालक बीरमा की आयु क्या थी?)
उत्तरम्:
मातुः मृत्युकाले बीरमा षोडशवर्षदेशीयः आसीत्।
(माँ की मृत्यु पर बालक, बीरमा की आयु सोलह वर्ष थी)

प्रश्न 16.
एकल: बीरमा उत्तरस्याम् आहिण्डमानः कुत्र प्राप्तः?
(अकेला बीरमा उत्तर में भटकता हुआ कहाँ पहुँच गया?)
उत्तरम्:
एकल: बीरमा उत्तरस्यां अज्ञात मार्गे आहिण्डमानः पञ्जाबे फिरोजपुरं प्राप्तः।
(अकेला बीरमा उत्तर में अज्ञात मार्ग पर भटकता हुआ पंजाब में फिरोजपुर पहुँच गया।)

प्रश्न 17.
फिरोजपुरे सः कुत्र प्रवेशितो अभवत्?
(फिरोजपुर में वह कहाँ प्रवेश हो गया?)
उत्तरम्:
फिरोजपुरे सः आर्यसमाजस्य अनाथालये प्रवेशिता अभवत्।
(फिरोजपुर में वह आर्य समाज के अनाथालय में प्रवेश करा दिया गया)।

प्रश्न 18.
बीरमा रोटिकायाः अक्षरज्ञानस्य च युगपत् दर्शनं कुत्र अकरोत्?
(बीरमा ने रोटी और अक्षर-ज्ञान के दर्शन एक साथ कहाँ किए?)
उत्तरम्:
बीरमा रोटिकायाः अक्षरज्ञानस्य युगपत् दर्शनं आर्यसमाज अनाथालये अकरोत्।
(बीरमा ने रोटी और अक्षर-ज्ञान के दर्शन एक साथ आर्यसमाज अनाथालय में किए।)

प्रश्न 19.
कस्य हृदि संस्कृताध्ययनस्य इच्छा अङ्करिता?
(किसके हृदय में संस्कृत अध्ययन की इच्छा प्रस्फुटित हुई?)
उत्तरम्:
बीरमा बालकस्य हदि संस्कृताध्ययनस्येच्छा अङ्करिता।
(बीरमा के हृदय में संस्कृत पढ़ने की इच्छा प्रस्फुटित हुई।)

प्रश्न 20.
संस्कृतमध्येतुं बीरमा कस्य शिष्यत्वं स्वीकृतवान्?
(संस्कृत पढ़ने के लिए बीरमा ने किसका शिष्यत्व स्वीकार किया?)
उत्तरम्:
संस्कृतमध्येतुं बीरमा उदासी सम्प्रदायस्य स्वामि कुशलदासस्य शिष्यत्वं स्वीकृतवान्।
(संस्कृत अध्ययन के लिए बमां ने उदासी सम्प्रदाय के स्वामि कुशलानन्द का शिष्यत्व स्वीकार किया।)

प्रश्न 21.
संस्कृतमध्येतुं बीरमा कस्य सम्प्रदाये प्राव्रजत्?
(संस्कृत पढ़ने के लिए बीरमा ने किस सम्प्रदाय की प्रव्रज्या ग्रहण की?)
उत्तरम्:
संस्कृतमध्येतुं बीरमा श्रीचन्देन प्रवर्तमाने उदासी सम्प्रदाये दीक्षां गृहीतवान्।
(संस्कृत अध्ययन के लिए बीरमा ने सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानकदेव के पुत्र श्रीचन्द द्वारा प्रवर्तमान उदासी सम्प्रदाय में दीक्षा ले ली।)

प्रश्न 22.
बीरमा संस्कृतं कुत्र पठितवान्?
(बीरमा ने संस्कृत कहाँ पढ़ी?)
उत्तरम्:
बीरमा फाजिल्का नगरे संस्कृतं पठितवान्।
(बीरमा ने फाजिल्का नगर में संस्कृत पढ़ी।)

प्रश्न 23.
बीरमाबालकस्य ‘स्वामि केशवानन्दः’ इति नाम केन दत्तम्?
(बीरमा बालक का स्वामि केशवानन्द नाम किसने दिया)?
उत्तरम्:
बीरमा बालकाम् प्रयागे कुम्भ मेलायाम् एकेन महात्मना ‘स्वामिकेशवानन्दः’ इति नाम दत्तम्।
(बीरमा बालक को प्रयाग में कुम्भ के मेले में एक साधु ने ‘स्वामिकेशवानन्द’ नाम दिया।)

प्रश्न 24.
गुरौः आज्ञया स्वामिकेशवानन्दः संस्कृतमध्येतुम् कुत्रावसत्?
(गुरु की आज्ञा से स्वामी केशवानन्द संस्कृत अध्ययन के लिए कहाँ रहे?)
उत्तरम्:
गुरौः आज्ञया संस्कृताध्ययनाय च हरिद्वारे, अमृतसरे चापि उषितवान्।
(गुरु की आज्ञा से संस्कृत अध्ययन के लिए हरिद्वार और अमृतसर में भी रहे।)

स्थूलपदान्याधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत – (मोटे पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए-)

प्रश्न 1.
राजमार्गे चरन् अनन्तयात्रायै प्रस्थितः।
(राजमार्ग में चलता हुआ अनन्त यात्रा पर प्रस्थान कर गया था।)
उत्तरम्:
कुत्र चरन् अनन्त यात्रायें प्रस्थित:?
(कहाँ चलता हुआ अनन्त यात्रा पर प्रस्थान कर गया?)

प्रश्न 2.
विलक्षणोऽयमासीत् संन्यासी।
(यह संन्यासी विलक्षण था)।
उत्तरम्:
कीदृशोऽयमासीत् संन्यासी?
(यह संन्यासी कैसा था?)

प्रश्न 3.
मरूप्रदेशेव्याप्तानां कुप्रथानां निवारणाय सचेष्टः आसीत्।
(मरुप्रदेश (रेगिस्तान) में व्याप्त कुप्रथाओं के निवारण के लिए सक्रिय था।)
उत्तरम्:
कुत्र व्याप्तानां कुप्रथानां निवारणाय सचेष्टः आसीत्?
(कहाँ व्याप्त कुरीतियों के निवारण के लिए सचेष्ट था?)

प्रश्न 4.
स्वामिनोजीवनं सर्वपन्थसद्भावस्य निदर्शनमस्ति।
(स्वामीजी का जीवन सर्वपन्थ सद्भाव का उदाहरण था।)
उत्तरम्:
स्वामिनौ जीवनं कस्य निदर्शनमासीत्?
(स्वामीजी का जीवनकिस का उदाहरण था?)

प्रश्न 5.
बीरमा उदासी-सम्प्रदाये दीक्षित:।
(बीरमा उदासी सम्प्रदाय में दीक्षित हो गया।)
उत्तरम्:
बीरमा कस्मिन् सम्प्रदाये दीक्षित:?
(बीरमा किस सम्प्रदाय में दीक्षित था?)

प्रश्न 6.
स: गुरुग्रन्थस्योत्तमः पाठी अभूत्।
(वह गुरु ग्रन्थ का उत्तम पाठी हो गया।)
उत्तरम्:
सः कस्य उत्तमः पाठी अभूत्?
(वह किसका उत्तम पाठी हो गया?)

प्रश्न 7.
केशवानन्दः सिक्खेतिहासस्य लेखनं कारितवान्।
(केशवानन्द ने सिक्ख इतिहास का लेखन करवाया।)
उत्तरम्:
केशवानन्दः कस्य लेखनं कारितवान्?
(केशवानन्द ने किसका लेखन करवाया?)

प्रश्न 8.
जैनाद्याचार्याणां सम्माने कार्यक्रमा: आयोजिताः।
(जैन आदि आचार्यों के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किया।)
उत्तरम्:
केषां सम्माने कार्यक्रमाः आयोजिता:?
(किनके सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किए?)

प्रश्न 9.
स्वामी महाभाग: शिक्षा सन्तः इति विरुदेन भूषितः।
(स्वामी महोदय शिक्षा-सन्त की उपाधि से विभूषित थे)।
उत्तरम्:
स्वामीमहाभागः केन विरुदेन भूषितः?
(स्वामीजी किस उपाधि से विभूषित थे?)

प्रश्न 10.
तेन पञ्चाशत् छात्रावासाः स्थापिता:।
(उनके द्वारा पचास छात्रावास स्थापित किए गये।)
उत्तरम्:
तेन कति छात्रावासाः स्थापिता:?
(उनके द्वारा कितने छात्रावास स्थापित किए गये?)

प्रश्न 11.
कुशलदासः आश्रमस्य स्वामित्वं केशवानन्दाय दत्तवान्।
(कुशलदास ने आश्रम का स्वामित्व केशवानन्द को दे दिया)
उत्तरम्:
कुशलदासः आश्रमस्यस्वामित्वं कस्मै दे त्तवान्?
(कुशलदास ने आश्रम का स्वामित्व किसके लिए दिया?)

प्रश्न 12.
परोपकाराय सतां विभूतयः।
(सज्जनों की विभूति परोपकार के लिए होती है।)
उत्तरम्:
परोपकाराय केषां विभूतयः?
(परोपकार के लिए किसकी सम्पदा होती है?)

प्रश्न 13.
अबोहरक्षेत्रे राष्ट्रभाषायाः प्रचारकार्यमारब्धम्।
(अबोहर क्षेत्र में राष्ट्रभाषा का प्रचारकार्य आरम्भ किया।)
उत्तरम्:
अबोहरक्षेत्रे कस्य प्रचार कार्यमारब्धम्?
(किसका प्रचार-कार्य आरम्भ कर दिया?)

प्रश्न 14.
गुरुग्रन्थसाहिब इत्यस्य पठनेपाटवमधिगतम्।
(गुरुग्रन्थ साहिब के पढ़ने में पटुता प्राप्त की।)
उत्तरम्:
कस्य पाठने पाटवमधिगतम्?
(किसके पाठ करने में पटुता प्राप्त की?)

प्रश्न 15.
फाजिल्का क्षेत्रं पाकिस्ताने गमनात् वारितम्।
(फाजिल्का क्षेत्र को पाकिस्तान में जाने से रोका।)
उत्तरम्:
किं क्षेत्रं पाकिस्ताने गमनात् वारितम्?
(कौनसा क्षेत्र पाकिस्तान में जाने से रोका?)

प्रश्न 16.
ऐतिहासिकस्थलानाम् अध्ययनं कृतम्।
(ऐतिहासिक स्थलों का अध्ययन किया।)
उत्तरम्:
केषाम् अध्ययनं कृतम्?
(किनका अध्ययन किया?)

प्रश्न 17.
तस्य हदि संस्कृताध्ययनेच्छा अङ्करिता।
(उसके हृदय में संस्कृत पढ़ने की इच्छा अंकुरित हुई।)
उत्तरम्:
तस्य हृदये का इच्छा अङ्करिता।
(उसके हृदय में क्या इच्छा अंकुरित हुई?)

प्रश्न 18.
छिद्रेष्वनर्थाः बहुली भवन्ति।
(कमजोरियों में अनर्थ बहुत होते हैं।)
उत्तरम्:
अनर्था: केषु बहुली भवन्ति?
(अनर्थ किनमें बहुत होते हैं?)

प्रश्न 19.
पशवः काल-कवलिताः अभवन्।
(पशु काल के गाल में चले गये।)
उत्तरम्:
के कालकवलिताः अभवन्?
(कौन काल के गाल में चले गये?)

प्रश्न 20.
रौरव नरकप्रायं तेषां जीवनमासीत्।
(रौरव-नरक के समान उनका जीवन था।)
उत्तरम्:
तेषां जीवनं कीदृशमासीत्?
(उनका जीवन कैसा था?)

पठ-परिचयः

राजस्थान की रत्नगर्भा यह वसुन्धरा धीर, वीर, लोकदेवता, भक्तों, योगियों, तपस्वियों, सतियों और सन्तों की खान रही। है। वे रत्न क्या हैं? यदि ऐसा कोई भी व्यक्ति जानने की इच्छा करे तो उनकी इतनी लम्बी संख्या है कि सभी का नाम लेना आसान नहीं है। इसी भूमि पर अभी पैदा हुए एक नर-रत्न स्वामी केशवानन्द जी का प्रेरक जीवनवृत्त यहाँ संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

मूल पाठ, शब्दार्थ तथा हिन्दी-अनुवाद

1. स्वामिकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा-ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नाम सारां इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एषः बालः सप्तवर्षकल्पः आसीत् तदैव उष्टुमेकमाश्रित्य रतनगढ़-स्थले जीवनयापन कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गतः।

शब्दार्थाः-जनपदे = जिले में। सप्तवर्षकल्पः = प्रायशः सप्त-वर्षीयः (लगभग सात वर्ष का)। आश्रित्य = आश्रय, सहारा लेकर)। यापनं = बिताया। दिवङ्गतः = स्वर्गवासी हो गया, मर गया। तदैवः = तस्मिन्नेव काले (उसी समय)। पितुर्नाम् = जनकस्याभिधानम् (पिता का नाम)। मातुश्च = जनन्याः च (और माता का नाम)।

\हिन्दी-अनुवादः-स्वामी केशवानन्द का जन्म पौष माह में विक्रम संवत् 1940 (ईस्वी 1883) में राजस्थान केसीकर जिले में मगलूणा गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम ठाकुरसी ढाका और माता का नाम सारा था। बचपन में केशवानन्द का नाम ‘बीरमा’ था। जब यह बालक लगभग सात वर्ष का था तभी एक ऊँट का सहारा लेकर रतनगढ़ स्थान पर जीवन यापन करते हुए पिता स्वर्गवासी हो गया।

व्याकरणिक-बिन्दवः-पितुर्नाम = पितु:+नाम (विसर्ग सन्धि रुत्व) मातुश्च = मातुः+च (विसर्ग सन्धि सत्व) इत्यासीत् = इति+आसीत् (यण सन्धि) तदैव = तदा + एव (वृद्धि सन्धि) कुर्वन्नस्य = कुर्वन् + अस्य (हल संधि) दिवम् + गतः (हल् संधि)।

2. पितुः प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि-पेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभिः कार्यैः यथाकथञ्चित् काल-यापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य-कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत्, उच्यते हि-छिद्रेष्वनर्थाः बहुलीभवन्ति।’ इदानीं मातुः सहयोगाय बीरमा-बालकेन गोचारण-कार्यमारब्धम्। तदानीन्तनः दीन-हीनः ग्रामीणः कृषकवर्गः श्रमिकवर्गश्च सामन्तानां, राज्ञां (नवाब-संज्ञकानां वा), वैदेशिकानां च शासकानां त्रिविधे दासता-पञ्जरे आबद्धः आसीत्। रौरव-नरकप्रायं हि तेषां जीवनमासीत्। अयं पुनः ‘गण्डस्योपरि पिटकः’ संवृत्तः यत् भयङ्करो दुर्भिक्षकालः समापन्नः। ‘छप्पनियाँ अकाल’ इति कुख्याते वि०सं० 1956 तमस्य तस्मिन् दारुणे दुर्भिक्षे प्राणधारणमपि दुर्भरमासीत्।।

शब्दार्थाः-प्रयाणात् = गमनात् (जाने से)। प्रागेव = पूर्वमेव (पहले ही)। श्रेष्ठिगृहेषु = सेठों के घरों में। गोधूमादिपेषणम् = गेहूँ आदि पीसना। पात्र-मार्जनम् = बर्तन माँजना। वराकी = बेचारी। वैधव्यम् = विधवापन। छिद्रेषु = दुर्बलतायाम् (खेद में, कमजोरी या परेशानी में)। अनर्थाः = आपदः (समस्याएँ, परेशानियाँ)। बहुलीभवन्तिं = वर्धन्ते (बढ़ जाती हैं, बहुत होती हैं) गोचारण कार्यम् = गाय चराने का काम। तदानीन्तनः = तत्कालीनः (उस समय का)। रौरवनरकम् = (रौरव नाम का नरक)। गण्डस्योपरि = विदुधेः उपरि (फोड़े के ऊपर, गाल पर)। पिटकः = फुसी। दुर्भरम् = दुष्करम्(दूभर)। दारुणः = अतिकठोरः (भीषण)।

हिन्दी-अनुवादः-पिता के चले जाने से पहले ही विपत्ति (गरीबी) में सेठों के घरों में गेहूँ आदि पीसना, बर्तन माँजना इत्यादि कामों से जैसे-तैसे किसी प्रकार से समय व्यतीत करती हुई इस बालक की बेचारी माता अब विधवापन के कारण से यहाँ से भी विपदाग्रस्त हो गई, कहा जाता है कि कमजोरियों में परेशानियाँ अधिक बढ़ती हैं। अब माता के सहयोग के लिए बीरमा बालक ने गाय चराना आरंभ कर दिया। उस समय का दीन-हीन किसानों का समूह और मजदूर वर्ग सामन्तों-नबावों, राजाओं और विदेशी शासकों के तिहरे गुलामी के पिंजड़े में बँधे हुए थे। प्रायः रौरव नरक सा ही उनका जीवन था। यह फोड़ा पर एक दूसरा फोड़ा हो गया था (आपत्ति पर एक और आपत्ति हो गया था कि भयंकर अकाल का समय आ गया। ‘छप्पनियाँ अकाल के नाम से कुख्यात वि.सं. 1956 के उस कठोर अकाल में प्राण धारण करना भी दूभर हो गया था।

व्याकरणिक-बिन्दवः-प्रागेव = प्राक्+एव (हल् सन्धि) काल-यापनम् = कालं यापयन् (द्वितीय तत्पुरुष) छिद्रेष्वनर्था = छिद्रेषु+अनर्थाः (यण् संधि) आरब्धम् = आ+रभुक्त। आबद्ध = आबद्धभक्त। गण्डस्योपरि = गण्डस्य-उपरि (गुण संधि) कृषकवर्गः = कृषकाणां वर्गः (षष्ठी तत्पुरुष)।

3. चतुर्दिक्षु जलं नैव, अन्नं नैव, तृणं नैव। आसीत् केवलं क्षुत्पिपासयोः अखण्डं साम्राज्य, प्राणिनामार्तनादश्च। शमीवृक्षाणां त्वचं भरुट-संज्ञक घासं च खादित्वा मनुष्याः यथाकथञ्चित् प्राणान् रक्षितवन्तः। पशवः प्रायः काल-कवलिताः। एतौ मातापुत्रौ अपि जनपदात् जनपदं ग्रामात् ग्रामं च अटन्तौ आस्ताम्। अस्मिन्नेवान्तरे सततं दुर्भिक्षप्रतारणैः जर्जरिता बलवदस्वस्था च वीरमा-जनन्यपि षोडशवर्षदेशीयम् इमं किशोरम् एकलं विहाय दिवं प्रयाता।

शब्दार्था:-क्षुत्पिपासयोः = भूख-प्यास का। आर्तनादः = क्रन्दनम् (चीख-पुकार)। शमीवृक्षाणाम् = खेजड़ी के पेड़ों की। भरुटसंज्ञकम् = भरभेंट या चिरचिटा नाम के। अटन्तौ = भ्रमन्तौ (घूमते या भटकते हुए)। प्रताडनैः = पीडनैः(पीड़ाओं से)। जर्जरिता = क्षीणा ( क्षीण हुई)। बलवदस्वस्था = बहुत अधिक अस्वस्थ। षोडशवर्षदेशीयम् – लगभग सोलह
वर्ष वाले को। एकलम् = अकेला। विहाय = त्यक्त्वा (छोड़कर), दिवम् प्रयात् = स्वर्ग सिधार गई।

हिन्दी-अनुवादः-चारों दिशाओं में पानी नहीं, अनाज नहीं, घास नहीं, था तो केवल भूख-प्यास का अखण्ड साम्राज्य और प्राणियों का दुःख भरा क्रन्दन। खेजड़ी के पेड़ों की छाल (बक्कल) और भरभेंट (चिरचिटा) नाम की घास को खाकर मनुष्य जैसे-तैसे प्राणों की रक्षा करते रहे। पशु प्रायः काल के गाल में चले गये थे अर्थात् मर गये थे। ये दोनों माता और पुत्र भी (एक) जिले से (दूसरे) जिले में गाँव से गाँव घूमते रहे। इसी दौरान निरन्तर अकाल की प्रतारणा (पीड़ा) से जर्जर (जीर्ण) हुई और अधिक बीमार हुई बीरमा की माँ भी सोलह वर्ष के इस किशोर को अकेला छोड़कर स्वर्ग सिधार गई।

व्याकरणिक-बिन्दवः–चतुर्दिक्षु = चतुः+दिक्षु (विसर्ग सन्धि) आर्तनादश्च = आर्तनादः + च (वि. संधि) शमीवृक्षाणाम् = शमे:+वृक्षाणाम् (ष० त०) खादित्वा = खाद्+क्त्वा। रक्षितवन्तः = रक्ष् + क्तवतु। अस्मिन्नेवान्तरे =: अस्मिन्+एवं+अन्तरे (हल, दीर्घ संधि)। विहाय = वि+हा+ल्यप्।।

4. तदनन्तरम् एकलोऽपि सन् असार-संसार-दुःखदावानल-द्वितीयः क्षुत्पिपासार्दितः बीरमा उत्तरस्यां दिशि अज्ञाते पथिः आहिण्डमानः पञ्जाबे फिरोजपुरं प्राप्तः। तत्र केनापि कृपालुनी आर्यसमाजस्य अनाथालये प्रवेशितोऽयं बीरमा रोटिकायाः अक्षरज्ञानस्य च युगपत् दर्शनम् इदम्प्रथमतया अकरोत्। अयमेव एकस्य पशुचारकस्य महापुरुषत्वं प्रति यात्रायाः प्रस्थानबिंदुरासीत्। अत्र तस्य हृदि संस्कृताध्ययनेच्छा अङ्कुरिता।

जिज्ञासिते सति कथितं यद् जाटस्य तव संस्कृतं क्व सुलभम्? संस्कृतमिच्छसि चेत् साधुर्भव! तदनु 1961 तमे वैक्रमाब्दे (1904 ई) फाजिल्का-नगरे संस्कृतमध्येतुं उदासी संप्रदायस्य स्वामिकुशलदासस्य शिष्यत्वं साधुत्वं च अङ्गीकृतम्।।

शब्दार्थाः-एकलः = एकाकी (अकेला)। पथि = मार्गे (राह में)। असार-संसार-दुःख-दावानल-द्वितीयः = निस्सार-संसारस्य दुःखदावाग्नि सहायः (असार संसार के दु:खरूपी दावाग्नि जिसका साथी हो)। क्षुत्पिपासार्दितः = क्षुधाया पिपासया च पीडित (भूख-प्यास से पीड़ित)। आहिण्डमानः = अटन् (भटकता हुआ)। युगपत् = सहस्व (एक साथ)। इदम्प्रथमतयाः = सर्वप्रथमम् (पहली बार)। पशुचारकः = चरवाहा। प्रस्थानबिन्दुः = प्रारम्भ, बिन्दु। हृदि = हृदये (हृदय में)। अंकुरिता = प्रस्फुटिता (उत्पन्न)।

हिन्दी-अनुवादः-इसके बाद अकेला हुआ संसार की दु:खरूपी दावाग्नि से पीड़ित हुआ भूख-प्यास से पीड़ित बीरमा उत्तर दिशा में अनजान राह पर भटकता हुआ पंजाब में फिरोजपुर पहुँच गया। वहाँ किसी कृपालु ने आर्यसमाज के अनाथालये में प्रवेश कराया उस बीरमा ने रोटी और अक्षरज्ञान के सबसे पहले दर्शन किए। यह एक पशु चराने वाले (चरवाहा) का महापुरुष के प्रति यात्रा का प्रारम्भ बिन्दु था। यहाँ उसके हृदय में संस्कृत अध्ययन की इच्छा प्रस्फुटित हुई। जानने की इच्छा होते हुए भी कहा गया कि तुम जाट को संस्कृत कहाँ से सुलभ होगी। यदि तुम संस्कृत चाहते हो तो साधु हो जाओ। इसके बाद 1961 विक्रमसंवत् (1904 ई०) में फाजिल्का नगर में संस्कृत पढ़ने के लिए उदासी सम्प्रदाय के स्वामिकुशलदास के शिष्यत्वे और साधुत्व को स्वीकार कर लिया।

व्याकरणिक-बिन्दवः-अध्येतुम् = अधि+इण्+तुमुन्। वैक्रमाब्दे = विक्रमस्य अब्दे (षष्ठी तत्पुरुष) एकलोऽपि = एकल:+अपि (विसर्ग पूर्णरूप) क्षुत्पिपासार्दित: – क्षुत्पिपासाभ्याम् अर्दित: (तृतीया तत्पुरुष) आहिण्ङ्मानः = आड्+हिण्ड्+शानच्। शिष्यत्वम् = शास् + त्वम् + त्व।।

5. तत्र गुरुमुखीलिप्यां गुरुग्रन्थसाहिब-इत्यस्य पठने च पाटवमधिगतम्। आगमिनि वर्षे प्रयागे कुम्भमेलायामेकेन महात्मना ‘स्वामिकेशवानन्दः’ इति नाम दत्तम्। गुर्वाज्ञया संस्कृताध्ययनाय हरिद्वारे अमृतसरे चाप्युषितम्। देशाटनं कुर्वती स्वामिना नगराणां, तीर्थानां, मन्दिराणां, मठानाम्, आश्रमाणां, विद्यालयानां, विश्वविद्यालयानां, पुस्तकालयाना, संग्रहालयानां, वनानां, पर्वताना, नदीनाम्, ऐतिहासिक-स्थलानां च अध्ययनमपि कृतम्।

शब्दार्था:-पाटवम् = पटुता (निपुणता)। अधिगतम् – प्राप्तम् (प्राप्त किया)। गुर्वाज्ञया = गुरोः आचार्यस्य आज्ञया (गुरु की आज्ञा से)। उषितम् – रहा, वास किया। देशाटनम् = देशपरिभ्रमणम् (देश का भ्रमण करना)।

हिन्दी-अनुवादः-वहाँ गुरुमुखी लिपि में गुरुग्रन्थसाहिब के पठन में निपुणता प्राप्त कर ली। अगले वर्ष प्रयाग में कुम्भ मेले में एक महात्मा के द्वारा इनको स्वामि केशवानन्द नाम दिया। गुरु की आज्ञा से संस्कृत अध्ययन के लिए हरिद्वार और अमृतसर में रहे। देशाटन करते हुए स्वामी जी ने नगरों, तीर्थों, मन्दिरों, मठों, आश्रमों, विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, पुस्तकालयों, संग्रहालयों, वनों, पर्वतों, नदियों और ऐतिहासिक स्थलों का अध्ययन भी किया।

व्याकरणिक-बिन्दवः-पठने = पठ्+ल्युट् (सप्तमी एकवचन) पाटवम् = पट्+अण्। महात्मना = महान् च असौ आत्मा तेन च कर्मधारय। उषितम् = वस्+क्त। अटनम् = अट्+ल्युट्। कुर्वता = कृ + शतृ (तृतीय विभक्ति एकवचन) कृतम् = कृ + क्त।

6. स्वशिष्यस्य गुण-गण-महिम्ना परमप्रीतः गुरुः कुशलदासः स्वजीवितकाले एव आश्रमस्य स्वामित्वं केशवानन्दाय दत्तवान् गुरुपीठे च तं प्रतिष्ठापितवान्। ‘परोपकाराय सतां विभूतयः।’ इति धिया समृद्धमठस्य विभूतीनामुपयोगं विधाय उर्दू-प्रधाने फाजिल्का-अबोहर-क्षेत्रे राष्ट्रभाषायाः प्रचारकार्यमारब्धम्। आदौ तावद् आश्रमे एव वेदान्त पुष्पवाटिका’ इत्याख्य-सार्वजनिक-हिन्दी-पुस्तकालयस्य वाचनालस्य च प्रारम्भः कृतः। पश्चात्तत्रैव एका संस्कृत-पाठशालाऽपि स्थापिता। अबोहर-नगरे ‘नागरी-प्रचारिणी सभा’ प्रारब्धा।

शब्दार्थाः- गुण-गण महिम्ना = गुणानां गण: तस्य महिमा (गुण समूह की महिमा से)। परमप्रीतः = अतिप्रसन्नः (बहुत प्रसन्न)। परोपकाराय = परेषां हिताय (दूसरों के उपकार के लिए)। सताम् = सज्जनानां (सज्जनों का)। विभूतयः = सम्पदः (संपदा)। वैभवम् = वैभव। धिया = बुद्धि से। विधाय = कृत्वा (करके)। प्रारब्धा = आरम्भ की गई।

हिन्दी-अनुवादः-अपने शिष्य के गुण समूह की महिमा से अतिप्रसन्न हुए गुरु कुशलदास ने अपने जीवन काल में ही आश्रम का स्वामित्व केशवानन्द के लिए प्रदान कर दिया तथा गुरु की गद्दी पर उसे प्रतिस्थापित कर दिया। सज्जनों की सम्पदा दूसरों को भला करने के लिए ही होती है। इस बुद्धि (विचार) से समृद्ध मठ की विभूतियों का उपयोग करके उर्दू प्रधान फाजिल्का-अबोहर क्षेत्र में राष्ट्रभाषा का प्रचार-कार्य आरम्भ किया। आरम्भ में तो आश्रम में ही ‘वेदान्त पुष्पवाटिका’ इस नाम का सार्वजनिक हिन्दी पुस्तकालय और वाचनालय का आरम्भ किया। बाद में वहीं एक संस्कृत पाठशाला भी स्थापित की गई। अबोहर नगर में नागरी प्रचारिणी सभा प्रारम्भ की गई।

व्याकरणिक-बिन्दवः-दत्तवान् = दा+क्तवतु। गुरुपीठे = गुरौः पीठे (षष्ठी तत्पुरुष) तत्रैवः = तत्र + एव (वृद्धि सन्धि) यन्माध्यमेन = यत्+माध्यमेन (हल् संधि) इत्यस्य = इति+अस्य (यण् संधि)।

7. जनसहयोगेन ‘साहित्य-सदनम्, अबोहर’ इत्याख्या संस्थापि आरब्धा या हि रविन्द्रनाथठाकुरस्य शान्तिनिकेतनोपमासीत्, यन्माध्यमेन च ग्राम्यक्षेत्रेषु 25 विद्यालयानां, चलपुस्तकालयस्य, सत्साहित्य प्रकाशनाय ‘दीपक-प्रेस इत्यस्य च स्थापना जाता। साहित्य-सदने एवं स्वामिना 30 तमम् अखिलभारतीयं हिन्दी-साहित्य-सम्मेलनमपि आयोजितम्। हिन्दी-सेवार्थ स्वामिने ‘साहित्य वाचस्पतिः’ तथा च ‘राष्ट्रभाषा-गौरवम्’ इत्युपाधिद्वयं प्रदत्तम्। केशवानन्दस्य हिन्दी-प्रचार-कार्याणामेकं सुफलम् एतदासीद् यद् देशविभाजन-काले पञ्जाबस्य फाजिल्का-क्षेत्रं पाकिस्ताने गमनात् वारितम्।।

शब्दार्थाः-जनसहयोगेन = जनानां सहायतया (जन सहयोग से)। इत्याख्या = इस नाम की। यन्माध्यमेन = जिसकेमाध्यम से। गमनात् = जाने से। वारितम् = रोक लिया गया। उपम = सदृश (समान)। ग्राम्यक्षेत्रेषु = ग्रामीणोषु क्षेत्रेषु (गाँवों में) जाता = अभवत् (हुई)। आयोजितम् = आयोजनं कृतम् (आयोजन किया)। संस्थापितः = सम्यगरूपेण स्थापित (अच्छी तरह स्थापित किया)

हिन्दी-अनुवादः-जन सहयोग से साहित्य सदनम्, अबोहर नाम की संस्था भी आरम्भ की गई। जो कि रवीन्द्र नाथ ठाकुर के शान्ति निकेतन के समान थी जिसके माध्यम से ग्राम्य क्षेत्रों में 25 विद्यालयों, चलपुस्तकालय, अच्छा साहित्य प्रकाशन के लिए दीपक-प्रेस की स्थापना हुई। साहित्य सदन में ही स्वामी जी द्वारा 30वाँ अखिल भारतीय हिन्दी-साहित्य सम्मेलन भी आयोजित किया गया। हिन्दी की सेवा के लिए स्वामी जी को ‘साहित्य वाचस्पति’ और ‘राष्ट्र भाषा-गौरव’ दो उपाधियाँ प्रदान की गईं। केशवानन्दजी के हिन्दी प्रचार कार्यों का एक अच्छा फल यह था कि जो विभाजन के समय पंजाब का फाजिलका क्षेत्र पाकिस्तान में जाने से रोक लिया गया।

व्याकरणिक-बिन्दवः-जनसहयोगेन = जनानाम् सहयोगेन। इत्याख्या = इति-आख्या (यण् संधि) गौरवम् = गुरु+अण्। इत्युपांधि = इति+उपाधि (यण संधि)।

8. स्वातन्त्र्यान्दोलनेऽपि सक्रियः स्वामिकेशवानन्दः नैकवारं वर्षाणि यावत् कारागारेष्वपि निबद्धः। शिक्षा-प्रसाराय कृतभूरिश्रमेण स्वामिना ‘ग्रामोत्थान विद्यापीठ, संगरिया’ इत्यस्य संस्थापनं कृतम्। ग्राम्यक्षेत्रेषु तेन उपत्रिशतं (300) शिक्षाशालाः, उपपञ्चाशच्च (50) छात्रावासाः स्थापिताः। शिक्षाक्षेत्रे स्वामिनः श्रमः पं. मदनमोहनमालवीयस्य पुरुषार्थं स्मारयति। योग्यमेव स्वामिवर्यः ‘शिक्षा-सन्तः’ इति विरुदेन भूषितः।

समाज-सुधारकः केशवानन्दः मरुप्रदेशे व्याप्तानां मृत्यु-भोजनं, बाल-विवाहः, नार्युत्पीडनं, यौतुकप्रथा, अवगुण्ठनप्रथा, अस्पृश्यता, मद्यसेवनम् इत्यादीनां कुप्रथानाम् निवारणाय सदैव सचेष्टः आसीत्।

शब्दार्थाः-नैकवारम् = अनेक बार। कारागारेष्वपि निबद्धः = जेलों में भी डाले गये। भूरिश्रमेण = बहुत परिश्रम से। स्मारयति = याद दिलाता है। विरुदेन = उपाधिना, अलङ्करणेन (उपाधि से)। यौतुकप्रथा = दहेज प्रथा। अवगुण्ठन = पूँघट। अस्पृश्यता = छुआछूत। निवारणाय = दूरी करणाय (दूर करने के लिए)। नैकवारम् = अनेकशः (अनेक बार)। कारागारेषु = कारागृहेषु (जेलों में)। उपत्रिशतं = लगभग तीन सौ। स्मारयति = स्मरणं कारयति (याद दिलाती है)। सचेष्ट = प्रयत्नशीलः, सक्रियो अभवत् (सक्रिय रहा)।

हिन्दी-अनुवादः-स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी सक्रिय स्वामी केशवानन्द अनेक वर्षों तक जेलों में बन्द रहे। शिक्षा प्रसार के लिए बहुत परिश्रम करने वाले स्वामीजी द्वारा ‘ग्रामोत्थान विद्यापीठ, सांगरिया की स्थापना की गई। ग्रामीण क्षेत्र में उनके द्वारा 300 शिक्षाशालाएँ, लगभग 50 छात्रावास स्थापित किए गये। शिक्षा के क्षेत्र में स्वामीजी का परिश्रम पं. मदन मोहन मालवीय के पुरुषार्थ को याद कराता है। योग्यतम स्वामीजी ‘शिक्षा-सन्त’ उपाधि से विभूषित हुए। समाज सुधारक स्वामी केशवानन्द रेगिस्थान (मरुप्रदेश) में व्याप्त मृत्युभोज, बाल-विवाह, नारी उत्पीड़न, दहेज प्रथा, चूँघट प्रथा, छुआछूत,नशा, आदि बुरी प्रथाओं के निवारण के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे।

व्याकरणिक-बिन्दवः-स्वातन्त्र्यान्दोलने = स्वातन्त्रयाय आन्दोलने (ष. तत्पुरुष) नैकवारम् = न+एकवारम् (वृद्धि संधि)। कारागारेष्वपि = कारा+आगारेषु+अपि (दीर्घ, यण संधि) निबद्धः = नि+बन्धु+क्त्। शिक्षाप्रसारायः = शिक्षायाः प्रसाराय (ष. तत्पुरुष) ग्रामोत्थान = ग्राम+उत्थान्, ग्रामाणाम् उत्थानम्। ग्राम्यक्षेत्रेषु = ग्राम्यं च तत् क्षेत्रम् तेषु च (कर्मधारय)।

9. स्वामिनो जीवनं सर्वपन्थसद्भावस्य निदर्शनमस्ति। अयं हि जाट-जातौ जातः परं सिक्खगुरोः नानकदेवस्य पुत्रेण श्रीचन्देन प्रवर्तिते उदासी-सम्प्रदाये दीक्षितः। गुरुग्रन्थस्योत्तमः पाठी अभूत्। एकादशवार्षिक साधनया 700 पृष्ठात्मकस्य सिक्खेतिहासस्य लेखनं कारितवान्। विभाजनकालीने हिंमाचारे क्षतानां मुस्लिमबन्धूनां चिकित्सा कारिता।

सिक्ख-विश्नोई-नामधारी-दशनामी-आर्यसमाजी-जैनाद्याचार्याणां सम्मानने कार्यक्रमा: आयोजिताः।”जाट-विद्यालयः, संगरिया’ इत्यस्य नाम परीवर्त्य’ ‘ग्रामोत्थान-विद्यापीठ’ इत्यकरोत्।

शब्दार्थाः-सर्वपन्थसद्भावस्य = सभी सम्प्रदायों में अच्छे भाव को। निदर्शनम् = उदाहरण। कारितवान् = करवाया। क्षतानाम् = घायल। परीवर्त्य = बदलकर। प्रवर्तिते = संस्थापितेः (प्रवृत्त हुए)। सम्प्रदाये = मते (मत में)। दीक्षितः = प्रवृतितः (नामदान, कण्ठी ले ली)। साधनया = अभ्यासेन, तपस्या (साधना मे)।

हिन्दी-अनुवादः-स्वामी जी का जीवन सभी सम्प्रदायों में सद्भाव का उदाहरण है। क्योंकि ये जाट-जाति में पैदा हुए। परन्तु सिखों के गुरु नानकदेव जी के पुत्र श्रीचन्द्र जी द्वारा चलाये गये उदासी सम्प्रदाय में दीक्षित हुए। (ये) गुरुग्रन्थसाहिब के श्रेष्ठ पाठ करने वाले हुए। ग्यारह वर्ष की साधना से 700 पन्नों वाला सिखों का इतिहास लेखन करवाया। विभाजन के समय प्रवृत्त हिंसा के व्यवहार में घायल या क्षतिग्रस्त हुए मुसलमान भाइयों का उपचार करवाया। सिक्ख, विश्नोई, नामधारी, दशनामी, आर्यसमाजी, जैन आदि के धर्माचार्यों के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किए। जाट-विद्यालय सांगरिया का नाम परिवर्तन कर ग्रामोत्थान विद्यापीठ किया।

व्याकरणिक-बिन्दवः-जनः = जन्- क्त। हिंसाचारे = हिंसा+आचारे (दीर्घ संधि)।

10. स्वामिकेशवानन्दस्य प्रकल्पान् द्रष्टुं सरछोटूरामः, के.एम. पणिक्करः, राजर्षि-पुरुषोत्तमदास-टण्डनः, भूदान-प्रणेता बिनोवा भावे, पं. जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इन्दिरा गांधी, बाबू जगजीवनरामः, श्रीलालबहादुरः शास्त्री, राजा महेन्द्र प्रतापः, महाराजा शार्दूलसिंहः, महाराजा करणीसिंहः, मोहनलालः सुखाड़िया, बरकतुल्ला खाँ, डॉ. वासुदेवशरणः अग्रवालः नैके चान्ये भारतीयाः वैदेशिकाश्च विद्वांसः, शिक्षाविदः, राजनीतिविदः, धर्माचार्याश्च यथावसर संगरिया-विद्यापीठे समायाताः। शिक्षायां, महिला-कल्याणे, दलितोत्थाने च लग्नः स्वामीजी द्विवारं (सन् 1951-1964) संसदः सदस्यः (राज्यसभा) अवर्तत।। सत्यं विलक्षणोऽयमासीत् संन्यासी यः खलु आत्मकल्याणस्य मुवतेः वा मार्गमनादृत्य

“न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग ना पुनर्भवम्।।
कामये दु:ख-तप्तानां प्राणिनामर्तिनाशनम्।।”

इति पन्थानमनुसर जीवनस्य एकोननवतितमे वर्षेऽपि कुर्वन्नेवेह कर्माणि देहल्यां राजमार्गे चरन् वै अनन्त-यात्रायै प्रस्थितः। सत्यमेवोक्तम् – ‘सन्ति सन्तः कियन्तः!

शब्दार्थाः-प्रकल्पान् = निश्चयनम् (संकल्पों को)। प्रणेता = चलाने वाले। नैके = अनेके (अनेक)। लग्नः = लगे हुए। अनादृत्यः = परित्यज्य (त्यागकर)। कामये = इच्छामि (चाहता हूँ)। नापुनर्भव = न मोक्ष को। दुःखतप्तानाम् = दु:खों के कारण सन्तप्त या पीड़ितों का)। पन्थानम् = मार्गम् (मार्ग, सम्प्रदाय)। समायाताः = आगच्छन् (आये)। विदः = ज्ञातार (जानकार)। विलक्षणः = असाधारणः (अनौखा)। एकोनविंशति तमेः = उन्नीससौ में। कियन्तः = कितने!

हिन्दी-अनुवादः-स्वामी केशवानन्द के संकल्प को देखने के लिए सर छोटूराम, के. एम. पणिक्कर, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन, भूदान यज्ञ के निर्माता (संचालक) विनोबा भावे, पं. जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती इन्दिरा गांधी, बाबू जगजीवन राम, श्री लालबहादुर शास्त्री, राजा महेन्द्र प्रताप, महाराजा शार्दूल सिंह, महाराजा कर्णीसिंह, मोहन लाल सुखाड़िया, बरकतुल्ला खाँ, डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल और अनेक दूसरे भारतीय एवं विदेशी विद्वान्, शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ, धर्मों के आचार्य समय-समय पर सांगरिया विद्यापीठ में आये। शिक्षा में महिला कल्याण और दलितों की उन्नति में लगे हुए स्वामी जी दो बार संसद में (राज्यसभा) के सदस्य रहे। सचमुच यह संन्यासी बहुत विलक्षण थे। निश्चित ही जिसने अपने कल्याण अथवा मुक्ति के मार्ग को त्यागकर– “न तो मैं राज्य की कामना करता हूँ, न स्वर्ग और न ही मोक्ष की

(कामना करता हूँ) मैं तो दु:खों से सन्तप्त (पीड़ित) प्राणियों के कष्टों (दु:खों) की समाप्ति चाहता हूँ।” इस प्रकार के मार्ग का अनुसरण करते हुए जीवन के 89वें वर्ष में उन्होंने देहली में कर्म करते हुए, राजमार्ग (सड़क) पर चलते हुए ही अनन्त यात्रा पर प्रस्थान कर गये अर्थात् दिवङ्गत हो गये। सच ही कहा है-सन्त लोग कितने (से) होते हैं? (अर्थात् बहुत ही थोड़े)।

व्याकरणिक-बिन्दवः-द्रष्टुम् = दृश्+तुमुन्। प्रणेता = प्र+नी+तृच्। राजर्षि = राज + ऋषि (गुणसन्धि) दलितोत्थाने = दलित+उत्थाने (गुण संधि) दलितानाम् उत्थाने (षष्ठी तत्पुरुष)। लग्नः = लग् + क्त। मुक्तिः = मुच्-क्तिन्। कुर्वन्नेवेह = कुर्वन् +एव+इह (हल, गुण) कृ+शतृ = कुर्वन् (पु.)।

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