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RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः

May 6, 2019 by Fazal 1 Comment

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः is part of RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः.

Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः

[नोट- पाठ्यक्रमानुसार इस अध्याय में अव्ययीभाव, कर्मधारय एवं द्वन्द्व समास का अध्ययन ही अपेक्षित है। तथापि पाठ्यपुस्तक में दिए गए इनके अलावा तत्पुरुष, द्विगु एवं बहुव्रीहि समासों को भी यहाँ छात्रों के अतिरिक्त ज्ञानार्जन के लिए दिया गया है।]

समासशब्दस्य व्युत्पत्तिः – सम् उपसर्गपूर्वकात् अर्से (अस्) धातोः घजि प्रत्यये कृते ‘समासः’ इति शब्दो निष्पद्यते । अस्य अर्थः संक्षिप्तीकरणमिति अस्ति। (‘सम्’ उपसर्गपूर्वक ‘अस्’ धातु से ‘ धजि’ प्रत्यय करने पर ‘समास’ शब्द निष्पन्न होती है। इसका अर्थ ‘संक्षिप्तीकरण’ है।)

समासस्य परिभाषा- संमसनं समासः अथवा अनेकपदानाम् एकपदीभवनं समासः अर्थात् यदा अनेकपदानि मिलित्वा एकपदं जायन्ते तदा सः समासः इति कथ्यते । यथा- सीतायाः पति = सीतापतिः। अत्र सीतायाः पतिः इति पदद्वयं मिलित्वा एकपदं (सीतापति:) जातम् अत: अयमेव समासः अस्ति। (संक्षिप्तीकरण समास है अथवा अनेक पदों का एक पद होना समास है। अर्थात् जब अनेक पद मिलकर एक पद निर्मित करते (बनाते हैं, तब वह समास कहा जाता है। जैसे- सीतायाः पतिः (सीता का पति)= सीतापतिः। यहाँ “सीतायाः पतिः” ये दो पद मिलकर एक पद (सीतापति:) बना। अत: यह ही समास है।)

समासे जाते अर्थे किमपि परिवर्तनं न भवति। योऽर्थः ‘सीतायाः पतिः’ इत्सस्य विग्रहवाक्यस्य अस्ति सः एव अर्थ: ‘सीतापतिः’ इत्यस्य समस्तशब्दस्य अस्ति। (समास बनने पर अर्थ में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है जो अर्थ ‘सीतायाः पतिः इस विग्रहवाक्य का है वह ही अर्थ ‘सीतापतिः’ इस समस्त शब्द का है।)

पूर्वोत्तरविभक्तिलोपः – सीतायाः पतिः = सीतापतिः। अस्मिन् विग्रहे सीतायाः इत्यत्र षष्ठीविभक्तिः, पतिः इत्यत्र प्रथमाविभक्तिश्च श्रूयेते। समासे कृते अनयोः द्वयोरपि विभक्तयोः लोपो भवति । तत्पश्चात् ‘सीतापति’ इति समस्तशब्दात् पुनरपि प्रथमाविभक्तिः क्रियते इत्येव सर्वत्र अवगन्तव्यम्। (सीतायाः पतिः = सीतापतिः। इस विग्रह में सीतायाः’ इसमें षष्ठी विभक्ति है, ‘पतिः’ इसमें प्रथमाविभक्ति सुनाई देती है। समास करने पर इन दोनों विभक्तियों का लोप होता है। तत्पश्चात् ‘सीतापति’ इस समस्त शब्द से पुन: प्रथमा विभक्ति की जाती है जिसे सभी जगह अर्थात् सम्पूर्ण समस्त ब्द में जानना चाहिए।)
समासयुक्तः शब्दः समस्तपदं कथ्यते । यथा- ‘सीतापतिः’ इति समस्तपदम्। समस्तशब्दस्य अर्थं बोधयितुं यद् वाक्यम् । उच्यते तद्वाक्यं विग्रहः इति कथ्यते । यथा सीतायाः पतिः इति वाक्यं विग्रहः अस्ति। (समासयुक्त शब्द समस्त पद कहा जाता है। जैसे ‘सीतापतिः’ यह समस्तपद है। समस्त शब्द का अर्थ जानने के लिा जो वाक्य बोला जाता है वह वाक्य ‘विग्रह’ कहा जाता है। जैसे- ‘सीतायाः पतिः’ यह वाक्य विग्रह है।)

समासस्यभेदाः – संस्कृतभाषायां समासस्य मुख्यरूपेण चत्वारः भेग: सन्ति । समासे प्रायशः द्वे पदे भवतः- पूर्वपदम् उत्तरपदम् व। पदस्य अर्थः पदार्थ: भवति । यस्य पदार्थस्य प्रधानता भवति तदनुरूपेण एव समासस्य संज्ञा अपि भवति । यथा प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधान: अव्ययीभावः भवति । प्रायेण उत्तरपदार्थप्रधान: तत्पुरुषः भवति। तत्पुरुषस्य भेद: कर्मधारयः भवति। कर्मधारस्य भेद द्विगु भवति। प्रायेण अन्यपदार्थप्रधान बहुव्रीहिः भवति । प्रायेण उभयपदार्थप्रधान: द्वन्द्वः भवति । एवं समासस्य सामान्यरूपेण षड्भेदाः भवन्ति। (संस्कृतभाषा में समास के मुख्य रूप से चार भेद हैं। समास में प्राय: दो पद होते हैंपूर्वपद और उत्तरपद। पद का अर्थ पदार्थ होता है। जिस पदार्थ की प्रधानता होती है उसी के अनुसार ही समास की संज्ञा (नाम) भी होती है। जैसे प्रायः पूर्व पदार्थ प्रधान ‘अव्ययीभाव’ होता है। प्रायः उत्तर पदार्थ प्रधान ‘तत्पुरुष’ होता है। तत्पुरुष का भेद कर्मधारय होता है। कर्मधारय का भेद द्विगु’ होता है। प्रायः अन्य पदार्थ प्रधान ‘बहुव्रीहि’ होता है। प्राय: उभयपदार्थ प्रधान ‘द्वन्द्व होता है। इस प्रकार सामान्य रूप से समास के छः भेद होते हैं।)

1. अव्ययीभावसमासः
यदा विभक्ति, समीप इत्यादिषु अर्थेषु वर्तमानम् अव्ययपदं सुबन्तेन सह नित्यं समस्यते तदा असौ अव्ययीभावसमासो भवति । अथवा इदमत्र अवगन्तव्यम्- (जब विभक्ति, समीप-इत्यादि अर्थों में वर्तमान अव्यय पद सुबन्त के साथ नित्य समास होता है तब यह अव्ययीभाव समास होता है। अथवा इसको इस प्रकार जानना चाहिए-)

  1. अस्य समासस्य प्रथमशब्दः अव्ययं द्वितीयश्च संज्ञाशब्दो भवति। (इस समास का प्रथम शब्द अव्यय और द्वितीय संज्ञा शब्द होता है।)
  2. अव्ययशब्दार्थस्य अर्थात् पूर्वपदार्थस्य प्रधानता भवति । (अव्यय शब्द के अर्थ की अर्थात् पूर्व पदार्थ की प्रधानता होती है।)
  3. समासस्य पदद्वयं मिलित्वा अव्ययं भवति । (समास के दो पद मिलकर अव्यय होता है।)
  4. अव्ययीभावसमासः नपुंसकलिङ्गस्य एकवचन भवति । यथा- (अव्ययीभाव समास नपुंसकलिङ्ग के एकवचन में होता है।)

ध्यातव्यम्- (अ) ”यथा विभक्ति, समीप-इत्यादिषु” से तात्पर्य है
1. विभक्ति, 2. समीप, 3. समृद्धि, 4. समृद्धि का नाश 5. अभाव 6. नाश 7. अनुचित 8. शब्द की अभिव्यक्ति 9. पश्चात् 10. यथा 11. क्रमशः 12. एकदम 13. समानता 14. सम्पत्ति 15. सम्पूर्णता 16. अन्त तक। इन सोलह में वर्तमान अव्यय का सुबन्त के साथ नित्य समास होता है।

(ब) नित्यसमास- प्रायः जिस समास का विग्रह न हो उसे ‘नित्यसमास’ कहते हैं। अथवा प्रायः जिसका अपने पदों से विग्रह नहीं होता अर्थात् जिन शब्दों का समास हुआ हो उन शब्दों के द्वारा जिसका विग्रह न हो, वह नित्यसमास’ होता है।
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 1

अन्य उदाहरणानि
अव्ययपदम् ‘उप’, अव्ययस्यार्थ = समीपम् (प्रथम पद में षष्ठी विभक्ति)
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 2

अव्ययपदम् ‘अनु’, अव्ययस्यार्थ = पश्चात्, योग्यम् (प्रथम पद में षष्ठी विभक्ति)
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 3

अव्ययपदम् ‘प्रति’, अव्ययस्यार्थ = वीप्सा अर्थे (उत्तर पद को दो बार, प्रथम पद में द्वितीया/सप्तमी विभक्ति)
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अव्ययपदम् ‘निर्’, अव्ययस्यार्थ = अभावार्थे (प्रथम पद में षष्ठी विभक्ति)
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अव्ययपदम् यथा’, अव्ययस्यार्थ = अनतिक्रम्य
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अव्ययपदम् ‘स’, अव्ययस्यार्थ = सहितम् (प्रथम पद में तृतीया विभक्ति)
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2. तत्पुरुषसमासः

तत्पुरुषसमासे प्रायेण उत्तरपदार्थस्य प्रधानता भवति । यथा- राज्ञः पुरुषः – राजपुरुषः। अत्र उत्तरपदं पुरुषः अस्ति, तस्य एव प्रधानता अस्ति। ‘राजपुरुषम् आनय’ इति उक्ते सति पुरुषः एव आनीयते न तु राजा । तत्पुरुषसमासे पूर्वपदे या विभक्तिः भवति, प्रायेण तस्याः नाम्ना एव समासस्य अपि नाम भवति । यथा– (तत्पुरुष समास में प्रायः उत्तरपदार्थ की प्रधानता होती है। जैसे- राज्ञः पुरुष ‘राजपुरुषः’ यहाँ उत्तरपद ‘पुरुष’ है उसकी ही प्रधानता है। ‘राजपुरुष आनय’ यह बोलने पर पुरुष ही लाया जाता है न कि राजा। तत्पुरुष समास में पूर्वपद में जो विभक्ति होती है, प्राय: उसका नाम ही समास का नाम भी होता है। जैसे-)
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 9

3. कर्मधारयसमासः

यदा तत्पुरुषसमासस्य द्वयोः पदयोः एकविभक्तिः अर्थात् समानविभक्तिः भवति तदा सः समानाधिकरणः तत्पुरुषसमासः कथ्यते। अयमेव समासः कर्मधारयः इति नाम्ना ज्ञायते । अस्मिन् समासे साधारणतया पूर्वपदं विशेषणम् उत्तरपदञ्च विशेष्यं भवति यथा- नीलम् कमलम् = नीलकमलम् ।

  1. अस्मिन् उदाहरणे नीलम् कमलम् इति द्वयोः पदयोः समानविभक्तिः अर्थात् प्रथमा विभक्तिः अस्ति।
  2. अत्र नीलम् इति पदं विशेषणम् कमलम् इति पदञ्च विशेष्यम्। अत एव अयं कर्मधारयः समासः अस्ति।

(कर्मधारय समास – जब तत्पुरुष समास के दोनों में एक विभक्ति अर्थात् समान विभक्ति होती है तब वह समानाधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है। यही समास ‘कर्मधारय’ इस नाम से जाना जाता है। इस समास में साधारणतया पूर्व पद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है जैसे-नीलम् कमलम्=नीलकमलम् ।।

  1. इस उदाहरण में ”नीलम् कमलम्” इन दो पदों में समान विभक्ति है। अर्थात् प्रथमा विभक्ति है।
  2. यहाँ ‘नीलम्’ यह पद विशेषण और ‘कमलम्’ यह पद विशेष्य है। इसलिए यह कर्मधारय समास है।) इसके उदाहरण निम्नलिखित हैं

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 10 a
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 10 b

4. द्विगु समासः

1. ‘संख्यापूर्वो द्विगुः’ इति पाणिनीयसूत्रानुसारं यदा कर्मधारयसमासस्य पूर्वपदं संख्यावाची उत्तरपदञ्च संज्ञावाची भवति तदा सः ‘द्विगुसमासः’ कथ्यते ।।
2. अयं समासः प्रायः समूहार्थे भवति।
3. समस्तपदं सामान्यतया नपुंसकलिङ्गस्य एकवचने अथवा स्त्रीलिङ्गस्य एकवचने भवति ।
4. अस्य विग्रहे षष्ठीविभक्तेः प्रयोगः क्रियते । यथा –

द्विगु समास
1. “संख्यापूर्वो द्विगुः’ इस पाणिनीय सूत्रानुसार जब कर्मधारय समास का पूर्वपद संख्यावाची और उत्तरपद संज्ञावाची होता है तब वह द्विगु समास कहा जाता है।
2. यह समास प्रायः समूह के अर्थ में होता है।
3. समस्त पद सामान्यतया नपुंसकलिङ्ग के एकवचन में अथवा स्त्रीलिङ्ग के एकवचन में होता है।
4. इसके विग्रह में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 11

5. बहुव्रीहिंसमासः

समासे यदा अन्यपदार्थस्य प्रधानता भवति तदा सः बहुव्रीहिसमासः कथ्यते। अर्थात् अस्मिन् समासे न तु पूर्वपदार्थस्य प्रधानता भवति न हि उत्तरपदार्थस्य प्रत्युतः द्वौ अपि पदार्थो मिलित्वा अन्यपदार्थस्य बोधं कारयत:। समस्तपदस्य प्रयोगः अन्यपदार्थस्य विशेषणरूपेण भवति। यथा-‘पीतम्’ ‘अम्बर’ यस्य सः= पीताम्बरः (विष्णुः) ।

अत्र पीतम् तथा च अम्बरम् इत्यनयो: पदयो: अर्थस्य प्रधानता नास्ति अर्थात् ‘पीला वस्त्र’ इत्यर्थस्य ग्रहणं न भवति प्रत्युत उभौ पदार्थों तु मिलित्वा अन्यपदार्थस्य अर्थात् ‘विष्णुः’ इत्यस्य बोधं कारयत: अर्थात् पीताम्बरः इति समस्तपदस्यार्थः ‘विष्णुः अस्ति अत एव अत्र बहुव्रीहिसमासः अस्ति।

अस्य अन्यानि उदाहरणानि अधोलिखितानि सन्ति । यथा

(बहुव्रीहिसमास – समास में जब अन्य पदार्थ की प्रधानता होती है तब वह बहुव्रीहि समास कहा जाता है। अर्थात् इस समास में न तो पूर्व पदार्थ की प्रधानता होती है न ही उत्तर पदार्थ की बल्कि दोनों ही पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का बोध कराते हैं। समस्त पद का प्रयोग अन्य पदार्थ के विशेषण रूप से होता है। जैसे- ‘पीतम्’ ‘अम्बर’ यस्य सः = पीताम्बरः (विष्णुः ) ।।
यहाँ पर ‘पीतम्’ और वैसे ही ‘अम्बर’ इन पदों के अर्थ की प्रधानता नहीं है अर्थात् ‘पीला वस्त्र’ इस अर्थ का ग्रहण नहीं होता है अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का अर्थात् ‘विष्णुः’ इसका बोध कराते हैं अर्थात् ‘पीताम्बरः’ इस समस्तपद का अर्थ ‘विष्णुः’ है अतः यहाँ बहुव्रीहि समास है।
इसके अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं। जैसे-)

(1) समानाधिकरणबहुव्रीहिः – यदा समासस्य पूर्वोत्तरपदयोः समानविभक्तिः (प्रथमा विभक्तिः) भवति तदा सः समानाधिकरणबहुव्रीहिः भवति । यथा- (जब समास के पूर्व पद और उत्तरपद में समान विभक्ति (प्रथमा विभक्ति) होती है। तब वह समानाधिकरण बहुव्रीहि होता है। जैसे –
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 12

(2) व्यधिकरण-बहुव्रीहिः – यदा समासस्य पूर्वोत्तरपदयो: भिन्न-विभक्तिः भवति तदा सः व्यधिकरणबहुव्रीहिः भवति। यथा-(जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में अलग-अलग विभक्ति होती है तब वह ‘व्यधिकरण बहुव्रीहि’ समास होता है। जैसे –
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 13

(3) तुल्ययोगे बहुव्रीहिः – अत्र सह शब्दस्य तृतीयान्तपदेन सह समासो भवति । यथा(तुल्ययोगे बहुव्रीहि- यहाँ ‘सह’ शब्द का तृतीया विभक्ति पद के साथ समास होता है। जैसे –

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 14

6. द्वन्द्वसमासः
द्वन्द्वसमासे परस्परं साकांक्षयोः पदयोः मध्ये ‘च’ आगच्छति, अतएव द्वन्द्वसमास: उभयपदार्थप्रधान; भवति । यथा-धर्मः च अर्थः च-धर्मार्थी । अत्र पूर्वपदं ‘धर्म:’ उत्तरपदम् च ‘अर्थ:’, अनयो: द्वयोः अपि प्रधानता अस्ति । द्वन्द्वसमासे समस्तपदं प्रायशः द्विवचने बहुवचने वा भवति । यथा –

(द्वन्द्व समासः- द्वन्द्व समास में परस्पर साभिप्राय पदों के मध्य के ‘च’ आता है; इसलिए द्वन्द्व समास उभयपदार्थ प्रधान होता है। जैसे-“धर्म: च अर्थ: च- धर्मार्थों। यहाँ पूर्व पद ‘धर्म’ और उत्तरपद ‘अर्थ:’ इन दोनों (पदों) की ही प्रधानता है। द्वन्द्व समास में समस्तपद् प्रायः द्विवचन अथवा बहुवचन में होता है। जैसे-)

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अभ्यासः 1

(क) वस्तुनिष्ठप्रश्नाः

1. अव्ययीभावसमासस्य उदाहरणम् अस्ति ( )
(अ) पीताम्बरः
(आ) नीलकमलम्
(इ) यथाशक्ति
(ई) त्रिलोकी

2. अव्ययीभाव-समासस्य उदाहरणम् अस्ति ( )
(अ) महापुरुषः
(आ) चतुर्युगम्
(इ) उपकृष्णम्
(ई) प्राप्तोदकः

3. कर्मधारयसमासस्य उदाहरणम् अस्ति ( )
(अ) पीताम्बरम्
(आ) पीताम्बरः
(इ) निर्मक्षिकम्
(ई) पञ्चपात्रम्

4. द्वन्द्वसमासस्य उदाहरणम् अस्ति ( )
(अ) दशाननः
(आ) दशपात्रम्
(इ) वाक्त्वचम्
(ई) महापुरुषः

(ख) अतिलघूत्तरात्मकप्रश्नाः
निम्नलिखितपदानां समासविग्रहः कर्तव्यः
1. घनश्यामः      –  ……………..
2. प्रतिदिनम्     –  …………….
3. छत्रोपानहम्   –  ……………
4. विद्याधनम्     –  ………….
5. अधिहरि       –  ………….

(ग) लघूत्तरात्मकप्रश्नाः
1. निम्नलिखितपदानां समासविग्रहं कृत्वा समासस्य नामापि लेखनीयम्समस्तपदम्

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 15 b
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः image 16 b

2. निम्नलिखित विग्रह वाक्यानां समासः करणीय
1. श्वेतं वस्त्रम् – …………………
2. मुखं कमलम् इव – ……………..
3. रूपस्य योग्यम् – ………………..
4. उन्नतः वृक्षः – ……………….

3. ‘क’- खण्डं ‘ख’- खण्डेन सह योजयत।
क खण्डः ख खण्डः
(1) अव्ययीभावसमासः उपवनम्
(2) द्वन्द्वसमास: कुसुमकोमलम्
(3) कर्मधारयसमासः हरिहरौ।

उत्तराणि

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्नाः
(1) इ
(2) इ
(3) अ
(4) ई।

(ख) अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः
(1) घन इव श्यामः
(2) दिनं दिने प्रति
(3) छत्रं च उपाहनम् च
(4) विद्या एवं धनम्
(5) हरौ इति

(ग) लघूत्तरात्मक प्रश्नाः

1. सुन्दर: बालकः इति (कर्मधारयसमास:) (2) चतुर्णा युगानां समाहारः सा (द्विगुसमास:) (3) पुरुषः व्याघ्रः इव (कर्मधारयसमास:) (4) रूपस्य योग्यम् (अव्ययीभावसमास:) (5) घन इव श्यामः इति (कर्मधारयसमास:) (6) शिर: च ग्रीवा च (द्वन्द्वसमास:)

2. (1) श्वेतवस्त्रम् (2) कमलमुखम् (3) अनुरूपम् (4) उन्नतवृक्षः
3. क खण्ड                                ख खण्ड
(1) अव्ययीभावसमासः         –        उपवनम्
(2) द्वन्द्वसमास:                   –        हरिहरौ
(3) कर्मधारयसमास:            –       कुसुमकोमलम्

अभ्यासः 2

(1) प्रदत्तेषु उत्तरेषु यद् उत्तरं शुद्धम् अस्ति, तत् चीयताम्|
(दिये गये उत्तरों में से जो उत्तर शुद्ध है, उसे चुनिए)

1. (i) यथासमयं कार्यं कुरु । (समय पर कार्य करो)।   ( )
(अ) समयेन अनतिक्रम्य
(ब) समय: अनतिक्रम्य
(स) समयम् अनतिक्रम्य

(ii) सीतारामौ वनम् अगच्छताम् । (सीता और राम वन को गए ।)  ( )
(अ) सीता च रामः च
(ब) सीते च रामौ च
(स) सीता च रामश्च च

(iii) मुनयः कन्दं च मूलं च फलं च खादन्ति । (मुनि कन्द, मूल और फल खाते हैं ।)  ( )
(अ) कन्दमूलफलानि
(ब) कन्दमूलफलाः
(स) कन्दमूलफलः

(iv) स चन्द्रमुखी अस्ति (वह चन्द्रमुखी है ।)  ( )
(अ) चन्द्र ईव मुखं यस्य सः
(ब) चन्द्र इव मुखं यस्याः सा
(स) चन्द्र इव मुखम्

2. (i) अतिथेः पाणिपादम् प्रक्षालयति । (अतिथि के हाथ-पैर धोता है ।) ।  ( )
(अ) पाणि च पादः च
(ब) पाणिम् च पादम् च
(स) पाणी च पादौ च

(ii) स प्रतिवर्षम् गङ्गास्नानाय गच्छति । (वह प्रतिवर्ष गंगा-स्नान के लिए जाता है ।)  ( )
(अ) वर्ष-वर्षम्
(ब) वर्ष:-वर्षः
(स) वर्षे-वर्षे

(iii) सर्वदा असि त्वम् । (सब कुछ देने वाली हो तुम )  ( )
(अ) सर्वं ददाति इति
(ब) सर्वं ददाति या सा
(स) सर्वं ददति या सा

(iv) उपग्रामं विद्यालयः स्थितः । (गाँव के पास विद्यालय स्थित है ।)  ( )
(अ) ग्रामस्य समीपम्
(ब) ग्राम प्रति
(स) ग्रामस्य पश्चात् ।

3. (i) मधुरदुग्धं कस्मै न रोचते ? (मीठा दूध किसको अच्छा नहीं लगता ?) । ( )
(अ) मधुरं दुग्धं यस्मिन तत्
(ब) मधुरं दुग्धम्।
(स) मधुरः दुग्धः

(ii) पितरौ पुत्रस्य उन्नतिं दृष्ट्वा प्रसीदतः । (माता-पिता पुत्र की उन्नति को देखकर प्रसन्न होते हैं ।)  ( )
(अ) माता च पिता च
(ब) मातरौ च पितरौ च
(स) मातृ च पितृ च

(iii) पीतम् अम्बरं धारयति । (पीला वस्त्र धारण करता है ।  ( )
(अ) पीतम्बरम्
(ब) पीतमाम्बरम्।
(स) पीताम्बरम्।

(iv) तत्रैका रम्या वाटिका विद्यते । (वहाँ एक रम्य वाटिका है ।)  ( )
(अ) रम्यावाटिका
(ब) रम्यवाटिका
(स) रम्यं वाटिको

उत्तराणि:
1. (i) समयम् अनतिक्रम्य । (ii) सीता च रामः च । (iii) कन्दमूलफलानि । (iv) चन्द्र इव मुखं यस्याः | सा ।
2. (i) पाणी च पादौ च । (ii) वर्ष-वर्षम् । (iii) सर्वं ददाति या सा । (iv) ग्रामस्य समीपम् ।
3. (i) मधुरं दुग्धम् । (ii) माता च पिता च । (iii) पीताम्बरम् । (iv) रम्यवाटिका ।।

(2) स्थूलपदेषु समासम् अथवा विग्रहम् कृत्वा उत्तरपुस्तिकायाम् लिखत
(स्थूलपदों में समास अथवा समास विग्रह करके उत्तर-पुस्तिका में लिखिए ।)

1. (i) मधुरवचनम् एव वदेत् । (मधुर वचन ही बोलना चाहिए ।)
उत्तर:
मधुरम् च तत् वचनम् । (मधुर है जो वचन ।)

(ii) महावीरः सदैव कीर्तिं लभते । (महावीर सदैव कीर्ति को प्राप्त करता हैं ।)
उत्तर:
महान् च असौ वीरः । महान् वीरः (महान वीर ।)

(iii) सूपकारः भोजनं पचति । (रसोइया भोजन पकाता है ।
उत्तर:
सूपं करोति इति । (सूप/दाल बनाता है ।)

(iv) राम: मृगस्य पश्चात् धावति । (राम मृग के पीछे दौड़ता है ।)
उत्तर:
अनुमृगम् (मृग के पीछे।)

2. (i) विद्यालयस्य वार्षिक: महोत्सवः अस्ति । (विद्यालय का वार्षिक महोत्सव है ।)
उत्तर:
महान् उत्सवः (महान् च असौ उत्सवः च ।)

(ii) यथेष्ट भोजनं कुरु । (इच्छित भोजन कर )
उत्तर:
इष्टम् अनतिक्रम्य (इच्छा का अतिक्रमण न करके ।)

(iii) सः उन्नतवृक्षम् आरोहति । (वह ऊँचे वृक्ष पर चढ़ता है ।)
उत्तर:
उन्नतं वृक्षम् (ऊँचा पेड़ )।

(iv) कृष्णमेघः बर्षति । (काला बादल बरसता है।)
उत्तर:
कृष्णम् मेघम् (काला मेघ ।)

3. (i) छात्रौ कि पठत: ? (दो छात्र क्या पढ़ते हैं ?)
उत्तर:
छात्रः च छात्रः च (छात्र और छात्र) ।

(ii) महापुरुषः येन गतः स पन्थः । (महापुरुष जिससे गया, वही उचित मार्ग है ।)
उत्तर:
महान् पुरुषः (महान् च असौ पुरुषः ।)

(iii) राधा चतुरा बाला अस्ति । (राधा चतुर बालिका है !)
उत्तर:
चतुरबाला (चतुर नारी/बालिका) ।

(iv) मधुरवचन विना भाषणं व्यर्थम् एव अस्ति । (मधुरवचन के बिना भाषण बेकार ही है।)
उत्तर:
मधुरम् वचनम् (मीठे वचन) ।

4. (i) सा विधिम् अनतिक्रम्य गणितं शिक्षते । (वह विधि का त्याग किए बिना गणित पढ़ाती है ।)
उत्तर:
यथाविधि (विधि से) ।

(ii) काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेद: पिककाकयोः ? (कौआ काला कोयल काली, कोयल और कौए में क्या भेद ?)
उत्तर:
पिकः च काकः च तयोः । (कोयल और कौआ उनमें) ।

(iii) सरोवरे नीलानि कमलानि शोभन्ते । (सरोवर में नीले कमल शोभा देते हैं ।)
उत्त:
नील कमलानि । (नीले कमल ।)

(iv) राजा अपि नीलोत्पलम् इव चक्षुः उत्पाट्य याचकाय समर्पितवान्।
(राजा ने भी नीलकमल की तरह नेत्र को उखाड़ कर याचक के लिए समर्पित कर दिया ।)
उत्तर:
नीलम् उत्पलम् इव । (नीले कमल के समान) ।

5. (i) सः अपि तत् नेत्रं यथास्थानम् अस्थापयत् ।
(उसने भी उस नेत्र को यथास्थान स्थापित कर दिया ।)
उत्तर:
स्थानम् अनतिक्रम्य । (उचित स्थान पर) ।

(ii) वृद्धान् उपसेवितुं शीलं यस्य सः राजा याचकाय द्वितीयमपि नेत्रं दत्तवान् ।
(वृद्धों की सेवा करने का शील है, जिसका, उस राजा ने याचक के लिए दूसरा नेत्र भी दे दिया ।)
उत्तर:
वृद्धोपसेवी (वृद्धों की सेवा करने वाला) ।

(iii) को भेदः पिकः च काकः च तयोः ? (कोयल और कौए में क्या भेद है ?)
उत्तर:
पिककाकयो: (कोयल और कौए में) ।

(iv) प्रत्येकम् अयनस्य अवधिः षण्मासा:। (प्रत्येक अयन की अवधि छः माह होती है।)
उत्तर:
एकम् एकम् (हरेक) ।

6. (i) अनेन वा प्रतिहतम् अन्त:करणं यस्य सः अचिन्तयत् । (इस वचन से आहत हुए हृदय वाले उसने सोचा ।)
उत्तर:
प्रतिदतान्त:करणः (आहत हृदय वाले ने) ।।

(ii) अनुकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् ।
(उद्विग्नता पैदा न करने वाले वाक्य सत्य, प्रिय और हितकर होते हैं ।)
उत्तर:
प्रयम् हितम् च (प्रिय और हितकर) ।

(iii) नीलोत्पलम् इव एकं चक्षुः समर्पितवान् । (नीलकमल की तरह एक नेत्र को सौंप दिया ।)
उत्तर:
नीलम् उत्पलम् । (नीलकमल) ।

(iv) सर्वं ददाति सर्वदाऽस्माकं सन्निधिं क्रियात् । (सब कुछ देती हैं जो सदा, वह हमारी सन्निधि)
उत्तर:
सर्वदा (सब देने वाली)

7. (i) माता च पिता च आगच्छतः । (माता और पिता आते हैं ।)
उत्तर:
मातापितरौ/पितरौ (माता-पिता) ।

(ii) सः पीतम् अम्बरम् धारयति । (वह पीला वस्त्र धारण करता है ।)
उत्तर:
पीताम्बरम् (पीला वस्त्र) ।

(iii) नीलकमलम् विना सरः न शोभते । (नीलकमल के बिना सरोवर शोभा नहीं देता ।)
उत्तर:
नीलम् कमलम् (नीला कमल) ।

(iv) त्वं शक्तिम् अनतिक्रम्य परिश्रमं करोषि । (तुम शक्ति के अनुसार परिश्रम करते हो ।)
उत्तर:
यथाशक्ति (शक्ति के अनुसार) ।

8. (i) रामः च लक्ष्मणः च विश्वामित्रस्य शिष्यौ आस्ताम् । (राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के शिष्य थे ।)
उत्तर:
रामलक्ष्मणौ (राम-लक्ष्मण) ।

(ii) अयं संसार: मरणशीलः अस्ति । (यह संसार मरणशील है ।)
उत्तर:
मरणं शीलं यस्य सः (मरने में ही जिसका शील है ।)

(iii) सरोवरे नीलकमलानि शोभन्ते । (सरोवर में नीलकमल शोभा देते हैं ।)
उत्तर:
नीलानि कमलानि (नीले कमल) ।

(iv) कथमंत्रे नते च उन्नते च विषमे मार्गे क्रीडथ? (कैसे यहाँ नीचे और ऊँचे विषम मार्ग में खेल रहे हो ?)
उत्तर:
नतोन्नते (नीचे-ऊँचे में)

9. (i) दुष्टो बुद्धिः यस्य सः सद्वचनानि तिरस्कृत्य प्राचलत् ।
(दुष्ट है बुद्धि जिसकी वह अच्छे वचनों का तिरस्कार करके चल पड़ा ।)
उत्तर:
दुष्टबुद्धिः (दुष्ट बुद्धि वाला) ।।

(ii) सर्वेषामेव महत्त्वं विद्यते यथासमयम् । (यथासमय सभी का महत्त्व है ।)
उत्तर:
समयम् अनतिक्रम्य (समय के अनुसार) ।।

(iii) ततः युधिष्ठिरार्जुनौ श्रीकृष्णेन सह रथारोहणं नाटयतः ।।
(तब युधिष्ठिर और अर्जुन श्रीकृष्ण के साथ रथ पर चढ़ने का अभिनय करते हैं ।)
उत्तर:
युधिष्ठिरः च अर्जुनः च । (युधिष्ठिर और अर्जुन) ।

(iv) अये! कथं श्रीकृष्णार्जुनौ युधिष्ठिरश्च। (अरे! कैसे श्रीकृष्ण और अर्जुन और युधिष्ठिर ।)
उत्त:
श्रीकृष्णः च अर्जुन: च (श्रीकृष्ण और अर्जुन)।

10. (i) तौ पाणी च पादौ च प्रक्षालयत: । (वे दोनों हाथ और पैर धोते हैं ।)
उत्तर:
पाणिपादम् (हाथ-पैर) ।

(ii) सः प्रतिदिनं दानं करोति स्म । (वह प्रतिदिन दान करता था ।)
उत्तर:
दिने दिनम् प्रति (रोजाना) ।

(iii) सः प्रजाभ्यः धनधान्यं दातुं दानशाला: अकारयत् ।
(उसने प्रजाओं के लिए धन-धान्य देने के लिए दानशालाएँ बनवार्थी ।)
उत्तर:
धनं च धान्यं च (धन और अन्न)

(iv) ततः युधिष्ठिरार्जुनौ श्रीकृष्णेन सह रथारोहणं नाटयतः।।
(तब युधिष्ठिर और अर्जुन श्रीकृष्ण के साथ रथारोहण का अभिनय करते हैं।)
उत्तर:
युधिष्ठिरः च अर्जुनः च (युधिष्ठिर और अर्जुन)

11. (i) किं चपलबालकेभ्यः भीषणानाम् अस्त्राणाम् प्रदानम् उचितम् ? (क्या चपल बालकों को भीषण अस्त्रों का देना उचित है ?)
उत्तर:
भीषणास्त्राणाम् (भयंकर अस्त्रों का) ।

(ii) सर्वेषामेव महत्त्वं विद्यते यथासमयम् । (समय के अनुसार सभी का महत्त्व होता है ।)
उत्तर:
समयम् अनतिक्रम्य । (समय के अनुसार) ।

(iii) नीलमुत्पलं यस्मिन् तत् सर: सुन्दरम् । (नीला कमल है जिसमें, वह तालाब सुन्दर है ।)
उत्तर:
नीलोत्पलम् (नील कमल वाला) ।

(3) अधोलिखित प्रश्नानाम् उत्तराणि तदधस्ताद् दत्तानि । एतेषु उत्तरेषु समास समास-विग्रहं वो कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखत । (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर उनके नीचे दिए हुए हैं । इन उत्तरों में समास अथवा समास-विग्रह करके उत्तर पुस्तिका में लिखिए ।)

1. (i) नरः कीदृशीं वृत्तिं समाचरेत् ?
(ii) हंसस्य पक्षाः कीदृशाः सन्ति ?
(iii) धर्मप्रदां वाचं कः त्यजति ?
(iv) कः लोके आदरं न लभते ?
उत्तराणि:
(i) साधुवृत्तिम्
(ii) दुग्धम् इव धवला
(iii) मूढा मतिः यस्य सः
(iv) विद्यायाः पराङ्मुखः

2. (i) शिष्याय उपादेयं किम् ?
(ii) युष्माकं विद्यालये किम् अस्ति ?
(iii) कः अपक्वं फलं भुङ्क्ते ?
(iv) त्वं कदा विद्यालयं गच्छसि ?
उत्तराणि:
(i) गुरोः वचनम्
(ii) महान् उत्सवः
(iii) विमूढा धी: यस्य सः
(iv) समयम् अनतिक्रम्य

3. (i) भगवन् ! किम् उपादेयम् ? गुरुवचनम्
(ii) को गुरुः ? अधिगततत्त्वः ।
(iii) अहः च निशा चे कः ध्यातव्यः ? ईश्वरः ।
(iv) कौ पूज्यौ ? मातापितरौ ।
उत्तराणि:
5. (i) गुरोः वचनम्
(ii) अधिगतं तत्त्वं येन सः
(iii) अहर्निशम्
(iv) माता च पिता च ।

4. (i) अत्र केषां वाटिको अस्ति ? पुष्पाणां वाटिका
(ii) उद्याने मधुर कण्ठेन कौ कुजतः ? पिकमयूरो
(iii) वाटिकायां कीदृशानि पुष्पाणि सन्ति ? पीतपुष्पाणि
(iv) अत्र कः वसति ? पुण्यात्मा।
उत्तराणि:
1. (i) पुष्पवाटिका
(ii) पिकः च मयूरः च
(iii) पीतानि पुष्पाणि
(iv) पुण्यः आत्मा यस्य सः।

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