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RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 9 भारत-वैभवम्

May 9, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 9 भारत-वैभवम् is part of RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 9 भारत-वैभवम्.

Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 9 भारत-वैभवम्

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 9 भारत-वैभवम् अभ्यास – प्रश्नाः

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 9 भारत-वैभवम् वस्तुनिष्ठ – प्रश्नाः

1. भारत-वैभवम् इति पाठः कस्माद् ग्रन्थाद् गृहीतः वर्तते
(अ) भारत-भारती
(आ) देवभारती-वैभवम्
(इ) भारत-भारती-वैभवम्
(ई) सुरभारती-वैभवम्

2. ‘वन्दे-नितरां भारत-वसुधाम्’ इत्यस्य रचनाकारः अस्ति
(अ) श्रीजी महाराजः
(आ) श्रीमहेश्वरानन्दगिरिजी महाराजः
(इ) श्रीईश्वरानन्दगिरिजी महाराजः
(ई) श्रीसंवित्सोमगिरिदेवः

3. वीरकदम्बैरतिकमनीयाम् – इत्यत्र कदम्ब-शब्दस्य अर्थोऽस्ति
(अ) वृक्षविशेषः
(आ) पुष्पविशेषः
(इ) समूहः
(ई) वसन्तः

उत्तराणि:

1. (इ)
2. (अ)
3. (इ)

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 9 भारत-वैभवम् लघूत्तरात्मक – प्रश्नाः

प्रश्न 1.
राधासर्वेश्वरशरणः कोऽस्ति? (राधासर्वेश्वर की शरण कौन है?)
उत्तरम्:
राधासर्वेश्वरशरणः श्रीजी महाराजः अस्ति। (राधा सर्वेश्वर की शरण श्रीजी महाराज हैं।)

प्रश्न 2.
‘भारतवसुधाम्’ इत्यस्य पञ्चविशेषणानि कानिचन लिख्यन्ताम्। (‘भारतवसुधाम्’ इसके कोई पाँच विशेषण लिखिए।)
उत्तरम्:
‘भारतवसुधाम्’ इत्यस्य पञ्चविशेषणानि सन्ति

  1. मुनिजनदैवेरनिशं पूज्या
  2. भगवत्लीला धाममयी
  3. अध्यात्मधरित्री
  4. शान्तिवहां
  5. सस्यश्यामला

‘भारत वसुधाम्’ इसके पाँच विशेषण हैं-

  1. मुनिजनों द्वारा निरंतर पूज्य।
  2. भगवान की लीला स्थली।
  3. अध्यात्म की भूमि।
  4. शांति प्रदात्री।
  5. धन्य-धान्य से पूर्ण।

प्रश्न 3.
सन्धि-विच्छेदं कुर्वन्तु- (सन्धि-विच्छेद करें)
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 9 भारत-वैभवम् image 1

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 9 भारत-वैभवम् निबन्धात्मक – प्रश्नाः

प्रश्न 1.
पाठम् अनुसृत्य भारत वसुधायाः महत्वं वर्णयन्तु- (पाठ का अनुसरण करके भारतभूमि का महत्व वर्णन कीजिए-)
उत्तरम्:
भारत-भूमिः मानवैः मुनिभिः देवैः सदैव पूजनीया अस्ति। तस्याः सीमाप्रदेशः सागर-तरङ्गैः शोभितम्। एषा भगवतः कृष्णस्य क्रीडास्थली अस्ति। इयं भूमि: विविधैः तीर्थेः पावना अस्ति। एषा अध्यात्म गौरवपूर्णा च भारतभूमिः शान्ति, लक्ष्मी सुखं च ददाति। एषा सस्य (धन-धान्य) सम्पन्ना, रम्या, निर्मला च। कोटिशः जनाः इमां सेवन्ते। अत्र अनेके वीराः अभवन्। बुधजनाः अस्याः उपासनां कुर्वन्ति। वेदपुराणादयोऽस्यागुणान् सततं गायन्ति। देशभक्तैः सम्पन्नेयं धरा। ना नाविधि रत्नैः मणिभिः स्वर्णेन च समृद्धा।

(भारतभूमि मनुष्यों, मुनियों, देवताओं द्वारा सदैव पूजनीया है। इसका सीमा प्रदेश सागर की लहरों से शोभित है। यह भगवान कृष्ण की क्रीडास्थली है। यह भूमि विभिन्न तीर्थों से पवित्र है। यह अध्यात्म ज्ञान, गौरव से पूर्ण भारतभूमि शान्ति, लक्ष्मी और सुख देती है। यह धन्य-धान्य से सम्पन्न, रम्य और निर्मल है। करोड़ों लोग इसकी सेवा करते हैं। यहाँ अनेक वीर हुए। बुधजन इसकी उपासना करते हैं। वेद-पुराण इसका निरन्तर गुणगान करते हैं। देशभक्तों से सम्पन्न है, यह भूमि विविध प्रकार के रत्नों, मणियों और स्वर्ण से समृद्ध है।

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 9 भारत-वैभवम् अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि

अधोलिखित प्रश्नान् संस्कृतभाषया पूर्णवाक्येन उत्तरत – (नीचे लिखे हुए प्रश्नों का संस्कृत भाषा में पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखिए)

प्रश्न 1.
भारतवसुधा केः सरसा अस्ति?
(भारतभूमि किनसे सरस (पवित्र) है?)
उत्तरम्:
भारतवसुधा दिव्य हिमालय, गङ्गा, सरयू, कृष्णादिनिः नदीभि: शोभिता।
(भारतभूमि दिव्य हिमालय, गंगा, यमुना, सरयू, कृष्णा आदि नदियों से शोभित है।)

प्रश्न 2.
भारतवसुधा केः पूज्या अस्ति?
(भारतभूमि किनके द्वारा पूजनीय है?)
उत्तरम्:
भारतवसुधा मुनिजनदेवैः पूज्या अस्ति।
(भारत भूमि मुनिजनों और देवों के लिए पूज्य है।)

प्रश्न 3.
भारतवसुधायाः सीमा कियत् पर्यन्तम् अस्ति?
(भारत भूमि की सीमा कहाँ तक है?)
उत्तरम्:
भारतवसुधायाः सीमा सागर पर्यन्तम् अस्ति।
(भारत भूमि की सीमा सागर तक है।)

प्रश्न 4.
भारतवसुधा कस्याः धाममयी?
(भारतभूमि किसको केन्द्र है?)
उत्तरम्:
भारतवसुधा भगवल्लीलाया: धाममयी।
(भारतवसुधा भगवतलीला की केन्द्रस्थली है।)

प्रश्न 5.
तीर्थेः अभिरमणीया का?
(तीथों में रमणीय क्या है?)
उत्तरम्:
तीर्थे: अभिरमणीया भारतवसुधा अस्ति।
(तीर्थों में रमणीय भारतभूमि है।)

प्रश्न 6.
अध्यात्मधारिणी का?
(अध्यात्म धारिणी कौन है?)
उत्तरम्:
अध्यात्मधारिणी भारत वसुधा।
(अध्यात्म धारिणी भारतभूमि है।)

प्रश्न 7.
भारतवसुधा किं किं ददाति?
(भारत भूमि क्या-क्या देती है?)
उत्तरम्:
भारतवसुधा शान्ति, लक्ष्मी सुखं च ददाति।
(भारतभूमि शान्ति, लक्ष्मी और सुख प्रदान करती है।)

प्रश्न 8.
का श्रीवरदा?
(लक्ष्मी देने वाली कौन है?)
उत्तरम्:
भारतवसुधा श्रीवरदा।
(भारतभूमि लक्ष्मी देने वाली है।)

प्रश्न 9.
सस्यश्यामला का?
(धन-धान्यपूर्ण कौन है?)
उत्तरम्:
भारतवसुधा सस्यश्यामला।
(भारतभूमि धन-धान्यपूर्ण है।)

प्रश्न 10.
कीदृशी भारतवसुधा मुदिता?
(कैसी भारतभूमि प्रसन्न है?)
उत्तरम्:
कोटि-कोटिजन सेविता भारतधरां मुदिता।
(करोड़ों मनुष्यों के द्वारा सेवा की जाती हुई भारतभूमि प्रसन्न है।)

प्रश्न 11.
भारतवसुधा के कमनीया?
(भारतभूमि किनके द्वारा सुन्दर है?)
उत्तरम्:
भारतवसुधा वीर कदम्बैः कमनीया।
(भारतभूमि वीरों के समूहों के द्वारा सुन्दर है।)

प्रश्न 12.
सुधीजनैः को परमोपास्या?
(सुधीजनों द्वारा परम उपास्य क्या है?)
उत्तरम्:
सुधीजनैः भारतवसुधा परमोपास्या।
(सुधीजनों द्वारा भारत भूमि परम उपास्य है।)

प्रश्न 13.
भारतधरायाः गुणान् के गायन्ति?
(भारतभूमि के गुणों का गान कौन करते हैं?)
उत्तरम्:
वेदपुराणादयः भारतधरायाः गुणान् गायन्ति।
(वेद-पुराण आदि भारत भूमि के गुणों को गाते हैं।)

प्रश्न 14.
भव्या भारत-भूमि केः ईड्या?
(भव्य भारतभूमि किनसे सम्पन्न है?)
उत्तरम्:
भव्या भारतभूमिः राष्ट्रसुभक्तैः ईड्या अस्ति?
(भव्य भारत भूमि राष्ट्रभक्तों से सम्पन्न है।)

प्रश्न 15.
नानारत्नैः मणिभिः युक्ताः का?
(अनेक रत्नों और मणियों से युक्त कौन है?)
उत्तरम्:
नानारत्नैः मणिभिः युक्ता भारतवसुधा।
(अनेक रत्नों और मणियों से युक्त भारतभूमि है।)

प्रश्न 16.
हरिपदैः का पावना?
(हरिचरणों से पवित्र कौन है?)
उत्तरम्:
भारतवसुधा हरिपदैः पावना।
(भारतभूमि भगवान के चरणों से पवित्र है।)

प्रश्न 17.
हिरण्यरूपा का उक्ता?
(हिरण्यरूपा किसको कहा गया है?)
उत्तरम्:
हिरण्यरूपा भारतवसुधा उक्ता।
(हिरण्य रूपा भारतवसुधा को कहा गया है।)

प्रश्न 18.
‘वन्देमातरम्’ गीतम् केन लिखितम्?
(‘वन्देमातरम्’ गीत किसने लिखा?)
उत्तरम्:
वन्देमातरम् गीतं वङ्किमचन्द्रेण लिखितम्।
(‘वन्देमातरम्’ गीत बंकिमचन्द्र ने लिखा।)

स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत्। – (मोटे पदों को आधार मानकर प्रश्न निर्माण कीजिए।)

1. कविः श्रीजी महाराज: भारतवसुधाम् वन्दते। (कवि श्रीजी महाराज भारतवसुधा की वन्दना करते हैं?)
उत्तरम्:
कविः श्रीजी महाराज़: काम् वन्दते? (कवि श्रीजी किसकी वन्दना करते हैं?)

2. मुनिजनैः अनिशं पूज्या? (मुनिजनों द्वारा नित्य पूज्य है?)
उत्तरम्:
के: अनिशं पूज्या? (किनके द्वारा नित्य पूज्य है?)

3. भारतधरा तीर्थेः रमणीया। (भारतभूमि तीर्थों से रमणीय है।)
उत्तरम्:
का तीर्थेः रमणीया? (तीर्थों से रमणीय क्या है?)

4. भारतधरा भव्या अस्ति? (भारत भूमि भव्य है?)
उत्तरम्:
भारतधरा कीदृशी अस्ति। (भारत भूमि कैसी है।)

5. भारतवसुधा गौरवपूर्णा। (भारतवसुधा गौरव से पूर्ण है।)
उत्तरम्:
भारतवसुधा केन पूर्णा अस्ति? (भारतभूमि किससे पूर्ण है?)

6. राधासर्वेश्वरणोऽहं वारं वारं वन्दते स्याम्। (राधा सर्वेश्वरण मैं बार-बार वन्दना करता हूँ।)
उत्तरम्:
कः वारं वारं वन्दते याम्। (कौन वार-वारे वन्दना करता है?)

7. ‘भारत-भारती वैभवम्’ गीतिकाव्यम् अस्ति? (‘भारत-भारती वैभवम्’ गीतिकाव्य है।)
उत्तरम्:
भारत-भारती वैभवम् कीदृशं काव्यम्? (भारत-भारती वैभम् कैसा काव्य है?)

8. ‘भारत-भारती वैभवम्’ गीतिकाव्ये गकारत्रयी वर्णिता?
उत्तरम्:
‘भारत-भारत वैभवम्’ गीतिकाव्ये कानि गकार वर्णिता?

पठ-परिचयः
यह पाठ ‘भारत-भारती-वैभवम्’ नाम के ग्रन्थ से संकलित है। इस महान ग्रन्थ के रचनाकार निम्बार्काचार्य की गद्दी के अधीश्वर श्रीराधा सर्वेश्वर शरणदेव आचार्य श्रीजी महाराज हैं। भारतभूमि, भारत भारती और संस्कृत भाषा का वन्दना युक्त यह सुन्दर गीतिकाव्य है। जहाँ ‘गोता-गङ्गा और गौ’ इस प्रकार ये तीन गकार भी अच्छी तरह वर्णित हैं। यहाँ पर संग्रहीत इस ग्रन्थ को छोटा-सा अंश ही इतना कलात्मक, सर्वाङ्ग सुन्दर और मधुर है कि वंकिमचन्द्र का ‘वन्देमातरम्’ गीत को अनायास स्मरण करता है।

मूलपाठ, अन्वय, शब्दार्थ, हिन्दी-अनुवाद तथा सप्रसंग संस्कृत व्याख्या

1. वन्दे नितरां भारतवसुधाम्।
दिव्यहिमालय-गङ्गा-यमुना-सरयू-कृष्णाशोभितसरसाम्।

अन्वयः-अहं दिव्य हिमालय-गङ्गा-यमुना-सरयू-कृष्णा शोभित सरसाम् भारत वसुधां नितरां वन्दे।

शब्दार्थाः-नितराम् = सततम् (निरन्तर)। सरसाम् = पावनतमाम् (पवित्रतम्) वन्दे = अभिवादये (अभिवादन करता हूँ)। शोभितसरसाम् = सुशोभित और सरस को।

हिन्दी-अनुवादः-(मैं) सुन्दर गिरिराज हिमालय, गंगा, यमुना, सरयू और कावेरी से पवित्र भारत भूमि को निरन्तर
अभिवादन (वन्दना) करता हूँ।

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-गीतमिदम् अस्माकम् ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘भारतवैभवम्’ इति पाठात् उद्धृतः। गीतमिदम् मूलतः ‘श्रीजी’ विरचितात् ‘भारत-भारती-वैभवम्’ इति ग्रन्थात् सङ्कलितः। गीते अस्मिन् कविः पावनं भारतम् अभिवादयति (यह गीत हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक.के ‘भारत-वैभवम्’ पाठ से लिया गया है। यह गीत मूलत: श्रीजी रचित ‘ भारत- भारती-वैभवम् ग्रन्थ से संकलित है। इस गीत में कवि पवित्र भारत की वन्दना करता है-)

व्याख्याः-अहं ‘श्रीजी महाराजः परमदिव्य हिमालय नाम्ना नगाधिराजेन पुनश्च भागीरथी, कालिन्दनन्दिनी, वासिष्ठी, कावेरी प्रभृतिभिः नदीभिः शोभायमानां पावनतमाम् भारतभूतिम् सततम् अभिवादये।

(मैं श्रीजी महाराज परम दिव्य हिमालय नाम के पर्वतराज से और फिर गंगा, यमुना, सरयू, कावेरी आदि नदियों से सुशोभित पवित्रतम् भारतं भूमि का निरन्तर अभिवादन करता हूँ।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-दिव्यहिमालयः = दिव्यः च असौ हिमालयः। (कर्मधारय समास) कृष्णाशोभित = कृष्णया शोभित। (तृतीया तत्पुरुष समास)।

2. मुनिजनदेवैरनिशं पूज्यां जलधितरङ्गरञ्चितसीमाम्।
भवगल्लीला-धाममयीं तां नाना तीर्थैरभिरमणीयाम्।

अन्वयः-अनिशं मुनि-जनैः पूज्याम्, जलधि-तरङ्गैः अञ्चित-सीमाम्, भगवत: लीलायाः धामपयीम्, नाना तीर्थेः अभिरमणीयाम् ताम् (भारतवसुधाम्) अहं वन्दे)।

शब्दार्था:-मुनिजनदेवैरनिशम् = नित्यम् मुनि समूहैः, नरैः, सुरैः च (सदैव मुनियों के समूहों, मानवों और देवताओं द्वारा) पूज्याम् = पूजनीयाम् (पूजने योग्य) जलधितरङ्गैः = सागरस्य वीचिभिः (समुद की लहरों से) अञ्चितसीमाम् = परिशोभित प्रान्तभागाम् (सुशोभित है सीमान्त क्षेत्र जिसका) भगवल्लीला धाममयीम् = भगवतः क्रीडास्थली (भगवान की क्रीडास्थली स्वरूपा) नानातीर्थैरभिरमणीयाम् = विविधे: तीर्थस्थलैः अति मनोहराम् (विविध तीर्थस्थलों से अत्यन्त मनोहर) ताम् = भारतवसुधाम् (उस भारतभूमि की) अहं वन्दे = मैं वन्दना करता हूँ।

हिन्दी-अनुवादः-नित्य (दिन रात) मुनिजनों द्वारा पूजने योग्य, सागर की लहरों से सुशोभित प्रान्त भाग (सीमा) वाली, भगवान् (श्रीकृष्ण) की लीलाओं/क्रीड़ाओं) की स्थली (और जो) विविध तीर्थों के कारण मनोहर है (ऐसी उस भारत-भूमि की मैं वन्दना करता हूँ।)

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-पद्यांशोऽयम् अस्माकम् ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘भारतवैभवम्’ इति पाठात् उद्धृतः। मूलतोऽयं। पाठः ‘श्रीजी’-महाराज: विरचितात् ‘भारत-भारती-वैभवम्’ इति ग्रन्थात् सङ्कलितः। गीतेऽस्मिन् कविः भारतभूमेः महीयताम्। वर्णयन् कथयति-

(यह पद्यांश हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘भारत-वैभवम्’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पद्यांश श्रीजी रचित भारत-भारती-वैभवम्’ ग्रन्थ से संकलित है। इस गीत में कवि भारत-भूमि की महानता का वर्णन करता है-)

व्याख्याः-नित्यमेव या मुनिभिः मानवैः सुरवृन्दैः पूजनीया, अस्ति, या सागरवीचिभिः परिशोभित प्रान्त भागास्टि, या भगवतः श्रीकृष्णस्य क्रीडास्थली भूता या विविध तीर्थस्थलैः मनोहरा अस्ति तां भारत-भूमिम् अहम् अभिवादयामि।

(सदैव जो मुनियों, मानवों और देवों के समूहों द्वारा पूजनीया है, जो समुद्र की लहरों से सुशोभित सीमा वाली है, जो भगवान श्रीकृष्ण की क्रीडास्थली स्वरूपा है। उस भारत भूमि का मैं अभिवादन करता हूँ।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-मुनिजनदेवैः = मुनयश्च जनाश्च देवाश्च तैः च (द्वन्द्व)। पूज्या = पूज्+ण्यत्। जलधितरङ्गरञ्चितः सीमाम् = जलधेः तरङ्गैः अञ्चितं सीमा यस्या सा (बहुव्रीहि समास) भगवल्लीला = भगवत्+लीला (हल् संधि) भगवतः लीला (षष्ठी तत्पुरुष)।

3. अध्यात्मधरित्रीं गौरवपूर्णा शान्तिवहां श्री-वरदां सुखदाम्।
सस्यश्यामलां कलिताममलां कोटि-कोटिजनसेवितमुदिताम्।

अन्वयः-अध्यात्म (विद्या) धरित्रीम्, गौरव-पूर्णाम्, शान्तिवहां, श्री वरदाम्, सुखदाम् सस्यश्यामलाम्, कलिताम्, अमलाम्, कोटि कोटि जन सेवितं मुदिताम् भारत वसुधाम् अहं वन्दे।

शब्दार्थाः-अध्यात्मधरित्रीम् = अध्यात्म विद्यायाः धरणीयम् (अध्यात्म विद्या की धरती)। गौरवपूर्णाम् = महत्वपूर्णाम् (गौरवमयी)। शान्तिवहाम् = शान्तिप्रदाम्। श्रीवरदाम् = लक्ष्मी प्रदाम् (लक्ष्मी प्रदान करने वाली)। सुखदाम् = सुखप्रदायिनीम् (सुख देने वाली)। सस्यश्यामलाम् = धनधान्य परिपूर्णाम् (धनधान्य से भरपूर)। कलिताम् = ललिताम् अर्थात् सुन्दरताम् (अति सुन्दर)। अमलाम् = निर्मलाम् (स्वच्छ)। कोटि-कोटि जन सेवितमुदिताम् = असंख्यजन निस्सेवनेन सुसभलाम् (असंख्य लोगों द्वारा सेवन किया जाने से सुसम्पन्न)।

हिन्दी-अनुवादः-अध्यात्म विद्या की धरा, गौरव से परिपूर्ण, शान्ति प्रदान करने वाली, लक्ष्मी प्रदान करने वाली, सुख देने वाली, धन-धान्य से परिपूर्ण, सुन्दर निर्मल तथा करोड़ों-करोड़ों लोगों के द्वारा सेवा से प्रसन्नचित्त हुई भारत की भूमि की। मैं वन्दना करता हूँ।

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-पद्यांशोऽयम् अस्माकम् ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘भारत-वैभवम्’ इति पाठात् उद्धृतः। गीतमिदम् मूलत: ‘ श्रीजी महाराज-विरचितात् ‘भारत-भारती-वैभवम्’ इति ग्रन्थात् सङ्कलितः। पद्येऽस्मिन् कविः भारतभूमेः वैशिष्ट्यम्। वर्णयति।

(यह गीत हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘भारत-वैभवम्’ पाठ से लिया गया है। यह गीत मूलत: श्रीजी रचित ‘भारत-भारती-वैभवम्’ ग्रन्थ से संकलित है। इस गीत में कवि पवित्र भारत की वन्दना करता है-)

व्याख्याः-इयं भारतभूमिः अध्यात्म विद्यायाः केन्द्रभूमिः, गौरवेन परिपूर्णा महत्वपूर्णानां, शान्तिं प्रददाति, लक्ष्मी वैभवं च ददाति सुखः प्रददाति, शांतिं वितरति प्रददाति वा, धनैः धान्यैः च परिपूर्णा ललिता सुन्दरतमा च अस्ति। एषा भूमि: निर्मलाः असंख्य-जनानां निस्सेवनेन सुप्रसन्ना अस्ति। अहम् एतादृशीं भारत वसुन्धराम् सततम् अभिवादयामि।

(यह भारत भूमि अध्यात्म विद्या की केन्द्र भूमि है, गौरव से परिपूर्ण या महत्वपूर्ण है। शान्ति प्रदान करने वाली है, लक्ष्मी देती है, सुख प्रदान करती है, धनधान्य से भरपूर सुन्दरतम है। यह भूमि निर्मल तथा असंख्य लोगों द्वारा सेवित होने से प्रसन्न है। ऐसी भारतभूमि को मैं निरन्तर अभिवादन करता हूँ।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-गौरवपूर्णा = गौरवेण पूर्णाया सा (तृतीया बहुव्रीहि) सुखदाम् = सुखं ददाति या सा ताम् च (बहुव्रीहि) मुदिता = मुद् + क्त।

4. वीरकदम्बैरतिकमनीयां सुधीजनैश्च परमोपास्याम्।
वेद-पुराणैर्नित्यसुगीतां राष्ट्रसुभक्तैरीड्यां भव्याम्।

अन्वयः-वीर-कदम्बैः अति कमनीयाम्, सुधी-जनैः च परम् उपास्याम्, वेदैः पुराणैः च नित्य सुगीताम्, राष्ट्र सुभक्तैः ईड्याम् भव्याम् तां भारत वसुन्धराम् अहं अभिवादयामि।

शब्दार्थाः-वीरकदम्बैरति कमनीयाम् = वीराणां पुरुषाणां समूहै: सुमनोहराम् (वीर पुरुषों के समूह से अति सुन्दर या मन को हरण करने वाली) सुधीजनैः = बुध जनैः (बुद्धिमान लोगों द्वारा) परमोपास्याम् = परिसेव्याम् (सभी ओर या प्रकार से सेवा करने योग्य) वेद-पुराणैर्नित्य सुगीताम् = निगमागमशास्त्रैः प्रगीयमानाम्, प्रशंसिताम् (वेदों और पुराणों द्वारा प्रशंसित)। राष्ट्र-सुभक्तैः रीड्याम् = (देशभक्त: संस्तुताम्) राष्ट्रभक्तों के समृद्ध। भव्याम् = विशालाम् (विशाल)।

हिन्दी-अनुवादः-शूरवीरों के समूहों से अतिशोभित, बुद्धिमान लोगों द्वारा सब प्रकार से सेवा करने योग्य या उपासना करने योग्य, वेदों और पुराणों द्वारा सदैव प्रशंसित, राष्ट्रभक्तों से समृद्ध वा स्तुति करने योग्य विशाल उस भारत-भूमि को मैं निरन्तर अभिवादन करता हूँ।

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या।
प्रसङ्गः-पद्यांशोऽयम् अस्माकम् ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘भारतवैभवम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं ‘श्रीजी’ -विरचितात् ‘भारत-भारती-वैभवम्’ इति ग्रन्थात् सङ्कलितः। अस्मिन् पद्यांशे कविः भारतभूमेः वैशिष्ट्यं वर्णयति।

(यह पद्यांश हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘भारत-वैभवम्’ पाठ से लिया गया है। इस पद्यांश में कवि भारत के वैशिष्ट्य का वर्णन करता है।)

व्याख्याः-वीराणां पुरुषाणां समूहैः सुमनोहराम् बुधजनैः परिसेव्याम्, निगमागमैः पुराणेश्च प्रशसिताम् देशभक्तै: सम्पन्नां संस्तुत्यां वा विशाल भारतभूमिम् अहम् नमामि।

(वीर पुरुषों के समूहों से सुशोभित, बुद्धिमान लोगों द्वारा सब प्रकार से सेवा करने योग्य, निगमागम और पुराणों द्वारा प्रशंसित, देशभक्तों से समृद्ध संस्तुत्य या परिपूर्ण विशाल भारतभूमि को मैं प्रणाम करता हूँ।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-वीरकदम्बै = वीराणां कदम्बैः (षष्ठी तत्पुरुष) परमोपास्याम् = परमाच असौ उपास्याताम् च (कर्मधारय)।

5. नानारत्नैर्मणिभिर्युक्तां हिरण्यरूपां हरिपदपुण्याम्।
राधासर्वेश्वरशरणोऽहं वारं वारं वन्दे रम्याम्।

अन्वयः-नाना रत्नैः मणिभिः युक्ताम्, हिरण्यरूपां हरिपदपुण्याम्, राधासर्वेश्वर शरणोऽहं वारं वारं रम्याम् (भारत वसुधा) वन्दे।

शब्दार्थाः-नानारत्नैर्मणिभिर्युक्ताम् = मुक्ता, माणिक्य प्रवालादि विविधरत्नैः मणिभिश्च भरिताम् (मोती, माणिक्य मुँगा आदि विविध रत्नों और मणियों से परिपूर्ण)। हिरण्यरूपाम् = स्वर्ण स्वरूपाणाम् (सोने जैसे रूप वाली)। हरिपदपुण्याम् = भगवञ्चरण समलङ्कृताम् अत एव पुण्याम् (भगवान के चरणों से शोभित या अलंकृत अतः पवित्र एवं पुण्यमयी)। रम्याम् = परममनोहराम् (अत्यन्त मनोहर)। हिन्दी-अनुवादः-अनेकों मोती, माणिक्य, मुँगा आदि विविध रत्नों और मणियों से परिपूर्ण, स्वर्णस्वरूपा, भगवान के चरणों के रखने से पवित्र परम मनोहर (उस भारत वसुधा को) राधा सर्वेश्वर की शरण में गया मैं (ग्रन्थकार) बार-बार प्रणाम करता हूँ।

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-पद्यांशोऽयम् अस्माकम् ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘भारतवैभवम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पद्यांशोऽयम् ‘श्रीजी महाराज-विरचितात् ‘भारत-भारती-वैभवम्’ इति ग्रन्थात् सङ्कलितः। अत्र कविः भारतस्य समृद्धयतां वर्णयन् कथयति

(यह पद्यांश हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘भारतवैभवम्’ पाठ से लिया गया है। यह गीत मूलतः श्रीजी महाराज रचित ‘भारत-भारती-वैभवम्’ ग्रन्थ से संकलित है। इस पद्य में कवि भारत की समृद्धि का वर्णन करते हुए कहता है-)

व्याख्याः-मुक्तां-माणिक्यप्रवालादिभि: विविधै रत्नैः मणिभिश्च भरिताम् स्वर्णस्वरूपाम् भगवतः चरणैः समलङ्कृताम् अत: पुण्याम्, रम्याम् च भारतभूमिम् राधा सर्वेश्वरशरणः अहं ग्रन्थकारः पुन्यः पुनः नमामि।

(मोती, माणिक्य, मूंगा आदि विविध रत्नों द्वारा और मणियों से भरपूर, स्वर्णस्वरूपा, भगवान के चरणों से अलंकृत अतः पावन और रम्य भारत भूमि की राधा सर्वेश्वर की शरण में गया मैं ग्रन्थकार बार-बार नमस्कार करता हूँ।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-रम्याम् = रम्+यत् (द्वि.ए.व.) हरिपदपुण्याम् = हरे: पदैः पुण्याम् (षष्ठी एवं तृतीया तत्पुरुष)।

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