Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 27 जीवन का अभिप्राय
RBSE Class 11 Biology Chapter 27 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Biology Chapter 27 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
जीवद्रव्य को ‘जीवन का भौतिक आधार” किसने कहा?
(अ) परकिंजे ने
(ब) हक्सले ने
(स) वीजमान ने
(द) डार्विन ने
प्रश्न 2.
दूध में निम्न में से कौन सी शर्करा पाई जाती है?
(अ) सुक्रोज
(ब) माल्टोज
(स) लैक्टोज
(द) ग्लूकोज
प्रश्न 3.
जन्तु मण्ड (Animal starch) के रूप में जाना जाता है
(अ) ग्लाइकोजन
(ब) ग्लिसरीन
(स) काइटिन
(द) ग्लूकोज
प्रश्न 4.
स्टेरॉइड्स होते हैं
(अ) सरल लिपिक
(ब) संयुक्त लिपिड
(स) व्युत्पन्न लिपिड
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 5.
निम्न में से सरल गोलाकार प्रोटीन का उदाहरण है
(अ) हिस्टोन
(ब) किरेटिन
(स) एक्टिन
(द) फाइब्रिन
प्रश्न 6.
प्रोटीन की इकाई (Monomer) है
(अ) ग्लूकोज
(ब) वसा अम्ल
(स) ग्लिसरीन
(द) अमीनो अम्ल
प्रश्न 7.
DNA में कौन सा क्षार नहीं पाया जाता है
(अ) एडिनीन
(ब) ग्वानीन
(स) यूरेसिल
(द) थाइमिन
प्रश्न 8.
RNA का मुख्य कार्य है
(अ) आनुवंशिक लक्षणों का संचरण
(ब) प्रोटीन संश्लेषण
(स) जैविक क्रियाओं का नियमन
(द) ताप नियंत्रण
प्रश्न 9.
प्रकृति में ऊर्जा का प्रवाह होता है
(अ) एक दिशीय
(द) चक्रीय
(स) असंतुलित
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 10.
मरुस्थलीय वातावरण का मुकाबला करने हेतु ऊंट में कौन सा अनुकूलन होता है
(अ) पैरों में चौड़ी गद्दियां होती हैं।
(ब) आमाशय के रुमेन में जल संचय होता है।
(स) सान्द्र मूत्र का उत्सर्जन होता है।
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तर तालिका
1. (ब)
2. (स)
3. (अ)
4. (स)
5. (अ)
6. (द)
7. (स)
8. (ब)
9. (अ)
10. (द)
RBSE Class 11 Biology Chapter 27 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सजीव पदार्थ के संगठन में भाग लेने वाले दीर्घ मात्रिक तत्वों के नाम लिखिए
उत्तर-
दीर्घ मात्रिक तत्व हैं-
- हाइड्रोजन (H),
- ऑक्सीजन (O),
- नाइट्रोजन (N),
- कार्बन (C)
प्रश्न 2.
प्रकृति में मिलने वाली किन्हीं दो डाइसैकेराइड शर्कराओं के नाम व उनके प्राकृतिक स्रोत बताइये।
उत्तर-
माल्टोज व सुक्रोज। माल्टोज का प्राकृतिक स्रोत अंकुरित बीज जबकि सुक्रोज का स्रोत गन्ना।।
प्रश्न 3.
कीटों में बाह्य कंकाल किसका बना होता है?
उत्तर-
कीटों में बाह्य कंकाल काइटिन (Chitin) का बना होता
प्रश्न 4.
संयुक्त लिपिड्स के कोई दो उदाहरण दीजिये।
उत्तर-
- फास्फोलिपिड्स (टोसिथीन, सिफैलिन)
- ग्लाइकोलिपिड्स (सिरेनिन, फ्रेनोलिन)।
प्रश्न 5.
रक्त के थक्के में पाई जाने वाली प्रोटीन का नाम बताइये।
उत्तर-
रक्त के थक्के में पाई जाने वाली प्रोटीन फाइब्रिनोजन (Fibronogen) है।
प्रश्न 6.
प्रोटीन्स के अपूर्ण जल अपघटन से बनी छोटी पोलीपेप्टाइक श्रृंखलाएं क्या कहलाती हैं?
उत्तर-
प्रोटिओजैज एवं पेप्पटोन्स कहलाती हैं।
प्रश्न 7.
न्यूक्लिक अम्ल में मिलने वाले नाइट्रोजन युक्त क्षारकों के नाम बताइये।
उत्तर-
न्यूक्लिक अम्ल में मिलने वाले नाइट्रोजन युक्त क्षारकों के नाम प्यूरीन व पिरीमिडिन हैं।
प्रश्न 8.
DNA का पूरा नाम लिखिये।
उत्तर-
डिऑक्सीराइवो न्यूक्लिक अम्ल
प्रश्न 9.
ऊर्जा प्रवाह के सम्बन्ध में हरे पौधों को क्या कहते हैं?
उत्तर-
ऊर्जा प्रवाह के संबंध में हरे पौधों को उत्पादक (Producer) कहते हैं।
प्रश्न 10.
समस्थापन का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
सीढ़ियों पर चलने में हमारी टांगों की पेशियों को अतिरिक्त कार्य करना होता है। अतः इन्हें रुधिर की अतिरिक्त पूर्ति के लिए हमारे हृदय की स्पंदन दर (Heart beat) कुछ समय के लिए बढ़ जाती है।
प्रश्न 11.
ऊंट में किस प्रकार का अनुकूलन पाया जाता है।
उत्तर-
ऊंट में मरुस्थलीय अनुकूलन (Desert adaptation) पाया जाता है ।।
प्रश्न 12.
मस्तिष्क का कौन सा भाग शरीर के तापमान नियमन पर नियंत्रण करता है?
उत्तर-
मस्तिष्क को हाइपोथैलेमस भाग शरीर के तापमान पर नियंत्रण करता है।
प्रश्न 13.
शरीर की वृद्धि और नई कोशिकाओं के निर्माण के लिए सबसे अधिक आवश्यक पदार्थ कौनसा है?
उत्तर-
शरीर की वृद्धि और नई कोशिकाओं के निर्माण के लिए सबसे अधिक आवश्यक पदार्थ प्रोटीन (Protein) होता है।
प्रश्न 14.
ATP को पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-
एडिनोसीन ट्राइ फास्फेट।
प्रश्न 15.
संतृप्त और असंतृप्त वसा के उदाहरण दीजिये।
उत्तर-
- संतृप्त वसा का उदाहरण-घी, चर्बी, मक्खन आदि।
- असंतृप्त वसा का उदाहरण-मूंगफली, तिल, सरसों आदि।
RBSE Class 11 Biology Chapter 27 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जैव ऊर्जा प्राप्त करने के लिए कोशिकाएं मुख्यतः किस ईधन पदार्थ’ का उपयोग करती हैं? इसकी विभिन्न श्रेणियों का संक्षिप्त वर्णन दीजिये।
उत्तर-
जैव ऊर्जा प्राप्त करने के लिए कोशिकाएं मुख्यत: कार्बोहाइड्रेट का ईंधन पदार्थ का उपयोग करती हैं। इनको निम्न तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है
(क) मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides)-
ये सरलतम, घुलनशील तथा मीठे कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं। इसलिए इन्हें शर्कराएं कहते हैं। इनके अणुओं में कार्बन की संख्या 3 से 7 हो सकती है। 6 कार्बनयुक्त शर्कराएं मुख्यतः ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं गैलेक्टोज होती हैं। यह शहद और मीठे फलों में अधिक पाई जाती है। इनका रासायनिक सूत्र एक ही- C6H12O6 होता है। कार्बोनिल समूह (C = O) या । हाइड्रोक्सिल समूह (OH-or-HO) के विन्यास का अन्तरे इनमें भिन्नता कर देता है। अत: ये शर्कराएं समावयवी (isomers) होती हैं। इनमें डेक्स्ट्रोज या ग्लूकोज सबसे अधिक पाई जाने वाली महत्वपूर्ण शर्करा होती है। जीवों में पंचकार्बनीय (Pentoses) शर्कराओं में राइबोस (C5H10O5) एवं डीआक्सीराइबोस (C5H10O4) सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि ये क्रमश: RNA एवं DNA नामक आनुवंशिक पदार्थों के संश्लेषण में भाग लेती हैं।
(ख) डाइसैकेराइड्स एवं ओलिगोसैकेराइड्स (Disacchaides and Oligosaccharides) –
समान या विभिन्न मोनोसैकेराइड्स के दो अणुओं (या मोनोमर्स) के ग्लाइकोसाइडिक बन्ध द्वारा परस्पर जुड़ जाने से एक डाइसैकेराइड शर्करा का अणु बनता है, क्योंकि इस अभिक्रिया में जल का एक अणु मुक्त होता है। अतः इसे संघनन संश्लेषण कहते हैं।
डाइसैकेराइड शर्कराएं मीठी और जल में घुलनशील होती हैं; जैसे- पादपों की माल्टोज एवं सुक्रोज तथा जन्तुओं की लैक्टोज। माल्टोज ग्लूकोज के, सुक्रोज ग्लूकोज एवं फ्रक्टोज के तथा लेक्टोज ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज के अणुओं से बनती है। अंकुरित बीजों में । माल्टोज, दूध में लैक्टोज तथा गन्ने में सुक्रोज नामक शर्करा पाई जाती है। मां के दूध में लैक्टोज की मात्रा सर्वाधिक होती है। तीन से दस तक मोनोसैकेराइड अणुओं के जुड़ने से बने कार्बोहाइड्रेट्स को प्रायः ओलिगोसैकेराइड्स कहते हैं ।
(ग) पॉलीसैकेराइड्स (Polysaccharides or Glyeans) –
पॉलीसैकेराइड्स, मोनो सैकेराइड्स के कई अणुओं के बहुलीकरण से बनते हैं। पॉलीसैकेराइड्स अणुओं को (C6H10O) n द्वारा दर्शाया जाता है, जिसमें n मोनोसैकेराइड के अणुओं की संख्या है। जन्तु स्टार्च का निर्माण यकृत एवं पेशियों में उपचय के फलस्वरूप ग्लूकोज से ग्लाइकोजन निर्माण से बनती है। आवश्यकता पड़ने पर जल अपघटन (Hydrolysis) द्वारा इसका पुनः ग्लूकोज में परिवर्तन हो जाता है। इस प्रकार यह ऊर्जा उत्पादन के लिए संग्रहित ईंधन’ का कार्य करती है। पादपों में संग्रहित ईंधन मण्ड (Starch) के रूप में पाया जाता है। सेल्यूलोज नामक पॉलीसैकेराइड्स पादपों में सर्वाधिक पाया जाने वाला कार्बनिक पदार्थ है। कोशिका भित्ति के रूप में यह पादपों का कंकाल बनाता है। लकड़ी, कपास, कागज, गत्ता आदि में मुख्यतः सेल्यूलोज ही होता है। काइटिन (Chitin) नामक नाइट्रोजनयुक्त पॉलीसैकेराइड कीटों तथा अन्य आर्थोपोड्स के बाहरी कंकाल में पाया जाता है।
प्रश्न 2.
लिपिड्स किस प्रकार के पदार्थ हैं? इनके तीन उदाहरण दीजिये।
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स के समान लिपिड्स या वसाएं भी कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से मिलकर बने जटिल कार्बनिक यौगिक होते हैं। ग्लिसरॉल तथा वसा अम्ल इनके मुख्य घटक हैं। ये चिकनाई युक्त तथा जल में अघुलनशील होते हैं। ये ऐसीटोन, ऐल्कोहॉल, ईथर और क्लोरोफार्म आदि विलायकों में घुलनशील होते हैं। उदाहरण-फास्फोलिपिड्स, ग्लाइकोलिपिड्स एवं लेसिथिन।
प्रश्न 3.
गोलाकार एवं तन्तुमय प्रोटीन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
गोलाकार प्रोटीन व तन्तुमय प्रोटीन में अन्तर
गोलाकार प्रोटीन (Globular Protein) | तन्तुमय प्रोटीन (Fibrous Protein) |
1. इस प्रकार की प्रोटीन के अणु द्वितीयक विन्यास वाली प्रोटीन के अणुओं पर अध्यारोपित (Superimposed) होते हैं। इस प्रकार की प्रोटीन के अणु घुमावदार होकर गोलाकार हो जाते हैं। | द्वितीयक विन्यास (Secondary Configuration) वाली प्रोटीन के अणु में अमीनो अम्ल एक लम्बी सर्पिलाकार (spiral) में संघनित होकर तन्तुमय प्रोटीन का निर्माण करते हैं। |
2. गोलाकार प्रोटीन के अणु तीन प्रकार के बंधकों से बंधे रहते हैं। हाइड्रोजन, आयनिक एवं डाइसल्फाइड बंधक। उदाहरण- एन्टीजन एवं एन्जाइम। | तन्तुमय प्रोटीन के अणुओं की आकृति कुंडलाकार (helical) हो जाती है जो कि हाइड्रोजन बंधकों (hydrogen bonds) से जुड़े होते हैं। उदाहरण किरेटिन, मायोसीन एवं कॉलेजन। |
प्रश्न 4.
न्यूक्लिओटाइड्स क्या होते हैं? इनकी रासायनिक संरचना लिखिए।
उत्तर-
न्यूक्लियोटाइड्स-संरचनात्मक रूप से एक न्यूक्लियोटाइड को न्यूक्लियोसाइड के एक फॉस्फोएस्टर के समान माना जा सकता है। नाइट्रोजन क्षार तथा शर्करा का संयोजन न्यूक्लियोसाइड कहलाता है तथा एक क्षार, एक शर्करा एवं फॉस्फेट समूह को न्यूक्लियोटाइड के रूप में जाना जाता है।
नाइट्रोजिनस क्षार + पेन्टोज शर्करा → न्यूक्लियोसाइड
न्यूक्लियोसाइड + फॉस्फोरिक अम्ल → न्यूक्लियोटाइड + H2O
यहां दो प्रकार की पेण्टोज शर्कराएँ पाई जाती हैं। DNA में राइबोज एवं RNA में डीऑक्सीराइबोज शर्करा पाई जाती है। न्यूक्लियोटाइड्स कोशिका घटक का 2 प्रतिशत भाग बनाते हैं। इनमें दो प्रकार के क्षार होते हैं जो कि न्यूक्लिक अम्लों में पाए जाते हैं।
- प्यूरिन : प्यूरिन 9 सदस्ययुक्त, दो वलय युक्त नाइट्रोजिनस क्षार हैं। जिसमें नाइट्रोजन 1′, 3′, 7′ एवं 9′ स्थिति पर पाई जाती है। इसमें एडीनीन (A) एवं ग्वानीन (G) शामिल है।
- पिरिमिडिन : ये प्यूरिन की तुलना में छोटे अणु हैं। ये 6 सदस्य युक्त, एकल वलय युक्त नाइट्रोजिनस क्षार हैं। इनमें नाइट्रोजन 1′ एवं 3′ स्थिति पर पाई जाती है। इसमें साइटोसिन (C), थायमीन (T) एवं यूरेसिल (U) शामिल हैं। DNA में एडीनीन दो हाइड्रोजन बंध द्वारा थायसीन के साथ युग्म बनाती है। सायटोसिन तीन हाइड्रोजन बंध द्वारा ग्वानीन के सत्य युग्म बनाती है।
एक न्यूक्लियोटाइड में एक, दो या तीन फॉस्फेट हो सकते हैं। जैसे AMP (एडीनोसिन मोनोफॉस्फेट) में एक, ADP (एडीनोसिन डाइफॉस्फेट में दो फॉस्फेट होते हैं। II तथा III फास्फेट बंध को उच्च ऊर्जा बन्ध कहते हैं। इनसे लगभग 8 किलो कैलोरी ऊर्जा मुक्त होती है। ATP की खोज कार्ल लोहमन (1929) ने की थी। ATP का निर्माण एक एण्डरगोनिक क्रिया है।
प्रश्न 5.
DNA अणु का रेखाचित्र बनाइये।
उत्तर-
प्रश्न 6.
DNA व RNA में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर-
DNA व RNA में अन्तर
डी.एन.ए | आर.एन.ए. |
1. डी.एन.ए. मुख्यतः केन्द्रक में मिलता है। | आर.एन.ए. मुख्यत: कोशिकाद्रव्य में मिलता है परन्तु इसकी. कुछ मात्रा केन्द्रक में भी मिलती है। |
2. इसमें डी-ऑक्सीराइबोज शर्करा होती है। | इसमें राईबोज शर्करा होती है। |
3. इसमें थायमीन नामक नाइट्रोजिनस क्षारक मिलता है। | इसमें थायसीन के स्थान पर यूरेसिल पाया जाता है। |
4. यह द्विकुण्डल का निर्माण करता है। | यह एक रज्जु का निर्माण करता है। |
5. यह आनुवंशिकी पदार्थ होता है जो गुणों को एक संतति से आता है। | यह प्रोटीन संश्लेषण में काम दूसरी संतति में ले जाते हैं। |
प्रश्न 7.
पोलीसैकेराइड्स क्या होते हैं और कैसे बनते हैं?
उत्तर-
पॉलीसेकेराइड्स (Polysaccharides)- ये संरचना में जटिल होते हैं। ये 10 से हजारों मोनोसेकेराइड्स शर्करा अणुओं के बने होते हैं। ये मोनोसेकेराइड्स के बहुलक होते हैं। इन्हें जलीय अपघटन द्वारा पुनः मोनोसेकेराइड्स में परिवर्तित किया जा सकता है। ये सीधी श्रृंखला (straight chains) या शाखित श्रृंखला (branched chain) में पाये जाते हैं। इनका मूलानुपाती सूत्र (C6H10O5)n होता है। यहां n = मोनोसेकेराइडों की संख्या है। इनको साधारणतया ग्लाइकेन्स (Glycans) कहते हैं। पॉलीसेकेराइड शर्कराएं मीठी नहीं होती हैं।
पादपों में मण्ड एवं जन्तुओं में ग्लाइकोजन पॉलीसैकेराइड का उदाहरण है। मण्ड एवं ग्लाइकोजन ग्लूकोज के बहुलीकरण से बनते हैं। जबकि इनूलिन एक अन्य पोलीसेकेराइड्स है जो फ्रक्टोज के बहुलीकरण से बनता है।
प्रश्न 8.
शरीर में लिपिड्स के कार्य लिखिये।
उत्तर-
लिपिड्स के कार्य
- लिपिड्स शरीर के ताप नियंत्रण और सुरक्षा में सहायता करता है।
- ये स्नेहक (Lubricant) के रूप में कार्य करते हैं।
- संचित व आरक्षित भोजन के रूप में कार्य करते हैं।
- ऊर्जा उत्पादन के लिए भी ईंधन का कार्य करते हैं।
- कई लिपिड्स हारमोन्स व विटामिन के संयोजन में भाग लेते हैं।
- प्राकृतिक वसाओं से घी बनाया जाता है।
- कुछ फास्फोलिपिड्स (सिफेलिन) रक्त स्कन्धन को प्रारम्भ करने वाले कारकों में से एक होते हैं ।
- कोशिकाओं एवं कोशिकीय अंगकों की बाहरी झिल्ली बनाने का कार्य करते हैं।
- ये कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन की तुलना में दोगुनी से भी ज्यादा ऊर्जा देते हैं।
- वास्तविक वसाओं के साबुनीकरण से साबुन बनता है।
प्रश्न 9.
एन्टोपी (Entropy) किसे कहते हैं?
उत्तर-
एन्ट्रोपी (Entropy)-उष्मागतिकी का दूसरा नियम के अनुसार मुक्त उर्जा की कुल मात्रा पूरे ब्रह्माण्ड में कम हो रही है। ऊर्जा का प्रत्येक स्थानान्तरण या रूपान्तरण ब्रह्माण्ड को यादृच्छ कर देता है। दूसरे शब्दों में कोई भी विधि या रासायनिक क्रिया शत-प्रतिशत सक्षम नहीं होती है। कुछ ऊर्जा अव्यवस्था को संयोजित करने में निकल जाती है। वैज्ञानिकों ने इसे निरुद्देश्यता या अव्यवस्था की माप को एन्टोपी (Entropy) कहते हैं। अंतरिक्ष की एन्ट्रोपी ऊर्जा प्रत्येक स्थानान्तरण या रूप परिवर्तन के साथ बढ़ती है। 10 से 20 अरब वर्ष पूर्व जो स्थितिज ऊर्जा अंतरिक्ष के पास थी, वो अब कभी भी उपलब्ध नहीं होगी । अंतरिक्ष की यह बढ़ती हुई एन्ट्रोपी क्यों कम दिखाई देती है। यह स्थिति इसलिए है क्योंकि एन्ट्रोपी बढ़ते हुए ताप का स्थान ले रही है जो अव्यवस्थित आण्विक गति की ऊर्जा है।
प्रश्न 10.
मनुष्य में ताप नियंत्रण कैसे होता है?
उत्तर-
शरीर के आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण की प्रतिक्रिया में शारीरिक उष्मा का नियंत्रण ताप नियंत्रण (Thermoragulation) कहलाता है। प्रत्येक जीव एक्सरगोनिक अभिक्रियाओं के द्वारा शारीरिक उष्मा उत्पादित करता है। मानव समतापी प्राणी है। समतापी का अर्थ है ‘समान तापमान का पाया जाना ।’ समतापी प्राणियों को गरम रुधिर प्राणियों के रूप में भी जाना जाता है। जिनका शारीरिक ताप वातावरणीय तापमान पर निर्भर नहीं होता है।
मनुष्य के शरीर का तापक्रम 37°C या 96°F होता है, जो हमेशा बना रहता है। ग्रीष्ण ऋतु में तथा अधिक व्यायाम करने से हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है, जिसके फलस्वरूप त्वचा में स्थित स्वेद ग्रन्थियां (Sweat glands) से पसीना निकलने लगता है। इसके वाष्पन से शरीर का तापमान कम हो जाता है और हमें राहत अनुभव होती है। इसी प्रकार शीत ऋतु में रक्त वाहिनियां सिकुड़ जाती हैं और रोम खड़े हो | जाते हैं जिससे शरीर का तापक्रम बढ़ जाता है। ताप नियमन की यह क्रिया मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस के नियंत्रण में होती है।
प्रश्न 11.
समस्थापन (Homeostasis) किसे कहते हैं?
उत्तर-
समस्थापन या होमियोस्टेसिस शब्द सर्वप्रथम अमेरिकन फिजियोलाजिस्ट वाल्टर ब्रेडफोर्ड कैनन द्वारा 1932 में दिया गया था।
जीवधारियों में वातावरण एवं भौतिक रासायनिक दशाओं में निरन्तर होने वाले परिवर्तनों के अनुसार अपने आप को नियमित दशा बनाए रखने की प्राकृतिक या जन्मजात क्षमता होती है। जीवधारियों की इस क्षमता को समस्थापन अथवा होमियोस्टेसिस कहते हैं।
निम्न श्रेणी के जन्तुओं की कोशिकाएं वातावरण के सीधे सम्पर्क | में होती हैं। इन जन्तुओं में समस्थापन कोशिकीय स्तर पर होती है। उच्च स्तर के जन्तुओं में शरीर की कोशिकाएं ऊतकों (Tissues), अंगों (Organs), अंग तंत्र (Organ system) में संगठित होती हैं एवं इनका बाह्य वातावरण से सीधा सम्पर्क नहीं होता है। अतः वातावरण से पदार्थों का आदान-प्रदान शरीर के विशिष्ट अंग तंत्र करते हैं।
ये कोशिकाएं अंग तंत्र वातावरण की बदलती भौतिक-रासायनिक दशाओं के अनुरूप नियमित करके अपने आप को नियमित दिशा में बनाए रखते हैं। समस्थापन नियमन हर वक्त सक्रिय (active) रहता है ताकि शरीर का क्रियात्मक संतुलन लगातार बना रहे।
प्रश्न 12.
जीधारियों के लिए जल का महत्व लिग्विये।
उत्तर-
जल का महत्व- जल 70-90 प्रतिशत कोशिकीय पूल का निर्माण करता है। यह मानव शरीर का 70% (लगभग 2/3) भाग बनाता है। यह H तथा O के 2:1 के अनुपात में मिलने से बनता है। 95 प्रतिशत जल स्वतंत्र अवस्था में तथा 5 प्रतिशत कोशिका में बंधित अवस्था में पाया। जाता है। जल एक अच्छा विलायक है। जल जीवन की प्रक्रियाओं को सुचारु बनाए रखने में सहायता करता है। इसलिए जल को जीवन का आधार माना गया है। इसकी अनुपस्थिति में जीवन सम्भव नहीं है।
प्रश्न 13.
अनुकूलन (Adaptation) किसे कहते हैं?
उत्तर-
अनुकूलन (Adaptation)-
प्रत्येक प्राणी में जीवित रहने के लिए वातावरण से सामन्जस्य बनाए रखने का गुण होता है। इसके लिए इन जन्तुओं में संरचनात्मक (Structural), कार्यिकी (physiological) वे व्यवहारिक (behavioral) परिवर्तन आते हैं, जिनकी सहायता से वातावरण में अपने आप को अनुकूलित कर लेते हैं। इन परिवर्तनों को या विशेषताओं को अनुकूलन कहते हैं।
अनुकूलन के फलस्वरूप जीवों तथा उनके वातावरण में सामंजस्य स्थापित रहता है। जैसे जलीय प्राणियों का शरीर तरूपी, गिल्स, पंख, शल्क, वायु ब्लेडर आदि विकसित हो जाते हैं। इसी प्रकार वायु में उड़ने वाले जन्तुओं का शरीर हल्का तथा अग्रे हाथ पंखों में बदल गये जो उड़ने में सहायता करते हैं।
प्रश्न 14.
जन्तुओं में पाये जाने वाले दो मरुस्थलीय व जलीय अनुकूलन लिखिये।
उत्तर-
जन्तुओं में पाये जाने वाले मरुस्थलीय लक्षण निम्न हैं
- ये अर्धठोस यूरिक अम्ल के रूप में मूत्र त्याग कर जल संरक्षित रखते हैं जैसे रेप्टाइल्स ।
- ऊंट, आमाशय के रुमेन (Rumen) में जल संचित करता है। रुमेन की दीवारे में विशेष प्रकार की जल कोशिकाएं होती हैं ।
जलीय अनुकूलन
- इनका शरीर धारारेखित होता है। धारा रेखित शरीर एवं शरीर पर उभारों के अभाव के कारण इन प्राणियों को पानी में तैरते समय किसी अवरोध का सामना नहीं करना पड़ता है।
- मछलियों में पाश्र्वरेखा तंत्र होता है। इसकी सहायता से मछलियों को पानी में विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान होता है।
प्रश्न 15.
जैव तंत्र में ऊर्जा प्रवाह का आलेख बनाइये।
उत्तर-
RBSE Class 11 Biology Chapter 27 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कार्बोहाइड्रेट्स की विभिन्न श्रेणियों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिये।
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट-
कार्बोहाइड्रेट ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। ऊर्जा देने के अलावा ये शरीर संरचना के निर्माण में भाग लेते हैं।
ये कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के यौगिक होते हैं। अधिकांश कार्बोहाइड्रेटों में हाइड्रोजन व ऑक्सीजन जलीय अनुपात (2 : 1) में पाये जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट का सामान्य सूत्र (CH2O), है। कार्बोहाइड्रेट्स पोलिहाइड्रॉक्सी एल्डीहाइड या पोलिहाइड्राक्सी कीटोन है। इनमें एक एल्डीहाड या कीटोन (—CHO या —C = O) क्रियात्मक समूह पाया जाता है।
सबसे सरलतम कार्बोहाइड्रेट्स को शर्करा कहा जाता है। शर्कराएं मीठी होती हैं व फ्रक्टोस (Fructose) सर्वाधिक मीठी शर्करा है।
कार्बोहाइड्रेट्स में उपस्थित सैकेराइड अणुओं को संख्या के आधार पर तीन मुख्य भागों में वर्गीकृत किया जाता है
(1) मोनोसेकैराइड्स (Monosaccharides)
(2) ऑलिगोसेकेराइड्स (Oligosaccharides)
(3) पॉलीसेकेराइड्स (Polysaccharides)
(1) मोनोसेराइड्स (Monosaccharides)-
ये सरलतम शर्कराएं हैं व इनका जलीय अपघटन सम्भव नहीं है। इनका मूलानुपाती सूत्र (empirical formula) Cn(H2O), होता है। इन शर्कराओं के नाम के अन्त में ‘ओज’ (Ose) आता है। जैसे ग्लूकोज, फ्रक्टोज व गेलेक्टोज आदि। यह सरल सीधी श्रृंखला (straigh chain) या वलय (ring) के रूप में पाई जाती है। यदि वलय में 6 सदस्य होते हैं तो इसे पायरेनोज (Pyranose) कहते हैं व यदि वलय में 5 सदस्य होते हैं तो इसे फुरेनोज (Furanose) कहते हैं।
कार्बन परमाणुओं की संख्या के आधार पर इन्हें निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है
- ट्रायोजेज (Trioses) – कार्बन के तीन परमाणु होते हैं। रासायनिक सूत्र (C3H6O3) उदाहरण-ग्लिसरल्डिहाइड।।
- टेट्रोज (Tetrose) – इनमें चार कार्बन परमाणु होते हैं। उदाहरण- इरिथ्रोज (Erythrose)। इसका रासायनिक सूत्र C4H7O4 है।
- पेन्टोज (Pentose) – इनमें पांच कार्बन परमाणु होते हैं। उदाहरण- राइबोज, जाइजोज (xulose)। इसका रासायनिक सूत्र C6H10O5 होता है।
- हेक्सोज (Hexose) – इसमें छ: कार्बन परमाणु होते हैं। उदाहरण- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं गेलेक्टोज। इनका रासायनिक सूत्र C6H12O6 है।
- हेप्टोज (Heptose) – इसमें सात कार्बन परमाणु होते हैं। उदाहरण- मेनोहेप्टुलोज। इनका रासायनिक सूत्र C7H14O7 है।
ग्लूकोज को अंगूर शर्करा (grape sugar) कहते हैं। यह डेक्सटोरोटेटरी (dextorotatory) होती है इसलिए इसे डी-ग्लूकोज या डेक्स्ट्रोज (Dextrose) कहते हैं। इसमें ऐल्डिहाइड समूह पाया जाता है। अतः इसे ऐल्डोलेज शर्करा (Aldolase sugar) कहते हैं।
फ्रक्टोज (Fructose)-इसको फल शर्करा (Fruit sugar) भी कहते हैं। इसे लेव्यूलोज (Laevulose) कहते हैं। इसमें कीटोन समूह पाया जाता है। अतः कीटोज शर्करा (ketose sugar) कहते हैं।
मोनोसेकराइड्स के कुछ व्युत्पन्न भी जीवद्रव्य में पाये जाते हैं। जो निम्न प्रकार हैं-
- फॉस्फेट शर्कराएं जैसे ग्लूकोज 6 फॉस्फेट,
- एमिनो शर्कराएं (Amino sugar) उदाहरण-ग्लूकोसअमाइन (Glucosamine)
(2) ऑलिगोसैकेराइड्स (Oligosaccharides) –
ये 2-10 मोनोसेकेराइड अणुओं के संघनन (condensation) से निर्मित होते हैं। मोनोसेकेराइड इनके एकलक होते हैं। ओलिगोसेकेराइड को जलीय अपघटन द्वारा मोनोसेकेराइडों में परिवर्तित किया जा सकता है। दो मोनोसेकेराइडों के अणुओं के बीच पाये जाने वाले बन्ध को ग्लाइकोसाइडिक बन्ध (Glycosidic bond) कहते हैं। इनमें उपस्थित अणुओं की संख्या के आधार पर निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है
- डाइसे के राइड (Disaccharides) – यह दो अणु मोनोसेकेराइड्स के मिलने पर बनती है। उदाहरण-माल्टोज, सूक्रोज, लेक्टोज।
माल्टोज – यह प्रकृति में नहीं पायी जाती है। इसका निर्माण स्टार्च व ग्लाइकोजन के अपघटन द्वारा होता है।
सूक्रोज – इसे केन शूगर (cane sugar) कहते हैं। यह चुकन्दर, गन्ना, गाजर व फलों में पाई जाती है।
लेक्टोज – दुग्ध में पाई जाती है अतः दुग्ध शर्करा (milk sugar) भी कहते हैं। - टुइसे के राइड्स (Trisaccharides) – यह तीन मोनोसेकेराइड्स अणुओं के मिलने पर बनती है। उदाहरण-रेबीनोज, रेफिनोज एवं मैनोट्राइओज।
- टेट्रासेकेराइड्स (Tetrasaccharides) – यह चार मोनोससेकेराइड्स अणुओं के मिलने पर बनती है। उदाहरण-सारकोडोज व स्टेकियोज।
- पेन्टासै के राइड्स (Pentasaccharides) – ये पांच मोनोसेकेराइड्स अणुओं के संघनन से बनते हैं, जैसे-वरबेकॉज (verbacose)।
(3) पॉलीसेकेराइड्स (Polysaccharides) –
ये संरचना में जटिल होते हैं। ये 10 से हजारों मोनोसेकेराइड्स शर्करा के अणुओं के बने होते हैं। ये मोनोसेकेराइड्स के बहुलक होते हैं। इन्हें जलीय अपघटन द्वारा पुनः मोनोसेकेराइड्स में परिवर्तित किया जा सकता है। ये सीधी श्रृंखला (straigh chains) या शाखित श्रृंखला (branched chains) में पाये जाते हैं। इनका मूलानुपाती सूत्र (C6H10O5)n होता है। यहां n = मोनोसेकेराइडों की संख्या है। इनको साधारणतया ग्लाइकेन्स (Glycans) कहते हैं। पॉलीसेकेराइड शर्कराएं मीठी नहीं होती हैं।
इन्हें संरचना के आधार पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया
(i) समपॉलीसेकेराइड्स (Homopolysaccharides)
(ii) विषमपॉलीसेकेराइड्स (Heteropolysaccharides)
(i) समपॉलीसेकेराइड्स (Homopolysaccharides) – ये एक ही प्रकार की मोनोसेकेराइड्स के कई अणुओं के बहुलीकरण | (polymerisation) से बनती हैं। उदाहरण- ग्लाइकोजन, स्टार्च, सेल्यूलोज एवं काइटिन आदि ।
ग्लाइकोजन (Glycogen) – यह प्राणियों में संग्रहित भोज्य पदार्थ है। यह मुख्यतया यकृत व पेशियों में पाया जाता है। इसे एनीमल स्टार्च भी कहते हैं।
स्टार्च (Starch) – यह पादप कोशिका भित्ति में पाया जाता है। व D ग्लूकोज का बहुलक है।
काइटिन (Chitin) – यह N -एसिटाइल- ग्लूकोसैमाइन इकाइयों द्वारा निर्मित होता है। यह नाइट्रोजन युक्त कार्बोहाइड्रेट्स है। यह क्रस्टेशियन व इनसेक्टा में बाह्य कंकाल का निर्माण करता है।
(ii) विषमपॉलीसेकेराइड्स (Heteropolysaccharides)-ये एक से अधिक प्रकार के मोनोसेकेराइड्स इकाइयों के बहुलक होते हैं। उदाहरण- हाएलोयूरोनिक अम्ल, कान्ड्रिन सल्फेट एवं हिपेरिन।
कार्बोहाइड्रेट के कार्य (Function of Carbohydrates)
- ये ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट से 4.1 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
- ये शरीर में संचित भोजन के रूप में रहते हैं। पादप कोशिका में मंड (स्टार्च) व जन्तु कोशिका में ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहित रहते हैं।
- शर्करा के बहुलक कोशिका भित्ति, क्यूटिकल, योजी ऊतकों, मेट्रिक्स, कोशिका आवरण इत्यादि बनाते हैं।
- ये न्यूक्लिक अम्लों के निर्माण में भी भाग लेते हैं।
- शर्करा के कुछ अणु कोशिकाओं के मध्य सीमेन्ट का कार्य कर उन्हें जोड़ते हैं।
- शर्करा के अणु, अस्थि संधियों पर स्नेहक का कार्य करते
- ग्लाइकोप्रोटीन, कोशिका सतह पर ग्राही का कार्य करते हैं।
- लार, म्यूकस, रुधिर समूह के एण्टीजन में भी शर्करा अणु पाए जाते हैं।
- आर्थोपोडा में बाह्य कंकाल काइटीन भी कार्बोहाइड्रेट का बना होता है।
प्रश्न 2.
रासायनिक रूप से लिपिड्स (Lipids) क्या है? ये कितने प्रकार के होते हैं। वर्णन कीजिये।
उत्तर-
लिपिड्स (Lipids) या वसा (Fat)
कार्बोहाइड्रेट्स के समान लिपिड्स या वसाएं भी कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से मिलकर बने जटिल कार्बनिक यौगिक होते हैं। ग्लिसरॉल तथा वसा अम्ल इनके मुख्य घटक हैं। ये चिकनाई युक्त तथा जल में अघुलनशील होते हैं। ये ऐसीटोन, ऐल्कोहॉल, ईथर और क्लोरोफार्म आदि विलायकों में घुलनशील होते हैं।
जीवों में कई प्रकार की लिपिड्स पाये जाते हैं। रासायनिक संयोजन के आधार पर इन्हें तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है
(1) सरल लिपिड्स (Simple lipids) – ये सरल, मध्यम या विशुद्ध वसाएं होती हैं। इनके अणु अपेक्षाकृत बड़े-बड़े होते हैं। प्रत्येक अणु का संश्लेषण ग्लिसरॉल के एक तथा वसीय अम्लों के तीन अणुओं के ‘ईस्टर बन्थों’ द्वारा परस्पर जुड़ने से होता है। इसीलिए इन्हें ट्राइग्लिसराइड्स भी कहते हैं। घी, तेल, चबी आदि के तेल असंतृप्त वसाओं के उदाहरण हैं, जबकि मूंगफली, सरसों, तिल, सूरजमुखी आदि के तेल असंतृप्त वसाएं हैं। वे सदैव तरल अंवस्था में रहती हैं। इनमें अलग से हाइड्रोजन मिलाकर इनसे वनस्पति घी’ बनाया जाता है।
इनमें ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण इनका ऑक्सीकरण अधिक होता है। अतः ये कार्बोहाइड्रेट्स की अपेक्षा दुगुनी से कुछ अधिक ऊर्जा मुक्त करती है। ऊर्जा के लिए संचित भोजन के रूप में इनका सबसे अधिक महत्व होता है। इनका अधिकांश भण्डारण विशिष्ट वसीय ऊतकों (adipose tissues) में होता है।
(2) संयुक्त या जटिल लिपिड्स (Compound or complex lipids) – इनमें वसीय अम्लों के साथ फास्फेट ग्रुप तथा एक कार्बनिक समाक्षार भी होता है। जटिल रचना के कारण इन्हें संयुक्त वसाएं या जटिल लिपिड्स’ कहते हैं। फॉस्फोलिपिड्स (phospholipids) Trichifcifuga (glycolipids), fufer (lecithin), सिफलिन (cephalin) आदि जटिल लिपिड्स के उदाहरण हैं तथा कोशिका भित्ति व कोशिका अंगों के निर्माण में भाग लेते हैं। ग्लाइकोलिपिड्स तंत्रिकीय ऊतकों की रचना में भाग लेते हैं।
(3) व्युत्पन्न लिपिड्स (Derived Lipids) – ये सरल एवं संयुक्त वसाओं के जलीय अपघटन से बनने वाले अघुलनशील वसाओं के समान लक्षणों वाले होते हैं। उन्हें लाइपोलिपिड्स (Lipolipidis) भी कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं
- स्टेरॉइड्स: (Steroids) – लिंग हार्मोन्स तथा पित्त अम्ल इसके सामान्य उदाहरण हैं।
- स्टेरॉल्स (Sterols) – कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) तथा विटामिन ‘डी’ इस प्रकार की वसाएं हैं।
प्रमुख स्रोत – भोजन में वसा या लिपिड्स की आपूर्ति दो स्रोतों से होती है
- जन्तुओं से-घी, मक्खन, चर्बी, तेल आदि के रूप में ।
- वनस्पतियों से-सरसों, तिल, मूंगफली, बिनौला, नारियल, सूखे मेवे (बादाम, अखरोट, पिस्ता, चिरौंजी आदि), सूरजमुखी आदि। से।
लिपिड्स के कार्य (Function of lipids)
- आवश्यकता पड़ने पर कार्बोहाइड्रेट्स में बदले जा सकते हैं।
- संचित भोजन के रूप में इनका महत्व अधिक होता है।
- वसीय ऊतकों के रूप में ताप-नियंत्रण और सुरक्षा में सहायता करते हैं।
- कुछ फॉस्फोलिपिड (सिफेलिन) रक्त-स्कन्धन को प्रारम्भ करने वाले कारकों में से एक होते हैं।
- ऊर्जा-उत्पादन के लिए ये भी ईंधन का काम करते हैं।
- कोशिकाओं एवं कोशिकीय अंगकों की बाहरी झिल्ली बनाने का कार्य करते हैं।
- कई लिपिड्स हारमोन्स व विटामिन के संयोजन में भाग लेते हैं।
- प्राकृतिक वसाओं से घी बनाया जाता है।
प्रश्न 3.
प्रोटीन्स की विभिन्न श्रेणियों एवं उपश्रेणियों का उदाहरण देकर वर्णन कीजिये।
उत्तर-
प्रोटीन (Protein)
प्रोटीन शब्द सर्वप्रथम मुल्डर ने 1837-38 में दिया। यह मुख्यतया कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन से मिलकर बने होते हैं। इसके अलावा इनमें आंशिक मात्रा में गन्धक, फॉस्फोरस, आयोडीन तथा लोहा भी होता है। संरचनात्मक रूप में प्रोटीन्स, अमीनो। अम्लों के आपस में जुड़ने से बनते हैं। ये अमीनो अम्ल परस्पर पेप्टाइड बन्ध द्वारा जुड़ते हैं।
प्रोटीन्स का वर्गीकरण – रासायनिक संरचना के आधार पर प्रोटीन को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है
(1) सरल प्रोटीन (Simple Proteins) –
यह केवल अमीनो अम्ल द्वारा निर्मित होती है व इनके जलीय अपघटन द्वारा केवल अमीनो अम्ल प्राप्त होते हैं। इन्हें दो श्रेणियों में बांटा गया है
- तंतुमय प्रोटीन्स (Fibrous Proteins)-यह जल में अनघुलनशील होते हैं। इस प्रकार के प्रोटीन की आणविक संरचना मुख्यतः तन्तु (fibre) के समान होती है। कुछ रेशेदार प्रोटीन्स निम्न हैं-कोलेजन, इलास्टिन, मायोसीन, ओसिने, किरेटिन आदि।
- गोलाकार प्रोटीन (Globular Protein)-यह गोलाकार, अण्डाकार अथवा दीर्घ वृत्ताकार होती है। जल में घुलनशील होते हैं। उदाहरण- एल्बुमिन्स, ग्लोबुलिस, हिस्टोन्स, प्रोलेमिन्स आदि।
(2) संयुग्मी प्रोटीन (Conjugated Protein) –
जब प्रोटीन के साथ अन्य अप्रोटीन पदार्थ (Non Protein Substance) जुड़ जाता है तो इसे संयुग्मी प्रोटीन अथवा जटिल प्रोटीन कहते हैं । अप्रोटीन भाग को प्रोस्थेटिक समूह (Prosthetic group) कहते हैं। संयुग्मी प्रोटीन निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है।
- क्रोमोप्रोटीन (Chromoprotein)-वे प्रोटीन जिनमें प्रोस्थेटिक समूह रंजक के रूप में पाया जाता है, क्रोमोप्रोटीन कहलाते हैं। उदाहरणहीमोग्लोबीन, हीमोसायनिन, हीयइरीथीन, साइटोक्रोम्स एवं फ्लेवो प्रोटीन्स ।
- ग्लाइकोप्रोटीन (Glycoprotein)-वे सरल प्रोटीन जिनके साथ कार्बोहाइड्रेट समूह जुड़े हों, ग्लाइकोप्रोटीन कहलाते हैं। उदाहरणम्यूसिने-हिपेरिन, एल्बुमिन एवं इथ्रियोपोइटिन।।
- न्यूक्लियोप्रोटीन (Nacleoprotein)-सरल प्रोटीन व न्यूक्लिक अम्ल संयुक्त होकर न्यूक्लियोप्रोटीन का निर्माण करते हैं।
उदाहरण- हिस्टोन व प्रोटेमिन्स, केन्द्रक में न्यूक्लिक अम्ल के साथ पाए | जाते हैं। - लाइपोप्रोटीन (Lipoprotein)-जब प्रोटीन के साथ वसा | जुड़े रहते हैं तो इन्हें लिपो प्रोटीन कहते हैं। उदाहरण-दूध का प्रोटीन, । रक्त प्लाज्मा के प्रोटीन एवं कोशिका झिल्ली के प्रोटीन।
- फास्फोप्रोटीन (Phosphoprotein)-जब प्रोटीन के साथ | फॉस्फेट समूह जुड़ा रहता है तो उन्हें फॉस्फोप्रोटीन कहते हैं। उदाहरणकेसीन, ओवावाइटेलिन एवं पेप्सीन।।
(3) व्युत्पन्न प्रोटीन्स (Derived Proteins) –
ये प्रोटीन सरल एवं अनुबद्ध प्रोटीन्स (संयुग्मी प्रोटीन) के अपूर्ण जल अपघटन से बनती है। यह पाचन में कुछ समय के लिए बनती है। जैसे- प्रोटीओजेज, पेप्टोन्स, पेप्टाइड्स।
प्रोटीन के कार्य (Function of Protein)
- प्रोटीन शरीर की सभी प्रकार की कोशिकाओं की संरचनात्मक इकाई है।
- प्रोटीन, कोशिका कला के अवयव हैं तथा कला से बाहर या अन्दर आयनों के आवागमन को नियंत्रित करते हैं।
- प्रोटीन प्रत्येक कोशिका की क्रियात्मक इकाई भी है, क्योंकि एन्जाइम (जो कि मूल रूप से प्रोटीन ही है) के अभाव में कोशिका कोई भी कार्य नहीं कर पाती है।
- हार्मोन प्रोटीन के बने होते हैं। ये विभिन्न उपापचयीय क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
- प्रोटीन से प्रतिजन (Antigen) तथा प्रतिरक्षी (Anti body) का निर्माण होता है।
- कुछ प्रोटीन जैसे फाइब्रीनोजन तथा प्रोथ्रोम्बिन, रुधिर का थक्का जमाने में सहायक होते हैं।
- मनुष्यों तथा अन्य जन्तुओं में रुधिर समूह (Blood group) भी प्रोटीन पर आधारित है।
- प्रोटीन सजीवों में ऊर्जा स्रोत का कार्य भी करते हैं।
- हीमोग्लोबिन जन्तुओं में कोशिकीय श्वसन हेतु सम्पूर्ण शरीर में ऑक्सीजन के लिए वाहन का कार्य करती है।
- किरेटीन, फाइब्रीन, कोलेजन, इलास्टिन जैसे योजी ऊतक के संगठन तथा किरेटिन सिल्क फाइब्रीइन जैसी संरचनाएं भी प्रोटीन से होती हैं।
- सींग, नाखून आदि की किरैटिन द्वारा सुरक्षा और आक्रमण के हथियार के रूप में।
- शरीर की वृद्धि व ऊतकों की मरम्मत के लिए आवश्यकता होती है।
- पेशियों में संकुचनशीलता प्रदान करती हैं। (एक्टीन व मायोसिन)।
प्रश्न 4.
प्रकृति में ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow) का विस्तृत वर्णन कीजिये।
उत्तर-
प्रकृति में ऊर्जा का प्रवाह एक दिशीय होता है। हरे पेड़-पौधे सूर्य की सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं। उन्हें उत्पादक (Producer) कहते हैं। जिसका उपयोग प्राथमिक उपभोक्ता (मांसाहारी) करते हैं। प्राथमिक उपभोक्ताओं को द्वितीयक उपभोक्ता (मांसाहारी) एवं द्वितीयक उपभोक्ता को तृतीयक श्रेणी के उपभोक्ता भोजन के रूप में ऊर्जा ग्रहण करते हैं।
उत्पादक (स्वयंपोषी) व उपभोक्ता के नष्ट होने पर सूक्ष्मजीव उन पर क्रिया कर ऊर्जा प्राप्त करते हैं। अंत में ऊर्जा वातावरण में मिल जाती है। इस प्रकार जैविक तंत्र में सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होने वाली ऊर्जा विभिन्न स्तरों से होती हुई वातावरण में विलीन हो जाती है । पुनः सूर्य तक नहीं जाती है। अतः इसे एक दिशीय (Unidirectional) प्रवाह कहते हैं।
जैव तंत्र में सम्पूर्ण ऊर्जा जो कार्य सम्पन्न कर सकती है और काम में न आने वाली ऊर्जा, जो अवस्थाओं में खो जाती है, ऐन्थेल्पी (Enthelpy) कहलाती है। प्रयोग में आने वाली ऊर्जा की मात्रा जो कार्य करने के लिए उपलब्ध होती है तथा जब पूरे तंत्र में ताप और दाब समान होते हैं, मुक्त ऊर्जा कहलाती है।
उष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुसार ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है, परन्तु ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।
अन्य शब्दों में किसी पृथक्कृत तंत्र में ऊर्जा की कुल मात्रा स्थिर रहती है। इसलिए प्रथम नियम ऊर्जा के संरक्षण का नियम कहलाता है।
उष्मागतिकी का दूसरा नियम बताता है कि मुक्त ऊर्जा की कुल मात्रा पूरे ब्रह्माण्ड में कम हो रही है। इसके अनुसार ऊर्जा का प्रत्येक स्थानान्तरण या रूपान्तरण ब्रह्माण्ड को बेतरतीब कर देता है। दूसरे शब्दों में कोई भी भौतिक विधि या रासायनिक क्रिया शत-प्रतिशत सक्षम नहीं होती है। कुछ ऊर्जा अव्यवस्था को संयोजित करने में निकल जाती है। वैज्ञानिकों ने इस निरुद्देश्यता या अव्यवस्था की माप को एन्ट्रोपी कहते हैं। अंतरिक्ष की एन्ट्रोपी ऊर्जा प्रत्येक स्थानान्तरण या रूप परिवर्तन के साथ बढ़ती है। इससे बीस अरब वर्ष पूर्व जो क्षितिज ऊर्जा अंतरिक्ष में थी, वो अब उपलब्ध नहीं है। अंतरिक्ष की यह बढ़ती हुई एन्ट्रोपी क्यों कम दिखाई देती है। यह स्थिति इसलिए है क्योंकि एन्ट्रोपी बढ़ते हुए ताप का स्थान ले रही है जो अव्यवस्थित आणविक गति की ऊर्जा है।
प्रश्न 5.
अनुकूलन किसे कहते हैं? जन्तुओं में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार अनुकूलनों पर विस्तृत लेख लिखिए। .
उत्तर-
प्रत्येक प्राणी में जीवित रहने के लिए वातावरण से सामन्जस्य बनाए रखने को गुण होता है। इसके लिए इन जन्तुओं में संरचनात्मक कार्यिकी व व्यवहार परिवर्तन (विशेषताएं) आते हैं जिनकी सहायता से वातावरण में अपने आप को अनुकूलित कर लेते हैं। इन परिवर्तनों को या विशेषताओं को अनुकूलन (Adaptation) कहते हैं।
अनुकूलन के फलस्वरूप जीवों तथा वातावरण में सामंजस्य स्थापित रहता है। हम यहां दो प्रकार के अनुकूलनों का अध्ययन करेंगे।
(1) मरुस्थलीय अनुकूलन (Desert adaptation)
(2) जलीय अनुकूलन (Aquatic adaptation)
(1) मरुस्थलीय अनुकू लेन (Desert adaptation)-
मरुस्थलीय प्राणियों की त्वचा में स्वेद ग्रंथियां (Sweat glands) की संख्या कम व ये मोटे आवरण वाले आश्रय स्थलों में रहते हैं जिससे प्रस्तवेदन (Perspiration) कम होता है। इनकी त्वचा मोटी व अपारगम्य होती है। त्वचा पर शल्क व कांटे होते हैं। इनमें उष्मीय सहनशीलता क्षमता होती है। इस प्रकार के जन्तुओं में प्रमुख अनुकूलन निम्न प्रकार से पाये जाते हैं|
- प्राणियों में सांद्रित मूत्र या अर्ध ठोस यूरिक अम्ल का उत्सर्जन किया जाता है जैसे सरीसर्प (Reptiles)।
- ऊंट रेगिस्तान में पाए जाने के कारण रेगिस्तान का जहाज कहते हैं। इनके पैर गद्दीदार होते हैं एवं रेतीली मिट्टी पर चलने में सहायता करते हैं।
- ऊंट में कूबड़ पाई जाती है जिसमें पाई जाने वाली जमा वसा तापरोधी स्रोत का कार्य करती है।
- ऊंट के आमाशय में रुमेन (Rumen) पाता जाता है। जिसमें जल संचित रहता है। रुमेन की दीवार में विशेष प्रकार की जल कोशिकाएं (Water cells) पाई जाती हैं।
- एक बार में जल अच्छी तरह से पानी पीने के बाद एक से दो सप्ताह तक बिना पानी पीये रह सकता है।
- ऊंट के नासा छिद्रों (nostrils) पर मांसल रचनाएं पाई जाती हैं जो नासा छिद्रों को बन्द कर गरम वायु को अन्दर प्रवेश करने से रोकती हैं।
- मरुस्थलीय जन्तुओं को आंखें बन्द करने पर भी दिखाई देता है।
(2) जलीय अनुकूलन (Aquatic adaptation)-
ऐसे जन्तु जो जल में निवास करते हैं उन्हें जलीय जन्तु कहते हैं। इनमें निम्न महत्वपूर्ण लक्षण पाये जाते हैं
- जलीय प्राणियों का शरीर तुर्करूप (spindle shaped) या नाव की आकृति का होता है। उदाहरण मछलियां इस प्रकार की आकृति के कारण जलीय माध्यम में गति करने पर इनके शरीर पर कम दबाव पड़ता है। (after least Resistance)।
- इनके शरीर पर तैरने के लिए पंख (fins) पाये जाते हैं। ये शरीर का संतुलन बनाए रखने का कार्य करते हैं। उदाहरण-मछलियां।
- इनमें श्वसन (respiration) के लिए गिल्स (gills) पाये जाते हैं। इनसे जलीय माध्यम में गैसों का आदान-प्रदान होता है।
- कई मछलियों में वायु ब्लेडर (Air bladder) पाया जाता है, इसमें हवा भरी रहती है। यह प्लवन (ploation) का कार्य करता है। मछली इसके कारण जल में आसानी से ऊपर-नीचे हो सकती है।
- जलीय प्राणियों की अस्थियां हल्की व स्पंजी (spongy) होती हैं। इनका शरीर कमजोर व मुलायम होता है।
- इन प्राणियों के शरीर पर श्लेष्मा ग्रंथी व शल्क पाये जाते है।
- समुद्री प्राणियों में लवण की अधिक मात्रा को बाहर निकालने के लिए नेत्रों में लवण उत्सर्जक ग्रंथियां पाई जाती हैं। उदाहरण-समुद्री कछुआ।
- मछलियों में पाश्र्व रेखा तन्त्र (lateral line system) पाया जाता है जो पानी में मछलियों को विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान कराता है।
- व्हेल में अग्रपाद फ्लिपर में रूपान्तरित हो जाते हैं जो तैरने में सहायता प्रदान करते हैं।
- कुछ समुद्री प्राणियों में विद्युत उत्पन्न करने की क्षमता होती है जैसे-विद्युत मछली (Electric ray)
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